इटली की लोक कथाएँ–1 : 14 एक पागल और एक चालाक // सुषमा गुप्ता

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एक बार एक दूर के शहर में एक बहुत ही मशहूर पागल रहता था जिसको अब तक कोई भी पकड़ने में कामयाब नहीं हो सका था। और इसी शहर में एक चालाक भी रहता ...

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एक बार एक दूर के शहर में एक बहुत ही मशहूर पागल रहता था जिसको अब तक कोई भी पकड़ने में कामयाब नहीं हो सका था। और इसी शहर में एक चालाक भी रहता था।

इस पागल की सबसे बड़ी इच्छा यह थी कि वह चालाक से मिले और उससे दोस्ती करे। यह चालाक एक बहुत बड़ा बदमाश चोर था। सो वह पागल उस चालाक से मिला और उसने उससे दोस्ती कर ली। कैसे?

एक दिन जब वह पागल एक ढाबे पर दोपहर को खाना खा रहा था तो उसकी मेज पर उसके सामने एक अजनबी आ कर बैठ गया। पागल ने समय देखने के लिये अपनी घड़ी देखी तो उसे पता चला कि उसकी घड़ी तो उसके हाथ में थी ही नहीं।

उसने सोचा कि उसकी जानकारी में तो केवल वह चालाक चोर ही उसके हाथ से इस तरह से उसकी घड़ी गायब कर सकता था सो उस पागल ने अपना सिर घुमाया और उस चालाक का बटुआ चुरा लिया।

जब वह अजनबी अपने पैसे देने के लिये अपना बटुआ ढूँढने लगा तो उसने देखा कि उसका बटुआ तो गायब है। उसने अपनी मेज पर बैठे साथी से कहा — “लगता है कि तुम पागल हो।”

“तुमने ठीक पहचाना।”

“बहुत अच्छे। मेरे साथ काम करोगे? हम लोग एक साथ काम करेंगे तो अच्छा कमायेंगे।” और दोनों राजी हो गये।

वे दोनों शहर मंे गये और राजा के खजाने की तरफ चल दिये। अब वह तो राजा का खजाना था सो उसके तो चारों तरफ तो बहुत सारे चौकीदार पहरा दे रहे थे। दोनों सोचने लगे कि राजा का खजाना कैसे चुराया जाये।

सोच कर उन लोगों ने राजा के खजाने तक एक सुरंग खोदी और राजा का सब कुछ चुरा लिया। जब राजा ने अपने खजाने की हालत देखी तो उसकी समझ में ही नहीं आया कि उसका इतना बड़ा खजाना गया कैसे? और चला गया तो चला गया पर अब वह उन चोरों को पकड़े कैसे।

उसने एक आदमी को पकड़ा जिसका नाम “जाल” था। उसको चोरी के इलजाम में जेल में रखा गया था। राजा ने जाल को बुलाया और कहा — “जाल, देखो किसी ने मेरा खजाना चोरी कर लिया है। अगर तुम यह बता दोगे कि मेर यह खजाना किसने चोरी किया है तो मैं तुमको जेल से आजाद कर दूँगा और तुमको मारकिस बना दूँगा।”

जाल बोला — “सरकार या तो यह पागल का काम है या फिर चालाक का और या फिर दोनों ने मिल कर यह चोरी की है। क्योंकि इस समय वे ही ज़िन्दा चोरों में सबसे ज़्यादा बदमाश और चोर हैं। पर मैं आपको बताऊँगा कि उन चोरों को कैसे पकड़ना है।

आप माँस की कीमत बढ़ा कर 100 डालर पौंड कर दीजिये। जो भी माँस की इतनी कीमत दे सकेगा वही आपका चोर होगा।”

राजा ने वैसा ही किया। उसने माँस की कीमत बढ़ा कर 100 डालर पौंड कर दी। सबने माँस खरीदना बन्द कर दिया।

फिर एक दिन राजा को बताया गया कि एक फ्रायर एक कसाई की दुकान पर गया और उसने माँस खरीदा।

यह सुन कर वह जाल बोला — “यह आदमी जरूर ही पागल या चालाक होगा और वेश बदल कर वहाँ आया होगा। मैं अब ऐसा करता हूँ कि मैं भी अपना वेश बदलता हूँ और घर-घर भीख माँगने जाता हूँ।

अगर भीख में मुझे कोई माँस देता है तो मैं उसके घर के सामने वाले दरवाजे पर एक लाल निशान लगा कर आता हूँ। फिर आपके आदमी वहाँ जा सकते हैं और चोर को पकड़ सकते हैं।”

सो वह पागल के घर गया। वहाँ उसको भीख में थोड़ा सा माँस मिल गया। सो उसने उसके मकान पर लाल निशान लगा दिया।

पर जब उसने वह लाल निशान पागल के घर के दरवाजे पर लगाया तो पागल ने देख लिया। जाल के जाते ही वह अपने घर से बाहर निकला और आसपास में जा कर बहुत सारे घरों पर वैसा ही लाल निशान लगा आया। इससे फिर यह पता लगाना मुश्किल हो गया कि पागल और चालाक कहाँ रहते थे।

जाल बोला — “मैंने आपसे कहा था न कि ये लोग बड़े चालाक हैं। पर कोई और भी है जो उनसे भी ज़्यादा चालाक है। अब आप ऐसा कीजिये कि आप अपने खजाने की सीढ़ियों की सबसे नीचे वाली सीढ़ी पर उबलते हुए पानी का एक टब रख दें।

जो कोई भी खजाने में चोरी करने जायेगा वह उसमें गिर पड़ेगा और फिर तो उसकी लाश ही उसमें से निकाली जायेगी।”

इस बीच में पागल और चालाक के पास उनका चुराया पैसा खत्म हो गया सो उन्होंने राजा के खजाने में फिर से जाने का विचार किया।

चालाक उसमें पहले घुसा पर वहाँ क्योंकि अँधेरा था उसको दिखायी ही नहीं दिया कि वहाँ पर गरम पानी से भरा टब रखा है। जैसे ही वह अन्दर घुसा वह टब में गिर पड़ा।

पागल भी वहाँ आ गया और उसने चालाक को बाहर निकालने की बहुत कोशिश की पर वह क्योंकि वह उस टब में फँस गया था वह उसको निकाल नहीं सका। सो उसने उसका सिर काट लिया और उस सिर को ले कर घर चला गया।

अगले दिन राजा वहाँ देखने गया कि कोई चोर फँसा कि नहीं। राजा टब में लाश पड़ी देख कर तो बहुत खुश हुआ और चिल्ला कर बोला — “हमको चोर मिल गया। हमको चोर मिल गया।”

पर उस लाश पर उसका सिर न देख कर वह बड़ा नाउम्मीद हुआ क्योंकि बिना सिर के तो यह ही पता नहीं चल पा रहा था कि वह लाश किसकी है।

जाल बोला — “अब हम एक काम और कर सकते हैं। इस लाश को दो घोड़ों से घिसटवाते हुए आप पूरे शहर में घुमाइये। जिस घर में इसको देख कर किसी के रोने की आवाज सुनायी पड़े वही इस चोर का घर है।”

बात तो उसकी ठीक थी सो ऐसा ही किया गया। जब चालाक की पत्नी ने अपने घर की खिड़की से बाहर झाँका तो देखा कि उसके पति की लाश को सड़क पर दो घोड़े घसीटते हुए लिये जा रहे हैं तो उसने रोना और चिल्लाना शुरू कर दिया।

इत्तफाक से वह पागल उस समय वहीं था। उसने सोचा कि चालाक की पत्नी के इस तरह से रोने चिल्लाने से तो हमारा किया धरा सब बेकार हो जायेगा सो उसने चालाक के प्याले प्लेटें तोड़नी शुरू कर दीं और उसकी पत्नी को मारना शुरू कर दिया।

उस चिल्लाहट को सुनते हुए चौकीदार वहाँ आ पहुँचे तो उन्होंने देखा कि एक आदमी अपनी स्त्री को प्याले प्लेटें तोड़ने पर मार रहा था सो वे चले गये।

आखिर राजा ने तब शहर के हर चौराहे पर एक घोषणा करवा दी कि वह उस चोर को जिसने भी उसका खजाना चुराया है माफ कर देगा अगर वह चोर उसके नीचे से उसके बिस्तर की चादर चुरा कर ले जाये तो। यह सुन कर वह पागल आगे आया और राजा से बोला कि वह यह काम कर सकता है।

रात को राजा ने अपने कपड़े उतारे और सोने चला गया। वह चोर को पकड़ने के लिये अपने साथ अपनी बन्दूक भी ले गया था।

इधर इस पागल ने क्या किया कि उसने कब्र खोदने वाले से एक लाश ली और उसको अपने कपड़े पहना दिये और उस लाश को वह राजा के महल की छत पर ले गया।

आधी रात को उसने वह लाश एक रस्सी के सहारे राजा के सोने के कमरे की खिड़की के सामने लटका दी। राजा तो चोर पकड़ने के लिये जाग ही रहा था सो उसने वह लाश देखी।

यह सोच कर कि वह पागल था राजा ने उसको गोली मारी और देखा कि वह पागल तो नीचे गिर गया।

तुरन्त ही वह नीचे देखने गया कि वह गिर कर मर गया या नहीं। जैसे ही राजा अपने कमरे से हटा तो पागल राजा के सोने के कमरे में घुस गया और उसके बिस्तर की चादर चुरा ली।

अपनी घोषणा के अनुसार राजा को उसे माफ कर देना पड़ा पर उसके बाद उसको फिर कभी चोरी नहीं करनी पड़ी।

पूछो क्यों? क्योंकि राजा ने अपनी बेटी की शादी उसके साथ कर दी थी।

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सुषमा गुप्ता ने देश विदेश की 1200 से अधिक लोक-कथाओं का संकलन कर उनका हिंदी में अनुवाद प्रस्तुत किया है. कुछ देशों की कथाओं के संकलन का  विवरण यहाँ पर दर्ज है. सुषमा गुप्ता की लोक कथाओं की एक अन्य पुस्तक - रैवन की लोक कथाएँ में से एक लोक कथा यहाँ पढ़ सकते हैं. इथियोपिया की 45 लोककथाओंको आप यहाँ लोककथा खंड में जाकर पढ़ सकते हैं.

(क्रमशः अगले अंकों में जारी...)

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फाइनमेन,1,रिलायंस इन्फोकाम,1,रीटा शहाणी,1,रेंसमवेयर,1,रेणु कुमारी,1,रेवती रमण शर्मा,1,रोहित रुसिया,1,लक्ष्मी यादव,6,लक्ष्मीकांत मुकुल,2,लक्ष्मीकांत वैष्णव,1,लखमी खिलाणी,1,लघु कथा,288,लघुकथा,1340,लघुकथा लेखन पुरस्कार आयोजन,241,लतीफ घोंघी,1,ललित ग,1,ललित गर्ग,13,ललित निबंध,20,ललित साहू जख्मी,1,ललिता भाटिया,2,लाल पुष्प,1,लावण्या दीपक शाह,1,लीलाधर मंडलोई,1,लू सुन,1,लूट,1,लोक,1,लोककथा,378,लोकतंत्र का दर्द,1,लोकमित्र,1,लोकेन्द्र सिंह,3,विकास कुमार,1,विजय केसरी,1,विजय शिंदे,1,विज्ञान कथा,79,विद्यानंद कुमार,1,विनय भारत,1,विनीत कुमार,2,विनीता शुक्ला,3,विनोद कुमार दवे,4,विनोद तिवारी,1,विनोद मल्ल,1,विभा खरे,1,विमल चन्द्राकर,1,विमल सिंह,1,विरल पटेल,1,विविध,1,विविधा,1,विवेक प्रियदर्शी,1,विवेक रंजन श्रीवास्तव,5,विवेक सक्सेना,1,विवेकानंद,1,विवेकानन्द,1,विश्वंभर नाथ शर्मा कौशिक,2,विश्वनाथ प्रसाद तिवारी,1,विष्णु नागर,1,विष्णु प्रभाकर,1,वीणा भाटिया,15,वीरेन्द्र सरल,10,वेणीशंकर पटेल ब्रज,1,वेलेंटाइन,3,वेलेंटाइन डे,2,वैभव सिंह,1,व्यंग्य,2075,व्यंग्य के बहाने,2,व्यंग्य जुगलबंदी,17,व्यथित हृदय,2,शंकर पाटील,1,शगुन अग्रवाल,1,शबनम शर्मा,7,शब्द संधान,17,शम्भूनाथ,1,शरद कोकास,2,शशांक मिश्र भारती,8,शशिकांत सिंह,12,शहीद भगतसिंह,1,शामिख़ फ़राज़,1,शारदा नरेन्द्र मेहता,1,शालिनी तिवारी,8,शालिनी मुखरैया,6,शिक्षक दिवस,6,शिवकुमार कश्यप,1,शिवप्रसाद कमल,1,शिवरात्रि,1,शिवेन्‍द्र प्रताप त्रिपाठी,1,शीला नरेन्द्र त्रिवेदी,1,शुभम श्री,1,शुभ्रता मिश्रा,1,शेखर मलिक,1,शेषनाथ प्रसाद,1,शैलेन्द्र सरस्वती,3,शैलेश त्रिपाठी,2,शौचालय,1,श्याम गुप्त,3,श्याम सखा श्याम,1,श्याम सुशील,2,श्रीनाथ सिंह,6,श्रीमती तारा सिंह,2,श्रीमद्भगवद्गीता,1,श्रृंगी,1,श्वेता अरोड़ा,1,संजय दुबे,4,संजय सक्सेना,1,संजीव,1,संजीव ठाकुर,2,संद मदर टेरेसा,1,संदीप तोमर,1,संपादकीय,3,संस्मरण,730,संस्मरण लेखन पुरस्कार 2018,128,सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन,1,सतीश कुमार त्रिपाठी,2,सपना महेश,1,सपना मांगलिक,1,समीक्षा,847,सरिता पन्थी,1,सविता मिश्रा,1,साइबर अपराध,1,साइबर क्राइम,1,साक्षात्कार,21,सागर यादव जख्मी,1,सार्थक देवांगन,2,सालिम मियाँ,1,साहित्य समाचार,98,साहित्यम्,6,साहित्यिक गतिविधियाँ,216,साहित्यिक बगिया,1,सिंहासन बत्तीसी,1,सिद्धार्थ जगन्नाथ जोशी,1,सी.बी.श्रीवास्तव विदग्ध,1,सीताराम गुप्ता,1,सीताराम साहू,1,सीमा असीम सक्सेना,1,सीमा शाहजी,1,सुगन आहूजा,1,सुचिंता कुमारी,1,सुधा गुप्ता अमृता,1,सुधा गोयल नवीन,1,सुधेंदु पटेल,1,सुनीता काम्बोज,1,सुनील जाधव,1,सुभाष चंदर,1,सुभाष चन्द्र कुशवाहा,1,सुभाष नीरव,1,सुभाष लखोटिया,1,सुमन,1,सुमन गौड़,1,सुरभि बेहेरा,1,सुरेन्द्र चौधरी,1,सुरेन्द्र वर्मा,62,सुरेश चन्द्र,1,सुरेश चन्द्र दास,1,सुविचार,1,सुशांत सुप्रिय,4,सुशील कुमार शर्मा,24,सुशील यादव,6,सुशील शर्मा,16,सुषमा गुप्ता,20,सुषमा श्रीवास्तव,2,सूरज प्रकाश,1,सूर्य बाला,1,सूर्यकांत मिश्रा,14,सूर्यकुमार पांडेय,2,सेल्फी,1,सौमित्र,1,सौरभ मालवीय,4,स्नेहमयी चौधरी,1,स्वच्छ भारत,1,स्वतंत्रता दिवस,3,स्वराज सेनानी,1,हबीब तनवीर,1,हरि भटनागर,6,हरि हिमथाणी,1,हरिकांत जेठवाणी,1,हरिवंश राय बच्चन,1,हरिशंकर गजानंद प्रसाद देवांगन,4,हरिशंकर परसाई,23,हरीश कुमार,1,हरीश गोयल,1,हरीश नवल,1,हरीश भादानी,1,हरीश सम्यक,2,हरे प्रकाश उपाध्याय,1,हाइकु,5,हाइगा,1,हास-परिहास,38,हास्य,59,हास्य-व्यंग्य,78,हिंदी दिवस विशेष,9,हुस्न तबस्सुम 'निहाँ',1,biography,1,dohe,3,hindi 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रचनाकार: इटली की लोक कथाएँ–1 : 14 एक पागल और एक चालाक // सुषमा गुप्ता
इटली की लोक कथाएँ–1 : 14 एक पागल और एक चालाक // सुषमा गुप्ता
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