संस्मरण लेखन पुरस्कार आयोजन - प्रविष्टि क्र. 61 : ‘मैं और महाकवि के श्वसुर’ // दिलीप कुमार

SHARE:

प्रविष्टि क्र. 61 ‘मैं और महाकवि के श्वसुर’ दिलीप कुमार ‘‘मैं घर से अमावस्या, परीवा और दिशाशूल देखकर शुभ घड़ी में दिल्ली के लिये निकला था अप...

image

प्रविष्टि क्र. 61

‘मैं और महाकवि के श्वसुर’

दिलीप कुमार

‘‘मैं घर से अमावस्या, परीवा और दिशाशूल देखकर शुभ घड़ी में दिल्ली के लिये निकला था अपनी पाण्डुलिपि प्रकाशक को देने। प्रकाशक ने पाण्डुलिपि ले ली और समझाते हुये कहा ‘‘कि हे साहित्यकार महोदय, अब आप राजधानी से प्रस्थान करें। वरना लेखन से आप अमर हों या न हों, अलबत्ता दिल्ली के प्रदूषण से मर कर आप जरूर अमर हो जायेंगे’’। बड़ी हसरत थी कि प्रकाशक हमें कम से कम थ्री स्टार होटल में ठहरायेगा। ओला कैब बुक कराके दिल्ली के दिलकश नजारों की सैर करायेगा। फिर शाम को हमारे सम्मान में पार्टी देगा जिसमें दिल्ली की कला, साहित्य एवं मीडिया जगत की नामी हस्तियां होगी। लोग मुझसे मेरी अगली पुस्तक और प्रायोजनों की बात पूछेंगे और मेरे लेखन को कालजयी घोषित कर देंगे। अगले दिन राजधानी के अखबार मेरे फोटो से रंगे होंगे और फेसबुक की सेल्फियां तो अनगिनत होंगी। मैं वो कतरनें समेट कर पत्नी को भेजूंगा और प्रकाशक मेरी पत्नी को अच्छी सी साड़ी भी उपहार में देगा। पत्नी ये खबर और उपहार पाकर फूली न समायेगी तब उसके चेहरे पर एक अफसोस नुमाया होगा कि साहित्यकार से शादी करके उसने कोई गल्ती नहीं की है।

मगर मेरे ये सारे मंसूबे ऐसे फना हो गये जैसे हिन्दी को संयुक्त राष्ट्र संघ की भाषा बनाने के ख्वाब। बाकी झटके तो मैं सह गया मगर साड़ी मैंने खरीद ली पत्नी के कोपभाजन से सुरक्षा हेतु। क्योंकि पत्नी के मना करने के बावजूद दफ्तर से अवैतनिक अवकाश लेकर किस तरह मैं दिल्ली आया था। यहाँ की बेइज्जती पत्नी जान पाती तो फिर अल्ला-अल्ला खैरसल्ला। सो मजबूरी में मैंने एक नकली कांजीवरम की साड़ी ले ली और उस पर असली ब्रांड की मोहर भी लगवा ली वैसे ही जैसे दिल्ली में आलोचक अपने ब्रांड की मोहर लगाकर नकली लेखकों को बिल्कुल असली टाइप का लेखक बना देते हैं। दिल्ली में पैकेज के हिसाब से साहित्यिक मुहरें उपलब्ध है महान, महाकवि, कालजयी, साहित्य भूषण, साहित्य गौरव आदि-इत्यादि। मन की टीस को दबाये हुये कलपता, सहमता मैं स्टेशन पहुँचा और अपनी साख बचाये रखने के लिये थर्ड ए0सी0 का टिकट ले लिया ताकि मेरे गृहनगर में अगर किसी ने मुझे स्लीपर या जनरल डिब्बे से उतरते देख लिया तो मेरे महान टाइप लेखक होने की किरकिरी हो जायेगी।

गाड़ी में सामान रखने के बाद चाय लेने उतरा तो किसी ने पूछा ‘‘अरे आप, यहाँ कैसे’’? खुद की प्रसिद्धि पर मैं थोड़ा गर्वित होता इससे पहले वो धीरे से बोले ‘‘तुम शुक्लाजी हो ना, वही जो घर-घर जाकर ट्यूशन पढ़ाते हो। मैं वंशीधर पांडे हूँ, महाकवि अनुज पांडे का श्वसुर। ये बात हैरानी का सबब थी कि वो डिफाल्टर, महाकवि कैसे बन गया जिसकी कविता ऊब का महाकाव्य एवं पैरोडी को मिसाल हुआ करती थी। तब तक अनुज पांडे स्वयं आ गये...... सर ये बाल नहीं, दाढ़ी-मूंछ, मुंह में घुसी, चश्मा मोटे फ्रेम का लम्बा कुर्ता एवं जींस पैंट यानि महाकवि का पूरा चोला। महाकवि के श्वसुर ने महाकवि से कहा ‘‘अब तुम जाओ, शुक्लाजी मिल गये हैं ये हमको सकुशल घर पहुँचा देंगे’’। महाकवि ने मुझे ऐसे देखा मानो वो मुझे कृतार्थ कर रहे हों। उन्होंने अपने श्वसुर को एक बीड़ी का बंडल दिया और मुझे तकाकर चलते बने। महाकवि के श्वसुर ने छूटते ही कहा ‘‘शुक्लाजी, जरा बीस का नोट दीजिये, चाय ले लूँ और मेरे पास बड़ी नोट है, छुट्टे नहीं हैं’’। महाकवि का भी ऐसा बर्ताव जगजाहिर था। वे लोगों से उनकी कवितायें देखने-पढ़ने को मांगते थे फिर उसे टीपकर अपने नाम से प्रकाशित करवा लिया करते थे। महाकवि के इस टीप रूपी अस्त्र से हमारे शहर के युवा कवि इतने आतंकित रहा करते थे कि वो महाकवि को अब ये भी नहीं बताते थे कि वे किस प्रकार के कविता लिख रहे हैं छंद वाली या छंद विहीन। मैंने महाकवि के श्वसुर को बीस का नोट थमाया और उनसे कहा कि ‘‘आप रूकिये, मैं आपके लिये और कुछ खाने-पीने का सामान लाता हूँ’’ ये सुनते ही उनकी बांछें खिल उठीं। मैं उन्हें चकमा देकर टे्रन से दूसरी तरफ निकल गया और तब तक छिपा रहा जब तक गाड़ी चल न दी।

जब गाड़ी ने गति पकड़ ली तब मैं तमाम डिब्बों से होता हुआ अपनी थर्ड ए0सी0 सीट पर पहुँचा तो महाकवि के श्वसुर वहाँ पहले से विराजमान थे। मैं चिंहुका, हैरान रह गया कि इन्हें मेरी सीट नम्बर कैसे मालूम। मगर वे छूटते ही बोले ‘‘कहाँ रह गये थे, मैं तो चेन खींचने वाला था कि शुक्ला कहाँ रह गये, कहीं छूट तो नहीं गये। खैर क्या लाये मेरे लिए’’? मैंने बमुश्किल सीट पर अपनी जगह बनाई और उनसे पूछा ‘‘आपको कैसे पता लगा मेरा सीट नंबर’’? वो खिलखिलाकर हंसते हुये बोले ‘‘शुक्ला दुनिया देखी है मैंने। स्लीपर क्लास में अकेला आदमी सामान छोड़कर चाय पीने नहीं जाता। इतना भी रामराज्य नहीं है भारतीय रेलों में। ऐसी ढिठाई ए0सी0 वाले ही करते हैं। सो पता लगाना आसान था। मैं ए0सी0 डिब्बे में बैठ गया टी0सी0 से पूछा कि टिकट मेरे छोटे भाई बी0डी0 शुक्ला के पास है। इसलिये उसने खोजकर तुम्हारी सीट बता दी। जानते हो टी0सी0 को सौ रूपये भी देने पडे़ इस बात के। वरना तुम्हारी सीट, सामान सब जाता। लाओ निकालो सौ रूपये क्योंकि मेरे पास बड़ा नोट है’’। डिब्बे के लोग मुझे ऐसे घूर रहे थे मानों मैं कितना लापरवाह और गैर जिम्मेदार आदमी हूँ। सबकी कहर भरी नजरों से बचने के लिये मुझे उनको सौ का नोट देना पड़ा। वो मेरी सीट पसरे बैठे रहे और मैं बाकी के लोगों के वक्रदृष्टि से बचने के लिये सिकुड़ा ही बैठा रहा। उनके पास एक झोला था जिसमें से उन्होंने महाकवि की हालिया रिलीज पुस्तक ‘‘देह ही कविता है’’ निकाल ली। टाइटिल दिलचस्प था मैंने महाकवि की पुस्तक का अवलोकन किया जो एक नयी विधा का सूत्रपात कर रही थी। महाकवि ने गजब गुगली डाली थी कि गूगल बाबा भी कन्फ्यूज हो जायें कि वे इस बेजोड़ कृति को दिखायें या पढ़ायें। मस्तराम सीरीज की कविता सामने थी जिसमें स्त्री के एक अंग का चित्र फिर उस पर दस पेज की कविता....... अंग, प्रत्यंग का चित्र फिर उस पर दे धड़ाधड़ कविता........ वाह रे महाकवि। उस पर तुर्रा ये था कि महाकवि चित्रकार भी थे उन्होंने हर अंग पर अलग-अलग चित्रकारी की थी और फिर उस पर उनकी प्रगतिशील अंतुकात कविता....... धन्य हो महाकवि।

अब कोई अश्लील साहित्य पर शर्मिन्दा न होगा, मस्तराम टाइप की रचनायें अब किसी को छिपकर पढ़ने की जरूरत न पडे़गी। अब महाकवि का महाकाव्य घरों की बैठक की शोभा बना करेगा, श्लील-अश्लील का कोई फर्क नहीं रहेगा। मैं ये सब सोच ही रहा था कि महाकवि के श्वसुर ने कहा ‘‘जरा बीस का एक नोट देना, पान-मसाला लेना है, मेरे पास बड़ा नोट है। मैं हतप्रभ रह गया, ढिठाई से कहा ‘‘मेरे पास भी बड़ा नोट है। फिर ए0सी0 डिब्बे में धूम्रपान की पाबन्दी होती है। फाइन लग जायेगा’’। वे और भी ढिठाई से बोले ‘‘उसकी चिंता मत करो। दो तो सही’’। सीट के अगल-बगल वे लोग मुझे घूर कर देखने लगे, मानों मैं कितना निष्ठुर प्राणी हूँ। हारकर मैंने उन्हें सौ का नोट दिया क्योंकि फुटकर नहीं था और उन्हें ताकीद भी की, कि बाकी के अस्सी रूपये लौटा देना। थोड़ी देर बाद वे खूब सारा पान मसाला, बीड़ी का बंडल और माचिस लेकर लौटे। मैंने उनसे कहा ‘‘बाकी के अस्सी रूपये दीजिये’’। वे ढिठाई से मुस्कराते हुये बोले ‘‘अरे बेचने वाले के पास भी छुट्टे नहीं थे सो पूरे सौ का ले लिया’’। मैं अवाक रह गया अब डिब्बे के लोग भी मुस्करा रहे थे। महाकवि के श्वसुर कुटिल मुस्कान से बोले ‘‘लिख लो शुक्ला जी, घर चल के दे दूँगा। मैंने भुनभुनाते हुये कहा ‘‘छुट्टे नहीं थे तो ये मस्तराम टाइप की दस-बीस किताबें ही ले आते। वैसे भी गाड़ियों में ऐसे घटिया, अश्लील साहित्य बहुत बिकते हैं। रास्ते का खर्चा निकल जाता और आपके दामाद का प्रचार-प्रसार भी हो जाता’’।

मैंने जानबूझकर उनको कड़वी बात कही थी ताकि वे नाराज हो जायें और मेरी सीट से चले जायें। मगर महाकवि के श्वसुर भी महाकवि की कविता की तरह अबूझ थे। उन्होंने मेरी अपेक्षा से उलट जवाब दिया ‘‘सही कहा, मेरा दामाद ऐसा ही लिखता है फिर भी उसकी किताबें क्यों नहीं बिकती’’? मैं उनकी बात का उत्तर देता तब तक गाड़ी में भोजन पूछने वाला आ गया। मुझे भूख तो बहुत लगी थी। मगर मैंने सोचा कि इनके रहते मुझे डबल प्लेट का आर्डर देना पडे़गा सो मैंने इंकार करने का मन बनाया। मैं ये कहता उसके पहले ही वे मेरी मनोदशा भांपकर तपाक से बोले ‘‘मुझे भूख नहीं है, शुक्लाजी आप अपना आर्डर दे दीजिये’’। मैंने चैन की सांस ली कि चलो अब न तो मुझे भूखा रहना पडे़गा न डबल भुगतान करना पडे़गा। जैसे ही खाना आया और मैंने उसको खोला वैसे ही महाकवि के श्वसुर आ धमके और बिना कुछ कहे खाना शुरू कर दिया। वे खाते-खाते ढिठाई से बोले ‘‘आज शुभ दिन है, भूखा नहीं रहना चाहिए पाप लगता है सो अन्न को प्रणाम करके उसका भोग लगा रहा हूँ। चिंता मत करो थोड़ा सा ही खाऊँगा। बाकी आप खा लेना’’। वे मुझे ऐसे कृतार्थ करते हुये बोले मानो भोजन उन्हीं का हो और मैं ही बिन बुलाया मेहमान हूँ। बिना धुले हाथ से भोजन और उनके नशापत्ती वाली जीभ-दाँत को देखकर मुझे घिन आने लगी और मैंने खाने से इंकार कर दिया। मैं खाने के पास से खिसक आया तो वे चौंकते हुये बोले ‘‘क्या हुआ, खाओ ना। देखो खाना कितना ज्यादा है। मुझे वैसे भी भूख नहीं है। बस थोड़ा सा ही खाऊँगा। मैंने अनमने भाव से कहा ‘‘नहीं, अब मैं नहीं खाऊँगा। मेरा मन नहीं है। आप खाइये और अगर आपका भी मन न हो और भूख न हो तो बाकी फेंक दीजियेगा’’। उन्होंने मुझे अपलक देखा और कहा ‘‘ठीक है, आपका मन नहीं है तो मत खाइये वर्ना तबियत खराब हो जायेगी। खाना फेंकना अन्न का अपमान है इसलिये तुम्हें पाप लगेगा। मैं भी ना खाता, मगर तुमको अन्न के पाप से बचाने के लिये मैं ये खाना खाये ले रहा हूँ’’ इतना कहकर वो खाने पर टूट पडे़ और मैदान साफ कर दिया।

मैं भूख से बिलबिलाते हुये अपनी मूर्खता पर कुढ़ता रहा। खाना खाने के बाद वो थोड़ा आडे-तिरछे हो लिये और मुझसे धीरे से बोले ‘‘खाने के बाद मैं थोड़ी देर लेट न लूँ तो मुझे गैस बनने लगती है। उनके द्वारा संभावित गंदगी के मद्देनजर मुझे खिसकना पड़ा। वो पसरकर लेट गये मैं दुबक गया। लेटे-लेटे उन्होंने बीड़ी सुलगा ली। सामने की सीट पर बैठी एक नव विवाहिता को बीड़ी के धुंए से घुटन हुई तो उसने प्रतिवाद किया। उस महिला के पति ने उनको समझाना चाहा तो पांडे जी उखड़ पडे़ ‘‘मेरी सीट है मैं जो चाहे करूँ। तुम्हारी पत्नी दो घंटे पहले सिंगार-पटार कर रही थी तो मैंने तुम्हें रोका था क्या’’? वो साढ़े छह फुट का नौजवान अंगड़ाई लेकर उठा तो मैं सहम गया कि ये युवक पहले पांडे को पीटेगा फिर मुझे। उसकी मार से पांडे का तो कुछ नहीं जायेगा। मगर मेरे जैसे मरियल आदमी की नौबत बिगड़ सकती है। मगर तब तक पांडे जी भी तेवर में आ चुके थे। बमुश्किल मैंने बीच-बचाव कराया। पांडे जी न माने वे लेटे-लेटे बीड़ी का कश लेते रहे। अंत में वो युवक उठकर कहीं चला गया। उसके जाते ही पांडे जी तड़कर बोले ‘‘देखा डर गया, तुमने बीच-बचाव करा लिया वरना उठाके पटक देता उसको’’ ये कहते हुये उन्होंने दूसरी बीड़ी सुलगा ली।

मैं कुछ समझ पाता उससे पहले वो युवक टी0सी0 के साथ हाजिर। टी0सी0 ने उन्हें उठाया, सीट और टिकट की दरयाफ्त की और फिर जी0आर0पी0 बुलाने की धमकी दी। मैं डर गया लेकिन टी0सी0 ने मुझसे उनका ए0सी0 का टिकट बनवाने और फाइन भरने को कहा। मैंने टी0सी0 से कहा ‘‘इनको ले जाइये, मैं फाइन क्यों दूँ। मेरे पास पैसे नहीं हैं। इन्हें चाहे जनरल डिब्बे में ले जायें या जेल मुझसे कोई मतलब नहीं’’। टी0सी0 उन्हें ले गया तो मैंने चैन की सांस ली। मुझे बाथरूम जाना था, वहाँ से लौटा तो पांडे जी सीट पर हाजिर थे। टी0सी0 भी वहीं था। टी0सी0 ने मुझे बुलाया, दीन-दुनिया, ऊँच-नीच समझाया और मेरी परेशानी समझकर जी0आर0पी0 सिपाही को सिर्फ सौ रूपया देकर मामले का रफा-दफा करने को कहा। मैं टी0सी0 की उदारता से अभिभूत था फिर पांडे जी के अश्रुपूर्ण नेत्र देखकर मुझे दया आ गयी सो मैंने जी0आर0पी0 सिपाही को सौ रूपये दे दिये। रास्ते में हमने और पांडे जी ने और कोई बात-चीत न ही।

स्टेशन पर हम उतरे तो घर जाने के लिये हमने टेम्पो ले लिया। मैंने उनका भी किराया अदा कर दिया था क्योंकि मेरा घर रास्ते में पहले पड़ता था। मुझे खुद पर कोफ्त हो रही थी कि खामखां मैंने महाकवि और उनके श्वसुर को गलत समझा। मैं अपने घर के सामने वाली सड़क पर उतरा और घर जाने को उद्धत हुआ तो पांडे जी बोले ‘‘अरे शुक्लाजी सुनिये, वो टी0सी0 मुझे जेल में डाल रहा था। आपके पास भी पैसे नहीं थे मैं जान गया था। इसलिये मैंने आपके बैग से वो कांजीवरम की साड़ी निकालकर टी0सी0 को दे दी थी। हिसाब में लिख लेना, वैसे भी वो साड़ी नकली कांजीवरम थी ना, कितने की थी’’? मैं अंगारों पर लोट गया। मैंने उनसे चीखते हुये कहा ‘‘पर आपके पास तो बड़ा नोट था ना’’।

तब तक टेम्पो वाले ने हार्न दिया वो दौड़कर उसमें बैठ गये और जाते-जाते बोले ‘‘हिसाब में लिख लेना’’। सब कुछ लुटा-गंवाकर मैं सोच रहा था कि महाकवि के श्वसुर मेरा हिसाब तो न जाने कब देंगे? मगर पत्नी को जो मैंने फोन पर बताया था उस कांजीवरम की साड़ी का हिसाब कौन देगा?।

COMMENTS

BLOGGER: 1
रचनाओं पर आपकी बेबाक समीक्षा व अमूल्य टिप्पणियों के लिए आपका हार्दिक धन्यवाद.

स्पैम टिप्पणियों (वायरस डाउनलोडर युक्त कड़ियों वाले) की रोकथाम हेतु टिप्पणियों का मॉडरेशन लागू है. अतः आपकी टिप्पणियों को यहाँ प्रकट होने में कुछ समय लग सकता है.

नाम

 आलेख ,1, कविता ,1, कहानी ,1, व्यंग्य ,1,14 सितम्बर,7,14 september,6,15 अगस्त,4,2 अक्टूबर अक्तूबर,1,अंजनी श्रीवास्तव,1,अंजली काजल,1,अंजली देशपांडे,1,अंबिकादत्त व्यास,1,अखिलेश कुमार भारती,1,अखिलेश सोनी,1,अग्रसेन,1,अजय अरूण,1,अजय वर्मा,1,अजित वडनेरकर,1,अजीत प्रियदर्शी,1,अजीत भारती,1,अनंत वडघणे,1,अनन्त आलोक,1,अनमोल विचार,1,अनामिका,3,अनामी शरण बबल,1,अनिमेष कुमार गुप्ता,1,अनिल कुमार पारा,1,अनिल जनविजय,1,अनुज कुमार आचार्य,5,अनुज कुमार आचार्य बैजनाथ,1,अनुज खरे,1,अनुपम मिश्र,1,अनूप शुक्ल,14,अपर्णा शर्मा,6,अभिमन्यु,1,अभिषेक ओझा,1,अभिषेक कुमार अम्बर,1,अभिषेक मिश्र,1,अमरपाल सिंह आयुष्कर,2,अमरलाल हिंगोराणी,1,अमित शर्मा,3,अमित शुक्ल,1,अमिय बिन्दु,1,अमृता प्रीतम,1,अरविन्द कुमार खेड़े,5,अरूण देव,1,अरूण माहेश्वरी,1,अर्चना चतुर्वेदी,1,अर्चना वर्मा,2,अर्जुन सिंह नेगी,1,अविनाश त्रिपाठी,1,अशोक गौतम,3,अशोक जैन पोरवाल,14,अशोक शुक्ल,1,अश्विनी कुमार आलोक,1,आई बी अरोड़ा,1,आकांक्षा यादव,1,आचार्य बलवन्त,1,आचार्य शिवपूजन सहाय,1,आजादी,3,आत्मकथा,1,आदित्य प्रचंडिया,1,आनंद टहलरामाणी,1,आनन्द किरण,3,आर. के. नारायण,1,आरकॉम,1,आरती,1,आरिफा एविस,5,आलेख,4288,आलोक कुमार,3,आलोक कुमार सातपुते,1,आवश्यक सूचना!,1,आशीष कुमार त्रिवेदी,5,आशीष श्रीवास्तव,1,आशुतोष,1,आशुतोष शुक्ल,1,इंदु संचेतना,1,इन्दिरा वासवाणी,1,इन्द्रमणि उपाध्याय,1,इन्द्रेश कुमार,1,इलाहाबाद,2,ई-बुक,374,ईबुक,231,ईश्वरचन्द्र,1,उपन्यास,269,उपासना,1,उपासना बेहार,5,उमाशंकर सिंह परमार,1,उमेश चन्द्र सिरसवारी,2,उमेशचन्द्र सिरसवारी,1,उषा छाबड़ा,1,उषा रानी,1,ऋतुराज सिंह कौल,1,ऋषभचरण जैन,1,एम. एम. चन्द्रा,17,एस. एम. चन्द्रा,2,कथासरित्सागर,1,कर्ण,1,कला जगत,113,कलावंती सिंह,1,कल्पना कुलश्रेष्ठ,11,कवि,2,कविता,3239,कहानी,2360,कहानी संग्रह,247,काजल कुमार,7,कान्हा,1,कामिनी कामायनी,5,कार्टून,7,काशीनाथ सिंह,2,किताबी कोना,7,किरन सिंह,1,किशोरी लाल गोस्वामी,1,कुंवर प्रेमिल,1,कुबेर,7,कुमार करन मस्ताना,1,कुसुमलता सिंह,1,कृश्न चन्दर,6,कृष्ण,3,कृष्ण कुमार यादव,1,कृष्ण खटवाणी,1,कृष्ण जन्माष्टमी,5,के. पी. सक्सेना,1,केदारनाथ सिंह,1,कैलाश मंडलोई,3,कैलाश वानखेड़े,1,कैशलेस,1,कैस जौनपुरी,3,क़ैस जौनपुरी,1,कौशल किशोर श्रीवास्तव,1,खिमन मूलाणी,1,गंगा प्रसाद श्रीवास्तव,1,गंगाप्रसाद शर्मा गुणशेखर,1,ग़ज़लें,550,गजानंद प्रसाद देवांगन,2,गजेन्द्र नामदेव,1,गणि राजेन्द्र विजय,1,गणेश चतुर्थी,1,गणेश सिंह,4,गांधी जयंती,1,गिरधारी राम,4,गीत,3,गीता दुबे,1,गीता सिंह,1,गुंजन शर्मा,1,गुडविन मसीह,2,गुनो सामताणी,1,गुरदयाल सिंह,1,गोरख प्रभाकर काकडे,1,गोवर्धन यादव,1,गोविन्द वल्लभ पंत,1,गोविन्द सेन,5,चंद्रकला त्रिपाठी,1,चंद्रलेखा,1,चतुष्पदी,1,चन्द्रकिशोर जायसवाल,1,चन्द्रकुमार जैन,6,चाँद पत्रिका,1,चिकित्सा शिविर,1,चुटकुला,71,ज़कीया ज़ुबैरी,1,जगदीप सिंह दाँगी,1,जयचन्द प्रजापति कक्कूजी,2,जयश्री जाजू,4,जयश्री राय,1,जया जादवानी,1,जवाहरलाल कौल,1,जसबीर चावला,1,जावेद अनीस,8,जीवंत प्रसारण,141,जीवनी,1,जीशान हैदर जैदी,1,जुगलबंदी,5,जुनैद अंसारी,1,जैक लंडन,1,ज्ञान चतुर्वेदी,2,ज्योति अग्रवाल,1,टेकचंद,1,ठाकुर प्रसाद सिंह,1,तकनीक,32,तक्षक,1,तनूजा चौधरी,1,तरुण भटनागर,1,तरूण कु सोनी तन्वीर,1,ताराशंकर बंद्योपाध्याय,1,तीर्थ चांदवाणी,1,तुलसीराम,1,तेजेन्द्र शर्मा,2,तेवर,1,तेवरी,8,त्रिलोचन,8,दामोदर दत्त दीक्षित,1,दिनेश बैस,6,दिलबाग सिंह विर्क,1,दिलीप भाटिया,1,दिविक रमेश,1,दीपक आचार्य,48,दुर्गाष्टमी,1,देवी नागरानी,20,देवेन्द्र कुमार मिश्रा,2,देवेन्द्र पाठक महरूम,1,दोहे,1,धर्मेन्द्र निर्मल,2,धर्मेन्द्र राजमंगल,1,नइमत गुलची,1,नजीर नज़ीर अकबराबादी,1,नन्दलाल भारती,2,नरेंद्र शुक्ल,2,नरेन्द्र कुमार आर्य,1,नरेन्द्र कोहली,2,नरेन्‍द्रकुमार मेहता,9,नलिनी मिश्र,1,नवदुर्गा,1,नवरात्रि,1,नागार्जुन,1,नाटक,152,नामवर सिंह,1,निबंध,3,नियम,1,निर्मल गुप्ता,2,नीतू सुदीप्ति ‘नित्या’,1,नीरज खरे,1,नीलम महेंद्र,1,नीला प्रसाद,1,पंकज प्रखर,4,पंकज मित्र,2,पंकज शुक्ला,1,पंकज सुबीर,3,परसाई,1,परसाईं,1,परिहास,4,पल्लव,1,पल्लवी त्रिवेदी,2,पवन तिवारी,2,पाक कला,23,पाठकीय,62,पालगुम्मि पद्मराजू,1,पुनर्वसु जोशी,9,पूजा उपाध्याय,2,पोपटी हीरानंदाणी,1,पौराणिक,1,प्रज्ञा,1,प्रताप सहगल,1,प्रतिभा,1,प्रतिभा सक्सेना,1,प्रदीप कुमार,1,प्रदीप कुमार दाश दीपक,1,प्रदीप कुमार साह,11,प्रदोष मिश्र,1,प्रभात दुबे,1,प्रभु चौधरी,2,प्रमिला भारती,1,प्रमोद कुमार तिवारी,1,प्रमोद भार्गव,2,प्रमोद यादव,14,प्रवीण कुमार झा,1,प्रांजल धर,1,प्राची,367,प्रियंवद,2,प्रियदर्शन,1,प्रेम कहानी,1,प्रेम दिवस,2,प्रेम मंगल,1,फिक्र तौंसवी,1,फ्लेनरी ऑक्नर,1,बंग महिला,1,बंसी खूबचंदाणी,1,बकर पुराण,1,बजरंग बिहारी तिवारी,1,बरसाने लाल चतुर्वेदी,1,बलबीर दत्त,1,बलराज सिंह सिद्धू,1,बलूची,1,बसंत त्रिपाठी,2,बातचीत,2,बाल उपन्यास,6,बाल कथा,356,बाल कलम,26,बाल दिवस,4,बालकथा,80,बालकृष्ण भट्ट,1,बालगीत,20,बृज मोहन,2,बृजेन्द्र श्रीवास्तव उत्कर्ष,1,बेढब बनारसी,1,बैचलर्स किचन,1,बॉब डिलेन,1,भरत त्रिवेदी,1,भागवत रावत,1,भारत कालरा,1,भारत भूषण अग्रवाल,1,भारत यायावर,2,भावना राय,1,भावना शुक्ल,5,भीष्म साहनी,1,भूतनाथ,1,भूपेन्द्र कुमार दवे,1,मंजरी शुक्ला,2,मंजीत ठाकुर,1,मंजूर एहतेशाम,1,मंतव्य,1,मथुरा प्रसाद नवीन,1,मदन सोनी,1,मधु त्रिवेदी,2,मधु संधु,1,मधुर नज्मी,1,मधुरा प्रसाद नवीन,1,मधुरिमा प्रसाद,1,मधुरेश,1,मनीष कुमार सिंह,4,मनोज कुमार,6,मनोज कुमार झा,5,मनोज कुमार पांडेय,1,मनोज कुमार श्रीवास्तव,2,मनोज दास,1,ममता सिंह,2,मयंक चतुर्वेदी,1,महापर्व छठ,1,महाभारत,2,महावीर प्रसाद द्विवेदी,1,महाशिवरात्रि,1,महेंद्र भटनागर,3,महेन्द्र देवांगन माटी,1,महेश कटारे,1,महेश कुमार गोंड हीवेट,2,महेश सिंह,2,महेश हीवेट,1,मानसून,1,मार्कण्डेय,1,मिलन चौरसिया मिलन,1,मिलान कुन्देरा,1,मिशेल फूको,8,मिश्रीमल जैन तरंगित,1,मीनू पामर,2,मुकेश वर्मा,1,मुक्तिबोध,1,मुर्दहिया,1,मृदुला गर्ग,1,मेराज फैज़ाबादी,1,मैक्सिम गोर्की,1,मैथिली शरण गुप्त,1,मोतीलाल जोतवाणी,1,मोहन कल्पना,1,मोहन वर्मा,1,यशवंत कोठारी,8,यशोधरा विरोदय,2,यात्रा संस्मरण,31,योग,3,योग दिवस,3,योगासन,2,योगेन्द्र प्रताप मौर्य,1,योगेश अग्रवाल,2,रक्षा बंधन,1,रच,1,रचना समय,72,रजनीश कांत,2,रत्ना राय,1,रमेश उपाध्याय,1,रमेश राज,26,रमेशराज,8,रवि रतलामी,2,रवींद्र नाथ ठाकुर,1,रवीन्द्र अग्निहोत्री,4,रवीन्द्र नाथ त्यागी,1,रवीन्द्र संगीत,1,रवीन्द्र सहाय वर्मा,1,रसोई,1,रांगेय राघव,1,राकेश अचल,3,राकेश दुबे,1,राकेश बिहारी,1,राकेश भ्रमर,5,राकेश मिश्र,2,राजकुमार कुम्भज,1,राजन कुमार,2,राजशेखर चौबे,6,राजीव रंजन उपाध्याय,11,राजेन्द्र कुमार,1,राजेन्द्र विजय,1,राजेश कुमार,1,राजेश गोसाईं,2,राजेश जोशी,1,राधा कृष्ण,1,राधाकृष्ण,1,राधेश्याम द्विवेदी,5,राम कृष्ण खुराना,6,राम शिव मूर्ति यादव,1,रामचंद्र शुक्ल,1,रामचन्द्र शुक्ल,1,रामचरन गुप्त,5,रामवृक्ष सिंह,10,रावण,1,राहुल कुमार,1,राहुल सिंह,1,रिंकी मिश्रा,1,रिचर्ड फाइनमेन,1,रिलायंस इन्फोकाम,1,रीटा शहाणी,1,रेंसमवेयर,1,रेणु कुमारी,1,रेवती रमण शर्मा,1,रोहित रुसिया,1,लक्ष्मी यादव,6,लक्ष्मीकांत मुकुल,2,लक्ष्मीकांत वैष्णव,1,लखमी खिलाणी,1,लघु कथा,288,लघुकथा,1340,लघुकथा लेखन पुरस्कार आयोजन,241,लतीफ घोंघी,1,ललित ग,1,ललित गर्ग,13,ललित निबंध,20,ललित साहू जख्मी,1,ललिता भाटिया,2,लाल पुष्प,1,लावण्या दीपक शाह,1,लीलाधर मंडलोई,1,लू सुन,1,लूट,1,लोक,1,लोककथा,378,लोकतंत्र का दर्द,1,लोकमित्र,1,लोकेन्द्र सिंह,3,विकास कुमार,1,विजय केसरी,1,विजय शिंदे,1,विज्ञान कथा,79,विद्यानंद कुमार,1,विनय भारत,1,विनीत कुमार,2,विनीता शुक्ला,3,विनोद कुमार दवे,4,विनोद तिवारी,1,विनोद मल्ल,1,विभा खरे,1,विमल चन्द्राकर,1,विमल सिंह,1,विरल पटेल,1,विविध,1,विविधा,1,विवेक प्रियदर्शी,1,विवेक रंजन श्रीवास्तव,5,विवेक सक्सेना,1,विवेकानंद,1,विवेकानन्द,1,विश्वंभर नाथ शर्मा कौशिक,2,विश्वनाथ प्रसाद तिवारी,1,विष्णु नागर,1,विष्णु प्रभाकर,1,वीणा भाटिया,15,वीरेन्द्र सरल,10,वेणीशंकर पटेल ब्रज,1,वेलेंटाइन,3,वेलेंटाइन डे,2,वैभव सिंह,1,व्यंग्य,2075,व्यंग्य के बहाने,2,व्यंग्य जुगलबंदी,17,व्यथित हृदय,2,शंकर पाटील,1,शगुन अग्रवाल,1,शबनम शर्मा,7,शब्द संधान,17,शम्भूनाथ,1,शरद कोकास,2,शशांक मिश्र भारती,8,शशिकांत सिंह,12,शहीद भगतसिंह,1,शामिख़ फ़राज़,1,शारदा नरेन्द्र मेहता,1,शालिनी तिवारी,8,शालिनी मुखरैया,6,शिक्षक दिवस,6,शिवकुमार कश्यप,1,शिवप्रसाद कमल,1,शिवरात्रि,1,शिवेन्‍द्र प्रताप त्रिपाठी,1,शीला नरेन्द्र त्रिवेदी,1,शुभम श्री,1,शुभ्रता मिश्रा,1,शेखर मलिक,1,शेषनाथ प्रसाद,1,शैलेन्द्र सरस्वती,3,शैलेश त्रिपाठी,2,शौचालय,1,श्याम गुप्त,3,श्याम सखा श्याम,1,श्याम सुशील,2,श्रीनाथ सिंह,6,श्रीमती तारा सिंह,2,श्रीमद्भगवद्गीता,1,श्रृंगी,1,श्वेता अरोड़ा,1,संजय दुबे,4,संजय सक्सेना,1,संजीव,1,संजीव ठाकुर,2,संद मदर टेरेसा,1,संदीप तोमर,1,संपादकीय,3,संस्मरण,730,संस्मरण लेखन पुरस्कार 2018,128,सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन,1,सतीश कुमार त्रिपाठी,2,सपना महेश,1,सपना मांगलिक,1,समीक्षा,847,सरिता पन्थी,1,सविता मिश्रा,1,साइबर अपराध,1,साइबर क्राइम,1,साक्षात्कार,21,सागर यादव जख्मी,1,सार्थक देवांगन,2,सालिम मियाँ,1,साहित्य समाचार,98,साहित्यम्,6,साहित्यिक गतिविधियाँ,216,साहित्यिक बगिया,1,सिंहासन बत्तीसी,1,सिद्धार्थ जगन्नाथ जोशी,1,सी.बी.श्रीवास्तव विदग्ध,1,सीताराम गुप्ता,1,सीताराम साहू,1,सीमा असीम सक्सेना,1,सीमा शाहजी,1,सुगन आहूजा,1,सुचिंता कुमारी,1,सुधा गुप्ता अमृता,1,सुधा गोयल नवीन,1,सुधेंदु पटेल,1,सुनीता काम्बोज,1,सुनील जाधव,1,सुभाष चंदर,1,सुभाष चन्द्र कुशवाहा,1,सुभाष नीरव,1,सुभाष लखोटिया,1,सुमन,1,सुमन गौड़,1,सुरभि बेहेरा,1,सुरेन्द्र चौधरी,1,सुरेन्द्र वर्मा,62,सुरेश चन्द्र,1,सुरेश चन्द्र दास,1,सुविचार,1,सुशांत सुप्रिय,4,सुशील कुमार शर्मा,24,सुशील यादव,6,सुशील शर्मा,16,सुषमा गुप्ता,20,सुषमा श्रीवास्तव,2,सूरज प्रकाश,1,सूर्य बाला,1,सूर्यकांत मिश्रा,14,सूर्यकुमार पांडेय,2,सेल्फी,1,सौमित्र,1,सौरभ मालवीय,4,स्नेहमयी चौधरी,1,स्वच्छ भारत,1,स्वतंत्रता दिवस,3,स्वराज सेनानी,1,हबीब तनवीर,1,हरि भटनागर,6,हरि हिमथाणी,1,हरिकांत जेठवाणी,1,हरिवंश राय बच्चन,1,हरिशंकर गजानंद प्रसाद देवांगन,4,हरिशंकर परसाई,23,हरीश कुमार,1,हरीश गोयल,1,हरीश नवल,1,हरीश भादानी,1,हरीश सम्यक,2,हरे प्रकाश उपाध्याय,1,हाइकु,5,हाइगा,1,हास-परिहास,38,हास्य,59,हास्य-व्यंग्य,78,हिंदी दिवस विशेष,9,हुस्न तबस्सुम 'निहाँ',1,biography,1,dohe,3,hindi divas,6,hindi sahitya,1,indian art,1,kavita,3,review,1,satire,1,shatak,3,tevari,3,undefined,1,
ltr
item
रचनाकार: संस्मरण लेखन पुरस्कार आयोजन - प्रविष्टि क्र. 61 : ‘मैं और महाकवि के श्वसुर’ // दिलीप कुमार
संस्मरण लेखन पुरस्कार आयोजन - प्रविष्टि क्र. 61 : ‘मैं और महाकवि के श्वसुर’ // दिलीप कुमार
https://lh3.googleusercontent.com/-h4VPbnBvTKk/WqzENf4bjqI/AAAAAAAA_jw/F8cYnTdp7ZMm7RUhpX5XIwBWoQ6EqiZHgCHMYCw/image_thumb%255B1%255D?imgmax=800
https://lh3.googleusercontent.com/-h4VPbnBvTKk/WqzENf4bjqI/AAAAAAAA_jw/F8cYnTdp7ZMm7RUhpX5XIwBWoQ6EqiZHgCHMYCw/s72-c/image_thumb%255B1%255D?imgmax=800
रचनाकार
https://www.rachanakar.org/2018/03/61.html
https://www.rachanakar.org/
https://www.rachanakar.org/
https://www.rachanakar.org/2018/03/61.html
true
15182217
UTF-8
Loaded All Posts Not found any posts VIEW ALL Readmore Reply Cancel reply Delete By Home PAGES POSTS View All RECOMMENDED FOR YOU LABEL ARCHIVE SEARCH ALL POSTS Not found any post match with your request Back Home Sunday Monday Tuesday Wednesday Thursday Friday Saturday Sun Mon Tue Wed Thu Fri Sat January February March April May June July August September October November December Jan Feb Mar Apr May Jun Jul Aug Sep Oct Nov Dec just now 1 minute ago $$1$$ minutes ago 1 hour ago $$1$$ hours ago Yesterday $$1$$ days ago $$1$$ weeks ago more than 5 weeks ago Followers Follow THIS PREMIUM CONTENT IS LOCKED STEP 1: Share to a social network STEP 2: Click the link on your social network Copy All Code Select All Code All codes were copied to your clipboard Can not copy the codes / texts, please press [CTRL]+[C] (or CMD+C with Mac) to copy Table of Content