सफ़ेद दाग़ / कहानी / क़ैस जौनपुरी

SHARE:

क़ैस जौनपुरी qaisjaunpuri@gmail.com +91 9004781786 09:05am, 17 June 2016 कहानी सफ़ेद दाग़ इला बड़ी देर से बस के आने का इन्तज़ार कर रही थी. काफ़...

क़ैस जौनपुरी

qaisjaunpuri@gmail.com

+91 9004781786 09:05am, 17 June 2016

कहानी

सफ़ेद दाग़

इला बड़ी देर से बस के आने का इन्तज़ार कर रही थी. काफ़ी लम्बे इन्तज़ार के बाद जब बस आई, तो इला भीड़ के साथ बस में चढ़ तो गई, लेकिन बैठने के लिए उसे सीट नहीं मिली. उसने भीड़ से खचा-खच भरी हुई बस से उतर जाना चाहा, ये सोचकर कि, “अगली बस से चलूँगी.” लेकिन इससे पहले कि वो भीड़ को चीरकर उतर पाती, बस चल दी थी.

अब उसे खड़े-खड़े ही सफ़र करना था. वैसे तो उसे बस में खड़े रहने में कोई दिक़्क़त नहीं होती थी, क्योंकि अब तो उसे इसकी आदत हो चुकी थी. लेकिन आज उसकी तबियत कुछ ख़राब थी, इसलिए उससे खड़े नहीं रहा जा रहा था. वो बैठना चाहती थी, लेकिन बस पूरी भरी हुई थी. बस में एक के बाद एक, और इसी तरह से ढेर सारे लोग चढ़ते जा रहे थे, कण्डकर टिकट काटता जा रहा था, और भीड़ को देखकर इला की बेचैनी बढ़ती जा रही थी.

फिर वही हुआ, जो वो नहीं चाहती थी. उसे ऐसा लगा कि, “अब मुझे उल्टी हो जाएगी. भरी बस में लोग मुझे उल्टी करते हुए देखेंगे, तो क्या सोचेंगे?” ये सवाल उसके मन को अच्छा नहीं लग रहा था. इसलिए वो नहीं चाहती थी कि कोई उसकी तरफ़ देखे या उसके ऊपर ध्यान दे.

लेकिन इला का इस तरह बेचैनी से इधर-उधर देखना, लोगों की नज़रों से छुपा हुआ नहीं था. थोड़ी ही देर में उसे पता चल गया कि, “सब लोग मुझे बड़ी अजीब नज़र से देख रहे हैं.” अब इला किसी भी तरह बैठ जाना चाहती थी, क्योंकि अब उससे बिलकुल भी खड़े रहा नहीं जा रहा था. वो सोच-सोच कर परेशान हो रही थी कि, “लोग पहले ही मुझे अजीब नज़रों से घूर रहे हैं, अब अगर उल्टी करते भी हुए देख लेंगे, तो पता नहीं क्या सोचेंगे!”

लेकिन बस में बैठे हुए लोग तो पहले से ही उसे देख रहे थे और सोच रहे थे कि, “ये लड़की इतनी बेचैन क्यूँ है?” क्योंकि लोगों को तो उसकी ख़राब हालत का कुछ पता नहीं था. लोगों की नज़र तो बस उसके सफ़ेद दाग़ से भरे हुए चेहरे पे टिकी थी. उसका चेहरा सफ़ेद दाग़ से इतनी बुरी तरह भरा हुआ है कि लोगों को उससे घिन आ रही थी, लेकिन फिर भी लोग उसे आँखें फाड़-फाड़ कर घूरे जा रहे थे, क्योंकि वो एक लड़की है, और उसके पास देखने जैसा बहुत कुछ है. भले ही, उसके चेहरे पे सफ़ेद दाग़ है तो क्या हुआ!

ये सफ़ेद दाग़ भी, वैसे तो किसी-किसी को कहीं एक-आध जगह हो जाता है, लेकिन इला का तो पूरा जिस्म ही इतनी बुरी तरह सफ़ेद दाग़ के चितकबरे धब्बों से ढँका हुआ है कि उसे ख़ुद भी अपने आप से घिन आती है. क्योंकि सफ़ेद दाग़ उसके होंठों पे है, उसकी नाक पे है, उसके कान के आस-पास है, उसके माथे पे है, उसकी गरदन पे है, उसके हाथ पे है और उसकी शलवार के नीचे दिख रहे पैर के पंजों पे भी है.

उसको देखकर ऐसा लगता है कि ये सफ़ेद दाग़ इसी तरह उसके जिस्म के उन हिस्सों पर भी होगा, जो अभी उसकी शलवार-क़मीज़ के अन्दर ढँके हुए हैं, यानी उसकी पीठ पर, उसके पेट पर, उसके सीने पर, उसकी जाँघों पर... और वहाँ भी...

लोगों की नज़र ख़ुद से अन्दाज़ा लगा रही थी कि, “इस लड़की के पूरे जिस्म पर सफ़ेद दाग़ ने अपना कब्ज़ा जमा रखा है.” लोग ये भी सोच रहे थे कि, “जब ये लड़की नहाने के लिए अपने सारे कपड़े उतार देती होगी, तो इसके जिस्म के सारे सफ़ेद दाग़ कितने बुरे लगते होंगे, है ना?” लोग ये भी अटकलें लगा रहे थे कि, “अभी तो इस लड़की की उम्र भी कुछ बीस से ज़्याद: नहीं लग रही है. बेचारी की ज़िन्दगी सफ़ेद दाग़ की वजह से बेक़ार हो गई. अब कौन करेगा इससे शादी-वग़ैरह...?”

लोगों की सारी अटकलें सही थीं. इला के पूरे जिस्म पे सफ़ेद दाग़ हैं. उसके होंठों के चारों ओर बने सफ़ेद दाग़ की वजह से उसका चेहरा, किसी चितकबरी बकरी की तरह लगता है. और जब वो नहाती है, तो आँख बन्द करके नहाती है, क्योंकि ये चितकबरापन, यही सफ़ेद और गहरे भूरे धब्बों का मिला-जुला जिस्म, उसकी आँखों में किसी काँटे की तरह चुभता रहता है. और यही वजह है कि अभी तक उसकी शादी भी नहीं हुई है. वरना ग़रीब लड़कियों की शादी बीस बरस तक न हो, ऐसा तो होता नहीं.

लेकिन इस वक़्त इला को अपने सफ़ेद दाग़ या अपनी शादी की उतनी चिन्ता नहीं थी, जितनी इस बात की थी, कि वो कहीं किसी आदमी के ऊपर उल्टी न कर दे. इसलिए जब उससे बिलकुल ही नहीं रहा गया, तो उसने बस के पिछले गेट के पास, पहली सीट पर बैठे हुए आदमी से, बड़ी लाचारगी भरी आवाज़ में कहा, “मेरी तबियत ठीक नहीं है. क्या आप मुझे थोड़ी देर बैठने देंगे?”

उस सीट पर बैठे हुए आदमी ने उसे एक नज़र देखा और झट से खड़ा हो गया. ऐसा नहीं था कि उस आदमी को इला पर दया आ गई थी, बल्कि हक़ीक़त ये थी कि इला को देखते ही वो आदमी बिदक सा गया था कि, “कहीं इस लड़की से मेरा हाथ-वाथ न छू जाए, और कहीं इस लड़की के ढेर सारे सफ़ेद दाग़ मुझे भी न लग जाएँ.”

वो आदमी सीट छोड़कर उठ गया, फिर इला उस आदमी को “आपकी बड़ी मेहरबानी” के अन्दाज़ में देखते हुए सीट पर बैठ गई. फिर बैठते ही वो अगली सीट के हत्थे पर, अपना सिर टिकाकर, आगे की तरफ़ झुक गई. लोगों की नज़र अब उसकी गरदन के पीछे और क़मीज़ से बाहर दिख रही पीठ पर थी, जिसके ऊपर भी सफ़ेद दाग़ के कुछ धब्बे नज़र आ रहे थे.

अमूमन, होता तो ये है कि लड़की के जिस्म पे सफ़ेद दाग़ बुरे लगते हैं, लेकिन इला के जिस्म पे सफ़ेद दाग़ इतने ज़्याद: हैं कि उसके सफ़ेद दाग़ों से ज़्याद: उसका अपना गहरे भूरे रंग का जिस्म बुरा लगता है. ऐसा लगता है जैसे उसके सफ़ेद जिस्म पे ढेर सारे गहरे-भूरे दाग़ हो गए हैं. इला ज़्याद: ख़ूबसूरत नहीं है. उसका जिस्म गेहूँ के रंग को पार करते हुए, गहरे भूरे खजूर के रंग का है, जिसपे इतने सारे सफ़ेद दाग़, उसके जिस्म को बहुत ही बदसूरत बना चुके हैं.

सीट पर बैठी और आगे की ओर सिर झुकाये हुए इला से अब नहीं रहा गया और उसने बस में ही उल्टी कर दी. अब क्या था, लोगों की नज़र में उसके लिए जो घिन थी, अचानक उसने एक भयानक रूप ले लिया. सब लोग उसे कोसने लगे, “अरे बस में ही उल्टी कर दी. तबियत सही नहीं है, तो घर से निकली ही क्यों?” वग़ैरह, वग़ैरह की नसीहतें सुनाई देने लगीं.

समद अपनी ज़िन्दगी लगभग जी चुका है. उसने अपनी ज़िन्दगी में लगभग सब कुछ देख लिया है. नौकरी, पैसा, शादी, बच्चा, रिश्तेदार, दोस्त, यार.... लेकिन ये सबकुछ वो बहुत पीछे छोड़ चुका है. उसको किसी भी चीज़ से तसल्ली नहीं मिली है.

नौकरी की, तो थोड़े ही दिनों में नौकरी से ऊब गया. पैसा तो बहुत कमाया, लेकिन उसे पैसे से कभी मोह नहीं रहा. शादी हुई, तो बीवी ऐसी मिली, जो हमेशा बीवी बनके रहना चाहती थी, और सबको दिखाना चाहती थी कि, “मेरा पति बहुत पैसा कमाता है, और मुझे बहुत प्यार करता है.” बीवी की ज़िद पे, और न चाहते हुए भी, समद को एक बच्चा पैदा करना पड़ा.

बच्चा हुआ, तो बीवी का पूरा ध्यान बच्चे पे चला गया. अब उसकी बीवी, लोगों से ये कहती फिरने लगी कि, “हम लोग अपने बच्चे को सबसे बढ़िया स्कूल में पढ़ायेंगे. मेरे पति ने अभी से सारा इन्तज़ाम कर दिया है. पैसे की कोई दिक़्क़त नहीं है.” बच्चा बड़ा हुआ, तो रिस्तेदारों ने ‘एक और’ की रट लगा ली.

अब यहाँ आके समद के सब्र का बाँध टूट गया और उसकी सबसे अनबन हो गई. उसने साफ़-साफ़ कह दिया, “तुम लोगों ने चक्कर में, मैं अपने आप को खोता जा रहा हूँ. मैं जीना चाहता हूँ. सभी रिश्तेदारियों और इस दिखावे से भरी हुई ज़िन्दगी से बहुत दूर, कुछ दिन अकेले रहना चाहता हूँ.”

लेकिन एक शादी-शुदा आदमी ऐसा कर सके, इसके लिए हमारा समाज अभी इतना आज़ाद-ख़याल नहीं हुआ है. समद की बातों से लोगों ने ये अन्दाज़ा लगाया कि, “समद का, शादी के बाद, अपनी बीवी से जी भर चुका है, और अब उसका किसी ‘दूसरी औरत’ से चक्कर चल रहा है.” फिर रिश्तेदारों ने भी अपना हक़ जताया और समद की बीवी को उकसाया कि, “पति को इस तरह आज़ाद-ख़्याल रहने दोगी, तो किसी दिन हाथ से जाएगा.” फिर बीवी तो आख़िर बीवी होती है. उसने भी अपना हक़ जताया और बात सीधे तलाक़ पर ही ख़तम हुई. बीवी-बच्चा, रिश्तेदार, सब के सब समद के ख़िलाफ़ हो गए. और अन्त में समद अकेला रह गया. अब उसकी ज़िन्दगी में जीने का कोई ख़ास मक़सद नहीं बचा है. और अब वो अपनी बेमक़सद ज़िन्दगी को ढोते हुए इधर-उधर भटकता रहता है.

आज जब समद ने बस में अपने बगल में बैठी हुई लड़की को उल्टी करते हुए देखा, और लोगों को उसे बुरी तरह झिड़कते हुए देखा, तो उसे बहुत बुरा लगा. उसने अपनी पानी की बोतल, उसे पकड़ाते हुए कहा, “पानी पी लीजिए, थोड़ा आराम मिलेगा.” इला ने इस आदमी को हैरानी से देखा, जो पूरी बस में अकेला ऐसा आदमी था, जिसे उसके सफ़ेद दाग़ या उसकी बदसूरती से कोई हिचक नहीं हो रही थी. यहाँ तक कि उसने उल्टी भी उसके बगल में ही बैठ कर की थी.

समद के चेहरे पर, एक ख़ामोश मुस्कुराहट देखकर, इला ने पानी की बोतल उसके हाथ से ले ली, और बोतल अपने मुँह से थोड़ा सा ऊपर रखकर एक घूँट पानी पीना चाहा. लेकिन तभी ड्राइवर ने ब्रेक मारी और इला का हाथ हिल गया, जिससे बोतल का थोड़ा सा पानी उसके चेहरे और उसके कपड़ों पर गिर गया. समद ने उसे मुँह पोंछने के लिए अपना रुमाल देते हुए कहा, “कोई बात नहीं, मुँह लगा के पी लीजिए.”

लोग आगे-पीछे से सब कुछ देख रहे थे, और अब, जबकि इला को एक हमदर्द मिल गया था, लोगों को ये भी थोड़ा बुरा लगा. इतने में कण्डक्टर भी टिकट काटते हुए पास आ गया था. उसने इला को बस में उल्टी किये हुए देखा, तो बिगड़ गया, “अरे, ये क्या कर दिया? अब इसे साफ़ कौन करेगा?”

तभी समद ने इला के हाथ से पानी की बोतल वापस ली और बचे हुए पानी से इला की उल्टी बहा दी. कण्डक्टर ने झेंपते हुए कहा, “साहब, जब मैडम की तबियत सही नहीं है, तो बाहर लेकर क्यूँ घूम रहे हो? घर लेके जाओ इनको, या किसी डॉक्टर को दिखाओ.”

ये सुनकर इला और समद ने एक-दूसरे को हैरानी से देखा. कण्डकर ने अनजाने में ही, उनके बीच एक रिश्ता क़ायम कर दिया था. समद को भी ऐसा लगा, जैसे उसे थोड़ी देर के लिए एक मक़सद मिल गया है.

लेकिन इला ये सोच रही थी कि, “क्या इस आदमी को अभी तक मेरे चेहरे के सफ़ेद दाग़ नहीं दिखे हैं? या फिर, क्या ये आदमी जानबूझ के अन्धा बन रहा है?”

फिर समद ने इला को बस से उतर चलने का इशारा किया, जिसे इला ने अपनी ख़राब हालत को देखते हुए, बिना कुछ कहे, सिर झुका के मान लिया. इला और करती भी क्या? पूरी बस में उसे एक ही आदमी मिला था, जिसने उसे भी एक इन्सान समझा था और उसकी ख़राब हालत को बिना कुछ कहे समझ गया था.

अब दोनों बस से उतरकर सड़क पर खड़े थे. इला को समझ में नहीं आ रहा था कि वो समद से क्या कहे. उसकी झिझक को देखते हुए समद ने ही कहा, “चलिये, पहले किसी डॉक्टर के पास चलते हैं.”

इला ने उसकी बात को बड़े ग़ौर से सुना, “चलिये, पहले किसी डॉक्टर के पास चलते हैं” का क्या मतलब था? इला अपने ही सवालों में उलझती जा रही थी. लेकिन समद उसके पास बिना किसी परेशानी के इस तरह खड़ा था, जैसे वो उसके अपने ही परिवार का एक हिस्सा हो. इतना अपनापन तो उसने अपनी ज़िन्दगी में आज से पहले कभी नहीं देखा था.

बचपन से लेकर आज तक उसे सिर्फ़ हिक़ारत की नज़र से ही देखा गया था, और लोगों ने उससे दूर ही रहना चाहा था. लेकिन एक ये आदमी है, जो एक अजनबी होते हुए भी, उसे अपनी ज़िम्मेदारी समझते हुए, डॉक्टर के पास ले जाना चाहता है.

आख़िर में जब उसे कुछ और समझ में नहीं आया कि वो क्या करे? तब उसने ‘हाँ’ में सिर हिला दिया.

अब डॉक्टर के पास जाते हुए रास्ते में दोनों ने अपनी-अपनी ज़िन्दगी एक-दूसरे के सामने पोटली की तरह खोलकर रख दी. जिसके बाद दोनों को ही पता चला कि समाज ने दोनों के ही साथ बहुत बुरा सुलूक किया है.

डॉक्टर के क्लीनिक से दवाई लेकर जब दोनों बाहर निकले, तब दोनों को समझ में नहीं आया कि अब आगे क्या बात करें? क्या दोनों ये कहें कि, “अच्छा अब चलते हैं. आपसे मिलकर अच्छा लगा.” या कुछ और? लेकिन कुछ और, क्या?

दोनों सड़क पे खड़े बस एक-दूसरे को देखते रहे, और “पहले कौन बोले?” ये सोचते रहे. फिर जब समद को लगा कि, “शायद ये लड़की झिझक रही है और कुछ नहीं बोलेगी.” तब उसने ही कहा, “अपना ख़याल रखियेगा.” और इतना कहकर समद मुस्कुराते हुए वहाँ से चल दिया.

लेकिन इला वहीं खड़ी रही. थोड़ी दूर चलने के बाद जब समद ने वापस पलट कर देखा, तो इला वहीं खड़ी थी, और पहले से ज़्याद: उदास लग रही थी. उसके चेहरे से ऐसा लग रहा था, जैसे अगर उसे किसी ने तुरन्त नहीं रोका, तो वो अभी रो देगी.

समद ने दूर से ही उसे न रोने का इशारा किया और उसके क़दम अपने आप इला की तरफ़ वापस मुड़ गये. समद को अपनी ओर वापस आते हुए देखकर इला से नहीं रहा गया और उसकी आँखों से भरभरा के आँसू बह निकले.

समद ने उसके आँसूओं को पोछते हुए कहा, “पागल हो क्या?”

उसके इस सवाल का जवाब इला के पास नहीं था, लेकिन उसने समद का हाथ कस के पकड़ लिया और अपने आँसूओं की तेज़ धार के साथ और बिना शब्दों के ये कहना चाहा कि, “फिर कभी मुझे इस तरह सड़क पर अकेले छोड़कर मत जाना.”

समद ने अपनी प्यार भरी आँखों से उसकी बात सुनी, फिर उसके कन्धे पर अपनेपन से भरा हुआ हाथ रखते हुए, उसकी ही तरह, बिना शब्दों में कहा, “चलो, अब घर चलते हैं.”

समद पढ़ा-लिखा था. वो जानता था कि सफ़ेद-दाग़ मिटाना मुश्किल तो है, लेकिन नामुमकिन नहीं. उसने इला को अपनी जान-पहचान के अच्छे डॉक्टरों को दिखाया और भरोसा दिलाया कि, “तुम्हारे ये सारे सफ़ेद दाग़ एक दिन मिट जायेंगे और तुम इतनी ख़ूबसूरत हो जाओगी कि लोग तुम्हारी ख़ूबसूरती को पाने के लिये आह भरेंगे.”

इला को समद की इस बात पे बिलकुल भी यक़ीन नहीं था. लेकिन उसे समद की ये प्यार भरी हमदर्दी बहुत अच्छी लगी.

समद को अपनी ज़िन्दगी में अब एक मक़सद मिल गया था. और वो जी-तोड़ मेहनत करके इला के सफ़ेद-दाग़ मिटाने और उसे ख़ूबसूरत बनाने में जुट गया था. इतने सालों की नौकरी में उसने पैसा बहुत कमाया था. उसने अपना सारा पैसा और सारा समय इला को ख़ूबसूरत बनाने में लगा दिया.

उसने इला को शहर की भीड़ से दूर, एक हरियाली से भरी हुई जगह पे रखा, जहाँ आस-पास कोई दूसरा मकान नहीं था. ताकि वो लोगों की नज़र से बची रहे और उसे अपने बदसूरत होने का ज़रा भी अहसास न हो. इला ने भी ख़ुद को अब पूरी तरह से समद के हवाले छोड़ दिया था.

समद इला के जिस्म से सफ़ेद दाग़ को मिटाने के लिये तरह-तरह के नुस्ख़े इस्तेमाल करता था. वो उसे तुलसी के पत्‍ते और नींबू का रस पिलाता था. विटामिन बी, फ़ोलिक एसिड और विटामिन सी की गोलियाँ खिलाता था.

वो उसके सफ़ेद दाग़ के धब्बों पर नदियों के किनारे पाई जाने वाली लाल मिट्टी में अदरक का रस मिलाकर लगाता था. उसके सफ़ेद दाग़ के धब्बों पर हल्दी और सरसों के तेल को मिलाकर बनाया हुआ लेप लगाता था.

वो अँग्रेज़ी दवाओं के साथ-साथ होमियोपैथी का भी सहारा लेता था. ताँबे के लोटे में रात भर पानी भरके रखता था, और सुबह-सुबह इला को खाली पेट पिलाता था. वो इला को अनार की पत्‍तियाँ पीस कर पिलाता था. नारियल के तेल से इला के पूरे जिस्म की दिन में तीन बार मालिश करता था. वो उसे नीम के पत्‍तों का रस पिलाता था, जिसे पीने में इला की हालत ख़राब हो जाती थी, लेकिन समद के प्यार और दुलार के आगे वो मना भी नहीं कर पाती थी.

समद इतना कुछ कर रहा था लेकिन इला के जिस्म से सफ़ेद-दाग़ मिटने का नाम ही नहीं ले रहे थे. बस उनका रंग थोड़ा हल्का ज़रूर हुआ था. फिर इस चाहत में कि, “जिस दिन मेरे ये सफ़ेद-दाग़ मिट जायेंगे, उस दिन मैं कैसी दिखूँगी?” ये सोचकर इला ने एक दिन अपने सारे कपड़े उतारकर, ख़ुद को आईने में देखा तो उसे बड़ी हैरानी हुई.

उसके जिस्म के सफ़ेद-दाग़ कम होने के बजाए उल्टा बढ़ रहे थे. उसको कुछ समझ में नहीं आया. उसने तुरन्त अपने खुले जिस्म को ढँका और हड़बड़ाती हुई उन सारी दवाईयों को टटोल डाला, जो वो अब तक ले रही थी. उसने अपनी सारी रिपोर्ट्स भी देख डालीं, लेकिन उसको कोई वजह हाथ नहीं लगी. अभी तक वो समद के ही भरोसे थी कि वो सब कुछ सँभाल लेगा. वो सोच में पड़ गई कि मेरे दाग़ तो कम हो नहीं रहे हैं, उल्टा बढ़ रहे हैं. इसका क्या मतलब है?”

उसने सोचा कि आज रात मैं समद से कहूँगी कि, “हम किसी और डॉक्टर को दिखाते हैं.” तभी उसे अपनी रिपोर्ट्स के बीच एक ख़त मिला, जिसे पढ़कर इला के होश उड़ गये. उस ख़त में उसी डॉक्टर ने, जो इला का इलाज कर रहा था, समद को लिखा था कि, “जैसा आप चाहते हैं, इला के सफ़ेद दाग़ जल्दी ही उसके पूरे जिस्म पे फैल जायेंगे.”

“जैसा आप चाहते हैं” पढ़कर इला को इतना बड़ा धक्का लगा, जैसे कमरे की दीवारें, और छत, सब अचानक से इला के ऊपर आ गिरेंगी, और वो उनके नीचे दबके मर जायेगी. वो भागती हुई फिर से आईने के सामने गई और उसने एक बार फिर से अपने सारे कपड़े उतार कर, आईने में अपना जिस्म ग़ौर से देखा. ख़त में लिखी बात बिलकुल सही थी. उसके सफ़ेद-दाग़ अब उसके जिस्म के उन हिस्सों पे भी फैल चुके थे, जहाँ पहले नहीं थे.

उसने तुरन्त इन्टरनेट पर जाकर सफ़ेद दाग़ के बारे में पढ़ा. और इन्टरनेट पर मौजूद जानकारियों को पढ़कर उसके दिमाग़ को और बड़ा सदमा पहुँचा. अब उसे पता चला कि समद उसका हर वो इलाज कर रहा था, जिससे सफ़ेद दाग़ मिटते हैं. लेकिन उनके साथ ही साथ वो इला को हर वो चीज़ खिला रहा था, जो सफ़ेद दाग़ के रोगियों को नहीं खिलाना चाहिये. जैसे कि वो उसे मछली खाने के तुरन्त बाद दूध पिलाता है. खट्टी चीज़ें ज़्याद: खिलाता है. उसके खाने में नमक ज़्याद: डालता है. मिठाई, रबड़ी, दूध और दही एक साथ खिलाता है. उड़द की दाल, माँस और मछली ज़्याद: खिलाता है. खाने में तेल, मिर्च और गुड़ भी खिलाता है.

इला सोचने लगी, “लेकिन ये सब चीज़ें तो सफ़ेद दाग़ के रोगियों को मना हैं.” इला को कुछ समझ में नहीं आया कि अब वो क्या करे? वो काँपते और रोते हुए बड़बड़ाने लगी कि, “समद मेरे साथ ऐसा कैसे कर सकता है? उसने तो मेरे दाग़ मिटाने का वादा किया था? लेकिन वो तो डॉक्टर के साथ मिलके मेरे दाग़ और बढ़ा रहा है! लेकिन वो ऐसा क्यों कर रहा है?”

तभी उसके दिमाग़ में एक बात आई कि, “समद अपनी पहली बीवी को छोड़ चुका है. कहीं ऐसा तो नहीं कि अब वो मुझे भी छोड़ने की तैयारी कर रहा हो?” लेकिन उसे ये नहीं समझ में आ रहा था कि, “समद मुझे क्यों छोड़ना चाहेगा? जबकि वो तो मेरे साथ बहुत ख़ुश रहता है, मेरी इतनी देखभाल करता है, मेरा इतना ख़्याल रखता है, मुझे ख़ुश रखता है. क्या उसका प्यार सिर्फ़ एक नाटक है?”

इला ने अपने आप को बहुत समझाया, लेकिन कोई भी बात उसकी समझ में नहीं आई. तब उसने समद को बिना बताए, उसकी पहली बीवी, ज़ुलेखा का पता लगाया, और उससे ख़ुद जाकर मिली. वहाँ उसे ज़ुलेखा ने बताया कि, “समद एक पारिवारिक ज़िन्दगी के लिये नहीं बना है. उसे आज़ादी चाहिये, हर चीज़ से. रिश्तों-नातों को वो नहीं मानता. उसे रोज़ एक नई-नई लड़की चाहिए. इसीलिए तो उसने मुझे छोड़ दिया. पता नहीं, तुम्हारे साथ अभी तक कैसे और क्यों रह रहा है!”

ज़ुलेखा की बातों ने इला के दिल में आग पैदा कर दीं. ज़ुलेखा के मुताबिक़, “समद सिर्फ़ कुछ दिनों तक ही एक लड़की के पास रह सकता है, फिर उसे छोड़ वो दूसरी के पास चला जाता है.”

इला ज़ुलेखा से मिलके वापस आ गई. समद को, “इला के मन में कुछ हलचल मची हुई है”, इसका अन्दाज़ा तो हुआ, लेकिन उसके पूछने पर वो “कुछ नहीं” कहके टाल गई. समद अभी भी पूरी लगन से इला को सही वक़्त पर दवाएँ खिलाता था, उसके जिस्म पर लगाने वाली दवाएँ, वो ख़ुद अपने हाथ से लगाता था. यहाँ तक कि उसके जिस्म की मालिश भी वो ख़ुद ही किया करता था. वो चाहता तो कोई नर्स रख सकता था, लेकिन उसने ऐसा नहीं किया.

इला ने महसूस किया कि समद उसके बढ़ते हुए दाग़ों की वजह से बिलकुल भी परेशान दिखाई नहीं देता है. बल्कि वो उनकी तरफ़ देखकर मुस्कुराते हुए कहता है, “बहुत जल्द ही ये सब दाग़ मिट जाएँगे.” लेकिन इला को उसके दाग़ मिटते हुए कहीं से भी दिखाई नहीं दे रहे थे.

अब इला को इस बात का पक्का यक़ीन हो गया कि, “समद मेरे दाग़ मिटाना नहीं, बल्कि बढ़ाना चाहता है, ताकि एक दिन इन्हीं बढ़े हुए दाग़ों का बहाना बनाकर वो मुझे छोड़ सके, और फिर मेरी ही तरह किसी और मासूम लड़की को अपनी हवस का शिकार बना सके.”

“समद ने मेरे साथ ये किया?” ये सोच-सोचकर उसकी आँखों से आँसू बहने लगते थे. जबकि समद को लगता था कि, “इला मेरी देखभाल से इतनी ख़ुश है कि उसे रोना आ जाता है.”

अब इला अपने जिस्म का कुछ नहीं कर सकती थी. सफ़ेद दाग़ उसके पूरे जिस्म पर फैल चुका था. उसकी सफ़ेद चमड़ी इतनी चमकती थी कि अब उसे अपने-आप से ही नफ़रत होने लगी. और एक दिन उसने गुस्से में आकर घर का आईना भी तोड़ दिया ताकि उसे अपनी सफ़ेद चमड़ी दिखाई न दे. समद के पूछने पर उसने कहा, “अच्छा हुआ टूट गया. मुझे लगता है, अब इस घर में आईने की ज़रूरत नहीं है.” समद को लगा कि, “इस वक़्त इला गुस्से में है”, इसलिए उसने फिर कुछ और नहीं पूछा.

फिर एक दिन किचन में काम करते हुए इला ने समद को डॉक्टर से फ़ोन पे बात करते हुए सुना. समद डॉक्टर के साथ बड़ा ख़ुश होके बात कर रहा था. वो कह रहा था, “शुक्रिया डॉक्टर साहब! आपने मेरा काम आसान कर दिया. अब दाग़ इला के पूरे जिस्म पे फैल चुका है.”

इतना सुनते ही इला को ऐसा लगा, जैसे उसके कानों में किसी ने जलता हुआ कोयला डाल दिया हो. उसने तुरन्त, किचन में लटके हुए, सब्ज़ी काटने वाले चाकू से, अपनी नस काट लेनी चाही, लेकिन चाकू उसकी सफ़ेद चमड़ी पर कुछ इस तरह चमक रहा था कि उसे लगा, “अगर मैंने चाकू फेर दिया तो मेरे जिस्म से लाल नहीं, बल्कि सफ़ेद ख़ून निकलेगा.”

उसकी आँखों में समद के लिये इतना गुस्सा भर चुका था कि उसे अपने आस-पास हर चीज़ जलती हुई दिखाई दे रही थी. उसे महसूस हो रहा था कि उसकी आँखों के सामने मौजूद हर चीज़ को सफ़ेद दाग़ हो गया है. किचन के बर्तनों, दीवारों, फ़र्श और घर की छत, सबको सफ़ेद दाग़ हो गया है.

इला ने कस के अपनी आँखें भींच लीं, क्योंकि उससे अब कुछ भी देखा नहीं जा रहा था. किचन से निकलकर, अपने कमरे में जाते हुए उसने सुना, समद हँसते हुए डॉक्टर से कह रहा था, “बस, एक हफ़्ता और...”

इला समझ चुकी थी कि, “बस एक हफ़्ते के बाद समद मुझे अपनी ज़िन्दगी से बाहर निकाल देगा.” लेकिन उसके पहले वो कुछ कर देना चाहती थी. कुछ ऐसा, जो समद को सबक सिखा सके कि, “किसी मासूम और भोली लड़की के जज़्बातों के साथ ऐसा मज़ाक नहीं करना चाहिए.”

रात को बिस्तर पर समद के साथ लेटे हुए इला बार-बार छत को देख रही थी. समद ने उसका माथा चूमा और कहा, “बस इला, एक हफ़्ता और...” इला ने अपना गुस्सा छिपाते हुए कहा, “लेकिन मुझे अफ़सोस है कि तुम वो दिन नहीं देख पाओगे.”

“क्यों?” समद ने हँसते हुए, और इला के चेहरे को फिर से चूमने की कोशिश करते हुए पूछा. लेकिन तभी इला ने, एक झटके के साथ, और अपनी पूरी ताक़त के साथ, चादर के नीचे छिपाया हुआ चाकू, समद के गले में उस जगह घुसा दिया, जहाँ से आवाज़ निकलती है.

समद को कुछ समझ नहीं आया कि, “ये क्या हुआ?” वो चाकू और अपनी गरदन पकड़े हुए, सीधा छत को देखते हुए एक तरफ़ लुढ़क गया.

तब इला ने बिस्तर से उतरकर, लगभग चिल्लाते हुए कहा, “अगर तुम्हें मुझे छोड़ना ही था, तो मेरा जिस्म क्यों ख़राब क्यों किया? मुझसे कह देते, मैं चुपचाप तुम्हारी ज़िन्दगी से दूर चली जाती. तुमने औरतों को समझ क्या रखा है? मैं तुम्हारी बीवी ज़ुलेखा से मिल चुकी हूँ. उसने मुझे तुम्हारे बारे में सब बता दिया है. तुम एक हफ़्ते बाद मुझे छोड़कर फिर किसी मासूम लड़की को अपने जाल में फँसाने वाले थे ना?”

समद के गले से ख़ून का फ़व्वारा बह रहा था. उसकी साँस धीरे-धीरे कम होती जा रही थी, लेकिन उसने इला की पूरी बात सुनी. वो इला की तरफ़ अपने ख़ून से सने हाथ बढ़ाकर, रुकते-रुकते बस इतना ही कह पाया कि, “एक हफ़्ते बाद... अपने आप को... आईने में देखना...” और इतना कहकर उसने इला को एक बार और देखा, फिर अपनी आँख बन्द कर ली. कुछ इस तरह, जैसे वो जाते-जाते इला को अपनी आँखों में भरके ले जाना चाहता हो.

इला ने समद को अपनी आँखों के सामने तड़पकर मरते हुए देखा. समद के गले से बहता हुआ ख़ून पूरे बिस्तर पे और पूरे कमरे में फैल चुका था. फिर इला ने समद की लाश को रात में ही घर के पिछवाड़े ज़मीन में गाड़ दी. चूँकि आस-पास कोई रहता नहीं था, इसलिए किसी को कोई शक होने की गुंजाइश भी नहीं थी. फिर वो कमरे में से ख़ून के धब्बे रगड़-रगड़ के मिटाने लगी. उसके मन को अब एक तसल्ली थी कि, “मैंने समद को सबक सिखा दिया है.” समद की लाश को ठिकाने लगाने के बाद और समद के क़त्ल के सारे सबूत मिटा देने के बाद इला ने चैन की साँस ली.

कुछ दिन बीतने के बाद, उसे घर में राशन लाकर रखना था, क्योंकि अब तक घर के बाहर के सारे काम समद ही किया करता था. बाज़ार में पहुँचकर, इला को अब एक आज़ादी महसूस हुई. लेकिन जब वो बाज़ार से गुज़र रही थी, तो उसे बड़ी हैरानी हुई. कुछ लड़के और आदमी लोग उसे अपनी आँखें बड़ी-बड़ी करके घूर रहे थे.

इला को शक हुआ, “कहीं इन लोगों को समद के क़त्ल के बारे में पता तो नहीं है?” लेकिन तभी उसने पीछे से किसी को सीटी मारते हुए सुना. और कोई कह रहा था, “क्या ख़ूबसूरत लड़की है यार! लगता है सीधे लण्डन से आई है.”

इतना सुनते ही इला के क़दम अपने-आप तेज़ हो गये. वो जल्दी-जल्दी घर वापस आई और सारा सामान एक तरफ़ फेंकते हुए, सबसे पहले उस आईने के सामने जाकर खड़ी हो गई, जो समद उसकी मर्ज़ी के ख़िलाफ़, पहला आईना टूटने के बाद लाया था.

इला ने आज बहुत दिनों बाद आईना देखा था. और आज उसे भी अपना चेहरा कुछ बदला-बदला सा महसूस हुआ. फिर उसने एक-एक करके अपने सारे कपड़े उतार दिए, लेकिन उसने जहाँ भी देखा, उसे अपना जिस्म पहले जैसा नहीं लगा.

उसके सफ़ेद दाग़, अब सफ़ेद की बजाए ख़ून से भरे हुए दिखाई दे रहे थे. वो सिर से पैर तक ख़ूबसूरत लग रही थी. तब अचानक उसे समद की बात याद आई, जो उसने मरते हुए कहा था कि, “एक हफ़्ते बाद... ख़ुद को... आईने में देखना...”

अब उसे लगा, “क्या समद उस दिन कुछ और कहना चाहता था?” वो जल्दी से उसी तरह, बिना कपड़ों में भागती हुई, उस कमरे में गई, जहाँ उसकी सारी दवाईयाँ रखी हुई थीं. उसने सब दवाईयों, मलहम, और तेल की शीशियों को इधर-उधर हटाते हुए अपनी रिपोर्ट्स ढूँढ़ने की कोशिश की. और फिर उसे अपनी रिपोर्ट्स के साथ, एक और ख़त मिला, जो उसी डॉक्टर ने लिखा था, जो उसके सफ़ेद दाग़ का इलाज कर रहा था. इला ने ख़त को तुरन्त खोलकर पढ़ना शुरू किया.

ख़त में लिखा था कि, “समद, अब जबकि इला का सफ़ेद दाग़ उसके पूरे जिस्म पे फैल चुका है, अब हम अपना असली ट्रीटमेन्ट शुरू कर सकते हैं. ये दुनिया का पहला ऐसा केस होगा, जिसमें सफ़ेद दाग़ को पहले बढ़ाकर, पूरे जिस्म पर फैलाकर, फिर सफ़ेद दाग़ के ही रंग को इस्तेमाल करके, किसी लड़की को इतना ख़ूबसूरत बनाया जाएगा कि देखने वाले देखते रह जाएँगे. वैसे मैं चाहता हूँ कि तुम इला को भी ये बात बता दो, तो अच्छा रहे. बेचारी अपने बढ़ते हुए दाग़ों को देखकर परेशान होती होगी.”

इतना पढ़कर इला को ऐसा लगा, जैसे वो एक बहुत बड़े पहाड़ के नीचे अकेली खड़ी हो और अचानक से, उसके देखते ही देखते वो पूरा पहाड़ उसके ऊपर आ गिरा हो.

***

COMMENTS

BLOGGER: 1
रचनाओं पर आपकी बेबाक समीक्षा व अमूल्य टिप्पणियों के लिए आपका हार्दिक धन्यवाद.

स्पैम टिप्पणियों (वायरस डाउनलोडर युक्त कड़ियों वाले) की रोकथाम हेतु टिप्पणियों का मॉडरेशन लागू है. अतः आपकी टिप्पणियों को यहाँ प्रकट होने में कुछ समय लग सकता है.

नाम

 आलेख ,1, कविता ,1, कहानी ,1, व्यंग्य ,1,14 सितम्बर,7,14 september,6,15 अगस्त,4,2 अक्टूबर अक्तूबर,1,अंजनी श्रीवास्तव,1,अंजली काजल,1,अंजली देशपांडे,1,अंबिकादत्त व्यास,1,अखिलेश कुमार भारती,1,अखिलेश सोनी,1,अग्रसेन,1,अजय अरूण,1,अजय वर्मा,1,अजित वडनेरकर,1,अजीत प्रियदर्शी,1,अजीत भारती,1,अनंत वडघणे,1,अनन्त आलोक,1,अनमोल विचार,1,अनामिका,3,अनामी शरण बबल,1,अनिमेष कुमार गुप्ता,1,अनिल कुमार पारा,1,अनिल जनविजय,1,अनुज कुमार आचार्य,5,अनुज कुमार आचार्य बैजनाथ,1,अनुज खरे,1,अनुपम मिश्र,1,अनूप शुक्ल,14,अपर्णा शर्मा,6,अभिमन्यु,1,अभिषेक ओझा,1,अभिषेक कुमार अम्बर,1,अभिषेक मिश्र,1,अमरपाल सिंह आयुष्कर,2,अमरलाल हिंगोराणी,1,अमित शर्मा,3,अमित शुक्ल,1,अमिय बिन्दु,1,अमृता प्रीतम,1,अरविन्द कुमार खेड़े,5,अरूण देव,1,अरूण माहेश्वरी,1,अर्चना चतुर्वेदी,1,अर्चना वर्मा,2,अर्जुन सिंह नेगी,1,अविनाश त्रिपाठी,1,अशोक गौतम,3,अशोक जैन पोरवाल,14,अशोक शुक्ल,1,अश्विनी कुमार आलोक,1,आई बी अरोड़ा,1,आकांक्षा यादव,1,आचार्य बलवन्त,1,आचार्य शिवपूजन सहाय,1,आजादी,3,आत्मकथा,1,आदित्य प्रचंडिया,1,आनंद टहलरामाणी,1,आनन्द किरण,3,आर. के. नारायण,1,आरकॉम,1,आरती,1,आरिफा एविस,5,आलेख,4288,आलोक कुमार,3,आलोक कुमार सातपुते,1,आवश्यक सूचना!,1,आशीष कुमार त्रिवेदी,5,आशीष श्रीवास्तव,1,आशुतोष,1,आशुतोष शुक्ल,1,इंदु संचेतना,1,इन्दिरा वासवाणी,1,इन्द्रमणि उपाध्याय,1,इन्द्रेश कुमार,1,इलाहाबाद,2,ई-बुक,374,ईबुक,231,ईश्वरचन्द्र,1,उपन्यास,269,उपासना,1,उपासना बेहार,5,उमाशंकर सिंह परमार,1,उमेश चन्द्र सिरसवारी,2,उमेशचन्द्र सिरसवारी,1,उषा छाबड़ा,1,उषा रानी,1,ऋतुराज सिंह कौल,1,ऋषभचरण जैन,1,एम. एम. चन्द्रा,17,एस. एम. चन्द्रा,2,कथासरित्सागर,1,कर्ण,1,कला जगत,113,कलावंती सिंह,1,कल्पना कुलश्रेष्ठ,11,कवि,2,कविता,3239,कहानी,2360,कहानी संग्रह,247,काजल कुमार,7,कान्हा,1,कामिनी कामायनी,5,कार्टून,7,काशीनाथ सिंह,2,किताबी कोना,7,किरन सिंह,1,किशोरी लाल गोस्वामी,1,कुंवर प्रेमिल,1,कुबेर,7,कुमार करन मस्ताना,1,कुसुमलता सिंह,1,कृश्न चन्दर,6,कृष्ण,3,कृष्ण कुमार यादव,1,कृष्ण खटवाणी,1,कृष्ण जन्माष्टमी,5,के. पी. सक्सेना,1,केदारनाथ सिंह,1,कैलाश मंडलोई,3,कैलाश वानखेड़े,1,कैशलेस,1,कैस जौनपुरी,3,क़ैस जौनपुरी,1,कौशल किशोर श्रीवास्तव,1,खिमन मूलाणी,1,गंगा प्रसाद श्रीवास्तव,1,गंगाप्रसाद शर्मा गुणशेखर,1,ग़ज़लें,550,गजानंद प्रसाद देवांगन,2,गजेन्द्र नामदेव,1,गणि राजेन्द्र विजय,1,गणेश चतुर्थी,1,गणेश सिंह,4,गांधी जयंती,1,गिरधारी राम,4,गीत,3,गीता दुबे,1,गीता सिंह,1,गुंजन शर्मा,1,गुडविन मसीह,2,गुनो सामताणी,1,गुरदयाल सिंह,1,गोरख प्रभाकर काकडे,1,गोवर्धन यादव,1,गोविन्द वल्लभ पंत,1,गोविन्द सेन,5,चंद्रकला त्रिपाठी,1,चंद्रलेखा,1,चतुष्पदी,1,चन्द्रकिशोर जायसवाल,1,चन्द्रकुमार जैन,6,चाँद पत्रिका,1,चिकित्सा शिविर,1,चुटकुला,71,ज़कीया ज़ुबैरी,1,जगदीप सिंह दाँगी,1,जयचन्द प्रजापति कक्कूजी,2,जयश्री जाजू,4,जयश्री राय,1,जया जादवानी,1,जवाहरलाल कौल,1,जसबीर चावला,1,जावेद अनीस,8,जीवंत प्रसारण,141,जीवनी,1,जीशान हैदर जैदी,1,जुगलबंदी,5,जुनैद अंसारी,1,जैक लंडन,1,ज्ञान चतुर्वेदी,2,ज्योति अग्रवाल,1,टेकचंद,1,ठाकुर प्रसाद सिंह,1,तकनीक,32,तक्षक,1,तनूजा चौधरी,1,तरुण भटनागर,1,तरूण कु सोनी तन्वीर,1,ताराशंकर बंद्योपाध्याय,1,तीर्थ चांदवाणी,1,तुलसीराम,1,तेजेन्द्र शर्मा,2,तेवर,1,तेवरी,8,त्रिलोचन,8,दामोदर दत्त दीक्षित,1,दिनेश बैस,6,दिलबाग सिंह विर्क,1,दिलीप भाटिया,1,दिविक रमेश,1,दीपक आचार्य,48,दुर्गाष्टमी,1,देवी नागरानी,20,देवेन्द्र कुमार मिश्रा,2,देवेन्द्र पाठक महरूम,1,दोहे,1,धर्मेन्द्र निर्मल,2,धर्मेन्द्र राजमंगल,1,नइमत गुलची,1,नजीर नज़ीर अकबराबादी,1,नन्दलाल भारती,2,नरेंद्र शुक्ल,2,नरेन्द्र कुमार आर्य,1,नरेन्द्र कोहली,2,नरेन्‍द्रकुमार मेहता,9,नलिनी मिश्र,1,नवदुर्गा,1,नवरात्रि,1,नागार्जुन,1,नाटक,152,नामवर सिंह,1,निबंध,3,नियम,1,निर्मल गुप्ता,2,नीतू सुदीप्ति ‘नित्या’,1,नीरज खरे,1,नीलम महेंद्र,1,नीला प्रसाद,1,पंकज प्रखर,4,पंकज मित्र,2,पंकज शुक्ला,1,पंकज सुबीर,3,परसाई,1,परसाईं,1,परिहास,4,पल्लव,1,पल्लवी त्रिवेदी,2,पवन तिवारी,2,पाक कला,23,पाठकीय,62,पालगुम्मि पद्मराजू,1,पुनर्वसु जोशी,9,पूजा उपाध्याय,2,पोपटी हीरानंदाणी,1,पौराणिक,1,प्रज्ञा,1,प्रताप सहगल,1,प्रतिभा,1,प्रतिभा सक्सेना,1,प्रदीप कुमार,1,प्रदीप कुमार दाश दीपक,1,प्रदीप कुमार साह,11,प्रदोष मिश्र,1,प्रभात दुबे,1,प्रभु चौधरी,2,प्रमिला भारती,1,प्रमोद कुमार तिवारी,1,प्रमोद भार्गव,2,प्रमोद यादव,14,प्रवीण कुमार झा,1,प्रांजल धर,1,प्राची,367,प्रियंवद,2,प्रियदर्शन,1,प्रेम कहानी,1,प्रेम दिवस,2,प्रेम मंगल,1,फिक्र तौंसवी,1,फ्लेनरी ऑक्नर,1,बंग महिला,1,बंसी खूबचंदाणी,1,बकर पुराण,1,बजरंग बिहारी तिवारी,1,बरसाने लाल चतुर्वेदी,1,बलबीर दत्त,1,बलराज सिंह सिद्धू,1,बलूची,1,बसंत त्रिपाठी,2,बातचीत,2,बाल उपन्यास,6,बाल कथा,356,बाल कलम,26,बाल दिवस,4,बालकथा,80,बालकृष्ण भट्ट,1,बालगीत,20,बृज मोहन,2,बृजेन्द्र श्रीवास्तव उत्कर्ष,1,बेढब बनारसी,1,बैचलर्स किचन,1,बॉब डिलेन,1,भरत त्रिवेदी,1,भागवत रावत,1,भारत कालरा,1,भारत भूषण अग्रवाल,1,भारत यायावर,2,भावना राय,1,भावना शुक्ल,5,भीष्म साहनी,1,भूतनाथ,1,भूपेन्द्र कुमार दवे,1,मंजरी शुक्ला,2,मंजीत ठाकुर,1,मंजूर एहतेशाम,1,मंतव्य,1,मथुरा प्रसाद नवीन,1,मदन सोनी,1,मधु त्रिवेदी,2,मधु संधु,1,मधुर नज्मी,1,मधुरा प्रसाद नवीन,1,मधुरिमा प्रसाद,1,मधुरेश,1,मनीष कुमार सिंह,4,मनोज कुमार,6,मनोज कुमार झा,5,मनोज कुमार पांडेय,1,मनोज कुमार श्रीवास्तव,2,मनोज दास,1,ममता सिंह,2,मयंक चतुर्वेदी,1,महापर्व छठ,1,महाभारत,2,महावीर प्रसाद द्विवेदी,1,महाशिवरात्रि,1,महेंद्र भटनागर,3,महेन्द्र देवांगन माटी,1,महेश कटारे,1,महेश कुमार गोंड हीवेट,2,महेश सिंह,2,महेश हीवेट,1,मानसून,1,मार्कण्डेय,1,मिलन चौरसिया मिलन,1,मिलान कुन्देरा,1,मिशेल फूको,8,मिश्रीमल जैन तरंगित,1,मीनू पामर,2,मुकेश वर्मा,1,मुक्तिबोध,1,मुर्दहिया,1,मृदुला गर्ग,1,मेराज फैज़ाबादी,1,मैक्सिम गोर्की,1,मैथिली शरण गुप्त,1,मोतीलाल जोतवाणी,1,मोहन कल्पना,1,मोहन वर्मा,1,यशवंत कोठारी,8,यशोधरा विरोदय,2,यात्रा संस्मरण,31,योग,3,योग दिवस,3,योगासन,2,योगेन्द्र प्रताप मौर्य,1,योगेश अग्रवाल,2,रक्षा बंधन,1,रच,1,रचना समय,72,रजनीश कांत,2,रत्ना राय,1,रमेश उपाध्याय,1,रमेश राज,26,रमेशराज,8,रवि रतलामी,2,रवींद्र नाथ ठाकुर,1,रवीन्द्र अग्निहोत्री,4,रवीन्द्र नाथ त्यागी,1,रवीन्द्र संगीत,1,रवीन्द्र सहाय वर्मा,1,रसोई,1,रांगेय राघव,1,राकेश अचल,3,राकेश दुबे,1,राकेश बिहारी,1,राकेश भ्रमर,5,राकेश मिश्र,2,राजकुमार कुम्भज,1,राजन कुमार,2,राजशेखर चौबे,6,राजीव रंजन उपाध्याय,11,राजेन्द्र कुमार,1,राजेन्द्र विजय,1,राजेश कुमार,1,राजेश गोसाईं,2,राजेश जोशी,1,राधा कृष्ण,1,राधाकृष्ण,1,राधेश्याम द्विवेदी,5,राम कृष्ण खुराना,6,राम शिव मूर्ति यादव,1,रामचंद्र शुक्ल,1,रामचन्द्र शुक्ल,1,रामचरन गुप्त,5,रामवृक्ष सिंह,10,रावण,1,राहुल कुमार,1,राहुल सिंह,1,रिंकी मिश्रा,1,रिचर्ड फाइनमेन,1,रिलायंस इन्फोकाम,1,रीटा शहाणी,1,रेंसमवेयर,1,रेणु कुमारी,1,रेवती रमण शर्मा,1,रोहित रुसिया,1,लक्ष्मी यादव,6,लक्ष्मीकांत मुकुल,2,लक्ष्मीकांत वैष्णव,1,लखमी खिलाणी,1,लघु कथा,288,लघुकथा,1340,लघुकथा लेखन पुरस्कार आयोजन,241,लतीफ घोंघी,1,ललित ग,1,ललित गर्ग,13,ललित निबंध,20,ललित साहू जख्मी,1,ललिता भाटिया,2,लाल पुष्प,1,लावण्या दीपक शाह,1,लीलाधर मंडलोई,1,लू सुन,1,लूट,1,लोक,1,लोककथा,378,लोकतंत्र का दर्द,1,लोकमित्र,1,लोकेन्द्र सिंह,3,विकास कुमार,1,विजय केसरी,1,विजय शिंदे,1,विज्ञान कथा,79,विद्यानंद कुमार,1,विनय भारत,1,विनीत कुमार,2,विनीता शुक्ला,3,विनोद कुमार दवे,4,विनोद तिवारी,1,विनोद मल्ल,1,विभा खरे,1,विमल चन्द्राकर,1,विमल सिंह,1,विरल पटेल,1,विविध,1,विविधा,1,विवेक प्रियदर्शी,1,विवेक रंजन श्रीवास्तव,5,विवेक सक्सेना,1,विवेकानंद,1,विवेकानन्द,1,विश्वंभर नाथ शर्मा कौशिक,2,विश्वनाथ प्रसाद तिवारी,1,विष्णु नागर,1,विष्णु प्रभाकर,1,वीणा भाटिया,15,वीरेन्द्र सरल,10,वेणीशंकर पटेल ब्रज,1,वेलेंटाइन,3,वेलेंटाइन डे,2,वैभव सिंह,1,व्यंग्य,2075,व्यंग्य के बहाने,2,व्यंग्य जुगलबंदी,17,व्यथित हृदय,2,शंकर पाटील,1,शगुन अग्रवाल,1,शबनम शर्मा,7,शब्द संधान,17,शम्भूनाथ,1,शरद कोकास,2,शशांक मिश्र भारती,8,शशिकांत सिंह,12,शहीद भगतसिंह,1,शामिख़ फ़राज़,1,शारदा नरेन्द्र मेहता,1,शालिनी तिवारी,8,शालिनी मुखरैया,6,शिक्षक दिवस,6,शिवकुमार कश्यप,1,शिवप्रसाद कमल,1,शिवरात्रि,1,शिवेन्‍द्र प्रताप त्रिपाठी,1,शीला नरेन्द्र त्रिवेदी,1,शुभम श्री,1,शुभ्रता मिश्रा,1,शेखर मलिक,1,शेषनाथ प्रसाद,1,शैलेन्द्र सरस्वती,3,शैलेश त्रिपाठी,2,शौचालय,1,श्याम गुप्त,3,श्याम सखा श्याम,1,श्याम सुशील,2,श्रीनाथ सिंह,6,श्रीमती तारा सिंह,2,श्रीमद्भगवद्गीता,1,श्रृंगी,1,श्वेता अरोड़ा,1,संजय दुबे,4,संजय सक्सेना,1,संजीव,1,संजीव ठाकुर,2,संद मदर टेरेसा,1,संदीप तोमर,1,संपादकीय,3,संस्मरण,730,संस्मरण लेखन पुरस्कार 2018,128,सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन,1,सतीश कुमार त्रिपाठी,2,सपना महेश,1,सपना मांगलिक,1,समीक्षा,847,सरिता पन्थी,1,सविता मिश्रा,1,साइबर अपराध,1,साइबर क्राइम,1,साक्षात्कार,21,सागर यादव जख्मी,1,सार्थक देवांगन,2,सालिम मियाँ,1,साहित्य समाचार,98,साहित्यम्,6,साहित्यिक गतिविधियाँ,216,साहित्यिक बगिया,1,सिंहासन बत्तीसी,1,सिद्धार्थ जगन्नाथ जोशी,1,सी.बी.श्रीवास्तव विदग्ध,1,सीताराम गुप्ता,1,सीताराम साहू,1,सीमा असीम सक्सेना,1,सीमा शाहजी,1,सुगन आहूजा,1,सुचिंता कुमारी,1,सुधा गुप्ता अमृता,1,सुधा गोयल नवीन,1,सुधेंदु पटेल,1,सुनीता काम्बोज,1,सुनील जाधव,1,सुभाष चंदर,1,सुभाष चन्द्र कुशवाहा,1,सुभाष नीरव,1,सुभाष लखोटिया,1,सुमन,1,सुमन गौड़,1,सुरभि बेहेरा,1,सुरेन्द्र चौधरी,1,सुरेन्द्र वर्मा,62,सुरेश चन्द्र,1,सुरेश चन्द्र दास,1,सुविचार,1,सुशांत सुप्रिय,4,सुशील कुमार शर्मा,24,सुशील यादव,6,सुशील शर्मा,16,सुषमा गुप्ता,20,सुषमा श्रीवास्तव,2,सूरज प्रकाश,1,सूर्य बाला,1,सूर्यकांत मिश्रा,14,सूर्यकुमार पांडेय,2,सेल्फी,1,सौमित्र,1,सौरभ मालवीय,4,स्नेहमयी चौधरी,1,स्वच्छ भारत,1,स्वतंत्रता दिवस,3,स्वराज सेनानी,1,हबीब तनवीर,1,हरि भटनागर,6,हरि हिमथाणी,1,हरिकांत जेठवाणी,1,हरिवंश राय बच्चन,1,हरिशंकर गजानंद प्रसाद देवांगन,4,हरिशंकर परसाई,23,हरीश कुमार,1,हरीश गोयल,1,हरीश नवल,1,हरीश भादानी,1,हरीश सम्यक,2,हरे प्रकाश उपाध्याय,1,हाइकु,5,हाइगा,1,हास-परिहास,38,हास्य,59,हास्य-व्यंग्य,78,हिंदी दिवस विशेष,9,हुस्न तबस्सुम 'निहाँ',1,biography,1,dohe,3,hindi divas,6,hindi sahitya,1,indian art,1,kavita,3,review,1,satire,1,shatak,3,tevari,3,undefined,1,
ltr
item
रचनाकार: सफ़ेद दाग़ / कहानी / क़ैस जौनपुरी
सफ़ेद दाग़ / कहानी / क़ैस जौनपुरी
http://lh3.googleusercontent.com/-vLtLznASAxk/VZy9m0B-QjI/AAAAAAAAktw/52jQ3KY1ifc/image%25255B2%25255D.png?imgmax=200
http://lh3.googleusercontent.com/-vLtLznASAxk/VZy9m0B-QjI/AAAAAAAAktw/52jQ3KY1ifc/s72-c/image%25255B2%25255D.png?imgmax=200
रचनाकार
https://www.rachanakar.org/2016/09/blog-post_33.html
https://www.rachanakar.org/
https://www.rachanakar.org/
https://www.rachanakar.org/2016/09/blog-post_33.html
true
15182217
UTF-8
Loaded All Posts Not found any posts VIEW ALL Readmore Reply Cancel reply Delete By Home PAGES POSTS View All RECOMMENDED FOR YOU LABEL ARCHIVE SEARCH ALL POSTS Not found any post match with your request Back Home Sunday Monday Tuesday Wednesday Thursday Friday Saturday Sun Mon Tue Wed Thu Fri Sat January February March April May June July August September October November December Jan Feb Mar Apr May Jun Jul Aug Sep Oct Nov Dec just now 1 minute ago $$1$$ minutes ago 1 hour ago $$1$$ hours ago Yesterday $$1$$ days ago $$1$$ weeks ago more than 5 weeks ago Followers Follow THIS PREMIUM CONTENT IS LOCKED STEP 1: Share to a social network STEP 2: Click the link on your social network Copy All Code Select All Code All codes were copied to your clipboard Can not copy the codes / texts, please press [CTRL]+[C] (or CMD+C with Mac) to copy Table of Content