कहानी / क्या आपने हमें देखा है / जया जादवानी / रचना समय - मार्च 2016 / कहानी विशेषांक 2

SHARE:

जया जादवानी क्या आपने हमें देखा है क्या आपने उस भूरे -लम्बे बालों वाले लड़के को देखा है? जिसे मैं कई दिनों से देख रही हूँ। जिसने हिप्पी स्...

जया जादवानी

क्या आपने हमें देखा है

क्या आपने उस भूरे -लम्बे बालों वाले लड़के को देखा है? जिसे मैं कई दिनों से देख रही हूँ। जिसने हिप्पी स्टाइल में ढीले -ढाले कपड़े पहन रखे हैं...घिसी हुई जीन्स...सलवटों वाली टी शर्ट और खूब सारे जेबों वाली जैकेट। जेबें जो खाली झूलती रहती हैं तुम्हारी चाहनाओं की तरह। उसके चलने में एक लापरवाह किस्म की लापरवाही है जैसे वह कहीं नहीं पहुंचना चाहता। मुझे ऐसे लोग अच्छे लगते हैं जो कहीं नहीं पहुंचना चाहते. क्या आपने किसी को कहीं पहुँचते देखा है? इअरफोन अपने कानों से लगाये वह शायद म्युज़िक के साथ ही इस शहर को देखता है, म्युज़िक बैकग्राउंड का काम करता होगा जैसे हम फिल्मों में देखते हैं बहुत सारी चीजें एक साथ पर जुड़ते उसी से हैं जिससे हमारी भीतर की तान मिल जाये। आप समझ रहे हैं न मैं क्या कह रही हूँ। जनाब ये शब्द अक्सर गलत समझे जाते हैं जब लिखे जा रहे हों तब भी, जब कहे जा रहे हों तब भी। सबसे बेहतर है मौन... रास्ता मुश्किल जरूर है पर आपको सही जगह पहुंचाता है। अगर आप दूर से इन न जाने किन-किन देशों -प्रदेशों से आये जवान लड़के-लड़कियों को देखें तो आप इनकी बाबत बहुत कुछ जान सकते हैं। जिस्म का ट्रांसमीटर बहुत पावरफुल होता है। गाता हुआ जिस्म तो बहुत साफ़ सुनाई देता ही है रोता हुआ भी। इन सबकी अलग-अलग कहानी और घर हैं। जिनसे ये ऊब और भागकर यहाँ आये होंगे। अगर मैं कोई लेखक होती तो जरूर इनके बारे में न जाने कितने किस्से आपको सुना देती और सब सच होते हालांकि मैं इनमें से किसी को नहीं जानती। हर लेखक एक चलता-फिरता कब्रिस्तान होता है, जिस भी मुर्दे को आवाज़ देंगे वही उठकर आपको एक कहानी सुनाने लगेगा. देखिये जनाब, जब मैं बहका करूँ आप मुझे टोक दिया कीजिये।

हां, तो मैं कह रही थी एक ही दिन अलग -अलग चार जगहों पर मुझे वह लड़का दिखा...माउन्टरिंग इंस्टीट्यूट के घने इलाके में जब मैं सुबह की सैर से वापस आ रही थी, एक पत्थर पर बैठा अपनी मोबाईल पर झुका न जाने क्या कर रहा था... आहट

पाकर उसने क्षण भर को अपना सिर उठाया... एक सरसरी सी निगाह मुझ पर डाल वापस उसी मुद्रा में। नहीं -नहीं मुझे जरा भी बुरा नहीं लगा। जनाब, अब मेरी उम्र कोई इस तरह की बातों से बुरा मानने की तो है नहीं। हालाँकि न देखे जाने पर हर उम्र की औरत बुरा मानती है और बड़ी उम्र की औरतें तो थक जाती होंगी अपनी तरफ किसी चाहना से भरी निगाह की प्रतीक्षा में और उसी थकन में फिर वे गिर पड़ती होंगी अपनी पति की उतनी ही व्यस्त और त्रस्त गोद में। आपने सूखी पत्ति्तयाँ चबाते जानवरों को देखा होगा। जब हमारे जीवन में रस नहीं रहता हम एक -दूसरे को बिल्कुल इसी तरह चबाने लगते हैं। ये आनंद है जनाब ...एक वीभत्स आनंद, अपनी जरूरत भर पूरी कर लेने का ...जानवरों से ऊपर उठने के पश्चात् भी जब-जब मनुष्य उनके लेवल पर आया है इसी वीभत्स आनंद को जीने। पर इस बात का यह अर्थ बिलकुल न निकालियेगा कि अब मुझमें देखने को कुछ नहीं बचा। जनाब, ये तो मेरी मुरव्वत है। आप एक बार मिलकर तो देखिये, सोचने लगेंगे काश! मैं इसके साथ जरा सा चल पाता....जरा सा इसे छू पाता। खुद को तराशने का हुनर अगर बचपन में आपको किसी ने सिखाया न हो तो बड़ी यातना सहने के बाद आता है। इसके बाद तो इससे बड़ी खुशी कोई नहीं। आप बड़े मजे से अपने साथ रह लेते हैं जैसे मैं रह रही हूँ पिछले पैंतीस सालों से यह जानते और देखते हुये भी कि अभी भी न जाने कितनी आँखें और पैर मेरा पीछा कर रहे हैं. खैर, दूसरी बार उस छोटी सी बेकरी में बैठी जब मैं अपनी गर्म पिज्ज़ा का इंतज़ार कर रही थी, वह भी दूसरी मेज पर बैठा कांच के शोकेस में सजी ठंडी पेस्टि्रयों और केक को देख रहा था। जैसे कोई बच्चा देखता है ...उसने एक मैंगो पेस्ट्री मंगवाई और खाने लगा। इस बार मैं उसे देर तक देखती रही थी। गेहुंये रंगत वाला वह दुबला -पतला हिप्पी सा दिखता लड़का मुझे रूठे हुए बच्चे सा ही तो लगा था। जिसका खिलौना किसी ने छिपा दिया हो। हो सकता है... जिसके साथ आया हो या आना चाहता हो वह किसी दूसरे के साथ चली गयी हो। आजकल के लड़के-लड़कियां एक -दूसरे से बहुत जल्दी ऊब जाते हैं। उन्हें एक -दूसरे के भीतर उतरने की जितनी जल्दी रहती है, बाहर आने की उससे ज्यादा। एक -दूसरे को समझने की लम्बी -काली- अंधेरी सुरंग... कितना भी धीरे चलो हर बार पैर फिसलता है? यह संसार का सबसे मुश्किल रास्ता है जनाब ...बहुत कम लोग बहुत दूर तक जा पाते हैं। खैर, उसके लम्बे बाल इस वक्त पोनी की शक्ल में पीछे बंधे हैं। बड़ा सा माथा चिकना ऐसा जान पड़ता है, जैसे ...मैं कुछ सोच ही रही थी कि ...उसकी नज़र घूमी, मुझ पर पड़ी और मुड़ गयी। इस बार मुझे सचमुच अच्छा नहीं लगा। मुझे इतना साधारण किसी ने महसूस नहीं कराया था. मैं मन ही मन हँस पड़ी और उठी एक निर्णय के साथ अपनी पिज्ज़ा खत्म किये बगैर. तीसरी बार वह उसी बस में बैठा था, जिसमें ‘कोठी’ जाने के लिए मैं बैठी थी। मुझे उम्मीद थी वह ऊपर ‘कोठी’ में भी जरूर दिखेगा अपनी मोबाईल से पहाड़ों और झरनों का कोई वीडियो बनाते हुये या अकेले में सिगरेट या बियर पीते हुए तो मैं उससे खुद बात करने की कोशिश करूँगी। पर वह वहां सचमुच नहीं दिखा. वापसी की आखिरी बस में सबसे आगे की सीट पर वह बैठा था. उस दिन ऊपर कोठी में मैंने उसे ढूँढने के सिवा कुछ और नहीं किया था। सारे नजारों ...सारी हरियाली को उस एक चेहरे ने ढँक लिया था। गनीमत है कि बादल अब तक अछूते थे। उन नीले बादलों पर किसी की परछाई नहीं थी। न उसके चेहरे की न मेरे विचारों की। इत्तफ़ाकों के ये कैसे सिलसिले थे, जो इतना तरतीबवार घट रहे थे। मनाली बस स्टैंड पर जब हम उतरे तो समूचा बाज़ार गुलज़ार था। लोग घूम-फिर कर वापस आ गए थे। सारी होटल्स और रेस्टारेंट ठसाठस भरे पड़े थे। मैंने उसे एक बार में घुसते देखा तो न जाने कब से दबी बियर पीने की तलब जोर मारने लगी। मैंने माल से बियर की दो बोतलें खरीदीं और अपने कमरे में वापस आ गयी।

उस रात मुझे नींद नहीं आ रही थी. मैं सीधी लेटी सफ़ेद छत को निहार रही थी...बाहर अँधेरा था ...और ठंडी हवा और निस्तब्ध खामोशी...रात के नीम अँधेरे में अपने साथ जागना एक विषादकारी अनुभव साबित होता है। कहते हैं अपने भीतर झाँकने का सबसे महत्त्वपूर्ण क्षण यही रात की घड़ी है, जब आपको अपनी नंगी-ठण्ड और अकेलेपन में कांपती आत्मा का तीव्र साक्षात्कार होता है। बहुत कठिन क्षणों में मैंने यह साक्षात्कार किया है। जब मेरा पति मेरे जिस्म के खिलौनों से खेल कर उन्हें तोड़कर थक कर सो जाता था....तब। कभी आपने टूटे हुये खिलौनों के रोने की आवाज़ सुनी है? कुछ औरतें ऐसे ही रोती हैं अपने उन टुकड़ों के लिये जो फिर उनसे कभी नहीं जुड़ पाते। आपमें से अधिकतर जानते होंगे औरतों के टूटने का सिलसिला अक्सर उनके बचपन से ही शुरू हो जाता है जब उन्हें साधारणता की बेड़ियों में जकड़ दिया जाता है जैसे मुझे जकड़ा गया था वर्जनाओं की बेड़ियों से। मेरे भाई को जितनी स्वतंत्रता थी उससे आधी भी नहीं थी मेरे पास। और मेरा बाप ...मुझे नफरत है उससे ...बारह साल तक उसने मुझे ...और मेरी माँ चुप रहती थी ...ऐसी कौन सी विवशता होती है जनाब कि औरतें मुंह नहीं खोलतीं। बारह सालों के बाद मैंने मुंह खोला और मैं हास्टल भेज दी गयी। छुट्टियों में मैं अपने घर जाने की बजाय अपने किसी फ्रेंड के घर जाना ज्यादा पसंद करती थी। कालेज के बाद मेरी शादी कर दी गयी और फिर मेरा पति ...क्या सारे पुरुष एक जैसे होते हैं? नहीं जनाब मैं यह बात मानने को तैयार नहीं हूँ ...पर पुरुष अकेलेपन को उस तरह नहीं जान सकता जिस तरह एक औरत जान सकती है। पुरुष औरत के पास जाता तो है ताकत बटोरने पर उसकी ताकत छीन लेना चाहता है। उससे उसका वज़ूद तक। वह नहीं चाहता कोई उसको चैलेन्ज करे। मैंने पहली राहत की सांस ली अपने डाइवोर्स के बाद। मैंने उन सबको अपनी ज़िन्दगी से निकाल बाहर फेंका जिन्हें मैं नहीं चाहती थी और मैं अकेली हो गयी। अकेलापन जो कभी वरदान की तरह लगता है ...कभी अभिशाप की तरह। इस वक्त मैंने देखा मेरे भीतर का अकेलापन न जाने कब बाहर चला आया था और चुपचाप मुझे घूर रहा था. आज यह आक्रामक नहीं है मैंने इस बात का फायदा उठाया और अपना कम्बल सिर तक खींच लिया।

दूसरे दिन न वह सुबह की सैर पर मिला, न बेकरी में, न बस स्टॉप पर मैं दिन भर माल पर भटकती रही, शाम को वन विहार में। और सात दिन यह लुका छिपी चलती रही। कभी नीला आसमान बादलों से ढँक जाता... कभी बादल पहाड़ों के उस पार चले जाते। मैं कभी अगस्त की बारीक बारिश में भीगती कभी भीतर के सूखे से लड़ती। फिर मैंने एक रात उसे ढूंढ लेने का निश्चय किया. जी हां ...आप बिल्कुल ठीक समझते हैं, मैं रात नौ बजे उस बार में जा पहुंची जहाँ मैंने उसे जाते देखा था। वह वहीं था।

इस वक्त जहाँ मैं हूँ, बहुत शोर है और इस शोर में भी मैं अपनी चेतावनी देती आंसुओं में डूबी आवाज़ सुन सकती हूँ... उठ भाग ...निकल यहाँ से ...ये तेरी जगह नहीं है। यहाँ कुछ नहीं मिलेगा... मैं उठती नहीं ...मेरा अपने साथ युद्ध है और मुझे जीतना ही है बिना अपना मस्तिष्क काटे. आप पूछ सकते हैं मैंने क्या किया... कुछ नहीं जनाब ...जबकि जी चाह रहा है इस समस्त बार को तोड़-फोड़ दूं ...ये ग्लास ...प्लेट्स ...बाटलस ...सब ...सब कुछ ...नसों को तोड़ता -फोड़ता कोई तूफान है जो बाहर आना चाहता है... मैं कस के दबाये बैठी हूँ। मैंने खुद को कभी इस बात की इजाज़त नहीं दी कि अपने मन का कर सकूँ। जब छाती से रुदन फूटकर बाहर आना चाहता है मैं हँस रही होती हूँ। जब मेरी प्यास समंदर पी जाना चाहती है ...मैं तपती रेत पर चल रही होती हूँ... खुदाया! क्या मैं किसी को अपना वास्तविक रूप दिखा पाऊँगी?

000

आपको क्या लगता है मैं नहीं जान पाया था. आप बहुत भोले हैं श्रीमान। औरतों के मामले में हम पुरुष बहुत दूर से सूंघ लेते हैं। और इस औरत में तो मुझे कायल करने के समस्त गुण हैं। कुछ खास है इसमें. इसके जिस्म में एक पुकार है ...आँखों में एक अनछुई सी रह-रह कर कांपती चाह ...भीतर की चाह कैसे जिस्म की त्वचा पर चमक जाती है यह तो खुद चाहने वाले को नहीं पता। यह जब दूर तक पसरे पहाड़ों पर बिछी बर्फ़ की तस्वीरें ले रही थी अपनी मोबाईल से ...मैं इसकी नाज़ुक उँगलियों और जीन्स और टॉप में फंसे तराशे जिस्म को देख रहा था... पहली नज़र में ही पूरी की पूरी छाप मेरे भीतर उतर गयी थी हालाँकि मैं न देखने का दिखावा करता रहा। औरतों का किस्सा बड़ा जानलेवा होता है श्रीमान। इनकी भीतर की भूलभुलैया में अगर आप उतर गए तो ये जहाँ ले जाकर आपको छोड़ेगी आपको वापसी का रास्ता भी न मिलेगा और अपनी चाहत की बात तो इन्हें भूल कर भी न बताइयेगा। औरतें उन्हीं को ज्यादा पसंद करती हैं जो उन्हें पसंद नहीं करता। तभी तो सभी खलनायकों की ढेर सारी प्रेमिकाएं होती हैं. मैं भी यही चाहता हूँ श्रीमान मेरी ढेर सारी प्रेमिकाएं हों. सब की सब मुझे पसंद करें ...मेरी बात मानती रहें. आप जानते हैं न श्रीमान, औरतें शासित होना पसंद करती हैं कहें चाहे कुछ भी....बस आपमें ये हुनर होना चाहिये. आप इन्हें अपने पीछे दौड़ाना चाहते हैं तो इनसे दूर रहिये। अपनी अकड़ में रहिये. जैसे मैं रहा और देखिये कैसे आई है सात दिनों के बाद आखिरकार। इन्हें ‘मैन’ चाहिये ‘बच्चा’ नहीं। हालाँकि मैं कोशिश करके भी उस तरह से खुरदुरा नहीं बन पाया तभी तो श्रीमान लड़कियां मुझे छोड़कर चली जाती हैं। इस बार मैं बेहद सावधान रहा। मैं उस दिन कोठी में भी उससे छुपता फिर रहा था और फिर वापस आने पर इस बार में घुस आया था। वैसे भी मुझे कुछ दिनों के लिए एक अंग्रेज लड़की मिल गयी थी और मेरी रातें बड़े मज़े से गुज़र रही थीं। क्या कहा? मैं झूठ बोल रहा हूँ. नहीं श्रीमान। दरअसल मुझे इन जल्द हासिल होने वाली औरतों से नफरत है पर यह भी सच है ये आपको वहां तक ले जाती हैं जहाँ आप इनके बिना नहीं पहुँच सकते। वर्जनाओं और डरों से दूर... इनके सामने आपको वे कपड़े पहनने की कोई जरूरत नहीं है जो आप हर वक्त पहने रहते हैं। आप नंग -धड़ंग इनके सामने विचर सकते हैं. कपड़े गिराते ही आपमें से बहुत कुछ गिर जाता है... और आप फूल से हलके हो जाते हैं. और श्रीमान सच तो यह है कोई औरत बाजारू नहीं होती। हम ही साले उसे बाज़ार में खड़ा कर देते हैं अपने लिए ...एक घर में ...एक बाज़ार में ...पर श्रीमान ये मामले इतने दोटूक नहीं होते कि आप कह कर समझा सकें... मैंने अपने पापा को देखा है... जब वे छिप -छिप कर नंगी औरतों की तस्वीरें देखते हैं। मुझे दया आती है उन पर. जब उन्हें दस रोटियों की भूख होती है, दो रोटियां मिलती हैं उन्हें... और सालों बाद इस तरह के लोग एक लम्बी भूख बन कर रह जाते हैं। हालाँकि शादी नाम की कैद बनाई ही इसलिये गई है कि कोई भूखा न रहे पर अधिकतर लोग भूखे रहते हैं और सड़क किनारे बनी दुकानों पर टूट पड़ते हैं। देखिये श्रीमान, मैं आपको भटका नहीं रहा. मैं चाहता हूँ आपको उस पाइंट पर खड़ा कर दूं जहाँ से आप सब देख सकें। फिर भी ऐसा बहुत कुछ छूट जायेगा जिसे आप पकड़ नहीं सकेंगे। और अगर ऐसा हो तो यही समझियेगा मैं ठीक से अपनी बात समझा नहीं सका आपको। अब वह अन्दर आ गई है ...आप चुपचाप यहीं बैठे रहिये अपने गिलास के सामने और मुझे अपना काम करने दीजिये।

000

न देह, न रूह, किसी को देखकर आप यह अनुमान नहीं लगा सकते कि वह कितनी उजली या मैली है। हम देखते हैं त्वचा या बालों का रंग, आँखों की चमक, चेहरे की ताब और वह खामोश भाषा जो कहने -सुनने से परे अपना मायाजाल खुद रचती है।

मैं जानती हूँ आप क्या सोच रहे हैं मेरे बारे में? क्या मुझे इससे कोई फ़र्क पड़ता है? जिसके संबंधों का इतिहास आपको नहीं मालूम उसके बारे में किया गया कोई भी फैसला एक गलत फ़ैसला होगा।

जैसे ही मैं उसके सामने बैठी उसने मुस्कुरा कर मुझे देखा...

‘प्लीज़ कम ...वेटिंग फॉर यू ...’

मेरी आँखें चौड़ी हो गईं..‘तुम मुझे देखते रहे हो...’

‘आफकोर्स यस .यू आर वेरी ब्यूटीफुल. एक जलती हुई लपट हैं आप, कोई भी भस्म होना चाहेगा.’

‘तो वह नाटक था कि तुम मुझे नहीं देख रहे.’

‘ऑफकोर्स ...आपको निकट लाने का...’

‘पुराना फार्मूला?’ मुझे हँसी आ गई।

‘कुछ फार्मूले कभी पुराने नहीं पड़ते. कुछ रिश्ते भी कभी पुराने नहीं पड़ते... औरत -मर्द का रिश्ता। अगर आप उस दूसरे के बारे में सोच रहे हैं तो यकीन मानिये वह भी आपके बारे में सोच रहा है। आप तो मुझसे ज्यादा एक्सपीरियंस्ड हैं।’

‘क्या तुम्हें नहीं लगता दुनिया इस पैग की तरह होनी चाहिये ...आओ ...पियो और जाओ... एक्सपीरियंस हमारे पाँव की बेड़ी बन जाता है। एक्सपीरियंस के हिसाब से तो मुझे पुरुषों से नफ़रत होनी चाहिये...’ मैं आहिस्ता हँस पड़ती हूँ।

‘मुझसे मिलने के बाद आपको पुरुषों से प्यार हो जाएगा।’ उसने बेहद कोमल स्वर में कहा।

‘हा ...हा ...हा... अगर मैं सिर्फ़ तुम्हीं से प्यार कर सकूँ?’

‘अगर ऐसा हो जाये मुझे बता ज़रूर दीजियेगा...’ वह उसी तरह मुस्कराता रहा।

‘तुमसे मिलने वाली सारी लड़कियों की यही गति होती है क्या?’

‘नहीं ...पर मैं चाहता हूँ आपकी हो...’

और हम दोनों हँस पड़ते हैं। उसने वेटर को बुलाया और मेरे लिए वोदका ऑर्डर कर दी।

‘आपने सोचा नहीं यह अजनबी आवारा लड़का और मैं एक संभ्रांत महिला...’ उसने कहा।

‘मैं अपनी सोच से आगे जाना चाहती हूँ... और जिसे तुम सम्भ्रांत होना कहते हो वह बड़ी यातना सहने के बाद आता है...’ पता नहीं वह समझा या नहीं. पर मुझे उसका उत्साह से दमकता चेहरा अच्छा लगता है... मैंने शिद्दत से महसूस किया... जिस चीज़ की गुज़र जाने के बाद बेतहाशा तलब होती है वह है जवानी. जब सारी दुनिया तुम पर टूट पड़ना चाहती है तब तुम भागे -भागे फिरते हो। और जब तुम उन पर टूट पड़ना चाहते हो वे भागी -भागी फिरती हैं. मैं उससे बहुत सी चीजें कभी नहीं कहूँगी ...वह नहीं समझेगा... वह समझे मैं चाहती भी नहीं हूँ।

‘आप क्या करती हैं?’

‘मेरा एक बुटीक है जिसे मैंने पिछले पंद्रह सालों की अनथक मेहनत से खड़ा किया है। अपने डायवोर्स के बाद ...वे बड़े कठिन दिन थे। सच तो यह है अपने काम को अपना जीवन सौंपने के बाद आपके पास बहुत कुछ बचा नहीं रह जाता या अगर बचता भी होगा तो आपको पता नहीं चल पाता...और आप चाहते भी नहीं हैं आपको पता चले। तुम्हें पता है हम सबसे ज्यादा किससे डरते हैं ...खुद से...’

‘इंट्रसटिंग...’ उसने कहा।

‘मैं भी खुद से डरती थी. अपनी मांगों से ...अपनी चाहनाओं से...’

‘और अब आपने खुद से डरना छोड़ दिया है?’

‘मैं खुद को दिखा देना चाहती हूँ कि मैं तुमसे नहीं डरती।’ मैंने मुस्करा कर कहा तो वह बहुत ज़ोर से हँस पड़ा। मैं उसकी हँसी देखती रही।

वह मुझे गौर से देखता अपनी वोदका पी रहा है। बहुत आहिस्ता -आहिस्ता हम एक-दूसरे की तरफ बढ़ रहे थे। शुरू में तो वह मुझसे ‘मैम....मैम...’ कहकर बात करता रहा. आखिर मैं कमजकम उससे दस साल बड़ी थी...फिर धीरे-धीरे हम खुलते चले गए। उसने बताया कि अपनी पढ़ाई पूरी करने के बाद वह एक ऐसे जॉब की तलाश में है जो उसके पांव की बेड़ी न बने। उसके पहले वह यूँ ही एक आवारा किस्म की ज़िन्दगी जीना चाहता है। ‘आवारा किस्म की ज़िन्दगी’ ...इन शब्दों को मैं एक -एक घूँट की तरह पीती रही। क्या यह सिर्फ़ पुरुषों के भाग्य में है?

‘इसके पहले कि तुम्हें शादी के खूंटे से बाँध दिया जाये...?’

‘इस खूंटे से तो मैं बंधने से रहा. आपको बताने में कोई हर्ज़ नहीं है मैं दो साल लिव इन रिलेशन में रहा हूँ।’

‘फिर?’

‘फिर क्या? सब खत्म... वह चली गयी।’

‘उसका अहसान मानो कि वक्त रहते उसने तुम्हें छोड़ दिया और अब तुम दोनों स्वतंत्र हो...’

‘आप मुझे मेरे गिल्ट से निकाल रही हैं...’

‘एक बात अच्छी तरह समझ लो। ऐसा कोई नहीं जो अनंतकाल तक आपके साथ चलने को राजी हो सके। ऐसी मांग, ऐसी चाह ही पागलपन है। लोग आते हैं अपना रोल प्ले कर चले जाते हैं। हम क्यों उन्हें रोककर रखना चाहते हैं? उनका और अपना जीवन नरक बनाने के लिए? और फिर हर दोस्त हमारे अन्दर एक नया संसार पैदा करता है, यह संसार हममें ही छुपा रहता है जब तक वह आकर इसे अनावृत नहीं कर देता।’

‘इस तरह तो आपके भीतर बहुत से संसार अनावृत हो गए होंगे?’

‘और बहुत से अभी नहीं हुए हैं...’ मैं मुस्कराती रही। जिस क्षण गलत समझे जाने का भय आपके भीतर से निकल जाता है उस क्षण के बाद अपना सच जीने का हुनर आपको आ जाता है।

वह ध्यान से सुन रहा है... उसकी आँखें सिकुड़ गयी हैं. पता नहीं कितना समझा।

‘तो आपने किसी को रोकने की कोशिश नहीं की?’

‘नहीं ...सब चले गए क्योंकि सब चले जाते हैं.’

दो पैग के बाद मैं खुलती चली गयी। शराब कुछ देर के लिए ज़िन्दगी के मामूली मसलों से तुम्हें ऊपर उठा देती है... खुद से ऊपर उठा देती है। पिछले कुछ सालों से वक्त का गुजरते जाना मैं बिलकुल साफ़ -साफ़ महसूस कर पा रही हूँ ...क्यों चाहती हूँ मैं इसका साथ? अपने अकेलेपन से मुक्ति पाने के लिए? मुझे उस नशे में एक तीव्र अहसास हुआ... पिछले न जाने कितने सालों से मैं अपनी स्वतंत्रता में भी अकेलेपन की पीड़ा भोग रही हूँ। हम स्ति्रयों का जीवन एक अजीब सी दुश्चिंता और डर में बीतता है। डर ...असुरक्षा का, लोगों का, भूत-भविष्य का, पुरुषों का और इस बात का कि ये डर कोई देख न ले। हम अपने मन का नहीं जी पाते तो सोचते हैं क्यों नहीं? जी लेते हैं तो सोचते हैं क्यों?

आप कहेंगे, बेवकूफ औरत! जरूर कहिये जनाब... ये हमें बहुत बाद में पता चलता है एक लम्बी उम्र गुज़ारने के बाद कि दरअसल हम खुद पर बोझ हैं. हम खुद को किसी को दे देना चाहते हैं. क्या आपको लगता है अकेलेपन की पीड़ा से छुटकारा पाने का कोई दूसरा रास्ता भी है?

हम दोनों के हाथ में तीसरा पैग है ...मैं उसकी आँखों में अचानक पैदा हुई लपट साफ़ देख पा रही हूँ ...वह कभी आगे बढ़ता कभी पीछे हटता जान पड़ता है... मुझे हँसी आ रही है ...देह और मन का यह द्वंद मेरे लिए कितना जाना-पहचाना और यातनादायी है. ये दोनों कभी एक-दूसरे से हाथ नहीं मिलाते। देह नैसर्गिक होना चाहती है, मन उसे बाँध कर रखना चाहता है। मैंने उसे कुछ नहीं कहा। उसने चौथा पैग बना दिया और इसके बाद मुझे सिर्फ इतना याद है कि उसके कंधे का सहारा लेकर मैं बाहर आई थी। ऑटो में बेसुध बैठी थी और उसके बाद अपने कमरे में...

वह मेरे पास बैठा है ...धीरे -धीरे मुझे खोलता और खुलता... परत दर परत...

‘तुम सोचते होगे ये औरत मेरी मां की उम्र की है और...’

‘शटअप... मैं इस तरह नहीं सोचता...’

‘डज़ इट मेक एनी डिफरेन्स?’

‘इट डज़... लिसन ...आय वांट यू ...आय नीड यू...’

‘बट यू डोंट लव मी.’

‘हा ....हा.......हा......यू नो ...औरतें कभी बड़ी नहीं हो पातीं ...न कभी प्रेक्टिकल हो पाती हैं ...तुम अभी भी इस शब्द के पीछे भाग रही हो? मेरी गर्लफ्रेंड भी मुझसे हमेशा यही पूछती थी ....डू यू लव मी? मैं हमेशा कहता था ..यस। क्योंकि इसके अलावा कोई कुछ सुनना ही नहीं चाहता। कुछ शब्द बनाये ही गए हैं दूसरों को बेवकूफ बनाने के लिए ...लव ...गॉड ...आस्था ...विश्वास... ये शब्द सुनने में अच्छे लगते हैं पर हकीकत से इनका कोई वास्ता नहीं होता।’

‘तुम इस उम्र में इतने प्रेक्टिकल कैसे हो?’

‘लड़कियां बना देती हैं पर अफ़सोस वे खुद नहीं बन पातीं।’ वह फिर हँसा।

‘मुझमें आओ... हम एक सांस लेंगे और एक हो जायेंगे... आपको इतना और इस तरह का प्यार किसी ने नहीं किया होगा। यू आर थर्स्टी....वाटर इन मी... तूफान हूँ मैं... नष्ट हो जाऊंगा. नष्ट कर दूंगा।’

और वह मुझ पर टूट पड़ा...

वह एक आदिम जिप्सी नृत्य था ...वह जितनी बार मुझे पकड़ता मैं छूट-छूट जाती थी ...मुझे वहां मत ढूंढो जहाँ मैं नहीं हूँ... नाभि के नीचे नहीं..... नाभि के ऊपर है रहस्य ...पर्वतों के बीच उदित होता है वहीं सूर्य ...आओ ...उसे देखें ...उसके आने से आती है हरीतिमा. समस्त कायनात खिल उठती है. आओ ...आकाश से इसे झपक लें। पी लें इसे ...रुको -रुको सुनो ..उडो ऊपर ...और ऊपर ...और ऊपर ...तुम्हारे पंख कितने बेचैन हैं? और ये बादल हमें कहाँ उड़ाये लिये जा रहे हैं? ये उड़ान... ओह... और ऊपर... और ऊपर ...इन बादलों के पार ...यह भूरा कोमल अहसास ...ये हरे रंग ...आओ ...प्रकृति ने एक गीत गाया है? हम इस धुन पर नृत्य करें ...ये फूल से हलके पैर ...मुझे उठा लो...ओह ...ओह...एक आवारा चीख कमरे में बिखर गयी।

000

आज आपके मैं एक कन्फेशन करना चाहता हूँ... मैंने आपको बताया था न मुझे इस तरह की जल्द हासिल होने वाली औरतों से सख्त नफ़रत है...हालाँकि जब मैं इससे मिला यह मुझे बिल्कुल अलग लगी. आप जानते हैं न यह मेरे लिए पहली बार नहीं है पर आज मैं भूल गया कि मैं कौन हूँ और क्या कर रहा हूँ? यह मुझे बहा ले गयी. मैं समंदर में तैरने का अभ्यास कर रहा था....मुझे उस पार पहुंचना था जो न जाने कहाँ था? मुझे लगा मेरी नाव पलट गयी है और मैं डूब रहा हूँ...वह डूबने का अद्भुत सुख और फिर उस नाव के एक पट्टे को पकड़ कर तैरते हुए ऊपर आना...निढाल जिस्म को किनारे पर ढहा देना...लहरों ने जब हमें किनारे पर फेंका ...हम उसी तरह पड़े रहे ...एक-दूसरे में गुंथे...

इस रात के बाद हम अपनी अपनी दुनियाओं में वापस चले जायेंगे... पर मैं इसे कभी नहीं भूल पाऊँगा...

मैं इससे वह सब नहीं कह पाया जो मैं कहना चाहता था...पर जो भी मैंने कहा, वह चुपचाप सुनती रही फिर सो गयी। मैं उसे सोते हुये देख रहा हूँ... मैं उसकी नींद नहीं तोड़ना चाहता।

कुछ देर बाद उसने आँखें खोली और मुझे देखा ...उसकी आँखों में हैरानी उतर आई ..मैं अब तक वहँा था?

‘सुनो ...’ मैंने उसे पुकारा ... ‘आय लव यू ...रियली...’

‘सुनो ...क्या तुम थोड़ा सा मुझे देख सके?’ उसकी वह आवाज़ मेरे आर-पार निकल गयी।

000

दूसरे दिन मैंने आईने में खुद को देखा और हैरान रह गयी। न जाने कितने बरस मेरे जिस्म से झर गए थे... शायद दस ...शायद बीस...मुझे सचमुच नहीं पता...पर मैं नई सी हो गयी थी। नई सी नहीं, नई। मानो मैं अपनी बेटी हूँ... और मैं पीड़ा और प्रसन्नता से पुलकित हो उठी। जानती हूँ आप दुनियादार लोगों को लगता है वक्त और परिस्थितियों के साथ औरत को खुद को मार देना चाहिये और हम मार देते हैं क्योंकि आप लोग ऐसा चाहते हैं। एक बात बताइये आप लोगों को औरत की स्वतंत्रता से इतना डर क्यों लगता है? हमें बाँध नहीं पाते इसलिये? औरत को खुद को मारने की तरकीबें आप उन्हें उनके बचपन में ही सिखा देते हो। मैंने भी मार दिया था खुद को अपने जाहिल पति से डाइवोर्स के बाद। फेंक दिया था खुद को खुद के अन्दर पर क्या करें? सालों बाद जब ढक्कन उठाकर भीतर झांकते हैं तो अपनी साँसें चलती हुई पाते हैं, अपने अनजाने मैं जिन्दा थी और ये जो आईने के सामने खुद को निहार रही है ...वही है। यकीन नहीं आता आपको? तो इसकी आँखों में देखिये ...इन्हीं आँखों के अन्दर नीचे उतरने वाली सीढ़ियां हैं...क्या कहा... आपका इससे कोई परिचय नहीं है ...जानती हूँ जनाब, ऐसी औरतों को आप घरों में रहने कहाँ देते हैं? घरों में तो वो क्या कहते हैं पालतू मुर्दा औरतें रहती हैं ...जो किसी रोबोट की तरह आपके बताये काम करती हैं ...घरों में ‘ये जिंदा औरतें’ नहीं रहतीं ‘ये’ अपने अन्दर छिप कर बैठी रहती हैं और आप उनसे कभी मिल नहीं पाते... कभी इनसे मिलने की ख्वाहिश हो तो जरा संभल कर ये सीढियां उतरियेगा ...अपना हाथ छूटा तो खुद को कभी ढूंढ न पाएंगे।

---

संपर्क:

बी-१३६, वी.आई.पी.

एस्टेट, विधान सभा मार्ग,

रायपुर (छत्तीसगढ़)

मो. - ९८२७९४७४८०

COMMENTS

BLOGGER
नाम

 आलेख ,1, कविता ,1, कहानी ,1, व्यंग्य ,1,14 सितम्बर,7,14 september,6,15 अगस्त,4,2 अक्टूबर अक्तूबर,1,अंजनी श्रीवास्तव,1,अंजली काजल,1,अंजली देशपांडे,1,अंबिकादत्त व्यास,1,अखिलेश कुमार भारती,1,अखिलेश सोनी,1,अग्रसेन,1,अजय अरूण,1,अजय वर्मा,1,अजित वडनेरकर,1,अजीत प्रियदर्शी,1,अजीत भारती,1,अनंत वडघणे,1,अनन्त आलोक,1,अनमोल विचार,1,अनामिका,3,अनामी शरण बबल,1,अनिमेष कुमार गुप्ता,1,अनिल कुमार पारा,1,अनिल जनविजय,1,अनुज कुमार आचार्य,5,अनुज कुमार आचार्य बैजनाथ,1,अनुज खरे,1,अनुपम मिश्र,1,अनूप शुक्ल,14,अपर्णा शर्मा,6,अभिमन्यु,1,अभिषेक ओझा,1,अभिषेक कुमार अम्बर,1,अभिषेक मिश्र,1,अमरपाल सिंह आयुष्कर,2,अमरलाल हिंगोराणी,1,अमित शर्मा,3,अमित शुक्ल,1,अमिय बिन्दु,1,अमृता प्रीतम,1,अरविन्द कुमार खेड़े,5,अरूण देव,1,अरूण माहेश्वरी,1,अर्चना चतुर्वेदी,1,अर्चना वर्मा,2,अर्जुन सिंह नेगी,1,अविनाश त्रिपाठी,1,अशोक गौतम,3,अशोक जैन पोरवाल,14,अशोक शुक्ल,1,अश्विनी कुमार आलोक,1,आई बी अरोड़ा,1,आकांक्षा यादव,1,आचार्य बलवन्त,1,आचार्य शिवपूजन सहाय,1,आजादी,3,आत्मकथा,1,आदित्य प्रचंडिया,1,आनंद टहलरामाणी,1,आनन्द किरण,3,आर. के. नारायण,1,आरकॉम,1,आरती,1,आरिफा एविस,5,आलेख,4288,आलोक कुमार,3,आलोक कुमार सातपुते,1,आवश्यक सूचना!,1,आशीष कुमार त्रिवेदी,5,आशीष श्रीवास्तव,1,आशुतोष,1,आशुतोष शुक्ल,1,इंदु संचेतना,1,इन्दिरा वासवाणी,1,इन्द्रमणि उपाध्याय,1,इन्द्रेश कुमार,1,इलाहाबाद,2,ई-बुक,374,ईबुक,231,ईश्वरचन्द्र,1,उपन्यास,269,उपासना,1,उपासना बेहार,5,उमाशंकर सिंह परमार,1,उमेश चन्द्र सिरसवारी,2,उमेशचन्द्र सिरसवारी,1,उषा छाबड़ा,1,उषा रानी,1,ऋतुराज सिंह कौल,1,ऋषभचरण जैन,1,एम. एम. चन्द्रा,17,एस. एम. चन्द्रा,2,कथासरित्सागर,1,कर्ण,1,कला जगत,113,कलावंती सिंह,1,कल्पना कुलश्रेष्ठ,11,कवि,2,कविता,3239,कहानी,2360,कहानी संग्रह,247,काजल कुमार,7,कान्हा,1,कामिनी कामायनी,5,कार्टून,7,काशीनाथ सिंह,2,किताबी कोना,7,किरन सिंह,1,किशोरी लाल गोस्वामी,1,कुंवर प्रेमिल,1,कुबेर,7,कुमार करन मस्ताना,1,कुसुमलता सिंह,1,कृश्न चन्दर,6,कृष्ण,3,कृष्ण कुमार यादव,1,कृष्ण खटवाणी,1,कृष्ण जन्माष्टमी,5,के. पी. सक्सेना,1,केदारनाथ सिंह,1,कैलाश मंडलोई,3,कैलाश वानखेड़े,1,कैशलेस,1,कैस जौनपुरी,3,क़ैस जौनपुरी,1,कौशल किशोर श्रीवास्तव,1,खिमन मूलाणी,1,गंगा प्रसाद श्रीवास्तव,1,गंगाप्रसाद शर्मा गुणशेखर,1,ग़ज़लें,550,गजानंद प्रसाद देवांगन,2,गजेन्द्र नामदेव,1,गणि राजेन्द्र विजय,1,गणेश चतुर्थी,1,गणेश सिंह,4,गांधी जयंती,1,गिरधारी राम,4,गीत,3,गीता दुबे,1,गीता सिंह,1,गुंजन शर्मा,1,गुडविन मसीह,2,गुनो सामताणी,1,गुरदयाल सिंह,1,गोरख प्रभाकर काकडे,1,गोवर्धन यादव,1,गोविन्द वल्लभ पंत,1,गोविन्द सेन,5,चंद्रकला त्रिपाठी,1,चंद्रलेखा,1,चतुष्पदी,1,चन्द्रकिशोर जायसवाल,1,चन्द्रकुमार जैन,6,चाँद पत्रिका,1,चिकित्सा शिविर,1,चुटकुला,71,ज़कीया ज़ुबैरी,1,जगदीप सिंह दाँगी,1,जयचन्द प्रजापति कक्कूजी,2,जयश्री जाजू,4,जयश्री राय,1,जया जादवानी,1,जवाहरलाल कौल,1,जसबीर चावला,1,जावेद अनीस,8,जीवंत प्रसारण,141,जीवनी,1,जीशान हैदर जैदी,1,जुगलबंदी,5,जुनैद अंसारी,1,जैक लंडन,1,ज्ञान चतुर्वेदी,2,ज्योति अग्रवाल,1,टेकचंद,1,ठाकुर प्रसाद सिंह,1,तकनीक,32,तक्षक,1,तनूजा चौधरी,1,तरुण भटनागर,1,तरूण कु सोनी तन्वीर,1,ताराशंकर बंद्योपाध्याय,1,तीर्थ चांदवाणी,1,तुलसीराम,1,तेजेन्द्र शर्मा,2,तेवर,1,तेवरी,8,त्रिलोचन,8,दामोदर दत्त दीक्षित,1,दिनेश बैस,6,दिलबाग सिंह विर्क,1,दिलीप भाटिया,1,दिविक रमेश,1,दीपक आचार्य,48,दुर्गाष्टमी,1,देवी नागरानी,20,देवेन्द्र कुमार मिश्रा,2,देवेन्द्र पाठक महरूम,1,दोहे,1,धर्मेन्द्र निर्मल,2,धर्मेन्द्र राजमंगल,1,नइमत गुलची,1,नजीर नज़ीर अकबराबादी,1,नन्दलाल भारती,2,नरेंद्र शुक्ल,2,नरेन्द्र कुमार आर्य,1,नरेन्द्र कोहली,2,नरेन्‍द्रकुमार मेहता,9,नलिनी मिश्र,1,नवदुर्गा,1,नवरात्रि,1,नागार्जुन,1,नाटक,152,नामवर सिंह,1,निबंध,3,नियम,1,निर्मल गुप्ता,2,नीतू सुदीप्ति ‘नित्या’,1,नीरज खरे,1,नीलम महेंद्र,1,नीला प्रसाद,1,पंकज प्रखर,4,पंकज मित्र,2,पंकज शुक्ला,1,पंकज सुबीर,3,परसाई,1,परसाईं,1,परिहास,4,पल्लव,1,पल्लवी त्रिवेदी,2,पवन तिवारी,2,पाक कला,23,पाठकीय,62,पालगुम्मि पद्मराजू,1,पुनर्वसु जोशी,9,पूजा उपाध्याय,2,पोपटी हीरानंदाणी,1,पौराणिक,1,प्रज्ञा,1,प्रताप सहगल,1,प्रतिभा,1,प्रतिभा सक्सेना,1,प्रदीप कुमार,1,प्रदीप कुमार दाश दीपक,1,प्रदीप कुमार साह,11,प्रदोष मिश्र,1,प्रभात दुबे,1,प्रभु चौधरी,2,प्रमिला भारती,1,प्रमोद कुमार तिवारी,1,प्रमोद भार्गव,2,प्रमोद यादव,14,प्रवीण कुमार झा,1,प्रांजल धर,1,प्राची,367,प्रियंवद,2,प्रियदर्शन,1,प्रेम कहानी,1,प्रेम दिवस,2,प्रेम मंगल,1,फिक्र तौंसवी,1,फ्लेनरी ऑक्नर,1,बंग महिला,1,बंसी खूबचंदाणी,1,बकर पुराण,1,बजरंग बिहारी तिवारी,1,बरसाने लाल चतुर्वेदी,1,बलबीर दत्त,1,बलराज सिंह सिद्धू,1,बलूची,1,बसंत त्रिपाठी,2,बातचीत,2,बाल उपन्यास,6,बाल कथा,356,बाल कलम,26,बाल दिवस,4,बालकथा,80,बालकृष्ण भट्ट,1,बालगीत,20,बृज मोहन,2,बृजेन्द्र श्रीवास्तव उत्कर्ष,1,बेढब बनारसी,1,बैचलर्स किचन,1,बॉब डिलेन,1,भरत त्रिवेदी,1,भागवत रावत,1,भारत कालरा,1,भारत भूषण अग्रवाल,1,भारत यायावर,2,भावना राय,1,भावना शुक्ल,5,भीष्म साहनी,1,भूतनाथ,1,भूपेन्द्र कुमार दवे,1,मंजरी शुक्ला,2,मंजीत ठाकुर,1,मंजूर एहतेशाम,1,मंतव्य,1,मथुरा प्रसाद नवीन,1,मदन सोनी,1,मधु त्रिवेदी,2,मधु संधु,1,मधुर नज्मी,1,मधुरा प्रसाद नवीन,1,मधुरिमा प्रसाद,1,मधुरेश,1,मनीष कुमार सिंह,4,मनोज कुमार,6,मनोज कुमार झा,5,मनोज कुमार पांडेय,1,मनोज कुमार श्रीवास्तव,2,मनोज दास,1,ममता सिंह,2,मयंक चतुर्वेदी,1,महापर्व छठ,1,महाभारत,2,महावीर प्रसाद द्विवेदी,1,महाशिवरात्रि,1,महेंद्र भटनागर,3,महेन्द्र देवांगन माटी,1,महेश कटारे,1,महेश कुमार गोंड हीवेट,2,महेश सिंह,2,महेश हीवेट,1,मानसून,1,मार्कण्डेय,1,मिलन चौरसिया मिलन,1,मिलान कुन्देरा,1,मिशेल फूको,8,मिश्रीमल जैन तरंगित,1,मीनू पामर,2,मुकेश वर्मा,1,मुक्तिबोध,1,मुर्दहिया,1,मृदुला गर्ग,1,मेराज फैज़ाबादी,1,मैक्सिम गोर्की,1,मैथिली शरण गुप्त,1,मोतीलाल जोतवाणी,1,मोहन कल्पना,1,मोहन वर्मा,1,यशवंत कोठारी,8,यशोधरा विरोदय,2,यात्रा संस्मरण,31,योग,3,योग दिवस,3,योगासन,2,योगेन्द्र प्रताप मौर्य,1,योगेश अग्रवाल,2,रक्षा बंधन,1,रच,1,रचना समय,72,रजनीश कांत,2,रत्ना राय,1,रमेश उपाध्याय,1,रमेश राज,26,रमेशराज,8,रवि रतलामी,2,रवींद्र नाथ ठाकुर,1,रवीन्द्र अग्निहोत्री,4,रवीन्द्र नाथ त्यागी,1,रवीन्द्र संगीत,1,रवीन्द्र सहाय वर्मा,1,रसोई,1,रांगेय राघव,1,राकेश अचल,3,राकेश दुबे,1,राकेश बिहारी,1,राकेश भ्रमर,5,राकेश मिश्र,2,राजकुमार कुम्भज,1,राजन कुमार,2,राजशेखर चौबे,6,राजीव रंजन उपाध्याय,11,राजेन्द्र कुमार,1,राजेन्द्र विजय,1,राजेश कुमार,1,राजेश गोसाईं,2,राजेश जोशी,1,राधा कृष्ण,1,राधाकृष्ण,1,राधेश्याम द्विवेदी,5,राम कृष्ण खुराना,6,राम शिव मूर्ति यादव,1,रामचंद्र शुक्ल,1,रामचन्द्र शुक्ल,1,रामचरन गुप्त,5,रामवृक्ष सिंह,10,रावण,1,राहुल कुमार,1,राहुल सिंह,1,रिंकी मिश्रा,1,रिचर्ड फाइनमेन,1,रिलायंस इन्फोकाम,1,रीटा शहाणी,1,रेंसमवेयर,1,रेणु कुमारी,1,रेवती रमण शर्मा,1,रोहित रुसिया,1,लक्ष्मी यादव,6,लक्ष्मीकांत मुकुल,2,लक्ष्मीकांत वैष्णव,1,लखमी खिलाणी,1,लघु कथा,288,लघुकथा,1340,लघुकथा लेखन पुरस्कार आयोजन,241,लतीफ घोंघी,1,ललित ग,1,ललित गर्ग,13,ललित निबंध,20,ललित साहू जख्मी,1,ललिता भाटिया,2,लाल पुष्प,1,लावण्या दीपक शाह,1,लीलाधर मंडलोई,1,लू सुन,1,लूट,1,लोक,1,लोककथा,378,लोकतंत्र का दर्द,1,लोकमित्र,1,लोकेन्द्र सिंह,3,विकास कुमार,1,विजय केसरी,1,विजय शिंदे,1,विज्ञान कथा,79,विद्यानंद कुमार,1,विनय भारत,1,विनीत कुमार,2,विनीता शुक्ला,3,विनोद कुमार दवे,4,विनोद तिवारी,1,विनोद मल्ल,1,विभा खरे,1,विमल चन्द्राकर,1,विमल सिंह,1,विरल पटेल,1,विविध,1,विविधा,1,विवेक प्रियदर्शी,1,विवेक रंजन श्रीवास्तव,5,विवेक सक्सेना,1,विवेकानंद,1,विवेकानन्द,1,विश्वंभर नाथ शर्मा कौशिक,2,विश्वनाथ प्रसाद तिवारी,1,विष्णु नागर,1,विष्णु प्रभाकर,1,वीणा भाटिया,15,वीरेन्द्र सरल,10,वेणीशंकर पटेल ब्रज,1,वेलेंटाइन,3,वेलेंटाइन डे,2,वैभव सिंह,1,व्यंग्य,2075,व्यंग्य के बहाने,2,व्यंग्य जुगलबंदी,17,व्यथित हृदय,2,शंकर पाटील,1,शगुन अग्रवाल,1,शबनम शर्मा,7,शब्द संधान,17,शम्भूनाथ,1,शरद कोकास,2,शशांक मिश्र भारती,8,शशिकांत सिंह,12,शहीद भगतसिंह,1,शामिख़ फ़राज़,1,शारदा नरेन्द्र मेहता,1,शालिनी तिवारी,8,शालिनी मुखरैया,6,शिक्षक दिवस,6,शिवकुमार कश्यप,1,शिवप्रसाद कमल,1,शिवरात्रि,1,शिवेन्‍द्र प्रताप त्रिपाठी,1,शीला नरेन्द्र त्रिवेदी,1,शुभम श्री,1,शुभ्रता मिश्रा,1,शेखर मलिक,1,शेषनाथ प्रसाद,1,शैलेन्द्र सरस्वती,3,शैलेश त्रिपाठी,2,शौचालय,1,श्याम गुप्त,3,श्याम सखा श्याम,1,श्याम सुशील,2,श्रीनाथ सिंह,6,श्रीमती तारा सिंह,2,श्रीमद्भगवद्गीता,1,श्रृंगी,1,श्वेता अरोड़ा,1,संजय दुबे,4,संजय सक्सेना,1,संजीव,1,संजीव ठाकुर,2,संद मदर टेरेसा,1,संदीप तोमर,1,संपादकीय,3,संस्मरण,730,संस्मरण लेखन पुरस्कार 2018,128,सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन,1,सतीश कुमार त्रिपाठी,2,सपना महेश,1,सपना मांगलिक,1,समीक्षा,847,सरिता पन्थी,1,सविता मिश्रा,1,साइबर अपराध,1,साइबर क्राइम,1,साक्षात्कार,21,सागर यादव जख्मी,1,सार्थक देवांगन,2,सालिम मियाँ,1,साहित्य समाचार,98,साहित्यम्,6,साहित्यिक गतिविधियाँ,216,साहित्यिक बगिया,1,सिंहासन बत्तीसी,1,सिद्धार्थ जगन्नाथ जोशी,1,सी.बी.श्रीवास्तव विदग्ध,1,सीताराम गुप्ता,1,सीताराम साहू,1,सीमा असीम सक्सेना,1,सीमा शाहजी,1,सुगन आहूजा,1,सुचिंता कुमारी,1,सुधा गुप्ता अमृता,1,सुधा गोयल नवीन,1,सुधेंदु पटेल,1,सुनीता काम्बोज,1,सुनील जाधव,1,सुभाष चंदर,1,सुभाष चन्द्र कुशवाहा,1,सुभाष नीरव,1,सुभाष लखोटिया,1,सुमन,1,सुमन गौड़,1,सुरभि बेहेरा,1,सुरेन्द्र चौधरी,1,सुरेन्द्र वर्मा,62,सुरेश चन्द्र,1,सुरेश चन्द्र दास,1,सुविचार,1,सुशांत सुप्रिय,4,सुशील कुमार शर्मा,24,सुशील यादव,6,सुशील शर्मा,16,सुषमा गुप्ता,20,सुषमा श्रीवास्तव,2,सूरज प्रकाश,1,सूर्य बाला,1,सूर्यकांत मिश्रा,14,सूर्यकुमार पांडेय,2,सेल्फी,1,सौमित्र,1,सौरभ मालवीय,4,स्नेहमयी चौधरी,1,स्वच्छ भारत,1,स्वतंत्रता दिवस,3,स्वराज सेनानी,1,हबीब तनवीर,1,हरि भटनागर,6,हरि हिमथाणी,1,हरिकांत जेठवाणी,1,हरिवंश राय बच्चन,1,हरिशंकर गजानंद प्रसाद देवांगन,4,हरिशंकर परसाई,23,हरीश कुमार,1,हरीश गोयल,1,हरीश नवल,1,हरीश भादानी,1,हरीश सम्यक,2,हरे प्रकाश उपाध्याय,1,हाइकु,5,हाइगा,1,हास-परिहास,38,हास्य,59,हास्य-व्यंग्य,78,हिंदी दिवस विशेष,9,हुस्न तबस्सुम 'निहाँ',1,biography,1,dohe,3,hindi divas,6,hindi sahitya,1,indian art,1,kavita,3,review,1,satire,1,shatak,3,tevari,3,undefined,1,
ltr
item
रचनाकार: कहानी / क्या आपने हमें देखा है / जया जादवानी / रचना समय - मार्च 2016 / कहानी विशेषांक 2
कहानी / क्या आपने हमें देखा है / जया जादवानी / रचना समय - मार्च 2016 / कहानी विशेषांक 2
https://lh3.googleusercontent.com/-hlFiBKeTbpY/V2Tzy8vbc8I/AAAAAAAAuao/Q0JfdUJ1bAo/image_thumb%25255B6%25255D.png?imgmax=800
https://lh3.googleusercontent.com/-hlFiBKeTbpY/V2Tzy8vbc8I/AAAAAAAAuao/Q0JfdUJ1bAo/s72-c/image_thumb%25255B6%25255D.png?imgmax=800
रचनाकार
https://www.rachanakar.org/2016/06/2016-2_45.html
https://www.rachanakar.org/
https://www.rachanakar.org/
https://www.rachanakar.org/2016/06/2016-2_45.html
true
15182217
UTF-8
Loaded All Posts Not found any posts VIEW ALL Readmore Reply Cancel reply Delete By Home PAGES POSTS View All RECOMMENDED FOR YOU LABEL ARCHIVE SEARCH ALL POSTS Not found any post match with your request Back Home Sunday Monday Tuesday Wednesday Thursday Friday Saturday Sun Mon Tue Wed Thu Fri Sat January February March April May June July August September October November December Jan Feb Mar Apr May Jun Jul Aug Sep Oct Nov Dec just now 1 minute ago $$1$$ minutes ago 1 hour ago $$1$$ hours ago Yesterday $$1$$ days ago $$1$$ weeks ago more than 5 weeks ago Followers Follow THIS PREMIUM CONTENT IS LOCKED STEP 1: Share to a social network STEP 2: Click the link on your social network Copy All Code Select All Code All codes were copied to your clipboard Can not copy the codes / texts, please press [CTRL]+[C] (or CMD+C with Mac) to copy Table of Content