देश विदेश की लोक कथाएँ — यूरोप–इटली–4 : 6 चालाक देहाती लड़की कैथरीन // सुषमा गुप्ता

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6 चालाक देहाती लड़की कैथरीन [1] एक दिन एक किसान अपने अंगूर के बागीचे में हल चला रहा था कि उसके हल का फल किसी सख्त चीज़ से टकरा गया। उसने झुक क...

6 चालाक देहाती लड़की कैथरीन[1]

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एक दिन एक किसान अपने अंगूर के बागीचे में हल चला रहा था कि उसके हल का फल किसी सख्त चीज़ से टकरा गया। उसने झुक कर देखा तो वह तो एक बहुत ही बढ़िया ओखली[2] थी।

उसने उस ओखली को बाहर निकाल लिया और जब उसने उसकी मिट्टी साफ की तो देखा कि वह तो सोने की ओखली थी। उसने सोचा — “ऐसी ओखली तो केवल एक राजा के पास ही होनी चाहिये सो मैं इसको राजा को दे आता हूँ तो वह मुझे इसके बदले में अच्छा खासा इनाम देंगे।”

जब वह घर आया तो उसकी बेटी कैथरीन उसका इन्तजार कर रही थी। किसान ने अपनी बेटी को उस दिन की मिली सोने की ओखली दिखायी और उसको बताया कि वह उसको राजा को देने जा रहा था।

कैथरीन बोली — “हाँ हाँ इसमें क्या शक है। यह ओखली तो वाकई बहुत सुन्दर है जैसी कि इसको होना चाहिये। पर पिता जी, अगर आप इसको राजा के पास ले जायेंगे तो राजा तो इसमें कोई न कोई कमी निकाल ही देगा वह कहेगा कि इसमें यह चीज़ नहीं है या इसमें वह चीज़ नहीं है और फिर आपको वह चीज़ उसको और देनी पड़ेगी।”

किसान बोला — “और ज़रा यह तो बताना कि इसमें क्या चीज़ नहीं है और राजा को इसमें क्या कमी दिखायी देगी, ओ मेरी सीधी सादी बेटी?”

“आप ज़रा इसको उसको दे कर देखियेगा तो वह कहेगा —

ओखली तो बड़ी भी है और सुन्दर भी, पर ओ बेवकूफ इसका मूसल कहाँ है?

किसान ने अपने कन्धे उचकाये और बोला — “एक राजा ऐसा बोलेगा ऐसा तूने सोचा भी कैसे? तू क्या समझती हो कि क्या राजा तेरे जैसा बेवकूफ है?” यह कह कर उसने उस ओखली को अपनी बगल में दबाया और सीधा राजा के महल की तरफ चल दिया।

जब वह राजा के महल के दरवाजे पर पहुँचा तो पहले तो राजा के चौकीदारों ने उसको महल के अन्दर ही नहीं घुसने दिया। पर जब उसने कहा कि वह राजा के लिये एक बहुत बढ़िया भेंट ले कर आया है तब कहीं जा कर उन्होंने उसको महल में घुसने दिया। वे उसको राजा के पास ले गये।

किसान बोला — “ओ राजा, मुझे अपने अंगूर के बागीचे में यह सोने की ओखली मिली तो मैंने सोचा कि इस ओखली को तो राजा के पास होना चाहिये इसलिये मैं इसको आपके पास ले आया हूँ, अगर आप इसे रखना चाहें तो।”

राजा ने वह ओखली किसान से ले ली। उसको घुमा फिरा कर देखने के बाद ना में सिर हिला कर बोला —

यह ओखली तो बड़ी भी है और सुन्दर भी, पर इसका मूसल कहाँ है?

वह कैथरीन के शब्द ही बोला बस फर्क इतना था कि उसने किसान को बेवकूफ नहीं कहा। वह शायद इसलिये क्योंकि राजा लोग कुलीन घरों के होते हैं और ऐसी भाषा नहीं बोलते।

किसान ने अपने सिर पर हाथ मारा और वह यह कहे बिना न रह सका — “शब्द ब शब्द उसने ठीक ही अन्दाज लगाया था।”

राजा यह सुन कर बोला — “किसने क्या अन्दाजा लगाया था?”

किसान बोला — “माफ कीजियेगा राजा साहब, मेरी बेटी ने मुझसे कहा था कि जब आप यह ओखली राजा को देंगे तो राजा आपसे यही कहेगा और उसने मुझसे यही कहा था जो अभी आपने कहा पर मैंने उसका विश्वास ही नहीं किया।”

राजा बोला — “अरे तब तो तुम्हारी यह बेटी बड़ी होशियार लगती है। ऐसा करो कि तुम यह रुई ले जाओ और उसको बोलना कि वह मेरी सारी सेना के लिये इसकी कमीजें बना दे। पर उसको कहना कि वह यह काम जल्दी ही कर दे क्योंकि मुझे वे अभी चाहिये।”

किसान तो यह सुन कर हक्का बक्का रह गया। पर जैसा कि तुम जानते हो अब तुम राजा से बहस तो कर नहीं सकते न, सो उसने वह ओखली तो वहीं छोड़ दी, रुई की वह छोटी सी गठरी उठायी और राजा को सिर झुका कर अपने घर की तरफ चल दिया।

वह सोच रहा था कि इस ओखली के बदले में कोई इनाम तो उसे क्या मिलता धन्यवाद भी नहीं मिला और उलटे राजा ने उसमें कमी भी निकाल दी और साथ में यह एक मुश्किल काम भी पकड़ा दिया। अब मेरी बेटी बेचारी यह सब कैसे करेगी।

घर आ कर वह कैथरीन से बोला — “बेटी, आज तू फॅस गयी।” और उसने उसको राजा का हुकुम सुना दिया।

कैथरीन बोली — “पिता जी, आप तो इतनी छोटी छोटी बातों पर परेशान हो जाते हैं।” कह कर उसने पिता के हाथ से रुई की गठरी ले ली और उसको हिलाया।

चाहे रुई को कितने भी होशियार आदमी ने क्यों न साफ किया हो पर फिर भी रुई में हमेशा ही थोड़ी बहुत गन्दगी रह ही जाती है सो जैसे ही कैथरीन ने रुई की उस गठरी को उठा कर हिलाया उसमें से कुछ गन्दगी नीचे गिर पड़ी। वह गन्दगी इतने छोटे टुकड़ों में थी कि मुश्किल से ही दिखायी दे रही थी।

कैथरीन ने उस गन्दगी को उठा लिया और उसको अपने पिता को देती हुई बोली — “यह लीजिये पिता जी, आप अभी अभी राजा के पास वापस चले जाइये और मेरी तरफ से उनसे कहियेगा कि मैं उनके लिये कमीजें तो बना दूँगी पर क्योंकि मेरे पास कपड़ा बुनने की कोई चीज़ या मशीन नहीं है तो वह इन मुठ्ठी भर तिनकों से मेरे लिये एक कपड़ा बुनने की मशीन बनवा दें। उनके हुकुम का शब्द ब शब्द पालन किया जायेगा।”

किसान की तो राजा के पास दोबारा जाने की हिम्मत ही नहीं हो रही थी, खास कर कैथरीन का यह सन्देश ले कर, पर कैथरीन जब उसके पीछे पड़ी तो वह जाने के लिये तैयार हो गया।

वह राजा के पास गया और जा कर कैथरीन का वह सन्देश राजा को दिया तो राजा को लगा कि वह लड़की तो बहुत होशियार थी तो उसने उससे मिलने की इच्छा प्रगट की। अब वह उसे अपनी आँख से देखना चाहता था।

उसने किसान से कहा — “तुम्हारी बेटी तो बहुत होशियार है। उसको महल में भेजो ताकि मैं भी उससे बात करके कुछ आनन्द ले सकूँ।

पर ध्यान रहे कि जब वह मेरे पास आये तो न तो वह बिना कपड़ों के हो और न ही वह कपड़े पहने हो। उसका पेट न तो भरा हो और न खाली हो। न उस समय दिन हो न रात हो। न तो वह पैदल हो और न ही घोड़े पर।

वह मेरी हर बात को ध्यान में रख कर ही मेरे पास आये नहीं तो तुम दोनों के सिर काट लिये जायेंगे।”

किसान बेचारा यह सब सुन कर बहुत दुखी हुआ और यह सोच कर मुँह लटकाये हुए घर की तरफ चल दिया कि बस अब तो उन दोनों को मरना ही है अच्छा होता अगर वह अपनी बेटी की बात मान कर वह सोने की ओखली ले कर राजा के पास जाता ही नहीं।

पर अब क्या हो सकता था। अब तो तीर कमान से छूट चुका था। घर आ कर उसने अपनी बेटी से कहा — “बस अब हम तुम दोनों मरने के लिये तैयार हो जायें।”

बेटी ने आश्चर्य से पूछा — “अच्छा? वह क्यों भला? बोलिये पिता जी। वहाँ हुआ क्या मुझे भी तो कुछ बताइये?”

किसान ने राजा के महल में जो कुछ हुआ वह और राजा ने जो कुछ उससे कहा वह सब उसको बता दिया और बोला — “यह सब तू कैसे करेगी बेटी?”

यह सुन कर कैथरीन हँस दी — “बस पिता जी इतनी सी बात? आप बिल्कुल परेशान न हों। यह सब बहुत आसान है। मुझे मालूम है कि यह सब कैसे करना है। बस आप मुझे थोड़ा सा मछली पकड़ने वाला जाल ला दें।” किसान ने उसको मछली पकड़ने वाला जाल ला दिया।

अगले दिन दिन निकलने से पहले उसने कपड़ों की बजाय अपने शरीर को मछली पकड़ने वाले जाल से ढका – इस तरह से न तो वह बिना कपड़ों के थी और न ही उसने कोई कपड़ा पहना हुआ था।

clip_image005उसने एक लूपिन[3] खायी जिससे उसका पेट न तो भरा और न खाली ही रहा।

अपनी बकरी पर चढ़ी और अपने एक पैर को जमीन पर घसीटते हुए और दूसरे पैर को हवा में उठा कर चली। इस तरह से वह न तो अपने पैरों पर चल रही थी और न ही घोड़े पर सवार थी।

जब वह राजा के महल पहुँची तो उस समय बस थोड़ा सा झुटपुटा ही हो रहा था। इस तरह उस समय न तो दिन ही था और न रात ही थी।

इस तरीके से आते देख कर महल के चौकीदारों ने उसको एक पागल लड़की समझा और महल के बाहर ही रोक दया। पर जब उनको यह पता चला कि वह तो केवल राजा के हुकुम का पालन कर रही थी तो चौकीदार उसको राजा के पास ले गये।

वहाँ जा कर कैथरीन बोली — “मैजेस्टी, मैं आपके हुकुम के अनुसार ही आयी हूँ।” उसको इस रूप में देख कर राजा का तो हँसते हँसते पेट ही फटने लगा।

जब उसका हँसना कुछ कम हुआ तो वह बोला — “कैथरीन, मैं तुम्हारे जैसी चतुर लड़की की ही तलाश में था। मैं तुमसे शादी करूँगा और तुमको अपनी रानी बनाऊँगा पर एक शर्त पर कि तुम मेरे कामों में दखल नहीं दोगी। बोलो क्या तुम्हें मंजूर है? मुझसे शादी करोगी?”

शायद राजा सोच रहा था कि कैथरीन उससे ज़्यादा होशियार है इसी लिये उसने यह शर्त रखी। कैथरीन ने कहा कि वह अपने पिता से पूछ कर बतायेगी।

पर किसान ने जब यह सुना तो बोला — “देखो बेटी, अगर राजा तुमको अपनी पत्नी बनाना चाहता है तो तुम्हारे पास और कोई चारा नहीं है सिवाय उससे शादी करने के।

पर यह भी ख्याल रखना कि अगर राजा ने इतनी जल्दी यह निश्चय किया है कि वह क्या चाहता है तो उतनी ही जल्दी वह यह भी निश्चय कर सकता है कि वह क्या नहीं चाहता है।

इसके साथ यह भी ख्याल रखना कि तुम अपने काम वाले कपड़े यहाँ खूँटी पर टॉग जाना क्योंकि अगर कभी तुमको घर वापस आना पड़ जाये तो कम से कम तुम्हारे पास पहनने के कपड़े तो हों।”

पर कैथरीन तो इतनी खुश और इतनी उमंग में थी कि उसने अपने पिता की बातों पर ध्यान ही नहीं दिया। कुछ दिन बाद कैथरीन की शादी राजा से हो गयी।

राज्य भर में खुशियाँ मनायीं गयीं। मेले लगे। सराय लोगों से भर गयीं और बहुत सारे किसानों को तो चौराहों पर सोना पड़ा। वे चौराहे भी राजा के महल तक लोगों से भरे पड़े थे।

एक किसान अपनी एक गाय जिसको बच्चा होने वाला था वह वहाँ उसको बेचने के लिये ले कर आया था पर उसको ऐसी कोई जगह नहीं मिल रही थी जहाँ वह अपनी गाय रख सकता।

यह देख कर एक सराय के मालिक ने उससे कहा कि वह अपनी गाय उसके शैड में रख ले। उसके शैड में दूसरे किसानों का सामान भी रखा हुआ था सो वहाँ उस किसान ने अपनी गाय को एक दूसरे किसान की गाड़ी से बॉध दिया।

इत्तफाक की बात कि उसी रात को उसकी गाय को बच्चा बछड़ा हो गया। सुबह को गाय का मालिक अपने दोनों जानवरों को वहाँ से ले कर जाने लगा कि तभी उस गाड़ी का मालिक भी वहाँ अपनी गाड़ी ले जाने के लिये आ गया जिसकी गाड़ी से गाय वाले ने अपनी गाय बॉधी थी।

उसने गाय वाले से चिल्लाते हुए कहा — “गाय के लिये तो ठीक है कि वह तुम्हारी है पर बछड़े को मत छूना वह मेरा है।”

गाय वाला बोला — “तुम क्या कहना चाह रहे हो कि यह बछड़ा तुम्हारा है? यह बछड़ा मेरी गाय ने पिछली रात को ही तो दिया है।”

गाड़ी वाले ने पूछा — “पर यह बछड़ा मेरा क्यों नहीं है। गाय गाड़ी से बॅधी थी और गाड़ी मेरी है इसलिये यह बछड़ा भी गाड़ी के मालिक का ही हुआ न?”

दोनों में गरमा गरम बहस शुरू हो गयी। गुस्से में आ कर उन दोनों ने पास में पड़ीं डंडियाँ उठा लीं और एक दूसरे को मारने लगे।

दोनों की लड़ाई का शोर सुन कर वहाँ भीड़ इकठ्ठी हो गयी। सिपाही भी दौड़ पड़े। उन्होंने दोनों को अलग अलग किया और दोनों को पकड़ कर सीधे राजा के दरबार में ले गये।

राजधानी की यह पुरानी रीति थी कि उन दिनों राज काज में राजा की रानियाँ भी अपनी राय दे सकती थीं पर रानी कैथरीन के साथ परेशानी यह थी कि जब भी राजा कोई फैसला सुनाता था तो रानी उसका विरोध करती।

राजा उसकी इस बात से थक गया था सो उसने उससे कहा — “मैंने तुमको पहले ही मना किया था कि तुम मेरे मामलों के बीच में नहीं बोलोगी पर तुम सुनती ही नहीं हो। आगे से तुम इस न्याय के दरबार[4] में बिल्कुल नहीं बैठोगी।”

कैथरीन ने ऐसा ही किया सो जब वे दोनों किसान उस न्याय के दरबार में लाये गये तब कैथरीन वहाँ नहीं थी। दोनों तरफ की बातें सुन कर राजा ने अपना फैसला सुनाया कि बछड़ा गाड़ी के साथ रहेगा।

गाय के मालिक को यह फैसला बिल्कुल ही अन्यायपूर्ण लगा पर वह कर ही क्या सकता था। राजा का फैसला आखिरी फैसला था।

किसान को इस तरीके से परेशान देख कर सराय के मालिक ने उसको सलाह दी कि वह रानी के पास जाये वही उसके लिये कोई आसान रास्ता निकालेगी।

वह किसान महल गया और वहाँ जा कर एक नौकर से कहा — “क्या मैं रानी साहिबा से बात कर सकता हूँ?”

नौकर ने कहा कि यह मुमकिन नहीं है क्योंकि राजा ने रानी को लोगों के मुकदमे सुनने से मना कर रखा है।

किसान यह सुन कर बागीचे की दीवार तक अकेला ही चलता चला गया। वहाँ उसको रानी दिखायी दे गयी तो वह बागीचे की दीवार कूद कर अन्दर पहुँच गया और रानी के सामने जा कर रो पड़ा। रो कर उसने रानी को बताया कि उसके साथ उसके पति ने कैसा अन्याय किया है।

रानी बोली — “मेरी सलाह यह है कि राजा कल शिकार के लिये जा रहे हैं। वह एक झील के पास शिकार करने जायेंगे। आज कल वह झील सूखी पड़ी रहती है तो तुम ऐसा करना कि एक मछली पकड़ने का जाल अपनी कमर की पेटी से लटका लेना और उस सूखी झील में मछली पकड़ने का बहाना करना।

जब राजा किसी को उस सूखी झील में मछली पकड़ते देखेगा तो वह हँसेगा और तुमसे पूछेगा कि तुम एक सूखी झील में मछली कैसे पकड़ रहे हो तो तुम उनको यह जवाब देना — “मैजेस्टी, अगर एक गाड़ी एक बछड़े को जन्म दे सकती है तो मैं सूखी झील में मछली क्यों नहीं पकड़ सकता?”

अगली सुबह वह किसान अपना मछली पकड़ने वाला जाल ले कर उस झील की तरफ चल दिया जहाँ राजा शिकार खेलने के लिये जाने वाला था।

वह उस सूखी झील के किनारे बैठ गया और मछली का जाल उस झील के अन्दर डाल कर मछली पकड़ने का बहाना करने लगा। पहले वह उस जाल को झील में नीचे गिराता और फिर उसको ऊपर उठाता जैसे कि वह उस जाल में फॅसी मछली निकाल रहा हो।

तभी वहाँ राजा अपने सैनिकों के साथ शिकार के लिये आ गये और उस किसान को उस सूखी झील में मछली पकड़ते देखा तो हँस कर बोले — “भले आदमी, क्या तुम्हारा दिमाग खराब हो गया है जो तुम सूखी झील में मछलियाँ पकड़ रहे हो?”

किसान ने राजा साहब को वही जवाब दे दिया जो रानी ने उसे बताया था — “मैजेस्टी, अगर एक गाड़ी एक बछड़े को जन्म दे सकती है तो मैं सूखी झील में मछली क्यों नहीं पकड़ सकता?”

यह जवाब सुन कर राजा बोला — “भले आदमी, ऐसा लगता है कि यह जवाब तुमको किसी ने सिखाया है। लगता है कि तुमने रानी से बात की है।”

किसान ने स्वीकार किया कि हाँ उसने रानी से ही बात की है। इस पर राजा ने बछड़े के बारे में एक और नया फैसला सुना दिया कि बछड़ा गाय वाले किसान का था।

उसके बाद उसने कैथरीन को बुलाया और कहा — “तुम फिर सब गड़बड़ कर रही हो और तुमको पता है कि मैंने तुमको यह सब करने से मना किया है पर तुम मानती ही नहीं हो इसलिये अब मैं तुमको अपने घर में नहीं रख सकता। तुम अब अपने घर जा सकती हो।”

कुछ पल रुक कर वह बोला — “और हाँ, जो तुमको यहाँ सब से ज़्यादा पसन्द हो वह एक चीज़ तुम अपने साथ अपने घर ले जा सकती हो। तुम इसी शाम को अपने घर चली जाओ और जा कर फिर से एक देहाती लड़की बन जाओ।”

कैथरीन ने बड़ी नम्रता से कहा — “मैं वैसा ही करूँगी जैसा आप कहेंगे पर आप मेरे ऊपर एक मेहरबानी करें कि आप मुझे कल जाने की इजाज़त दे दें क्योंकि अगर मैं आज गयी तो हम दोनों के लिये यह बड़े शरम की बात होगी और आपकी प्रजा हमारे बारे में बातें बनायेगी।”

राजा बोला — “ठीक है। हम लोग आज शाम को आखिरी बार खाना एक साथ खायेंगे और फिर कल सुबह तुम चली जाना।”

कैथरीन तो बहुत होशियार थी। शाम को उसने रसोइये को भुना हुआ माँस, सूअर का माँस और दूसरा भारी खाना बनाने का हुकुम दिया।

यह खाना खाने से राजा को नींद आती और उसको प्यास भी बहुत लगती। फिर उसने उनसे कमरे में से सबसे अच्छी शराब लाने के लिये कहा।

जब वे दोनों खाना खाने बैठे तो राजा ने खूब पेट भर कर खाना खाया और जी भर कर शराब पी। कैथरीन उसके गिलास में शराब उॅडेलती रही और राजा पीता रहा।

जल्दी ही राजा को ठीक से दिखायी देना भी बन्द हो गया और वह अपनी आराम कुरसी पर ही गहरी नींद सो गया।

कैथरीन ने नौकरों को बुलाया कि वे राजा की आराम कुरसी ले कर उसके पीछे पीछे आयें। साथ में उसने यह भी कहा कि वे यह काम बिल्कुल चुपचाप रह कर करें एक शब्द भी न बोलें।

वे सब महल से बाहर निकले फिर शहर के दरवाजे से बाहर निकले और फिर वह अपने घर ही आ कर रुकी। तब तक काफी रात जा चुकी थी।

उसने दरवाजे पर से ही आवाज लगायी — “पिता जी, मैं हूँ दरवाजा खोलिये।”

अपनी बेटी की आवाज सुन कर बूढ़ा किसान खिड़की की तरफ दौड़ा और बोला — “बेटी, रात को इस समय? मैंने तुझसे कहा था न कि इन लोगों का कोई भरोसा नहीं।

अच्छा हुआ कि मैंने अपनी अक्लमन्दी से तेरे काम करने वाले कपड़े यहाँ रखवा लिये थे। वे अभी यहीं हैं, खूँटी पर टॅगे हुए हैं तेरे कमरे में।”

कैथरीन बोली — “पिता जी, पहले मुझे अन्दर तो आने दीजिये। फिर बात करते हैं।”

किसान ने घर का दरवाजा खोल दिया तो देखा कि कुछ नौकर एक आराम कुरसी पर राजा को बिठाये लिये चले आ रहे हैं। किसान की तो समझ में ही नहीं आया कि यह सब हो क्या रहा है।

कैथरीन राजा को अपने कमरे में ले गयी। उसके कपड़े उतारे और अपने बिस्तर में सुला दिया। यह करके उसने सब नौकरों को वापस महल भेज दिया और वह खुद भी वहीं उसी कमरे में सो गयी।

आधी रात के करीब राजा की आँख खुली तो उसको अपना बिस्तर का गद्दा कुछ सख्त सा लगा और चादरें कुछ खुरदरी लगीं। उसने करवट बदली तो देखा कि उसकी पत्नी भी वहीं पास में ही सो रही थी।

उसने कैथरीन को जगाया और उससे पूछा — “कैथरीन, क्या मैंने तुमसे यह नहीं कहा था कि तुम अपने घर चली जाओ?”

कैथरीन बोली — “हाँ राजा साहब। आपने कहा तो था पर अभी दिन नहीं निकला है इसलिये अभी आप सो जाइये। सुबह होने पर बात करेंगे।” राजा फिर सो गया।

सुबह को जब वह गधों के रेंकने आीर भेड़ों के मिमियाने की आवाज सुन कर उठा तो देखा कि दिन निकल आया था और सूरज की किरणें कमरे के अन्दर आ रहीं थीं।

वह चौंक कर उठा क्योंकि वह यह समझ ही नहीं पाया कि वह था कहाँ। पर यह वह यकीन से कह सकता था कि वह उसके अपने महल का उसका अपना कमरा नहीं था।

कैथरीन बोली — “पर आपने मुझसे यह भी तो कहा था कि मैं अपनी सबसे ज़्यादा पसन्द की एक चीज़ महल से ले कर अपने घर जा सकती हूँ। मुझे आप सबसे ज़्यादा पसन्द थे सो मैं आपको ले कर अपने घर चली आयी और अब मैं आपको अपने पास ही रखने वाली हूँ।”

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राजा यह सुन कर खूब हँसा और फिर दोनों में सुलह हो गयी। वे दोनों अपने महल वापस चले गये। वे लोग अभी भी वहाँ रह रहे हैं और उसके बाद से राजा अपनी न्याय के दरबार में अपनी पत्नी के बिना नहीं बैठा।


[1] Catherine, Sly Country Lass (Story No 72) – a folktale from Montale area, Italy, Europe.

Adapted from the book “Italian Folktales” by Italo Calvino. 1956. Translated by George Martin in 1980

[2] Translated for the word “Mortar”. See the picture of a mortar and a pestle above.

[3] Lupin or Lupien is a flowering plant whose seeds are eaten, but never have they been accorded the same status as soybeans or dry peas and other pulse crops. See the Lupin beans and its plant images above.

[4] Court of Justice

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सुषमा गुप्ता ने देश विदेश की 1200 से अधिक लोक-कथाओं का संकलन कर उनका हिंदी में अनुवाद प्रस्तुत किया है. कुछ देशों की कथाओं के संकलन का  विवरण यहाँ पर दर्ज है. सुषमा गुप्ता की लोक कथाओं के संकलन में से क्रमशः  - रैवन की लोक कथाएँ,  इथियोपिया इटली की  ढेरों लोककथाओं को आप यहाँ लोककथा खंड में जाकर पढ़ सकते हैं.

(क्रमशः अगले अंकों में जारी….)

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पाटील,1,शगुन अग्रवाल,1,शबनम शर्मा,7,शब्द संधान,17,शम्भूनाथ,1,शरद कोकास,2,शशांक मिश्र भारती,8,शशिकांत सिंह,12,शहीद भगतसिंह,1,शामिख़ फ़राज़,1,शारदा नरेन्द्र मेहता,1,शालिनी तिवारी,8,शालिनी मुखरैया,6,शिक्षक दिवस,6,शिवकुमार कश्यप,1,शिवप्रसाद कमल,1,शिवरात्रि,1,शिवेन्‍द्र प्रताप त्रिपाठी,1,शीला नरेन्द्र त्रिवेदी,1,शुभम श्री,1,शुभ्रता मिश्रा,1,शेखर मलिक,1,शेषनाथ प्रसाद,1,शैलेन्द्र सरस्वती,3,शैलेश त्रिपाठी,2,शौचालय,1,श्याम गुप्त,3,श्याम सखा श्याम,1,श्याम सुशील,2,श्रीनाथ सिंह,6,श्रीमती तारा सिंह,2,श्रीमद्भगवद्गीता,1,श्रृंगी,1,श्वेता अरोड़ा,1,संजय दुबे,4,संजय सक्सेना,1,संजीव,1,संजीव ठाकुर,2,संद मदर टेरेसा,1,संदीप तोमर,1,संपादकीय,3,संस्मरण,730,संस्मरण लेखन पुरस्कार 2018,128,सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन,1,सतीश कुमार त्रिपाठी,2,सपना महेश,1,सपना मांगलिक,1,समीक्षा,847,सरिता पन्थी,1,सविता मिश्रा,1,साइबर अपराध,1,साइबर क्राइम,1,साक्षात्कार,21,सागर यादव जख्मी,1,सार्थक देवांगन,2,सालिम मियाँ,1,साहित्य समाचार,98,साहित्यम्,6,साहित्यिक गतिविधियाँ,216,साहित्यिक बगिया,1,सिंहासन बत्तीसी,1,सिद्धार्थ जगन्नाथ जोशी,1,सी.बी.श्रीवास्तव विदग्ध,1,सीताराम गुप्ता,1,सीताराम साहू,1,सीमा असीम सक्सेना,1,सीमा शाहजी,1,सुगन आहूजा,1,सुचिंता कुमारी,1,सुधा गुप्ता अमृता,1,सुधा गोयल नवीन,1,सुधेंदु पटेल,1,सुनीता काम्बोज,1,सुनील जाधव,1,सुभाष चंदर,1,सुभाष चन्द्र कुशवाहा,1,सुभाष नीरव,1,सुभाष लखोटिया,1,सुमन,1,सुमन गौड़,1,सुरभि बेहेरा,1,सुरेन्द्र चौधरी,1,सुरेन्द्र वर्मा,62,सुरेश चन्द्र,1,सुरेश चन्द्र दास,1,सुविचार,1,सुशांत सुप्रिय,4,सुशील कुमार शर्मा,24,सुशील यादव,6,सुशील शर्मा,16,सुषमा गुप्ता,20,सुषमा श्रीवास्तव,2,सूरज प्रकाश,1,सूर्य बाला,1,सूर्यकांत मिश्रा,14,सूर्यकुमार पांडेय,2,सेल्फी,1,सौमित्र,1,सौरभ मालवीय,4,स्नेहमयी चौधरी,1,स्वच्छ भारत,1,स्वतंत्रता दिवस,3,स्वराज सेनानी,1,हबीब तनवीर,1,हरि भटनागर,6,हरि हिमथाणी,1,हरिकांत जेठवाणी,1,हरिवंश राय बच्चन,1,हरिशंकर गजानंद प्रसाद देवांगन,4,हरिशंकर परसाई,23,हरीश कुमार,1,हरीश गोयल,1,हरीश नवल,1,हरीश भादानी,1,हरीश सम्यक,2,हरे प्रकाश उपाध्याय,1,हाइकु,5,हाइगा,1,हास-परिहास,38,हास्य,59,हास्य-व्यंग्य,78,हिंदी दिवस विशेष,9,हुस्न तबस्सुम 'निहाँ',1,biography,1,dohe,3,hindi 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रचनाकार: देश विदेश की लोक कथाएँ — यूरोप–इटली–4 : 6 चालाक देहाती लड़की कैथरीन // सुषमा गुप्ता
देश विदेश की लोक कथाएँ — यूरोप–इटली–4 : 6 चालाक देहाती लड़की कैथरीन // सुषमा गुप्ता
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