कहानी - विश्वास

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सुधा शर्मा आगन्तुक की बातें सुनते ही प्रतिभा का चेहरा उतर गया; जो स्पष्ट उसके चेहरे पर आए भावों से पहचाना जा सकता था । डूबते सूर्य की भाँत...

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सुधा शर्मा

आगन्तुक की बातें सुनते ही प्रतिभा का चेहरा उतर गया; जो स्पष्ट उसके चेहरे पर आए भावों से पहचाना जा सकता था । डूबते सूर्य की भाँति उसका चेहरा क्रोध से रक्तिम होता जा रहा था। सागर में उठते हुए ज्वार-भाटा के समान विचार तीव्र गति से आ- जा रहे थे। सभ्यता के नाते प्रतिभा ने उसे चाय पिलाई,मिठाई खिलाई लेकिन वो मिठाई में कडुवाहट घोल गया था। वातावरण का रूख बदल गया था। वह चला भी गया लेकिन उसके शब्द अब भी उसके कानों में गूंज रहे थे। कितने अरमान से सगाई की थी उसने अपने बेटे की। बहु लड़के की पसन्द की थी। बहु की योग्यता और बेटे की इच्छा के कारण ही प्रतिभा ने दहेज को दुःस्वप्न की भाँति दिल से निकाल दिया था।

यह तो सर्वविदित था कि अर्निका को स्वीकारने का अर्थ केवल अर्निका है। एम बी बी एस,गोल्ड मेड़लिस्ट अर्निका अपने आप में दहेज थी। उसके माँ-बाप ने उसके सपनों को साकार करने हेतु अपना सब कुछ दाँव पर लगा दिया था यहाँ तक कि अपनी जमीन-जायदाद का भी मोह नहीं किया था। योग्य बहु की कल्पना ने ही प्रतिभा और उसके पति को गौरवान्वित महसूस करा दिया ।

आज ही सगाई हुई थी। घर मेहमानों की चहल-पहल से गुलजार था। कोई अन्त्याक्षरी में व्यस्त था तो कोई शादी से सम्बन्धित चर्चा में। कुछ दम्पत्ति के फैसले की आलोचना कर रहे थे-'अरे इतने गरीब घर की लड़की लेने से क्या फायदा। दहेज के नाम पर कुछ तो होना ही चाहिए। पुराने जमाने से चली आ रही परम्परा है । माना लड़की डॉक्टरी पढ़ी हुई है,पर आलोक भी तो डॉक्टर है। किसी को बताने में भी शान बढ़ती है कि हमारा बेटा इतने बड़े खानदान में ब्याहा है। बड़े खानदान की हवा ही कुछ औरै होती है। ये क्या बताएंगे--- कंगाल घर से बहु आई है ----हूँ----। डॉक्टर होने के साथ-साथ चालाक भी है। लड़की ने करोड़ों के लड़के को मुफ्त में पटा लिया।' कोई बड़ाई के पुल बाँध रहा था-'अरे प्रतिभा ने हीरा छाँट लिया है हीरा। अरे दहेज का क्या; दहेज तो दो दिन की रौनक है। बहु तो सारी उम्र के लिए आएगी। नौकरी करे या क्लीनिक खोले, पैसो का नो अंबार लगा देगी। समझदार है प्रतिभा। भगवान करे दोनों की जोड़ी बनी रहे।

''किसी भी कार्य की समीक्षा करना तो लोगों का जन्मसिद्ध अधिकार होता है। रिश्तों में अच्छाई-बुराई तो निकलती ही है। जिस कार्य को करने से आत्मसन्तुष्टि, आत्मसुख प्राप्त हो, वही कार्य सर्वश्रेष्ठ होता है।' यह सोचकर प्रतिभा सबकी बातों पर ध्यान नहीं दे रही थी। मियां-बीवी राजी तो क्या करेगा काजी यही सोचकर सब चुप हो गए थे।

इसी चहल-पहल के बीच कोई आगन्तुक आया,जिसने एकांत में जाकर पति-पत्नी से बातें करने की इच्छा व्यक्त की। सबको महसूस हुआ कि दाल में कुछ काला है लेकिन उनका पर्सनल मामला है सोचकर सब चुप रहे।

बातें करने के पश्चात वह नवयुवक चला गया लेकिन प्रतिभा के चेहरे की रौनक उड़ गई। प्रसन्नता का स्थान चिन्ता की गहरी रेखाओं ने ले लिया । दृढ विचार डाँवाड़ोल हो गए। ''क्या किया जाए; दो दिन बाद तो शादी है। रिश्ता तोड़ते हैं तो आलोचकों के मुँह खुल जाएँगे और शादी करते हैं तो सारी उम्र के लिए दाग लग जाएगा''। शादी के कुल दो दिन रह गए दोनों घरों में तैयारियाँ लगभग पूरी हो चुकी है। ''जिस काम की बहुत अधिक आलोचना हो उस काम को करना ही नहीं चाहिए।'' सोचकर प्रतिभा ने अपना सिर झटक लिया। आलोक चाहे डॉक्टर बन गया लेकिन जिन्दगी के अनुभव में तो बच्चा ही है। प्यार तो अंधा होता है। आलोक तो अभी नासमझ है लेकिन मैं अपनी गलती को सुधार कर रहूँगी। सोचकर उसने दृढता से दाँत भींच लिए।

प्रतिभा दृढ़ता से अपने पति से बेाली-'सुनो जी! समाज की आलोचना के ड़र से मैं अपने बच्चे की जिन्दगी नरक नहीं बनाउँगी। अरे बारात वापस आ जाती है; हमारे यहाँ तो अभी दो दिन बाकी हैं। नहीं चाहिए हमें ऐसी लड़की, जिसके चरित्रहीनता के प्रमाण उसके आने से पहले ही पहुँचने लगे हो।'' ''चुप रहो प्रतिभा! चुप रहो। घर में मेहमानों का जमघट लगा होगा। कोई सुन लेगा तो अच्छा नहीं रहेगा।'' यह ठीक है हमारा कुछ नहीं बिगड़ेगा क्योंकि हम लड़के वाले है। अभी उस लड़की ने हमारे घर में कदम भी नहींे रखा फिर उसकी चरित्रहीनता हमारी बदनामी का कारण नहीं हो सकता।'' कुछ देर के लिए वातावरण में खामोशी छा गई। लेकिन थोड़ी देर में ही प्रकाश के शब्द गूँज उठे ''लेकिन सोचो उस लड़की का जिसने अपने मन में न जाने कितने सपने सजा लिए होंगे। आधा रिश्ता तो उसका उस दिन हो गया था जिस दिन हमने उसे पसन्द करके इस रिश्ते के लिए हाँ कह दी थी। आज सगाई थी;अब तो केवल फेरों के माध्यम से सात जन्म के लिए मुहर लगानी है और तुम कहती हो रिश्ता तोड़ दो। कितना आसान है कहना! लेकिन इसे साकार रूप देने में दो बच्चों की जिन्दगी उजड़ जाएगी। उनके दिल टूटने की आवाज किसी को भी नहीं आएगी;ये हम मानते हैं। कि न धरती हिलेगी न आसमाँ फटेगा। लेकिन तुम्हारे बेटे का दिल टूट जाएगा वो भी उसे बहुत प्यार करता है। अब मेरी बात मानो जो होना था सो हो गया, आगे जो होगा देखा जाएगा।'

'जो होना था सो हो गया' ऐसा क्यों कहते हैं आप? यह क्यों नहीं कहते कि जो नहीं होना था वो हो गया; इस घर की खुशियों पर ग्रहण लग गया है। आलोक बेटे के भाग्य नक्षत्र अँधेरे में डूब गए हैं। पता है स्त्री घर की रीढ़ होती है। किसी भी घर की किस्मत उस घर की औरत द्वारा लिखी जाती है। एक चरित्रहीन नारी का विगत जीवन पूरे परिवार के माथे पर शर्मिन्दगी का पसीना बनकर उभरता है। क्या तुम चाहते हो कि हम देखते हुए मक्खी निगल जाऍ? आलोक की खुशी को देखते हुए मैंने दान -दहेज के नाम पर भी कलेजे पर पत्थर रख लिया। घर की प्रतिष्ठा को ताक पर रख दिया------हूँ -------कहाँ हम, कहाँ वो ? सभी रिश्तेदार ताने दे रहे है कि आलोक की बहू तो होंड़ा सिटी लाती, आखिर लड़का एम बी बी एस डॉक्टर है। अब यह खबर मिलने पर तो हमें बिल्कुल बर्दाश्त नहीं --------- नहीं बिल्कुल नहीं-----।

क्या कह रही हो प्रतिभा? प्रताप ने आश्चर्य से पूछा

ठीक कह रही हूँ। कितनी विपत्तियाँ झेलकर डॉक्टर बनाया था बेटे को; ये इनाम मिला है। पता नहीं कितने बुरे कर्म किए है हमने; जिनकी सजा मिल रही है हमें।

शांत रहो प्रतिभा ! शांत रहो । सब ठीक हो जाएगा। वो लड़का ,जो अभी -अभी बातें करके गया है, वो भी इंसान है--- गलत भी हो सकता है । हो सकता है, वो ईर्ष्या के वशीभूत होकर आरोप लगा रहा हो ----हो सकता है ,आपस में कोई रंजिश हो। वो कोई देवता नहीं जो उसकी बातें अक्षरशः सत्य हो।

विश्वास न करने का तो प्रश्न ही नहीं उठता। सच ही इतनी हिम्मत कर सकता है।

सुनकर प्रताप चुप हो गए। उनकी समझ में नहीं आ रहा था कि प्रतिभा को कैसे समझाऍ

पति को शांत देखकर प्रतिभा और अधिक परेशान हो गई । चिंता की रेखाएँ उनके चेहरे पर स्पष्ट झलक रही थी। चुप्पी को तोड़ते हुए वह बोली-'मैं तो उलझ गई हूँ । कुछ निश्चित नहीं हो पा रहा क्या किया जाए? एक तरफ बेटे की खुशी है, इच्छा है और एक तरफ-----------।

क्रोध के कारण प्रतिभा के नथुने फूल गए थे। लेकिन प्रताप निश्छल अटल शिला की भाँति स्थिर अविचल खड़े थे। शांत भाव से बोले-'चलो कहीं घूम आते हैं। अनुनय-विनय करने के बाद प्रतिभा भी साथ चल दी। लेकिन उसका विचार था कि उन्हें शीघ्रातिशीघ्र लड़की के घर चलकर उचित कदम उठाना चाहिए। प्रताप शहर के एक पार्क में जाकर बैठ गए।

' आओ यहाँ बैठकर बातें करते हैं।' प्रतिभा की समझ में कुछ नहीं आ रहा था। उसके मन में विचारों का भँवर उठ रहा था। विचारों की गति इतनी तेज थी कि वो पकड़ नहीं पा रही थी ा वह कड़क शब्दों में बोली-'तुम व्यर्थ में समय गवाँ रहे हो,जितनी जल्दी हो सके हमें सहारनपुर चलकर बात करनी चाहिए।

आओ पहले यहाँ बैठकर बातें करते हैं फिर सहारनपुर चलते हैं। प्रतिभा अनमने मन से पास बैठ गई और क्रोधपूर्ण दृष्टि से प्रताप की ओर देखने लगी। प्रताप शून्य में ताकते हुए शांत मन से बोले-'प्रतिभा जिसकी बुराई की जाए वह वास्तव में बुरी हो, चरित्रहीन हो, आवश्यक नहीं । मैंने अपने निजी जीवन में परखा है; गरीबी में यदि लड़की औकात से ज्यादा बढ गई तो उसपर सौ लांछन तो झूठे लग जाते हैं। गरीबी तो स्वयं में एक अभिशाप है । कुटिल व्यक्ति ईर्ष्या- द्वेष के कारण भी अन्य व्यक्ति के चारों ओर संदेह व शंकाओं का घेरा खड़ा कर देते हैं। दूसरों की उन्नति पचा नहीं पाते और अपनी कुंठा को दूसरों पर आरोप लगाकर शांत करते हैं। '

'तुम तो इतने विश्वास से कह रहे हो जैसे लड़की का इतिहास जानते हो। एक अंजान लड़की पर इतना भरोसा'।

अनजान कहाँ, उसे तो आलोक दो साल से जानता है।

'अ---ब मैं तुम्हें कैसे बताउँ; पता नहीं समझा पाउँगा या नहीं---------प्लीज ड़ोन्ट माइंड़ । परिस्थतिवश ये बातें तुम्हें बताने के लिए मैं मजबूर हो रहा हूँ। समय की माँग है, ताना नहीं। तुम्हारी नासमझी मुझे यह बात बताने के लिए बाध्य कर रही हैं, अन्यथा यह बात मेरी जुबाँ पर कभी नहीं आती।

आप क्या कहना चाहते हैं? साफ-साफ कहिए, प्लीज।

'प्रतिभा जो परिस्थिति तुम्हारे सामने आज है,उसी परिस्थिति का सामना मैंने अटठाईस वर्ष पहले किया था। मेरी माँ भी सुनकर बहुत परेशान थी। पिता भी विचलित हो गए थे लेकिन मैं उस दिन भी अटल था, आज भी अटल हूँ। हमें हमारी बहू के बारे में बताने वाला एक अजनबी है,लेकिन अटठाईस वर्षों पहले सूचना देने वाला तो बिल्कुल अपना था। उसके शब्द तो किसी के भी कदम ड़गमगाने के लिए पर्याप्त थे। उसके शब्द बहुत स्पष्ट थे''लड़की बहुत आवारा है,घर नहीं, सराय है उनका घर। कभी कोई आता है, कभी कोई। लड़कों के साथ घूमती- फिरती है। और तमाम वे शब्द -समूह जो किसी भी लड़की के चरित्रहीनता का प्रमाण देने के लिए पर्याप्त हैं।''

प्रतिभा आँखें फाड़े सारी बातें सुन रही थी ,उसका दिल बैठा जा रहा था।

उसने अपने पति से पूछा-''फिर तुमने उस पर विश्वास कैसे किया?

विश्वास-----विश्वास तो भगवान का दूसरा नाम होता है। मेरा विश्वास है कि चरित्रहीन व्यक्ति तपस्या नहीं कर सकता। फिर मैंने सोच लिया था कि शादी से पहले की गई गलती पर ध्यान नहीं दूँगा लेकिन शादी के बाद गलती करेगी, तो छोडूगाँ नहीं।

ये सब बातें आपने मुझे पहले कभी नहीं बताई और मुझे कभी अहसास भी नहीं होने दिया। कभी बताया ही नहीं।

बताने की आवश्यकता ही नहीं पड़ी। तुम परीक्षा में इतनी खरी उतरी कि उन बातों को दोहराने की कभी हिम्मत ही नहीं हुई। अहसास तो तब होने देता जब विश्वास न होता। और मेरा विश्वास है कि इतनी उच्च विद्या प्राप्त करना तपस्या ही तो है। और प्यार करना उपासना का ही दूसरा नाम है । प्यार और उपासना में उतना ही अंतर है जितना अँधकार और प्रकाश में। मेरा विश्वास कसौटी पर खरा उतरा । मेरे विश्वास ने मुझे धोखा नहीं दिया। मेरी भावनाओं ने मुझे छला नहीं। मेरे सपने चूर-चूर नहीं हुए। जो मेरे जीवन में आई उसने तन- मन से मुझे ही नहीं मेरे परिवार को भी अपनाया। मेरे सपनों को अपनी आँखों में बसाया । मेरी जिम्मेदारियों को उठाने के लिए अपने कंधे बढा दिए। मेरे सपनों को उसने अपनी आँखों में बसा लिया। मेरा परिवार तो विपत्तियों का घर था लेकिन उसने मेरे सुख-दुख को सहर्ष बाँट लिया। और मेरा यह विश्वास और अधिक मजबूत हो गया है।

लेकिन प्रत्येक के विषय में यह परिभाषा सत्य कैसे हो सकती है?

कैसी बातें करती हो? प्रतिभा! मेरा विश्वास तो आज भी अटूट है और

यह लड़की तो वैसे भी उस इलाके की है जहाँ ऑनर किलिंग के नाम पर लड़की की हत्या शर्म का नहीं, गर्व का विषय होता है। उस कस्बे की लड़की का डॉ बनने के लिए अपने घर से दूर रहकर हॉस्टिल में रहकर पढाई करना अपने आप में आश्चर्य की बात है। मुझे उस लड़की पर हेा न हो अपने बेटे पर पूर्ण विश्वास है उसकी पसन्द चरित्रहीन नहीं हो सकती।

प्रतिभा की आँखों से दो बूँद आँसू टपक पड़े। वह भावुक होकर बोली-हाँ वो लड़की भी मेरी तरह गरीब घर की बेटी है। और जब व्यक्ति गिरकर-पड़कर, रोकर-हँसकर,उँचा उठने की कोशिश करता है तो उसे सहारा नहीं देते,वरन पीछे धकेलने की कोशिश करते हैं। मूक दर्शक बनकर आनंद लेते हैं। उगते सूर्य की सभी उपासना करते हैं।

विश्वास करो प्रतिभा हमारी बहू लाखों में एक है। और यदि वो गलत है भी तो हम अपने प्यार की भटटी में गलाकर उसे सोना बना लेंगे ,इतना विश्वास तो है हमें अपने प्यार पर।

आप ठीक कहते हो जी चलो अब घर चलते हैं केवल एक दिन शेष है शादी में और बहुत सारे काम पड़े हैं।

इति ।

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रचनाकार: कहानी - विश्वास
कहानी - विश्वास
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