प्राची - जनवरी 2016 - स्त्रियां और राष्ट्र / माधवराव सप्रे

SHARE:

  स्त्रियां और राष्ट्र माधवराव सप्रे हमारी विरासत स्तंभ में इस बार हम माधवराव सप्रे का महत्त्वपूर्ण लेख ‘स्त्रियां और राष्ट्र’ तथा उनकी...

image_thumb[1]_thumb

 

स्त्रियां और राष्ट्र

image

माधवराव सप्रे

हमारी विरासत स्तंभ में इस बार हम माधवराव सप्रे का महत्त्वपूर्ण लेख ‘स्त्रियां और राष्ट्र’ तथा उनकी लघु कहानी ‘एक टोकरी भर मिट्टी’ दे रहे हैं. उनकी कहानी ‘एक टोकरी भर मिट्टी’ को हिंदी की प्रथम कहानी माना जा सकता है, परन्तु आलोचकों ने इस कहानी को कोई महत्त्व नहीं दिया था. यह कहानी अपने प्रारूप में लघुकथा लगती है, हालांकि इसमें कहानी के सभी तत्व विद्यमान हैं. कहानी मार्मिक है, और जीवन की कटु सच्चाइयों से पाठक को रूबरू करती है. सौ वर्ष पुराना होते हुए भी यह लेख आज भी प्रासंगिक है.

संपादक प्राची

त्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवताः-मनुः. गृहे लक्ष्मीः मान्याः सततमवला मानविभवैः-वराहमिहिर.

राष्ट्र की उन्नति या अवनति के साथ स्त्रियों का क्या संबंध है? यदि इस प्रश्न का उत्तर संक्षेप में दिया जाए तो कहना होगा कि राष्ट्र की उन्नति या अवनति स्त्रियों की उन्नति या अवनति पर अवलंबित होती है. परंतु इस बात पर भी ध्यान देना चाहिए कि ‘राष्ट्र’ और उसकी ‘उन्नति’ अत्यंत मिश्र भाव है. इनसे समाज की बहुत ऊंची और परिपक्व दशा सूचित होती है. ऐसी अवस्था में केवल स्त्रियों की स्थिति ही किसी राष्ट्र की उन्नति और अवनति के लिए सम्यक कारण नहीं हो सकती. इसके अनेक करण हो सकते हैं, जैसे राज्य पद्धति, धर्म, सामाजिक नीति, उद्योग, व्यापार, शारीरिक सामर्थ्य, शिक्षा आदि. इन सब कारणों का विचार इस लेख में नहीं किया जा सकता. यहां सिर्फ इस बात का विचार करना है कि राष्ट्रों की उन्नति और अवनति से स्त्रियों का क्या संबंध है. यह एक प्रकार से सामाजिक विषय कहा जा सकता है. क्योंकि इसमें स्त्रियों की दशा का ही विशेष विचार करना है. स्त्रियों की दशा का कुछ हाल जानने के लिए हमको इस बात का विचार करना चाहिए कि हमारी कुटुंब और गृहस्थिति कैसी है? हमारी विवाह पद्धति में क्या दोष है, स्त्री पुरुषों का परस्पर संबंध क्या है, स्त्रियों को किस प्रकार के अधिकार प्राप्त हैं. उन्हें कैसी शिक्षा मिलती है और उन्हें स्वाधीनता कितनी है? यदि इन बातों का प्रमाण सहित विचार कर लिया जाए तो यह सिद्धांत स्थापित किया जा सकता है कि स्त्रियों की उन्नति या अवनति पर राष्ट्र की उन्नति और अवनति अवलंबित होती है.

कहा गया है कि राष्ट्र की उन्नति के अनेक कारण होते हैं. उनमें से समाज स्थिति विशेष करके गृह स्थिति या कुटुंब व्यवस्था अर्थात स्त्री-पुरुषों के परस्पर संबंध ही को इस लेख में प्रधान कारण माना है. सब लोग जानते हैं कि व्यक्तियों से कुटुंब, कुटुंब से समाज और समाज से राष्ट्र बनता है. समाज की जैसी दशा होगी-भली या बुरी, वैसी ही राष्ट्र की होगी. समाज अथवा राष्ट्र का पहला घटक या अवयव कुटुंब ही कहा जा सकता है. जब तक स्त्रियां भिन्न-भिन्न, अकेली और स्वतंत्र रहती हैं, तब तक उनका समुदाय समाज या राष्ट्र नहीं हो सकता. अतएव यदि हम समाज अथवा राष्ट्र की उन्नति के लिए किसी एक संख्या को मूल कारण कहें तो वह कुटुंब ही है. कुटुंब स्त्री और पुरुष दोनों के मिलने से बनता है. इस नियम के अनुसार भी यही सिद्ध होता है कि राष्ट्र की उन्नति में स्त्रियों का महत्त्व जानने के लिए हमको सबसे पहले कुटुंब व्यवस्था ही का विचार करना चाहिए. अर्थात यह जानना चाहिए कि स्त्रियों का और पुरुषों का परस्पर संबंध क्या है और स्त्रियों की दशा कैसी है. इस विषय की चर्चा करने के लिए इतिहास और समाज शास्त्र के कुछ सिद्धांतों की सहायता ली जाएगी.

पहले इस बात को सोचना चाहिए कि वर्तमान समय में हमारी स्त्रियों की दशा कैसी है, यह दशा कब से चली जा रही है और इसके सुधार का प्रश्न क्यों खड़ा हुआ? यद्यपि, इस देश का प्राचीन इतिहास प्रायः लुप्त है और उसके विषय में अनेक वाद्ग्रस्त पक्ष उपस्थित किए गए हैं तथा इसमें संदेह नहीं कि आर्यावर्त में बसने वाले आर्यों का आर्यत्व और उनका उत्कर्ष ईसाई सदी के बहुत पहले ही नष्ट हो गया था. आर्यों के आशापूर्ण और उत्साहजनक धर्म में बहुत परिवर्तन हो गया था, उनकी सामाजिक स्थिति बदल गई थी और स्त्रियों की दशा भी बिगड़ गई थी. स्त्रियों के विषय में यह समझ हो गई थी कि उनमें पुरुषों की अपेक्षा योग्यता बहुत कम है, वे स्वतंत्रता से रहने योग्य नहीं हैं, उनकी स्वाभाविक प्रवृत्ति कुमार्ग की ओर है, और यह कि ईश्वर ने उन्हें सदा पुरुषों की अधीनता में ही रहने के लिए उत्पन्न किया है. हिंदू स्त्रियों की यह शोचनीय स्थिति अनेक सदियों तक बढ़ती ही चली गई. यह वर्तमान समय में भी वैसी ही बनी है. परंतु जब से इस देश में अंग्रेजी शिक्षा का आरंभ हुआ और पश्चिमी देशों के निवासियों से हमारा निकट संबंध बढ़ने लगा तब से इस देश में अनेक विषयों के सुधार की चर्चा होने लगी. सार्वजनिक शिक्षा का प्रभाव सचमुच अद्भुत होता है. इससे नई-नई बातें मालूम होती हैं, नूतन संस्थाओं का हाल जान पड़ता है, सृष्टि के विषय में अनेक चमत्कारपूर्ण सिद्धांतों का ज्ञान प्राप्त होता है, विचारपद्धति में परिवर्तन हो जाता है और मानव जीवन की आकांक्षाओं का विकास होने लगता है. इन बातों से शास्त्र, समाज और राज्य व्यवस्था में बड़े-बड़े परिवर्तन हो जाते हैं. शिक्षा के द्वारा मनुष्यों की सब शक्तियों का विकास होते ही राष्ट्रीय जीवन में स्फूर्ति और हलचल उत्पन्न होने लगती है और अनेक आवश्यक बातों में

सुधार करने का यत्न किया जाता है, उनके उदाहरण प्रायः सब देशों के इतिहासों में पाए जाते हैं. जब से पूर्व और पश्चिम का संबंध हुआ तभी से विचारक्रांति का आरंभ होने लगा. बड़े-बड़े गहन विषय हमारे सामने उपस्थित हुए और धार्मिक, सामाजिक, औद्योगिक तथा राजकीय सुधारों की ओर हमारा धन झुकने लगा. सारांश यह है कि हम लोगों में राष्ट्रीयता के भाव की जागृति के साथ-साथ स्त्रियों के विषय में भी विचार करने की इच्छा उत्पन्न हुई है.

राष्ट्र की उन्नति के लिए आदर्श कुटुंब व्यवस्था अथवा हितकारक गृह स्थिति की अत्यंत आवश्यकता है. इससे राष्ट्र की स्थिरता, एकता, उत्कर्ष और विशिष्ट परंपरा की वृद्धि हुआ करती है. मनुजी ने बहुत ठीक कहा है ‘‘यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवतायः.’’ इस वचन में बहुत गंभीर अर्थ है. समाजशास्त्र के सिद्धान्तों का विचार करने से इसकी सत्यता के विषय में कुछ भी संदेह नहीं रह जाता. कहना नहीं होगा कि कुटुंब व्यवस्था से समाज को एकता, स्थिरता और दृढ़ता होती है तथा राष्ट्र का उत्कर्ष होने लगता है. जिस कुटुंब व्यवस्था में स्त्रियों का यथोचित आदर नहीं होता, उनकी शिक्षा, स्वाधीनता और उनके अधिकारों की ओर कुछ ध्यान नहीं दिया जाता, वह समय पाकर राष्ट्र के लिए हानिकारक हो जाती है. अब कुटुंब व्यवस्था की उत्क्रांति के कुछ नियमों के अनुसार यह देखना चाहिए कि स्त्रियों से समाज तथा राष्ट्र का हित कैसे होता है.

सुप्रसिद्ध समाज शास्त्रवेत्ता स्पेंसर का कथन है, ‘‘मानव जाति की बाल्यावस्था में न किसी प्रकार की राज्य व्यवस्था होती है और न किसी प्रकार की कुटुंब व्यवस्था है.’’ स्त्री पुरुषों का संबंध और माता-पिता पुत्र आदि नाते, मूल स्थिति में रहने वाले मनुष्यों में, उसी तरह अनियमित होते हैं जिस तरह कि वे पशुओं में पाए जाते हैं. जिन लोगों में कुछ राज्य व्यवस्था होती है उन्हीं लोगों में कुटुंब व्यवस्था भी दीख पड़ती है. इससे यह सिद्ध है कि कुटुंब व्यवस्था (अर्थात स्त्री पुरुषों का नियमित संबंध) और राज्य व्यवस्था का घना संबंध है. भिन्न-भिन्न देशों के पुराण ग्रंथों में कुछ ऐसी कथाएं पाई जाती है जिनसे उक्त सिद्धांतों का बहुत मेल है. महाभारत में श्वेतकेतु स्त्री पुरुषों का संबंध अनियमित था, ‘‘अनावृताः किलपुरा स्त्रिय आसन् चरानने. कामचारविहारगियः स्वतंत्राश्चारुहासिनि.’’ इस अनियमित व्यवहार को बंद करने के लिए उन ऋषियों ने विवाह और कुटुंब की मर्यादा कर दी.

समाजशास्त्र का दूसरा सिद्धांत यह है कि ‘‘इस संसार में मनुष्य जाति के अस्तित्व की स्थिरता का यह कारण नहीं है कि मनुष्य अन्य प्राणियों के समान समुदाय अथवा समाज बनाकर रहते हैं, किंतु उसका कारण यह है कि मनुष्य जाति के समाजरूपी ऐसे भिन्न-भिन्न और अनेक भाग हो गए जो परस्पर शत्रुता से रहने लगे.’’ इसका विस्तृत विवेचन यहां नहीं किया जा सकता. तात्पर्य यही है कि मनुष्य जाति के भिन्न-भिन्न समुदाय या समाज आपस में शत्रुता करके कलह, लड़ाई और युद्ध करने में लगे रहते हें. एक समाज दूसरे समाज को पराजित करने और उसका नाश करने का यत्न किया करता है. इसमें संदेह नहीं कि जब मनुष्य स्वयं अपना एक विशिष्ट और स्वतंत्र समाज (जाति) बना लेते हैं तब से अपने समाज में एकता और प्रेम से रहा करते हैं. परंतु अन्य समाजों से कलह करने की उनकी स्वाभाविक प्रवृत्ति ज्यों की त्यों बनी रहती है. अतएव यदि मनुष्य जाति का इस संसार में चिरकाल रहना हो-यदि मानव जाति के अस्तित्व का नाश होने न देना हो तो प्रत्येक समाज को सुदृढ़, बलवान और सामर्थवान होना चाहिए. इस हेतु की सिद्धि के लिए कुटुंब व्यवस्था, गृह स्थिति और स्त्री पुरुषों के नियमित संबंध की बहुत आवश्यकता है. स्त्री पुरुषों के परस्पर संबंध को नियमित कर देने से विवाह की पद्धति उत्पन्न होती है, कुटुंब संस्था स्थापित होती है, माता-पिता, पुत्र आदि नाते निश्चित हो जाते हैं, समाज के घटक कुटुंबों में एकता होने लगती है, संतान की वृद्धि होती है, एक जाति बन जाती है, जाल्याभिमान उत्पन्न होता है और पूर्वजभक्ति तथा स्वदेश प्रेम जागृत होता है. सारांश यह कि ज्योंही स्त्रियों के साथ अनियमित व्यवहार बंद करके नियमित व्यवहार किया जाता है, त्योंही स्त्रियों की उन्नति के साथ-साथ समाज और राष्ट्र की भी उन्नति होने लगती है.

विवाह पद्धति के संक्रमण का इतिहास बड़ा मनोरंजक और शिक्षादायक है. उसके देखने से यही बात सिद्ध होती है कि विवाह की पद्धति में ज्यों-ज्यों सुधार होता गया त्यों-त्यों स्त्रियों की उन्नति होती गई और समाज तथा राष्ट्र का भी उत्कर्ष होता गया. समाज की प्रथम अवस्था में लोगों की प्रवृत्ति युद्ध की ओर अधिक थी. जो लोग युद्ध में पराजित हो जाते उन्हें दासत्व में रहना पड़ता था. विजयी समाज के लोग जिस समाज की स्त्रियों को पकड़ लाते, उनके साथ विवाह करते, उनको दासी बनाकर अपने घर में रखते, उनको बेच डालते या दान कर देते थे. इन सब बातों के उदाहरण इतिहासों में पाए जाते हैं. विजयी लोग स्त्रियों को अपनी निज की मिल्कियत समझते थे इसलिए स्त्रियों को कुटुंब के प्रधान पुरुषों की अधीनता ही में रहना पड़ता था. कुछ समय के बाद लड़ाइयां बंद हुईं, देश में शांति स्थापित हुई, व्यवहार के नियम, कायदे और कानून बने और राज्य की व्यवस्था होने लगी. तब स्त्रियां भी दासत्व से मुक्त हुईं और उनकी योग्यता बढ़ने लगी. उनके विषय में प्रेम, आदर आदि उच्च भाव प्रकट लेने लगे. एक पत्नीत्व का नियम बन जाने से उनमें पतित्व धर्म बढ़ने लगा. स्त्रियों की योग्यता और स्वाधीनता के बदलाव आने से अबलाभिमान और स्वयंवर की प्रथा शुरू हुई. इसी समय विवाह पद्धति पर

धर्म का भी असर होने लगा. प्रायः सब धर्मों की प्रवृत्ति सामाजिक विषयों पर नियम बनाने की ओर देख पड़ती है. इससे विवाह को धार्मिक विधि का स्वरूप प्राप्त हो गया और प्रत्येक स्त्री के लिए विवाह एक आवश्यक संस्कार बन गया. इसका यह परिणाम हुआ कि स्त्रियों की बहुत-सी स्वाधीनता मर्यादित हो गई. इधर कुछ दिनों में पश्चिमीय देशों में विचारक्रांति बहुत शीघ्रता से होने लगी है और धार्मिक नियम शिथिल हो गए हैं इसलिए यहां स्त्रियों की स्वाधीनता बढ़ती जाती है. वे अपने ताई पुरुषों ही के समान स्वतंत्र मानने लगी हैं और अपने स्वत्चों की रक्षा का यत्न कर रही हैं.

उक्त वर्णन का सारांश यह है कि पहले पहल स्त्रियां पुरुषों की मिल्कियत समझी जाती थीं अर्थात् उन्हें दासत्व में रहना पड़ता था. इसके बाद उन्हें कुछ स्वतंत्रता मिली और स्वयंवर तथा एक पत्नीत्व के हक भी मिले. इसी समय स्त्रियों में ऐसे अनेक सद्गुणों का विकास हुआ कि जो राष्ट्रीय जीवन के लिए अत्यंत हितदायक है. अनंतर स्त्री पुरुषों का संबंध धार्मिक नियमों से मर्यादित कर दिया गया. इससे स्त्रियों के स्वत्वों की बहुत हानि हुई और हिंदुस्तान में बाल विवाह की कुरीति जारी हुई. वर्तमान समय में पश्चिमीय देशों में विवाह को कौल करार का रूप देने का यत्न हो रहा है. समाजशास्त्रियों की दृष्टि से इस सुधार में बहुत लाभ देख नहीं पड़ता. विवाह पद्धति के संक्रमण की यही भिन्न-भिन्न अवस्थाएं हैं. प्रत्येक अवस्था में समाज और राष्ट्र का कुछ लाभ हुआ है और कुछ हानि. यदि इस लाभ हानि की चर्चा यहां की जाए तो लेखक बहुत चढ़ जाएगा. अतएव सिर्फ इस बात का विचार किया जाएगा कि समाजशास्त्र की दृष्टि से विवाह किस पद्धति को अत्युत्तम कहना चाहिए. इसी के साथ संक्षेप में इस बात का भी विचार किया जाएगा कि हमारे यहां विवाह की जो पद्धति प्रचलित है वह राष्ट्रीय उन्नति की दृष्टि से हितदायक है या नहीं? इसके लिए यह सोचना चाहिए कि विवाह के मुख्य उद्देश्य क्या हैं और वे किस विवाह पद्धति से सफल हो सकते हैं?

स्पेंसर के मत के अनुसार विवाह का पहला उद्देश्य यह है कि मनुष्य समाज का अस्तित्व चिरकाल बना रहे और उसकी उत्तरोत्तर उन्नति होती रहे. दूसरा उद्देश्य यह है कि विवाहित स्त्री-पुरुषों का हित हो और उनके वृद्ध माता-पिताओं को सुख मिले. पहले दो उद्देश्य सामाजिक हित के हैं और तीसरा व्यक्ति के हित का है. ये उद्देश्य तभी सफल हो सकते हैं जब कि पुरुषों के समान स्त्रियों को भी राष्ट्रीय जीवन का एक यथार्थ अंग माना जाए. इस विषय में स्पेंसर साहब कहते हैं, ‘‘साधारण लोगों में स्त्री पुरुषों को और वर्तमान पीढ़ी को सुख मिले. परंतु यह भूख है. यथार्थ में इस बात की ओर अधिक ध्यान देना चाहिए कि भविष्यत पीढ़ियों पर अर्थात् समाज और राष्ट्र की उत्कर्षा व्यवस्था की परंपरा चिरकाल बनी रहे.’’ आपने ‘समाज की उत्कर्षावस्था की परंपरा’’ पर बहुत जोर दिया है! जिस विवाह पद्धति से यह परंपरा बिगड़ जाने का भय हो वह समाज के लिए कभी हितकाय हो नहीं सकती. उक्त उद्देश्यों को एकत्र करके उत्तम और निकृष्ट विवाह पद्धतियों के कुछ सामान्य लक्षण निश्चित किए गए हैं. इनके विषय में स्पेंसर साहब की राय सुनिए-

‘‘विवाह की वही ‘पद्धति’ सब से अच्छी कही जा सकती है जिससे समाज का अर्थात् स्त्री-पुरुष और संतान का उत्कर्ष हो, बाल मृत्यु की संख्या कम हो, संतान के पालन-पोषण में माता-पिता को अधिक कष्ट न हो. इस हेतु की सफलता के लिए संतानोत्पत्ति के पहले स्त्री-पुरुषों की आय का बहुत-सा भाग स्वयं अपनी उन्नति करने में व्यतीत होना चाहिए. अर्थात् स्त्री पुरुषों का विवाह संभव प्रौढ़ अवस्था में ही होना चाहिए.

‘‘विवाह की उस पद्धति को निकृष्ट कहना चाहिए, जिसमें बाल मृत्यु की संख्या अधिक हो, बाल-विवाह से छोटी उमर में संतानोत्पत्ति होने लगे, संतानोत्पत्ति और अन्य परिश्रमों के कारण स्त्रियों की मृत्यु वृद्धि शीघ्र होने लगे, विवाहित स्त्री-पुरुषों में प्रेम और आदर न रहे, संतान अशक्त, डरपोक और निरुत्साही हो जाए और वृद्ध माता-पिताओं की ठीक-ठीक हिफाजत न हो

सके.’’

अब पढ़ने वाले स्वयं सोच लें कि हिंदुस्तान में जो विवाह पद्धति और कुटुंब व्यवस्था प्रचलित है वह उक्त सिद्धांतों के अनुसार उत्तम है या निकृष्ट. यदि हम अपनी वर्तमान गृह स्थिति, कुटुंब व्यवस्था, संतानों की शक्ति और स्त्रियों की दशा पर कुछ ध्यान दें तो मालूम हो जाएगा कि स्पेंसर ने निकृष्ट विवाह पद्धति के जो लक्षण कहे हैं वे सब हमारे समाज में पाए जाते हैं. इस शोचनीय अवस्था का वर्णन करने और उसमें सुधार के उपायों का चिंतन करने के लिए एक स्वतंत्र लेख की आवश्यकता होगी.

इस बात से हम लोग परिचित हैं कि वर्तमान समय में हमारा समाज और राष्ट्र कैसी हीन दशा को पहुंच गया है और हमारी स्त्रियों की कैसी अवनति हो गई है. राष्ट्र की उन्नति के विषय में समाजशास्त्र के सिद्धांतों से यह बात मालूम हुई कि स्त्री-पुरुषों का वैवाहिक संबंध प्रौढ़ अवस्था में होना चाहिए और संतानोत्पत्ति के पहले उनकी आयु का बहुत-सा भाग अपनी उन्नति करने में व्यतीत किया जाना चाहिए. इन तत्वों पर ध्यान न देने से राष्ट्र की बहुत हानि होती है.

ऐतिहासिक प्रमाण से भी उक्त सिद्धांत की सत्यता प्रतीत होती है अर्थात् यह बात मालूम हो जाती है कि स्त्रियों की उन्नति से राष्ट्र की उन्नति और स्त्रियों की अवनति से राष्ट्र की अवनति होती है. अरिस्टाटल का कथन है कि ग्रीस देश के निवासी अपनी स्त्रियों को गुलामों के समान नहीं मानते थे, किंतु वे उन्हें अपने ही समान राष्ट्रोन्नति के लिए सहायक समझते थे. वे उनकी शारीरिक, मानसिक और नैतिक उन्नति के लिए सदा दत्तचित्त रहा करते थे. यूनानी स्त्रियों के विषय में लिखा है-The Greeks made physical, as well as intellectual and moral education a science as well as a study. Their woman practised graceful, and in some cases, even athelitic exercised. They developed by a free and healthy life, those figures which remain everlasting and unapproachable models of human-beauty. ये वाक्य किंग्सले के ग्रंथ से लार्ड एहुबरी ने अपने Use of Life नामक ग्रंथ में उद्धृत किए हैं.

यही कारण है कि वे बारबेरियन लोगों पर अपना अधिकार जमा सके. एक रोमन ग्रंथकार का कथन है, ‘‘रोमन लोग अपनी स्त्रियों के साथ, यूनानियों की अपेक्षा अधिक अच्छा बर्ताव करते हैं इसलिए यूनानी राष्ट्र से रोमन राष्ट्र अधिक बलवान है.’’ यह बात इतिहास प्रसिद्ध है कि रोम ने एक छोटे-से शहर से बढ़ते-बढ़ते सारी दुनिया पर अपना अधिकार जमा लिया था. जिस तरह रोमन राष्ट्र की उन्नति विस्मयकारक है उसी तरह उसकी अवनति भी अत्यंत हृदयदायक है. रोमन जाति के उत्कर्ष के समय रोमन स्त्रियों में पातिव्रत्य, स्वालंबन, स्वार्थत्याग, धैर्य आदि जो गुण देख पड़ते थे वे सब उनकी अवनति के समय नष्ट हो गए थे. उन अच्छे गुणों के स्थान में दुराचार, अज्ञान, कलह इत्यादि दुर्गुणों का साम्राज्य स्थापित हो गया था. गिबन नामक इतिहासकार लिखता है, ‘‘प्यूनिक वार के बाद थोड़े ही दिनों में रोमन राष्ट्र की नीति की जड़ (गृहस्थिति अर्थात् स्त्रियों की दशा) बिगड़ गई जिसका फल यह हुआ कि अंत में उनका लोक सत्तात्मक राज्य भी नष्ट हो गया. इसका क्या कारण है कि बारबेरियन लोगों को यूनानियों ने जीत लिया, यूनानियों का पराभव रोमन लोगों ने किया और रोमन राष्ट्र को जर्मन लोगों ने नष्ट कर डाला? इतिहास साक्षी है कि बारबेरियन स्त्रियों से यूनानी स्त्रियों की दशा अच्छी थी, यूनानी स्त्रियों से रोमन स्त्रियों की दशा अच्छी थी. रोमन इतिहासकार टेसिरस लिखता है कि जिस समय जर्मन लोग वन में रहा करते थे उस समय भी उनकी कुटुंब संस्था अच्छी दशा में थी. सारांश यह है कि परशियन, ग्रीक, रोमन और जर्मन राष्ट्र दूसरे से बढ़कर हैं और इसका कारण यही है कि उनकी सामाजिक स्थिति अर्थात् कुटुंब संस्था, गृहस्थिति, स्त्री-पुरुषों का संबंध उत्तरोत्तर श्रेष्ठ है.

अब हिंदुस्तान के विषय में कुछ विचार किया जाएगा. राजकीय स्वतंत्रता अथवा राष्ट्रीय उन्नति की दृष्टि से यह देश अत्यंत निकृष्ट अवस्था में है. समाज की अनेक कुरीतियों को

सुधारने के लिए वर्तमान समय में जो आंदोलन जारी है उससे सिद्ध होता है कि हमारी सामाजिक अवस्था भी बहुत बिगड़ गई है. सामाजिक सुधार के अनेक विषयों में हमारी स्त्रियों की दशा पर भी बहुत विचार किया जाता है. क्या हमारी राष्ट्रीय अवनति और स्त्रियों की वर्तमान दुर्दशा में कुछ संबंध नहीं? कुटुंब संस्था और विवाह पद्धति के बिगड़ जाने से शारीरिक शक्ति का ह्रास हो गया है, समाज की उन्नति के लिए जो गुण आवश्यक हैं उनका लोप हो गया है, राष्ट्रीय जीवन नष्ट हो गया है और देश के निवासी सदियों से पराधीनता का दुःख भाग रहे हैं. प्यारे पाठकों! दुनिया के नक्शे की ओर देखिए और इस बात को सोचिए कि आज लगातार हजार बारह सौ वर्ष से पराधीनता की श्रृंखला में बंधा हुआ देश इस अभागे बूढ़े भारत के सिवा और कौन है! इस बात को भी सोचिए कि हिंदुस्तान के अतिरिक्त किन-किन देशों में बाल विवाह की प्रथा और स्त्रियों की पराधीनता जारी है और उनकी सामाजिक तथा राष्ट्रीय स्थिति कैसी है. कह आए हैं कि विवाह पद्धति और राष्ट्रीय उन्नति का परस्पर संबंध है. हमारी अवनति का, स्त्रियों के साथ हमारा बर्ताव ही, एक प्रधान

कारण है.

हमारी सामाजिक दुर्दशा और राष्ट्रीय अवनति बहुत दिनों से चली आ रही है. भारत की सुदशा तथा उन्नति के दिन अति प्राचीन भूतकाल की अंधेरी छाया में ढक से गए हैं. इस पर से साधारण लोगों की यह राय हो गई कि इस देश में अच्छी राज्य व्यवस्था और अच्छी समाज स्थिति कभी थी ही नहीं. हिंदुस्तान के इतिहास पर जो साधारण ग्रंथ प्रकाशित हुए हैं उनके पढ़ने से यही राय अधिक पुष्ट हो गई है. वेद, महाभारत, रामायण आदि में जो इतिहास की बातें हैं वे कवि की कपोल कल्पनाएं मालूम होती हैं. यद्यपि प्राचीन भारत की श्रेष्ठता और सभ्यता का इतिहास जानने के लिए उक्त ग्रंथ अत्यंत महत्त्व के हैं तथा इस लेख में उन विदेशी ग्रंथकारों की ही सम्मति को स्वीकार किया गया है जिन्होंने हमारी सामाजिक और राजकीय स्थिति के विषय में प्रत्यक्ष अपने अनुभव से कुछ लिख रहा है. आशा है कि इन बातों को प्रमाण मानने में हम आनाकानी न करेंगे.

इस देश पर विदेशियों की कई चढ़ाइयां हुईं. उनमें सबसे पहली चढ़ाई सिकंदर की मानी जाती है. इस बादशाह के इतिहासकार ने उस समय के हिंदुओं की शूरता, पराक्रम, आवेश आदि गुणों की मुक्तकंठ से प्रशंसा की है. वह लिखता है कि हिंदू अन्य एशियाटिक लोगों की अपेक्षा ऊंचे, मजबूत और शूर हैं. सिकंदर के मरने पर जब सेल्यूकस अपनी सेना लेकर इस देश पर चढ़ाई करने के लिए आया तब उसे मगध देश के राजा चंद्रगुप्त के सामने अपनी हार माननी मड़ी. जब देानों में

संधि हो गई तब सेल्न्यूकस ने चंद्रगुप्त के साथ अपनी कन्या का विवाह कर दिया. सेल्सूकस ने मेगासथेनिस नाम का अपना एलची चंद्रगुप्त के दरबार में रखा था. उसने हिंदुस्तान की राजकीय तथा सामाजिक स्थिति के विषय में जो कुछ लिख रखा है उससे उस समय के हिंदुओं की उन्नति का पूरा पता लग जाता है. तात्पर्य यह है कि ईसाई सदी के 300 वर्ष पहले यह राष्ट्र उन्नत अवस्था में था. उस समय बाल विवाह की प्रथा जारी नहीं थी. ह्वेनसांग के लेखों में भी हिंदुओं की शूरता, पराक्रम आदि का बोध होता है. एक अरब इतिहासकार ने लिखा है कि ‘‘एशिया खंड के निवासियों में हिंदू एक विशेष प्रकार की जाति है. राज्य पद्धति, तत्वज्ञान, शारीरिक सामर्थ्य और वर्ण की शुद्धता के विषय में वे बहुत प्रसिद्ध हैं.’’ इस प्राचीन इतिहास की ठीक-ठीक जांच करने से जान पड़ता है कि पोरस, चंद्रगुप्त, विक्रमादित्य, शालिवाहन, पुलकेशी, शिलादित्य आदि राजाओं के समय, अर्थात् सातवीं सदी तक हमारा राष्ट्र उत्कर्षावस्था में था और हमारी सामाजिक स्थिति तथा स्त्रियों की दशा अच्छी थी. परंतु यहां मुसलमानी रियासत के स्थापित होने के समय अर्थात् दसवीं से चौदहवीं सदी तक, उक्त उत्कर्षावस्था का नाश हो गया.

इस उत्कर्षावस्था के नाश का कारण क्या है? इसका पता लगाने के लिए हमको आठवीं सदी से बारहवीं सदी तक हिंदुस्तान के इतिहास का निरीक्षण करना खहिए. इस समय की प्रधान घटना यही है कि हिंदू धर्म और बौद्ध धर्म में परस्पर स्पर्धा होते-होते प्राचीन आर्य धर्म का रूपांतर हो गया. इस धर्म क्रांति ही में हमारे राष्ट्र की अवनति अर्थात् समाज और स्त्रियों की दुर्दशा का बीजारोपण हुआ. शंकराचार्य ने दिग्विजय करके बौद्ध धर्म को इस देश से निकाल दिया, परंतु इन दो धर्मों के युद्ध में, पहले ही से कुछ बिगड़ा हुआ, हिंदू धर्म लंगड़ा हो गया. फल यह हुआ कि जातिनिर्बंध, शाकाहार, मूर्तिपूजा, आध्यात्मिक, तत्वज्ञान, परलोक तथा प्रारब्धवाद, बाल विवाह तथा स्त्रियों की पराधीनता आदि अनेक धार्मिक और सामाजिक बातों का जोर पहले से और अधिक बढ़ गया. बस यहीं से हमारी शारीरिक दुर्बलता, सामाजिक दुःस्थिति, स्त्रियों की दुर्दशा और राष्ट्र पतितावस्था का आरोप हुआ. हिंदू लोग अपने धार्मिक तथा पारलौकिक वाद-विवादों में इतने निमग्न हो गए थे कि अफगान और तुर्क लोगों से पराजित होने पर भी वे सचेत नहीं हुए. जिस राष्ट्र ने एक समय जगद्विजयी यूनानियों की चढ़ाइयों को विफल कर दिया था, यही राष्ट्र अब इतना दुर्बल, धीरु, निश्तेज और पराक्रमहीन हो गया कि महमूद गजनवी के अत्याचार से अपने देव मंदिरों और स्त्रियों की रक्षा नहीं कर सका. हम यहां हिंदुस्तान की राष्ट्रीय अवनति की अपमानकारक पूरी कहानी नहीं कहना चाहते. संक्षेप में यही कहना है कि इतना बड़ा प्राचीन, उन्नत और वैभवशाली राष्ट्र थोड़े ही दिनों में मुसलमानों के आधीन हो गया और एक गुलाम बादशाह ने, केवल पच्चीस वर्ष में यहां मुसलमानी रियासत की जड़ जमा दी.

जब यह मालूम हो गया कि धर्म के अनिष्ट बंधनों से चार पाँच सौ वर्षों में समाज की दशा बिगड़ गई, विवाह पद्धति में परिवर्तन हो गया, स्त्रियों की पराधीनता बढ़ गई और अंत में राष्ट्र का भी पतन हो गया. धर्म के अनिष्ट बंधनों से यह देश कैसा देववादी हो गया था सो देखिए. विजयनगर के राजा ने एक बार सभा में अपने पंडितों से पूछा कि हम लोग मुसलमानों से हमेशा हार क्यों खा जाया करते हैं. उस समय ब्राह्मणों ने उत्तर दिया, ‘‘महाराज! यह कलियुग है, हमारे शास्त्रों में पहले ही से भविष्य लिख रहा है कि ये सब बातें अवश्य होंगी. भाग्य में लिखी बातें कौन टाल सकता है.’’ मुसलमानों के जुल्म से बाल विवाह की पद्धति और दृढ़ हो गई और स्त्रियों की दशा यहां तक पराधीन हो गई कि उन्हें अपना सारा जन्म परदे के अंदर ही व्यतीत करना पड़ा. इस विवाह पद्धति का असर हिंदुस्तान के मुसलमानों पर भी होने लगा. दूरदर्शी अकबर के ध्यान में आ गया कि इससे समाज की बहुत हानि होगी. तब उसने एक कानून बनाया कि सोलहवें वर्ष के पहले लड़कों का और चौदहवें वर्ष के पहले लड़कियों का विवाह नहीं होना चाहिए, परंतु यह कानून बहुत दिनों तक चल न सका. सारांश यह है कि राजकीय जुल्म और धर्म अहितकारक बंधनों से स्त्रियों की विवाह पद्धति, स्वाधीनता और उनके अधिकारों में बहुत हानिकारक परिवर्तन हो गए जिनके कारण यह राष्ट्र वर्तमान अवनत दशा को पहुंच गया है. इतिहासकार टालबाइस ह्वीलर लिखता है, ‘‘जब तक हिंदुस्तान निवासी छोटी-छोटी बालिकाओं का विवाह छोटे-छोटे बालकों के साथ करते होंगे, तब तक उनकी संतान छोटे वंशों से अधिक अच्छी दशा में कभी रह न सकेगी. स्वाधीनता और स्वराज्य के आंदोलन में वे निस्तेज और बलहीन हो जाएंगे. राजकीय उन्नति का उपयोग करने के लिए वे किसी प्रकार की शिक्षा से समर्थ नहीं हो सकेंगे. इसमें संदेह नहीं कि शिक्षा के प्रभाव से उनकी बुद्धि में गंभीरता आ जाएगी और वे किसी गंभीर तथा प्रौढ़ मनुष्य के समान बातें करने लगेंगे परंतु सब कुछ होते हुए भी उनका आचरण असहाय बालकों ही के समान बना रहेगा.’’

अंत में यही कहना है कि समाजशास्त्र के सिद्धांतों और इतिहास के प्रमाणों से इस लेख में यह सिद्ध किया गया है कि जिन राष्ट्रों में स्त्रियों की विवाह पद्धति सामाजिक दृष्टि से हितदायक होती है और उनकी स्वाधीनता तथा हक पर पूरा ध्यान दिया जाता है, वे उन्नति के मार्ग में एक-एक कदम आगे बढ़ते चले जाते हैं और जो राष्ट्र इन बातों पर ध्यान नहीं देते वे निस्तेज और बलहीन होकर पराधीनता की कड़ी जंजीर में बंध जाते हैं. आशा है कि इस लेख के पढ़ने वाले राष्ट्र और स्त्रियों के परस्पर संबंध पर उचित विचार करेंगे और स्त्रियों की वर्तमान दशा में

सुधार करने के लिए लिए उचित उपायों का अवलंबन करेंगे.

(साभारः मर्यादा, जुलाई से दिसंबर, 1915)

नोटः यह लेख आज से 100 वर्ष पूर्व प्रकाशित हुआ था, परन्तु आज भी प्रासंगिक है.

अगले पृष्ठ पर माधवराव सप्रे की पहली कहानी ‘एक टोकरी भर मिट्टी’ दी जा रही है.

संपादक - प्राची

COMMENTS

BLOGGER
नाम

 आलेख ,1, कविता ,1, कहानी ,1, व्यंग्य ,1,14 सितम्बर,7,14 september,6,15 अगस्त,4,2 अक्टूबर अक्तूबर,1,अंजनी श्रीवास्तव,1,अंजली काजल,1,अंजली देशपांडे,1,अंबिकादत्त व्यास,1,अखिलेश कुमार भारती,1,अखिलेश सोनी,1,अग्रसेन,1,अजय अरूण,1,अजय वर्मा,1,अजित वडनेरकर,1,अजीत प्रियदर्शी,1,अजीत भारती,1,अनंत वडघणे,1,अनन्त आलोक,1,अनमोल विचार,1,अनामिका,3,अनामी शरण बबल,1,अनिमेष कुमार गुप्ता,1,अनिल कुमार पारा,1,अनिल जनविजय,1,अनुज कुमार आचार्य,5,अनुज कुमार आचार्य बैजनाथ,1,अनुज खरे,1,अनुपम मिश्र,1,अनूप शुक्ल,14,अपर्णा शर्मा,6,अभिमन्यु,1,अभिषेक ओझा,1,अभिषेक कुमार अम्बर,1,अभिषेक मिश्र,1,अमरपाल सिंह आयुष्कर,2,अमरलाल हिंगोराणी,1,अमित शर्मा,3,अमित शुक्ल,1,अमिय बिन्दु,1,अमृता प्रीतम,1,अरविन्द कुमार खेड़े,5,अरूण देव,1,अरूण माहेश्वरी,1,अर्चना चतुर्वेदी,1,अर्चना वर्मा,2,अर्जुन सिंह नेगी,1,अविनाश त्रिपाठी,1,अशोक गौतम,3,अशोक जैन पोरवाल,14,अशोक शुक्ल,1,अश्विनी कुमार आलोक,1,आई बी अरोड़ा,1,आकांक्षा यादव,1,आचार्य बलवन्त,1,आचार्य शिवपूजन सहाय,1,आजादी,3,आत्मकथा,1,आदित्य प्रचंडिया,1,आनंद टहलरामाणी,1,आनन्द किरण,3,आर. के. नारायण,1,आरकॉम,1,आरती,1,आरिफा एविस,5,आलेख,4288,आलोक कुमार,3,आलोक कुमार सातपुते,1,आवश्यक सूचना!,1,आशीष कुमार त्रिवेदी,5,आशीष श्रीवास्तव,1,आशुतोष,1,आशुतोष शुक्ल,1,इंदु संचेतना,1,इन्दिरा वासवाणी,1,इन्द्रमणि उपाध्याय,1,इन्द्रेश कुमार,1,इलाहाबाद,2,ई-बुक,374,ईबुक,231,ईश्वरचन्द्र,1,उपन्यास,269,उपासना,1,उपासना बेहार,5,उमाशंकर सिंह परमार,1,उमेश चन्द्र सिरसवारी,2,उमेशचन्द्र सिरसवारी,1,उषा छाबड़ा,1,उषा रानी,1,ऋतुराज सिंह कौल,1,ऋषभचरण जैन,1,एम. एम. चन्द्रा,17,एस. एम. चन्द्रा,2,कथासरित्सागर,1,कर्ण,1,कला जगत,113,कलावंती सिंह,1,कल्पना कुलश्रेष्ठ,11,कवि,2,कविता,3239,कहानी,2360,कहानी संग्रह,247,काजल कुमार,7,कान्हा,1,कामिनी कामायनी,5,कार्टून,7,काशीनाथ सिंह,2,किताबी कोना,7,किरन सिंह,1,किशोरी लाल गोस्वामी,1,कुंवर प्रेमिल,1,कुबेर,7,कुमार करन मस्ताना,1,कुसुमलता सिंह,1,कृश्न चन्दर,6,कृष्ण,3,कृष्ण कुमार यादव,1,कृष्ण खटवाणी,1,कृष्ण जन्माष्टमी,5,के. पी. सक्सेना,1,केदारनाथ सिंह,1,कैलाश मंडलोई,3,कैलाश वानखेड़े,1,कैशलेस,1,कैस जौनपुरी,3,क़ैस जौनपुरी,1,कौशल किशोर श्रीवास्तव,1,खिमन मूलाणी,1,गंगा प्रसाद श्रीवास्तव,1,गंगाप्रसाद शर्मा गुणशेखर,1,ग़ज़लें,550,गजानंद प्रसाद देवांगन,2,गजेन्द्र नामदेव,1,गणि राजेन्द्र विजय,1,गणेश चतुर्थी,1,गणेश सिंह,4,गांधी जयंती,1,गिरधारी राम,4,गीत,3,गीता दुबे,1,गीता सिंह,1,गुंजन शर्मा,1,गुडविन मसीह,2,गुनो सामताणी,1,गुरदयाल सिंह,1,गोरख प्रभाकर काकडे,1,गोवर्धन यादव,1,गोविन्द वल्लभ पंत,1,गोविन्द सेन,5,चंद्रकला त्रिपाठी,1,चंद्रलेखा,1,चतुष्पदी,1,चन्द्रकिशोर जायसवाल,1,चन्द्रकुमार जैन,6,चाँद पत्रिका,1,चिकित्सा शिविर,1,चुटकुला,71,ज़कीया ज़ुबैरी,1,जगदीप सिंह दाँगी,1,जयचन्द प्रजापति कक्कूजी,2,जयश्री जाजू,4,जयश्री राय,1,जया जादवानी,1,जवाहरलाल कौल,1,जसबीर चावला,1,जावेद अनीस,8,जीवंत प्रसारण,141,जीवनी,1,जीशान हैदर जैदी,1,जुगलबंदी,5,जुनैद अंसारी,1,जैक लंडन,1,ज्ञान चतुर्वेदी,2,ज्योति अग्रवाल,1,टेकचंद,1,ठाकुर प्रसाद सिंह,1,तकनीक,32,तक्षक,1,तनूजा चौधरी,1,तरुण भटनागर,1,तरूण कु सोनी तन्वीर,1,ताराशंकर बंद्योपाध्याय,1,तीर्थ चांदवाणी,1,तुलसीराम,1,तेजेन्द्र शर्मा,2,तेवर,1,तेवरी,8,त्रिलोचन,8,दामोदर दत्त दीक्षित,1,दिनेश बैस,6,दिलबाग सिंह विर्क,1,दिलीप भाटिया,1,दिविक रमेश,1,दीपक आचार्य,48,दुर्गाष्टमी,1,देवी नागरानी,20,देवेन्द्र कुमार मिश्रा,2,देवेन्द्र पाठक महरूम,1,दोहे,1,धर्मेन्द्र निर्मल,2,धर्मेन्द्र राजमंगल,1,नइमत गुलची,1,नजीर नज़ीर अकबराबादी,1,नन्दलाल भारती,2,नरेंद्र शुक्ल,2,नरेन्द्र कुमार आर्य,1,नरेन्द्र कोहली,2,नरेन्‍द्रकुमार मेहता,9,नलिनी मिश्र,1,नवदुर्गा,1,नवरात्रि,1,नागार्जुन,1,नाटक,152,नामवर सिंह,1,निबंध,3,नियम,1,निर्मल गुप्ता,2,नीतू सुदीप्ति ‘नित्या’,1,नीरज खरे,1,नीलम महेंद्र,1,नीला प्रसाद,1,पंकज प्रखर,4,पंकज मित्र,2,पंकज शुक्ला,1,पंकज सुबीर,3,परसाई,1,परसाईं,1,परिहास,4,पल्लव,1,पल्लवी त्रिवेदी,2,पवन तिवारी,2,पाक कला,23,पाठकीय,62,पालगुम्मि पद्मराजू,1,पुनर्वसु जोशी,9,पूजा उपाध्याय,2,पोपटी हीरानंदाणी,1,पौराणिक,1,प्रज्ञा,1,प्रताप सहगल,1,प्रतिभा,1,प्रतिभा सक्सेना,1,प्रदीप कुमार,1,प्रदीप कुमार दाश दीपक,1,प्रदीप कुमार साह,11,प्रदोष मिश्र,1,प्रभात दुबे,1,प्रभु चौधरी,2,प्रमिला भारती,1,प्रमोद कुमार तिवारी,1,प्रमोद भार्गव,2,प्रमोद यादव,14,प्रवीण कुमार झा,1,प्रांजल धर,1,प्राची,367,प्रियंवद,2,प्रियदर्शन,1,प्रेम कहानी,1,प्रेम दिवस,2,प्रेम मंगल,1,फिक्र तौंसवी,1,फ्लेनरी ऑक्नर,1,बंग महिला,1,बंसी खूबचंदाणी,1,बकर पुराण,1,बजरंग बिहारी तिवारी,1,बरसाने लाल चतुर्वेदी,1,बलबीर दत्त,1,बलराज सिंह सिद्धू,1,बलूची,1,बसंत त्रिपाठी,2,बातचीत,2,बाल उपन्यास,6,बाल कथा,356,बाल कलम,26,बाल दिवस,4,बालकथा,80,बालकृष्ण भट्ट,1,बालगीत,20,बृज मोहन,2,बृजेन्द्र श्रीवास्तव उत्कर्ष,1,बेढब बनारसी,1,बैचलर्स किचन,1,बॉब डिलेन,1,भरत त्रिवेदी,1,भागवत रावत,1,भारत कालरा,1,भारत भूषण अग्रवाल,1,भारत यायावर,2,भावना राय,1,भावना शुक्ल,5,भीष्म साहनी,1,भूतनाथ,1,भूपेन्द्र कुमार दवे,1,मंजरी शुक्ला,2,मंजीत ठाकुर,1,मंजूर एहतेशाम,1,मंतव्य,1,मथुरा प्रसाद नवीन,1,मदन सोनी,1,मधु त्रिवेदी,2,मधु संधु,1,मधुर नज्मी,1,मधुरा प्रसाद नवीन,1,मधुरिमा प्रसाद,1,मधुरेश,1,मनीष कुमार सिंह,4,मनोज कुमार,6,मनोज कुमार झा,5,मनोज कुमार पांडेय,1,मनोज कुमार श्रीवास्तव,2,मनोज दास,1,ममता सिंह,2,मयंक चतुर्वेदी,1,महापर्व छठ,1,महाभारत,2,महावीर प्रसाद द्विवेदी,1,महाशिवरात्रि,1,महेंद्र भटनागर,3,महेन्द्र देवांगन माटी,1,महेश कटारे,1,महेश कुमार गोंड हीवेट,2,महेश सिंह,2,महेश हीवेट,1,मानसून,1,मार्कण्डेय,1,मिलन चौरसिया मिलन,1,मिलान कुन्देरा,1,मिशेल फूको,8,मिश्रीमल जैन तरंगित,1,मीनू पामर,2,मुकेश वर्मा,1,मुक्तिबोध,1,मुर्दहिया,1,मृदुला गर्ग,1,मेराज फैज़ाबादी,1,मैक्सिम गोर्की,1,मैथिली शरण गुप्त,1,मोतीलाल जोतवाणी,1,मोहन कल्पना,1,मोहन वर्मा,1,यशवंत कोठारी,8,यशोधरा विरोदय,2,यात्रा संस्मरण,31,योग,3,योग दिवस,3,योगासन,2,योगेन्द्र प्रताप मौर्य,1,योगेश अग्रवाल,2,रक्षा बंधन,1,रच,1,रचना समय,72,रजनीश कांत,2,रत्ना राय,1,रमेश उपाध्याय,1,रमेश राज,26,रमेशराज,8,रवि रतलामी,2,रवींद्र नाथ ठाकुर,1,रवीन्द्र अग्निहोत्री,4,रवीन्द्र नाथ त्यागी,1,रवीन्द्र संगीत,1,रवीन्द्र सहाय वर्मा,1,रसोई,1,रांगेय राघव,1,राकेश अचल,3,राकेश दुबे,1,राकेश बिहारी,1,राकेश भ्रमर,5,राकेश मिश्र,2,राजकुमार कुम्भज,1,राजन कुमार,2,राजशेखर चौबे,6,राजीव रंजन उपाध्याय,11,राजेन्द्र कुमार,1,राजेन्द्र विजय,1,राजेश कुमार,1,राजेश गोसाईं,2,राजेश जोशी,1,राधा कृष्ण,1,राधाकृष्ण,1,राधेश्याम द्विवेदी,5,राम कृष्ण खुराना,6,राम शिव मूर्ति यादव,1,रामचंद्र शुक्ल,1,रामचन्द्र शुक्ल,1,रामचरन गुप्त,5,रामवृक्ष सिंह,10,रावण,1,राहुल कुमार,1,राहुल सिंह,1,रिंकी मिश्रा,1,रिचर्ड फाइनमेन,1,रिलायंस इन्फोकाम,1,रीटा शहाणी,1,रेंसमवेयर,1,रेणु कुमारी,1,रेवती रमण शर्मा,1,रोहित रुसिया,1,लक्ष्मी यादव,6,लक्ष्मीकांत मुकुल,2,लक्ष्मीकांत वैष्णव,1,लखमी खिलाणी,1,लघु कथा,288,लघुकथा,1340,लघुकथा लेखन पुरस्कार आयोजन,241,लतीफ घोंघी,1,ललित ग,1,ललित गर्ग,13,ललित निबंध,20,ललित साहू जख्मी,1,ललिता भाटिया,2,लाल पुष्प,1,लावण्या दीपक शाह,1,लीलाधर मंडलोई,1,लू सुन,1,लूट,1,लोक,1,लोककथा,378,लोकतंत्र का दर्द,1,लोकमित्र,1,लोकेन्द्र सिंह,3,विकास कुमार,1,विजय केसरी,1,विजय शिंदे,1,विज्ञान कथा,79,विद्यानंद कुमार,1,विनय भारत,1,विनीत कुमार,2,विनीता शुक्ला,3,विनोद कुमार दवे,4,विनोद तिवारी,1,विनोद मल्ल,1,विभा खरे,1,विमल चन्द्राकर,1,विमल सिंह,1,विरल पटेल,1,विविध,1,विविधा,1,विवेक प्रियदर्शी,1,विवेक रंजन श्रीवास्तव,5,विवेक सक्सेना,1,विवेकानंद,1,विवेकानन्द,1,विश्वंभर नाथ शर्मा कौशिक,2,विश्वनाथ प्रसाद तिवारी,1,विष्णु नागर,1,विष्णु प्रभाकर,1,वीणा भाटिया,15,वीरेन्द्र सरल,10,वेणीशंकर पटेल ब्रज,1,वेलेंटाइन,3,वेलेंटाइन डे,2,वैभव सिंह,1,व्यंग्य,2075,व्यंग्य के बहाने,2,व्यंग्य जुगलबंदी,17,व्यथित हृदय,2,शंकर पाटील,1,शगुन अग्रवाल,1,शबनम शर्मा,7,शब्द संधान,17,शम्भूनाथ,1,शरद कोकास,2,शशांक मिश्र भारती,8,शशिकांत सिंह,12,शहीद भगतसिंह,1,शामिख़ फ़राज़,1,शारदा नरेन्द्र मेहता,1,शालिनी तिवारी,8,शालिनी मुखरैया,6,शिक्षक दिवस,6,शिवकुमार कश्यप,1,शिवप्रसाद कमल,1,शिवरात्रि,1,शिवेन्‍द्र प्रताप त्रिपाठी,1,शीला नरेन्द्र त्रिवेदी,1,शुभम श्री,1,शुभ्रता मिश्रा,1,शेखर मलिक,1,शेषनाथ प्रसाद,1,शैलेन्द्र सरस्वती,3,शैलेश त्रिपाठी,2,शौचालय,1,श्याम गुप्त,3,श्याम सखा श्याम,1,श्याम सुशील,2,श्रीनाथ सिंह,6,श्रीमती तारा सिंह,2,श्रीमद्भगवद्गीता,1,श्रृंगी,1,श्वेता अरोड़ा,1,संजय दुबे,4,संजय सक्सेना,1,संजीव,1,संजीव ठाकुर,2,संद मदर टेरेसा,1,संदीप तोमर,1,संपादकीय,3,संस्मरण,730,संस्मरण लेखन पुरस्कार 2018,128,सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन,1,सतीश कुमार त्रिपाठी,2,सपना महेश,1,सपना मांगलिक,1,समीक्षा,847,सरिता पन्थी,1,सविता मिश्रा,1,साइबर अपराध,1,साइबर क्राइम,1,साक्षात्कार,21,सागर यादव जख्मी,1,सार्थक देवांगन,2,सालिम मियाँ,1,साहित्य समाचार,98,साहित्यम्,6,साहित्यिक गतिविधियाँ,216,साहित्यिक बगिया,1,सिंहासन बत्तीसी,1,सिद्धार्थ जगन्नाथ जोशी,1,सी.बी.श्रीवास्तव विदग्ध,1,सीताराम गुप्ता,1,सीताराम साहू,1,सीमा असीम सक्सेना,1,सीमा शाहजी,1,सुगन आहूजा,1,सुचिंता कुमारी,1,सुधा गुप्ता अमृता,1,सुधा गोयल नवीन,1,सुधेंदु पटेल,1,सुनीता काम्बोज,1,सुनील जाधव,1,सुभाष चंदर,1,सुभाष चन्द्र कुशवाहा,1,सुभाष नीरव,1,सुभाष लखोटिया,1,सुमन,1,सुमन गौड़,1,सुरभि बेहेरा,1,सुरेन्द्र चौधरी,1,सुरेन्द्र वर्मा,62,सुरेश चन्द्र,1,सुरेश चन्द्र दास,1,सुविचार,1,सुशांत सुप्रिय,4,सुशील कुमार शर्मा,24,सुशील यादव,6,सुशील शर्मा,16,सुषमा गुप्ता,20,सुषमा श्रीवास्तव,2,सूरज प्रकाश,1,सूर्य बाला,1,सूर्यकांत मिश्रा,14,सूर्यकुमार पांडेय,2,सेल्फी,1,सौमित्र,1,सौरभ मालवीय,4,स्नेहमयी चौधरी,1,स्वच्छ भारत,1,स्वतंत्रता दिवस,3,स्वराज सेनानी,1,हबीब तनवीर,1,हरि भटनागर,6,हरि हिमथाणी,1,हरिकांत जेठवाणी,1,हरिवंश राय बच्चन,1,हरिशंकर गजानंद प्रसाद देवांगन,4,हरिशंकर परसाई,23,हरीश कुमार,1,हरीश गोयल,1,हरीश नवल,1,हरीश भादानी,1,हरीश सम्यक,2,हरे प्रकाश उपाध्याय,1,हाइकु,5,हाइगा,1,हास-परिहास,38,हास्य,59,हास्य-व्यंग्य,78,हिंदी दिवस विशेष,9,हुस्न तबस्सुम 'निहाँ',1,biography,1,dohe,3,hindi divas,6,hindi sahitya,1,indian art,1,kavita,3,review,1,satire,1,shatak,3,tevari,3,undefined,1,
ltr
item
रचनाकार: प्राची - जनवरी 2016 - स्त्रियां और राष्ट्र / माधवराव सप्रे
प्राची - जनवरी 2016 - स्त्रियां और राष्ट्र / माधवराव सप्रे
https://lh3.googleusercontent.com/-DX8HV5xoxEk/VtqEnMCMs9I/AAAAAAAAr_8/JRPFZAmKgSo/image_thumb%25255B1%25255D_thumb_thumb.png?imgmax=800
https://lh3.googleusercontent.com/-DX8HV5xoxEk/VtqEnMCMs9I/AAAAAAAAr_8/JRPFZAmKgSo/s72-c/image_thumb%25255B1%25255D_thumb_thumb.png?imgmax=800
रचनाकार
https://www.rachanakar.org/2016/03/2016_5.html
https://www.rachanakar.org/
https://www.rachanakar.org/
https://www.rachanakar.org/2016/03/2016_5.html
true
15182217
UTF-8
Loaded All Posts Not found any posts VIEW ALL Readmore Reply Cancel reply Delete By Home PAGES POSTS View All RECOMMENDED FOR YOU LABEL ARCHIVE SEARCH ALL POSTS Not found any post match with your request Back Home Sunday Monday Tuesday Wednesday Thursday Friday Saturday Sun Mon Tue Wed Thu Fri Sat January February March April May June July August September October November December Jan Feb Mar Apr May Jun Jul Aug Sep Oct Nov Dec just now 1 minute ago $$1$$ minutes ago 1 hour ago $$1$$ hours ago Yesterday $$1$$ days ago $$1$$ weeks ago more than 5 weeks ago Followers Follow THIS PREMIUM CONTENT IS LOCKED STEP 1: Share to a social network STEP 2: Click the link on your social network Copy All Code Select All Code All codes were copied to your clipboard Can not copy the codes / texts, please press [CTRL]+[C] (or CMD+C with Mac) to copy Table of Content