रैवन की लोककथाएँ - 1 - : 6 कौआ दिन ले कर आया // सुषमा गुप्ता

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यह कहानी भी कुछ वैसी ही कहानी है जैसी कि इससे पहले वाली "रैवन उत्तर में दिन ले कर आया" कहानी थी। बस इन दोनों में फर्क इतना है कि ...

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यह कहानी भी कुछ वैसी ही कहानी है जैसी कि इससे पहले वाली "रैवन उत्तर में दिन ले कर आया" कहानी थी। बस इन दोनों में फर्क इतना है कि उस कहानी में यह काम रैवन करता है और इस कहानी में यह काम एक कौआ करता है।

क्योंकि रैवन भी एक कौआ जैसा पक्षी ही है इसलिये इन दोनों कहानियों में ज़्यादा फर्क नहीं मानना चाहिये।

यह बहुत पहले की बात है जब दुनिया बनी ही बनी थी और इनूइट लोग बहुत दूर उत्तर में अपने घरों में अँधेरे में ही रहा करते थे। उन्होंने दिन की रोशनी का कभी नाम ही नहीं सुना था।

पर जब एक कौए ने जो उत्तर से दक्षिण और दक्षिण से उत्तर के बीच उड़ता रहता था उनको इसके बारे में बताया तो उनको तो बिल्कुल विश्वास ही नहीं हुआ।

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पर जो जवान लोग थे वे उसकी रोशनी की उन कहानियों को सुनकर बड़ा आश्चर्य करते थे जो दक्षिण की जमीन को उजाले में रखती थीं। वे उस कौए को बार बार उन कहानियों को कहने के लिये जिद करते और तब तक जिद करते रहते जब तक वे कहानियाँ उनको अच्छी तरह से याद नहीं हो जातीं।

वे आपस में एक दूसरे से बात करते - "अगर वह दिन की रोशनी यहाँ होती तो ज़रा सोचो कि हम लोग कितनी दूर तक और कितनी देर तक शिकार कर सकते।"

दूसरा कहता - "और हाँ इससे पहले कि पोलर भालू हम पर हमला करता हम उसको देख भी सकते।"

इन सब आसानियों के देखते हुए उन लोगों की दिन की रोशनी पाने की इच्छा इतनी तेज़ हो उठी कि उन्होंने उस कौए से उसको वहाँ लाने की प्रार्थना की।

कौआ बोला - "मैं अब बहुत बूढ़ा हो गया हूँ और दिन की रोशनी बहुत दूर है। मैं अब इतनी दूर तक नहीं उड़ सकता।"

पर लोगों की लगातार प्रार्थना पर उसको फिर से सोचना पड़ा और आखिर उनके लिये वह दक्षिण तक का लम्बा सफर करने को तैयार हो गया।

वह कौआ बहुत मीलों तक उत्तर के अँधेरे में उड़ा। वह कई बार थका और उस थकान की वजह से काला भी पड़ गया। पर आखीर में उसने आसमान में रोशनी के आधे गोले की पतली सी लाइन देखी तो उसको लगा कि अब वह रोशनी के पास आ गया है।

कौए ने अपने पंख सीधे किये और फिर अपनी पूरी ताकत से रोशनी की तरफ उड़ चला। अचानक ही दिन की रोशनी बहुत तेज़ हो गयी। कौए को अनगिनत रंग और शक्लें दिखायी देने लगीं तो वह तो उनको देखता का देखता ही रह गया।

इतनी दूर के सफर की थकान के बाद आराम करने के लिये वह एक पेड़ पर बैठ गया। उसके ऊपर जहाँ तक उसकी नजर जाती थी नीले रंग का आसमान ही आसमान फैला पड़ा था। वहाँ उसको बहुत ही अच्छा लग रहा था।

कुछ देर बाद जब उसने अपनी नजर नीची की तो उसने देखा कि वह तो किसी गाँव के पास है जो एक चौड़ी सी नदी के किनारे बसा हुआ है।

जब वह यह सब देख रहा था तो उसने देखा कि उसी पेड़ के पास जिस पेड़ पर वह बैठा हुआ था एक लड़की नदी पर पानी भरने आयी। उस लड़की ने एक बालटी बरफीले पानी में डुबोयी और उसमें से पानी भर कर उसको ले कर अपने घर वापस चल दी।

जब वह लड़की उस पेड़ के नीचे से गुजरी तो कौए ने अपने आपको धूल के एक बहुत ही छोटे से कण में बदल लिया और उस लड़की की तरफ उड़ चला और उसके फ़र के कोट के ऊपर जा कर बैठ गया

जब तक वह अपने पिता के बरफ के बने घर में आयी तब तक वह सब कुछ ध्यान से देखता रहा। उसका पिता गाँव का सरदार था।

उसके घर में अन्दर गरम था। कौए ने चारों तरफ देखा तो सामने ही उसको एक बक्सा दिखायी दे गया जिसके ढक्कन की झिरी के चारों तरफ से रोशनी बाहर निकल रही थी। कौए ने सोचा शायद यही दिन की रोशनी है।

वहीं फर्श पर एक छोटा सा लड़का आराम से खेल रहा था। कौआ जो धूल के कण के रूप में था उस लड़की के फ़र के कोट से उड़ कर उस लड़के के कान में चला गया। लड़के के कान में खुजली आयी तो उसने अपना कान मला और रोने लगा।

उस बच्चे का रोना सुनते ही वह सरदार जो उस लड़के का नाना था वहाँ आया और घुटनों के बल उसके पास बैठते हुए बोला - "क्या बात है बेटा क्यों रोते हो?"

कौआ उस लड़के के कान में फुसफुसा कर बोला - "बोलो कि तुम दिन की रोशनी की गेंद से खेलना चाहते हो।" उस छोटे लड़के ने अपना कान मला और कौए के शब्द दोहरा दिये।

सरदार ने अपनी बेटी को कोने में रखे बक्से को अपने पास लाने के लिये भेजा। वह लड़की कोने में गयी और वह बक्सा उठा कर ले आयी।

सरदार ने उसमें से एक चमकदार गेंद निकाली, उसमें एक रस्सी बाँधी और उस लड़के को खेलने के लिये दे दी। वह गेंद लेने से पहले उस लड़के ने अपना कान फिर से मला।

उस गेंद में बहुत सारी रोशनी और साये और रंग और शक्लें थीं। उस गेंद को ले कर वह लड़का बहुत खुश हो गया। उसकी रस्सी को अपने हाथ में ले कर वह उसको उछाल उछाल कर खेलने लगा।

कौए ने उसका कान फिर खुजलाया तो वह लड़का भी अपना कान मल कर फिर से रो पड़ा। लड़के का नाना बोला - "बेटा, अब क्यों रोते हो? अब क्या बात है?"

कौआ उस लड़के कान में फिर से फुसफुसाया - "बोलो कि तुम इस गेंद को ले कर बाहर जा कर खेलना चाहते हो।"

लड़के ने अपने कान फिर से मले और कौए के कहे शब्दों को फिर से दोहरा दिया।

उसके सरदार नाना ने तुरन्त ही उसको अपनी गोदी में उठाया और उसको बाहर ले गया। उस लड़के की माँ भी उनके पीछे पीछे बाहर चली गयी।

जैसे ही वे अपने बरफ के घर में से बाहर आये कौआ भी लड़के के कान से बाहर निकल आया और फिर से कौआ बन गया।

वह लड़के की तरफ उड़ा, उससे उसकी गेंद की रस्सी छीनी और उसे ले कर नीले आसमान की तरफ उड़ चला। रोशनी की गेंद उसके पीछे थी।

दूर उत्तर में इनूइट लोगों ने देखा कि अँधेरे में से हो कर एक छोटी सी रोशनी उनकी तरफ बढ़ी आ रही है। वह रोशनी पल पल तेज़ होती जा रही थी।

और फिर उस रोशनी में उन्होंने देखा कि कौआ भी उड़ा चला आ रहा था। उस सबको देख कर उन सबकी साँस रुक सी गयी पर फिर वे सब खुशी से चिल्ला पड़े।

वहाँ आ कर कौए ने वह गेंद नीचे गिरा दी तो वह जमीन से टकरा कर टूट कर चकनाचूर हो गयी और उसमें से दिन की रोशनी बाहर निकल कर सारे में बिखर गयी।

इससे सारी अँधेरी जगहों पर उजाला हो गया और सारे साये गायब हो गये। सारा आसमान चमकीला और नीला हो गया।

गहरे रंग के पहाड़ रंगीन हो गये और उनकी शक्ल दिखायी देने लगी। बरफ इतने ज़ोर से चमकने लगी कि इनूइट लोगों को अपनी ऑखों पर हाथ रख कर उसको देखना पड़ा।

सारे लोग हँसने लगे और अपनी अच्छी किस्मत पर खुश होने लगे। पर कौआ बोला कि वह दिन की रोशनी वहाँ हमेशा के लिये नहीं रहने वाली क्योंकि वह दक्षिण के लोगों से दिन की रोशनी की केवल एक ही गेंद ले कर आया था।

छह महीने तक रोशनी देने के बाद उस गेंद को अपनी ताकत फिर से इकठ्ठा करने के लिये छह महीने और लग जायेंगे सो उन छह महीनों में उन सबको अँधेरे में ही रहना पड़ेगा। लोग बोले कि वे छह महीने की रोशनी से ही सन्तुष्ट रह लेंगे।

इतना कह कर उन सब ने कौए को दिन की रोशनी लाने के लिये बार बार धन्यवाद दिया। इसी लिये इनूइट लोग आज भी छह महीने अँधेरे में रहते हैं और छह महीने दिन की रोशनी में रहते हैं।

और इसके लिये वे हमेशा कौए को धन्यवाद देते हैं क्योंकि वही उनके लिये दिन की रोशनी ले कर आया था, चाहे छह महीने के लिये ही सही।

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सुषमा गुप्ता ने देश विदेश की 1200 से अधिक लोक-कथाओं का संकलन कर उनका हिंदी में अनुवाद प्रस्तुत किया है. कुछ देशों की कथाओं के संकलन का  विवरण यहाँ पर दर्ज है. सुषमा गुप्ता की लोक कथाओं की एक अन्य पुस्तक - रैवन की लोक कथाएँ में से एक लोक कथा यहाँ पढ़ सकते हैं. इथियोपिया की 45 लोककथाओं को आप यहाँ लोककथा खंड में जाकर पढ़ सकते हैं.

(क्रमशः अगले अंकों में जारी...)

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फाइनमेन,1,रिलायंस इन्फोकाम,1,रीटा शहाणी,1,रेंसमवेयर,1,रेणु कुमारी,1,रेवती रमण शर्मा,1,रोहित रुसिया,1,लक्ष्मी यादव,6,लक्ष्मीकांत मुकुल,2,लक्ष्मीकांत वैष्णव,1,लखमी खिलाणी,1,लघु कथा,288,लघुकथा,1340,लघुकथा लेखन पुरस्कार आयोजन,241,लतीफ घोंघी,1,ललित ग,1,ललित गर्ग,13,ललित निबंध,20,ललित साहू जख्मी,1,ललिता भाटिया,2,लाल पुष्प,1,लावण्या दीपक शाह,1,लीलाधर मंडलोई,1,लू सुन,1,लूट,1,लोक,1,लोककथा,378,लोकतंत्र का दर्द,1,लोकमित्र,1,लोकेन्द्र सिंह,3,विकास कुमार,1,विजय केसरी,1,विजय शिंदे,1,विज्ञान कथा,79,विद्यानंद कुमार,1,विनय भारत,1,विनीत कुमार,2,विनीता शुक्ला,3,विनोद कुमार दवे,4,विनोद तिवारी,1,विनोद मल्ल,1,विभा खरे,1,विमल चन्द्राकर,1,विमल सिंह,1,विरल पटेल,1,विविध,1,विविधा,1,विवेक प्रियदर्शी,1,विवेक रंजन श्रीवास्तव,5,विवेक सक्सेना,1,विवेकानंद,1,विवेकानन्द,1,विश्वंभर नाथ शर्मा कौशिक,2,विश्वनाथ प्रसाद तिवारी,1,विष्णु नागर,1,विष्णु प्रभाकर,1,वीणा भाटिया,15,वीरेन्द्र सरल,10,वेणीशंकर पटेल ब्रज,1,वेलेंटाइन,3,वेलेंटाइन डे,2,वैभव सिंह,1,व्यंग्य,2075,व्यंग्य के बहाने,2,व्यंग्य जुगलबंदी,17,व्यथित हृदय,2,शंकर 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रचनाकार: रैवन की लोककथाएँ - 1 - : 6 कौआ दिन ले कर आया // सुषमा गुप्ता
रैवन की लोककथाएँ - 1 - : 6 कौआ दिन ले कर आया // सुषमा गुप्ता
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