ये जानती हूँ मैं ,तू मेरा नहीं है
पर जब भी तुझे देखा,तू अपना सा लगा है
तुझे पाने की चाहत हर पल जनम लेती है
और हर पल टूट जाती है,किसी सपने की तरह
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ये पता है तुझे खोकर हर पल मरूँगी मैं,, पल पल मरूँगी मैं
तभी तो जीना चाहती हूँ, कुछ पल तेरे साथ
तेरी बाँहों में लेना चाहती हूँ, कुछ चैन की साँस
अपनी मरी हुई धड़कनों को, फिर जिन्दा करना चाहती हूँ
पता है तुम्हें,, एक दिन ये चाहत भी मर जायेगी,
,मेरी इन धड़कनों की तरह
न रहेगी कोई आरज़ू, हर चाहत मेरी सो जायेगी
तब तुम सोच लेना आज नहीं हूँ मैं ,,,इस दुनिया में
और मना लेना मातम ,मेरी ख्वाहिशों के मरने का
फिर भी एक बार कहूँगी"" ये चाहत है मेरी ,गर पूरी कर सको तो
देना एक लम्हा मुझे,,तुझे फिर महसूस कर सकूँ,,तुझे फिर बाँहों में भर सकूँ
जबकि ये जानती हूँ मैं कि तू मेरा नहीं है,,मेरा नहीं है,,,,,,
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