संस्मरण लेखन पुरस्कार आयोजन - प्रविष्टि क्र. 20 : भानावत तुमसों कहीं मिल्यो न कोई अन्य // माधव नागदा

SHARE:

प्रविष्टि क्र. 20 : संस्मरण भानावत तुमसों कहीं मिल्यो न कोई अन्य माधव नागदा मेरी एक आदत रही है। जब सर्जनात्मकता का उत्स कमजोर पड़ जाता है, भ...

प्रविष्टि क्र. 20 :

संस्मरण

भानावत तुमसों कहीं मिल्यो न कोई अन्य

image

माधव नागदा

मेरी एक आदत रही है। जब सर्जनात्मकता का उत्स कमजोर पड़ जाता है, भविष्य की कोई योजना नहीं सूझ रही होती है तो कुछ समय के लिए भूत की ओर मुड़ जाता हूँ। अपनी ही रचनाएँ पढ़ता हूँ और सोचता हूँ कि स्वयं से आगे कैसे निकलूं। या फिर पुराने एल्बम निकाल लेता हूँ। साहित्यकारों के संग बिताये क्षण ताज़ा करने की कोशिश करता हूँ। इस प्रकार भूत मुझे रिचार्ज करता है और मेरे कदम नये सिरे से आगे बढ़ने लगते हैं।

तीस वर्ष पुराना एक श्वेत-श्याम फोटो मेरे हाथ लगता है। सन 1985 का। नन्द बाबू(नन्द चतुर्वेदी), प्रकाश आतुर, विष्णुचन्द्र शर्मा, क़मर मेवाड़ी, भगवातीलाल व्यास, राजेंद्रप्रसाद सिंह, महेंद्र भानावत, मधुसूदन पाण्ड्या और मैं। अवसर था मेरे प्रथम कहानी संग्रह ‘उसका दर्द’ का लोकार्पण समारोह जो खादी ग्रामोद्योग, राजनगर(राजसमंद) के सभागार में सम्पन्न हुआ था। पुस्तक प्रकाशित की थी क़मर मेवाड़ी जी ने अपने सम्बोधन प्रकाशन कांकरोली से। इस पुस्तक पर राजस्थान साहित्य अकादमी से आर्थिक सहयोग मिला था। उस समय अकादमी अध्यक्ष डॉ.प्रकाश आतुर थे जो युवा रचनाकारों को आगे लाने में विशेषरूप से प्रयत्नशील थे। क़मर जी ने मुझसे कहा था कि निश्चिंत रहो, यह आपकी प्रथम कृति है, अच्छे लोगों को बुलायेंगे। ये सभी अच्छे ही नहीं सुप्रतिष्ठ नाम भी थे जिन्होंने अपनी-अपनी पसंदीदा विधाओं में डूबकर काम किया था। मैं इन सबसे लगभग प्रथम बार मिल रहा था। पहले अध्ययन और बाद में नौकरी व घर-गृहस्थी की व्यस्तताओं के चलते कहीं गोष्ठी या सम्मेलनों में जाने का अवकाश ही नहीं मिल पाता था। क़मर मेवाड़ी जी से भी 1983 में ही भेंट हो पायी थी, मेरे राजसमंद आने के तीन वर्ष पश्चात, वह भी क़मर जी की ही पहल पर। उन्होंने नरेन्द्रजी से पूछा था कि आपके यहाँ माधव नागदा कौन हैं जिनकी रचनाएँ अक्सर छपती रहती हैं। संयोगवश नरेंद्र निर्मल और मैं एक ही भवन में रहते थे। क़मरजी ने मुझे देखते ही यों गले से लगा लिया जैसे वर्षों का अपनापा हो। इसी आत्मीयता के चलते उदयपुर के साहित्यकार मित्र क़मर मेवाड़ी के एक ही बुलावे पर राजसमंद (राजनगर या कंकरोली) चले आते थे। मेरी याद में यह पहला आयोजन था जिसमें मुझे इन नामचीन साहित्यकारों से मिलने का सौभाग्य प्राप्त हुआ था। मैं मन ही मन पुलकित भी था कि इतने बड़े रचनधर्मी मेरे कहानी संग्रह के लोकार्पण समारोह में आए हैं। विष्णुचन्द्र शर्मा तो दिल्ली से आए थे। उन्होंने मुझे अकेले में बताया था कि आपकी कहानियाँ मुझे यहाँ तक खींच लायीं हैं। लोकार्पण समारोह की अध्यक्षता डॉ.प्रकाश आतुर ने की थी। मुख्य अतिथि विष्णुचन्द्र शर्मा थे। नन्द बाबू, भगवातीलाल व्यास और महेंद्र भानावत विशिष्ट अतिथि थे। मुझे सर्वाधिक प्रभावित किया डॉ. महेंद्र भानावत ने। वे विशिष्ट अतिथि ही नहीं अपने व्यक्तित्व से भी विशिष्ट लगे। ठिगना कद, लंबे बाल, आवाज में खम, बातों में दम।

‘उसका दर्द’ की अधिकतर कहानियाँ ग्रामीण परिवेश की थीं। इसे देखते हुए लगभग सभी स्थानीय साहित्यकार मुझमें प्रेमचंद के दर्शन करने लगे। लेखक ने प्रेमचंद की तरह यह लिखा है, वह लिखा है। इन कहानियों को पढ़कर प्रेमचंद की याद आ जाती है वगैरह, वगैरह। जब महेंद्र भानावत बोलने खड़े हुए तो अपनी खनकदार आवाज में कहने लगे, ‘यह क्या प्रेमचंद, प्रेमचंद की रट लगा रखी है। प्रेमचंद के समकक्ष ठहराकर हम क्यों एक नए लेखक की प्रगति के तमाम मार्ग अवरुद्ध करने पर तुले हैं। प्रेमचंद प्रेमचंद हैं, माधव नागदा माधव नागदा। हमें इस तरह की तुलनाओं से बचते हुए आज के संदर्भ में इन कहानियों का विश्लेषण करना चाहिए’। ऐसी बेबाक बात वक्ताओं में से अभी तक किसी ने नहीं कही थी। मैं तारीफ़ों के पुल पर अपने पंख पसारकर उड़ान भरने लगा था कि डॉ.महेंद्र भानावत ने मुझे यथार्थ की खुरदरी जमीन पर ला खड़ा कर दिया। यह मेरे लिए बहुत बड़ी सीख थी जो अभी तक प्रकाश-पुंज की तरह काम दे रही है। कभी स्वयं को इतना ऊंचा मत समझो कि और ऊपर उठने की गुंजाइश ही न बचे। नतीजा यह हुआ कि अपनी आलोचना से मैं सदैव कुछ न कुछ सीखता रहा हूँ जबकि प्रशंसा के अतिरेक को हमेशा नज़रअंदाज़ किया है।

इसके पश्चात हमारी मुलाकातें होती रहीं। कभी सम्बोधन के विशेषांकों के लोकार्पण पर, कभी राजस्थान साहित्यकार परिषद के विशेष समारोहों में तो कभी आकाशवाणी, उदयपुर में रिकॉर्डिंग के अवसर पर। हर बार मैंने उनमें किसी न किसी नई विशेषता के दर्शन किए। लोकमर्मज्ञ, कवि, विनोदप्रिय, दोस्तों के हितैषी और उन्हें खरी-खरी सुनाने वाले। दोस्ती का उनका अपना ही दर्शन है जो काबिलेगौर है। वे कहते हैं कि दोस्तों में कभी अनबोला नहीं होना चाहिए। सौ बार झगड़ें और सौ बार बोलें। दोस्त हैं तो झगड़ेंगे भी, रूठेंगे भी किन्तु दोस्ती में गांठ नहीं पड़ने देंगे। गांठ पड़ जाय तो दोस्ती कैसी। गांठ न पड़े इसीलिए संवाद कायम रहना चाहिए। दोस्त से माफी मँगवाने के बारे में तो कभी सोचना ही नहीं चाहिए चाहे उससे कितनी ही बड़ी भूल क्यों न हो जाय। और अगर दोस्त दोस्ती बचाने के लिए माफी मांग ले तो सारे गिले-शिकवे भुलाकर उसे गले लगा लेना चाहिए।

महेंद्र भानावत जी की विनोदप्रियता का एक नायाब किस्सा याद आ रहा है। राजस्थान साहित्यकार परिषद ने राजसमंद में कोई बड़ा समारोह आयोजित किया था। राजस्थान के कोने-कोने से साहित्यकार आए थे। उदयपुर के साहित्यिक मित्रों को तो आना ही था। सलूम्बर से मेरे घनिष्ठ मित्र सिन्धी और हिन्दी के लेखक नंदलाल परसरमानी भी आए थे। कद चार फुट। विनोद में वे भी कम नहीं। लेकिन चूंकि परिषद के किसी आयोजन में भागीदारी का उनका यह पहला अवसर था अतः कुछ संकोच से भरे हुए। लंच के पश्चात फुरसत के क्षणों में मैंने देखा कि महेंद्र भानावत बार-बार जाकर नंदलाल परसरमानी के बगल में खड़े हो जाते हैं। नंदजी जरा दूर हटते हैं तो महेन्द्रजी फिर उनके समीप। अंततः दोनों एक-दूसरे की तरफ देखकर ठहाके लगाने लगे। हँसी रुकने पर नंदलाल ने पूछा, ‘आप शायद मुझसे कुछ कहना चाहते हैं ?”

“हाँ, आपको देखकर मुझे बहुत खुशी हो रही है |”

“किस बात की ?”

“यह जानकर कि मुझसे छोटे कद का भी कोई व्यक्ति है |”

दोनों फिर हँसे। उन दिनों डॉ.महेंद्र भानावत जय राजस्थान में चलते-चलते स्तम्भ लिखा करते थे। बाद में इस स्तम्भ में उन्होंने लिखा, ‘सिन्धी साहित्य की ऊंचाई:नंदलाल परसरमानी |’

रेखाचित्र लिखने में भानावत साहब का कोई सानी नहीं। उनकी आँखें सदैव साधारण में असाधारण ढूँढने में लगी रहती हैं। वे आम में से खास निकालने में माहिर हैं। और खास में से आम भी। यानि किसी प्रसिद्ध हस्ती के बारे में लिखते हुए वे उसके जीवन की ऐसी छोटी-छोटी बातें बताते चलते हैं जिससे पाठक अचंभित रह जाते हैं कि अरे जिसे हम बड़ा आदमी समझते थे वह तो हमारे जैसा ही है, हमारे जैसे जीवन संघर्षों से गुजरकर ही इस मुकाम तक पहुँचा है। उन्होंने अपने रेखाचित्रों में देवीलाल सामर, जैनेन्द्र, जनार्दनराय नागर, कन्हैयालाल सेठिया, अगरचंद नाहटा, डॉ.प्रकाश आतुर, पं.उदय जैन जैसी शख़्सियतों को तो चित्रित किया ही है, डाकू करणा भील और शिकारी तुलसीराम धायभाई को भी आत्मीयता के साथ उकेरा है। करणा भील वाले रेखाचित्र का उन्होंने बड़ा प्यारा सा शीर्षक दिया है, माथे पर मंदर वाला डाकू करणा भील। उनकी यह सकारात्मक और आत्मीय दीठ ही लोगों के हृदय-द्वार खुलवा देती है। फिर तो वहाँ से जो बाहर आता है उसे डॉ.भानावत अवेरते चलते हैं और फुरसत पाकर नायाब शब्दों का जामा पहनाकर यों जाम की तरह पेश करते हैं कि पाठक झूमे बिना नहीं रह सकता।

रेखाचित्र लिखते समय लेखक प्रायः भाषा के प्रति सजगता नहीं बरतते हैं। उनका सारा ज़ोर व्यक्तित्व चित्रण पर ही रहता है। लेकिन डॉ.महेंद्र भानावत भाषा के कारीगर हैं। वे जहाँ गुंजाइश नहीं होती है वहाँ भी कस निकाल लेते हैं। उनकी भाषा ऐसी चित्रात्मक और काव्यमयी है कि पढ़ते ही बनता है। शिकारी तुलसीराम धायभाई वाले रेखाचित्र (जिन्हें मैं जानता हूँ-ले.डॉ.महेंद्र भानावत) का आरंभ वे यों करते हैं, ‘मोटे-मोटे मगरे, मगरे से मिले छोटे-छोटे मगरे। मगरे के ऊपर मथारे, मथारों पर ऊंची-ऊंची घाटियाँ, टेढ़े-मेढ़े रास्ते और घुप्प-घुप्प गलियाँ, फिर खादरे खूब बड़े, खूब घने, गहरी छाया और घनी झाड़ी वाले, खादरों से लगे फिर मथारे। मगरे की आजू-बाजू की फरड़ और इधर-उधर के ऊंचे-ऊंचे स्थान जिनके कई नाम’।

इस वर्णन को पढ़कर क्या यह नहीं लगता की लोककलाविद डॉ.भानावत कविताएं भी लिखते होंगे। दरअसल इनके साहित्यिक जीवन का शुभारंभ कविता लेखन से ही हुआ था। विद्यार्थी काल में ही कई कविताएं छप चुकी थीं। किन्तु जब नौकरी की तलाश में भारतीय लोककला मण्डल पहुँचे तो आपके जीवन की दिशा ही बदल गई। पूरी तरह लोकरंगों में रंग गए। फिर भी कविता छूटी नहीं। अब भी यदा-कदा कविताएं लिखते रहते हैं और क्या खूब लिखते हैं। मुझे इनकी ‘माँ मेरी’ कविता खूब याद आती है। यह कविता जरूर उन सबको सताएगी जो अपनी जड़ों से उखड़ चुके हैं। माँ चालीस वर्षों से शहर में अपने पुत्र के पास रहती आ रही है मगर उसकी यादों में अब भी गाँव बसा हुआ है। वह गाँव, जहाँ की बोली-बानी, खान-पान, रीति-रिवाज, और जहाँ के अभावग्रस्त हमजोलियों को हम शहर आकर, पढ़-लिखकर, विद्वत्ता का बाना ओढ़कर भुला चुके होते हैं। माँ को अभी भी गाँव का रामलाल, हूडी, रतन्या, भूरकी गोठण, चतरभज महाराज याद आते हैं। माँ को चूल्हे पर चढ़ी वह केलड़ी(मिट्टी का तवा) याद आती है जिसके मुलकने पर मेहमान आते थे और पूरा घर मुलकने लगता था। माँ कहती है-

मुझे याद आती है/चतरभज महाराज की/जो हर/ मोटी तिथि पर आकर/ पेटिया ले जाते

अब पता ही नहीं चलता/ कब अमावस पूनम आती है।

कविता के अंत में माँ अपना दुख यों उलीचती है –

धरम-करम सब खूँटी टंग गए हैं/यहाँ केलड़ी भी नहीं/जो मुलकाए तो मेहमान आए/ मैं कितने रंगीन सपने देखती थी/यहाँ तो/पोता मेरी गोद ही नहीं आता/और टीवी देखते-देखते/सपने देखना ही भूल गया है |

कहना न होगा कि ऐसी कविता कोई लोकसंपृक्त संवेदनशील कवि ही सिरज सकता है।

तथाकथित बड़े साहित्यकारों में प्रायः एक प्रवृत्ति देखी जाती है। यदि किसी साहित्यिक समारोह में उन्हें अतिथि बनाकर आमंत्रण भेजा जाय तो कार्ड देखकर नाक-भौं सिकोड़ने लगेंगे। फलां का नाम ऊपर और मेरा नीचे। वो साहित्य के बारे में समझता ही क्या है। उसकी महज पाँच किताबें हैं जबकि मेरी एक दर्जन पुस्तकें छप चुकी हैं। किसी समारोह में मिल जायेंगे तो चेहरे पर उपेक्षा भाव देखते ही आपका हौसला पस्त हो जायेगा। अगर मुख्य आतिथ्य या अध्यक्षता के लिए निवेदन किया जायेगा तो पहले तरह-तरह के बहाने। समय कहाँ है। इस तारीख को तो मेरा फलां जगह कार्यक्रम है। अच्छा देखेंगे। और कौन-कौन आ रहा है। अरे वह तो ...। आप एक बार फिर संपर्क करना वगैरह-वगैरह। पिछले दिनों मेरे एक मित्र की पुस्तक का लोकार्पण था। वे बोले कि अध्यक्षता किससे करवायेँ ? उदयपुर का ही कोई प्रतिष्ठित साहित्यकार हो तो ठीक रहेगा। मेरे दिमाग में तत्काल डॉ.महेंद्र भानावत का नाम उभरा। मित्र के मन में शंका के बादल थे। अंतर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त लोककला मर्मज्ञ, शताधिक पुस्तकों के रचयिता, इतना बड़ा नाम, क्या वे स्वीकारेंगे ! मैंने कहा आप चिंता न करें। अभी फोन लगाते हैं। उधर से मस्त-मौला आवाज़। बिना कसी न नुकुर के तैयार। मैंने मित्र से कहा लो बात करो। हमने उदयपुर के एक साथी को ज़िम्मेदारी सौंप दी कि कार्यक्रम के दिन वे भानावत साहब को अपने साथ लेते आयें। मैंने मित्र को नंबर नोट कराये और कहा कि अब आप संपर्क में रहना। मैं निश्चिंत।

मेरी निश्चिंतता मुझ पर भारी पड़ गई।

16 अगस्त 2015 को गोवर्द्धन हायर सेकंडरी स्कूल नाथद्वारा में कार्यक्रम था। दस बजे तक सबको आ जाना था ताकि ठीक साढ़े दस बजे कार्यक्रम आरंभ हो सके। इधर साढ़े दस बज गए। मित्र बेचैन होकर बोले, ‘भानावत साहब को फोन तो लगाइए, कहाँ तक आए हैं |’

मैंने फोन लगाया। मालूम हुआ कि उन्हें तो आमंत्रण पत्र ही नहीं मिला है। न ही वे सज्जन लेने गए हैं जिन्हें लाने की ज़िम्मेदारी सौंपी थी। मेरे तो पाँव तले की जमीन खिसक गई। मुझे अपने मित्र पर रोष तो उपजा लेकिन पचा गया। अब किस मुँह से कहूँ कि आ जाइए। फिर भी मैंने हिम्मत की, ‘डॉक्टर साहब, आप टेक्सी करके आयें लेकिन आ जायेँ।

‘लेकिन अब तो काफी देर हो जायेगी। अच्छा ऐसा करें, आप कार्यक्रम आरंभ करवा दें |’

ग्यारह बजे के करीब कार्यक्रम आरंभ हो गया। लोकार्पण हुआ, आलेख पढे गये। जिनका सम्मान होना था वह भी हुआ। कृतिकार ने अपना वक्तव्य दिया। कि मेरे मोबाइल की घंटी बजी, ‘माधवजी, कॉलेज तक पहुँच गया हूँ , आगे किधर आना है ?’

वाह ! मेरा सारा तनाव साँप की केंचुल की भाँति उतर गया। और जब डॉ.महेंद्र भानावत डॉ.राजगोपाल के साथ सभाकक्ष में प्रविष्ट हुए तो उन्हें देखकर सर्वाधिक खुश होने वाला व्यक्ति मैं ही था , मंच पर बैठे उनके अभिन्न मित्र क़मर मेवाड़ी से भी ज्यादा। इस बीच संचालक ने एक अप्रिय कमेन्ट कर दिया, ‘आज के अध्यक्ष महोदय पधार गए हैं। देर आयद दुरस्त आयद |’ मैं जानता हूँ कि डॉ.भानावत जैसा समय का पाबंद कोई नहीं है। वे समय से पूर्व पहुँचते हैं और यदि निर्धारित समय से आधे घंटे तक कार्यक्रम आरंभ नहीं होता है तो चले भी जाते हैं। अंत में जब डॉ.भानावत ने माइक संभाला तो मैंने सोचा कि अब आयोजकों की खैर नहीं। खासकर मेरी। मैं अपने मित्र की कमी क्यों निकालूँ। मेरी ही गलती थी कि पुनः बीस दिन तक उनसे संपर्क नहीं कर सका। परंतु उन्होंने इस संबंध में एक शब्द तक नहीं कहा। कार्यक्रम के पश्चात वे बड़े प्रेम से मिले, खुलकर, दिल खोलकर। मैंने अपने मित्र मुरलीधर कनेरिया से कहा, ‘हमने बड़े-बड़े साहित्यकार देखे हैं मगर भानावत साहब जैसा बड़प्पन किसी में नहीं देखा |’

लोककलाविद, लोकमन, सबके मित्र अनन्य

भानावत तुमसों कहीं, मिल्यो न कोई अन्य

.......................................................

माधव नागदा

लालमादड़ी(नाथद्वारा)-313301

COMMENTS

BLOGGER
नाम

 आलेख ,1, कविता ,1, कहानी ,1, व्यंग्य ,1,14 सितम्बर,7,14 september,6,15 अगस्त,4,2 अक्टूबर अक्तूबर,1,अंजनी श्रीवास्तव,1,अंजली काजल,1,अंजली देशपांडे,1,अंबिकादत्त व्यास,1,अखिलेश कुमार भारती,1,अखिलेश सोनी,1,अग्रसेन,1,अजय अरूण,1,अजय वर्मा,1,अजित वडनेरकर,1,अजीत प्रियदर्शी,1,अजीत भारती,1,अनंत वडघणे,1,अनन्त आलोक,1,अनमोल विचार,1,अनामिका,3,अनामी शरण बबल,1,अनिमेष कुमार गुप्ता,1,अनिल कुमार पारा,1,अनिल जनविजय,1,अनुज कुमार आचार्य,5,अनुज कुमार आचार्य बैजनाथ,1,अनुज खरे,1,अनुपम मिश्र,1,अनूप शुक्ल,14,अपर्णा शर्मा,6,अभिमन्यु,1,अभिषेक ओझा,1,अभिषेक कुमार अम्बर,1,अभिषेक मिश्र,1,अमरपाल सिंह आयुष्कर,2,अमरलाल हिंगोराणी,1,अमित शर्मा,3,अमित शुक्ल,1,अमिय बिन्दु,1,अमृता प्रीतम,1,अरविन्द कुमार खेड़े,5,अरूण देव,1,अरूण माहेश्वरी,1,अर्चना चतुर्वेदी,1,अर्चना वर्मा,2,अर्जुन सिंह नेगी,1,अविनाश त्रिपाठी,1,अशोक गौतम,3,अशोक जैन पोरवाल,14,अशोक शुक्ल,1,अश्विनी कुमार आलोक,1,आई बी अरोड़ा,1,आकांक्षा यादव,1,आचार्य बलवन्त,1,आचार्य शिवपूजन सहाय,1,आजादी,3,आत्मकथा,1,आदित्य प्रचंडिया,1,आनंद टहलरामाणी,1,आनन्द किरण,3,आर. के. नारायण,1,आरकॉम,1,आरती,1,आरिफा एविस,5,आलेख,4288,आलोक कुमार,3,आलोक कुमार सातपुते,1,आवश्यक सूचना!,1,आशीष कुमार त्रिवेदी,5,आशीष श्रीवास्तव,1,आशुतोष,1,आशुतोष शुक्ल,1,इंदु संचेतना,1,इन्दिरा वासवाणी,1,इन्द्रमणि उपाध्याय,1,इन्द्रेश कुमार,1,इलाहाबाद,2,ई-बुक,374,ईबुक,231,ईश्वरचन्द्र,1,उपन्यास,269,उपासना,1,उपासना बेहार,5,उमाशंकर सिंह परमार,1,उमेश चन्द्र सिरसवारी,2,उमेशचन्द्र सिरसवारी,1,उषा छाबड़ा,1,उषा रानी,1,ऋतुराज सिंह कौल,1,ऋषभचरण जैन,1,एम. एम. चन्द्रा,17,एस. एम. चन्द्रा,2,कथासरित्सागर,1,कर्ण,1,कला जगत,113,कलावंती सिंह,1,कल्पना कुलश्रेष्ठ,11,कवि,2,कविता,3239,कहानी,2360,कहानी संग्रह,247,काजल कुमार,7,कान्हा,1,कामिनी कामायनी,5,कार्टून,7,काशीनाथ सिंह,2,किताबी कोना,7,किरन सिंह,1,किशोरी लाल गोस्वामी,1,कुंवर प्रेमिल,1,कुबेर,7,कुमार करन मस्ताना,1,कुसुमलता सिंह,1,कृश्न चन्दर,6,कृष्ण,3,कृष्ण कुमार यादव,1,कृष्ण खटवाणी,1,कृष्ण जन्माष्टमी,5,के. पी. सक्सेना,1,केदारनाथ सिंह,1,कैलाश मंडलोई,3,कैलाश वानखेड़े,1,कैशलेस,1,कैस जौनपुरी,3,क़ैस जौनपुरी,1,कौशल किशोर श्रीवास्तव,1,खिमन मूलाणी,1,गंगा प्रसाद श्रीवास्तव,1,गंगाप्रसाद शर्मा गुणशेखर,1,ग़ज़लें,550,गजानंद प्रसाद देवांगन,2,गजेन्द्र नामदेव,1,गणि राजेन्द्र विजय,1,गणेश चतुर्थी,1,गणेश सिंह,4,गांधी जयंती,1,गिरधारी राम,4,गीत,3,गीता दुबे,1,गीता सिंह,1,गुंजन शर्मा,1,गुडविन मसीह,2,गुनो सामताणी,1,गुरदयाल सिंह,1,गोरख प्रभाकर काकडे,1,गोवर्धन यादव,1,गोविन्द वल्लभ पंत,1,गोविन्द सेन,5,चंद्रकला त्रिपाठी,1,चंद्रलेखा,1,चतुष्पदी,1,चन्द्रकिशोर जायसवाल,1,चन्द्रकुमार जैन,6,चाँद पत्रिका,1,चिकित्सा शिविर,1,चुटकुला,71,ज़कीया ज़ुबैरी,1,जगदीप सिंह दाँगी,1,जयचन्द प्रजापति कक्कूजी,2,जयश्री जाजू,4,जयश्री राय,1,जया जादवानी,1,जवाहरलाल कौल,1,जसबीर चावला,1,जावेद अनीस,8,जीवंत प्रसारण,141,जीवनी,1,जीशान हैदर जैदी,1,जुगलबंदी,5,जुनैद अंसारी,1,जैक लंडन,1,ज्ञान चतुर्वेदी,2,ज्योति अग्रवाल,1,टेकचंद,1,ठाकुर प्रसाद सिंह,1,तकनीक,32,तक्षक,1,तनूजा चौधरी,1,तरुण भटनागर,1,तरूण कु सोनी तन्वीर,1,ताराशंकर बंद्योपाध्याय,1,तीर्थ चांदवाणी,1,तुलसीराम,1,तेजेन्द्र शर्मा,2,तेवर,1,तेवरी,8,त्रिलोचन,8,दामोदर दत्त दीक्षित,1,दिनेश बैस,6,दिलबाग सिंह विर्क,1,दिलीप भाटिया,1,दिविक रमेश,1,दीपक आचार्य,48,दुर्गाष्टमी,1,देवी नागरानी,20,देवेन्द्र कुमार मिश्रा,2,देवेन्द्र पाठक महरूम,1,दोहे,1,धर्मेन्द्र निर्मल,2,धर्मेन्द्र राजमंगल,1,नइमत गुलची,1,नजीर नज़ीर अकबराबादी,1,नन्दलाल भारती,2,नरेंद्र शुक्ल,2,नरेन्द्र कुमार आर्य,1,नरेन्द्र कोहली,2,नरेन्‍द्रकुमार मेहता,9,नलिनी मिश्र,1,नवदुर्गा,1,नवरात्रि,1,नागार्जुन,1,नाटक,152,नामवर सिंह,1,निबंध,3,नियम,1,निर्मल गुप्ता,2,नीतू सुदीप्ति ‘नित्या’,1,नीरज खरे,1,नीलम महेंद्र,1,नीला प्रसाद,1,पंकज प्रखर,4,पंकज मित्र,2,पंकज शुक्ला,1,पंकज सुबीर,3,परसाई,1,परसाईं,1,परिहास,4,पल्लव,1,पल्लवी त्रिवेदी,2,पवन तिवारी,2,पाक कला,23,पाठकीय,62,पालगुम्मि पद्मराजू,1,पुनर्वसु जोशी,9,पूजा उपाध्याय,2,पोपटी हीरानंदाणी,1,पौराणिक,1,प्रज्ञा,1,प्रताप सहगल,1,प्रतिभा,1,प्रतिभा सक्सेना,1,प्रदीप कुमार,1,प्रदीप कुमार दाश दीपक,1,प्रदीप कुमार साह,11,प्रदोष मिश्र,1,प्रभात दुबे,1,प्रभु चौधरी,2,प्रमिला भारती,1,प्रमोद कुमार तिवारी,1,प्रमोद भार्गव,2,प्रमोद यादव,14,प्रवीण कुमार झा,1,प्रांजल धर,1,प्राची,367,प्रियंवद,2,प्रियदर्शन,1,प्रेम कहानी,1,प्रेम दिवस,2,प्रेम मंगल,1,फिक्र तौंसवी,1,फ्लेनरी ऑक्नर,1,बंग महिला,1,बंसी खूबचंदाणी,1,बकर पुराण,1,बजरंग बिहारी तिवारी,1,बरसाने लाल चतुर्वेदी,1,बलबीर दत्त,1,बलराज सिंह सिद्धू,1,बलूची,1,बसंत त्रिपाठी,2,बातचीत,2,बाल उपन्यास,6,बाल कथा,356,बाल कलम,26,बाल दिवस,4,बालकथा,80,बालकृष्ण भट्ट,1,बालगीत,20,बृज मोहन,2,बृजेन्द्र श्रीवास्तव उत्कर्ष,1,बेढब बनारसी,1,बैचलर्स किचन,1,बॉब डिलेन,1,भरत त्रिवेदी,1,भागवत रावत,1,भारत कालरा,1,भारत भूषण अग्रवाल,1,भारत यायावर,2,भावना राय,1,भावना शुक्ल,5,भीष्म साहनी,1,भूतनाथ,1,भूपेन्द्र कुमार दवे,1,मंजरी शुक्ला,2,मंजीत ठाकुर,1,मंजूर एहतेशाम,1,मंतव्य,1,मथुरा प्रसाद नवीन,1,मदन सोनी,1,मधु त्रिवेदी,2,मधु संधु,1,मधुर नज्मी,1,मधुरा प्रसाद नवीन,1,मधुरिमा प्रसाद,1,मधुरेश,1,मनीष कुमार सिंह,4,मनोज कुमार,6,मनोज कुमार झा,5,मनोज कुमार पांडेय,1,मनोज कुमार श्रीवास्तव,2,मनोज दास,1,ममता सिंह,2,मयंक चतुर्वेदी,1,महापर्व छठ,1,महाभारत,2,महावीर प्रसाद द्विवेदी,1,महाशिवरात्रि,1,महेंद्र भटनागर,3,महेन्द्र देवांगन माटी,1,महेश कटारे,1,महेश कुमार गोंड हीवेट,2,महेश सिंह,2,महेश हीवेट,1,मानसून,1,मार्कण्डेय,1,मिलन चौरसिया मिलन,1,मिलान कुन्देरा,1,मिशेल फूको,8,मिश्रीमल जैन तरंगित,1,मीनू पामर,2,मुकेश वर्मा,1,मुक्तिबोध,1,मुर्दहिया,1,मृदुला गर्ग,1,मेराज फैज़ाबादी,1,मैक्सिम गोर्की,1,मैथिली शरण गुप्त,1,मोतीलाल जोतवाणी,1,मोहन कल्पना,1,मोहन वर्मा,1,यशवंत कोठारी,8,यशोधरा विरोदय,2,यात्रा संस्मरण,31,योग,3,योग दिवस,3,योगासन,2,योगेन्द्र प्रताप मौर्य,1,योगेश अग्रवाल,2,रक्षा बंधन,1,रच,1,रचना समय,72,रजनीश कांत,2,रत्ना राय,1,रमेश उपाध्याय,1,रमेश राज,26,रमेशराज,8,रवि रतलामी,2,रवींद्र नाथ ठाकुर,1,रवीन्द्र अग्निहोत्री,4,रवीन्द्र नाथ त्यागी,1,रवीन्द्र संगीत,1,रवीन्द्र सहाय वर्मा,1,रसोई,1,रांगेय राघव,1,राकेश अचल,3,राकेश दुबे,1,राकेश बिहारी,1,राकेश भ्रमर,5,राकेश मिश्र,2,राजकुमार कुम्भज,1,राजन कुमार,2,राजशेखर चौबे,6,राजीव रंजन उपाध्याय,11,राजेन्द्र कुमार,1,राजेन्द्र विजय,1,राजेश कुमार,1,राजेश गोसाईं,2,राजेश जोशी,1,राधा कृष्ण,1,राधाकृष्ण,1,राधेश्याम द्विवेदी,5,राम कृष्ण खुराना,6,राम शिव मूर्ति यादव,1,रामचंद्र शुक्ल,1,रामचन्द्र शुक्ल,1,रामचरन गुप्त,5,रामवृक्ष सिंह,10,रावण,1,राहुल कुमार,1,राहुल सिंह,1,रिंकी मिश्रा,1,रिचर्ड फाइनमेन,1,रिलायंस इन्फोकाम,1,रीटा शहाणी,1,रेंसमवेयर,1,रेणु कुमारी,1,रेवती रमण शर्मा,1,रोहित रुसिया,1,लक्ष्मी यादव,6,लक्ष्मीकांत मुकुल,2,लक्ष्मीकांत वैष्णव,1,लखमी खिलाणी,1,लघु कथा,288,लघुकथा,1340,लघुकथा लेखन पुरस्कार आयोजन,241,लतीफ घोंघी,1,ललित ग,1,ललित गर्ग,13,ललित निबंध,20,ललित साहू जख्मी,1,ललिता भाटिया,2,लाल पुष्प,1,लावण्या दीपक शाह,1,लीलाधर मंडलोई,1,लू सुन,1,लूट,1,लोक,1,लोककथा,378,लोकतंत्र का दर्द,1,लोकमित्र,1,लोकेन्द्र सिंह,3,विकास कुमार,1,विजय केसरी,1,विजय शिंदे,1,विज्ञान कथा,79,विद्यानंद कुमार,1,विनय भारत,1,विनीत कुमार,2,विनीता शुक्ला,3,विनोद कुमार दवे,4,विनोद तिवारी,1,विनोद मल्ल,1,विभा खरे,1,विमल चन्द्राकर,1,विमल सिंह,1,विरल पटेल,1,विविध,1,विविधा,1,विवेक प्रियदर्शी,1,विवेक रंजन श्रीवास्तव,5,विवेक सक्सेना,1,विवेकानंद,1,विवेकानन्द,1,विश्वंभर नाथ शर्मा कौशिक,2,विश्वनाथ प्रसाद तिवारी,1,विष्णु नागर,1,विष्णु प्रभाकर,1,वीणा भाटिया,15,वीरेन्द्र सरल,10,वेणीशंकर पटेल ब्रज,1,वेलेंटाइन,3,वेलेंटाइन डे,2,वैभव सिंह,1,व्यंग्य,2075,व्यंग्य के बहाने,2,व्यंग्य जुगलबंदी,17,व्यथित हृदय,2,शंकर पाटील,1,शगुन अग्रवाल,1,शबनम शर्मा,7,शब्द संधान,17,शम्भूनाथ,1,शरद कोकास,2,शशांक मिश्र भारती,8,शशिकांत सिंह,12,शहीद भगतसिंह,1,शामिख़ फ़राज़,1,शारदा नरेन्द्र मेहता,1,शालिनी तिवारी,8,शालिनी मुखरैया,6,शिक्षक दिवस,6,शिवकुमार कश्यप,1,शिवप्रसाद कमल,1,शिवरात्रि,1,शिवेन्‍द्र प्रताप त्रिपाठी,1,शीला नरेन्द्र त्रिवेदी,1,शुभम श्री,1,शुभ्रता मिश्रा,1,शेखर मलिक,1,शेषनाथ प्रसाद,1,शैलेन्द्र सरस्वती,3,शैलेश त्रिपाठी,2,शौचालय,1,श्याम गुप्त,3,श्याम सखा श्याम,1,श्याम सुशील,2,श्रीनाथ सिंह,6,श्रीमती तारा सिंह,2,श्रीमद्भगवद्गीता,1,श्रृंगी,1,श्वेता अरोड़ा,1,संजय दुबे,4,संजय सक्सेना,1,संजीव,1,संजीव ठाकुर,2,संद मदर टेरेसा,1,संदीप तोमर,1,संपादकीय,3,संस्मरण,730,संस्मरण लेखन पुरस्कार 2018,128,सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन,1,सतीश कुमार त्रिपाठी,2,सपना महेश,1,सपना मांगलिक,1,समीक्षा,847,सरिता पन्थी,1,सविता मिश्रा,1,साइबर अपराध,1,साइबर क्राइम,1,साक्षात्कार,21,सागर यादव जख्मी,1,सार्थक देवांगन,2,सालिम मियाँ,1,साहित्य समाचार,98,साहित्यम्,6,साहित्यिक गतिविधियाँ,216,साहित्यिक बगिया,1,सिंहासन बत्तीसी,1,सिद्धार्थ जगन्नाथ जोशी,1,सी.बी.श्रीवास्तव विदग्ध,1,सीताराम गुप्ता,1,सीताराम साहू,1,सीमा असीम सक्सेना,1,सीमा शाहजी,1,सुगन आहूजा,1,सुचिंता कुमारी,1,सुधा गुप्ता अमृता,1,सुधा गोयल नवीन,1,सुधेंदु पटेल,1,सुनीता काम्बोज,1,सुनील जाधव,1,सुभाष चंदर,1,सुभाष चन्द्र कुशवाहा,1,सुभाष नीरव,1,सुभाष लखोटिया,1,सुमन,1,सुमन गौड़,1,सुरभि बेहेरा,1,सुरेन्द्र चौधरी,1,सुरेन्द्र वर्मा,62,सुरेश चन्द्र,1,सुरेश चन्द्र दास,1,सुविचार,1,सुशांत सुप्रिय,4,सुशील कुमार शर्मा,24,सुशील यादव,6,सुशील शर्मा,16,सुषमा गुप्ता,20,सुषमा श्रीवास्तव,2,सूरज प्रकाश,1,सूर्य बाला,1,सूर्यकांत मिश्रा,14,सूर्यकुमार पांडेय,2,सेल्फी,1,सौमित्र,1,सौरभ मालवीय,4,स्नेहमयी चौधरी,1,स्वच्छ भारत,1,स्वतंत्रता दिवस,3,स्वराज सेनानी,1,हबीब तनवीर,1,हरि भटनागर,6,हरि हिमथाणी,1,हरिकांत जेठवाणी,1,हरिवंश राय बच्चन,1,हरिशंकर गजानंद प्रसाद देवांगन,4,हरिशंकर परसाई,23,हरीश कुमार,1,हरीश गोयल,1,हरीश नवल,1,हरीश भादानी,1,हरीश सम्यक,2,हरे प्रकाश उपाध्याय,1,हाइकु,5,हाइगा,1,हास-परिहास,38,हास्य,59,हास्य-व्यंग्य,78,हिंदी दिवस विशेष,9,हुस्न तबस्सुम 'निहाँ',1,biography,1,dohe,3,hindi divas,6,hindi sahitya,1,indian art,1,kavita,3,review,1,satire,1,shatak,3,tevari,3,undefined,1,
ltr
item
रचनाकार: संस्मरण लेखन पुरस्कार आयोजन - प्रविष्टि क्र. 20 : भानावत तुमसों कहीं मिल्यो न कोई अन्य // माधव नागदा
संस्मरण लेखन पुरस्कार आयोजन - प्रविष्टि क्र. 20 : भानावत तुमसों कहीं मिल्यो न कोई अन्य // माधव नागदा
https://lh3.googleusercontent.com/-u-k-a5MXbvU/WnlsNmnMsLI/AAAAAAAA-xM/RTLr3mmjIg0dVj_6-KxtcBWnv_aXE92lACHMYCw/image_thumb?imgmax=800
https://lh3.googleusercontent.com/-u-k-a5MXbvU/WnlsNmnMsLI/AAAAAAAA-xM/RTLr3mmjIg0dVj_6-KxtcBWnv_aXE92lACHMYCw/s72-c/image_thumb?imgmax=800
रचनाकार
https://www.rachanakar.org/2018/02/20.html
https://www.rachanakar.org/
https://www.rachanakar.org/
https://www.rachanakar.org/2018/02/20.html
true
15182217
UTF-8
Loaded All Posts Not found any posts VIEW ALL Readmore Reply Cancel reply Delete By Home PAGES POSTS View All RECOMMENDED FOR YOU LABEL ARCHIVE SEARCH ALL POSTS Not found any post match with your request Back Home Sunday Monday Tuesday Wednesday Thursday Friday Saturday Sun Mon Tue Wed Thu Fri Sat January February March April May June July August September October November December Jan Feb Mar Apr May Jun Jul Aug Sep Oct Nov Dec just now 1 minute ago $$1$$ minutes ago 1 hour ago $$1$$ hours ago Yesterday $$1$$ days ago $$1$$ weeks ago more than 5 weeks ago Followers Follow THIS PREMIUM CONTENT IS LOCKED STEP 1: Share to a social network STEP 2: Click the link on your social network Copy All Code Select All Code All codes were copied to your clipboard Can not copy the codes / texts, please press [CTRL]+[C] (or CMD+C with Mac) to copy Table of Content