महाभारत पर एक दृष्टि // श्री आनन्द किरण

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  भारतीय इतिहास का सबसे मूल्यवान एवं सभ्यता का मजबूत साक्ष्य महाभारत ग्रंथ है। इसकी रचना कृष्णद्वैपायन व्यास द्वारा की गई थी। इसका प्रारंभिक...

 

भारतीय इतिहास का सबसे मूल्यवान एवं सभ्यता का मजबूत साक्ष्य महाभारत ग्रंथ है। इसकी रचना कृष्णद्वैपायन व्यास द्वारा की गई थी। इसका प्रारंभिक नाम जयसंहिता था। प्रारंभ में इस में 1000 श्लोक थे। कालांतर में इनके श्लोकों की संख्या एक लाख हो गई लेकिन मूल एवं कथनाकार यथावत रहे। इसकी कहानी कुछ गुरुत्व बिन्दुओं पर सोचने के लिए पाठक, श्रोता एवं कलमकार को रोक लेते हैं। शोधकर्ता इसकी तह में जाकर ही संतुष्ट प्राप्त करता है। मैंने इस ग्रंथ की मूल कहानी एवं कथनाकारों कई बार दृष्टिपात किया है। श्री श्री आनन्दमूर्ति जी की पुस्तक महाभारत की कहानियां पढ़ी। उसमें वर्णित विभिन्न व्याख्या सारगर्भित मिली। मेरा खोजी मन कुछ शोध के लिए अग्रसर हुआ। वह तथ्य महाभारत की गरिमा अधिक गौरवान्वित करते दिखाई देते हैं इसलिए उनको अपनी पुस्तक "महाभारत एक शोधपत्र" में संग्रहीत किया है। यहाँ उनके कुछ कतिपय तथ्य आपके सम रखकर मैं अपने कर्तव्य का निवहन करता हूँ।

(i) भीष्म की जननी गंगा - महाभारत के प्रथम नायक शान्तनु की पत्नी एवं प्रमुख नायक भीष्म की माता गंगा एक नदी नहीं अपितु गंगा के अन्य तट पर क्रियाशील त्रिया राज्य की युवराज कुमारी थी। त्रिया राज्य में पुत्र का जन्म एक अभिशाप के रुप में मनाया जाता था। यह भारत के किसी कोने में व्याप्त होने के प्रमाण मिलते हैं। यह गर्भ धारण करने के तीव्र मनोकामना से सुन्दर राजकुमारों एवं तेजस्वी सन्यासियों को प्यार के झाल में फसाती थी। कामुक इनका शिकार हो जाता था। यह पुरुषों की न्याय प्रियता पर विश्वास नहीं रखती थी। इनका निर्माण पराजित राज्य की औरतों द्वारा अपनी अस्मिता की रक्षा के क्रम में वन पलायन से हुआ। नदी के स्थान पर यह भीष्म की माता अधिक युक्ति संगत है।

(ii) सत्यवती का प्रथम पुत्र चित्रांग - महाभारत की कथा का एक अन्य पात्र चित्रांग है। सत्यवती एवं शान्तनु का विवाह एक अनुबंध था जिस पर सत्यवती की ओर से उनके पिता ने एवं शान्तनु की ओर से उनके पुत्र भीष्म ने हस्ताक्षर किये थे। वस्तुतः सत्यवती को पुत्र दिए बिना ही, शान्तनु काल के ग्रास बन गए थे। ऐसी स्थिति में व्यास विद्या पीठ की ओर से इस समस्या का समाधान निकाला गया था। उनके अभियंताओं द्वारा एक यांत्रिक मानव का निर्माण किया गया जो राजा का प्रतीक था। उनके नाम पर हस्तिनापुर के मंत्री परिषद द्वारा राजकार्य किया। चित्र + अंग - चित्रांग । उस युग में भारत का भौतिक विज्ञान प्रगतिशील था। इसका प्रमाण द्रोण द्वारा यांत्रिक घडियाल एवं चिड़ियाँ का निर्माण भी किया जाना एवं ध्रुपद द्वारा यांत्रिक मछली का निर्माण किया जाना। यह विश्व का प्रथम एवं एक मात्र रोबोट राजा था।

(iii) सत्यवती का द्वितीय पुत्र विचित्रवीर्य - सत्यवती के द्वितीय पुत्र की मान्यता पाने वाले विचित्रवीर्य एक नैव्यष्टिक जनक का नाम था। जिसका निर्माण व्यास गुरुकुल के चिकित्साचार्यों के द्वारा किया गया है। इसे तीन स्त्रियों के गर्भ में एक ही समय प्रविष्टि करवाया गया। उन स्त्रियों की अवस्था भिन्नता के कारण अलग-अलग प्रवृत्ति के शिशुओं को जन्म दिया। आधुनिक भाषा में क्लोन शिशु कहा जा सकता है। यह तीन स्त्रियां काशी राज्य की दो राजकुमारियां अम्बिका एवं अम्बालिका, जिसको भीष्म द्वारा बलान्त काशी राज दरबार में लाई गई थी तथा एक दासी थी ।

(iv) अंबा से शिखण्डी - भीष्म का मृत्युबाण बनने के संकल्प में अम्बा ने पंचाल राज्य के चिकित्सा शास्त्रियों के पास लिंग परिवर्तन करवाया। इसके क्रम में अंगों प्रत्यारोपण एवं हार्मोन्स में परिवर्तन करवाया गया। अम्बा को आर्यों ने शिखण्डीनी माना जबकि गैर आर्यों ने अंबा को शिखण्ड़ी के रुप में मान्यता दी। अत: शिखण्ड़ी का लिंग विवादित रहा। इसे किन्नर लिंग प्रदान किया गया। कथा जो भी लेकिन एक बात स्पष्ट है कि भारत में लिंग परिवर्तन के भिज्ञ आचार्य मौजूद थे। सरकारी संरक्षण के अभाव में यह चिकित्सा पद्धति अंधकार में समा गई।

(v) शत कौरव, पंच पाण्डव एवं कर्ण - महाभारत का गुरुत्व बिन्दु कौरव , पाण्डव एवं कर्ण है। धृतराष्ट्र के सौ पुत्रों का होना आश्चर्य का विषय नहीं है लेकिन गांधारी के सौ पुत्र विज्ञान के लिए चुनौती है। एक शोधपत्र में इसे बताया गया है मांस के लोथड़े के रुप में जन्मे अण्डकोश को कृत्रिम गर्भ के द्वारा परिपक्व किया गया। अन्य मत है कि भारत में राजाओं के एक से अधिक पत्नियों होने एवं उप पत्नियों की श्रेणी पाए जाने का उदाहरण है। अत: इस विधान के तहत भी शत पुत्र हो सकते है। पाण्डु के पांच पुत्र उनसे उत्पन्न नहीं थे। यह अन्य विशेष सामाजिक विधान के द्वारा पाण्डु पुत्र के रुप में मान्यता प्राप्त हुई लेकिन कुन्ती पुत्र कर्ण को पाण्डवों के रुप मान्यता सामाजिक विधान के अनुसार प्राप्त नहीं हुई। अविवाहित कुन्ती का पुत्र श्री कृष्ण द्वारा स्थापित नूतन व्यवस्था के तहत जेष्ठ पाण्डव पद प्राप्त कर सकता था लेकिन कर्ण के मन में निवास कर रही रुढ मान्यताएं उसे अधर्म के पक्ष में खड़ा रखा। जिसके कारण धर्म ने कर्ण को मृत्योपरान्त उक्त सम्मान प्रदान कर देह को विदा किया।

(vi) महाभारत के नारी चरित्र द्रौपदी, कुन्ती एवं गांधारी - महाभारत भगवान श्री कृष्ण की परिकल्पना में कुरुक्षेत्र का युद्ध द्रौपदी के खुले केश का परिणाम है। पांचाल राजकुमारी पंच पाण्डवों की भार्या होने के कारण चर्चित है। यह विवाह एक असामान्य विवाह है, जो असन्तुलित लिंगानुपात के समय नारी जाति का पुरुष प्रधान समाज की शुचिता के लिए त्याग है। माता कुन्ती के पाच पुत्र संतान उत्पन्न करने में अयोग्य पति को स्त्री द्वारा संतति सुख देने का विकल्प है। गांधारी की पट्टी भी समाज को कुछ शिक्षा देती हैं। तथाकथित तलाक के प्रसंग को विचारने के लिए अवसर देता है।

(vii) धृत क्रीड़ा एवं शकुनि -महाभारत ग्रंथ का एक दृश्य धृत क्रीड़ा के रुप में चित्रित किया गया। मामा शकुनि चौसर के खेल का महारत खिलाड़ी माना जाता है। चौसर राज परिवार में आपस में खेला जाने वाला एक मनोरंजन खेल हैं। इसमें भाई एवं सगे संबंधी हार एवं जीत के रुप हास्य परिहास करते थे। अक्षर चौसर में जीती गई सम्पदा पुनः असली मालिक को लौटा दी जाती थी । यह अमोद - प्रमोद से अधिक कुछ नहीं था। शकुनि ने धर्मराज युधिष्ठिर की सहज नैतिकता का गलत फायदा उठाने के लिए इस मायावी लीला को रचा। युधिष्ठिर धृत क्रीड़ा स्थल बैठे जौहरी के धर्म का निवहन: करते हुए अपना सर्वत्र लूटा दिया। इसका एक दृश्य मानवता को शर्मचार करने वाला घटित हुआ। द्रौपदी को दाव पर लगाना एवं उसका चीरहरण अधर्म के सर्वोच्च मापदंड को छू लिया था। शकुनि एक बहुत बड़ा कूटनीतिज्ञ भी था। उसके इस अस्त्र में कपटता भी वर्जित नहीं थी। इसके बल पर अबोध एवं सुबोध पाण्डवों के समक्ष पग - पग पर मुश्किलें खड़ी कर दी थी। विदूर अपनी सुनीति एवं दूरदर्शी बुद्धि के बल पर सदैव पाण्डवों का रक्षण किया लेकिन उसकी अन्तिम परिणीत श्रीकृष्ण की सफल युद्ध नीति के कारण हुई।

(viii) हस्तिनापुर का राजदरबार - महाभारत गुरुत्व बिन्दु कुरु राज्य का दरबार राजा के अतिरिक्त तीन विशेषज्ञ सलाहकार परिषद के सदस्य थे। राजा के परामर्श के लिए भीष्म पितामह गृह, रक्षा एवं विदेश मामलों के विशेषज्ञ थे। कृपाचार्य धर्म, न्याय एवं सामाजिक मामलात के विशेषज्ञ तथा शिक्षा, ज्ञान, विज्ञान एवं युद्ध नीति के विशेषज्ञ के रुप में द्रोणाचार्य नियुक्त थे। इसके अतिरिक्त महामंत्री विदूर के नेतृत्व में एक मंत्री परिषद एवं सैन्य विभाग भी क्रियाशील था। कृपाचार्य कुलगुरु, द्रोणाचार्य शिक्षा गुरू तथा भीष्म पितामह संरक्षक का प्रशासनिक कार्य भी देखते थे। युधिष्ठिर के दरबार में अर्जुन विदेश विभाग, गृह विभाग भीम के पास था। नकुल कला, विज्ञान एवं उत्सव इत्यादि का संचालन करने के प्रमाण हैं। सहदेव के पास सैन्य, व्यवस्था एवं दरबार व्यवस्था का संचालन करता है।

(ix) कुरुक्षेत्र का मैदान एवं सैन्य रचना महाभारत का निर्णायक युद्ध भगवान श्रीकृष्ण की योजना की अन्तिम परिणिति है। कुरुक्षेत्र का मैदान धर्म युद्ध का साक्षीत्व हैं कुरुक्षेत्र अर्थात कर्मक्षेत्र हैं भगवान श्री कृष्ण सारथी की भूमिका में है। संसार में शुभ एवं अशुभ शक्तियों के बीच संघर्ष चल रहा है। यह युद्ध दुर्योधन की असफल युद्ध नीति एवं युधिष्ठिर का सफल सैन्य कौशल के बीच हुआ। महाभारत के युद्ध के प्रारंभिक में दुर्योधन के पास ग्यारह अक्षौहिणी सेना थी जबकि युधिष्ठिर के पास सात अक्षरौहणी सेना। तत्कालीन सैन्य संगठन के अनुसार सेना के पांच अंग होते थे। प्रथम पैदल सेना - यह गदा एवं मल्लयुद्ध में पारंगत होते हैं। सम्पूर्ण सेना का अधिकांश हिस्सा पैदल सेना के रुप में होता था। युधिष्ठिर की सेना के इस अंग का संरक्षण भीम के पास था तथा कौरव सेना में इस विभाग की कमान स्वयं दुर्योधन के पास थी। सेना द्वितीय अंग अश्व सेना है। इनका अस्त्र तलवार होता था। यह पैदल सेना के दोनों ओर तैनात रहती थी। नकुल इस सेना का नेतृत्व पाण्डवों की ओर से करता था। जबकि कौरव सेना में शकुनि एवं दुःशासन यह जिम्मा दिया गया था। सेना का तीसरा अंग रथ सेना के रुप में था। यह पैदल सेना के पीछे रहकर धनुष एवं बाण से हमला करते थे। अर्जुन पांडव सेना के इस अंग का संचालन करता था जबकि कौरव में द्रोण व कर्ण । चतुर्थ अंग गज सेना हैं। यह भाला फेंक थे स्वयं युधिष्ठिर इसका नेतृत्व करते थे। कौरव सेना यह भार मामा शल्य को दिया था। यह एक कुशल सारथी भी थे। सेना का अन्तिम अंग ऊँट सेना का होता था, जो अस्त्र शस्त्र आपूर्ति का कार्य करते थे। पाण्डव सेना में यह प्रभार सहदेव के पास था जबकि कौरव सेना में यह विभाग कृत वर्मा को दिया गया था। पाण्डव सेना ने प्रधान सेनापति का भार धृष्टद्धुम्न तथा कौरव ने भीष्म को सौंपा था।

(x) महाभारत के प्रधान नायक श्री कृष्ण - महाभारत कहानी सम्पूर्ण भारतवर्ष की है। जिसके एक मात्र किरदार भगवान श्रीकृष्ण है। उनके कुशल निर्देशन के बल पर धर्मराज्य की संस्थापना की गई। उनके बारे लिखने के लिए शब्दों की कमी है। भगवान शिव के बाद मानव सभ्यता को सबसे अधिक भगवान श्रीकृष्ण ने प्रभावित किया। भक्ति, धर्म, आध्यात्म एवं कर्मयोग के शीर्ष पर यही विराजमान हैं।

महाभारत मानव सभ्यता के इतिहास का एक अध्याय है। जिसके अनुसरण से मनुष्य धर्म, अर्थ, काम एवं मोक्ष की प्राप्ति करने में सहायक है। इसलिए महाभारत को एक जीवन शैली भी कहा जा सकता है।

- श्री आनन्द किरण

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रचनाकार: महाभारत पर एक दृष्टि // श्री आनन्द किरण
महाभारत पर एक दृष्टि // श्री आनन्द किरण
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