प्राची - फरवरी 2016 - चेक कहानी / कमीजें / कारेल चापेक

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  चेक कहानी कमीजें कारेल चापेक व ह अपना ध्यान अन्य महत्वपूर्ण बातों में लगाना चाहता था, पर वह अप्रिय बात चित्त से हटती नहीं थी. उसके घ...

 

चेक कहानी

कमीजें

कारेल चापेक

ह अपना ध्यान अन्य महत्वपूर्ण बातों में लगाना चाहता था, पर वह अप्रिय बात चित्त से हटती नहीं थी. उसके घर की नौकरानी उसे लूट रही थी. वह उसके यहां इतने बरसों से थी और उसकी आदत छूट गई थी कि घर की चीजों की देखभाल किया करे. सामने कपड़ों की अलमारी खुली पड़ी थी, उसमें कमीजों की ढेरी लगी थी. वह नित्यप्रति उस ढेरी से एक कमीज उठा लिया करता था. जब कुछ समय के बाद, नौकरानी एक फटी हुई कमीज उसे दिखाकर कहती थी, ‘बाबूजी, सब कमीजों की यही हालत है, बाजार जाकर नई कमीजें खरीद लाइए’, बाबूजी ‘बहुत अच्छा’ कहकर बाजार चले जाते थे. बाजार में कपड़ों की जो भी दुकानें पहले दिखाई पड़ती थी, उसी में जाकर वह आधी दर्जन कमींजें खरीद लेते थे. उनके मन में अस्पष्ट याद रहती थी कि कुछ ही महीने पहले हम इसी प्रकार का काम कर चुके हैं. कमीजों का ही नहीं, जूता, मोजा, साबुन-घर की सभी छोटी-बड़ी चीजों का, जिनकी आवश्यकता पड़ती थी. शायद बुड्ढे आदमी के संसर्ग से चीजें भी जल्दी घिस जाती थीं, अथवा राम जाने उन्हें क्या हो जाता था. वह हमेशा बाजार से नई चीजें खरीदकर ला रखता था, परंतु जब वह कपड़ों की अलमारी खोलकर देखता था तो उसमें फटे चिथड़े ही दिखाई पड़ते थे. वह इन बातों पर अधिक ध्यान नहीं देता था, क्योंकि वह घर से निश्ंिचत था. घर का सारा प्रबंध जोनका के हाथ में था.

आज इतने बरसों के बाद, उसके ध्यान में पहली बार यह बात आई कि मैं नियमित रूप से लूटा जा रहा हूं. बात यह हुई, सुबह उसे एक दावत में शामिल होने का निमंत्रण मिला. बरसों से वह कहीं गया नहीं था. उसके मित्रों की संख्या बहुत ही थोड़ी थी. इसलिए जब उसे दावत में शरीक होने का अप्रत्याशित निमंत्रण मिला तो उसे बड़ा आश्चर्य हुआ. वह खुशी से फूला नहीं समाया. उसने अपने कपड़ों की अलमारी यह देखने के लिए खोली कि उसमें कोई बढ़िया रेशमी कमीज है. पर उसे अलमारी में एक भी साबुत कमीज नहीं दिखाई पड़ी. तब उसने अपनी नौकरानी को बुलाकर पूछा, ‘‘मेरे पास कोई अच्छी कमीज है या नहीं?’’

जोनका क्षण-भर तक चुप खड़ी रही, इसके बाद उसने तेज आवाज में कहा, ‘‘बाबूजी, बाजार से नई कमीजें खरीद लाइए. पुरानी में पैवंद लगाना व्यर्थ है, उनमें खिड़कियां बन गई हैं.’’ उसके मन में एक अस्पष्ट स्मृति थी कि मुझे नई कमीजें खरीदे हुए अभी बहुत दिन नहीं हुए हैं. फिर भी वह निश्चयपूर्वक कुछ नहीं कह सकता था, इसलिए वह कोट पहनकर बाजार जाने के लिए तैयार हो गया. कोट पहनने पर उसका हाथ अनायास जेबों में पहुंच गया. उनमें बहुत-से कागज भरे थे. वह उन कागजों को देखने लगा कि जो व्यर्थ हों, उन्हें फेंक दूं. सहसा उन कागजों में से एक रसीद निकल पड़ी. वह कमीजों के बिल की रसीद थी, अमुक-अमुक तारीख को उसने रुपया चुकाया. केवल सात हफ्ते की बात थी. सिर्फ सात हफ्ते पहले उसने आधा दर्जन नई कमीजें खरीदी थीं. यह उसके लिए एक नवीन आविष्कार था.

वह कमीजें खरीदने के लिए बाजार नहीं गया. बल्कि अपने कमरे में टहलता रहा. वह अपने लंबे विधुर जीवन पर, एकाकी जीवन के दीर्घ समय पर, दृष्टि दौड़ाने लगा. पत्नी की मृत्यु के बाद से जोनका पर ही घर का सारा भार था. उसके मन में कभी संदेह अथवा अविश्वास की भावना भी उत्पन्न नहीं हुई थी. आज उसके चित्त में एक अशांति उत्पन्न करने वाली बात उठ खड़ी हुई थी-‘मैं नियमित रूप से लूटा जा रहा हूं.’ उसने अपने चारों ओर दृष्टि दौड़ाई. वह निश्चयपूर्वक नहीं कह सकता था कि घर से कौन-कौन सी चीजें गायब हैं, परंतु उसे कुछ रिक्तता का आभास हो रहा था. वह अपने मस्तिष्क पर जोर देकर सोचने लगा कि अमूक स्थान पर कौन-सी चीज रखी रहा करती थी. एक तीव्र अवसाद में उसने अपनी पत्नी की अलमारी खोली. उसमें उसकी याद दिलाने वाले उसके बहुत से वस्त्र रखे थे. वे सब क्या हो गईं?

उसने अलमारी बंद कर दी और अपना मन बरबस अन्य बातों की ओर ले जाना चाहा. वह शाम की दावत के बारे में सोचने का प्रयत्न करने लगा. परंतु पिछले अनेक बरसों की स्मृति बार-बार दौड़ आती थी. उसे अपना जीवन पहले की अपेक्षा कहीं अधिक एकाकी, नीरस और कटु प्रतीत होने लगा. उसे सहसा मालूम पड़ा, मेरे जीवन पर जैसे दुर्भाग्य की छाया मंडराती रही हो. सच तो यह था कि इन अनेक बरसों में वह कितनी ही बार संतोष और सुख की नींद सोया था, पर इस समय उसे मालूम पड़ने लगा कि मैं अपने एकाकी जीवन में बेखबर था और लुटेरे मेरे सिर के नीचे का तकिया तक लूट ले गये. उसे मालूम पड़ा कि मैं निपट अकेला हूं. उसका हृदय पीड़ा से कराह उठा. जिस समय वह अपनी पत्ीन का दफनाकर लौटा, उस समय भी जीवन इतना एकाकी और दुखी नही ंप्रतीत हुआ थाा. उसे मालूम पड़ा कि मैं बहुत ही बुड्ढ़ा हो गया हूं, मेरे शरीर का अंग-अंग जर्जर हो गया है, और जीवन ने मुझ पर बड़ा अत्याचार किया है.

उसकी समझ में एक बात नहीं आ रही थी-‘जोनका को मेरी चीजें चुराने की आवश्यकता क्यों पड़ी? वह उन चीजों का क्या करती है?’ सहसा उसे एक बात याद आई, जिससे उसे द्वेषयुक्त संतोष हुआ. जोनका का एक भतीजा था, जिसे वह अत्यधिक प्यार करती थी. उसे याद आया, जोनका मुझसे कितनी ही बार उसकी तारीफ कर चुकी है. उसे याद आया, अभी बहुत दिन नहीं हुआ जब जोनका ने उसका फोटो भी मुझे दिखाया था. उसके काले घुंघराले बाल हैं, चपटी नाक है और मूंछों से अभिमान टपकता है. तो मेरी चीजें उसके पास जाती हैं, इस ख्याल से उसका खून खौल उठा. वह अत्यधिक क्रोध में रसोईघर की ओर गया, जोनका को ‘डाइन’ या ऐसा ही कुछ कहा और इसके बाद अपने कमरे में आकर भीतर से दरवाजा बंद कर लिया. जोनका रसोईघर की दीवार से टिककर फफक-फफककर रोने लगी.

वह दिन भर जोनका से नहीं बोला. जोनका इसलिए लंबी-लंबी सांसें ले रही थी कि मालिक ने मुझे बुरा-भला कहा. वह बर्तनों पर अपना क्रोध उतारने लगी. जो चीज भी सामने आती थी, उसे पटक देती थी. उसे पता नहीं था कि मालिक क्यों नाराज है. दोपहर में वह अलमारी खोलकर अपनी सब चीजें संभालने लगा. उसके क्रोध की सीमा न थी. उसे कभी इस और कभी उस चीज की याद आती थी. उसे अव वे सब चीजें बहुत बहुमूल्य प्रतीत हो रही थीं. जब उन चीजों में एक भी नहीं बची थी, सब गायब हो गई थीं. अत्यधिक क्रोध की अवस्था में उसकी आंखों में आंसू छलछला आने को हुए. उसने बरबस अपने को रोका.

वह खुली अलमारी के सामने गर्द से नहाया हुआ बैठा था. उसके हाथ में पिता का एक मनीबैग था. घर की तमाम चीजों में केवल यही मनीबैग बचा था. मनीबैग में दो बड़े-बड़े छेद थे. वह उसे कितने बरसों से लूट रही है, घर की सारी चीजों का सफाया हो गया. उसका चेहरा क्रोध से तमतमा रहा था. अगर इस समय जोनका उसके सामने आ जाती तो वह अवश्य उसे पीटता. ‘अब मैं उसका क्या करूं?’ वह आवेश में बुदबुदाया, ‘उसे आज ही निकाल दूं, या उसे पुलिस में दे दूं? लेकिन तब कल से खाना कौन बनाएगा? होटल में जाकर खा लिया करूंगा’, उसने निश्चय किया. ‘परंतु नहाने के लिए पानी कौन गरम करेगा?’ उसने अपने मन को बरबस इन चिंताओं से हटाया. इस बारे में मैं कल निश्चय करूंगा, उसने अपने मन को आश्वासन दिया. कल तक कुछ न कुछ अवश्य होगा. यह सोचकर कि जोनका के बिना मेरा काम नहीं चल सकता, उसका दिल बैठ जाता था. पर यह सोचकर कि वह मुझे लूटती रही है और उसे दंड देना आवश्यक है, फिर जोश चढ़ आता था.

कमरे में जब अंधेरा छा गया तब उसने बहुत तर्क-वितर्क के बाद रसोईघर तक जाकर जोनका से कहा, ‘‘तुम अमुक-अमुक जगह चली जाओ.’’ उसने जोनका को बहुत से अनावश्यक काम बताए और कहा, ‘‘सब काम फौरन हो जाना चाहिए.’’ उसने बड़े सोच-विचार के बाद इन कामों की सूची बनाई थी. जोनका ने कुछ कहा नहीं, वह इस तरह सिर झुकाकर चल पड़ी, जैसे जीवन में वह चिरकाल से सताई गई है.

जोनका के बाहर का दरवाजा बंद करने की आवाज उसने सुनी. अब वह घर में अकेला था. धड़कते हुए हृदय से वह दबे पांव रसोईघर की ओर चला. वह कुछ देर तक रसोईघर के दरवाजे पर हाथ धरे खड़ा रहा. एक भय ने उसे आ घेरा था. उसका हृदय कह रहा था कि चोरों की भांति जोनका का संदूक खोलकर तलाशी लेने का काम मुझमें नहीं हो सकता. लेकिन वह जब लौट जाने का निश्चय कर रहा था, तभी उसके हाथ घूम गए, रसोईघर का दरवाजा खुल गया और वह भीतर चला गया.

रसोईघर अपनी स्वच्छता से चमक रहा था. एक किनारे जोनका का बक्स रखा हुआ था, उसमें ताला लगा था, पर ताली का कहीं पता न था. ताला लगा देखकर उसके संदेह की पुष्टि हुई, उसने चाकू से ताला खोलना चाहा, पर वह खुला नहीं. उसने चारों आरे ताली ढूंढ़ी पर वह कहीं मिली नहीं. आध घंटे तक ताले से परेशान होने के बाद उसे मालूम हुआ कि संदूक में ताला नहीं लगा है, केवल खटका दबा देने से वह खुल जाता है.

उसकी आधा दर्जन नई कमीजें फीते में ज्यों की त्यों बंधी हुई ऊपर ही रखी थीं. एक कागज के डिब्बे में उसकी पत्नी के सोने के कड़े, पिता के सोने के बटन और मां का चांदी के फ्रेम में जड़ा हुआ फोटो रखा था. उसने बक्स की सारी चीजें जमीन पर बिखेर दीं. उसमें उसे अपना साबुन का बक्स, दांत मलने का नया ब्रुश, तकिए का गिलाफ, जंग खाया हुआ पिस्तौल और धुएं से काला सिगार मिला. अवश्य ही ये सब चीजें उसकी अलमारी से निकाली गई थीं. उसकी अधिकांश चीजें अब उस घुंघराले बाल वाले भतीजे के व्यवहार में आती होंगी. उसका क्रोध शांत हो गया, उसकी जगह हृदय में अब दुःख उमड़ने लगा. जोनका, तो तुमने मुझे यह बदला चुकाया...मैंने तुम्हारे साथ कौन-सी बुराई की, जो तुमने मेरे साथ ऐसा सलूक किया?

एक-एक करके वह सब चीजें अपने कमरे में ले गया और वहां मेज पर फैलाकर रख दीं. जोनका की चीजें उसने उसके संदूक में भर दीं. एक बार उसके मन में आया कि वह जोनका की सब चीजें पहले की भांति सजाकर रख दे, परंतु यह काम उससे हो नहीं सका. वह अपने कमरे में वापस चला आया. संदूक के दोनों पल्ले खुले पड़े रहे, जैसे वे चोरी की कथा कह रहे हों? उसे यह सोचकर बड़ा भय लगा कि जोनका थोड़ी देर में लौटकर आती होगी और मुझे उससे चिल्ला-चिल्लाकर बातें करनी होंगी. वह इस दृश्य की जितनी ही अधिक कल्पना करता था, वह उतना ही अधिक उसे अरुचिकर प्रतीत होता था. वह जल्दी-जल्दी कपड़े पहनने लगा. कल मैं जोनका से सब बदला लूंगा, उसने मन में सोचा. आज इतना ही काफी है कि उसे पता लग जाए कि उसकी चोरी खुल गई है. उसने एक नई कमीज उठा ली, परंतु उसके काज इतने सख्त थे कि उससे उसका बटन नहीं खुला, और जोनका किसी भी क्षण लौट सकती थी.

उसने अपनी पुरानी कमीज शीघ्रता से पहन ली, इस बात पर ध्यान भी नहीं दिया कि वह फटी है. कपड़े पहनने के बाद वह चोर की भांति घर से निकल पड़ा. बाहर जोर की बारिश हो रही थी. घंटे भर तक वह सड़कों पर घूमता रहा. अंत में दावत में जाने का समय आ पहुंचा. दावत में वह अपने को अत्यंत एकाकी अनुभव करता रहा. उसने अपने पुराने परिचित मित्रों से गपशप लड़ाने का बहुत प्रयत्न किया, पर उसकी समझ में नहीं आ रहा था कि उनसे क्या बात करूं. उनसे मिले हुए उसे बहुत बरस बीत गए थे और इतने बरसों में दुनिया कितनी बदल चुकी थी. उसे किसी से शिकायत नहीं थी. वह अलग मुस्कुराता हुआ चुपचाप खड़ा रहा था, सामने बिजली की तेज रोशनी चमक रही थी, आगंतुक नर-नारी एक-दूसरे से हंस बोल रहे थे, कोलाहल मच रहा था. सहसा एक नवीन भय ने उसे आ घेरा. ओह, मैं कैसा लगता होऊंगा. उसकी कमीज तार-तार हो रही थी. कोट पर एक बड़ा सा धब्बा था, जूते में पैबंद लगे थे. उसने चाहा कि

धरती फट जाए और मैं उसमें समा जाऊं. उसने चारों ओर छिपने की जगह ढूंढ़ने के लिए नजर दौड़ाई, पर सब तरफ प्रकाश ही प्रकाश था. वह कहां चला जाए कि किसी की दृष्टि उसी पर न केन्द्रित हो जाए. वह घबराहट में पसीने से तर हो गया. वह ऐसा भाव बनाए था, जैसे वह किसी को देख नहीं रहा है, पर उसकी दृष्टि छिपे-छिपे चारों ओर दौड़ रही थी कि कहीं किसी की दृष्टि मुझ पर तो नहीं पड़ रही है. दुर्भाग्य से एक पुराने परिचित मित्र ने उसे देख लिया. दोनों स्कूल में साथ-साथ पढ़ते थे. मित्र ने उससे बातें आरंभ कर दीं, जिससे उसकी घबराहट और बढ़ गई. उसने कुछ इस तरह के उत्तर दिए कि मित्र को बुरा लगा, वे दूसरी ओर चले गए. अकेले होने पर उसने संतोष की एक सांस ली. अंत में दावत समाप्त होने पर वह सबसे पहले घर भाग आया, उस समय बारह भी नहीं बजे थे.

रास्ते में उसे फिर जोनका का ध्यान आया. तेज कदम बढाने के साथ उसके मस्तिष्क में नाना प्रकार के विचार आने-जाने लगे. उसने मन ही मन सोचा कि वह जोनका से क्या-क्या कहेगा. वह सहज गंभीर मुद्रा से लंबे-लंबे वाक्यों में अपना क्रोध प्रकट करेगा, जोनका रोएगी, गिड़गिड़ाएगी, कहेगी-अब ऐसा नहीं करूंगी. वह चुपचाप अचल भाव से उसकी प्रार्थना सुनता रहेगा, और अंत में गंभीर मुद्रा में उससे कहेगा, ‘जोनका, मैं तुम्हें अपना चरित्र

सुधारने का एक अवसर और दूंगा. सचाई और ईमानदारी से रहो, बस, यही मैं तुमसे चाहता हूं. मैं बुड्ढ़ा आदमी हूं, तुम्हारे साथ क्रूर नहीं होना चाहता.’

वह इन विचारों में इतना मग्न था कि कब उसने अपने घर में पैर रखा, यह उसे मालूम ही नहीं हुआ. जोनका के कमरे में प्रकाश हो रहा था. उसने दराज में आंखें लगाकर भीतर रसोईघर में झांका. हे ईश्वर, यह कैसा दृश्य है. जोनका का झुर्रियों वाला चेहरा रोने से फूल आया था. वह अपना सारा सामान इकट्ठा करके बांध रही थी. यह दृश्य देखकर वह स्तब्ध रह गया. उसकी समझ में नहीं आया कि मैं क्या करूं. वह अपने कमरे में अंगूठे के बल गया, जिससे जोनका को उसकी आवाज न मिले. क्या जोनका ने नौकरी छोड़ने का निश्चय कर लिया है?

सामने मेज पर उसकी वे सब चीजें पड़ी थीं, जिन्हें वह जोनका के संदूक से चुरा लाया था. वह उन चीजों को उठा-उठाकर देखने लगा. उस समय उसे उन चीजों के वापस मिल जाने की जरा भी प्रसन्नता नहीं थी. उसने मन ही मन सोचा, संभवतः जोनका को पता लग गया है कि मुझे उसकी चोरी की सूचना मिल गई है. वह समझती है कि अब मैं उसे निकाल दूंगा, इसलिए वह अपना सामान बांधकर जाने की तैयारी कर रही है. खैर, मैं कल तक उसे इसी भ्रम में रहने दूंगा, इतना दंड उसके लिए यथेष्ट होगा; हां, कल सुबह मैं उससे बातें करूंगा. लेकिन संभव है कि वह इसी समय आकर मुझसे क्षमा प्रार्थना करे. वह फूट-फूटकर रोएगी. मेरे पैरों पर गिरेगी, गिड़गिड़ाएगी. वह कहेगा-‘जोनका, इतना ही काफी है, मैं तुम्हारे साथ कठोरता से पेश नहीं आना चाहता, तुम घर में रह सकती हो.’

वह शाम से ही कपड़े पहने कुर्सी पर बैठा हुआ किसी नवीन घटना की प्रतीक्षा कर रहा था. घर में निःस्तब्धता छाई हुई थी. उसे जोनका की प्रत्येक पग-ध्वनि साफ सुनाई पड़ रही थी. उसने जोनका के क्रोध में तेजी से बक्स बंद करने की आवाज साफ सुनी, इसके बाद सारे घर में निःस्तब्धता छा गई. यह क्या हो रहा है? वह सहसा उछल पड़ा और कान खड़े करके सुनने लगा. किसी व्यक्ति के जमीन पर पैर पटक-पटककर मर्मांतक स्वर में रोने की आवाज थी. थोड़ी देर बाद रोने की आवाज क्रमशः क्षीण हो गई. सिसकियां भरने की आवाज आती रही. जोनका रो रही थी. यह सत्य था कि वह किसी नवीन घटना की प्रतीक्षा में बैठा था, लेकिन यह घटना अप्रत्याशित थी. वह अपने धड़कते हुए हृदय पर हाथ रखे खड़ा रहा और रसोईघर से आने वाली प्रत्येक आवाज कान लगाए सुनता रहा. जोनका रो रही थी. शायद पल-भर बाद वह उसके कमरे में आएगी और उससे क्षमा-याचना करेगी.

वह अपने हृदय की धड़कन कम करने के लिए कमरे में टहलने लगा, लेकिन जोनका आई नहीं. टहलते-टहलते वह रुक जाता था और फिर कान लगाकर सुनने लगता था. जोनका का सिसकियां भरना अभी समाप्त नहीं हुआ था. यह सारा कांड उसे बड़ा दुःखदायी प्रतीत हो रहा था. अंत में उसने निश्चय किया कि मैं स्वयं जोनका के पास जाऊंगा और उससे कहूंगा-‘जोनका, अब भविष्य में ऐसा काम मत करना. चुप हो रहो. मैं सब बातें भूल जाऊंगा. भविष्य में ईमानदारी से रहना.’

सहसा उसके कमरे का दरवाजा बड़ी तेजी से खुल गया. जोनका दरवाजे पर खड़ी थी. आंखों से आंसू अब भी बह रहे थे, रोने के कारण चेहरा सूज आया था और देखने में बड़ा भयावना लगता था.

‘‘जोनका!’’ उसने कठिनता से सांस लेते हुए कहा.

‘‘क्या-मैं इस प्रकार के व्यवहार के योग्य थी?’’ जोनका ने सिसकियां भरते हुए कहा, ‘‘आपने तो मेरे साथ ऐसा सलूक किया जैसे मैं चोर हूं. मुझे चुल्लू भर पानी में डूब मरना चाहिए.’’

‘‘लेकिन, जोनका,’’ उसने चौकन्ने होकर कहा, ‘‘तुम्हीं तो मेरी सारी चीजें उठा ले गई थीं, तुम खुद सोचो. क्या तुम सब चीजें नहीं ले गई थीं?’’

परंतु, जोनका ने यह बात जैसे सुनी ही नहीं. ‘‘मैं ऐसी गई बीती हूं कि मेरे पीछे मेरे संदूक की तलाशी ली जाए, जैसे मैं चोर हूं. बाबूजी, आपको मुझे इस प्रकार अपमानित नहीं करना चाहिए था. मैं मरते दम तक आपसे ऐसे व्यवहार की आशा नहीं करती थी. क्या मैं वास्तव में चोर हूं? मैं और चोर!’’ जोनका फूट-फूटकर रोने लगी. ‘‘क्या मैं चोर हूं? मैं? मेरे कुल की मर्यादा का ही जरा ध्यान रखते. मैं आपसे ऐसे व्यवहार की आशा नहीं करती थी. आपको मेरे साथ ऐसा सलूक नहीं करना चाहिए था.’’

‘‘लेकिन, जोनका, उसने कुछ भरे हुए गले से कहा, ‘‘कुछ समझ से काम लो. आखिर ये चींजें तुम्हारे बक्स में कैसे पहुंची? पहले तुम यही बताओ कि ये चीजें तुम्हारी हैं या मेरी? बताओ, क्या ये चीजें तुम्हारी हैं?’’

‘‘मैं कोई बात नहीं सुनना चाहती,’’ जोनका ने सिसकते हुए कहा, ‘‘हे ईश्वर, मुझे यह भी दिन देखना था! जैसे मैं कोई चोर हूं. मेरे पीछे मेरे बक्स की तलाशी ली गई. मैं अभी-इसी वक्त,’’ जोनका आवेश में चीख पड़ी, ‘‘मैं अभी, इसी वक्त चली जाऊंगी. मैं इस घर में सुबह तक भी नहीं रहूंगी. नहीं-नहीं.’’

‘‘जोनका, जरा समझ से काम लो,’’ उसने अपनी भर्राई हुई आवाज में कहा, ‘‘मैं तुम्हें जवाब नहीं दे रहा हूं. तुम रहो, जोनका! और जो कुछ बात हुई, उसे भूल जाओ. मैंने तो अभी तक तुमसे इस विषय में एक शब्द भी नहीं कहा है. अब चुप हो जाओ, जोनका!’’

‘‘आप दूसरी नौकरानी लगा लीजिए,’’ जोनका ने आहत स्वर में कहा, ‘‘मैं इस घर में सुबह तक भी नहीं ठहरूंगी. मैं ऐसी गई-बीती नहीं हूं कि कुतिया की तरह टुकड़े के लालच में पड़ी रहूं-मैं नहीं रहूंगी.’’ जोनका का कंठ सहसा तेज हो गया. ‘‘मै यहां नहीं रहूंगी, चाहे आप मुझे हजार रुपये महीना ही क्यों न दीजिए. मैं रात सड़क पर गुजारना अधिक पंसद करूंगी.’’

‘‘जोनका, जरा समझ से काम लो,’’ उसने हताश भाव से कहा, ‘‘क्या मैंने तुम्हारे दिल को चोट पहुंचाई है? लेकिन तुम जरा सोचो. तुम इससे इनकार नहीं कर सकती.’’

‘‘आप दिल पर चोट पहुंचाने की बात कहते हैं,’’ जोनका ने अपना आहत स्वर तेज करते हुए कहा, ‘‘दिल पर चोट पहुंचाने की बात नहीं है-मेरे पीछे मेरे संदूक की तलाशी लेने की बात है, जैसे मैं चोर हूं. आपकी समझ से यह चाहे कुछ नहीं हो, लेकिन मेरे लिए डूब मरने की बात है. आज तक किसी ने मेरा इतना अपमान नहीं किया. मैं कोई ऐरी-गैरी नहीं हूं.’’ यह कहते-कहते वह फूट-फूटकर रोने लगी और तेजी से दरवाजा खोलकर बाहर चली गई.

वह चित्रलिखित-सा बैठा रहा. पश्चाताप तथा क्षमा-याचना के स्थान पर यह नाटक! उसका आशय क्या है? मेरे पीछे वह मेरी चीजें चुराती है, और जब यह चोरी मुझपर खुल जाती है तो इसे अपना अपमान समझती है. उसे चोरी करने पर जरा भी लज्जा नहीं आती है, लेकिन जब कोई उसे चोर कहता है तो उसके दिल पर चोट लगती है. क्या वह पागल तो नहीं हो गई है?

धीरे-धीरे उसके हृदय में उसके प्रति बड़ी सहानुभुति उत्पन्न होने लगी. ‘तुम्हें समझना चाहिए,’ उसने स्वगत कहा, ‘हर एक आदमी में कुछ कमजोरी होती है. उसे सबसे अधिक क्रोध उस समय आता है जब उसकी उस कमजोरी की ओर इंगित किया जाता है. आदमी अनेक बुराइयों से घिरा रहने पर भी अपने को बहुत चरित्रवान मानता है. वह दुष्कर्मों में फंसे रहने पर भी अपने को बहुत चरित्रवान मानता है. वह दुष्कर्मों में फंसे रहने पर भी दुष्कर्म को बहुत बुरा मानता है. उसकी हृदयस्थ कमजोरी पर उंगली रखते ही वह फौरन पीड़ा और क्रोध से कराह उठता है. अपराधी को अपने किए पर पश्चाताप नहीं होता, बल्कि वह इस बात से क्रोधित होता है कि मेरा अपराध पकड़ा गया.’

रसोईघर से सिसकियां भरने की आवाज आ रही थी. वह वहां जाना चाहता था, पर दरवाजा भीतर से बंद था. वह बंद दरवाजे के निकट खड़ा होकर जोनका को समझाने का प्रयत्न करता रहा, पर वह उत्तर में और जोर से सिसकियां लेने लगी. वह दया से द्रवीभूत होकर अपने कमरे में वापस लौट आया. मेज पर चुराई चीजें पड़ी थीं-नई कमीजें, साबुन का डिब्बा, सोने का कड़ा आदि-आदि. उसने उन चीजों को अपने हाथ से स्पर्श किया, पर उस स्पर्श में एक वेदना और व्यथा छिपी थी.

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पाटील,1,शगुन अग्रवाल,1,शबनम शर्मा,7,शब्द संधान,17,शम्भूनाथ,1,शरद कोकास,2,शशांक मिश्र भारती,8,शशिकांत सिंह,12,शहीद भगतसिंह,1,शामिख़ फ़राज़,1,शारदा नरेन्द्र मेहता,1,शालिनी तिवारी,8,शालिनी मुखरैया,6,शिक्षक दिवस,6,शिवकुमार कश्यप,1,शिवप्रसाद कमल,1,शिवरात्रि,1,शिवेन्‍द्र प्रताप त्रिपाठी,1,शीला नरेन्द्र त्रिवेदी,1,शुभम श्री,1,शुभ्रता मिश्रा,1,शेखर मलिक,1,शेषनाथ प्रसाद,1,शैलेन्द्र सरस्वती,3,शैलेश त्रिपाठी,2,शौचालय,1,श्याम गुप्त,3,श्याम सखा श्याम,1,श्याम सुशील,2,श्रीनाथ सिंह,6,श्रीमती तारा सिंह,2,श्रीमद्भगवद्गीता,1,श्रृंगी,1,श्वेता अरोड़ा,1,संजय दुबे,4,संजय सक्सेना,1,संजीव,1,संजीव ठाकुर,2,संद मदर टेरेसा,1,संदीप तोमर,1,संपादकीय,3,संस्मरण,730,संस्मरण लेखन पुरस्कार 2018,128,सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन,1,सतीश कुमार त्रिपाठी,2,सपना महेश,1,सपना मांगलिक,1,समीक्षा,847,सरिता पन्थी,1,सविता मिश्रा,1,साइबर अपराध,1,साइबर क्राइम,1,साक्षात्कार,21,सागर यादव जख्मी,1,सार्थक देवांगन,2,सालिम मियाँ,1,साहित्य समाचार,98,साहित्यम्,6,साहित्यिक गतिविधियाँ,216,साहित्यिक बगिया,1,सिंहासन बत्तीसी,1,सिद्धार्थ जगन्नाथ जोशी,1,सी.बी.श्रीवास्तव विदग्ध,1,सीताराम गुप्ता,1,सीताराम साहू,1,सीमा असीम सक्सेना,1,सीमा शाहजी,1,सुगन आहूजा,1,सुचिंता कुमारी,1,सुधा गुप्ता अमृता,1,सुधा गोयल नवीन,1,सुधेंदु पटेल,1,सुनीता काम्बोज,1,सुनील जाधव,1,सुभाष चंदर,1,सुभाष चन्द्र कुशवाहा,1,सुभाष नीरव,1,सुभाष लखोटिया,1,सुमन,1,सुमन गौड़,1,सुरभि बेहेरा,1,सुरेन्द्र चौधरी,1,सुरेन्द्र वर्मा,62,सुरेश चन्द्र,1,सुरेश चन्द्र दास,1,सुविचार,1,सुशांत सुप्रिय,4,सुशील कुमार शर्मा,24,सुशील यादव,6,सुशील शर्मा,16,सुषमा गुप्ता,20,सुषमा श्रीवास्तव,2,सूरज प्रकाश,1,सूर्य बाला,1,सूर्यकांत मिश्रा,14,सूर्यकुमार पांडेय,2,सेल्फी,1,सौमित्र,1,सौरभ मालवीय,4,स्नेहमयी चौधरी,1,स्वच्छ भारत,1,स्वतंत्रता दिवस,3,स्वराज सेनानी,1,हबीब तनवीर,1,हरि भटनागर,6,हरि हिमथाणी,1,हरिकांत जेठवाणी,1,हरिवंश राय बच्चन,1,हरिशंकर गजानंद प्रसाद देवांगन,4,हरिशंकर परसाई,23,हरीश कुमार,1,हरीश गोयल,1,हरीश नवल,1,हरीश भादानी,1,हरीश सम्यक,2,हरे प्रकाश उपाध्याय,1,हाइकु,5,हाइगा,1,हास-परिहास,38,हास्य,59,हास्य-व्यंग्य,78,हिंदी दिवस विशेष,9,हुस्न तबस्सुम 'निहाँ',1,biography,1,dohe,3,hindi divas,6,hindi sahitya,1,indian art,1,kavita,3,review,1,satire,1,shatak,3,tevari,3,undefined,1,
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रचनाकार: प्राची - फरवरी 2016 - चेक कहानी / कमीजें / कारेल चापेक
प्राची - फरवरी 2016 - चेक कहानी / कमीजें / कारेल चापेक
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