यात्रा संस्मरण - चाइनीज शॉट (यूनान 1)

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रचनाकार में आमतौर पर ब्लॉगों में पूर्वप्रकाशित सामग्री प्रकाशित नहीं होती . परंतु, अपवाद स्वरूप, इस बार यह परंपरा तोड़ते हुए आपके लिए प्रस...

रचनाकार में आमतौर पर ब्लॉगों में पूर्वप्रकाशित सामग्री प्रकाशित नहीं होती. परंतु, अपवाद स्वरूप, इस बार यह परंपरा तोड़ते हुए आपके लिए प्रस्तुत है यात्रा संस्मरण जिसे अभिषेक ओझा के ब्लॉग http://uwaach.aojha.in/2015/09/blog-post.html   से कॉपी-पेस्ट किया गया है. अभिषेक ओझा का अंदाजे़बयाँ एकदम जुदा है. उनका लिखा गणितीय प्रेमपत्र  ( http://uwaach.aojha.in/2011/12/blog-post.html  ) भी अवश्य-पठनीय है. 

चाइनीज शॉट (यूनान -१)

 

अभिषेक ओझा

'डोंत वरी, यू कैंत क्लिक अ बैद शॉत हियर। ऑल सीनिक ग्रीक पोस्तकार्द्स कम फ्रॉम दिस प्लेस' - मैंनफ्रेड ने मुसकुराते हुए कहा. मैनफ्रेड से मेरी मुलाक़ात वहीँ थोड़ी देर पहले हुई थी। पर्यटकों, सेल्फ़ी-स्टिक्स और सैकड़ों ट्राईपॉड़ों  से खचाखच भरी जगह पर. जहाँ अनजान लोग एक दूसरे को देखते हुए अक्सर मुस्कुरा देते हैं ताकिऑक्वर्ड न लगे.


सनसेट पॉइंट - भीड़ सूर्यास्त का इंतज़ार कर रही थी. लोग कहते हैं सूर्यास्त देखने के लिए दुनिया के सबसे अच्छे जगहों में से वो एक है. आबादी 14-15 हजार पर वहाँ  हर साल कई लाख पर्यटक आते हैं। दिन अभी काफी  बचा था पर भीड़ अभी से ही अच्छी हो चली थी. दुनिया के अलग-अलग हिस्सों से आये लोग. सबकी अपनी भाषा और अपनी-अपनी अंग्रेजी
वहां आते हुए रास्ते में मुझसे एक चीनी लड़की ने बड़ी हड़बड़ी में पुछा - 'वेयर इज सनसेट? आर यू गोइंग फॉर सनसेट?' सनसेट को तो पश्चिम में ही होना चाहिए। कायदे से मुझे कहना चाहिए था - 'कीप लुकिंग ऐट वेस्ट' पर मैंने बताया - 'कीप वाकिंग स्ट्रेट एंड इन अबाउट एट टू टेन मिनट्स यू विल रीच सनसेट'.


खैर… सनसेट पॉइंट पर मैनफ्रेड की वेशभूषा देख मुझे ह्वेनसांग की याद आई. बचपन में इतिहास की किताब में बनी उनकी फोटो। पीठ पर बैगपैक और सर पर तवा लिए.

स्कूल के दिनों में कभी समझ नहीं आया कि ह्वेनसांग के सिर पर वो तवा दरअसल छतरी थी.


ऐसी जगहों पर मैं भी ट्राईपॉड और लेंस फिल्टर लेकर जाता हूँ.  पर यहाँ न तो ट्राइपॉड था न फिल्टर। मैं सोच रहा था कि सनसेट की तो क्या ही अच्छी फोटो आएगी ! खैर दुनिया का कोई  भी कोना हो बोली के इतर भी एक भाषा होती है जो सभी समझते हैं. उसी भाषा से ये बात समझ आधुनिक ह्वेनसांग, मैनफ्रेड ने मुझसे कहा - 'डोंत वरी, यू कैंत क्लिक अ बैद शॉत हियर।'
इस के बाद मैनफ्रेड से थोड़ी बात चीत हुई. मैं शायद ही कभी आगे बढ़ कर खुद किसी से बात करता हूँ पर अगर कोई करने लगे तो अच्छा लगता है. मैनफ़्रेड आराम से यात्रा करने वाले यात्री हैं और अक्सर ग्रीस आते हैं. वो कहीं भी जाते हैं तो कम से कम १५ दिन रुकते हैं. स्थानीय लोगों के बीच रहते हैं उनसे मिलते जुलते हैं. आराम से घूमते हैं. उन्होंने कहा - "आई डोंट वांत तू तेक अनदर वैकेशन तू रिकवर आफ्टर माय वैकेशन। आई कीप इत रिलैक्स्ड।" उन्हें व्यू पॉइंट्स कवर करने और फोटो खींचने की जल्दी नहीं होती। तीसरी बार वो वहाँ आए थे. मैंने उनसे पूछा - "क्या-क्या है यहाँ देखने लायक?" उन्होंने एक भी व्यू पॉइंट और शॉपिंग की जगह या रेस्टोरेंट नहीं बताया। उनके अनुभव अलग थे. बातें अलग थी। गाँवों के नाम बताये उन्होने. वाइनरी बतायी। खेत देख के आओ. लोगों से मिलो। टूरिस्ट्स, रेस्टोरेंट्स, क्रुजेज? -दिस इस नो ग्रीस !


पहला सवाल जो मेरे दिमाग में आया वो ये कि - कोई  घूमने क्यों जाता है ?
मुझे याद आया उसी दिन सुबह होटल में बैठे एक दंपत्ति से मेरी बात हुई थी. उन्होंने मुझसे कहा - 'एक सप्ताह थोड़ा ज्यादा ही है यहाँ के लिए. दो दिनबहुत है.' उन्होंने ही मुझे दिखाया था एक सनसेट की फोटो और कहा था  'यू मस्ट सी सनसेट हियर, इट्स मेस्मेराईज़िंग '. उनके फोटो का कैप्शन था - 'हेवेन ऑन अर्थ'. मुझे लगा 'हेवेन ऑन अर्थ' के लिए दो दिन बहुत कैसे हो सकते है? हेवेन से भी बोर?
'आर दे रियली लुकिंग ऐट हेवेन?' मैनफ्रेड ने कहा. मैंने सोचा - बात तो सही है. हो गया घूमना-फिरना, खींच ली फोटो, शेयर  कर दी. चलो अब घर ! लाइक्स से अभिभूत होने के जमाने में किसे पड़ी है अनुभव की?


वैसे कई लोगों के साथ वैसा भी हो जाता है कि... एक थीं कोई. वो गयी तीर्थ करने। जाने से पहले उनके आचार  के मर्तबानों को धूप दिखाना था, जो वो पड़ोसी के यहाँ छोड़ गयी। पर उनके मन में यही हुट-हूटी रही कि... आचार खराब तो नहीं हो जाएँगे? कहते हैं जब वो द्वारका पहुंची तो लोग उन्हें द्वारिकाधीश दिखाते रह गए। पर उन्हें हर तरफ सिर्फ अचार के मर्तबान ही दिखते रहे। वैसे ही अब पर्यटकों को सिर्फ लाइक्स और कमेंट्सदिखते हैं - द्वारिकाधीश दिखें न दिखें। कैप्शन होना चाहिए - फीलिंग स्पिरिचुयल ऐट...
पिछले दिनों मैं एक कार्यक्रम में भारतीय दूतावास गया था। वहाँ मेरे आगे बैठी लड़की पूरे समय फोन में यही ढूंढती रही कि टैग  कैसे हो दूतावास! फिर वो ट्वीटर पर गयी तो उसे दूतावास का हैंडल नहीं मिला। क्या लिखना है वो तो पहले से लिख चुकी थी। कुछ देखने और सुनने की जरूरत थी नहीं। बीच में लोग ताली बजाते तो वो भी  बजा देती। शायद कर  पाते हों लोग इतनी मल्टी टास्किंग  हमसे तो न हो पाता। [हां, ये ऑब्जर्व जरूर कर रहा था :)]


खैर... मुझे याद आया जब पिछले साल मैं और मेरे एक दोस्त कोलोराडो प्लेटो के कैन्यन्स और रेगिस्तान में दो सप्ताह घूमते रहे थे. लोग पूछते हैं इतने दिन तुमने किया क्या? है क्या इतना देखने लायक? और हम सोचते रहते हैं - फिर जाएँगे कभी ! हम किसी एक जगह पर जितनी देर बैठते उतनी देर में पर्यटक बस लोगों को पूरा नेशनल पार्क दिखा लाती ! लोग व्यू पॉइंट्स पर उतरते भरतनाट्यम और कुचिपुड़ी जैसी अलग-अलग मुद्राएं बनाते - खीचिक-खीचिक कर आठ दस फोटो खींचते और चले जाते. मै उन्हेंचाइनीज शॉट कहता हूँ। सूर्यास्त देखने की जगह सूरज खाते हुए लील्यो ताहि मधुर फल जानी* पोज और एफिल टावर  चुटकी में भर लेने में ही लोग लगे रह जाते हैं। मुझे नहीं लगता वो देखते भी हैं कि क्या है वहाँ. सब कुछ तो है इन्टरनेट पर क्यों देखें या पढ़ें वहां रूककर? देखने के लिए थोड़े न गए हैं ! मुझे नहीं लगता उनके अनुभव कैप्शन औरस्टेटस सोचने से बहुत अधिक होते होंगे। वो आँख भर नहीं कैमरा भर देखते हैं। मुझसे भी किसी ने मेरे एक ट्रिप की फोटो देख कहा था - "क्या देखूँ इसमें? वालपेपर लग रही हैं सारी पिक्स ! तुम तो हो नहीं इसमें।"


सूर्यास्त हुआ. खूबसूरत था. इतना कि उसके कुछ दिनों बाद मैंने किसी से कहा  - "पिछले कुछ दिनों से मैं सनसेट रेजिस्ट नहीं कर पा रहा. मुझे ओबसेशन सा हो गया है." … सूर्यास्त देखने के लिए खड़ी समुद्री नावों और जहाजों ने भोपूं बजाया। लोग सेल्फ़ी और तस्वीरें लेने में व्यस्त रहे. जल्दी-जल्दी।  कहीं 'गोल्डेन मूमेंट' चला न जाये। मुझे पता है उनके स्टेटस और कैप्शन जरूर सिरीन रहे होंगे भले वहां हांव-हांव मची थी.


लोग बहुत खुश दिखे। अच्छी तस्वीरें आई. मैनफ्रेड ने सही कहा था इतनी खूबसूरत जगह है कि ख़राब फोटो नहीं आ सकती।  फिर मैंने किसी को कहते सुना - 'इट्स ओवररेटेड ! सन, सी, माउंटेंस व्हॉट इज सो वंडरफुल अबाउट ईट? इट इज सो क्राउडेड!' बात सच थी. सूरज रोज उगता है रोज अस्त होता है. समुद्र, पहाड़ -  है थोड़ा खूबसूरत पर ऐसा भी क्या है जो इतना हो-हल्ला? जैसे बादशाह के अद्भुत कपड़े के लिए सभी वाह-वाह कर रहे हों और किसी ने  कह दिया हो कि - नंगा है !


भीड़ आई थी धीरे-धीरे पर छँटी बड़ी तेजी से. अभी ठीक से सूर्य अस्त भी नहीं हुआ था कि अधिकतर लोग निकल लिए. बैठने की जगह भी खाली होने लगी। जब सब जाने लगे - मैनफ्रेड बैठ लिए. हम भी बैठ गए. सोचा थोड़ी देर में जाएँगे जब रास्ते खाली हो जाएंगे। मैनफ्रेड ने कहा… 'वेत, अनतिल मिडनाईट। इफ यू रियली वांत तू फील समथींग वंदरफूल '.  उन्होंने तस्वीर नहीं खींची। उन्होंने बताया कि बहुत अच्छी तस्वीरें ली हैं उन्होंने उस जगह की। पर आज वो सिर्फ देखने आये थे. हम कुछ गिने-चुने लोग देर तक बैठे रहे। मुझे याद आया रात के दो बजे आर्चेस नेशनल  पार्क में डेलिकेट आर्च के पास सिर्फ छह लोग बैठे रहे थे - धुप्प अंधेरी रात, मिल्की वे, डेलिकेट आर्च. फिर रात को सिर पर फ्लैश लाइट लगाए नीचे उतरना.... वो अब तक के सबसे अच्छे अनुभवों में से एक है।
लाखों पर्यटकों के लिए एक-दो दिन किसी भी जगह के लिएबहुत होता है - हेवेन्ली कैप्शन और तस्वीरों के लिए. फेसबूक पर कमेन्ट का रिप्लाई होता है - 'इट वाज अ ड्रीम वकेशन ! सैड दैट इट एंडेड टू सून :(' और मन में होता है - दो दिन ही काफी थे। एक सप्ताह बेकार गए! कहीं और भी चले गए होते इतने दिन में। मुझे मैनफ्रेड की बात जमी। मैं दो शाम और गया वहाँ। देर रात तक बैठा रहा।
मुझसे जब कोई पूछता है कैसी जगह है? कितने दिन के लिए जाना चाहिए? मुझे नहीं समझ आता मैं क्या जवाब दूँ


वापस आने पर किसी ने पूछा - विल यू गो अगेन ?! देख तो लिया ! अगर सिर्फ जगहें 'कवर' करना लक्ष्य हो तो फिर क्यों दुबारा जाऊंगा? अगर अनुभव करना हो तो बिलकुल। फिर से... बार-बार. डिपेंड  करता है - 'चाइनीज शॉट' या 'मैनफ्रेडीय'।


मुझे लगता है कि लोग कहीं इसलिए जाने लगे हैं क्योंकि... फैंटेसी है। एल्बम बनाना है। शेयर करना है। इंटरनेट का पर्यटन पर प्रभाव विषय पर रिसर्च करने की जरुरत नहीं है. फिर लोग अपने यात्रा के असली अनुभव बताने से डरते हैं। कहीं लोग ये न समझे कि... उस बादशाह के कपड़े की तरह जो दरअसल नंगा था ! कितने लोगों के निगेटिव यात्रा अनुभव (या विस्तृत?) आपने फेसबुक पर पढ़ा है?


सबका यात्रा करने का अपना तरीका होता है- अपने कारण। सबकी अलग-अलग पसंद होती हैं। पर लाइक्स/कमेंट्स के जमाने में अनुभव के लिए कौन यात्रा करता है? यात्री बढ़े हैं - यात्रा से अनुभवी होने वाले घटे हैं - ह्वेनसांग नहीं होते अब। ट्वीट/फेसबुक के त्वरित जमाने में किसे फुर्सत है विस्तार से लिखने की और किसे फुर्सत है आपका लिखा पढ़ने की?
मुझसे अक्सर लोग पूछते हैं इज इट वर्थ टू विजिट न्यू यॉर्क फॉर वन वीकेंड?

मुझे नहीं पता क्या जवाब दूँ मैं। मैं इस शहर में घंटों पैदल चला हूँ... मीलों। मुझे सच में नहीं पतावर्थ क्या है ! शायद मुझे सारे प्रसिद्द जगहों से ज्यादा अच्छा सेंट्रल पार्क में एक पानी बेचने वाले से बात करना लगा ! मैंने पिछले पांच साल में दर्जनों दोस्तों को न्यूयॉर्क का वीकेंड ट्रिप कराया है. अन ऑफिसियल गाइड ! ऐसी जगहें हैं जहाँ पर बार-बार सिर्फ इसलिए गया क्योंकि किसी को घुमाना होता है. नहीं तो दुबारा तो कभी नहीं जाता।एक दिन भी काफी है - सालों भी कम है। घूमते रहो तो हर बार कुछ नया दिखता है। जैसे मेरी माँ ने हजारो बार मानस पढ़ा है, हर बार उन्हे लगता है कुछ नया मिला ! मैनफ़्रेडिय घूमना वैसे ही है। चाइनीज शॉट है - मानस का पाठ हुआ प्रसाद लेने के समय पहुंचे, जय-जय किया, निकल लिए.


मैं कह देता हूँ - डीपेंड्स।


लोग कहते हैं - न्यू यॉर्क के बारे में तो बहुत सुना है। और कह रहे हो डीपेंड्स ?


मैनफ़्रेडिय घूमना हो तो - "पैदल घुमो - सड़कों पर। स्टेचू ऑफ़ लिबर्टी, म्यूजियम्स, स्टोर्स, ब्रूकलिन ब्रिज और एम्पायर स्टेट ही न्यू यॉर्क नहीं है.".


.... या है शायद... इतना कह सकता हूँ कि समय लगता है इस शहर से प्यार होने में। पर ऐडपटेबल शहर है। शायद वो सबसे जरूरी है किसी जगह  के लिए - कुछ समय रहो तो हर अगला दिन पिछले से बेहतर लगे. सबके लिए कुछ  न कुछ है इस शहर में।  कई लोग आते हैं जिन्हें पहले भीड़-भाड़, चमक धमक, मौसम, भाग-दौड़, लोग पसंद नहीं आते। पर धीरे-धीरे मैंने देखा है उन्हें अच्छा लगने लगता है। क्योंकि उनके लायक जो है शहर का वो हिस्सा उन्हें दिख जाता है. सबकुछ है इस शहर में. पर वो शायद मैनफ़्रेडीय नजरिया है। मैनफ्रेड जगहों के बारे में लिख सकते हैं। यात्राओं से सीख सकते हैं। अनुभव बटोर सकते हैं. पर जिन्हें चाइनीज शॉट के लिए घूमना हो - उनके लिए दो दिन बहुत है और न्यूयॉर्क तो उनके लिए पर्फेक्ट है !


मुझे खुशी है मैं मैनफ्रेड से मिला।


अज्ञेय याद आए -
मैंने आँख भर देखा। (सिर्फ कैमरा भर नहीं !)
दिया मन को दिलासा-पुन: आऊँगा।
(भले ही बरस-दिन-अनगिन युगों के बाद!)
क्षितिज ने पलक-सी खोली,
तमक कर दामिनी बोली-
'अरे यायावर! रहेगा याद?'

और ये रही बिन फिल्टर ट्राइपॉड बिना शॉट…

 

~Abhishek Ojha~

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यात्रा संस्मरण - चाइनीज शॉट (यूनान 1)
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