‘धन का मद गदगद करे’ [ लम्बी तेवरी -तेवर-शतक ] / +रमेशराज

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‘धन  का मद गदगद करे’   [ लम्बी तेवरी -तेवर-शतक ] +रमेशराज ---------------------------------- कितने विश्वामित्र, माया के आगे टिकें इत्र सरी...

‘धन  का मद गदगद करे’
 
[ लम्बी तेवरी -तेवर-शतक ]

+रमेशराज
----------------------------------
कितने विश्वामित्र, माया के आगे टिकें
इत्र सरीखा दे महक धन -वैभव हर बार । 1

अब मंत्री-पद पाय, मुनिवर नारद खुश बहुत
धन  का मद गदगद करे सत्य हुआ निस्सार । 2

बुरा-गँवार समाज, गोकुल का इसको लगे
राधा  कान्हा से कहे ‘चल अमरीका यार’ । 3

सुख की चादर तान, राम आज के सो रहे
सीता के दुःख जानने कौन धाय  इस बार । 4

अपनी नाक कटाय, सूपनखा जब आ गयी
नकटों ने पहना दिये झट नकटी को हार । 5

लगे वोट का ढेर, राजनीति कर दलित की
बहुत राम के काम का  शबरी का सत्कार  । 6

चंचल-शोख बनाय, अपने थिर अस्तित्व को
मिली अहल्या आज की लिये देह-व्यापार । 7

कहलाते हैं चीफ, राजनीति में आजकल
राम आज शम्बूक-से तप के बन आधार । 8

मातें दे अविराम, भाई को भाई विहँस
अब केशव-बलराम में नित्य नयी तकरार । 9

आज तीर-संधान , केवल सत्ता-वरण को
अर्जुन बगुले की तरह करे मीन पर वार । 10

छोड़ रही है तीर, सुरसा कामुक वृत्ति का
गश खाकर हनुमत गिरें अब के आखिरकार । 11

अरे समय के चक्र, जन-जन के अब पीर मन
हर सीधी   रेखा करी तूने वक्राकार । 12

रावण आज चलाय, रिश्वत का ब्रह्मास्त्र जब
अडिग पांव अंगद रखे क्यों कर आखिरकार । 13

देख नया गठजोड़, हर कोई हैरान है
आज उजाले का बना सखा-मित्र अँधियार  । 14

रुचिर लगे विष-अर्क, लोग नर्क में खुश बहुत
हर असत्य अब बन गया शुद्ध  सत्य का सार । 15

बन सत्ता का अंग, खुश है आज विपक्ष अति
ज्यों मिट्टी के तेल सँग गदगद हो अंगार । 16

शुरु हुआ व्यापार, राजनीति से प्रीति का
अति महान हमने लिखे सब बौने किरदार । 17

कभी सत्य के साथ, रखती थी हर तथ्य को
आज हमारी लेखनी सिर्फ करे व्यापार । 18

नेता-नौकरशाह, देते आह-कराह अति
दोनों के गठजोड़ से जन में हाहाकार । 19

विद्रोहों के छन्द, कायर क्या रच पायँगे
बिल्ली लखि आँखें करे बन्द कबूतर यार । 20

अजब विरोधाभास, दिखलायी देने लगा
चन्दन-से मन में मिले दुर्गंधों  का ज्वार । 21

तू जवाब अनुकूल, पहले से ही सोच ले
भेंटे करेगा फूल अब बधिक तुझे हर बार । 22

लगें अहिंसा-मंत्र, हम सबको अति तुच्छ अब
अभिनंदित हो आजकल रक्त-सनी तलवार । 23

हर आचार-विचार, देता छल पल में बदल
लालच सच को छीलता, झूठ लीलता प्यार। 24

आज गिद्ध-सी दृष्टि, खेतों पर सरकार की
आत्मदाह को हैं विवश खेतों के हकदार । 25

दफ्तर आज शुमार, पिकनिक-स्थल में हुआ
दम्भी नौकरशाह को हर दिन अब इतवार। 26

आज बँटे माँ-बाप, खेत कटा-आँगन घटा
पूरा घर खण्डहर हुआ कैसी चली बयार। 27

उन्मादी अखबार, हम भी बनकर रह गये
नूर उगलती थी कलम, अब उगले अँधियार । 28

हम इतने मजबूर, रोजी-रोटी ने किये
बना लिया साहित्य भी जैसे हो अखबार। 29

पनपी हुई दरार, कल चौड़ी जायगी
पुल व्याकुल इस रोग पर होता आखिरकार। 30

कहना पड़ता नूर, आज विवश हो तिमिर को
सभी भौंथरे पड़ गये अपने नव हथियार। 31

मोह-रोग में आज, संत भोग के योग में
जनता इनको मानती ईश्वर का अवतार। 32

अब ऐसा है दौर, कुछ जेहादी बन गये
साधुवृत्ति संयम-भरे अपने चलन उतार। 33

कुछ खिसकाया माल, विक्रम ने जब जेब से
भूल गया वैताल झट प्रश्नों की बौछार। 34

अब जन-जन की जेब, संत-मौलवी नापते
केवल सबको लूटना कथित धर्म  का सार। 35

हनुमान घी घास, रामलला साबुन बने
तम्बाकू बन बिक रहे देवों के अवतार। 36

ऐसा छाया शोर, हरित विदेशी क्रान्ति का
खेत रेत के प्रेत ने निगल लिये इस बार। 37

सोये कृपा-निधान पूरे भारतवर्ष के
सुख के ‘देव-उठान’ को तरस गये हम यार। 38

और करें यम सिद्ध , मातम का मौसम यहाँ
चील गिद्ध  वक काग अहि हमले को तैयार। 39

तर जलधर  से आज, नयन वतन के हो गये
बने देश के वास्ते नेताजी तलवार। 40

अब दुःख का पर्याय, सुख का हर व्यवसाय है
हानि-ग्लानि में हम जियें पायें केवल हार। 41

यूँ बदला माहौल, हमने अपने देश का
आज बेचने मुल्क को हम सब हैं तैयार। 42

फिर-फिर  यही सुझाव, अमरीका देता हमें
‘करो नाव में घाव तुम होना है यदि पार।’ 43

हाथ-पाँव बेकार, विश्व बैंक ने कर दिये
फिर  भी देश खजूर पर चढ़ने को तैयार’। 44

हुए फिदा हम आज, हर अमरीकी नीति पर
क्षण-भर की सुविधा  हमें दुविधा अमित अपार। 45

दो बेटों का न्याय, माँ भी कैसा कर रही
एक पुत्र को फूल-सी, एक पुत्र को खार। 46

देख अनोखी भोर, ताकतवर सुत खुश हुआ
जो बेटा कमजोर था माँ ने लिया डकार। 47

कौने करे विश्वास, ऐसे माँ के रूप पर
जो कपूत उसकी नज़र नित माँ रही उतार। 48

उसको सच्चा पूत, आज कलियुगी माँ कहे
गिद्ध  सरीखा-साँप-सा जिसका हर व्यवहार। 49

सारे पुत्र समान, माँ को होने चाहिए
पर इस युग करती है कहाँ माँ ऐसा उपचार। 50

माँ है बेहद दक्ष, कुटिल चाल के खेल में
दो बेटों में धींग  का नित स्वागत-सत्कार। 51

बहशी-आदमखोर, पूरा घर माँ ने किया
भाई से भाई लड़ा बार-बार ललकार। 52

‘दानवीर’ श्रमवीर’, माँ बोली ‘तू तो बड़ा’
‘छोटे से हक माँगना बेटा है बेकार’। 53

माँ के अद्भूत रूप, इस युग में देखे कई
एक तरफ वह धूप-सी, एक तरफ अंधियार । 54

घनी मिठासें-प्रेम, पिता गये थे छोड़कर
उसी ओर अब मोड़ दी माता ने विषधार। 55

अलगावों की रेख, सारे घर में खिंच गयी
भाई-भाई के हृदय अब है घृणा अपार। 56

नये-नये अंदाज, देख-देख माँ खुश हुई
अलग-अलग गोधन  पुजे जब घर पहली बार। 57

बढ़े बड़े अलगाव, बहू लड़ी-बेटे लड़े
घावों पर माँ ने करी अम्लों की बौछार। 58

सम्बन्धों  के बीच, पिता रहे पुल की तरह
माँ अब पैदा कर रही रिश्तों बीच दरार। 59

मंत्री  की सरकार, मंत्री  का अखबार है
छापे भूख अकाल को रोज वसंत-बहार। 60

मधुकर मधु  पी जाय, मधुमाखी संचय करे
एक तपस्वनि एक खल के सम पाय प्रचार। 61

खुद ही विश्वामित्र, बिना डिगाये अब डिगे 
कामवासना से भरे उस  में आज विचार। 62

सत्ता की विषबेल, छायी पूरे देश पर
राजनीति के दीप में तेल नहीं इस बार। 63

युद्ध  न प्रेम विरुद्ध, प्रेम न युद्ध  विरुद्ध  है
रति की रक्षा के लिये कर थामो हथियार। 64

मति-गति छल के साथ, कलि के संग उमंग अति
बल प्रयोग के बीच है नैतिक लोकाचार। 65

तीर-तीर-दर-तीर, आवृत्तियों में पीर दे
त्रिभुज बना अब का मनुज, जाने केवल वार। 66

गहरे संशय आज, आदरेय देने लगे
विस्मय-भय की लय बना सद्परिचय का सार। 67

दया कहाँ उर-बीच, मद आदत-लत बन गया
अहंकार पैदा करे हर मन कलि की धार। 68

अब केवल व्यापार, रीति-प्रीति उद्गार सब
संस्कार सत्कार में यार न आज उदार। 69

सबसे बोले प्याज-‘मैं सुगन्ध में सौंफ-सी’
अब बिन सूत-कपास के ताने-बाने यार। 70

थोड़ा भी संवेद, इनके बीच न खोज तू
सूजे, सुम्मी, छैनियाँ छेद करें हर बार । 71

हुआ टोल से दूर, खग किलोल से बोल से
पिंजरे में सैयाद के अब पंछी लाचार। 72

वहाँ न अच्छा प्यार, जहाँ वार ही वार हों
एक टेक ही नेक है खल की खातिर ‘मार’। 73

फिर बोलेगी काँव, कोयल जैसी द्रौपदी
जल के भ्रम पर पाँव क्यों रखता है तू यार? 74

सिर्फ हमारे पास, शुतुर्मुग-सी गर्दनें
तूफाँ के आगे झुकें अब हम बारम्बार। 75

लेकर जियो गुरूर, भले अंगदी पाँव-सा
अंधड़  में जड़ की पकड़, जकड़-अकड़ बेकार। 76

करें न हम छल-पाप, जाप न छूटे सत्य का
आप चाप पर वाण लो भले प्राण लो यार। 77

वहाँ क्रान्ति का ख्वाब, क्या पालेगा कवि जहाँ
चाबुक से चमड़ी कहे-‘तू ही मेरा यार’। 78

किसका लेगा पक्ष, रे मन भावुक अब बता
वृक्ष कुल्हाड़ी का करें जब स्वागत-सत्कार। 79

कवि करुणा के छंद, कलियुग में कैसे रचे
तरु को दे आनंद जब अब आरी का प्यार। 80

हुए विरल सूर्यांश, सर्प-स्वभावी अब घने
कागा हंसों पर करें  व्यंग्यों की बौछार। 81

नये-नये उत्पात, बहुत कठिन दिन आ गये
दिखने लगा प्रभात अब अन्धकार  का यार। 82

कैसे जाएँ अश्रु, सूख मोरनी के नयन
कत्थक करते मोर पर किया वधिक ने वार। 83

लुटा नयन का हास, सुख का हर आमुख कुटा
घात भरे अनुप्रास में अंधकार  का वार। 84

फीकी-सी मुस्कान, अन्तर में डर की लहर
करें आज हम अतिथि का यूँ स्वागत-सत्कार। 85

कलहप्रिया के बोल, दाम देख जनते सुलह
कामा करे किलोल अति कर-कर नामा पार। 86

वर मानुष का ध्यान, सिर्फ शब्द-व्यापार पर
‘अगर-मगर’ सज्जित अधर , थोथा शिष्टाचार। 87

रस-चूसे स्वच्छंद, आज भ्रमर हर फूल से
मधु -चोरी मकरंद को मिलता कारागार। 88

महँगाई की मार, झेल रहा है आज मन
मुल्तानी मिट्टी लगें  तेरे शिष्टाचार। 89

बने न ये इन्सान, अहंकार मद की सनद
मधु मुस्कान-जुबान का अब हो लोकाचार। 90

भला वधिक को अंत, जीवन से ज्यादा लगे
गिद्ध  कहे शव देखकर ‘आयी मधुर  बहार’। 91

कभी न बने कुरूप, सुजन संत का क्रोध भी
भरे महँक वातास में जल चन्दन हर बार । 92

खींचे सबका ध्यान, अलग-थलग मग का विहग
करता कोई भीड़ का कब स्वागत-सत्कार। 93

‘मुझसे जीवित खम्ब’ कहती है छत आजकल
खुद को समझे अप्सरा कुब्जा कर शृंगार। 94

होने चले गुलाम हम फिर  गोरी नस्ल के
आज न कोई शोर है और नहीं प्रतिकार। 95

महँकें आज गुलाब, अपने खेत विदेश के
आज गुलामी से हुआ हमें अनूठा प्यार। 96

घर के कारोबार, रँगे विदेशी रंग में
आज स्वदेशी नीति पर गिरने लगा तुषार। 97

विश्व बैंक के शंख, यदि यूँ ही फूँके गये
हम सबको डस कर रहे  डंकल आखिरकार। 98

बजें विदेशी साज, भूले राग स्वदेश के
अपने ही घर हम दिखें आज अजनवी यार। 99

भले लगें प्रस्ताव, शान्ति-निरस्तीकरण के
युद्धभूमि में वार हम सहने को लाचार। 100

कर्जा साहूकार, बेमतलब देता नहीं
हम सबकी कल देखना लेगा मींग निकार। 101

हरे-भरे जो खेत, आज विदेशी खाद से
इनमें कल को देखना पाये मरु विस्तार। 102

सारे आदमखोर, देशभक्त बनकर तनें
देशद्रोहियों का यहाँ हो स्वागत-सत्कार। 103

हँस-हँस दूध पिलाय, विषधर  को हम सब रहे
हमें सिर्फ भाते बुरे अमरीकी उद्गार। 104
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+रमेशराज, 15/109, ईसानगर, अलीगढ़ -202001
Mo.-9634551630

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रचनाकार: ‘धन का मद गदगद करे’ [ लम्बी तेवरी -तेवर-शतक ] / +रमेशराज
‘धन का मद गदगद करे’ [ लम्बी तेवरी -तेवर-शतक ] / +रमेशराज
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