रवीन्‍द्र-संगीत एवं उसका तालपक्ष / डॉ. शिवेन्‍द्र प्रताप त्रिपाठी

SHARE:

बंगाल के इतिहास में 19वीं शताब्‍दी का युग जीवन-जागृति का युग था। इस शताब्‍दी में बंग प्रदेश में एक से बढ़कर एक महान्‌ व्‍यक्‍तित्‍व अवतरि...

विश्वी रावत की कलाकृति

बंगाल के इतिहास में 19वीं शताब्‍दी का युग जीवन-जागृति का युग था। इस शताब्‍दी में बंग प्रदेश में एक से बढ़कर एक महान्‌ व्‍यक्‍तित्‍व अवतरित हुये, उनमें से एक थे राष्‍ट्रगान के रचनाकार, कवि, लेखक, चित्रकार एवं संगीतज्ञ रवीन्‍द्रनाथ ठाकुर। गुरूदेव रवीन्‍द्रनाथ ठाकुर का जन्‍म 7 मई 1861 में हुआ था। रवीन्‍द्रनाथ के पिता महर्षि देवेन्‍द्रनाथ ठाकुर संगीत कलाकार नहीं थे लेकिन शुद्ध शास्‍त्रीय संगीत के परम भक्‍त थे। उनके परिवार में ही संगीत विद्वान श्री सौरीन्‍द्रमोहन ठाकुर हुये जिन्‍होंने भारतीय संगीत के कई ग्रन्‍थों की रचना की।

रवीन्‍द्रनाथ ठाकुर प्राचीन काल के साहित्‍य, संगीत और अध्‍यात्‍म से प्रभावित थे तथा अपनी व्‍यक्‍तिगत कलात्‍मक क्षमता से उन्‍होंने अपने संगीत को एक नवीन रूप, रस और भाव से समृद्ध किया। रवीन्‍द्र-संगीत का मूल तत्‍व है - शब्‍द और सुर का अर्द्धनारीश्‍वर रूप। रवीन्‍द्रनाथ को संगीत सुनने का अवसर अपने घर जोड़ासांको-ठाकुरबाड़ी (कोलकाता) में ही मिला, जहाँ अक्‍सर देश के प्रतिष्‍ठित हिन्‍दू-मुस्‍लिम कलाकारों के शास्‍त्रीय संगीत के कार्यक्रम हुआ करते थे। शास्‍त्रीय संगीत के परिवेश में ही वे बड़े हुये और मूर्धन्‍य कलावंतों व उस्‍तादों का गायन सुन-सुनकर अभ्‍यास किया करते थे। वहीं से उनको अपनी संगीत-रचना एवं अपने गानों की रचना का परिवेश मिला। बचपन में उनको श्री विष्‍णु चक्रवर्ती और श्री श्रीकण्‍ठ सिंह से संगीत की प्रेरणा मिली। श्री विष्‍णु चक्रवर्ती ध्रुवपद के अच्‍छे गायक थे तथा रवीन्‍द्रनाथ के प्रथम संगीत-गुरू भी थे। ‘जीवनस्‍मृति’ में रवीन्‍द्रनाथ ने लिखा है कि ‘‘मैं श्रीकण्‍ठ बाबू का प्रिय शिष्‍य था।’’ विख्‍यात गायक श्री यदु भट्‌ट से भी उन्‍होंने ध्रुवपद की शिक्षा प्राप्‍त की थी। महर्षि देवेन्‍द्रनाथ ठाकुर ने उस समय के प्रसिद्ध गायक श्री विष्‍णु चक्रवर्ती तथा श्री यदु भट्‌ट को अपने परिवार में संगीत शिक्षक के रूप में नियुक्‍त किया था। अपने बड़े भाई तथा संगीत-सेवी श्री ज्‍योतिरिन्‍द्रनाथ ठाकुर से भी उन्‍होंने गीत तथा सुर रचना की शिक्षा एवं पे्ररणा पाई थी। इसके अलावा उनके अन्‍य भाई द्विजेन्‍द्रनाथ, सत्‍येन्‍द्रनाथ, हेमेन्‍द्रनाथ एवं सोमेन्‍द्रनाथ भी शास्‍त्रीय संगीत के अच्‍छे ज्ञाता थे।

उनके पिता महर्षि देवेन्‍द्रनाथ ठाकुर ने बंगाल के रायपुर रियासत से सन्‌ 1863 में बीस बीघा जमीन खरीदी। एक विश्राम-घर बनाकर उन्‍होंने उसे नाम दिया ‘शान्‍तिनिकेतन’। सन्‌ 1901 में रवीन्‍द्रनाथ ने पिता से अनुमति लेकर पाँच छात्रों और पाँच शिक्षकों के साथ एक आदर्श विद्यालय का श्रीगणेश किया, और उसे नाम दिया ‘ब्रह्मचर्य-आश्रम’। शनैः-शनैः ‘ब्रह्मचर्य-आश्रम’ शान्‍तिनिकेतन में परिवर्तित हुआ और फिर यह ‘विश्‍वभारती’ बना। विश्‍वभारती को भारत का ‘विश्राम-गृह’ भी कहा जाता है। दिसम्‍बर सन्‌ 1921 में रवीन्‍द्रनाथ ठाकुर ने औपचारिक रूप से विश्‍वभारती (विश्‍वभारती विश्‍वविद्यालय, जिला-बीरभूम, पश्‍चिम बंगाल) का शुभारम्‍भ किया।

स्‍वामी प्रज्ञानानन्‍द ने कहा है कि ‘‘रवीन्‍द्रनाथ के गान जीवन-साधना के गान हैं एवं रवीन्‍द्रनाथ का ‘सुर’ जीवन-जागरण का सुर। ‘शब्‍द’ और ‘सुर’ के वेणी बन्‍धन से उन्‍होंने अपने जीवनादर्श का ही अनुसरण कर गानों की रचना की है।’’ रवीन्‍द्र-संगीत के अपने नियम अवश्‍य हैं परन्‍तु उनमें रहते हुये भी भरपूर स्‍वतंत्रता है। रवीन्‍द्र-संगीत में एक समन्‍वय है- शब्‍द-योजना, लय-सर्जन एवं भाव-अभिव्‍यंजना, जो इस शैली को पूर्णतः नवीनता एवं भिन्‍नता प्रदान करती है। इस शैली का तत्‍वतः सम्‍बन्‍ध भावनाओं से है, शास्‍त्रीय नियमों से नहीं, अर्थात्‌ हृदय से है, मस्‍तिष्‍क से नहीं। रवीन्‍द्रनाथ ने स्‍वयं भी कहा है, ‘‘संगीत स्‍त्रोते कूल नाहि पाई, कोथाय भेसे जाई दूरे। अर्थात्‌ संगीत के अनंत बहाव में हम दूर से दूर चले जा रहे हैं जहाँ किनारे यानि अंत का अहसास ही नहीं हो रहा है।’’

रवीन्‍द्र-संगीत की रचना का उद्‌देश्‍य ही भाव प्रकाशन है, न कि पान्‍डित्‍य या स्‍वकौशल प्रकाशन। वे कहते थे कि ‘‘हमारे देश में संगीत इतना शास्‍त्रगत, व्‍याकरणगत, अनुष्‍ठानगत हो गया है कि वह स्‍वाभाविकता से बहुत दूर चला गया है।’’ उनके गीतों में शास्‍त्रीय व उपशास्‍त्रीय विधाओं जैसे ख्‍याल, ठुमरी, टप्‍पा, दादरा इत्‍यादि से प्रेरित कई रचनायें हैं जिन्‍हें ‘भांगा गान’ के नाम से जाना जाता है। उनके धुनों से अनेक फिल्‍म संगीतकार भी प्रेरणा लेते रहे हैं, उनमें एस. डी. बर्मन, सलिल चौधरी और आर. डी. बर्मन के नाम उल्‍लेखनीय हैं। विश्‍वविख्‍यात सितार वादक भारतरत्‍न पं. रविशंकर भी बाबा अलाउद्‌दीन खाँ, आफ़ताबे-मौसीकी उस्‍ताद फैय्‍याज खाँ, बड़े भ्राता उदयशंकर के साथ ही गुरूदेव रवीन्‍द्रनाथ ठाकुर को अपना चौथा गुरू मानते हैं।

[ads-post]

रवीन्‍द्र-संगीत के गीत कुछ विशेष विषयों (जीमउमे, पर्याय) पर ही केन्‍द्रित होते हैं। वे विषय (पर्याय) हैं - पूजा, प्रेम, प्रकृति, स्‍वदेश, विचित्र एवं अनुष्‍ठानिक। रवीन्‍द्र-संगीत में तीन धाराओं का भी मिश्रण परिलक्षित होता है -

1. हिन्‍दुस्‍तानी शास्‍त्रीय संगीत की धारा - इस धारा की रचनाओं में ध्रुवपद गायकी एवं ख्‍याल गायकी का दर्शन होता है। इसमें शास्‍त्रीय संगीत के रागों एवं तालों के आधार पर रचनाओं का निर्माण किया गया है।

2. बंगाल के लोक संगीत की धारा - लोक संगीत अर्थात्‌ लोक से उत्‍पन्‍न, पोषित एवं संरक्षित संगीत। जन-जीवन की हर छोटी से छोटी बात, लोक संगीत का विषय, साहित्‍य होती है। रवीन्‍द्र-संगीत के गीतों का तीन-चौथाई भाग मुख्‍यतः लोक-जीवन से प्रेरित था। उनकी रचनाओं में बंगाल के साहित्‍य, संस्‍कृति, लोककला व लोक संगीत के स्‍पष्‍ट दर्शन होते हैं। रवीन्‍द्र-संगीत पर बंगला-लोक गीत, कीर्तन, भटियाल, जात्रा और बाउल-संगीत का सर्वाधिक प्रभाव पड़ा है।

3. पाश्‍चात्‍य संगीत से प्रभावित धारा - उनके परिवार में अंग्रेजी गानों तथा वाद्यों की काफी धूम रहती थी। परिवार मेें पियानो बजाने का काफी चलन था तथा स्‍टाफ नोटेशन की भी अच्‍छी जानकारी थी। गुरूदेव के कई गीतों को स्‍टाफ नोटेशन में लिखकर सुरक्षित रखा गया है। रवीन्‍द्रनाथ ने पाश्‍चात्‍य संगीत का गहरा अध्‍ययन भी किया था। रवीन्‍द्र-नृत्‍यनाटिकाओं जैसे वाल्‍मिकि-प्रतिभा, काल मृगया तथा मायार खेला में अंग्रेजी गीतों के प्रभाव से नाटकों का आकर्षण और बढ़ जाता है।

[ads-post]

रवीन्‍द्र-संगीत का ताल पक्ष -

रवीन्‍द्रनाथ ठाकुर के परिवार में होने वाले संगीत समारोहों में दूसरे गीतों की अपेक्षा ध्रुवपद अधिक गाये जाते थे। उनको जिन हिन्‍दी ध्रुवपदों की शिक्षा मिली उन्‍हीं स्‍वर एवं ताल के आधार पर उन्‍होंने अनेक बंगाल ध्रुवपदों की रचना की। उनकी गीत शैली पर ध्रुवपद गायकी का सर्वाधिक प्रभाव पड़ा था, जिससे उन्‍होंने रवीन्‍द्र-संगीत की अधिकांश रचनाओं में ध्रुवपदों के समान चार पदों की स्‍थायी, अंतरा, संचारी एवं आभोग की रचना की। जिन नूतन छंदों का उन्‍होंने निर्माण किया वे भी ध्रुवपदांग तालों से प्रभावित हुये। रवीन्‍द्रनाथ ने अपने गीतों की रचना भारतीय तालों के आधार पर की। उनकी रचनाओं से यह प्रत्‍यक्ष होता है कि बाल्‍यावस्‍था में रचनाओं में विलम्‍बित लय के तालों का प्रयोग उन्‍हें प्रिय था। जीवन के मध्‍यकाल में वे छन्‍द प्रधान तालों के प्रति आकृष्‍ट हुये। परन्‍तु अधिकांशतः उन्‍होंने काव्‍य छन्‍द की पद्धति का अनुसरण किया था। उन्‍होंने ‘संगीत की मुक्‍ति’ नामक निबन्‍ध में कहा है, ‘‘कविता में जो छन्‍द है संगीत में वही ताल है और दोनों में लय अर्थात्‌ गति साम्‍य की रक्षा आवश्‍यक है। अतएव काव्‍य, संगीत दोनों में लय को यदि हम मानकर चलें तो ताल सम्‍बन्‍धी विवाद का कोई कारण नहीं रह जाता।’’

साधारणतया संगीत को स्‍वरप्रधान, छन्‍दप्रधान एवं भाषाप्रधान वर्गों में विभाजित किया जाता है। स्‍वर-प्रधान वह संगीत है जिसमें स्‍वर विन्‍यास की प्रधानता हो। छन्‍द-प्रधान वह संगीत है जिसमें पखावज, तबला, खोल आदि लय वाद्यों का वादन प्रमुख हो। भाषा-प्रधान संगीत में स्‍वर एवं छन्‍दों का स्‍थान गौण होता है एवं उनका प्रयोग केवल भाषा के स्‍वाभाविक उच्‍चारण एवं अर्थ के लिये होता है। रवीन्‍द्रनाथ ठाकुर के गीत भाषा-प्रधान हैं। वे गीतों की रचना निश्‍चित स्‍वरों या तालों का आधार लेकर नहीं करते थे, बल्‍कि स्‍वरों एवं तालों का प्रयोग इसलिये करते थे ताकि गीतों के भाव विशेष रूप से स्‍पष्‍ट हो सकें। और इसके लिये परम्‍परागत तालों एवं मात्राओं में परिवर्तन करने में भी उन्‍होंने संकोच नहीं किया। उदाहरणार्थ उनके प्रसिद्ध गीत ‘आमारे जोदि जागाले आजि’ में उन्‍होंने स्‍वरचित ताल झम्‍पक (3/2) का प्रयोग झपताल (2/3) के जगह किया है। क्‍योंकि ‘आमारे’ तीन मात्राओं का और ‘जोदि’ दो मात्राओं का शब्‍द है। झपताल में ‘आमा/रे जो/दि’ में शब्‍द बिखर रहे हैं और झम्‍पक ताल में ‘आमारे/जोदि’ में शब्‍द खण्‍डित नहीं होते हैं। इसी प्रकार उन्‍होंने स्‍वरचित नवताल में 3/2/2/2 मात्रा खण्‍डों के ताल का प्रयोग आवश्‍यकतानुसार 3/6, 6/3, 5/4, 4/5 और पूर्ण 9 मात्राओं के लिये भी किया है। यह स्‍पष्‍ट उदाहरण है रवीन्‍द्र-संगीत के भाषा-प्रधान गीत-रचना का।

रवीन्‍द्रनाथ का मानना था कि भावनाओं के प्रेषण में ताल की भी विशेष भूमिका होती है। स्‍वरों के साथ-साथ ताल को भी द्रुत या विलम्‍बित करना आवश्‍यक होता है तभी भावनाओं का सही प्रदर्शन सम्‍भव हो पाता है। रवीन्‍द्र-संगीत में भावों के अनुसार गीत द्रुत, मध्‍य और विलम्‍बित लय में गाने का चलन है। द्रुत तालों को तबले पर और विलम्‍बित व मध्‍य लय को पखावज पर बजाने की परम्‍परा है। जो गीत बाउल अंग या कीर्तन अंग के होते हैं, उनमें खोल बजाया जाता है। इससे गीत में निखार आ जाता है। रवीन्‍द्र-संगीत की तालों में खाली नहीं होती है। रवीन्‍द्रनाथ ठाकुर ने अपने गीतों के लिये मुख्‍य रूप से नवपंच ताल, नवताल, रूपकड़ा, एकादशी, षष्‍ठीताल, अर्द्ध-झपताल, झम्‍पक ताल आदि तालों की रचना की, जिन्‍हें गीत-भाव के आधार पर तबला, पखावज या खोल पर बजाया जाता है। कुछ गीत 5/5 मात्रा खण्‍ड के भी मिलते हैं, जिसके लिये तालोल्‍लेख नहीं है। रवीन्‍द्रनाथ द्वारा रचित कुछ ताल प्राचीन तालों से मिलते-जुलते हैं, तो कुछ कर्नाटकी संगीत के तालों से। रवीन्‍द्रनाथ द्वारा रचित मुख्‍य ताल निम्‍न हैं -

1. झम्‍पक ताल ः झम्‍पक ताल का प्रयोग मध्‍य और द्रुत लय के गीतों के साथ होता है। यह 5 मात्राओं की ताल है। इसमें 3-2 मात्राओं के 2 विभाग हैं तथा 2 ताली है। यह सुगम अंग का ताल है। इसके बोल हैं -

धी धी ना । धी ना ।

़ 2

2. अर्द्ध झपताल ः यह 5 मात्राओं की ताल है। यह झम्‍पक ताल का उल्‍टा है। इसमें 2-3 मात्राओं के 2 विभाग हैं तथा 2 ताली है। यह सुगम अंग का ताल है। इसके बोल हैं -

धी ना । धी धी ना ।

़ 2

3. षष्‍ठी ताल ः षष्‍ठी ताल में 6 मात्राएं हैं। इसमें 2-4 मात्राओं के 2 विभाग हैं तथा 2 ताली है। इस ताल का दूसरा प्रकार, उल्‍टी षष्‍ठी ताल कहलाती है। जिसमें मात्राओं को 4-2 के क्रम से उलटकर बजाया जाता है। यह सुगम अंग का ताल है। इसके बोल हैं -

धी ना । धी धी नागे तेटे ।

़ 2

4. रूपकड़ा ताल ः रूपकड़ा ताल 8 मात्रा की ताल है। इसमें 3-2-3 मात्राओं के 3 विभाग हैं तथा 3 ताली है। यह ताल कर्नाटकी तिर्‍ जाति के मठ ताल से मिलता है। गीत के अनुसार यह ताल तबले, खोल या पखावज पर बजाया जाता है। यह ध्रुवपद अंग का ताल है। इसके बोल हैं -

तबले पर ः

(अ) धिं धिं ना । धिं ना । धिं धिं नाना । या

़ 2 3

(ब) धिं धिं ना । धिं ना । धिं धागे तेटे ।

़ 2 3

पखावज पर ः

(अ) धागे तेटे तेटे । धागे तेटे । किट तागे तेटे । या

़ 2 3

(ब) धा दें ता । तिट कत । गदि गिन नग ।

़ 2 3

5. नव ताल ः यह 9 मात्रा की ताल है। इसमें 3-2-2-2 मात्राओं के 4 विभाग हैं तथा 4 ताली है। यह प्राचीन गारूगी ताल 2-2-2-3 से मिलता है। यह अधिकाशतः मध्‍य और द्रुत लय में बजाई जाती है। इस ताल के अनेकों मतान्‍तर रवीन्‍द्र संगीतविदों में मिलते हैं। इसको कोई 6-3 का, कोई 3-6 का, कोई 5-4 का, कोई 4-5 का (प्राचीन हंसताल सदृश), तो कोई पूरे 9 मात्राओं का एक विभाग (संकीर्ण जाति के कर्नाटकी एकताल सदृश) मानने के पक्ष में है। ध्रुवपद अंग के गीतों में इस ताल का प्रयोग अधिक होता है। इसके बोल हैं -

तबले पर ः

धी धी ना । धी ना । धी धी । नागे तेटे ।

़ 2 3 4

पखावज पर ः

(अ) धा दें ता । तेटे कत । गदि घन । धागे तेटे ।

़ 2 3 4

(ब) धा दें ता । कत्‌ ता । तेटे कत । गदि घन ।

़ 2 3 4

6. एकादशी तालः यह 11 मात्रा की ताल है। इसमें 3-2-2-4 मात्राओं के 4 विभाग हैं तथा 4 ताली है। ध्रुवपद अंग के गीतों में इस ताल का प्रयोग होता है। इस ताल में कम ही गीत मिलते हैं। इसके बोल हैं -

तबले पर ः

धी धी ना । धी ना । धी ना । धी धी नागे तेटे ।

़ 2 3 4

पखावज पर ः

(अ) धा दें ता । तेटे कत । गदि घन । धागे तेटे तागे तेटे ।

़ 2 3 4

(ब) धा दें ता । कत्‌ तागे । धिन ता । तेटे कत गदि गन ।

़ 2 3 4

7. नवपंच तालः यह 18 मात्रा की ताल है। इसमें 2-4-4-4-4 मात्राओं के 5 विभाग हैं तथा 5 ताली है। इस ताल का प्रयोग मध्‍य तथा विलम्‍बित लय के गीतों में होता है। ध्रुवपद अंग के गीतों में इस ताल का प्रयोग होता है। इस ताल में कम ही गीत मिलते हैं। इसके बोल हैं -

पखावज पर ः

धा गे । धा गे दें ता । कत्‌ तागे दें ता ।

़ 2 3

तेटे धा दें ता । तेटे कत गदि घन ।

4 5

7 अगस्‍त 1941 को इस अद्‌भुत व्‍यक्‍तित्‍व का स्‍वर्गवास हो गया। यह विडम्‍बना ही है कि बंगाल प्रान्‍त को छोड़कर रवीन्‍द्र-संगीत की साधारण जानकारी भी दूसरे प्रान्‍तों में बहुत ही कम है। रवीन्‍द्र-संगीत को बंगाल प्रान्‍त के निकालकर पूरे राष्‍ट्र में प्रचारित-प्रसारित किये जाने की आवश्‍यकता है। जिससे पूरा देश रवीन्‍द्र-संगीत का रसानन्‍द ले सके।

-------

 

डॉ. शिवेन्‍द्र प्रताप त्रिपाठी

असिस्‍टेंट प्रोफेसर, संगीत विभाग,

दयालबाग एजुकेशनल इंस्‍टीट्‌यूट

(डीम्‍ड विष्‍वविद्यालय),

दयालबाग, आगरा-282005

ई-मेलः Dr. Shivendra Pratap Tripathi <shivendra.tripathi@hotmail.com>

-------------------------------------------

अपने मनपसंद विषय की और भी ढेरों रचनाएँ पढ़ें -
आलेख / ई-बुक / उपन्यास / कला जगत / कविता  / कहानी / ग़ज़लें / चुटकुले-हास-परिहास / जीवंत प्रसारण / तकनीक / नाटक / पाक कला / पाठकीय / बाल कथा / बाल कलम / लघुकथा  / ललित निबंध / व्यंग्य / संस्मरण / समीक्षा  / साहित्यिक गतिविधियाँ

--

हिंदी में ऑनलाइन वर्ग पहेली यहाँ (लिंक) हल करें. हिंदी में ताज़ा समाचारों के लिए यहाँ (लिंक) जाएँ. हिंदी में तकनीकी जानकारी के लिए यह कड़ी देखें.

-------------------------------------------

COMMENTS

BLOGGER
नाम

 आलेख ,1, कविता ,1, कहानी ,1, व्यंग्य ,1,14 सितम्बर,7,14 september,6,15 अगस्त,4,2 अक्टूबर अक्तूबर,1,अंजनी श्रीवास्तव,1,अंजली काजल,1,अंजली देशपांडे,1,अंबिकादत्त व्यास,1,अखिलेश कुमार भारती,1,अखिलेश सोनी,1,अग्रसेन,1,अजय अरूण,1,अजय वर्मा,1,अजित वडनेरकर,1,अजीत प्रियदर्शी,1,अजीत भारती,1,अनंत वडघणे,1,अनन्त आलोक,1,अनमोल विचार,1,अनामिका,3,अनामी शरण बबल,1,अनिमेष कुमार गुप्ता,1,अनिल कुमार पारा,1,अनिल जनविजय,1,अनुज कुमार आचार्य,5,अनुज कुमार आचार्य बैजनाथ,1,अनुज खरे,1,अनुपम मिश्र,1,अनूप शुक्ल,14,अपर्णा शर्मा,6,अभिमन्यु,1,अभिषेक ओझा,1,अभिषेक कुमार अम्बर,1,अभिषेक मिश्र,1,अमरपाल सिंह आयुष्कर,2,अमरलाल हिंगोराणी,1,अमित शर्मा,3,अमित शुक्ल,1,अमिय बिन्दु,1,अमृता प्रीतम,1,अरविन्द कुमार खेड़े,5,अरूण देव,1,अरूण माहेश्वरी,1,अर्चना चतुर्वेदी,1,अर्चना वर्मा,2,अर्जुन सिंह नेगी,1,अविनाश त्रिपाठी,1,अशोक गौतम,3,अशोक जैन पोरवाल,14,अशोक शुक्ल,1,अश्विनी कुमार आलोक,1,आई बी अरोड़ा,1,आकांक्षा यादव,1,आचार्य बलवन्त,1,आचार्य शिवपूजन सहाय,1,आजादी,3,आत्मकथा,1,आदित्य प्रचंडिया,1,आनंद टहलरामाणी,1,आनन्द किरण,3,आर. के. नारायण,1,आरकॉम,1,आरती,1,आरिफा एविस,5,आलेख,4288,आलोक कुमार,3,आलोक कुमार सातपुते,1,आवश्यक सूचना!,1,आशीष कुमार त्रिवेदी,5,आशीष श्रीवास्तव,1,आशुतोष,1,आशुतोष शुक्ल,1,इंदु संचेतना,1,इन्दिरा वासवाणी,1,इन्द्रमणि उपाध्याय,1,इन्द्रेश कुमार,1,इलाहाबाद,2,ई-बुक,374,ईबुक,231,ईश्वरचन्द्र,1,उपन्यास,269,उपासना,1,उपासना बेहार,5,उमाशंकर सिंह परमार,1,उमेश चन्द्र सिरसवारी,2,उमेशचन्द्र सिरसवारी,1,उषा छाबड़ा,1,उषा रानी,1,ऋतुराज सिंह कौल,1,ऋषभचरण जैन,1,एम. एम. चन्द्रा,17,एस. एम. चन्द्रा,2,कथासरित्सागर,1,कर्ण,1,कला जगत,113,कलावंती सिंह,1,कल्पना कुलश्रेष्ठ,11,कवि,2,कविता,3239,कहानी,2360,कहानी संग्रह,247,काजल कुमार,7,कान्हा,1,कामिनी कामायनी,5,कार्टून,7,काशीनाथ सिंह,2,किताबी कोना,7,किरन सिंह,1,किशोरी लाल गोस्वामी,1,कुंवर प्रेमिल,1,कुबेर,7,कुमार करन मस्ताना,1,कुसुमलता सिंह,1,कृश्न चन्दर,6,कृष्ण,3,कृष्ण कुमार यादव,1,कृष्ण खटवाणी,1,कृष्ण जन्माष्टमी,5,के. पी. सक्सेना,1,केदारनाथ सिंह,1,कैलाश मंडलोई,3,कैलाश वानखेड़े,1,कैशलेस,1,कैस जौनपुरी,3,क़ैस जौनपुरी,1,कौशल किशोर श्रीवास्तव,1,खिमन मूलाणी,1,गंगा प्रसाद श्रीवास्तव,1,गंगाप्रसाद शर्मा गुणशेखर,1,ग़ज़लें,550,गजानंद प्रसाद देवांगन,2,गजेन्द्र नामदेव,1,गणि राजेन्द्र विजय,1,गणेश चतुर्थी,1,गणेश सिंह,4,गांधी जयंती,1,गिरधारी राम,4,गीत,3,गीता दुबे,1,गीता सिंह,1,गुंजन शर्मा,1,गुडविन मसीह,2,गुनो सामताणी,1,गुरदयाल सिंह,1,गोरख प्रभाकर काकडे,1,गोवर्धन यादव,1,गोविन्द वल्लभ पंत,1,गोविन्द सेन,5,चंद्रकला त्रिपाठी,1,चंद्रलेखा,1,चतुष्पदी,1,चन्द्रकिशोर जायसवाल,1,चन्द्रकुमार जैन,6,चाँद पत्रिका,1,चिकित्सा शिविर,1,चुटकुला,71,ज़कीया ज़ुबैरी,1,जगदीप सिंह दाँगी,1,जयचन्द प्रजापति कक्कूजी,2,जयश्री जाजू,4,जयश्री राय,1,जया जादवानी,1,जवाहरलाल कौल,1,जसबीर चावला,1,जावेद अनीस,8,जीवंत प्रसारण,141,जीवनी,1,जीशान हैदर जैदी,1,जुगलबंदी,5,जुनैद अंसारी,1,जैक लंडन,1,ज्ञान चतुर्वेदी,2,ज्योति अग्रवाल,1,टेकचंद,1,ठाकुर प्रसाद सिंह,1,तकनीक,32,तक्षक,1,तनूजा चौधरी,1,तरुण भटनागर,1,तरूण कु सोनी तन्वीर,1,ताराशंकर बंद्योपाध्याय,1,तीर्थ चांदवाणी,1,तुलसीराम,1,तेजेन्द्र शर्मा,2,तेवर,1,तेवरी,8,त्रिलोचन,8,दामोदर दत्त दीक्षित,1,दिनेश बैस,6,दिलबाग सिंह विर्क,1,दिलीप भाटिया,1,दिविक रमेश,1,दीपक आचार्य,48,दुर्गाष्टमी,1,देवी नागरानी,20,देवेन्द्र कुमार मिश्रा,2,देवेन्द्र पाठक महरूम,1,दोहे,1,धर्मेन्द्र निर्मल,2,धर्मेन्द्र राजमंगल,1,नइमत गुलची,1,नजीर नज़ीर अकबराबादी,1,नन्दलाल भारती,2,नरेंद्र शुक्ल,2,नरेन्द्र कुमार आर्य,1,नरेन्द्र कोहली,2,नरेन्‍द्रकुमार मेहता,9,नलिनी मिश्र,1,नवदुर्गा,1,नवरात्रि,1,नागार्जुन,1,नाटक,152,नामवर सिंह,1,निबंध,3,नियम,1,निर्मल गुप्ता,2,नीतू सुदीप्ति ‘नित्या’,1,नीरज खरे,1,नीलम महेंद्र,1,नीला प्रसाद,1,पंकज प्रखर,4,पंकज मित्र,2,पंकज शुक्ला,1,पंकज सुबीर,3,परसाई,1,परसाईं,1,परिहास,4,पल्लव,1,पल्लवी त्रिवेदी,2,पवन तिवारी,2,पाक कला,23,पाठकीय,62,पालगुम्मि पद्मराजू,1,पुनर्वसु जोशी,9,पूजा उपाध्याय,2,पोपटी हीरानंदाणी,1,पौराणिक,1,प्रज्ञा,1,प्रताप सहगल,1,प्रतिभा,1,प्रतिभा सक्सेना,1,प्रदीप कुमार,1,प्रदीप कुमार दाश दीपक,1,प्रदीप कुमार साह,11,प्रदोष मिश्र,1,प्रभात दुबे,1,प्रभु चौधरी,2,प्रमिला भारती,1,प्रमोद कुमार तिवारी,1,प्रमोद भार्गव,2,प्रमोद यादव,14,प्रवीण कुमार झा,1,प्रांजल धर,1,प्राची,367,प्रियंवद,2,प्रियदर्शन,1,प्रेम कहानी,1,प्रेम दिवस,2,प्रेम मंगल,1,फिक्र तौंसवी,1,फ्लेनरी ऑक्नर,1,बंग महिला,1,बंसी खूबचंदाणी,1,बकर पुराण,1,बजरंग बिहारी तिवारी,1,बरसाने लाल चतुर्वेदी,1,बलबीर दत्त,1,बलराज सिंह सिद्धू,1,बलूची,1,बसंत त्रिपाठी,2,बातचीत,2,बाल उपन्यास,6,बाल कथा,356,बाल कलम,26,बाल दिवस,4,बालकथा,80,बालकृष्ण भट्ट,1,बालगीत,20,बृज मोहन,2,बृजेन्द्र श्रीवास्तव उत्कर्ष,1,बेढब बनारसी,1,बैचलर्स किचन,1,बॉब डिलेन,1,भरत त्रिवेदी,1,भागवत रावत,1,भारत कालरा,1,भारत भूषण अग्रवाल,1,भारत यायावर,2,भावना राय,1,भावना शुक्ल,5,भीष्म साहनी,1,भूतनाथ,1,भूपेन्द्र कुमार दवे,1,मंजरी शुक्ला,2,मंजीत ठाकुर,1,मंजूर एहतेशाम,1,मंतव्य,1,मथुरा प्रसाद नवीन,1,मदन सोनी,1,मधु त्रिवेदी,2,मधु संधु,1,मधुर नज्मी,1,मधुरा प्रसाद नवीन,1,मधुरिमा प्रसाद,1,मधुरेश,1,मनीष कुमार सिंह,4,मनोज कुमार,6,मनोज कुमार झा,5,मनोज कुमार पांडेय,1,मनोज कुमार श्रीवास्तव,2,मनोज दास,1,ममता सिंह,2,मयंक चतुर्वेदी,1,महापर्व छठ,1,महाभारत,2,महावीर प्रसाद द्विवेदी,1,महाशिवरात्रि,1,महेंद्र भटनागर,3,महेन्द्र देवांगन माटी,1,महेश कटारे,1,महेश कुमार गोंड हीवेट,2,महेश सिंह,2,महेश हीवेट,1,मानसून,1,मार्कण्डेय,1,मिलन चौरसिया मिलन,1,मिलान कुन्देरा,1,मिशेल फूको,8,मिश्रीमल जैन तरंगित,1,मीनू पामर,2,मुकेश वर्मा,1,मुक्तिबोध,1,मुर्दहिया,1,मृदुला गर्ग,1,मेराज फैज़ाबादी,1,मैक्सिम गोर्की,1,मैथिली शरण गुप्त,1,मोतीलाल जोतवाणी,1,मोहन कल्पना,1,मोहन वर्मा,1,यशवंत कोठारी,8,यशोधरा विरोदय,2,यात्रा संस्मरण,31,योग,3,योग दिवस,3,योगासन,2,योगेन्द्र प्रताप मौर्य,1,योगेश अग्रवाल,2,रक्षा बंधन,1,रच,1,रचना समय,72,रजनीश कांत,2,रत्ना राय,1,रमेश उपाध्याय,1,रमेश राज,26,रमेशराज,8,रवि रतलामी,2,रवींद्र नाथ ठाकुर,1,रवीन्द्र अग्निहोत्री,4,रवीन्द्र नाथ त्यागी,1,रवीन्द्र संगीत,1,रवीन्द्र सहाय वर्मा,1,रसोई,1,रांगेय राघव,1,राकेश अचल,3,राकेश दुबे,1,राकेश बिहारी,1,राकेश भ्रमर,5,राकेश मिश्र,2,राजकुमार कुम्भज,1,राजन कुमार,2,राजशेखर चौबे,6,राजीव रंजन उपाध्याय,11,राजेन्द्र कुमार,1,राजेन्द्र विजय,1,राजेश कुमार,1,राजेश गोसाईं,2,राजेश जोशी,1,राधा कृष्ण,1,राधाकृष्ण,1,राधेश्याम द्विवेदी,5,राम कृष्ण खुराना,6,राम शिव मूर्ति यादव,1,रामचंद्र शुक्ल,1,रामचन्द्र शुक्ल,1,रामचरन गुप्त,5,रामवृक्ष सिंह,10,रावण,1,राहुल कुमार,1,राहुल सिंह,1,रिंकी मिश्रा,1,रिचर्ड फाइनमेन,1,रिलायंस इन्फोकाम,1,रीटा शहाणी,1,रेंसमवेयर,1,रेणु कुमारी,1,रेवती रमण शर्मा,1,रोहित रुसिया,1,लक्ष्मी यादव,6,लक्ष्मीकांत मुकुल,2,लक्ष्मीकांत वैष्णव,1,लखमी खिलाणी,1,लघु कथा,288,लघुकथा,1340,लघुकथा लेखन पुरस्कार आयोजन,241,लतीफ घोंघी,1,ललित ग,1,ललित गर्ग,13,ललित निबंध,20,ललित साहू जख्मी,1,ललिता भाटिया,2,लाल पुष्प,1,लावण्या दीपक शाह,1,लीलाधर मंडलोई,1,लू सुन,1,लूट,1,लोक,1,लोककथा,378,लोकतंत्र का दर्द,1,लोकमित्र,1,लोकेन्द्र सिंह,3,विकास कुमार,1,विजय केसरी,1,विजय शिंदे,1,विज्ञान कथा,79,विद्यानंद कुमार,1,विनय भारत,1,विनीत कुमार,2,विनीता शुक्ला,3,विनोद कुमार दवे,4,विनोद तिवारी,1,विनोद मल्ल,1,विभा खरे,1,विमल चन्द्राकर,1,विमल सिंह,1,विरल पटेल,1,विविध,1,विविधा,1,विवेक प्रियदर्शी,1,विवेक रंजन श्रीवास्तव,5,विवेक सक्सेना,1,विवेकानंद,1,विवेकानन्द,1,विश्वंभर नाथ शर्मा कौशिक,2,विश्वनाथ प्रसाद तिवारी,1,विष्णु नागर,1,विष्णु प्रभाकर,1,वीणा भाटिया,15,वीरेन्द्र सरल,10,वेणीशंकर पटेल ब्रज,1,वेलेंटाइन,3,वेलेंटाइन डे,2,वैभव सिंह,1,व्यंग्य,2075,व्यंग्य के बहाने,2,व्यंग्य जुगलबंदी,17,व्यथित हृदय,2,शंकर पाटील,1,शगुन अग्रवाल,1,शबनम शर्मा,7,शब्द संधान,17,शम्भूनाथ,1,शरद कोकास,2,शशांक मिश्र भारती,8,शशिकांत सिंह,12,शहीद भगतसिंह,1,शामिख़ फ़राज़,1,शारदा नरेन्द्र मेहता,1,शालिनी तिवारी,8,शालिनी मुखरैया,6,शिक्षक दिवस,6,शिवकुमार कश्यप,1,शिवप्रसाद कमल,1,शिवरात्रि,1,शिवेन्‍द्र प्रताप त्रिपाठी,1,शीला नरेन्द्र त्रिवेदी,1,शुभम श्री,1,शुभ्रता मिश्रा,1,शेखर मलिक,1,शेषनाथ प्रसाद,1,शैलेन्द्र सरस्वती,3,शैलेश त्रिपाठी,2,शौचालय,1,श्याम गुप्त,3,श्याम सखा श्याम,1,श्याम सुशील,2,श्रीनाथ सिंह,6,श्रीमती तारा सिंह,2,श्रीमद्भगवद्गीता,1,श्रृंगी,1,श्वेता अरोड़ा,1,संजय दुबे,4,संजय सक्सेना,1,संजीव,1,संजीव ठाकुर,2,संद मदर टेरेसा,1,संदीप तोमर,1,संपादकीय,3,संस्मरण,730,संस्मरण लेखन पुरस्कार 2018,128,सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन,1,सतीश कुमार त्रिपाठी,2,सपना महेश,1,सपना मांगलिक,1,समीक्षा,847,सरिता पन्थी,1,सविता मिश्रा,1,साइबर अपराध,1,साइबर क्राइम,1,साक्षात्कार,21,सागर यादव जख्मी,1,सार्थक देवांगन,2,सालिम मियाँ,1,साहित्य समाचार,98,साहित्यम्,6,साहित्यिक गतिविधियाँ,216,साहित्यिक बगिया,1,सिंहासन बत्तीसी,1,सिद्धार्थ जगन्नाथ जोशी,1,सी.बी.श्रीवास्तव विदग्ध,1,सीताराम गुप्ता,1,सीताराम साहू,1,सीमा असीम सक्सेना,1,सीमा शाहजी,1,सुगन आहूजा,1,सुचिंता कुमारी,1,सुधा गुप्ता अमृता,1,सुधा गोयल नवीन,1,सुधेंदु पटेल,1,सुनीता काम्बोज,1,सुनील जाधव,1,सुभाष चंदर,1,सुभाष चन्द्र कुशवाहा,1,सुभाष नीरव,1,सुभाष लखोटिया,1,सुमन,1,सुमन गौड़,1,सुरभि बेहेरा,1,सुरेन्द्र चौधरी,1,सुरेन्द्र वर्मा,62,सुरेश चन्द्र,1,सुरेश चन्द्र दास,1,सुविचार,1,सुशांत सुप्रिय,4,सुशील कुमार शर्मा,24,सुशील यादव,6,सुशील शर्मा,16,सुषमा गुप्ता,20,सुषमा श्रीवास्तव,2,सूरज प्रकाश,1,सूर्य बाला,1,सूर्यकांत मिश्रा,14,सूर्यकुमार पांडेय,2,सेल्फी,1,सौमित्र,1,सौरभ मालवीय,4,स्नेहमयी चौधरी,1,स्वच्छ भारत,1,स्वतंत्रता दिवस,3,स्वराज सेनानी,1,हबीब तनवीर,1,हरि भटनागर,6,हरि हिमथाणी,1,हरिकांत जेठवाणी,1,हरिवंश राय बच्चन,1,हरिशंकर गजानंद प्रसाद देवांगन,4,हरिशंकर परसाई,23,हरीश कुमार,1,हरीश गोयल,1,हरीश नवल,1,हरीश भादानी,1,हरीश सम्यक,2,हरे प्रकाश उपाध्याय,1,हाइकु,5,हाइगा,1,हास-परिहास,38,हास्य,59,हास्य-व्यंग्य,78,हिंदी दिवस विशेष,9,हुस्न तबस्सुम 'निहाँ',1,biography,1,dohe,3,hindi divas,6,hindi sahitya,1,indian art,1,kavita,3,review,1,satire,1,shatak,3,tevari,3,undefined,1,
ltr
item
रचनाकार: रवीन्‍द्र-संगीत एवं उसका तालपक्ष / डॉ. शिवेन्‍द्र प्रताप त्रिपाठी
रवीन्‍द्र-संगीत एवं उसका तालपक्ष / डॉ. शिवेन्‍द्र प्रताप त्रिपाठी
https://lh3.googleusercontent.com/-nDi85p1Uld0/WGIYUVKiI1I/AAAAAAAAxzM/ausjN3DjJf0/image_thumb%25255B6%25255D.png?imgmax=800
https://lh3.googleusercontent.com/-nDi85p1Uld0/WGIYUVKiI1I/AAAAAAAAxzM/ausjN3DjJf0/s72-c/image_thumb%25255B6%25255D.png?imgmax=800
रचनाकार
https://www.rachanakar.org/2016/12/blog-post_81.html
https://www.rachanakar.org/
https://www.rachanakar.org/
https://www.rachanakar.org/2016/12/blog-post_81.html
true
15182217
UTF-8
Loaded All Posts Not found any posts VIEW ALL Readmore Reply Cancel reply Delete By Home PAGES POSTS View All RECOMMENDED FOR YOU LABEL ARCHIVE SEARCH ALL POSTS Not found any post match with your request Back Home Sunday Monday Tuesday Wednesday Thursday Friday Saturday Sun Mon Tue Wed Thu Fri Sat January February March April May June July August September October November December Jan Feb Mar Apr May Jun Jul Aug Sep Oct Nov Dec just now 1 minute ago $$1$$ minutes ago 1 hour ago $$1$$ hours ago Yesterday $$1$$ days ago $$1$$ weeks ago more than 5 weeks ago Followers Follow THIS PREMIUM CONTENT IS LOCKED STEP 1: Share to a social network STEP 2: Click the link on your social network Copy All Code Select All Code All codes were copied to your clipboard Can not copy the codes / texts, please press [CTRL]+[C] (or CMD+C with Mac) to copy Table of Content