ओ हेनरी की कहानी - आखिरी पत्ता

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मशहूर कहानीकार ओ. हेनरी की विश्वविख्यात कृति ' दी लास्ट लीफ ' का हिंदी रूपांतरण। संभवतः आपने इस कहानी को पहले भी पढ़ा हो, और हिंदी...

मशहूर कहानीकार ओ. हेनरी की विश्वविख्यात कृति ' दी लास्ट लीफ ' का हिंदी रूपांतरण।

संभवतः आपने इस कहानी को पहले भी पढ़ा हो, और हिंदी रूपांतरण किसी अन्य का रहा हो. परंतु इस कालजयी कहानी का हिंदी रूपांतरण अरविन्द गुप्ता ने अपने अंदाज में बेहद सरल सहज भाषा में किया है, जो बेहद पठनीय है. एक बार फिर से पढ़ें. पुनर्पाठ - इस कालजयी कहानी का.

यह कहानी एक शराबी, बूढ़े असफल चित्रकार की है जो अपनी अंतिम मास्टरपीस कलाकृति- आखिरी पत्ते को पेंट करके, एक मासूम लड़की की जान बचाता है 

आखिरीपत्ता

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ओ. हेनरी

 

प्रस्तुति :

अरविन्द गुप्ता

वाशिंगटन चौक में गलियां पागलों की तरह इधर-उधर दौड़ती हुई जमीन को छोटे-छोटे पट्टों में बांटती हैं। कुछ पट्टे तिकोने आकार के हैं तो कुछ अजीबो-गरीब कोण बनाते हैं। कभी कोई चित्रकार यहां आया होगा। उसे यह जगह सस्ती और अच्छी लगी होगी। इसीलिए उसने यहां अपना डेरा जमा लिया।

धीरे- धीरे वहां कई और फटीचर चित्रकार आकर बस गए। चंद वर्षों में यह इलाका आर्टिस्टों की एक बस्ती बन गया। यहीं पर एक तीन मंजिले ईंट के मकान की ऊपर वाली बरसाती में सू और जोम्सी का स्टूडियो था। जौन्सी का असली नाम वैसे जोआना था। पर सभी लोग उसे जौन्सी ही कह कर बुलाते थे। एक अमरीकी शहर मेन की रहने वाली थी तो दूसरी कैलिफोर्निया की थी। दोनों पहली बार एक रेस्टोरेन्ट की मेज पर मिली थीं। बातचीत के दौरान उन्होंने पाया कि उनकी कलात्मक रुचियां एक दूसरे से काफी मेल खाती हैं। इसी वजह से दोनों ने मिल कर एक स्टूडियो खोल लिया।

यह बात मई के महीने की थी। नवम्बर की ठंड आते ही, एक अजनबी बीमारी-जिसे डाक्टर निमोनिया कहते हैं, ने बस्ती के कई लोगों को अपने बर्फीले हाथों से आ दबोचा। बस्ती के पूर्वी हिस्से में कहर बरपाने के बाद यह बीमारी दबे पांव बस्ती की संकरी, भूल - भुलइयों वाली गलियों में भी प्रवेश कर चुकी थी।

कम उम्र की जौन्सी. जिसका खून कैलिफोर्निया की पश्चिमी हवाओं द्वारा पहले ही पतला है। चुका था. इस खूंखार बीमारी का शिकार हो गई। जौन्सी बिना हिले-डुले दिन भर अपने पलंग पर पड़ी रहती और खिड़की के बड़े कांच से सामने वाली ईट के मकान को ताकती रहती थी।

एक दिन डाक्टर ने आकर जौन्सी का मुआइना किया गौर फिर दरवाजे के पास हल्की सी आवाज में उन्होंने मू से यह शब्द कहे : '' दस में से केवल एक चांस है बचने का। '' उन्होंने थर्मामीटर का पारा झटकते हुए कहा, '' वह भी तब, जब उसमें जिंदा रहने की कुछ ललक जगे। इस भयानक बीमारी के सामने हमारी सभी दवायें फेल हैं। इतने लोग मर रहे है, कि उन्हें दफनाने के लिए ताबूत कम पड़ रहे है। तुम्हारी मित्र ने तो जैसे ठीक न होने की कसम ही खा ली है। उसे क्या कोई निराशा सता रही है। ''

'' वह एक दिन नेपल्स में समुद्र की खाड़ी का चित्र पेष्ट करना चाहती है, '' मू ने कहा।

'' इस मौके पर पेंटिंग की बात! छोड़ो भी। यह बताओ.. क्या वह किसी मर्द वगैरह के चक्कर में तो दुखी नहीं है? ''

'' नहीं डाक्टर.. ऐसा कुछ भी नहीं है, '' मू ने डाक्टर को आश्वस्त किया। '' तब तो बस उसके बदन की कमजोरी ही है। '' डाक्टर ने कहा. '' मेरा जो कुछ मेडिकल ज्ञान है उससे मैं अपनी ओर से तो भरसक प्रयास करूंगा ही। पर जब मरीज अपने जनाजे में गाड़ियों की संख्या गिनना शुरू कर देते है तो मैं अपनी दवाओं की असरदार ताकत को पचास प्रतिशत घटा देता हूं। अगर तुम उसे किसी भी बहाने जिंदा रहने के लिए प्रेरित कर सकी तो उसके बचने की संभावना दस की बजाए पांच में से एक हो जाएगी। ''

डाक्टर के चले जाने के बाद मू अपने कमरे में जाकर फूट- फूट कर रोई। उसका जापानी रूमाल, आंसुओं से तर हो गया। फिर वह ड़ाइंग-बोर्ड लेकर, एक गाने की धुन पर सीटी बजाती हुई जौन्सी के कमरे में गई। जौन्सी का मुंह खिड़की की ओर था ओर वह पलंग पर चुपचाप पड़ी थी। उसकी चादर की एक भी सिलवट नहीं हिल रही थी। यह सोच, कि जौन्सी सो रही है. मू ने सीटी बजाना बंद कर दिया।

थोड़ी देर में सू अपनी पेंटिंग में खो गई। वह दो घोड़े बना रही थी जिनमें से एक पर एक रेड इंडियन सवार था। तभी उसे एक हल्की सी आवाज सुनाई पड़ी 1 आवाज जब दुबारा आई, तो वह झट अपना काम छोड़ कर जौन्सी के पलंग के पास गई।

जौन्सी चुपचाप पड़ी थी। उसकी आंखें पूरी तरह खुली थीं। वह खिड़की के बाहर टकटकी लगाए ताक रही थी और उल्टी गिनती गिन रही थी।

'' बारह, '' उसने कहा। फिर कुछ देर बाद, '' ग्यारह '' फिर '' दस। '' '' नौ, आठ, सात '' तो उसने एक ही सांस में इकट्ठे कह डाले।

सु भी ध्यान से खिड़की के बात, देखने लगी। आखिर जौन्सी क्या गिन रही है? बाहर एक छोटा सा मैदान था और उससे बीस फीट की दूरी पर दूसरे घर की ईट की दीवार थी। एक गंठीले तने वाली बेल. जिसकी जड़ सड़ चुकी थी, दीवार पर आधी ऊंचाई तक चिपकी थी। पतझड़ की सद हवायें बेल के लगभग सभी पत्तों के। उड़ा ले गयी थीं। अब बेल की टहनियों का सिर्फ कंकाल बचा था जो दीवार की ढहती ईंटों से चिपका था।

'' क्या बात है जौन्सी, '' मू ने पूछा।

'' छह. '' जौन्सी ने फुसफुसाते हुए कहा। '' अब वह तेजी से झड़ रही हैं। तीन दिन पहले लगभग सौ थीं। उन्हें गिनते-गिनते मेरा सिर चकरा गया था। परंतु अब गिनना आसान है। लो, एक गौर गिर गई। अब केवल पांच बची हैं। ''

'' पांच, क्या?'' कुछ तो बताओ जौन्सी?''

'' पत्तियां। उस पुरानी बेल पर। जब आखरी पत्ती झड़ जायेगी तब मैं भी चल बसूंगी। मुझे पिछले तीन दिनों से इस बात का आभास हो रहा है। क्या तुम्हें डाक्टर ने नहीं बताया!''

'' मैंने इस तरह की बकवास पहले कभी नहीं सुनी. '' सू ने एतराज के लहजे में कहा. '' इन बूढ़ी पत्तियों का तुम्हारी तबीयत के ठीक होने से भला क्या लेना-देना? मुझे याद है कि यह बेल हमेशा से तुम्हें बहुत प्यारी लगती रही है। पर इतनी पागल न बनो। अभी सुबह ही डाक्टर ने मुझे बताया है कि तुम्हारे अच्छे होने की संभावना दस मैं से एक है। यह एक अच्छी संभावना है। थोड़ा धीरज रखो। और लो, यह सूप पियो। मैं अपनी पेंटिंग पूरी करती हूं जिससे मैं उसे बेच कर तुम्हारे लिए कुछ अच्छा खाना और वाइन ला सकूं। ''

'' अब तुम और वाइन मत लाना, '' जौन्सी ने खिड़की के बाहर ताकते हुए कहा।

'' लो. एक पत्ती और गिर गई। अब केवल चार पत्तियां ही बची हैं। मैं अंधेरा होने से पहले आखिरी पत्ती को गिरते देखना चाहती हूं। फिर मैं भी चली जाऊंगी। ''

'' मेरी प्यारी जौन्सी!'' मू ने झुकते हुए कहा, '' तुम मुझ से वादा करो कि तुम अपनी आंखें बंद रखोगी उघर जब तक में काम कर रही हुं तब तक खिड़की के बाहर नहीं झांकोगी। मुझे यह पेंटिंग कल तक पूरी करके देनी है। चित्र बनाने के लिए रोशनी चाहिए नहीं तो खिड़की का पर्दा गिरा देती। ''

'' क्या तुम दूसरे कमरे में जाकर पेंट नहीं कर सकती? '' जौन्सी ने रुखाई से पूछा।

'' इस समय मेरा तुम्हारे साथ रहना ही अच्छा है, '' मू ने कहा। '' दूसरे, मैं नहीं चाहती कि तुम उन पत्तियों को ताकती रहो। ''

'' जैसे ही तुम्हारा काम खत्म हो तुम मुझे बता देना. '' जौन्सी ने अपनी आंख मूंदते हुए कहा। उसका चेहरा एकदम सफेद था और वह किसी निश्चल मूर्ति की भांति शांत पड़ी थी। वह बोली. '' मैं आखिरी पत्ते को गिरते देखना चाहती हूं। मैं इंतजार करते -करते थक गई हूं। मैं सोचते -सोचते भी थक गई हूं। मैं अब दुनिया की हर चीज के साथ अपनी जकड़ और लगाव ढीला करना चाहती हूं और फिर मुक्त होकर उन सूखी पत्तियों की तरह तैरते हुए धीरे - धीरे नीचे, और नीचे गिरना चाहती हुं। ''

'' थोड़ा सोने की कोशिश करो जौन्सी. '' सू ने कहा। '' मैं जरा बैरम को बुलाती हूं। मैं एक खदान मजदूर का चित्र बना रही हूं और चाहती हूं कि बेरम कुछ देर तक माडल जैसे खड़ा रहे। मैं बस दो मिनट में आई। तब तक तुम बिल्कुल हिलना नहीं। ''

बूढ़ा बैरम भी एक पेंटर था जो उसी मकान में निचली मंजिल पर रहता था। वह कोई साठ साल का होगा। उसकी लंबी दाढ़ी थी। बैरम एक हारा और असफल पेंटर था। चालीस साल ब्रश चलाने के बाद भी वह कोई खास कामयाबी हासिल नहीं कर पाया था। उसके दिल में हमेशा एक मास्टरपीस पेंट करने की तमन्ना थी, परंतु वह उसे कभी शुरू नहीं कर पाया था। कई सालों से उसने कोई अच्छी कलाकृति नहीं बनाई थी। रोजी- रोटी के लिए वह कभी - कभार साइन बोर्ड और तख्तियां पेंट करता था। बस्ती के युवा आर्टिस्टों के लिए वह मॉडल का काम कर कुछ पैसे कमा लेता था। वह शाम को जम कर दारू पीता और फिर अपनी आनेवाली मास्टरपीस कलाकृति के बारे में सबको बताता। वह एक चिड़चिड़ा, दढ़ियल बुड्ढा था, जो हरेक की कमजोरियों पर हंसता था। पर उसके दिल में अपनी छत पर रह रहे दोनों युवा चित्रकारों के लिए बहुत प्यार था।

मू जब नीचे गई तो बैरम अपनी कोठरी में बैठा सिगरेट फूंक रहा था। उसके पास ही उसका ड़ाइंग बोर्ड था. जिसका कोरा कैनवस पिछले पच्चीस सालों से पेंट लगने का इंतजार कर रहा था। मू ने बैरम को जोन्सी के बारे में पूरी बात बताई-कि कैसे पत्तियों के गिरने के साथ --साथ जौन्सी की जिंदगी भी ढल रहीं थी।

'' कैसे-कैसे बेवकूफ लोग हैं इस दुनिया में. जो इसलिए मरना चाहते है क्योंकि किसी सूखी बेल की पत्तियां झड़ रही है? मैंने ऐसी बात पहले कभी नहीं सुनी। खैर, इस वक्त मैं तुम्हारे लिए मॉडलिंग नहीं कर पाऊंगा। और मैं जौन्सी की मदद भी कैसे कर सकता हूं?''

'' इस समय जौन्सी बेहद बीमार और कमजोर है.. '' मू ने कहा। '' और तेज बुखार के कारण उसके दिमाग में अजीबोगरीब विचार आ रहे हैं। बैरम. तुम्हारी जैसी मर्जी। तुम मॉडल नहीं बनना चाहते तो न बनी। वैसे तुम एक दम निठल्ले आदमी हो-न काम के न धाम के। ''

बैरम भी अब चिल्लाया.. '' किसने कहा कि मैं मॉडल नहीं बनूंगा। तुम चलो. मैं अभी आधे घंटे में तुम्हारे पास आता हूं। जौन्सी की तबीयत के बारे में सुनकर मेरा दिल दुखी हो गया है। एक दिन मैं अपनी मास्टरपीस कलाकृति अवश्य पेंट करूंगा और फिर हम सब लोग यहां से चले जायेंगे। ''

जब वह दोनों ऊपर पहुंचे तो जौन्सी गहरी नींद में सोई थी। मू ने पर्दा गिरा दिया और बैरम को दूसरे कमरे में ले गई। वहां वह दोनों सहमे हुए खिड़की के बाहर उस बेल को घूरने लगे। फिर वह एक क्षण के लिए बिना बोले एक दूसरे को देखते रहे। बाहर ठंडी बर्फ पड़ रही थी और लगातार बारिश हो रही थी। फिर बैरम खदान मजदूर की अदा में मॉडल बन कर बैठ गया और मू उसका चित्र बनाने लगी। जब सुबह मू सो कर उठी ते। उसने जौन्सी को फटी आंखों से खिड़की के हरे पर्दे को ताकते पाया।

'' पर्दा उठाओ! मैं बाहर देखना चाहती हूं, '' उसने धीमी आवाज में आदेश दिया।

अनमने दिल से मू, ने उसका पालन किया।

वाह! सारी रात भयानक तूफान और भीषण हवाओं के बावजूद उस ईंट की दीवार में बेल पर अभी भी एक पत्ती लटकी थी। पत्ती तने के पास हरी थी. परंतु उसकी दंतीली किनार उम्र के साथ-साथ पीली पड़ चुकी थी। वह सहमी पत्ती अपना सारा साहस बटोरे अभी भी जमीन से कोई बीस फीट ऊपर लटकी थी।

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'' यह आखिरी पत्ती है. '' जौन्सी ने कहा, '' मैँने सोचा था कि यह निश्चित ही रात को गिर जायेगी। मैंने हवा के तेज झोंकों की चीत्कार सुनी थी। यह पत्ती आज तो अवश्य ही गिरेगी और तब मैं भी चल बसूंगी। ''

'' जौन्सी,. '' सू ने अपने मुरझाए चेहरे को तकिए मैं छिपाते हुए कहा। '' अगर तुम अपने बारे में चिंतित नहीं हो तो कम से कम मेरे बारे मैं तो सोचो। तुम्हारे बगैर मैँ क्या करूंगी?''

जौन्सी ने कोई उत्तर नहीं दिया। दुनिया में सबसे अकेली आत्मा वह होती है जो किसी दूसरी, अनजानी दुनिया में जाने की तैयारी में हो। कैसे -कैसे करके वह दिन ढला। शाम की धुंधली रोशनी में उन्हें अभी भी वह आखिरी पत्ता साफ दिखाई दे रहा था। रात होते ही, उत्तरी हवा ने अपना तांडव-नृत्य दुबारा शुरू कर दिया और तेज बारिश की बूंदें लगातार खिड़की के कांच से टकरा कर गिरती रहीं। जैसे ही पौ फटी और थोड़ा उजाला हुआ वैसे ही जौन्सी ने खिड़की का पर्दा हटाने का आदेश दिया।

बेल पर लगा आखिरी पत्ता अभी भी था।

जौन्सी काफी देर तक लेटे-लेटे उसे निहारती रही। फिर उसने सू को बुलाया, जो कि चौके में गैस पर चिकन-सूप बना रही थी।

'' मुझ से भारी गलती हुई है मू '' जौन्सी ने कहा। '' न जाने क्यों वह आखिरी पत्ता अभी भी वहां है। वह पत्ता मेरी दुष्टता बताता है। मैं मरने की सोच रही थी, जो एक पाप है। अब तुम मेरे लिए थोड़ा सूप ले आओ और साथ में एक कप दूध भी। हां! उससे पहले जरा आईना तो देना। फिर मेरी पीठ के पीछे कुछ तकियों की टेक लगा दो जिससे मैं तुम्हें खाना बनाते हुए देख सकूं। ''

एक घंटे के बाद जौन्सी ने फिर कहा :

'' मू एक दिन मैं नेपल्स मैं समुद्र की खाड़ी पेंट करना चाहती हूं। ''

शाम को जब डाक्टर आए तो मू उन्हें दरवाजे तक छोड़ने आई। '' अब ठीक होने की अच्छी संभावना है. '' डाक्टर ने मू से हाथ मिलाते हुए कहा। '' अगर अच्छी तरह देखभाल करोगी, तो तुम अवश्य जीत जाओगी। अब मैं नीचे जा रहा हूं जहां एक और मरीज को देखना है। एक और आदमी है-नाम है बैरम, शायद कोई आर्टिस्ट हे। उसे भी लगता है निमोनिया हो गया है। मरीज की हालत काफी खराब है और बचने की कोई उम्मीद नहीं है। आज उसे इलाज के लिए अस्पताल ले जाया जायेगा। ''

अगले दिन डाक्टर ने मू से कहा. '' तुम्हारी दोस्त अब खतरे से बाहर है। तुम बाजी जीत गयी। उसे अब अच्छा खाना खिलाओ, बस। '' उस शाम जब मू जौन्सी के पास गई तो वह पलंग पर बैठी इतमीनान से ऊन का एक मफलर बुन रही थी। मू ने अपना हाथ उसके कंधे पर रखा।

'' मुझे तुम्हें कुछ बताना है, '' उसने कहा। '' बैरम का आज अस्पताल में निमोनिया से देहांत हो गया। वह केवल दो ही दिन बीमार रहा। मकान के चौकीदार ने पहले दिन सुबह बैरम को उसकी कोठरी में तकलीफ से तड़पते देखा। बैरम के कपड़े और जूते एकदम गीले थे

और बर्फ की तरह ठंडे थे। किसी को कुछ पता नहीं कि वह उस तूफानी रात र्मे कहां गया था। फिर उन्हें एक लालटेन मिली जो तब भी जल रही थी। वहां एक सीढ़ी भी मिली जिसे अपनी जगह से सरकाया गया था। उन्हें पैंट करने के कुछ ब्रश भी इधर-उधर बिखरे मिले और एक प्लेट भी मिली जिसमें हरा और पीला रंग मिला था। जौन्सी. अब जरा तुम खिड़की के बाहर उस आखिरी पत्ते को तो देखो। क्या तुमने अचरज किया कि वह पत्ता हवा में क्यों नहीं हिलता या फड़फड़ाता है? मेरी प्यारी जौन्सी. यह आखिरी पत्ता बैरम की मास्टरपीस कलाकृति है। उसने उसे उस रात को पेंट किया, जब बेल का आखिरी पत्ता नीचे झड़ा। ''

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रचनाकार: ओ हेनरी की कहानी - आखिरी पत्ता
ओ हेनरी की कहानी - आखिरी पत्ता
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