कहानी - अंधविश्वास जो हार गया - गिरधारी राम

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आज फिर बाबू लाल की भैंस मर गयी राधेश्याम ने बड़े ही आत्मीय ठंग से यह बात अपनी पत्नी हेवन्ती को बताया। वह दोनों ही बड़े ही अफसोस में थे उन द...

आज फिर बाबू लाल की भैंस मर गयी राधेश्याम ने बड़े ही आत्मीय ठंग से यह बात अपनी पत्नी हेवन्ती को बताया। वह दोनों ही बड़े ही अफसोस में थे उन दोनों के चेहरे पर चिन्ता की रेखाएँ साफ झलक रहीं थी। हेवन्ती ने कहाः परसों ही निरहू की भैंस जोर-जोर से साँस ले रही थी हमको तो भरथ बता रहा था उनका क्या हुआ? राधेश्याम ने बड़ी धीमी आवाज में कहाः वो तो उसी रात मर गयी।

बाबू लाल राधेश्याम के पड़ोसी थे। सुख-दुख में सहयोग आपस में हमेशा ही रहता था। हेवन्ती ने बड़ी-बड़ी आँखो में आँसू भरकर कहाः हे भगवान! हम लोगो का क्या होगा? आज बाबू लाल की भैंस मर गयी कल शायद हमारी भी, यह बात सोच कर ही घबरा गयी।

राधेश्याम की दो भैंसे थी। एक भैंस जो की बड़ी थी वह राधेश्याम के ससुराल से मिली थी। हेवन्ती के बड़े भाई हीरा की पत्नी की पहलौंठी का लड़का हुआ था। उसी के खुशीनामे में हेवन्ती को वह भैंस मिली थी। उसी भैंस का बच्चा दूसरी वाली भैंस थी। राधे श्याम का गृहस्ती का आधार अब केवल दो भैंसे थी।

राधेश्याम के दो बेटे थे। एक तीन साल का तथा दूसरा अभी तीन महीने का था जो की अभी गोंद में खेल रहा था। हेवन्ती मड़ई में जाकर दोनों भैंसों को देख आई। दोनों सही सलामत थी। दोनो के पीठ पर हाथ भी फेरा था। भैंसे अपनी मालकिन के देखकर रम्भाने रगी थी। सोच रही थी शायद चारे का समय हो गया।

सुबह के करीब चार बजे होंगे आकाश में पूरब की ओर लालिमा धिरे-धिरे छाने लगी। तभी राधेश्याम ने लम्बी-लम्बी सांस लेने की आवाज सुनी जो कि गोशाले की ओर से आ रही थी। वह दौड़कर बिना हेवन्ती को जगाये गया। उसने गोशाले में जो दृश्य देखा तो वह जड़वत हो गया। राधेश्याम ने देखा कि उसकी बड़ी वाली भैंस नीचे जमीन पर गिरकर लम्बी-लम्बी सांस ले रही थी।

हे भगवान ! ये तो गला घोंटू है। राधेश्याम ने वही से आवाज दियाः लोरिक की माँ..., ओ लोरिक की माँ....., सुबह-सुबह क्या चिल्ला रहे हो! हेवन्ती नें आँख मलते उठी और गोशाले की ओर चल दिया। हेवन्ती भैंस को देखकर समझ गयी, कि भगवान का भारी संकट आने वाला है। जिस बात से डर रही थी वह भगवान उसके घर भेज दिया। हेवन्ती वहीं जोर-जोर से रोने लगी। हाय.... भगवान ! मैं तो बर्बाद हो गयी, मेरा सबकुछ लुट गया। उसका रोना सुनकर आस-पास के घर वाले इकठ्ठा हो गये। सबके मुख पर अफसोस था। वह आपस में फुसफुसा रहे थे.......अब नहीं बचेगी।

सुबह के आठ बजते-बजते राधे श्याम की भैंस मर गयी। पड़ोसी राधेश्याम तथा हेवन्ती को किसी तरह समझाया-बुझाया। भगवान जो चाहते है वही होता है। लगता है कि “काली माई’’ नाराज हो गयी है। और वही यह सब भैंसों को मारकर अपना बदला ले रही है।

धिरे-धिरे पूरे गाँव से खबर आने लगी। भैंसों के मरने का खबर लगभग हर घर से आने लगी। कोई न कोई भैंस गला घोंटू का शिकार हो जाती। अब तो आस पड़ोस के गाँव से भी ये खबरें आने लगी।

गाँव के बड़े बुजुर्ग आदि को बड़ी चिन्ता हुई। सरजू दादा बड़े ही क्रोध होकर कह रहे थे पिछली साल काली माई की पूजा नहीं हुई न, इसी सब का नतीजा है। आज पूरा गाँव को विपत्ति में पड़ना पड़ रहा है।

आज गाँव पंचायत बैठी। गाँव के मुखिया सहित फैसला लिया गया कि भैंसों की सुरक्षा के लिए काली माई की पूजा बड़ी ही तैयारी पूर्वक की जायेगी। तथा काली माई को प्रसन्न करने में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी जायेगी।

दरअसल गला घोंटू(Hemorrhagic septicaemia by bacteria), खुर पका-मुँह पका( Foot and mouth disease FMD by virus) अक्सर बरसात के दिनों में होने वाला रोग है जो कि बैक्टीरिया तथा वायरस से होता है। जिस पशु को अगर यह रोग पकड़ लिया तो पशु को तेज बुखार आता है तेजी से सांस लेता है तथा पशु एक-दो दिनों में मर जाता है। अगर पहले से ही टीका लगा होता है तो उन पशुओं की टीका रक्षा करता है बचाव करता है। अगर टीका जिस पशु को नहीं लगा होता है तो यह रोग होने की संभावना ज्यादा रहती है। सरकार के द्वारा गाँव में अभियान चलाकर कभी-कभी किसानों में जागरूकता लाते है जिससे पशुधन का बचाव होता है। यदि समय रहते इलाज नहीं किया गया तो यह महामारी का रूप ले लेता है। भोले-भाले ग्रामीण जनता सोचती है कि यह काली माई का प्रकोप है।

पिछले साल बात है, डाक्टर रमेश कुमार तथा उनकी टीम गाँव-गाँव जाकर एक अभियान चला रहे थे। वह घर-घर जाते तथा छोटे-छोटे किसान को समझाते। पशुओं के रोग तथा उसके टीका के बारे में बताते। खुर पका, मुँह पका, गला घोंटू, न जाने कौन-कौन सी बिमारी। जिस घर में डाक्टर रमेश कुमार जाते वहाँ तिरस्कार का सामना करना पड़ता। गाँव वाले सोचते अभी तो भैंसों को कुछ हुआ ही नहीं और उपर से ये डाक्टर न जाने क्यों बेवजह परेशान कर रहे हैं। वैसे तो निःशुल्क टीकाकरण का अभियान बहुत बार खण्ड विकाश अधिकारी द्वारा चलाया गया था लेकिन किसान इसको पूरी तरह ध्यान नहीं होने दे रहे थे।

बडे बुजुर्ग सोचते कि ये ठगने का गोरखधंधा है। ये सरकारी डाक्टर आते है और भैंसों को कोई न कोई रोग दे जाते है। गाँव वालो को लाख समझाने पर भी टीकाकरण को राजी न होते। गाँव के बडे बुजुर्ग तथा मुखिया को तो पूरा विश्वास था कि जब भैंसों की सुरक्षा काली माई के हाथ में है। सभी रोग वही देती है जब वह नाराज होती है। और लेती भी वही है जब वह खुश होती है। तथा पूरा गाँव भी खुशहाल रहता है।

डाक्टर रमेश कुमार लगभग सभी के घर गये पर पूरे गाँव में केवल दो ही परिवार ऐसा मिला जो टीकाकरण को राजी हुआ। एक तो हिरामन और दूसरा रघुनाथ। उन दोनों की भैंसों को टीकाकरण करके अभियान अगले गाँव प्रस्थान किया।

अगले गाँवों का भी यही हाल था। इक्का- दुक्का लोग राजी होते वो भी बहुत कहने पर। टीकाकरण अभियान में कोई खास प्रगति नहीं हो रही थी। दरअसल किसान के मन में यह बात समझ में आ ही नहीं रही थी कि टीकाकरण से रोगों के आने से पहले ही उस रोग से छुटकारा कैसे मिल जाएगा।

यह अभियान कुछ दिनों तक चला। फिर डाक्टर रमेश कुमार ने अपनी रिपोर्ट वीडियो को सौंप दिया। वीडियो ने भी अपनी रिपोर्ट और आगे बढ़ा दिया। टीकाकरण अभियान कुछ दिनों के बाद बन्द हो गया।

गाँव का मुखिया सारे गाँव में एलान करवा रहा था कि सावन का अंतिम दिन मंगलवार को काली माई की पूजा है। निरहू ने बड़ी उँची आवाज डुग्गी बजा-बजा कर बोल रहा था। सब कोई अपने-अपने घर से चंदा,अनाज,दूध,फल-फूल, लकड़ी,तेल शुध्द देशी घी तथा पूजा की सामाग्री मुखिया के यहाँ दे जाए।

गाँव की बुजुर्ग महिलाएँ नौ दिन तक रोज काली माई के चौरा पर पवित्र जल ढार देती तथा अगरबत्ती चढ़ा कर पूजा करती।

काली माई के पूजा के लिए कुछ कार्यकर्ता धर-धर जाकर पूजा की सामग्री इकठ्ठा किये। कुछ लोग तो सारे समान अपने आप दे जाते।

पूजा का वो शुभ दिन आ गया। गाँव के दक्षिण में एक बड़ा बागीचा था। उसी बागीचा में काली माई का चौरा था। सुबह से लोग नये-नये कपड़े पहन कर इकठ्ठा होने लगे। एक दम मेला जैसा माहौल हो गया था। कुछ खिलौने वाले, कुछ गुब्बारे वाले, कुछ मिठाई वाले भी दुकान लगा कर बैठ गये थे।

अब पूजा का कार्यक्रम आरम्भ हुआ। सबसे पहले गाँव की औरतो ने देवी गीत गाया। निमिया के डार मईया लावेली झुलुववा........ ।डुग्गी- नगाड़े का स्वर और जोर-जोर से बजने लगा। डग-डगा, डग-डगा, डग-डगा,डग-डगा।

जितनी जोर से महिलाएँ गा रही थी वो भी धुँधट काढे, उतनी जोर से डुग्गी-नगाडे भी बज रहे थे। अचानक एक बुजुर्ग जो कि पुजारी भी था, उस पर काली माई सवार हो गयी। वह बुढ़ा बुजुर्ग गीतों की धुन पर इधर-उधर झूमने लगा। और बोल रहा थाः अनर्थ हुआ है रे..... अनर्थ हुआ है....। मेरी पूजा नहीं हुआ है रे.......।

एक व्यक्ति बुजुर्ग पुजारी को काली माई समझ कर माफी माँग रहा था।

अब ऐसी गलती नहीं होगी..........। हम सब पान-फूल प्रसाद देंगे........ वो भी हर साल।

काली माई उस व्यक्ति के पीठ पर बड़ी जोर से थाप लगाई आशीर्वाद स्वरूप। और बोली जाओ सभी के कष्टों को दूर करेंगे। सभी भैंसों को ठीक कर देंगे बस हमको भूलना नहीं रे............।

गाँव के लगभग सभी लोग महिलाएँ, बच्चे, बडे, छोटे सभी अपनी पीठ झुकाते और काली माई उनकी पीठों पर थाप देकर आशीर्वाद देती। सभी गाँव वाले बोलेः अब गलती नहीं होगी.........।

इस अवसर पर एक मुर्गा, भेंड़ा, बकरा, सॉड़, भैंसा सभी को गरम त्रिशूल से दागकर छोड़ा गया, पूजा का कार्यक्रम प्रसाद वितरण के साथ समाप्त हो गया। सबके मन में संतोष था और यह आशा भी कि अब काली माई सबके कष्ट दूर कर दी है। और हमारी भैंसो पर अब कोई आफत नहीं आयेगी। न ही गाँव वालों पर ही। बाबू लाल, राधेश्याम तथा निरहू सबके मन में और ज्यादा संतोष था।

पूजा के कुछ दिन बीतने के बाद फिर भैंसों के बीमार होने का सिलसिला चालू हो गया। संकट के बादल फिर मंड़राने लगे। गाँव वालों के पास अब कोई रास्ता नजर नहीं आ रहा था। गाँव के लोग अति सशंकित थे। सोच रहे थे कि लगता है ये संकट पूरे गाँव को लील जायेगा। एक दिन फिर गाँव के मुखिया के यहाँ पंचायत बैठी और निर्णय लिया गया कि डॉ रमेश कुमार को सूचना दिया जाय। क्योंकि गाँव के हिरामन तथा रधुनाथ की भैंसे बिल्कुल ठीक थी। क्योंकि उनको टीकाकरण हुआ था।

राधेश्याम ने जिला पर जाकर ये सूचना डॉ रमेश कुमार को दे दिया और हाथ जोडकर बोलाः डाक्टर साहब हम लोग गरीब लोग है हम लोग का परिवार का आधार भैंसे ही है। आप मदद नहीं करेंगे तो सब गाँव वालो का तो सब कुछ लुट गया, लगभग गाँव ही खत्म हो जाएगा। काली माई की पूजा-पाठ किये इसके बावजूद ये रोग कम नहीं हो रहा है। आप ही बताईये हम लोग क्या करें कि हमारी भैंसे सब ठीक हो जाय। हमको तो लगता है कि ये रोग पूरे गाँव की भैंसों को लील जायेगा।

गाँव के मुखिया ने भी डॉ रमेश कुमार को फिर सूचित किया और बोले यदि इस समस्या पर आप ध्यान नहीं देंगे तो पूरा गाँव के साथ आस-पास के गाँव, जिले सभी बर्बाद हो जायेगे।

डाक्टर रमेश कुमार ने मुखिया के विशेष आग्रह पर ब्लाक के पशु चिकित्सा अधिकारी के साथ जाकर गाँव-गाँव मुआयना किया। तब एक बार फिर टीकाकरण का अभियान युद्ध स्तर पर करवाया।

अब गाँव के लोग अपने पशुओं को सभी बीमारियों के टीका लगवाते। ये अभियान चलने के पश्चात धीरे-धीरे ये रोग ठीक होने लगा। भैंसों की बीमारी में कमी आयी तब उत्साह और बढ़ गया। और गाँव वाले बड़े ही उत्साह से अपनी-अपनी भैंसों और अन्य पशुओं के भी टिका लगवाते। कुछ दिनों बाद ये समस्या समाप्त हो गयी।

अब काली माई के कोप के विश्वास का अंत हुआ। तथा डाक्टर रमेश कुमार पर पूरे गाँव का यकीन और बढ़ गया।

होली के पहले गाँव के मुखिया ने एक बार फिर पंचायत रखी। और प्रस्ताव आया सरजू दादा की ओर से कि क्यो न हम सभी डाक्टर रमेश कुमार का स्वागत किया जाय। वो भी होली के दिन बहुत ही अच्छा दिन है और मौका भी। बाबूलाल, राधेश्याम , निरहू ,हिरामन, और रधुनाथ सभी ने एक स्वर मे बोल उठे, हाँ! जरूर-जरूर से स्वागत किया जाय। डाक्टर रमेश कुमार हमारे लिए किसी भगवान से कम नहीं है।

होली के दिन डाक्टर रमेश कुमार तथा सभी चिकित्सा सदस्य, जिला अधिकारी तथा वीडियो का फूल माला के साथ स्वागत किया गया। गाँव के मुखिया ने सभी को रंग गुलाल लगाया सभी गाँव वालों ने भी रंग गुलाल लगाया।

इसी के साथ होली का शुभारम्भ हो गया। निरहू ने ढोलक सम्हाली और मजींरे पर राधेश्याम, बाबूलाल, हिरामन, रधुनाथ, भरथ।

जोगीरा सारारारारा......................राधेश्याम नें बोल रहा था। होली खेले रधुवीरा अवध में..............।

होली के हर गाने पर गाँव के लोग डाक्टर रमेश कुमार की जयकार करते।

मौका अच्छा था गाँव के लगभग सभी लोग होली की मस्ती में झूम रहे थे। डाक्टर रमेश कुमार तथा सभी मेहमान भी होली की मस्ती में झूम रहे थे।

सभी के चेहरे पर खुशी की चमक थी उस पर रंग गुलाल और सज रहे थे।

पूरा गाँव खुशियो में डूबा हुआ था। पुरानी गलतियों को भूल एक अविरल स्नेह, प्रेम तथा बुराई में अच्छाई की जीत पर।

समाप्त

 

दिनांकः 02.07.2010,

सिलीगुड़ी

गिरधारी राम, फोनः 9434630244, 851577444

पताः 3/E, D.S.कालोनी न्यूजलपाईगुड़ी,भक्तिनगर,जलपाईगुड़ी (प. बं.) पिनः734007

ईमेलः giri.locoin@gmail.com

लेखक के विचार निजी है, लेखक का उद्देश्य शिक्षा देना है किसी की भावनाओ को ठेस पहुँचाना नहीं है।

लेखक परिचय

 

नामः गिरधारी राम

पिताः श्री मिश्री राम

जन्मः 25.07.1974 गाजीपुर, उत्तर प्रदेश

शिक्षाः स्नातक

पताः 3/E, D.S.कालोनी, न्युजलपाईगुड़ी, भक्तिनगर,

जलपाईगुड़ी, प.बं, पिनः734007

फोनः # 9434630244, # 8515077444,

ईमेलः giri.locoin@gmail.com

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रचनाकार: कहानी - अंधविश्वास जो हार गया - गिरधारी राम
कहानी - अंधविश्वास जो हार गया - गिरधारी राम
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