प्राची-अप्रैल 2017–हास्य-व्यंग्य विशेषांक : व्यंग्य / सेल्फी का भूत / वीरेन्द्र ‘सरल’

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ना रायण-नारायण की आवाज सुनकर प्रभु की तन्द्रा भंग हुई. वे शेषसैया से उठकर बैठते हुए स्वागत की मुद्रा में बोले- ‘‘आइये देवर्षि, आइये. बहुत दि...

नारायण-नारायण की आवाज सुनकर प्रभु की तन्द्रा भंग हुई. वे शेषसैया से उठकर बैठते हुए स्वागत की मुद्रा में बोले- ‘‘आइये देवर्षि, आइये. बहुत दिनों के बाद भ्रष्टाचारियों के बीच किसी ईमानदार ऑफिसर की तरह नजर आ रहे हो. हम तो समझ रहे थे कि आपका भाव भी अरहर दाल की तरह बढ़ गया है. तभी नजर नहीं आ रहे हैं. मगर आज हमारा भ्रम टूट गया है. बहुत अच्छा लगा आपके आने पर हमें. क्या बात है आपका चेहरा तो नेताओं के भाग्य की तरह चमक रहा है. सिर पर काले घुंघराले बालों की चोटी देखकर तो ऐसा लग रहा है मानो काले धन का खजाना तो यहीं पर है. लगता है आजकल आप कांति सीरीज के सौंदर्य प्रसाधन का इस्तेमाल कर रहे है?’’

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देवर्षि जोरदार ठहाका लगाते हुए बोले- ‘‘प्रभु! मैं तो डर रहा था कि कहीं आप मेरी चोटी को स्विस बैंक ही न कह बैठें. हम तो वैरागी हैं. हमें सौंदर्य प्रसाधन इस्तेमाल करने की क्या आवश्यकता है. एक बार आपके मायाजाल में फँसकर आपसे सुन्दर सूरत जरूर मांग बैठे थे. और आपने हमारा मुँह बन्दर का बनाकर भरी सभा में जो दुर्गति कराई थी उसे याद करके ही कलेजा धक से रह जाता है. हमने तो उसी दिन से कान पकड़कर कसम खा ली है कि अब कभी भी चेहरा सुन्दर बनाने के लोभ में नहीं पड़ेंगे. ये सब तो सांसारिक लोगों के चोंचले हैं. अपने काले कारनामों से दिल पर कालिख पोतते जा रहे हैं और चेहरे पर गोरेपन की क्रीम लगा रहे हैं. लोगों को कौन समझाये, गोरेपन की क्रीम से यदि त्वचा का रंग गोरा हो जाता है तो फिर संसार में किसी को काला ही नहीं होना चाहिए. लोग अपने भैसों पर या काले कुत्ते पर कोई गोरेपन की क्रीम लगाकर स्वयं देख लें तो सारी असलियत सामने आ जायेगी. पता नहीं श्वेत-अश्वेत का चक्कर किस सिरफिरे की दिमाग की उपज है. मानवता के नाम पर कलंक यह रंग भेद का समाप्त होना मनुष्यता के लिए बहुत ही आवश्यक है. प्रभु! आप तो व्यंग्य बाण चलाने में दक्ष हैं. आज मैं भी आपके चपेट आ गया. मैं जानता था, बहुत दिनों के बाद आपके पास जाने पर इस तरह के व्यंग्य बाणों का सामना मुुझे करना ही पड़ेगा. आपकी सौम्य मुस्कराहट और शालीन व्यंग्य विनोद से हृदय आह्लादित हो जाता है. प्रभु, अब आप सुनाइये आप कैसे हैं?

प्रभु उसी सौम्य मुस्कराहट के साथ बोले- ‘‘हमारा क्या है देवर्षि! हम तो बस ‘देख तेरे संसार की हालत क्या हो गई भगवान, कितना बदल गया इंसान’ का भजन सुनते हुए मूक दर्शक बने बैठे हैं. इंसान सफलता का सेहरा तो अपने सिर पर बाँधता है और विफलता का ठीकरा हमारे सिर पर फोड़कर अपने कर्तव्यों की इतिश्री कर लेता है. अब आप ही बताइये ऐसी स्थिति में मूकदर्शक बने रहने के सिवाय और क्या किया जा सकता है. हमने इंसान को बुद्धि दी, विवेक दिया, सुनहरा संसार दिया. अपने पास जो कुछ भी था सब दे दिया. इस उम्मीद के साथ कि यह मानव नाम का प्राणी हमारा ही प्रतिरूप सिद्ध होगा. लेकिन आज तो सब कुछ उल्टा-पुल्टा हो रहा है. लोग हमारे ही नाम पर आपस में लड़ मर रहे हैं. मानव
धर्म को छोड़कर सब अपने-अपने धर्मों की ध्वजा उठाये अपने आप को ही सर्वश्रेष्ठ सिद्ध करने पर तुले हुए हैं. बड़ी पीड़ा होती है यह सब देखकर, पर क्या करें? अरे! मैं तो अपनी ही व्यथा कहने लगा. अब आप अपनी कथा भी तो सुनाइये. आखिर बहुत दिनों के बाद आपके पावन चरणों की धूल से मेरा यह आँगन पवित्र हुआ है.’’

देवर्षि बोले- ‘‘प्रभु आप तो जानते हैं. मेरे यह शापित कदम कभी एक जगह ठहरते नहीं हैं. जब तब नेताओं की जुबान की तरह इधर-उधर फिसलते ही रहते हैं. बाद में मुझे भी उनके जैसा ही यू-टर्न लेते हुए कहना पड़ता कि मेरा यहाँ आने का उद्देश्य यह नहीं था. अभी-अभी मैं मृत्यु लोक से भ्रमण करके लौटा हूँ. मैंने लोगों को बात करते सुना कि एक भूत ने आजकल वहाँ आतंक मचा रखा है. लोग लगातार उस भूत बाधा के चपेट में आ रहे हैं. उस भूत के डर से मैं भी वहाँ से भागा हुआ सीधे आपके पास चला आ रहा था पर रास्ते में कुछ यमदूतों के साथ यमराज जी से भी मुलाकात हो गई. यमराज ने बताया कि उस भूत के कारण उसके विभाग पर वर्क लोड काफी बढ़ गया है. बेचारे स्टॉफ की कमी से पहले ही जूझ रहे हैं. ऊपर से यह भूत मुसीबत बनकर उनके पीछे पड़ गया है. यमराज और यमदूतों की हालत बड़ी दयनीय हो गई है प्रभु! मैंने पूछा तो यमराज ने रोते हुए अपनी पीड़ा मुझसे कही. वे कह रहे थे कि देवर्षि आज बड़ी मुश्किल से समय निकाल कर स्थल निरीक्षण हेतु गया था. मुझे शक है कि आबादी नियंत्रण विभाग कहीं ने इस भूत को भारी धनराशि देकर अपने मिशन में तो नहीं लगा लिया है. अब आप ही से आसरा रह गया है यमराज को. यदि आप समय रहते यमराज का उस भूत से पीछा नहीं छुड़ा पाये तो उनका पूरा विभाग सामूहिक इस्तीफा देने का मन बना चुका है.’’

अब प्रभु गंभीर होते हुए बोले- ‘‘मुझे आप से ऐसी उम्मीद नहीं थी देवर्षि. आप जैसे विवेकी वैरागी भी ऐसी दकियानूसी बातों पर विश्वास करने लगे. धिक्कार है आपके विवेक को. कहीं आपने कभी कुत्ता भूत, बिल्ली प्रेत या शेर पिशाच का नाम सुना है, नहीं ना? जब हम मानते हैं कि संसार के सभी जीवों में आत्मा का निवास है तब केवल मनुष्य की आत्मा ही देह छोड़कर भूत बनती होगी. ऐसा सोचना मूर्खता और अंधविश्वास के सिवाय और क्या कहा जा सकता है, आप विवेकी हैं स्वयं सोचिए. इस अंधविश्वास के कारण निर्दोषों पर कितना अत्याचार होता है, यह आप भली-भांति जानते हैं. इन दकियानूसी बातों को जितना जल्दी हो सके, उतना जल्दी अपने दिमाग से निकाल दीजिए देवर्षि, इसी में सबका भला है.’’

देवर्षि सिर झुकाकर बोले- ‘‘प्रभु! आज्ञा हो तो एक बात कहूँ? आपकी बात बिलकुल सही है. मगर मैं एक अजीब उलझन में फँसा हुआ हूँ. लोग जिस भूत-प्रेत की बातें करते हैं उसे आपकी तरह मैं भी अंधविश्वास मानता हूँ और मैं जिस भूत की बात करता हूँ लोग उसे अंधविश्वास मानते हैं. प्रभु! आपको तो पता ही है, मैं प्रसिद्धि के भूत को ही सभी भूतों का सरगना मानता हूँ. प्रसिद्धि का यह भूत जब सिर पर सवार होता है तो मनुष्य के विवेक को खा जाता है. इसी भूत के वशीभूत हो लोग ऊल-जुलूल बयान देते हैं. ऊटपटांग हरकत करते हैं. सार्वजनिक धन को काला बनाकर उस पर सफेद साँप की तरह कुण्डली मारे बैठ जाते हैं. स्वस्थ प्रतियोगिता या खिलाड़ी भावना को दरकिनार करके साम, दाम, दंड, भेद की नीति अपनाकर प्रतियोगिता में विजय प्राप्त कर लेते हैं. ज्यादा कुछ नहीं तो आजकल एक यंत्र आया है, क्या कहते हैं उसे, हाँ याद आया स्मार्टफोन. उस पर इंटरनेट नामक कोई चीज चलाते हैं और व्हाट्सप, फेसबुक पर क्षण-प्रतिक्षण अपना प्रोफाइल फोटो अपडेट करते रहते हैं. ये सब प्रसिद्धि के भूत का कमाल नहीं तो क्या है मृत्यु लोक में लोग शायद किसी सेल्फी...’’

देवर्षि की बातें पूर्ण होने से पहले ही प्रभु कहने लगे, ‘‘सल्फी एक शीतल और मादक पेय होता है देवर्षि जी, जिसे वनवासी लोग सदियों से पीते आ रहे हैं. नशा कोई भूत नहीं होता, यह तो जिस पर चढ़ता है, उसे ही भूत बना देता है. हो सकता है आपने इसी से मिलता-जुलता एक और शब्द सेल फ्री सुन लिया हो. कुछ चीजें विक्रय हेतु नहीं बनायी जातीं, इसे ही सेल फ्री कहते हैं. ये मुफ्त बांटने के लिए होती हैं, जैसे सलाह, आश्वासन, कोई दावा या वादा. इसमें पैसे का लेन-देन नहीं होता, समझ गये.’’

देवर्षि अपनी झल्लाहट दबाकर अपने माथे को सहलाते हुए बोले- ‘‘प्रभु! पहले आप मेरी बात तो पूरी सुन लीजिए, उसके बाद ही चर्चा को आगे बढ़ायें तो बड़ी कृपा होगी. मैं आपको बता रहा था कि मृत्युलोक में लोग किसी सेल्फी नामक भयानक भूत की चर्चा कर रहे थे.’’

प्रभु बोले- ‘‘आप फिर घूम-फिर कर भूत की बात पर आ गये. लगता है आज आपको भूत पर ही बात करने का भूत सवार है. आप पहले ही सेल्फी का भूत कह देते तो मैं आपकी सारी बातें समझ गया होता. मुझे समझाने के लिए आपको इतनी तकलीफ नहीं उठानी पड़ती. सेल्फी का यह भूत भी प्रसिद्धि के भूत का पॉकेट संस्करण है देवर्षि जी. अब आप इसे पॉकेट संस्करण कहो या आधुनिक अवतरण, एक ही बात है. ज्यादातर लोगों में मानवता के कल्याण के लिए अच्छे कार्य करने की कूवत तो रही नहीं. इसीलिए ऐसे लोग ओछे हथकंडे अपनाकर प्रसिद्धि पाने के चक्कर में इस भूत का शिकार होते हैं. मौत के मुहाने पर खड़े होकर सेल्फी लेने वाले महानुभाव लोग शायद सोचते होंगे कि इस सेल्फी के चक्कर में यदि वे वीरगति को प्राप्त हो गये तो शायद उन्हें स्वर्ग लोक में वीरता पदक से सम्मानित किया जायेगा. आखिर अपना चन्द्रमुख दिखाने के लिए ज्वालामुखी के सामने खड़े होने की क्या आवश्यकता है. चित्र को सुन्दर दिखाने के बजाय यदि ये चरित्र को सुन्दर बनाने के लिए कुछ प्रयास करते तो दुनिया ही स्वर्ग बन चुकी होती. पर इन मतिमूढ़ों को कौन समझाये?

सम्पर्कः बोड़रा (मगरलोड)

जिला-धमतरी (छत्तीसगढ़)

मोः 7828243377

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रचनाकार: प्राची-अप्रैल 2017–हास्य-व्यंग्य विशेषांक : व्यंग्य / सेल्फी का भूत / वीरेन्द्र ‘सरल’
प्राची-अप्रैल 2017–हास्य-व्यंग्य विशेषांक : व्यंग्य / सेल्फी का भूत / वीरेन्द्र ‘सरल’
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