काव्य जगत // प्राची - फरवरी 2018

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गार्गीशरण मिश्र ‘मराल’ की दो कवितायें मदिरा न लगाना होंठों से मदिरा न लगाना होंठों से ये जहर है कोई जाम नहीं बस एक हसीं यह धोखा है कुदरत...

गार्गीशरण मिश्र ‘मराल’ की दो कवितायें


मदिरा न लगाना होंठों से
मदिरा न लगाना होंठों से ये जहर है कोई जाम नहीं
बस एक हसीं यह धोखा है कुदरत का कोई इनाम नहीं।
जिसने भी पिये प्याले इसके
बदनाम हुए वो बस्ती में,
नाले में गिरे इज्जत खोई
झूमे फिर भी अलमस्ती में
नजरों में गिरे घरवालों की
वो बैठ नशे की कश्ती में,
अपराधों से इसका रिश्ता पीता इंसां का काम नहीं
जिसने बोतल से प्यार किया
बरबादी से इकरार किया,
लुट गयी आबरू घर भर की
चौपट सब कारोबार किया,
नीलाम हुआ घर-बार सभी
कंगाली ने यूं वार किया,
खुद की गलती फल है ये बदकिस्मत का अंजाम नहीं.
है गलत सोचना लोगों का
इंसां दारू को पीता है,
पीती है दारू इंसां को
वहा मुर्दा बन कर जीता है,
वह भरा हुआ समझे खुद को
पर सचमुच में वह रीता है,
मिटकर मयकश बोला दारू, रावण है, कोई राम नहीं.


बस हाला मेरे हाथ रही
तुम छोड़ गयीं मुझको सजनी बस हाला मेरे हाथ रही.
मधुमास तुम्हारे साथ गया पतझड़ की पीड़ा साथ रहीं.
     तुमने हाला को ‘सौत’ कहा
     ‘चुन लो मुझको या हाला को’,
     तुम चली गयीं मधुबाला सी
     मैं छोड़ न पाया हाला को,
     सूनी महफिल क्या करूं भला
     घर की सूनी मधुशाला में,
तुम चली गयी सुख चैन गया बस मात्र तुम्हारी याद रही.
     हां! काश छोड़ जाती हाला
     या मैं ही उसे छोड़ पाता,
     घर की बगिया मुस्काती तब
     मय-बंधन काश तोड़ पाता,
     धन, मान, प्रेम मिल जाता फिर
     टूटा घर काश जोड़ पाता,
पर कहीं भोर की किरन न थी बस काली काली रात रही.
     की संत विनाबा से बिनती
     आदत दारू की छुड़वा दो,
     ‘तुमने खुद पकड़ा है उसको
     मुझको कहते हो छुड़वा दो
     लो ठान कि पीना छोड़ दिया
     दृढ़ निश्चय कर खुद तुड़वा लो,’
लो पीना छोड़ दिया मैंने अब बात तुम्हारे हाथ रही.


सम्पर्कः 1436/बी, सरस्वती कॉलोनी,
चेरीताल वार्ड, जबलपुर, (म.प्र.) -482002

  

डॉ. उषारानी राव की चार कवितायें


1.    नेपथ्य
     भोर होने से पहले
     निःस्व चिड़ियों के स्वर से पट जाती है..
     सघन जंगल की शून्यता...
     कलरव... जैसे... जीवन-राग!
     अकस्मात धड़ाम से...
     गिरती टहनियों से
     झड़ते पत्तों की तेज
     आवाज से
     मंद होती गई...
     जीवन-राग की ध्वनियां
     वर्तुल बनाकर...
     हवा में उड़ते पक्षियों का
     झुंड...
     पेड़ के आंसू पोछने का
     प्रयत्न करते!
     चालाक विचारों के
     समय में...
     जब... सब सूख रही हो आर्द्रता...
     तब बदलता नहीं
     नेपथ्य!
     चक्रव्यूह रचने वाले हैं
     संगठित
     तो.. चाहिए भेदने वाला भी
     सुनियोजित!

2.    कगार
     खड़े हैं हम... कगार पर
     सेतु के रूप में हैं
     मौजूद
     परास्त होती संवेदना!
     जीवन को राख करके भी
     नहीं जागती
     सुप्त चेतना
     धर्म, मत, जाति के
.    बदल जाने से ‘हम’
     नहीं बदलते
     जब तक हृदय परिवर्तन न हो
     नहीं हो सकती...
     नए सत्यों की स्थापना...
     हिरण के कुलाँच में विलास तो है!
     पर... दिग्ज्ञान नहीं...

3.    लावा
     बहती हुई नदी की
     तरह दौड़ने लगता...
     मन...
     सतत प्रदीप्त रहता ग्रह की तरह
     एक विचार!
     अब एल्बम में कैद है वह
     बचपन
     जो
     निर्विकार...
     निष्कलंक
     उजली सुबह की तरह
     हुआ करता था!
     इंद्रधनुषी सपनों की
     उत्कंठा...
     प्रतीक्षा...
     सब कुछ था उसमें
     सहेजे हूं आज भी
     उन दिनों को
     किसी खजाने की तरह!
     स्कूल के दिनों की याद दिलाती है
     आजकल...
     रहस्यात्मक पगछाप!
     एक चीत्कार...
     कोमलता को भेदती...
     गहराती... असह्य वेदना
     रोम-रोम में फैलता जाता...
     सिहरन
     ममता के
     लावा से
     जलकर राख हो जायेंगी
     संसार की
     सारी दुर्भावनाएँ
     एक दिन!
     कलेजा जिहवाग्र पर !

4.    मन की वृत्ति
     अलौकिक रस है
     प्रियतम का प्रेम!
     तो...
     सीमा का सृजन ही
     निरर्थक!
     सीमा मानों... असीम की
     ओर उठी हुई उंगली हो...
     वह बताती है...
     असीम का पथ
     आत्मा का संपूर्ण अवगाहन
     ससीम प्रेम...
     ले चलती है
     असीम की ओर...
     मन की एकायन वृत्ति में!

सम्पर्कः No.k~ 94, BansÈnkari 2nd Stage, Bangalore.560070

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राजेश माहेश्वरी की कविता

जीवन का आधार

जीवन में
असफलताओं को
करो स्वीकार
मत होना निराश
इससे होगा
वास्तविकता का अहसास
असफलता को सफलता में
परिवर्तित करने का करो प्रयास
समय कितना भी विपरीत हो
मत डरना
साहस और भाग्य पर
रखना विश्वास
अपने पौरुष को कर जाग्रत
धैर्य एवं साहस से
करना प्रतीक्षा सफलता की
पौरुष दर्पण है
भाग्य है उसका प्रतिबिम्ब
दोनों का समन्वय बनेगा
सफलता का आधार.
कठोर श्रम, दूर दृष्टि और पक्का इरादा
कठिनाइयों को करेगा समाप्त
होगा खुशियों के नए संसार का आगमन
विपरीत परिस्थितियों का होगा निर्गमन
पराजित होंगी कुरीतियां
होगा नए सूर्य का उदय
पूरी होंगी सभी अभिलाषाएं
यही है जीवन का क्रम
यही है जीवन का आधार                                                              


सम्पर्कः 106,  नया रामनगर हाउसिंग सोसायटी, जबलपुर (म.प्र.)


राकेश भ्रमर : दो ग़ज़लें

इस शहर की भीड़ में
इस शहर की भीड़ में खो जाओगे.
गांव अपने किस तरह फिर जाओगे.


गांव की यादें रुलाएंगी तुम्हें,
शोर के दरिया में जब बह जाओगे.


ये शहर कुछ भी सही अपना नहीं,
घर की चौखट ढूंढ़ते रह जाओगे.


रास्ते लम्बे बहुत हैं, एक दिन,
तुम भटककर राह में रह जाओगे.


नींद आंखों से तुम्हारी दूर है,
किस तरह मंज़िल सहर की पाओगे.


ये कहानी भी खतम हो जाएगी,
फिर सुनाने क्या ‘भ्रमर’ तुम आओगे.


सांझ ढल जाए तो
सांझ ढल जाये तो मेरी गली में आ जाना.
चांद हो तुम भी अमावस में कभी आ जाना.


हम तुम्हें ख़्वाब दिखायेंगे आसमानों के,
तुम परी हो तो कभी इस ज़मीं पे आ जाना.


जो क़िताबों में रखे थे उन्हें ही भूल गये,
मेरे बोसीदा ख़तूतात लेने आ जाना.


चांद हाथों में कभी मेरे मुकम्मल होगा,
साथ अपने भी सितारों को ले के आ जाना.


तुम हंसोगी तो सभी लोग चौंक जाएंगे,
अपने चेहरे पे कोई दर्द ले के आ जाना.


ये हंसीं रात तुम्हारी अगर अमानत है,
तुम सभी काग़जात ले के कभी आ जाना.


अशोक ‘अंजुम’

बस्ती बनाम तवाइफ

परसों-
जनता संग्राम पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष
श्री गिरगिट चंद जी बस्ती में आये
तो जनता ने उनके स्वागत में
पलक-पांवड़े बिछाये
खातिरदारी में
खून-पसीना लगाया गया,
बस्ती को
दुल्हन की तरह सजाया गया,
माननीय गिरगिटचंद जी ने
आश्वासनों की
जबरदस्त गंगा बहायी,
तदेपरान्त
हंसते-हंसते ली विदाई!
-
कल
जनता खिचड़ी संघ के महासचिव
श्री अंगूठालाल ‘रंगीले’ का
हुआ बस्ती में आगमन
जनता ने तहेदिल से किया
उनका भी अभिनन्दन,
बस्ती फिर से सजायी गई
बाकायदा दुल्हन बनायी गई
रंगीले जी ने भी खूब रंगरेलियां मनायीं
जनता को आश्वासनों की
फुलझड़ियां दिखायीं
और फिर अंगूठालाल ‘रंगीले’ भी
अंगूठा दिखाकर चले गये,
यानि कि हम
एक बार फिर छले गये!
-
आज
जनता क्रान्ति दल के महामंत्री
श्री दलबदल सिंह ‘धुरंधर’
बस्ती में चले आ रहे हैं
बस्ती वाले बस्ती को फिर
दुल्हन की तरह सजा रहे हैं
मैं जानता हूं-
धुरंधर जी भी
बस्ती के अरमानों से खेलेंगे
बस्ती वाले धुरंधर जी का भी
‘आपके लिए ये कर दूंगा’
‘आपके लिए वो कर दूंगा,’
-झेलेंगे!
फिर धुरंधरजी भी
औरों की तरह खेलेंगे-खायेंगे,
तत्पश्चात्
मुंह मटकाते हुए चले जाएंगे!
फिर कल कोई और आयेगा
परसों कोई और
दोस्तों!
आखिर कब तक
चलेगा ये दौर?
आखिर कब तक
खेलते रहेंगे ये तथाकथित उद्धारक
हमारे अरमानों से?
और हम कब तक सुनते रहेंगे
इनके झूठे वादों को
अपने कानों से?
-
वैसे दोस्तों!
सच तो ये है कि
अब रोज-रोज यही सब देखना-सुनना
हमारी लाइफ हो गई है,
और इधर हमारी बस्ती भी
बार-बार दुल्हन बनने के कारण
दुल्हन नहीं रही
तवाइफ हो गई है!

सम्पर्कः  गली-2, चन्द्रविहार कॉलोनी
(नगला डालचंद)
क्वारसी बाईपास, अलीगढ़-202001 (उ.प्र.)

राजकुमार जैन ‘राजन’ की दो कवितायें

अंधकार के बीज

ज्योति पर्व पर
जला रहे हो पीड़ा के दीप
लील चुका है तम
परंपरा, संस्कृति और संस्कार.

ज्योति-पर्व के अस्तित्व बोध में
अंधेरे से लड़ना चाहते हो
तो आओ
जला लो अपने भीतर की मशालें
संजो लो अंतर्मन में
अस्तित्व बोध का दीप

मन में जब जलती हैं मशालें
तब खुद-ब-खुद बदलने लगती हैं
इतिहास की इबारतें
कटने लगती हैं संवेदना की फसल
अपने अभिमान में
खण्ड-खण्ड होते आदमी हो तुम
समय के चित्र फलक पर गलत तस्वीर मत
खींचो
ज्योति पर्व पर
अंधकार के बीज मत बोओ
तुम्हारे भीतर एक सरसब्ज बाग है
उसे सींचो
जो प्रकाश मौन और म्लान हुआ है
देवदूत की तरह अंधकार को काटो

तुम पर समूचे भविष्य की आस्था है
और जिन्दगी महज अभिमान में तार-तार
अंधेरे का घोषणा पत्र नहीं
रूप है, रस है, गंध है, उजास है
आदमी आत्मा का छंद है.

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अंतहीन अनुसंधान

हवा में खुशबू
चांदनी में माधुर्य
फूलों से भंवरे का आलिंगन
स्पर्श से कोमलता का छंद
कैसे बनता है?

खोजता था मैं
सांझ के अंधेरे में
चांदनी की शीतलता में
सूरज की ऊष्णता में
धर्म सभाओं और एकांतिक क्षणों में
गुरुओं की वाणी में
इतिहास के पन्नों में
पर हो जाता था हर बार असफल.

अचानक एक सुबह
सूर्य किरणों की चमक
पक्षियों की कलरव
फूलों के रंग, मिट्टी की गंध
गीतों के बंद
हृदय को छूते कानों को लगने लगे
प्रिय

अंर्तमन बोल उठा
जिंदगी एक अनुसंधान
एक अनवरत यात्रा
एक से अनंत होने की यात्रा
अनवरत यात्रा, अंतहीन यात्रा
सम्पर्कः आकोला-312205, (चित्तौड़गढ़) राज.

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नारायण,1,आरकॉम,1,आरती,1,आरिफा एविस,5,आलेख,4288,आलोक कुमार,3,आलोक कुमार सातपुते,1,आवश्यक सूचना!,1,आशीष कुमार त्रिवेदी,5,आशीष श्रीवास्तव,1,आशुतोष,1,आशुतोष शुक्ल,1,इंदु संचेतना,1,इन्दिरा वासवाणी,1,इन्द्रमणि उपाध्याय,1,इन्द्रेश कुमार,1,इलाहाबाद,2,ई-बुक,374,ईबुक,231,ईश्वरचन्द्र,1,उपन्यास,269,उपासना,1,उपासना बेहार,5,उमाशंकर सिंह परमार,1,उमेश चन्द्र सिरसवारी,2,उमेशचन्द्र सिरसवारी,1,उषा छाबड़ा,1,उषा रानी,1,ऋतुराज सिंह कौल,1,ऋषभचरण जैन,1,एम. एम. चन्द्रा,17,एस. एम. चन्द्रा,2,कथासरित्सागर,1,कर्ण,1,कला जगत,113,कलावंती सिंह,1,कल्पना कुलश्रेष्ठ,11,कवि,2,कविता,3239,कहानी,2360,कहानी संग्रह,247,काजल कुमार,7,कान्हा,1,कामिनी कामायनी,5,कार्टून,7,काशीनाथ सिंह,2,किताबी कोना,7,किरन सिंह,1,किशोरी लाल गोस्वामी,1,कुंवर प्रेमिल,1,कुबेर,7,कुमार करन मस्ताना,1,कुसुमलता सिंह,1,कृश्न चन्दर,6,कृष्ण,3,कृष्ण कुमार यादव,1,कृष्ण खटवाणी,1,कृष्ण जन्माष्टमी,5,के. पी. सक्सेना,1,केदारनाथ सिंह,1,कैलाश मंडलोई,3,कैलाश वानखेड़े,1,कैशलेस,1,कैस जौनपुरी,3,क़ैस जौनपुरी,1,कौशल किशोर श्रीवास्तव,1,खिमन मूलाणी,1,गंगा प्रसाद श्रीवास्तव,1,गंगाप्रसाद शर्मा गुणशेखर,1,ग़ज़लें,550,गजानंद प्रसाद देवांगन,2,गजेन्द्र नामदेव,1,गणि राजेन्द्र विजय,1,गणेश चतुर्थी,1,गणेश सिंह,4,गांधी जयंती,1,गिरधारी राम,4,गीत,3,गीता दुबे,1,गीता सिंह,1,गुंजन शर्मा,1,गुडविन मसीह,2,गुनो सामताणी,1,गुरदयाल सिंह,1,गोरख प्रभाकर काकडे,1,गोवर्धन यादव,1,गोविन्द वल्लभ पंत,1,गोविन्द सेन,5,चंद्रकला त्रिपाठी,1,चंद्रलेखा,1,चतुष्पदी,1,चन्द्रकिशोर जायसवाल,1,चन्द्रकुमार जैन,6,चाँद पत्रिका,1,चिकित्सा शिविर,1,चुटकुला,71,ज़कीया ज़ुबैरी,1,जगदीप सिंह दाँगी,1,जयचन्द प्रजापति कक्कूजी,2,जयश्री जाजू,4,जयश्री राय,1,जया जादवानी,1,जवाहरलाल कौल,1,जसबीर चावला,1,जावेद अनीस,8,जीवंत प्रसारण,141,जीवनी,1,जीशान हैदर जैदी,1,जुगलबंदी,5,जुनैद अंसारी,1,जैक लंडन,1,ज्ञान चतुर्वेदी,2,ज्योति अग्रवाल,1,टेकचंद,1,ठाकुर प्रसाद सिंह,1,तकनीक,32,तक्षक,1,तनूजा चौधरी,1,तरुण भटनागर,1,तरूण कु सोनी तन्वीर,1,ताराशंकर बंद्योपाध्याय,1,तीर्थ चांदवाणी,1,तुलसीराम,1,तेजेन्द्र शर्मा,2,तेवर,1,तेवरी,8,त्रिलोचन,8,दामोदर दत्त दीक्षित,1,दिनेश बैस,6,दिलबाग सिंह विर्क,1,दिलीप भाटिया,1,दिविक रमेश,1,दीपक आचार्य,48,दुर्गाष्टमी,1,देवी नागरानी,20,देवेन्द्र कुमार मिश्रा,2,देवेन्द्र पाठक महरूम,1,दोहे,1,धर्मेन्द्र निर्मल,2,धर्मेन्द्र राजमंगल,1,नइमत गुलची,1,नजीर नज़ीर अकबराबादी,1,नन्दलाल भारती,2,नरेंद्र शुक्ल,2,नरेन्द्र कुमार आर्य,1,नरेन्द्र कोहली,2,नरेन्‍द्रकुमार मेहता,9,नलिनी मिश्र,1,नवदुर्गा,1,नवरात्रि,1,नागार्जुन,1,नाटक,152,नामवर सिंह,1,निबंध,3,नियम,1,निर्मल गुप्ता,2,नीतू सुदीप्ति ‘नित्या’,1,नीरज खरे,1,नीलम महेंद्र,1,नीला प्रसाद,1,पंकज प्रखर,4,पंकज मित्र,2,पंकज शुक्ला,1,पंकज सुबीर,3,परसाई,1,परसाईं,1,परिहास,4,पल्लव,1,पल्लवी त्रिवेदी,2,पवन तिवारी,2,पाक कला,23,पाठकीय,62,पालगुम्मि पद्मराजू,1,पुनर्वसु जोशी,9,पूजा उपाध्याय,2,पोपटी हीरानंदाणी,1,पौराणिक,1,प्रज्ञा,1,प्रताप सहगल,1,प्रतिभा,1,प्रतिभा सक्सेना,1,प्रदीप कुमार,1,प्रदीप कुमार दाश दीपक,1,प्रदीप कुमार साह,11,प्रदोष मिश्र,1,प्रभात दुबे,1,प्रभु चौधरी,2,प्रमिला भारती,1,प्रमोद कुमार तिवारी,1,प्रमोद भार्गव,2,प्रमोद यादव,14,प्रवीण कुमार झा,1,प्रांजल धर,1,प्राची,367,प्रियंवद,2,प्रियदर्शन,1,प्रेम कहानी,1,प्रेम दिवस,2,प्रेम मंगल,1,फिक्र तौंसवी,1,फ्लेनरी ऑक्नर,1,बंग महिला,1,बंसी खूबचंदाणी,1,बकर पुराण,1,बजरंग बिहारी तिवारी,1,बरसाने लाल चतुर्वेदी,1,बलबीर दत्त,1,बलराज सिंह सिद्धू,1,बलूची,1,बसंत त्रिपाठी,2,बातचीत,2,बाल उपन्यास,6,बाल कथा,356,बाल कलम,26,बाल दिवस,4,बालकथा,80,बालकृष्ण भट्ट,1,बालगीत,20,बृज मोहन,2,बृजेन्द्र श्रीवास्तव उत्कर्ष,1,बेढब बनारसी,1,बैचलर्स किचन,1,बॉब डिलेन,1,भरत त्रिवेदी,1,भागवत रावत,1,भारत कालरा,1,भारत भूषण अग्रवाल,1,भारत यायावर,2,भावना राय,1,भावना शुक्ल,5,भीष्म साहनी,1,भूतनाथ,1,भूपेन्द्र कुमार दवे,1,मंजरी शुक्ला,2,मंजीत ठाकुर,1,मंजूर एहतेशाम,1,मंतव्य,1,मथुरा प्रसाद नवीन,1,मदन सोनी,1,मधु त्रिवेदी,2,मधु संधु,1,मधुर नज्मी,1,मधुरा प्रसाद नवीन,1,मधुरिमा प्रसाद,1,मधुरेश,1,मनीष कुमार सिंह,4,मनोज कुमार,6,मनोज कुमार झा,5,मनोज कुमार पांडेय,1,मनोज कुमार श्रीवास्तव,2,मनोज दास,1,ममता सिंह,2,मयंक चतुर्वेदी,1,महापर्व छठ,1,महाभारत,2,महावीर प्रसाद द्विवेदी,1,महाशिवरात्रि,1,महेंद्र भटनागर,3,महेन्द्र देवांगन माटी,1,महेश कटारे,1,महेश कुमार गोंड हीवेट,2,महेश सिंह,2,महेश हीवेट,1,मानसून,1,मार्कण्डेय,1,मिलन चौरसिया मिलन,1,मिलान कुन्देरा,1,मिशेल फूको,8,मिश्रीमल जैन तरंगित,1,मीनू पामर,2,मुकेश वर्मा,1,मुक्तिबोध,1,मुर्दहिया,1,मृदुला गर्ग,1,मेराज फैज़ाबादी,1,मैक्सिम गोर्की,1,मैथिली शरण गुप्त,1,मोतीलाल जोतवाणी,1,मोहन कल्पना,1,मोहन वर्मा,1,यशवंत कोठारी,8,यशोधरा विरोदय,2,यात्रा संस्मरण,31,योग,3,योग दिवस,3,योगासन,2,योगेन्द्र प्रताप मौर्य,1,योगेश अग्रवाल,2,रक्षा बंधन,1,रच,1,रचना समय,72,रजनीश कांत,2,रत्ना राय,1,रमेश उपाध्याय,1,रमेश राज,26,रमेशराज,8,रवि रतलामी,2,रवींद्र नाथ ठाकुर,1,रवीन्द्र अग्निहोत्री,4,रवीन्द्र नाथ त्यागी,1,रवीन्द्र संगीत,1,रवीन्द्र सहाय वर्मा,1,रसोई,1,रांगेय राघव,1,राकेश अचल,3,राकेश दुबे,1,राकेश बिहारी,1,राकेश भ्रमर,5,राकेश मिश्र,2,राजकुमार कुम्भज,1,राजन कुमार,2,राजशेखर चौबे,6,राजीव रंजन उपाध्याय,11,राजेन्द्र कुमार,1,राजेन्द्र विजय,1,राजेश कुमार,1,राजेश गोसाईं,2,राजेश जोशी,1,राधा कृष्ण,1,राधाकृष्ण,1,राधेश्याम द्विवेदी,5,राम कृष्ण खुराना,6,राम शिव मूर्ति यादव,1,रामचंद्र शुक्ल,1,रामचन्द्र शुक्ल,1,रामचरन गुप्त,5,रामवृक्ष सिंह,10,रावण,1,राहुल कुमार,1,राहुल सिंह,1,रिंकी मिश्रा,1,रिचर्ड 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रचनाकार: काव्य जगत // प्राची - फरवरी 2018
काव्य जगत // प्राची - फरवरी 2018
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