संस्मरण लेखन पुरस्कार आयोजन 2018 - उपसंहार // धन्यवाद, आभार और पत्नीदेवी पर एक संस्मरण // रवि रतलामी

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रचनाकार.ऑर्ग संस्मरण लेखन पुरस्कार आयोजन 2018 की अंतिम तिथि 31 मार्च आते आते संस्मरणों की बाढ़ सी आ गई और कुल जमा 120 संस्मरण इस आयोजन के लि...

रचनाकार.ऑर्ग संस्मरण लेखन पुरस्कार आयोजन 2018 की अंतिम तिथि 31 मार्च आते आते संस्मरणों की बाढ़ सी आ गई और कुल जमा 120 संस्मरण इस आयोजन के लिए प्राप्त हो गए, जिसे एक तरह से ऐतिहासिक कहा जा सकता है. यह अपने तरह का एक नायाब किस्म का आयोजन था, जिसके मूल में रचनाकार.ऑर्ग की एक सहृदय सहयोगी रचनाकार रही हैं जिन्होंने (उन्होंने अपना नाम सार्वजनिक नहीं करने का आग्रह किया है,) ईनाम की पूरी राशि दान में दी है. रचनाकार.ऑर्ग उनका हार्दिक धन्यवाद और अभिनंदन करता है. अन्य प्रायोजकों प्रज्ञा प्रकाशन, एस के पाण्डेय, जेपी श्रीवास्तव की ओर से पुस्तकें पुरस्कार स्वरूप प्रदान की जा रही हैं, उनका भी हार्दिक धन्यवाद और अभिनंदन. तमाम संस्मरण लेखकों लेखिकाओं का भी हार्दिक धन्यवाद और अभिनंदन. आप सबके सक्रिय सहयोग से यह शानदार आयोजन सफल, बेहद सफल रहा है.

अब असली परीक्षा की घड़ी सुधी और जहीन निर्णायकों सर्वश्री अनुराग शर्मा,मनीष कुमार तथा पंकज सुबीर की है, जिन्हें इन तमाम प्रविष्टियों का अध्ययन कर अपने निर्णय देने हैं. जब तक उनका निर्णय प्राप्त होता है, हम सभी अपनी उंगलियाँ क्रॉस कर रखते हैं. यूँ सभी रचनाएँ उत्तम हैं, और बस, मामला फर्स्ट एमंग इक्वल जैसा ही होगा.

इन 120 संस्मरणों को संपादित, प्रकाशित करते समय दिखा कि जहाँ न पहुँचे ... की तर्ज पर लगभग हर क्षेत्र में संस्मरण लेखन की पहुँच हुई और प्रयोगवादी रचनाधर्मिता की इंतिहा हाइकु में संस्मरण तक जा पहुँची. कहानी, व्यंग्य भी नजर आया तो संस्मरणों में यात्राओं की बाढ़ सी लगी रही. बचपन-जवानी तो दिखा ही, प्रौढ़ता भी नजर आया.

बहुत से संस्मरणों में “पतिदेव” कई-कई मर्तबा बहुत से रूप-रंगों में नजर आए, मगर दुःख की बात यह रही कि “पत्नीदेवी” कहीं नजर नहीं आईं. तो भरपाई के लिए, यह ‘उपसंहार संस्मरण’ पत्नीदेवी के नाम.

संस्मरणों में, पुरुषों को तो उनकी पत्नियों (लेखिकाओं) के द्वारा पतिदेव के रूप में याद किया जाता रहा है, मगर स्त्रियों को उनके पतियों (लेखकों) के द्वारा पत्नीदेवी के रूप में कभी याद नहीं किया जाता, बल्कि अजीबोगरीब सर्वनाम, उपमाएँ दी जाती रही हैं – धर्मपत्नी, श्रीमती जी, अर्द्धांगिनी, उत्तमार्द्ध, मिसेस आदि आदि. अरे भई, जब आपकी बीवी आपको पतीदेव (हाँ, हाँ, जानबूझ कर ई लगाया है,) सार्वजनिक रूप से कह सकती हैं, कहती रही हैं तो आप उसे पत्नीदेवी क्यों नहीं कहते? यूँ, इस संस्मरण आयोजन के पहले तक मुझे भी यह भान नहीं था कि अभी कल तक तो मैं भी इस रेवड़ में शामिल रहा था!

यूँ, आप पत्नीदेवी के संस्मरण नहीं सुना सकते. मुश्किल होगी. पत्नीदेवियाँ तो चौबीसों घंटे, रूपाकार और निरूपाकार हर तरह से आपके चहुँओर ही रहती हैं, तो ऐसे में कौन सा और क्या कैसा संस्मरण? पत्निदेवियाँ आपके स्मरण से जब निकलती ही नहीं हैं, तो संस्मरण लिखने का सवाल ही कहाँ होता है? शायद इसीलिए, इन पूरे 120 संस्मरणों में पत्नीदेवी कहीं नजर नहीं आई.

पत्नीदेवियाँ अपने पतिदेवों के स्मरण से कभी बाहर निकलती नहीं हैं, मगर कभी कभी बेखयाली या कहें कि अत्यधिक खयाली में वाकया कुछ मज़ेदार किस्म का हो जाता है. बात तब की है, जब रतलाम, राजीवनगर में रहता था. घर से कोई एक किलोमीटर दूर सब्जीबाजार लगता था, और हम पति-पत्नी अक्सर स्कूटर से सब्जी लेने जाते थे. स्कूटर से इसलिए कि होंडा स्कूटर के सामने सब्जी का बड़ा, भारीभरकम थैला टांग कर लाने में आसानी होती है और सब्जीबाजार के बेहद भीड़ भरे तंग रास्ते में भी स्कूटर को जैसे-तैसे चलाया जा सकता है.

एक दिन उसी सब्जी बाजार में पत्नीदेवी हमेशा की तरह, बेहद अच्छे टमाटरों की ढेरी में से भी और भी अच्छे टमाटरों को छांटने का सफल असफल उपक्रम कर रही थीं, और मुझे सामने कुछ ताजे, डालपक (यह मालवी शब्द है, जब कोई फल डाली पर ही रहते हुए पक जाता है, और पकने के उपरांत ही तोड़ा जाता है, कृत्रिम रूप से पकाया नहीं जाता) पपीते दिखे तो मैं उन्हें लेने चला गया. तब स्मार्टफ़ोन क्या फ़ीचर मोबाइल फ़ोनों का भी जमाना नहीं आया था, नहीं तो जब तक टमाटर छंटते, स्टेटस अपडेट करता या सब्जी बाजार में चार छः एंगल से सेल्फी लेने लगता तो यह हादसा भी नहीं होता. हाँ, तो मैंने बढ़िया सा पपीता, जिसे कि ठेले पर पहुँचने से पहले ही मैंने मन में छांट लिया था, उसे तुलवाया, और पैसे दिए, पपीता सामने स्कूटर की टोकरी पर रखा, स्कूटर स्टार्ट की और अपनी खरीदारी समाप्त मानकर फुर्र से घर की ओर निकल लिया.

जब मैं घर पहुँचा तो घर पर ताला लगा मिला. मैं सोचने लगा कि घर में इस समय ताला क्यों लगा है? पत्नीदेवी इस असमय कहाँ ताला लगा कर चली गई हैं? आज तो कॉलेज भी नहीं है और मेरी जानकारी में मुहल्ले में कहीं कोई बीसी पार्टी भी नहीं है. फिर एक झटका लगा. याद आ गया. अरे! मैं तो पत्नीदेवी को सब्जीमार्केट में टमाटर छांटते छोड़कर चला आया था!

मैं उल्टे पैर वापस दौड़ा. पत्नीदेवी को शायद टमाटर ज्यादा लेने थे या टमाटर अच्छे से छंट नहीं पा रहे थे, तो वह उन्हीं में जूझती मिलीं. मैंने अपने आप को सांत्वना दी. बच गए! नहीं तो बीच बाजार में पत्नीदेवी को छोड़कर चले जाने के जुर्म की सजा भुगतने वाला मैं पहला व्यक्ति हो सकता था!

मगर मैं गलत था. पत्नीदेवी ने कनखियों से देखा और मुस्कुराई. वापस आ गए? घर तक पहुँच गए थे क्या? उसने टेढ़ी मुस्कान के साथ कहा. पत्नीदेवियों का दिल बड़ा होता है. वे छोटी छोटी बातों, मसलन जूतों की जुराबों को कहीं भी धर देने पर आपको भले ही माफ न करें और टोक-टोक कर आपका जीना मुहाल कर दें, बड़ी बड़ी बातों - जैसे कि यह, उन्हें बीच बाजार में छोड़ कर चल देना, चुटकियों में माफ कर देती हैं. मैंने राहत की सांस ली. नाहक सजा की सोच रहा था, यहाँ तो माफी पहले से ही मिल रही है. मैंने हें हें कर बात टालने की कोशिश की. पत्नीदेवी ने बताया कि वो भी टमाटरों में उलझी थीं, और मेरे उन्हें छोड़कर जाने का पता ही नहीं चलता यदि वह जानी-पहचानी सब्जी बेचने वाली उन्हें नहीं बताती कि वो देखो आपके मियाँ जी तो आपको छोड़कर जा रहे हैं!

और पत्नीदेवी ने उस सब्जीवाली को बड़े इत्मीनान से बताया था – जाने दो, अभी उल्टे पांव लौट आएंगे, क्योंकि घर की चाबी तो मेरे पास है!

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पाटील,1,शगुन अग्रवाल,1,शबनम शर्मा,7,शब्द संधान,17,शम्भूनाथ,1,शरद कोकास,2,शशांक मिश्र भारती,8,शशिकांत सिंह,12,शहीद भगतसिंह,1,शामिख़ फ़राज़,1,शारदा नरेन्द्र मेहता,1,शालिनी तिवारी,8,शालिनी मुखरैया,6,शिक्षक दिवस,6,शिवकुमार कश्यप,1,शिवप्रसाद कमल,1,शिवरात्रि,1,शिवेन्‍द्र प्रताप त्रिपाठी,1,शीला नरेन्द्र त्रिवेदी,1,शुभम श्री,1,शुभ्रता मिश्रा,1,शेखर मलिक,1,शेषनाथ प्रसाद,1,शैलेन्द्र सरस्वती,3,शैलेश त्रिपाठी,2,शौचालय,1,श्याम गुप्त,3,श्याम सखा श्याम,1,श्याम सुशील,2,श्रीनाथ सिंह,6,श्रीमती तारा सिंह,2,श्रीमद्भगवद्गीता,1,श्रृंगी,1,श्वेता अरोड़ा,1,संजय दुबे,4,संजय सक्सेना,1,संजीव,1,संजीव ठाकुर,2,संद मदर टेरेसा,1,संदीप तोमर,1,संपादकीय,3,संस्मरण,730,संस्मरण लेखन पुरस्कार 2018,128,सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन,1,सतीश कुमार त्रिपाठी,2,सपना महेश,1,सपना मांगलिक,1,समीक्षा,847,सरिता पन्थी,1,सविता मिश्रा,1,साइबर अपराध,1,साइबर क्राइम,1,साक्षात्कार,21,सागर यादव जख्मी,1,सार्थक देवांगन,2,सालिम मियाँ,1,साहित्य समाचार,98,साहित्यम्,6,साहित्यिक गतिविधियाँ,216,साहित्यिक बगिया,1,सिंहासन बत्तीसी,1,सिद्धार्थ जगन्नाथ 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रचनाकार: संस्मरण लेखन पुरस्कार आयोजन 2018 - उपसंहार // धन्यवाद, आभार और पत्नीदेवी पर एक संस्मरण // रवि रतलामी
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