देश विदेश की लोक कथाएँ — यूरोप–इटली–3 : 13 सोती हुई रानी // सुषमा गुप्ता

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10 सोती हुई रानी [1] एक बार स्पेन में एक बहुत ही अच्छा और न्यायप्रिय राजा राज्य करता था। उसका नाम था मैक्सीमिलियन [2] । उसके तीन बेटे थे – व...

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10 सोती हुई रानी[1]

एक बार स्पेन में एक बहुत ही अच्छा और न्यायप्रिय राजा राज्य करता था। उसका नाम था मैक्सीमिलियन[2]। उसके तीन बेटे थे – विलियम, जौन और छोटा ऐन्डू्र[3]। ऐन्डू्र अपने पिता का सबसे लाड़ला बेटा था।

राजा बहुत बीमार था। उस बीमारी की वजह से उसकी आँखों की देखने की ताकत जाती रही थी। राज्य के सारे डाक्टर बुलाये गये पर कोई उसकी देखने की ताकत वापस नहीं ला सका।

उन डाक्टरों में से सबसे बूढ़े डाक्टर ने कहा — “क्योंकि इस बारे में डाक्टरी का ज्ञान बहुत कम है तो किसी ज्योतिषी को बुलाओ। शायद वे कुछ बता पायें।”

सो चारों तरफ से ज्योतिषी बुलवाये गये। उन्होंने भी अपनी सारी किताबें खोज डालीं पर वे भी डाक्टरों से कुछ ज़्यादा अच्छा हल नहीं बता सके।

इत्तफाक से इन ज्योतिषियों के साथ साथ एक जादूगर[4] भी इन में आ गया था पर कोई उसको जानता नहीं था।

जब सब लोगों को जो कुछ कहना था कह चुके तब वह जादूगर आगे आया और बोला — “मैं आपके जैसे अन्धेपन के कई किस्से जानता हूँ।

इसका कहीं कोई इलाज नहीं है सिवाय “सोती हुई रानी” के शहर में। वहाँ एक कुँआ है उसी के पानी से आपकी आँख की देखने की ताकत वापस आ सकती है।”

यह सुन कर लोग आश्चर्य में पड़ गये क्योंकि इससे पहले किसी ने भी सोती हुई रानी का नाम नहीं सुना था। इससे पहले कि वे यह जानने की कोशिश करते कि वह सोती हुई रानी कौन थी इतनी देर में तो वह जादूगर वहाँ से गायब हो गया और फिर कभी किसी ने उसको वहाँ नहीं देखा।

यह सुन कर राजा यह जानने के लिये उत्सुक हो गया कि वह आदमी कौन था जिसने उसको यह इलाज बताया पर क्योंकि कोई उसको जानता नहीं था किसी ने उसको पहले कभी देखा ही नहीं था इसलिये कोई उसके बारे में कुछ भी नहीं बता सका।

उन ज्योतिषियों में से एक ने कहा कि वह अरमेनिया[5] के पास का कोई जादूगर हो सकता था और यहाँ स्पेन में अपने जादू से आ गया होगा।

राजा ने पूछा — “क्या सोती हुई रानी के शहर का कोई अता पता जानता है?”

एक बूढ़ा दरबारी बोला — “सरकार हम लोगों को तो नहीं मालूम कि वह जगह कहाँ है जब तक कि हम उसे ढूँढें नहीं। अगर मैं जवान होता तो मैं खुद ही उसको ढूँढने के लिये चला जाता।”

इस पर राजा का बड़ा लड़का विलियम बोला — “अगर किसी को उस शहर को ढूँढने जाना है तो मैं जाऊंगा क्योंकि बड़े बेटे होने के नाते यह मेरा फर्ज है कि मैं अपने पिता की तन्दुरुस्ती की देखभाल करूँ।”

राजा प्रेम से बोला — “शाबाश बेटे शाबाश। मेरा आशीर्वाद तुम्हारे साथ है। तुम घोड़ा पैसा या और भी कुछ जो तुमको चाहिये ले जाओ। मैं तीन महीनों में तुम्हारी वापसी का इन्तजार करूँगा कि तुम उस शहर का पता लगा कर आओगे।”

विलियम राज्य के बन्दरगाह पर गया और बूडा[6] जाने वाले एक जहाज़ पर चढ़ गया। बूडा में वह जहाज़ 3 घंटे रुकने वाला था और फिर वहाँ से अरमेनिया के लिये जाने वाला था।

जब जहाज़ बूडा पहुँच गया तो विलियम वहाँ उतर कर वह टापू देखने गया। जब वह वहाँ घूम रहा था तो उसने एक बहुत सुन्दर लड़की देखी और वह उससे बातें करने में लग गया।

उससे बातें करने में वह इतना मग्न हो गया कि उसके 3 घंटे कहाँ चले गये उसको पता ही नहीं चला। 3 घंटे बाद जहाज़ वहाँ से चला गया और विलियम वहीं उसी टापू पर रह गया।

पहले तो उसको इस बात का बहुत अफसोस हुआ कि उसका जहाज़ छूट गया और वह अपने पिता के अन्धेपन की दवा लाने नहीं जा सका पर उस लड़की के साथ ने उसको अपने पिता की बीमारी और अपनी यात्रा का उद्देश्य सभी कुछ भुला दिया।

जब 3 महीने हो गये और विलियम का कहीं पता नहीं चला तो राजा को डर लगा कि कहीं ऐसा न हो कि वह मर गया हो। वह बेचारा अन्धा तो पहले से ही था और ऊपर से बेटे को खोने का दुख।

उसको धीरज देने के लिये उसका बीच वाला बेटा जौन बोला — “पिता जी उस सोती हुई रानी का शहर और उसके कुँए का पानी ढूँढने मैं जाऊंगा।” राजा बहुत डरा कि कहीं उसके इस बेटे को भी कुछ न हो जाये पर फिर भी उसने उसको जाने की इजाज़त दे दी।

वह भी अपने राज्य के बन्दरगाह पर आया और बूडा वाला जहाज़ पकड़ा। इस बार यह जहाज़ वहाँ एक दिन के लिये रुकने वाला था। बड़े भाई की तरह से जौन भी वह टापू देखने के लिये जहाज़ से उतर गया।

वहाँ वह एक बागीचे में घूमने चला गया जहाँ के साफ पानी में बहुत सारे पेड़ों की छाया पड़ रही थी। उस पानी में हर तरह के रंगों की मछलियाँ घूम रही थीं। वह सब उसको बहुत अच्छा लगा।

वहाँ से वह शहर की सड़कों पर घूमने चला गया। घूमते-घूमते वह एक चौराहे पर पहुँच गया जिस पर संगमरमर का एक फव्वारा लगा हुआ था। उस चौराहे के चारों तरफ बहुत सारी इमारतें थीं और उन इमारतों के बीच में एक बहुत ही सुन्दर महल था।

उस महल में सोने चांदी के खम्भे थे और उसकी क्रिस्टल की दीवारें थीं जो धूप में चमक रही थीं। जौन को वहाँ क्रिस्टल की दीवारों के उस पार अपना भाई घूमता हुआ दिखायी दे गया।

उसने उसको आवाज लगायी — “विलियम। तुम यहाँ क्या कर रहे हो? तुम वापस घर क्यों नहीं आये? हम तो समझे कि तुम मर गये हो।” खैर दोनों ने एक दूसरे को गले लगाया।

फिर विलियम बोला — “एक बार जब मैं टापू पर उतर गया तो मैं यहाँ से वापस ही नहीं जा सका। फिर मुझे एक बहुत सुन्दर लड़की मिल गयी जिसके पास बहुत कुछ था।

उस लड़की का नाम लुगीस्टैला है और उसकी एक बहुत ही प्यारी सी छोटी बहिन भी है – इसाबेल[7]। अगर तुमको वह पसन्द हो तो तुम उससे शादी कर लो।”

इसी तरह से 12 घंटे बीत गये और जौन भी विलियम की तरह अपने जहाज़ पर नहीं चढ़ सका। जौन कुछ देर तो दुखी रहा फिर वह भी सब कुछ भूल गया – अपने पिता को, जादुई पानी को और अपने भाई की तरह से वह भी उस क्रिस्टल के महल में बन्दी हो कर रह गया।

फिर जब तीन महीने और बीत गये और राजा का बीच वाला बेटा जौन भी वापस नहीं आया तो राजा मैक्सीमिलियन को चिन्ता हुई। उसको और उसके सारे दरबारियों को डर लगा कि वह भी कहीं अपने बड़े भाई की तरह से ही न मर गया हो।

यह देख कर राजा के सबसे छोटे बेटे ऐन्ड्रू ने ऐलान किया कि अपने भाइयों को ढूँढने और उस जादुई पानी को लेने के लिये अब वह खुद वहाँ जायेगा।

राजा दुखी हो कर बोला — “सो तुम भी मुझे छोड़ कर जाना चाहते हो? अन्धा और दुखी तो मैं पहले से ही हूँ और फिर मैं अपना आखिरी बेटा भी खो दूँ? नहीं नहीं। ऐसा नहीं हो सकता। मै तुमको नहीं जाने दूँगा।”

पर ऐन्ड्रू ने अपने पिता को उम्मीद बॅधायी कि वह चिन्ता न करे वह यकीनन जल्दी ही अपने तीनों बेटों को सकुशल देखेगा। सो राजा ने भारी मन से उसको जाने की इजाज़त दे दी।

वह भी राज्य के बन्दरगाह पर गया और वहाँ से एक जहाज़ पकड़ा। वह जहाज़ भी बूडा के टापू पर रुका। यह जहाज़ वहाँ दो दिन रुकने वाला था।

जहाज के कैप्टेन ने ऐन्ड्रू से कहा कि वह अगर चाहे तो उस टापू को उतर कर देख सकता था पर उसे समय पर जहाज़ में वापस आ जाना चाहिये।

कहीं ऐसा न हो कि वह भी दूसरे दो नौजवानों की तरह से टापू पर उतरे और उनकी तरह से समय पर न आये क्योंकि उसके बाद तो उन दोनों का कहीं पता ही नहीं चला।

ऐन्ड्रू समझ गया कि वह उसके भाइयों के बारे में बात कर रहा था। और अगर वे यहाँ उतरे हैं और फिर वापस जहाज़ पर नहीं आये हैं तो इसका मतलब यह है कि वे यहीं कहीं होंगे।

यह सोच कर वह जहाज़ से उतर गया कि अगर वह इस टापू पर उतर गया तो शायद वह यहाँ अपने भाइयों को देख सके। घूमते-घूमते वह भी उसी क्रिस्टल के महल के पास आ निकला जहाँ उसके भाई रह रहे थे। वे उसको वहाँ दिखायी भी दे गये।

वे आपस में गले मिले। उन्होंने ऐन्ड्रू को बताया कि किस तरह से वे जादू की वजह से उस टापू को नहीं छोड़ सके।

उन्होंने उससे यह भी कहा — “हम लोग तो यहाँ स्वर्ग में रह रहे हैं। हमारे दोनों के पास एक-एक सुन्दर लड़की है। इस टापू की मालकिन मेरी है और उसकी छोटी बहिन जौन की है। अगर तुम भी यहीं रह जाओगे तो हमारी उन लड़कियों की कोई तो बहिन होगी जो तुमको पसन्द . . . .।

पर ऐन्ड्रू ने उनको बीच में ही काट दिया — “भैया तुम लोगों का दिमाग खराब हो गया है इसलिये तुम अपने पिता के लिये अपना फर्ज भूल गये हो।

मैं यहाँ सोती हुई रानी के कुँए का जादुई पानी लेने के लिये आया हूँ और मुझे अपने उस इरादे से कोई नहीं डिगा सकता – न तो दौैैलत, न ही आनन्द और न ही सुन्दर लड़कियाँ।”

यह सुन कर उसके दोनों भाई चुप रह गये और वहाँ से कुछ गुस्से से में चले गये। ऐन्ड्रू भी वहाँ से जल्दी से अपने जहाज़ पर चला आया। जहाज़ के पाल खोल दिये गये और जहाज़ अरमेनिया की तरफ चल दिया।

जैसे ही ऐन्ड्रू अरमेनिया की जमीन पर पहुँचा उसने हर एक से सोती हुई रानी के शहर के बारे में पूछना शुरू कर दिया। पर किसी ने भी उसके बारे में कुछ नहीं सुना था।

हफ्तों बेकार इधर उधर ढूँढने के बाद किसी ने उसको एक बूढ़े के पास भेजा। यह बूढ़ा एक पहाड़ के ऊपर रहता था। यह बूढ़ा बहुत बहुत बहुत ही बूढ़ा था। कोई नहीं जानता था कि उसकी उम्र क्या थी।

ऐन्ड्रू उस पहाड़ पर चढ़ा तो उसको वह दाढ़ी वाला बूढ़ा अपनी झोंपड़ी में बैठा मिल गया। वहाँ जा कर उसने उससे पूछा कि क्या वह सोयी हुई रानी के टापू के बारे में कुछ जानता था।

उस बूढ़े फ़ारफ़नैलो[8] ने उससे कहा — “ओ नौजवान, मैंने इस जगह का नाम सुना तो है पर वह जगह बहुत दूर है।

वहाँ पहुँचने के लिये पहले तुमको एक समुद्र पार करना पड़ेगा जिसको पार करने में तुमको करीब करीब एक महीना लग जायेगा। और उस यात्रा में आये हुए खतरों का तो गिनना ही क्या है।

और अगर तुम वह समुद्र सुरक्षित रूप से पार कर भी गये तो उस सोती हुई रानी के टापू पर तुम्हारे लिये आगे बहुत सारे खतरे हैं। उस टापू का तो नाम ही बदकिस्मती का दूसरा नाम है क्योंकि लोग उसको “आँसुओं का टापू”[9] भी कहते हैं।”

ऐन्ड्रू उस टापू के बारे में जान कर बहुत खुश हुआ। वहाँ से वह ब्रिन्डिसे के बन्दरगाह[10] से जहाज़ पर चढ़ा। वहाँ से समुद्र बहुत ही भयंकर था क्योंकि उस पानी में बहुत बड़े बड़े पोलर भालू थे और उसमें बहुत बड़े बड़े जहाज़ भी चल रहे थे।

पर ऐन्ड्रू एक बहुत ही बहादुर शिकारी था। वह इन सबसे बिल्कुल नहीं डरा। उसका जहाज़ उन पोलर भालुओं के पंजे में से निकलता हुआ “आँसुओं के टापू” में आ पहुँचा।

वहाँ का बन्दरगाह बिल्कुल ही सूना था और वहाँ कोई आवाज भी नहीं सुनायी पड़ रही थी।

ऐन्ड्रू वहाँ उतरा और एक चौकीदार को एक बन्दूक लिये खड़ा पाया पर वह आदमी तो मूर्ति की तरह खड़ा था। उसने उससे जाने के लिये रास्ता पूछा पर वह तो न बोला न हिला।

उसके बाद अपना सामान उठवाने के लिये ऐन्ड्रू वहाँ के मजदूरों की तरफ बढ़ा तो वे भी पत्थर की मूर्ति की तरह से खड़े रहे। उनमें से कुछ की पीठ पर भारी भारी सन्दूक थे और उनका एक पैर आगे की तरफ हवा में उठा हुआ था।

ऐन्ड्रू शहर में दाखिल हुआ। सड़क के एक तरफ उसको एक जूता बनाने वाला दिखायी दिया – शान्त और मूर्ति जैसा। उसका एक हाथ जूते में से धागा निकालते हुए रुक गया था।

सड़क के दूसरी तरफ एक कौफी हाउस के मालिक के हाथ में एक कौफी का बरतन था जिससे वह किसी स्त्री के प्याले में कौफी पलट रहा था। पर दोनों ही चुपचाप और मूर्ति जैसे खड़े थे।

सड़कें खिड़कियाँ और दूकानें सभी आदमियों से भरी हुई थीं पर वे सब मोम के बने पुतले लग रहे थे और बड़े अजीब अजीब मुद्राओं में खड़े थे। यहाँ तक कि घोड़े, कुत्ते बिल्ले और दूसरे प्राणी भी रास्ते में ऐसे ही मूर्ति बने खड़े थे।

इस शान्ति के बीच में से गुजरते हुए वह एक महल के सामने आ खड़ा हुआ। वह महल टापू के पुराने राजाओं की मूर्तियों और उनके पत्थरों से सजा हुआ था।

महल के सामने बहुत सारी मूर्तियों की एक लाइन लगी थी उन पर खुदा हुआ था – “चमकती हुई आत्माओं की रानी के लिये जो इस पैरीमस टापू[11] पर राज करती है।”

ऐन्ड्रू ने सोचा यह रानी कहाँ है। क्या यह वही रानी है जो “सोती हुई रानी” कहलाती है?

ऐसा सोचते हुए वह एक सीढ़ी से ऊपर चढ़ गया और वहाँ से फिर उसने कई कमरे पार किये। वे सब कमरे खूब सजे हुए थे और वहाँ हथियारबन्द लोग खड़े हुए थे। पर उन लोगों पर भी जादू पड़ा हुआ था और वे सब मूर्तियों की तरह ही खड़े हुए थे।

एक कमरे में संगमरमर की सीढ़ियाँ चढ़ कर एक चबूतरा बना हुआ था जिस पर एक सिंहासन रखा हुआ था। उस सिंहासन पर एक छत्र लगा हुआ था। उस पर हीरे जड़ा एक लेबिल लगा था।

पास में ही सोने के एक बरतन में अंगूर की एक बेल उग रही थी। वह कमरे के इस किनारे से दूसरे किनारे की तरफ जा रही थी। बीच में वह बेल उस सिंहासन और उसके छत्र के चारों तरफ लिपटी हुई थी और उनको अंगूर के गुच्छों और उस बेल के पत्तों से सजा रही थी।

और यही नहीं वहाँ के बागीचों में हर तरह के फलों के पेड़ भी बहुत बड़े बड़े थे। उन पेड़ों की शाखाएँ कमरे की खिड़कियों से हो कर अन्दर तक आ रही थीं।

ऐन्ड्रू को चलते चलते बहुत भूख लग आयी थी सो उसने कमरे में आयी हुई एक शाख से एक सेब तोड़ लिया और उसको मुँह से काटा। जैसे ही उसने उस सेब को काटा उसकी आँखों की रोशनी धुँधली पड़ने लगी और जल्दी ही वह अन्धा हो गया।

“उफ, अब मैं इस देश में इधर उधर कैसे जाऊंगा जिसमें लोग मूर्ति बने खड़े हैं।” उसने किसी तरह वहाँ से निकलने की कोशिश की तो वह एक गहरे गड्ढे में गिर पड़ा। उस गड्ढे में पानी था सो वह नीचे पानी में गिर गया।

किसी तरीके से उसने दो चार बार हाथ पैर मार कर बाहर निकलने की कोशिश की। पर जैसे ही उसका सिर उस गड्ढे के पानी से बाहर निकला तो उसको लगा कि उसकी आँखों की रोशनी तो वापस आ रही है।

असल में वह खुद एक कुँए की तली में था और उसका सिर पानी के बाहर था।

उसने सोचा “तो यह है वह कुँआ जिसका पानी आँखों की रोशनी वापस लाता है। वह जादूगर शायद इसी कुँए की बात कर रहा होगा।

इसी कुँए का पानी है जो मेरे पिता की आँखें ठीक कर पायेगा। काश मैं किसी तरह भी यहाँ से बाहर निकलने में कामयाब हो जाऊं तो यह पानी पिता जी के लिये ले जाऊं।”

तभी उसको एक रस्सा मिल गया और वह उसको पकड़ कर ऊपर आ गया।

रात हो गयी थी सो ऐन्ड्रू ने रात को सोने के लिये कोई पलंग ढूँढने की कोशिश की। उसको एक शाही सोने का कमरा मिल गया जो शाही तरीके से सजा हुआ था और जिसमें एक बहुत बड़ा पलंग पड़ा हुआ था।

उस पलंग पर एक बहुत ही सुन्दर लड़की सो रही थी। उस लड़की की आँखें बन्द थीं और लेटी हुई वह बड़ी शान्त लग रही थी। उसके सोने के ढंग से ऐन्ड्रू को लगा कि वह जब सो रही थी तब किसी ने उस पर जादू कर दिया था इसी लिये वह इस तरह सो रही थी।

कुछ सोचने के बाद उसने अपने कपड़े उतारे और यह ध्यान रखते हुए कि वह उस लड़की को पता भी नहीं होने देगा कि वह उसके कमरे में है वह उसके बिस्तर में घुस गया।

सुबह वह सवेरे ही उठ गया और उस लड़की के लिये एक परचा लिख कर उसके पलंग के पास वाली मेज पर रख दिया – “स्पेन के राजा मैक्सीमिलियन का बेटा ऐन्ड्रू खुशी खुशी इस पलंग पर सोया, 21 मार्च 203।”

फिर उसने उस कुँए से जिसके पानी से आँख ठीक होती थी एक बोतल पानी भरा और एक सेब तोड़ा जो अन्धा कर देता था और अपने घर की तरफ चल दिया।

जहाज़ फिर से बूडा रुका। ऐन्ड्रू अपने भाइयों से मिलने के लिये उस टापू पर उतरा और उनसे मिल कर उसने उनको “आँसुओं के टापू” का हाल सुनाया और बताया कि किस तरह उसने उस सुन्दर लड़की के साथ रात गुजारी थी।

फिर उसने उनको वह सेब दिखाया जो आँखों की रोशनी ले लेता था और वह पानी दिखाया जो उस रोशनी को वापस ले आता था।

इस सबको देख कर तो उसके दोनों भाई उससे जलने लगे। सो उन लोगों ने एक प्लान बनाया। उन्होंने उसकी जादुई पानी की बोतल चुरा ली और वैसी ही एक बोतल उसके बदले में रख दी।

फिर उन्होंने उससे कहा कि अपनी अपनी पत्नियों को पिता से मिलाने के लिये वे भी उसके साथ ही घर चलेंगे।

जब राजा मैक्सीमिलियन को यह पता चला कि उसके तीनों बेटे सही सलामत वापस स्पेन आ गये हैं तो उसकी खुशी का कोई ठिकाना न रहा। जब वे आ गये तो उसने उन सबको कई बार गले लगाया।

फिर उसने पूछा — “अच्छा अब यह बताओ कि तुममें से सबसे ज़्यादा खुशकिस्मत कौन रहा?”

विलियम और जौन तो चुप रहे पर ऐन्ड्रू बोला — “पिता जी, मैं यह कह सकता हूँ कि मैं रहा क्योंकि मैंने अपने खोये हुए भाइयों को ढूँढा और उनको यहाँ वापस लाया।

मैं सोती हुई रानी के शहर पहुँचा और वहाँ से वह पानी ले कर आया जिससे अब आपकी आँखें ठीक हो सकती हैं। मुझे एक और भी आश्चर्यजनक चीज़ मिली। उसको भी मैं आपको अभी दिखाऊंगा कि वह कैसे काम करती है।”

इतना कह कर उसने एक सेब निकाला और अपनी माँ को खाने के लिये दिया। रानी ने जैसे ही उसमें दॉत लगाया वैसे ही वह अन्धी हो गयी। वह ज़ोर से चीख पड़ी — “अरे यह क्या हुआ? मुझे तो कुछ दिखायी ही नहीं दे रहा।”

ऐन्ड्रू बोला — “माँ परेशान न हो। मैं आपको अभी ठीक करता हूँ।”

और उसने पानी की बोतल निकाली और बोला — “इसका बस एक बूँद पानी आपकी और पिता जी की आँखों की रोशनी वापस ले आयेगा जो इतने दिनों से नहीं देख पा रहे।”

पर यह पानी तो उसके दोनों बड़े भाइयों ने पहले ही बदल दिया था इसलिये वह पानी जो ऐन्ड्रू के पास था वह तो नकली था वह उसके पिता और उसकी माँ की आँखों की रोशनी वापस नहीं ला सका।

रानी तो रोने लगी, राजा भी बहुत गुस्सा हुआ और ऐन्ड्रू का तो पूरा शरीर ही काँपने लगा।

तब उसके दोनों बड़े भाई बोले — “ऐसा इसलिये हुआ कि इसको तो सोयी हुई रानी के कुँए का पानी मिला ही नहीं। उसे तो हम ले कर आये हैं और वह पानी यह रहा।”

जैसे ही वह चुराया हुआ पानी राजा और रानी की आँखों से लगाया गया उन दोनों की आँखें ठीक हो गयीं और उनकी आँखों की रोशनी वापस आ गयी।

काफी झगड़ा हुआ। ऐन्ड्रू ने अपने भाइयों को चोर और धोखेबाज बताया और उसके भाइयों ने उसको झूठा बताया। राजा तो इस झगड़े का कुछ सिर पैर ही पता नहीं कर सका।

पर आखीर में वह विलियम और जौन की तरफ ही रहा और एन्ड्रू से बोला — “चुप रहो ओ बेशरम कमीने, तुम्हारा कोई इरादा मुझे ठीक करने का तो था ही नहीं बल्कि तुमने तो अपनी माँ को भी अन्धा कर दिया था।

चौकीदार, इस कमीने को जंगल ले जाओ और इसे मार डालो। इसका दिल ला कर मुझे दो नहीं तो और लोग भी मारे जायेंगे।”

राजा के सिपाही ऐन्ड्रू को घसीट कर बाहर जंगल की तरफ ले गये। ऐन्ड्रू चीखता रहा और अपने बचाव में कुछ कुछ कहता रहा पर वे सिपाही तो उसकी कुछ सुन ही नहीं रहे थे।

पर फिर किसी तरह से ऐन्ड्रू उनसे अपनी कहानी कहने और उनको यह विश्वास दिलाने में कामयाब हो गया कि उसने ऐसा कुछ नहीं किया।

सो किसी भले आदमी के खून से हाथ रॅगने की बजाय उन सिपाहियों ने उससे यह वायदा ले लिया कि वह फिर उस शहर कभी वापस नहीं आयेगा और उसको छोड़ दिया।

उन्होंने बाजार से एक सूअर का दिल खरीदा जिसको किसी कसाई ने तभी तभी मारा था और उसको ले कर राजा के पास वापस आ गये।

X X X X X X X

उधर सोती हुई रानी के टापू पर नौ महीने बीत गये और उस सोयी हुई लड़की ने एक बहुत ही सुन्दर बेटे को जन्म दिया। उसको जन्म देते ही वह जाग गयी।

जैसे ही रानी जागी उस टापू का सारा जादू टूट गया जो मोरगैन ले फ़े[12] ने उससे जलने की वजह से उस पर डाला था। उस टापू के और सारे लोग भी जाग गये और ज़िन्दा हो गये। जो सिपाही सब जमे जमे से खड़े थे ढीले पड़ गये, जो आराम से खड़े थे वे सावधान खड़े हो गये।

जूते बनाने वाले ने जूते में धागा डालना शुरू कर दिया और कौफ़ी हाउस वाले ने स्त्री के प्याले में कौफ़ी डालनी शुरू कर दी। बन्दरगाह पर खड़े मजदूरों ने अपना अपना बोझा दूसरों को देना शुरू कर दिया।

रानी ने अपनी आँखें मलीं और बोली — “ मुझे तो आश्चर्य है कि धरती पर कौन सा ऐसा इन्सान है जो इस टापू पर आया और इस कमरे में सोया और मुझे और मेरे आदमियों को उसके जादू से आजाद करा गया जिसके जादू में हम थे।”

तभी एक दासी आयी और उसने उसके पलंग के पास की एक मेज पर रखा एक परचा ला कर उसको दिया। उस परचे से उसको पता चला कि यह आदमी स्पेन के राजा मैक्सीमिलियन का बेटा ऐन्ड्रू था।

तुरन्त ही उसने राजा मैक्सीमिलियन को एक चिठ्ठी लिखी कि वह ऐन्ड्रू को वहाँ तुरन्त ही भेज दे नहीं तो वह स्पेन पर चढ़ाई कर देगी।

जब राजा मैक्सीमिलियन को यह चिठ्ठी मिली तो उसने विलियम और जौन को बुलवाया और वह चिठ्ठी पढ़ने को दी और उनकी राय पूछी।

उनमें से किसी को पता नहीं था कि वे क्या कहें। आखिर विलियम बोला — “हमको नहीं पता कि यह सब क्या है जब तक कि कोई जा कर रानी से यह न पूछे कि इस सबका क्या मतलब है। मैं खुद वहाँ जाता हूँ और पता लगा कर आता हूँ।”

विलियम की यात्रा आसान थी क्योंकि मौरगैन का जादू टूट चुका था और सारे पोलर भालू समुद्र में से गायब हो चुके थे। वहाँ उस टापू के सारे लोग भी ज़िन्दा हो चुके थे सो अब सब कुछ वहाँ सामान्य था। वह रानी के पास जा पहुँचा और बोला “मैं राजकुमार ऐन्ड्रू हूँ।”

रानी ने जो जल्दी ही किसी पर विश्वास नहीं करती थी उससे कुछ सवाल पूछे —

“तुम यहाँ पहली बार किस दिन आये थे?”

“तुमने यह शहर कैसे ढूँढा?”

“जब तुम यहाँ आये तो मैं कहाँ थी?”

“महल में तुम्हारे साथ क्या क्या हुआ था?”

“अब तुम यहाँ क्या नयी चीज़ देखते हो जो तुमने तब यहाँ नहीं देखी थी जब तुम यहाँ पहली बार आये थे?”

रानी ने उससे और भी कई सवाल पूछे। अब विलियम ने खुद तो कुछ किया नहीं था सो वह उनमें से किसी भी सवाल का जवाब ठीक से नहीं दे सका और हकलाने लगा।

रानी को तुरन्त ही पता चल गया कि वह झूठ बोल रहा था। उसने उसका सिर कटवा कर शहर के दरवाजे पर टॅगवा दिया और उसके नीचे लिखवा दिया “अगर तुम झूठ बोलोगे तो तुम्हारा भी यही हाल होगा।

इसके बाद राजा मैक्सीमिलियन को रानी की दूसरी चिठ्ठी मिली कि अगर उसने ऐन्ड्रू को उसके पास नहीं भेजा तो उसकी सेना स्पेन पर हमला करने के लिये तैयार थी। वह उसके राज्य को, उसके परिवार को और उसको भी नष्ट कर देगी।

ऐन्ड्रू को मारने के हुकुम देने से तो राजा पहले ही बहुत दुखी था सो उसने जौन की तरफ देखा और बोला — “अब क्या करें? उसको हम कैसे बतायें कि ऐन्ड्रू तो मर चुका है। और विलियम घर क्यों नहीं आया?”

जौन बोला “ठीक है मैं जाता हूँ। मैं देखता हूँ कि क्या बात है।” वह रानी के टापूूू पर पहुँचा पर शहर के दरवाजे पर विलियम के कटे सिर को टॅगे देख कर उसको जो कुछ जानना था वह जान गया। वह तुरन्त ही वहाँ से उलटे पैरों वापस आ गया।

आ कर बोला — “पिता जी, बस अब हम मारे गये। विलियम मर चुका है और उसका सिर उस शहर के दरवाजे के ऊपर टॅगा हुआ है। अगर मैं अन्दर जाता तो एक और सिर उसके बराबर में लग जाता।”

राजा यह सब सुन कर बहुत दुखी हुआ। “क्या कहा विलियम मर गया? अब मुझे पता चल गया कि मेरा एन्ड्रू बिल्कुल बेकुसूर था और यह सब मुझे सजा देने के लिये हुआ है। अब तो सच बोल दो जौन। मेरे मरने से पहले अपनी बदमाशी मान लो।”

जौन बोला — “इस सबके लिये हमारी पत्नियाँ जिम्मेदार हैं, पिता जी। हम कभी सोती हुई रानी के टापू पर गये ही नहीं। ऐन्ड्रू की जादुई पानी की शीशी को हमने ही एक साधारण पानी की शीशी से बदल दिया था।”

रोते हुए चिल्लाते हुए और अपने बाल खींचते हुए राजा ने उन सिपाहियों को बुलाया और उनको उसे उस जगह ले जाने के लिये कहा जहाँ उन्होंने एन्ड्रू को गाड़ा था।

यह सुन कर सिपाही लोग तो और भी ज़्यादा परेशान हो गये क्योंकि उन्होंने तो ऐन्ड्रू को मारा ही नहीं था छोड़ दिया था और अब वह न जाने कहाँ होगा। राजा समझ गया कि हर जगह दाल में काला है तो उसके मन में एक आशा जागी।

वह सिपाहियों से बोला — “तुम लोग मुझे सच सच बताओ कि तुम लोगों ने मेरे बेटे के साथ क्या किया है। मैं तुमको वचन देता हूँ कि मैं तुम लोगों को माफ कर दूँगा।”

तब सिपाहियों ने राजा को काँपते हुए बताया कि उन्होंने राजकुमार को मारने का उसका हुकुम बिल्कुल नहीं माना और उसको छोड़ दिया था। उनके आश्चर्य का ठिकाना न रहा जब यह सुन कर राजा ने उनको पागलों की तरह चूमना और गले से लगाना शुरू कर दिया।

हर गली के कोने पर यह नोटिस लगा दिया गया कि जो कोई एन्ड्रू को राजा के पास ज़िन्दा ले कर आयेगा उसको ज़िन्दगी भर के लिये भारी इनाम दिया जायेगा।

एन्ड्रू वापस आ गया। राजा और उसके दरबार की खुशी का ठिकाना न रहा। एक बार फिर वह सोती हुई रानी के टापू की तरफ चला। वहाँ उसका बड़ा भारी स्वागत हुआ।

रानी बोली — “एन्ड्रू, तुमने मुझे और मेरे आदमियों को आजाद किया है नयी जिन्दगी दी है। अब तुम ही मेरे पति और इस टापू के राजा बनोगे।”

इसके बाद कई हफ्तों तक उस टापू पर खुशियाँ मनायी जाती रही जिनकी वजह से उस टापू का नाम “आँसुओं के टापू” की बजाय “खुशी का टापू” हो गया।


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सुषमा गुप्ता ने देश विदेश की 1200 से अधिक लोक-कथाओं का संकलन कर उनका हिंदी में अनुवाद प्रस्तुत किया है. कुछ देशों की कथाओं के संकलन का  विवरण यहाँ पर दर्ज है. सुषमा गुप्ता की लोक कथाओं के संकलन में से क्रमशः  - रैवन की लोक कथाएँ,  इथियोपिया इटली की  ढेरों लोककथाओं को आप यहाँ लोककथा खंड में जाकर पढ़ सकते हैं.

(समाप्त)

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देश विदेश की लोक कथाओं की सीरीज़ में प्रकाशित पुस्तकें

36 पुस्तकें www.Scribd.com/Sushma_gupta_1 पर उपलब्ध हैं।

नीचे लिखी हुई पुस्तकें हिन्दी ब्रेल में संसार भर में उन सबको निःशुल्क उपलब्ध है जो हिन्दी ब्रेल पढ़ सकते हैं।

Write to :- E-Mail : hindifolktales@gmail.com

1 नाइजीरिया की लोक कथाएँ–1

2 नाइजीरिया की लोक कथाएँ–2

3 इथियोपिया की लोक कथाएँ–1

4 रैवन की लोक कथाएँ–1

नीचे लिखी हुई पुस्तकें ई–मीडियम पर सोसायटी औफ फौकलोर, लन्दन, यू के, के पुस्तकालय में उपलब्ध हैं।

Write to :- E-Mail : thefolkloresociety@gmail.com

1 ज़ंज़ीबार की लोक कथाएँ — 10 लोक कथाएँ — सामान्य छापा, मोटा छापा दोनों में उपलब्ध

2 इथियोपिया की लोक कथाएँ–1 — 45 लोक कथाएँ — सामान्य छापा, मोटा छापा दोनों में उपलब्ध

नीचे लिखी हुई पुस्तकें हार्ड कापी में बाजार में उपलब्ध हैं।

To obtain them write to :- E-Mail drsapnag@yahoo.com

1 रैवन की लोक कथाएँ–1 — इन्द्रा पब्लिशिंग हाउस

2 इथियोपिया की लोक कथाएँ–1 — प्रभात प्रकाशन

3 इथियोपिया की लोक कथाएँ–2 — प्रभात प्रकाशन

नीचे लिखी पुस्तकें रचनाकार डाट आर्ग पर मुफ्त उपलब्ध हैं जो टैक्स्ट टू स्पीच टैकनोलोजी के द्वारा दृष्टिबाधित लोगों द्वारा भी पढ़ी जा सकती हैं।

1 इथियोपिया की लोक कथाएँ–1

http://www.rachanakar.org/2017/08/1-27.html

2 इथियोपिया की लोक कथाएँ–2

http://www.rachanakar.org/2017/08/2-1.html

3 रैवन की लोक कथाएँ–1

http://www.rachanakar.org/2017/09/1-1.html

4 रैवन की लोक कथाएँ–2

http://www.rachanakar.org/2017/09/2-1.html

5 रैवन की लोक कथाएँ–3

http://www.rachanakar.org/2017/09/3-1-1.html

6 इटली की लोक कथाएँ–1

http://www.rachanakar.org/2017/09/1-1_30.html

7 इटली की लोक कथाएँ–2

http://www.rachanakar.org/2017/10/2-1.html

नीचे लिखी पुस्तकें जुगरनौट डाट इन पर उपलब्ध हैं

1 सोने की लीद करने वाला घोड़ा और अन्य अफ्रीकी लोक कथाएँ

https://www.juggernaut.in/books/8f02d00bf78a4a1dac9663c2a9449940

Updated on Sep 27, 2017

लेखिका के बारे में

clip_image004सुषमा गुप्ता का जन्म उत्तर प्रदेश के अलीगढ़ शहर में सन् 1943 में हुआ था। इन्होंने आगरा विश्वविद्यालय से समाज शास्त्र और अर्थ शास्त्र में ऐम ए किया और फिर मेरठ विश्वविद्यालय से बी ऐड किया। 1976 में ये नाइजीरिया चली गयीं। वहाँ इन्होंने यूनिवर्सिटी औफ़ इबादान से लाइबे्ररी साइन्स में ऐम ऐल ऐस किया और एक थियोलोजीकल कौलिज में 10 वर्षों तक लाइब्रेरियन का कार्य किया।

वहाँ से फिर ये इथियोपिया चली गयीं और वहाँ एडिस अबाबा यूनिवर्सिटी के इन्स्टीट्यूट औफ़ इथियोपियन स्टडीज़ की लाइब्रेरी में 3 साल कार्य किया। तत्पश्चात इनको दक्षिणी अफ्रीका के एक देश. लिसोठो के विश्वविद्यालय में इन्स्टीट्यूट औफ़ सदर्न अफ्रीकन स्टडीज़ में 1 साल कार्य करने का अवसर मिला। वहाँ से 1993 में ये यू ऐस ए आगयीं जहाँ इन्होंने फिर से मास्टर औफ़ लाइब्रेरी एँड इनफौर्मेशन साइन्स किया। फिर 4 साल ओटोमोटिव इन्डस्ट्री एक्शन ग्रुप के पुस्तकालय में कार्य किया।

1998 में इन्होंने सेवा निवृत्ति ले ली और अपनी एक वेब साइट बनायी – www.sushmajee.com। तब से ये उसी वेब साइट पर काम कर रहीं हैं। उस वेब साइट में हिन्दू धर्म के साथ साथ बच्चों के लिये भी काफी सामग्री है।

भिन्न-भिन्न देशों में रहने से इनको अपने कार्यकाल में वहाँ की बहुत सारी लोक कथाओं को जानने का अवसर मिला – कुछ पढ़ने से, कुछ लोगों से सुनने से और कुछ ऐसे साधनों से जो केवल इन्हीं को उपलब्ध थे। उन सबको देख कर इनको ऐसा लगा कि ये लोक कथाएँ हिन्दी जानने वाले बच्चों और हिन्दी में रिसर्च करने वालों को तो कभी उपलब्ध ही नहीं हो पायेंगी – हिन्दी की तो बात ही अलग है अंग्रेजी में भी नहीं मिल पायेंगीं।

इसलिये इन्होंने न्यूनतम हिन्दी पढ़ने वालों को ध्यान में रखते हुए उन लोक कथाओं को हिन्दी में लिखना प्रारम्भ किया। इन लोक कथाओं में अफ्रीका, एशिया और दक्षिणी अमेरिका के देशों की लोक कथाओं पर अधिक ध्यान दिया गया है पर उत्तरी अमेरिका और यूरोप के देशों की भी कुछ लोक कथाएँ सम्मिलित कर ली गयी हैं।

अभी तक 1200 से अधिक लोक कथाएँ हिन्दी में लिखी जा चुकी है। इनको “देश विदेश की लोक कथाएँ” क्रम में प्रकाशित करने का प्रयास किया जा रहा है। आशा है कि इस प्रकाशन के माध्यम से हम इन लोक कथाओं को जन जन तक पहुँचा सकेंगे।

विंडसर, कैनेडा

मई 2016


[1] The Sleeping Queen (Story No 61) – a folktale from Italy from its Montale Pistoiese area. Adapted from the book: “Italian Folktales”, by Italo Calvino. Translated by George Martin in 1980.

[2] Maximilian ruled in Spain.

[3] William, John and little Andrew

[4] Translated for the word “Wizard”

[5] Armenia – a country located in North of Iran, East of Turkey and South of Georgia.

[6] Buda – name of a place

[7] Lugistella and Isabel

[8] Farfanello – name of the old man who told Andrew the address of the Island

[9] Island of Tears

[10] Brindisse port

[11] To Her Majesty, the Queen of Luminous Souls Who reigns over this Isle of Perimus.

[12] Morgan le Fay

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नारायण,1,आरकॉम,1,आरती,1,आरिफा एविस,5,आलेख,4288,आलोक कुमार,3,आलोक कुमार सातपुते,1,आवश्यक सूचना!,1,आशीष कुमार त्रिवेदी,5,आशीष श्रीवास्तव,1,आशुतोष,1,आशुतोष शुक्ल,1,इंदु संचेतना,1,इन्दिरा वासवाणी,1,इन्द्रमणि उपाध्याय,1,इन्द्रेश कुमार,1,इलाहाबाद,2,ई-बुक,374,ईबुक,231,ईश्वरचन्द्र,1,उपन्यास,269,उपासना,1,उपासना बेहार,5,उमाशंकर सिंह परमार,1,उमेश चन्द्र सिरसवारी,2,उमेशचन्द्र सिरसवारी,1,उषा छाबड़ा,1,उषा रानी,1,ऋतुराज सिंह कौल,1,ऋषभचरण जैन,1,एम. एम. चन्द्रा,17,एस. एम. चन्द्रा,2,कथासरित्सागर,1,कर्ण,1,कला जगत,113,कलावंती सिंह,1,कल्पना कुलश्रेष्ठ,11,कवि,2,कविता,3239,कहानी,2360,कहानी संग्रह,247,काजल कुमार,7,कान्हा,1,कामिनी कामायनी,5,कार्टून,7,काशीनाथ सिंह,2,किताबी कोना,7,किरन सिंह,1,किशोरी लाल गोस्वामी,1,कुंवर प्रेमिल,1,कुबेर,7,कुमार करन मस्ताना,1,कुसुमलता सिंह,1,कृश्न चन्दर,6,कृष्ण,3,कृष्ण कुमार यादव,1,कृष्ण खटवाणी,1,कृष्ण जन्माष्टमी,5,के. पी. सक्सेना,1,केदारनाथ सिंह,1,कैलाश मंडलोई,3,कैलाश वानखेड़े,1,कैशलेस,1,कैस जौनपुरी,3,क़ैस जौनपुरी,1,कौशल किशोर श्रीवास्तव,1,खिमन मूलाणी,1,गंगा प्रसाद श्रीवास्तव,1,गंगाप्रसाद शर्मा गुणशेखर,1,ग़ज़लें,550,गजानंद प्रसाद देवांगन,2,गजेन्द्र नामदेव,1,गणि राजेन्द्र विजय,1,गणेश चतुर्थी,1,गणेश सिंह,4,गांधी जयंती,1,गिरधारी राम,4,गीत,3,गीता दुबे,1,गीता सिंह,1,गुंजन शर्मा,1,गुडविन मसीह,2,गुनो सामताणी,1,गुरदयाल सिंह,1,गोरख प्रभाकर काकडे,1,गोवर्धन यादव,1,गोविन्द वल्लभ पंत,1,गोविन्द सेन,5,चंद्रकला त्रिपाठी,1,चंद्रलेखा,1,चतुष्पदी,1,चन्द्रकिशोर जायसवाल,1,चन्द्रकुमार जैन,6,चाँद पत्रिका,1,चिकित्सा शिविर,1,चुटकुला,71,ज़कीया ज़ुबैरी,1,जगदीप सिंह दाँगी,1,जयचन्द प्रजापति कक्कूजी,2,जयश्री जाजू,4,जयश्री राय,1,जया जादवानी,1,जवाहरलाल कौल,1,जसबीर चावला,1,जावेद अनीस,8,जीवंत प्रसारण,141,जीवनी,1,जीशान हैदर जैदी,1,जुगलबंदी,5,जुनैद अंसारी,1,जैक लंडन,1,ज्ञान चतुर्वेदी,2,ज्योति अग्रवाल,1,टेकचंद,1,ठाकुर प्रसाद सिंह,1,तकनीक,32,तक्षक,1,तनूजा चौधरी,1,तरुण भटनागर,1,तरूण कु सोनी तन्वीर,1,ताराशंकर बंद्योपाध्याय,1,तीर्थ चांदवाणी,1,तुलसीराम,1,तेजेन्द्र शर्मा,2,तेवर,1,तेवरी,8,त्रिलोचन,8,दामोदर दत्त दीक्षित,1,दिनेश बैस,6,दिलबाग सिंह विर्क,1,दिलीप भाटिया,1,दिविक रमेश,1,दीपक 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तौंसवी,1,फ्लेनरी ऑक्नर,1,बंग महिला,1,बंसी खूबचंदाणी,1,बकर पुराण,1,बजरंग बिहारी तिवारी,1,बरसाने लाल चतुर्वेदी,1,बलबीर दत्त,1,बलराज सिंह सिद्धू,1,बलूची,1,बसंत त्रिपाठी,2,बातचीत,2,बाल उपन्यास,6,बाल कथा,356,बाल कलम,26,बाल दिवस,4,बालकथा,80,बालकृष्ण भट्ट,1,बालगीत,20,बृज मोहन,2,बृजेन्द्र श्रीवास्तव उत्कर्ष,1,बेढब बनारसी,1,बैचलर्स किचन,1,बॉब डिलेन,1,भरत त्रिवेदी,1,भागवत रावत,1,भारत कालरा,1,भारत भूषण अग्रवाल,1,भारत यायावर,2,भावना राय,1,भावना शुक्ल,5,भीष्म साहनी,1,भूतनाथ,1,भूपेन्द्र कुमार दवे,1,मंजरी शुक्ला,2,मंजीत ठाकुर,1,मंजूर एहतेशाम,1,मंतव्य,1,मथुरा प्रसाद नवीन,1,मदन सोनी,1,मधु त्रिवेदी,2,मधु संधु,1,मधुर नज्मी,1,मधुरा प्रसाद नवीन,1,मधुरिमा प्रसाद,1,मधुरेश,1,मनीष कुमार सिंह,4,मनोज कुमार,6,मनोज कुमार झा,5,मनोज कुमार पांडेय,1,मनोज कुमार श्रीवास्तव,2,मनोज दास,1,ममता सिंह,2,मयंक चतुर्वेदी,1,महापर्व छठ,1,महाभारत,2,महावीर प्रसाद द्विवेदी,1,महाशिवरात्रि,1,महेंद्र भटनागर,3,महेन्द्र देवांगन माटी,1,महेश कटारे,1,महेश कुमार गोंड हीवेट,2,महेश सिंह,2,महेश हीवेट,1,मानसून,1,मार्कण्डेय,1,मिलन चौरसिया मिलन,1,मिलान कुन्देरा,1,मिशेल फूको,8,मिश्रीमल जैन तरंगित,1,मीनू पामर,2,मुकेश वर्मा,1,मुक्तिबोध,1,मुर्दहिया,1,मृदुला गर्ग,1,मेराज फैज़ाबादी,1,मैक्सिम गोर्की,1,मैथिली शरण गुप्त,1,मोतीलाल जोतवाणी,1,मोहन कल्पना,1,मोहन वर्मा,1,यशवंत कोठारी,8,यशोधरा विरोदय,2,यात्रा संस्मरण,31,योग,3,योग दिवस,3,योगासन,2,योगेन्द्र प्रताप मौर्य,1,योगेश अग्रवाल,2,रक्षा बंधन,1,रच,1,रचना समय,72,रजनीश कांत,2,रत्ना राय,1,रमेश उपाध्याय,1,रमेश राज,26,रमेशराज,8,रवि रतलामी,2,रवींद्र नाथ ठाकुर,1,रवीन्द्र अग्निहोत्री,4,रवीन्द्र नाथ त्यागी,1,रवीन्द्र संगीत,1,रवीन्द्र सहाय वर्मा,1,रसोई,1,रांगेय राघव,1,राकेश अचल,3,राकेश दुबे,1,राकेश बिहारी,1,राकेश भ्रमर,5,राकेश मिश्र,2,राजकुमार कुम्भज,1,राजन कुमार,2,राजशेखर चौबे,6,राजीव रंजन उपाध्याय,11,राजेन्द्र कुमार,1,राजेन्द्र विजय,1,राजेश कुमार,1,राजेश गोसाईं,2,राजेश जोशी,1,राधा कृष्ण,1,राधाकृष्ण,1,राधेश्याम द्विवेदी,5,राम कृष्ण खुराना,6,राम शिव मूर्ति यादव,1,रामचंद्र शुक्ल,1,रामचन्द्र शुक्ल,1,रामचरन गुप्त,5,रामवृक्ष सिंह,10,रावण,1,राहुल कुमार,1,राहुल सिंह,1,रिंकी मिश्रा,1,रिचर्ड फाइनमेन,1,रिलायंस इन्फोकाम,1,रीटा शहाणी,1,रेंसमवेयर,1,रेणु कुमारी,1,रेवती रमण शर्मा,1,रोहित रुसिया,1,लक्ष्मी यादव,6,लक्ष्मीकांत मुकुल,2,लक्ष्मीकांत वैष्णव,1,लखमी खिलाणी,1,लघु कथा,288,लघुकथा,1340,लघुकथा लेखन पुरस्कार आयोजन,241,लतीफ घोंघी,1,ललित ग,1,ललित गर्ग,13,ललित निबंध,20,ललित साहू जख्मी,1,ललिता भाटिया,2,लाल पुष्प,1,लावण्या दीपक शाह,1,लीलाधर मंडलोई,1,लू सुन,1,लूट,1,लोक,1,लोककथा,378,लोकतंत्र का दर्द,1,लोकमित्र,1,लोकेन्द्र सिंह,3,विकास कुमार,1,विजय केसरी,1,विजय शिंदे,1,विज्ञान कथा,79,विद्यानंद कुमार,1,विनय भारत,1,विनीत कुमार,2,विनीता शुक्ला,3,विनोद कुमार दवे,4,विनोद तिवारी,1,विनोद मल्ल,1,विभा खरे,1,विमल चन्द्राकर,1,विमल सिंह,1,विरल पटेल,1,विविध,1,विविधा,1,विवेक प्रियदर्शी,1,विवेक रंजन श्रीवास्तव,5,विवेक सक्सेना,1,विवेकानंद,1,विवेकानन्द,1,विश्वंभर नाथ शर्मा कौशिक,2,विश्वनाथ प्रसाद तिवारी,1,विष्णु नागर,1,विष्णु प्रभाकर,1,वीणा भाटिया,15,वीरेन्द्र सरल,10,वेणीशंकर पटेल ब्रज,1,वेलेंटाइन,3,वेलेंटाइन डे,2,वैभव सिंह,1,व्यंग्य,2075,व्यंग्य के बहाने,2,व्यंग्य जुगलबंदी,17,व्यथित हृदय,2,शंकर पाटील,1,शगुन अग्रवाल,1,शबनम शर्मा,7,शब्द संधान,17,शम्भूनाथ,1,शरद कोकास,2,शशांक मिश्र भारती,8,शशिकांत सिंह,12,शहीद भगतसिंह,1,शामिख़ फ़राज़,1,शारदा नरेन्द्र मेहता,1,शालिनी तिवारी,8,शालिनी मुखरैया,6,शिक्षक दिवस,6,शिवकुमार कश्यप,1,शिवप्रसाद कमल,1,शिवरात्रि,1,शिवेन्‍द्र प्रताप त्रिपाठी,1,शीला नरेन्द्र त्रिवेदी,1,शुभम श्री,1,शुभ्रता मिश्रा,1,शेखर मलिक,1,शेषनाथ प्रसाद,1,शैलेन्द्र सरस्वती,3,शैलेश त्रिपाठी,2,शौचालय,1,श्याम गुप्त,3,श्याम सखा श्याम,1,श्याम सुशील,2,श्रीनाथ सिंह,6,श्रीमती तारा सिंह,2,श्रीमद्भगवद्गीता,1,श्रृंगी,1,श्वेता अरोड़ा,1,संजय दुबे,4,संजय सक्सेना,1,संजीव,1,संजीव ठाकुर,2,संद मदर टेरेसा,1,संदीप तोमर,1,संपादकीय,3,संस्मरण,730,संस्मरण लेखन पुरस्कार 2018,128,सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन,1,सतीश कुमार त्रिपाठी,2,सपना महेश,1,सपना मांगलिक,1,समीक्षा,847,सरिता पन्थी,1,सविता मिश्रा,1,साइबर अपराध,1,साइबर क्राइम,1,साक्षात्कार,21,सागर यादव जख्मी,1,सार्थक देवांगन,2,सालिम मियाँ,1,साहित्य समाचार,98,साहित्यम्,6,साहित्यिक गतिविधियाँ,216,साहित्यिक बगिया,1,सिंहासन बत्तीसी,1,सिद्धार्थ जगन्नाथ जोशी,1,सी.बी.श्रीवास्तव विदग्ध,1,सीताराम गुप्ता,1,सीताराम साहू,1,सीमा असीम सक्सेना,1,सीमा शाहजी,1,सुगन आहूजा,1,सुचिंता कुमारी,1,सुधा गुप्ता अमृता,1,सुधा गोयल नवीन,1,सुधेंदु पटेल,1,सुनीता काम्बोज,1,सुनील जाधव,1,सुभाष चंदर,1,सुभाष चन्द्र कुशवाहा,1,सुभाष नीरव,1,सुभाष लखोटिया,1,सुमन,1,सुमन गौड़,1,सुरभि बेहेरा,1,सुरेन्द्र चौधरी,1,सुरेन्द्र वर्मा,62,सुरेश चन्द्र,1,सुरेश चन्द्र दास,1,सुविचार,1,सुशांत सुप्रिय,4,सुशील कुमार शर्मा,24,सुशील यादव,6,सुशील शर्मा,16,सुषमा गुप्ता,20,सुषमा श्रीवास्तव,2,सूरज प्रकाश,1,सूर्य बाला,1,सूर्यकांत मिश्रा,14,सूर्यकुमार पांडेय,2,सेल्फी,1,सौमित्र,1,सौरभ मालवीय,4,स्नेहमयी चौधरी,1,स्वच्छ भारत,1,स्वतंत्रता दिवस,3,स्वराज सेनानी,1,हबीब तनवीर,1,हरि भटनागर,6,हरि हिमथाणी,1,हरिकांत जेठवाणी,1,हरिवंश राय बच्चन,1,हरिशंकर गजानंद प्रसाद देवांगन,4,हरिशंकर परसाई,23,हरीश कुमार,1,हरीश गोयल,1,हरीश नवल,1,हरीश भादानी,1,हरीश सम्यक,2,हरे प्रकाश उपाध्याय,1,हाइकु,5,हाइगा,1,हास-परिहास,38,हास्य,59,हास्य-व्यंग्य,78,हिंदी दिवस विशेष,9,हुस्न तबस्सुम 'निहाँ',1,biography,1,dohe,3,hindi divas,6,hindi sahitya,1,indian art,1,kavita,3,review,1,satire,1,shatak,3,tevari,3,undefined,1,
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रचनाकार: देश विदेश की लोक कथाएँ — यूरोप–इटली–3 : 13 सोती हुई रानी // सुषमा गुप्ता
देश विदेश की लोक कथाएँ — यूरोप–इटली–3 : 13 सोती हुई रानी // सुषमा गुप्ता
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