रैवन की लोककथाएँ - 1 - : 11 इन्द्रधनुषी कौआ // सुषमा गुप्ता

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उस दिन बहुत ठंडा था। बरफ बराबर पड़े जा रही थी। जानवरों ने पहले कभी बरफ देखी नहीं थी सो पहले तो वह उनको नयी नयी लगी और वे उससे खूब खेले। पर फ...

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उस दिन बहुत ठंडा था। बरफ बराबर पड़े जा रही थी। जानवरों ने पहले कभी बरफ देखी नहीं थी सो पहले तो वह उनको नयी नयी लगी और वे उससे खूब खेले। पर फिर तो ठंड दस गुना बढ़ गयी और उन सबको चिन्ता होने लगी कि इतनी ठंड में और बरफ में वे कैसे जियेंगे।

जब बरफ उड़कर इधर उधर जा कर बैठती तो उसमें छोटे छोटे जानवर तो दबने लगे और बड़े जानवरों को चलना मुश्किल हो गया क्योंकि बरफ बहुत ही गहरी थी। अगर इसके लिये जल्दी ही कुछ न किया गया तो वे सब मर जायेंगे।

अक्लमन्द उल्लू बोला - "हमको अपना कोई दूत किजियामुह कैऔंग देवता के पास भेजना चाहिये जिसके सोचते ही सब कुछ हो जाता है। हमको उससे प्रार्थना करनी चाहिये कि वह दुनिया को गरम करने के बारे में सोचे ताकि बरफ की आत्मा हम सबको शान्ति से रहने दे।"

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सारे जानवरों को यह योजना बहुत पसन्द आयी। वे आपस में बात करने लगे कि उस देवता के पास किस जानवर को दूत बना कर भेजा जाये।

उल्लू अक्लमन्द तो था पर वह दिन में ठीक से देख नहीं सकता था सो वह नहीं जा सकता था। कायोटी का ध्यान बहुत जल्दी बँट जाता था और वह अपनी चालाकियों से बाज़ नहीं आता था इस लिये उस पर भी विश्वास नहीं किया जा सकता था।

कछुआ बहुत ही धीरज वाला था पर वह बहुत ही धीरे चलता था। वह तो देवता के पास पहुँचने के लिये ही बहुत समय लेता और उतनी देर में तो सारे जानवर मर जाते इसलिये उसको भी भेजने का विचार छोड़ दिया गया।

आखीर में दुनिया की सबसे सुन्दर चिड़िया इन्द्रधनुषी कौआ को जिसके इन्द्रधनुषी रंग के पंख थे और बहुत ही जादू भरी आवाज थी देवता के पास भेजने के लिये चुना गया। सो उसको देवता के पास भेज दिया गया।

वह एक बहुत ही मुश्किल सफर था - तीन दिन दूर आसमान में। उसने बहुत सारे पेड़ों और बादलों को पार किया। फिर उसने सूरज और चाँद को पार किया और फिर तारों को भी।

उसको हवाओं ने इधर उधर करने की कोशिश की, उसको कहीं आराम करने के लिये भी जगह नहीं मिली पर फिर भी वह ये सब परेशानियाँ झेलते हुए चलता ही चला गया और आखिर स्वर्ग तक पहुँच ही गया।

जब वह कौआ देवता के रहने की जगह पहुँचा तो उसने देवता को पुकारा पर वहाँ उसे कोई जवाब नहीं मिला। देवता तो इस बारे में सोचने में लगे हुए थे कि इस सबसे सुन्दर चिड़िया में क्या देखा जाये।

इतने में उस इन्द्रधनुषी कौए ने अपनी मीठी आवाज में अपना सबसे सुन्दर गाना गाना शुरू किया। उस मीठी आवाज को सुन कर देवता का सोचना रुक गया और वह बाहर यह देखने के लिये निकल कर आये कि इतनी मीठी आवाज में कौन गा रहा है।

बाहर आ कर उन्होंने देखा कि वहाँ तो इन्द्रधनुषी कौआ गा रहा था। उन्होंने उसको बहुत ही नम्रता से नमस्ते की और उससे पूछा कि वह उसके मीठे गाने के बदले में उसको क्या भेंट दे सकते थे।

इन्द्रधनुषी कौए ने देवता से प्रार्थना की कि अगर वह उसे कुछ देना ही चाहते हैं तो वह धरती से बरफ को हटाने के बारे में सोचें ताकि धरती के लोग बरफ में न धँसें और ठंड से न मरें।

पर देवता ने इन्द्रधनुषी कौए से कहा कि बरफ की अपनी आत्मा है और मारी नहीं जा सकती थी।

इन्द्रधनुषी कौए ने पूछा - "तो फिर हम क्या करें? हम लोग या तो उस बरफ में जम जायेंगे या फिर उसके नीचे दब कर मर जायेंगे।"

देवता ने उस इन्द्रधनुषी कौए को विश्वास दिलाया - "तुम लोग बरफ में जम कर या उसमें दब कर नहीं मरोगे क्योंकि मैं आग के बारे में सोचँूगा और यह आग सब लोगों को ठंड में गरम रखेगी।"

इतना कह कर देवता ने एक डंडी उठायी और उसको जलते हुए सूरज में घुसाया तो उसका वह सिरा तुरन्त ही जल उठा। वह सिरा जल कर रोशनी भी दे रहा था और गरमी भी।

देवता ने उस डंडी का दूसरा सिरा इन्द्रधनुषी कौए को पकड़ाते हुए कहा - "यह आग है। इससे पहले कि यह सारी डंडी जल कर खत्म हो जाये तुम इसको ले कर जितनी जल्दी जा सकते हो तुरन्त ही धरती पर चले जाओ।"

इन्द्रधनुषी कौआ ने हाँ में सिर हिलाया, देवता को धन्यवाद दिया तुरन्त ही जलती हुई डंडी लेकर धरती की तरफ लौट पड़ा।

वहाँ से धरती का भी रास्ता तीन दिन का ही था और वह चिन्तित था कि कहीं वह डंडी रास्ते में ही जल कर न खत्म हो जाये।

लकड़ी की वह डंडी बड़ी भी थी और भारी भी इसलिये जब वह तारों को पार कर रहा था तब भी उसकी आग उस इन्द्रधनुषी कौए को रास्ते में गरम रख रही थी।

पर धीरे धीरे वह आग कौए के पंखों के पास आने लगी तो वह उसको बहुत गरम लगने लगी। जब वह सूरज के पास से उड़ा तो वह आग उसकी पँूछ में लग गयी और उसके चमकीले इन्द्रधनुषी पंख काले पड़ने लगे।

जब तक वह चाँद के पास से उड़ा तो उसका सारा शरीर ही काला पड़ गया। और जब वह आसमान में कूदा और बादलों में से गुजरा तो उस आग का धुँआ उसके गले में घुस गया जिससे उसकी मीठी आवाज भर्रा गयी।

और जब वह जमती हुई धरती पर जमते हुए जानवरों के बीच आया तब तक तो वह तारकोल की तरह काला हो चुका था और बजाय गाने के केवल काँव काँव ही कर सकता था।

वह आग ला कर उसने जानवरों को दे दी। जानवरों ने उस आग से बरफ पिघला ली और खुद भी गरमी ली। इस तरह से उन्होंने उस छोटे से छोटे जानवर को भी उस दौड़ती हुई बरफ से बचा लिया जिसके नीचे वे दबे पड़े थे।

अब तो टिन्डे के धरती पर आने की खुशी मनाने का समय था पर वह इन्द्रधनुषी कौआ तो बिल्कुल अलग बैठा था। वह अपने भद्दे दिखायी देने वाले पंखों और अपनी भर्रायी हुई आवाज पर बहुत दुखी था।

तभी उसने अपने मुँह पर हवा का झोंका महसूस किया। उसने ऊपर मुँह उठा कर देखा तो वह देवता तो उसी के पास चले आ रहे थे जिनके सोचने से ही सब कुछ हो जाता है।

देवता बोले - "तुम दुखी न हो। सारे जानवर तुम्हारे इस त्याग के लिये जो तुमने उनके लिये किया है तुम्हारी बहुत इज़्ज़त करेंगे।

और अब जब लोग आयेंगे तो वे तुम्हारा शिकार भी नहीं करेंगे क्योंकि मैंने तुम्हारे माँस को धुँए के स्वाद का बना दिया है ताकि वे उसको खा ही न सकें।

इसके अलावा वे तुमको तुम्हारे काले पंखों और भर्रायी हुई आवाज की वजह से सुन्दरता और गाना गाने के लिये पिंजरे में भी बन्द नहीं करेंगे। तुम हमेशा आजाद चिड़िया रहोगे।"

इसके बाद देवता ने कौए के काले पंखों की तरफ अपनी उँगली की तो उसके काले पंख बहुत चमकीले हो गये और उसके हर पंख में इन्द्रधनुष के रंग दिखायी देने लगे।

देवता बोले - "ये सबको तुम्हारी उन सेवाओं की याद दिलायेंगे जो तुमने अपने लोगों के लिये की हैं और जिनकी वजह से वे आज ज़िन्दा हैं।"

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सुषमा गुप्ता ने देश विदेश की 1200 से अधिक लोक-कथाओं का संकलन कर उनका हिंदी में अनुवाद प्रस्तुत किया है. कुछ देशों की कथाओं के संकलन का  विवरण यहाँ पर दर्ज है. सुषमा गुप्ता की लोक कथाओं की एक अन्य पुस्तक - रैवन की लोक कथाएँ में से एक लोक कथा यहाँ पढ़ सकते हैं. इथियोपिया की 45 लोककथाओं को आप यहाँ लोककथा खंड में जाकर पढ़ सकते हैं.

(क्रमशः अगले अंकों में जारी...)

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रचनाकार: रैवन की लोककथाएँ - 1 - : 11 इन्द्रधनुषी कौआ // सुषमा गुप्ता
रैवन की लोककथाएँ - 1 - : 11 इन्द्रधनुषी कौआ // सुषमा गुप्ता
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