कार्टून - साभार काजल कुमार
गधों का प्रतिकार पत्र
माननीय नेताजी
विश्व गर्दभ मंडल आपके उस बयान की कड़ी निंदा करता हैं जिसमें आपने अभिनेता जी से हमारा प्रचार न करने की अपील की थी। गधों को भी प्रचार पाने का उतना ही हक है जितना आदमियों को। विशेषकर गुजराती गधों को प्रचाारित होने, प्रचारित करने, प्रचार भुनाने और प्रचार चुराने की आदत भी है और अधिकार भी। वे लोटें तो ’डंकी-डंकी’, वे रेंकें तो ’डंकी-डंकी’। वे जब जंगल में, कच्छ के रण में, दोनों टांगे हवा में लहराते हैं तो वह विश्वस्तरीय घटना मानी जाती है।
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वे यदि कह दें ’ढेंचूं’ तो वह राष्ट्रीय बयान माना जाता है और आप उनके प्रचार को पचा नहीं पा रहे हैं !! सनद रहे महोदय कि यदि हमारे अधिकारों को कोई हमसे छीनने की कोशिश करेगा तो ’खर सेवक संघ’ उससे निपटने में सक्षम है। ’खर सेवक संघ’ का मूल काम खर-विरोधियों से दो-दो लात करना है। इसे हमलोग राष्ट्रधर्म कहते हैं। हमारे गर्दभ पुराण के अनुसार संसार में ’ गधे’ सर्वश्रेष्ठ जीव होते है। खरवेद में खरजाति की उत्पति और विकास की पूरी कथा कही गई है। महोदय प्रकारांतर में आपने हमारी संस्कृति पर ही प्रहार किया है जिस पर ’खरपरिवार’ गंभीरता से विचार कर रहा है।
महोदय, आप हमारे छोट कद और लंबी कान पर मत जाइये । हमारा मानना है कि भारतीय गधे सर्वश्रेष्ठ दुलत्ती मारक होते हैं। वहां ’खर सम्प्रदाय’ का उदय हुआ है। खर सम्प्रदाय में दीक्षित किशोर गधे अत्यंत तत्परता से लात मारते हैं। उन्हें लात के साथ-साथ दंत-प्रहार की भी ट्रेनिंग दी जाती है ताकि वे किसी को भी और कहीं भी ज़रा-ज़रा सी बात पर लात मार सकें। खर सम्प्रदाय का एक ही राग है ’डंकी डंकी’। रेंकना और फेंकना दो प्रमुख कर्त्तव्य माने जाते हैं। यदि किसी ने गधेश का अपमान किया तो युवा-वाहिनी पद-प्रहार से उसे क्षत-विक्षत कर सकती है। खर-वाहिनी की एक टुकड़ी तो सदैव संस्कृति की रक्षा हेतु आतुर रहती है। आपसे निवेदन है कि गर्दभ जाति की रेंक की रक्षा करते हुये, एक बार गर्दभ पुराण का आद्योपांत अध्ययन करें। आप स्वयं समझ जायेंगे कि संसार में जहां भी और जो भी महान हो रहा है गधे ही कर रहे हैं। यदि कहीं महान घटित नहीं हो सकता तो इसका कारण यह है कि वहां कोई सचमुच का गधा नहीं पहुंच पाया।
सादर संज्ञान हेतु
प्रवक्ता
विश्व गर्दभ मंडल ( विगम )
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शशिकांत सिंह ’शशि’
जवाहर नवोदय विद्यालय
शंकरनगर नांदेड़ महाराष्ट्र
7387311701
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