महाभारत - आदि पर्व - 3

SHARE:

(पिछले अंक 2 से जारी…) पाण्डुनन्दन राजधानी लौटने पर दुष्यन्त राज -कार्य में इस प्रकार व्यस्त हो गये कि उन्हें शकुन्तला विस्मृत हो गई। इधर ...

(पिछले अंक 2 से जारी…)

पाण्डुनन्दन राजधानी लौटने पर दुष्यन्त राज -कार्य में इस प्रकार व्यस्त हो गये कि उन्हें शकुन्तला विस्मृत हो गई। इधर शकुन्तला ने यथासमय एक स्वस्थ रूपवान्, बलिष्ठ तथा सुन्दर बालक को जन्म दिया। महर्षि कण्व ने उसके जात- कर्म आदि सभी संस्कार सम्पन्न किये तथा उसका नाम सर्वदमन रखा। महर्षि ने शिष्यों को आदेश दिया कि पुत्र के साथ शकुन्तला को पतिगृह में पहुंचा दिया जाय, क्योंकि स्त्रियों का बहुत समय तक अपने पिता अथवा सम्बन्धी के घर में रहना उचित नहीं। इससे कीर्त्ति, चरित्र और धर्म के नष्ट होने की आशंका रहती है -

शकुन्तला ने दुष्यन्त की सभा में पहुंच कर उससे अपने सम्बन्धों की चर्चा करते हुए अपने पुत्र को युवराज बनाने का अनुरोध किया। दुष्यन्त ने उसके साथ अपने किसीँ भी सम्बन्ध को स्वीकार न करते हुए उसकी अवज्ञा की तथा उसे वहां से चले जाने का आदेश दिया।

दुष्यन्त के इस व्यवहार से शकुन्तला क्षुब्ध हो उठी और क्रोधावेश में बाली-राजन! क्या आप समझते हैँ कि आपके द्वारा एकान्त में किये कृत्य का कोई प्रमाण नहीं? क्या आप देवों तथा ईश्वर की सर्वव्यापकता और सर्वज्ञता में विश्वास नहीं रखते? अपने किये कर्म और दिये आश्वासन को नकारते हुए क्या आपको लज्जा नहीं आती?

.शकुन्तला ने चेतावनी देते हुए कहा-

राजन्। यदि आप मुझ पतिव्रता की सत्यवाणी की उपेक्षा करेंगे तो आपके सिर के सौ टुकड़े हो जाएंगे।

राजन्! .शकुन्तला के इस प्रकार विलाप करने पर दुष्यन्त तथा सभासदों को एक आकाशवाणी सुनाई दी, जिसमें .शकुन्तला को सती और उसके पुत्र को राजा के वीर्य से उत्पन्न बताते हुए दोनों को अपनाने का निर्देश था। राजा ने उस समय कहा कि मैंने जान-बूझकर शकुन्तला के प्रति ऐसा व्यवहार किया है ताकि कहीं प्रजा मुझे कलंकित न करे। अब आकाशवाणी के साक्ष्य से मैं इन दोनों को अपना रहा हूं। राजा के इस निश्चय से सर्वत्र हर्ष का वातावरण छा गया।

समय आने पर दुष्यन्त का यही बालक युवराज बना। प्रजा का भली प्रकार भरण-पोषण करने वाला होने से वह ' भरत' नाम से लोक में विश्रुत हुआ और इसके नाम पर इस देश का नाम भारतवर्ष ' पडा। इन्हीं के नाम से सभी पूर्ववर्ती और परवर्ती राजा ' भरत ' कहलाये।

राजन्! मनु के दस पुत्रों में से एक इला से पुरूरवा का जन्म हुआ। पुरूरवा ने पौरुष के मद से उन्मत्त होकर ब्राह्मणों का धन हरण कर लिया। यहां तक कि ब्रह्मा जी के मानस-पुत्र सनत्कुमार के समझाने-बुझाने का भी उस पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा। फलतः आरंभ. के शाप से उसका नाश हो गया। इसी पुरूरवा ने उर्वशी के गर्भ से छः पुत्र उत्पन्न किये थे। इनमें प्रथम पुत्र आय के पांच पुत्रों में से एक नहुष बडे ही बुद्धिमान् और पराक्रमी थे। उन्होंने अभिमानवश ऋषियों से अपनी पालकी उठवाई और यही उनके विनाश का कारण बना। नहुष के छः पुत्रों में से ययाति ने देवयानी के उदर से यदु और तुर्वसु को तथा शर्मिष्ठा के उदर से द्रुहचु अनु और पुरु को जन्म दिया।

वैशम्पायन जी बोले-राजन्! एक दिन शर्मिष्ठा और देवयानी अपनी सखियों के साथ नदी -स्नान को गईं तो वायु चलने से किनारे पर रखे उनके वस्त्र एक-दूसरे में मिल गये। जल से बाहर आने पर गलती से शर्मिष्ठा ने देवयानी के वस्त्र पहन लिये। इस पर देवयानी बिगड़ उठी तो शर्मिष्ठा भी शान्त न रह सकी। दोनों का कलह इतना अधिक बढ़ गया कि शर्मिष्ठा ने देवयानी को कुएं में धकेल दिया और स्वयं घर लौट आई।

शिकार के लिये उसी वन में आये महाराज ययाति को जल की इच्छा हुई तो वे उसी कुएं पर पहुंचे, जिसमें देवयानी को धकेला गया था। राजा ने कुएं में सुन्दरी को देखा तो उससे उसका परिचय पूछा। देवयानी ने बताया कि वह दलों के गुरु शुक्राचार्य की पुत्री है और वृषपर्वा की पुत्री। शर्मिष्ठा द्वारा कुएं में धकेली गई है। ययाति ने देवयानी के अनुरोध पर उसका हाथ पकड़ कर उसे बाहर निकाला तो देवयानी बोली-राजन्! आपने सर्वप्रथम मेरा हाथ पकडा है। इसलिये मैं आपको पतिरूप में वरण करती हूं। ययाति ने उसके पिता के क्रोध की आशंका प्रकट की तो देवयानी ने सारा दायित्व अपने ऊपर लेते हुए कहा –

महाराज। मैंने आपका वरण किया है इसलिये मुझे पिता द्वारा दी गई समझिये। जब आपके न मांगने पर मैं अपने को पिता के द्वारा दान की गई कहती हूं तो फिर आप मुझे ग्रहण करने पर संकोच क्यों कर रहे हैं? ययाति की स्वीकृति पाकर देवयानी सन्तुष्ट हो गई और उसने पिता से अपनी इच्छा प्रकट कर उनकी स्वीकृति भी प्राप्त कर ली।

देवयानी ने अपने पिता शुक्राचार्य से शर्मिष्ठा के निकृष्ट व्यवहार की चर्चा की तो वे वृषपर्वा के पास पहुंच कर उससे सम्बन्ध-विच्छेद करने की कहने लगे। वृषपर्वा द्वारा अनुनय-विनय किये जाने पर शुक्राचार्य ने अपनी पुत्री देवयानीँ को शर्मिष्ठा द्वारा सन्तुष्ट किये जाने की शर्तें रखी। देवयानी ने शर्मिष्ठा द्वारा दासीत्व करने की मांग की। वृषपर्वा ने अपनी जाति के हित के लिये अपनी पुत्री शर्मिष्ठा को देवयानी की दासी बनकर रहने को सहमत किया।

देवयानी ने अपने पिता से अनुमति-सहमति लेकर ययाति से विवाह किया तो उसके साथ शर्मिष्ठा भी दासी बन कर राजमहल में पहुंची। देवयानी ने ययाति को शर्मिष्ठा से कभी समागम न करने की कठोर चेतावनी दी परन्तु एक दिन ऋतुमती शर्मिष्ठा की याचना पर ययाति ने उसे रतिदान देकर गर्भवती बनाया। इधर जब देवयानी को ययाति के शर्मिष्ठा के साथ रति सम्बन्धों की जानकारी मिली तो वह रुष्ट होकर पितृगृह में चली आई। शुक्राचार्य ने अपनी पुत्री के प्रति ययाति के अन्याय से क्रुद्ध होकर उसे तत्काल वृद्ध हो जाने का शाप दे डाला।

ययाति ने जब बार-बार शुक्राचार्य से यह कहा कि वे देवयानी के साथ सम्भोग से तृप्त नहीं हुए। मुझे अपनी पुत्री से भोग की सुविधा प्रदान करने की कृपा करे तो उन्होंने उसे वर दिया-

मैं तुम्हें किसी अन्य को अपना बुढ़ापा देकर उसका यौवन ले सकने का वर देता हूं।

शुक्राचार्य के शाप में ययाति अकालवृद्ध हो गये। उन्होंने अपनी अतृप्त वासनाओं की पूर्ति के लिये क्रमशः अपने पांचों पुत्रों से उनका बुढ़ापा लेकर अपना यौवन देने का अनुरोध किया परन्तु प्रथम चारों यदु तूर्वसु, द्रुह्यु तथा अनु -ने न केवल इन्कार किया प्रत्युत इस प्रस्ताव की खिल्ली उडाते हुए ययाति का अपमान भी किया। इससे रुष्ट होकर ययाति ने उन्हें उत्तराधिकार से वन्चित कर दिया। पांचवें पुत्र पुरु ने सहानुभूतिवश अपने पिता के प्रस्ताव को स्वीकार करने हुए उन्हें अपना यौवन देकर उनका बुढ़ापा ले लिया। फलतः ययाति ने उसे ही अपना उत्तराधिकार प्रदान किया।

वैशम्पायन जी बोले -राजन्। पुरु का यौवन लेकर ययाति निश्चिन्तता से विषय- भोग करने लगे। अनेक वर्षों तक विषयों के सुख- भाग के उपरान्त ययाति अन्ततः इस परिणाम पर पहुंचे कि जिस प्रकार आग में घी डालते जाने से आग बढ़ती ही जाती है उसी प्रकार विषयों का भोग करने से विषय- भोग की तृष्णा भी शान्त न होकर उत्तरोत्तर बढ़ती ही जाती है।–

इस परिणाम पर .पहुंचते ही ययाति ने पूरु का यौवन उसे लौटा कर उससे अपना बुढ़ापा वापस ले लिया। ययाति ने राज्य पर पूरु को अभिषिक्त किया और वे स्वयं वन में जाकर तप करने लगे। इसी पूरु से वंश-परम्परा का प्रवर्तन हुआ जिसकी रूपरेखा इस प्रकार से है-

पूरु से जनमेजय- प्रीचन्वान्- संयाति- अहंयाति-. सार्वभौम- जयत्सेन- अवाचीन- अरिह-. महाभौम- अयुतनायी-. अक्रोधन- देवतिथि- अरिह-. ऋक्ष- मतिनार- तंसु-. ईलिन-- दुष्यन्त-. भरत-. भूमन्यु- सुहोत्र- हस्ती- विकुण्ठन- अजामीढ- संवरण-. कुरु - विदूरथ- अनश्वा- परीक्षित- भीमसेन-. प्रतिश्रवा-. देवापि- शान्तनु- देववत- ( भीष्म) विचित्रवीर्य- धृतराष्ट्र, पाण्ड तथा विदुर उत्पन्न हुए। धृतराष्ट्र के सौ और पाण्डु के पांच पुत्र हुए। इनमें से अर्जुन के पुत्र अभिमन्यु से ही वंश-परम्परा का प्रवर्तन हुआ। अभिमन्यु के पुत्र परीक्षित से आप (जनमेजय) की उत्पत्ति हुई।

जनमेजय की उत्सुकता पर शान्तनु के गंगा से विवाह के रहस्य का उद्‌घाटन करते हुए वैशम्पायन जी बोले-राजन्। एक बार देवसभा में तीव्र वायु के झोंकों के कारण गंगा जी का अधोवस्त्र साड़ी उतर गया तो वहां -उपस्थित अन्य सभासदों ने जहां अपनी आँखें नीची कर लीं वहां इक्ष्वाकुवंशी महाभिष- जिन्हें दुर्लभ यज्ञों को सम्पन्न करने के फलस्वकरूप सदेह स्वर्गलाभ हुआ था – उसे देखते ही रहे। राजा की इस धृष्टता और निर्लज्जता पर रूष्ट होकर ब्रह्मा जी ने उन्हें मृत्युलोक में जन्म लेने का श्राप दिया। इधर गंगा जी की लौटते समय वसुओं से भेंट हुई। वसुओं ने मनुष्य योनि में अपने जन्म लेने के शाप की चर्चा की तो गंगा जी ने उन्हें अपने गर्भ में धारण करना तथा उत्पन्न होते ही मनुष्य योनि से मुक्त करना स्वीकार कर लिया।

एक दिन पुरुवंशी राजा प्रतीप ने रूपवती गंगा को देखा तो उसने उसे अपनी पुत्रवधू बनाने की इच्छा प्रकट की। फलतः शान्तनु को तदनुसार गंगा को ग्रहण करने का निर्देश दिया गया। शान्तनु ने जब गंगा के रूप-सौन्दर्य पर मोहित होकर उससे विवाह का प्रस्ताव किया तो गंगा ने एक शर्त यह रखी कि वह जो भी कार्य करेगी शान्तनु न तो उसे रोकेगा और न ही उसका बुरा मनायेगा। जब तक इस नियम का पालन होता रहेगा वह उसके पास रहेगी और जिस दिन इस नियम का अतिक्रमण होगा वह उसे छोड़ कर चली जायेगी। शान्तनु ने गंगा की शर्त मान ली। फलतः दोनों विवाह-सूत्र में बंध गये।

समय-समय पर उत्पन्न सात पुत्रों को गंगा ने भागीरथी की तीव्र जल धार में प्रवाहित कर दिया। जब वह आठवें पुत्र को नदी में फेंकने लगी तो -शान्तनु ने न केवल उसे इस जघन्य कार्य से रोका अपितु उसकी भर्त्सना भी की। इस पर गंगा रुष्ट होकर आठवें पुत्र को छोड़ कर यह कहती हुई चल दी कि शान्तनु ने समझौता भंग किया है, अतः अब वह उसके पास नहीं रहेगी। चलते-चलते गंगा ने शान्तनु को बताया कि वह मूलतः स्वर्ग की अप्सरा गंगा है और उसके गर्भ से उत्पन्न आठ पुत्र अष्ट वसु थे, जिन्हें वशिष्ठ जी के शाप से मनुष्य योनि में आना पडा और उनके उद्धार के लिये उसे भी मानवी रूप में अवतरित होना पडा।

शान्तनु द्वारा वसुओं को मिले शाप का कारण पूछने पर गंगा ने बताया कि द्यौ नामक वसु ने अपनी पत्नी के कहने पर अपने साथियों को प्रेरित करके वसिष्ठ जी की नन्दिनी गाय का हरण कर लिया था जिस पर रुष्ट होकर वसिष्ठ जी ने वसुओं को मनुष्य योनि में उत्पन्न होने का शाप दिया था। वसुओं द्वारा क्षमायाचना किये जाने पर महर्षि वसिष्ठ ने अन्य वसओं के तो जन्म लेते ही शापमुक्त होने को कह दिया था परन्तु द्यौ को पूर्ण आयु पर्यन्त मनुष्य योनि में रहने का विधान किया था। यही कारण है कि सात पुत्रों को मैंने गंगा में प्रवाहित किया तो आपने बाधा नहीं डाली। परन्तु इस आठवें पुत्र के समय आप बाधक बने हैं। वस्तुतः यह सब पूर्वनिश्चित विधान है अतः आप चिन्ता छोड़ कर इस पुत्र -रत्न का प्रयत्नपूर्वक पालन -पोषण करें। आप विश्वास रखें –

यह बालक धर्मात्मा सभी शास्त्रों का तत्त्ववेत्ता पिता का प्रिय एवं हितसाधक तथा अखण्ड ब्रह्मचर्य का पालन करने वाला होगा।

यह कहकर गंगा वहां से स्वर्गलोक को चली गई।

राजन्! महाराज .शान्तनु को न्याय और धर्मपूर्वक राज्य करते हुए बहुत समय बीत गया। एक दिन वे यमुना क् किनारे घूम रहे थे कि उन्हें किसी मादक गन्ध ने अपनी ओर आकृष्ट किया। गन्ध का अनुसरण करने हुए वे एक निषादकन्या के पास जा पहुंचे और उसके रूप- सौन्दर्य वाक्माधुर्य तथा लावण्य-सुषमा आदि पर मुग्ध होकर उसे अपनी पत्नी बनाने की इच्छा करने लगे! शान्तनु ने कन्या के पिता निषादराज के आगे अपना प्रस्ताव रखा तो उसने राजा के प्रस्ताव का अनुमोदन करने हुए यह शर्त रखी कि इस कन्या के गर्भ से उत्पन्न बालक ही आपका उत्तराधिकारी होगा-

शान्तनु कन्या की रूप-सुषमा पर आसक्त और काम -मोहित होने पर भी निषादराज की शर्त को स्वीकार न कर सका क्योंकि वह देवव्रत जैसे योग्य पुत्र को उसके अधिकार से वंचित नहीं करना चाहते थे, अतः चिन्तित तथा खिन्न मन से हस्तिनापुर लौट आये। देवव्रत ने अपने पिता से उनकी उदासी का कारण पूछा तो शान्तनु ने कहा कि हमारे कुल में एक तुम्ही पुत्र हो। यदि कहीं तुम पर कोई विपत्ति' आ गई तो हमारा वंश आगे कैसे चलेगा? मुझे यही चिंता खाये जा रही है।

देवव्रत को पिता के मनोरथ को जानते देर न लगी। वह मन्त्रियों और बाह्मणों के साथ निषादराज के पास गया और उसकी शर्त को मान्यता देकर अपनी कन्या का अपने पिता से विवाह का अनुरोध करने लगा। निषादराज ने विनयपूर्वक कहा – युवराज! आपकी सत्यनिष्ठा पर तो मुझे कोई सन्देह नहीं, परंतु आपके पुत्र मेरी पुत्री सत्यवती के गर्भ से उत्पन्न पुत्रों के अधिकार को चुनौती दे सकते हैं। देवव्रत ने निषादराज के अभिप्राय को समझ कर उसी समय आजन्म ब्रह्मचारी रहने की प्रतिज्ञा का उद्घोष किया –

निषादराज! मैं जीवनपर्यन्त ब्रह्मचारी रहूंगा। मेरे निस्सन्तान होने पर भी ब्रह्मचर्य के पालन की शक्ति से मुझे अक्षय स्वर्गलोक सुलभ हो सकेंगे, अतः मैं सन्तानोत्पत्ति के लिये यत्न ही नहीं करूंगा।

देवव्रत की इस घोषणा से सन्तुष्ट होकर निषादराज ने अपनी कन्या सत्यवती का शान्तनु से विवाह कर दिया। देवव्रत की इस भीषण प्रतिज्ञा के कारण ही उसका नाम ' भीष्म ' पड़ गया और पिता ने प्रसन्न होकर उसे मृत्यु पर विजयी होने, अर्थात् इच्छा होने पर ही मरने का वर प्रदान किया—

विप्रो! शान्तनु ने सत्यवती के गर्भ से चित्रांगद और विचित्रवीर्य नामक दो पुत्र उत्पन्न किये। चित्रांगद अभी युवा भी नहीं हुआ था कि शान्तनु का स्वर्गवास हो गया। चित्रांगद के राजगद्दी संभालने पर गन्धर्वराज ने उस पर आक्रमण कर दिया और कुरुक्षेत्र के मैदान में भयंकर युद्ध के उपरान्त उसे यमलोक को भेज दिया। अब विचित्रवीर्य को उत्तराधिकारी बनाया गया। विचित्रवीर्य के युवा होने पर उसके लिये भीष्म ने काशीनरेश की तीन कन्याओं का स्वयंवर-स्थल से हरण कर लिया। स्वयंवर के लिये आये राजाओं ने भीष्म के आगे विवश 'भाव से घुटने टेक दिये। भीष्म तीनों कन्याओं को हस्तिनापुर लाकर जब विचित्रवीर्य से उनके विवाह की व्यवस्था करने लगे तो काशीनरेश की बड़ी कन्या अम्बा ने भीष्म से कहा-मैंने शाल्व को वरण करने का निश्चय कर रखा है, मेरे पिता की भी इसमें सहमति है। आप धर्मात्मा हैं मुझे मेरे अभिलषित पति के पास जाने दें। भीष्म ने उसकी प्रार्थना स्वीकार करते हुए उसे मुक्त कर दिया। -शेष दोनों कन्याओं- अम्बिका तथा अम्बालिका -का विचित्रवीर्य से विवाह कर दिया गया। विचित्रवीर्य सात वर्षों तक दोनों पत्नियों के साथ विषय- भोग करता रहा, परन्तु बिना सन्तान उत्पन्न किये ही क्षय-ग्रस्त होकर मृत्यु को प्राप्त हो गया।

विचित्रवीर्य के निस्सन्तान मर जाने पर सत्यवती ने भीष्म से राजकार्य ' संभालने और वंश-परम्परा को चलाने के लिये सन्तान उत्पन्न करने का अनुरोध किया परन्तु भीष्म ने अपने वचन पर दृढ़ रहते हुए माता की आज्ञा के पालन में अपनी असमर्थता प्रकट की। भीष्म ने स्पष्ट शब्दों में कहा-

माता! मैं तीनों लोकों के ही नहीं, देवलोक के राज्य को भी छोड़ सकता हूं। इससे भी कुछ अधिक महत्वपूर्ण हो तो उसे भी छोड़ने को प्रस्तुत हूं उसे भी छोड़ सकता हूं परन्तु एक बार ग्रहण की गई प्रतिज्ञा का परित्याग कभी नहीं कर सकता।

सत्यवती ने अब अपने पुत्र वेदव्यास का स्मरण किया। वेदव्यास ने माता की आज्ञा को शिरोधार्य करते हुए अम्बिका से जन्मान्ध धृतराष्ट्र को, अम्बालिका से पाण्ड (पीलिया) नामक रोग से ग्रस्त पाण्डु को और अम्बिका द्वारा प्रेरित दासी से विदुर को जन्म दिया।

(क्रमशः अगले अंकों में जारी…)

COMMENTS

BLOGGER
नाम

 आलेख ,1, कविता ,1, कहानी ,1, व्यंग्य ,1,14 सितम्बर,7,14 september,6,15 अगस्त,4,2 अक्टूबर अक्तूबर,1,अंजनी श्रीवास्तव,1,अंजली काजल,1,अंजली देशपांडे,1,अंबिकादत्त व्यास,1,अखिलेश कुमार भारती,1,अखिलेश सोनी,1,अग्रसेन,1,अजय अरूण,1,अजय वर्मा,1,अजित वडनेरकर,1,अजीत प्रियदर्शी,1,अजीत भारती,1,अनंत वडघणे,1,अनन्त आलोक,1,अनमोल विचार,1,अनामिका,3,अनामी शरण बबल,1,अनिमेष कुमार गुप्ता,1,अनिल कुमार पारा,1,अनिल जनविजय,1,अनुज कुमार आचार्य,5,अनुज कुमार आचार्य बैजनाथ,1,अनुज खरे,1,अनुपम मिश्र,1,अनूप शुक्ल,14,अपर्णा शर्मा,6,अभिमन्यु,1,अभिषेक ओझा,1,अभिषेक कुमार अम्बर,1,अभिषेक मिश्र,1,अमरपाल सिंह आयुष्कर,2,अमरलाल हिंगोराणी,1,अमित शर्मा,3,अमित शुक्ल,1,अमिय बिन्दु,1,अमृता प्रीतम,1,अरविन्द कुमार खेड़े,5,अरूण देव,1,अरूण माहेश्वरी,1,अर्चना चतुर्वेदी,1,अर्चना वर्मा,2,अर्जुन सिंह नेगी,1,अविनाश त्रिपाठी,1,अशोक गौतम,3,अशोक जैन पोरवाल,14,अशोक शुक्ल,1,अश्विनी कुमार आलोक,1,आई बी अरोड़ा,1,आकांक्षा यादव,1,आचार्य बलवन्त,1,आचार्य शिवपूजन सहाय,1,आजादी,3,आत्मकथा,1,आदित्य प्रचंडिया,1,आनंद टहलरामाणी,1,आनन्द किरण,3,आर. के. नारायण,1,आरकॉम,1,आरती,1,आरिफा एविस,5,आलेख,4288,आलोक कुमार,3,आलोक कुमार सातपुते,1,आवश्यक सूचना!,1,आशीष कुमार त्रिवेदी,5,आशीष श्रीवास्तव,1,आशुतोष,1,आशुतोष शुक्ल,1,इंदु संचेतना,1,इन्दिरा वासवाणी,1,इन्द्रमणि उपाध्याय,1,इन्द्रेश कुमार,1,इलाहाबाद,2,ई-बुक,374,ईबुक,231,ईश्वरचन्द्र,1,उपन्यास,269,उपासना,1,उपासना बेहार,5,उमाशंकर सिंह परमार,1,उमेश चन्द्र सिरसवारी,2,उमेशचन्द्र सिरसवारी,1,उषा छाबड़ा,1,उषा रानी,1,ऋतुराज सिंह कौल,1,ऋषभचरण जैन,1,एम. एम. चन्द्रा,17,एस. एम. चन्द्रा,2,कथासरित्सागर,1,कर्ण,1,कला जगत,113,कलावंती सिंह,1,कल्पना कुलश्रेष्ठ,11,कवि,2,कविता,3239,कहानी,2360,कहानी संग्रह,247,काजल कुमार,7,कान्हा,1,कामिनी कामायनी,5,कार्टून,7,काशीनाथ सिंह,2,किताबी कोना,7,किरन सिंह,1,किशोरी लाल गोस्वामी,1,कुंवर प्रेमिल,1,कुबेर,7,कुमार करन मस्ताना,1,कुसुमलता सिंह,1,कृश्न चन्दर,6,कृष्ण,3,कृष्ण कुमार यादव,1,कृष्ण खटवाणी,1,कृष्ण जन्माष्टमी,5,के. पी. सक्सेना,1,केदारनाथ सिंह,1,कैलाश मंडलोई,3,कैलाश वानखेड़े,1,कैशलेस,1,कैस जौनपुरी,3,क़ैस जौनपुरी,1,कौशल किशोर श्रीवास्तव,1,खिमन मूलाणी,1,गंगा प्रसाद श्रीवास्तव,1,गंगाप्रसाद शर्मा गुणशेखर,1,ग़ज़लें,550,गजानंद प्रसाद देवांगन,2,गजेन्द्र नामदेव,1,गणि राजेन्द्र विजय,1,गणेश चतुर्थी,1,गणेश सिंह,4,गांधी जयंती,1,गिरधारी राम,4,गीत,3,गीता दुबे,1,गीता सिंह,1,गुंजन शर्मा,1,गुडविन मसीह,2,गुनो सामताणी,1,गुरदयाल सिंह,1,गोरख प्रभाकर काकडे,1,गोवर्धन यादव,1,गोविन्द वल्लभ पंत,1,गोविन्द सेन,5,चंद्रकला त्रिपाठी,1,चंद्रलेखा,1,चतुष्पदी,1,चन्द्रकिशोर जायसवाल,1,चन्द्रकुमार जैन,6,चाँद पत्रिका,1,चिकित्सा शिविर,1,चुटकुला,71,ज़कीया ज़ुबैरी,1,जगदीप सिंह दाँगी,1,जयचन्द प्रजापति कक्कूजी,2,जयश्री जाजू,4,जयश्री राय,1,जया जादवानी,1,जवाहरलाल कौल,1,जसबीर चावला,1,जावेद अनीस,8,जीवंत प्रसारण,141,जीवनी,1,जीशान हैदर जैदी,1,जुगलबंदी,5,जुनैद अंसारी,1,जैक लंडन,1,ज्ञान चतुर्वेदी,2,ज्योति अग्रवाल,1,टेकचंद,1,ठाकुर प्रसाद सिंह,1,तकनीक,32,तक्षक,1,तनूजा चौधरी,1,तरुण भटनागर,1,तरूण कु सोनी तन्वीर,1,ताराशंकर बंद्योपाध्याय,1,तीर्थ चांदवाणी,1,तुलसीराम,1,तेजेन्द्र शर्मा,2,तेवर,1,तेवरी,8,त्रिलोचन,8,दामोदर दत्त दीक्षित,1,दिनेश बैस,6,दिलबाग सिंह विर्क,1,दिलीप भाटिया,1,दिविक रमेश,1,दीपक आचार्य,48,दुर्गाष्टमी,1,देवी नागरानी,20,देवेन्द्र कुमार मिश्रा,2,देवेन्द्र पाठक महरूम,1,दोहे,1,धर्मेन्द्र निर्मल,2,धर्मेन्द्र राजमंगल,1,नइमत गुलची,1,नजीर नज़ीर अकबराबादी,1,नन्दलाल भारती,2,नरेंद्र शुक्ल,2,नरेन्द्र कुमार आर्य,1,नरेन्द्र कोहली,2,नरेन्‍द्रकुमार मेहता,9,नलिनी मिश्र,1,नवदुर्गा,1,नवरात्रि,1,नागार्जुन,1,नाटक,152,नामवर सिंह,1,निबंध,3,नियम,1,निर्मल गुप्ता,2,नीतू सुदीप्ति ‘नित्या’,1,नीरज खरे,1,नीलम महेंद्र,1,नीला प्रसाद,1,पंकज प्रखर,4,पंकज मित्र,2,पंकज शुक्ला,1,पंकज सुबीर,3,परसाई,1,परसाईं,1,परिहास,4,पल्लव,1,पल्लवी त्रिवेदी,2,पवन तिवारी,2,पाक कला,23,पाठकीय,62,पालगुम्मि पद्मराजू,1,पुनर्वसु जोशी,9,पूजा उपाध्याय,2,पोपटी हीरानंदाणी,1,पौराणिक,1,प्रज्ञा,1,प्रताप सहगल,1,प्रतिभा,1,प्रतिभा सक्सेना,1,प्रदीप कुमार,1,प्रदीप कुमार दाश दीपक,1,प्रदीप कुमार साह,11,प्रदोष मिश्र,1,प्रभात दुबे,1,प्रभु चौधरी,2,प्रमिला भारती,1,प्रमोद कुमार तिवारी,1,प्रमोद भार्गव,2,प्रमोद यादव,14,प्रवीण कुमार झा,1,प्रांजल धर,1,प्राची,367,प्रियंवद,2,प्रियदर्शन,1,प्रेम कहानी,1,प्रेम दिवस,2,प्रेम मंगल,1,फिक्र तौंसवी,1,फ्लेनरी ऑक्नर,1,बंग महिला,1,बंसी खूबचंदाणी,1,बकर पुराण,1,बजरंग बिहारी तिवारी,1,बरसाने लाल चतुर्वेदी,1,बलबीर दत्त,1,बलराज सिंह सिद्धू,1,बलूची,1,बसंत त्रिपाठी,2,बातचीत,2,बाल उपन्यास,6,बाल कथा,356,बाल कलम,26,बाल दिवस,4,बालकथा,80,बालकृष्ण भट्ट,1,बालगीत,20,बृज मोहन,2,बृजेन्द्र श्रीवास्तव उत्कर्ष,1,बेढब बनारसी,1,बैचलर्स किचन,1,बॉब डिलेन,1,भरत त्रिवेदी,1,भागवत रावत,1,भारत कालरा,1,भारत भूषण अग्रवाल,1,भारत यायावर,2,भावना राय,1,भावना शुक्ल,5,भीष्म साहनी,1,भूतनाथ,1,भूपेन्द्र कुमार दवे,1,मंजरी शुक्ला,2,मंजीत ठाकुर,1,मंजूर एहतेशाम,1,मंतव्य,1,मथुरा प्रसाद नवीन,1,मदन सोनी,1,मधु त्रिवेदी,2,मधु संधु,1,मधुर नज्मी,1,मधुरा प्रसाद नवीन,1,मधुरिमा प्रसाद,1,मधुरेश,1,मनीष कुमार सिंह,4,मनोज कुमार,6,मनोज कुमार झा,5,मनोज कुमार पांडेय,1,मनोज कुमार श्रीवास्तव,2,मनोज दास,1,ममता सिंह,2,मयंक चतुर्वेदी,1,महापर्व छठ,1,महाभारत,2,महावीर प्रसाद द्विवेदी,1,महाशिवरात्रि,1,महेंद्र भटनागर,3,महेन्द्र देवांगन माटी,1,महेश कटारे,1,महेश कुमार गोंड हीवेट,2,महेश सिंह,2,महेश हीवेट,1,मानसून,1,मार्कण्डेय,1,मिलन चौरसिया मिलन,1,मिलान कुन्देरा,1,मिशेल फूको,8,मिश्रीमल जैन तरंगित,1,मीनू पामर,2,मुकेश वर्मा,1,मुक्तिबोध,1,मुर्दहिया,1,मृदुला गर्ग,1,मेराज फैज़ाबादी,1,मैक्सिम गोर्की,1,मैथिली शरण गुप्त,1,मोतीलाल जोतवाणी,1,मोहन कल्पना,1,मोहन वर्मा,1,यशवंत कोठारी,8,यशोधरा विरोदय,2,यात्रा संस्मरण,31,योग,3,योग दिवस,3,योगासन,2,योगेन्द्र प्रताप मौर्य,1,योगेश अग्रवाल,2,रक्षा बंधन,1,रच,1,रचना समय,72,रजनीश कांत,2,रत्ना राय,1,रमेश उपाध्याय,1,रमेश राज,26,रमेशराज,8,रवि रतलामी,2,रवींद्र नाथ ठाकुर,1,रवीन्द्र अग्निहोत्री,4,रवीन्द्र नाथ त्यागी,1,रवीन्द्र संगीत,1,रवीन्द्र सहाय वर्मा,1,रसोई,1,रांगेय राघव,1,राकेश अचल,3,राकेश दुबे,1,राकेश बिहारी,1,राकेश भ्रमर,5,राकेश मिश्र,2,राजकुमार कुम्भज,1,राजन कुमार,2,राजशेखर चौबे,6,राजीव रंजन उपाध्याय,11,राजेन्द्र कुमार,1,राजेन्द्र विजय,1,राजेश कुमार,1,राजेश गोसाईं,2,राजेश जोशी,1,राधा कृष्ण,1,राधाकृष्ण,1,राधेश्याम द्विवेदी,5,राम कृष्ण खुराना,6,राम शिव मूर्ति यादव,1,रामचंद्र शुक्ल,1,रामचन्द्र शुक्ल,1,रामचरन गुप्त,5,रामवृक्ष सिंह,10,रावण,1,राहुल कुमार,1,राहुल सिंह,1,रिंकी मिश्रा,1,रिचर्ड फाइनमेन,1,रिलायंस इन्फोकाम,1,रीटा शहाणी,1,रेंसमवेयर,1,रेणु कुमारी,1,रेवती रमण शर्मा,1,रोहित रुसिया,1,लक्ष्मी यादव,6,लक्ष्मीकांत मुकुल,2,लक्ष्मीकांत वैष्णव,1,लखमी खिलाणी,1,लघु कथा,288,लघुकथा,1340,लघुकथा लेखन पुरस्कार आयोजन,241,लतीफ घोंघी,1,ललित ग,1,ललित गर्ग,13,ललित निबंध,20,ललित साहू जख्मी,1,ललिता भाटिया,2,लाल पुष्प,1,लावण्या दीपक शाह,1,लीलाधर मंडलोई,1,लू सुन,1,लूट,1,लोक,1,लोककथा,378,लोकतंत्र का दर्द,1,लोकमित्र,1,लोकेन्द्र सिंह,3,विकास कुमार,1,विजय केसरी,1,विजय शिंदे,1,विज्ञान कथा,79,विद्यानंद कुमार,1,विनय भारत,1,विनीत कुमार,2,विनीता शुक्ला,3,विनोद कुमार दवे,4,विनोद तिवारी,1,विनोद मल्ल,1,विभा खरे,1,विमल चन्द्राकर,1,विमल सिंह,1,विरल पटेल,1,विविध,1,विविधा,1,विवेक प्रियदर्शी,1,विवेक रंजन श्रीवास्तव,5,विवेक सक्सेना,1,विवेकानंद,1,विवेकानन्द,1,विश्वंभर नाथ शर्मा कौशिक,2,विश्वनाथ प्रसाद तिवारी,1,विष्णु नागर,1,विष्णु प्रभाकर,1,वीणा भाटिया,15,वीरेन्द्र सरल,10,वेणीशंकर पटेल ब्रज,1,वेलेंटाइन,3,वेलेंटाइन डे,2,वैभव सिंह,1,व्यंग्य,2075,व्यंग्य के बहाने,2,व्यंग्य जुगलबंदी,17,व्यथित हृदय,2,शंकर पाटील,1,शगुन अग्रवाल,1,शबनम शर्मा,7,शब्द संधान,17,शम्भूनाथ,1,शरद कोकास,2,शशांक मिश्र भारती,8,शशिकांत सिंह,12,शहीद भगतसिंह,1,शामिख़ फ़राज़,1,शारदा नरेन्द्र मेहता,1,शालिनी तिवारी,8,शालिनी मुखरैया,6,शिक्षक दिवस,6,शिवकुमार कश्यप,1,शिवप्रसाद कमल,1,शिवरात्रि,1,शिवेन्‍द्र प्रताप त्रिपाठी,1,शीला नरेन्द्र त्रिवेदी,1,शुभम श्री,1,शुभ्रता मिश्रा,1,शेखर मलिक,1,शेषनाथ प्रसाद,1,शैलेन्द्र सरस्वती,3,शैलेश त्रिपाठी,2,शौचालय,1,श्याम गुप्त,3,श्याम सखा श्याम,1,श्याम सुशील,2,श्रीनाथ सिंह,6,श्रीमती तारा सिंह,2,श्रीमद्भगवद्गीता,1,श्रृंगी,1,श्वेता अरोड़ा,1,संजय दुबे,4,संजय सक्सेना,1,संजीव,1,संजीव ठाकुर,2,संद मदर टेरेसा,1,संदीप तोमर,1,संपादकीय,3,संस्मरण,730,संस्मरण लेखन पुरस्कार 2018,128,सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन,1,सतीश कुमार त्रिपाठी,2,सपना महेश,1,सपना मांगलिक,1,समीक्षा,847,सरिता पन्थी,1,सविता मिश्रा,1,साइबर अपराध,1,साइबर क्राइम,1,साक्षात्कार,21,सागर यादव जख्मी,1,सार्थक देवांगन,2,सालिम मियाँ,1,साहित्य समाचार,98,साहित्यम्,6,साहित्यिक गतिविधियाँ,216,साहित्यिक बगिया,1,सिंहासन बत्तीसी,1,सिद्धार्थ जगन्नाथ जोशी,1,सी.बी.श्रीवास्तव विदग्ध,1,सीताराम गुप्ता,1,सीताराम साहू,1,सीमा असीम सक्सेना,1,सीमा शाहजी,1,सुगन आहूजा,1,सुचिंता कुमारी,1,सुधा गुप्ता अमृता,1,सुधा गोयल नवीन,1,सुधेंदु पटेल,1,सुनीता काम्बोज,1,सुनील जाधव,1,सुभाष चंदर,1,सुभाष चन्द्र कुशवाहा,1,सुभाष नीरव,1,सुभाष लखोटिया,1,सुमन,1,सुमन गौड़,1,सुरभि बेहेरा,1,सुरेन्द्र चौधरी,1,सुरेन्द्र वर्मा,62,सुरेश चन्द्र,1,सुरेश चन्द्र दास,1,सुविचार,1,सुशांत सुप्रिय,4,सुशील कुमार शर्मा,24,सुशील यादव,6,सुशील शर्मा,16,सुषमा गुप्ता,20,सुषमा श्रीवास्तव,2,सूरज प्रकाश,1,सूर्य बाला,1,सूर्यकांत मिश्रा,14,सूर्यकुमार पांडेय,2,सेल्फी,1,सौमित्र,1,सौरभ मालवीय,4,स्नेहमयी चौधरी,1,स्वच्छ भारत,1,स्वतंत्रता दिवस,3,स्वराज सेनानी,1,हबीब तनवीर,1,हरि भटनागर,6,हरि हिमथाणी,1,हरिकांत जेठवाणी,1,हरिवंश राय बच्चन,1,हरिशंकर गजानंद प्रसाद देवांगन,4,हरिशंकर परसाई,23,हरीश कुमार,1,हरीश गोयल,1,हरीश नवल,1,हरीश भादानी,1,हरीश सम्यक,2,हरे प्रकाश उपाध्याय,1,हाइकु,5,हाइगा,1,हास-परिहास,38,हास्य,59,हास्य-व्यंग्य,78,हिंदी दिवस विशेष,9,हुस्न तबस्सुम 'निहाँ',1,biography,1,dohe,3,hindi divas,6,hindi sahitya,1,indian art,1,kavita,3,review,1,satire,1,shatak,3,tevari,3,undefined,1,
ltr
item
रचनाकार: महाभारत - आदि पर्व - 3
महाभारत - आदि पर्व - 3
https://lh3.googleusercontent.com/-hOLdWnghSeg/Vyh6AVtr23I/AAAAAAAAtYM/eDIFacPgb-E/image_thumb.png?imgmax=800
https://lh3.googleusercontent.com/-hOLdWnghSeg/Vyh6AVtr23I/AAAAAAAAtYM/eDIFacPgb-E/s72-c/image_thumb.png?imgmax=800
रचनाकार
https://www.rachanakar.org/2016/05/3-sampoorna-samagra-mahabharat-in-hindi.html
https://www.rachanakar.org/
https://www.rachanakar.org/
https://www.rachanakar.org/2016/05/3-sampoorna-samagra-mahabharat-in-hindi.html
true
15182217
UTF-8
Loaded All Posts Not found any posts VIEW ALL Readmore Reply Cancel reply Delete By Home PAGES POSTS View All RECOMMENDED FOR YOU LABEL ARCHIVE SEARCH ALL POSTS Not found any post match with your request Back Home Sunday Monday Tuesday Wednesday Thursday Friday Saturday Sun Mon Tue Wed Thu Fri Sat January February March April May June July August September October November December Jan Feb Mar Apr May Jun Jul Aug Sep Oct Nov Dec just now 1 minute ago $$1$$ minutes ago 1 hour ago $$1$$ hours ago Yesterday $$1$$ days ago $$1$$ weeks ago more than 5 weeks ago Followers Follow THIS PREMIUM CONTENT IS LOCKED STEP 1: Share to a social network STEP 2: Click the link on your social network Copy All Code Select All Code All codes were copied to your clipboard Can not copy the codes / texts, please press [CTRL]+[C] (or CMD+C with Mac) to copy Table of Content