गवाही / कहानी / मंजरी शुक्ल

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सिर्फ एहसासों को ही रजनीगंधा की सफ़ेद सूखी पंखुरियों की तरह समेटकर सहेजने से क्या होगा --तनु झल्लाते हुए बोली हाँ, पर देखी हैं तूने मेरी मां...

सिर्फ एहसासों को ही रजनीगंधा की सफ़ेद सूखी पंखुरियों की तरह समेटकर सहेजने से क्या होगा --तनु झल्लाते हुए बोली

हाँ, पर देखी हैं तूने मेरी मांग में ये चाँदी की पतली जलधाराएं जिन्होंने मेरे लाल सिन्दूर को लहराते हुए अपने वेग में समेट कर मुझे हमेशा के लिए भंवर में डाल दिया I

तनु ने कुछ आहत होते हुए दरवाज़े के बाहर देखा जहाँ पर एक चिड़िया बेचैनी से एक डाल से दूसरी डाल पर फुदक रही थी I पूरा पेड़ लाल फूलों से लदा था और चिड़िया का उस वक़्त वहाँ पर एकछत्र साम्राज्य था , पर चिड़िया को ना ये बात समझ में आ रही थी और ना ही वो प्रकृति द्वारा फैलाये गए इस अनुपम सुख की अनुभूति कर पा रही थी I

तनु ने इशारे से वृंदा को खिड़की के पास बुलाया और हीरे की चमचमाती हुई अंगूठी वाली नाज़ुक ऊँगली उस नन्ही चिड़िया की ओर इंगित कर दी I

वृंदा पल भर में ही समझ गई कि तनु क्या कहना चाहती हैं I

उसने अपनी पलकें झुका ली और फिर से आकर अपनी आराम कुर्सी पर बैठ गई जो उसके नाना ने उसके सत्रहवें जन्मदिन पर गिफ्ट के रूप में दी थी I

इतनी बेचैनी..लेकर कहाँ जाऊँ रे तनु..कहते हुए वृंदा की आँखों की कोरों से आँसू बह निकले

तू सच्चाई को क्यों नहीं स्वीकार कर लेती.....तनु ने अपनी सूती हरी साड़ी से वृंदा के आँसू पोंछते हुए कहा

पर मैंने सच में उनका खून नहीं किया हैं..भला मैं आलोक को क्यों मारूंगी..तू तो जानती ही हैं,जबसे हमारी शादी हुई है..मेरी तो दुनिया ही आलोक थे....."

हाँ,,पर उनकी दुनिया वो मधु, तनु ने थोड़ा तेज ,पर नफ़रत भरी आवाज़ में बोला

"हाँ..तेरे ही मुंह से सुना हैं बस उसका नाम..मैंने तो आज तक देखा भी नहीं हैं I " वृंदा हताश स्वर में बोली

" थी तो वो परकटी.....पता नहीं क्या देखा आलोक ने उसमें ...." तनु अपनी ही रौ में कहे जा रही थी I "उनकी दुनिया ही उसमें बसती थी शायद ... पर तू ईश्वर के लिए मेरे सामने उस औरत का नाम भी मत ले,वरना मैं तुझे ही वो सामने वाला पीतल का फूलदान खींचकर मार दूंगी I " वृंदा ने गुस्से से ओंठ भींचते हुए कहा

तनु का गोरा चेहरा गुस्से से तमतमा गया और वो ठंडी फर्श की परवाह किये बगैर ही वृंदा के पैरों के पास बैठ गई और उसके चेहरे की तरफ़ गौर से देखते हुए गुस्से से बोली -" तुम्हारी इन्हीं बेवकूफ़ियों और मूर्खता के चलते कोई तुम्हें निर्दोष नहीं मान रहा I"

अरे ,उस दिन कोर्ट में जरा सा वकील ने कह क्या दिया कि आलोक तुमसे ज्यादा किसी दूसरी औरत को प्यार करता था तो तुमने अपनी नुकीली हील्स वाली सैंडिल खींचकर उसके सर पर मार दी ..वो भी एक नहीं दोनों..कहते हुए अचानक ही तनु को हंसी आ गई I

पर वृंदा के सूने चेहरे को देखकर उसने गहरी साँस ली और बात बदलते हुए बोली-" वो तो तेरे सितारे अच्छे हैं कि जज मेरे चाचाजी हैं..नहीं तो तुम अभी जेल के अंदर बैठकर अपना सर पटक रही होती I "

"मैं क्या करूं तनु, मैं क्या करूं..मेरी हर साँस में आलोक बसे हैं..मैंने पता हैं कितनी बार गीता-सार पढ़ा..ताकि मेरे मन को कुछ शान्ति मिले I "

हाँ, पता हैं, और ये भी पता हैं कि तेईस बार गीता सार का पन्ना फाड़ने के बाद ये चौबीसवाँ हैं, जो इस समय तेरी गुलाबी दीवार की शोभा बढ़ा रहा हैं I "

वृंदा ने सर झुका लिया और कहा -"मैं मानती हूँ कि मेरा गुस्सा बहुत तेज हैं ..पर इसका मतलब ये कतई नहीं हैं कि मैंने आलोक का खून कर दिया I

अच्छा..तू मुझे बता..कि उस रात हुआ क्या था..तनु ने चाय की चुस्की लेते हुए पूछा

वृंदा का सुन्दर चेहरा ये प्रश्न सुनकर जैसे कुम्हला गया और वो अपने साड़ी के पल्लू के छोर को घुमाते हुए बोली-" रोज की तरह मैंने और आलोक ने रात का खाना आठ बजे तक खत्म किया I उसके बाद हम दोनों ने आइसक्रीम खाई और जाकर अपने कमरे में सो गए I

मेरे गले में हरारत थी , तो शायद जो दवा डॉक्टर ने मुझे दी थी उसमें नींद के असर के कारण मैं जैसे बेहोशी में पहुँच गई और बिस्तर पर लेटते ही सो गई I सुबह दरवाजे पर भड़-भड़ की आवाज़ के साथ ही मेरी आँख खुली तो मैंने देखा कि आलोक सो रहे थे I

जब मैंने घड़ी की ओर नज़र डाली तो सुबह के नौ बज रहे थे I

मुझे बड़ा आश्चर्य हुआ क्योंकि आलोक तो रोज सुबह पांच बजे उठते है फिर आज ..खैर मैंने ज्यादा ना सोचते हुए दरवाजा खोला तो सामने हमारी नौकरानी कमला खड़ी थी I

पर वो तेरे बेडरूम तक आई कैसे..तनु ने किसी जासूसी उपन्यास की कड़िया जोड़ते हुए पूछा

" एक चाभी उसके पास भी रहती हैं ना...". वृंदा ने सीधा सा जवाब दिया ...

" अच्छा..फिर क्या हुआ.." तनु ने उत्सुकता से पूछा

अरे , फिर क्या..जब मैंने आलोक को जगाना शुरू किया तो वे जगे ही नहीं..फिर तुरंत मैंने उनके मुँह पर पानी के छीटें मारने शुरू किए I

जब इस पर भी वे नहीं उठे तो मैंने बदहवासी में लोटे का सारा पानी उनके चेहरे पर उड़ेल दिया , पर फिर भी वे हिले तक नहीं I फिर मैंने जोर-जोर से चीखना शुरू किया जिसे सुनकर कमला बदहवास सी दौड़ती हुई कमरे में आई और जोर-जोर से रोने लगी

मैंने डरते हुए पूछा -" क्या हुआ..तुम इतना रो क्यों रही हो ?"

"साहब..क्या साहब मर गए ?, मेमसाहब ......कहते हुए कमला बुक्का फाड़कर रोते हुए बोली I

" कमला की बात सुनकर मेरे हाथ पैर जैसे डर के मारे काँपने लगे I मैं आलोक को जोर-जोर से पकड़ कर हिलाने लगी और अपना सर पलंग पर ही मारने लगी I

तभी कमला मेरा हाथ पकड़ते हुए बोली - "मैडम, हम दोनों पड़ोसियों को बुलाकर लाते हैं....

मैं तो जैसे चेतनाशून्य हो चुकी थी I मुझे कुछ भी समझ नहीं आ रहा था I कमला मुझे लगभग घसीटते हुए वहाँ से ले गई I

वृंदा आँखें पोंछते हुए बोली - "iमैं तुमसे सच कहती हूँ तनु, जब हम पड़ोसियों को लेकर आये तो वहाँ पर आलोक थे ही नहीं

तनु ने यह सुनकर आश्चर्य से वृंदा की ओर देखा और आँखें बंद कर ली I

उसने रूंधे गले से कहा-" पर कोई इस बात को नहीं मान रहा हैं I और तो और , सब ये सोच रहे हैं कि तुमने आलोक की लाश को ठिकाने लगा दिया I "

अब मैं जेल भी चली जाऊं , तो मुझे गम नहीं..पर आलोक की लाश का क्या हुआ..ये तो मुझे जानना ही हैं....वृंदा अपने आँसू पोंछते हुए और सूजी आखों को रगड़ते हुए बोली I

खैर वृंदा ने आलोक को ढूंढने में जमीन आसमान एक कर दिया...दोस्तों से लेकर रिश्तेदारों तक में एक भी घर नहीं छोड़ा उसने I उधर पुलिस उस पर तरह तरह के इलज़ाम लगाती और उनमें से कई सिपाहियों के लिए तो वह उनकी जेब गरम करने का सबसे आसान तरीका हो गई थी I

एक एक करके वृंदा के सारे जेवर बिक गए, घर बिक गया यहाँ तक कि अब वो एक छोटे से कमरे में रहने को मजबूर हो गई थी I

उसे अब गीता सार पर पूरा भरोसा हो गया था और अब वो उसे पढ़कर गुस्से में फाड़ती नहीं थी बल्कि मुहँ में पल्लू दबाकर फूट फूट रोती रहती थी I

उसकी सुंदरता और जवानी ने कई सिपाहियों को उसके जब तब घर आने का परमिट दे रखा था I उधर से आते-जाते सौ पचास के लालच में उससे पूछते-" क्यों खून तुम्हीं ने किया हैं ना ?"

और जब वो घबराकर मना करते हुए उनके पैरों में गिरती पड़ती तब वे उससे पैसे वसूल करते I

जो भी जमीन जायदाद थी सब आलोक की थी , उसके पास तो कुछ था नहीं जो उन्हें मिलता I इसलिए उसकी खस्ता हालत देखकर रहे सहे पुलिस वालों ने भी उससे किनारा कर लिया I सब समझ गए थे कि अब उसके पास से फूटी कौड़ी भी नहीं मिलनी I वृंदा ने भी जान लिया था कि उसे अब इसी तरह घिसटते हुए जीवन जीना हैं I पर कहते हैं ना कि इंसान कुछ सोचता हैं और ईश्वर उसके ठीक विपरीत सोचता हैं I तो एक दिन वृंदा जब अपनी टूटी चप्पल मोची के यहाँ ठीक करा रही थी , तो उसकी नज़र एक आलीशान बंगले से निकलते हुए आलोक पर पड़ी I

उसने अपनी आँखों को कई बार मसला और उसके चेहरे पर नज़रें जमा दी ....पर वो आलोक ही था, जो शायद किसी मेहमान को छोड़ने दरवाजे तक आया था I

वो उसकी तरफ पागलों की तरफ अपनी बदनसीबी का हाल बताने के लिए दौड़ी ,पर तभी उसके अंदर से कोई बोला-" कितनी मूर्ख हैं तू, उसने तेरी तमाम जमीन जायदाद अपने नाम इसी लिए तो अपने नाम कराई थी ताकि तुझे छोड़कर वो तेरे पैसों पर ऐश कर सके और इसलिए तेरे ऊपर अपने खून का इलज़ाम देकर वो गायब हो गया I "

ये सोचते ही उसके पैर वही जड़ हो गए और वो दबे पाँव आलोक के पीछे-पीछे बंगले में दाखिल हो गई I

अंदर का दृश्य देखते ही उसके क़दमों से जैसे ज़मीन निकल गई I उसकी दोस्त तनु, जिसने उसे अपनी सगी बहन से भी बढ़कर माना था, मेज पर बैठकर आलोक के साथ चाय पी रही थी I

उसकी आँखों से गुस्से के मारे चिंगारियां निकलने लगी I उसने सोचा अभी जाकर वो उसे हज़ारों गालियां देगी और उससे पूछेगी कि उसके साथ इतना बड़ा विश्वासघात भला उसने क्यों किया ?

पर फिर वो रूक गई I क्यों किया ...किसलिए किया..क्या आलोक के कहने पर किया...नहीं नहीं..उसकी महीनों की यंत्रणा ,बेबसी और उसे राह चलती भिखारिन बनाने के लिए क्या सिर्फ कुछ शब्द ही काफी थे ...नहीं..कभी नहीं I

वृंदा धीमे से बुदबुदाई -" ये सारा ऐशो आराम मेरा हैं ..और मैं इसे लेकर ही रहूंगी I "

वो तनु के बाहर जाने का रास्ता देखने लगी और करीब पंद्रह मिनट बाद तनु आलोक से गले लिपटती हुई वहाँ से अपनी लाल गाड़ी में बैठकर चल दी I

वृंदा खिड़की से कूदकर अंदर पहुंची और आलोक के सामने खड़ी हो गई I

वृंदा पर नज़र पड़ते ही आलोक के हाथ में चाय का कप जोर जोर से कांपने लगा I बहुत तेजी से पकड़ने के बाद भी कप उसकी गिरफ्त से छूटकर जमीन पर गिर पड़ा और चारों ओर कांच के टुकड़े बिखर गए I

वृंदा ने नफरत के मारे उसके मुंह पे थूक दिया और बोली-" डरो मत...भूत मैं नहीं तुम हो ..क्योंकि दुनियाँ की नज़रों में मरे हुए तो तुम हो ना ....I"

आलोक पक्का घाघ था वो समझ गया कि एक भी शब्द बोलना वृंदा का गुस्सा सातवें आसमान पर ले जाएगा और इसलिए वो हाथ जोड़ते हुए बोला-" मैं करूँगा मेरे पापों का प्रायश्चित...बताओ क्या करूं ?तुम जो कहो मैं करूँगा I..."

सामने दीवार पर लगी बन्दूक को देखकर वृंदा को लग रहा था कि वो इसी समय आलोक को गोली मार दे ..क्योंकि इसके अलावा उसका कोई प्रायश्चित हो ही नहीं सकता था ..."

पर दिन रात गीता सार को कंठस्थ करने वाली भला किसी की हत्या कैसे कर सकती थी I

वो कुछ बोले इससे पहले ही आलोक ने हमेशा की तरह धन दौलत को अपना मोहरा बनाया और बोला-" ये लो..मेरे सारे जमीन जायदाद के कागज़..सब तुम्हारे ही हैं ना ..रख लो...मैं सब कुछ तुम्हारे नाम कर दूंगा I"

वृंदा ने पेपर पकड़ते हुए नफ़रत भरी आवाज़ में हुए कहा-" थाने चलकर बताओ कि तुम जिन्दा हो I "

हाँ..हाँ..क्यों नहीं अभी चलते हैं..कहता हुआ आलोक नंगे पैर ही उसके साथ थाने की ओर चल पड़ा I

पुलिस चौकी पर पहुँचते ही आलोक ने अपना पैंतरा बदल लिया और बोला-" मैं सबको बताऊंगा कि तूने मुझे रात के खाने में जहर दिया था ओर सुबह तेरे यार के साथ मिलकर मुझे सूने इलाके में फ़ेंक दिया था और ...और फिर तूने ...पर इसके आगे वो कुछ बोलता कि सामने से आ रही तेज रफ़्तार मोटरसाईकिल से उसकी टक्कर हो गई और उसका सर सामने लगे बिजली के खम्बे से जा टकराया I पल भर में ही उसके सर से खून का फ़व्वारा फूट पड़ा और उसने वृंदा की ओर देखते हुए उसी पल दम तोड़ दिया....पर इस बार वृंदा खुश थी बहुत खुश..क्योंकि अब उसे कही कोई गवाही नहीं देनी पड़ेगी..क्योंकि वहाँ पर तो सारे गवाह भी पुलिस थे और टक्कर मारने वाला भी वर्दीधारी इंस्पेक्टर........

 

डॉ. मंजरी शुक्ल

४०१, तुलसियानी स्क्वायर

गर्ल्स हाई स्कूल के पास

विपरीत भगवती अपार्टमेंट

क्लाइव रोड

सिविल लाइन्स

इलाहाबाद

उ.प्र.

२११००१

९६१६७९७१३८

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रचनाकार: गवाही / कहानी / मंजरी शुक्ल
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