देश विदेश की लोक कथाएँ — यूरोप–इटली–5 : 6 जूँ की खाल // सुषमा गुप्ता

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6 जूँ की खाल [1] एक बार एक राजा अपने खाली समय में बाहर घूम रहा था कि उसको अपने ऊपर एक जूँ चलती दिखायी दे गयी। अब वह जूँ क्योंकि एक राजा के ऊ...

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6 जूँ की खाल[1]

एक बार एक राजा अपने खाली समय में बाहर घूम रहा था कि उसको अपने ऊपर एक जूँ चलती दिखायी दे गयी।

अब वह जूँ क्योंकि एक राजा के ऊपर चल रही थी इसलिये वह एक खास जूँ थी और उसकी इज़्ज़त होनी चाहिये थी।

सो बजाय इसके कि वह राजा उसे मार कर फेंक देता वह उसको अपने महल में ले गया और उसकी ठीक से देखभाल करने लगा।

राजा की देखभाल में वह जूँ बढ़ती रही और एक मोटी बिल्ली जैसी मोटी हो गयी। वह चौबीस घंटे एक कुरसी पर बैठी रहती। कुछ दिनों बाद तो वह एक मोटे सूअर के बराबर मोटी हो गयी तो राजा को उसको एक आराम कुरसी पर बिठाना पड़ गया।

और कुछ दिनों बाद वह एक बछड़े के बराबर मोटी हो गयी तो उसको जानवरों के घर में रखना पड़ा। पर वह जूँ तो बराबर बढ़ती ही जा रही थी सो जल्दी ही वह जानवरों का घर भी उसके लिये छोटा पड़ने लगा।

अब राजा ने उसको मरवा दिया। उसकी खाल निकलवा ली और उस खाल को महल के दरवाजे पर टाँग दिया।

फिर उसने अपने राज्य भर में मुनादी पिटवा दी कि जो कोई यह बतायेगा कि वह खाल किस जानवर की है वह अपनी बेटी की शादी उसी से कर देगा। पर जिसने भी गलत बताया तो उसको वह मौत की सजा दे देगा।

जैसे ही वह मुनादी पिटी आदमियों की एक लम्बी लाइन राजा के महल के दरवाजे पर लग गयी। सभी उस जानवर का नाम बता कर राजकुमारी से शादी करना चाहते थे।

पर किसको यह अन्दाजा था कि वह जूँ की खाल होगी सो कोई भी उस खाल के जानवर का सही नाम नहीं बता सका और सब मारे गये। फाँसी देने वाले दिन रात लोगों को फाँसी चढ़ाने पर लगे हुए थे।

मजे की बात यह थी कि राजकुमारी को खुद को भी यह पता नहीं था कि वह खाल किसकी है।

राजा की बेटी का एक प्रेमी था। उसका वह प्रेमी राजा की बेटी से शादी करने के लिये बहुत बेचैन था। राजा को अपनी बेटी के उस प्रेमी के बारे में पता नहीं था।

तभी राजा की बेटी को किसी नौकर से यह पता चला कि वह खाल जूँ की थी। सो रोज की तरह जब उसका प्रेमी शाम को उससे खिड़की के नीचे मिलने आया तो उसने उसको फुसफुसा कर यह बताया — “कल तुम मेरे पिता के पास जाना और उनको कहना कि यह खाल जूँ की है।”

पर राजकुमारी की आवाज बहुत धीमी होने की वजह से उसका वह प्रेमी उसके शब्द ठीक से नहीं सुन सका।

वह बोला — “तुमने क्या कहा चूहा? एक बड़ा सा चूहा?”[2]

राजकुमारी थोड़ी ज़ोर से बोली — “नहीं, जूँ।”

“क्या? तीतर?”[3]

अब की बार वह चिल्लायी — “नहीं, जूँ, जूँ।”

“अच्छा, अच्छा, अब मैं समझ गया। ठीक है मैं कल देखूँगा।” कह कर वह वहाँ से चला गया।

अब राजा की बेटी की खिड़की के नीचे एक कुबड़ा जूता ठीक करने वाला बैठता था। वह ये सब बातें सुन रहा था। यह सुन कर उसने अपने मन में कहा — “अब देखता हूँ कि तुझसे कौन शादी करता है, मैं या वह तेरा प्रेमी।”

उसने अपना सामान तो वहीं छोड़ा और तुरन्त ही वहाँ से राजा के पास भागा गया और वहाँ जा कर बोला — “राजा साहब, राजा साहब, मैं यहाँ इसलिये आया हूँ कि आपकी उस खाल के जानवर के नाम का अन्दाजा लगा सकूँ।”

राजा बोला — “खयाल रखना। बहुत सारे आदमी पहले ही मारे जा चुके हैं।”

कुबड़ा बोला — “यह तो हम अभी देखेंगे कि मैं भी मरता हूँ कि नहीं।”

राजा ने उस कुबड़े को वह खाल दिखायी तो उस कुबड़े ने पहले तो उसको अच्छी तरह से देखने का नाटक किया, फिर उसको सूँघा, फिर सिर खुजलाया और फिर कुछ सोच कर बोला — “राजा साहब, इसके जानवर को पहचानने में तो बहुत देर नहीं लगेगी। यह तो जूँ की खाल है।”

राजा तो उस कुबड़े की होशियारी देख कर दंग रह गया। हालाँकि उसकी समझ में इसका राज़ तो नहीं आ सका पर वायदा तो वायदा होता है इसलिये बिना एक शब्द कहे उसने अपनी बेटी को बुला भेजा और तुरन्त ही उसको उस कुबड़े की पत्नी घोषित कर दी।

बेचारी राजकुमारी जिसको इस बारे में पूरा विश्वास था कि वह अगले दिन अपने प्रेमी से ही शादी कर पायेगी अब बहुत ही दुखी थी।

वह छोटा कुबड़ा अब राजा बन गया और वह राजकुमारी उसकी रानी बन गयी। पर उसके साथ रहने से राजकुमारी की ज़िन्दगी की सारी खुशियाँ चली गयीं।

उसकी दासियों में से एक बूढ़ी दासी थी जो अपनी रानी को हँसते हुए देखने के लिये कुछ भी कर सकती थी।

सो एक दिन सुबह उसने रानी से कहा — “रानी जी, मैंने कल तीन कुबड़े शहर में नाचते गाते खेलते घूमते हुए देखे और उनको देख कर सब हँस रहे थे।

आप क्या सोचती हैं कि मैं उनको यहाँ शाही महल में ले आऊँ ताकि वे आपका थोड़ा दिल बहला दें?”

रानी बोली — “तुम पागल हुई हो क्या? अगर वह कुबड़ा राजा यहाँ आ गया और उसने उनको देख लिया तो वह क्या कहेगा। वह सोचेगा कि हमने उन कुबड़ों को यहाँ उसकी हँसी उड़ाने के लिये बुलाया है।”

दासी ने जवाब दिया — “आप चिन्ता न करें अगर राजा साहब यहाँ आ गये तो हम उन कुबड़ों को एक बक्से में बन्द कर देंगे।”

सो वे तीन कुबड़े गवैये महल में रानी के पास आये और रानी को शाही तरीके से हँसाने की कोशिश करने लगे। रानी भी उनकी बातों पर बहुत हँसी, बहुत हँसी।

पर जब वे राजकुमारी को हँसा रहे थे तभी बीच में राजा आ गये और दरवाजे पर आहट हुई।

दासी ने तीनों कुबड़ों को गरदन से पकड़ा और एक बड़ी सी आलमारी में बन्द करके उसका दरवाजा बन्द कर दिया।

और रानी राजा के लिये यह कहती हुई दरवाजा खोलने के लिये चली गयी “ठीक है, ठीक है मैं आ रही हूँ।” राजा अन्दर आ गये। उन्होंने दोनों ने मिल कर रात का खाना खाया और फिर घूमने के लिये चले गये।

अगला दिन वह दिन था जब राजा और रानी आने वालों से मिला करते थे। उस दिन रानी और उसकी दासी दोनों ही उन कुबड़ों को भूल गये।

तीसरे दिन रानी ने अपनी दासी से कहा — “अरे उन कुबड़ों का क्या हुआ?”

दासी चिल्लायी — “अरे उनके बारे में तो मैं बिल्कुल भूल ही गयी थी। पर वे तो अभी भी आलमारी में ही होंगे कहाँ जायेंगे।”

वह तुरन्त ही भागी भागी अन्दर गयी और जा कर वह आलमारी खोली तो देखा कि वे तीनों कुबड़े तो मरे पड़े थे। वे खाना न खाने और हवा न मिलने की वजह से मर गये थे।

रानी तो यह देख कर बहुत डर गयी वह बोली — “अब क्या करें?”

दासी बोली — “आप चिन्ता न करें, मैं इसका भी कुछ तरीका निकालती हूँ।”

उसने एक कुबड़े को उठाया और एक थैले में रख दिया फिर उसने एक सामान उठाने वाले को बुलाया और उससे कहा — “देखो इस थैले में एक चोर है। यह शाही जवाहरात चुरा कर भाग रहा था सो मैंने इसको एक झापड़ मार कर ही मार दिया।”

फिर उसने उसको वह थैला खोल कर दिखाया जिसमें से उसका कूबड़ दिखायी दे रहा था।

वह आगे बोली — “अब तुम इसको अपनी पीठ पर लाद कर ले जाओ और छिपा कर इसको नदी में फेंक देना। देखो किसी को पता न चले क्योंकि हम कोई हल्ला गुल्ला नहीं चाहते। जब तुम वापस आओगे तब मैं तुमको बहुत सारे पैसे दूँगी।”

उस बेचारे ने वह थैला अपनी पीठ पर लटकाया और नदी की तरफ चल दिया। इस बीच उस दासी ने दूसरे कुबड़े को भी एक थैले में बन्द कर दिया और दरवाजे के पास ही रख दिया।

वह सामान ले जाने वाला अपने पैसे लेने के लिये आया तो दासी ने कहा — “अभी मैं तुमको पैसे कैसे दे दूँ जबकि वह कुबड़ा तो अभी भी यहीं है क्योंकि तुम यह थैला तो ले कर ही नहीं गये।”

नौकर तो यह सुन कर आश्चर्य में पड़ गया कि अभी अभी तो वह थैला फेंक कर आ रहा है और यह दासी कह रही है कि मैं थैला तो ले कर ही नहीं गया। यह क्या मामला है।

वह बोला — “हम लोग यह कौन सा खेल खेल रहे हैं। मैं अभी तो उस थैले को नदी में फेंक कर आया हूँ।”

“देखो यह सबूत है कि तुमने अपना काम ठीक से नहीं किया नहीं तो यह थैला यहाँ नहीं होता।” कह कर उसने नौकर को वह दूसरा थैला खोल कर दिखा दिया।

अपना सिर हिलाते हुए और बुड़बुड़ाते हुए उसने वह थैला उठाया और फिर एक बार नदी की तरफ चल दिया। जब वह दोबारा शाही महल वापस लौटा तो एक और थैला उसका इन्तजार कर रहा था और वह दासी फिर से उसके ऊपर नाराज थी।

“क्या मैं गलत बोल रही हूँ? तुमको पता नहीं है कि लाश को नदी में कैसे फेंकते हैं? क्या तुम देख नहीं रहे कि यह थैला फिर से वापस आ गया है?”

“पर इस बार तो नदी में फेंकने से पहले मैंने उस थैले में एक पत्थर भी बाँधा था।”

“अब की बार दो पत्थर बाँधना तब देखते कि यह कैसे वापस आता है। और अब की बार मैं तुमको न केवल पैसे दूँगी बल्कि तुमको और भी बहुत कुछ दूँगी।”

सो एक बार फिर वह नौकर उस थैले को ले कर नदी की तरफ गया और उसने उसमें दो पत्थर बाँधे और तीसरे कुबड़े को भी नदी में फेंक दिया।

वह वहाँ खड़े हो कर देखता रहा कि वह थैला ऊपर आता है या नहीं। जब उसने यह पक्का कर लिया कि वह थैला डूब गया तब वह वहाँ से चला आया।

जब वह महल में घुस रहा था तो रास्ते में उसको कुबड़ा राजा मिल गया। उसने उसको देखा तो सोचा “अरे यह कुबड़ा तो लगता है कि फिर वापस आ गया। और अब वह चुड़ैल दासी तो मुझे जरूर ही पीटेगी।

यह सोचते हुए उसने गुस्से में अन्धे होते हुए कुबड़े राजा को गरदन से पकड़ा और चिल्लाया — “ओ कुबड़े मुझे तुझे और कितनी बार नदी में फेंकना पड़ेगा? मैंने तुझे एक पत्थर बाँधा और तू वापस आ गया। फिर मैंने तुझे दो पत्थर बाँधे और तू फिर भी वापस आ गया।

तू मुझे इतना परेशान करने वाला कैसे हो सकता है? अब की बार मैं तेरा ठीक से काम तमाम करता हूँ।”

इतना कह कर उसने अपने हाथ उस कुबड़े राजा की गरदन पर रखे और उसको दबा दिया। फिर उसने उसको गरदन से पकड़ा और उसे नदी की तरफ घसीटता हुआ ले चला। वहाँ जा कर उसने उसके पैरों में चार पत्थर बाँधे और ज़ोर से घुमा कर पानी में फेंक दिया।

जब रानी ने सुना कि उसका कुबड़ा पति वहीं चला गया है जहाँ वे तीन कुबड़े गये थे तो उसने उस नौकर को बहुत सारा पैसा, सोना, जवाहरात, सूअर, चीज़[4] और शराब दी।

अब तो अपने प्रेमी से शादी करने में उसको कोई परेशानी ही नहीं थी सो उसने उससे शादी कर ली और आराम से राज किया।

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[1] Louse Hide (Story No 104) – a folktale from Italy from its Rome area.

Adapted from the book : “Italian Folktales:” by Italo Calvino”. Translated by George Martin in 1980.

[2] Joon is called Louse in English language and Choohaa is called Mouse, so because of her low voice he confused the words Louse with Mouse.

[3] Translated for the word “Grouse” – thus all the three words sound similar.

[4] Cheese – processed Indian Paneer made of milk . It is eaten in a variety of ways in western world.

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सुषमा गुप्ता ने देश विदेश की 1200 से अधिक लोक-कथाओं का संकलन कर उनका हिंदी में अनुवाद प्रस्तुत किया है. कुछ देशों की कथाओं के संकलन का  विवरण यहाँ पर दर्ज है. सुषमा गुप्ता की लोक कथाओं के संकलन में से क्रमशः  - रैवन की लोक कथाएँ,  इथियोपिया इटली की  ढेरों लोककथाओं को आप यहाँ लोककथा खंड में जाकर पढ़ सकते हैं.

(क्रमशः अगले अंकों में जारी….)

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रचनाकार: देश विदेश की लोक कथाएँ — यूरोप–इटली–5 : 6 जूँ की खाल // सुषमा गुप्ता
देश विदेश की लोक कथाएँ — यूरोप–इटली–5 : 6 जूँ की खाल // सुषमा गुप्ता
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