अरूण कुमार झा की कविताएँ - समय साक्षी है

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अरूण कुमार झा 1.    परिवर्तन करो समाज का, विकास के लिए देश का समय साक्षी है समय को समझो समय के साथ चलो अपने हठ को छोड़ो परिवर्तन करो समा...

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अरूण कुमार झा

1.    परिवर्तन करो समाज का, विकास के लिए देश का


समय साक्षी है
समय को समझो
समय के साथ चलो
अपने हठ को छोड़ो
परिवर्तन करो समाज का
निर्माण करो नये समाज का
विकास के लिए देश का


समय साक्षी है
समय को समझो
समय की भाषा को समझो
समय के इशारे को समझो
परिवर्तन करो समाज का
निर्माण करो नये समाज का
विकास के लिए देश का।


समय साक्षी है
हठ को छोड़ो
अंहकार को तोड़ो
समय को समझो
नहीं तो समय
तुम्हें नहीं छोड़ेगा
परिवर्तन करो समाज का
निर्माण करो नये समाज का
विकास के लिए देश का।


समय साक्षी है
समय को समझो
मन के कलुष को
मन में बैठे वैमनस्य को
सद्भाव के जल से धो लो
नहीं तो अपने ही
कलुष में एक दिन
विलीन हो जाओगे
परिवर्तन करो समाज का
निर्माण करो नये समाज का
विकास के लिए देश का।


समय साक्षी है
समय को समझो
देश ऐसे नहीं चलता
जैसे चलाना चाहते हो!
तुम्हारी दमित इच्छाओं की पूर्ति
के निमित्त देश नहीं चलता
परिवर्तन करो समाज का
निर्माण करो नये समाज का
विकास के लिए देश का।


समय साक्षी है
समय को समझो
आने वाले कल के साथ
न्याय करो
नयी पीढ़ी के जेहन में ईाहर
मत घोलो
परिवर्तन करो समाज का
निर्माण करो नये समाज का
विकास के लिए देश का।


समय साक्षी है
समय को समझो
समय के साथ न्याय करो
धनलोलुपता के मकड़जाल
को तोड़ो
नहीं तो एक दिन
टूट कर बिखर जाओगे
परिवर्तन करो समाज का
निर्माण करो नये समाज का
विकास के लिए देश का।


समय साक्षी है
समय को समझो
यहाँ कुछ भी स्थायी नहीं होता
कितने आये; चले गये
रह गया उनका यश
जो उन्होंने कमाया
परिवर्तन करो समाज का
निर्माण करो नये समाज का
विकास के लिए देश का।


समय साक्षी है
समय को समझो
तुम्हारा यहाँ कुछ नहीं है
एक भी गवाह नहीं है इसका
मरीचिका की उलझन से
बाहर आओ
परिवर्तन करो समाज का
निर्माण करो नये समाज का
विकास के लिए देश का।


समय साक्षी है
समय को समझो
दुबारा देह वही, प्राण वही
नहीं मिलते
नाम करो, कुछ काम करो
नहीं तो जो नाम है वह भी
गुम जायेगा
परिवर्तन करो समाज का
निर्माण करो नये समाज का
विकास के लिए देश का।

समय साक्षी है
समय को समझो
सत्य को परखो
कोई सत्य को आज तक
खोज नहीं पाया
भटकन छोड़
पथ न्याय का पकड़ो
परिवर्तन करो समाज का
निर्माण करो नये समाज का
देश के लिए विकास का।


समय साक्षी है
समय को समझो
अच्छे अन्त की चाह में
कितने पथिक अनन्त में खो गये
हर क्षण सुन्दर अवसर है
अच्छी शुरूआत का
उसे मत छोड़ो
परिवर्तन करो समाज का
निर्माण करो नये समाज का
विकास के लिए देश का।


 

 

 

2. लोकतंत्र के सौदागर
समय साक्षी है
समय किसी को नहीं छोड़ता।
समय को झुठलाने का हम
जितना भी प्रयास करें
वह धोखा ही होगा।
हमेशा हम धोखा खाते हैं
दूसरे को धोखा देते हैं।
धोखा देने के लिए
नाम तो कुछ भी हो सकता है-
लोकतंत्र, राजतंत्र, जनतंत्र,
लाठी तंत्र, धर्मतंत्र... आदि इत्यादि।

समय साक्षी है-
चलता तो लाठी तंत्र ही है।
मैं भी साठ साल से देख रहा हूँ।
आप भी अपनी उम्र और समय
को देख ही रहे हैं।
स्वतंत्रता के लिए, स्वाधीनता के लिए
कैसे-कैसे, किन-किन रूपों में
कितने वीर सपूतों ने अपनी जानें गवाँयीं
किसके लिए?
लाठी/बंदूक वालों के लिए?
रूप और रंग जो भी हों-
नाम कुछ भी हो सकता है उनका-
...सिंह ...यादव ...साव ...दास... राम ...गाँधी ...मिश्रा ...मंगरा ...बुधवा ...एतवा ...शुक्ला
...यादव ....राव ...मोदी ...अम्बानी।
ये सब-के-सब सियार, लोमड़ी,
गिद्ध ही तो हैं।

क्या करेंगे आप?
देखा नहीं आपने-
वीरों की वीरगति?
जिसने आजादी और लोकतंत्र के लिए
अपने प्राणों की आहुति दे दी।
देखा नहीं तो पढ़ा जरूर होगा
यदि पढ़ा भी नहीं तो सुना जरूर होगा
यदि सुना भी नहीं तो फिर अफसोस कैसा?
उसी का नतीजा तो है-
गिद्धों और लोमड़ियों के लोकतंत्र
में साँस लीजिये, डंडे खाइये, बंदी बनिये।

टमाटर की चोरी, बैंगन की चोरी,
कटहल की चोरी, भूख मिटाने के लिए
जूठे अन्न की चोरी, प्यास बुझाने के लिए
उनके बेकार बहते पानी की चोरी के जुर्म में
खूनी-भारतीय पुलिस एक्ट का
जुल्म सहिए और कुछ न बोलिए
बोलेंगे तो सरकारी काम में बाधा
डालने के जुर्म में क्या-क्या न सहने पडे़ंगे!
हो सकता है-
आतंकवादी और नक्सली भी
करार दिये जायेंगे।
इसलिए चुपचाप रहिए
लोकतंत्र है आजाद भारत का
संविधान जैसा कहता है वैसा करते रहिए।
आजादी के पूर्व की तरह हम जैसे
गुलामी में बसर करते थे
आगे भी करने को अभिशप्त हैं
करते रहिए।
यदि मुखर होंगे तो कुछ प्राप्त हो सकता है-
मृत्यु भी या उनकी जमात में शामिल होने की
सुनहरा राजकीय-शासकीय दावत
उड़ाने का अवसर भी।
इसके लिए आपको
अपने ईमान को बेचना पडे़गा
लेकिन मूल्य उनका होगा।

वीरों के पसीने और उनके
अरमानों के साथ धोखा
देने का साहस हो तो
यह लोकतंत्र आपके लिए सब कुछ
अनुकøल बना सकता है-
महँगी गाड़ी, हवाई सफर, बंगला और
मनोरंजन के लिए वह सब कुछ जो आप
सिनेमा में, अपनी कल्पनाओं में
देख कर अपनी इच्छाओं को
अबतक दबाते रहे हैं।

पहले सबकुछ देख-सुन कर
चुप रहना अनुशासन-पर्व माना जाता था-
अब तो कोई पर्व नहीं है
तब क्या करेंगे आप?

लोकतंत्र है, इसका आधार और जन्म
आपके ‘वोट’ की नींव पर खड़ा
और मजबूती से जड़ा है,
जड़ अंदर तक गहरा धंसा है।
क्या आप इसे उखाड़ पायेंगे?
यदि उखाड़ने का
कुछ अनुभव और माद्दा हो तो
आगे बढ़िये नहीं तो
ऐतिहासिक पानी के बुलबुले सरीखा
संपूर्ण क्रांति का बिगुल
तो फूंक दीजिए फिर देखिए
कितनी भेड़-बकरियाँ
आपके इस क्रांति-बिगुल
को कैसे-कैसे लेती हैं?
सिर्फ इतना ही करना है-
उन भेड़-बकरियों को विश्वास हो जाये कि
आने वाला समय उनका मूल्यांकन कर
आजीवन पेंशन-सुख देगा।

लोकधारा का दरिया वर्तमान
गंगा की तरह मैली
भले ही हो जाये, अपने बाप का क्या?
देश भाँड़ में जाये, अपने बाप का क्या?
सब कुछ तो बाजार के हवाले है अब।
‘वोट’ का बाजारवाद बड़ा ही पुख्ता है,
अब तो विदेशों में भी दिखता है।

आगे आप-हम सभी, बाजार के हवाले होंगे
सौदा करने में जो जितना माहिर होगा
‘वोट’ का मोल उतना ही तगड़ा होगा।
‘इवेंट’ प्रबंधन के तराजू पर
आप तौले जाँयेंगे, इनाम के साथ-साथ
और भी बहुत कुछ पायेंगे।
फिर आप भी खुश!
लोकतंत्र के सौदागर और
प्रबंधन भी खुश!


अरुण कुमार झा
प्रधान संपादक, दृष्टिपात हिंदी मासिक
wgmrak@gmail.com, drishtipathindi@gmail.com,

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तौंसवी,1,फ्लेनरी ऑक्नर,1,बंग महिला,1,बंसी खूबचंदाणी,1,बकर पुराण,1,बजरंग बिहारी तिवारी,1,बरसाने लाल चतुर्वेदी,1,बलबीर दत्त,1,बलराज सिंह सिद्धू,1,बलूची,1,बसंत त्रिपाठी,2,बातचीत,2,बाल उपन्यास,6,बाल कथा,356,बाल कलम,26,बाल दिवस,4,बालकथा,80,बालकृष्ण भट्ट,1,बालगीत,20,बृज मोहन,2,बृजेन्द्र श्रीवास्तव उत्कर्ष,1,बेढब बनारसी,1,बैचलर्स किचन,1,बॉब डिलेन,1,भरत त्रिवेदी,1,भागवत रावत,1,भारत कालरा,1,भारत भूषण अग्रवाल,1,भारत यायावर,2,भावना राय,1,भावना शुक्ल,5,भीष्म साहनी,1,भूतनाथ,1,भूपेन्द्र कुमार दवे,1,मंजरी शुक्ला,2,मंजीत ठाकुर,1,मंजूर एहतेशाम,1,मंतव्य,1,मथुरा प्रसाद नवीन,1,मदन सोनी,1,मधु त्रिवेदी,2,मधु संधु,1,मधुर नज्मी,1,मधुरा प्रसाद नवीन,1,मधुरिमा प्रसाद,1,मधुरेश,1,मनीष कुमार सिंह,4,मनोज कुमार,6,मनोज कुमार झा,5,मनोज कुमार पांडेय,1,मनोज कुमार श्रीवास्तव,2,मनोज दास,1,ममता सिंह,2,मयंक चतुर्वेदी,1,महापर्व छठ,1,महाभारत,2,महावीर प्रसाद द्विवेदी,1,महाशिवरात्रि,1,महेंद्र भटनागर,3,महेन्द्र देवांगन माटी,1,महेश कटारे,1,महेश कुमार गोंड हीवेट,2,महेश सिंह,2,महेश हीवेट,1,मानसून,1,मार्कण्डेय,1,मिलन चौरसिया मिलन,1,मिलान कुन्देरा,1,मिशेल फूको,8,मिश्रीमल जैन तरंगित,1,मीनू पामर,2,मुकेश वर्मा,1,मुक्तिबोध,1,मुर्दहिया,1,मृदुला गर्ग,1,मेराज फैज़ाबादी,1,मैक्सिम गोर्की,1,मैथिली शरण गुप्त,1,मोतीलाल जोतवाणी,1,मोहन कल्पना,1,मोहन वर्मा,1,यशवंत कोठारी,8,यशोधरा विरोदय,2,यात्रा संस्मरण,31,योग,3,योग दिवस,3,योगासन,2,योगेन्द्र प्रताप मौर्य,1,योगेश अग्रवाल,2,रक्षा बंधन,1,रच,1,रचना समय,72,रजनीश कांत,2,रत्ना राय,1,रमेश उपाध्याय,1,रमेश राज,26,रमेशराज,8,रवि रतलामी,2,रवींद्र नाथ ठाकुर,1,रवीन्द्र अग्निहोत्री,4,रवीन्द्र नाथ त्यागी,1,रवीन्द्र संगीत,1,रवीन्द्र सहाय वर्मा,1,रसोई,1,रांगेय राघव,1,राकेश अचल,3,राकेश दुबे,1,राकेश बिहारी,1,राकेश भ्रमर,5,राकेश मिश्र,2,राजकुमार कुम्भज,1,राजन कुमार,2,राजशेखर चौबे,6,राजीव रंजन उपाध्याय,11,राजेन्द्र कुमार,1,राजेन्द्र विजय,1,राजेश कुमार,1,राजेश गोसाईं,2,राजेश जोशी,1,राधा कृष्ण,1,राधाकृष्ण,1,राधेश्याम द्विवेदी,5,राम कृष्ण खुराना,6,राम शिव मूर्ति यादव,1,रामचंद्र शुक्ल,1,रामचन्द्र शुक्ल,1,रामचरन गुप्त,5,रामवृक्ष सिंह,10,रावण,1,राहुल कुमार,1,राहुल सिंह,1,रिंकी मिश्रा,1,रिचर्ड फाइनमेन,1,रिलायंस इन्फोकाम,1,रीटा शहाणी,1,रेंसमवेयर,1,रेणु कुमारी,1,रेवती रमण शर्मा,1,रोहित रुसिया,1,लक्ष्मी यादव,6,लक्ष्मीकांत मुकुल,2,लक्ष्मीकांत वैष्णव,1,लखमी खिलाणी,1,लघु कथा,288,लघुकथा,1340,लघुकथा लेखन पुरस्कार आयोजन,241,लतीफ घोंघी,1,ललित ग,1,ललित गर्ग,13,ललित निबंध,20,ललित साहू जख्मी,1,ललिता भाटिया,2,लाल पुष्प,1,लावण्या दीपक शाह,1,लीलाधर मंडलोई,1,लू सुन,1,लूट,1,लोक,1,लोककथा,378,लोकतंत्र का दर्द,1,लोकमित्र,1,लोकेन्द्र सिंह,3,विकास कुमार,1,विजय केसरी,1,विजय शिंदे,1,विज्ञान कथा,79,विद्यानंद कुमार,1,विनय भारत,1,विनीत कुमार,2,विनीता शुक्ला,3,विनोद कुमार दवे,4,विनोद तिवारी,1,विनोद मल्ल,1,विभा खरे,1,विमल चन्द्राकर,1,विमल सिंह,1,विरल पटेल,1,विविध,1,विविधा,1,विवेक प्रियदर्शी,1,विवेक रंजन श्रीवास्तव,5,विवेक सक्सेना,1,विवेकानंद,1,विवेकानन्द,1,विश्वंभर नाथ शर्मा कौशिक,2,विश्वनाथ प्रसाद तिवारी,1,विष्णु नागर,1,विष्णु प्रभाकर,1,वीणा भाटिया,15,वीरेन्द्र सरल,10,वेणीशंकर पटेल ब्रज,1,वेलेंटाइन,3,वेलेंटाइन डे,2,वैभव सिंह,1,व्यंग्य,2075,व्यंग्य के बहाने,2,व्यंग्य जुगलबंदी,17,व्यथित हृदय,2,शंकर पाटील,1,शगुन अग्रवाल,1,शबनम शर्मा,7,शब्द संधान,17,शम्भूनाथ,1,शरद कोकास,2,शशांक मिश्र भारती,8,शशिकांत सिंह,12,शहीद भगतसिंह,1,शामिख़ फ़राज़,1,शारदा नरेन्द्र मेहता,1,शालिनी तिवारी,8,शालिनी मुखरैया,6,शिक्षक दिवस,6,शिवकुमार कश्यप,1,शिवप्रसाद कमल,1,शिवरात्रि,1,शिवेन्‍द्र प्रताप त्रिपाठी,1,शीला नरेन्द्र त्रिवेदी,1,शुभम श्री,1,शुभ्रता मिश्रा,1,शेखर मलिक,1,शेषनाथ प्रसाद,1,शैलेन्द्र सरस्वती,3,शैलेश त्रिपाठी,2,शौचालय,1,श्याम गुप्त,3,श्याम सखा श्याम,1,श्याम सुशील,2,श्रीनाथ सिंह,6,श्रीमती तारा सिंह,2,श्रीमद्भगवद्गीता,1,श्रृंगी,1,श्वेता अरोड़ा,1,संजय दुबे,4,संजय सक्सेना,1,संजीव,1,संजीव ठाकुर,2,संद मदर टेरेसा,1,संदीप तोमर,1,संपादकीय,3,संस्मरण,730,संस्मरण लेखन पुरस्कार 2018,128,सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन,1,सतीश कुमार त्रिपाठी,2,सपना महेश,1,सपना मांगलिक,1,समीक्षा,847,सरिता पन्थी,1,सविता मिश्रा,1,साइबर अपराध,1,साइबर क्राइम,1,साक्षात्कार,21,सागर यादव जख्मी,1,सार्थक देवांगन,2,सालिम मियाँ,1,साहित्य समाचार,98,साहित्यम्,6,साहित्यिक गतिविधियाँ,216,साहित्यिक बगिया,1,सिंहासन बत्तीसी,1,सिद्धार्थ जगन्नाथ जोशी,1,सी.बी.श्रीवास्तव विदग्ध,1,सीताराम गुप्ता,1,सीताराम साहू,1,सीमा असीम सक्सेना,1,सीमा शाहजी,1,सुगन आहूजा,1,सुचिंता कुमारी,1,सुधा गुप्ता अमृता,1,सुधा गोयल नवीन,1,सुधेंदु पटेल,1,सुनीता काम्बोज,1,सुनील जाधव,1,सुभाष चंदर,1,सुभाष चन्द्र कुशवाहा,1,सुभाष नीरव,1,सुभाष लखोटिया,1,सुमन,1,सुमन गौड़,1,सुरभि बेहेरा,1,सुरेन्द्र चौधरी,1,सुरेन्द्र वर्मा,62,सुरेश चन्द्र,1,सुरेश चन्द्र दास,1,सुविचार,1,सुशांत सुप्रिय,4,सुशील कुमार शर्मा,24,सुशील यादव,6,सुशील शर्मा,16,सुषमा गुप्ता,20,सुषमा श्रीवास्तव,2,सूरज प्रकाश,1,सूर्य बाला,1,सूर्यकांत मिश्रा,14,सूर्यकुमार पांडेय,2,सेल्फी,1,सौमित्र,1,सौरभ मालवीय,4,स्नेहमयी चौधरी,1,स्वच्छ भारत,1,स्वतंत्रता दिवस,3,स्वराज सेनानी,1,हबीब तनवीर,1,हरि भटनागर,6,हरि हिमथाणी,1,हरिकांत जेठवाणी,1,हरिवंश राय बच्चन,1,हरिशंकर गजानंद प्रसाद देवांगन,4,हरिशंकर परसाई,23,हरीश कुमार,1,हरीश गोयल,1,हरीश नवल,1,हरीश भादानी,1,हरीश सम्यक,2,हरे प्रकाश उपाध्याय,1,हाइकु,5,हाइगा,1,हास-परिहास,38,हास्य,59,हास्य-व्यंग्य,78,हिंदी दिवस विशेष,9,हुस्न तबस्सुम 'निहाँ',1,biography,1,dohe,3,hindi divas,6,hindi sahitya,1,indian art,1,kavita,3,review,1,satire,1,shatak,3,tevari,3,undefined,1,
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रचनाकार: अरूण कुमार झा की कविताएँ - समय साक्षी है
अरूण कुमार झा की कविताएँ - समय साक्षी है
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रचनाकार
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