प्रतीति (व्यंग्य)-प्रदीप कुमार साह

SHARE:

अपने चारों तरफ घेरा बनाए खड़ी तमाशाई भीड़ को देखते हुए मदारी अपना डमरू जोर-जोर से बजाने लगा. वैसा करते हुए मदारी को जब महसूस हुआ कि सभी तमाशाई...

मीना सिंह की कलाकृति

अपने चारों तरफ घेरा बनाए खड़ी तमाशाई भीड़ को देखते हुए मदारी अपना डमरू जोर-जोर से बजाने लगा. वैसा करते हुए मदारी को जब महसूस हुआ कि सभी तमाशाई का ध्यान उसकी तरफ आकृष्ट हो गया तब जमूरा को संबोधित करते हुए पूछा,"जमूरा, गौर से देखकर बताओ कि हमारे चारों तरफ घेरा बनाए खड़ी यह कैसी भीड़ है?"

मदारी के प्रश्न सुनते ही जमूरा दो पंजे पर खड़ा हो गया और दोनों अगला पंजा को अपने चेहरा से टिका दिया. फिर पंजे के उंगलियों को मोड़कर कुछ पोला-वृत्ताकार अजीब आकृति बनाते हुए और अपनी आँखें अधिक फैलाते हुए उस आकृति को अपनी आँखों के सामने तक ले आया तथा अपना सिर अर्ध-वृताकार परिधि में दो-चार बार अपने दाँया-बाँया घुमाया.

जमूरा के उस अजीबो-गरीब करतब के संबंध में तब मदारी भाष्य किया,"अच्छा, सभी दर्शक हैं." भाष्य-पश्चात मदारी पुनः अपना डमरू बजाने लगा और कुछ समय तक डमरू बजाने के पश्चात पुनः जमुरा से प्रश्न किया," किंतु वह सब देखना क्या चाहते हैं?" तब जमूरा एक-दो बार अपनी जगह पर कूद-कूदकर संकेत किया कि वह सब खेल देखने के इच्छुक हैं.

तब मदारी बोला,"साहब लोगों, अभी-अभी जमूरा बताया कि आप सभी दर्शक-दीर्घा हैं और जमूरा के करतब देखने के इच्छुक हैं. यदि वह तथ्य बिलकुल सत्य है तब करतल ध्वनि से कृपया जमूरा का प्रोत्साहन कीजिए." मदारी के आग्रह पर सभी जमकर करतल ध्वनि उत्पन्न किये. जमूरा का उत्साहवर्धन करने पर मदारी ने सबका धन्यवाद व्यक्त किया.

अब डमरू बजाते हुए मदारी जमूरा से पूछा,"जमूरा, सभी दर्शक तुम्हारे उत्साह वर्धन हेतु प्रयत्न किये, अब तो अपना करतब उन्हें दिखाओगे न?" जमूरा अपना सिर हिलाकर अपनी सहमति का संकेत किया. तब मदारी अधिकाधिक तेज आवाज में अपना डमरू बजाते हुए बोला,"साहब लोगों, जमूरा अपना करतब दिखाने तैयार है तो पुनः हो जाये जोरदार करतल-ध्वनि."

मदारी के वैसा कहते ही जोरदार सामूहिक करतल ध्वनि हुई. तब मदारी बोला,"मेहरवान-कद्रदान, जमूरा दर्शक को अपना करतब दिखाता है क्योंकि उसे भी मालूम है कि लोगों को कुछ वैसा प्रतीति कराया जाये जो रोजमर्रा से विचलित उनके मन को शांत करा सके. सबके मन को सुख और प्रसन्नता की अनुभूति हो. तत्पश्चात उसे भी पारिश्रमिक का लाभ प्राप्ति हो."

थोड़ा ठहर कर मदारी पुनः बोला,"दर्शक और पाठक भी सदैव उदार, साहसी और संयमी होते हैं तथा अच्छा-बुरा के परीक्षण में सदैव समर्थ होते हैं. पुनः वह एक भीड़ मात्र के रूप कदापि नहीं होते, क्योंकि वह मूलतः सामान्यजन उर्फ़ जनता-जनार्दन हैं. पुनः प्रत्येक सामान्यजन एक कर्तव्य निष्ठ नागरिक के साथ-साथ एक दर्शक-परीक्षक भी हैं जिनकी नजर से कुछ भी छिपता नहीं है."

वैसा कथन कहने के पश्चात मदारी जोर-जोर से डमरू बजाने लगा. थोड़ी देर तक डमरू बजाते रहने के पश्चात पुनः बोला,"मेहरबान-कद्रदान साहब-लोगों, उक्त विचार से जो सहमत होते हैं और अपना पारिश्रमिक लाभ ईमानदारी से प्राप्त करते हैं, वह संभवत: जमूरा कहलाता है. वह पारिश्रमिक प्राप्ति हेतु छल-बल प्रयोग से गलत प्रतीति करवाने के भ्रमित पथ पर कदापि अग्रसित नहीं होते.

वह सदैव उस तथ्य को अमल में लाते हैं कि रहो सीधा-सदा, निभाओ बाप-दादा. वह किसी सुयोग्य पतित की भाँति प्राणहरण-भय की प्रतीति कराते नहीं फिरता. संभवत: भयादोहन करना उसके प्रकृतिनुरूपक पेशा नहीं हैं. अपितु पतितपावन के नर-वेश में निर्बाध विचरण करते हुए संभवतः संपूर्ण जगत को जन्म-मृत्यु-मोक्ष के भवबंधन के भवभय से स्वांगवश भी अवगत कराते नहीं!"

"मदारी, यह अनाप-शनाप क्या बके जा रहे हो?"तभी किसी दर्शक ने मदारी को टोका. तब मदारी बोला,"साहब लोगों, यह किसी मदारी द्वारा कल्पित कथन नहीं है, बल्कि वह सांसारिक वास्तविकता है जो सदियों से स्वयं दृष्टिगोचर है. संसार में एकमात्र जमूरा का वह अधिकार है कि वह ईमानदारी से पारिश्रमिक अर्जित करे. पुनः अपने कर्तव्यपालन में वह कभी मर्यादाहीन नजर भी नहीं आता."

तत्पश्चात डमरू बजाते हुए मदारी पुनः बोला,"वैसे तो वह तथ्य स्वयंसिद्ध ही है कि सच्चाई, कर्तव्यनिष्ठा इत्यादि वृहत सद्गुण के अनुपालन का एकमात्र अधिकारी जमूरा है, चाहे वह किसी भी स्वरूप में हो. वह स्वरूप किसी माता-पिता का हो सकता है जो आजीवन तो अपने संतान के हित संरक्षण में तत्पर रहते हैं किंतु अपनी वृद्धावस्था उन्हें संतान से उपेक्षित रहकर गुजारने पड़ते हैं.

वह कृषि-कर्मरत अन्नदाता कृषक, मजदूर या राष्ट्रीय सुरक्षा में तत्पर सैन्य बल अथवा वर्तमान में कुछेक शिक्षक, डॉक्टर, इंजीनियर, व्यापारी इत्यादि के स्वरूप भी में हो सकते हैं. वह संसार संचालन के मजबूत आधार तो नि:संदेह हैं, किंतु उसके भाव सदैव मामूली प्रतीत होते हैं. जैसे प्रेम-भाव से संपूर्ण संसार का मजबूती से समन्वय होता है किंतु उसका मान्य भाव पतला-धागा तुल्य निर्धारित है.

तथापि प्रेम के संबंध में उपरोक्त तथ्य से वाकिफ रहने के पश्चात भी रोजमर्रा के व्यक्तिगत कार्य निपटाते हुए कभी प्रेम नामक निरीह चीज-वस्तु की चिंता कभी नहीं व्यापता. वास्तव में हमारा अटल विश्वास उस निरीह वस्तु पर अधिकाधिक आश्रित है और वह कभी हमारा विश्वासघात नहीं करता. वह सिलसिला सदियों से अनवरत जारी है. निःसंदेह तब जमूरा उसी श्रेणी का कोई प्राणी है.

किंतु सामान्यजन को अपनी उस कमजोरी पर तनिक भी लज्जा अथवा क्षोभ नहीं आना चाहिये. उस परिस्थिति से निवृत्ति हेतु थ्री इडियट के मुख्य किरदार के वक्तव्य से कुछ सीख लेनी चाहिये कि अपना दिल भी न स्वभाव से बड़ा डरपोक होता है, बात-बेबात डरता रहता है. इसलिये दिल को हमेशा समझाना चाहिये कि ऑल इज वेल. पुनः दिल तो बच्चा है सरीखे नगमा गुनगुनाना भी कामयाबी दे सकता है.

नाना पाटिकर के डॉयलॉग तो याद हैं न कि सौ में अस्सी बेईमान, फिर भी मेरा देश महान? डॉयलॉग को दुहराने से तत्समय मन के क्षोभ निःसंदेह काफूर हो जायेंगे. होकर मजबूर मैं चला जैसे सदाबहार नगमे पुनः भुलाया जा नहीं सकता. उसे गुनगुनाते हुए प्रतीति कीजिए कि मानसिक क्षोभ के संसार से आप शीघ्रता से बाहर आ रहें हैं. संभवतः अब कामयाबी आपके कदम में लोटपोट रही होगी.

श्रीमानों, यदि अब भी संदेह हो कि इतने उपाय के बावजूद मानसिक ताप से कदाचित निवृत्ति नहीं पाया जा सकता और बात प्रतीति करने-करवाने से संबंधित ही चल पड़ी है तब एक कारगर उपाय बताना अभी शेष है. किंतु उपाय से पहले यह जानना अधिक उचित होगा कि प्रतीति क्या चीज-वस्तु है? किंतु आदिकाल से अनेक ग्रंथ उसकी महत्तादि बताते-बताते अंतत: नेति-नेति कहने-रटने लगे.

तब उसके स्थूल रूप पर ही विचार हो!...तो उसके शाब्दिक आकार लघु हैं. श्रवण में वह पूर्णतः मधुर है. उच्चारण में अतिशय सुकोमल प्रतीत होता है तथा लिंग निर्धारण से वह स्त्रीलिंग है.वह शब्द प्रकृति की प्यारी सखी प्रतीत होता है और उससे प्रकृति के समान ही विस्तृत भाव-बोध होता है. पुनः शब्दों का तुलनात्मक अध्ययन हो और समानार्थी में अंग्रेजी शब्द न हो, वह एक बड़ी भूल नहीं है क्या?"

अपने वक्तव्यांत में प्रश्न चिन्ह का प्रयोग करते हुए मदारी जोर-जोर से अपना डमरू बजाने लगा. किंतु कुछ समय तक डमरू बजाने के पश्चात स्वयं ही अगले वक्तव्य से शनैः शनैः उस रहस्य से पर्दा भी उठाने लगा,"तो, फीलिंग-परसेप्शन इत्यादि अंग्रेजी शब्द को प्रतीति या प्रतीति करना के समानार्थी समझ सकते हैं, परंतु 'प्रतीति कराना' वास्ते 'फील गुड' शब्द एकमात्र उपयुक्त समानार्थी प्रतीत होता है.

किंतु उस शब्द से जमूरा सदैव अनभिज्ञ होता है, क्योंकि वह शब्द जनप्रतिनिधि और कुछेक पत्रकार के शब्दकोश ही में उपलब्ध हैं जिसका प्रयोग करना भी वह ही बखूबी जानते हैं. प्रमाणतः वर्षो से कश्मीर में कुछ समस्याएं हैं. किंतु आजादी प्राप्ति के सात दशक तक देश को कश्मीर समस्या के कारण का पता नहीं चला. वह तो धन्य है कि सरकार मुफ़्ती द्वारा देश के समक्ष महती रहस्योद्घाटन हुआ.

खैर, जब देश को वह रहस्य पता चल ही चुका है कि कश्मीर समस्या आतंकी सरगनाओं की शरण स्थली पाकिस्तान के बड़े भाई चीन द्वारा प्रायोजित है, तब समस्या का उपचार भी निःसन्देह संभव है. जैसे महीने से राज्य में शांति-व्यवस्था कायम रखने में अक्षम पड़ी ममता सरकार को तभी यह महसूस हुआ कि उसके राज्य में भी चीन प्रायोजित अस्थिरता है और वह शांति-व्यवस्था बहाली में सक्षम हुई.

अभी मीडिया में इस विषय पर भी चर्चा जोर-शोर से चल रही है कि भारत पर चीन प्रायोजित पानी बम का अटैक हुआ है और भारत का एक सूबा उससे बुरी तरह प्रभावित है. यह दीगर बात है कि ठीक तभी चीन के प्रायोजित पानी बम अटैक की पहुँच से दूर सूबा-ए-बिहार भी अप्रायोजित भीषण बाढ से बुरी तरह प्रभावित है. यह तथ्य भी दीगर है कि वहाँ तभी अन्य कारणवश सूबा के सत्तापक्ष-विपक्ष परेशान हैं.

उत्तर प्रदेश में खतौली के पास कलिंग उत्कल एक्सप्रेस पटरी से उतर गई. प्रारंभिक जांच में पता चला कि ट्रेन के ड्राइवर को ट्रैक की मरम्मत की जानकारी नहीं देने की लापरवाही थी. किंतु साथ-साथ यह कयास भी लगाया जाता रहा कि ट्रेन हादसा के पीछे आतंकी के हाथ हो सकते हैं. दुर्घटनास्थल से हथौड़ा, रिंच-पाना मिलने से संबंधित खबर सुनकर तो सामान्य जन-मानस अजीब-अजीब कयास लगाये.

कहने लगे कि चीन समर्थित होने से अब आतंकियों के तौर-तरीका भी बदलकर किफायती और अधिक घातक हो गये. अब वह गोला-बारूद की जगह प्राथमिकता से थोड़ा सा धन खर्चकर और थोड़ी सी भावनात्मक लगाव की झाँसा देकर कुछेक भारतीय को बहकाते हैं. फिर, उससे हथौड़ा मारवा-मारवाकर रेल पटरी उड़ाते हैं. उससे कम खर्च में अधिकाधिक भारतीय जान-माल का नुकसान होता है.

खैर, यह दीगर बात है कि देश में व्याप्त नौकरशाही भी उसी नक्शे कदम पर चलता हुआ प्रतीत होता है और ऑक्सीजन की कमी से गोरखपुर में देश के साठ-सतर नौनिहाल को असमय ही संसार से अलविदा कहना पड़ता है. दूसरी तरफ तभी डेरा प्रमुख राम रहीम की चरण पादुका बनी नौकरशाही हरियाणा राज्य भी में असमय ही साठ लोगों की जीवन लीला लीलने में सहायक-भूमिका में नजर आती है.

अब छोड़िये भी जनाब! मेरे देश भारत में तो रोज भिन्न-भिन्न मुद्दे पर चर्चा में प्रति घँटा समस्या का समाधान रहित निष्कर्ष निकलते हैं. तब देशवासी को महती तरस भी आता है, किंतु उस तरस का केंद्र-बिंदु तो केवल राष्ट्रीय राजकुमार तक सीमित होती है. किंतु जनसामान्य और नेतागीरी की हैसियत की प्रतीति तो प्रत्यक्षत: उत्तरप्रदेश के सीधे-सादे स्वास्थ्य मंत्री गोरखपुर दुर्घटना-समय ही में करा पाते हैं.

वर्षों से देश के कई हिस्से उग्रवाद से पीड़ित हैं. यद्यपि देश के गरिमामय संविधान के माकूल वैकल्पिक उस तत्व के पास कुछ भी परिकल्पित संविधान नहीं, तथापि वह दंभ भरते हैं कि देश के संविधान से लोगों का शोषण होता है क्योंकि भ्रष्ट नौकरशाही और लचर राजनैतिक इच्छा-शक्ति उसे पंगु बनाये हैं. तब क्रियान्वयनहीन महती संविधान किस काम का और क्रियान्वयनयुक्त उग्रवादी विचार ही अनुचित क्यों?

किंतु यह तथ्य सदैव अनुत्तरित रहता है कि जब गरिमामय संविधान 'जहाँ बहुपक्ष अपनी-अपनी बात रख सकते हैं' से देश का हित नहीं सधता और वह टालमटोल की रवैया अपनानेवाली नौकरशाही पर नकेल नहीं कस सकता तब एक अपिपक्व अथवा उग्रवादी विचार वह कार्य पूरा कैसे करेगा? तब नौकरशाही खत्म होगी या नौकरी पेशा वर्ग और पद ही? यदि कुछ कानून हुआ तो अनुपालन का तरीका क्या होगा?

सबसे अधिक विचारणीय तथ्य तो यह है कि एक विध्वंसक विचारधारा समाज में सृजनात्मकता कहाँ से लाएगी? सृजनात्मक विचारधारा रहित समाज क्या एक सृजनात्मक-सभ्य-सामाजिक व्यक्ति या समाज अथवा देश का निर्माण कर सकता है? फिर सृजनात्मकता से रहित क्या किसी भी सभ्यता के पर्यायरूप किसी समाज और देश का अस्तित्व हो सकता है? संभवत: तब उग्र विचारधारा समर्थक मौन हो जाए.

किंतु इतना तो स्पष्ट आवश्यक है कि प्रत्येक पंथ और विचारधारा उसके प्रतिनिधि पर आश्रित हैं. फिर एक व्यक्ति प्रतिनिधित्व तभी कर सकता है जब उसके रग में खून की जगह राजनीति दौड़ती हो अर्थात वह दूसरे को फिल गुड कराने में दक्ष या सक्षम हो. तभी देश में वैसी विचारधारा पनपते हैं और विकसित हो पाती हैं. क्योंकि सार्थक जवाब भले उनके पास न हो, किंतु उक्त विचारधारा पनपने के समुचित कारण हैं.

किंतु मेरे मेहरबान-कद्रदान, वैसे सभी तथ्य पर विचार करना छोड़ना ही उचित है. क्योंकि उस तथ्य के विचारण योग्य समझ तो हमें प्राप्त नहीं हैं, न समय. अतः हम प्रथम मुद्दे पर ही वापस आते हैं और जानते हैं कि हमारे पास मानसिक ताप से निवृत्ति का अंतिम उपाय क्या है? एक क्षण अपनी आँखें बंद कीजिए और धारणा कीजिये कि जमूरा ही माता-पिता, हमारे पूर्वज या उनके चिर ऋणी कोई सगा-संबंधी हैं.

पुनः धारणा कीजिए कि इष्ट ने हमारी सुख-सुविधा और भलाई के लिये उनकी अवैतनिक नियुक्ति किये हैं. पुनः कर्तव्यनिष्ठा, सच्चाई इत्यादि वृहत सद्गुण के अनुपालन का एकमात्र अधिभार भी उन्हें ही प्राप्त है. वैसा करना उनका नैतिक कर्तव्य है और उसके प्रतिफल का उपभोग करना तथा उनके विपरीत कर्म करना आपके नैतिक कर्तव्य हैं. सुनिश्चित कीजिए कि आपके दुःख दूर करने हेतु वह बेहद अचूक उपाय हैं.

(समाप्त)

COMMENTS

BLOGGER
नाम

 आलेख ,1, कविता ,1, कहानी ,1, व्यंग्य ,1,14 सितम्बर,7,14 september,6,15 अगस्त,4,2 अक्टूबर अक्तूबर,1,अंजनी श्रीवास्तव,1,अंजली काजल,1,अंजली देशपांडे,1,अंबिकादत्त व्यास,1,अखिलेश कुमार भारती,1,अखिलेश सोनी,1,अग्रसेन,1,अजय अरूण,1,अजय वर्मा,1,अजित वडनेरकर,1,अजीत प्रियदर्शी,1,अजीत भारती,1,अनंत वडघणे,1,अनन्त आलोक,1,अनमोल विचार,1,अनामिका,3,अनामी शरण बबल,1,अनिमेष कुमार गुप्ता,1,अनिल कुमार पारा,1,अनिल जनविजय,1,अनुज कुमार आचार्य,5,अनुज कुमार आचार्य बैजनाथ,1,अनुज खरे,1,अनुपम मिश्र,1,अनूप शुक्ल,14,अपर्णा शर्मा,6,अभिमन्यु,1,अभिषेक ओझा,1,अभिषेक कुमार अम्बर,1,अभिषेक मिश्र,1,अमरपाल सिंह आयुष्कर,2,अमरलाल हिंगोराणी,1,अमित शर्मा,3,अमित शुक्ल,1,अमिय बिन्दु,1,अमृता प्रीतम,1,अरविन्द कुमार खेड़े,5,अरूण देव,1,अरूण माहेश्वरी,1,अर्चना चतुर्वेदी,1,अर्चना वर्मा,2,अर्जुन सिंह नेगी,1,अविनाश त्रिपाठी,1,अशोक गौतम,3,अशोक जैन पोरवाल,14,अशोक शुक्ल,1,अश्विनी कुमार आलोक,1,आई बी अरोड़ा,1,आकांक्षा यादव,1,आचार्य बलवन्त,1,आचार्य शिवपूजन सहाय,1,आजादी,3,आत्मकथा,1,आदित्य प्रचंडिया,1,आनंद टहलरामाणी,1,आनन्द किरण,3,आर. के. नारायण,1,आरकॉम,1,आरती,1,आरिफा एविस,5,आलेख,4288,आलोक कुमार,3,आलोक कुमार सातपुते,1,आवश्यक सूचना!,1,आशीष कुमार त्रिवेदी,5,आशीष श्रीवास्तव,1,आशुतोष,1,आशुतोष शुक्ल,1,इंदु संचेतना,1,इन्दिरा वासवाणी,1,इन्द्रमणि उपाध्याय,1,इन्द्रेश कुमार,1,इलाहाबाद,2,ई-बुक,374,ईबुक,231,ईश्वरचन्द्र,1,उपन्यास,269,उपासना,1,उपासना बेहार,5,उमाशंकर सिंह परमार,1,उमेश चन्द्र सिरसवारी,2,उमेशचन्द्र सिरसवारी,1,उषा छाबड़ा,1,उषा रानी,1,ऋतुराज सिंह कौल,1,ऋषभचरण जैन,1,एम. एम. चन्द्रा,17,एस. एम. चन्द्रा,2,कथासरित्सागर,1,कर्ण,1,कला जगत,113,कलावंती सिंह,1,कल्पना कुलश्रेष्ठ,11,कवि,2,कविता,3239,कहानी,2360,कहानी संग्रह,247,काजल कुमार,7,कान्हा,1,कामिनी कामायनी,5,कार्टून,7,काशीनाथ सिंह,2,किताबी कोना,7,किरन सिंह,1,किशोरी लाल गोस्वामी,1,कुंवर प्रेमिल,1,कुबेर,7,कुमार करन मस्ताना,1,कुसुमलता सिंह,1,कृश्न चन्दर,6,कृष्ण,3,कृष्ण कुमार यादव,1,कृष्ण खटवाणी,1,कृष्ण जन्माष्टमी,5,के. पी. सक्सेना,1,केदारनाथ सिंह,1,कैलाश मंडलोई,3,कैलाश वानखेड़े,1,कैशलेस,1,कैस जौनपुरी,3,क़ैस जौनपुरी,1,कौशल किशोर श्रीवास्तव,1,खिमन मूलाणी,1,गंगा प्रसाद श्रीवास्तव,1,गंगाप्रसाद शर्मा गुणशेखर,1,ग़ज़लें,550,गजानंद प्रसाद देवांगन,2,गजेन्द्र नामदेव,1,गणि राजेन्द्र विजय,1,गणेश चतुर्थी,1,गणेश सिंह,4,गांधी जयंती,1,गिरधारी राम,4,गीत,3,गीता दुबे,1,गीता सिंह,1,गुंजन शर्मा,1,गुडविन मसीह,2,गुनो सामताणी,1,गुरदयाल सिंह,1,गोरख प्रभाकर काकडे,1,गोवर्धन यादव,1,गोविन्द वल्लभ पंत,1,गोविन्द सेन,5,चंद्रकला त्रिपाठी,1,चंद्रलेखा,1,चतुष्पदी,1,चन्द्रकिशोर जायसवाल,1,चन्द्रकुमार जैन,6,चाँद पत्रिका,1,चिकित्सा शिविर,1,चुटकुला,71,ज़कीया ज़ुबैरी,1,जगदीप सिंह दाँगी,1,जयचन्द प्रजापति कक्कूजी,2,जयश्री जाजू,4,जयश्री राय,1,जया जादवानी,1,जवाहरलाल कौल,1,जसबीर चावला,1,जावेद अनीस,8,जीवंत प्रसारण,141,जीवनी,1,जीशान हैदर जैदी,1,जुगलबंदी,5,जुनैद अंसारी,1,जैक लंडन,1,ज्ञान चतुर्वेदी,2,ज्योति अग्रवाल,1,टेकचंद,1,ठाकुर प्रसाद सिंह,1,तकनीक,32,तक्षक,1,तनूजा चौधरी,1,तरुण भटनागर,1,तरूण कु सोनी तन्वीर,1,ताराशंकर बंद्योपाध्याय,1,तीर्थ चांदवाणी,1,तुलसीराम,1,तेजेन्द्र शर्मा,2,तेवर,1,तेवरी,8,त्रिलोचन,8,दामोदर दत्त दीक्षित,1,दिनेश बैस,6,दिलबाग सिंह विर्क,1,दिलीप भाटिया,1,दिविक रमेश,1,दीपक आचार्य,48,दुर्गाष्टमी,1,देवी नागरानी,20,देवेन्द्र कुमार मिश्रा,2,देवेन्द्र पाठक महरूम,1,दोहे,1,धर्मेन्द्र निर्मल,2,धर्मेन्द्र राजमंगल,1,नइमत गुलची,1,नजीर नज़ीर अकबराबादी,1,नन्दलाल भारती,2,नरेंद्र शुक्ल,2,नरेन्द्र कुमार आर्य,1,नरेन्द्र कोहली,2,नरेन्‍द्रकुमार मेहता,9,नलिनी मिश्र,1,नवदुर्गा,1,नवरात्रि,1,नागार्जुन,1,नाटक,152,नामवर सिंह,1,निबंध,3,नियम,1,निर्मल गुप्ता,2,नीतू सुदीप्ति ‘नित्या’,1,नीरज खरे,1,नीलम महेंद्र,1,नीला प्रसाद,1,पंकज प्रखर,4,पंकज मित्र,2,पंकज शुक्ला,1,पंकज सुबीर,3,परसाई,1,परसाईं,1,परिहास,4,पल्लव,1,पल्लवी त्रिवेदी,2,पवन तिवारी,2,पाक कला,23,पाठकीय,62,पालगुम्मि पद्मराजू,1,पुनर्वसु जोशी,9,पूजा उपाध्याय,2,पोपटी हीरानंदाणी,1,पौराणिक,1,प्रज्ञा,1,प्रताप सहगल,1,प्रतिभा,1,प्रतिभा सक्सेना,1,प्रदीप कुमार,1,प्रदीप कुमार दाश दीपक,1,प्रदीप कुमार साह,11,प्रदोष मिश्र,1,प्रभात दुबे,1,प्रभु चौधरी,2,प्रमिला भारती,1,प्रमोद कुमार तिवारी,1,प्रमोद भार्गव,2,प्रमोद यादव,14,प्रवीण कुमार झा,1,प्रांजल धर,1,प्राची,367,प्रियंवद,2,प्रियदर्शन,1,प्रेम कहानी,1,प्रेम दिवस,2,प्रेम मंगल,1,फिक्र तौंसवी,1,फ्लेनरी ऑक्नर,1,बंग महिला,1,बंसी खूबचंदाणी,1,बकर पुराण,1,बजरंग बिहारी तिवारी,1,बरसाने लाल चतुर्वेदी,1,बलबीर दत्त,1,बलराज सिंह सिद्धू,1,बलूची,1,बसंत त्रिपाठी,2,बातचीत,2,बाल उपन्यास,6,बाल कथा,356,बाल कलम,26,बाल दिवस,4,बालकथा,80,बालकृष्ण भट्ट,1,बालगीत,20,बृज मोहन,2,बृजेन्द्र श्रीवास्तव उत्कर्ष,1,बेढब बनारसी,1,बैचलर्स किचन,1,बॉब डिलेन,1,भरत त्रिवेदी,1,भागवत रावत,1,भारत कालरा,1,भारत भूषण अग्रवाल,1,भारत यायावर,2,भावना राय,1,भावना शुक्ल,5,भीष्म साहनी,1,भूतनाथ,1,भूपेन्द्र कुमार दवे,1,मंजरी शुक्ला,2,मंजीत ठाकुर,1,मंजूर एहतेशाम,1,मंतव्य,1,मथुरा प्रसाद नवीन,1,मदन सोनी,1,मधु त्रिवेदी,2,मधु संधु,1,मधुर नज्मी,1,मधुरा प्रसाद नवीन,1,मधुरिमा प्रसाद,1,मधुरेश,1,मनीष कुमार सिंह,4,मनोज कुमार,6,मनोज कुमार झा,5,मनोज कुमार पांडेय,1,मनोज कुमार श्रीवास्तव,2,मनोज दास,1,ममता सिंह,2,मयंक चतुर्वेदी,1,महापर्व छठ,1,महाभारत,2,महावीर प्रसाद द्विवेदी,1,महाशिवरात्रि,1,महेंद्र भटनागर,3,महेन्द्र देवांगन माटी,1,महेश कटारे,1,महेश कुमार गोंड हीवेट,2,महेश सिंह,2,महेश हीवेट,1,मानसून,1,मार्कण्डेय,1,मिलन चौरसिया मिलन,1,मिलान कुन्देरा,1,मिशेल फूको,8,मिश्रीमल जैन तरंगित,1,मीनू पामर,2,मुकेश वर्मा,1,मुक्तिबोध,1,मुर्दहिया,1,मृदुला गर्ग,1,मेराज फैज़ाबादी,1,मैक्सिम गोर्की,1,मैथिली शरण गुप्त,1,मोतीलाल जोतवाणी,1,मोहन कल्पना,1,मोहन वर्मा,1,यशवंत कोठारी,8,यशोधरा विरोदय,2,यात्रा संस्मरण,31,योग,3,योग दिवस,3,योगासन,2,योगेन्द्र प्रताप मौर्य,1,योगेश अग्रवाल,2,रक्षा बंधन,1,रच,1,रचना समय,72,रजनीश कांत,2,रत्ना राय,1,रमेश उपाध्याय,1,रमेश राज,26,रमेशराज,8,रवि रतलामी,2,रवींद्र नाथ ठाकुर,1,रवीन्द्र अग्निहोत्री,4,रवीन्द्र नाथ त्यागी,1,रवीन्द्र संगीत,1,रवीन्द्र सहाय वर्मा,1,रसोई,1,रांगेय राघव,1,राकेश अचल,3,राकेश दुबे,1,राकेश बिहारी,1,राकेश भ्रमर,5,राकेश मिश्र,2,राजकुमार कुम्भज,1,राजन कुमार,2,राजशेखर चौबे,6,राजीव रंजन उपाध्याय,11,राजेन्द्र कुमार,1,राजेन्द्र विजय,1,राजेश कुमार,1,राजेश गोसाईं,2,राजेश जोशी,1,राधा कृष्ण,1,राधाकृष्ण,1,राधेश्याम द्विवेदी,5,राम कृष्ण खुराना,6,राम शिव मूर्ति यादव,1,रामचंद्र शुक्ल,1,रामचन्द्र शुक्ल,1,रामचरन गुप्त,5,रामवृक्ष सिंह,10,रावण,1,राहुल कुमार,1,राहुल सिंह,1,रिंकी मिश्रा,1,रिचर्ड फाइनमेन,1,रिलायंस इन्फोकाम,1,रीटा शहाणी,1,रेंसमवेयर,1,रेणु कुमारी,1,रेवती रमण शर्मा,1,रोहित रुसिया,1,लक्ष्मी यादव,6,लक्ष्मीकांत मुकुल,2,लक्ष्मीकांत वैष्णव,1,लखमी खिलाणी,1,लघु कथा,288,लघुकथा,1340,लघुकथा लेखन पुरस्कार आयोजन,241,लतीफ घोंघी,1,ललित ग,1,ललित गर्ग,13,ललित निबंध,20,ललित साहू जख्मी,1,ललिता भाटिया,2,लाल पुष्प,1,लावण्या दीपक शाह,1,लीलाधर मंडलोई,1,लू सुन,1,लूट,1,लोक,1,लोककथा,378,लोकतंत्र का दर्द,1,लोकमित्र,1,लोकेन्द्र सिंह,3,विकास कुमार,1,विजय केसरी,1,विजय शिंदे,1,विज्ञान कथा,79,विद्यानंद कुमार,1,विनय भारत,1,विनीत कुमार,2,विनीता शुक्ला,3,विनोद कुमार दवे,4,विनोद तिवारी,1,विनोद मल्ल,1,विभा खरे,1,विमल चन्द्राकर,1,विमल सिंह,1,विरल पटेल,1,विविध,1,विविधा,1,विवेक प्रियदर्शी,1,विवेक रंजन श्रीवास्तव,5,विवेक सक्सेना,1,विवेकानंद,1,विवेकानन्द,1,विश्वंभर नाथ शर्मा कौशिक,2,विश्वनाथ प्रसाद तिवारी,1,विष्णु नागर,1,विष्णु प्रभाकर,1,वीणा भाटिया,15,वीरेन्द्र सरल,10,वेणीशंकर पटेल ब्रज,1,वेलेंटाइन,3,वेलेंटाइन डे,2,वैभव सिंह,1,व्यंग्य,2075,व्यंग्य के बहाने,2,व्यंग्य जुगलबंदी,17,व्यथित हृदय,2,शंकर पाटील,1,शगुन अग्रवाल,1,शबनम शर्मा,7,शब्द संधान,17,शम्भूनाथ,1,शरद कोकास,2,शशांक मिश्र भारती,8,शशिकांत सिंह,12,शहीद भगतसिंह,1,शामिख़ फ़राज़,1,शारदा नरेन्द्र मेहता,1,शालिनी तिवारी,8,शालिनी मुखरैया,6,शिक्षक दिवस,6,शिवकुमार कश्यप,1,शिवप्रसाद कमल,1,शिवरात्रि,1,शिवेन्‍द्र प्रताप त्रिपाठी,1,शीला नरेन्द्र त्रिवेदी,1,शुभम श्री,1,शुभ्रता मिश्रा,1,शेखर मलिक,1,शेषनाथ प्रसाद,1,शैलेन्द्र सरस्वती,3,शैलेश त्रिपाठी,2,शौचालय,1,श्याम गुप्त,3,श्याम सखा श्याम,1,श्याम सुशील,2,श्रीनाथ सिंह,6,श्रीमती तारा सिंह,2,श्रीमद्भगवद्गीता,1,श्रृंगी,1,श्वेता अरोड़ा,1,संजय दुबे,4,संजय सक्सेना,1,संजीव,1,संजीव ठाकुर,2,संद मदर टेरेसा,1,संदीप तोमर,1,संपादकीय,3,संस्मरण,730,संस्मरण लेखन पुरस्कार 2018,128,सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन,1,सतीश कुमार त्रिपाठी,2,सपना महेश,1,सपना मांगलिक,1,समीक्षा,847,सरिता पन्थी,1,सविता मिश्रा,1,साइबर अपराध,1,साइबर क्राइम,1,साक्षात्कार,21,सागर यादव जख्मी,1,सार्थक देवांगन,2,सालिम मियाँ,1,साहित्य समाचार,98,साहित्यम्,6,साहित्यिक गतिविधियाँ,216,साहित्यिक बगिया,1,सिंहासन बत्तीसी,1,सिद्धार्थ जगन्नाथ जोशी,1,सी.बी.श्रीवास्तव विदग्ध,1,सीताराम गुप्ता,1,सीताराम साहू,1,सीमा असीम सक्सेना,1,सीमा शाहजी,1,सुगन आहूजा,1,सुचिंता कुमारी,1,सुधा गुप्ता अमृता,1,सुधा गोयल नवीन,1,सुधेंदु पटेल,1,सुनीता काम्बोज,1,सुनील जाधव,1,सुभाष चंदर,1,सुभाष चन्द्र कुशवाहा,1,सुभाष नीरव,1,सुभाष लखोटिया,1,सुमन,1,सुमन गौड़,1,सुरभि बेहेरा,1,सुरेन्द्र चौधरी,1,सुरेन्द्र वर्मा,62,सुरेश चन्द्र,1,सुरेश चन्द्र दास,1,सुविचार,1,सुशांत सुप्रिय,4,सुशील कुमार शर्मा,24,सुशील यादव,6,सुशील शर्मा,16,सुषमा गुप्ता,20,सुषमा श्रीवास्तव,2,सूरज प्रकाश,1,सूर्य बाला,1,सूर्यकांत मिश्रा,14,सूर्यकुमार पांडेय,2,सेल्फी,1,सौमित्र,1,सौरभ मालवीय,4,स्नेहमयी चौधरी,1,स्वच्छ भारत,1,स्वतंत्रता दिवस,3,स्वराज सेनानी,1,हबीब तनवीर,1,हरि भटनागर,6,हरि हिमथाणी,1,हरिकांत जेठवाणी,1,हरिवंश राय बच्चन,1,हरिशंकर गजानंद प्रसाद देवांगन,4,हरिशंकर परसाई,23,हरीश कुमार,1,हरीश गोयल,1,हरीश नवल,1,हरीश भादानी,1,हरीश सम्यक,2,हरे प्रकाश उपाध्याय,1,हाइकु,5,हाइगा,1,हास-परिहास,38,हास्य,59,हास्य-व्यंग्य,78,हिंदी दिवस विशेष,9,हुस्न तबस्सुम 'निहाँ',1,biography,1,dohe,3,hindi divas,6,hindi sahitya,1,indian art,1,kavita,3,review,1,satire,1,shatak,3,tevari,3,undefined,1,
ltr
item
रचनाकार: प्रतीति (व्यंग्य)-प्रदीप कुमार साह
प्रतीति (व्यंग्य)-प्रदीप कुमार साह
https://lh3.googleusercontent.com/-HxzzNDUHWA0/WaZblRXko_I/AAAAAAAA6no/6nx_COUB2oIBnAT6CBeFvL9xUBEpEMaTwCHMYCw/image_thumb%255B8%255D?imgmax=800
https://lh3.googleusercontent.com/-HxzzNDUHWA0/WaZblRXko_I/AAAAAAAA6no/6nx_COUB2oIBnAT6CBeFvL9xUBEpEMaTwCHMYCw/s72-c/image_thumb%255B8%255D?imgmax=800
रचनाकार
https://www.rachanakar.org/2017/08/blog-post_66.html
https://www.rachanakar.org/
https://www.rachanakar.org/
https://www.rachanakar.org/2017/08/blog-post_66.html
true
15182217
UTF-8
Loaded All Posts Not found any posts VIEW ALL Readmore Reply Cancel reply Delete By Home PAGES POSTS View All RECOMMENDED FOR YOU LABEL ARCHIVE SEARCH ALL POSTS Not found any post match with your request Back Home Sunday Monday Tuesday Wednesday Thursday Friday Saturday Sun Mon Tue Wed Thu Fri Sat January February March April May June July August September October November December Jan Feb Mar Apr May Jun Jul Aug Sep Oct Nov Dec just now 1 minute ago $$1$$ minutes ago 1 hour ago $$1$$ hours ago Yesterday $$1$$ days ago $$1$$ weeks ago more than 5 weeks ago Followers Follow THIS PREMIUM CONTENT IS LOCKED STEP 1: Share to a social network STEP 2: Click the link on your social network Copy All Code Select All Code All codes were copied to your clipboard Can not copy the codes / texts, please press [CTRL]+[C] (or CMD+C with Mac) to copy Table of Content