देश विदेश की लोक कथाएँ — यूरोप–इटली–6 : 6 सोती हुई सुन्दरी और उसके बच्चे // सुषमा गुप्ता

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6 सोती हुई सुन्दरी और उसके बच्चे [1] एक बार एक राजा और रानी थे जिनके कोई बच्चा नहीं था। इस बात से केवल वे ही नहीं बल्कि उनका सारा दरबार भी द...

6 सोती हुई सुन्दरी और उसके बच्चे[1]

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एक बार एक राजा और रानी थे जिनके कोई बच्चा नहीं था। इस बात से केवल वे ही नहीं बल्कि उनका सारा दरबार भी दुखी रहता था। ऐसा लगता था जैसे वे सब किसी का अफसोस मना रहे हों।

रानी बेचारी दिन रात प्रार्थना करती पर वह नहीं जानती थी कि वह किस सन्त की प्रार्थना करे ताकि उसको एक बच्चा हो जाये। वह सारे सन्तों की प्रार्थना कर चुकी थी पर किसी ने कोई जवाब नहीं दिया था।


एक दिन उसने यह प्रार्थना की — “ओ वरदान दी गयी माँ[2], मेहरबानी करके मुझे एक लड़की ही दे दो चाहे वह तकुए[3] की नोक अपनी उँगली में चुभ जाने से 15 साल की उम्र में ही मर जाये।”

बस फिर क्या था उसको बच्चे की आशा हो गयी और समय आने पर उसके एक बहुत सुन्दर बेटी पैदा हुई। उन्होंने उसका बहुत शानदार बैपटिस्म[4] किया और उसका नाम कैरोल[5] रख दिया।

इस बच्ची के पैदा होने से राजा और रानी बहुत खुश हुए। ऐसा लगता था कि बस धरती पर वही खुश थे और दूसरा कोई नहीं।

समय बीतते कितनी देर लगती है। 15 साल भी बस ऐसे ही निकल गये। जब कैरोल 15 साल की होने को आयी तो एक दिन रानी को प्रार्थना करते समय अपनी पुरानी प्रार्थना याद आयी तो उसने वह सब राजा से कहा तो राजा तो बहुत सोच में डूब गया।

लेकिन बाद में फिर वह सँभला और उसने अपने राज्य में से सारे तकुए नष्ट करने का हुकुम दे दिया। उसने कहा कि जिस किसी के घर में भी तकुआ पाया गया उसका सिर उससे बिना कुछ पूछे ही धड़ से अलग कर दिया जायेगा।

इस घोषणा से जो लोग सूत कात कर अपना गुजारा करते थे राजा के पास गये और अपनी परेशानी उसको सुनायी तो राजा बोला कि इस बात की उनको चिन्ता करने की जरूरत नहीं है क्योंकि उनके परिवार का पालन पोषण वह खुद करेगा।

पर राजा को अपनी इस घोषणा से भी सन्तुष्टि नहीं हुई तो उसने अपनी बेटी को उसकी सुरक्षा के लिये उसके अपने कमरे में बन्द कर दिया और अपने महल में सबको कह दिया कि उससे कोई न मिले। पर होनी को कौन रोक सकता है।

अब कैरोल अपने कमरे में अकेली रह गयी सो वह अपने कमरे की खिड़की से बाहर देखती रहती। उसके कमरे की खिड़की की तरफ से सड़क के उस पार एक बुढ़िया रहती थी।

सब जानते हैं कि बूढ़े लोग कैसे होते हैं। वे अपने में इतने खोये रहते हैं कि वे अपने बारे में सोचने के अलावा किसी और के बारे में सोचते ही नहीं।

इस बुढ़िया के पास एक तकुआ था और रुई भी। जब भी उसका मन करता वह उस तकुए से अपना कुछ सूत कात लेती थी। वह अक्सर खिड़की के पास बैठ कर सूत कातती थी क्योंकि खिड़की के पास धूप और रोशनी दोनों आती थीं।

एक बार राजा की बेटी ने उसको सूत कातते देख लिया। उसने इससे पहले कभी किसी के हाथ इस तरीके से हिलते नहीं देखे थे सो उसने जब बुढ़िया के हाथों को उस अजीब तरीके से हिलते देखा तो उसकी उत्सुकता उसकी तरफ बढ़ती गयी।

जब उसकी उत्सुकता हद पार कर गयी तो एक दिन उसने उस बुढ़िया को पुकार कर पूछा — “ओ मैम, यह आप क्या कर रही हैं?”

बुढ़िया बोली — “मैं थोड़ी सी रुई कात रही हूँ बेटी, पर तुम किसी से कहना नहीं।”

“क्या मैं भी ऐसी रुई से थोड़ा सा सूत कात सकती हूँ?”

“हाँ हाँ बेटी क्यों नहीं। पर बस तुम भी छिपा कर ही कातना। ऐसा न हो कि कोई तुमको सूत कातते देख ले।”

कैरोल बोली — “ठीक है मैम, मैं किसी से नहीं कहूँगी और मैं सूत भी छिप कर ही कातूँगी। मैं एक रस्सी के सहारे एक टोकरी नीचे लटकाती हूँ। आप उस टोकरी में एक तकुआ और थोड़ी सी रुई रख कर ऊपर भेज दें। आपको उस टोकरी में अपने लिये एक भेंट भी मिलेगी।”

यह कह कर कैरोल ने रस्सी के सहारे एक टोकरी नीचे गली में लटका दी। उसमें पैसों से भरा हुआ एक बटुआ था। बुढ़िया ने उसमें बटुआ निकाल लिया और एक तकुआ और कुछ रुई रख दी। कैरोल ने उस टोकरी को ऊपर खींच लिया।

कैरोल तो उस टोकरी को देख कर बहुत खुश हो गयी। उसने तुरन्त ही उस तकुए से रुई सूत कातने की कोशिश भी की।

उसने उससे एक बार धागा काता, दूसरी बार काता, पर जब तीसरी बार काता तो वह तकुआ उसके हाथ से फिसल गया और उसके सीधे हाथ के अ‍ँगूठे के नाखून के नीचे चुभ गया। लड़की तुरन्त ही फर्श पर गिर गयी और मर गयी।

जब राजा अपनी बेटी को देखने आया और उसके कमरे का दरवाजा खटखटाया तो न तो किसी ने दरवाजा खोला और न ही किसी ने अन्दर से कोई जवाब दिया।

राजा ने देखा कि दरवाजा तो अन्दर से बन्द था। असल में राजकुमारी ने अपने कमरे का दरवाजा इसलिये बन्द कर लिया था ताकि उसको सूत कातते हुए कोई देख न ले।

राजा ने दरवाजा तुड़वाया तो देखा कि उसकी प्यारी बेटी तो जमीन पर मरी पड़ी है और उसके पास ही एक तकुआ पड़ा है। यह देख कर राजा ने अपना सिर पीट लिया।

राजा और रानी दोनों ही अपनी एकलौती बेटी को मरा देख कर इतने दुखी हुए कि उनको तसल्ली देने के लिये किसी के पास शब्द ही नहीं थे।

पर वह लड़की मरने के बाद भी उतनी ही सुन्दर लग रही थी जितनी वह पहले थी। वह ऐसी लग रही थी जैसे सो रही हो।

उसका शरीर भी ठंडा नहीं पड़ा था। उसकी तो जैसे बस साँस ही नहीं चल रही थी और उसका दिल भी नहीं धड़क रहा था। जैसे किसी ने उसके ऊपर जादू डाल दिया हो।

राजा और रानी ने कैरोल को उठा कर उसके बिस्तर पर लिटा दिया। हफ्तों तक वे उसके बिस्तर के पास इसी उम्मीद में बैठे रहे कि शायद वह आज ज़िन्दा हो जाये, शायद वह आज ज़िन्दा हो जाये। पर ऐसा कुछ भी नहीं हुआ।

उनको तो असल में यह विश्वास ही नहीं हो रहा था कि उनकी बेटी मर चुकी थी इसलिये वे उसको दफ़ना भी नहीं रहे थे।

फिर उन्होंने एक पहाड़ की चोटी पर एक छोटा सा किला बनवाया जिसमें कोई दरवाजा नहीं था। बस केवल एक खिड़की थी, और वह भी जमीन की सतह से बहुत ऊपर।

clip_image004उस किले के अन्दर उन्होंने एक बिस्तर पर अपनी बेटी को सुला दिया। उसका पलंग काफी चौड़ा था और उस पर छत लगी हुई थी।

उस छत पर सारे में सोने के फूल कढ़े हुए थे। उन्होंने उसको दुलहिन की पोशाक पहना दी थी। उस पोशाक की सात स्कर्ट थीं जिनमें चाँदी के घुँघुरू लगे हुए थे।

अपनी बेटी के गुलाब जैसे ताजा चेहरे को आखिरी बार चूम कर राजा और रानी उस किले के दरवाजे से बाहर आ गये और उनके बाहर निकलते के बाद वह दरवाजा चिनवा कर बन्द करवा दिया गया।

इस घटना के कई दिन बाद एक नौजवान राजकुमार शिकार खेलने के लिये निकला तो इस किले की तरफ आ निकला। उसने उस किले में अन्दर जाने की सोचा तो उसको उसका कोई दरवाजा ही दिखायी नहीं दिया।

उस किले को देख कर उसने सोचा कि यह क्या हो सकता है। क्योंकि यह किला दिखायी तो देता है पर इसमें कोई दरवाजा नहीं है। केवल एक खिड़की? यह है क्या?

उसके कुत्ते भौंक रहे थे और उस किले के चारों तरफ दौड़ रहे थे। वह उनको चुप कराना चाह रहा था पर उनका भौंकना ही नहीं रुक रहा था।

उधर राजकुमार की उत्सुकता यह जानने की बढ़ती ही जा रही थी कि उस किले के अन्दर क्या है जिसका दरवाजा ही नहीं है। और जब दरवाजा ही नहीं है तो वह उसके अन्दर जाये कैसे।

जब वह कुछ नहीं कर सका तो उस समय तो वह वहाँ से वापस लौट गया पर अगले दिन वह एक रस्सी और एक सीढ़ी ले कर लौटा। उसने खिड़की के सहारे सीढ़ी रखी और उस पर चढ़ गया।

फिर वहाँ से खिड़की पर रस्सी फेंकी। उस रस्सी के सहारे वह किसी तरह उस खिड़की से हो कर उस किले के अन्दर चला गया।

वहाँ उसने एक बहुत सुन्दर लड़की को एक बड़े से पलंग पर लेटे देखा। उसका चेहरा गुलाब के फूल की तरह से खिला हुआ और ताजा दिखायी दे रहा था। उसके चारों तरफ फूल रखे हुए थे और वह बड़े आराम से सो रही थी। उसको देख कर तो उसको चक्कर ही आ गया।

उसने अपने आपको उस पलंग को पकड़ कर संभाला। फिर हाथ बढ़ा कर उस लड़की के माथे को छुआ। उस लड़की का माथा अभी भी गरम था। उसने सोचा तो यह अभी मरी नहीं है।

वह उसको देखे जा रहा था देखे जा रहा था। उसकी ऑखें उसके चेहरे से हट ही नहीं पा रही थीं। वह वहाँ रात होने तक इसी उम्मीद में बैठा रहा कि शायद वह अब जागे अब जागे पर वह नहीं जागी।

अगले दिन वह फिर वापस आया, उसके अगले दिन भी आया है और इसके बाद तो फिर वह उससे एक घंटा भी अलग रहने की नहीं सोच सकता था। उसने उसको कई बार चूमा पर फिर भी वह होश में नहीं आयी।

वह अब उससे प्यार करने लगा था। दिन पर दिन राजकुमार दुबला होता जा रहा था और रानी माँ की समझ में नहीं आ रहा था कि उसके बेटे को क्या हो रहा था और उसका बेटा सारा सारा दिन घर से बाहर क्यों रहता था। यह उसकी सौतेली माँ थी।

उधर उस राजकुमार का प्यार उस लड़की के लिये इतना ज़्यादा बढ़ गया था कि उस लड़की ने कुछ महीनों के बाद जुड़वाँ बच्चों को जन्म दिया – एक लड़का और एक लड़की। वे दोनों बच्चे भी इतने सुन्दर थे कि किसी ने इतने सुन्दर बच्चे कहीं देखे नहीं होंगे।

बच्चे भूखे थे तो उनको दूध कौन पिलाता जबकि उनकी माँ बिस्तर पर एक मरे हुए के समान पड़ी हुई थी। वे रो रहे थे पर उनकी माँ को तो उनका रोना ही सुनायी नहीं पड़ रहा था।

बच्चों के मुँह खुले हुए थे और वे कुछ खाना चाहते थे। उनके मुँह इधर उधर कुछ ढूँढ रहे थे कि उनके मुँह में उनकी माँ का अ‍ँगूठा आ गया तो वे उसी को चूसने लगे।

उसका अ‍ँगूठा चूसते चूसते राजकुमारी के नाखून के नीचे जो तकुए का टुकड़ा घुस गया था वह बाहर निकल गया और वह जाग गयी। उसने अपनी ऑखें मलते हुए कहा — “ओह, मैं कितना सो गयी?”

फिर इधर उधर देख कर बोली — “पर मैं हूँ कहाँ? क्या किसी मीनार में? और ये दो बच्चे कौन है?”

उसकी उलझनें बढ़ती जा रही थीं कि इतने में राजकुमार खिड़की से कूद कर अन्दर आ गया। उसको देख कर तो वह और ज़्यादा चौंक गयी। उसने उससे पूछा — “तुम कौन हो? और तुमको मुझसे क्या चाहिये?”

“ओह तुम ज़िन्दा हो गयीं? मुझसे बात करो प्रिये।”

उनका शुरू का आश्चर्य खत्म हुआ तो वे आपस में बात करने लगे। दोनों ने एक दूसरे के माता पिता और देश के बारे में जाना, खुश हुए और पति पत्नी की तरह से गले लगे। उन्होंने अपने बेटे का नाम सूरज रखा और बेटी का नाम चन्दा रखा।

उसने फिर राजकुमारी से कहा कि अभी वह चलता है लेकिन वायदा किया कि वह उसके लिये बहुत सारी बढ़िया बढ़िया भेंटें ले कर और शादी की तैयारियाँ करके जल्दी ही लौटेगा। और यह कह कर राजकुमार अपने घर लौट गया।

पर वह लड़की तो लगता है कि जैसे किसी बुरे समय में पैदा हुई थी। जैसे ही राजकुमार अपने घर पहुँचा वह बीमार पड़ गया। उसकी बीमारी इतनी ज़्यादा बढ़ गयी कि उसकी भूख जाती रही और वह बेहोश सा हो गया। वह बस यही कहता रहा —

ओ सूरज, ओ चन्दा, ओ कैरोल, काश तुम मेरे साथ खाना खा सकते।

यह सुन कर उसकी माँ को लगा कि किसी ने उसके बेटे पर जादू कर दिया है।

उसने अपने कुछ लोगों को उस जंगल में यह पता करने के लिये भेजा कि उसका बेटा रोज कहाँ जाया करता था तो उसको पता चला कि वहाँ केवल एक अकेला किला था जिसमें एक नौजवान लड़की रहती थी और उसका बेटा उसी के प्यार में पागल था। उससे उसके दो बच्चे भी थे।

यह सब जान कर रानी माँ को उस लड़की से नफरत हो गयी कि वह लड़की किस तरह की थी जिसने उसके बेटे पर ऐसा जादू कर दिया था। फिर भी उसने अपने दो आदमी यह कह कर सूरज को लाने के लिये उस किले में भेजे कि राजकुमार उसको देखना चाहता था।

हालाँकि कैरोल अपने बेटे को उनको देना नहीं चाहती थी पर उसके पास और कोई चारा नहीं था सो रोते हुए उसने सूरज को उन सिपाहियों को दे दिया।

सिपाही सूरज को ले कर महल आ गये जहाँ रानी माँ उनका इन्तजार कर रही थी। वह बच्चे को रसोइये के पास ले गयी और उसको राजा के लिये भूनने के लिये कहा।

पर वह रसोइया बहुत अच्छा आदमी था। उसका दिल उस नन्हे से बच्चे को मारने का नहीं किया। उसने सूरज को ले जा कर अपनी पत्नी को दे दिया। उसकी पत्नी ने उसको छिपा कर रख लिया और उसको अपने बच्चे की तरह पालने लगी।

उधर रसोइये ने बच्चे की जगह एक बकरे को भूना और राजा के पास ले गया। खाना देख कर राजा ने पहले की तरह से एक लम्बी साँस ली और बोला —

ओ सूरज, ओ चन्दा, ओ कैरोल, काश तुम मेरे साथ खाना खा सकते।

रानी माँ ने वह बकरे वाली प्लेट उठा ली और उसकी तरफ बढ़ाते हुए बोली — “लो बेटा, तुम अपने को ही खाओ।”

राजकुमार ने जब ये शब्द सुने और रानी माँ के चहरे की तरफ देखा तो उसकी तो यह समझ में ही नहीं आया कि वह कह क्या रही थी पर फिर वह अपना खाना खाने लगा।

अगले दिन उस बेरहम औरत ने उन्हीं सिपाहियों को बच्ची को लाने के लिये किले वापस भेजा तो कैरोल को उस बच्ची को भी उनको देना पड़ा।

रानी माँ ने इस बार भी उस बच्ची को रसोइये को भूनने के लिये दे दिया और रसोइये ने इस बार भी उस बच्ची को अपनी पत्नी को दे कर बचा लिया।

उसकी पत्नी ने उस बच्ची को भी अपने पास रख लिया और वह उसको भी पालने लगी। और रसोइये ने एक और बकरा भून कर राजा के खाने में परोस दिया।

राजकुमार की माँ ने फिर कहा — “लो बेटा तुम अपने को ही खाओ।”

अब की बार राजकुमार ने फुसफुसा कर रानी माँ से पूछा कि वह जो कुछ कह रही थी उसका क्या मतलब था पर रानी माँ चुप रही।

तीसरे दिन रानी माँ ने उन सिपाहियों को उस लड़की को लाने के लिये भेजा तो वह बेचारी लड़की तो डर के मारे मर सी ही गयी। पर वह क्या करती वह उन सिपाहियों के साथ चल दी।

उसने अभी भी अपनी पुरानी शादी वाली पोशाक ही पहन रखी थी जिसमें सात स्कर्ट थे जिनमें चाँदी के घुँघुरू लगे हुए थे।

रानी माँ उसका सीढ़ियों पर ही इन्तजार कर रही थी। जैसे ही वह लड़की उसके पास आयी उसने उसके बाँये और दाँये दोनों गालों पर थप्पड़ मारने शुरू कर दिये।

लड़की ने भोलेपन से पूछा — “आप मुझे क्यों मार रहीं हैं?”

रानी माँ ग्ुास्से से बोली — “क्यों मार रही हूँ? तूने मेरे बेटे के ऊपर जादू क्यों किया ओ बदसूरत जादूगरनी? और अब वह मर रहा है। पर तुझको पता है कि अब तेरा क्या होने वाला है?”

यह कह कर उसने उबलते पानी के बरतन की तरफ इशारा किया।

यह सब राजा को कुछ सुनायी नहीं दे रहा था क्योंकि राजा की माँ ने उसके कमरे में उसके मन बहलाव के लिये कुछ गाने बजाने वालों को गाने बजाने के लिये बिठा रखा था। वे गा बजा रहे थे तो उनकी आवाजें सारे महल में गूँज रही थीं और वह कुछ सुन नहीं सकता था।

असल में यह सब डाक्टर की सलाह से हो रहा था ताकि वह खुश रह सके।

उस पानी के बरतन को देख कर तो वह लड़की इतनी डर गयी कि उसको लगा कि बस अब तो वह मर ही जायेगी।

रानी माँ बोली — “अपनी स्कर्ट उतारो फिर मैं तुमको इस बरतन में फेंकती हूँ।”

काँपते हुए उस लड़की ने रानी माँ की बात मानी और अपनी पहली स्कर्ट उतारी। उस स्कर्ट को उतारने में उसके उस स्कर्ट में लगे घुँघुरू बज उठे।

राजकुमार को उन घुँघुरुओं के बजने की आवाज साफ साफ सुनायी दी तो उसको लगा कि यह आवाज तो उसने कहीं सुनी है।

उसने अपनी ऑख खोली पर तभी बाजे वालों ने कुछ ज़ोर से ढोल बजाये तो उसको लगा कि शायद उसने ठीक से नहीं सुना।

फिर उस लड़की ने अपनी दूसरी स्कर्ट उतारी। उस स्कर्ट के घुँघुरू और ज़ोर से बजे। यह आवाज भी राजकुमार ने सुनी।

उसने फिर अपना सिर उठाया क्योंकि अब की बार उसको यकीन हो गया था कि यह आवाज तो उसकी कैरोल की स्कर्ट के घुँघरुओं की आवाज थी। पर उसी समय बड़े मँजीरों की आवाज ज़ोर से बजने लगी तो वह फिर एक बार शक में पड़ गया।

उसको फिर लगा कि उसने घुँघरुओं की आवाज सुनी। इस बार वह आवाज और ज़्यादा साफ थी। फिर भी उसको सुनने के लिये उसे अपने कानों पर बहुत ज़ोर डालना पड़ रहा था।

इस तरह वह लड़की अपनी स्कर्ट पर स्कर्ट उतारती रही और उसके हर स्कर्ट के घुँघरुओं की आवाज राजकुमार के कानों में पड़ती रही – हर बार तेज़ और और तेज़ जब तक कि पूरे महल में उनकी आवाज गूँज नहीं गयी।

राजकुमार एकदम से चिल्लाया — “कैरोल।” और अपने बिस्तर से उठ कर भागा। उसने कई दिनों से ठीक से खाना नहीं खाया था सो वह कमजोर था और काँप रहा था। वह सीढ़ियों से नीचे उतरा तो उसने देखा कि उसकी पत्नी तो गरम उबलते हुए पानी में फेंकी जाने वाली हो रही है।

वह चिल्लाया — “रुको, यह तुम लोग क्या कर रहे हो?”

उसने अपनी तलवार उठायी और उसे रानी की तरफ करके कहा — “अपने पापों को स्वीकार करो ओ माँ।”

जब उसको यह पता चला कि उसके बच्चों को उसी का खाना बना कर उसकी खाने की मेज पर रखा गया था तब तो वह दुख से बिल्कुल पागल सा हो गया और रसोइये को मारने दौड़ा।

पर जब रसोइये ने उसको बताया कि उसके बच्चे बिल्कुल सुरक्षित थे। तो यह सुन कर उसको इतनी खुशी हुई कि वह हँस पड़ा और खुशी से नाचने लगा।

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रानी माँ को उस गरम पानी के बरतन में फेंक दिया गया। रसोइये को बच्चों को बचाने के लिये भारी इनाम मिला। राजा कैरोल, सूरज और चन्दा के साथ बहुत दिनों तक खुशी खुशी राज्य का सुख भोगता रहा।


[1] Sleeping Beauty and Her Children (Story No 139) – a folktale from Italy from its Calabria area.

Adapted from the book : “Italian Folktales”, by Italo Calvino. Translated by George Martin in 1980.

[2] Translated for the words “O Blessed Mother”

[3] Translated for the word “Spindle”. It is used to spin thread. See its picture above.

[4] Baptism or Christening - the ceremony of baptism, especially as accompanied by the giving of a name to a child.

[5] Carol – the name of the girl.

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सुषमा गुप्ता ने देश विदेश की 1200 से अधिक लोक-कथाओं का संकलन कर उनका हिंदी में अनुवाद प्रस्तुत किया है. कुछ देशों की कथाओं के संकलन का  विवरण यहाँ पर दर्ज है. सुषमा गुप्ता की लोक कथाओं के संकलन में से क्रमशः  - रैवन की लोक कथाएँ,  इथियोपिया इटली की  ढेरों लोककथाओं को आप यहाँ लोककथा खंड में जाकर पढ़ सकते हैं.

(क्रमशः अगले अंकों में जारी….)

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तौंसवी,1,फ्लेनरी ऑक्नर,1,बंग महिला,1,बंसी खूबचंदाणी,1,बकर पुराण,1,बजरंग बिहारी तिवारी,1,बरसाने लाल चतुर्वेदी,1,बलबीर दत्त,1,बलराज सिंह सिद्धू,1,बलूची,1,बसंत त्रिपाठी,2,बातचीत,2,बाल उपन्यास,6,बाल कथा,356,बाल कलम,26,बाल दिवस,4,बालकथा,80,बालकृष्ण भट्ट,1,बालगीत,20,बृज मोहन,2,बृजेन्द्र श्रीवास्तव उत्कर्ष,1,बेढब बनारसी,1,बैचलर्स किचन,1,बॉब डिलेन,1,भरत त्रिवेदी,1,भागवत रावत,1,भारत कालरा,1,भारत भूषण अग्रवाल,1,भारत यायावर,2,भावना राय,1,भावना शुक्ल,5,भीष्म साहनी,1,भूतनाथ,1,भूपेन्द्र कुमार दवे,1,मंजरी शुक्ला,2,मंजीत ठाकुर,1,मंजूर एहतेशाम,1,मंतव्य,1,मथुरा प्रसाद नवीन,1,मदन सोनी,1,मधु त्रिवेदी,2,मधु संधु,1,मधुर नज्मी,1,मधुरा प्रसाद नवीन,1,मधुरिमा प्रसाद,1,मधुरेश,1,मनीष कुमार सिंह,4,मनोज कुमार,6,मनोज कुमार झा,5,मनोज कुमार पांडेय,1,मनोज कुमार श्रीवास्तव,2,मनोज दास,1,ममता सिंह,2,मयंक चतुर्वेदी,1,महापर्व छठ,1,महाभारत,2,महावीर प्रसाद द्विवेदी,1,महाशिवरात्रि,1,महेंद्र भटनागर,3,महेन्द्र देवांगन माटी,1,महेश कटारे,1,महेश कुमार गोंड हीवेट,2,महेश सिंह,2,महेश हीवेट,1,मानसून,1,मार्कण्डेय,1,मिलन चौरसिया मिलन,1,मिलान कुन्देरा,1,मिशेल फूको,8,मिश्रीमल जैन तरंगित,1,मीनू पामर,2,मुकेश वर्मा,1,मुक्तिबोध,1,मुर्दहिया,1,मृदुला गर्ग,1,मेराज फैज़ाबादी,1,मैक्सिम गोर्की,1,मैथिली शरण गुप्त,1,मोतीलाल जोतवाणी,1,मोहन कल्पना,1,मोहन वर्मा,1,यशवंत कोठारी,8,यशोधरा विरोदय,2,यात्रा संस्मरण,31,योग,3,योग दिवस,3,योगासन,2,योगेन्द्र प्रताप मौर्य,1,योगेश अग्रवाल,2,रक्षा बंधन,1,रच,1,रचना समय,72,रजनीश कांत,2,रत्ना राय,1,रमेश उपाध्याय,1,रमेश राज,26,रमेशराज,8,रवि रतलामी,2,रवींद्र नाथ ठाकुर,1,रवीन्द्र अग्निहोत्री,4,रवीन्द्र नाथ त्यागी,1,रवीन्द्र संगीत,1,रवीन्द्र सहाय वर्मा,1,रसोई,1,रांगेय राघव,1,राकेश अचल,3,राकेश दुबे,1,राकेश बिहारी,1,राकेश भ्रमर,5,राकेश मिश्र,2,राजकुमार कुम्भज,1,राजन कुमार,2,राजशेखर चौबे,6,राजीव रंजन उपाध्याय,11,राजेन्द्र कुमार,1,राजेन्द्र विजय,1,राजेश कुमार,1,राजेश गोसाईं,2,राजेश जोशी,1,राधा कृष्ण,1,राधाकृष्ण,1,राधेश्याम द्विवेदी,5,राम कृष्ण खुराना,6,राम शिव मूर्ति यादव,1,रामचंद्र शुक्ल,1,रामचन्द्र शुक्ल,1,रामचरन गुप्त,5,रामवृक्ष सिंह,10,रावण,1,राहुल कुमार,1,राहुल सिंह,1,रिंकी मिश्रा,1,रिचर्ड 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पाटील,1,शगुन अग्रवाल,1,शबनम शर्मा,7,शब्द संधान,17,शम्भूनाथ,1,शरद कोकास,2,शशांक मिश्र भारती,8,शशिकांत सिंह,12,शहीद भगतसिंह,1,शामिख़ फ़राज़,1,शारदा नरेन्द्र मेहता,1,शालिनी तिवारी,8,शालिनी मुखरैया,6,शिक्षक दिवस,6,शिवकुमार कश्यप,1,शिवप्रसाद कमल,1,शिवरात्रि,1,शिवेन्‍द्र प्रताप त्रिपाठी,1,शीला नरेन्द्र त्रिवेदी,1,शुभम श्री,1,शुभ्रता मिश्रा,1,शेखर मलिक,1,शेषनाथ प्रसाद,1,शैलेन्द्र सरस्वती,3,शैलेश त्रिपाठी,2,शौचालय,1,श्याम गुप्त,3,श्याम सखा श्याम,1,श्याम सुशील,2,श्रीनाथ सिंह,6,श्रीमती तारा सिंह,2,श्रीमद्भगवद्गीता,1,श्रृंगी,1,श्वेता अरोड़ा,1,संजय दुबे,4,संजय सक्सेना,1,संजीव,1,संजीव ठाकुर,2,संद मदर टेरेसा,1,संदीप तोमर,1,संपादकीय,3,संस्मरण,730,संस्मरण लेखन पुरस्कार 2018,128,सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन,1,सतीश कुमार त्रिपाठी,2,सपना महेश,1,सपना मांगलिक,1,समीक्षा,847,सरिता पन्थी,1,सविता मिश्रा,1,साइबर अपराध,1,साइबर क्राइम,1,साक्षात्कार,21,सागर यादव जख्मी,1,सार्थक देवांगन,2,सालिम मियाँ,1,साहित्य समाचार,98,साहित्यम्,6,साहित्यिक गतिविधियाँ,216,साहित्यिक बगिया,1,सिंहासन बत्तीसी,1,सिद्धार्थ जगन्नाथ जोशी,1,सी.बी.श्रीवास्तव विदग्ध,1,सीताराम गुप्ता,1,सीताराम साहू,1,सीमा असीम सक्सेना,1,सीमा शाहजी,1,सुगन आहूजा,1,सुचिंता कुमारी,1,सुधा गुप्ता अमृता,1,सुधा गोयल नवीन,1,सुधेंदु पटेल,1,सुनीता काम्बोज,1,सुनील जाधव,1,सुभाष चंदर,1,सुभाष चन्द्र कुशवाहा,1,सुभाष नीरव,1,सुभाष लखोटिया,1,सुमन,1,सुमन गौड़,1,सुरभि बेहेरा,1,सुरेन्द्र चौधरी,1,सुरेन्द्र वर्मा,62,सुरेश चन्द्र,1,सुरेश चन्द्र दास,1,सुविचार,1,सुशांत सुप्रिय,4,सुशील कुमार शर्मा,24,सुशील यादव,6,सुशील शर्मा,16,सुषमा गुप्ता,20,सुषमा श्रीवास्तव,2,सूरज प्रकाश,1,सूर्य बाला,1,सूर्यकांत मिश्रा,14,सूर्यकुमार पांडेय,2,सेल्फी,1,सौमित्र,1,सौरभ मालवीय,4,स्नेहमयी चौधरी,1,स्वच्छ भारत,1,स्वतंत्रता दिवस,3,स्वराज सेनानी,1,हबीब तनवीर,1,हरि भटनागर,6,हरि हिमथाणी,1,हरिकांत जेठवाणी,1,हरिवंश राय बच्चन,1,हरिशंकर गजानंद प्रसाद देवांगन,4,हरिशंकर परसाई,23,हरीश कुमार,1,हरीश गोयल,1,हरीश नवल,1,हरीश भादानी,1,हरीश सम्यक,2,हरे प्रकाश उपाध्याय,1,हाइकु,5,हाइगा,1,हास-परिहास,38,हास्य,59,हास्य-व्यंग्य,78,हिंदी दिवस विशेष,9,हुस्न तबस्सुम 'निहाँ',1,biography,1,dohe,3,hindi 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रचनाकार: देश विदेश की लोक कथाएँ — यूरोप–इटली–6 : 6 सोती हुई सुन्दरी और उसके बच्चे // सुषमा गुप्ता
देश विदेश की लोक कथाएँ — यूरोप–इटली–6 : 6 सोती हुई सुन्दरी और उसके बच्चे // सुषमा गुप्ता
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