प्राची - जनवरी 2016 - बलगेरियाई कहानी / अदालत का अहलकार / डिमित्र इवानोव

SHARE:

  बलगेरियन कहानी अदालत का अहलकार डिमित्र इवानोव ‘‘बा बू जी, अभी बहुत समय है. आप विश्वास रखिए, हम वहां दिन रहते पहुंच जाएंगे. देखिए, वह...

image_thumb[1]_thumb_thumb_thumb_thumb

 

बलगेरियन कहानी

अदालत का अहलकार

डिमित्र इवानोव

‘‘बाबू जी, अभी बहुत समय है. आप विश्वास रखिए, हम वहां दिन रहते पहुंच जाएंगे. देखिए, वह सामने पहाड़ी के नीचे गावं दिखाई पड़ता है. आपको दिखाई पड़ता है न? जैसे ही हमने उस टीले को पार किया तो बस समझिए कि गांव में पहुंच गए.’’ और छोकड़ा गाड़ीवान अपनी दुबली-पतली घोड़ी की पीठ पर चाबुक सटकारता हुआ चिल्लाया-‘‘हे, हे! चलो, महारानी, चलो!’’

गांव की कच्ची, कीचड़ से भरी सड़क पर चार पहियों की गाड़ी पहले से भी अधिक हिलती-डुलती हुई आगे बढ़ी. जाड़े की वर्षा से भीगे खिन्न मैदान में गाड़ी की खड़खड़ाहट अति कर्ण-कटु मालूम पड़ रही थी.

छोकड़ा एक बार फिर घोड़ी पर झल्लाया, इसके बाद अपनी जगह पर आराम से बैठ गया. उसने अपनी भीगी टोपी को कोट के कॉलर से पोंछा और निश्चिंत होकर एक राग अलापने लगा.

‘‘छोकड़े, तेरा नाम क्या है?’’ गाड़ी के भीतर बैठे भेड़िए की खाल के कोट में लिपटे हुए मोटे-ताजे मनुष्य ने पूछा.

छोकड़ा गाने में मस्त रहा.

‘‘अरे, छोकडे!’’ गाड़ी में बैठा मनुष्य अपनी भारी आवाज में चिल्लाया.

‘‘क्या है, बाबू जी?’’ छोकड़ा घूम पड़ा.

‘‘नाम! तेरा नाम क्या है?’’

‘‘ओंदरा.’’

‘‘हूं, ओंदरा. बड़ा चलता पुरजा है तू! गांव के सभी लोग बड़े चलते पुरजे होते हैं. मैं तुम गांव वालों को अच्छी तरह जानता हूं. तुम सब लोग झूठ बोलने और

धोखा देने में उस्ताद होते हो और देखने में कैसे भोले-भाले मालूम पड़ते हो. मैं तुम लोगों को रोज कचहरी में देखा करता हूं. देखने में भेड़ मालूम पड़ते हैं भेड़, पर वास्तव में खूंखार भेड़िये! जज तक को चकमा देने में बाज नहीं आते.’’

‘‘बाबू जी, हम लोग तो सीधे-सादे आदमी होते हैं, शहर के लोग हमें व्यर्थ बदनाम करते हैं. आप खुद देख लीजिए, हम वास्तव में उतने बुरे नहीं हैं, जितने कहे जाते हैं. हम किसान लोग इसलिए धोखाधड़ी करते हैं कि अपढ़ हैं. अपढ़ और गरीब.’’

‘‘हूं, तो यह बात है. गरीबी के कारण तुम लोग एक नंबर के मक्कार हो. बाहर से गरीब और अपढ़ की दुहाई देते हो और भीतर ही भीतर जमीन में गाड़-गाड़कर धन इकट्ठा करते हो.’’

‘‘तो बाबू जी, आप समझते हैं कि किसानों के यहां रुपयों की खान है और इसलिए वे धोखाधड़ी करते हैं? नहीं बाबूजी, यह बात नहीं है. बात बिलकुल इसकी उलटी है. हां, हम लोग शराब पीते हैं, सभी किसान पीते हैं. दो घड़ी की मौज के लिए, इसलिए नहीं कि उनके पास धन है. बाबू जी, आप इसे अपनी कॉपी में लिख सकते हैं.’’

‘‘हा-हा! मालूम पड़ता है तू भी पिए है. अभी तेरी उम्र क्या है, होंठों पर रेख भी तो नहीं आई. तू मेरी ओर से लिख ले कि तेरे इन पाजी किसानों का भविष्य उज्जवल नहीं है. मेरी यह बात पत्थर की लकीर मान.’’

‘‘बाबू जी, आप ही लिख लीजिए. हम लोगों को तो लिखना आता नहीं.’’ छोकड़े ने कहा. इसके बाद वह अपनी दुबली-पतली घोड़ी की ओर घूमकर चिल्लाया, ‘‘हे, हे! चलो, महारानी, चलो!’’ और फिर किसी गहरे विचार में डूब गया.

घोड़ी पल-भर के लिए ठिठकी, जैसे वह भी किसी विचार में डूबी हो.

गाड़ी के भीतर बैठे मनुष्य ने कोट का कॉलर खोलकर अपने को अच्छी तरह ढक लिया और वह भी किसी गहरे विचार में डूब गया.

एक कौवा पंख समेटकर सड़क के किनारे एक सूने वृक्ष पर बैठा विषादयुक्त स्वर में चिल्लाने लगा. जाड़े का गीला दिन भी किसी गहन विचार में डूबा मालूम पड़ता था, जैसे इस बात की सूचना दे रहा हो कि कल जो बड़ा दिन आने वाला है वह भी इस प्रकार विषादपूर्ण होगा. आसमान में काले-काले बादल मंडरा रहे थे. नीचे चारों ओर फैले हुए गांवों, जंगलों और पहाड़ों पर अंधकार छाया था, जैसे सभी निर्जीव हों. मैदान में जहां-तहां बड़े-बड़े तालाब चमक रहे थे. वे ऐेसे दिखाई पड़ते थे जैसे मुरदे के पथराए नेत्र.

गाड़ी कीचड़ में भरी सड़क पर हिलती-डुलती धीरे-धीरे जा रही थी. बगल में खिड़की का एक तख्ता ढीला था. वह दिमाग की नसों को ढीला कर देने वाले कर्कश स्वर में अविराम गति से खट-खट कर रहा था. अंत में भेड़िए की खाल के कोट में लिपटा हुआ भद्र व्यक्ति सहन न कर सका. कॉलर में से अपना मुंह निकालकर वह चिल्लाया, ‘‘यह किस चीज की कान फाड़ने वाली आवाज है? यह गाड़ी है कि चरखा?’’

‘‘बाबू जी, खिड़की का एक तख्ता ढीला है. वही पंडितों की तरह शोरगुल मचा रहा है, उसके इस शोरगुल में कोई तत्व नहीं है.’’

‘‘तू बड़ा चलता पुरजा है, ओंदरा, तू बड़ा चलता पुरजा है. मैं शर्त बदकर कह सकता हूं कि तू लड़कियों को बहुत सताता होगा. तुम लोग कच्ची उम्र में ही शादी कर लेते हो और खूबसूरत बीवियां पाते हो.’’

‘‘बाबू जी, आप चाहे जो कुछ कहिए, विवाहित जीवन सबसे अच्छा है; बाबू जी, मैं समझता हूं कि आपको गांव में कुछ काम है.’’

‘‘मैं अदालत का अहलकार हूं.’’

ओंदरा घूमकर अपनी पैनी दृष्टि से उसके चेहरे का निरीक्षण करने लगा.

‘‘मैं समझता हूं कि आप सरकारी काम से आए हैं.’’

‘‘हां, और क्या! तुम्हारे ही गांव के एक किसान ने मुझे चकमा दिया है. पर इस बार मैं बच्चू की अच्छी तरह सबक सिखा दूंगा. मेरे पास अदालत का हुक्म है जो उसे ठिकाने ले जाएगा. मुझे अंत में पता लग ही गया कि बच्चू हम लोगों को धोखा दे रहे थे. आज में उनकी खाना-तलाशी लूंगा. तू भी देख लेना कि मैं आज उसे छठी का दूध याद दिला दूंगा. मैं उसका सारा अनाज कुर्क करा लूंगा, एक दाना भी न छोडूंगा. मैं उसे तो सबक सिखा ही लूंगा, तुम सब लोगों के सामने भी एक उदाहरण उपस्थित कर दूंगा कि अधिकारियों को चकमा देते हो. तुम लोग सड़े अंडे और सड़ा मक्खन बेचते हो. लेकिन आज सब मजा मिल जाएगा, तुम लोग अदालत को चकमा नहीं दे सकते. हम जानते हैं कि तुम लोगों को क्या दंड देना चाहिए. तुम लोगों को तो कोड़े लगाए जाने चाहिए, कोड़े. तुम लोगों से बात करने का यही ढंग है. तुम सब लोग एक नंबर के शराबी हो. तुम लोग सरकारी लगान देने में भी ढील-ढाल करते हो. तुम लोग राज्य की नींव को खोद डालना चाहते हो. यदि मैं दो दिन के लिए बादशाह बन जाऊं तो तुम सब लोगों को रास्ते पर ले आऊं. तुम लोगों को कोड़े से पिटवाकर तुम्हें फरिश्ता बना दूं. फरिश्ता. वह तो कहो, ईश्वर ने मुझे बादशाह नहीं बनाया.’’

अदालत के अहलकार ने अपने भेड़िये की खाल के कोट के बदन खोल दिए और गर्व से छाती फुलाकर छोकड़े पर एक दृष्टि डाली.

ओंदरा ने सरलता का नाट्य करते हुए कहा, ‘‘हुजूर, आप ठीक कहते हैं. ईश्वर की माया है. उसने सारे संसार की रचना की और सोचा कि स्त्रियों को दाढ़ी की आवश्यकता नहीं है, इसलिए उसने स्त्रियों को दाढ़ी नहीं दी. उसने सोचा कि

गधे के लंबे कान होने चाहिए, सो उसने हरेक गधे को दो लंबे कान दे दिए.’’

‘‘अपनी बकवास बंद कर. अंधेरा होने लगा है और मुझे अभी लौटना है. कल बड़ा दिन है, मेरा घर पर रहना जरूरी है. तूने मुझसे बहुत किराया लिया है. मैं तुझसे समझूंगा, शैतान का बच्चा. तुम लोग हम लोगों से पैसा दुहने में बड़े उस्ताद हो. अच्छा, अब जल्दी चल, नहीं तो तुझे एक पैसा न दूंगा.’’

ओंदरा हवा में चाबुक घुमाता हुआ चिल्लाया, ‘‘हे, हे! चलो, महारानी, चलो!’’

‘‘तू इसे महारानी कहता है? इसे भैया कहो, भैया.’’ अहलकार ने क्रुद्ध होकर कहा.

‘‘हुजूर, ये घोड़े भी बुरा मानते हैं. अगर मैं इन्हें चुमकारूं नहीं तो बिगड़ जाएं. और इनका जीवन भी बाबू लोगों जैसा है. बाबू लोगों की तरह नित्य का कार्यक्रम बंधा हुआ है. सुबह उठते हैं. निश्चित समय पर हम इन्हें पानी देते हैं, फिर दाना देते हैं. इसके बाद इन्हें जोतते हैं. दफ्तर के बाबुओं की तरह इन्हें भी शाम तक जुते रहना पड़ता है. रात को फिर इन्हें दाना देते हैं, पानी देते हैं और फिर ये दिन-भर के परिश्रम के बाद गहरी नींद सोते हैं. बिलकुल दफ्तर के बाबुओं की तरह इनका जीवन है.’’

‘‘तूने कितनी देर कर दी है रे! बकवास बंद कर और जल्दी चल, नहीं तो मुझे देर हो जाएगी. छोकड़े, तेरे चेहरे से मालूम पड़ता है कि तू बहुत चलता पुरजा है.’’

‘‘हुजूर, इधर भेड़िये नहीं हैं, इसलिए डर की कोई बात नहीं है.’’ छोकड़े ने इस ढंग से कहा कि अदालत का अहलकार सशंक नेत्रों से अपने चारों ओर देखने लगा.

‘‘छोकड़े, मुझे भेड़िऐ का डर नहीं है, मैं सरदी से डरता हूं. मैं सरदी नहीं बर्दाश्त कर पाता.’’

दोनों कुछ देर चुप रहे. गाड़ी हिलती-डुलती आगे बढ़ी.

ओंदरा ने गंभीर मुद्रा से अदालत के अहलकार के चेहरे की ओर निहारते हुए कहा, ‘‘तो हुजूर, आप सरकारी काम से जा रहे हैं. किसकी शामत आई है?’’

अदालत के अहलकार ने जरा रुककर उत्तर दिया-‘‘तुझे यह जानकर क्या करना है? उसका नाम स्टोनोयको है. ठिगना आदमी है, मोटी गर्दन है.’’

‘‘मैं उसे जानता हूं. तो आप उसका अनाज कुर्क कर लेंगे? हुजूर, वह बड़ा गरीब आदमी है. इस बार आप उस पर दया करिए. आप तो जानते हैं कि कल बड़ा दिन है और वह बड़ी मुसीबत में है.’’

‘‘गरीब है, हा-हा! शैतान का बच्चा है, शैतान का बच्चा!’’ अदालत का अहलकार फिर किसी विचार में डूब गया. अंधेरा गहरा होता जा रहा था. गांव पहाड़ी से उतरकर था. घोड़ी पहाड़ी चढ़ने में हांफ रही थी. ओंदरा अब घोड़ी को आगे बढ़न के लिए ललकार नहीं रहा था और न उसके ऊपर चाबुक घुमा रहा था. उसने बातचीत बंद कर दी थी. वह अब गाना भी नहीं गा रहा था. वह गहरे विचार में डूबा था.

जब गाड़ी पहाड़ी की चोटी पर पहुंचकर नीचे उतरने लगी तो रात हो गई. पर गांव अब भी नहीं दिखाई पड़ रहा था. वर्षा से भीगी जमीन पर हड्डियों को कंपा देने वाली ठंडी हवा बहने लगी थी. पहाड़ पर बादलों के दो टुकड़े मंडरा रहे थे. उन बादलों के भीतर से नीला आसमान झांक रहा था. थोड़ी देर बाद आसमान में तारे चमकने लगे. हवा पहले से भी अधिक ठंडी हो गई. घोड़ी अत्यंत धीमी चाल से चल रही थी.

अदालत का अहलकार क्रोध से पागल हो उठा. वह चिल्लाया-‘‘अरे, छोकड़े, तू सो रहा है क्या? घोड़ी को चाबुक जमा. जल्दी चला. तू तो मुझे ठंड में मार डालेगा.’’

ओंदरा ने बिना किसी उत्साह के घोड़ी को ललकार लगाई और उसकी पीठ पर चाबुक छुला दी, पर घोड़ी उसी प्रकार

धीमी गति से गाड़ी घसीटती रही, जैसे उसकी ललकार सुनी ही नहीं.

ओंदरा का ध्यान गरीब स्टोनोयको पर था, जिसका अनाज कल सुबह अदालत का अहलकार उठा ले जाएगा.

‘‘ओंदरा, तुम्हारे ही कारण मुझ पर यह विपत्ति पड़ी.’’ स्टोनोयको उससे कहेगा. इसके बाद जब वह उससे खूब बक-झक लेगा, तो उससे खाना खाने के लिए कहेगा और सिर पर हाथ रखकर रोएगा. हां, वह सिर पर हाथ रखकर रोएगा. स्टोनोयको बड़े कोमल हृदय का है. ओंदरा अच्छी तरह

जानता है.

उसे उस गरीब की सहायता अवश्य करनी चाहिए. उसे चाहिए कि वह उसे किसी प्रकार पहले से सूचना दे दे, जिससे वह रात-भर में अनाज छिपाकर कहीं रख दे और बखार में सुबह एक दाना भी न रहे. यदि उसने ऐसा न किया तो स्टोनोयको अगले साल भूखों मरेगा. उसे अवश्य ही कोई उपाय करना चाहिए.

चारों तरफ कीचड़ ही कीचड़ दिखाई पड़ रहा था. सड़क का कहीं पता न लगता था. गाड़ी जितना आगे बढ़ती थी, उतना ही कीचड़ में धंसती जाती थी.

ओंदरा ने लगाम कसकर घोड़ी को रोक लिया. ‘‘हुजूर, मालूम पड़ता है कि हम रास्ता भटक गए?’’ और छोकड़ा

अंधेरे में आंखें गड़ाकर चारों ओर नजर दौड़ाने लगा.

‘‘छोकड़े, अंधा है क्या, आंखें खोलकर चल, नहीं तो बेंत से तेरी खाल उधेड़ दूंगा.’’

ओंदरा ने लगाम को झटका दिया, घोड़ी पर चाबुक जमाई और चिल्लाया, ‘‘हुजूर, जरा ठीक से बैठिएगा!’’ दूर गांव की रोशनी दिखाई पड़ रही थी. कुत्तों के भूंकने की आवाज भी दूर से आ रही थी. बगल में एक तलैया का शांत मटमैला पानी चमक रहा था. गाड़ी उधर ही घूम पड़ी.

‘‘इधर कहां चल रहा है?’’ अहलकार ने पूछा.

‘‘हुजूर, दलदल है, सड़क इधर से ही गई है. पानी गहरा नहीं है. इसलिए डर की कोई बात नहीं है. जरा हचका लगेगा. हुजूर, कसकर पकड़े रहिएगा.’’

घोड़ी बर्फ के समान ठंडे पानी में घुस पड़ी, जिसमें तारे प्रतिबिंबित हो रहे थे. घोड़ी ज्यों-ज्यों अधिक गहरे पानी में घुसने लगी त्यों-त्यों अधिक सतर्कता से चलने लगी. तलैया का स्थिर हरा पानी आंदोलित हो उठा.

‘‘सूअर के बच्चे, गाड़ी रोक!’’ भय से पीला पड़कर, भेड़िए के कोट में अपने को लपेटता हुआ अहलकार चिल्लाया, ‘‘तू तो मुझे डुबा देगा. मूर्ख कहीं का. क्या देखता नहीं है कि गाड़ी में पानी भर रहा है. रोक गाड़ी, रोक.’’

ओंदरा ने गाड़ी रोक दी. गाड़ी दलदल में धंसी थी.

अंधेरे में तलैया के पानी का किनारा तक नहीं दिखाई पड़ता था.

‘‘हे, हे! आगे बढ़ो!’’ ओंदरा घोड़ी पर चिल्लाया. युवक-कंठ से निकली उसकी तेज आवाज रात के सन्नाटे में सारे मैदान में गूंज उठी. कुछ जंगली बत्तखें डर से पर फड़फड़ाती हुई उड़ चलीं और अंधकार में विलीन हो गईं.

‘‘ठहर तो पाजी. मुझे गाड़ी से उतरने दे. तेरी एक-एक हड्डी न चूर की दी तो मेरा नाम नहीं. क्या मुझे इस दलदल में डुबोएगा. गधा, सूअर!’’

‘‘हुजूर, हम डूबेंगे नहीं. आप डरिए नहीं, हम डूबेंगें नहीं. ऐेसे अंधेरे में, जब हाथ को हाथ नहीं सुझाई पड़ता, रास्ता भटक जाना कौन आश्चर्य की बात है. आप जरा शांत रहिए.’’ ओंदरा ने कहा और वह घोड़ी के साज का निरीक्षण करने लगा. इसके बाद वह गालियां देता हुआ चमड़े के पट्टों को खोलने लगा. अंत में वह फिर अपनी जगह पर आ बैठा, और हवा में चाबुक फटकारता हुआ चिल्लाया, ‘‘हे, हे! चलो, आगे बढ़ो.’’

घोड़ी ने जोर लगाकर गाड़ी आगे घसीटी. सहसा घोड़ी का पट्टा टूट गया और वह गाड़ी छोड़कर किनारे की ओर आगे भागी.

‘‘हां, रे! अब क्या हुआ?’’ अहलकार चिल्लाया.

‘‘रुक जा, रुक जा! आओ, आओ!’’ ओंदरा ने घोड़ी को आवाज लगाई और उसे पुचकार कर बुलाने लगा.

लेकिन घोड़ी बर्फ के समान ठंडे पानी से डर गई थी. वह अपने मालिक की पुचकार पर जरा भी ध्यान न देकर अंधेरे में खो गई.

अहलकार तेजी से गाड़ी के भीतर खड़ा हो गया. उसके रोएं-रोएं में भय समाया था.

इसी समय ओंदरा जल्दी से गाड़ी से कूद पड़ा और घोड़ी जिधर भागी थी, उधर ही ‘‘आओ, आओ! रुक जा, रुक जा!’’ चिल्लाता हुआ भागा.

‘‘छोकड़े, तू कहां भागा जा रहा है? ठहर तो! तेरे मन में क्या समाया है? सूअर, पाजी, गधा, किसान का बच्चा! मैं तुम्हें गोली मार दूंगा.’’

इन गालियों की बौछार के उत्तर में अंधेरे में खिलखिलाने की आवाज गूंज उठी.

‘‘सूअर, तू मुझे अकेला छोड़कर भागा जा रहा है. इसलिए कि मैं यहीं मर जाऊं. जंगली जानवर मुझे खा जाएं. छोकड़े, तू बड़ा राजा बेटा है, मुझे अकेला मत छोड़कर जा. मैं विनती करता हूं.’’ अहलकार ने कांपती हुई आवाज में कहा.

‘‘हुजूर, आप डरिए मत, डर की कोई बात नहीं है.’’

अंधेरे में ओंदरा की आवाज आई. ‘‘इधर भेड़िए नहीं आते. आप अपने को अच्छी तरह ढक लीजिए, जिससे आपको सर्दी न लग जाए. कल सुबह पौ फटते, मैं आऊंगा. गाड़ी में घास है. उसी को बिछाकर बिस्तर बना लीजिए. मैं रात-भर गाड़ी में रहने के लिए आपसे किराया नहीं लूंगा.’’

‘‘छोकड़े, मजाक मत कर,’’ अहलकार ने प्रार्थना के स्वर में कहा, ‘‘मुझे अकेला छोड़कर मत जा! मुझे इस दलदल से बाहर कर.’’

‘‘हुजूर, बड़ा अंधेरा है, मुझे कुछ दिखाई नहीं पड़ता. मेरी घोड़ी भाग गई है. मैं कैसे आपकी सहायता करूं? मेरे हाथ से बाहर की बात है.’’

अहलकार ने अंधेरे से आता हुआ ओंदरा का व्यंग्यपूर्ण स्वर सुना. दलदल में अकेले रात-भर पड़े रहने की संभावना से भयभीत हो वह विनती करने लगा.

‘‘ओंदरा, यहां आओ! तुम बड़े नेक हो, मैं तुम्हें पैसे दूंगा, जितने पैसे मांगोगे, उतने दूंगा. मुझे इस दलदल से बाहर करो. मैं यहां मर जाऊंगा. मेरे बाल-बच्चे हैं. मेरी प्रतीक्षा कर रहे होंगे. कल बड़ा दिन है. क्या तुम्हारे हृदय नहीं है!’’ उसकी आवाज कांप रही थी. उसने कान लगाकर सुना, पर कोई उत्तर नहीं मिला. तब वह जैसे पागल होकर उस अंधेरे में चीखने लगा-‘‘ऐ, बदमाश! सूअर, गधा, वापस लौट! मुझे इस दलदल से बाहर कर. कुत्ते का पिल्ला.’’

और अंत में निराश होकर वह गाड़ी में धम से गिर पड़ा. उसने भेड़िए की खाल के कोट में अपने को अच्छी तरह लपेट लिया और बच्चों की तरह फूट-फूटकर रोने लगा.

पर काली रात से कोई उत्तर नहीं मिला.

COMMENTS

BLOGGER
नाम

 आलेख ,1, कविता ,1, कहानी ,1, व्यंग्य ,1,14 सितम्बर,7,14 september,6,15 अगस्त,4,2 अक्टूबर अक्तूबर,1,अंजनी श्रीवास्तव,1,अंजली काजल,1,अंजली देशपांडे,1,अंबिकादत्त व्यास,1,अखिलेश कुमार भारती,1,अखिलेश सोनी,1,अग्रसेन,1,अजय अरूण,1,अजय वर्मा,1,अजित वडनेरकर,1,अजीत प्रियदर्शी,1,अजीत भारती,1,अनंत वडघणे,1,अनन्त आलोक,1,अनमोल विचार,1,अनामिका,3,अनामी शरण बबल,1,अनिमेष कुमार गुप्ता,1,अनिल कुमार पारा,1,अनिल जनविजय,1,अनुज कुमार आचार्य,5,अनुज कुमार आचार्य बैजनाथ,1,अनुज खरे,1,अनुपम मिश्र,1,अनूप शुक्ल,14,अपर्णा शर्मा,6,अभिमन्यु,1,अभिषेक ओझा,1,अभिषेक कुमार अम्बर,1,अभिषेक मिश्र,1,अमरपाल सिंह आयुष्कर,2,अमरलाल हिंगोराणी,1,अमित शर्मा,3,अमित शुक्ल,1,अमिय बिन्दु,1,अमृता प्रीतम,1,अरविन्द कुमार खेड़े,5,अरूण देव,1,अरूण माहेश्वरी,1,अर्चना चतुर्वेदी,1,अर्चना वर्मा,2,अर्जुन सिंह नेगी,1,अविनाश त्रिपाठी,1,अशोक गौतम,3,अशोक जैन पोरवाल,14,अशोक शुक्ल,1,अश्विनी कुमार आलोक,1,आई बी अरोड़ा,1,आकांक्षा यादव,1,आचार्य बलवन्त,1,आचार्य शिवपूजन सहाय,1,आजादी,3,आत्मकथा,1,आदित्य प्रचंडिया,1,आनंद टहलरामाणी,1,आनन्द किरण,3,आर. के. नारायण,1,आरकॉम,1,आरती,1,आरिफा एविस,5,आलेख,4288,आलोक कुमार,3,आलोक कुमार सातपुते,1,आवश्यक सूचना!,1,आशीष कुमार त्रिवेदी,5,आशीष श्रीवास्तव,1,आशुतोष,1,आशुतोष शुक्ल,1,इंदु संचेतना,1,इन्दिरा वासवाणी,1,इन्द्रमणि उपाध्याय,1,इन्द्रेश कुमार,1,इलाहाबाद,2,ई-बुक,374,ईबुक,231,ईश्वरचन्द्र,1,उपन्यास,269,उपासना,1,उपासना बेहार,5,उमाशंकर सिंह परमार,1,उमेश चन्द्र सिरसवारी,2,उमेशचन्द्र सिरसवारी,1,उषा छाबड़ा,1,उषा रानी,1,ऋतुराज सिंह कौल,1,ऋषभचरण जैन,1,एम. एम. चन्द्रा,17,एस. एम. चन्द्रा,2,कथासरित्सागर,1,कर्ण,1,कला जगत,113,कलावंती सिंह,1,कल्पना कुलश्रेष्ठ,11,कवि,2,कविता,3239,कहानी,2360,कहानी संग्रह,247,काजल कुमार,7,कान्हा,1,कामिनी कामायनी,5,कार्टून,7,काशीनाथ सिंह,2,किताबी कोना,7,किरन सिंह,1,किशोरी लाल गोस्वामी,1,कुंवर प्रेमिल,1,कुबेर,7,कुमार करन मस्ताना,1,कुसुमलता सिंह,1,कृश्न चन्दर,6,कृष्ण,3,कृष्ण कुमार यादव,1,कृष्ण खटवाणी,1,कृष्ण जन्माष्टमी,5,के. पी. सक्सेना,1,केदारनाथ सिंह,1,कैलाश मंडलोई,3,कैलाश वानखेड़े,1,कैशलेस,1,कैस जौनपुरी,3,क़ैस जौनपुरी,1,कौशल किशोर श्रीवास्तव,1,खिमन मूलाणी,1,गंगा प्रसाद श्रीवास्तव,1,गंगाप्रसाद शर्मा गुणशेखर,1,ग़ज़लें,550,गजानंद प्रसाद देवांगन,2,गजेन्द्र नामदेव,1,गणि राजेन्द्र विजय,1,गणेश चतुर्थी,1,गणेश सिंह,4,गांधी जयंती,1,गिरधारी राम,4,गीत,3,गीता दुबे,1,गीता सिंह,1,गुंजन शर्मा,1,गुडविन मसीह,2,गुनो सामताणी,1,गुरदयाल सिंह,1,गोरख प्रभाकर काकडे,1,गोवर्धन यादव,1,गोविन्द वल्लभ पंत,1,गोविन्द सेन,5,चंद्रकला त्रिपाठी,1,चंद्रलेखा,1,चतुष्पदी,1,चन्द्रकिशोर जायसवाल,1,चन्द्रकुमार जैन,6,चाँद पत्रिका,1,चिकित्सा शिविर,1,चुटकुला,71,ज़कीया ज़ुबैरी,1,जगदीप सिंह दाँगी,1,जयचन्द प्रजापति कक्कूजी,2,जयश्री जाजू,4,जयश्री राय,1,जया जादवानी,1,जवाहरलाल कौल,1,जसबीर चावला,1,जावेद अनीस,8,जीवंत प्रसारण,141,जीवनी,1,जीशान हैदर जैदी,1,जुगलबंदी,5,जुनैद अंसारी,1,जैक लंडन,1,ज्ञान चतुर्वेदी,2,ज्योति अग्रवाल,1,टेकचंद,1,ठाकुर प्रसाद सिंह,1,तकनीक,32,तक्षक,1,तनूजा चौधरी,1,तरुण भटनागर,1,तरूण कु सोनी तन्वीर,1,ताराशंकर बंद्योपाध्याय,1,तीर्थ चांदवाणी,1,तुलसीराम,1,तेजेन्द्र शर्मा,2,तेवर,1,तेवरी,8,त्रिलोचन,8,दामोदर दत्त दीक्षित,1,दिनेश बैस,6,दिलबाग सिंह विर्क,1,दिलीप भाटिया,1,दिविक रमेश,1,दीपक आचार्य,48,दुर्गाष्टमी,1,देवी नागरानी,20,देवेन्द्र कुमार मिश्रा,2,देवेन्द्र पाठक महरूम,1,दोहे,1,धर्मेन्द्र निर्मल,2,धर्मेन्द्र राजमंगल,1,नइमत गुलची,1,नजीर नज़ीर अकबराबादी,1,नन्दलाल भारती,2,नरेंद्र शुक्ल,2,नरेन्द्र कुमार आर्य,1,नरेन्द्र कोहली,2,नरेन्‍द्रकुमार मेहता,9,नलिनी मिश्र,1,नवदुर्गा,1,नवरात्रि,1,नागार्जुन,1,नाटक,152,नामवर सिंह,1,निबंध,3,नियम,1,निर्मल गुप्ता,2,नीतू सुदीप्ति ‘नित्या’,1,नीरज खरे,1,नीलम महेंद्र,1,नीला प्रसाद,1,पंकज प्रखर,4,पंकज मित्र,2,पंकज शुक्ला,1,पंकज सुबीर,3,परसाई,1,परसाईं,1,परिहास,4,पल्लव,1,पल्लवी त्रिवेदी,2,पवन तिवारी,2,पाक कला,23,पाठकीय,62,पालगुम्मि पद्मराजू,1,पुनर्वसु जोशी,9,पूजा उपाध्याय,2,पोपटी हीरानंदाणी,1,पौराणिक,1,प्रज्ञा,1,प्रताप सहगल,1,प्रतिभा,1,प्रतिभा सक्सेना,1,प्रदीप कुमार,1,प्रदीप कुमार दाश दीपक,1,प्रदीप कुमार साह,11,प्रदोष मिश्र,1,प्रभात दुबे,1,प्रभु चौधरी,2,प्रमिला भारती,1,प्रमोद कुमार तिवारी,1,प्रमोद भार्गव,2,प्रमोद यादव,14,प्रवीण कुमार झा,1,प्रांजल धर,1,प्राची,367,प्रियंवद,2,प्रियदर्शन,1,प्रेम कहानी,1,प्रेम दिवस,2,प्रेम मंगल,1,फिक्र तौंसवी,1,फ्लेनरी ऑक्नर,1,बंग महिला,1,बंसी खूबचंदाणी,1,बकर पुराण,1,बजरंग बिहारी तिवारी,1,बरसाने लाल चतुर्वेदी,1,बलबीर दत्त,1,बलराज सिंह सिद्धू,1,बलूची,1,बसंत त्रिपाठी,2,बातचीत,2,बाल उपन्यास,6,बाल कथा,356,बाल कलम,26,बाल दिवस,4,बालकथा,80,बालकृष्ण भट्ट,1,बालगीत,20,बृज मोहन,2,बृजेन्द्र श्रीवास्तव उत्कर्ष,1,बेढब बनारसी,1,बैचलर्स किचन,1,बॉब डिलेन,1,भरत त्रिवेदी,1,भागवत रावत,1,भारत कालरा,1,भारत भूषण अग्रवाल,1,भारत यायावर,2,भावना राय,1,भावना शुक्ल,5,भीष्म साहनी,1,भूतनाथ,1,भूपेन्द्र कुमार दवे,1,मंजरी शुक्ला,2,मंजीत ठाकुर,1,मंजूर एहतेशाम,1,मंतव्य,1,मथुरा प्रसाद नवीन,1,मदन सोनी,1,मधु त्रिवेदी,2,मधु संधु,1,मधुर नज्मी,1,मधुरा प्रसाद नवीन,1,मधुरिमा प्रसाद,1,मधुरेश,1,मनीष कुमार सिंह,4,मनोज कुमार,6,मनोज कुमार झा,5,मनोज कुमार पांडेय,1,मनोज कुमार श्रीवास्तव,2,मनोज दास,1,ममता सिंह,2,मयंक चतुर्वेदी,1,महापर्व छठ,1,महाभारत,2,महावीर प्रसाद द्विवेदी,1,महाशिवरात्रि,1,महेंद्र भटनागर,3,महेन्द्र देवांगन माटी,1,महेश कटारे,1,महेश कुमार गोंड हीवेट,2,महेश सिंह,2,महेश हीवेट,1,मानसून,1,मार्कण्डेय,1,मिलन चौरसिया मिलन,1,मिलान कुन्देरा,1,मिशेल फूको,8,मिश्रीमल जैन तरंगित,1,मीनू पामर,2,मुकेश वर्मा,1,मुक्तिबोध,1,मुर्दहिया,1,मृदुला गर्ग,1,मेराज फैज़ाबादी,1,मैक्सिम गोर्की,1,मैथिली शरण गुप्त,1,मोतीलाल जोतवाणी,1,मोहन कल्पना,1,मोहन वर्मा,1,यशवंत कोठारी,8,यशोधरा विरोदय,2,यात्रा संस्मरण,31,योग,3,योग दिवस,3,योगासन,2,योगेन्द्र प्रताप मौर्य,1,योगेश अग्रवाल,2,रक्षा बंधन,1,रच,1,रचना समय,72,रजनीश कांत,2,रत्ना राय,1,रमेश उपाध्याय,1,रमेश राज,26,रमेशराज,8,रवि रतलामी,2,रवींद्र नाथ ठाकुर,1,रवीन्द्र अग्निहोत्री,4,रवीन्द्र नाथ त्यागी,1,रवीन्द्र संगीत,1,रवीन्द्र सहाय वर्मा,1,रसोई,1,रांगेय राघव,1,राकेश अचल,3,राकेश दुबे,1,राकेश बिहारी,1,राकेश भ्रमर,5,राकेश मिश्र,2,राजकुमार कुम्भज,1,राजन कुमार,2,राजशेखर चौबे,6,राजीव रंजन उपाध्याय,11,राजेन्द्र कुमार,1,राजेन्द्र विजय,1,राजेश कुमार,1,राजेश गोसाईं,2,राजेश जोशी,1,राधा कृष्ण,1,राधाकृष्ण,1,राधेश्याम द्विवेदी,5,राम कृष्ण खुराना,6,राम शिव मूर्ति यादव,1,रामचंद्र शुक्ल,1,रामचन्द्र शुक्ल,1,रामचरन गुप्त,5,रामवृक्ष सिंह,10,रावण,1,राहुल कुमार,1,राहुल सिंह,1,रिंकी मिश्रा,1,रिचर्ड फाइनमेन,1,रिलायंस इन्फोकाम,1,रीटा शहाणी,1,रेंसमवेयर,1,रेणु कुमारी,1,रेवती रमण शर्मा,1,रोहित रुसिया,1,लक्ष्मी यादव,6,लक्ष्मीकांत मुकुल,2,लक्ष्मीकांत वैष्णव,1,लखमी खिलाणी,1,लघु कथा,288,लघुकथा,1340,लघुकथा लेखन पुरस्कार आयोजन,241,लतीफ घोंघी,1,ललित ग,1,ललित गर्ग,13,ललित निबंध,20,ललित साहू जख्मी,1,ललिता भाटिया,2,लाल पुष्प,1,लावण्या दीपक शाह,1,लीलाधर मंडलोई,1,लू सुन,1,लूट,1,लोक,1,लोककथा,378,लोकतंत्र का दर्द,1,लोकमित्र,1,लोकेन्द्र सिंह,3,विकास कुमार,1,विजय केसरी,1,विजय शिंदे,1,विज्ञान कथा,79,विद्यानंद कुमार,1,विनय भारत,1,विनीत कुमार,2,विनीता शुक्ला,3,विनोद कुमार दवे,4,विनोद तिवारी,1,विनोद मल्ल,1,विभा खरे,1,विमल चन्द्राकर,1,विमल सिंह,1,विरल पटेल,1,विविध,1,विविधा,1,विवेक प्रियदर्शी,1,विवेक रंजन श्रीवास्तव,5,विवेक सक्सेना,1,विवेकानंद,1,विवेकानन्द,1,विश्वंभर नाथ शर्मा कौशिक,2,विश्वनाथ प्रसाद तिवारी,1,विष्णु नागर,1,विष्णु प्रभाकर,1,वीणा भाटिया,15,वीरेन्द्र सरल,10,वेणीशंकर पटेल ब्रज,1,वेलेंटाइन,3,वेलेंटाइन डे,2,वैभव सिंह,1,व्यंग्य,2075,व्यंग्य के बहाने,2,व्यंग्य जुगलबंदी,17,व्यथित हृदय,2,शंकर पाटील,1,शगुन अग्रवाल,1,शबनम शर्मा,7,शब्द संधान,17,शम्भूनाथ,1,शरद कोकास,2,शशांक मिश्र भारती,8,शशिकांत सिंह,12,शहीद भगतसिंह,1,शामिख़ फ़राज़,1,शारदा नरेन्द्र मेहता,1,शालिनी तिवारी,8,शालिनी मुखरैया,6,शिक्षक दिवस,6,शिवकुमार कश्यप,1,शिवप्रसाद कमल,1,शिवरात्रि,1,शिवेन्‍द्र प्रताप त्रिपाठी,1,शीला नरेन्द्र त्रिवेदी,1,शुभम श्री,1,शुभ्रता मिश्रा,1,शेखर मलिक,1,शेषनाथ प्रसाद,1,शैलेन्द्र सरस्वती,3,शैलेश त्रिपाठी,2,शौचालय,1,श्याम गुप्त,3,श्याम सखा श्याम,1,श्याम सुशील,2,श्रीनाथ सिंह,6,श्रीमती तारा सिंह,2,श्रीमद्भगवद्गीता,1,श्रृंगी,1,श्वेता अरोड़ा,1,संजय दुबे,4,संजय सक्सेना,1,संजीव,1,संजीव ठाकुर,2,संद मदर टेरेसा,1,संदीप तोमर,1,संपादकीय,3,संस्मरण,730,संस्मरण लेखन पुरस्कार 2018,128,सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन,1,सतीश कुमार त्रिपाठी,2,सपना महेश,1,सपना मांगलिक,1,समीक्षा,847,सरिता पन्थी,1,सविता मिश्रा,1,साइबर अपराध,1,साइबर क्राइम,1,साक्षात्कार,21,सागर यादव जख्मी,1,सार्थक देवांगन,2,सालिम मियाँ,1,साहित्य समाचार,98,साहित्यम्,6,साहित्यिक गतिविधियाँ,216,साहित्यिक बगिया,1,सिंहासन बत्तीसी,1,सिद्धार्थ जगन्नाथ जोशी,1,सी.बी.श्रीवास्तव विदग्ध,1,सीताराम गुप्ता,1,सीताराम साहू,1,सीमा असीम सक्सेना,1,सीमा शाहजी,1,सुगन आहूजा,1,सुचिंता कुमारी,1,सुधा गुप्ता अमृता,1,सुधा गोयल नवीन,1,सुधेंदु पटेल,1,सुनीता काम्बोज,1,सुनील जाधव,1,सुभाष चंदर,1,सुभाष चन्द्र कुशवाहा,1,सुभाष नीरव,1,सुभाष लखोटिया,1,सुमन,1,सुमन गौड़,1,सुरभि बेहेरा,1,सुरेन्द्र चौधरी,1,सुरेन्द्र वर्मा,62,सुरेश चन्द्र,1,सुरेश चन्द्र दास,1,सुविचार,1,सुशांत सुप्रिय,4,सुशील कुमार शर्मा,24,सुशील यादव,6,सुशील शर्मा,16,सुषमा गुप्ता,20,सुषमा श्रीवास्तव,2,सूरज प्रकाश,1,सूर्य बाला,1,सूर्यकांत मिश्रा,14,सूर्यकुमार पांडेय,2,सेल्फी,1,सौमित्र,1,सौरभ मालवीय,4,स्नेहमयी चौधरी,1,स्वच्छ भारत,1,स्वतंत्रता दिवस,3,स्वराज सेनानी,1,हबीब तनवीर,1,हरि भटनागर,6,हरि हिमथाणी,1,हरिकांत जेठवाणी,1,हरिवंश राय बच्चन,1,हरिशंकर गजानंद प्रसाद देवांगन,4,हरिशंकर परसाई,23,हरीश कुमार,1,हरीश गोयल,1,हरीश नवल,1,हरीश भादानी,1,हरीश सम्यक,2,हरे प्रकाश उपाध्याय,1,हाइकु,5,हाइगा,1,हास-परिहास,38,हास्य,59,हास्य-व्यंग्य,78,हिंदी दिवस विशेष,9,हुस्न तबस्सुम 'निहाँ',1,biography,1,dohe,3,hindi divas,6,hindi sahitya,1,indian art,1,kavita,3,review,1,satire,1,shatak,3,tevari,3,undefined,1,
ltr
item
रचनाकार: प्राची - जनवरी 2016 - बलगेरियाई कहानी / अदालत का अहलकार / डिमित्र इवानोव
प्राची - जनवरी 2016 - बलगेरियाई कहानी / अदालत का अहलकार / डिमित्र इवानोव
https://lh3.googleusercontent.com/-saCYuUVCi_M/VtqIe7SREPI/AAAAAAAAsBA/Uuk-boSVqGM/image_thumb%25255B1%25255D_thumb_thumb_thumb_thumb_thumb.png?imgmax=800
https://lh3.googleusercontent.com/-saCYuUVCi_M/VtqIe7SREPI/AAAAAAAAsBA/Uuk-boSVqGM/s72-c/image_thumb%25255B1%25255D_thumb_thumb_thumb_thumb_thumb.png?imgmax=800
रचनाकार
https://www.rachanakar.org/2016/03/2016_35.html
https://www.rachanakar.org/
https://www.rachanakar.org/
https://www.rachanakar.org/2016/03/2016_35.html
true
15182217
UTF-8
Loaded All Posts Not found any posts VIEW ALL Readmore Reply Cancel reply Delete By Home PAGES POSTS View All RECOMMENDED FOR YOU LABEL ARCHIVE SEARCH ALL POSTS Not found any post match with your request Back Home Sunday Monday Tuesday Wednesday Thursday Friday Saturday Sun Mon Tue Wed Thu Fri Sat January February March April May June July August September October November December Jan Feb Mar Apr May Jun Jul Aug Sep Oct Nov Dec just now 1 minute ago $$1$$ minutes ago 1 hour ago $$1$$ hours ago Yesterday $$1$$ days ago $$1$$ weeks ago more than 5 weeks ago Followers Follow THIS PREMIUM CONTENT IS LOCKED STEP 1: Share to a social network STEP 2: Click the link on your social network Copy All Code Select All Code All codes were copied to your clipboard Can not copy the codes / texts, please press [CTRL]+[C] (or CMD+C with Mac) to copy Table of Content