कहानी // शेर दिल औरत // गोवर्धन यादव

SHARE:

“आदमी अपना काम समय पर पूरा करे अथवा न भी करे, तो कोई फ़र्क नहीं पड़ता, लेकिन प्रकृति अपना काम समय पर ही करती है. यदि वह अपने काम में थोड़ी सी भ...

“आदमी अपना काम समय पर पूरा करे अथवा न भी करे, तो कोई फ़र्क नहीं पड़ता, लेकिन प्रकृति अपना काम समय पर ही करती है. यदि वह अपने काम में थोड़ी सी भी ढील दे दे तो सारा चक्र गड़बड़ा जाएगा और पृथ्वी पर तरह-तरह के संकट मंडराने लगेंगे.”

आकाश में मंडराते बादलों को देखकर रोहित सोचने लगा था. अभी कुछ समय पहले तक आकाश एकदम साफ़ था, किसी कोरी स्लेट की तरह और देखते ही देखते समूचे आकाश पटल पर बादलों के धमाचौकड़ी शुरु हो गई थी. वह अपने घर से आफ़िस जाने के लिए तैयार ही बैठा था. सुबह के साढ़े आठ बज चुके थे. आराम से मोटर साइकिल चलाते हुए उसे दफ़्तर पहुंचने में लगभग एक से सवा घंटा लग जाता है. यदि वह इस समय तक नहीं निकला तो आफ़िस समय से नहीं पहुंच सकता. फ़िर दिल्ली के सड़कों पर मोटर साइकिल चलाना कोई आसान काम भी तो है नहीं. पता नहीं कहां जाम लग जाए ? पता नहीं कब कोई आकर भिड़ जाए, और आपको स्वर्गलोग की टिकिट थमा दे... कुछ भी नहीं कहा जा सकता.

बारिश होने के अभी कोई चांस नहीं थे, फ़िर भी उसने अपनी मोटर साइकिल में बरसाती रख लिया था. बस उसे इन्तजार था अपनी पत्नि का कि कब वह टिफ़िन लेकर रसोई घर से बाहर निकलती है. उसे ज्यादा इन्तजार नहीं करना पड़ा. वह कुछ और सोचे इससे पहले वह मुस्कुराती हुई बाहर आयी और उसने टिफ़िन उसके हाथ में थमा दिया.

रोहित ने अपनी मोटर साइकिल स्टार्ट की और चल पड़ा. मोटर साइकिल के शीशे में उसने पत्नी को देखा जो हाथ हिला रही थी. घर से निकलते समय सुनन्दा उसे मुस्कुराते हुए बिदा करती है. कभी-कभी बच्चों अथवा माताजी की अनुपस्थिति में वह उसके गाल पर चुम्बक भी जड़ देती है. पूरा दिन कब गौरैया की तरह फ़ुर्र से उड़ जाता है, पता ही नहीं चलता. शाम तो घर लौटने पर भी वह उसी तरह मुस्कुरा कर उसका स्वागत करती है.

रोहित अपने घर की गली से मुड़ गया. आगे बस स्टाप था. इस समय तक वह खाली था. शायद कुछ देर पहले बस सवारियों को भर कर ले गई थी.

वह कुछ आगे बढ़ ही पाया था कि रेड सिगनल देखकर उसे अपनी गाड़ी रोकनी पड़ी. कुछ देर इन्तजार करने के बाद ग्रीन लाईट होते ही वह आगे बढ़ने वाला ही था, तभी एक बदहवास-सी औरत उसके पास आयी और बोली-“ प्लीज एक्सक्य़ूज मी ....मेरी बस निकल गई है. क्या आप मुझे ग्रीन पार्क तक लिफ़्ट दें सकेंगे?.

रोहित की खोजी नजरों ने कुछ ही पलों में उसके सिर से लेकर पांव तक का मुआयना कर लिया था. गजब की खूबसूरत थी वह महिला. लगता है कि विधाता ने उसे फ़ुरसत के क्षणॊं में बनाया होगा. मांग में सिन्दूर और माथे पर मैरुन रंग की बिंदिया देखकर सहज ही अन्दाजा हो जाता है कि वह शादी शुदा है. फ़िर उसके कपड़े पहनने का ढंग और बोलचाल से ही साफ़ पता चल जाता है कि वह किसी संभ्रात परिवार से ताल्लुक रखती है. उसने सोचा.

“ बैठिए” कहते हुए उसने मोटर साइकिल आगे बढ़ा दी .

“ आपको कैसे पता कि मैं उधर ही जा रहा हूँ “ उसने विस्मय से कहा.

“ मैने आपको कई बार उधर ही जाता देखा है” वह औरत बोली.

“ अच्छा तो आप आते-जाते लोगों पर नजर रखती हैं तभी तो ! लेकिन मुझे इस बात पर ताज्जुब हो रहा है कि आपको केवल और केवल मेरी ही सूरत याद रही जबकि इस रास्ते न जाने कितने ही लोग गुजरते होंगे?

“ जी नहीं....आपका यह कहना सरासर गलत है कि मैं आते-जाते मर्दों पर नजर रखती हूँ. इस भाग-दौड़ भरी जिन्दगी में भला किसको इतनी फ़ुरसत है कि वह किसी पर नजर रख सके और उसे याद भी रखे”.

“मान गया कि आप सच कह रही हैं,लेकिन हजार सूरतों मे केवल मेरी ही सूरत आपको याद रही. यह कैसे हो सकता है?”

“ इसका उत्तर एकदम सीधा-सादा सा है. आफ़िस से निकल कर इसी जगह पर खड़े रहकर मुझे बस का इन्तजार करना पड़ता है और इसी जगह पर मैंने आपको प्रतिदिन पान के खोके पर सिगरेट पीते देखा है. आप जिस मस्ती के साथ सिगरेट के धुएं के छल्ले बना कर उड़ाते हैं, उसे देखते रहना मुझे अच्छा लगा था. शायद यही कारण था कि आपकी सूरत मुझे याद रह गई, वरना कौन किसको याद रखता है”. उसने कहा.

“ चलिए...किसी खास अंदाज की वजह से आपको मेरी सूरत याद रही. इसके लिए धन्यवाद. फ़िर भी मैं आपसे जानना चाहता हूँ एक अंजान और अपरिचित व्यक्ति से लिफ़्ट मांगते समय आपको डर नहीं लगा? आपने कैसे अंदाज लगा लिया कि मैं निहायत ही शरीफ़ आदमी हूँ ?”.

“ किसी पराए मर्द के साथ मोटरसाइकिल पर जाने के लिए बड़ा दिल चाहिए जनाब. मैं एक औरत हूँ और कोई औरत पराए मर्द के साथ बैठे, बड़ा हिम्मत का काम है. शायद आप जानते ही होंगे कि ईश्वर ने औरत जात को एक छटी इंद्रिय भी दी है जो आदमी के देखने मात्र से समझ जाती हैं कि उसके मन में किस तरह की उथल-पुथल हो रही है. इस बीच वह अपने बचाव का रास्ता तलाश लेती हैं”

“ मान गए आपको और आपकी पारखी नजरों को. खैर जो भी हो ..मुझे इस बात को जानकर खुशी हुई कि मैं एक शरीफ़ आदमी हूँ तभी तो एक अपरिचित महिला ने मुझ पर विश्वास किया. लेकिन आपने अब तक नहीं बताया कि आप ग्रीन पार्क क्यों जाना चाहती हैं. क्या वहाँ आपका फ़्लैट है अथवा कोई सगा-सम्बन्धी वहां रहता है? उसने पूछा.

“ नहीं...नहीं ऎसा-वैसा कुछ नहीं है. दरअसल मैं वहाँ एक गारमेन्ट फ़ैक्टरी में सुपरवाईजर हूँ.”

“जानकर खुशी हुई. अब कृपया अपना नाम भी बतला दें ?(कुछ हंसते हुए)..वैसे मैंने ही कब आपको अपना नाम बतला दिया. ?. जी..मेरा नाम रोहित है और मैं महरौली में एक ऎड कम्पनी में सी.ई.ओ के पद पर काम करता हूँ”..

“ जी... तीन अक्षरों का मेरा छॊटा सा नाम है “माधुरी”. अपना नाम बतलाने के ठीक बाद उसने सहमते हुए कहा-“ थोड़ा धीरे चलाईए न गाड़ी... तेज रफ़्तार से मुझे डर लगता है.”

“ थोड़ा आसमान के तरफ़ भी देखिए...बादल गरजने लगे हैं..यदि बारिश शुरु हो गई तो हमारे पास बचने का कोई साधन नहीं है”.

“ ठीक कह रहे हैं आप, लेकिन सड़क का हाल भी तो देखिए...जगह-जगह गड्ढे हैं..कहीं बैलेंस गड़बड़ा गया तो हाथ-पैर टूटना तय है. मैं रोज ही एक्सीडेन्ट के केसों को देखती आ रही हूँ ...स्पीड के चक्कर में लोग दुर्घटना के शिकार हो जाते हैं और चार छः महीने के लिए बिस्तर से लग जाते हैं . कितना कष्टप्रद होता है बिस्तर पर पडे रहना. शायद आपने इसकी कल्पना तक नहीं की होगी “?.

“ बिलकुल ठीक कहा आपने... हार्दिक धन्यवाद आपका” कहते हुए उसने स्पीड कम कर दी थी.

“ आपने अपने पति के बारे में कुछ नहीं बताया”.

“ जी...कई खूबियां हैं उनमें...साथ ही वे एक अच्छे आर्टिस्ट के साथ फ़ोटोग्राफ़र भी है. उनका अपना स्टुडियो भी है.”

“ तब तो उन्होंने आपके पोट्रेट भी खूब बनाये होंगे”.

“ सीधी सी बात है. जब बीबी हसीन हो तो उसे ड्राईंग शीट पर उतारना कौन नहीं चाहेगा. कभी घर तशरीफ़ लाइयेगा. आप स्वयं जब अपनी आंखों से देखेगें तो देखते रह जाएंगे”.

“ मैं जितने भी आर्टिस्टों को जानता हूँ, वे सभी मस्त तबीयत के लोग होते हैं. उनमें एक खासियत यह भी होती है कि (जरा झिझकते हुए) कि वे ड्रिंग्स के बड़े शौकीन होते हैं”

“इसमें आश्चर्य की कौन सी बात है. शराबनोशी कोई बुरी चीज नहें है, बशर्ते वह अपनी मर्यादा में रहे”

“ खैर... मुझे तो अब तक इसकी लत लग नहीं पायी. अब आपसे मुलाकात हो ही गई है. मैं एक बार जरुर आपके आर्टिस्ट से मिलने कभी भी आ धमकूंगा.”

“जी....जरुर तशरीफ़ लाईए.

“ अच्छा खासा कमा भी लेते होंगे?”.

“हाँ...इतना तो वो कमा ही लेते कि घर-गृहस्थी आराम से चल जाती है”.

“ फ़िर तो आपको नौकरी करने की जरुरत ही नहीं होनी चाहिए”

“ आपने ठीक फ़र्माया. लेकिन वे इन दिनों बीमार चल रहे हैं. स्टुडियो भी बंद पड़ा है. आमदनी नहीं के बराबर है. ऎसे में घर खर्च चलाना मुश्किल हो रहा था. यह अच्छा ही हुआ कि शादी से पहले मैंने ड्रेस डिजाईनर का कोर्स कर लिया था जो आज काम आ रहा है.

“ यह सुनकर बड़ा दुख हुआ. मैं आपके किसी काम आ सकूं तो कृपया मुझे बतलाइयेगा अवश्य. जितना भी संभव हो सकेगा मैं आपकी सच्चे मन से मदद करुंगा”. (कुछ देर तक खामोश ओढ़े रहने के बाद उसने कहा) पति बिमार पड़े हैं और आप उनको अकेला छोड़कर नौकरी पर निकल जाती हैं तो उनकी देखभाल कौन करता होगा? बच्चे भी तो होंगे आपके?”.

“ जी हाँ..एक बेटा और एक बेटी है. मयंक ऎट्थ में है और ऋचा सिक्स्थ में. दोनों बच्चे बड़े समझदार हैं. उन्हें कुछ बतलाने की आवश्यकता नहीं पड़ती....अपना काम खुद कर लेते हैं. सुबह मैं उनके लिए टिफ़िन तैयार कर देती हूँ. स्कूल की बस आ जाती है, वे उससे निकल जाते हैं. दोनों शाम को घर लौटते हैं. रही उनकी बात तो आफ़िस से निकलने से पहले मैं उनकी सारी आवश्यकताओं की पूर्ति कर देती हूँ. वे अब इस लायक तो हो ही गए हैं कि छोटा-मोटा काम वे खुद कर लेते हैं. मेरे एबसेन्ट में टीव्ही उनका साथ देती है, किसी तरह उनका समय पास हो जाता है....

“ जिसकी बीबी इतनी खूबसूरत हो और वह एक लंबे समय तक घर से बाहर रहे तो पति के मन में शंका-कुशंका के बीज भी तो पनपते ही होंगे कि कहीं वह किसी के साथ फ़्लर्ट तो नहीं कर रहीं ?.”

“ संभव है, ऎसा भी हो सकता है....और नहीं भी हो सकता है.... शरीर से बिमार आदमी मन-मस्तिस्क से भी बिमार हो, यह जरुरी नहीं, फ़िर भी सच तो यही है कि आदम जात ने आज तक अपनी जीवन संगनी पर भरोसा ही कब किया है? वह खुद चाहे जितना गिरा हुआ क्यों न हो, लेकिन वह अपनी बीबी को लेकर शंका-कुशंकाओं को अपने मन में पाले रहता है. खैर... मैं इसकी चिंता नहीं करती..और मुझे करनी भी नहीं चाहिए. जब एक औरत घर से निकलती है तो यह जरुरी नहीं कि उसका सामना किसी दरिंदे से ही होगा.. उसे अच्छे-भले लोग भी तो मिलते हैं, जैसे की आप.”

“ एक बात बतलाइए....आपकी छुट्टी कब होती है?

“ छुट्टी तो छः बजे होती है,लेकिन निकलते-निकलते साढ़े छः तो बज ही जाते है. आखिर ये सब क्यों पूछ रहे हैं आप?

“ बस यूंहि...इसी समय तक मेरी भी ड्यूटी आफ़ हो जाती है, आप चाहें तो इसी जगह पर मेरा इन्तजार कर सकती हैं. मुझे अच्छा लगेगा कि आप मेरे साथ ही लौटें”.

“ मुझे ऎसा लगता है कि आप मुझमें कुछ ज्यादा ही इंट्रेस्ट लेने लगे हैं.” उसने कहा.

“ नहीं...नहीं. ऎसा कुछ भी नहीं है शायद आपने मेरे कहने का गलत मतलब निकाल लिया है. मेरा आशय और कुछ नहीं था, दरअसल मैं नहीं चाहता कि आप बस से सफ़र करें.. यह वह वक्त होता है जब सारे कार्यालय बंद होने को होते हैं. सभी जल्दी ही घर लौटना चाहते हैं और यही कारण है कि शाम के वक्त बसों में कुछ ज्यादा ही भीड़ हो जाती है. कुछ मजनू टाईप के लोग भी इसमें सफ़र कर रहे होते हैं. किसी खूबसूरत युवती के जिस्म से चिपकने का इससे अच्छा मौका उन्हें कब मिल पाता है? मैं नहीं चाहता कि आप उस भीड़ का हिस्सा बनें.

बात अभी पूरी भी नहीं हो पायी थी कि कब ग्रीन पार्क आ गया, पता ही नहीं चल पाया.

“जी बस यहीं रुक जाइये” उसने अजीजी से कहा.

मोटर साइकिल से उतरकर वह सामने आ गई. होंठॊं पर मुस्कान ओढ़ते हुए उसने कहा “आपका बहुत-बहुत शुक्रिया. शाम को फ़िर मिलते हैं. मैं आपका इसी जगह पर इन्तजार करुंगी.”. उसके इस अंदाज में यकीन और अपनापन साफ़ झलक रहा था.

“ जी बहुत अच्छा. अब मैं चलता हूँ”. उसने अपनी मोटर साइकिल आगे बढ़ाते हुए हाथ हिलाते हुए कहा.

मोटर साइकिल के शीशे में उसका अक्स दिख रहा था. वह अब भी हाथ हिलाकर उसका अभिवादन कर रही थी.

रोहित के जेहन में दिन भर माधुरी की मदहोश कर देने वाली सूरत तैरती रही.

दिन कैसे कट गया, पता ही नहीं चल पाया. आफ़िस से निकलकर वह उस स्थान पर आकर खड़ा हो गया, जहां उसने उसे सुबह के समय छोड़ा था. उसे ज्यादा देर तक इन्तजार करने की जरुरत नहीं पड़ी. वह ठीक छः पच्चीस पर वहां पहुंच गई थी. उसने आगे बढ़कर रोहित का मुस्कुरा कर अभिवादन किया और मोटरसाइकिल पर सवार हो गई. मोटरसाइकिल स्टार्ट करने से पहले उसने अपना विजिटिंग कार्ड थमाते हुए कहा- “इसे रख लीजिए, कभी भी जरुरत पड़ सकती है”.

उस दिन के बाद से वह ठीक समय पर उस जगह पर खड़ी मिलती, जहां रोहित से वह पहली बार मिली थी. इसी तरह शाम को भी वह उसी जगह पर खड़ी रहकर उसकी प्रतिक्षा करती रहती. कई दिनों तक यह क्रम चलता रहा.

रोहित अपने घर से निकला. गली के उस छोर पर वह नहीं मिली. बस स्टाप या तो खाली होता या फ़िर 9 बजे जाने वाली बस के इंतजार में 4-6 लोग खड़े दिखाई देते. वह सोचता, शायद उसे कोई दूसरा लिफ़्ट देने वाला मिल जाता हो और वह उसके साथ निकल जाती हो. फ़िर वह सोचता, “ऎसा नहीं हो सकता”.

एक-एक करके काफ़ी दिन बीत गए, पर वह नहीं मिली. बावजूद इसके वह छोर वाले बस स्टाप के पास अपनी गाड़ी धीमी कर लेता कि शायद वह खड़ी हो. शाम को भी यही क्रम दोहराता, लेकिन निराशा ही हाथ लगती.

मोटरसाइकिल चलाते समय उसके जेहन में माधुरी की मधुर स्मृतियां तैरती रहती. कभी-कभी तो वह उससे बातें भी करने लगता था लेकिन जल्दी ही उसे इस बात का भान हो जाता कि वह अब उसके साथ नहीं है. अक्सर माधुरी की कही बातें उसके कानों में गूंजने लगती-“ किसी पराए मर्द के साथ मोटरसाइकिल पर जाने के लिए बड़ा दिल चाहिए जनाब. मैं एक औरत हूँ और कोई औरत पराए मर्द के साथ बैठे, बड़ा हिम्मत का काम है. “ईश्वर ने हम औरतों को अलग से छटी इंद्री दी है जो आदमी को देखते ही समझ जाती हैं कि उसके मन में क्या पाप पल रहा है”. कभी-कभार जब उसकी गाड़ी की स्पीड ज्यादा हो जाती तो वे सारे शब्द उसके कानों में गूंजने लगते-“मुझे स्पीड से डर लगता है, थोड़ा धीरे चलाएं” और वह अपनी स्पीड कम कर लेता.

दिन पर दिन गुजरते चले गए,लेकिन वह दुबारा नहीं मिली. इस बीच यमुना से काफ़ी पानी बह चुका था. समय भी कब किसके लिए रुका है जो उसके लिए रुकता. अब वह सेवानिवृत हो चुका था. जिस रास्ते पर चलते हुए उसने अपने जीवन के सैतीस साल गुजार दिए थे, उस रास्ते पर फ़िर कभी उसका जाना न हो सका,लेकिन माधुरी की याद उसके मन में जस की तस बनी रही.

उसके बेटे ने फ़ोर व्हीलर खरीद ली थी, जिसके लिए गैराज में कुछ ज्यादा जगह की आवश्यकता पड़ती थी. उसने एक दिन अपने पापा को सलाह देते हुए कहा कि अब उन्हें मोटरसाइकिल बेच देनी चाहिए. सुनते ही वह भड़क गया था. उसने ऎसा करने से साफ़ मना कर दिया था. वह किसी भी कीमत पर उसे बेचने को तैयार नहीं था, क्योंकि उस मोटरसाइकिल से माधुरी की मधुर स्मृतियां जुड़ी हुई थी.

टेलीफ़ोन की घंटी बज रही थी लगातार, जिसे उसके पोते ने उठाया, जो उस समय पास ही खेल रहा था. एक आवाज उभरी-“ क्या रोहितजी घर पर हैं, जरा उनसे बात करवाइये”. उसने वहीं से अपने दादाजी को आवाज देते हुए कहा-“ दद्दुजी..आपका फ़ोन”.

“ कौन हो सकता है इस समय.”..सोचते हुए उसने क्रैडल उठाया. एक सुरमई आवाज सुनकर वह चौंक पड़ा था. वह आवाज माधुरी की थी. सुनते ही अवाक रह गया था वह.” माधुरी तुम.....कहां थीं अब तक तुम. मैं बरसों तक तुम्हारे आने का इंतजार करते रहा..लेकिन तुम न जाने कहां खो गई थीं... वह कुछ और कह पाता कि दूसरी ओर से आवाज उभरी-“ सारे शिकवे-शिकायत बाद में सुनूंगी रोहितजी... पहले ये सुनिए कि कल ठीक ग्यारह बजे आप प्रगति मैदान पहुंच जाएं, देश के महामहिम राष्ट्रपति जी मुझे सम्मानित करेगें. आपकी उपस्थिति प्रार्थनीय है. यदि आप नहीं पहुंचे तो शायद मैं सम्मान ग्रहण नहीं कर पाउंगी. मैंने रिसेप्शन काउन्टर पर आपके लिए गेटपास का इन्तजाम करवा दिया है. फ़्रंट वाली सीट नम्बर आठ आपके लिए आरक्षित है. सीट नम्बर आठ...ध्यान रखियेगा”. इतना कहकर उसने टेलीफ़ोन काट दिया.

रोहित के बूढ़े शरीर में एक नया जोश, एक नयी उमंग का संचार होने लगा था. इस अतिरेक आनन्द से वह सराबोर हुआ जा रहा था. उसकी समझ में नहीं आ रहा थी कि कल ऎसा कौन-सा विशेष दिन है, जब वह राष्ट्रपतिजी के हाथों सम्मानित होगी. उसने कैलेण्डर को ध्यान से देखा. समझ गया था कि कल “अन्तर्राष्ट्रीय महिला दिवस” है. यह वह दिन होता है जब किसी विशिष्ट कार्य के संपादित किए जाने पर उस महिला का सम्मान किया जाता है.

उसके जेहन में केवल प्रश्नों की भरमार थी,जिसके उत्तर वह खोजने का असफ़ल प्रयास करता रहा था, लेकिन किसी नतीजे पर पहुंच नहीं पाया था.

दूसरे दिन वह समय से पहले ही घर से निकल गया था. काउन्टर पर पहुंचते ही उसे गेटपास दे दिया गया था. इस समय पूरा हाल खचाखच भरा हुआ था. चारों तरफ़ भीड़ ही भीड़ थी. भीड़ को चीरता हुआ वह अपनी सीट पर जा कर बैठ गया. अब उसे इन्तजार था उस क्षण का, जब वह अपनी आंखों से माधुरी को सम्मानित होते हुए देखेगा. प्रसन्नता की लहरें उसके मन में हिलोरे ले रही थीं.

महामहिम पधार चुके थे. उनके स्वागत-सत्कार के बाद सम्मान देने का कार्यक्रम शुरु हुआ. हर उस महिला के नाम की घोषणा होती,जिन्हें सम्मानित किया जाना था. तीसरे क्रम में माधुरी के नाम की घोषणा हुई. मंच पर वह किसी चमकदार हीरे की तरह अपनी चमक बिखेरते हुए आयी. आगे बढकर उसने महामहिम से सम्मान प्राप्त किया और प्रसन्न बदन उपस्थित जन समुदाय का झुककर अभिवादन किया.

कार्यक्रम की समाप्ति के बाद उसकी भेंट माधुरी से हुई. मिलते ही उसने उसे सम्मानित होने के लिए बधाइयां और शुभकामनाएं दीं और उसके रहस्यमय तरीके से गायब हो जाने के बाबत जानकारी जाननी चाही. .

माधुरी ने ध्यान पूर्वक सुना और विनम्रता पूर्वक बोली-“ रोहितजी...अतीत में जाकर क्या करेगें? अतीत को अतीत ही रहने दें, तो अच्छा हे”.

’ मतलब साफ़ है कि तुम मुझसे कुछ छिपाना चाहती हो. सच है....आखिर मैं होता भी कौन हूँ तुम्हारा...मात्र एक प्रशंसक और क्या?”

“ नहीं ऎसी बात नहीं है रोहितजी... सुनकर भी क्या करेगें...केवल दुख ही होगा आपको..”.

“ दुख और सुख की बात नहीं है माधुरी.... मैं तो केवल इतना भर जानना चाहता हूँ कि यदि तुम्हें शहर छोड़ कर जाना ही था तो मुझे बतला तो दिया होता. तुम्हारे इंतजार में मैंने मन के कितने आघात सहे हैं, क्या तुम इसकी कल्पना कर सकती हो?. एक दिन तो मैं तुम्हारी फ़र्म का पता लगाते-लगाते वहां तक जा पहुंचा था. जाकर पता चला कि तुमने नौकरी छॊड़ दी है. नौकरी छॊड़ने का कोई कारण भी नहीं बतलाया गया. यदि घर का पता तुमने दिया होता तो वहां भी मै जाकर पता लगाता. न तो मेरे पास तुम्हारा मोबाईल नंबर ही था. हमारी मुलाकातें मात्र चंद महिनों की थी, लेकिन तुम इतनी अजीज हो जाओगी, इसका मुझे गुमान तक न था. फ़िर तुम्हारी बसी-बसाई गिरस्थी थी...बच्चे थे..क्या तुम उन्हें साथ ले गई थीं या फ़िर उन्हें छोडकर चली गई थीं ? बोलो-....बोलो माधुरी...तुम्हें मेरे प्रश्नों का उत्तर देना ही होगा. मैं सब कुछ जानना चाहता हूँ तुम्हारे बारे में”. रोहित ने मन के आंगन में फ़न फ़ैलाए बिलबिलाते शिकायती नागों का पिटारा खोल दिया था.

प्रश्नों का आघात इतना तीव्र था कि उसके आंखों से आंसू झरकर बहने लगे. किसी तरह अपने पर संयम रखते हुए उसने कहा-“ रोहितजी मैं आपके मन की पीड़ा को समझ रही हूँ. फ़िर आपका अधिकार भी बनता है मेरे बारे में जानने का...लेकिन यह स्थान इसके लिए उपयुक्त नहीं है. मैं “सैण्ड एंड सन” होटल में रुकी हुई हूँ. आप कृपया वहां आ सकेंगे तो मेहरबानी होगी. मैं आपको अपना वर्तमान और अतीत सभी के बारे में विस्तार से कह सुनाउंगी.

“ठीक है...मैं कल ग्यारह बजे के आसपास आ रहा हूँ” उसने कहा और वापस अपने घर की ओर बढ़ गया.

कालबेल बजते ही दरवाजा खुल गया. शायद वह उसी का इन्तजार कर रही थी.

सारी औपचारिकताओं के बाद वह एक कुर्सी पर धंस गया. ठीक उसके सामने वह कुर्सी लगाकर बैठ गई थी. देर तक छत की ओर टकटकी लगाकर देखते रहने के बाद उसने मुंह खोला, शायद वह अपने अतीत को समेटने में लगी थी.

“ रोहितजी.....शुरु से ही मैं मेधावी छात्रा रही हूँ. ड्रेस डिजाइनिंग कोर्स के साथ ही मैंने कालेज ज्वाईन कर लिया था. एक बार कालेज में रोमियो-जुलियट नाटक खेला जाना था. प्रो. सिन्हा इस प्ले को डायरेक्ट करने वाले थे. उन्हें जुलियट के लिए उपयुक्त पात्र की तलाश थी. रोमियो का चुनाव वे पहले कर चुके थे. आडिशन में मेरा स्लेक्शन हुआ. इस तरह मैं घ्रुव के संपर्क में आयी. हमने नाटक प्ले किया. नाटक बेहद सफ़ल रहा. इस प्ले के बाद से कालेज के स्टुडेंट हमे रोमियो-जुलियट कहकर बुलाते. ध्रुव से मुलाकातें होती रहीं. उसमें एक नहीं अनेक गुण समाए हुए थे,साथ ही वह एक सुलझे हुए व्यक्तिव का धनी भी लगा मुझे. उसमें एक सफ़ल नाटककार के गुणॊं के अलावा गीत-संगीत में गहरी रुचि थी. गायकी में वह बेजोड़ था. गीत-गजल भी वह लिखा करता था और माडर्न आर्ट में तो वह पारंगत था ही. यही सब कारण थे कि मैं मन ही मन उसे चाहने लगी थी. रोमियो-जुलियट का नकली जीवन तो हम जी ही रहे थे. अब हमने फ़ैसला कर लिया था कि इसे हकीकत में बदल देंगे, लेकिन हमारे बीच ऊँच-नीच की एक अभेद्य दीवार खड़ी हो गई. इस दीवार को तोड़ने की हिम्मत तो हममें थी नहीं, सो हमने घर छोड़ देने का फ़ैसला किया. भाग कर विवाह किया और इस तरह घर-गिरस्थी की गाड़ी चल निकली.

ध्रुव ने टाप-टेन में पोस्ट-ग्रेजुएशन किया था. उसे नौकरी के लिए भटकना नहीं पड़ा और वह एक कालेज में सहायक प्राध्यापक हो गया. मुझे भी एक गार्मेन्ट फ़ैक्टरी में ड्रेस डिजाइनर के पद पर नियुक्ति मिल गई. इस बीच हमारे एक बेटा और एक बेटी पैदा हुए. इनके बारे में मैं आपको पहले ही बता चुकी हूँ.

अच्छे हंसते-खाते-पीते परिवार को न जाने किसकी नजर लग गई. एक रात घ्रुव को सिवीयर अटैक आ गया. स्कार्ट में उसका आपरेशन हुआ. इसमें करीब तीन लाख खर्च हुए. उस समय इतनी बड़ी रकम हमारे पास तो थी नहीं. जैसे-तैसे रकम का इन्तजार भी कर लिया गया. लेकिन कुछ दिन बाद वह पैरेलाइज्ड हो गया. एक मुसीबत से निकली भी नहीं थे कि दूसरी आ धमकी. जैस-तैसे उसको संभाला ही था कि वह फ़ोबिया का शिकार हो गया. उसके मन में एक फ़ांस घर कर गई कि मेरे किसी अन्य से नाजायज संबंध है. लाख समझाने के बाद भी उसे मुझ पर यकीन नहीं हुआ. नारकीय जिन्दगी बन चुकी थी मेरी. मैंने कड़ा फ़ैसला लेते हुए निर्णय कर लिया था कि उसे अब उसके हाल पर छॊड़ दिया जाना चाहिए. उसका अब जो होना है सो हो लेकिन मैं अपने बच्चों का जीवन बर्बाद करना नहीं चाहती थी. एक रात मैंने घर छोड़ दिया और बच्चों को लेकर अपने शहर चली आयी. मेरे पास मेरा अपना हुनर था. जल्दी ही मैंने पड़ौस की औरतों को सिलाई-कढ़ाई सिखलाई, उन्हें पढ़ना-लिखना सिखाया और इस तरह मेरा अभियान सफ़लता के कदम चूमने लगा. यह काम यहीं तक नहीं रुका, बल्कि गांव-देहातों तक जा पहुंचा. हजारों- हजार महिलाएं इससे लाभान्वित हुईं. स्कूल भी खोले गए. इस तरह मैंने गांव की अनपढ़-गवांर समझी जाने वाली महिलाऒं के जीवन-स्तर को ऊँचा उठाने के लिए अपना जीवन होम कर दिया. इस बात की चर्चा तो पूरे देश भर में होना था, सो हुई भी और यह खबर दिल्ली भी जा पहुंची. शायद इसी का परिणाम है कि मुझे इस देश के महामहिम के हस्ते सम्मानित होने का गौरव प्राप्त हुआ.

अपने अतीत और वर्तमान को सुनाते हुए वह फ़बक कर रो पड़ी.

रोहित ने आगे बढ़कर उसे शाबासी देनी चाही तो माधुरी उसके सीने से चिपक गई. वह जार-जार रोए जा रही थी. उसने उसकी पीठ थपथपाते हुए कहा- “ अरे पगली...इसमें रोने की क्या बात है. तुम तो शेर दिल औरत हो... शेर दिल. अच्छा ही किया तुमने जो ध्रुव से समय रहते किनारा कर लिया वरना लांछन के बौछार से तुम घुट-घुटकर मर जातीं. मैं ही क्या... कोई और भी इस बात तो सुनता कि तुमने कितनी ही वीरान ज़िंदगियों में आशा की किरण जगाई है..उन्हें नया जीवन दिया है और उनका आंचल खुशियों से भर दिया है..वरना आज की इस स्वार्थी दुनिया में भला कौन किसके लिए जीता है. तुम धन्य हो माधुरी...धन्य हो”.

झरते आंसुओं से उसकी शर्ट भीगी जा रही थी. वह अब तक यह समझ नहीं पाया था कि वे पश्चाताप के आंसू थे अथवा खुशी के.

१६/८/२०१६/ १९.३.१६

COMMENTS

BLOGGER
नाम

 आलेख ,1, कविता ,1, कहानी ,1, व्यंग्य ,1,14 सितम्बर,7,14 september,6,15 अगस्त,4,2 अक्टूबर अक्तूबर,1,अंजनी श्रीवास्तव,1,अंजली काजल,1,अंजली देशपांडे,1,अंबिकादत्त व्यास,1,अखिलेश कुमार भारती,1,अखिलेश सोनी,1,अग्रसेन,1,अजय अरूण,1,अजय वर्मा,1,अजित वडनेरकर,1,अजीत प्रियदर्शी,1,अजीत भारती,1,अनंत वडघणे,1,अनन्त आलोक,1,अनमोल विचार,1,अनामिका,3,अनामी शरण बबल,1,अनिमेष कुमार गुप्ता,1,अनिल कुमार पारा,1,अनिल जनविजय,1,अनुज कुमार आचार्य,5,अनुज कुमार आचार्य बैजनाथ,1,अनुज खरे,1,अनुपम मिश्र,1,अनूप शुक्ल,14,अपर्णा शर्मा,6,अभिमन्यु,1,अभिषेक ओझा,1,अभिषेक कुमार अम्बर,1,अभिषेक मिश्र,1,अमरपाल सिंह आयुष्कर,2,अमरलाल हिंगोराणी,1,अमित शर्मा,3,अमित शुक्ल,1,अमिय बिन्दु,1,अमृता प्रीतम,1,अरविन्द कुमार खेड़े,5,अरूण देव,1,अरूण माहेश्वरी,1,अर्चना चतुर्वेदी,1,अर्चना वर्मा,2,अर्जुन सिंह नेगी,1,अविनाश त्रिपाठी,1,अशोक गौतम,3,अशोक जैन पोरवाल,14,अशोक शुक्ल,1,अश्विनी कुमार आलोक,1,आई बी अरोड़ा,1,आकांक्षा यादव,1,आचार्य बलवन्त,1,आचार्य शिवपूजन सहाय,1,आजादी,3,आत्मकथा,1,आदित्य प्रचंडिया,1,आनंद टहलरामाणी,1,आनन्द किरण,3,आर. के. नारायण,1,आरकॉम,1,आरती,1,आरिफा एविस,5,आलेख,4288,आलोक कुमार,3,आलोक कुमार सातपुते,1,आवश्यक सूचना!,1,आशीष कुमार त्रिवेदी,5,आशीष श्रीवास्तव,1,आशुतोष,1,आशुतोष शुक्ल,1,इंदु संचेतना,1,इन्दिरा वासवाणी,1,इन्द्रमणि उपाध्याय,1,इन्द्रेश कुमार,1,इलाहाबाद,2,ई-बुक,374,ईबुक,231,ईश्वरचन्द्र,1,उपन्यास,269,उपासना,1,उपासना बेहार,5,उमाशंकर सिंह परमार,1,उमेश चन्द्र सिरसवारी,2,उमेशचन्द्र सिरसवारी,1,उषा छाबड़ा,1,उषा रानी,1,ऋतुराज सिंह कौल,1,ऋषभचरण जैन,1,एम. एम. चन्द्रा,17,एस. एम. चन्द्रा,2,कथासरित्सागर,1,कर्ण,1,कला जगत,113,कलावंती सिंह,1,कल्पना कुलश्रेष्ठ,11,कवि,2,कविता,3239,कहानी,2360,कहानी संग्रह,247,काजल कुमार,7,कान्हा,1,कामिनी कामायनी,5,कार्टून,7,काशीनाथ सिंह,2,किताबी कोना,7,किरन सिंह,1,किशोरी लाल गोस्वामी,1,कुंवर प्रेमिल,1,कुबेर,7,कुमार करन मस्ताना,1,कुसुमलता सिंह,1,कृश्न चन्दर,6,कृष्ण,3,कृष्ण कुमार यादव,1,कृष्ण खटवाणी,1,कृष्ण जन्माष्टमी,5,के. पी. सक्सेना,1,केदारनाथ सिंह,1,कैलाश मंडलोई,3,कैलाश वानखेड़े,1,कैशलेस,1,कैस जौनपुरी,3,क़ैस जौनपुरी,1,कौशल किशोर श्रीवास्तव,1,खिमन मूलाणी,1,गंगा प्रसाद श्रीवास्तव,1,गंगाप्रसाद शर्मा गुणशेखर,1,ग़ज़लें,550,गजानंद प्रसाद देवांगन,2,गजेन्द्र नामदेव,1,गणि राजेन्द्र विजय,1,गणेश चतुर्थी,1,गणेश सिंह,4,गांधी जयंती,1,गिरधारी राम,4,गीत,3,गीता दुबे,1,गीता सिंह,1,गुंजन शर्मा,1,गुडविन मसीह,2,गुनो सामताणी,1,गुरदयाल सिंह,1,गोरख प्रभाकर काकडे,1,गोवर्धन यादव,1,गोविन्द वल्लभ पंत,1,गोविन्द सेन,5,चंद्रकला त्रिपाठी,1,चंद्रलेखा,1,चतुष्पदी,1,चन्द्रकिशोर जायसवाल,1,चन्द्रकुमार जैन,6,चाँद पत्रिका,1,चिकित्सा शिविर,1,चुटकुला,71,ज़कीया ज़ुबैरी,1,जगदीप सिंह दाँगी,1,जयचन्द प्रजापति कक्कूजी,2,जयश्री जाजू,4,जयश्री राय,1,जया जादवानी,1,जवाहरलाल कौल,1,जसबीर चावला,1,जावेद अनीस,8,जीवंत प्रसारण,141,जीवनी,1,जीशान हैदर जैदी,1,जुगलबंदी,5,जुनैद अंसारी,1,जैक लंडन,1,ज्ञान चतुर्वेदी,2,ज्योति अग्रवाल,1,टेकचंद,1,ठाकुर प्रसाद सिंह,1,तकनीक,32,तक्षक,1,तनूजा चौधरी,1,तरुण भटनागर,1,तरूण कु सोनी तन्वीर,1,ताराशंकर बंद्योपाध्याय,1,तीर्थ चांदवाणी,1,तुलसीराम,1,तेजेन्द्र शर्मा,2,तेवर,1,तेवरी,8,त्रिलोचन,8,दामोदर दत्त दीक्षित,1,दिनेश बैस,6,दिलबाग सिंह विर्क,1,दिलीप भाटिया,1,दिविक रमेश,1,दीपक आचार्य,48,दुर्गाष्टमी,1,देवी नागरानी,20,देवेन्द्र कुमार मिश्रा,2,देवेन्द्र पाठक महरूम,1,दोहे,1,धर्मेन्द्र निर्मल,2,धर्मेन्द्र राजमंगल,1,नइमत गुलची,1,नजीर नज़ीर अकबराबादी,1,नन्दलाल भारती,2,नरेंद्र शुक्ल,2,नरेन्द्र कुमार आर्य,1,नरेन्द्र कोहली,2,नरेन्‍द्रकुमार मेहता,9,नलिनी मिश्र,1,नवदुर्गा,1,नवरात्रि,1,नागार्जुन,1,नाटक,152,नामवर सिंह,1,निबंध,3,नियम,1,निर्मल गुप्ता,2,नीतू सुदीप्ति ‘नित्या’,1,नीरज खरे,1,नीलम महेंद्र,1,नीला प्रसाद,1,पंकज प्रखर,4,पंकज मित्र,2,पंकज शुक्ला,1,पंकज सुबीर,3,परसाई,1,परसाईं,1,परिहास,4,पल्लव,1,पल्लवी त्रिवेदी,2,पवन तिवारी,2,पाक कला,23,पाठकीय,62,पालगुम्मि पद्मराजू,1,पुनर्वसु जोशी,9,पूजा उपाध्याय,2,पोपटी हीरानंदाणी,1,पौराणिक,1,प्रज्ञा,1,प्रताप सहगल,1,प्रतिभा,1,प्रतिभा सक्सेना,1,प्रदीप कुमार,1,प्रदीप कुमार दाश दीपक,1,प्रदीप कुमार साह,11,प्रदोष मिश्र,1,प्रभात दुबे,1,प्रभु चौधरी,2,प्रमिला भारती,1,प्रमोद कुमार तिवारी,1,प्रमोद भार्गव,2,प्रमोद यादव,14,प्रवीण कुमार झा,1,प्रांजल धर,1,प्राची,367,प्रियंवद,2,प्रियदर्शन,1,प्रेम कहानी,1,प्रेम दिवस,2,प्रेम मंगल,1,फिक्र तौंसवी,1,फ्लेनरी ऑक्नर,1,बंग महिला,1,बंसी खूबचंदाणी,1,बकर पुराण,1,बजरंग बिहारी तिवारी,1,बरसाने लाल चतुर्वेदी,1,बलबीर दत्त,1,बलराज सिंह सिद्धू,1,बलूची,1,बसंत त्रिपाठी,2,बातचीत,2,बाल उपन्यास,6,बाल कथा,356,बाल कलम,26,बाल दिवस,4,बालकथा,80,बालकृष्ण भट्ट,1,बालगीत,20,बृज मोहन,2,बृजेन्द्र श्रीवास्तव उत्कर्ष,1,बेढब बनारसी,1,बैचलर्स किचन,1,बॉब डिलेन,1,भरत त्रिवेदी,1,भागवत रावत,1,भारत कालरा,1,भारत भूषण अग्रवाल,1,भारत यायावर,2,भावना राय,1,भावना शुक्ल,5,भीष्म साहनी,1,भूतनाथ,1,भूपेन्द्र कुमार दवे,1,मंजरी शुक्ला,2,मंजीत ठाकुर,1,मंजूर एहतेशाम,1,मंतव्य,1,मथुरा प्रसाद नवीन,1,मदन सोनी,1,मधु त्रिवेदी,2,मधु संधु,1,मधुर नज्मी,1,मधुरा प्रसाद नवीन,1,मधुरिमा प्रसाद,1,मधुरेश,1,मनीष कुमार सिंह,4,मनोज कुमार,6,मनोज कुमार झा,5,मनोज कुमार पांडेय,1,मनोज कुमार श्रीवास्तव,2,मनोज दास,1,ममता सिंह,2,मयंक चतुर्वेदी,1,महापर्व छठ,1,महाभारत,2,महावीर प्रसाद द्विवेदी,1,महाशिवरात्रि,1,महेंद्र भटनागर,3,महेन्द्र देवांगन माटी,1,महेश कटारे,1,महेश कुमार गोंड हीवेट,2,महेश सिंह,2,महेश हीवेट,1,मानसून,1,मार्कण्डेय,1,मिलन चौरसिया मिलन,1,मिलान कुन्देरा,1,मिशेल फूको,8,मिश्रीमल जैन तरंगित,1,मीनू पामर,2,मुकेश वर्मा,1,मुक्तिबोध,1,मुर्दहिया,1,मृदुला गर्ग,1,मेराज फैज़ाबादी,1,मैक्सिम गोर्की,1,मैथिली शरण गुप्त,1,मोतीलाल जोतवाणी,1,मोहन कल्पना,1,मोहन वर्मा,1,यशवंत कोठारी,8,यशोधरा विरोदय,2,यात्रा संस्मरण,31,योग,3,योग दिवस,3,योगासन,2,योगेन्द्र प्रताप मौर्य,1,योगेश अग्रवाल,2,रक्षा बंधन,1,रच,1,रचना समय,72,रजनीश कांत,2,रत्ना राय,1,रमेश उपाध्याय,1,रमेश राज,26,रमेशराज,8,रवि रतलामी,2,रवींद्र नाथ ठाकुर,1,रवीन्द्र अग्निहोत्री,4,रवीन्द्र नाथ त्यागी,1,रवीन्द्र संगीत,1,रवीन्द्र सहाय वर्मा,1,रसोई,1,रांगेय राघव,1,राकेश अचल,3,राकेश दुबे,1,राकेश बिहारी,1,राकेश भ्रमर,5,राकेश मिश्र,2,राजकुमार कुम्भज,1,राजन कुमार,2,राजशेखर चौबे,6,राजीव रंजन उपाध्याय,11,राजेन्द्र कुमार,1,राजेन्द्र विजय,1,राजेश कुमार,1,राजेश गोसाईं,2,राजेश जोशी,1,राधा कृष्ण,1,राधाकृष्ण,1,राधेश्याम द्विवेदी,5,राम कृष्ण खुराना,6,राम शिव मूर्ति यादव,1,रामचंद्र शुक्ल,1,रामचन्द्र शुक्ल,1,रामचरन गुप्त,5,रामवृक्ष सिंह,10,रावण,1,राहुल कुमार,1,राहुल सिंह,1,रिंकी मिश्रा,1,रिचर्ड फाइनमेन,1,रिलायंस इन्फोकाम,1,रीटा शहाणी,1,रेंसमवेयर,1,रेणु कुमारी,1,रेवती रमण शर्मा,1,रोहित रुसिया,1,लक्ष्मी यादव,6,लक्ष्मीकांत मुकुल,2,लक्ष्मीकांत वैष्णव,1,लखमी खिलाणी,1,लघु कथा,288,लघुकथा,1340,लघुकथा लेखन पुरस्कार आयोजन,241,लतीफ घोंघी,1,ललित ग,1,ललित गर्ग,13,ललित निबंध,20,ललित साहू जख्मी,1,ललिता भाटिया,2,लाल पुष्प,1,लावण्या दीपक शाह,1,लीलाधर मंडलोई,1,लू सुन,1,लूट,1,लोक,1,लोककथा,378,लोकतंत्र का दर्द,1,लोकमित्र,1,लोकेन्द्र सिंह,3,विकास कुमार,1,विजय केसरी,1,विजय शिंदे,1,विज्ञान कथा,79,विद्यानंद कुमार,1,विनय भारत,1,विनीत कुमार,2,विनीता शुक्ला,3,विनोद कुमार दवे,4,विनोद तिवारी,1,विनोद मल्ल,1,विभा खरे,1,विमल चन्द्राकर,1,विमल सिंह,1,विरल पटेल,1,विविध,1,विविधा,1,विवेक प्रियदर्शी,1,विवेक रंजन श्रीवास्तव,5,विवेक सक्सेना,1,विवेकानंद,1,विवेकानन्द,1,विश्वंभर नाथ शर्मा कौशिक,2,विश्वनाथ प्रसाद तिवारी,1,विष्णु नागर,1,विष्णु प्रभाकर,1,वीणा भाटिया,15,वीरेन्द्र सरल,10,वेणीशंकर पटेल ब्रज,1,वेलेंटाइन,3,वेलेंटाइन डे,2,वैभव सिंह,1,व्यंग्य,2075,व्यंग्य के बहाने,2,व्यंग्य जुगलबंदी,17,व्यथित हृदय,2,शंकर पाटील,1,शगुन अग्रवाल,1,शबनम शर्मा,7,शब्द संधान,17,शम्भूनाथ,1,शरद कोकास,2,शशांक मिश्र भारती,8,शशिकांत सिंह,12,शहीद भगतसिंह,1,शामिख़ फ़राज़,1,शारदा नरेन्द्र मेहता,1,शालिनी तिवारी,8,शालिनी मुखरैया,6,शिक्षक दिवस,6,शिवकुमार कश्यप,1,शिवप्रसाद कमल,1,शिवरात्रि,1,शिवेन्‍द्र प्रताप त्रिपाठी,1,शीला नरेन्द्र त्रिवेदी,1,शुभम श्री,1,शुभ्रता मिश्रा,1,शेखर मलिक,1,शेषनाथ प्रसाद,1,शैलेन्द्र सरस्वती,3,शैलेश त्रिपाठी,2,शौचालय,1,श्याम गुप्त,3,श्याम सखा श्याम,1,श्याम सुशील,2,श्रीनाथ सिंह,6,श्रीमती तारा सिंह,2,श्रीमद्भगवद्गीता,1,श्रृंगी,1,श्वेता अरोड़ा,1,संजय दुबे,4,संजय सक्सेना,1,संजीव,1,संजीव ठाकुर,2,संद मदर टेरेसा,1,संदीप तोमर,1,संपादकीय,3,संस्मरण,730,संस्मरण लेखन पुरस्कार 2018,128,सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन,1,सतीश कुमार त्रिपाठी,2,सपना महेश,1,सपना मांगलिक,1,समीक्षा,847,सरिता पन्थी,1,सविता मिश्रा,1,साइबर अपराध,1,साइबर क्राइम,1,साक्षात्कार,21,सागर यादव जख्मी,1,सार्थक देवांगन,2,सालिम मियाँ,1,साहित्य समाचार,98,साहित्यम्,6,साहित्यिक गतिविधियाँ,216,साहित्यिक बगिया,1,सिंहासन बत्तीसी,1,सिद्धार्थ जगन्नाथ जोशी,1,सी.बी.श्रीवास्तव विदग्ध,1,सीताराम गुप्ता,1,सीताराम साहू,1,सीमा असीम सक्सेना,1,सीमा शाहजी,1,सुगन आहूजा,1,सुचिंता कुमारी,1,सुधा गुप्ता अमृता,1,सुधा गोयल नवीन,1,सुधेंदु पटेल,1,सुनीता काम्बोज,1,सुनील जाधव,1,सुभाष चंदर,1,सुभाष चन्द्र कुशवाहा,1,सुभाष नीरव,1,सुभाष लखोटिया,1,सुमन,1,सुमन गौड़,1,सुरभि बेहेरा,1,सुरेन्द्र चौधरी,1,सुरेन्द्र वर्मा,62,सुरेश चन्द्र,1,सुरेश चन्द्र दास,1,सुविचार,1,सुशांत सुप्रिय,4,सुशील कुमार शर्मा,24,सुशील यादव,6,सुशील शर्मा,16,सुषमा गुप्ता,20,सुषमा श्रीवास्तव,2,सूरज प्रकाश,1,सूर्य बाला,1,सूर्यकांत मिश्रा,14,सूर्यकुमार पांडेय,2,सेल्फी,1,सौमित्र,1,सौरभ मालवीय,4,स्नेहमयी चौधरी,1,स्वच्छ भारत,1,स्वतंत्रता दिवस,3,स्वराज सेनानी,1,हबीब तनवीर,1,हरि भटनागर,6,हरि हिमथाणी,1,हरिकांत जेठवाणी,1,हरिवंश राय बच्चन,1,हरिशंकर गजानंद प्रसाद देवांगन,4,हरिशंकर परसाई,23,हरीश कुमार,1,हरीश गोयल,1,हरीश नवल,1,हरीश भादानी,1,हरीश सम्यक,2,हरे प्रकाश उपाध्याय,1,हाइकु,5,हाइगा,1,हास-परिहास,38,हास्य,59,हास्य-व्यंग्य,78,हिंदी दिवस विशेष,9,हुस्न तबस्सुम 'निहाँ',1,biography,1,dohe,3,hindi divas,6,hindi sahitya,1,indian art,1,kavita,3,review,1,satire,1,shatak,3,tevari,3,undefined,1,
ltr
item
रचनाकार: कहानी // शेर दिल औरत // गोवर्धन यादव
कहानी // शेर दिल औरत // गोवर्धन यादव
http://lh6.ggpht.com/-hgOh6Yh1NXc/T-l7rRwrIeI/AAAAAAAAMrU/wM9HztlRh7U/clip_image002%25255B3%25255D.png?imgmax=200
http://lh6.ggpht.com/-hgOh6Yh1NXc/T-l7rRwrIeI/AAAAAAAAMrU/wM9HztlRh7U/s72-c/clip_image002%25255B3%25255D.png?imgmax=200
रचनाकार
https://www.rachanakar.org/2018/01/blog-post_74.html
https://www.rachanakar.org/
https://www.rachanakar.org/
https://www.rachanakar.org/2018/01/blog-post_74.html
true
15182217
UTF-8
Loaded All Posts Not found any posts VIEW ALL Readmore Reply Cancel reply Delete By Home PAGES POSTS View All RECOMMENDED FOR YOU LABEL ARCHIVE SEARCH ALL POSTS Not found any post match with your request Back Home Sunday Monday Tuesday Wednesday Thursday Friday Saturday Sun Mon Tue Wed Thu Fri Sat January February March April May June July August September October November December Jan Feb Mar Apr May Jun Jul Aug Sep Oct Nov Dec just now 1 minute ago $$1$$ minutes ago 1 hour ago $$1$$ hours ago Yesterday $$1$$ days ago $$1$$ weeks ago more than 5 weeks ago Followers Follow THIS PREMIUM CONTENT IS LOCKED STEP 1: Share to a social network STEP 2: Click the link on your social network Copy All Code Select All Code All codes were copied to your clipboard Can not copy the codes / texts, please press [CTRL]+[C] (or CMD+C with Mac) to copy Table of Content