बरकत / कहानी / गोविन्द सेन

SHARE:

कहानी बरकत -गोविन्द सेन ’’दराज से रुपया गायब है।’’ जगदीश ने पहला ही कौर उठाया ही था कि जीजाजी ने वज्रपात-सा किया। ’’...........’’ जगदीश यह...

कहानी

बरकत -गोविन्द सेन

’’दराज से रुपया गायब है।’’ जगदीश ने पहला ही कौर उठाया ही था कि जीजाजी ने वज्रपात-सा किया।

’’...........’’ जगदीश यह अप्रत्याशित सूचना पा सकपका गया। कुछ क्षणों के लिए उसका हाथ थाली और होठों के बीच फ्रीज हो गया।

’’मैं यह नहीं कहता कि रुपया तुमने लिया होगा, लेकिन तुम्हारे होते हुए उसे ले गया कौन ?” प्रश्न को जीजाजी ने छुरे की तरह तान दिया था।

’’तुम तो बैठे होंगे एकदम गुमसुम। सूम जैसे। किसी उस्ताद ने हाथ साफ कर लिया होगा।...इतने सीधेपन से कैसे काम चलेगा। ऐसे ही सीधे बने रहे तो दुनिया बेचकर खा जाएगी तुमको।’’ जीजाजी की आँखों में लाल-लाल डोरे उभर आए थे।

जीजाजी एक छोटी-सी बात को बड़ी गंभीरता से ले रहे थे जबकि कई गंभीर बातों को वे यूँ ही हवा में उड़ा देते हैं। यह उनकी अजीब आदत है।

जगदीश प्रतिवाद में एक शब्द भी नहीं बोल पाया। आँखें डबडबा आईं। जैसे-तैसे दो रोटियाँ निगल हाथ धो लिये। वह स्वयं को सहज बनाए रखने की कोशिश करता रहा।

सुबह-शाम दराज से सारे रुपये अवेर लेने के बाद भी जीजाजी उसमें एक विशेष धुँधलाया रुपया अवश्य रखते थे। वह उनका बरकती रुपया था। इस रुपये के कारण ही दुकान में बरकत रहती है, यह उनका पक्का विश्वास था। वही रुपया आज दराज से गायब था, जिसका जिम्मेदार वे जगदीश को ठहरा रहे थे।

गुमटी में जाकर जगदीश सो नहीं पाया। जीजाजी की कटु-तिक्त बातें उसे कचोटने लगीं। एक-एक करके सभी बातें याद आने लगीं। उसका मन हुआ, जी भरकर रो ले। बिना सोचे समझे वह क्यों चला आया यहाँ ? जो मकसद ले कर आया था क्या वह पूरा हुआ ?

हायरसेकण्डरी करने के बाद चाहकर भी आगे पढ़ने के लिए शहर कालेज नहीं जा पाया। साइन्स की महँगी पढ़ाई उसके बूते की बात नहीं थी। पुश्तैनी धंधे में उसे कोई खास रुचि नहीं थी। एक तो वैसे भी उनका धंधा हेय दृष्टि से देख जाता है, और फिर, पूरी जिन्दगी वह इसी में गुजार दे उसे यह मंजूर नहीं था। वह कोई सरकारी नौकरी चाहता था। तमाम प्रतिकूल परिस्थितियों के बावजूद उसने अच्छी द्वितीय श्रेणी बनायी थी। लेकिन आजकल नौकरियाँ इतनी आसानी से कहाँ मिलती हैं। फिर उसके पास योग्यता के अलावा था ही क्या ? न पैसा और न कोई पहुँच।

ऐसे निराशा के दौर में उसे जीजाजी उम्मीद की एक किरण के रूप में नजर आये थे। वे उसके दूर के रिश्ते की बहन के पति थे। जब भी गाँव आते, चुटकी बजाते हुए कहते-“बड़े-बड़े अफसरों से मेरी जान-पहचान है। जगदीश बाबू को तो मैं यूँ चुटकी में कहीं भी लगवा दूँगा।’’ प्रभावित हो पिताजी ने जगदीश को आड़े वक्त के लिए छः सौ रुपये देकर जीजाजी के साथ रवाना कर दिया था।

शहर में ठीक कोर्ट के सामने जीजाजी ने अभी-अभी गुमटी ली थी जिसका अभी नामान्तरण होना भी शेष था। वे एक पुरानी इमारत की तीसरी मंजिल पर कोठरीनुमा एक छोटे से कमरे में किराये से रहते थे। कमरे में घुसने के लिए खिड़कीनुमा दरवाजा था। झुककर भीतर घुसना पड़ता था। शुरू-शुरू में अभ्यास न होने और लम्बे कद के कारण जगदीश का माथा कई बार चौखट से ठुका था। छोटे से कमरे में सामान जबरन ठूस-ठूसकर भरा था। कमरा देखकर जगदीश सोच में पड़ गया था कि वह कैसे समा पाएगा इन सबके बीच। चार प्राणी तो पहले ही कमरे में रह रहे थे-जीजाजी, जीजी, पिन्टू और पिंकी।

वे जनवरी की सर्द रातें थीं। आठ-दस दिन जगदीश को उसी कमरे में सुलाया गया। नई और सँकरी जगह में एक-दूसरे से सटकर सोने में उसे घुटन-सी हो रही थी। एक अजीब से तनाव से घिर गया था वह। उसे लगातार महसूस हो रहा था उसके कारण जीजी-जीजाजी की प्राइवेसी भंग हो रही थी। कमरे के बाहर गच्ची पर जगह तो थी लेकिन ठंड रोकने लायक बिस्तरों का प्रबंध नहीं था।

तभी एक दिन तय हुआ कि वह दुकान पर सोया करेगा। उसे दो गुदड़िया और एक दरी दे दी गई। अब रात को खाने के बाद वह सोने के लिए गुमटी पर आ जाया करता था।

इस जर्जर गुमटी में जीजाजी ने सैलून खोल रखा था, जिसे वे दुकान कहते थे। गुमटी के पतरे जंग लगने के कारण छलनी हो चुके थे। दुकान ठीक चैराहे पर होने के कारण रास्ता लगभग पूरी रात चालू रहता था। ऐसे कोलाहल में उसे अकसर देर तक नींद नहीं आती थी।

ऊपर से नौकरी की चिंता खाए जा रही थी। इधर जीजाजी का व्यवहार भी काफी संदिग्ध लग रहा था। जो रुपये उसको पिताजी ने आते समय दिए थे, उसमें से आधे रुपए तो जीजाजी ने गुमटी के नामांतरण के लिए पहले ही ले लिये थे। शेष राशि भी चुट-बुट घरेलू खर्च में खत्म हो गई, जिसका कोई हिसाब नहीं रखा गया था। जीजाजी ने उससे कहा था कि वे जल्दी ही उसके रुपये लौटा देंगे। लेकिन आज तक नहीं लौटाये थे और उसे उनकी वापसी की भी कोई खास उम्मीद नहीं थी।

जगदीश जब भी उन्हें नौकरी की याद दिलाता, वे कहते-“अरे, मैं तुम्हें रेलवे में लगवाऊँगा। इन छोटे-मोटे ऑफीसों में नहीं। रेलवे की नौकरी तो राजा नौकरी होती है। बस थोड़े दिन और ठहर जाओ।’’ फिर वे रेलवे की नौकरी के फायदे गिनवाने लगते। बताने लगते कि किन-किन अफसरों से उनकी दोस्ती है। ये सब मेरे पास ही बाल बनवाते हैं। बस फलाँ साहब से बात हुई नहीं कि तुम्हारी नौकरी पक्की समझो। कई दिनों तक वो बात होती नहीं, और होती भी तो कोई न कोई अड़चन अवश्य आ जाती। टाइपिंग सीखने की बात जब भी उठाता तो कहते-“बस अगले महीने विकास टाइपिंग सेण्टर पर लगवा दूँगा आपको। वो तो मेरा दोस्त ही है।’’ और वह अगला महीना कभी न आता। कभी-कभार जगदीश अधीर हो उठता तो वे उसे फिर किसी नए दिलासे से बहला देते। दिलासे देने में वे बड़े माहिर थे।

सैलून पर वे जगदीश से बराबर पूरा काम ले रहे थे। खुद दुकान पर कम ही टिकते। सुबह दस-ग्यारह बजे आते, दराज से पूरा पैसे अवेर कर बाज़ार में निकल पड़ते। अपनी पुरानी लत के तहत “भाँग-घोटा” की दुकान पर पहुँचते। भाँग का एक बड़ा गोला मुँह में सटकाते और फिर पता नहीं कहाँ-कहाँ घूमते फिरते। वैसे उनसे कोई व्यसन छूटा नहीं था, लेकिन भाँग उन्हें विशेष प्रिय थी। सुबह के बाद वे शाम सात-आठ बजे ही दुकान की सुध लेते। आते ही फिर दराज से रुपए सोर अपनी जेब के हवाले कर देते । यह उनका नित्य का नियम था।

धीरे-धीरे घर का सारा काम जगदीश के जिम्मे होता चला गया। बच्चों का टीचर भी वही था। पिन्टू को जोड़-घटाओ और पिंकी को अ-आ-इ-ई सीखा रहा था। बाजार से सब्जी एवं किराना सामान लाना उसका ही काम था। जीजाजी मंडी से गेहूँ तुलवा देते, टाट का थैला उसे ही उठाकर लाना पड़ता। जीजी जब कभी ‘छूने’ की होती तो रोटियाँ बेलने और पानी भरने का अतिरिक्त बोझ आ पड़ता। जीजाजी इन कामों में ज़रा भी मदद नहीं करते। उनके अनुसार ये सब औरतों के काम हैं, मर्द ऐसे काम नहीं करते।

जगदीश के कपड़ों की दशा सोचनीय थी। दो पैंट थे लेकिन शर्ट केवल एक ही बचा था। वह भी पीठ और कुहनियों पर से गल चुका था। जरा सा तनाव पड़ता कि चर्र से फटने लगता। एक पैंट थोड़ा ठीक था, लेकिन दूसरे के पीछे दो कारियाँ लग चुकी थीं।

एक दिन बाबूजी खबर लेने आए थे तो उसकी दशा देख चिन्तित हो उठे थे। फटे-मैले कपड़े और उसका दुबलापन उनसे छुपा न रह सका। लेकिन जीजाजी ने उन्हें आश्वस्त कर भेज दिया था। घर जाकर पिताजी ने तुरन्त कपड़े खरीदने के लिए पैसे भेजे थे। जीजाजी ने कुछ रुपए जगदीश को पकड़ा कर शेष रुपये बेहिचक अपनी जेब में डाल लिये। “शंकर सेठ (जहाँ उनका खाता चलता था) की दुकान से शर्ट पीस दिलवा दूँगा। अभी मुझे रुपयों की जरूरत है।’’ उन्होंने कहा था। लेकिन वह शर्ट पीस कभी न आ सका और रुपये भी।

सोचते-सोचते पता नहीं कब रात गुजर गई। धूप की एक धारी उसकी गुदड़ी पर उतर आयी। लोगों और वाहनों की आवाजाही का शोर तेज हो गया था। सुबह का उजास गुमटी में फैलने लगा था। नींद न आने के कारण आँखें जल रही थीं। माथा भन्ना रहा था। बेमन से उठकर उसने गुदड़ियों को समेटकर यथास्थान रख दिया।

वह दिन भर जीजाजी से तना-तना रहा। उन्हें देखते ही उसके मन में कड़वाहट भर जाती। शाम को उन्होंने नियमानुसार दराज टटोली।

’’अरे, जगदीश जी रुपया तो दराज की जोड़ में फँसा था।’’ धुँधलाया-सा तथाकथित एक रुपये का बरकती सिक्का उनकी हथेली पर था।

...तो उसे उस अपराध की सजा दी गई जो उसने किया ही नहीं। जगदीश ने आज बहुत तीव्रता से महसूस किया कि जीजाजी उसे बरकती रुपये की तरह अपनी गुमटी में रखना चाहते हैं। लेकिन वह कोई बेजान रुपया नहीं है। वह सोच सकता है, समझ सकता है।...और जगदीश ने मन ही मन में एक निर्णय ले लिया।

दूसरे दिन सुबह जब जीजाजी गुमटी पर आये तो पाया कि जगदीश गायब है। उन्होंने दराज टटोली, बरकती रुपया वहीं मौजूद था।

-राधारमण कालोनी, मनावर, जिला-धार, (म.प्र.) पिन-454446 मो.09893010439

COMMENTS

BLOGGER
नाम

 आलेख ,1, कविता ,1, कहानी ,1, व्यंग्य ,1,14 सितम्बर,7,14 september,6,15 अगस्त,4,2 अक्टूबर अक्तूबर,1,अंजनी श्रीवास्तव,1,अंजली काजल,1,अंजली देशपांडे,1,अंबिकादत्त व्यास,1,अखिलेश कुमार भारती,1,अखिलेश सोनी,1,अग्रसेन,1,अजय अरूण,1,अजय वर्मा,1,अजित वडनेरकर,1,अजीत प्रियदर्शी,1,अजीत भारती,1,अनंत वडघणे,1,अनन्त आलोक,1,अनमोल विचार,1,अनामिका,3,अनामी शरण बबल,1,अनिमेष कुमार गुप्ता,1,अनिल कुमार पारा,1,अनिल जनविजय,1,अनुज कुमार आचार्य,5,अनुज कुमार आचार्य बैजनाथ,1,अनुज खरे,1,अनुपम मिश्र,1,अनूप शुक्ल,14,अपर्णा शर्मा,6,अभिमन्यु,1,अभिषेक ओझा,1,अभिषेक कुमार अम्बर,1,अभिषेक मिश्र,1,अमरपाल सिंह आयुष्कर,2,अमरलाल हिंगोराणी,1,अमित शर्मा,3,अमित शुक्ल,1,अमिय बिन्दु,1,अमृता प्रीतम,1,अरविन्द कुमार खेड़े,5,अरूण देव,1,अरूण माहेश्वरी,1,अर्चना चतुर्वेदी,1,अर्चना वर्मा,2,अर्जुन सिंह नेगी,1,अविनाश त्रिपाठी,1,अशोक गौतम,3,अशोक जैन पोरवाल,14,अशोक शुक्ल,1,अश्विनी कुमार आलोक,1,आई बी अरोड़ा,1,आकांक्षा यादव,1,आचार्य बलवन्त,1,आचार्य शिवपूजन सहाय,1,आजादी,3,आत्मकथा,1,आदित्य प्रचंडिया,1,आनंद टहलरामाणी,1,आनन्द किरण,3,आर. के. नारायण,1,आरकॉम,1,आरती,1,आरिफा एविस,5,आलेख,4288,आलोक कुमार,3,आलोक कुमार सातपुते,1,आवश्यक सूचना!,1,आशीष कुमार त्रिवेदी,5,आशीष श्रीवास्तव,1,आशुतोष,1,आशुतोष शुक्ल,1,इंदु संचेतना,1,इन्दिरा वासवाणी,1,इन्द्रमणि उपाध्याय,1,इन्द्रेश कुमार,1,इलाहाबाद,2,ई-बुक,374,ईबुक,231,ईश्वरचन्द्र,1,उपन्यास,269,उपासना,1,उपासना बेहार,5,उमाशंकर सिंह परमार,1,उमेश चन्द्र सिरसवारी,2,उमेशचन्द्र सिरसवारी,1,उषा छाबड़ा,1,उषा रानी,1,ऋतुराज सिंह कौल,1,ऋषभचरण जैन,1,एम. एम. चन्द्रा,17,एस. एम. चन्द्रा,2,कथासरित्सागर,1,कर्ण,1,कला जगत,113,कलावंती सिंह,1,कल्पना कुलश्रेष्ठ,11,कवि,2,कविता,3239,कहानी,2360,कहानी संग्रह,247,काजल कुमार,7,कान्हा,1,कामिनी कामायनी,5,कार्टून,7,काशीनाथ सिंह,2,किताबी कोना,7,किरन सिंह,1,किशोरी लाल गोस्वामी,1,कुंवर प्रेमिल,1,कुबेर,7,कुमार करन मस्ताना,1,कुसुमलता सिंह,1,कृश्न चन्दर,6,कृष्ण,3,कृष्ण कुमार यादव,1,कृष्ण खटवाणी,1,कृष्ण जन्माष्टमी,5,के. पी. सक्सेना,1,केदारनाथ सिंह,1,कैलाश मंडलोई,3,कैलाश वानखेड़े,1,कैशलेस,1,कैस जौनपुरी,3,क़ैस जौनपुरी,1,कौशल किशोर श्रीवास्तव,1,खिमन मूलाणी,1,गंगा प्रसाद श्रीवास्तव,1,गंगाप्रसाद शर्मा गुणशेखर,1,ग़ज़लें,550,गजानंद प्रसाद देवांगन,2,गजेन्द्र नामदेव,1,गणि राजेन्द्र विजय,1,गणेश चतुर्थी,1,गणेश सिंह,4,गांधी जयंती,1,गिरधारी राम,4,गीत,3,गीता दुबे,1,गीता सिंह,1,गुंजन शर्मा,1,गुडविन मसीह,2,गुनो सामताणी,1,गुरदयाल सिंह,1,गोरख प्रभाकर काकडे,1,गोवर्धन यादव,1,गोविन्द वल्लभ पंत,1,गोविन्द सेन,5,चंद्रकला त्रिपाठी,1,चंद्रलेखा,1,चतुष्पदी,1,चन्द्रकिशोर जायसवाल,1,चन्द्रकुमार जैन,6,चाँद पत्रिका,1,चिकित्सा शिविर,1,चुटकुला,71,ज़कीया ज़ुबैरी,1,जगदीप सिंह दाँगी,1,जयचन्द प्रजापति कक्कूजी,2,जयश्री जाजू,4,जयश्री राय,1,जया जादवानी,1,जवाहरलाल कौल,1,जसबीर चावला,1,जावेद अनीस,8,जीवंत प्रसारण,141,जीवनी,1,जीशान हैदर जैदी,1,जुगलबंदी,5,जुनैद अंसारी,1,जैक लंडन,1,ज्ञान चतुर्वेदी,2,ज्योति अग्रवाल,1,टेकचंद,1,ठाकुर प्रसाद सिंह,1,तकनीक,32,तक्षक,1,तनूजा चौधरी,1,तरुण भटनागर,1,तरूण कु सोनी तन्वीर,1,ताराशंकर बंद्योपाध्याय,1,तीर्थ चांदवाणी,1,तुलसीराम,1,तेजेन्द्र शर्मा,2,तेवर,1,तेवरी,8,त्रिलोचन,8,दामोदर दत्त दीक्षित,1,दिनेश बैस,6,दिलबाग सिंह विर्क,1,दिलीप भाटिया,1,दिविक रमेश,1,दीपक आचार्य,48,दुर्गाष्टमी,1,देवी नागरानी,20,देवेन्द्र कुमार मिश्रा,2,देवेन्द्र पाठक महरूम,1,दोहे,1,धर्मेन्द्र निर्मल,2,धर्मेन्द्र राजमंगल,1,नइमत गुलची,1,नजीर नज़ीर अकबराबादी,1,नन्दलाल भारती,2,नरेंद्र शुक्ल,2,नरेन्द्र कुमार आर्य,1,नरेन्द्र कोहली,2,नरेन्‍द्रकुमार मेहता,9,नलिनी मिश्र,1,नवदुर्गा,1,नवरात्रि,1,नागार्जुन,1,नाटक,152,नामवर सिंह,1,निबंध,3,नियम,1,निर्मल गुप्ता,2,नीतू सुदीप्ति ‘नित्या’,1,नीरज खरे,1,नीलम महेंद्र,1,नीला प्रसाद,1,पंकज प्रखर,4,पंकज मित्र,2,पंकज शुक्ला,1,पंकज सुबीर,3,परसाई,1,परसाईं,1,परिहास,4,पल्लव,1,पल्लवी त्रिवेदी,2,पवन तिवारी,2,पाक कला,23,पाठकीय,62,पालगुम्मि पद्मराजू,1,पुनर्वसु जोशी,9,पूजा उपाध्याय,2,पोपटी हीरानंदाणी,1,पौराणिक,1,प्रज्ञा,1,प्रताप सहगल,1,प्रतिभा,1,प्रतिभा सक्सेना,1,प्रदीप कुमार,1,प्रदीप कुमार दाश दीपक,1,प्रदीप कुमार साह,11,प्रदोष मिश्र,1,प्रभात दुबे,1,प्रभु चौधरी,2,प्रमिला भारती,1,प्रमोद कुमार तिवारी,1,प्रमोद भार्गव,2,प्रमोद यादव,14,प्रवीण कुमार झा,1,प्रांजल धर,1,प्राची,367,प्रियंवद,2,प्रियदर्शन,1,प्रेम कहानी,1,प्रेम दिवस,2,प्रेम मंगल,1,फिक्र तौंसवी,1,फ्लेनरी ऑक्नर,1,बंग महिला,1,बंसी खूबचंदाणी,1,बकर पुराण,1,बजरंग बिहारी तिवारी,1,बरसाने लाल चतुर्वेदी,1,बलबीर दत्त,1,बलराज सिंह सिद्धू,1,बलूची,1,बसंत त्रिपाठी,2,बातचीत,2,बाल उपन्यास,6,बाल कथा,356,बाल कलम,26,बाल दिवस,4,बालकथा,80,बालकृष्ण भट्ट,1,बालगीत,20,बृज मोहन,2,बृजेन्द्र श्रीवास्तव उत्कर्ष,1,बेढब बनारसी,1,बैचलर्स किचन,1,बॉब डिलेन,1,भरत त्रिवेदी,1,भागवत रावत,1,भारत कालरा,1,भारत भूषण अग्रवाल,1,भारत यायावर,2,भावना राय,1,भावना शुक्ल,5,भीष्म साहनी,1,भूतनाथ,1,भूपेन्द्र कुमार दवे,1,मंजरी शुक्ला,2,मंजीत ठाकुर,1,मंजूर एहतेशाम,1,मंतव्य,1,मथुरा प्रसाद नवीन,1,मदन सोनी,1,मधु त्रिवेदी,2,मधु संधु,1,मधुर नज्मी,1,मधुरा प्रसाद नवीन,1,मधुरिमा प्रसाद,1,मधुरेश,1,मनीष कुमार सिंह,4,मनोज कुमार,6,मनोज कुमार झा,5,मनोज कुमार पांडेय,1,मनोज कुमार श्रीवास्तव,2,मनोज दास,1,ममता सिंह,2,मयंक चतुर्वेदी,1,महापर्व छठ,1,महाभारत,2,महावीर प्रसाद द्विवेदी,1,महाशिवरात्रि,1,महेंद्र भटनागर,3,महेन्द्र देवांगन माटी,1,महेश कटारे,1,महेश कुमार गोंड हीवेट,2,महेश सिंह,2,महेश हीवेट,1,मानसून,1,मार्कण्डेय,1,मिलन चौरसिया मिलन,1,मिलान कुन्देरा,1,मिशेल फूको,8,मिश्रीमल जैन तरंगित,1,मीनू पामर,2,मुकेश वर्मा,1,मुक्तिबोध,1,मुर्दहिया,1,मृदुला गर्ग,1,मेराज फैज़ाबादी,1,मैक्सिम गोर्की,1,मैथिली शरण गुप्त,1,मोतीलाल जोतवाणी,1,मोहन कल्पना,1,मोहन वर्मा,1,यशवंत कोठारी,8,यशोधरा विरोदय,2,यात्रा संस्मरण,31,योग,3,योग दिवस,3,योगासन,2,योगेन्द्र प्रताप मौर्य,1,योगेश अग्रवाल,2,रक्षा बंधन,1,रच,1,रचना समय,72,रजनीश कांत,2,रत्ना राय,1,रमेश उपाध्याय,1,रमेश राज,26,रमेशराज,8,रवि रतलामी,2,रवींद्र नाथ ठाकुर,1,रवीन्द्र अग्निहोत्री,4,रवीन्द्र नाथ त्यागी,1,रवीन्द्र संगीत,1,रवीन्द्र सहाय वर्मा,1,रसोई,1,रांगेय राघव,1,राकेश अचल,3,राकेश दुबे,1,राकेश बिहारी,1,राकेश भ्रमर,5,राकेश मिश्र,2,राजकुमार कुम्भज,1,राजन कुमार,2,राजशेखर चौबे,6,राजीव रंजन उपाध्याय,11,राजेन्द्र कुमार,1,राजेन्द्र विजय,1,राजेश कुमार,1,राजेश गोसाईं,2,राजेश जोशी,1,राधा कृष्ण,1,राधाकृष्ण,1,राधेश्याम द्विवेदी,5,राम कृष्ण खुराना,6,राम शिव मूर्ति यादव,1,रामचंद्र शुक्ल,1,रामचन्द्र शुक्ल,1,रामचरन गुप्त,5,रामवृक्ष सिंह,10,रावण,1,राहुल कुमार,1,राहुल सिंह,1,रिंकी मिश्रा,1,रिचर्ड फाइनमेन,1,रिलायंस इन्फोकाम,1,रीटा शहाणी,1,रेंसमवेयर,1,रेणु कुमारी,1,रेवती रमण शर्मा,1,रोहित रुसिया,1,लक्ष्मी यादव,6,लक्ष्मीकांत मुकुल,2,लक्ष्मीकांत वैष्णव,1,लखमी खिलाणी,1,लघु कथा,288,लघुकथा,1340,लघुकथा लेखन पुरस्कार आयोजन,241,लतीफ घोंघी,1,ललित ग,1,ललित गर्ग,13,ललित निबंध,20,ललित साहू जख्मी,1,ललिता भाटिया,2,लाल पुष्प,1,लावण्या दीपक शाह,1,लीलाधर मंडलोई,1,लू सुन,1,लूट,1,लोक,1,लोककथा,378,लोकतंत्र का दर्द,1,लोकमित्र,1,लोकेन्द्र सिंह,3,विकास कुमार,1,विजय केसरी,1,विजय शिंदे,1,विज्ञान कथा,79,विद्यानंद कुमार,1,विनय भारत,1,विनीत कुमार,2,विनीता शुक्ला,3,विनोद कुमार दवे,4,विनोद तिवारी,1,विनोद मल्ल,1,विभा खरे,1,विमल चन्द्राकर,1,विमल सिंह,1,विरल पटेल,1,विविध,1,विविधा,1,विवेक प्रियदर्शी,1,विवेक रंजन श्रीवास्तव,5,विवेक सक्सेना,1,विवेकानंद,1,विवेकानन्द,1,विश्वंभर नाथ शर्मा कौशिक,2,विश्वनाथ प्रसाद तिवारी,1,विष्णु नागर,1,विष्णु प्रभाकर,1,वीणा भाटिया,15,वीरेन्द्र सरल,10,वेणीशंकर पटेल ब्रज,1,वेलेंटाइन,3,वेलेंटाइन डे,2,वैभव सिंह,1,व्यंग्य,2075,व्यंग्य के बहाने,2,व्यंग्य जुगलबंदी,17,व्यथित हृदय,2,शंकर पाटील,1,शगुन अग्रवाल,1,शबनम शर्मा,7,शब्द संधान,17,शम्भूनाथ,1,शरद कोकास,2,शशांक मिश्र भारती,8,शशिकांत सिंह,12,शहीद भगतसिंह,1,शामिख़ फ़राज़,1,शारदा नरेन्द्र मेहता,1,शालिनी तिवारी,8,शालिनी मुखरैया,6,शिक्षक दिवस,6,शिवकुमार कश्यप,1,शिवप्रसाद कमल,1,शिवरात्रि,1,शिवेन्‍द्र प्रताप त्रिपाठी,1,शीला नरेन्द्र त्रिवेदी,1,शुभम श्री,1,शुभ्रता मिश्रा,1,शेखर मलिक,1,शेषनाथ प्रसाद,1,शैलेन्द्र सरस्वती,3,शैलेश त्रिपाठी,2,शौचालय,1,श्याम गुप्त,3,श्याम सखा श्याम,1,श्याम सुशील,2,श्रीनाथ सिंह,6,श्रीमती तारा सिंह,2,श्रीमद्भगवद्गीता,1,श्रृंगी,1,श्वेता अरोड़ा,1,संजय दुबे,4,संजय सक्सेना,1,संजीव,1,संजीव ठाकुर,2,संद मदर टेरेसा,1,संदीप तोमर,1,संपादकीय,3,संस्मरण,730,संस्मरण लेखन पुरस्कार 2018,128,सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन,1,सतीश कुमार त्रिपाठी,2,सपना महेश,1,सपना मांगलिक,1,समीक्षा,847,सरिता पन्थी,1,सविता मिश्रा,1,साइबर अपराध,1,साइबर क्राइम,1,साक्षात्कार,21,सागर यादव जख्मी,1,सार्थक देवांगन,2,सालिम मियाँ,1,साहित्य समाचार,98,साहित्यम्,6,साहित्यिक गतिविधियाँ,216,साहित्यिक बगिया,1,सिंहासन बत्तीसी,1,सिद्धार्थ जगन्नाथ जोशी,1,सी.बी.श्रीवास्तव विदग्ध,1,सीताराम गुप्ता,1,सीताराम साहू,1,सीमा असीम सक्सेना,1,सीमा शाहजी,1,सुगन आहूजा,1,सुचिंता कुमारी,1,सुधा गुप्ता अमृता,1,सुधा गोयल नवीन,1,सुधेंदु पटेल,1,सुनीता काम्बोज,1,सुनील जाधव,1,सुभाष चंदर,1,सुभाष चन्द्र कुशवाहा,1,सुभाष नीरव,1,सुभाष लखोटिया,1,सुमन,1,सुमन गौड़,1,सुरभि बेहेरा,1,सुरेन्द्र चौधरी,1,सुरेन्द्र वर्मा,62,सुरेश चन्द्र,1,सुरेश चन्द्र दास,1,सुविचार,1,सुशांत सुप्रिय,4,सुशील कुमार शर्मा,24,सुशील यादव,6,सुशील शर्मा,16,सुषमा गुप्ता,20,सुषमा श्रीवास्तव,2,सूरज प्रकाश,1,सूर्य बाला,1,सूर्यकांत मिश्रा,14,सूर्यकुमार पांडेय,2,सेल्फी,1,सौमित्र,1,सौरभ मालवीय,4,स्नेहमयी चौधरी,1,स्वच्छ भारत,1,स्वतंत्रता दिवस,3,स्वराज सेनानी,1,हबीब तनवीर,1,हरि भटनागर,6,हरि हिमथाणी,1,हरिकांत जेठवाणी,1,हरिवंश राय बच्चन,1,हरिशंकर गजानंद प्रसाद देवांगन,4,हरिशंकर परसाई,23,हरीश कुमार,1,हरीश गोयल,1,हरीश नवल,1,हरीश भादानी,1,हरीश सम्यक,2,हरे प्रकाश उपाध्याय,1,हाइकु,5,हाइगा,1,हास-परिहास,38,हास्य,59,हास्य-व्यंग्य,78,हिंदी दिवस विशेष,9,हुस्न तबस्सुम 'निहाँ',1,biography,1,dohe,3,hindi divas,6,hindi sahitya,1,indian art,1,kavita,3,review,1,satire,1,shatak,3,tevari,3,undefined,1,
ltr
item
रचनाकार: बरकत / कहानी / गोविन्द सेन
बरकत / कहानी / गोविन्द सेन
https://lh3.googleusercontent.com/-rAGS-q1Bwx0/Vuqwl_pS9pI/AAAAAAAAsYQ/f0TsNXbYy44/image_thumb.png?imgmax=800
https://lh3.googleusercontent.com/-rAGS-q1Bwx0/Vuqwl_pS9pI/AAAAAAAAsYQ/f0TsNXbYy44/s72-c/image_thumb.png?imgmax=800
रचनाकार
https://www.rachanakar.org/2016/04/blog-post_91.html
https://www.rachanakar.org/
https://www.rachanakar.org/
https://www.rachanakar.org/2016/04/blog-post_91.html
true
15182217
UTF-8
Loaded All Posts Not found any posts VIEW ALL Readmore Reply Cancel reply Delete By Home PAGES POSTS View All RECOMMENDED FOR YOU LABEL ARCHIVE SEARCH ALL POSTS Not found any post match with your request Back Home Sunday Monday Tuesday Wednesday Thursday Friday Saturday Sun Mon Tue Wed Thu Fri Sat January February March April May June July August September October November December Jan Feb Mar Apr May Jun Jul Aug Sep Oct Nov Dec just now 1 minute ago $$1$$ minutes ago 1 hour ago $$1$$ hours ago Yesterday $$1$$ days ago $$1$$ weeks ago more than 5 weeks ago Followers Follow THIS PREMIUM CONTENT IS LOCKED STEP 1: Share to a social network STEP 2: Click the link on your social network Copy All Code Select All Code All codes were copied to your clipboard Can not copy the codes / texts, please press [CTRL]+[C] (or CMD+C with Mac) to copy Table of Content