हनुमान मुक्त की 2 रचनाएँ

SHARE:

राज परम्परा का निर्वाह   आज हाबूलाल बड़ी तेजी से हड़बड़ाता हुआ आया और आते ही अंदर से दरवाजा बंद कर लिया। हाबूलाल को मैंने आज तक इस प्रकार ...

राज परम्परा का निर्वाह

 

आज हाबूलाल बड़ी तेजी से हड़बड़ाता हुआ आया और आते ही अंदर से दरवाजा बंद कर लिया। हाबूलाल को मैंने आज तक इस प्रकार हड़बड़ाते हुए नहीं देखा। मैंने पूछा, ‘हाबूलाल बात क्या है? इस प्रकार क्यों हड़बड़ा रहे हो? दरवाजा क्यों बंद कर लिया?’ बोला, ‘बात ही कुछ ऐसी है, तुमने मुझे मरवा दिया, तुम्हारे चक्कर में आकर मेरा बेड़ा गर्क हो गया।’

‘कुछ बताओगे भी या इधर-उधर की ही बातें करते रहोगे। साफ-साफ बोलो, बात क्या है?’

हाबूलाल बोला, ‘तुमने मेरे मंत्री बनने पर कहा था कि लोकतंत्र में मंत्री का पद राजा से कम नहीं होता। इसलिए मंत्री पद का ठीक ढंग से निर्वाह करने के लिए आवश्यक है, मैं राज परम्पराओं का अच्छी तरह अध्ययन करूं और उसके अनुसार ही आचरण करूं। तुम्हारी बात मानते हुए मैंने हमारे सभी पूर्वज राजा-महाराजाओं द्वारा किए गए कार्यों का अच्छी तरह अध्ययन कर उसके अनुसार ही आचरण करना शुरू कर दिया।’

मैंने कहा, ‘यह तो अच्छी बात है, इसमें तुमने गलत क्या किया है?’ हाबूलाल बोला, ‘यहीं से तो गड़बड़ हुई है। मैंने पढ़ा था कि राजा-महाराजा अपने रनिवास (हरम) में बहुत सी स्त्रियां रखते थे। जब जिसके साथ जी बहलाने की इच्छा होती उसे अपने पास बुलाकर मनोरंजन कर लिया करते थे। कभी किसी को आपत्ति नहीं होती थी। जिसके पास जितना बड़ा हरम होता था उसका स्टेटस उतना ही बड़ा माना जाता था। राजा का सानिध्य पाने वाली स्त्रियां अपने आप को भाग्यशाली समझती थी।’

‘बिल्कुल ठीक पढ़ा है तुमने। इससे तुम्हारे हड़बड़ाने का क्या सम्बन्ध है?’ मैं बात काटता हुआ बोला। मुझे बीच में बोलता देख हाबूलाल चिढ़ गया। बोला, ‘तुम चुपचाप मेरी बात सुनते जाओ। अगर मैं तुम्हारी कही हुई बातों पर नहीं चलता तो मेरा यह हश्र नहीं होता, जो आज मेरा हुआ है। मैंने तुम्हारे कहे अनुसार राजा-महाराजाओं के साथ ऋषि तपस्वियों की कहानियां भी पढ़ी हैं। पाराशर ऋषि का मत्स्योदर (सत्यवती) पर रीझ कर उसके साथ सत्संग करने के लिए अपने तप बल से सूर्य को ढकना और नीचे नदी में काई पैदा कर देना। ऋषि महिमा को बताता है। वहीं गौत्तम ऋषि की पत्नी अहिल्या पर इंद्र के रीझ जाने पर छल द्वारा गौत्तम ऋषि को कुटिया से बाहर भिजवाकर अहिल्या के साथ इंद्र के समागम की कहानी भी मैंने पढ़ी थी। पाराशर ऋषि के केस में सत्यवती कुंवारी माँ बन गई और उन्होंने वेदव्यास को जन्म दिया। वहीं अहिल्या को अपने पति द्वारा श्राप दिए जाने पर वह शिला बन गई। दोनों ही परिस्थितियों में पाराशर ऋषि और इंद्र का बाल भी बांका नहीं हुआ। इस सबसे सबक लेकर मैंने भी मंत्री पद की गरिमा बढ़ाने का काम किया। आपने मुझसे कहा ही था कि मुझे ‘राज परम्परा’ का निर्वाह करना है।

आजकल समय बदल गया है। रनिवास रखने का प्रचलन खत्म हो गया है। जिस पर मन आ जाता है उसे कुछ ले-देकर, सौदेबाजी करके अपने यहां बुलाकर या उसके यहां जाकर अथवा अन्य किसी तीसरे स्थान होटल वगैरह में ले जाकर परम्परा का निर्वाह किया जाता है।

मैं भी राज परम्परा का निर्वाह करता रहा हूं। उस महिला को पता नहीं किसने भड़का दिया कि उसने मेरे ही खिलाफ केस कर दिया। उसका कहना है कि मैंने उसके साथ दुष्कर्म किया है। भला उसका कौन समझाए, जो काम हमारे पूर्वज राजा-महाराजा, ऋषि-तपस्वी करते आए हैं वह भला दुष्कर्म कैसे हो सकता है। उसने यह सब मीडिया में प्रचारित भी कर दिया। मैंने उसे बहुत समझाने की कोशिश की लेकिन उसने समझने से इनकार कर दिया।

मेरे द्वारा ‘राज परम्परा’ के निर्वहन की मीडिया में खबर आने से हाई कमान नाराज हो गए और मुझसे इस्तीफा मांग लिया। उनका कहना है कि मैं मंत्री बनने लायक नहीं हूँ। जब मैं राज परम्परा को राज नहीं रख सकता तो भला अन्य राजों को राज कैसे रख पाऊंगा? दबाव में आकर मुझे इस्तीफा देना पड़ा। मैं इस्तीफा देकर पुलिस को चकमा देकर तुम्हारे पास आया हूँ। मैंने घर पर कह दिया है कि मैं धार्मिक यात्रा पर जा रहा हूँ। कोई मेरा पीछा नहीं करे। मोबाइल भी मैं साथ नहीं लाया जिससे मेरी पोजिशन ट्रेस नहीं की जा सके। अब तुम ही बताओ इस सबका जिम्मेदार तुम हो या मैं?

यदि तुम्हारी सीख में नहीं आता तो ना ही मेरा मंत्री पद जाता और ना ही पुलिस मेरे पीछे पड़ती। अब कैसे भी मुझे भंवर जाल से निकालो। नहीं तो मैं आत्म हत्या कर लूंगा।’

हाबूलाल को इस प्रकार की बेवकूफाना बात करते देख मैं बोला, ‘हाबूलाल, तुम बेवकूफ हो गए हो, जो इस प्रकार आत्म हत्या की बात करते हो। कभी किसी मंत्री को इल्जाम लगने पर आत्म हत्या करते सुना है? यह मंत्री पद की परम्परा के बिल्कुल खिलाफ है। इससे तुम अपना ही नहीं आगे आने वाली पीढ़ियों तक में मंत्री पद पर दाग लगा दोगे।

राजा-महाराजा, ऋषि-महात्मा, मंत्री-संतरियों पर इस प्रकार के इल्जाम लगते ही रहते हैं। ऐसे इल्जाम उनकी गरिमा को बढ़ाते हैं। ये इस बात के परिचायक हैं कि वे लोग हमारी वर्षों से चली आ रही परम्परा को अक्षुण्य रखे हुए हैं। वे ही हमारी भारतीय संस्कृति और परम्परा के सच्चे वाहक हैं। इसलिए इसमें इतना परेशान होने की कोई बात नहीं है।

आत्महत्या के बारे में तुमने मुझसे तो कह दिया। अगर अन्य किसी के सामने कह दोगे तो तुम्हारे संगी-साथी तुम्हारा एन्कांउटर कर उसे आत्महत्या करार दे देंगे। तुमने जो कुछ किया है वह किसी भी स्थिति में गलत नहीं है। तुम्हारी गलती सिर्फ यह है कि जब तुम्हें लग रहा था कि वह स्त्री राज परम्परा के निर्वहन में बाधा बन रही है तो तुम्हें उसे मैनेज करना चाहिए था। और जब वह मैनेज नहीं हो पाई तो मीडिया को मैनेज करना चाहिए था।

मेरी इस प्रकार की बातों से हाबूलाल ही हड़बड़ाहट कुछ कम हुई। अब वह आराम से सोफे पर बैठ गया। टेबिल पर रखे पानी के गिलास को वह एक ही बार में पूरा गटक गया। अब उसको कुछ सुकुन मिला था। बोला, ‘तुम्हारी बात बिल्कुल ठीक है, मुझसे गलती यहीं हुई है। राज परम्परा का निर्वाह तो सभी करते हैं। अब बताओ मुझे क्या करना है?’

मैं बोला, ‘हाबूलाल करना क्या है? अपनी पिछली गलतियां सुधारनी है। जिसे मैनेज नहीं कर पाए उन्हें मैनेज करना है।’

हाबूलाल मेरा मतलब समझ गया था और अब वह मीडिया को मैनेज करने व महिलाओं के साथ नया सत्संग करने वहां से निकल गया।

 

भ्रमित

मेरा स्थानान्तरण दूसरे शहर हो गया। लोग मेरी जाति, कुल से परिचित नहीं थे। मैं भी उन्हें परिचित कराना नहीं चाहता था। मेरे नाम के पीछे लगा सरनेम मुक्त मेरी जाति का बोध कराने में असमर्थ था।

एक दिन पिछड़ी जातियों के आरक्षण समर्थक आंदोलन के एक नेता वर्मा जी मेरे पास आए। वे आरक्षण के लिए मेरा समर्थन चाहते थे। मैं समझ गया कि इन्हें मेरे नाम के पीछे लगे उपनाम ने भ्रमित कर दिया है या मेरे साथ मेलजोल रखने वाले लोगों से ये भ्रमित हो गए हैं। वरना ऊँची जाति के व्यक्ति के पास कोई भी निचली जाति का व्यक्ति आरक्षण के समर्थन के लिए भला क्यों आएगा। हर कोई जानता है कि कोई भी ऊँची जाति का व्यक्ति अपनी जाति को नहीं छिपाता। जाति को छिपाने का काम तो नीची जाति वालों को करना पड़ता है, जिससे लोग उन्हें हेय दृष्टि से नहीं देखें, उनसे बात करने से पहले ही उनके बारे में नकारात्मक भाव नहीं लाएं। उन्हें हीन नहीं समझें।

वैसे भी ज्यादातर जाति सूचक सरनेम नहीं लगाने के मामले में देखा गया है कि नीची जाति के लोग ही अपने नाम के पीछे जाति सूचक सरनेम नहीं लगाते और लगाते हैं तो ऐसा सरनेम लगाते हैं जिससे सामान्य व्यक्ति उनकी जाति का सहज ही अनुमान नहीं लगा सके।

वे चाहते हैं कि लोग उनके रूप को देखकर, उनकी योग्यता को देखकर उनके बारे में कोई मानसिकता बनाए। उनकी जाति को देखकर नहीं। भारतीय विद्वानों ने इस पर पर्याप्त विचार किया है कि रूप बड़ा है या जाति। रूप व्यक्ति-सत्य है, जाति समाज-सत्य। जाति उस पद का द्योतक है जिस पर समाज ने मुहर लगा रखी है। ऐसे लोग समाज-सत्य की सड़ी-गली धारणाओं को तोड़ना चाहते हैं वे व्यक्ति सत्य को प्रतिष्ठित करना चाहते हैं।

मुझे भी वे ऐसा ही मान रहे थे। उनकी बातों को सुनकर मैं मन ही मन प्रफुल्लित हो रहा था कि चलो गलत फहमी में ही सही ये लोग मुझे अपना हितैषी तो मान रहे हैं, यदि इनको मेरी जाति के बारे में पता होता तो किसी भी स्थिति में मुझसे आरक्षण के समर्थन में बात करने नहीं आते।

मैंने उनका उनके रूप के अनुसार सत्कार किया। वे बोले, ‘आजकल ऊँची जाति के लोग हमारे आरक्षण के खिलाफ लामबन्द हो रहे हैं। यदि हम सब एकसाथ उनके खिलाफ लामबन्द नहीं हुए तो वह दिन दूर नहीं जब हमें आरक्षण से वंचित होना पड़ेगा। आप तो लेखक टाइप व्यक्ति हो, कुछ ऐसा लिखो जिससे हमारी जाति के लोग इस आरक्षण के समर्थन में एक साथ खड़े हो जाएं और ऊँची जाति के लोग चुप हो जाएं।’

मैं बोला, ‘वर्मा जी! ऐसी कोई बात नहीं है। हमें आरक्षण मिलना सामाजिक न्याय की बात है। हमसे इसे कोई भी नहीं छीन सकता। जब तक हमारी जाति के लोग, सामान्य जाति के लोगों के बराबर नहीं आ जाते, आप चिन्ता मत करो।’

वर्मा जी मेरी बात से संतुष्ट नहीं हुए। वे चाहते थे कि मैं आरक्षण का विरोध करने वाले ऊँची जाति के लोगों को अच्छी-अच्छी गालियाँ दूं, अच्छे-अच्छे अकाट्य तर्क आरक्षण के समर्थन में दूं। मेरी बात से वे थोड़े निराश हो गए लेकिन तुरन्त ही हिम्मत जुटाकर बोले, ‘मुक्त जी, ऐसा कब तक चलता रहेगा। हम कब तक अन्याय सहते रहेंगे। आरक्षण का विरोध करने वालों को जेल में डाल दिया जाना चाहिए।’

मैं वर्मा जी की मन स्थिति समझ रहा था। इनके दोनों लड़के बड़े अफसर थे। स्वयं के पास भी करोड़ो रुपयांे का कारोबार था। नेताजी ही उनका साइड जॉब थे।

मैंने कहा, ‘वर्माजी आप जैसे लोग आरक्षण लेना खत्म कर दो तो जाति का भला हो सकता है, ऐसे लोग जिन्हें दो समय की रोटी नसीब नहीं है। वे तुम्हारे साथ रेस में आगे कैसे निकल सकते हैं। भला चिमनी और बिजली के लैम्प में मुकाबला कैसे हो सकता है? मुझे तो ऐसा लग रहा है कि तुम ही अपनी जाति के लोगों का हक छीन रहे हो। क्यों ना पिछड़ी जाति के लोगों की एक बैठक बुलाकर यह निर्णय लिया जाए कि धनाढ्य लोग आरक्षण का लाभ नहीं लेंगे। यदि सभी ने ऐसा सोच लिया तो निश्चित रूप से हम इस जाति के लोगों का भला कर सकते हैं।’

मेरी बात अपने ही प्रतिकूल पड़ते देख वर्माजी ने रंग बदला। वे बोले, ये सब तो अपनी घरेलू बाते हैं। इन पर फैसला तो हम सब बाद में मिल बैठकर कर लेंगे, लेकिन फिलहाल आरक्षण विरोधियों का मुकाबला कैसे करें। यह सब बाताओ।

मैं बोला, ‘जो लोग आरक्षण का विरोध कर रहे हैं, उनके तर्कों को कुतरना शुरू कर दो। अच्छा सा वकील हायर करके अपना पक्ष न्यायालय में प्रस्तुत करो।’

‘इसी पर डिसकस करने तो मैं तुम्हारे पास आया हूँ। अपने दिमाग में दौड़ाओ और कोई अच्छी सी काट बताओ लेकिन अभी जो तुम धनाढ्य लोगों के आरक्षण नहीं लेने की बात कर रहे थे, उस बात को दुबारा किसी से मत कहना। तुम समझते नहीं यदि हम ही ऐसा करने लग जाएंगे तो हम-तुम इतनी भाग-दौड़ क्या भाड़ झौंकने के लिए कर रहे हैं। हर कोई अपने बच्चों के लिए, आने वाली संतति के सुखद भविष्य के लिए काम करता है।’

हम-तुम शब्द के बार-बार उच्चारण को सुनकर मेरे चेहरे पर हल्की सी मुस्कान आ गई। मैंने कहा, ‘वर्माजी तुम सिर्फ अपनी बात करो। मुझे अपने में शामिल में मत करो। मैं आरक्षित जाति का व्यक्ति नहीं हूं।’

मेरे मुंह से इस अप्रत्याशित रहस्योद्घाटन को सुनते ही वर्माजी भौचक्के रह गए, लेकिन तुरन्त संभलकर बोले, ‘तभी मैं सोच रहा था कि तुम अब तक ऐसी बहकी-बहकी बातें क्यों कर रहे थे। अपने ही खिलाफ तुम हमको सलाह कैसे दे सकते हैं। मैं अभी जाकर सबको बताता हूँ कि तुम आरक्षण विरोधियों के भेदिये हो और हमें बेवकूफ बनाने के लिए अपने नाम के आगे अपनी जाति सूचक सरनेम नहीं लगा रहे हो।’

यह कहते हुए वर्मा जी उठ खड़े हुए और मन ही मन गाली बकते हुए अपनी जाति के आरक्षण समर्थकों के पास अपनी भड़ास निकालने निकल पड़े।

COMMENTS

BLOGGER
नाम

 आलेख ,1, कविता ,1, कहानी ,1, व्यंग्य ,1,14 सितम्बर,7,14 september,6,15 अगस्त,4,2 अक्टूबर अक्तूबर,1,अंजनी श्रीवास्तव,1,अंजली काजल,1,अंजली देशपांडे,1,अंबिकादत्त व्यास,1,अखिलेश कुमार भारती,1,अखिलेश सोनी,1,अग्रसेन,1,अजय अरूण,1,अजय वर्मा,1,अजित वडनेरकर,1,अजीत प्रियदर्शी,1,अजीत भारती,1,अनंत वडघणे,1,अनन्त आलोक,1,अनमोल विचार,1,अनामिका,3,अनामी शरण बबल,1,अनिमेष कुमार गुप्ता,1,अनिल कुमार पारा,1,अनिल जनविजय,1,अनुज कुमार आचार्य,5,अनुज कुमार आचार्य बैजनाथ,1,अनुज खरे,1,अनुपम मिश्र,1,अनूप शुक्ल,14,अपर्णा शर्मा,6,अभिमन्यु,1,अभिषेक ओझा,1,अभिषेक कुमार अम्बर,1,अभिषेक मिश्र,1,अमरपाल सिंह आयुष्कर,2,अमरलाल हिंगोराणी,1,अमित शर्मा,3,अमित शुक्ल,1,अमिय बिन्दु,1,अमृता प्रीतम,1,अरविन्द कुमार खेड़े,5,अरूण देव,1,अरूण माहेश्वरी,1,अर्चना चतुर्वेदी,1,अर्चना वर्मा,2,अर्जुन सिंह नेगी,1,अविनाश त्रिपाठी,1,अशोक गौतम,3,अशोक जैन पोरवाल,14,अशोक शुक्ल,1,अश्विनी कुमार आलोक,1,आई बी अरोड़ा,1,आकांक्षा यादव,1,आचार्य बलवन्त,1,आचार्य शिवपूजन सहाय,1,आजादी,3,आत्मकथा,1,आदित्य प्रचंडिया,1,आनंद टहलरामाणी,1,आनन्द किरण,3,आर. के. नारायण,1,आरकॉम,1,आरती,1,आरिफा एविस,5,आलेख,4288,आलोक कुमार,3,आलोक कुमार सातपुते,1,आवश्यक सूचना!,1,आशीष कुमार त्रिवेदी,5,आशीष श्रीवास्तव,1,आशुतोष,1,आशुतोष शुक्ल,1,इंदु संचेतना,1,इन्दिरा वासवाणी,1,इन्द्रमणि उपाध्याय,1,इन्द्रेश कुमार,1,इलाहाबाद,2,ई-बुक,374,ईबुक,231,ईश्वरचन्द्र,1,उपन्यास,269,उपासना,1,उपासना बेहार,5,उमाशंकर सिंह परमार,1,उमेश चन्द्र सिरसवारी,2,उमेशचन्द्र सिरसवारी,1,उषा छाबड़ा,1,उषा रानी,1,ऋतुराज सिंह कौल,1,ऋषभचरण जैन,1,एम. एम. चन्द्रा,17,एस. एम. चन्द्रा,2,कथासरित्सागर,1,कर्ण,1,कला जगत,113,कलावंती सिंह,1,कल्पना कुलश्रेष्ठ,11,कवि,2,कविता,3239,कहानी,2360,कहानी संग्रह,247,काजल कुमार,7,कान्हा,1,कामिनी कामायनी,5,कार्टून,7,काशीनाथ सिंह,2,किताबी कोना,7,किरन सिंह,1,किशोरी लाल गोस्वामी,1,कुंवर प्रेमिल,1,कुबेर,7,कुमार करन मस्ताना,1,कुसुमलता सिंह,1,कृश्न चन्दर,6,कृष्ण,3,कृष्ण कुमार यादव,1,कृष्ण खटवाणी,1,कृष्ण जन्माष्टमी,5,के. पी. सक्सेना,1,केदारनाथ सिंह,1,कैलाश मंडलोई,3,कैलाश वानखेड़े,1,कैशलेस,1,कैस जौनपुरी,3,क़ैस जौनपुरी,1,कौशल किशोर श्रीवास्तव,1,खिमन मूलाणी,1,गंगा प्रसाद श्रीवास्तव,1,गंगाप्रसाद शर्मा गुणशेखर,1,ग़ज़लें,550,गजानंद प्रसाद देवांगन,2,गजेन्द्र नामदेव,1,गणि राजेन्द्र विजय,1,गणेश चतुर्थी,1,गणेश सिंह,4,गांधी जयंती,1,गिरधारी राम,4,गीत,3,गीता दुबे,1,गीता सिंह,1,गुंजन शर्मा,1,गुडविन मसीह,2,गुनो सामताणी,1,गुरदयाल सिंह,1,गोरख प्रभाकर काकडे,1,गोवर्धन यादव,1,गोविन्द वल्लभ पंत,1,गोविन्द सेन,5,चंद्रकला त्रिपाठी,1,चंद्रलेखा,1,चतुष्पदी,1,चन्द्रकिशोर जायसवाल,1,चन्द्रकुमार जैन,6,चाँद पत्रिका,1,चिकित्सा शिविर,1,चुटकुला,71,ज़कीया ज़ुबैरी,1,जगदीप सिंह दाँगी,1,जयचन्द प्रजापति कक्कूजी,2,जयश्री जाजू,4,जयश्री राय,1,जया जादवानी,1,जवाहरलाल कौल,1,जसबीर चावला,1,जावेद अनीस,8,जीवंत प्रसारण,141,जीवनी,1,जीशान हैदर जैदी,1,जुगलबंदी,5,जुनैद अंसारी,1,जैक लंडन,1,ज्ञान चतुर्वेदी,2,ज्योति अग्रवाल,1,टेकचंद,1,ठाकुर प्रसाद सिंह,1,तकनीक,32,तक्षक,1,तनूजा चौधरी,1,तरुण भटनागर,1,तरूण कु सोनी तन्वीर,1,ताराशंकर बंद्योपाध्याय,1,तीर्थ चांदवाणी,1,तुलसीराम,1,तेजेन्द्र शर्मा,2,तेवर,1,तेवरी,8,त्रिलोचन,8,दामोदर दत्त दीक्षित,1,दिनेश बैस,6,दिलबाग सिंह विर्क,1,दिलीप भाटिया,1,दिविक रमेश,1,दीपक आचार्य,48,दुर्गाष्टमी,1,देवी नागरानी,20,देवेन्द्र कुमार मिश्रा,2,देवेन्द्र पाठक महरूम,1,दोहे,1,धर्मेन्द्र निर्मल,2,धर्मेन्द्र राजमंगल,1,नइमत गुलची,1,नजीर नज़ीर अकबराबादी,1,नन्दलाल भारती,2,नरेंद्र शुक्ल,2,नरेन्द्र कुमार आर्य,1,नरेन्द्र कोहली,2,नरेन्‍द्रकुमार मेहता,9,नलिनी मिश्र,1,नवदुर्गा,1,नवरात्रि,1,नागार्जुन,1,नाटक,152,नामवर सिंह,1,निबंध,3,नियम,1,निर्मल गुप्ता,2,नीतू सुदीप्ति ‘नित्या’,1,नीरज खरे,1,नीलम महेंद्र,1,नीला प्रसाद,1,पंकज प्रखर,4,पंकज मित्र,2,पंकज शुक्ला,1,पंकज सुबीर,3,परसाई,1,परसाईं,1,परिहास,4,पल्लव,1,पल्लवी त्रिवेदी,2,पवन तिवारी,2,पाक कला,23,पाठकीय,62,पालगुम्मि पद्मराजू,1,पुनर्वसु जोशी,9,पूजा उपाध्याय,2,पोपटी हीरानंदाणी,1,पौराणिक,1,प्रज्ञा,1,प्रताप सहगल,1,प्रतिभा,1,प्रतिभा सक्सेना,1,प्रदीप कुमार,1,प्रदीप कुमार दाश दीपक,1,प्रदीप कुमार साह,11,प्रदोष मिश्र,1,प्रभात दुबे,1,प्रभु चौधरी,2,प्रमिला भारती,1,प्रमोद कुमार तिवारी,1,प्रमोद भार्गव,2,प्रमोद यादव,14,प्रवीण कुमार झा,1,प्रांजल धर,1,प्राची,367,प्रियंवद,2,प्रियदर्शन,1,प्रेम कहानी,1,प्रेम दिवस,2,प्रेम मंगल,1,फिक्र तौंसवी,1,फ्लेनरी ऑक्नर,1,बंग महिला,1,बंसी खूबचंदाणी,1,बकर पुराण,1,बजरंग बिहारी तिवारी,1,बरसाने लाल चतुर्वेदी,1,बलबीर दत्त,1,बलराज सिंह सिद्धू,1,बलूची,1,बसंत त्रिपाठी,2,बातचीत,2,बाल उपन्यास,6,बाल कथा,356,बाल कलम,26,बाल दिवस,4,बालकथा,80,बालकृष्ण भट्ट,1,बालगीत,20,बृज मोहन,2,बृजेन्द्र श्रीवास्तव उत्कर्ष,1,बेढब बनारसी,1,बैचलर्स किचन,1,बॉब डिलेन,1,भरत त्रिवेदी,1,भागवत रावत,1,भारत कालरा,1,भारत भूषण अग्रवाल,1,भारत यायावर,2,भावना राय,1,भावना शुक्ल,5,भीष्म साहनी,1,भूतनाथ,1,भूपेन्द्र कुमार दवे,1,मंजरी शुक्ला,2,मंजीत ठाकुर,1,मंजूर एहतेशाम,1,मंतव्य,1,मथुरा प्रसाद नवीन,1,मदन सोनी,1,मधु त्रिवेदी,2,मधु संधु,1,मधुर नज्मी,1,मधुरा प्रसाद नवीन,1,मधुरिमा प्रसाद,1,मधुरेश,1,मनीष कुमार सिंह,4,मनोज कुमार,6,मनोज कुमार झा,5,मनोज कुमार पांडेय,1,मनोज कुमार श्रीवास्तव,2,मनोज दास,1,ममता सिंह,2,मयंक चतुर्वेदी,1,महापर्व छठ,1,महाभारत,2,महावीर प्रसाद द्विवेदी,1,महाशिवरात्रि,1,महेंद्र भटनागर,3,महेन्द्र देवांगन माटी,1,महेश कटारे,1,महेश कुमार गोंड हीवेट,2,महेश सिंह,2,महेश हीवेट,1,मानसून,1,मार्कण्डेय,1,मिलन चौरसिया मिलन,1,मिलान कुन्देरा,1,मिशेल फूको,8,मिश्रीमल जैन तरंगित,1,मीनू पामर,2,मुकेश वर्मा,1,मुक्तिबोध,1,मुर्दहिया,1,मृदुला गर्ग,1,मेराज फैज़ाबादी,1,मैक्सिम गोर्की,1,मैथिली शरण गुप्त,1,मोतीलाल जोतवाणी,1,मोहन कल्पना,1,मोहन वर्मा,1,यशवंत कोठारी,8,यशोधरा विरोदय,2,यात्रा संस्मरण,31,योग,3,योग दिवस,3,योगासन,2,योगेन्द्र प्रताप मौर्य,1,योगेश अग्रवाल,2,रक्षा बंधन,1,रच,1,रचना समय,72,रजनीश कांत,2,रत्ना राय,1,रमेश उपाध्याय,1,रमेश राज,26,रमेशराज,8,रवि रतलामी,2,रवींद्र नाथ ठाकुर,1,रवीन्द्र अग्निहोत्री,4,रवीन्द्र नाथ त्यागी,1,रवीन्द्र संगीत,1,रवीन्द्र सहाय वर्मा,1,रसोई,1,रांगेय राघव,1,राकेश अचल,3,राकेश दुबे,1,राकेश बिहारी,1,राकेश भ्रमर,5,राकेश मिश्र,2,राजकुमार कुम्भज,1,राजन कुमार,2,राजशेखर चौबे,6,राजीव रंजन उपाध्याय,11,राजेन्द्र कुमार,1,राजेन्द्र विजय,1,राजेश कुमार,1,राजेश गोसाईं,2,राजेश जोशी,1,राधा कृष्ण,1,राधाकृष्ण,1,राधेश्याम द्विवेदी,5,राम कृष्ण खुराना,6,राम शिव मूर्ति यादव,1,रामचंद्र शुक्ल,1,रामचन्द्र शुक्ल,1,रामचरन गुप्त,5,रामवृक्ष सिंह,10,रावण,1,राहुल कुमार,1,राहुल सिंह,1,रिंकी मिश्रा,1,रिचर्ड फाइनमेन,1,रिलायंस इन्फोकाम,1,रीटा शहाणी,1,रेंसमवेयर,1,रेणु कुमारी,1,रेवती रमण शर्मा,1,रोहित रुसिया,1,लक्ष्मी यादव,6,लक्ष्मीकांत मुकुल,2,लक्ष्मीकांत वैष्णव,1,लखमी खिलाणी,1,लघु कथा,288,लघुकथा,1340,लघुकथा लेखन पुरस्कार आयोजन,241,लतीफ घोंघी,1,ललित ग,1,ललित गर्ग,13,ललित निबंध,20,ललित साहू जख्मी,1,ललिता भाटिया,2,लाल पुष्प,1,लावण्या दीपक शाह,1,लीलाधर मंडलोई,1,लू सुन,1,लूट,1,लोक,1,लोककथा,378,लोकतंत्र का दर्द,1,लोकमित्र,1,लोकेन्द्र सिंह,3,विकास कुमार,1,विजय केसरी,1,विजय शिंदे,1,विज्ञान कथा,79,विद्यानंद कुमार,1,विनय भारत,1,विनीत कुमार,2,विनीता शुक्ला,3,विनोद कुमार दवे,4,विनोद तिवारी,1,विनोद मल्ल,1,विभा खरे,1,विमल चन्द्राकर,1,विमल सिंह,1,विरल पटेल,1,विविध,1,विविधा,1,विवेक प्रियदर्शी,1,विवेक रंजन श्रीवास्तव,5,विवेक सक्सेना,1,विवेकानंद,1,विवेकानन्द,1,विश्वंभर नाथ शर्मा कौशिक,2,विश्वनाथ प्रसाद तिवारी,1,विष्णु नागर,1,विष्णु प्रभाकर,1,वीणा भाटिया,15,वीरेन्द्र सरल,10,वेणीशंकर पटेल ब्रज,1,वेलेंटाइन,3,वेलेंटाइन डे,2,वैभव सिंह,1,व्यंग्य,2075,व्यंग्य के बहाने,2,व्यंग्य जुगलबंदी,17,व्यथित हृदय,2,शंकर पाटील,1,शगुन अग्रवाल,1,शबनम शर्मा,7,शब्द संधान,17,शम्भूनाथ,1,शरद कोकास,2,शशांक मिश्र भारती,8,शशिकांत सिंह,12,शहीद भगतसिंह,1,शामिख़ फ़राज़,1,शारदा नरेन्द्र मेहता,1,शालिनी तिवारी,8,शालिनी मुखरैया,6,शिक्षक दिवस,6,शिवकुमार कश्यप,1,शिवप्रसाद कमल,1,शिवरात्रि,1,शिवेन्‍द्र प्रताप त्रिपाठी,1,शीला नरेन्द्र त्रिवेदी,1,शुभम श्री,1,शुभ्रता मिश्रा,1,शेखर मलिक,1,शेषनाथ प्रसाद,1,शैलेन्द्र सरस्वती,3,शैलेश त्रिपाठी,2,शौचालय,1,श्याम गुप्त,3,श्याम सखा श्याम,1,श्याम सुशील,2,श्रीनाथ सिंह,6,श्रीमती तारा सिंह,2,श्रीमद्भगवद्गीता,1,श्रृंगी,1,श्वेता अरोड़ा,1,संजय दुबे,4,संजय सक्सेना,1,संजीव,1,संजीव ठाकुर,2,संद मदर टेरेसा,1,संदीप तोमर,1,संपादकीय,3,संस्मरण,730,संस्मरण लेखन पुरस्कार 2018,128,सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन,1,सतीश कुमार त्रिपाठी,2,सपना महेश,1,सपना मांगलिक,1,समीक्षा,847,सरिता पन्थी,1,सविता मिश्रा,1,साइबर अपराध,1,साइबर क्राइम,1,साक्षात्कार,21,सागर यादव जख्मी,1,सार्थक देवांगन,2,सालिम मियाँ,1,साहित्य समाचार,98,साहित्यम्,6,साहित्यिक गतिविधियाँ,216,साहित्यिक बगिया,1,सिंहासन बत्तीसी,1,सिद्धार्थ जगन्नाथ जोशी,1,सी.बी.श्रीवास्तव विदग्ध,1,सीताराम गुप्ता,1,सीताराम साहू,1,सीमा असीम सक्सेना,1,सीमा शाहजी,1,सुगन आहूजा,1,सुचिंता कुमारी,1,सुधा गुप्ता अमृता,1,सुधा गोयल नवीन,1,सुधेंदु पटेल,1,सुनीता काम्बोज,1,सुनील जाधव,1,सुभाष चंदर,1,सुभाष चन्द्र कुशवाहा,1,सुभाष नीरव,1,सुभाष लखोटिया,1,सुमन,1,सुमन गौड़,1,सुरभि बेहेरा,1,सुरेन्द्र चौधरी,1,सुरेन्द्र वर्मा,62,सुरेश चन्द्र,1,सुरेश चन्द्र दास,1,सुविचार,1,सुशांत सुप्रिय,4,सुशील कुमार शर्मा,24,सुशील यादव,6,सुशील शर्मा,16,सुषमा गुप्ता,20,सुषमा श्रीवास्तव,2,सूरज प्रकाश,1,सूर्य बाला,1,सूर्यकांत मिश्रा,14,सूर्यकुमार पांडेय,2,सेल्फी,1,सौमित्र,1,सौरभ मालवीय,4,स्नेहमयी चौधरी,1,स्वच्छ भारत,1,स्वतंत्रता दिवस,3,स्वराज सेनानी,1,हबीब तनवीर,1,हरि भटनागर,6,हरि हिमथाणी,1,हरिकांत जेठवाणी,1,हरिवंश राय बच्चन,1,हरिशंकर गजानंद प्रसाद देवांगन,4,हरिशंकर परसाई,23,हरीश कुमार,1,हरीश गोयल,1,हरीश नवल,1,हरीश भादानी,1,हरीश सम्यक,2,हरे प्रकाश उपाध्याय,1,हाइकु,5,हाइगा,1,हास-परिहास,38,हास्य,59,हास्य-व्यंग्य,78,हिंदी दिवस विशेष,9,हुस्न तबस्सुम 'निहाँ',1,biography,1,dohe,3,hindi divas,6,hindi sahitya,1,indian art,1,kavita,3,review,1,satire,1,shatak,3,tevari,3,undefined,1,
ltr
item
रचनाकार: हनुमान मुक्त की 2 रचनाएँ
हनुमान मुक्त की 2 रचनाएँ
http://lh6.ggpht.com/-XMSmL4npp6w/U28-4CbuoUI/AAAAAAAAYOU/MfX5RqEyHgQ/image_thumb%25255B3%25255D.png?imgmax=200
http://lh6.ggpht.com/-XMSmL4npp6w/U28-4CbuoUI/AAAAAAAAYOU/MfX5RqEyHgQ/s72-c/image_thumb%25255B3%25255D.png?imgmax=200
रचनाकार
https://www.rachanakar.org/2017/05/2.html
https://www.rachanakar.org/
https://www.rachanakar.org/
https://www.rachanakar.org/2017/05/2.html
true
15182217
UTF-8
Loaded All Posts Not found any posts VIEW ALL Readmore Reply Cancel reply Delete By Home PAGES POSTS View All RECOMMENDED FOR YOU LABEL ARCHIVE SEARCH ALL POSTS Not found any post match with your request Back Home Sunday Monday Tuesday Wednesday Thursday Friday Saturday Sun Mon Tue Wed Thu Fri Sat January February March April May June July August September October November December Jan Feb Mar Apr May Jun Jul Aug Sep Oct Nov Dec just now 1 minute ago $$1$$ minutes ago 1 hour ago $$1$$ hours ago Yesterday $$1$$ days ago $$1$$ weeks ago more than 5 weeks ago Followers Follow THIS PREMIUM CONTENT IS LOCKED STEP 1: Share to a social network STEP 2: Click the link on your social network Copy All Code Select All Code All codes were copied to your clipboard Can not copy the codes / texts, please press [CTRL]+[C] (or CMD+C with Mac) to copy Table of Content