पखवाड़े की कविताएँ

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--------------------------   कविताएं : रमेश शर्मा दोहे .......................................................... आँगन में तुलसी खड़ी,गलि...

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कविताएं :

रमेश शर्मा


दोहे
..........................................................
आँगन में तुलसी खड़ी,गलियारे में नीम !
मेरे घर में हीं रहें ,... दो दो वैद्य हकीम !!
............................................................
क्या धनमंतर वैद्य हो, क्या लुकमान हकीम।
दोनों सिर-माथे चढ़ी,......... रही हमेशा नीम॥
............................................................
रसा-बसा है नीम में,...... औषधि का भंडार।
मानव पर इसने किए, कोटि-कोटि उपकार!!
............................................................
लगा नीम का वृक्ष है, जिसके घर के पास।
जहरीले कीडे वहां,..... करते नहीं निवास॥
...........................................................
दंत-सफ़ाई के लिए, मिले मुफ़्त दातून।
पैसों का होता नहीं,. जिसमें कोई खून॥
.......................................................
कडुवी है तो क्या हुआ, गुण तो इसके नेक।
नीम छाँव में बैठे के,.. जाग्रत करो विवेक॥
(मुंबई)
rameshsharma_123@yahoo.com
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विजय वर्मा

ऐ जिंदगी

यूँ भी नहीं है कि आगे की राहें आसान है
फिर भी, ऐ जिंदगी ! तेरे बड़े एहसान है ।
 
शबनम की बूंदों पर मदहोश होने वालों
स्वेद-कणों से भी पूछो,तेरे क्या अरमान है ?
 
अपनी दुनियाँ से कुछ वक़्त निकालकर देखो
आज भी कई बेबस जिंदगियाँ हलकान है।  
 
बज़्म में हूँ तो मत सोचना  मज़े में हूँ
इस भीड़ में भी मेरा दिल बियावान है ।
 
किन्हे कहाँ फुर्सत दो पल पास आकर बैठे
आज हर शख़्श अपने आप में परेशान है।
 
हम न मिलेंगे फिर  यहाँ से जाने के बाद
फिर मत ढूंढना कि  कहाँ पैरों के निशान  है।
 
ये वक़्त ही ऐसा आया है कि कुछ न पूछो
अँधेरे  के दरवाजे पर अब  सूरज दरबान है।
 
 
 
 
 
 
V.K.VERMA.D.V.C.,B.T.P.S.[ chem.lab]
vijayvermavijay560@gmail.com
                    
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मनोज 'आजिज़'

टूटती कड़ी की वजह

उमस भरी गर्मी की दोपहरिया में
पंखों पर जीतीं हैं पंछियाँ
अब पेड़ों में ठंडक नहीं है
चूँकि कंक्रीट की गिरफ़्त में हैं वो
और पंछियाँ मुंडेर पर भी नहीं बैठतीं
ख़ुद को महफूज़ नहीं पातीं
ये सोच कर कहीं
आदमी देख न ले।

घर हैं, घर के आँगन भी हैं,
और आँगन में पेड़ भी
पर, लम्बी डालियाँ काट दी जाती हैं
ताकि खिड़की से कमरे में न चलीं आये।

हरी पत्तियाँ, पत्तों से भरी डालियाँ
बहुत अच्छी लगती हैं
पर, दूर से---
आदमी आजकल क़रीबी से गुरेज़ करने लगा है।

वही आदमी मंचों
से मशहूर भाषण देता है
स्लोगन भी दोहरवाता है।

हाय, अपनी बातों पर
अमल करना भूल जाता है
जब वह अपना 'घर' लौटता है
एक दूसरे चेहरे के साथ।

क्या कोई इस टूटती कड़ी की वजह
ढूंढ़ सकता है ?

पता--आदित्यपुर-२, जमशेदपुर
फोन- ९९७३६८०१४६
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डॉ बच्चन पाठक 'सलिल'


मानवता का प्रहरी
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आदित्यपुर-२, जमशेदपुर

योग नहीं व्यायाम मात्र है
मानवता का प्रहरी है
इसीलिए सदियों से इसमें
भारत की रूचि गहरी है।

योग करता है चित्त वृत्ति निरोध
यह दूर भगाता मन से क्रोध
यह नहीं है कोई सांप्रदायिक पाखंड
करता है मानवता का यह हित अखंड।

दूर भागते रक्तचाप अवसाद हैं
ऋषि मुनियों का सचमुच यह दुर्लभ प्रसाद है
मनसा, वाचा, कर्मणा हम सब बनें योगी
भोगवाद पर अंकुश से रहे न कोई रोगी।
-----------.

डॉ नन्द लाल भारती

आस्था
रूढ़िवाद,खूनी कर्मकांड,जातिवाद ,
भेदभाव का विरोधी हूँ
परन्तु
इसका ये मतलब नहीं कि
विशुद्ध नास्तिक हूँ ,.............
मानता हूँ तो एक परमसत्ता को
आस्थावान  हूँ उसके प्रति
यह भी जरुरी नहीं कि
मेरी आस्था विशालकाय पत्थर ,
सोने,चांदी की मूर्तियों में  हो ,.............
जिसे कई वेशधारी लोग घेरे हुए हो
पूजा वे खुद करने की जिद पर अड़े हो
जहां पूजा के नाम पर
दूध ,मेवा और दूसरे खाद्य सामग्री
बहाया जाता  हो  ,.............
वही दूध ,मेवा और दूसरे खाद्य सामग्री
जो भूखों को जीवन दे सकता है 
शायद इस अपव्यय से
भगवान भी नाखुश होता हो ,.............
इसीलिए मुझे,
हर वह घर मंदिर लगता है
जहाँ से इंसानियत का  फूटता है सोता
इंसानी समानता का  होता है दर्शन
जीओ और जीने दो का,
सदभाव प्रस्फुटित होता है 
जहां  असहाय और लाचार की
पूरी होती है मुरांदे
बुजुर्ग और कांपते हाथों को
मिलता है सहारा ,.............
ऐसे घर मुझे विहार, मंदिर
मस्जिद,गुरुद्वारा लगते है
और
मिलती है आस्थावान बनने रहने कि
अदृश्य ताकत भी ,,.............
जानता हूँ जब से मानव का
धरती पर पदार्पण हुआ है
तब से ही अपने परिवार का
अस्तित्व रहा है परन्तु
प्रतिनिधि बदलते रहे है
ईश-दर्शन शायद किसी को हुए हो ,.............
इतिहास बताता है ,
चार पीढ़ी तक तो किसी को नहीं हुए है
इसीलिए मैं हर उस इंसान में
भगवान को देखता हूँ ,.............
जिसमें जीवित होते है ,
दया करुणा ममता समता,परमार्थ,
सदभाव और तत्पर रहते है हरदम
अदने का पोंछने के लिए आंसू 
सच ऐसे घर-मंदिर,इंसान-भगवान से
पोषित होती है मेरी आस्था,.............
---

 


शब्द बने पहचान 
प्यारे ह्रदय उजियारे जानता हूँ
मानता भी हूँ
जीवन में आदमी का चेहरा
महानता की शिखर ,
सुंदरता का चरम ,
प्यार का पागलपन भी हो जाता है..............
कई देवता बन जाते है
कई देवदास कई देवदासियां
कई रंक भी हो गए
चेहरे के नूर में उत्तर कर ..............
जग जानता है
आदमी जब तक सांस ले रहा है
नूर है चेहरे का तब तक
सांस बंद होते ही बिखर जाता है
पंच तत्वों में  फिर मुश्किल हो जाती है
चेहरे की पहचान ..............
वही चेहरा जिस पर लोग मरते थे
राजपाट लुटाते थे
नहीं  हो सका नूरानी मुकम्मल
मानता हूँ
मेरा चेहरा तो हो ही नहीं सकता
क्योंकि ना मैं किसी राजवंश से
ना किसी औद्यौगिक घराने से
ना किसी धर्म-सत्ताधीश
और
ना किसी राजनैतिक सत्ताधीश की
विरासत का हिस्सा  हूँ ,
पर अदना भी ख़ास बन सकता है
नेक कर्म से वचन से  जन और
कायनात हित में अक्षरों की पिरोकर भी
इन्हीं सदगुणों से तो कालजयी है
रविदास ,कबीर,अम्बेडकर, स्वामी विवेकानंद
अब्राहम लिंकन सुकरात और भी कई
प्रातः स्मरणीय ..............
मैं जानता हूँ मैं कुछ भी नहीं
परन्तु मेरी भी अभिलाषा है
इंसान होने के नाते, ह्रदय उजियारे
चेहरा नहीं शब्द बने पहचान हमारे ..............
--.

शुभाशीष की  थाल लिए
जानता हूँ मानता भी हूँ
जरुरी भी है
फ़र्ज़ पर फ़ना होना  ……………
दुःख घोर दुःख होता है
परन्तु
इस दुःख में जीवन का बसंत
मीठा -मीठा सुखद एहसास
और
निहित होता है
सुकून भरा भविष्य निर्माण ……………
तभी तो माँ -बाप
कन्यादान कर देते है
सतीश अनुराग,अमितेश आज़ाद
जैसे भाई आँखों में ,
अश्रु समंदर छिपाए
हंसी ख़ुशी कर देते है
शशि चाँद सी बिटिया को विदा  ……
वही बेटी जो माँ -बाप की ,
सांस में बसती है
एक दिन माँ -बाप के घर से,
विदा कर  जाती है
स्वयं की दुनिया बसाने के लिए  ……
वही हुआ कल बेटी विदा हो गयी
घर-आँगन का मधुमास
बेजान हो गया 
कभी पलकों के बाँध नहीं टूटे थे
वह भी टूट गए  ……………
बेटी विदा हो चुकी है
हवा के झोंको में जैसे
बेटी के स्पर्श का
एहसास हो जाता है रह रह कर
मैं बावला भूल जाता हूँ
एहसास में खो जाता हूँ
कैसे हो पा…………?
बेटी के प्रतिउत्तर में निरुत्तर
मौन के सन्नाटे को
चिर नहीं पाता हूँ……
पलकें  बाढ़ से घिर जाती है
अश्रुवेग पलकों में समा जाता है
बेटी के सुखद कल के  लिए
हर झंझावात सह लेता हूँ
मन सांत्वना देता है
दिल तड़प जाता है बेटी की जुदाई में
अंतरात्मा प्रफुल्लित हो जाती है
बिटिया की सर्वसम्पन्नता की
शुभकामना लिए
मन कह उठता है बिटिया
तूझे मायके की याद ना आये
सदा सुखी रहे तू ……………
जीते रहेंगे हम तेरे लिए
शुभाशीष की  थाल लिए ……।
--.


मकसद
अपने जीवन का मकसद
ये नहीं कि
दुनिया की दौलत और शोहरत पर
कब्ज़ा हो जाये अपना
ये नहीं हो सकता सपना अपना
कुछ नहीं चाहिए यारों हमें
बस जीवित रहने के लिए
रोटी ,पानी और छाँव
वह भी श्रम के एवज में खैरात नहीं
इसलिए कि
मानव होने के अपने दायित्वों के प्रति
ईमानदारी बरता जाए
इंसान होने के नाते
एक अपनी चाहत ये भी है कि
वर्णिक और वंशवादी आरक्षण के
किले को अब ढहा दिया जाए
सच्चा मानव होने के नाते 
मानवीय समानता के लिए
बस अपने जीवन का
यही
ख़ास मकसद है यारों
मानव धर्म की रक्षा के लिए ..........

---------------.


सतीश चन्द्र श्रीवास्तव


         1.
अब भी सवेरा होता है वैसे ही,
अब भी लोग सुबह टहलने जाते हैं,
एक बेतरतीब सी आवाज़ें
अब भी गूँजा करती है कानों में ।
सूरज अब भी वैसे ही निकलता है
खिली हुई धूप के साथ
काम वाली औरत की कर्कश आवाज़
अब भी गूँजा करती है कानों में
अगर नहीं है कहीं तो बस तुम नहीं हो..
अब भी लोग आते है
सब ठीक है न, कहने के बाद
बगैर मौका दिए
अपनी परेशानियॊं का पुलिन्दा खोल देते हैं
अब भी मैं सुनता हूँ उन्हें,
बेबस धैर्य के साथ..
बस नहीं रहता है तो तुम्हारा साथ ।
अब भी सूरज ढ़लता है
शाम अब भी होती है
बस घर लौटते वक्त अब कोई नहीं कहता
आज फिर देर कर दी....
अब भी बेनूर अन्धेरों के जाल बिछे होते हैं
बस नहीं होता है उसे काटने वाला तुम्हारा चेहरा ..

        2.

दर्द जब
सहन और बर्दाश्त से
हो जाए बाहर
तो उसे व्यक्त कर दो
मगर सवाल ये है
कि कहे तो किससे कहे !
इंसान है संग दिल
और दीवारों के सिर्फ़ कान ही नहीं
हज़ारों ज़ुबान भी है
जहाँ से निकल कर
कहकहा बन कर
हवाऒं में लगता है गूंजने
और कानों में पिघले हुए
शीशे की तरह गिर कर
बढ़ा देते है दर्द ।
रहम किसी के पास नहीं है
और हमदर्दी की फ़िजूलखर्ची
कोई करता नहीं,
दर्द को लफ़्ज दो
और क़ैद कर लो पन्नों पर,
जितना सह सकते हो सहो
पर दर्द किसी से मत कहो ।   
         ------     
                                सतीश चन्द्र श्रीवास्तव
                                ५/२ए रामानन्द नगर
                                अल्लापुर, इलाहाबाद  
------------------.

कुमार अनि‍ल


गीत-
(शहर में मोहब्‍त के ना)
शहर में मोहब्‍बत के ना,
इश्‍क के बजार में,   
दि‍ल नहीं बि‍कता कि‍सी बाजार में, -2

चाहत दि‍लों की ऐसी,
बैठे हैं, इन्‍तजार में, 
कब आऐगा सनम तू,
बैठा हूं तेरे प्‍यार में -2

शहर में मोहब्‍बत के ना
इश्‍क के बाजार में,
दि‍ल नहीं बि‍कता कि‍सी बाजार में,
है अजनवी मुसाफि‍र सौदा न प्‍यार का कर,
कीमत नहीं है होती, चाहत के बाजार में,-2

सौदा दि‍लों का कि‍सने कौन कर रहा है,
खुद वो यहां पे अपने आप मर रहा है,-2

शहर में मोहब्‍बत के ना, इश्‍क के बजार में,
दि‍ल नहीं बि‍कता कि‍सी बाजार में-2

जि‍सने भी इस जहां में सौदा कि‍या दि‍लों का,
वो खुद बि‍का जहां में, कहना है दि‍लजलों का,
मजनू भी ना बि‍का था, लैला के प्‍यार में,-2

शहर में मोहब्‍त के ना, इश्‍क के बजार में,
दि‍ल नहीं बि‍कता कि‍सी बाजार में-2 
------------------------------------
कुमार अनि‍ल,
anilpara123@gmai.com
-------------.


 

रवि विनोद श्रीवास्तव


जन्म स्थान रायबरेली, उ.प्र.
शिक्षा: माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय से परास्नातक किया है
सम्पर्क सूत्र- ravi21dec1987@gmail.com
लेखक, कवि, व्यंगकार, कहानीकार
फिलहाल एक टीवी न्यूज ऐजेंसी से जुड़े हैं।
किसान की पुकार
चलो मैं कायर ही सही,
आप की तरह लायर तो नहीं।
वादों पर अपनी रहता हूं अड़ा
भाव यूरिया का कुछ ऐसे बढ़ा,
न देखी है धूप न ही छांव को,
कंधे पर फावड़ा हरपल साथ हो।
मेहनत में मेरे नहीं थी कोई कमी,
फसल को उगाने में तैयार की जमीं।
धरती का सीना चीर कर अनाज उगाया,
फिर भी भर पेट खाना न खा पाया।
बैंक के लोन में दो पहले कमीशन,
तब जाकर मिलती है परमीशन।
एक दिन साथ मेरे खेतों में काम करो
फिर चाहे जितना मुझे कायर कहो।
कर्ज के बोझ कुछ लोगों ने
कदम गलत लिया उठा।
न निराशा हो वो, बड़ा दो उनका हौसला।
किसान हूं मैं कोई अरबपति तो नहीं
भूखे रहकर भी कटती है जिंदगी।
चलो मैं कायर ही सही,
आप की तरह लायर तो नहीं।
रवि विनोद श्रीवास्तव
----------------.

 

श्रीप्रकाश शुक्ल


मनीपुर में १८ सेना के जवान मारे जाने के सन्दर्भ में यह रचना सभी सैनिकों को सम्बोधित  करती हुयी  ५ जून २०१५ को स्वतः प्रादुर्भावित हुयी ।
 
अरे उठो वीरो क्यों चुप हो
फर्क नहीं कुछ दिखता हमको कायरता और शराफत में
मतलब क्या चुप हो बैठें हम नादानी और हिमाकत में
क्षमा उसी को शोभा देती जो सच में ज़हर उगल सकता है
बदला निपात का हो विघात, तो माहौल बदल सकता है

अरे उठो वीरो क्यों चुप हो किसकी तुम्हें प्रतीक्षा अब है
अठारह सह्स्र जब चीख उठें, शूरों की सार्थकता तब है
घर घर में घुस ढूढ़ निकालो जिसने ऐसा अंजाम दिया
सारे जग को आज बता दो, किसने माँ का दूध पिया

नहीं तनिक भी आवश्यक हम जग के आगे रोना रोयें
प्रत्युत्तर ऐसा सटीक हो सदियों तक हम चैन से सोयें
यदि देश पडोसी कोई भी दे रहा समर्थन इस जघन्य को
तो ऐसा पाठ पढ़ाओ उसको फिर न छेड़े किसी अन्य को

याद करो चाडक्य नीति जो कुश की धृष्टता मिटाने को
देती सलाह संकल्पित हो मौलिक आलंबन निबटाने को
आज ज़रूरी है हम इनकी अति विस्तारित जड़ें मिटायें
ऐसे दुः साहस पूर्ण कृत्य जिस से अपना सर न उठायें

 

--

अंजली अग्रवाल


देखो कैसे बनठन के ये स्कूल चले.....
कंधों पर बोझ लिये भी मुस्कुराकर चले....
इनकी टूटी - फूटी गूड मार्निंग भी टीचर को खुश कर जाती है...
बात जब होमवर्क की आये तो छोटी सी जीभ बाहर निकल आती है...
घड़ी-घड़ी लंच टाइम का इंतजार होता है....
आज तूने लंच में क्या लाया दोस्तों से यही सवाल होता है.....
गिरे जो तो आँसुओं की नदियाँ बह जाती हैं....
बढ़ा जो हाथ कोई आगे तो हँसी की किलकारियाँ छूट जाती है......
मैदान में कुछ इस तरह दिखते हैं.....
मानों जैसे पानी में ढेरो बदक चहकते हैं.....
जाते जाते भी टीचर से बाय करना नहीं भूलते हैं...
दिलों को जीतना जानते हैं.......
रास्तों पर लड़खड़ाते कदम चले....
देखो कैसे बनठन के ये स्कूल चले.....
----------.

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 आलेख ,1, कविता ,1, कहानी ,1, व्यंग्य ,1,14 सितम्बर,7,14 september,6,15 अगस्त,4,2 अक्टूबर अक्तूबर,1,अंजनी श्रीवास्तव,1,अंजली काजल,1,अंजली देशपांडे,1,अंबिकादत्त व्यास,1,अखिलेश कुमार भारती,1,अखिलेश सोनी,1,अग्रसेन,1,अजय अरूण,1,अजय वर्मा,1,अजित वडनेरकर,1,अजीत प्रियदर्शी,1,अजीत भारती,1,अनंत वडघणे,1,अनन्त आलोक,1,अनमोल विचार,1,अनामिका,3,अनामी शरण बबल,1,अनिमेष कुमार गुप्ता,1,अनिल कुमार पारा,1,अनिल जनविजय,1,अनुज कुमार आचार्य,5,अनुज कुमार आचार्य बैजनाथ,1,अनुज खरे,1,अनुपम मिश्र,1,अनूप शुक्ल,14,अपर्णा शर्मा,6,अभिमन्यु,1,अभिषेक ओझा,1,अभिषेक कुमार अम्बर,1,अभिषेक मिश्र,1,अमरपाल सिंह आयुष्कर,2,अमरलाल हिंगोराणी,1,अमित शर्मा,3,अमित शुक्ल,1,अमिय बिन्दु,1,अमृता प्रीतम,1,अरविन्द कुमार खेड़े,5,अरूण देव,1,अरूण माहेश्वरी,1,अर्चना चतुर्वेदी,1,अर्चना वर्मा,2,अर्जुन सिंह नेगी,1,अविनाश त्रिपाठी,1,अशोक गौतम,3,अशोक जैन पोरवाल,14,अशोक शुक्ल,1,अश्विनी कुमार आलोक,1,आई बी अरोड़ा,1,आकांक्षा यादव,1,आचार्य बलवन्त,1,आचार्य शिवपूजन सहाय,1,आजादी,3,आत्मकथा,1,आदित्य प्रचंडिया,1,आनंद टहलरामाणी,1,आनन्द किरण,3,आर. के. नारायण,1,आरकॉम,1,आरती,1,आरिफा एविस,5,आलेख,4288,आलोक कुमार,3,आलोक कुमार सातपुते,1,आवश्यक सूचना!,1,आशीष कुमार त्रिवेदी,5,आशीष श्रीवास्तव,1,आशुतोष,1,आशुतोष शुक्ल,1,इंदु संचेतना,1,इन्दिरा वासवाणी,1,इन्द्रमणि उपाध्याय,1,इन्द्रेश कुमार,1,इलाहाबाद,2,ई-बुक,374,ईबुक,231,ईश्वरचन्द्र,1,उपन्यास,269,उपासना,1,उपासना बेहार,5,उमाशंकर सिंह परमार,1,उमेश चन्द्र सिरसवारी,2,उमेशचन्द्र सिरसवारी,1,उषा छाबड़ा,1,उषा रानी,1,ऋतुराज सिंह कौल,1,ऋषभचरण जैन,1,एम. एम. चन्द्रा,17,एस. एम. चन्द्रा,2,कथासरित्सागर,1,कर्ण,1,कला जगत,113,कलावंती सिंह,1,कल्पना कुलश्रेष्ठ,11,कवि,2,कविता,3239,कहानी,2360,कहानी संग्रह,247,काजल कुमार,7,कान्हा,1,कामिनी कामायनी,5,कार्टून,7,काशीनाथ सिंह,2,किताबी कोना,7,किरन सिंह,1,किशोरी लाल गोस्वामी,1,कुंवर प्रेमिल,1,कुबेर,7,कुमार करन मस्ताना,1,कुसुमलता सिंह,1,कृश्न चन्दर,6,कृष्ण,3,कृष्ण कुमार यादव,1,कृष्ण खटवाणी,1,कृष्ण जन्माष्टमी,5,के. पी. सक्सेना,1,केदारनाथ सिंह,1,कैलाश मंडलोई,3,कैलाश वानखेड़े,1,कैशलेस,1,कैस जौनपुरी,3,क़ैस जौनपुरी,1,कौशल किशोर श्रीवास्तव,1,खिमन मूलाणी,1,गंगा प्रसाद श्रीवास्तव,1,गंगाप्रसाद शर्मा गुणशेखर,1,ग़ज़लें,550,गजानंद प्रसाद देवांगन,2,गजेन्द्र नामदेव,1,गणि राजेन्द्र विजय,1,गणेश चतुर्थी,1,गणेश सिंह,4,गांधी जयंती,1,गिरधारी राम,4,गीत,3,गीता दुबे,1,गीता सिंह,1,गुंजन शर्मा,1,गुडविन मसीह,2,गुनो सामताणी,1,गुरदयाल सिंह,1,गोरख प्रभाकर काकडे,1,गोवर्धन यादव,1,गोविन्द वल्लभ पंत,1,गोविन्द सेन,5,चंद्रकला त्रिपाठी,1,चंद्रलेखा,1,चतुष्पदी,1,चन्द्रकिशोर जायसवाल,1,चन्द्रकुमार जैन,6,चाँद पत्रिका,1,चिकित्सा शिविर,1,चुटकुला,71,ज़कीया ज़ुबैरी,1,जगदीप सिंह दाँगी,1,जयचन्द प्रजापति कक्कूजी,2,जयश्री जाजू,4,जयश्री राय,1,जया जादवानी,1,जवाहरलाल कौल,1,जसबीर चावला,1,जावेद अनीस,8,जीवंत प्रसारण,141,जीवनी,1,जीशान हैदर जैदी,1,जुगलबंदी,5,जुनैद अंसारी,1,जैक लंडन,1,ज्ञान चतुर्वेदी,2,ज्योति अग्रवाल,1,टेकचंद,1,ठाकुर प्रसाद सिंह,1,तकनीक,32,तक्षक,1,तनूजा चौधरी,1,तरुण भटनागर,1,तरूण कु सोनी तन्वीर,1,ताराशंकर बंद्योपाध्याय,1,तीर्थ चांदवाणी,1,तुलसीराम,1,तेजेन्द्र शर्मा,2,तेवर,1,तेवरी,8,त्रिलोचन,8,दामोदर दत्त दीक्षित,1,दिनेश बैस,6,दिलबाग सिंह विर्क,1,दिलीप भाटिया,1,दिविक रमेश,1,दीपक आचार्य,48,दुर्गाष्टमी,1,देवी नागरानी,20,देवेन्द्र कुमार मिश्रा,2,देवेन्द्र पाठक महरूम,1,दोहे,1,धर्मेन्द्र निर्मल,2,धर्मेन्द्र राजमंगल,1,नइमत गुलची,1,नजीर नज़ीर अकबराबादी,1,नन्दलाल भारती,2,नरेंद्र शुक्ल,2,नरेन्द्र कुमार आर्य,1,नरेन्द्र कोहली,2,नरेन्‍द्रकुमार मेहता,9,नलिनी मिश्र,1,नवदुर्गा,1,नवरात्रि,1,नागार्जुन,1,नाटक,152,नामवर सिंह,1,निबंध,3,नियम,1,निर्मल गुप्ता,2,नीतू सुदीप्ति ‘नित्या’,1,नीरज खरे,1,नीलम महेंद्र,1,नीला प्रसाद,1,पंकज प्रखर,4,पंकज मित्र,2,पंकज शुक्ला,1,पंकज सुबीर,3,परसाई,1,परसाईं,1,परिहास,4,पल्लव,1,पल्लवी त्रिवेदी,2,पवन तिवारी,2,पाक कला,23,पाठकीय,62,पालगुम्मि पद्मराजू,1,पुनर्वसु जोशी,9,पूजा उपाध्याय,2,पोपटी हीरानंदाणी,1,पौराणिक,1,प्रज्ञा,1,प्रताप सहगल,1,प्रतिभा,1,प्रतिभा सक्सेना,1,प्रदीप कुमार,1,प्रदीप कुमार दाश दीपक,1,प्रदीप कुमार साह,11,प्रदोष मिश्र,1,प्रभात दुबे,1,प्रभु चौधरी,2,प्रमिला भारती,1,प्रमोद कुमार तिवारी,1,प्रमोद भार्गव,2,प्रमोद यादव,14,प्रवीण कुमार झा,1,प्रांजल धर,1,प्राची,367,प्रियंवद,2,प्रियदर्शन,1,प्रेम कहानी,1,प्रेम दिवस,2,प्रेम मंगल,1,फिक्र तौंसवी,1,फ्लेनरी ऑक्नर,1,बंग महिला,1,बंसी खूबचंदाणी,1,बकर पुराण,1,बजरंग बिहारी तिवारी,1,बरसाने लाल चतुर्वेदी,1,बलबीर दत्त,1,बलराज सिंह सिद्धू,1,बलूची,1,बसंत त्रिपाठी,2,बातचीत,2,बाल उपन्यास,6,बाल कथा,356,बाल कलम,26,बाल दिवस,4,बालकथा,80,बालकृष्ण भट्ट,1,बालगीत,20,बृज मोहन,2,बृजेन्द्र श्रीवास्तव उत्कर्ष,1,बेढब बनारसी,1,बैचलर्स किचन,1,बॉब डिलेन,1,भरत त्रिवेदी,1,भागवत रावत,1,भारत कालरा,1,भारत भूषण अग्रवाल,1,भारत यायावर,2,भावना राय,1,भावना शुक्ल,5,भीष्म साहनी,1,भूतनाथ,1,भूपेन्द्र कुमार दवे,1,मंजरी शुक्ला,2,मंजीत ठाकुर,1,मंजूर एहतेशाम,1,मंतव्य,1,मथुरा प्रसाद नवीन,1,मदन सोनी,1,मधु त्रिवेदी,2,मधु संधु,1,मधुर नज्मी,1,मधुरा प्रसाद नवीन,1,मधुरिमा प्रसाद,1,मधुरेश,1,मनीष कुमार सिंह,4,मनोज कुमार,6,मनोज कुमार झा,5,मनोज कुमार पांडेय,1,मनोज कुमार श्रीवास्तव,2,मनोज दास,1,ममता सिंह,2,मयंक चतुर्वेदी,1,महापर्व छठ,1,महाभारत,2,महावीर प्रसाद द्विवेदी,1,महाशिवरात्रि,1,महेंद्र भटनागर,3,महेन्द्र देवांगन माटी,1,महेश कटारे,1,महेश कुमार गोंड हीवेट,2,महेश सिंह,2,महेश हीवेट,1,मानसून,1,मार्कण्डेय,1,मिलन चौरसिया 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पाटील,1,शगुन अग्रवाल,1,शबनम शर्मा,7,शब्द संधान,17,शम्भूनाथ,1,शरद कोकास,2,शशांक मिश्र भारती,8,शशिकांत सिंह,12,शहीद भगतसिंह,1,शामिख़ फ़राज़,1,शारदा नरेन्द्र मेहता,1,शालिनी तिवारी,8,शालिनी मुखरैया,6,शिक्षक दिवस,6,शिवकुमार कश्यप,1,शिवप्रसाद कमल,1,शिवरात्रि,1,शिवेन्‍द्र प्रताप त्रिपाठी,1,शीला नरेन्द्र त्रिवेदी,1,शुभम श्री,1,शुभ्रता मिश्रा,1,शेखर मलिक,1,शेषनाथ प्रसाद,1,शैलेन्द्र सरस्वती,3,शैलेश त्रिपाठी,2,शौचालय,1,श्याम गुप्त,3,श्याम सखा श्याम,1,श्याम सुशील,2,श्रीनाथ सिंह,6,श्रीमती तारा सिंह,2,श्रीमद्भगवद्गीता,1,श्रृंगी,1,श्वेता अरोड़ा,1,संजय दुबे,4,संजय सक्सेना,1,संजीव,1,संजीव ठाकुर,2,संद मदर टेरेसा,1,संदीप तोमर,1,संपादकीय,3,संस्मरण,730,संस्मरण लेखन पुरस्कार 2018,128,सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन,1,सतीश कुमार त्रिपाठी,2,सपना महेश,1,सपना मांगलिक,1,समीक्षा,847,सरिता पन्थी,1,सविता मिश्रा,1,साइबर अपराध,1,साइबर क्राइम,1,साक्षात्कार,21,सागर यादव जख्मी,1,सार्थक देवांगन,2,सालिम मियाँ,1,साहित्य समाचार,98,साहित्यम्,6,साहित्यिक गतिविधियाँ,216,साहित्यिक बगिया,1,सिंहासन बत्तीसी,1,सिद्धार्थ जगन्नाथ जोशी,1,सी.बी.श्रीवास्तव विदग्ध,1,सीताराम गुप्ता,1,सीताराम साहू,1,सीमा असीम सक्सेना,1,सीमा शाहजी,1,सुगन आहूजा,1,सुचिंता कुमारी,1,सुधा गुप्ता अमृता,1,सुधा गोयल नवीन,1,सुधेंदु पटेल,1,सुनीता काम्बोज,1,सुनील जाधव,1,सुभाष चंदर,1,सुभाष चन्द्र कुशवाहा,1,सुभाष नीरव,1,सुभाष लखोटिया,1,सुमन,1,सुमन गौड़,1,सुरभि बेहेरा,1,सुरेन्द्र चौधरी,1,सुरेन्द्र वर्मा,62,सुरेश चन्द्र,1,सुरेश चन्द्र दास,1,सुविचार,1,सुशांत सुप्रिय,4,सुशील कुमार शर्मा,24,सुशील यादव,6,सुशील शर्मा,16,सुषमा गुप्ता,20,सुषमा श्रीवास्तव,2,सूरज प्रकाश,1,सूर्य बाला,1,सूर्यकांत मिश्रा,14,सूर्यकुमार पांडेय,2,सेल्फी,1,सौमित्र,1,सौरभ मालवीय,4,स्नेहमयी चौधरी,1,स्वच्छ भारत,1,स्वतंत्रता दिवस,3,स्वराज सेनानी,1,हबीब तनवीर,1,हरि भटनागर,6,हरि हिमथाणी,1,हरिकांत जेठवाणी,1,हरिवंश राय बच्चन,1,हरिशंकर गजानंद प्रसाद देवांगन,4,हरिशंकर परसाई,23,हरीश कुमार,1,हरीश गोयल,1,हरीश नवल,1,हरीश भादानी,1,हरीश सम्यक,2,हरे प्रकाश उपाध्याय,1,हाइकु,5,हाइगा,1,हास-परिहास,38,हास्य,59,हास्य-व्यंग्य,78,हिंदी दिवस विशेष,9,हुस्न तबस्सुम 'निहाँ',1,biography,1,dohe,3,hindi 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रचनाकार: पखवाड़े की कविताएँ
पखवाड़े की कविताएँ
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