कहानी / गैप / कैलाश वानखेड़े / रचना समय जन.फर. 2016 - कहानी विशेषांक 1-7

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कैलाश वानखेड़े गैप आँख खुली तो घर की दरो दीवार घने अंधकार से कसकर लिपटी हुई थी। जीरो वाट का बल्ब फ्यूज होकर कई दिनों से बेरोशन होल्डर में...

कैलाश वानखेड़े

गैप

आँख खुली तो घर की दरो दीवार घने अंधकार से कसकर लिपटी हुई थी। जीरो वाट का बल्ब फ्यूज होकर कई दिनों से बेरोशन होल्डर में लटका हुआ था, उसी जगह नजर गई राहुल की लेकिन कुछ भी दिख नहीं रहा था। हर बार घर लौटते वक्त राहुल के दिमाग में जीरो बल्ब खरीदने की बात तेज गति से चक्राकार घूमती रहती थी, जिसने अपनी आँखों को ऐसी दूकान की तलाश में लगा दिया था,जहाँ जीरो वाट का बल्ब बेचा जाता हो। आँखें खोजी कुत्ते में बदल गईं लेकिन तेज रोशनी में कुछ नहीं दिखता। बीच बाजार में ठिठक जाता था। वहां न होने के बावजूद वैसे ही दिखते है बीवी बच्चे के चेहरे जैसे अभी बल्ब जो जुड़ा हुआ होगा होल्डर से। बाजार में उम्मीद,डिमांड और घरेलू जरूरतों से भरी हुई राहुल की आँखों में अँधेरा सा छा जाता था। बीवी ने कई बार जीरो बल्ब का कहा था। जगमगाती दूकानों के बीच उस दूकान की तलाश यात्रा की याद के साथ फर्श पर पैर रखे। ठंडा है फर्श। ठंडा लगा कमरा जबकि महीने भर से चली आ रही कड़ाके की ठंड के तेवर ढीले पड़ गये थे। कल तो धूप चमड़ी जला देने के लिए बावली हो गई थी और आज रात अचानक इतनी ठंड? ठंड,हवा का हवाला देकर दनदनाती हुई घुस आती है, घरों में। कोई कितना भी कर ले जतन, न खड़ी रहती है न ही रुकती वह घर से बाहर, बंद दरवाजे पर्र। यह जो बेडरूम है,उसे हवा ने ठंडा कर दिया है। सर्दी, खांसी, बुखार के नाम से डरा दिया। हवा की इस खासियत से राहुल को सोहन की याद आई और न जाने क्या-क्या याद आने लगा। तभी राहुल ने अपनी नाक में से पानी टपकना महसूस किया। राहुल की नाक हकीकत में बहने लगी। गले में कुछ अटक सा गया है। नाक साफ करते हुए अचानक डाक्टर की याद आ गई। डाक्टर के नाम से डाक्टर सोढ़ी की शक्ल अँधेरे में सामने आ गई। और वे बातें जो पुरानी थीं, वो याद आने लगीं।

जब परिहार की छत पर वे बैठे हुए थे, तब डाक्टर सोढ़ी कह रहे थे आठ दस दिन में ठीक होने वाली खांसी अब लगभग महीना भर ले रही है। वायरस ने अपना रूप बदल दिया है। वायरस समय के साथ अपने आपको ढाल लेता है, वो मजबूत हो जाता है। मौका मिलते ही अचानक अटैक करता है। हमला...वायरस को खत्म करना मुश्किल है। जब तक वह खुद को मार न ले या एंटी वायरस बन न जाए तब तक जिन्दा रहता है। सच तो यह है कि इलाज करने वाले को पता ही नहीं होता है कि वह किस वायरस का इलाज कर रहा है। सर्दी, खांसी सहित सैकड़ों बीमारियाँ ऐसी हैं जिनका उपचार हम जानते ही नहीं लेकिन दावा करते हैं कि हम इलाज कर देंगे। दवा खानेवाले को लगता है उसका रोग डाक्टर ने पकड़ लिया है और उसी रोग का इलाज किया जा रहा है लेकिन जाननेवाला नहीं जानता है कि डाक्टर तो बेसकली सिमटोमेटीक इलाज करता है। मरीज हमारे इलाज से ठीक नहीं होता है... वो तो अगर हमारा अनुमान निशाने पर बैठ जाए तो चंगा होता है। बताते बताते हँसना चाह रहे थे डाक्टर सोढ़ी तभी उन्हें कांटे जैसा महसूस हुआ था जबान पर। उस वक्त वे प्लेट में रखी हुई तली मछली में से कांटे निकाल रहे थे। तब तक दो पैग हो चुके थे। इसका मतलब यह था कि भोजन कार्यक्रम में अभी वक्त लगेगा बल्कि बहुत वक्त लगेगा।

राहुल, जिसका नाम और हैसियत परिहार और सोहन के अलावा जो बैठे थे, उन्हें मालूम नहीं थी। राहुल ने उन बातों के बीच में कहा था, ‘कई तो सोचते हैं वे ही हैं वायरस मुक्त हैं। दूसरों में ढूंढते रहते हंै वायरस...ढेर सारे वायरस हैं हमारे भीतर..हवा, पानी, खाने के साथ ..किताब, टीवी, नेट...कुछ जन्मजात तो भोत सारे घर परिवार से ही मिलते है। चारों तरफ से आते हैं वायरस और हमारे भीतर अपना आलीशान महल बना लेते हैं। इसका पता ही नहीं चलता...उसका इलाज कोई डाक्टर नहीं कर सकता..क्यों डाक साब?’ डॉक्टर सोढ़ी खाते हुए सिर्फ यह समझ पाए थे कि वायरस शब्द आया है इसलिए बोले थे, ‘बहुत डेंजर होते हैं वायरस..दो घूंट हर बार जरूरी है...ले लो यार दो घूंट ...वायरस के द एंड के लिए। ‘वे हँसे और बाकी सब तटस्थ हो गए थे,जैसे राहुल ने कुछ बोला ही नहीं हो। उस वक्त परिहार और सोहन को लगा था, राहुल अपनी टांग अड़ा रहा है। उनको राहुल का बोलना खटका। बोलने के लिए परिहार र्है। किसी और को कूदना नहीं चाहिए और वैसे भी सीधे आमंत्रित नहीं था, राहुल। इस बात को राहुल भी जानता था, इसलिए न पी रहा था न खा रहा था। लेकिन चुप रहा नहीं गया था राहुल से।

हलकी रौशनी और तेज शोर के बीच स्कूल के तीसरे माले की छत पर सर्दी का मौसम शुरू ही हुआ था। प्लेटें सजी हुई थीं। फिश, कलेजी, नमकीन, सलाद, ड्राय फ्रूट और न जाने क्या क्या रखा गया था। प्लेट में जो सजाया और परोसा जा सकता है, वो सारा रख दिया। सबकी पसंद और विकल्प रख दिए गए थे। विकल्पों को दरकिनार कर पेट में कलेजी लगातार जा रही थी। धनिया का हल्का सा स्वाद और हरी मिर्ची के पेस्ट से बनी हुई कलेजी अच्छी लग रही थी। सब खाते हुए दूसरे को सुनना नहीं चाहते थे। तभी सिंग ने कहा था, ‘इतने पीस खाने के बाद भी खाने को जी ललचा रहा है वरना कलेजी के दो पीस नहीं खा सकते। इसकी प्रिपरेशन कैसी की?ज् सिंग अफसर थे। उनका लहजा भी सिर चढक़र बोल रहा था।

‘हम क्या जाने साब। वह तो बस हमारी घर मालकिन ही जाने। अपने को तो बस खाने, मजे लेने का मतलब रहता है।ज् बोलते हुए आयोजक स्कूल मालिक परिहार हँसे लेकिन उनकी बिना जवाबवाली हँसी सिंग को अच्छी नहीं लगी। वह अपने सवाल का सीधा जवाब चाहता है। घुमाफिराकर इधर उधर की बात उस वक्त तो बिलकुल पसंद नहीं होती है, जब वे इस अवस्था में या गुस्से में हों। डॉ सोढ़ी का ध्यान सिंग की तरफ नहीं था। डाक्टर सोढ़ी कलेजी के ऊपर उबले हुए अंडे के टुकड़ों में से पीली जर्दी हटाने में लगे हुए थे। अंडे की पीली जर्दी कोलेस्ट्रोल बढ़ाती है, वे बुदबुदाए। कोलेस्ट्रोल के बारे में सोचते सोचते चुप हो गए थे। अब उनकी निगाह कांटे पर ही थी। फ्राय फिश में अब कांटे का ही डर था। वे डर के साथ खा रहे थे। खाना बंद नहीं किया। रौशनी खाने वाले का साथ नहीं दे रही थी। पीने की मात्रा भी बढ़ गई थी। सिग्नेचर का दबाव था कि कांटे ढूंढे वरना काँटा चुभ जायेगा। सोहन सुन रहा था। खा रहा था। पी रहा था। उसने बड़ों के बीच मौन को सर्वोत्तम माना था। सोहन लक्ष्य को हासिल करने के लिए अपने मन और इन्द्रियों को इधर उधर सहभागी बनने की इजाजत नहीं देता है। टारगेट, अभी सिर्फ खाना है,पीना है। बोलना मना कर रखा है, खुद को।

कलेजी $खत्म कर फ्राय फिश में से कांटे निकालते हुए अपने गुस्से को तलते हुए सिंग बोले, ‘‘मेरा कहने का मतलब था, धर्म भ्रष्ट करनेवाला तो नहीं पका रहा है.’’चुप हुए. फिश की गरदन वाला हिस्सा था,जिसमे खाने के लिए उतना नहीं था, उसमें से मांस निकालते हुए फिर बोले सिंग, ‘सड़ी सी बात तुम नहीं समझे.. दिमाग सही जगह रखो ठाकुर..’

‘नरक जाना है क्या सिंग साब...राजपूत के गरीबखाने में अपनी ही घरवाली बना रही है...आप भी पता नहीं क्या सोच लेते हो,सिंग साब ..आप तो पहले एक पैग रम लो।’

‘गरीबखाने में हरम हो, तो रम लूँ।’ सिंग की हँसी नहीं अट्टहास था। दूसरी भूख की तृप्ति के लिए भेडिय़ा मानसिक रूप से तैयार हो चुका था। स्कूल की छत पर हेलोजन को सिंग साहब के कहने से हटाया गया था। दूधयाई रोशनी बहुत भारी लगने लगी तो पीली रौशनी वाले बल्ब लगवाये गए। इसी कारण रोशनी कम थी। स्कूल का अपना कोई कैम्पस नहीं है। कालोनी की गली ही स्कूल कैम्पस था। कागजों में स्कूल की प्रिंसिपल मिसेस परिहार है। परिहार के स्कूल की मान्यता अभी लंबित है और सिंग साहब उस महकमे के बड़े अफसर हैं। बड़े अफसरों को बुलाने खिलाने का काम परिहार हर चार छ महीने में करते हैं। गाडिय़ां अपने घर के सामने खड़ी करवाना और सरकारी गाडिय़ों से गली को भरवाने का काम वे करते रहते हैं ताकि गली मोहल्ले वालों के दिमाग में भरा रहे कि परिहार की पहुँच कहाँ तक है।

स्कूल के वार्षिक स्नेह सम्मेलन में सिंग को मुख्य अतिथि बनाने का गणित परिहार के साथ सबको पता था लेकिन परिहार इसे अबूझ पहेली मानने लगे थे। वह पहेली भी नहीं थी। एक आसान सीधा सीधा जोड़ गुणा की बात थी। गली में स्नेह सम्मेलन के टेंट में दीप जलाने, हार पहनने और भाषण देने के बाद ये सब अतिथि छत पर आ गए थे। नीचे तेज आवाज में, ‘चिकनी चमेली...ज् गाने को कोली डांस कहकर बजाया नचाया जा रहा था। इस गाने पर कैटरिना कैफ का मादक डांस शराब के किसी अड्डे पर फिल्माया गया था और यहाँ की छत पर मुख्य अतिथि,विशिष्ट अतिथि का अपना माहौल बन चुका था।

परिहार ने मिडिल स्कूल चलाते हुए सीधे हायर सेकेण्ड्री के लिए बिल्डिंग बनाने का काम शुरू कर दिया था। उन्हें तेजी से बढ़ते लोग ही पसंद है। सोहन भी तेजी से आगे बढऩेवाला आदमी है। जो सेल्स मेन से सीधे बॉस बन गया था। परिहार ने अपनी तेजी दिखाने और तेज बढऩे वालों से सम्बन्ध बनाए रखने की रणनीति के तहत सोहन को भी बुलाया था। वही सोहन को लगा था अपने साथ कोई बात करनेवाला होना चाहिए सो राहुल को ले आया था।

सोहन और राहुल को आयुर्वेद की दवाओं की मार्केटिंग में अपना भविष्य दिखा था। चार साल पहले सोहन और राहुल ने एक साथ काम शुरू किया था एक ही जगह, पंडित जी के आयुर्वेद भंडार पर। पंडित ने कम्पनी की बजाय भंडार शब्द चुना था। उनका काम बतौर कम्पनी ही चला करता था लेकिन वे कम्पनी शब्द से घृणा करते हैं। कंपनी को गुलामी की निशानी मानने से कम्पनी शब्द को अपनी कंपनी से दूर रखा था।

छत पर खामोशी पसर गई क्योंकि अब प्लेट खाली हो गई थी। प्लेट भरने में वक्त लग रहा था। परिहार के घर में चुनिंदा सामान पक रहा था, जो गली के आखरी में था। फिर स्कूल की निर्माणाधीन बिल्डिंग में मटेरियल बिखरा पड़ा था। जिसे समेटने की तमाम कोशिश पूरी तरह से सफल नहीं हुई थी..रेत, सीमेंट के गले से लगी हुई थी तो ईंट के बारीक बारीक अवशेष पानी के साथ इस तरह हिल मिल गए थे जैसे कोई प्रेमी जोड़े का मन। और इन सबके ऊपर से स्कूल के टीचर अपने हाथ में डोंगे, परात लेकर आ-जा रहे थे। परोस रहे थे। कोई कुछ नहीं बोला तो सिंग ने कहा, ‘डीजे का वाल्यूम लो करो ..मैं तो ऊब गया हूँ स्कूलों के फंक्शन से.लाउड है बहुत।’

पांचेक महीने पहले का यह प्रसंग आज थकी हुई रात में दिमाग में चल रहा है. इसमें अट्टहास, उपहास, अपमान ताने, श्रेष्ठता, धर्म की भ्रष्टता का सामूहिक शोर है. राहुल को बिस्तर से नीचे पैर रखने के बाद चप्पल नहीं मिली। सुबह कब होगी? सवाल में उलझने की बजाय मोबाईल ढूंढने लगा। राहुल को तकिये के नीचे नहीं मिला मोबाइल। मोबाइल बिस्तर से गिर तो नहीं गया? घुप्प अँधेरे में हाथ चलाते हुए नीचे पैर से तलाशने लगा। कितनी बार कहा बीवी ने सिर के पास मोबाईल नहीं रखना चाहिए। रेडियेशन का बुरा असर होता है. बीवी से सहमत है पर नहीं मानता। आदत हो गई क्योंकि आजकल बॉस रात में भी बात करता है टारगेट की और उम्मीद करता है कि उसकी कॉल तत्काल रिसीव की जाये।

राहुल को रात को ग्यारह बजे सोने और गहरी नींद आती है, यह बात बॉस को मालूम होने के बावजूद पिछली बार जब बीवी ने जगाकर बताया था तीन काल आ चुके हैं तुम्हारे बॉस के। तब लगा था अब एक बजे क्या बात करूँ? सुबह बात करूँगा। सुबह नौ बजे बात करने पर नाराज हो गये थे बॉस। ये है तुम्हारा रिस्पांस टाइम? जब तुम बॉस के साथ ऐसा कर सकते हो तो फिर ...कम्पनी का भट्टा तुम जैसे ही लोग बैठाते हो। काहे की मंदी? तुम जैसे लोगों को कोई फरक नहीं पडऩे वाला। तुम्हारे लिए सरकारी सेक्टर है ही खाली। अब कब तक कान पे मोबाईल लगाकर बैठे रहोगे? हमें सोने दो। वैसे भी चैन तो तुम जैसे लोगों ने छीन लिया।“ ‘‘मैं गहरी नींद में था।’’ राहुल ने स्पष्टीकरण देना चाहा तो बोला था बॉस, ‘हाँ तुम्हें क्या फिकर। गहरी नींद लो..’

‘लेट हो गया था तो सोचा रात में क्या परेशान करूँ।’ बॉस की नींद डिस्टर्ब होने का अपराध में डूबा था राहुल. लेकिन बॉस की तीखी आवाज आई “सुबह बिगाड़ दो ताकि पूरा दिन खराब हो जाये।’ च्सॉरी...मैंने.. ‘इन शब्दों को सुनने के पहले ही फोन काट चूका था बॉस। शब्द घर के भीतर रह गये थे। वे सारे जस के तस बाहर आ रहे थे इस रात में। ये पिछली बातें एक के बाद एक और कभी एक साथ क्यों याद आ रही हैं?

टारगेट कैसे पूरा होगा? के लिए तमाम तरकीब नींद टूटते ही राहुल के दिमाग में दौडऩे लगी थी. अब धीरे-धीरे बदबू आने लगी। फिल्ड की बदबू टायलेट में घुस गई. बेटे को कई बार समझाइश, चेतावनी देने के बाद भी बेटा टायलेट में पानी नहीं डालता है। आज बदबू ज्यादा आ रही है। नींद नहीं आई तो पानी पीकर पेशाब करने चल दिया। रात को एसीलोक खाने के बाद भी राहत नहीं मिली थी। पेट की गड़बड़ी भी नींद न आने का कारण है, पेशाब के बाद लौटा तो मिल गया मोबाईल। रोशनी ने मौका दिया, तस्वीर पर लिखे अक्षरों को पढऩे का। रात के दो बजकर छतीस मिनिट हुए हैं। सो जाना चाहिए। बीवी सोई है। सोये हंै बच्चे। दूसरा कम्बल निकाला। बेटा खांसने लगा। बेटा अपने बदन पर कम्बल क्या चादर भी रहने नहीं देता है, फेंक देता है। कितना समझाएँ। समझता ही नहीं। बेटे के बदन पर कम्बल डाला। फिर सोने की कोशिश की तो बीवी का खयाल आया। उठा। बीवी के ओढ़े हुए कम्बल पर एक चादर डाल दी। बेटी कम्बल के भीतर थी। फिर बिस्तर पर लेट गया। मोबाइल पर नेट चलाने लगा। मोबाइल पर सोशल मिडिया ने बताया कि शिर्डी में मोबाइल की रिंगटोन इतनी नागवार लगी कि रिंगटोन वाले लडक़े की हत्या कर दी सरेआम सडक़ पर। रिंगटोन बज रही थी, चाहे जितना भी कर लो हल्ला, बना रहेगा आंबेडकर का किला। उधर पिछली बार उड़ीसा में शर्ट खरीदने की बात पर हुए मामूली विवाद ने घर जला दिए थे दलितों के। कडक़ड़ाती ठंड में आग लगा दी। बहुत ठंड लग रही होगी जलाने वालों को लेकिन ये जलन थी। बेघर हुए लोग कहाँ हैं? यह कोई नहीं बता रहा है। बहुत ढूंढा लेकिन उनका ठिकाना नहीं मिला। हमलावर भी नहीं पकड़े गए थे। याद करने लगा, इसके पहले हुए हत्याकांड, बलात्कार, घर-बस्ती जलानेवाले हमलावर पकड़े गए। जिन्हें पकड़ा गया था उन्हें क्या सजा मिली? अभी तक तो सुना ही नहीं कि हत्यारों को सजा मिल गई हो।

पत्तीदार पेड़ के नीचे समेटी हुई पत्तियों के ढेर में लगी हुई आग दिखती नहीं। धुआँ ऊपर जाता है और पत्तियाँ हिलती हुई दिखती हैं। वे हिलती नहीं हैं, जलती हैं। पेड़ के हरे पत्ते तेजी से अपना हरापन खोते हैं। कई पत्ते तो लटके रहते लेकिन वे जल चुके होते हैं। कभी नहीं सोचते कि पेड़ पर क्या बीत रही होगी। वह अपनी हरी पत्तियों को जलते हुए देखकर कितना सुलगता होगा भीतर ही भीतर, बिना आग के। आग हर बार नहीं दिखती। जला देती है, अंदर से, धीमे-धीमे बिना सुलगे हुए। यह आग राख नहीं करती। हर बार काला नहीं करती लेकिन जलाने का अपना काम कर चुकी होती है। उन जली हुई पत्तियों की तरह झुलसी हुई यादें अभी भी चिपकी हुई हैं, राहुल के भीतर, जो एक साथ हिल रही हैं, धुँए के साथ जल रही हैं, पत्तियों की तरह।

आज रात को ये सब क्यों चला आ रहा है। एक के बाद एक। क्यों? राहुल लगातार छींकता रहा। सोचता रहा। छींके और सोचना थमने का नाम नहीं ले रहे हैं। वो जो मारा गया। रिंगटोन उसका गुनाह था कि हत्या कर दी जाए...वे बेघर लोग कहाँ होंगे? सर्दी से बचने के लिए? सोने के क्या उपाय होंगे? उदासी के साथ गुस्सा आ रहा है लेकिन क्या करूँ? सवाल हावी होता जा रहा है। लग रहा है उसे भी बेघर किया जा है। उसे लगा हर कोई अपने समर्थन की भेड़ चाहता है? न मिले तो हत्या या बेघर कर देने की परम्परा को निभाना चाहता है। राहुल आयुर्वेदिक दवाइयों की मार्केटिंग करता है। उसके जिम्मे बच्चों की दवाइयां थीं। सर्दी के लिए, मुनि-मुनि। खांसी को रोकने के लिए, योगी-योगी। सर्दी, खांसी की गोलियाँ का मार्केट खूब बढ़ा। गोली खाने के बाद बच्चों को गहरी नींद देर तक आती है। बच्चों का बाहर निकलना, खेलना कूदना, चिल्लाना, रोना गाना, जिद..सब से निजात मिल जाती है। ये गोलियाँ कुछ ही दिन में माँ बापों में बेहद लोकप्रिय हो गई थीं। माँ बाप की पसंदीदा गोलियों की बिक्री तेजी से आसमान छूने लगी थी। माउथ पब्लिसिटी ने सब काम कर दिया तो कम्पनी ने विज्ञापन बंद कर अपना मुनाफा और बढ़ा लिया। इसके बाद राहुल को इस प्रोडक्ट से हटा दिया था।

सोहन ने कहा था अब गैप रखने वाली गोली ला रहे हैं। एक गोली लो और अनचाहे गर्भ का टेंशन साल भर के लिए $खत्म। जब चाहो जहाँ चाहो, इससे उससे.. किसी के भी साथ करो। आदमी या औरत दोनों को कंडोम, टेबलेट, रिंग, नसबंदी..पसंद नहीं है। और सबसे बड़ी बात ये सब तरीके विदेशी हैं। इसलिए यार कुछ हो न जाए के डर को खत्म करो। राहुल ने पूछा था डर? डर किसे लगता है? सोहन बोला था प्रेगनेंसी से हर औरत डरती है लेकिन जोश चाहती है। जोश। विज्ञापन में यही हाई लाईट करेंगे, महिला के जोश और आनंद की पूर्ति... राहुल ने कहा औरत का जोश। तब तो नहीं बिकने वाली गोली। इतना सुनते ही गुस्से में सोहन बोला था शुभ शुभ बोल। राहुल ने जोर देकर कहा था जोश वाले दावे से बिक्री नहीं होगी। मर्द नहीं चाहता कि उसकी बीवी जोश और ताकत से भरी हो। वह तो हर जगह औरत को कमजोर देखना चाहता है। मर्द की सबसे प्यारी और क्रूर जगह है बिस्तर। वहां तो हर हाल में कमजोर देखना चाहता है। बिस्तर पर औरत को हावी नहीं होने देना चाहता है। फिर गोली खरीदने कौन जाता है ..मर्द ही न ..मर्द लाकर नहीं देने वाला।

‘‘तू तो बड़ा ज्ञानी है राहुल। मान गए उस्ताद। मान गए। बदलवाना पड़ेगी विज्ञापन सामग्री। चल पंडित जी से बात करते हैं।’’

‘हाँ, चल। इस बहाने कम्पनी का कारखाना भी देख लेते हैं ..क्या क्या मिलाते हैं? आयुर्वेद के नाम पर दवा में क्या डालते हैं। कोई टेस्ट नहीं कोई सवाल नहीं करता है। कोई पूछता भी नहीं है कि जिस जड़ी बूटी को डालने के दावे किये जाते हैं, वे कहाँ पर कितनी मात्रा में होता है?... अजीब घालमेल है।’ राहुल की बात सुनते ही सोहन का चेहरा उतर गया था। गोली का असर खत्म हो गया हो जैसे, तभी तो बोल, ‘तू क्यों अपने दिमाग में घालमेल कर रहा है ..पंडित जी का चूर्ण ले बालक।’

‘‘तू ही खा भई। हर मर्ज की एक दवा, चूर्ण..ऐसे कैसे हो सकता है सारे दर्द की एक दवा। जो सब मर्ज की एक दवा बताता है, वह सबसे बड़ा पाखंड करता है।’’ राहुल की इस बात को सोहन ने अनसुना किया। सोहन को हर हाल में राहुल को कन्विंस करना है। निरोधक गोलियाँ बेचनी हैं। इसलिये सोहन बोला था, ‘‘आल इन वन। तू भी तो है न आल इन वन। अकाउंट हो या मार्केट, पब्लिसिटी हो या पैसा वसूली ..ऑफिस हो या पम्पलेट बनाना ..सब जगह तू ही होता है कि नी..हर उलझे काम की एक ही दवा है राहुल। है कि नी। ‘‘सोहन की इस हँसी के भीतर तनाव ही तनाव था, जिसे वह बाहर नहीं आने देना चाह रहा था। जबकि राहुल इस तारी$फ से खुश होने की बजाय खिन्न होकर बोला था, कुछ खटकता है।’’

‘‘मेरे को भी बहुत कुछ खटकता है। चल भाई आज करीम की चिकन चिल्ली खाते हैं। दिमाग खराब करने की बजाय पेट खराब करते हैं।’’ सोहन ने माहौल बदलने के लिये फिर हँसते हुये कहा। और लगभग जबर्दस्ती करते हुये राहुल को कार में बैठाया।

सोहन की शादी से पहले दोनों साथ साथ ही खाते थे। सोहन की शादी पंडित जी मतलब कम्पनी मालिक की बेटी के साथ हो जाने के महीने भर में ही सोहन सेल्समेन से मार्केटिंग हेड बन गया था, इसके बाद ही राहुल के साथ बाहर खाने का सिलसिला $खत्म हो गया था। सोहन जानता है खाने और पीने के समय में कई उलझी हुई बात सुलझ जाती है। पिलाओ और काम करवाओ के सिद्धांत के रास्ते से ही राहुल को समझाने निकला था।

बस स्टैंड की पार्किंग के पास सडक़ किनारे सोहन ने कार खड़ी की। होटल में खाते-पीते हुए ढेर सारी बात हुई लेकिन राहुल के दिमाग में दवा बनाने की सामग्री वाला मामला चल रहा था। भीड़ है। खाने में मगन है लोग। वेटर हर टेबल को देख रहा था। पूछ रहा था। सब व्यस्त थे। टेबल सा$फ करने वाले के हाथ में कपड़ा तैयार। जैसे ही ग्राहक उठता था, वो झूठे बर्तन उठाकर टेबल को सा$फ कर देता। बिना सोचे समझे बस उसकी निगाह देखती है किस टेबल से आदमी उठ रहा उसके पैर तेज गति से उधर चले जाते थे। यह उसके दिमाग में सेट थे। जैसे सोहन के दिमाग में यह सेट हो गया कि गैप गोली को राहुल के अलावा कोई भी मार्केट में लोकप्रिय नहीं बना सकता है। राहुल के अलावा कोई भी नहीं है, इस नये प्रोडक्ट को सफल बनाने में। इसलिए सोहन ने फ्राय चिकन की टांग चबाते-चबाते मुस्कुराते हुए कहा था, ‘‘इसकी उसकी बात छोड़ प्यारे और बच्चों से उनकी माँ तक पहुँचो। ‘डी-गैपज् गोली को मार्केट में फेमस करो। और ये बता यार प्रमोशन भी कुछ चीज होती है कि नी। बच्चों की माँ तक पहुंचकर मजे लो..” सोहन का अंदाज अश्लीलता से भरा हुआ था। कोई गुस्सा, कुंठा या पारिवारिक तनाव था जिससे मुक्त होना चाह रहा था मोहन, जो अब राहुल का बॉस और दोस्त दोनों की भूमिका निभा रहा है।

‘‘जो दिख रहा है, वही बाजार नहीं है। हमारे यहाँ तो सदियों से चल रहा है, बाजार। भूत-प्रेत डाकन, चुड़ैल, नरक स्वर्ग, पुनर्जन्म, जन्म के आधार पर भेदभाव...जाति की योग्यता पर शादी..क्या है? ये सब वायरस है। इसका इलाज है, अलग-अलग तरह का। झाड़-फूंक, हवन, दान, पुण्य, कथा...इसको बेकूफ बनाओ, उसे फंसाओ...हर तरह की वैरायटी है। जिसकी जितनी शक्ति उतनी भक्ति..यह है बड़ा बाजार।’’ छोटा-सा घूंट लेते हुए कहा राहुल ने।

‘‘ये वाला वो वाला बाजार छोड़..ये सब माया है। नकली है। असली बाजार तो मार्केट है। अपना मार्केट। तू इन $फालतू बातों को रहने दे और लग जा नए काम में।’’ एक कुशल सेल्समेन का अन्दाज था जिसमें दोस्ती का तडक़ा और मार्केट का फंडा था। सोहन को लगता है उसके पास अपनी बात हर हाल में मनवाने का हुनर है। जब लगा कि राहुल के दिमाग में कुछ और चल रहा है, तो सोहन बोला, वैसे भी यार ये बहुराष्ट्रीय कंपनियां इस देश में कर क्या रही हैं? अनाप शनाप मुनाफा कमा रही हैं। दवा के नाम पर क्या खिला रही हैं? याद है डाक्टर सोढ़ी क्या कह रहे थे? कैसे करते हैं डाक्टर इलाज? वे इलाज के नाम पर ढेर सारी महंगी दवाइयाँ खिलाते हैं। ये नहीं तो वो... इलाज चलता रहता है और पैसा देश से बाहर जाता है। है कि नी?’’

‘‘तो हम क्यों डरते हैं अपनी गोलियों का टेस्ट कराने में?’’ राहुल ने बोलते बोलते आखरी घूंट लिया। सोहन को बुरा लगा। और जिस मकसद से आया था, उस पर बात न होकर बात कहीं से कही जा रही है। और राहुल मानने की बजाय कुछ तो भी बोल रहा है, तो गुस्सा होते हुए सोहन बोला था, ‘‘छोड़ बे। क्या बक रहा है।’’

‘‘मेरा मतलब...” राहुल समझ ही नहीं पाया कि आखिर हुआ क्या। इसमें इतने उत्तेजित होने की जरुरत नहीं थी। सीधे बोल सकता था। बेसिर पैर के तर्क समझ ही नहीं पा रहा था कि सोहन हावी होता हुआ बोलने लगा था, ‘‘वो तुम ही हो जो हर बार बोलता है, इस आयुर्वेदिक दवाई की ट्रायल करवाओ। बच्चों को ज्यादा नींद आती है। इसका साइड इफेक्ट न हो..बड़ा आया था ज्ञान बांटने वाला...टेस्ट करवाने वाला। मार्केट में कोई सुन लेगा कि हमारा ही आदमी ऐसी बात कर रहा है तो कम्पनी का भट्टा बैठ जायेगा।’’

सोहन की बात का जवाब नहीं दिया राहुल ने। वरना बहस खत्म ही नहीं होती। राहुल ने अपनी बात रखी, ‘‘मेरा मार्केट अच्छा चल रहा था वहां से मुझे डिस्टर्ब करके...’’ राहुल की बात पूरी होने से पहले अपने आपको संयत कर सोहन ने कहा, ‘‘आगे तुम्हारा फ्यूचर है। फ्यूचर....पकड़ो..’’ राहुल लगातार इंकार कर रहा है। ऐसे कैसे हो सकता है? सोहन कहे, मनाये और कोई इंकार कर दे, यह स्वीकार नहीं कर पा रहा था सोहन कि तनाव के मकडज़ाल में अटक गया था। उसी समय राहुल बोला था, ‘‘मेरी बजाय उस अमरनाथ को इस नए प्रोडक्ट में लगा दो, वैसे भी मेरा काम अच्छा ही चल रहा है...ज्’ दोनों अपनी अपनी बात कह रहे थे। दोनों एक दूसरे की बात मानने के लिए तैयार नहीं थे। सोहन गुस्सा, नाराजी, दोस्ती, हँसी ...सबका उपयोग कर रहा था। कोई तो निशाने पर लगे। इसलिए शांत होकर बोला था, ‘‘मुझे देख...पंडित जी के यहाँ हम दोनों ने एक साथ काम शुरू किया था न। मैंने पंडित की लडक़ी फंसा ली और बॉस बन गया...सफलता का रस्ता इसमें से होकर भी जाता है...’’ चढऩे लगी थी सोहन को। कई महीने बाद वो इस होटल में आया था। पीते हुए खाते और बोलते जा रहा था। बहुत देर हो गई थी। होटल में स्वाद ही स्वाद बिखरा था। हावी था लेकिन राहुल का दिमाग फट रहा था। हाँ में हाँ मिलाने की बजाय राहुल ने कहा, ‘‘तू क्या फँसाएगा...वो तो पंडित जी ने दूर जहान की रिश्तेदारी निकाली और तुझे फंसा लिया। वैसे भी सबसे जरूरी काबिलियत तो तेरे को पैदा होते ही मिल गई थी इसलिए पंडित जी ने उसी जन्मजात काबिलियत को देखा और अपनी जाति के सुयोग्य वर को अपनी कन्या दान कर दी। दान...ये समझ ही नहीं पाया कि एक तरफ तो दूल्हा खरीदा जाता है फिर कन्या को दान कर देते हैं। अजीब है न।’’ राहुल के इस तरीके से मोहन बहुत बुरी तरह से आहत हो गया। हिल सा गया। अभी तक इस शादी के मायने वह यह सोचकर निकाला करता था कि उसने जो जैसा चाहा, वैसा पाया लेकिन ये...थोड़ी देर तक समझ नहीं पाया क्या कहे फिर सोहन बोला था, ‘‘अबे छोड़। मुझे तो लगता है मैंने ही इधर उधर से नाते रिश्तेदारी निकाली थी और पंडित जी पे प्रेशर डलवाया। उधर बेटी पे डोरे डाले...स्साले तूने तो कंफ्यूज कर डाला। अब दूसरा फितूर घुसा दिया तूने। अभी तक तो मार्केट का प्रेशर था। अपने आपको टिकाये रखने के लिए। बाजार में अपने आपको बचाना और बढ़ाना था। गोली... गोली... बहुत बड़ा मार्केट है इसका। ये गोली दिमाग का दही बना रही थी। और तूने सब गोबर कर दिया।’’ सोहन के दिमाग में शादी के नए तर्क ने गुस्सा भर दिया था। उसे लगा उसका यूज हो गया और उसे पता ही नहीं चला। वो सबको यूज करने में अपने आपको माहिर समझता था और यहाँ उसका यूज हो गया। जैसे कोई नया भंडाफोड़ हो गया। शादी.. फंसाने की बात दिमाग में अटक गई। क्या मेरा यूज किया पंडित जी ने? सोहन को सहन नहीं हो पा रहा था। मेरा यूज कोई और भी कर सकता है? इसका यकीन नहीं हो रहा था। फिर ये शादी क्या शादी है या फिर उसे खरीदा गया और तो और अब लग रहा था कि अब राहुल को यूज नहीं कर पायेगा। सोहन ने आधे गिलास को एक सांस में गटक लिया। इस तरह से पीने से उसके चेहरे पर तनाव का चक्र नजर आया तो राहुल ने पूछा था, कोई गलत बात बोली क्या मैंने?’’ राहुल सहज होकर बोला।

‘‘गलत ...गलत तो हम हैं। वो तो $जमाने से हमारे दादा परदादा कहा करते थे। महान से महान किताबें पढ़ा करोगे तो सब समझ में आ जायेगा कि किससे कितनी गैप रखनी चाहिए। किसे मुँह लगाना, किसे गले लगाना, किसे खिलाना सब..सब लिखा है। न हमने पढ़ा न अपने बाप दादा का कहना माना। हम ही है मूरख। बल्कि महामूर्ख। किसी से क्या कहना? अब हम ही खुद भुगतेंगे। ठीक है भाई साहब।“ सोहन को समझ नहीं आ रहा कि अब चिकन खाये या नहीं। दूल्हा खरीदना, यूज करने के ताने असहनीय होने लगे थे। वह अपना गिलास खाली हो चुका था। दिमाग में भर गया था झाग ही झाग जिसमें उसका यूज करने की बात के बुलबुले उड़ रहे थे। उसे लगा यह बात उसके अलावा जमाने भर को मालूम है। जमाने भर में यह बिखेर गए। वही नहीं जानता कि पंडित जी ने अपना काम निकलवाने के लिए उसको फंसा लिया। फंसा लिया...और दिन रात जोत रहा है.. स्साला ससुर... सोहन की आवाज और चेहरा असामान्य होने लगा था और यह क्या बोल दिया उसे भी समझ में नहीं आया तो राहुल बोला था, ‘‘सोहन तू...तू तो फिजूल में नाराज हो रहा है। कुछ तो भी बोल रहा है। मैंने तो फैक्ट बताये और यार मैं तो चाहता हूँ, जो काम कर रहा था, वही करूँ।’’

‘‘...वहां से हटा दिया तो ब्लेकमेल करोगे। यूज करोगे... तुम्हारा साथ देता हूँ तो इसका यह अर्थ नहीं कि दुहाई देते रहो... आखरी बार सलाह दे रहा हूँ, दूरी.. दूरी बनाये रखो, बॉस हूँ तुम्हारा।" सोहन के दिमाग में पंडित की शक्ल थी। राहुल से नहीं अपने ससुर से बोल रहा हो, जैसे। सोहन को लगा इस तरह की बात राहुल कभी किसी को न कहे इसलिए उसे सबक सिखाने के लिए उसे कुछ और सूझा नहीं तो विरासत के अस्त्र चलाने लगा। आखिरी उपाय। इन्हीं से सामने वाला भीतर से न टूट सकता है। राहुल की बात उसे बुरी तरह से तोड़ चुकी थी। सोहन को लगा उसके स्वाभिमान इज्जत और अक्ल सबको एक ही साथ उखाड़ दिया राहुल ने.जमीन से पौधा भरी दोपहरी में अपने जड़ से उखड़ गया इसलिए सोहन चिढ़ गया था वही सोहन की कर्कशता और अपमान से भरा हुआ अंदाज राहुल को आहत कर गया।

तभी तो बोला था राहुल, ‘‘बॉस...भाड़ में गया बॉस... स्साले तेर को जो भी समझ में आ रहा है, उसे समझ ..हम भी समझ गए.. मेरा क्या साथ देगा रे तू? तेरा साथ दिया है मैंने हर जगह.. तूने तो जब जरूरत पड़ी तब दोस्त बनाया..न जाने कहाँ कहाँ ले गया...और बाप दादा के वचन इतने ही याद आ रहे हैं तो यहाँ बैठकर हड्डियां क्यों चबा रहा है बे...वक्त जरूरत के हिसाब से तय करते हो क्या सही क्या गलत...यहाँ मेरे को कौन लाया? खाते पीते मौज करते हुए सब भूल जाता है न तू... अपनी जात भूल जाता है। अपना ओहदा याद नहीं रहता है...वाह रे..स्साले कब से सुन रहा हूँ तो न जाने क्या क्या अनाप शनाप बके जा रहा है। एक लिमिट होती है सुनने की सहन करने की। हो गई पूरी लिमिट।’’ उत्तेजित हो गया राहुल और जोर से बोलने लगा तो आसपास बैठे हुए लोग सन्न रह गए तो सोहन को लगा उसका दांव उल्टा पड़ गया। राहुल के पास सब कुछ है बताने को। फिर वो दवा वाली बातें हो या उसे फंसाने वाली। किसी भी बात को राहुल बोलेगा तो सोहन की ही आफत आने वाली है। नुकसान अब सोहन का ही होगा। सोहन डर ने अपना रूप बदला और उसने अपनी आवाज में नमी लाई। फुसलाने के अंदाज में कहा था, ‘‘राहुल। मेरे दोस्त तू बुरा मान गया? अरे काम का प्रेशर है। समझ यार..बहुत दिन हो गए थे साथ बैठे हुए। मेरा दिमाग.. मैं पगला गया हूँ, तू सही कह रहा है। पता नहीं क्या अनाप शनाप बक गया। मेरा दिमाग फट रहा है यार। माफ कर यार.. माफी।’’ बोलते -बोलते सोहन कुर्सी से उठा। उसे लगा अगर अभी राहुल को नहीं मनाया तो राहुल कभी भी मान नहीं सकता। सोहन यही सोचकर आगे बढ़ा फिर बोला, ‘‘पता नहीं दिमाग को क्या हुआ? किसी वायरस का हमला?’’

‘‘सच कह रहा है तू , यह वायरस ही है, जो तुम्हारे दादा पड़दादा और किताबों से मिला है। हम जब एक साथ में काम करते थे तब इस वायरस को खुराक नहीं मिली थी और मुझे भी लगा था मर गया होगा वायरस। लेकिन गलत था मैं। कहाँ नहीं है वायरस? बस इन्हें मौका परिस्थिति चाहिए.$ फैल जाता है। तभी तो वो जब जी चाहता है तेरे जैसों के मू से हकीकत हगने लगता है। बॉस..’’ बॉस शब्द बोलते बोलते उपहासात्मक चेहरा हो गया था राहुल का। उसके दिमाग में परिहार के छत पर अधूरी बात चलने लगी।

‘‘क्या बात कर रहा है? मेरी तो समझ में नहीं आ रहा है। तू बैठ तो सही मेरे दोस्त,भाई। मेरी बात तो समझ।’’

‘‘तू रुक तो सही..नाराजगी छोड़। वरना तेरे बिना मैं खाना पीना...सब छोड़ दूंगा..सच्ची कह रहा हूँ।’’ उठ गया था सोहन को लगा, अब राहुल हाथ से निकल गया।

‘‘सच है...मेरी रोजीरोटी उजाडऩे की बात करने वाला अब खाना-पीना छोडऩे की बात कर रहा है। मैंने तुझे बॉस ही माना था मन से और उतना ही टेंशन लिया जितना ले सकता था। तुझे अच्छी तरह से मालूम है मैं जल्दी सोता हूँ। फिर भी तू रात में ही फोन करता था। तब मेरी परेशानी दिखी नहीं। तब लगता था तू टेंशन में होता होगा। लेकिन सोहन प्यारे तेरे अंदर सदियों से पड़े हुए वायरस ने अपना रूप बदल लिया है। ये ज्यादा स्ट्रांग हो गया है।’’

‘‘सॉरी यार..रात में.. अब क्या बताऊँ... बेडरूम में गुस्सा आता था तो कहाँ निकालता.. क्या करूँ? अब तो कुछ भी समझ नहीं आ रहा है। शादी की बात से तो सच में तो अब जिन्दगी ही समझ में नहीं आ रही... केहने को बॉस हूँ लेकिन लगता है मेरा ही यूज हो रहा है.. हर जगह...’’

‘‘तू चाहे कुछ भी बता। जी तो चाह रहा है तेरी कालर पकडूँ। तेरी पिटाई कर दूँ यही बस स्टैंड पर...तू और तेरे जैसे न जाने कितनों को भरम है कि वे हमारी सोच, दिमाग को अपने हिसाब से चलाने के लिए हमें मजबूर कर देंगे। इस भरम को निकाल दे। सुनी सुनाई बातों ने तेरे जैसों का दिमाग खराब कर दिया है। वाहियात वायरस बहुत समय तक जिंदा नहीं रह सकता। उनके लिए एंटी वायरस का टीका बनता रहेगा। हर समय काल में एंटी वायरस भी होता है। उसी से देश बचा रहता है।’’ राहुल की आँख लाल हो गई और सांस तेज। लग रहा था कि वह खुद को बमुश्किल से रोक पा रहा है। राहुल का यह रूप और बातें सुनकर सोहन की सिट्टी पिट्टी गुम हो गई। उसे यकीन ही नहीं हो रहा है कि ये राहुल वही राहुल है, जिसे वो सिर्फ यूज करने की बात सोचता था। वो इतना और इस तरह से पलटकर बोलेगा? सोहन यकीन नहीं कर पा रहा था, तब तक वेटर ने गीले कपड़े से टेबल साफ कर दिया था। सोहन का दिमाग सा$फ होने के अलावा हलचल मचा रहा था। उसे लगा पंडित जी उसका यूज करने के बाद थ्रो नहीं कर रहे हैं..उसका बार बार रियूज कर रहे है।

राहुल ने अपने घर का दरवाजा खोला। सवा छ बज गए। घना अंधकार जा चुका था। सा$फ सा$फ दिख रहा है। पुरानी बात के साथ आज की रात चली गई। बेटी उठी और उठते से ही आवाज लगाई, पापा... और लिपट गई राहुल से। राहुल के चेहरे पर चमक आ गई। बेटी की रोशनी से राहुल के भीतर उजाला भर गया।

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रचनाकार: कहानी / गैप / कैलाश वानखेड़े / रचना समय जन.फर. 2016 - कहानी विशेषांक 1-7
कहानी / गैप / कैलाश वानखेड़े / रचना समय जन.फर. 2016 - कहानी विशेषांक 1-7
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