व्यंग्य // वचने किम् दरिद्रता? // डॉ. रामवृक्ष सिंह

SHARE:

अपने देश की एक बड़ी खासियत यह भी है कि यहाँ यदि कोई बेकार से बेकार बात भी संस्कृत में कह दी जाए तो प्रायः सभी लोग यह मान लेते हैं कि यह वेद-...

अपने देश की एक बड़ी खासियत यह भी है कि यहाँ यदि कोई बेकार से बेकार बात भी संस्कृत में कह दी जाए तो प्रायः सभी लोग यह मान लेते हैं कि यह वेद-वाक्य है। वेद-वाक्य यानी किसी महान ऋषि अथवा देवता की वाणी, आर्ष वाक्य, जिस पर शंका करने अथवा प्रश्न उठाने का आपको कोई अधिकार नहीं। ऐसा ही एक वेद-वाक्य है- वचने किम् दरिद्रता? इसका हिन्दी अनुवाद होगा- बोलने में क्या जाता है?

सोलहों आने सही बात है। अरे, भाई! बोलने में आपका क्या जाता है? आप कोई रघु-कुल वाले तो हैं नहीं कि प्राण जाहिं पर वचन न जाई। कोई आपसे कुछ काम करने को कहता है, अथवा आपके मन में थोड़ी देर को झक्ख सवार होती है कि अमुक-अमुक काम होना चाहिए, अथवा अमुक-अमुक को यह प्यारी, मधुर वाणी बोलकर बुद्धू बनाया जाए, तो आप बोल दीजिए। जो आपको पसंद आए वह बोलिए, अथवा जो आपका श्रोता सुनना चाहे- वह बोलिए। यानी बस बोल दीजिए, बोलने में क्या जाता है? अलबत्ता कुछ आता ही है। आप किसी की मनभावन बात बोलिए, वह खुश हो जाएगा। यदि उसके दिमाग का दिवाला पिटा होगा तो यह भी नहीं सोचेगा कि आपने उसका मन रखने के लिए बस यूँ ही उसकी मन-पसंद बात बोल दी है, और वह आपकी चाशनी-पगी बातों को ही सच मानकर आपका मुरीद हो जाएगा। अपने देश में अधिकतर नेताओं को यह तत्व-बोध पैदाइशी यानी जन्मजात होता है। वे वही बोलते हैं जो श्रोता को पसंद हो। मधुर-मधुर बोलकर वे जनता के हृदय-हार बन जाते हैं। जनता उन्हें चुनाव में जिता देती है। नेता अपना उल्लू सीधा करने लगते हैं और जनता फिर से किसी मधुर-भाषी, प्रियंवद नेता की मधुरं प्रियं वाणी की बाट जोहने लगती है। अपने यहाँ कहावत है- मधुर वचन है औषधी, कटुक वचन है तीर। नेता लोग इस दिव्य ज्ञान से शुरू से ही अभिज्ञ रहते हैं। उन्हें झूठा कहने वाला महा अज्ञानी। उसे अपनी महान परंपरा का तनिक भी ज्ञान नहीं।

यही बात हमारे दफ्तरों के पूरे परिवेश पर लागू होती है। हमारे दफ्तरों की तुलना किसी पारितंत्र की आहार-शृंखला से की जा सकती है। सबसे नीचे सबसे छोटे पदक्रम का कर्मचारी, उसके ऊपर लिपिकीय संवर्ग वाले छोटे-बड़े कर्मचारी, उनके ऊपर छोटे-बड़े अधिकारी, उनके ऊपर ...। हर नीचे वाला अपने से हर ऊपर वाले का उपजीव्य। ऊपर वाला नीचे वाले का परजीवी। नीचे वाले को यह अधिकार नहीं कि वह किसी भी बात में, यानी कच्ची-पक्की, अच्छी-बुरी, घटिया-बढ़िया, किसी भी तरह की बात में ऊपर वाले की हाँ में हाँ न मिलाए। जैसे शोले फिल्म में गब्बर सिंह तब तक बसंती के प्रेमी बीरू पर गोली नहीं चलवाता, जब तक बसंती नाचती रहती है, वैसे ही हमारे दफ्तरों में होता है। बॉस रूपी गब्बर सिंह तब तक अपने अधीनस्थ बीरू की जान बख्शता रहता है जब तक वह गब्बर के इशारों पर नाचता रहता है। इशारों पर नाचना बंद किया तो समझो गोली दगी। सरकारी तंत्र का यही हाल है। और प्राइवेट का? उसका तो इससे भी बुरा हाल है। तो ऐसे में कौन नासमझ होगा जो वचन-दारिद्र्य दिखाए! बॉस दिन के बारह बजे कहे कि रात है तो अधीनस्थ चट से हाँ में हाँ मिलाए कि हाँ सर, कितनी अँधेरी रात है!

बॉस कोई काम करने को कहे, तो अधीनस्थ का धर्म क्या है? यस सर, यस मैडम, बिलकुल सर, बिलकुल मैडम। हो जाएगा सर, अभी करता हूँ मैडम। इसके अलावा कुछ भी कहना वर्जित है। कुछ और कहा तो गये। बॉस की नज़रों से गिरकर सीधे बीस फुट गहरे और शहर के सबसे गंदे सीवर में चले जाएँगे, फिर बाहर निकलने का कोई रास्ता नहीं। वहीं सड़िए रिटायर होने तक। और यस-यस, हाँ-हाँ कहते रहे तो? हो जाएगी- बल्ले-बल्ले। यह सोचकर तिल-तिल घुलने की ज़रूरत नहीं कि बॉस के सामने यस-यस करते रहे और बाद में उनका बताया काम नहीं कर पाए तो क्या होगा! अरे, होगा क्या! कद्दू होगा! बॉस को भी पता है कि अमुक काम हो सकता है, अमुक नहीं। वह तो बस नो यानी नहीं शब्द सुनना नहीं चाहते। बॉस हमेशा सकारात्मक सोच वाले होते हैं। काम असंभव हो तो भी उन्हें ना सुनना नकारात्मक लगता है। और बॉस की ईगो का क्या? आपने नहीं कहा नहीं कि बॉस की ईगो पर गोला दगा नहीं। बॉस का दिया कोई काम न करो, पर उसकी ईगो का सम्मान करते चलो। बॉस है तो ईगो है, उनकी ईगो है तो आप का करियर है। कभी सोचता हूँ कि कुत्ते जैसा गंधैला जीव मनुष्य जैसे सुरुचि-संपन्न जीव का असीम, अगाध, अनन्य प्यार कैसे पा लेता है! दर असल कुत्ते की खुद की कोई ईगो नहीं होती। वह अपने मालिक के आगे दुम हिलाता है, कूँ-कूँ करता है, उसकी घुड़की और प्यार सब कुछ को सम भाव से ग्रहण करता है। इसलिए वह मालिक के प्यार का पात्र बन जाता है। भगवान और भक्त के मध्य भी यही संबंध होता है। इसीलिए कबीर ने कहा- हौं तो कूका राम का, मुतिया मोरा नांउँ। गले राम की जेवड़ी, जित खींचे तित जांउँ। बॉस और अधीनस्थ के मध्य ऐसा संबंध स्थापित हो जाए, इसके लिए जरूरी है बॉस की हाँ में हाँ मिलाना, यानी वचने किम् दरिद्रता।

यह शब्द-स्फीति ही हमारे भारतीय समाज का वर्तमान युग-सत्य है। जिसे देखो- भाषण झाड़ रहा है। तरह-तरह के आदर्श बघार रहा है। बातों की खेती लहलहा रही है। बाबा लोग बड़े-बड़े तम्बू- पण्डाल लगाकर हजारों श्रद्धालुओं के सामने अपने वचनामृत की नदियाँ बहा रहे हैं। अपने देश में सबसे उपजाऊ, सबसे कमाऊ कारोबार यही रह गया है। मधुर, मृदु शब्दों की झड़ी लगाओ, लोगों को बुद्धू बनाओ और उनका सर्वस्व हर लो। अपने श्रद्धालुओं की धन-सम्पत्ति ले लो, उनकी युवा सुदर्शना पत्नी, बेटी, बहू की आबरू ले लो और बदले में उन्हें अच्छी-अच्छी बातें दे दो। बातें ले जाकर वे अपने घर में रक्खें। आपको तो उनका सब कुछ चाहिए और उन्हें आपकी मधुर-मधुर बातें। उनका काम आपकी बातों से चल जाएगा। इस गरीब लेखक की बात पर यकीन न हो तो भारत की जेलों में बंद बाबाओं और नेताओं का स्मरण करें।

मानव सभ्यता की सबसे अमूल्य थाती ये बातें ही हैं, जो हमारी भांति-भांति की किताबों में भरी पड़ी हैं। दिल्ली और उसके आस-पास, खास तौर से ब्रज-प्रभावित इलाकों की स्थानीय बोल-चाल में किस्से-कहानी को भी ‘बात’ कहा जाता है। इस लिहाज से बात का अर्थ है किस्सा-कहानी, कपोल-कल्पना। जब कोई नेता या उच्चाधिकारी कोई मन-भावन, लोक-लुभावन वादा करता है, नारा उछालता है तो उसका आशय इस किस्से-कहानी वाली बात से अधिक कुछ नहीं होता। यह पक्का जानिए। ये लोग कहते हैं कि देश के करोड़ों युवाओं को नौकरी दे देंगे। कोई इनसे पूछे कि भाईजी, कोई ठोस आंकड़ा है आपके पास, या यों ही बतोले मार रहे हो? ठोस आंकड़ा कोई न होगा। होगा भी तो उसमें सच्चाई न होगी, क्योंकि सच्चाई और आंकड़े में फर्क होता है। विश्वास न हो तो सांख्यिकी विशेषज्ञों से पूछ लें और उच्चाधिकारियों से उसकी तसदीक कर लें। आंकड़ा यानी आंकड़ा, सच्चाई यानी सच्चाई- दोनों परस्पर पर्याय नहीं होते।

प्रायः देखने में आता है कि मरीज़ धीरे-धीरे, टुकड़ा-टुकड़ा मर रहा होता है तो भी उससे मिलने गये लोग यह कहने की हिम्मत नहीं जुटा पाते कि आपका मर्ज़ तो दिन ब दिन बिगड़ता चला जा रहा है। वे झूठ बोलते हैं- पहले से तो आप काफी ठीक लग रहे हैं। हौसला रखिए, जल्द ही आप अस्पताल से छुट्टी पाकर घर आ जाएँगे। इसी को ग़ालिब ने कहा- दिल के बहलाने को ग़ालिब खयाल अच्छा है। बाबा तुलसीदास ने ताकीद की- मंत्री, गुरु अरु वैद्य जो प्रिय बोलहिं भय आस, देस, सिस्य अरु देह को होय बेगिही नास। पर आज का मंत्री, आज का गुरु और आज का वैद्य- कोई भी सच बोलने की हिम्मत नहीं जुटा पाता। उसके पास इतना नैतिक बल नहीं, इतना साहस नहीं और उसके मन में इतनी समाई, सबूरी व संतोष नहीं कि वह सच बोल सके। यदि वह सच बोल दे तो उसका व्यावसायिक हित प्रभावित होगा। मंत्री यानी जिसे मंत्रणा देने का दायित्व प्राप्त है, यानी किसी बड़े अधिकारी का छोटा मातहत सच बोले तो बॉस की झिड़की सुने, बॉस की नाराज़गी मोल ले। गुरु यानी शिक्षक सच बोले तो उसकी संस्था या ट्यूटोरियल के विद्यार्थी घट जाएँ, बिल्डिंग की बनवाई न निकले, उसके खर्चे न पूरे हों; वैद्य यानी चिकित्सक सच बोले तो मरीज़ आगे इलाज न कराए, मृतप्राय मरीज़ को वेंटिलेटर पर चढ़ाकर वसूला जा रहा आईसीयू का किराया न निकले, बैंक से लिए गए ऋण की किस्त न चुक पाए। हर पेशे की यही सच्चाई है। इसीलिए संस्कृत में एक और वेद-वाक्य परोसा गया- न ब्रूयात् सत्यं अप्रियम्। अप्रिय सच न बोलो।

सच सुनने के लिए हिम्मत चाहिए और वह हिम्मत हमारे भीतर है नहीं। इसलिए हम झूठ दर झूठ बोलते जाते हैं। तर्कवादियों के तईं दुनिया की बहुत-सी खूबसूरत अवधारणाएं झूठ हैं। इन अवधारणाओं में स्वर्ग और नरक, पुनर्जन्म, पाप-पुण्य और भगवान तक शामिल हैं। महात्मा बुद्ध तक ने इस बात को स्वीकार किया। इसीलिए हमारे अपने काल के महान कवि श्री हीरानन्द सच्चिदानन्द वात्स्यायन ‘अज्ञेय’ ने अपनी ‘सागर-मुद्रा’ शीर्षक कविता में कहा- ‘जितना तुम्हारा सच है/ उतना ही कहो।’

पर हम तो यह नहीं मानते। हम तो फिर भी कहेंगे- वचने किम् दरिद्रता! बोलने में क्या जाता है!

--0--

COMMENTS

BLOGGER
नाम

 आलेख ,1, कविता ,1, कहानी ,1, व्यंग्य ,1,14 सितम्बर,7,14 september,6,15 अगस्त,4,2 अक्टूबर अक्तूबर,1,अंजनी श्रीवास्तव,1,अंजली काजल,1,अंजली देशपांडे,1,अंबिकादत्त व्यास,1,अखिलेश कुमार भारती,1,अखिलेश सोनी,1,अग्रसेन,1,अजय अरूण,1,अजय वर्मा,1,अजित वडनेरकर,1,अजीत प्रियदर्शी,1,अजीत भारती,1,अनंत वडघणे,1,अनन्त आलोक,1,अनमोल विचार,1,अनामिका,3,अनामी शरण बबल,1,अनिमेष कुमार गुप्ता,1,अनिल कुमार पारा,1,अनिल जनविजय,1,अनुज कुमार आचार्य,5,अनुज कुमार आचार्य बैजनाथ,1,अनुज खरे,1,अनुपम मिश्र,1,अनूप शुक्ल,14,अपर्णा शर्मा,6,अभिमन्यु,1,अभिषेक ओझा,1,अभिषेक कुमार अम्बर,1,अभिषेक मिश्र,1,अमरपाल सिंह आयुष्कर,2,अमरलाल हिंगोराणी,1,अमित शर्मा,3,अमित शुक्ल,1,अमिय बिन्दु,1,अमृता प्रीतम,1,अरविन्द कुमार खेड़े,5,अरूण देव,1,अरूण माहेश्वरी,1,अर्चना चतुर्वेदी,1,अर्चना वर्मा,2,अर्जुन सिंह नेगी,1,अविनाश त्रिपाठी,1,अशोक गौतम,3,अशोक जैन पोरवाल,14,अशोक शुक्ल,1,अश्विनी कुमार आलोक,1,आई बी अरोड़ा,1,आकांक्षा यादव,1,आचार्य बलवन्त,1,आचार्य शिवपूजन सहाय,1,आजादी,3,आत्मकथा,1,आदित्य प्रचंडिया,1,आनंद टहलरामाणी,1,आनन्द किरण,3,आर. के. नारायण,1,आरकॉम,1,आरती,1,आरिफा एविस,5,आलेख,4288,आलोक कुमार,3,आलोक कुमार सातपुते,1,आवश्यक सूचना!,1,आशीष कुमार त्रिवेदी,5,आशीष श्रीवास्तव,1,आशुतोष,1,आशुतोष शुक्ल,1,इंदु संचेतना,1,इन्दिरा वासवाणी,1,इन्द्रमणि उपाध्याय,1,इन्द्रेश कुमार,1,इलाहाबाद,2,ई-बुक,374,ईबुक,231,ईश्वरचन्द्र,1,उपन्यास,269,उपासना,1,उपासना बेहार,5,उमाशंकर सिंह परमार,1,उमेश चन्द्र सिरसवारी,2,उमेशचन्द्र सिरसवारी,1,उषा छाबड़ा,1,उषा रानी,1,ऋतुराज सिंह कौल,1,ऋषभचरण जैन,1,एम. एम. चन्द्रा,17,एस. एम. चन्द्रा,2,कथासरित्सागर,1,कर्ण,1,कला जगत,113,कलावंती सिंह,1,कल्पना कुलश्रेष्ठ,11,कवि,2,कविता,3239,कहानी,2360,कहानी संग्रह,247,काजल कुमार,7,कान्हा,1,कामिनी कामायनी,5,कार्टून,7,काशीनाथ सिंह,2,किताबी कोना,7,किरन सिंह,1,किशोरी लाल गोस्वामी,1,कुंवर प्रेमिल,1,कुबेर,7,कुमार करन मस्ताना,1,कुसुमलता सिंह,1,कृश्न चन्दर,6,कृष्ण,3,कृष्ण कुमार यादव,1,कृष्ण खटवाणी,1,कृष्ण जन्माष्टमी,5,के. पी. सक्सेना,1,केदारनाथ सिंह,1,कैलाश मंडलोई,3,कैलाश वानखेड़े,1,कैशलेस,1,कैस जौनपुरी,3,क़ैस जौनपुरी,1,कौशल किशोर श्रीवास्तव,1,खिमन मूलाणी,1,गंगा प्रसाद श्रीवास्तव,1,गंगाप्रसाद शर्मा गुणशेखर,1,ग़ज़लें,550,गजानंद प्रसाद देवांगन,2,गजेन्द्र नामदेव,1,गणि राजेन्द्र विजय,1,गणेश चतुर्थी,1,गणेश सिंह,4,गांधी जयंती,1,गिरधारी राम,4,गीत,3,गीता दुबे,1,गीता सिंह,1,गुंजन शर्मा,1,गुडविन मसीह,2,गुनो सामताणी,1,गुरदयाल सिंह,1,गोरख प्रभाकर काकडे,1,गोवर्धन यादव,1,गोविन्द वल्लभ पंत,1,गोविन्द सेन,5,चंद्रकला त्रिपाठी,1,चंद्रलेखा,1,चतुष्पदी,1,चन्द्रकिशोर जायसवाल,1,चन्द्रकुमार जैन,6,चाँद पत्रिका,1,चिकित्सा शिविर,1,चुटकुला,71,ज़कीया ज़ुबैरी,1,जगदीप सिंह दाँगी,1,जयचन्द प्रजापति कक्कूजी,2,जयश्री जाजू,4,जयश्री राय,1,जया जादवानी,1,जवाहरलाल कौल,1,जसबीर चावला,1,जावेद अनीस,8,जीवंत प्रसारण,141,जीवनी,1,जीशान हैदर जैदी,1,जुगलबंदी,5,जुनैद अंसारी,1,जैक लंडन,1,ज्ञान चतुर्वेदी,2,ज्योति अग्रवाल,1,टेकचंद,1,ठाकुर प्रसाद सिंह,1,तकनीक,32,तक्षक,1,तनूजा चौधरी,1,तरुण भटनागर,1,तरूण कु सोनी तन्वीर,1,ताराशंकर बंद्योपाध्याय,1,तीर्थ चांदवाणी,1,तुलसीराम,1,तेजेन्द्र शर्मा,2,तेवर,1,तेवरी,8,त्रिलोचन,8,दामोदर दत्त दीक्षित,1,दिनेश बैस,6,दिलबाग सिंह विर्क,1,दिलीप भाटिया,1,दिविक रमेश,1,दीपक आचार्य,48,दुर्गाष्टमी,1,देवी नागरानी,20,देवेन्द्र कुमार मिश्रा,2,देवेन्द्र पाठक महरूम,1,दोहे,1,धर्मेन्द्र निर्मल,2,धर्मेन्द्र राजमंगल,1,नइमत गुलची,1,नजीर नज़ीर अकबराबादी,1,नन्दलाल भारती,2,नरेंद्र शुक्ल,2,नरेन्द्र कुमार आर्य,1,नरेन्द्र कोहली,2,नरेन्‍द्रकुमार मेहता,9,नलिनी मिश्र,1,नवदुर्गा,1,नवरात्रि,1,नागार्जुन,1,नाटक,152,नामवर सिंह,1,निबंध,3,नियम,1,निर्मल गुप्ता,2,नीतू सुदीप्ति ‘नित्या’,1,नीरज खरे,1,नीलम महेंद्र,1,नीला प्रसाद,1,पंकज प्रखर,4,पंकज मित्र,2,पंकज शुक्ला,1,पंकज सुबीर,3,परसाई,1,परसाईं,1,परिहास,4,पल्लव,1,पल्लवी त्रिवेदी,2,पवन तिवारी,2,पाक कला,23,पाठकीय,62,पालगुम्मि पद्मराजू,1,पुनर्वसु जोशी,9,पूजा उपाध्याय,2,पोपटी हीरानंदाणी,1,पौराणिक,1,प्रज्ञा,1,प्रताप सहगल,1,प्रतिभा,1,प्रतिभा सक्सेना,1,प्रदीप कुमार,1,प्रदीप कुमार दाश दीपक,1,प्रदीप कुमार साह,11,प्रदोष मिश्र,1,प्रभात दुबे,1,प्रभु चौधरी,2,प्रमिला भारती,1,प्रमोद कुमार तिवारी,1,प्रमोद भार्गव,2,प्रमोद यादव,14,प्रवीण कुमार झा,1,प्रांजल धर,1,प्राची,367,प्रियंवद,2,प्रियदर्शन,1,प्रेम कहानी,1,प्रेम दिवस,2,प्रेम मंगल,1,फिक्र तौंसवी,1,फ्लेनरी ऑक्नर,1,बंग महिला,1,बंसी खूबचंदाणी,1,बकर पुराण,1,बजरंग बिहारी तिवारी,1,बरसाने लाल चतुर्वेदी,1,बलबीर दत्त,1,बलराज सिंह सिद्धू,1,बलूची,1,बसंत त्रिपाठी,2,बातचीत,2,बाल उपन्यास,6,बाल कथा,356,बाल कलम,26,बाल दिवस,4,बालकथा,80,बालकृष्ण भट्ट,1,बालगीत,20,बृज मोहन,2,बृजेन्द्र श्रीवास्तव उत्कर्ष,1,बेढब बनारसी,1,बैचलर्स किचन,1,बॉब डिलेन,1,भरत त्रिवेदी,1,भागवत रावत,1,भारत कालरा,1,भारत भूषण अग्रवाल,1,भारत यायावर,2,भावना राय,1,भावना शुक्ल,5,भीष्म साहनी,1,भूतनाथ,1,भूपेन्द्र कुमार दवे,1,मंजरी शुक्ला,2,मंजीत ठाकुर,1,मंजूर एहतेशाम,1,मंतव्य,1,मथुरा प्रसाद नवीन,1,मदन सोनी,1,मधु त्रिवेदी,2,मधु संधु,1,मधुर नज्मी,1,मधुरा प्रसाद नवीन,1,मधुरिमा प्रसाद,1,मधुरेश,1,मनीष कुमार सिंह,4,मनोज कुमार,6,मनोज कुमार झा,5,मनोज कुमार पांडेय,1,मनोज कुमार श्रीवास्तव,2,मनोज दास,1,ममता सिंह,2,मयंक चतुर्वेदी,1,महापर्व छठ,1,महाभारत,2,महावीर प्रसाद द्विवेदी,1,महाशिवरात्रि,1,महेंद्र भटनागर,3,महेन्द्र देवांगन माटी,1,महेश कटारे,1,महेश कुमार गोंड हीवेट,2,महेश सिंह,2,महेश हीवेट,1,मानसून,1,मार्कण्डेय,1,मिलन चौरसिया मिलन,1,मिलान कुन्देरा,1,मिशेल फूको,8,मिश्रीमल जैन तरंगित,1,मीनू पामर,2,मुकेश वर्मा,1,मुक्तिबोध,1,मुर्दहिया,1,मृदुला गर्ग,1,मेराज फैज़ाबादी,1,मैक्सिम गोर्की,1,मैथिली शरण गुप्त,1,मोतीलाल जोतवाणी,1,मोहन कल्पना,1,मोहन वर्मा,1,यशवंत कोठारी,8,यशोधरा विरोदय,2,यात्रा संस्मरण,31,योग,3,योग दिवस,3,योगासन,2,योगेन्द्र प्रताप मौर्य,1,योगेश अग्रवाल,2,रक्षा बंधन,1,रच,1,रचना समय,72,रजनीश कांत,2,रत्ना राय,1,रमेश उपाध्याय,1,रमेश राज,26,रमेशराज,8,रवि रतलामी,2,रवींद्र नाथ ठाकुर,1,रवीन्द्र अग्निहोत्री,4,रवीन्द्र नाथ त्यागी,1,रवीन्द्र संगीत,1,रवीन्द्र सहाय वर्मा,1,रसोई,1,रांगेय राघव,1,राकेश अचल,3,राकेश दुबे,1,राकेश बिहारी,1,राकेश भ्रमर,5,राकेश मिश्र,2,राजकुमार कुम्भज,1,राजन कुमार,2,राजशेखर चौबे,6,राजीव रंजन उपाध्याय,11,राजेन्द्र कुमार,1,राजेन्द्र विजय,1,राजेश कुमार,1,राजेश गोसाईं,2,राजेश जोशी,1,राधा कृष्ण,1,राधाकृष्ण,1,राधेश्याम द्विवेदी,5,राम कृष्ण खुराना,6,राम शिव मूर्ति यादव,1,रामचंद्र शुक्ल,1,रामचन्द्र शुक्ल,1,रामचरन गुप्त,5,रामवृक्ष सिंह,10,रावण,1,राहुल कुमार,1,राहुल सिंह,1,रिंकी मिश्रा,1,रिचर्ड फाइनमेन,1,रिलायंस इन्फोकाम,1,रीटा शहाणी,1,रेंसमवेयर,1,रेणु कुमारी,1,रेवती रमण शर्मा,1,रोहित रुसिया,1,लक्ष्मी यादव,6,लक्ष्मीकांत मुकुल,2,लक्ष्मीकांत वैष्णव,1,लखमी खिलाणी,1,लघु कथा,288,लघुकथा,1340,लघुकथा लेखन पुरस्कार आयोजन,241,लतीफ घोंघी,1,ललित ग,1,ललित गर्ग,13,ललित निबंध,20,ललित साहू जख्मी,1,ललिता भाटिया,2,लाल पुष्प,1,लावण्या दीपक शाह,1,लीलाधर मंडलोई,1,लू सुन,1,लूट,1,लोक,1,लोककथा,378,लोकतंत्र का दर्द,1,लोकमित्र,1,लोकेन्द्र सिंह,3,विकास कुमार,1,विजय केसरी,1,विजय शिंदे,1,विज्ञान कथा,79,विद्यानंद कुमार,1,विनय भारत,1,विनीत कुमार,2,विनीता शुक्ला,3,विनोद कुमार दवे,4,विनोद तिवारी,1,विनोद मल्ल,1,विभा खरे,1,विमल चन्द्राकर,1,विमल सिंह,1,विरल पटेल,1,विविध,1,विविधा,1,विवेक प्रियदर्शी,1,विवेक रंजन श्रीवास्तव,5,विवेक सक्सेना,1,विवेकानंद,1,विवेकानन्द,1,विश्वंभर नाथ शर्मा कौशिक,2,विश्वनाथ प्रसाद तिवारी,1,विष्णु नागर,1,विष्णु प्रभाकर,1,वीणा भाटिया,15,वीरेन्द्र सरल,10,वेणीशंकर पटेल ब्रज,1,वेलेंटाइन,3,वेलेंटाइन डे,2,वैभव सिंह,1,व्यंग्य,2075,व्यंग्य के बहाने,2,व्यंग्य जुगलबंदी,17,व्यथित हृदय,2,शंकर पाटील,1,शगुन अग्रवाल,1,शबनम शर्मा,7,शब्द संधान,17,शम्भूनाथ,1,शरद कोकास,2,शशांक मिश्र भारती,8,शशिकांत सिंह,12,शहीद भगतसिंह,1,शामिख़ फ़राज़,1,शारदा नरेन्द्र मेहता,1,शालिनी तिवारी,8,शालिनी मुखरैया,6,शिक्षक दिवस,6,शिवकुमार कश्यप,1,शिवप्रसाद कमल,1,शिवरात्रि,1,शिवेन्‍द्र प्रताप त्रिपाठी,1,शीला नरेन्द्र त्रिवेदी,1,शुभम श्री,1,शुभ्रता मिश्रा,1,शेखर मलिक,1,शेषनाथ प्रसाद,1,शैलेन्द्र सरस्वती,3,शैलेश त्रिपाठी,2,शौचालय,1,श्याम गुप्त,3,श्याम सखा श्याम,1,श्याम सुशील,2,श्रीनाथ सिंह,6,श्रीमती तारा सिंह,2,श्रीमद्भगवद्गीता,1,श्रृंगी,1,श्वेता अरोड़ा,1,संजय दुबे,4,संजय सक्सेना,1,संजीव,1,संजीव ठाकुर,2,संद मदर टेरेसा,1,संदीप तोमर,1,संपादकीय,3,संस्मरण,730,संस्मरण लेखन पुरस्कार 2018,128,सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन,1,सतीश कुमार त्रिपाठी,2,सपना महेश,1,सपना मांगलिक,1,समीक्षा,847,सरिता पन्थी,1,सविता मिश्रा,1,साइबर अपराध,1,साइबर क्राइम,1,साक्षात्कार,21,सागर यादव जख्मी,1,सार्थक देवांगन,2,सालिम मियाँ,1,साहित्य समाचार,98,साहित्यम्,6,साहित्यिक गतिविधियाँ,216,साहित्यिक बगिया,1,सिंहासन बत्तीसी,1,सिद्धार्थ जगन्नाथ जोशी,1,सी.बी.श्रीवास्तव विदग्ध,1,सीताराम गुप्ता,1,सीताराम साहू,1,सीमा असीम सक्सेना,1,सीमा शाहजी,1,सुगन आहूजा,1,सुचिंता कुमारी,1,सुधा गुप्ता अमृता,1,सुधा गोयल नवीन,1,सुधेंदु पटेल,1,सुनीता काम्बोज,1,सुनील जाधव,1,सुभाष चंदर,1,सुभाष चन्द्र कुशवाहा,1,सुभाष नीरव,1,सुभाष लखोटिया,1,सुमन,1,सुमन गौड़,1,सुरभि बेहेरा,1,सुरेन्द्र चौधरी,1,सुरेन्द्र वर्मा,62,सुरेश चन्द्र,1,सुरेश चन्द्र दास,1,सुविचार,1,सुशांत सुप्रिय,4,सुशील कुमार शर्मा,24,सुशील यादव,6,सुशील शर्मा,16,सुषमा गुप्ता,20,सुषमा श्रीवास्तव,2,सूरज प्रकाश,1,सूर्य बाला,1,सूर्यकांत मिश्रा,14,सूर्यकुमार पांडेय,2,सेल्फी,1,सौमित्र,1,सौरभ मालवीय,4,स्नेहमयी चौधरी,1,स्वच्छ भारत,1,स्वतंत्रता दिवस,3,स्वराज सेनानी,1,हबीब तनवीर,1,हरि भटनागर,6,हरि हिमथाणी,1,हरिकांत जेठवाणी,1,हरिवंश राय बच्चन,1,हरिशंकर गजानंद प्रसाद देवांगन,4,हरिशंकर परसाई,23,हरीश कुमार,1,हरीश गोयल,1,हरीश नवल,1,हरीश भादानी,1,हरीश सम्यक,2,हरे प्रकाश उपाध्याय,1,हाइकु,5,हाइगा,1,हास-परिहास,38,हास्य,59,हास्य-व्यंग्य,78,हिंदी दिवस विशेष,9,हुस्न तबस्सुम 'निहाँ',1,biography,1,dohe,3,hindi divas,6,hindi sahitya,1,indian art,1,kavita,3,review,1,satire,1,shatak,3,tevari,3,undefined,1,
ltr
item
रचनाकार: व्यंग्य // वचने किम् दरिद्रता? // डॉ. रामवृक्ष सिंह
व्यंग्य // वचने किम् दरिद्रता? // डॉ. रामवृक्ष सिंह
http://lh6.ggpht.com/-j-Oh_TF4mng/TlM5_36baJI/AAAAAAAAKho/we8lmwlDK1Y/ramvriksh_singh%25255B2%25255D.jpg?imgmax=200
http://lh6.ggpht.com/-j-Oh_TF4mng/TlM5_36baJI/AAAAAAAAKho/we8lmwlDK1Y/s72-c/ramvriksh_singh%25255B2%25255D.jpg?imgmax=200
रचनाकार
https://www.rachanakar.org/2018/05/blog-post_50.html
https://www.rachanakar.org/
https://www.rachanakar.org/
https://www.rachanakar.org/2018/05/blog-post_50.html
true
15182217
UTF-8
Loaded All Posts Not found any posts VIEW ALL Readmore Reply Cancel reply Delete By Home PAGES POSTS View All RECOMMENDED FOR YOU LABEL ARCHIVE SEARCH ALL POSTS Not found any post match with your request Back Home Sunday Monday Tuesday Wednesday Thursday Friday Saturday Sun Mon Tue Wed Thu Fri Sat January February March April May June July August September October November December Jan Feb Mar Apr May Jun Jul Aug Sep Oct Nov Dec just now 1 minute ago $$1$$ minutes ago 1 hour ago $$1$$ hours ago Yesterday $$1$$ days ago $$1$$ weeks ago more than 5 weeks ago Followers Follow THIS PREMIUM CONTENT IS LOCKED STEP 1: Share to a social network STEP 2: Click the link on your social network Copy All Code Select All Code All codes were copied to your clipboard Can not copy the codes / texts, please press [CTRL]+[C] (or CMD+C with Mac) to copy Table of Content