प्राची - जुलाई 2016 / एक गधे की वापसी / धारावाहिक हास्य व्यंग्य उपन्यास / कृश्न चंदर

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हास्य-व्यंग्य धारावाहिक उपन्यास एक गधे की वापसी कृश्न चन्दर तीसरी किस्तः सम्मिलित होना महालक्ष्मी की रेस में घोड़ों के साथ , और मज...

हास्य-व्यंग्य

धारावाहिक उपन्यास

एक गधे की वापसी

कृश्न चन्दर

तीसरी किस्तः

सम्मिलित होना महालक्ष्मी की रेस में घोड़ों के साथ, और मजाक करना देखकर गधे को लोगों का, और बयान घुड़दौड़ के आर्श्चयजनक परिणाम का...

रुस्तम सेठ घनी मूंछों वाले आदमी और डॉक्टर को एक ओर ले गया. दोनों में देर तक कुछ खुसर-पुसर होती रही. उसके पश्चात् डॉक्टर और घनी मूंछों वाला आदमी दोनों कहीं चले गए और सेठ खेमजी को लेकर खुशी से मुस्कराता हुआ मेरे पास आया और बोला-

''सब ठीक हो गया है. कल से तुमको महालक्ष्मी के रेसकोर्स अस्तबल में भेज दिया जाएगा.''

''महालक्ष्मी के रेसकोर्स में! क्यों?''

''वहां एक मास पश्चात् तुम्हें क्रिसमस कपवाली रेस की प्रतियोगिता में सम्मिलित किया जाएगा.''

''मैं...?...एक गधा होकर घोड़ों की रेस में भाग लूंगा?''

मैंने आश्चर्य से कहा, ''आप लोगों की अक्ल तो ठीक है? आज तक कहीं कोई गधा किसी घोड़े से तेज दौड़ा है?''

रुस्तम सेठ ने मुस्कराकर कहा, ''तुम्हारा पीछा किया था और तुम पुलिस की जीप और दूसरी तीव्र गति वाली गाड़ियों से भी तेज भागते हुए माहिम से वर्ली के बीच तक चले आए थे. यदि तुम उस गति की तीन-चौथाई गति से भी रेस में दौड़े तो तुम सब घोड़ों को पीछे छोड़ जाओगे.''

मैंने आश्चर्य से कहा, ''सेठ, तो जिस दिन तुमने मेरी जान बचाई थी क्या उसी दिन तुमने इसका अनुमान लगा लिया था!''

सेठ हंसकर बोला, ''अनुमान मैंने पहले लगा लिया था, जान बाद में बचाई थी.''

''तो यह बात थी! इसलिए सेठ ने मेरी जान बचाई थी! मैं एक गधा...! घोड़ों की रेस में स्मगल किया जाऊंगा. अरे मारिया, जरा सोचो तो, यह स्मगलिंग कहां-कहां नहीं है!'' मैंने कुछ उदास और परेशान होकर मारिया से कहा, ''मेरा जी नहीं चाहता कि मैं इस रेस में भाग लूं.''

''सेठ ने तुम्हारी जान बचाई है. उसने तुम्हारे इलाज पर हजारों रुपये व्यय किए हैं.'' मारिया ने प्रश्न किया, ''क्या इतने बड़े अहसान करने वाले का तुम पर कोई अधिकार नहीं है! क्या तुम उनके अहसान का बदला नहीं चुकाओगे?''

''किन्तु इसका क्या भरोसा है कि मैं जरूर यह रेस जीत जाऊंगा. जिस स्पीड की सेठ बात करते हैं, उस समय की बात कुछ और थी. उस समय मेरे लिए जीवन और मृत्यु का प्रश्न था. ऐसे अवसर पर तो गधा भी एक घोड़े से तेज भाग सकता है...नहीं मारिया, मैं रेस में भाग नहीं लूंगा.''

''अच्छी तरह सोच लो,'' मारिया बोली, ''इतिहास में ऐसी घटना कभी घटित नहीं हुई, जब गधा घोड़ों की रेस में शामिल हुआ हो. तुम पहले गधे होगे! अपनी जाति के प्रथम प्रतिनिधि!!'' फिर कुछ रुककर बोली, ''तुम यदि इस रेस में शामिल नहीं होगे तो मारिया बेचारी की रोटी समाप्त हो जाएगी.''

''तुम्हारी रोटी?'' मैंने आश्चर्य से पूछा.

''तो तुम क्या समझते हो? सेठ ने मुझे अब तक कोई नौकर रखा हुआ है?'' मारिया मेरी गर्दन पर हाथ रखकर बोली, ''डियर डंकी, क्या तुम मेरे लिए रेस में भाग नहीं ले सकते?''

''तुम्हारे लिए तो मैं अपनी जान भी दे सकता हूं.'' मैंने निर्णयात्मक स्वर में कहा, ''यदि तुम्हारा मामला बीच में है तो समझ लो कि यह गधा इस रेस में अवश्य दौड़ेगा! न केवल दौड़ेगा, बल्कि रेस जीतने के लिए जान की बाजी भी लगा देगा!''

''डार्लिंग...'' मारिया ने खुश होकर मेरी गर्दन पर एक चुंबन लिया, ''मुझे तुमसे यही आशा थी?''

फिर रेस का दिन आ गया. कुछ समय पहले मुझे महालक्ष्मी के अस्तबल में भेज दिया गया था. किंतु भेद खुलने के भय से मुझे दूसरों घोड़ों के पृथक रखा गया था और किसी फोटोग्राफर को फोटो लेने की अनुमति न दी गई थी. रेस से कई घंटे पहले मारिया ने मुझे डटकर ठर्रा पिलाया और एक डॉक्टर ने मुझे एक इंजेक्शन दिया. मेरे शरीर में तीर की-सी सनसनाहट महसूस होने लगी.

रेसकोर्स के स्टैण्ड हजारों खिलाड़ियों से भरे हुए थे. जब लोगों ने मुझे देखा तो आश्चर्य से उनकी चीखें निकल गईं और दर्शकों के झुंड के झुंड ठट्ठा मारकर हंसने लगे. वे सब लोग मुझ पर हंस रहे थे.

मारे क्रोध के मेरे मुंह से झाग निकलने लगे. मैंने दांत पीसे. किंतु चुप रहा. ऑनर्स-गैलरी में मारिया सेठ रुस्तम के पास खड़ी थी और अपना गुलाबी रूमाल हिला-हिलाकर मेरा साहस बढ़ा रही थी.

दर्शकों की प्रतिक्रिया के फलस्वरूप मैं कुछ खिन्नमन हो गया था. किंतु मारिया को देखते ही मेरा दिल निश्चय के बल से भर गया और मैं रेस के घोड़ों की पंक्ति में सबसे अंत में खड़ा हो गया.

रेस के आरंभ होते समय भी सबसे अंत में था.

रेस के पहले चक्कर में भी सबसे अंत में था. जिधर-जिधर से मैं गुजरता गया, दर्शक मुझ पर हंसते थे.

'अरे यह गधा है गधा! इस इस्पानवी घोड़े से तो गधे भी तेज दौड़ते होंगे!''

किसी भी दर्शक ने मुझ पर एक रुपया भी लगाने का साहस न किया था. मारिया का चेहरा उड़ा हुआ था और रुस्तम सेठ का चेहरा पीला पड़ गया था.

मारिया के चेहरे को देखकर मेरे मन में जोश और उत्साह की एक लहर-सी उठी. मैंने दांत पीसकर एक ऐसी चौकड़ी भरी कि आधे फर्लांग में तीन घोड़ों से आगे निकल गया. फिर चौथे घोड़े से! फिर पांचवें घोड़े से! फिर छठें घोड़े से! फिर सातवें घोड़े से!

''बक अप गोल्डन स्टार!'' मारिया अत्यन्त प्रसन्नता से चिल्लाई.

सारे स्टैण्ड में केवल उसकी आवाज गूंजी, क्योंकि और किसी दर्शक ने मुझ पर दांव नहीं लगाया था. सब आश्चर्य से मुंह खोले खड़े थे.

अब मेरे आगे केवल दो घोड़े थे और विनिंट पोस्ट केवल एक फर्लांग की दूरी पर था.

''बक अप 'सुबह का तारा'!''

हजारों दर्शक 'सुबह का तारा' के लिए चिल्लाए, जो हम सबसे आगे था, जिस पर हजारों दर्शकों ने दांव लगाया था.

''बक अप 'माहपारा'!''

दूसरे दर्शकों ने 'माहपारा' के पक्ष में पुकारा, क्योंकि उन्होंने उस पर दांव लगाए थे और जिसका इस समय नंबर दो था.

''बक अप माई डार्लिंग गोल्डन स्टार!'' मारिया और जोर से चिल्लाई और उसकी आवाज सुनते ही मैं आंखें बंद करके अपने शरीर की पूरी शक्ति से दौड़ा और एक तीर की भांति सनसनाता हुआ, दोनों घोड़ों को पचास गज पीछे छोड़ता हुआ विनिंग पोस्ट, से आगे निकल गया.

बंबई रेसकोर्स के इतिहास में ऐसी घटना कभी नहीं घटी थी. 'गोल्डन स्टार' ने एक पर नब्बे का भाव दिया था. टिकट केवल 'गोल्डन स्टार' पर लगाए गए जो सबके सब रुस्तम सेठ के अपने आदमियों ने खरीदे थे. मारिया ने मुझ पर दो सौ रुपये लगाए थे, उसे अट्ठारह हजार मिले.

रुस्तम सेठ ने विभिन्न 'बुकियों' के हाथ भारी रकमें लगाई थीं. कुछ दूसरे घोड़ों पर भी दांव लगाए थे. हार-जीत सब कट-कटाकर उसने जो अनुमान लगाया तो उसे पता लगा कि उसने 'गोल्डन स्टार' पर दांव लगाने में कोई गलती नहीं की. दो 'बुकी' अवश्य फेल हो गए. किंतु सेठ ने ढाई लाख रुपये एक रेस से ही समेट लिए.

गोल्डन स्टार!

रेस समाप्त होने के पश्चात् मुझे कुछ ही घंटों में महालक्ष्मी के अस्तबल से सेठ के अस्तबल में भेज दिया गया. सेठ ने खूब-खूब मेरी पीठ ठोकी. मारिया ने मुझे प्यार किया. खेमजी ने, जो मेरा 'जाकी' था, मुझे गर्दन पर कई बार थपथपाया.

रात को मारिया ने मुझे अपने हाथ से केवड़े से सुगंधित हरी-हरी घास खिलाई और मुझे असली स्कॉच ह्निसकी पहली बार चखने को मिली. मैं प्रसन्नता के प्रवाह में दोनों बोतलें समाप्त कर गया. स्कॉच पीते ही मुझे गहरी नींद आ गई और मैं खाट की मसहरी पर लंबी तान लेकर सो गया.

आधी रात के समय अचानक मेरी आंखें खुल गईं. मेरे अस्तबल के बाहर कुछ खुसर-फुसर हो रही थी. मैंने लकड़ी की दीवार से कान लगा दिया.

सेठ की आवाज आई, ''इस मामले की गहरी खोज होगी. दूसरी रेस का 'रिस्क' लेना ठीक न होगा.''

खेमजी 'जाकी' बोला, ''पर सेठ 'गोल्डन स्टार' ने तो कमाल कर दिया आज!''

''तुम नहीं समझते हो,'' सेठ बोला ''हम 'रिस्क' नहीं ले सकते. जब छानबीन शुरू होगी तो यह अवश्य पता चल जाएगा कि हमने एक गधे को घोड़ों की रेस में शामिल किया है. उस स्थिति में न केवल मेरे अस्तबल को रेसकोर्स से बाहर कर दिया जाएगा, बल्कि हो सकता है कि मुझे जेल भी हो जाए. 'गोल्डन स्टार' को खत्म कर देना होगा.''

''वह कैसे?'' खेम जी 'जाकी' ने पूछा.

''तुम इसे किसी बहाने से यहां से निकाल समुद्र के किनारे ले जाओ. पर यह गधा है शहर का पला हुआ. इसे इस तरह न मारना चाहिए. इससे कह दो यहां तुम्हारी जान को खतरा है. यहां से निकालकर इसे समुद्र के किनारे ले जाओ और पिस्तौल से इसे मारकर समुद्र में इसकी लाश को धकेल दो. क्यों मारिया?''

''हां, यह ठीक है,'' मारिया की आवाज आई, ''न गधे की लाश मिलेगी, न छानबीन का कोई परिणाम निकलेगा.''

पहले तो मैं भय से कांप रहा था. मारिया की बात सुनकर मेरी आंखों में आंसू आ गए. तो यह है मेरे प्रेम का परिणाम!

खेमजी 'जाकी' बोला, ''कुछ अच्छा नहीं लगता सेठ. जिस जानवर से मैंने लाखों रुपये एक ही दांव में कमा लिए हों, उसे इस प्रकार समाप्त कर देना किसी तरह अच्छा नहीं मालूम होगा.''

''मूर्ख न बनो,'' सेठ ने आज्ञा-भरे स्वर में कहा, ''जब किसी गधे से और किसी लाभ की आशा न हो तो उसे खत्म कर देना ही अच्छा है.''

फिर खुसर-पुसर बंद हो गई और देर तक सन्नाटा रहा और रात को मौत एक खंजर बनकर मेरे सीने पर लटकती रही.

फिर धीरे से अस्तबल का द्वार किसी ने खोला और एक धुंधली छाया ने अंदर प्रवेश किया.

मैंने भय से कांपती हुई आवाज से पूछा, ''कौन है?''

अचानक किसी ने दीवार पर हाथ फेरकर स्विच दबा दिया. अस्तबल में प्रकाश हो गया. सामने खेमजी खड़ा था.

''क्या है?''

''उल्टे चलो बाहर.''

''कहां?''

''समुद्र के किनारे.''

''क्यों?''

''टहलेंगे, तुमसे बात करेंगे.''

''यहां पर बात क्यों नहीं हो सकती?'' मैंने पूछा.

''यहां बहुत गर्मी है, और संभव है कोई सुन ले. दीवार के भी कान होते है!'' खेमजी 'जाकी' बोला, ''समुद्र के किनारे टहलेंगे और तुमसे दूसरी रेस के बारे में बातें करेंगे.''

मैंने अपने मन में कहा- 'तुम! तुम मुझसे उस रेस के बारे में क्या बातें करोगे जो मेरी मृत्यु तक जाती है!' किंतु मैं चुप रहा. खेमजी ने मेरी गर्दन में एक रस्सी बांधी और मुझे अस्तबल से निकालकर समुद्र के किनारे ले चला.

रास्ते में अंधेरा था. नारियल के पेड़ कोर्टमाशल के सिपाहियों के समान अपने काले तने रायफल के समान उठाए खड़े थे. समुद्र की लहरें तक भयानक शोर के साथ तट से टकरा रही थीं. चारों तरफ आदमी न आदमजात!

बस, एक गधा और एक आदमी!

एक हत्यारा और एक मरने वाला!

समुद्र के तट पर ले जाकर खेमजी ने मुझे खड़ा कर दिया और मुझे विचित्र-सी दृष्टि से देखकर बोला, ''जानते हो, मैं तुम्हें यहां क्यों लाया हूं?''

''हां,'' मैंने उदास स्वर में कहा, ''तुम मेरी जान लेने के लिए मुझे यहां लाए हो.''

खेमजी ने अपनी जेब से पिस्तौल निकाल लिया. जिस पर मैंने इस जोर से दुलत्ती झाड़ी, वह चकराकर मुंह के बल गिर पड़ा और मैं सरपट भाग निकला.

फिर अचानक कई गोलियों के चलने की आवाज आई और कई गोलियां मेरे समीप से सनसनाती हुई गुजर गईं.

फिर एक गोली पीछे से आई और मेरी पिछली दाहिनी टांग को छेदती हुई गुजर गई.

मैं चकराकर गिरने को ही था किंतु मैंने अपने-आपको संभाल लिया और दौड़ता-दौड़ता-दौड़ता चला गया! बाजार...सड़क...मोड़...नुक्कड़ मुझे कुछ याद न रहा. मैं अपने जीवन को बचाने के लिए भाग रहा था.

भागते-भागते मैं एक लेन में घुसकर एक गली में घुस गया. वह गली अंदर से बंद भी. मैं दौड़ता हुआ गली के अंत तक चला गया, जहां एक पांच मंजिल की बिल्डिंग खड़ी थी.

एक क्षण के लिए मैंने सोचा और फिर कुछ सोचे बिना बिल्डिंग की सीढ़ियां चढ़कर दौड़ता हुआ अंदर एक बड़े खुले हुए ड्राइंगरूम में दाखिल हो गया. मुझे देखते ही एक धोती पहने हुए आदमी जोर से चिल्लाया-

''गुरुजी, गुरुजी आ गए!'' वह धोती पहनने वाला आदमी आगे बढ़ा और आगे पाकर मेरे पांव पर गिरकर प्रसन्नता से रोने लगा, ''गुरुजी...आप कहां चले गए थे? कब से आपको ढूंढ़ रहा था, आप किधर अलोप हो गए थे...धन्य भाग मेरे...ऐ कुरमाया...बिजारिया...दामोरिया!...कहां मर गए सब? जल्दी से मुनीम जी को बुलाओ!''

मेरे पांव छूकर जब वह उठा और नौकरों को बुलाने लगा तब मैंने उसे पहचाना. वह सेठ भूरीमल था, जिसने माहिम में मुझसे सट्टे का नंबर पूछा था. सेठ भूरीमल खुशी से हाथ नचाते हुए मुझसे बोला-

''उस दिन योगीराज, आपने जो नंबर दिया उससे मैंने सट्टे में तीन लाख कमा लिए! यह बिल्डिंग उसी दिन खड़ी की है- भूरी महल!''

वह फिर जोर-जोर से चिल्लाने लगा, ''ए कोड़िया....मजूरियादामोरिया! जाओ, साथ वाले कमरे और बाथरूम को गुरुजी के लिए साफ करो. ये आज से हमारे यहां रहेंगे.''

क्रमशः....

अगले अंक में.....

पब्लिसिटी होना गधे का, और घेर लेना सट्टेबाजों का उसको, और बयान गधे की चालाकी का...

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रचनाकार: प्राची - जुलाई 2016 / एक गधे की वापसी / धारावाहिक हास्य व्यंग्य उपन्यास / कृश्न चंदर
प्राची - जुलाई 2016 / एक गधे की वापसी / धारावाहिक हास्य व्यंग्य उपन्यास / कृश्न चंदर
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