असीमा भट्ट की कविताएँ - असफल प्रेमिकाएँ

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असीमा भट्ट 1. असफल प्रेमिकाएँ वो प्रेतात्माएं नहीं थीं वो प्रेमिकाएँ थीं वो खिलना जानती थीं फूलों की तरह महकना जानती थीं खुशबू की तरह ब...

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असीमा भट्ट


1.

असफल प्रेमिकाएँ

वो प्रेतात्माएं नहीं थीं
वो प्रेमिकाएँ थीं
वो खिलना जानती थीं फूलों की तरह
महकना जानती थीं खुशबू की तरह
बिखरना जानती थीं हवाओं की तरह
बहना जानती थीं झरनों की तरह
उनमें भी सात रंग थे इंद्रधनुषी
उनमें सात सुर थे
उनकी पाज़ेब में थी झंकार  .
वो थीं धरती पर भेजी गयीं हब्बा की पाकीज़ा बेटियां
जिन्हें और कुछ नहीं आता था सिवाय प्यार करने के
वो बार बार करती थीं प्यार
असफल होती थीं.
टूटती थीं
बिखरती थीं
फिर सम्हलती थीं
जैसे कुकनूस पक्षी अपनी ही राख से फिर  फिर जी उठता है
फिर प्यार करती थीं
उसी शिद्दत से और उसी जुनून से
दिल ओ जान लुटाना जानती थीं अपने प्रेमियों पर
दे देना चाहती थीं उन्हें दुनिया भर की खुशियाँ
बचा लेना चाहती थीं दुनिया की हर बुरी नज़र से
कोई भी बला आये तो पहले हमसे होकर गुज़रे
अपने रेशमी आंचल को बना देती थीं अपने प्रेमियों का सुरक्षा कवच
बन जाती थीं उनके लिए नज़रबट्टू लगा कर आँखों में मोटे मोटे काजल
उनके  लिए बुनती थीं स्वेटर और सपने दोनों
गुनगुनाती रहती थीं हर वक़्त अपने अपने प्रेमी की याद में
खोयी खोयी अनमनी
अपनी ही धुन में
न  किसी का डर
न दुनिया की परवाह
करती थीं रात रात भर रतजगा
और
ऊपर से कहती थीं - ख्वाब में आ के मिल
उनींदी आँखें लाल होती हैं असफल प्रेमिकाओं की
जैसे रात भर किसी जोगी ने रमाई हो धुनी

असफल प्रेमिकाएँ करती हैं व्रत, रखती हैं उपवास
बांधती हैं मन्नत का धागा
लगाती हैं मंदिरों और मज़ारों  के चक्कर
देती हैं भिखारियों को भीख और मांगती हैं दुआ  में अपने प्यार की भीख
‘मुद्दत हुई है यार को मेहमां किये हुए’  कहते हुए गाती थीं
‘हम इंतजार करेंगे तेरा क़यामत तक’
वो भूल जातीं  दिन, महीने और  तारीख
भूल जातीं खाना खाना
बेख्याली  में कई बार पहन लेतीं उलटे कपड़े
लोग कहते -  कमली  है तू
और वो खुद  पर ज़ोर ज़ोर  से हँसतीं
बहाने बनाती
जल्दी में थी
कमरे में अन्धेरा  था
क्या  करती, ठीक से  दिखा  ही नहीं

असफल प्रेमिकाएँ बचाये रखती हैं हर हाल में अपना विश्वास
बचाए  रखती हैं अपने प्रेमी के प्रेमपत्र और उनकी तस्वीरें
गीता और कुरआन की तरह .

असफल प्रेमिकाएँ जब जब रातों को अकेली  घबरा जाती हैं, रोती हैं  तकिये
में मुंह रख  कर
सोचती
नितांत एकांत रात में
सन्नाटे को चीरती हुई
उनकी चीत्कार ज़रूर पंहुचती  होगी उनके प्रेमी के कानों में

वो अच्छा हो,  वो भला हो
सब ठीक हो उनके साथ
कोई आफत न आयी हो उनके पास
जहाँ भी हो सुखी हो
मन ही मन बस यही कामना करती हैं असफल प्रेमिकाएँ

असफल प्रेमिकाएँ लगने लगती हैं असमय बूढ़ी
आ जाती है बालों  में समय से पहले सफ़ेदी
और गालों पर झुर्रियां
वो झेल जाती हैं सब कुछ
नहीं झेल पातीं तो अपने प्रेमी  द्वारा दी गयी पीड़ा, यातना, उपेक्षा और  अपमान
लम्बी फेहरिश्त है असफल प्रेमिकाओं की
जो या  तो  पागल हुईं
या कुछ ने अपना लिया अध्यात्म
आश्रम या मेंटल एसालम बना उनका घर

वो जिसने खा ली नींद की गोलियां
या काट ली  कलाई
किसी  से  न बर्दाश्त हुआ सदमा और  रुक गयी  दिल की धड़़कन
बहुत उदास और अपमानित हो कर गयीं दुनिया से
वो मरी नहीं
उन्होंने आत्महत्या नहीं की
हत्या हुई उनकी
वो लोग जो उनसे  प्यार  का नाता जोड़ कर देने लगे समझदारी भरा बौद्धिक तर्क
कहने  लगे - प्यार का  कतई यह मतलब नहीं कि हमेशा साथ रहें.
हम दूर रह कर भी साथ रह सकते हैं
खुश रह सकते हैं
दूर हैं, दूर नहीं
वो कहती रहीं - एक झलक देखना  चाहती हूँ
छूना  चाहती हूँ तुम्हें
महसूस करना चाहती हूँ तुम्हारी साँसें
तुम्हारी  मजबूत बाहों में  पहली बार जो गरमाहट और सुरक्षा महसूस की थी
फिर से करना चाहती हूँ वैसा ही मह्सूस
और तुम ज़ोर से हँसते हुए कहते  - ‘क्या  बचपना है,  यह सब बकवास है.’

ले ली उनकी जान इस बकवास ने
तुम्हारे आपराधिक प्रवृति ने
तुम्हारी कुटिल हंसी ने
तुम उड़ाने लगे उनका मज़ाक
खेलने लगे मासूम भावनाओं से
खेलने लगे उनके दिल से
कहती रहीं -  खेलो न मेरे दिल से
पूछती रहीं - यह तुम्हीं थे
कौन था वो जो पहरों पहर  मुझसे फोन पर करता था बातें
हरेक छोटी छोटी बातें पूछता
अभी कैसी लग रही हो
क्या पहना है
क्या रंग है
बताओ


बताओ ओ प्रेमी !
क्या तुम्हें  नहीं लगता
वो बनी ही थीं प्यार करने के लिए
और तहस नहस करके रख दी उनकी जिंदगी

तुमने ले ली उनकी जान
अब डर लगता है तुम्हें
वो कहीं से प्रेतात्माएं बन कर आयेंगी  और  तुम्हें डरायेंगी
डरो मत
वो  प्रेमिकाएँ  हैं
प्रेतात्माएं  नहीं
वो किसी का कुछ नहीं बिगाड़ती
वो तो क़ब्र  में भी गाती हैं अपने प्रेमी के लिए शगुनों भरी कविता
देखना वो अगले बसंत फिर  से निकलेंगी अपनी अपनी कब्र से बाहर
और करेंगी प्यार
और यह धरती जब तक अपनी धूरी पर घूमती रहेगी
तब  तक वो  करती रहेंगी प्यार
और पूरी दुनिया को सिखाती रहेंगी प्यार . ..


2.

काली लड़की के नाम कविता


काली लड़की !
ओ काली लड़की !
तुमसे नहीं कहा किसी ने कि
तुम बहुत सुंदर लगती हो
तुम पर किसी शायर ने  शे’र नहीं कहे
तुम्हारी जुल्फ़  हैं या घटायें
आसमान पर ऐसे लहराते हैं जैसे किसी का आंचल
तुम्हारी आँखें हैं या दो टिमटिमाते तारे
जिससे भटके हुए राही पता पूछते हैं
तुम हंसती हो तो फूल झरते हैं.
तुम्हारे हाथ कोमल
जिसे छूने को मचलता है  मन
तुम्हारी अंगुलियों को  थामे थामे चलना चाहता हूँ सुनसान किसी राह पर
या किसी झुरमुटों में
थोड़ी दूर सुस्ताने भर के लिए
तुम्हें नहीं देखा किसी ने प्यार  और हसरत से
तुमसे नहीं की किसी ने तुम्हारी तारीफ़
तुम एक तारीफ़ सुनने के लिए जबकि करती हो कितने बेहतर और बेहतरीन काम
फिर भी सबने  तुम्हें   अजीब निगाहों  से देखा.
जैसे कह रहे हों  कैसी काली लड़की है
तुम अपने  सामने हो रही किसी  सुंदर लड़की की तारीफ पर मुस्कुराती हो
अपनी  वेदना को अंदर ही अंदर छुपाये.
जब तुम्हारी माँ  कहती है कौन ब्याहेगा तुम्हें
तुम फूट फूट  कर  रोना  चाहती हो और कहना चाहती हो
मैं भी सुंदर हूँ !  मैं  भी सुंदर हूँ !
या  नहीं हूँ सुंदर  तो क्या हुआ
इसमें मेरा क्या  कसूर है

देखती हो चुपचाप अकेले में आईना और सोचती हो
काश मैं भी सुंदर होती सुंदर लड़की की तरह
मौन निहारती हो और पूछती हो क्यों नहीं बनाया भगवान  ने मुझे सुंदर

जबकि तुम्हें  भी पता है भीतर से हो तुम कितनी कोमल  और सुंदर.
सपने तुम्हारा मन भी देखता है.
बुनता हैं ख्वाब रंग बिरंगा
तितलियों की तरह
तुम भी  करती हो प्यार
सोहनी और हीर  की  तरह
जिंदगी के कैन्वास पर  तुम उकेरती हो सुंदर से सुन्दरतम चित्र
भरती हो  अपने जीवन के अनगिन अनछुए रंग
होती हो तुम और अधिक भावुक.
समझती हो तुम सबसे ज्यादा दूसरों के मर्म
तुम्हारे काले हाथ सबसे पहले आगे आते हैं
किसी की मदद के लिए.
तुम सबसे पहले  थाम  लेना चाहती हो  किसी  गिरते को अपनी बांहों  में
तुम मुस्कुराते हुए  चाहे जैसी भी लगती हो
चाहे तुम्हारी मुस्कान की किसी ने तारीफ़ नहीं की
लेकिन  तुम फिर भी मुस्कुराती हो सारे दुःखों को भुला कर
कि अपने दर्द को भूल कर कहना जानती हो
कोई बात  नहीं, सब अच्छा होगा.
काली लड़की !
मुझे तुमसे सहानुभूति नहीं

बल्कि प्यार है
हाँ बहुत प्यार है
तुम हर  सुंदर लड़की तरह ही सुंदर हो
मेरे लिए वैसे ही  आम नहीं ख़ास हो अपने  काले रंग के साथ
क्योंकि  तुम्हारे दिल का  आईना  बेहद साफ़ है
जहाँ साफ़ साफ़  मुझे दिखाई देता हैं तुम्हारा सुंदर होना.
तुम्हारा रूमानी होना
तुम जीवन की खोयी हुई उदास शामों की  उम्मीद सी हो...
तुम्हें बार बार  कहना चाहती हूँ
तुम सुंदर हो
तुम सुंदर हो
तुम  बहुत खूबसूरत हो
बस  मेरी बात मानो और
खुद के सुंदर  होने में यकीन करो.
तुम सुंदर  हो सर से पांव तक
तुम्हारा काला रंग सुनहरी  शाम की  याद दिलाता है
काला रंग जैसे भरी दुपहरी में घटाओं  को देखना
तेरी  काली आँखें में देखना जैसे  ऐतिहासिक  हिंदी सिनेमा का
वह चित्र जिसमें  आज भी रंगीन चित्रों  की जगह श्वेत श्याम फिल्म ही
ज़्यादा अच्छे लगते हैं
जिनमें अनगिनत प्रेम कहानियाँ
राज कपूर और नर्गिस के

सबसे महान प्रेम गीत है
प्यार हुआ इक़रार हुआ है प्यार से फिर क्यूँ डरता है दिल...


3 .

दीदारगंज की यक्षिणी


"दीदारगंज की यक्षिणी की तरह तुम्हारा वक्ष
उन्नत और सुन्दर
मेरे लिये वह स्थान जहाँ सर रख कर सुस्ताने भर से
मिलती है जीवन संग्राम के लिए नयी ऊर्जा
हर समस्या का समाधान ....
तुम्हारे वक्ष पर जब जब सर रख कर सोया
ऐसा महसूस हुआ लेटा हो मासूम बच्चा जैसे माँ की गोद में
तुम ऐसे ही तान देती हो अपने श्वेत आंचल सी पतवार
जैसे कि मुझे बचा लोगी जीवन के हर समुद्री तूफान से...
तुम्हारे आंचल की पतवार के सहारे फिर से झेल लूँगा हर ज्वारभाटा
अनगिन रातें जब जब थका हूँ...
हारा हूँ ...
पराजित और असहाय महसूस किया है .....
तुम्हारे ही वक्ष से लगकर
रोना चाहा
जार जार
हालाँकि तुमने रोने नहीं दिया कभी
पता नहीं
हर बार कैसे भांप लेती हो
मेरी चिंता
और सोख लेती हो मेरे आंसू का एक एक बूँद
अपने होठों से
तुम्हारे वक्ष से ऐसे खेलता हूँ, जैसे खेलता है बच्चा
अपने सबसे प्यारे खिलौने से ....
तुम्हारा उन्नत वक्ष
उत्थान और विजय का ऐसा समागम जैसे
फहरा रहा हो विजय ध्वज कोई पर्वतारोही हिमालय की सबसे ऊँची चोटी पर

जब भी लौटा हूँ उदास या फिर कुछ खोकर
तुमने वक्ष से लगाकर कहा
कोई बात नहीं, "आओ मेरे बच्चे! मैं हूँ ना'
एक पल में तुम कैसे बन जाती हो प्रेमिका से माँ
कभी कभी तो बहन सरीखी भी
एक साथ की पली बढ़ी
हमजोली ... सहेली ....
'Ohh My love ! you are the most lovable lady on this earth"
सचमुच तुम्हारा नाम महान प्रेमिकायों की सूचि में
सबसे पहले लिखा जाना चाहिए
खुद को तुम्हारे पास कितना छोटा पाता हूँ, जब जब तुम्हारे पास आता हूँ
कहाँ दे पाता हूँ, बदले में तुम्हे कुछ भी
कितना कितना कुछ पाया है तुमसे
कि अब तो तुमसे जन्म लेना चाहता हूँ
तुममें, तुमसे सृष्टि की समस्त यात्रा करके निकलूं
तभी तुम्हारा कर्ज़ चुका सकता हूँ
मेरी प्रेमिका ...."

२.

आईने में कबसे खुद को निहारती


शून्य में खड़ी हूँ
दीदारगंज की यक्षिणी सी मूर्तिवत
तुम्हारे शब्द गूंज रहे हैं, मेरे कानों में प्रेमसंगीत की तरह
कहाँ गए वो सारे शब्द ?
मेरे एक फोन ने कि -
डॉक्टर कहता है - मुझे वक्ष कैंसर है, हो सकता है, वक्ष काटना पड़े.
तुम्हारी तरफ से कोई आवाज़ न सुनकर लगा जैसे फोन के तार कट गए हों
स्तब्ध खड़ी हूँ
कि आज तुम मुझे अपने वक्ष से लगाकर कहोगे
-"कुछ नहीं होगा तुम्हें! "
चीखती हुई सी पूछती हूँ
तुम सुन रहे हो ना ?
तुम हो ना वहां ?
क्या मेरी आवाज़ पंहुंच रही है तुम तक ....
हाँ, ना कुछ तो बोलो...."

लम्वी चुप्पी के बाद बोले
-"हाँ, ठीक है, ठीक है
तुम इलाज करायो
समय मिला तो, आऊंगा...."

3.

समय मिला तो ? ? ?


समझ गई थी सब कुछ
अब कुछ भी जो नहीं बचा था मेरे पास
तुम अब कैसे कह सकोगे
सौन्दर्य की देवी ....
प्रेम की देवी.....

सबकुछ तभी तक था
जब तक मैं सुन्दर थी
मेरे वक्ष थे
एक पल में लगा जैसे
खुदाई में मेरा विध्वंस हो गया है
खंड खंड होकर बिखर चुकी हूँ, "दीदारगंज की यक्षिणी' की तरह
क्षत-विक्षत खड़ी हूँ,
अंग भंग ...
खंडित प्रतिमा ...
जिसकी पूजा नहीं होती

सौन्दर्य की देवी अब अपना वजूद खो चुकी है....

४.

लेकिन मैं अपना वजूद कभी नहीं खो सकती


मैं सिर्फ प्रेमिका नहीं!

सृष्टि हूँ
आदि शक्ति हूँ

और जब तक शिव भी शक्ति में समाहित नहीं होते
शिव नहीं होते ....
मैं वैसे ही सदा सदा रहूँगी
सौन्दर्य की प्रतिमूर्ति बनकर खड़ी,
शिव, सत्य और सुन्दर की तरह ....

(*दीदारगंज की यक्षिणी को सौन्दर्य की देवी कहा जाता हैं)

"This Poem is dedicated to cancer surviving women!"

 

******

 

 

कुछ और  कवितायेँ


 

1.   


बहुत खाली  खाली  है मन
माथे पर एक बिंदी  सजा लूँ

२  .


सब  अपनी  अपनी  गिरेवान  बचाकर गुज़र रहे  हैं
जितना ऊपर  चढ़  रहे  हैं  उतना नीचे  गिर  रहे  हैं.

3.


अबके  जो  लहरों  के  थपेड़ों  से  उबरेंगे 
देखना  एक  दिन समन्दर को रौंदेंगे

4.


आज मेरे पास  एक मुट्ठी  उम्मीद  है 
चलो  चलकर  दुनिया  खरीद लें

5.


वक़्त की शाखो पर  नजर  रखना
क्या पता कोई पल टपकने वाला हो

6  . 


और  कुछ  कहना बेकार  लगता है
   सिवा इसके कि
मुझे तुमसे प्यार

7  .


मैं सडक पार कर रही हूँ
महसूस करती  हूँ 
   कि
तुमने मेरा हाथ कस कर मज़बूती के साथ पकड़ रखा है

मुझे खोने तो नहीं दोगे न ......

8  .

तुम एक भटके हुए राही हो
और मैं एक नितांत अकेली राह
जिस पर से आज तक कोई गुज़रा ही नहीं...


9  .

मैं आ रहा हूँ...


--------------------

'मैं आ रहा हूँ ...'
कहते हुए जब तुम पूरे आवेग से मेरे भीतर आते हो
ना जाने कितने कितने ब्रम्हांड मेरे अंदर खुलने लगते हैं
बजने लगता है शंख मेरे भीतर
महकने लगती हूँ किसी चंदन वन सी
मैं अपनी ही देह के भीतर से ऊपर
उठने लगती हूँ
जैसे मुक्त हर बंधन से
हल्की होती प्रवेश करने लगती हूँ अनंत में ....

 

 

 


10.  

कौन कहता है वक्त बुरा है...


----------------------------------------

दुर्दिन में भी मासूम बच्चे खिलखिला कर हंस रहे हैं
क्यारियों में अब भी खिल रहे हैं फूल
तितलियाँ अब भी नृत्य कर रही हैं
बुलबुल अब भी गा रही है तराने
प्यार में धोखा खायी प्रेमिकाएं
अब भी कर रही हैं प्यार
चूम रही हैं अपने प्रेमी का माथा ..

कौन कहता है वक़्त बुरा है.

11.   .

मेरा मन शून्य है


निराकार
जहाँ बजती है
तुम्हारे याद  की घंटियाँ बार बार
रह रह कर
किसी प्राचीन, सुंदर मंदिर की घंटियों की तरह
ब्राम्हाण्ड रचने लगता है
एक नवीन संसार
एक नवजात शिशु किलकारियां भरता हुआ आ रहा है बाहर
माँ के गर्भ से

12  . 

आवारा शाखों पर
कल  रात  भर
चांदनी से ओस
कुछ यूं गिरी
कि

भोर गीली  थी ..


13 .

साथ साथ


-----------------
शाम  के धुंधलके में
हम तुम  जो साथ साथ चल रहे हैं
एक दूसरे का हाथ हाथ में लिए हुए
सुनसान राहों पर
मैं देखती हूँ
सूरज को तुम्हारी आँखों में ढलते हुए

मैं इसे अपनी आँखों में
समां कर रखूंगी रात भर
सुंदर सपनो की तरह
सुबह  फिर से निकलेगा यह सूरज
हम फिर निकल पड़ेंगे
एक कभी न ख़त्म होने
वाली लम्बी और नयी राहों

साथ साथ चलने के लिए .....

14.  

अन्तराल


------------------
मिलने और बिछड़ने के अन्तराल को
ऐसे रखना कि
कभी बाद
बहुत बाद भी
कहीं, राह चलते मिल जाऊं तो
मुझसे मेरा हाथ पकड़ कर पूछ सको
मेरा हाल
मुस्कुरा सको मुझे देख कर
जैसे पहचाने हुए राही से
फिर मुलाक़ात हो जाती है
किसी दूसरे राह पर

मैं मिलूंगी ज़रूर

वैसे ही, जैसे पहले कभी मिली थी .....

--

 

असीमा भट्ट
अँधेरी वेस्ट. मुम्बई
asimabhatt@gmail.com

COMMENTS

BLOGGER: 2
  1. अति सुंदर रचनाएं। संवेदनाओं से परिपूर्ण। दर्द और व्यस्था से भरपूर। साथ ही हिम्मत देती। नारी को स्वतंत्रता देती। हिम्मत बंधाती। बहुत खूब। अति सुंदर। नमन।

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  2. बहुत खूब! असीमा जी इन रचनाओं से न जाने कितने दिलों के दर्द को आवाज मिली

    जवाब देंहटाएं
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पाटील,1,शगुन अग्रवाल,1,शबनम शर्मा,7,शब्द संधान,17,शम्भूनाथ,1,शरद कोकास,2,शशांक मिश्र भारती,8,शशिकांत सिंह,12,शहीद भगतसिंह,1,शामिख़ फ़राज़,1,शारदा नरेन्द्र मेहता,1,शालिनी तिवारी,8,शालिनी मुखरैया,6,शिक्षक दिवस,6,शिवकुमार कश्यप,1,शिवप्रसाद कमल,1,शिवरात्रि,1,शिवेन्‍द्र प्रताप त्रिपाठी,1,शीला नरेन्द्र त्रिवेदी,1,शुभम श्री,1,शुभ्रता मिश्रा,1,शेखर मलिक,1,शेषनाथ प्रसाद,1,शैलेन्द्र सरस्वती,3,शैलेश त्रिपाठी,2,शौचालय,1,श्याम गुप्त,3,श्याम सखा श्याम,1,श्याम सुशील,2,श्रीनाथ सिंह,6,श्रीमती तारा सिंह,2,श्रीमद्भगवद्गीता,1,श्रृंगी,1,श्वेता अरोड़ा,1,संजय दुबे,4,संजय सक्सेना,1,संजीव,1,संजीव ठाकुर,2,संद मदर टेरेसा,1,संदीप तोमर,1,संपादकीय,3,संस्मरण,730,संस्मरण लेखन पुरस्कार 2018,128,सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन,1,सतीश कुमार त्रिपाठी,2,सपना महेश,1,सपना मांगलिक,1,समीक्षा,847,सरिता पन्थी,1,सविता मिश्रा,1,साइबर अपराध,1,साइबर क्राइम,1,साक्षात्कार,21,सागर यादव जख्मी,1,सार्थक देवांगन,2,सालिम मियाँ,1,साहित्य समाचार,98,साहित्यम्,6,साहित्यिक गतिविधियाँ,216,साहित्यिक बगिया,1,सिंहासन बत्तीसी,1,सिद्धार्थ जगन्नाथ जोशी,1,सी.बी.श्रीवास्तव विदग्ध,1,सीताराम गुप्ता,1,सीताराम साहू,1,सीमा असीम सक्सेना,1,सीमा शाहजी,1,सुगन आहूजा,1,सुचिंता कुमारी,1,सुधा गुप्ता अमृता,1,सुधा गोयल नवीन,1,सुधेंदु पटेल,1,सुनीता काम्बोज,1,सुनील जाधव,1,सुभाष चंदर,1,सुभाष चन्द्र कुशवाहा,1,सुभाष नीरव,1,सुभाष लखोटिया,1,सुमन,1,सुमन गौड़,1,सुरभि बेहेरा,1,सुरेन्द्र चौधरी,1,सुरेन्द्र वर्मा,62,सुरेश चन्द्र,1,सुरेश चन्द्र दास,1,सुविचार,1,सुशांत सुप्रिय,4,सुशील कुमार शर्मा,24,सुशील यादव,6,सुशील शर्मा,16,सुषमा गुप्ता,20,सुषमा श्रीवास्तव,2,सूरज प्रकाश,1,सूर्य बाला,1,सूर्यकांत मिश्रा,14,सूर्यकुमार पांडेय,2,सेल्फी,1,सौमित्र,1,सौरभ मालवीय,4,स्नेहमयी चौधरी,1,स्वच्छ भारत,1,स्वतंत्रता दिवस,3,स्वराज सेनानी,1,हबीब तनवीर,1,हरि भटनागर,6,हरि हिमथाणी,1,हरिकांत जेठवाणी,1,हरिवंश राय बच्चन,1,हरिशंकर गजानंद प्रसाद देवांगन,4,हरिशंकर परसाई,23,हरीश कुमार,1,हरीश गोयल,1,हरीश नवल,1,हरीश भादानी,1,हरीश सम्यक,2,हरे प्रकाश उपाध्याय,1,हाइकु,5,हाइगा,1,हास-परिहास,38,हास्य,59,हास्य-व्यंग्य,78,हिंदी दिवस विशेष,9,हुस्न तबस्सुम 'निहाँ',1,biography,1,dohe,3,hindi 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रचनाकार: असीमा भट्ट की कविताएँ - असफल प्रेमिकाएँ
असीमा भट्ट की कविताएँ - असफल प्रेमिकाएँ
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