कहानी : जौनाथन लिविंगस्टन सीगल

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लेखक रिचर्ड बाख   अनुवाद : अरविन्द गुप्ता सुबह का समय था। समुद्र की थिरकती लहरों पर सूरज की नई धूप चमक रही थी। अकेले, एकदम अकेले, एक समु...

लेखक रिचर्ड बाख

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अनुवाद : अरविन्द गुप्ता

सुबह का समय था। समुद्र की थिरकती लहरों पर सूरज की नई धूप चमक रही थी। अकेले, एकदम अकेले, एक समुद्री चील उड़ने का अभ्यास कर रही थी। सौ फीट की ऊंचाई से उसने अपने दोनों पैरों को आपस में मिलाया, चोंच को ऊपर उठाया और हवा को चीरती हुई नीचे आई। उसकी आँखों में एक तेज़ चमक थी। वह एक मुश्किल हवाई करतब का अभ्यास कर रही थी। परंतु एक छोटी सी गलती के कारण उसके पंख लड़खड़ाने लगे। फिर हवा में उसका संतुलन बिगड़ा और वह एक पत्थर की तरह नीचे के समुद्र में जा गिरी। समुद्री चीलें इस तरह कभी नहीं गिरती हैं। उनके लिए उड़ान के दौरान, इस प्रकार गिरना, बड़ी शर्म की बात होती है।

इस चील पर इस विफलता का कोई असर नहीं पड़ा। वह पंख पसारे उड़ान की बारीकियों का अभ्यास करती रही। वो कोई साधारण समुद्री चील नहीं थी। उसका नाम था - जौनाथन लिविंगस्टन सीगल।

ज्यादातर समुद्री चीलें, उड़ान के बारे में बहुत थोड़ा ही जानती हैं - किनारे से, खाने की जगह तक जाना और फिर वापिस आना। उड़ान में उनकी कोई खास रुचि नहीं होती है। वह केवल इसलिए उड़ती हैं जिससे कि वो खाने तक पहुँच सकें। परंतु इस समुद्री चील को खाने से कुछ मतलब नहीं था। उसे बस उड़ने से मतलब था।

इस बात ने उसे अन्य चीलों के बीच लोकप्रिय नहीं बनाया। उसके माँ-बाप भी उससे नाखुश थे। समुद्र की लहरों के समानांतर उड़ने से क्या फायदा ? समय की इस फिजूलखर्चीं से क्या लाभ ?

‘तुम दूसरी चीलों की तरह क्यों नहीं रहते, जॉन ?’ उसकी माँ पूछतीं ‘उड़ने का काम तुम दूसरों पर छोड़ दो। तुम कुछ खाओ-पियो, जॉन ? देखो, तुम्हारी एकदम हड्डियाँ निकल आयीं हैं।’

उसके पिता कहते, ‘देखो जॉन, अब सर्दी आने वाली है और तब सतह पर तैरने वाली मछलियाँ गहराई में चली जायेंगी। अगर तुम वाकई में कुछ सीखना चाहते हो तो मछलियाँ पकड़ना सीखो। माना, यह एक अच्छा शौक है, पर क्या तुम उड़ान को खा सकते हो ? यह न भूलो कि हम खाने के लिए ही उड़ते हैं।’

जौनाथन ने अपना सिर हिलाया। कुछ दिनों तक उसने अन्य समुद्री चीलों की तरह, रोटी और मछली के टुकड़ों की खातिर, मछुआरों की नावों के चक्कर लगाये। परंतु उससे यह नहीं बना।

मुझसे यह ज़लालत का काम नहीं होगा। मैं उड़ूंगा। मुझे अभी बहुत कुछ और सीखना है! और कुछ देर बाद जौनाथन अकेले ही समुद्र में बहुत दूर उड़ने लगा। वो भूखा था परंतु खुश था। वो उड़ान के नए गुर सीख रहा था। वो अब किसी भी समुद्री चील से तेज उड़ सकता था।

हज़ार फीट की ऊँचाई से उसने अपने डैनों को पूरे ज़ोर से फड़फड़ाया और फिर नीचे की ओर गोता लगाया। बस छह सेकिंड बाद वो सत्तर मील की रफ्तार से नीचे आ रहा था। इतनी तेज़ी में, संतुलन को बनाए रखना कोई आसान काम नहीं था। उसने बार-बार कोशिश की। परंतु सत्तर मील की रफ्तार से, ऊपर जाते समय, वो अपना संतुलन खो बैठता और समुद्र की नीली लहरों से जा टकराता। गीले पंखों को सुखाते समय वो सोचता - आखिर वो क्या करे ? तेज़ गति के समय वो अपने पंखों को बिल्कुल भी हिलाए डुलाए नहीं। उस समय वो एकदम निर्जीव बना रहे ?

अब उसने दो हज़ार फीट की ऊँचाई से गोता लगाया। पिछले सबक उसे याद थे। इस बार वो सफल हुआ। दस सेकिंड के अंदर ही वो नब्बे मील प्रति घंटे की रफ्तार से उड़ रहा था। उसकी आँखों के सामने धुंधला छा गया था । उसने समुद्री चीलों के लिए तेज़ रफ्तार का एक नया रिकार्ड बनाया था ! परंतु विजय केवल चंद क्षणों की थी। जैसे ही उसने अपने डैनों के कोण को बदला वो अपना संतुलन खो बैठा और एक पत्थर के ढेले की तरह समुद्र से जा टकराया।

रात हो चुकी थी। किसी प्रकार वह तैरता हुआ किनारे पर आया। उसका शरीर टूट रहा था। डैने दुख रहे थे। उसके लिए असफलता का बोझ ढोना मुश्किल हो गया था। अच्छा होता, अगर वो समुद्र में डूब कर मर गया होता ! पानी में डुबकी खाते समय एक अजीब सी आवाज़ उसके कानों में गूंजी। मैं आखिर कर ही क्या सकता हूँ ! मैं सिर्फ एक समुद्री चील हूँ। मैं अपनी प्रकृति की सीमाओं से बंधा हूँ। अगर मैं अच्छी तरह उड़ने के लिए पैदा हुआ होता, तो मेरा दिमाग कुछ अलग किस्म का होता। अगर मैं तेज़ रफ्तार से उड़ने के लिए बना होता, तो मेरे पंख बाज़ की तरह छोटे होते और मैं मछलियों की जगह चूहे खाता। मेरे पिता ने ठीक ही तो कहा था। मुझे उड़ने की इस मूर्ख सनक को भूल जाना चाहिए। मुझे अपने कबीले में वापिस जाना चाहिए और मैं जो कुछ भी हूँ उससे संतुष्ट रहना चाहिए। मैं सिर्फ एक साधारण, सीमित, समुद्री चील ही तो हूँ।

अब उसने एक साधारण समुद्री चील बने रहने का निश्चय किया। उसके माँ-बाप और पूरा कुनबा भी इस बात से खुश होगा। वो एक साधारण चील की तरह उड़ता हुआ किनारे की ओर चला। वो अब उड़ना - आसमान में पंख पसारना छोड़ देगा। तब न कोई चुनौती होगी और न ही किसी असफलता का मुँह देखना पड़ेगा।

रात हो गई थी और वो उड़ रहा था। उसे कानों में एक हल्की सी आवाज़ सुनाई पड़ी, ‘समुद्री चीलें कभी भी रात में नहीं उड़तीं हैं। नहीं तो उनकी आँखें उल्लुओं की तरह बड़ी होतीं ! उनके दिमाग में नक्शे होते ! उनके डैने बाज़ की तरह छोटे होते !’

हवा में सौ फीट की ऊँचाई पर जौनाथन ने अपनी आँखों को झपका। उसका दुख, दर्द अब रफूचक्कर हो गया। छोटे डैने। बाज़ की तरह छोटे डैने !

यही उत्तर है ! मैं भी कितना मूर्ख हूँ ! उड़ते समय मुझे छोटे पंख चाहिए। तेज़ रफ्तार के समय मुझे अपने डैनों को बंद कर लेना चाहिए और केवल छोटे पंखों पर उड़ना चाहिए ! छोटे डैने !

वो काले समुद्र से कोई दो हज़ार फीट ऊपर उड़ा। असफलता या मौत का भय अब उसे नहीं सता रहा था। उसने अगले डैनों को अंदर मोड़ा और केवल पंखों के सिरों को हवा से टकराने के लिए छोड़ा। फिर उसने नीचे गोता लगाया। हवा को तेज़ी से चीरते हुए वह नीचे की ओर चला। सत्तर मील प्रति घंटा, नब्बे, एक सौ बीस और तेज़। एक सौ चालीस मील की रफ्तार भी उसके डैनों पर कोई खास ज़ोर नहीं डाल रही थी। पानी के पास उसने पंखों को थोड़ा सा मोड़ा और वह आराम से गोते में से निकल कर आसमान में चंदामामा की ओर बढ़ने लगा।

उसके दिल में एक नई उमंग थी। वो बेहद खुश था। एक सौ चालीस मील प्रति घंटा ! और सब कुछ नियंत्रण में ! उसे खुद विश्वास नहीं हो रहा था। दो की जगह पाँच हज़ार फीट से गोता लगाने पर रफ्तार कितनी होगी, वह अचरज कर रहा था।

कुछ मिनटों पहले उसने जो कसमें खायीं थीं वो उन्हें भूल गया था। उसे उन वायदों को तोड़ने का कोई भी दुख नहीं था। कसमें साधारण समुद्री चीलों के लिए होती हैं। पर जिसने श्रेष्ठता की चरम सीमाओं को पार किया हो उसे कसमों से क्या लेना-देना ?

अथक लगन और उमंग से वो और बेहतर उड़ने का प्रयास करता रहा। अगले ही दिन उसकी रफ्तार दो सौ चौदह मील प्रति घंटे की थी। इतनी तेज़ रफ्तार में, एक छोटी सी गलती से भी, उसके पंखों के चिथड़े-चिथड़े हो जाते। परंतु रफ्तार में ताकत थी, रफ्तार में खुशी थी, और रफ्तार में अलौकिक सुंदरता थी।

दो सौ चौदह मील प्रति घंटे की रफ्तार ! समुद्री चीलों के पूरे कबीले के लिए यह एक ऐतिहासिक क्षण था। परंतु जौनाथन अकेले ही अपनी सीमाओं को आगे बढ़ाता रहा। अब वो तेज़ी से जिस ओर चाहे मुड़ सकता था। अन्य चीलों के सामने अपनी सफलता का बखान करने की बजाए जौनाथन उड़ान की बारीकियों से जूझता रहा। लूप में उड़ना, हवा में कलाबाज़ी लगाना और अन्य हवाई करतबों का वो अभ्यास करता रहा।

रात को एकदम थका मांदा वह अपने कबीले में पहुँचा। उसे लगा कि अन्य चीलें उसके प्रयासों और रिकार्ड की सराहना करेंगी। अब जीवन में जीने के लिए कितना कुछ और था ! दिन भर सड़ी मछलियों के टुकड़ों के लिए लड़ने के अलावा भी जिंदगी का कुछ मकसद था ! अब चीलें अज्ञानता से उबर कर श्रेष्ठता की ओर बढ़ सकती थीं और अद्भुत कुशलतायें सीख सकती थीं। सब चीलें अब मुक्त हो सकती थीं ! वो सभी उड़ना सीख सकती थीं ! समुद्री चीलों का भविष्य अब उज्जवल दिख रहा था।

समुद्री चीलों ने एक आम सभा बुलाई। वह जौनाथन के आने की राह देख रहीं थीं। जौनाथन को सभा के बीच में आकर खड़ा होने को कहा गया। यह किसी भी चील के लिए बहुत बड़ी बेइज्ज़ती की बात थी। समुद्री चीलों की पंचायत ने अपना निर्णय सुनाया : ‘एक दिन जौनाथन लिविंगस्टन सीगल तुम्हें अपनी गैरजिम्मेदारी का अहसास होगा। तुमने जो कुछ भी किया गलत किया। हमें दुनिया में सिर्फ खाने के लिए और अधिक से अधिक दिनों तक जिंदा रहने के लिए भेजा गया है।’

पंचों को आज तक किसी भी मुज़रिम ने जवाब नहीं दिया था। परंतु जौनाथन ऊँची आवाज़ में चिल्लाया ‘कैसी गैरजिम्मेदारी ! आप ये क्या कह रहे हैं ! मुझ से अधिक जिम्मेदार और कौन हो सकता है ? मैंने तो जीवन का सही मायना ढूंढा है। जिंदगी के ऊँचे मकसद को खोजा है ? हज़ारों सालों से हम सड़ी मछलियों के टुकड़ों के लिए लड़ते-झगड़ते आए हैं। पर अब हमारे जीवन में एक उद्देश्य है - सीखना, खोजना, बंधनों से मुक्त होना ! मुझे एक मौका दीजिए। मैं आपको अपनी खोज के बारे में बताना चाहूंगा।’

सभा को जैसे साँप सूंघ गया हो। कोई भी नहीं बोला। सभा भंग कर दी गई। सभी ने अपने कान बंद कर लिए और अपनी पीठ जौनाथन की ओर कर ली।

जौनाथन अब अकेला ही रहता। अकेले रहने का उसे कोई खास दुख नहीं था। दुख था, कि बाकी चीलें उड़ान की महत्ता को नहीं समझ रहीं थीं। जानबूझ कर, अपनी आँखें बंद करके, वे एक सुंदर भविष्य को नकार रही थीं। उधर जौनाथन हर रोज़ कुछ नया सीख रहा था। अब वो पानी की सतह से दस फीट नीचे तैर रही मछलियों का शिकार भी कर सकता था। मछुआरों की नावों से फेंकी सूखी रोटी और सड़ी मछली के टुकड़ों पर अब वो निर्भर नहीं था। वो पंख पसारे ऊँचे आकाश में उड़ता और दूर-दूर की सैर करता।

वो केवल अपने लिए ही कुछ हासिल कर पाया था, कबीले के लिए नहीं। ऊँची उड़ान भरने के लिए उसे जो कीमत चुकानी पड़ी उसका उसे कुछ भी दुख न था। आम चीलें भय, गुस्से और ऊब की जिंदगी जीती हैं। इसलिए वे जल्दी ही मर जाती हैं।

एक दिन जौनाथन ने दो समुद्री चीलों को आसमान में उड़ते देखा। वे दोनों बड़ी मुस्तैदी और कुशलता के साथ उड़ रहीं थीं। जौनाथन ने उनकी परीक्षा लेने की सोची। उसने अपने पंखों के कोण को थोड़ा सा बदला जिससे वो एकदम धीमे उड़ने लगा। उन दोनों चीलों ने भी हूबहू वही किया। वे भी धीमी उड़ान, अच्छी तरह जानती थीं। जौनाथन ने जब नीचे की ओर गोता लगाया तो उन दोनों ने भी उसी तरह गोता लगाया। अंत में, जौनाथन को देखकर, वो दोनों चीलें मुस्कुरायीं और बोलीं, ‘हम तुम्हारे ही कबीले के हैं जौनाथन। हम तुम्हें एक दूसरे घर में ले जाने के लिए आए हैं। यह घर बहुत ऊँचाई पर है।’

‘मुझे कबीले के निकाल दिया है और मेरा कोई घर नहीं है,’ जौनाथन ने कहा, ‘इस ऊँचाई से और ऊपर, शरीर को उठा पाना मेरे लिए सम्भव नहीं होगा।’

‘नहीं जौनाथन, तुम कर पाओगे। तुमने बहुत कुछ सीखा है। तुमने एक स्कूल खत्म किया है और अब दूसरे के शुरू होने की बारी है।’

जौनाथन उन दोनों चीलों के साथ ऊपर उड़ा और एक काले आसमान में खो गया। वहाँ तो स्वर्ग जैसा था। पृथ्वी से ऊपर उठते समय उसका शरीर चमकने लगा था। यहाँ वो, पृथ्वी की अपेक्षा, दुगनी गति से उड़ सकता था। अब वो आराम से ढाई सौ मील प्रति घंटे की रफ्तार से उड़ सकता था। स्वर्ग में कोई सीमायें नहीं थीं।

यहाँ पर कोई एक दर्जन चीलें होंगी। उसे वहाँ एकदम घर जैसा लगा। रेत पर उतरने के लिए उसे अपने पंखों को थोड़ा सा मोड़ कर, ब्रेक लगाना पड़ा। बाकी चीलें, बिना अपने पंख को हिलाए ही उतर गयीं। उन्हें अपने शरीर और उड़ान पर गजब का नियंत्रण था। जौनाथन इतना थक गया था कि वो किनारे पर वह खड़ा-खड़ा ही सो गया। यहाँ पर भी उसको बहुत कुछ सीखने को था। धरती और यहाँ पर केवल एक अंतर था।

यहाँ पर चीलें उसके जैसी ही सोचती थीं। उनमें से, सभी को, उड़ने में असीम आनंद आता था। उनके जीवन के उद्देश्य भी एक से थे - उड़ने में पारंगत होना। वे सब-की-सब बेहद कुशल चीलें थीं और वो रोज़ाना घंटों उच्च-स्तरीय उड़ानों का अभ्यास करतीं थीं।

अब अपने कबीले को जौनाथन लगभग भूल चुका था। एक दिन उसने अपने साथी से पूछा, ‘यहाँ इतनी कम चीलें क्यों हैं ? पृथ्वी पर तो सैकड़ों-हज़ारों समुद्री चीलें थीं।’

‘हजारों-लाखों चीलों में से एक ही यहाँ तक आ पाती है। तुम उनमें से एक हो जौनाथन। हम लोग ने न जाने कितने घाटों का पानी पिया और फिर यहाँ पहुँचे। तुमने एक बार में ही इतना कुछ सीख लिया, इसी लिए तुम्हें यहाँ आने के लिए, हमारी तरह जन्मों के जंजाल से नहीं गुज़रना पड़ा।’

एक दिन, रात के समय, जौनाथन ने हिम्मत बटोरी और मुखिया चील के पास गया। ऐसा सुनने में आया था कि जल्द ही मुखिया इस दुनिया को छोड़ कर चला जायेगा।

‘चांग ...’ उसने थोड़ा सा घबराते हुए कहा।

उस बूढ़ी चील ने अपनी दयालु आँखों से उसकी ओर देखा और पूछा, ‘बोलो, मेरे बेटे ?’ मुखिया किसी भी चील से तेज़ उड़ सकता था। वह उड़ान की बारीकियों के बारे में बहुत सी बातें जानता था। औरों को अभी उससे बहुत कुछ सीखना था।

‘यहाँ के बाद क्या होगा ? हम लोग कहाँ जायेंगे ? क्या स्वर्ग जैसी कोई जगह नहीं है ?’

‘वास्तव में स्वर्ग नाम की कोई जगह नहीं है जौनाथन। स्वर्ग कोई स्थान नहीं है और न ही वो कोई समय है। स्वर्ग का मतलब है परिपूर्ण होना, यानी परफेक्ट होना ’ चांग कहते-कहते एक क्षण के लिए रुका। ‘ तुम बहुत तेज़ रफ्तार से उड़ते हो, है न ?’

‘मुझे तेज़ गति से उड़ने में बड़ा मज़ा आता है,’ जौनाथन ने कहा।

‘जिस क्षण तुम परफेक्ट स्पीड से उड़ोगे उस क्षण तुम स्वर्ग पहुँच जाओगे। और यह रफ्तार, हज़ार मील प्रति घंटा नहीं है, न ही करोड़, और न ही प्रकाश की गति के बराबर है। क्योंकि हरेक संख्या की एक सीमा होती है और परिपूर्णता यानी परफेक्शन की कोई सीमा नहीं होती। परफेक्ट स्पीड का मतलब है, बस वहाँ होना।’

बिना किसी इशारे या संकेत के चांग उसी क्षण, आँख झपकते ही वहाँ से गायब हो गया और पानी के पास कोई पचास फीट दूर जाकर खड़ा हो गया। फिर वह देखते ही वहाँ से भी लुप्त हो गया। अब वह जौनाथन के कंधों के पास खड़ा था। ‘इसमें बड़ा मज़ा आता है,’ उसने कहा।

जौनाथन एकदम स्तब्ध रह गया। स्वर्ग के बारे में वह पूछना ही भूल गया। ‘आप यह कैसे करते हैं ? ऐसा करते वक्त कैसा लगता है ? इससे आप कितनी दूर तक जा सकते हैं ?’

‘ तुम इससे जहाँ चाहो, वहाँ पर, जब चाहो जा सकते हो,’ बूढ़ी चील ने उत्तर दिया, ‘मैं सभी जगहें घूम चुका हूँ। यह कितनी अजीब बात है कि जो यात्रा की लालसा में परफेक्शन को ठुकराते हैं वो कहीं नहीं जा पाते। और जिनका रुझान परफेक्शन की ओर होता है वो सभी जगह हो आते हैं।’

‘क्या आप मुझे इस प्रकार उड़ना सिखा सकते हैं ?’ जौनाथन ने पूछा। उसे इस अनजाने रस्ते पर चलने से डर लग रहा था।

‘तुम चाहो तो अभी सीखना शुरू कर सकते हो।’ चांग ने कहा।

चांग हल्के-हल्के बोल रहा था और अपने छात्र को गौर से देख रहा था, ‘अगर तुम सोच की रफ्तार से, कहीं भी उड़ना चाहते हो,’ उसने कहा ‘तो तुम यह जान कर शुरू करो, कि तुम वहाँ पहुँच गए हो ...।’

चांग के कहने का मतलब था - जौनाथन तुम अपने आपको इस बियासिल इंच पंखों की लम्बाई वाले, सीमित शरीर में कैद मत समझो। याद रखो - तुम्हारी सच्ची प्रकृति, समय और स्थान से मुक्त है।

जौनाथन अपनी तपस्या में दिन-रात लगा रहा। फिर एक दिन, किनारे पर खड़े-खड़े, आँखे बंद करे, विचारों में लीन, उसे लगा जैसे उसे चांग की बात समझ में आ गई हो। ‘यह सच है ! मैं परफेक्ट हूँ, एक असीमित समुद्री चील हूँ!’ वो खुशी से झूम उठा।

‘बहुत अच्छे !’ चांग ने कहा। उसकी आवाज़ में विजय की गूंज थी।

जौनाथन ने अपनी आँखें खोलीं। वह बूढ़ी चील के साथ किसी और तट पर खड़ा था। वहाँ हरे आसमान में दो पीले सूरज चमक रहे थे।

‘आखिर तुम्हें मेरी बात तो समझ में आ गई,’ चांग ने कहा ‘पर तुम्हें कुछ और अभ्यास करना पड़ेगा।’ जौनाथन को वो जगह एकदम नई लगी ‘हम कहाँ पर हैं ?’ उसने पूछा।

‘हम शायद किसी दूसरे ग्रह पर हैं। यहाँ का आसमान हरा है और एक सूरज की जगह कोई दोहरा सितारा है।’ चांग ने शांत भाव से उत्तर दिया। नये परिवेश का उस पर कुछ भी असर नहीं हुआ।

पृथ्वी छोड़ने के बाद पहली बार जौनाथन चिल्लाया, ‘वाह ! यह युक्ति सचमुच में काम करती है।’

‘यह तरकीब हमेशा काम करेगी। बस तुम्हें पता होना चाहिए कि तुम क्या कर रहे हो।’

लौटते वक्त उन्हें शाम हो गई थी। अन्य चीलें जौनाथन को भयत्रस्त निगाहों से देख रहीं थीं। उन्होंने उसे अभी खड़े-खड़े गायब होते देखा था।

चीलों की बधाईयों को जौनाथन एक मिनट से अधिक बर्दाश्त नहीं कर सका। ‘मैं यहाँ नया आया हूँ ! मुझे आपसे अभी बहुत कुछ सीखना है,’ जौनाथन ने कहा।

‘मुझे इसमें कुछ शक है,’ सुलिवन नाम की चील ने कहा ‘तुम कुछ भी नया सीखने से नहीं डरते हो। मैंने तुम्हारे जैसी निडर चील पिछले दस हज़ार साल में नहीं देखी। अब तुम सबसे मुश्किल काम करने के लिए तैयार हो। तुम अब प्यार का और दया का मतलब समझने के लिए तैयार हो।’

एक महीना पलक झपकते हुए बीता और इस बीच जौनाथन ने बड़ी तेज़ गति से प्रगति की। वैसे भी वो हर बात को जल्दी पकड़ता था परंतु बूढ़ी चील के विशेष छात्र के रूप में उसने नई बातों को बहुत तेज़ी से सीखा। फिर एक दिन चांग लुप्त हो गया। चलते समय उसके आखिरी शब्द थे, ‘जौनाथन, हमेशा प्यार और दया के लिए काम करना।’

जैसे-जैसे दिन बीतते गए, जौनाथन को उस पृथ्वी की याद सताने लगी, जिसे वो छोड़ कर आया था। अगर वो पृथ्वी पर, यहाँ के ज्ञान का एक-दसवां, या एक-सौवां हिस्सा भी जानता होता, तो जीवन कितना सुखमय होता ! वो सोचने लगा, शायद पृथ्वी पर कोई ऐसी चील हो, जो अपने बंधनों से मुक्त होने के लिए संघर्ष कर रही हो। जो सूखी रोटी और सड़ी मछली से आगे कुछ खोज रही हो। उसके जैसे ही, न जाने कितनी और चीलों को, सच बोलने के लिए, कबीले ने निष्कासित किया होगा ? इन विषयों के बारे में जितनी और गहराई से वो सोचने लगा, उतना ही अधिक उसका मन पृथ्वी पर वापिस जाने को करने लगा। जौनाथन दिल से एक शिक्षक था। वो हरेक चील को, उस सच्चाई की एक झलक दिखाना चाहता था, जिसका आनंद उसने खुद प्राप्त किया था।

पृथ्वी पर अन्य चीलें कुछ नया सीखने के लिए तैयार होंगी, इस बात पर सुलीवन को शक था। उसने कहा, ‘जॉन, बाकी चीलें तुम्हारी बात सुनेंगी, यह तुमने कैसे मान लिया ? देखो एक कहावत है - वही चील सबसे आगे का देखती है जो सबसे ऊँचा उड़ती है। जहाँ से तुम आए हो, वहाँ चीलें अभी भी जमीन पर ही खड़ी हैं। वे अभी भी चिल्ला रही हैं और एक-दूसरे के साथ लड़ रही हैं। वे स्वर्ग से हज़ारों मील नीचे हैं। जहाँ वे खड़ी हैं, वहाँ से तुम उन्हें स्वर्ग कैसे दिखा सकते हो ? उनमें अपने पंखों के सिरों तक को देखने की काबिलीयत नहीं है ! तुम यहीं रहो जॉन, और यहाँ की चीलों को सिखाओ। ये तुम्हारी बातें समझेंगी। देखो, अगर चांग अपनी पुरानी दुनिया में चला गया होता, तो तुम्हें कौन सिखाता और तुम आज कहाँ होते ?’

सुलीवन की बात ठीक ही थी - वही चील सबसे आगे देखती है जो सबसे ऊँचा उड़ती है। जौनाथन ने, वहीं पर, नई चीलों के साथ काम करना शुरू किया। वे सभी होशियार थीं और चीज़ों को जल्दी से सीखती थीं। परंतु उसे बार-बार अपनी पुरानी बातें याद आतीं। पृथ्वी पर एक-दो चीलें अवश्य ऐसी होंगी जो कुछ नया सीखना चाहती हों। जिस दिन उसको कबीले से निकाला गया था, अगर उस दिन ही उसे चांग जैसा प्रशिक्षक मिल गया होता तो वो आज न जाने कितना कुछ और जानता होता !

‘सुलीवन, मैं अब जा रहा हूँ,’ जौनाथन ने एक दिन कहा। ‘तुम्हारे छात्र काफी तेज़ प्रगति कर रहे हैं। नई चीलों को लाने में वे तुम्हारी मदद करेंगे।’

‘मुझे मालूम है, अगर जमीन पर खड़ी चीलों को कोई स्वर्ग दिखा सकता है, तो वो केवल जौनाथन लिविंगस्टन सीगल ही है। तुम्हारी यात्रा शुभ हो, जॉन।’ सुलीवन ने विदाई के समय कहा।

उसके बाद जौनाथन ने केवल पृथ्वी पर अपने बड़े कबीले के बारे में सोचा। उसे मालूम था कि वो हड्डियों और पंखों के भौतिक बंधनों से मुक्त था।

फ्लेचर चील की उम्र अभी छोटी ही थी। उसके साथ बड़ा अन्याय हुआ था। ‘उनकी जो मर्जी चाहें कहें,’ उसने पहाड़ियों की ओर उड़ते हुए सोचा ‘इधर से उधर पंख फड़फड़ना भी क्या कोई उड़ना है। ऐसा तो मच्छर करते हैं ! मैंने मुखिया चील के सामने एक हवाई करतब क्या लगाई, कि मुझे कबीले से ही निकाल दिया ! क्या वो सबके सब अंधे हैं ? क्या उन्हें कुछ दिखाई नहीं देता ? क्या उन्हें समझ नहीं आता कि जब हम उड़ना सीख जायेंगे, तो हमारे कबीले के लिए ये कितने गर्व और सम्मान की बात होगी।’ ‘वो क्या सोचते हैं, इसकी मुझे कोई परवाह नहीं है। मैं उन्हें दिखा दूंगा कि असली उड़ान क्या होती है और फिर एक दिन वो अपनी गलती पर पछतायेंगे।’

यह आवाज़, खुद उसके अपने दिमाग के अंदर से उठी। उसे सुन कर वो सहम गया। ‘इतना गुस्सा न करो,’ फ्लेचर चील। तुम्हें कबीले से निकाल कर, बाकी चीलों ने, खुद अपना ही नुकसान किया है। एक दिन जब वे सच्चाई को जानेंगे तो उन्हें अपने करे पर पछतावा होगा। उन्हें माफ करो और उनकी समझ बनाने में मदद करो।’

फ्लेचर के दायें पंख से केवल एक इंच दूरी पर दुनिया की सबसे समझदार और गुणी चील हवा में तैर रही थी। उसे अपने पंखों को हिलाने की ज़रूरत ही नहीं थी।

नौजवान फ्लेचर चील को कुछ भी समझ में नहीं आया। यह सब क्या हो रहा है ? क्या मैं पागल हो गई हूँ ?

एक हल्की सी आवाज़ फिर उसके मस्तिष्क में गूंजने लगी, ‘फ्लेचर चील, क्या तुम उड़ना चाहते हो ?’ ‘हाँ, मैं उड़ना चाहता हूँ !’

‘फ्लेचर अगर तुम वाकई में उड़ना सीखना चाहते हो, तो वादा करो कि तुम कबीले की नासमझी को माफ कर दोगे और उन्हें नई संभावनायें दिखाने की कोशिश करोगे।’

फ्लेचर कम उम्र का था। उसमें अहम था। परंतु वो अपने दिल की आवाज़ के सामने झूठ नहीं बोल सका। ‘मैं उड़ना सीखने के लिए तैयार हूँ,’ उसने हल्के से कहा।

‘फिर चलो, फ्लेच, हम लोग पहले अभ्यास से शुरू करते हैं’ चमकीली चील ने कहा। जौनाथन दूर स्थित पहाड़ियों पर, हल्के-हल्के, गोल-गोल चक्कर काटने लगा। उसका छात्र बहुत उत्साही और तेज़ था। उसके दिल में उड़ना सीखने की आग थी। फ्लेचर ने एक कठिन हवाई कलाबाज़ी लगाने की कोशिश की परंतु वो उसमें एकदम असफल रहा।

‘तुम मेरे साथ अपना समय बरबाद कर रहे हो जौनाथन ! मैं एकदम बेअकल हूँ। मैं चाहें कितनी भी कोशिश करूं, परंतु यह सब मेरे से बिल्कुल नहीं बनेगा,’ फ्लेचर ने कहा।

जौनाथन ने भी फ्लेचर के साथ-साथ वही कलाबाज़ी लगाई। फ्लेचर ने बड़े ध्यान से, बारीकी से, जौनाथन के तरीके को देखा।

तीन महीने के अंदर जौनाथन को छह छात्र मिल गए। वे सभी कबीले से निष्कासित थे और हरेक के दिल में उड़ने की उमंग थी। उनके लिए कठिन-कठिन उड़ाने भरना आसान था, परंतु उनके पीछे के तर्क को समझना कठिन था। ‘हममें से हरेक चील, स्वतंत्रता का प्रतीक है,’ जौनाथन कहता ‘और नियंत्रित उड़ान के द्वारा ही, हम अपनी सही प्रकृति का प्रर्दशन कर सकते हैं। जो भी चीज़ हमें सीमित करे, हमें उसे अलग हटा देना चाहिए। इसी लिए हम इतने कठिन, हवाई करतबों का अभ्यास कर रहे हैं।’

दिन भर उड़ान की मेहनत, मशक्कत के बाद सारे छात्र थक कर पस्त हो जाते। उन्हे तेज़ रफ्तार और नई-नई बातें सीखने में मज़ा आ रहा था। उनमें नया सीखने की भूख बढ़ी थी। परंतु किसी को भी अभी तक यह समझ में नहीं आया था कि, पंखों और हवा की तरह ही, उड़ान का विचार भी एक असलियत थी।

‘तुम्हारा पूरा शरीर, एक पंख के छोर से दूसरे पंख के छोर तक केवल एक विचार है,’ जौनाथन ने कहा ‘विचारों के बंधन तोड़ने पर ही तुम अपने शरीर की जंजीरों को तोड़ पाओगे।’ परंतु उसकी बात किसी के भी पल्ले नहीं पड़ी। एक महीने बाद जौनाथन ने कबीले में लौट चलने की बात कही।

‘हम लोग अभी इसके लिए तैयार नहीं हैं,’ हेनरी चील ने कहा ‘वहाँ हमारा कौन स्वागत करेगा ? हम तो वहाँ से निष्कासित हैं! जहाँ से हमें निकाला गया हो वहाँ हम किस मुँह से वापिस जायें ?’

छात्रों में एक अजीब सी बेचैनी थी। कबीले का एक नियम था - निकाली गई चील कबीले में कभी वापिस नहीं लौट सकती। इस नियम को पिछले दस हज़ार सालों में, किसी ने भी तोड़ने की हिम्मत नहीं की थी। कानून कहता था कि वापिस मत जाओ, जबकि जौनाथन कबीले में लौटने को कह रहा था। जौनाथन अब कबीले की ओर अकेले ही उड़ चला। अगर छात्र कुछ देरी और करते, तो जौनाथन अकेला ही कबीले में पहुँचता।

‘अगर हम कबीले का हिस्सा नहीं हैं, तो हम उसके नियम-कानूनों का भी पालन क्यों करें?’ फ्लेचर ने अन्य चीलों से कहा, ‘पर अगर वहाँ कुछ लड़ाई-झगड़ा हुआ तो शायद हम जौनाथन के कुछ काम आ सकें।’

फिर उन आठों चीलों ने पश्चिम की ओर उड़ान भरी। सभी के पंख एक दूसरे से लगभग छू रहे थे। जौनाथन सबसे आगे था। फ्लेचर दायें था और कैलविन बायीं तरफ था। एक सौ पैंतीस मील प्रति घंटे की रफ्तार से चीलों का यह काफिला कबीले के ऊपर से गुज़रा।

कबीले की साधारण चीलों का चीखना-चिल्लाना एक दम बंद हो गया। आठ हज़ार चीलें, बिना पलक झपके, इस अद्भुत नज़ारे को टकटकी लगाए देखती रहीं। आठों चीलों ने हवा में एक पूरी कलाबाजी लगाई और फिर बिना पंख फड़फड़ाए, बिना किसी प्रयास के, रेत पर अपने पैर टिकाए। काफिला इस प्रकार उतरा, जैसे इस तरह के करतब उनके लिए एक आम बात हो।

कबीले में, नई चीलों के आने की बात, आग की तरह फैल गई। इन चीलों को तो कबीले से निकाला दिया गया था! फिर ये कैसे वापिस आयीं ! कबीले की चीलों को कुछ समझ में ही नहीं आ रहा था। शायद इसी लिए लड़ाई की आशंका टल गई।

‘ठीक है, यह सभी चीलें निष्कासित हैं,’ रेत पर खड़ी एक नौजवान चील ने कहा, ‘परंतु यह समझ में नहीं आता है कि इन्होंने इतने गजब के तरीके से उड़ना कहाँ से सीखा ?’

कबीले के मुखिया ने आदेश दिया : इन चीलों से कोई भी बात न करे। जो भी उनसे बात करेगा उसे भी कबीले से निकाल दिया जायेगा। जो चील निष्कासित चीलों को देखेगी वो भी कबीले के नियमों का उल्लंघन करेगी। तमाम चीलों ने अब अपनी पीठ जौनाथन की ओर घुमा दी, परंतु जौनाथन ने उसे अनदेखा किया। उसने कबीले के सामने अपने छात्रों के उड़ान का अभ्यास ज़ारी रखा। वो छात्रों को और बेहतर प्रयास करने के लिए प्रेरित करता। ‘मार्टिन,’ वो अपने एक छात्र पर चिल्लाया ‘तुम कहते हो कि तुम्हें धीमी गति की उड़ान आती है। पर जब तुम उसे करके दिखाओ नहीं करोगे, तब तक तुम्हारा ज्ञान पक्का नहीं होगा। इसलिए उड़ कर दिखाओ।’

अपने प्रशिक्षक की बात पर छोटी मार्टिन चील को आश्चर्य हुआ। धीमी उड़ान के करतब, जब उसने सब के सामने करके दिखाए, तो उसे खुद अपनी क्षमता पर ताज्जुब हुआ। एकदम हल्की हवा में भी वो, बिना डैने फड़फड़ाए, रेतीले तट से, बादलों तक उठ जाती, और फिर नीचे आ जाती।

इसी प्रकार चार्ल्स रोलेंड नाम की चील ऊँची पर्वतीय हवा की गोद में चौबीस हज़ार फीट की ऊँचाई पर उड़ी और खुशी-खुशी वापिस लौटी। अगले दिन उसने और ऊँची उड़ान भरने की कसम खाई। फिर फ्लेचर ने हवाई कलाबाज़ियों के अनूठे प्रदर्शन दिखाए। उसके सफेद पंख सूरज की रोशनी में चमचमा रहे थे। रेत पर खड़ी अनेक चीलें, आँखें बंद होने के बावजूद उसे ताक रहीं थीं।

जौनाथन अपने छात्रों के साथ ही रहता। वो उन्हें नए करतब दिखाता, तकनीकों की बारीकियाँ समझाता, सुझाव देता, उनपर दबाव डालता और उन्हें प्रोत्साहित करता। वह अपने छात्रों के साथ, काली तूफानी रातों में भी उड़ने का अभ्यास करता। कबीले की बाकी चीलें, बस रेत पर, एक-दूसरे से सटी खड़ी रहतीं।

उड़ान के अभ्यास खत्म होने के बाद, सारे छात्र रेत पर आराम करते और ध्यान से जौनाथन की बातों को सुनते। उसकी कुछ बातें तो उनके सिर के ऊपर से निकल जातीं, परंतु कुछ बातें ऐसी थीं जो उनकी समझ में एकदम आ जातीं।

रात के समय, इन छात्रों के पास, कबीले की कुछ साधारण चीलें चली आतीं। ये उत्सुक चीलें रात के अंधेरे में सब बातों को बड़े ध्यान से सुनतीं। अंधेरे के कारण, कबीले का कोई सदस्य, उन्हें देख भी नहीं सकता था। सुबह होने से पहले ही ये चीलें, कबीले में जाकर मिल जातीं थीं।

एक महीने बाद कबीले में से एक चील बाहर निकली और उसने उड़ना सीखने की अपनी इच्छा व्यक्त की। इस कदम के कारण, टेरीन्स चील भी, कबीले से निष्कासित कर दी गई। वो जौनाथन की आठवीं छात्र बनी। अगली ही रात को कबीले की एक और सदस्य, किर्क मेनार्ड नाम की चील, रेत पर लड़खड़ाती हुई, जौनाथन के पास आई और उसके पैरों के पास आकर गिर गई। ‘मेरी सहायता करो,’ उसने अपनी हल्की सी आवाज़ में कहा ‘मुझे जीवन में उड़ना सबसे अधिक पसंद है।’

‘अभी चलो,’ जौनाथन ने कहा ‘मेरे साथ ज़मीन से उठो। हम अभी शुरू करते हैं।’

‘तुम समझते नहीं हो। मैं अपने पंखों को हिला भी नहीं सकती।’

‘मेनार्ड चील, तुम अब जीवन जीने के लिए मुक्त हो। तुम अपने सच्चे अस्तित्व को अभी साकार कर सकती हो।

कोई भी बाधा तुम्हें रोक नहीं सकती है। यही चीलों का सच्चा और शाश्वत नियम है।’

‘तुम कह रहे हो कि मैं उड़ सकती हूँ।’

‘मैं सिर्फ इतना कह रहा हूँ कि तुम स्वतंत्र हो।’

फिर बिना किसी प्रयास के, किर्क मेनार्ड चील ने, अपने पंख पसारे और रात के आसमान में विलीन हो गई। पाँच सौ फीट ऊपर वो खुशी से चिल्लाई, ‘मैं उड़ सकती हूँ ! सुनो ! मैं उड़ सकती हूँ !’ उसके क्रंदन से कबीले की सारी चीलें जाग गयीं।

सुबह के समय, छात्रों के गोले के बाहर, कोई एक हज़ार साधारण चीलें खड़ीं थीं। सभी, मेनार्ड को उत्सुकता से देख रहीं थीं। उन्हें अब इस बात की कोई परवाह नहीं थी कि कोई उन्हें देख रहा है, या नहीं। वे सभी जौनाथन की बातें सुन रहीं थीं और उन्हें समझने की कोशिश कर रहीं थीं।

जौनाथन की बातें एकदम सरल थीं - उड़ना हरेक चील का जन्मसिद्ध अधिकार है, बंधनों से मुक्त होना हरेक चील की प्रकृति में निहित हैं। इस स्वतंत्रता में जो भी बाधा आए उसे दूर करो - चाहें वो परम्परा हो, अंधविश्वास हो या फिर कोई और अड़चन हो।

‘और चाहें वो, कबीले का नियम ही क्यों न हो,’ भीड़ में से एक आवाज़ आई।

‘सच्चा नियम वही है जो स्वतंत्रता की ओर ले जाए,’ जौनाथन ने कहा।

‘हम तुम्हारे जैसे कैसे उड़ सकते हैं ?’ एक और चील ने पूछा ‘ तुम तो विशेष हो, बेहद कुशल हो, भगवान का रूप हो, सब चीलों से ऊपर हो।’

‘देखो, फ्लेचर को ! लोवेल को ! चार्ल्स रोलेंड को ! क्या ये भी विशेष हैं, कुशल हैं और भगवान का रूप हैं ? ये भी तुम्हारे जैसे ही हैं, मेरे जैसे ही हैं। तुममें और इनमें बस एक ही अंतर है। इन्होंने अपनी सही प्रकृति को समझा है और अभ्यास करना शुरू किया है।’

हर रोज, भीड़ ज्यादा होती गई। कुछ सवाल पूछते, कुछ पूजा करते, तो कुछ, नफरत भरी निगाहों से देखते। कुछ लोग कहते कि जौनाथन महान चील का पुत्र है। कुछ कहते कि वो अपने समय से हज़ारों साल आगे है।

काफी सोचने के बाद जौनाथन ने कहा, ‘इस तरह की उड़ान हमेशा से ही रही है। कोई भी थोड़ा सा प्रयास करके उसे सीख सकता था। इसका समय और काल से क्या लेना-देना।’

हफ्ते भर बाद एक घटना घटी। फ्लेचर एक छात्र को तेज़ रफ्तार के कुछ गुर दिखा रहा था। उसने सात हज़ार फीट की ऊँचाई से गोता लगाया। वो रेत से कुछ इंच ऊपर था कि अचानक, एक नौजवान चील ठीक उसके रास्ते में आ गई। उसे बचाने की कोशिश में, फ्लेचर जल्दी से बायें को मुड़ा और दो सौ मील प्रति घंटे की रफ्तार से एक पत्थर की पहाड़ी से जा टकराया।

उसे लगा जैसे वो कठोर पहाड़ी, एक दूसरी दुनिया का दरवाज़ा हो। टकराते समय वो भयत्रस्त था, परंतु अब वो एक नए आसमान में तैर रहा था। उसे जौनाथन के शब्द याद आए, ‘हम धीरे-धीरे करके अपनी सीमाओं पर काबू पायेंगे । थोड़ा अभ्यास करने के बाद ही हम पत्थर में से उड़ना सीखेंगे।’

‘तुम यहाँ क्या कर रहे हो जौनाथन ? वो पहाड़, वो पत्थर, वो टक्कर, क्या मैं मरा नहीं ?’

‘सोचो तो, फ्लेचर। अगर तुम मुझ से बातचीत कर रहे हो, तो तुम मरे नहीं हो सकते। तुमने टक्कर के समय अपनी चेतना के स्तर को जल्दी से बदल दिया। तुम अब इस ऊँचे स्तर पर रह कर सीख सकते हो। अगर तुम चाहो, तो कबीले में फिर वापिस आकर काम कर सकते हो,’ जौनाथन ने कहा।

‘मैं वापिस आना चाहता हूँ,’ फ्लेचर ने कहा ‘मैंने अभी-अभी कुछ नए छात्रों के साथ काम शुरू किया है।’

‘जैसी तुम्हारी मर्जी, फ्लेचर। देखो, हमारा शरीर केवल एक विचार भर है।’

फ्लेचर ने अपना सिर हिलाया और अपने पंखों को सीधा किया और पहाड़ी के नीचे अपनी आँखें खोलीं। फ्लेचर को चलते देख, पूरा का पूरा कबीला वहाँ इक्टठा हो गया।

‘देखो वो जिन्दा हो गया ! वो जो मर गया था, वो अब चल रहा है !’

‘महान चील के पुत्र ने, उसके पंखों को छूकर, उसे नया जीवन दिया है !’

‘नहीं ! वह इस बात से मना कर रहा है ! वो शैतान है ! शैतान हमारे कबीले को बरबाद करने आया है।’

अब चार हज़ार चीलों की भीड़ जमा हो गई थी। शैतान ! शैतान ! की आवाज़ें चारों ओर गूंजने लगीं।

‘अगर हम यहाँ से निकल चलें तो क्या तुम्हें अच्छा लगेगा, फ्लेचर ?’ जौनाथन ने पूछा।

‘हाँ, अच्छा लगेगा ..।’ फ्लेचर ने कहा।

उसी क्षण वे दोनों भीड़ से आधा मील दूर खड़े थे। भीड़ की चमकती हुई चोंचों ने, जब उन्हें नोचना चाहा, तो वहाँ केवल खाली हवा थी।

‘ऐसा क्यों ?’ जौनाथन सोचने लगा ‘चीलों को यह समझा पाना, कि वे मुक्त हैं, स्वतंत्र हैं और वे कुछ अभ्यास के बाद उड़ना सीख सकती हैं, इतना कठिन काम क्यों है ?’

सुबह तक भीड़ अपनी बर्बरता भूल चुकी थी। परंतु फ्लेचर उस घटना को नहीं भूला था। ‘जौनाथन, तुमने कबीले से प्यार करना सिखाया। उन्हें नया सपना दिखाया। परंतु, तुम ऐसी चीलों को कैसे प्यार कर सकते हो, जो तुम्हें जान से मार डालने की कोशिश करें ?’

‘फ्लेचर, तुम्हें अभ्यास से, हरेक चील की अच्छाई को देखना होगा और उन्हें खुद उनकी अच्छाईयों को दिखाना पड़ेगा। प्यार से मेरा यही मतलब था। तुम एक बार इसे सीख लोगे तो तुम्हें बड़ा मज़ा आयेगा।’

‘मुझे एक चील की याद है। नाम था उसका, फ्लेचर। उसे कबीले से निकाल दिया गया था। उसने इस नरक में संघर्ष करके अपने लिए एक स्वर्ग बनाया। अब वो अपने पूरे कबीले को वही रास्ता दिखा रही है।’

फ्लेचर को कुछ समझ में नहीं आया। उसने भयभीत निगाहों से जौनाथन से पूछा, ‘मैं कबीले का लीडर ? क्या मतलब ? तुम यहाँ के प्रशिक्षक हो। तुम हमें छोड़ कर नहीं जा सकते !’

‘मैं क्यों नहीं जा सकता ? न जाने ऐसे कितने और कबीले होंगे, और कितने ऐसे फ्लेचर होंगे, जिन्हें इस फ्लेचर से कहीं अधिक, एक प्रशिक्षक की ज़रूरत हो ? जिन्हें कुछ प्रकाश की आवश्यकता हो ?’

‘मैं ? जौनाथन, मैं एक साधारण सी चील हूँ और तुम एक ...।’

‘और मैं उस महान चील का पुत्र हूँ,’ जौनाथन ने कहा ‘तुम्हें अब मेरी बिल्कुल भी ज़रूरत नहीं है। तुम्हें, बस अब अपने आप को खोजना है। अपने अंदर की असीमित, फ्लेचर समुद्री चील, को पहचानना है। वही तुम्हारा असली प्रशिक्षक है। तुम्हें उसे समझो और अभ्यास करो।’

एक क्षण बाद जौनाथन का शरीर हवा में थोड़ा थिरका और फिर एकदम पारदर्शी हो गया। ‘मेरे बारे में अफवाहें मत फैलाना और न ही मुझे भगवान बनाना। मैं बस एक समुद्री चील हूँ और मुझे उड़ना पसंद है।’

‘जो तुम अपनी आँखों से देख रहे हो उसपर विश्वास मत करना, फ्लेचर। आँखें केवल सीमायें ही दिखातीं हैं।

अपनी समझदारी से देखो। जो कुछ तुम जानते हो उसे ढूंढो, और तुम्हें अपने आप राह मिल जायेगी।’ शरीर का थिरकना अब बंद हो गया था। जौनाथन शून्य में विलीन हो गया था।

कुछ देर बाद फ्लेचर आसमान में उड़ा। उसे छात्रों का एक बिल्कुल नया समूह मिला। वे सभी सीखने को तत्पर थे। ‘तुम्हें पहले यह समझना है, उसने अपनी भारी आवाज़ में कहा, ‘कि हरेक चील, असीमित स्वतंत्रता और मुक्ति का प्रतीक है। हरेक चील उस महान चील का ही स्वरूप है। तुम्हारा पूरा शरीर - पंख के एक छोर से लेकर दूसरे तक, तुम्हारे विचारों के अलावा कुछ भी नहीं है।’

नौजवान चीलों को अपने प्रशिक्षक की बात कुछ भी समझ में नहीं आई।

‘चलो अब पहले सबक से शुरू करें,’ फ्लेचर ने कहा। यह कहते हुए फ्लेचर को अपने मित्र की ईमानदारी समझ में आई। उसमें भी वही महान आत्मा थी जो उसके मित्र में थी।

कोई सीमा नहीं है, कोई बंधन नहीं है जौनाथन, उसने सोचा। वो समय दूर नहीं, जब मैं शून्य में से प्रकट होकर, तुम्हें उड़ान के बारे में एक-दो नई बातें बताऊंगा !

फ्लेचर अब मुस्कुरा रहा था। उसे अपने छात्रों के साथ बड़ा मज़ा आ रहा था

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अरविन्‍द गुप्‍ता ने भारतीय प्रौद्योगिकी संस्‍था (आई.आई.टी.) कानपुर से 1975 में बी.टेक. की डिग्री हासिल की। उन्‍होंने विज्ञान की गतिविधियों पर 20 पुस्‍तकें लिखी हैं, 150 पुस्‍तकों का हिन्‍दी में अनुवाद किया है और दूरदर्शन पर 125 विज्ञान फिल्‍में पेश की हैं। उनकी पहली पुस्‍तक मैचस्‍टिक मॉड्‌ल्‍स एंड अदर साइन्‍स एक्‍सपेरीमेन्‍टस का 12 भारतीय भाषाओं में अनुवाद हुआ और उसकी पांच लाख से अधिक प्रतियां बिकीं।
उन्‍हें कई पुरस्‍कार मिले हैं जिनमें बच्‍चों में विज्ञान के प्रचार-प्रसार के लिए भारत सरकार का सर्वप्रथम राष्‍ट्रीय पुरस्‍कार (1988) और आई.आई.टी. कानपुर का डिस्‍टिंगुइश्‍ड एलुम्‍नस अवॉर्ड (2000), विज्ञान के लोकप्रियकरण के लिए इंदिरा गांधी पुरस्‍कार (2008) और थर्ड वर्ल्ड एकैडमी ऑफ साइंसिस का अवॉर्ड (2010) शामिल हैं।
उन्होंने पुणे स्‍थित आयुका मुक्‍तांगन बाल विज्ञान केन्‍द्र में भी काम किया है।

(अनुमति से साभार प्रकाशित)

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रचनाकार: कहानी : जौनाथन लिविंगस्टन सीगल
कहानी : जौनाथन लिविंगस्टन सीगल
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