प्राची - अगस्त 2016 / कोठारिन / कहानी / अश्विनी कुमार आलोक

SHARE:

कहानी मुंह अंधेरे ठाकुरबाड़ी की घंटियां टनटनायीं , तो योगमाया ने किवाड़ खोलकर देविका को बाहर निकाला. बाबा भगवानदास भी निकले. देविका को सीढ़ीघ...

कहानी

मुंह अंधेरे ठाकुरबाड़ी की घंटियां टनटनायीं, तो योगमाया ने किवाड़ खोलकर देविका को बाहर निकाला. बाबा भगवानदास भी निकले. देविका को सीढ़ीघाट की सीढ़ियों पर चोट करती गंडकी में योगमाया ने मल मलकर नहलाया. स्वयं भी नहायी और घाट पर बने द्वार के जनाना कमरे में जाकर कपड़े बदलने लगी. रघुनीदास वहीं सामने बैठा देर तक मिट्टी से कमंडल मांजता रहा. योगमाया की निगाह पड़ी, तो मुस्कुरा उठी. रघुनी जवान है. जवानी की आग वैराग भी शमित नहीं कर पाया. योगमाया के मुंह से जब अचानक निकल गया- ‘‘सब तन जलता देखकर कबिरा भया उदास.’’ तो रघुनीदास उठकर गंडक को छूनेवाली निचली सीढ़ियों तक चला गया और कमंडल धोने लगा. उसकी चोरी योगमाया ने पकड़ ली थी.

image

नाम : अश्विनी कुमार आलोक

जन्म : 8 दिसंबर 1980, समस्तीपुर

शिक्षा : स्नातकोत्तर (हिन्दी, पत्रकारिता एवं शिक्षा)

प्रकाशन : शीर्षस्थ पत्र-पत्रिकाओं में गद्य-पद्य साहित्य लेखन समालोचना एवं लोक साहित्य की कुल तेरह पुस्तकें प्रकाशित. ढाई दर्जन से ऊपर पत्र-पत्रिकाओं के संपादक रहे.

संप्रति : त्रैमासिक पत्रिका ‘सुरसरि’ के संपादक

संपर्क : पत्रकार कॉलोनी, महनार, वैशाली (बिहार)

घुमन्तू भाष 9801733379, 9801699936

कोठारिन

अश्विनी कुमार आलोक

नीम के पेड़ के नीचे एक अजीब-सी उदासी पसरती जा रही थी. जगदौन खलीफा के बगीचे की ऐसी दुर्दशा पहले कभी नहीं हुई थी. मरने को कभी-न-कभी मरते तो सभी हैं पर ऐसी मौत कि बाप के कंधे पर बेटे की रंथी (अर्थी) उठे, ऐसी विपत्ति की आंगन का भंख उठाकर मांग पर लौटने लगे और चौदह साल की किशोरी, जिसकी मांग में महज सवा महीने पहले सुहाग की पहली लाली दिखी हो, उसका उन्नत भाल आशंकाओं और अनिश्चितताओं से परे भयावह भविष्य की कालिमा से एक बारगी ढक जाये! ऐसा बार-बार नहीं होता. यह अनहोनी है. देवता ने पूरी सृष्टि रची है, तो संहार का समय और नियम निर्धारित करना भी उसी का हक है. पर मनुष्य की जिंदगी पर मनुष्य के स्वतंत्र अधिकार का भी कोई छोटा हिस्सा निर्धारित किया होता, तो उसकी ऐसी हंसी न उड़ती.

यह जगदौन के घर की विपत्ति नहीं, पूरे भूमिहार टोले पर अचानक आसमान से गिरी बिजली के समान विपदा है. कोई ऐसा नहीं जो जगदौन के घर आकर अपनी आंखों को बरसने से रोक पाया हो. विवाह के बाद पहली बार देविका ससुराल आयी थी. पंद्रह दिनों तक आनंद उसके संसर्ग को ऐसे अपनत्व से सराबोर कर चुका था कि उसे भुला पाना इस जन्म में उसके लिए कठिन है. पंद्रह दिनों के बाद जब आनंद ससुराल से लौटा तो तांगे पर लदी मिठाई की पेटारियों को पूरे जवार ने इस तरह बांटकर खाया था जैसे उन्हीं के घर में कोई शगुन हुआ हो. जगदौन खलीफा के इकलौते बेटे आनंद की शादी चकसलेम के खानदानी रईस उजागर सिंह की दूसरी बेटी देविका से हुई थी. जगदौन के शरीर की ताकत और औकात की तुलना उजागर सिंह से नहीं की जा सकती, तो उजागर सिंह की बेटी देविका के रूप-गुण के आगे जगदौन की सारी संपत्ति फीकी ठहरेगी. ईश्वर ने ऐसी मूर्ति गढ़ी कि रूप और लावण्य का सारा वैभव उसी पर न्यौछावर कर दिया.

पहले आनंद ने ही देविका को पसंद किया था. चचेरे भाई की बारात में फतेहा से चकसलेम गया था. वहां उसने देविका को पहली बार देखा था. तब उसके रूप पर इस कदर मोहित हुआ था कि उसके दोस्तों ने उसी समय उसकी जोड़ी उससे भिड़ाने की जुगत भिड़ा ली थी. फतेहा की पनमा दइया चकसलेम में ही ब्याही गयी थी और आनंद के चचेरे भाई के विवाह की मध्यस्थता उसी ने की थी. आनंद में कोई कमी नहीं थी. जगदौन की तरह कुश्तियां नहीं लड़ता था, पर देहयष्टि पिता से कम नहीं थी. कोटा में इंजीनियरिंग की पढ़ाई कर रहा था. उसका इंजीनियर बनना तय ही था. यदि नहीं भी बनता, तो बाप-दादे की अरजी हुई इतनी संपत्ति थी कि वह उसके भावी कई पुश्तों को बैठाकर खिलाने को काफी थी.

देविका का यह विवाह का वय नहीं था. मैट्रिक की परीक्षा वह एक साल और पढ़ती तो देती. चौदह बरस में ही हाथों पर उग आये रोंये और गालों पर खिल आयी गुलाबी लाली ने उसे जवानी की पहली सीढ़ी पर यदि जबरन उतार दिया था, तो यह पहली घटना नहीं थी. चकसलेम की मिट्टी ही ऐसी है.

भूमिहार टोले की लड़कियां अपनी रंगत और पहनावे से पहले भी युवाओं को आकर्षित करती रही हैं. चकसलेम की जितनी बड़ाई होती है, शिकायत भी उतनी ही होती है. प्रेमातुर लड़कियों ने कई बार व्यवधान नहीं मानो सांस्कारिक सीमाओं के छद्म से भी स्वयं को दूर ही रखा. निर्मला का प्रेम तो सगे चाचा के बेटे से हो गया था और उसके साथ रातों-रात फरार हो गयी थी. जगदौन इसे कुसंगति का नतीजा मानते थे और चकसलेम में इसी कारण बेटे को ब्याहने के पक्ष में नहीं थे. पर आनंद के दोस्तों और पनमा की बातों ने ब्याह के व्यवधानों को दूर कर दिया था. पंद्रह-सोलह दिनों में ब्याह की सारी बातें तय हो गयी थीं और यह भी पहली घटना थी कि पंद्रह दिनों के अंदर चकसलेम में फतेहा से दूसरी बार बारात गयी थी.

देविका और आनंद के विवाह के जश्न का खुमार अभी पूरी तरह टूटा नहीं था कि दुर्घटना हो गयी. पहली बार मांग में जो लाली लेकर देविका ससुराल आयी थी, विधाता ने उसके धोने की तैयारी शायद साथ-साथ कर दी थी. इंजिनियरिंग के आखिरी वर्ष की परीक्षा देने आनंद कोटा गया था. लौटते में सवाई माधोपुर से जब गाड़ी खुली, तो पानी लेने के लिए गाड़ी से उतरा आनंद ठीक से चढ़ नहीं पाया. पांव ऐसे फिसला कि पूरा शरीर पटरियों के बीचोंबीच चकरघिन्नी-सा नाचकर शांत हो गया.

तीसरे दिन लाश जगदौन खलीफा के बगीचे में उतरी तो देविका की आंखों में बहनें के लिए आंसू नहीं बचे थे. सूजी हुईं आंखों और लाल चेहरे को देखकर हर कोई द्रवित हो उठता था. पर ईश्वर को द्रवित होने का कलेजा नहीं. लाश जैसे ही जीप से उतारी गयी, देविका ऐसे दौड़ी, जैसे बछड़े को जबरन गाय से अलग करने के समय गाय रस्सी तोड़कर दौड़ पड़ती है. लाश के मुंह पर से चादर हटी, तो देविका खड़ी रही पर लाश के पास नहीं गयी. अर्राकर गिरी, जैसे कटा पेड़ गिरता है. जगदौन खलीफा का कलेजा मुंह को आ गया. आनंद की मां नहीं है. हैजा ऐसे हनहनाता हुआ आया था कि डेढ़ घंटे में छह लाशें उठ गयी थीं, उनमें एक आनंद की मां भी थी. बचपन से आनंद के लिए मां और बाप दोनों की भूमिकाएं जीते जगदौन खलीफा के कंधे पर ऐसा बोझ पहले नहीं पड़ा था. अखाड़े में हाजीपुर के सुखदेव खलीफा और वीरपुर के उमराव खलीफा को एक साथ पछाड़नेवाले जगदौन अपने ही घर में पछड़ गये. बाप से बेटे की लाश उठाये न उठती, पर उठानी तो थी ही.

श्राद्ध के दूसरे दिन देविका की लाश उठाने की बारी आ गयी. जिंदा लाश सिंदूर धुली मांग और काले कोर वाली सफेद साड़ी में देविका कोने में बैठी थी कि डयोढ़ी से खबर आयी- बाबा भगवान दास देविका को मठ में ले जाने आये हैं. संतों की संगति में अगले जन्म की कमाई के लिए इस जन्म का शेष समय लगायेगी. कबीर का बीजक बांचने में उसे कोई कठिनाई नहीं होगी. ईश्वर की कृपा से वह अक्षर ज्ञान से पूर्ण है. अब भगवत संगति का लाभ लेकर ईश्वर से प्रार्थना करेगी कि इस जन्म का दुःख वह सहजता से भूल जाये और अगले जन्म की उसे नौबत ही न आये. ईश्वर उसकी भक्ति से खुश हुए तो या तो मोक्ष दे देंगे, अन्यथा ऐसा पातक जीवन नहीं देंगे. चौदह वर्ष की उम्र में विधवा होने का दुःख निश्चित रूप से पिछले जन्म के पापों का प्रतिफल है. मठ में साधुओं की दासिन रहेगी, साधुओं की सेवा का पुण्य लाभ लेना ही अब उसके शेष जीवन का लक्ष्य होना चाहिए. यदि मठ में ईश्वर ने चाहा तो संतों के आशीर्वाद की कृपा से देविका को कोठारिन बनते देर नहीं लगेगी. पढ़ी-लिखी स्त्री के लिए कोठारिन होने में कितना विलंब लगेगा.

किसी नौजवान ने जगदौन खलीफा को राय दी. ‘‘बाबा! एक बार देविका भाभी के पिता उजागर सिंह से भी पूछ लेते.’’

‘‘अब, समधी से क्या पूछना, दीनानाथ! ब्याह के बाद देविका के मालिक तो हमी हुए.’’

‘‘लेकिन, बाबा! देविका की उम्र वैराग की कहां है. क्या उसका दूसरा ब्याह...’’

दीनानाथ की बात हलक से पूरी तरह निकली भी नहीं कि जगदौन गरजे ‘‘दीनानाथ! ये क्या बदतमीजी सीख ली, कॉलेज में पढ़कर. हमारे सात पुश्तों में कभी-भी ऐसा ब्याह नहीं हुआ. दूसरे विवाह से अगले जन्म के लिए भी देविका के माथे पर मैं पाप नहीं लादूंगा. समधी जी भी यही चाहेंगे कि उनकी बेटी का शेष जीवन ईश्वर भक्ति में लगे.’’

फिर दीनानाथ की हिम्मत आगे बोलने की नहीं हुई. वह सिर झुकाये कुछ देर ड्योढ़ी पर बिछी मूंजवाली खाट पर बैठकर खाट की मूंजों को खोंटता रहा. उसी खाट पर देविका के पिता बाबू उजागर सिंह भी बैठे हुए थे. वह भी कुछ नहीं बोले. सामने की बड़ी चौकी पर झक्क सफेद धोती को लंगोट पर से सीधे पीठ तक लपेटे बाबा भगवानदास बैठे थे. उनके बगल में बैठा एक चेला गांजा लटियाने के बाद चिलम भर रहा था. सामने बैठी संन्यासिन भगवानदास के आगे रख बीजक के पन्ने कुछ-कुछ देर के बाद पलट दे रही थी. भगवानदास भीतर की आंखों से देखते हैं. संतों के लिए सांसारिक आंख की कोई जरूरत नहीं. बाबा जन्मांध हैं. दाहिने हाथ में बचपन ही से सुखंडी का रोग लगा हुआ है. वह हाथ निरर्थक ही झूलता रहता है. परंतु बाबा के दायें हाथ की भी दरकार नहीं. उनके ज्ञानेंद्रियों में हाथों का क्या काम! हाथ का काम बाबा कैसे कर लेते हैं, कोई नहीं जानता. बायें हाथ को वह नित्य क्रिया निबटाने के अलावा किसी काम में नहीं लगाते. भगवान दास पहुंचे हुए संत हैं. सीढ़ीघाट के मठ के महंथ हैं वह. एक-से-एक पहुंचे हुए संतों की लंबी कतार लग जायेगी यदि वे गिनने लगेंगे. सभी बाबा के चेले. रघुनीदास, बु)नदास, चेघरूदास, दरोगीदास और तेतरदास तो उनकी सेवा के लिए मठ में ही अड्डा जमाये रहते हैं. दासिन योगमाया भी ग्यारह सालों से बाबा की सेवा में रमी हैं. बाबा के आशीर्वाद से बारहवां साल पूरते-पूरते वह दासिन से कोठारिन हो जायेगी और तब बाबा की तरह ही भीतरी आंखों से ईश्वर को देखेगी.

बाबा बुदबुदाये- ‘‘जौर खुदाई तुरुफ मोहि करता

आपै काटि किन आई.’’

चेला रघुनीदास ने चिलम का दम लगाते हुए बताया- ‘‘बाबा कबीर महाराज की तरह ही अजन्मा है. अजन्मा का अर्थ होता है, जिसका जन्म नहीं हुआ. सात बरस की उम्र में बाबा मिट्टी के अंदर से आपरूपी उखड़े. तभी से भगवत-भजन और उपदेश में रमे हैं. अब बाबा की तरह ही मेरी मिट्टी की देह भी भगवत भजन में सफल हो जाये और मेरा चोला बदल जाये तो इस नश्वर जीवन को उसका लक्ष्य प्राप्त हो जाये.’’

संन्यासिन योगमाया ने बीजक का पन्ना पलट दिया.

सीढ़ी घाट के चबूतरे पर देविका सुबह से ही बैठी रही. शाम हुई, तो रघुनीदास ने आवाज दी- ‘‘दासिन! बाबा के लिए लिट्टी लगाने का काल हो गया. अब जीवन को सफल करो. पुराने दुःखों पर बिसूरने से क्या लाभ. अब, देह जलती रहेगी, तो उदास तो होगी ही. देह को दुःखों के ताप से मुक्ति दिलाना ही तो कबीर हुजूर ने बताया.’’

देविका टस-से-मस न हुई. जीवन के अथाह सागर में डूबे लोगों का दुःख किसने देखा है. पर बीच धार में उतराती नैया को पार लगाने का हौसला भी ईश्वर देता, तो दुःख इतना निष्ठुर होकर सामने न नाचता.

आधा घंटा बाद योगमाया आयी और सहारा देकर देविका को उठाया- ‘‘इस प्रकार बैठने से क्या लाभ दासिन! अब, कबीर हुजूर के बताये रास्ते पर चलकर जीवन के शेष काल को अकारथ जाने से रोको. यह भाग्य ही कहो कि अब रास्ते पर जीवन आ गया. बाबा की शरण में आयी हो, अब सब कुछ भूलना पड़ेगा. कबीर साहब कहिन हैं- गुरु बिन चेला ज्ञान न लहै.’’

लिट्टियां सेंकने के बाद योगमाया ने पहले भोग लगाने के लिए बाबा के सामने परोसा. बाबा ने लिट्टियों और साग का कैसे भोग लगाया, किसी ने नहीं देखा. योगमाया परोसकर हट गयी. बाबा ने दो लिट्टियां छोड़ीं. उन दो लिट्टियों का पान उनके शिष्यों ने प्रसाद की तरह किया. सभी तृप्त हुए, पर देविका ने हाथ तक नहीं लगाया. रात्रि में बाबा के पांव दबाने योगमाया गयी, तो देविका को भी लेती गयी. रघुनीदास ने योगमाया को कहा कि आज पहली रात देविका को कबीर साहब के विशेष ज्ञान के लिए खाली कमरे में सुला दिया जाये. पर बाबा भगवानदास ने तीसरी आंख से देखा और योगमाया को विशेष आदेश दिया- ‘‘देविका की नश्वर देह को आज पहले ही दिन से ईश्वर की भक्ति के लिए दीक्षित करना होगा. उसका दुःख अपार है. इस संसार में ऐसे दुःख यदि मिलते हैं, तो उससे उबारने वाले कबीर हुजूर ही हैं. बीच धार में टूटी पतवार, तो कौन खेवनहार? कबीर साहब कहिन हैं- गंगा की लहरि मेरी टूटी जंजीर, सांचे मारे झूठी पढ़ि काजी करे अकाज.’’

देर रात तक योगमाया बाबा के पांव दबाती रही. बाबा देविका के सिर पर हाथ फिराते रहे. पर देविका ने बाबा का पांव छुआ तक नहीं. फिर एकाएक सिसकियां फूट पड़ीं. देविका कई दिनों के बाद रोयी. पूरे पंद्रह दिनों के बाद रोयी, तो पुक्का फाड़कर. रघुनीदास, बुद्धनदास, तेतरदास, दरोगीदास सभी दौड़े आये, पर बाबा के एकांतवास में झांकने का दोष लेना किसी ने भी अच्छा नहीं समझा. रघुनीदास ने हिम्मत की- ‘‘दासिन! नयी दासिन को क्या दुःख हुआ?’’

‘‘मूरख! इस संसार का दुःख तुमने अभी तक नहीं देखा? देविका के दुःख के बारे में पूछ रहे हो? तेरा तप अकारथ चला गया. जाओ, बेचारी के दुःख को जानने से अच्छा है, अपने दुःख के निवारण का रास्ता ढूंढ़ो. सतगुरु से परिचय करो. कबीर हुजूर कहिन हैं- बड़े ते गये बड़ापने, रोम-रोम हंकार. सतगुरु के परिचय बिना चारों बरन समार.’’ बाबा के सख्त आदेश से रघुनीदास सकदम आसन पर चले गये.

रात के तीन पहर बीत गये. दरोगीदास की आंख खुली तो जम्हाई लेकर सतगुरु साहब की वाणी उचारी-

‘‘कबिरा संगत साधु की हरे और की ब्याध, संगत बुरी असाधु की आठों पहर उपाध.’’ दरोगीदास ने करवट बदली. देखा, रघुनीदास अपने आसन पर नहीं था. कहीं गया होगा. दिशा- फरागत. पर, बाबा के दरवाजे से कुछ सरसराने की आहट आयी. हौले से देखा, तो रघुनीदास पेटकुनिया साधे किवाड़ की आड़ से बाबा के कमरे की रोशनियों को देख रहा था. दरोगीदास के मुंह से निकल गया- ‘‘अनर्थ. तरुवर तासि विलंबिए पंषी केलि करंत.’’

रघुनीदास अपने आसन पर लौट आया. एक जोर की सांस ली और सतगुरु का नाम उचारा.

मुंह अंधेरे ठाकुरबाड़ी की घंटियां टनटनायीं, तो योगमाया ने किवाड़ खोलकर देविका को बाहर निकाला. बाबा भगवानदास भी निकले. देविका को सीढ़ी घाट की सीढ़ियों पर चोट करती गंडकी में योगमाया ने मल मलकर नहलाया. स्वयं भी नहायी और घाट पर बने द्वार के जनाना कमरे में जाकर कपड़े बदलने लगी. रघुनीदास वहीं सामने बैठा देर तक मिट्टी से कमंडल मांजता रहा. योगमाया की निगाह पड़ी, तो मुस्कुरा उठी. रघुनी जवान है. जवानी की आग वैराग भी शमित नहीं कर पाया. योगमाया के मुंह से जब अचानक निकल गया- ‘‘सब तन जलता देखकर कबिरा भया उदास.’’ तो रघुनीदास उठकर गंडक को छूनेवाली निचली सीढ़ियों तक चला गया और कमंडल धोने लगा. उसकी चोरी योगमाया ने पकड़ ली थी.

ठाकुर जी को भोग लगाने के बाद बाबा भगवानदास ने अपने चेलों को पास बुलाया. सतगुरु का ध्यान किया. योगमाया बीजक सामने रख गयी और चटाई लाने चली गयी. चटाई लेकर, आयी, तो उसके साथ देविका भी थी. दोनों एक ही चटाई पर बैठ गयीं. सभी शिष्य बैठे, पर रघुनीदास दीवार के सहारे पसरा रहा. दरोगीदास ने उसके नाड़ी देखी. जोरों से चल रही थी. देह तप रही थी. संतों की देह पाप से तपे तो इससे बड़ा अनर्थ नहीं. रघुनीदास को प्रायश्चित तो करना ही पड़ेगा. बोलो, सत्तनाम.’’

सभी ने टेक लगायी- ‘‘सत्तनाम सतगुरु.’’

‘‘संतों! सुनो. जिस सतगुरु को साधने में पूरी उम्र बीत जाती है, उसे एक क्षण में साधा जा सकता है. कबीर हुजूर कहिन हैं- खालिक खलक, खलक में खालिक. वह कहां है. यह जानो. वह परमात्मा हमारी आत्मा में है. वह हमारा पिया हमारे हिया में है. उसे पकड़ लो, तो यह संसार कितना असार है, देख लोगे. तुम्हारी इंद्रियां तुम्हारे वशीभूत हो जायें तो सब साध लिये. बोलो- सत्तनाम.’’ भगवानदास ने उपदेश दिया.

सभी ने टेक लगायी- ‘‘सत्तनाम सतगुरु.’’

‘‘आगे सुनो. देविका दुःखों के जंजाल से बाहर आ गयी. उसने सतगुरु के साक्षात् दर्शन किये. क्यों, देविका?’’

‘‘सत्तनाम.’’ देविका के मुंह से फूट पड़ा.

‘‘इसलिए, हे संतों. देविका दासिन नहीं रही. जिस परम पद को पाने में दासिनों को बारह बरस लग जाते हैं, उसे देविका ने एक रात में पा लिया. यह आज से कोठारिन हो गयी. बोलो- सत्तनाम.’’

‘‘सत्तनाम सतगुरु.’’ सभी ने टेक लगायी. पर रघुनीदास उठा और पांव पटकटता हुआ मठ से बाहर हो गया.

‘‘सत्तनाम सतगुरु! कबीर हुजूर कहे हैं- पुरुब जनम के पाप ते हरिचर्चा न सुहाय.’’

योगमाया ने बीज बांचा.

देविका ने भी साखियों को खंगालने में नवीं कक्षा तक की पढ़ाई समर्पित कर दी.

उस रात रघुनीदास नहीं लौटा. दूसरे दिन भी नहीं. तीसरे दिन भी नहीं.

चौथे दिन दोपहर को बाबा भगवानदास लेटे हुए थे. सारे संत अपने-अपने क्षेत्रों में भिक्षाटन को निकले थे. देविका को लेकर योगमाया मठ की छत पर गेहूं सुखा रही थी. इतने में बाबा के चिल्लाने की आवाज आयी- ‘‘बाप रे, मार डाला.’’ दोनों दौड़ी आयीं. मठ के फर्श पर खून पसरा जा रहा था. बाबा वहीं लुढ़ककर छटपटा रहे थे.

‘‘सतगुरु-सतगुरु. अनर्थ हो गया.’’ योगमाया मठ से बाहर निकली और चिल्ला-चिल्लाकर लोगों को बुलाया. बाबा अस्पताल ले जाये गये. पुलिस आयी, तो खून लगे कुदाल के अतिरिक्त उसे कुछ नहीं मिला.

‘‘बाबा न बच पाये. पापियों ने उनका संहार किया. पर इस नश्वर देह के अनंतर एक दिव्यशक्ति वह छोड़ गये. सतगुरु साहब कहिन हैं- एक कबीरा न मुआ, जिनके रामाधार.’’ भगवानदास के शोक में विह्वल संतों को देविका बीजक बांच रही थी. सभी थे, पर रघुनीदास का पता कोई नहीं लगा पाया था. पुलिस भी नहीं.

बाबा की हत्या की यह छठी रात थी. योगमाया के साथ देविका दिशा-फरागत को गयी. दोनों कुछ दूरी पर बैठी थीं. अरहर के खेत के किनारे देविका ने सरसराहट सुनी. खेत के पेड़ों को टालकर रास्ते बनाने की आवाज. अश्विन की पूर्णिमा कल ही है. कल की चांदनी आज ही रात से छिटकी हुई है. देविका ने फुसफुसाहट भी सुनी. उठकर झुकी, तो देखा अरहर के खेत के बाजू में मठ के टूटे पुराने चबूतरे पर योगमाया चित पड़ी थी और कोई उसे बड़े प्रेम से मसले जा रहा था. देविका को अच्छा लगा. देह में झुरझुरी दौड़ गयी. छुपकर देखती रही. मर्द को पहचान नहीं पायी. पर निकट जाकर मर्द को पहचानने की उत्सुकता में आगे बढ़े उसके पावं ठिठक गये. वह रघुनीदास था. पुलिस जिसे खोजे फिर रही थी. रघुनीदास ने चेहरा उठाया, तो देविका को खड़ा देखा. वह एकाएक उठ खड़ा हुआ. उसके मुंह से निकल गया- ‘‘सत्तनाम, कोठारिन! कल आना.’’

दोनों एक-दूसरे को देखते रहे. योगमाया ने कपड़े ठीक किये और संभलती हुई बढ़ चली. देविका उसके पीछे-पीछे बढ़ चली. रघुनीदास भी बोझिल कदमों को लिये अरहर के खेतों में गुम हो गया.

हर रात दोनों आने लगीं. पर पांच-छह रातों के बाद पुलिस को भनक मिल गयी कि रघुनीदास इधर ही रह रहा है. एक रात रघुनीदास पुलिस की दबिश से अनजान बढ़ता जा रहा था कि पीछे से पुलिस ने उसे दबोच लिया.

सोनपुर मेले के आरंभ का दिन था. कार्तिक पूर्णिमा. सीढ़ीघाट से स्नान कर बाबा भगवानदास के मठ पर सैकड़ों श्र)ालुओं ने रात बितायी. बहुत भीड़ थी. रातभर ध्यान-सबद चलता रहा. बाबा की गद्दी कोठारिन देविका ने संभाली थी. देविका बीजक बांचती रही. संतों-श्र)ालुओं ने करताल पर सतगुरु नाम उचारा. देविका ने कहा-‘‘हरि को पाना सहज नहीं. सहज-सहज सब कोई कहै. पर सत्तनाम...हरि सहज नहीं.’’

डेढ़ बजे रात के बाद देविका अपने आसन पर गयी. योगमाया ने पांव दबाने के बाद पूछा- ‘‘कोठारिन! तुम तो महंथिन बनी. मेरा तो बाबा ने भी सबकुछ लूटा और उसके चेलों ने भी. पर, एक बात कहो, जिस पाप के निवारण के लिए तुम्हें फतेहा से जगदौन खलीफा ने हाजीपुर भेजा, उसका पता तुमने क्यों नहीं रखा?’’

देविका कुछ नहीं बोली. भरी हुई देह स्थूल पड़ती जा रही थी और थकावट से उसके चेहरे को भारी होते भी देर नहीं लगी. योगमाया ने उससे अनुनय के अंदाज में कहा-

‘‘हाथ जोड़ती हूं, कोठारिन! मेरे वयस को तो चालीस लगे. तुम पंद्रह की भी नहीं हुई हो. रघुनी तुम पर मरता है. परंतु किसी को बताना नहीं कि वह मुझसे मिलने अरहर के खेत में आता था. एक बात बताऊं कोठारिन! बाबा को किसने हता, जानती हो? रघुनी ने.’’

‘‘जानती हूं, योगमाया! भक्तों के झुंड में नीचे कुरतेवाला जो नौजवान है, उसे पहचानती हो?’’ कोठारिन ने पूछा.

‘‘कौन?’’

‘‘जो मेरे बाजू में करताल बजाता हुआ मुझे घूर रहा था.’’

‘‘मैंने ध्यान से नहीं देखा.’’

‘‘जाओ, वह चबूतरे पर पाये के सहारे बैठा ऊंघ रहा है. उसे बुलाकर लाओ.’’

‘‘वह कौन है कोठारिन?’’

‘‘दीनानाथ. मेरी ससुराल का है. मेरे मृत पति का चचेरा भाई. वह मुझसे मिलने आया है. दासिन! वह भी मुझे चाहता है, जाओ, उसे बुला लाओ.’’

‘‘पर मठ में यह सब?’’

‘‘सत्तनाम. मेरा आदेश मानो दासिन. दोजख में पड़ने से बचो.’’

योगमाया दीनानाथ को बुला लायी. कोठारिन उठ बैठी और मुस्कुराकर दीनानाथ से बोली-

‘‘सत्तनाम. बैठो, दीनानाथ.’’

‘‘भाभी!’’ दीनानाथ रो पड़ा.

‘‘नहीं, भाभी नहीं, कोठारिन. सत्तनाम कहो. कहो, क्या कहने आये हो?’’ दीनानाथ चुप रहा. देविका भी कुछ नहीं बोली. थोड़ी देर तक खड़ी रही योगमाया ने पूछा- ‘‘बैठूं, कोठारिन?’’

‘‘नींद नहीं आ रही?’’ कोठारिन ने मुस्कुराकर पूछा.

‘‘आपको अच्छा न लगे, तो चली जाऊं?’’ योगमाया ने सहमते हुए कहा.

‘‘जब अच्छा नहीं लग रहा था, तब तो नहीं गयी. दासिन! तुम्हीं ने तो मुझे एक ही रात में दासिन से कोठारिन बनवा दिया. पता नहीं, क्या सुंघा दिया कि बाबा के विरोध की कोई ताकत ही मुझमें न बची. मैं अपने पति की मृतात्मा और कुल का पत रखने की कूबत तक नहीं बचा पायी.

‘‘अच्छा, एक बात बताओ. बाबा भगवानदास तो तुम्हें भी रात में मुझसे पहले दीक्षा देता था. तब तुम्हें उसने कोठारिन क्यों नहीं बनाया?’’ कोठारिन हंस पड़ी.

‘‘अब बस करो कोठारिन. पाप को इस तरह एक अनजान के आगे नहीं भखो.’’ योगमाया गिड़गिड़ायी.

‘‘पाप!’’ कोठारिन हंसी- ‘‘दीनानाथ भी वही पाप करने आया है.’’

‘‘नहीं, प्रेम.’’ दीनानाथ चिल्लाया. उसने देविका का हाथ पकड़ लिया, ‘‘यहां से निकल चलो भाभी.’’

देविका दीवार के सहारे पसर गयी. उसकी आंखों से आंसू बह चले. ‘‘सतगुरु सत्तनाम! दीनानाथ! बीजक में सतगुरु साहेब क्या कहिन हैं, जानते हो? नहीं? ऐसा कोई न मिले, पकड़ि छुड़ाये बांह.’’

कुछ देर सन्नाटा पसरा रहा. देविका ने चुप्पी तोड़ी. ‘‘कहां ले चलोगे, दीनानाथ. मैं संत बन गयी हूं. अगले जन्म को संभालने नहीं दोगे, पाप करोगे मेरे साथ?’’

दीनानाथ चुप बैठा रहा.

‘‘बड़ी देर कर दी दीनानाथ तुमने. कहां थे तब से?’’

‘‘भाभी!’’ दीनानाथ ने देविका की बांह पकड़ ली. देविका ने उसे एक झटके से छुड़ा लिया.

‘‘प्रेम करते हो? ढाई आखर? तब, मठ में ठहर जाओ. मेरा चेला बनो. नहीं, तो...दासिन! इस कामी को बाहर निकाल दो.’’ कोठारिन ने आदेश दिया.

दीनानाथ स्वतः निकल गया. दीवार में मुंह छुपाकर कोठारिन सुबकने लगी.

चांदनी की चादर पसरी हुई थी. चौथा पहर बीतने को था. योगमाया चिल्लती हुई कोठारिन को झकझोरने लगी- ‘‘कोठारिन! कोठारिन! रातवाले युवक ने गंडकी में छलांग लगा दी, वह डूब मरा कोठारिन.’’

कोठारिन एक झटके से उठी. दौड़ पड़ी. उसकी सफेद साड़ी किवाड़ में फंस गयी. चरचराकर फट गयी. मठ से बाहर दौड़ी. सीढ़ीघाट की सीढ़ियों पर दौड़ी. सबकुछ शांत था. गंडकी में उसने भी छलांग लगा दी. पीछे से आती हुई योगमाया ने सब देखा. उसके मुंह से निकला- ‘‘सत्तनाम! सतगुरु. हरि को दास मरे जो मगहर..

सम्पर्कः पत्रकार कॉलोनी, महनार,

वैशाली (बिहार)- 844506
मो. 9801733379] 9801699936

)

COMMENTS

BLOGGER
नाम

 आलेख ,1, कविता ,1, कहानी ,1, व्यंग्य ,1,14 सितम्बर,7,14 september,6,15 अगस्त,4,2 अक्टूबर अक्तूबर,1,अंजनी श्रीवास्तव,1,अंजली काजल,1,अंजली देशपांडे,1,अंबिकादत्त व्यास,1,अखिलेश कुमार भारती,1,अखिलेश सोनी,1,अग्रसेन,1,अजय अरूण,1,अजय वर्मा,1,अजित वडनेरकर,1,अजीत प्रियदर्शी,1,अजीत भारती,1,अनंत वडघणे,1,अनन्त आलोक,1,अनमोल विचार,1,अनामिका,3,अनामी शरण बबल,1,अनिमेष कुमार गुप्ता,1,अनिल कुमार पारा,1,अनिल जनविजय,1,अनुज कुमार आचार्य,5,अनुज कुमार आचार्य बैजनाथ,1,अनुज खरे,1,अनुपम मिश्र,1,अनूप शुक्ल,14,अपर्णा शर्मा,6,अभिमन्यु,1,अभिषेक ओझा,1,अभिषेक कुमार अम्बर,1,अभिषेक मिश्र,1,अमरपाल सिंह आयुष्कर,2,अमरलाल हिंगोराणी,1,अमित शर्मा,3,अमित शुक्ल,1,अमिय बिन्दु,1,अमृता प्रीतम,1,अरविन्द कुमार खेड़े,5,अरूण देव,1,अरूण माहेश्वरी,1,अर्चना चतुर्वेदी,1,अर्चना वर्मा,2,अर्जुन सिंह नेगी,1,अविनाश त्रिपाठी,1,अशोक गौतम,3,अशोक जैन पोरवाल,14,अशोक शुक्ल,1,अश्विनी कुमार आलोक,1,आई बी अरोड़ा,1,आकांक्षा यादव,1,आचार्य बलवन्त,1,आचार्य शिवपूजन सहाय,1,आजादी,3,आत्मकथा,1,आदित्य प्रचंडिया,1,आनंद टहलरामाणी,1,आनन्द किरण,3,आर. के. नारायण,1,आरकॉम,1,आरती,1,आरिफा एविस,5,आलेख,4288,आलोक कुमार,3,आलोक कुमार सातपुते,1,आवश्यक सूचना!,1,आशीष कुमार त्रिवेदी,5,आशीष श्रीवास्तव,1,आशुतोष,1,आशुतोष शुक्ल,1,इंदु संचेतना,1,इन्दिरा वासवाणी,1,इन्द्रमणि उपाध्याय,1,इन्द्रेश कुमार,1,इलाहाबाद,2,ई-बुक,374,ईबुक,231,ईश्वरचन्द्र,1,उपन्यास,269,उपासना,1,उपासना बेहार,5,उमाशंकर सिंह परमार,1,उमेश चन्द्र सिरसवारी,2,उमेशचन्द्र सिरसवारी,1,उषा छाबड़ा,1,उषा रानी,1,ऋतुराज सिंह कौल,1,ऋषभचरण जैन,1,एम. एम. चन्द्रा,17,एस. एम. चन्द्रा,2,कथासरित्सागर,1,कर्ण,1,कला जगत,113,कलावंती सिंह,1,कल्पना कुलश्रेष्ठ,11,कवि,2,कविता,3239,कहानी,2360,कहानी संग्रह,247,काजल कुमार,7,कान्हा,1,कामिनी कामायनी,5,कार्टून,7,काशीनाथ सिंह,2,किताबी कोना,7,किरन सिंह,1,किशोरी लाल गोस्वामी,1,कुंवर प्रेमिल,1,कुबेर,7,कुमार करन मस्ताना,1,कुसुमलता सिंह,1,कृश्न चन्दर,6,कृष्ण,3,कृष्ण कुमार यादव,1,कृष्ण खटवाणी,1,कृष्ण जन्माष्टमी,5,के. पी. सक्सेना,1,केदारनाथ सिंह,1,कैलाश मंडलोई,3,कैलाश वानखेड़े,1,कैशलेस,1,कैस जौनपुरी,3,क़ैस जौनपुरी,1,कौशल किशोर श्रीवास्तव,1,खिमन मूलाणी,1,गंगा प्रसाद श्रीवास्तव,1,गंगाप्रसाद शर्मा गुणशेखर,1,ग़ज़लें,550,गजानंद प्रसाद देवांगन,2,गजेन्द्र नामदेव,1,गणि राजेन्द्र विजय,1,गणेश चतुर्थी,1,गणेश सिंह,4,गांधी जयंती,1,गिरधारी राम,4,गीत,3,गीता दुबे,1,गीता सिंह,1,गुंजन शर्मा,1,गुडविन मसीह,2,गुनो सामताणी,1,गुरदयाल सिंह,1,गोरख प्रभाकर काकडे,1,गोवर्धन यादव,1,गोविन्द वल्लभ पंत,1,गोविन्द सेन,5,चंद्रकला त्रिपाठी,1,चंद्रलेखा,1,चतुष्पदी,1,चन्द्रकिशोर जायसवाल,1,चन्द्रकुमार जैन,6,चाँद पत्रिका,1,चिकित्सा शिविर,1,चुटकुला,71,ज़कीया ज़ुबैरी,1,जगदीप सिंह दाँगी,1,जयचन्द प्रजापति कक्कूजी,2,जयश्री जाजू,4,जयश्री राय,1,जया जादवानी,1,जवाहरलाल कौल,1,जसबीर चावला,1,जावेद अनीस,8,जीवंत प्रसारण,141,जीवनी,1,जीशान हैदर जैदी,1,जुगलबंदी,5,जुनैद अंसारी,1,जैक लंडन,1,ज्ञान चतुर्वेदी,2,ज्योति अग्रवाल,1,टेकचंद,1,ठाकुर प्रसाद सिंह,1,तकनीक,32,तक्षक,1,तनूजा चौधरी,1,तरुण भटनागर,1,तरूण कु सोनी तन्वीर,1,ताराशंकर बंद्योपाध्याय,1,तीर्थ चांदवाणी,1,तुलसीराम,1,तेजेन्द्र शर्मा,2,तेवर,1,तेवरी,8,त्रिलोचन,8,दामोदर दत्त दीक्षित,1,दिनेश बैस,6,दिलबाग सिंह विर्क,1,दिलीप भाटिया,1,दिविक रमेश,1,दीपक आचार्य,48,दुर्गाष्टमी,1,देवी नागरानी,20,देवेन्द्र कुमार मिश्रा,2,देवेन्द्र पाठक महरूम,1,दोहे,1,धर्मेन्द्र निर्मल,2,धर्मेन्द्र राजमंगल,1,नइमत गुलची,1,नजीर नज़ीर अकबराबादी,1,नन्दलाल भारती,2,नरेंद्र शुक्ल,2,नरेन्द्र कुमार आर्य,1,नरेन्द्र कोहली,2,नरेन्‍द्रकुमार मेहता,9,नलिनी मिश्र,1,नवदुर्गा,1,नवरात्रि,1,नागार्जुन,1,नाटक,152,नामवर सिंह,1,निबंध,3,नियम,1,निर्मल गुप्ता,2,नीतू सुदीप्ति ‘नित्या’,1,नीरज खरे,1,नीलम महेंद्र,1,नीला प्रसाद,1,पंकज प्रखर,4,पंकज मित्र,2,पंकज शुक्ला,1,पंकज सुबीर,3,परसाई,1,परसाईं,1,परिहास,4,पल्लव,1,पल्लवी त्रिवेदी,2,पवन तिवारी,2,पाक कला,23,पाठकीय,62,पालगुम्मि पद्मराजू,1,पुनर्वसु जोशी,9,पूजा उपाध्याय,2,पोपटी हीरानंदाणी,1,पौराणिक,1,प्रज्ञा,1,प्रताप सहगल,1,प्रतिभा,1,प्रतिभा सक्सेना,1,प्रदीप कुमार,1,प्रदीप कुमार दाश दीपक,1,प्रदीप कुमार साह,11,प्रदोष मिश्र,1,प्रभात दुबे,1,प्रभु चौधरी,2,प्रमिला भारती,1,प्रमोद कुमार तिवारी,1,प्रमोद भार्गव,2,प्रमोद यादव,14,प्रवीण कुमार झा,1,प्रांजल धर,1,प्राची,367,प्रियंवद,2,प्रियदर्शन,1,प्रेम कहानी,1,प्रेम दिवस,2,प्रेम मंगल,1,फिक्र तौंसवी,1,फ्लेनरी ऑक्नर,1,बंग महिला,1,बंसी खूबचंदाणी,1,बकर पुराण,1,बजरंग बिहारी तिवारी,1,बरसाने लाल चतुर्वेदी,1,बलबीर दत्त,1,बलराज सिंह सिद्धू,1,बलूची,1,बसंत त्रिपाठी,2,बातचीत,2,बाल उपन्यास,6,बाल कथा,356,बाल कलम,26,बाल दिवस,4,बालकथा,80,बालकृष्ण भट्ट,1,बालगीत,20,बृज मोहन,2,बृजेन्द्र श्रीवास्तव उत्कर्ष,1,बेढब बनारसी,1,बैचलर्स किचन,1,बॉब डिलेन,1,भरत त्रिवेदी,1,भागवत रावत,1,भारत कालरा,1,भारत भूषण अग्रवाल,1,भारत यायावर,2,भावना राय,1,भावना शुक्ल,5,भीष्म साहनी,1,भूतनाथ,1,भूपेन्द्र कुमार दवे,1,मंजरी शुक्ला,2,मंजीत ठाकुर,1,मंजूर एहतेशाम,1,मंतव्य,1,मथुरा प्रसाद नवीन,1,मदन सोनी,1,मधु त्रिवेदी,2,मधु संधु,1,मधुर नज्मी,1,मधुरा प्रसाद नवीन,1,मधुरिमा प्रसाद,1,मधुरेश,1,मनीष कुमार सिंह,4,मनोज कुमार,6,मनोज कुमार झा,5,मनोज कुमार पांडेय,1,मनोज कुमार श्रीवास्तव,2,मनोज दास,1,ममता सिंह,2,मयंक चतुर्वेदी,1,महापर्व छठ,1,महाभारत,2,महावीर प्रसाद द्विवेदी,1,महाशिवरात्रि,1,महेंद्र भटनागर,3,महेन्द्र देवांगन माटी,1,महेश कटारे,1,महेश कुमार गोंड हीवेट,2,महेश सिंह,2,महेश हीवेट,1,मानसून,1,मार्कण्डेय,1,मिलन चौरसिया मिलन,1,मिलान कुन्देरा,1,मिशेल फूको,8,मिश्रीमल जैन तरंगित,1,मीनू पामर,2,मुकेश वर्मा,1,मुक्तिबोध,1,मुर्दहिया,1,मृदुला गर्ग,1,मेराज फैज़ाबादी,1,मैक्सिम गोर्की,1,मैथिली शरण गुप्त,1,मोतीलाल जोतवाणी,1,मोहन कल्पना,1,मोहन वर्मा,1,यशवंत कोठारी,8,यशोधरा विरोदय,2,यात्रा संस्मरण,31,योग,3,योग दिवस,3,योगासन,2,योगेन्द्र प्रताप मौर्य,1,योगेश अग्रवाल,2,रक्षा बंधन,1,रच,1,रचना समय,72,रजनीश कांत,2,रत्ना राय,1,रमेश उपाध्याय,1,रमेश राज,26,रमेशराज,8,रवि रतलामी,2,रवींद्र नाथ ठाकुर,1,रवीन्द्र अग्निहोत्री,4,रवीन्द्र नाथ त्यागी,1,रवीन्द्र संगीत,1,रवीन्द्र सहाय वर्मा,1,रसोई,1,रांगेय राघव,1,राकेश अचल,3,राकेश दुबे,1,राकेश बिहारी,1,राकेश भ्रमर,5,राकेश मिश्र,2,राजकुमार कुम्भज,1,राजन कुमार,2,राजशेखर चौबे,6,राजीव रंजन उपाध्याय,11,राजेन्द्र कुमार,1,राजेन्द्र विजय,1,राजेश कुमार,1,राजेश गोसाईं,2,राजेश जोशी,1,राधा कृष्ण,1,राधाकृष्ण,1,राधेश्याम द्विवेदी,5,राम कृष्ण खुराना,6,राम शिव मूर्ति यादव,1,रामचंद्र शुक्ल,1,रामचन्द्र शुक्ल,1,रामचरन गुप्त,5,रामवृक्ष सिंह,10,रावण,1,राहुल कुमार,1,राहुल सिंह,1,रिंकी मिश्रा,1,रिचर्ड फाइनमेन,1,रिलायंस इन्फोकाम,1,रीटा शहाणी,1,रेंसमवेयर,1,रेणु कुमारी,1,रेवती रमण शर्मा,1,रोहित रुसिया,1,लक्ष्मी यादव,6,लक्ष्मीकांत मुकुल,2,लक्ष्मीकांत वैष्णव,1,लखमी खिलाणी,1,लघु कथा,288,लघुकथा,1340,लघुकथा लेखन पुरस्कार आयोजन,241,लतीफ घोंघी,1,ललित ग,1,ललित गर्ग,13,ललित निबंध,20,ललित साहू जख्मी,1,ललिता भाटिया,2,लाल पुष्प,1,लावण्या दीपक शाह,1,लीलाधर मंडलोई,1,लू सुन,1,लूट,1,लोक,1,लोककथा,378,लोकतंत्र का दर्द,1,लोकमित्र,1,लोकेन्द्र सिंह,3,विकास कुमार,1,विजय केसरी,1,विजय शिंदे,1,विज्ञान कथा,79,विद्यानंद कुमार,1,विनय भारत,1,विनीत कुमार,2,विनीता शुक्ला,3,विनोद कुमार दवे,4,विनोद तिवारी,1,विनोद मल्ल,1,विभा खरे,1,विमल चन्द्राकर,1,विमल सिंह,1,विरल पटेल,1,विविध,1,विविधा,1,विवेक प्रियदर्शी,1,विवेक रंजन श्रीवास्तव,5,विवेक सक्सेना,1,विवेकानंद,1,विवेकानन्द,1,विश्वंभर नाथ शर्मा कौशिक,2,विश्वनाथ प्रसाद तिवारी,1,विष्णु नागर,1,विष्णु प्रभाकर,1,वीणा भाटिया,15,वीरेन्द्र सरल,10,वेणीशंकर पटेल ब्रज,1,वेलेंटाइन,3,वेलेंटाइन डे,2,वैभव सिंह,1,व्यंग्य,2075,व्यंग्य के बहाने,2,व्यंग्य जुगलबंदी,17,व्यथित हृदय,2,शंकर पाटील,1,शगुन अग्रवाल,1,शबनम शर्मा,7,शब्द संधान,17,शम्भूनाथ,1,शरद कोकास,2,शशांक मिश्र भारती,8,शशिकांत सिंह,12,शहीद भगतसिंह,1,शामिख़ फ़राज़,1,शारदा नरेन्द्र मेहता,1,शालिनी तिवारी,8,शालिनी मुखरैया,6,शिक्षक दिवस,6,शिवकुमार कश्यप,1,शिवप्रसाद कमल,1,शिवरात्रि,1,शिवेन्‍द्र प्रताप त्रिपाठी,1,शीला नरेन्द्र त्रिवेदी,1,शुभम श्री,1,शुभ्रता मिश्रा,1,शेखर मलिक,1,शेषनाथ प्रसाद,1,शैलेन्द्र सरस्वती,3,शैलेश त्रिपाठी,2,शौचालय,1,श्याम गुप्त,3,श्याम सखा श्याम,1,श्याम सुशील,2,श्रीनाथ सिंह,6,श्रीमती तारा सिंह,2,श्रीमद्भगवद्गीता,1,श्रृंगी,1,श्वेता अरोड़ा,1,संजय दुबे,4,संजय सक्सेना,1,संजीव,1,संजीव ठाकुर,2,संद मदर टेरेसा,1,संदीप तोमर,1,संपादकीय,3,संस्मरण,730,संस्मरण लेखन पुरस्कार 2018,128,सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन,1,सतीश कुमार त्रिपाठी,2,सपना महेश,1,सपना मांगलिक,1,समीक्षा,847,सरिता पन्थी,1,सविता मिश्रा,1,साइबर अपराध,1,साइबर क्राइम,1,साक्षात्कार,21,सागर यादव जख्मी,1,सार्थक देवांगन,2,सालिम मियाँ,1,साहित्य समाचार,98,साहित्यम्,6,साहित्यिक गतिविधियाँ,216,साहित्यिक बगिया,1,सिंहासन बत्तीसी,1,सिद्धार्थ जगन्नाथ जोशी,1,सी.बी.श्रीवास्तव विदग्ध,1,सीताराम गुप्ता,1,सीताराम साहू,1,सीमा असीम सक्सेना,1,सीमा शाहजी,1,सुगन आहूजा,1,सुचिंता कुमारी,1,सुधा गुप्ता अमृता,1,सुधा गोयल नवीन,1,सुधेंदु पटेल,1,सुनीता काम्बोज,1,सुनील जाधव,1,सुभाष चंदर,1,सुभाष चन्द्र कुशवाहा,1,सुभाष नीरव,1,सुभाष लखोटिया,1,सुमन,1,सुमन गौड़,1,सुरभि बेहेरा,1,सुरेन्द्र चौधरी,1,सुरेन्द्र वर्मा,62,सुरेश चन्द्र,1,सुरेश चन्द्र दास,1,सुविचार,1,सुशांत सुप्रिय,4,सुशील कुमार शर्मा,24,सुशील यादव,6,सुशील शर्मा,16,सुषमा गुप्ता,20,सुषमा श्रीवास्तव,2,सूरज प्रकाश,1,सूर्य बाला,1,सूर्यकांत मिश्रा,14,सूर्यकुमार पांडेय,2,सेल्फी,1,सौमित्र,1,सौरभ मालवीय,4,स्नेहमयी चौधरी,1,स्वच्छ भारत,1,स्वतंत्रता दिवस,3,स्वराज सेनानी,1,हबीब तनवीर,1,हरि भटनागर,6,हरि हिमथाणी,1,हरिकांत जेठवाणी,1,हरिवंश राय बच्चन,1,हरिशंकर गजानंद प्रसाद देवांगन,4,हरिशंकर परसाई,23,हरीश कुमार,1,हरीश गोयल,1,हरीश नवल,1,हरीश भादानी,1,हरीश सम्यक,2,हरे प्रकाश उपाध्याय,1,हाइकु,5,हाइगा,1,हास-परिहास,38,हास्य,59,हास्य-व्यंग्य,78,हिंदी दिवस विशेष,9,हुस्न तबस्सुम 'निहाँ',1,biography,1,dohe,3,hindi divas,6,hindi sahitya,1,indian art,1,kavita,3,review,1,satire,1,shatak,3,tevari,3,undefined,1,
ltr
item
रचनाकार: प्राची - अगस्त 2016 / कोठारिन / कहानी / अश्विनी कुमार आलोक
प्राची - अगस्त 2016 / कोठारिन / कहानी / अश्विनी कुमार आलोक
https://lh3.googleusercontent.com/-nsDrwP0p4Ms/V71IoOfc-YI/AAAAAAAAvp8/cfDWRueQXNI/image_thumb%25255B2%25255D.png?imgmax=800
https://lh3.googleusercontent.com/-nsDrwP0p4Ms/V71IoOfc-YI/AAAAAAAAvp8/cfDWRueQXNI/s72-c/image_thumb%25255B2%25255D.png?imgmax=800
रचनाकार
https://www.rachanakar.org/2016/08/2016_61.html
https://www.rachanakar.org/
https://www.rachanakar.org/
https://www.rachanakar.org/2016/08/2016_61.html
true
15182217
UTF-8
Loaded All Posts Not found any posts VIEW ALL Readmore Reply Cancel reply Delete By Home PAGES POSTS View All RECOMMENDED FOR YOU LABEL ARCHIVE SEARCH ALL POSTS Not found any post match with your request Back Home Sunday Monday Tuesday Wednesday Thursday Friday Saturday Sun Mon Tue Wed Thu Fri Sat January February March April May June July August September October November December Jan Feb Mar Apr May Jun Jul Aug Sep Oct Nov Dec just now 1 minute ago $$1$$ minutes ago 1 hour ago $$1$$ hours ago Yesterday $$1$$ days ago $$1$$ weeks ago more than 5 weeks ago Followers Follow THIS PREMIUM CONTENT IS LOCKED STEP 1: Share to a social network STEP 2: Click the link on your social network Copy All Code Select All Code All codes were copied to your clipboard Can not copy the codes / texts, please press [CTRL]+[C] (or CMD+C with Mac) to copy Table of Content