प्राची - जनवरी 2017 - संपादकीय : नसबंदी बनाम नोटबंदी

SHARE:

सम्पादकीय नसबंदी बनाम नोटबंदी त त्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी ने परिवार नियोजन लागू किया और उनके सुपुत्र संजय गांधी ने नसबंदी...

image

सम्पादकीय

नसबंदी बनाम नोटबंदी

त्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी ने परिवार नियोजन लागू किया और उनके सुपुत्र संजय गांधी ने नसबंदी लागू की. नतीजा....? सभी को पता है कि 1977 के चुनावों में कांग्रेस का पत्ता साफ हो गया और इंदिरा गांधी सत्ता से बाहर हो गयीं. तब जनता ने उनका साथ नहीं दिया था. जनता कभी भी सरकार के साथ नहीं चलती, क्योंकि उसे न तो सरकार के बनाये नियम-कानून पसंद हैं, न सामाजिक नियम-कानून. वह बेलगाम घोड़ी की तरह अपनी मर्जी से दौड़ना चाहती है. इसीलिए अपने देश में किसी प्रकार का अनुशासन, काम के प्रति निष्ठा और ईमानदारी नहीं है. लोग भ्रष्टाचार और बेईमानी का साथ बहुत निष्ठा और ईमानदारी से देते हैं, परन्तु उन्हें कानून की भाषा समझ में नहीं आती. कानून को तोड़ने में उन्हें मजा आता है.

हमारे देश का नागरिक न तो लाइन में लगना पसंद करता है, न लेन में. ताकतवर, ढीठ और बेईमान आदमी लाइन तोड़कर, सबसे लड़-झगड़कर और आगे जाकर अपना काम करवा लेता है. यही हाल सड़क पर चलनेवालों का है. कोई भी नियम कानून से सड़क की लेन में चलना पसंद नहीं करता है. वह दाएं-बाएं, कहीं से भी आगे निकलने की होड़ में लगा रहता है. इसीलिए अपने देश में सबसे ज्यादा सड़क हादसे होते हैं. जॉम की स्थिति में चालक अपनी गाड़ी आगे ले जाकर फंसा देता है, जिससे और ज्यादा जॉम लग जाता है. फिर जॉम को खुलने में घंटों लग जाते हैं.

[ads-post]

खैर, बात मैं इंदिरा गांधी की कर रहा था.

परिवार नियोजन और नसबंदी में जनता ने इंदिरा गांधी का साथ नहीं दिया, और आज हम सभी देश की जनसंख्या की स्थिति देख ही रहे हैं. जनसंख्या विस्फोटक स्थिति में पहुंच चुकी है. देश में संसाधनों की कमी होती जा रही है, पुराने उद्योग

धंधे चौपट हो गए हैं, नए उद्योग धंधे लग नहीं रहे हैं, बेरोजगारी बढ़ती जा रही है; परन्तु जनसंख्या रुकने का नाम नहीं ले रही है. कुछ वर्ग और जाति के लोग इसके प्रति जागरूक भी हैं, परन्तु कुछ लोग धर्म का हवाला देकर जनसंख्या को बढ़ाने में आंख मूंदकर लगे हुए हैं. तब अगर जनता ने सरकार के साथ सहयोग किया होता, तो आज हमारे देश की जनसंख्या नियंत्रण में होती और जिस प्रकार बेरोजगारी और महंगाई की समस्या से हम सभी जूझ रहे हैं, उससे काफी हद तक छुटकारा मिल चुका होता. लेकिन जनता न तब जागरूक थी, न आज है. जब जनता सरकार की योजनाओं के साथ तालमेल नहीं रखती और नियम-कानून का उलंघन करती है, तब देश विकट समस्याओं से घिर जाता है और जनता परेशान रहती है. आज अगर जनता महंगाई, भ्रष्टाचार और बेरोजगारी से त्रस्त है, तो वह इसके लिए स्वयं जिम्मेदार है.

सरकार योजनाएं बनाती हैं, परन्तु उनको लागू करनेवाले कर्मचारी और अधिकारी उनको ध्वस्त कर देते हैं, क्योंकि योजनाओं से जनता को होनेवाले लाभों की तरफ उनका ध्यान कम, अपनी भ्रस्ष्ट कमाई की तरफ ज्यादा रहता है. इसीलिए कोई भी सरकारी योजना सही ढंग से लागू नहीं हो पाती.कर्मचारी, अधिकारी और नेता सरकारी पैसे को अपनी झोली में भरकर ऐश करते हैं. हमें इन भ्रष्ट लोगों को अलग करके नहीं देखना चाहिए. यह भी जनता का एक अंग हैं.

खैर, अब लौटकर मैं फिर इंदिरा गांधी की बात पर आता हूं. ढाई साल बीतते न बीतते जनता इंदिरा गांधी और संजय गांधी द्वारा आपात्काल के दौरान किए गए अत्याचारों को भूल गयी और 1980 में इंदिरा गांधी फिर से शान-बान और गाजे-बाजे के साथ सत्ता में आ गईं, क्योंकि जनता दल की सरकार आपसी फूट के कारण अपने आप गिर गयी थी. वह जनता की अपेक्षाओं पर खरी नहीं उतरी.

जनता सरकार से सदा अपेक्षा करती है कि वह जनता के प्रति अपने कर्तव्यों का निर्वाह करे, परन्तु जनता अपने नागरिक कर्तव्यों का पालन कभी नहीं करती. वह केवल अपने अधिकार चाहती है.

आज नसबंदी लागू करने जैसा ही जोखिम वर्तमान प्रधान मंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने नोटबंदी करके उठाया है. अभी तक तो जनता नोटबंदी में उनका साथ दे रही है, परन्तु धीरे-धीरे उसका धैर्य चुकता जा रहा है. जनता के धैर्य को चुकता करने में विपक्ष कोई कोर कसर नहीं छोड़ रहा है. विपक्ष की स्थिति सांप-छंछूदर जैसी हो गयी है. सरकार की नीति सही है, परन्तु वह इसे सही नहीं कह सकती, क्योंकि इसका लाभ सरकार को अगले साल होनेवाले प्रादेशिक चुनावों में मिलेगा. अतएव वह इसे गलत करार देकर जनता की भावनाओं को भड़काने का काम कर रही है. जो जनता विपक्ष के साथ है, वह तो सदा उसके साथ रहेगी, परन्तु जो जनता इस बात में विश्वास करती है कि नोटबंदी से देश का भ्रष्टाचार कम होगा और कालेधन पर लगाम कसी जा सकेगी, वह अभी तक सरकार की नीति की प्रशंसा कर रही है, उसका साथ दे रही है; परन्तु सवाल है कि कब तक?

क्योंकि केवल आम आदमी बैंक के सामने नोट बदलवाने और अपना पैसा निकलवाने के लिए खड़ा है. जो नेता गरीब का रोना रोते हैं और उसकी भलाई के लिए संसद में चीख-पुकार मचाते हैं, वह कहीं भी जनता के साथ लाइन में खड़े दिखाई नहीं दे रहे हैं, न कोई व्यापारी और उद्योगपति नोट बदलवाने या बैंक से पैसा निकालने के लिए लाइन में लगा है....नोट बदलवाने और अपना कालाधन सफेद करने के इनके अपने चैनल्स हैं. ये लोग बड़े आराम से अपने सीए और कंपनी के फर्जी डाइरेक्टर्स के माध्यम से अपने पैसे को बदलवा चुके हैं या बदलवा रहे हैं और उन्हें कोई परेशानी नहीं हो रही है. इसीलिए अब जनता कुढ़ रही है कि केवल गरीब और आम आदमी ही परेशान है. अमीर तो किसी भी तरह से परेशान नहीं दिखाई दे रहा है. अतः जनता धीरे-धीरे बगावत की ओर बढ़ रही है.

सरकार की नीति अच्छी होते हुए भी शायद इसे जल्दबाजी में लागू किया गया है. लागू करने के पहले केवल भ्रष्टाचार और कालेधन पर लगाम कसने की तरफ ध्यान दिया गया, परन्तु आम जनता को होनेवाली परेशानियों की तरफ सरकार के नुमाइंदों का ध्यान नहीं गया. इसीलिए एक महीने बाद भी आम नागरिक पैसों के लिए परेशान है और लाइनों में लगा खड़ा दिखाई दे रहा है.

खैर, श्री नरेन्द्र मोदी ने जनता से 50 दिन का समय मांगा था. उसमें अब कुछेक दिन ही बचे हैं. (यह लेख लिखने के समय). हालात में सुधार हुए हैं और आशा है कि आनेवाले दिनों में नोटों की समस्या का समाधान हो जाएगा, उसकी कमी पूरी हो जाएगी; परन्तु ध्यान देनेवाली बात है कि भारत के नागरिक अपनी अधीरता के लिए बहुत प्रसिद्ध हैं. मैं पहले भी कह चुका हूं कि उन्हें लाइन में लगना और लेन में चलना बिल्कुल पसंद नहीं है. इसीलिए अब वह अधीर हो रही है और सरकार के खिलाफ होती जा रही है.

अमीर लोगों ने भले ही सरकारी तंत्र की कमजोर कड़ियों को तोड़कर, सत्ता और प्रशासन में बैठे भ्रष्ट अधिकारियों के माध्यम से (धन-बल का दुरुपयोग करके) अपने लाखों करोड़ों काले रुपये सफेद कर लियें हों, परन्तु सरकारी एजेन्सियों की चुस्ती और निगरानी के कारण वह पकड़े भी जा रहे हैं. इससे जनता का उत्साहवर्धन होना चाहिए. दूसरी तरफ सरकार को भी जनता के मन तक यह बात ठीक से पहुंचानी होगी, कि नोटबंदी का कानून उनकी भलाई के लिए है और देश के दुश्मन जो हेराफेरी से अपने काले धन को सफेद करने में लगे हैं, वह बच नहीं पाएंगे. इसके लिए जनता को सरकार का साथ तो देना ही होगा और कुछ दिनों तक नोटों की कमी का कष्ट भी झेलना होगा. उसे धैर्य का दामन पकड़े रहने होगा, वरना जिस प्रकार चालीस वर्ष पहले परिवार नियोजन का सत्यानाश हुआ था और उसका बुरा असर आज भी इतना स्पष्ट और कड़वा है कि अब कोई भी सरकार उसे फिर से लागू करने का नाम नहीं लेती. परिणामस्वरूप देश की जनसंख्या बेलगाम गति से बढ़ती जा रही है.

उसी प्रकार अगर नोटबंदी असफल हो गयी तो एक दिन यह देश भ्रष्टाचार और बेईमानी के दलदल में आकंठ डूब जाएगा, तब जनता खून के आंसू रोएगी. तब चारों तरफ अनाचार, अत्याचार और शोषण के सिवा कुछ नहीं होगा. बेरोजगारी और महंगाई इतनी बढ़ चुकी होगी कि लोग लूट-खसोट, चोरी-चकारी में व्यस्त होंगे. हर तरफ हाहाकार होगा. हत्या, बलात्कार आदि की घटनाएं इस कदर बढ़ चुकी होंगी, कि सरकारी तंत्र भी उन्हें नियंत्रित नहीं कर पायेगा.

यह बात बहुतों को बुरी लग सकती है, परन्तु बिल्कुल सत्य है. इस देश की जनता को आजादी पचती नहीं है. वह स्वतंत्र होते ही निरंकुश हो जाती है. जब तक उसके ऊपर आपात्काल जैसी कानून व्यवस्था नहीं लागू की जाती, वह कायदे और कानून से नहीं चलता. इस देश की जनता अगर नियम-कानून का पालन करती, ईमानदारी से अपने कर्तव्यों का निवर्हन करती, निष्ठा से अपने कार्यों का अनुपालन करती, भ्रष्टाचार और बेईमानी से दूर रहती, तो कोई कारण नहीं कि देश का विकास सही ढंग से नहीं हो पाता. आज दक्षिण एशिया के बहुत छोटे-छोटे और संसाधनों की कमी से जूझ रहे देश विकास में भारत से बहुत आगे हैं, जैसे सिंगापुर, मलेशिया, थाईलैंड और बर्मा. इनकी तुलना में भारत कहीं नहीं ठहरता, जबकि हमारे पास सारे प्राकृतिक संसाधन हैं. इसका एकमात्र कारण है, देश के नागरिकों की अकर्मण्यता, कामचोरी, बेईमानी और भ्रष्टाचार.

...‘‘हमें अधिकार नहीं, कर्तव्य चाहिए’’, जबतक प्रत्येक नागरिक इस बात को अच्छी तरह नहीं समझेगा, देश का विकास असंभव है. विकास तो बहुत दूर की बात, देश विखंडन की दिशा में बढ़ता दिखाई दे रहा है. न जाने इतिहास कब अपने को दोहरा दे और हम फिर से गुलाम हो जाएं. आखिर तीन हजार सालों से हम गुलामी का दंश ही तो झेल रहे हैं. फिर से गुलाम हो जाएंगे, तो कौन सा आसमान टूट पड़ेगा.

भारतीय संस्कार बहुत अच्छे हैं, परन्तु हम अच्छे संस्कारों का अनुपालन अपने जीवन में नहीं करते हैं. हम केवल उन्हीं संस्कारों को अपनाते हैं, जो हमें व्यक्तिगत या आर्थिक लाभ पहुंचाते हैं. अपने स्वार्थ के लिए हम कुछ संस्कारों को गठित भी कर लेते हैं, जैसे- आधुनिक समाज में हमने दहेज का संस्कार अपनाया हुआ है. यह संस्कार हमारे समाज को खोखला करता जा रहा है, परन्तु शिक्षित वर्ग भी इसे समाप्त करने में अपना उचित योगदान नहीं कर रहा है. बल्कि देखा यह जा रहा है कि उच्च वर्ग के लोगों इसे और ज्यादा बढ़ावा देने में लगे हैं. खैर, संस्कार अपनी जगह पर हैं, परन्तु नियम-कानून अपनी जगह पर. मेरा यही कहना है कि उचित और सही संस्कारों को अपने व्यक्तिगत जीवन में लागू कीजिए, तो राष्ट्रीय और सामाजिक कानूनों को समाज और देश के हित के लिए अपनाने में हमें कोई कठिनाई नहीं होनी चाहिए. हमारे शास्त्रों में तो कहा ही गया है कि हवन करते हाथ जलते हैं, अर्थात अच्छा काम में कठिनाई होती है और बुराई भी मिलती है, तो देश में नोटबंदी के कारण अगर जनता को फिलहाल कुछ परेशानियों और कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा है, तो यह हमारी आनेवाली खुशियों के लिए ही हो रहा है.

नोटबंदी में मैं सरकार के साथ हूं और अपनी तरफ से जनता से अपील करना चाहता हूं कि कुछ दिन और सरकार का साथ दीजिए, जिससे हालात सामान्य हो सकें. जब हालात सामान्य हो जाएंगे तो जनता को स्वयं पता चल जाएगा कि देश से न केवल भ्रष्टाचार कम होगा, बल्कि कालेधन को पनाह देनेवाले देश के दुश्मनों पर नकेल भी कसी जा सकेगी. तभी यह देश विकास की ओर बढ़ पाएगा और जनता सुखी हो सकेगी. इस बार हमें अपना धैर्य नहीं खोना है.

 

राकेश भ्रमर

COMMENTS

BLOGGER
नाम

 आलेख ,1, कविता ,1, कहानी ,1, व्यंग्य ,1,14 सितम्बर,7,14 september,6,15 अगस्त,4,2 अक्टूबर अक्तूबर,1,अंजनी श्रीवास्तव,1,अंजली काजल,1,अंजली देशपांडे,1,अंबिकादत्त व्यास,1,अखिलेश कुमार भारती,1,अखिलेश सोनी,1,अग्रसेन,1,अजय अरूण,1,अजय वर्मा,1,अजित वडनेरकर,1,अजीत प्रियदर्शी,1,अजीत भारती,1,अनंत वडघणे,1,अनन्त आलोक,1,अनमोल विचार,1,अनामिका,3,अनामी शरण बबल,1,अनिमेष कुमार गुप्ता,1,अनिल कुमार पारा,1,अनिल जनविजय,1,अनुज कुमार आचार्य,5,अनुज कुमार आचार्य बैजनाथ,1,अनुज खरे,1,अनुपम मिश्र,1,अनूप शुक्ल,14,अपर्णा शर्मा,6,अभिमन्यु,1,अभिषेक ओझा,1,अभिषेक कुमार अम्बर,1,अभिषेक मिश्र,1,अमरपाल सिंह आयुष्कर,2,अमरलाल हिंगोराणी,1,अमित शर्मा,3,अमित शुक्ल,1,अमिय बिन्दु,1,अमृता प्रीतम,1,अरविन्द कुमार खेड़े,5,अरूण देव,1,अरूण माहेश्वरी,1,अर्चना चतुर्वेदी,1,अर्चना वर्मा,2,अर्जुन सिंह नेगी,1,अविनाश त्रिपाठी,1,अशोक गौतम,3,अशोक जैन पोरवाल,14,अशोक शुक्ल,1,अश्विनी कुमार आलोक,1,आई बी अरोड़ा,1,आकांक्षा यादव,1,आचार्य बलवन्त,1,आचार्य शिवपूजन सहाय,1,आजादी,3,आत्मकथा,1,आदित्य प्रचंडिया,1,आनंद टहलरामाणी,1,आनन्द किरण,3,आर. के. नारायण,1,आरकॉम,1,आरती,1,आरिफा एविस,5,आलेख,4288,आलोक कुमार,3,आलोक कुमार सातपुते,1,आवश्यक सूचना!,1,आशीष कुमार त्रिवेदी,5,आशीष श्रीवास्तव,1,आशुतोष,1,आशुतोष शुक्ल,1,इंदु संचेतना,1,इन्दिरा वासवाणी,1,इन्द्रमणि उपाध्याय,1,इन्द्रेश कुमार,1,इलाहाबाद,2,ई-बुक,374,ईबुक,231,ईश्वरचन्द्र,1,उपन्यास,269,उपासना,1,उपासना बेहार,5,उमाशंकर सिंह परमार,1,उमेश चन्द्र सिरसवारी,2,उमेशचन्द्र सिरसवारी,1,उषा छाबड़ा,1,उषा रानी,1,ऋतुराज सिंह कौल,1,ऋषभचरण जैन,1,एम. एम. चन्द्रा,17,एस. एम. चन्द्रा,2,कथासरित्सागर,1,कर्ण,1,कला जगत,113,कलावंती सिंह,1,कल्पना कुलश्रेष्ठ,11,कवि,2,कविता,3239,कहानी,2360,कहानी संग्रह,247,काजल कुमार,7,कान्हा,1,कामिनी कामायनी,5,कार्टून,7,काशीनाथ सिंह,2,किताबी कोना,7,किरन सिंह,1,किशोरी लाल गोस्वामी,1,कुंवर प्रेमिल,1,कुबेर,7,कुमार करन मस्ताना,1,कुसुमलता सिंह,1,कृश्न चन्दर,6,कृष्ण,3,कृष्ण कुमार यादव,1,कृष्ण खटवाणी,1,कृष्ण जन्माष्टमी,5,के. पी. सक्सेना,1,केदारनाथ सिंह,1,कैलाश मंडलोई,3,कैलाश वानखेड़े,1,कैशलेस,1,कैस जौनपुरी,3,क़ैस जौनपुरी,1,कौशल किशोर श्रीवास्तव,1,खिमन मूलाणी,1,गंगा प्रसाद श्रीवास्तव,1,गंगाप्रसाद शर्मा गुणशेखर,1,ग़ज़लें,550,गजानंद प्रसाद देवांगन,2,गजेन्द्र नामदेव,1,गणि राजेन्द्र विजय,1,गणेश चतुर्थी,1,गणेश सिंह,4,गांधी जयंती,1,गिरधारी राम,4,गीत,3,गीता दुबे,1,गीता सिंह,1,गुंजन शर्मा,1,गुडविन मसीह,2,गुनो सामताणी,1,गुरदयाल सिंह,1,गोरख प्रभाकर काकडे,1,गोवर्धन यादव,1,गोविन्द वल्लभ पंत,1,गोविन्द सेन,5,चंद्रकला त्रिपाठी,1,चंद्रलेखा,1,चतुष्पदी,1,चन्द्रकिशोर जायसवाल,1,चन्द्रकुमार जैन,6,चाँद पत्रिका,1,चिकित्सा शिविर,1,चुटकुला,71,ज़कीया ज़ुबैरी,1,जगदीप सिंह दाँगी,1,जयचन्द प्रजापति कक्कूजी,2,जयश्री जाजू,4,जयश्री राय,1,जया जादवानी,1,जवाहरलाल कौल,1,जसबीर चावला,1,जावेद अनीस,8,जीवंत प्रसारण,141,जीवनी,1,जीशान हैदर जैदी,1,जुगलबंदी,5,जुनैद अंसारी,1,जैक लंडन,1,ज्ञान चतुर्वेदी,2,ज्योति अग्रवाल,1,टेकचंद,1,ठाकुर प्रसाद सिंह,1,तकनीक,32,तक्षक,1,तनूजा चौधरी,1,तरुण भटनागर,1,तरूण कु सोनी तन्वीर,1,ताराशंकर बंद्योपाध्याय,1,तीर्थ चांदवाणी,1,तुलसीराम,1,तेजेन्द्र शर्मा,2,तेवर,1,तेवरी,8,त्रिलोचन,8,दामोदर दत्त दीक्षित,1,दिनेश बैस,6,दिलबाग सिंह विर्क,1,दिलीप भाटिया,1,दिविक रमेश,1,दीपक आचार्य,48,दुर्गाष्टमी,1,देवी नागरानी,20,देवेन्द्र कुमार मिश्रा,2,देवेन्द्र पाठक महरूम,1,दोहे,1,धर्मेन्द्र निर्मल,2,धर्मेन्द्र राजमंगल,1,नइमत गुलची,1,नजीर नज़ीर अकबराबादी,1,नन्दलाल भारती,2,नरेंद्र शुक्ल,2,नरेन्द्र कुमार आर्य,1,नरेन्द्र कोहली,2,नरेन्‍द्रकुमार मेहता,9,नलिनी मिश्र,1,नवदुर्गा,1,नवरात्रि,1,नागार्जुन,1,नाटक,152,नामवर सिंह,1,निबंध,3,नियम,1,निर्मल गुप्ता,2,नीतू सुदीप्ति ‘नित्या’,1,नीरज खरे,1,नीलम महेंद्र,1,नीला प्रसाद,1,पंकज प्रखर,4,पंकज मित्र,2,पंकज शुक्ला,1,पंकज सुबीर,3,परसाई,1,परसाईं,1,परिहास,4,पल्लव,1,पल्लवी त्रिवेदी,2,पवन तिवारी,2,पाक कला,23,पाठकीय,62,पालगुम्मि पद्मराजू,1,पुनर्वसु जोशी,9,पूजा उपाध्याय,2,पोपटी हीरानंदाणी,1,पौराणिक,1,प्रज्ञा,1,प्रताप सहगल,1,प्रतिभा,1,प्रतिभा सक्सेना,1,प्रदीप कुमार,1,प्रदीप कुमार दाश दीपक,1,प्रदीप कुमार साह,11,प्रदोष मिश्र,1,प्रभात दुबे,1,प्रभु चौधरी,2,प्रमिला भारती,1,प्रमोद कुमार तिवारी,1,प्रमोद भार्गव,2,प्रमोद यादव,14,प्रवीण कुमार झा,1,प्रांजल धर,1,प्राची,367,प्रियंवद,2,प्रियदर्शन,1,प्रेम कहानी,1,प्रेम दिवस,2,प्रेम मंगल,1,फिक्र तौंसवी,1,फ्लेनरी ऑक्नर,1,बंग महिला,1,बंसी खूबचंदाणी,1,बकर पुराण,1,बजरंग बिहारी तिवारी,1,बरसाने लाल चतुर्वेदी,1,बलबीर दत्त,1,बलराज सिंह सिद्धू,1,बलूची,1,बसंत त्रिपाठी,2,बातचीत,2,बाल उपन्यास,6,बाल कथा,356,बाल कलम,26,बाल दिवस,4,बालकथा,80,बालकृष्ण भट्ट,1,बालगीत,20,बृज मोहन,2,बृजेन्द्र श्रीवास्तव उत्कर्ष,1,बेढब बनारसी,1,बैचलर्स किचन,1,बॉब डिलेन,1,भरत त्रिवेदी,1,भागवत रावत,1,भारत कालरा,1,भारत भूषण अग्रवाल,1,भारत यायावर,2,भावना राय,1,भावना शुक्ल,5,भीष्म साहनी,1,भूतनाथ,1,भूपेन्द्र कुमार दवे,1,मंजरी शुक्ला,2,मंजीत ठाकुर,1,मंजूर एहतेशाम,1,मंतव्य,1,मथुरा प्रसाद नवीन,1,मदन सोनी,1,मधु त्रिवेदी,2,मधु संधु,1,मधुर नज्मी,1,मधुरा प्रसाद नवीन,1,मधुरिमा प्रसाद,1,मधुरेश,1,मनीष कुमार सिंह,4,मनोज कुमार,6,मनोज कुमार झा,5,मनोज कुमार पांडेय,1,मनोज कुमार श्रीवास्तव,2,मनोज दास,1,ममता सिंह,2,मयंक चतुर्वेदी,1,महापर्व छठ,1,महाभारत,2,महावीर प्रसाद द्विवेदी,1,महाशिवरात्रि,1,महेंद्र भटनागर,3,महेन्द्र देवांगन माटी,1,महेश कटारे,1,महेश कुमार गोंड हीवेट,2,महेश सिंह,2,महेश हीवेट,1,मानसून,1,मार्कण्डेय,1,मिलन चौरसिया मिलन,1,मिलान कुन्देरा,1,मिशेल फूको,8,मिश्रीमल जैन तरंगित,1,मीनू पामर,2,मुकेश वर्मा,1,मुक्तिबोध,1,मुर्दहिया,1,मृदुला गर्ग,1,मेराज फैज़ाबादी,1,मैक्सिम गोर्की,1,मैथिली शरण गुप्त,1,मोतीलाल जोतवाणी,1,मोहन कल्पना,1,मोहन वर्मा,1,यशवंत कोठारी,8,यशोधरा विरोदय,2,यात्रा संस्मरण,31,योग,3,योग दिवस,3,योगासन,2,योगेन्द्र प्रताप मौर्य,1,योगेश अग्रवाल,2,रक्षा बंधन,1,रच,1,रचना समय,72,रजनीश कांत,2,रत्ना राय,1,रमेश उपाध्याय,1,रमेश राज,26,रमेशराज,8,रवि रतलामी,2,रवींद्र नाथ ठाकुर,1,रवीन्द्र अग्निहोत्री,4,रवीन्द्र नाथ त्यागी,1,रवीन्द्र संगीत,1,रवीन्द्र सहाय वर्मा,1,रसोई,1,रांगेय राघव,1,राकेश अचल,3,राकेश दुबे,1,राकेश बिहारी,1,राकेश भ्रमर,5,राकेश मिश्र,2,राजकुमार कुम्भज,1,राजन कुमार,2,राजशेखर चौबे,6,राजीव रंजन उपाध्याय,11,राजेन्द्र कुमार,1,राजेन्द्र विजय,1,राजेश कुमार,1,राजेश गोसाईं,2,राजेश जोशी,1,राधा कृष्ण,1,राधाकृष्ण,1,राधेश्याम द्विवेदी,5,राम कृष्ण खुराना,6,राम शिव मूर्ति यादव,1,रामचंद्र शुक्ल,1,रामचन्द्र शुक्ल,1,रामचरन गुप्त,5,रामवृक्ष सिंह,10,रावण,1,राहुल कुमार,1,राहुल सिंह,1,रिंकी मिश्रा,1,रिचर्ड फाइनमेन,1,रिलायंस इन्फोकाम,1,रीटा शहाणी,1,रेंसमवेयर,1,रेणु कुमारी,1,रेवती रमण शर्मा,1,रोहित रुसिया,1,लक्ष्मी यादव,6,लक्ष्मीकांत मुकुल,2,लक्ष्मीकांत वैष्णव,1,लखमी खिलाणी,1,लघु कथा,288,लघुकथा,1340,लघुकथा लेखन पुरस्कार आयोजन,241,लतीफ घोंघी,1,ललित ग,1,ललित गर्ग,13,ललित निबंध,20,ललित साहू जख्मी,1,ललिता भाटिया,2,लाल पुष्प,1,लावण्या दीपक शाह,1,लीलाधर मंडलोई,1,लू सुन,1,लूट,1,लोक,1,लोककथा,378,लोकतंत्र का दर्द,1,लोकमित्र,1,लोकेन्द्र सिंह,3,विकास कुमार,1,विजय केसरी,1,विजय शिंदे,1,विज्ञान कथा,79,विद्यानंद कुमार,1,विनय भारत,1,विनीत कुमार,2,विनीता शुक्ला,3,विनोद कुमार दवे,4,विनोद तिवारी,1,विनोद मल्ल,1,विभा खरे,1,विमल चन्द्राकर,1,विमल सिंह,1,विरल पटेल,1,विविध,1,विविधा,1,विवेक प्रियदर्शी,1,विवेक रंजन श्रीवास्तव,5,विवेक सक्सेना,1,विवेकानंद,1,विवेकानन्द,1,विश्वंभर नाथ शर्मा कौशिक,2,विश्वनाथ प्रसाद तिवारी,1,विष्णु नागर,1,विष्णु प्रभाकर,1,वीणा भाटिया,15,वीरेन्द्र सरल,10,वेणीशंकर पटेल ब्रज,1,वेलेंटाइन,3,वेलेंटाइन डे,2,वैभव सिंह,1,व्यंग्य,2075,व्यंग्य के बहाने,2,व्यंग्य जुगलबंदी,17,व्यथित हृदय,2,शंकर पाटील,1,शगुन अग्रवाल,1,शबनम शर्मा,7,शब्द संधान,17,शम्भूनाथ,1,शरद कोकास,2,शशांक मिश्र भारती,8,शशिकांत सिंह,12,शहीद भगतसिंह,1,शामिख़ फ़राज़,1,शारदा नरेन्द्र मेहता,1,शालिनी तिवारी,8,शालिनी मुखरैया,6,शिक्षक दिवस,6,शिवकुमार कश्यप,1,शिवप्रसाद कमल,1,शिवरात्रि,1,शिवेन्‍द्र प्रताप त्रिपाठी,1,शीला नरेन्द्र त्रिवेदी,1,शुभम श्री,1,शुभ्रता मिश्रा,1,शेखर मलिक,1,शेषनाथ प्रसाद,1,शैलेन्द्र सरस्वती,3,शैलेश त्रिपाठी,2,शौचालय,1,श्याम गुप्त,3,श्याम सखा श्याम,1,श्याम सुशील,2,श्रीनाथ सिंह,6,श्रीमती तारा सिंह,2,श्रीमद्भगवद्गीता,1,श्रृंगी,1,श्वेता अरोड़ा,1,संजय दुबे,4,संजय सक्सेना,1,संजीव,1,संजीव ठाकुर,2,संद मदर टेरेसा,1,संदीप तोमर,1,संपादकीय,3,संस्मरण,730,संस्मरण लेखन पुरस्कार 2018,128,सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन,1,सतीश कुमार त्रिपाठी,2,सपना महेश,1,सपना मांगलिक,1,समीक्षा,847,सरिता पन्थी,1,सविता मिश्रा,1,साइबर अपराध,1,साइबर क्राइम,1,साक्षात्कार,21,सागर यादव जख्मी,1,सार्थक देवांगन,2,सालिम मियाँ,1,साहित्य समाचार,98,साहित्यम्,6,साहित्यिक गतिविधियाँ,216,साहित्यिक बगिया,1,सिंहासन बत्तीसी,1,सिद्धार्थ जगन्नाथ जोशी,1,सी.बी.श्रीवास्तव विदग्ध,1,सीताराम गुप्ता,1,सीताराम साहू,1,सीमा असीम सक्सेना,1,सीमा शाहजी,1,सुगन आहूजा,1,सुचिंता कुमारी,1,सुधा गुप्ता अमृता,1,सुधा गोयल नवीन,1,सुधेंदु पटेल,1,सुनीता काम्बोज,1,सुनील जाधव,1,सुभाष चंदर,1,सुभाष चन्द्र कुशवाहा,1,सुभाष नीरव,1,सुभाष लखोटिया,1,सुमन,1,सुमन गौड़,1,सुरभि बेहेरा,1,सुरेन्द्र चौधरी,1,सुरेन्द्र वर्मा,62,सुरेश चन्द्र,1,सुरेश चन्द्र दास,1,सुविचार,1,सुशांत सुप्रिय,4,सुशील कुमार शर्मा,24,सुशील यादव,6,सुशील शर्मा,16,सुषमा गुप्ता,20,सुषमा श्रीवास्तव,2,सूरज प्रकाश,1,सूर्य बाला,1,सूर्यकांत मिश्रा,14,सूर्यकुमार पांडेय,2,सेल्फी,1,सौमित्र,1,सौरभ मालवीय,4,स्नेहमयी चौधरी,1,स्वच्छ भारत,1,स्वतंत्रता दिवस,3,स्वराज सेनानी,1,हबीब तनवीर,1,हरि भटनागर,6,हरि हिमथाणी,1,हरिकांत जेठवाणी,1,हरिवंश राय बच्चन,1,हरिशंकर गजानंद प्रसाद देवांगन,4,हरिशंकर परसाई,23,हरीश कुमार,1,हरीश गोयल,1,हरीश नवल,1,हरीश भादानी,1,हरीश सम्यक,2,हरे प्रकाश उपाध्याय,1,हाइकु,5,हाइगा,1,हास-परिहास,38,हास्य,59,हास्य-व्यंग्य,78,हिंदी दिवस विशेष,9,हुस्न तबस्सुम 'निहाँ',1,biography,1,dohe,3,hindi divas,6,hindi sahitya,1,indian art,1,kavita,3,review,1,satire,1,shatak,3,tevari,3,undefined,1,
ltr
item
रचनाकार: प्राची - जनवरी 2017 - संपादकीय : नसबंदी बनाम नोटबंदी
प्राची - जनवरी 2017 - संपादकीय : नसबंदी बनाम नोटबंदी
https://lh3.googleusercontent.com/-3Qjg6iaIftw/WL0CY-h8_3I/AAAAAAAA3Hg/13Izj0Ms1k0/image_thumb%25255B2%25255D.png?imgmax=800
https://lh3.googleusercontent.com/-3Qjg6iaIftw/WL0CY-h8_3I/AAAAAAAA3Hg/13Izj0Ms1k0/s72-c/image_thumb%25255B2%25255D.png?imgmax=800
रचनाकार
https://www.rachanakar.org/2017/03/2017.html
https://www.rachanakar.org/
https://www.rachanakar.org/
https://www.rachanakar.org/2017/03/2017.html
true
15182217
UTF-8
Loaded All Posts Not found any posts VIEW ALL Readmore Reply Cancel reply Delete By Home PAGES POSTS View All RECOMMENDED FOR YOU LABEL ARCHIVE SEARCH ALL POSTS Not found any post match with your request Back Home Sunday Monday Tuesday Wednesday Thursday Friday Saturday Sun Mon Tue Wed Thu Fri Sat January February March April May June July August September October November December Jan Feb Mar Apr May Jun Jul Aug Sep Oct Nov Dec just now 1 minute ago $$1$$ minutes ago 1 hour ago $$1$$ hours ago Yesterday $$1$$ days ago $$1$$ weeks ago more than 5 weeks ago Followers Follow THIS PREMIUM CONTENT IS LOCKED STEP 1: Share to a social network STEP 2: Click the link on your social network Copy All Code Select All Code All codes were copied to your clipboard Can not copy the codes / texts, please press [CTRL]+[C] (or CMD+C with Mac) to copy Table of Content