नजीर अकबराबादी की हास्य - व्यंग्य व सूफ़ियाना कविताएँ

SHARE:

नजीर अकबराबादी की हास परिहास की कविताएँ बंजारा नामा टुक हिर्से-हवा को छोड़ मियां, मत देश विदेश फिरे मारा। कज्जाक अजल का लूटे है, दिन रात...

नजीर अकबराबादी की हास परिहास की कविताएँ



बंजारा नामा


टुक हिर्से-हवा को छोड़ मियां, मत देश विदेश फिरे मारा।
कज्जाक अजल का लूटे है, दिन रात बजाकर नक्कारा।
क्या बधिया, भैंसा, बैल, शुतर क्या गौने पल्ला सर भारा।
क्या गेहूं, चावल, मोंठ, मटर, क्या आग, धुंआ और अंगारा।
सब ठाठ पड़ा रह जावेगा, जब लाद चलेगा बंजारा।।
गर तू है लक्खी बंजारा और खेप भी तेरी भारी है।
ऐ गाफिल, तुझ से भी चढ़ता एक और बड़ा व्यापारी है।
क्या शक्कर मिश्री कंद गरी क्या सांभर मीठा खारी है।
क्या दाख, मुनक्का सोंठ, मिरच, क्या केसर लौंग सुपारी है।
सब ठाठ पड़ रह जावेगा जब लाद चलेगा बंजारा।
तू बधिया लादे बैल भरे, जो पूरब पश्चिम जावेगा।
या सूद बढ़ाकर लावेगा, या टोटा घाटा पावेगा।
कज्जाक अजल का रस्ते में जब भाला मार गिरावेगा।
धन दौलत, नाती पोता क्या, एक कुनबा काम न आवेगा।
सब ठाठ पड़ा रह जावेगा जब लाद चलेगा बंजारा।
यह खेप भरे जो जाता है, यह खेप मियां मत गिन अपनी।
अब कोई घड़ी, पर साअत मैं, यह खेप बदन की है कफनी।
क्या थाल कटोरे चांदी के, क्या पीतल की डिबिया ढकनी।
क्या बरतन सोने चांदी के, क्या मिट्टठ्ठी की हंडिया चपनी।
सब ठाठ पड़ा रह जावेगा जब लाद चलेगा बंजारा।
क्यों जी पर बोझ उठाता है, इन गौनों भारी-भारी के।
जब मौत का डेरा आन पड़ा, तब कोई नहीं गुनतारी के।
क्या साज जड़ाऊ जर जेवर, क्या गोटे थान किनारी के।
क्या घोड़े जीन सुनहरी के, क्या हाथी लाल अमारी के।
सब ठाठ पड़ा रह जावेगा जब लाद चलेगा बंजारा।
मगरूर न हो तलवारों पर, मत फूल भरोसे ढालों के।
सब पट्टा तोड़ के भागेगा, मुंह देख अजल के भालों के।।
क्या डिब्बे मोती हीरों के, क्या ढेर खजाने मालों के।
क्या बुगचे ताश मुशज्जर के क्या तख्ते शाल दुशालों के।।
सब ठाठ पड़ा रह जावेगा जब लाद चलेगा बंजारा।
जब मर्ग फिरा कर चाबुक को, यह बैल बदन का हांकेगा।
कोई नाज समेटेगा तेरा, कोई गौन सिये और टांकेगा।
हो ढेर अकेला जंगल में, तू खाक लहद की फांकेगा।
उस जंगल में फिर आह ‘नजीर’ एक भुनगा आन न झांकेगा।
सब ठाठ पड़ा रह जावेगा जब लाद चलेगा बंजारा।
-----------------.

तन का झोंपड़ा


यह तन जो है हर एक के उतारे का झोंपड़ा।
इससे है अब भी, सबके सहारे का झोंपड़ा।
इससे है बादशाह के नजारे का झोंपड़ा।
इसमें ही है फकीर बिचारे का झोंपड़ा।।
अपना न मोल का न इजारे का झोंपड़ा।
‘बाबा’ यह तन है दम के गुजारे का झोंपड़ा।।
इसमें ही भोले, भाले, इसी में सियाने हैं
इसमें ही होशियार, इसी में दिवाने हैं।
इसमें ही दुश्मन, इसमें ही अपने यगाने है।
शाह झोंपड़ा भी अपने, इसी में नुमाने है।
अपना न मोल का न इजारे का झोंपड़ा।
‘बाबा’ यह तन है दम के गुजारे का झोंपड़ा।।
इसमें ही अहले दौलतो मुनइम अमीर है।
इसमें ही रहते सारे जहां के फकीर है।
इसमें ही शाह और इसी में वजीर है।
इसमें ही है, सगीर इसी में कबीर है।
अपना न मोल का न इजारे का झोंपड़ा।
‘बाबा’ यह तन है दम के गुजारे का झोंपड़ा।।
इसमें ही चोर ठग है, इसी में अमोल है।
इसमें ही रोनी शक्ल, इसी में ठठोल है।
इसमें ही बाजे, और नकारे व ढोल है।
शाह झोंपड़ा भी इसमें ही करते कलोल है
अपना न मोल का न इजारे का झोंपड़ा।
‘बाबा’ यह तन है दम के गुजारे का झोंपड़ा।।
इस झोंपड़े में रहते है सब शाह और वजीर।
इसमें वकील बख्शी व मुतसद्दी और अमीर।
इसमें ही सब गरीब हैं, इसमें ही सब फकीर।
शाह झोपड़ा जो कहते हैं, सच है मियां नजीर
अपना न मोल का न इजारे का झोंपड़ा।
‘बाबा’ यह तन है दम के गुजारे का झोंपड़ा।।

-------------.

रोटियां


जब आदमी के पेट में आती हैं रोटियां।
फूली नहीं बदन में समाती है रोटियां।।
आंखें परीरूखों से लड़ाती हैं रोटियां।
सीने ऊपर भी हाथ चलाती है रोटियां।।
जितने मजे हैं सब यह दिखाती हैं रोटियां।।
रोटी से जिनका नाक तलक पेट है भरा।
करता फिर है क्या वह उछल कूद जा बजा।।
दीवार फांद कर कोई कोठा उछल गया।
ठट्टा हंसी शराब, सनम साकी, उस सिवा।।
सौ सौ तरह की धूम मचाती हैं रोटियां।।
पूछा किसी ने यह किसी कामिल फकीर से।
यह मेहरो माह हक ने बनाए हैं काहे के।।
वह सुनके बोला, बाबा खुदा तुझको खैर दे।
हम तो न चांद समझें, न सूरज हैं जानते।।
बाबा हमें तो यह नजर आती हैं रोटियां
रोटी जब आई पेट में सौ कन्द घुल गए।
गुलजार फूले आंखों में और ऐश तुल गए।।
दो तर निवाले पेट में जितने थे सब भेद खुल गए।

चौदह तबक के जितने थे सब भेद खुल गए।।
यह कश्फ यह कमाल दिखाती है रोटियां।।
रोटी न पेट में हो तो फिर कुछ जतन न हो।
मेले की सैर ख्वाहिशे बागो चमन न हो।।
भूके गरीब दिल की खुदा से लगन न हो।
सच है कहा किसी ने कि भूके भजन न हो।।
अल्लाह की भी याद दिलाती हैं रोटियां।।
रोटी का अब अजल से हमारा तो है खमीर।
रूखी भी रोटी हक में हमारे है शहदो शीर।।
या पतली होवे मोटी खमीरी हो या फतीर
गेहूं, ज्वार, बाजरे की जैसी भी हो ‘नजीर’।।
हमको तो सब तरह की खुश आती है रोटियां।।
------------

आदमीनामा


दुनियां में बादशाह है सो है वह भी आदमी।
और मुफ्रिलसो गदा है सो है वह भी आदमी
जरदार बेनवा है, सो है वह भी आदमी।
नैमत जो खा रहा है, सो वह भी आदमी।।
यां आदमी ही नार है और आदमी ही नूर।
यां आदमी ही पास है और आदमी ही दूर।।
कुल आदमी का हुस्नों कबह में है यां जहूर।
शैतां भी आदमी है जो करता है मक्रो जूर

और हादी रहनुमा है सो है वह भी आदमी।।
मस्जिद भी आदमी ने बनाई है यां मियां।

बनते हैं आदमी ही इमाम और खुतबाख्यां।।
पढ़ते हैं आदमी ही कुरान और नमाज यां।
और आदमी ही उनकी चराते हैं जूतियां।
जो उनको ताड़ता है सो है वह भी आदमी।।
यां आदमी पे जान को वारे है आदमी।
और आदमी से तेग को मारे है आदमी।।
पगड़ी भी आदमी को पुकारे है आदमी।
और सुन के दौड़ता सो है वह भी आदमी।
चिल्ला के आदमी को पुकारे है आदमी।
और सुन के दौड़ता है सो है वह भी आदमी।।
बैठे हैं आदमी ही दुकानें लगा-लगा।
और आदमी ही फिरते हैं रख सर पे खोमचा।।
कहता है कोई ‘लो’ कोई कहता है ‘ला रे ला’।
किस-किस तरह बेचें हैं चीजें बना-बना।।
और मोल ले रहा है सो है वह भी आदमी।।
यां आदमी ही लालो जवाहर हैं बे बहा।
और आदमी ही खाक से बदतर है हो गया।।
काला भी आदमी है कि उल्टा है जूं तवा।
गोरा भी आदमी है कि टुकड़ा सा चांद का।।
बदशक्ल, बदनुमा है सो है वह भी आदमी।।
मरने पै आदमी ही, कफन करते हैं तैयार।
नहला धुला उठाते हैं कंधे पै कर सवार
कलमा भी पढ़ते हैं, मुर्दे के कारोबार।
और वह जो मर गया है सो है वह भी आदमी।
आशराफ और कसीने से ले शाह ता वजीर।
हैं आदमी ही साहिबे इज्जत भी और हकीर
यां आदमी मुरीद है और आदमी ही पीर।
अच्छा भी आदमी ही कहाता है ऐ ‘नजीर’।।
और सब में जो बुरा है सो है वह भी आदमी।।
--------------.

जर


दुनियां में कौन है जो नहीं मुब्तिलाए जर।
जितने है सबके दिल में भरी है हवाए जर।।
आंखों में, दिल में, जान में सीने में जाये जर।
हमको भी कुछ तलाश नहीं अब सिवाए जर।।
जो है सो हो रहा है सदा मुब्तिलाए जर।
हर एक यही पुकारे है, दिन रात हाये जर।।
यह पानी जो अब जीस्त की सबकी निशानी है।
जर की झमक को देख के अब यह भी पानी है।
यारो हमारी जिसके सबब जिन्दिगानी है।
यह पानी यह नहीं, वह सोने का पानी है।।
जो है सो हो रहा है सदा मुब्तिलाए जर।
हर एक यही पुकारे है, दिन रात हाये जर।।
आबेतिला की बूंद भी अब जिसके हाथ है।
वह बूंद क्या है चश्मए आबे हयात है।
दुनियां में ऐश, दीन भी इश्रत के साथ है।
जर वह है जिससे दोनों जहां से निजात है।
जो है सो हो रहा है सदा मुब्तिलाए जर।
हर एक यही पुकारे है, दिन रात हाये जर।।
कितनों के दिल में धुन है कि जर ही कमाइये।
कुछ खाइए, खिलाइए और कुछ बनाइए।।
कहता है कोई हाय कहां जर को पाइए।
क्या कीजिए जहर खाइए और मर ही जाइए।।
जो है सो हो रहा है सदा मुब्तिलाए जर।
हर एक यही पुकारे है, दिन रात हाये जर।।

लड़का सलाम करता है झुक-झुक के रश्के माह।
बूढे बड़े सब उसकी तरफ प्यार करके वाह।।
देते है यह दुआ उसे तब दिल से ख्वाह्मख्वाह।
फ्ऐ मेरे लाल हो तेरा सोने के सेहरे ब्याहय्
जो है सो हो रहा है सदा मुब्तिलाए जर।
हर एक यही पुकारे है, दिन रात हाये जर
जितनी जहां में खल्क है क्या शाह क्या वजीर।
पीरो, मुरीद, मुफ्रिलसो, मोहताज और फकीर।।
सब हैंगे जर के जाल में जी जान से असीर।
क्या-क्या कहूं मै खूबियां जर की मियां ‘नजीर’।।
जो है सो हो रहा है सदा मुब्तिलाए जर।
हर एक यही पुकारे है, दिन रात हाये जर
------------.

मुफलिसी


जब आदमी के हाल पे आती है मुफलिसी।
किस तरह से उसको सताती है मुफलिसी।।
प्यासा तमाम रोज बिठाती है मुफलिसी।
भूका तमाम रात सुलाती है मुफलिसी
यह दुख वह जाने जिस पे कि आती है मुफलिसी।
जो अहले फज्ल आलिमो फाजिल कहाते हैं।
मुफलिस हुए तो कल्मा तक भूल जाते हैं।।
पूछे कोई ‘अलिफ’ तो उसे ‘बै’ बताते है।
वह जो गरीब गुरबां के लड़के पढ़ाते हैं।।
उनकी तो उम्रभर नहीं जाती है मुफलिसी।।
मुफलिस करे जो आन के महफिल के बीच हाल।
सब जानें रोटियों का यह डाला है इसने जाल।।
गिर-गिर पड़े तो कोई न लेवे उसे संभाल।
मुफलिस में होवें लाख अगर इल्म और कमाल।।
सब खाक बीच आके मिलाती है मुफलिसी।

बेटे का ब्याह हो तो बराती न साथी है।
न रोशनी न बाजे की आवाज आती है।।
मां पीछे एक मैली चदर ओढ़े जाती है।
बेटा बना है दूल्हा, तो बाबा बराती है।।
मुफलिस की यह बरात चढ़ाती है मुफलिसी।
मुफलिस का दर्द दिल में कोई ठानता नहीं।
मुफलिस की बात को भी कोई मानता नहीं।।
जात और हसब नसब को कोई जानता नहीं।
सूरत भी उसकी फिर कोई पहचानता नहीं।।
यां तक नजर से उसको गिराती है मुफलिसी।।
दुनिया में लेके शाह से, ऐ यारो ता फकीर।
खालिक न मुफलिसी में किसी को करे असीर।
अशराफ को बनाती है एक आन में हकीर
क्या-क्या में मुफलिसी की खराबी कहूं ‘नजीर’।।
वह जाने जिसके दिल को जलाती है मुफलिसी।।
-------------------.

बचपन


क्या दिन थे यारो वह भी थे जबकि भोले भाले।
निकले थी दाई लेकर फिरते कभी ददा ले।
चोटी कोई रखा ले बद्घी कोई पिन्हा ले।
हंसली गले में डाले मिन्नत कोई बढ़ा ले।
मोटें हों या कि दुबले, गोरे हों या कि काले।
क्या ऐश लूटते हैं मासूम भोले भाले।।
जो कोई चीज देवे नित हाथ ओटते हैं।
गुड, बेर, मूली, गाजर, ले मुंह में घोटते हैं।।
बाबा की मूंछ मां की चोटी खसोटते हैं।
गर्दों में अट रहे हैं, खाकों में लोटते हैं।

कुछ मिल गया सो पी लें, कुछ बन गया सो खालें
क्या ऐश लूटते हैं मासूम भोले भाले।।
जो उनको दो सो खालें, फीका हो या सलोना।
है बादशाह से बेहतर जब मिल गया खिलौना।।
जिस जा पे नींद आई फिर वां ही उनको सोना।
परवा न कुछ पलंग की ने चाहिए बिछौना।।
भोंपू कोई बाज ले, फिरकी कोई फिरा ले।
क्या ऐश लूटते हैं मासूम भोले भाले।।
ये बालेपन का यारो, आलम अजब बना है।
यह उम्र वो है इसमें जो है सो बादशाह है।।
और सच अगर ये पूछो तो बादशाह भी क्या है।
अब तो ‘नजीर’ मेरी सबको यही दुआ है।।
जीते रहे सभी के आसो-मुराद वाले।
क्या ऐश लूटते हैं, मासूम भोले भाले।।
---------------.

बुढ़ापा


क्या कहर है यारो जिसे अजाए बुढ़ापा।
और ऐश जवानी के तई खाए बुढ़ापा।।
इश्रत को मिला खाक में गम लाए बुढ़ापा।
हर काम को हर बात को तरसाए बुढ़ापा।
सब चीज को होता है। बुरा हाय! बुढ़ापा।
आशिक को तो अल्लाह! न दिखलाए बुढ़ापा।।
क्या यारो, उलट हाय गया हमसे जमाना।
जो शोख कि थे अपनी निगाहों के निशाना।।
छेडे है कोई डाल के दादा का बहाना।
हंस कर कोई कहता है, ‘कहां जाते हो नाना’।।
सब चीज को होता है। बुरा हाय! बुढ़ापा।
आशिक को तो अल्लाह! न दिखलाए बुढ़ापा।।
क्या यारो कहें गोकि बुढ़ापा है हमारा।
पर बूढ़े कहाने का नहीं तो भी सहारा।।
जब बूढ़ा हमें कहके जहां हाय! पुकारा।
काफिर ने कलेजे में गोया तीर सा मारा।।
सब चीज को होता है बुरा हाय! बुढ़ापा
आशिक को तो अल्लाह! न दिखाए बुढ़ापा।।
कहता है कोई छीन लो इस बुडढ़े की लाठी।
कहता है कोई शोख कि हां खींच लो दाढ़ी।।
इतनी किसी काफिर को समझ अब नहीं आती।
क्या बूढ़े जो होते हैं तो क्या उनके नहीं जी।।
सब चीज को होता है बुरा हाय! बुढ़ापा
आशिक को तो अल्लाह! न दिखाए बुढ़ापा।।
नकलें कोई इन पोपले होठों की बनावे।
चलकर कोई कुबड़े की तरह कद को झुकावे।।
दाढ़ी के कने उंगली को ला ला के नचावे।
यह ख्वारी तो अल्लाह! किसी को न दिखावे।।
सब चीज को होता है बुरा हाय! बुढ़ापा
आशिक को तो अल्लाह! न दिखाए बुढ़ापा।।
गर हिर्स से दाढ़ी को खिजाब अपनी लगावे।
झुर्री जो पड़ी मुंह पे उन्हें कैसे मिटावें।।

गो मक्र से हंसने के तई दांत बंधावे
सब चीज को होता है बुरा हाय! बढ़ाया
आशिक को तो अल्लाह न दिखाए बुढ़ापा।।
वह जोश नहीं जिसके कोई खौफ से दहले।
वह जोम नहीं जिससे कोई बात को सह ले।।
जब फूस हुए हाथ थके पांव भी पहले।
फिर जिसके जो कुछ शौक में आवे वही कह ले।।
सब चीज को होता है बुरा हाय! बढ़ाया
आशिक को तो अल्लाह न दिखाए बुढ़ापा।।
करते थे जवानी में तो सब आपसे आ चाह।
और हुस्न दिखाते थे वह सब आन के दिल ख्वाह
यह कहर बुढ़ापे ने किया आह ‘नजीर’ आह।
अब कोई नहीं पूछता अल्लाह! ही अल्लाह! ।।
सब चीज को होता है बुरा हाय! बुढ़ापा
आशिक को तो अल्लाह! न दिखाए बुढ़ापा।।
----------------.

खेल-तमाशे


कबूतरबाजी
हैं आलमें बाजी में जो मुम्ताज कबूतर।
और शौक के ताइर से हैं अम्बाज कबूतर।
भाते हैं बहुत हमको यह तन्नाज कबूतर।
मुद्दत से जो समझें हमें हमराफ कबूतर।
फिर हमसे भला क्योंकि रहें बाज कबूतर।।
हैं बसरई और काबुली शीराजी निसावर।
चोया चंदनों सब्जमुक्खी शस्तरो अक्कर।


ताऊसियो, कुल पोटिये, नीले, गुली थय्यड़।
तारों के वह अंदाज नहीं बामें फलक पर।
जो करते है छतरी के ऊपर नाज कबूतर।।
‘कू’ करके जिधर के तईं छीपी को हिलावें।
कुछ होवे गरज फिर वह उसी सिम्त को जावे।
कुट्टी को न फकावें तो फिर तह को न आवें।
छोड़ उनको ‘नजीर’ अपना दिल अब किससे लगावें।
अपने तो लड़कपन से है दमसाज कबूतर।।
-------------.

गिलहरी का बच्चा


लिए फिरता है, यूं तो हर बशर बच्चा गिलहरी का।
हर एक उस्ताद के रहता है बच्चा गिलहरी का।
वे लेकिन है हमारा इस कदर बच्चा गिलहरी का।
दिखा दें हम किसी लड़के को, गर बच्चा गिलहरी का।
तो दम में लोट जाए देख कर बच्चा गिलहरी का।
सफेदी में वह काली धारियां ऐसी रही हैं बन।

कि जैसे गाल पर लड़कों को छूटे जुल्फ की नागिन।
किनारीदार पट्टठ्ठा, जिसमें घुंघरू कर रहे छन-छन।
गले में हंसली, पावों में कड़, और नाक मे लटकन।
रहा है सरबसर गहने में भर, बच्चा गिलहरी का
पड़ी उल्फत है, जबसे ऐ ‘नजीर’ इस शोख बच्चे की।
उड़ाई तब से सैरें हमने क्या-क्या, कुछ तमाशे की।
न ख्वाहिश लाल की है, अब न पिदड़ी की, न पिद्दे की।
न उल्फत कुछ कबूतर की, न तोते की, न बगले की।
हमें काफी है अब तो उम्र भर बच्चा गिलहरी का।
--------.

बरसात की उमस


क्या अब्र की गर्मी में घड़ी पहर है उमस।
गर्मी के बढ़ाने की अजब लहर है उमस।
पानी से पसीनों की बड़ी नहर है उमस।
हर बाग में हर दश्त में हर शहर है उमस।
बरसात के मौसम में निपट जहर है उमस।
सब चीज तो अच्छी है पर एक कहर है उमस।
कितने तो इस उमस के तई कहते है गरमाव।
यानी कि घिर अब्र हो और आके रूके बाव
उस वक्त तो पड़ता है गजब जान में घबराव।
दिल सीने में बेकल हो यही कहता है खा ताव।
बरसात के मौसम में निपट जहर है उमस।
सब चीज तो अच्छी है पर एक कहर है उमस।।
बदली के जो घिर आने से होती है हवा बंद।
फिर बंद सी गर्मी वह गजब पड़ती है यकचंद
पंखे कोई पकड़े, कोई खोले हे खड़ा बंद।
दम रूक के घुला जाता है गर्मी से हर एक बंद।
बरसात के मौसम में निपट जहर है उमस।
सब चीज तो अच्छी है पर एक कहर है उमस।।
ईधर तो पसीनों से पड़ी भीगें हैं खाटें।
गर्मी से उधर मैल की कुछ च्यूंटियां काटें।
कपड़ा जो पहनिए तो पसीने उसे आटें।
नंगा जो बदन रखिए तो फिर मक्खियां चाटें।
बरसात के मौसम में निपट जहर है उमस।
सब चीज तो अच्छी है पर एक कहर है उमस।।
--------------.

तिल के लड्डू


जाड़े में फिर खुदा ने खिलवाए तिल के लड्डू।
हर एक खोंमचे में दिखलाए तिल के लड्डू।
कूचे गली में हर जा, बिकवाए तिल के लड्डू।
हमको भी हैंगे दिल से, खुश आए तिल के लड्डू।
जीते रहे तो यारो, फिर खाए तिल के लड्डू।
जब उस सनम के मुझको जाड़े पे ध्यान आया।
सब सौदा थोड़ा थोड़ा बाजार से मंगाया।
आगे जो लाके रक्खा कुछ उसको खुश न आया।
चीजें तो वह बहुत थीं, पर उसने कुछ न खाया
जब खुश हुआ वह उसने जब पाए तिल के लड्डू।
जाड़े में जिसको हर दम पेशाब है सताता।
उट्टे तो जाड़ा लिपटे नहीं पेशाब निकला जाता।
उनकी दवा भी कोई, पूछो हकीम से जा।
बतलाए कितने नुस्खे, पर एक बन न आया।
आखिर इलाज उसका ठहराए तिल के लड्डू।
जाड़े में अब जो यारो यह तिल गए हैं भूने।
महबूबों के भी तिल से इनके मजे हैं दूने।
दिल ले लिया हमारा, तिल शकरियों की रू ने।
यह भी ‘नजीर’ लड्डू ऐसे बनाए तूने।
सुन-सुन के जिसकी लज्जत, घबराए तिल के लड्डू।
-----.

आगरे की ककड़ी


पहुंचे न इसको हरगिज काबुल दरे की ककड़ी।
ने पूरब और न पश्चिम, खूबी भरे की ककड़ी।
ने चीन के परे की और ने बरे की ककड़ी।
दक्खिन की और न हरगिज, उससे परे की ककड़ी।
क्या खूब नर्मो नाजुक, इस आगरे की ककड़ी।
और जिसमें खास काफिर, इस्कंदरे की ककड़ी।
क्या प्यारी-प्यारी मीठी और पतली पतलियां हैं।
गÂे की पोरियां हैं, रेशम की तकलियां हैं।
फरहाद की निगाहें, शीरीं की हसलियां हैं।
मजनूं की सर्द आहें, लैला की उंगलियां हैं।
क्या खूब नर्मो नाजुक, इस आगरे की ककड़ी।
और जिसमें खास काफिर, इस्कंदरे की ककड़ी।
छूने में बर्गे गुल हैं, खाने में कुरकुरी है।
गर्मी के मारने को एक तीर की सरी है।
आंखों में सुख कलेजे, ठंडक हरी भरी है।
ककड़ी न कहिए इसको, ककड़ी नहीं परी है।
क्या खूब नर्मो नाजुक, इस आगरे की ककड़ी।
और जिसमें खास काफिर, इस्कंदरे की ककड़ी।
बेल उसकी ऐसी नाजुक, जूं जुल्फ पेच खाई।
बीज ऐसे छोटे, छोटे, खशखाश या कि राई।

देख उसकी ऐसी नरमी बारीकी और गुलाई।
आती है याद हमको महबूब की कलाई।
क्या खूब नर्मो नाजुक, इस आगरे की ककड़ी।
और जिसमें खास काफिर, इस्कंदरे की ककड़ी।
लेते हैं मोल इसको गुल की तरह से खिल के।
माशूक और आशिक खाते हैं दोनों मिलके।
आशिक तो है बुझाते शोलों को अपने दिल के।
माशूक है लगाते, माथे पै अपने छिलके।
क्या खूब नर्मो नाजुक, इस आगरे की ककड़ी।
और जिसमें खास काफिर, इस्कंदरे की ककड़ी।
जो एक बार यारो, इस जा की खाये ककड़ी।
फिर जा कहीं की उसको हरगिज न भाए ककड़ी।
दिल तो ‘नजीर’ गश है यानी मंगाए ककड़ी।
ककड़ी है या कयामत, क्या कहिए हाय ककड़ी।
क्या खूब नर्मो नाजुक, इस आगरे की ककड़ी।
और जिसमें खास काफिर, इस्कंदरे की ककड़ी।

COMMENTS

BLOGGER
नाम

 आलेख ,1, कविता ,1, कहानी ,1, व्यंग्य ,1,14 सितम्बर,7,14 september,6,15 अगस्त,4,2 अक्टूबर अक्तूबर,1,अंजनी श्रीवास्तव,1,अंजली काजल,1,अंजली देशपांडे,1,अंबिकादत्त व्यास,1,अखिलेश कुमार भारती,1,अखिलेश सोनी,1,अग्रसेन,1,अजय अरूण,1,अजय वर्मा,1,अजित वडनेरकर,1,अजीत प्रियदर्शी,1,अजीत भारती,1,अनंत वडघणे,1,अनन्त आलोक,1,अनमोल विचार,1,अनामिका,3,अनामी शरण बबल,1,अनिमेष कुमार गुप्ता,1,अनिल कुमार पारा,1,अनिल जनविजय,1,अनुज कुमार आचार्य,5,अनुज कुमार आचार्य बैजनाथ,1,अनुज खरे,1,अनुपम मिश्र,1,अनूप शुक्ल,14,अपर्णा शर्मा,6,अभिमन्यु,1,अभिषेक ओझा,1,अभिषेक कुमार अम्बर,1,अभिषेक मिश्र,1,अमरपाल सिंह आयुष्कर,2,अमरलाल हिंगोराणी,1,अमित शर्मा,3,अमित शुक्ल,1,अमिय बिन्दु,1,अमृता प्रीतम,1,अरविन्द कुमार खेड़े,5,अरूण देव,1,अरूण माहेश्वरी,1,अर्चना चतुर्वेदी,1,अर्चना वर्मा,2,अर्जुन सिंह नेगी,1,अविनाश त्रिपाठी,1,अशोक गौतम,3,अशोक जैन पोरवाल,14,अशोक शुक्ल,1,अश्विनी कुमार आलोक,1,आई बी अरोड़ा,1,आकांक्षा यादव,1,आचार्य बलवन्त,1,आचार्य शिवपूजन सहाय,1,आजादी,3,आत्मकथा,1,आदित्य प्रचंडिया,1,आनंद टहलरामाणी,1,आनन्द किरण,3,आर. के. नारायण,1,आरकॉम,1,आरती,1,आरिफा एविस,5,आलेख,4288,आलोक कुमार,3,आलोक कुमार सातपुते,1,आवश्यक सूचना!,1,आशीष कुमार त्रिवेदी,5,आशीष श्रीवास्तव,1,आशुतोष,1,आशुतोष शुक्ल,1,इंदु संचेतना,1,इन्दिरा वासवाणी,1,इन्द्रमणि उपाध्याय,1,इन्द्रेश कुमार,1,इलाहाबाद,2,ई-बुक,374,ईबुक,231,ईश्वरचन्द्र,1,उपन्यास,269,उपासना,1,उपासना बेहार,5,उमाशंकर सिंह परमार,1,उमेश चन्द्र सिरसवारी,2,उमेशचन्द्र सिरसवारी,1,उषा छाबड़ा,1,उषा रानी,1,ऋतुराज सिंह कौल,1,ऋषभचरण जैन,1,एम. एम. चन्द्रा,17,एस. एम. चन्द्रा,2,कथासरित्सागर,1,कर्ण,1,कला जगत,113,कलावंती सिंह,1,कल्पना कुलश्रेष्ठ,11,कवि,2,कविता,3239,कहानी,2360,कहानी संग्रह,247,काजल कुमार,7,कान्हा,1,कामिनी कामायनी,5,कार्टून,7,काशीनाथ सिंह,2,किताबी कोना,7,किरन सिंह,1,किशोरी लाल गोस्वामी,1,कुंवर प्रेमिल,1,कुबेर,7,कुमार करन मस्ताना,1,कुसुमलता सिंह,1,कृश्न चन्दर,6,कृष्ण,3,कृष्ण कुमार यादव,1,कृष्ण खटवाणी,1,कृष्ण जन्माष्टमी,5,के. पी. सक्सेना,1,केदारनाथ सिंह,1,कैलाश मंडलोई,3,कैलाश वानखेड़े,1,कैशलेस,1,कैस जौनपुरी,3,क़ैस जौनपुरी,1,कौशल किशोर श्रीवास्तव,1,खिमन मूलाणी,1,गंगा प्रसाद श्रीवास्तव,1,गंगाप्रसाद शर्मा गुणशेखर,1,ग़ज़लें,550,गजानंद प्रसाद देवांगन,2,गजेन्द्र नामदेव,1,गणि राजेन्द्र विजय,1,गणेश चतुर्थी,1,गणेश सिंह,4,गांधी जयंती,1,गिरधारी राम,4,गीत,3,गीता दुबे,1,गीता सिंह,1,गुंजन शर्मा,1,गुडविन मसीह,2,गुनो सामताणी,1,गुरदयाल सिंह,1,गोरख प्रभाकर काकडे,1,गोवर्धन यादव,1,गोविन्द वल्लभ पंत,1,गोविन्द सेन,5,चंद्रकला त्रिपाठी,1,चंद्रलेखा,1,चतुष्पदी,1,चन्द्रकिशोर जायसवाल,1,चन्द्रकुमार जैन,6,चाँद पत्रिका,1,चिकित्सा शिविर,1,चुटकुला,71,ज़कीया ज़ुबैरी,1,जगदीप सिंह दाँगी,1,जयचन्द प्रजापति कक्कूजी,2,जयश्री जाजू,4,जयश्री राय,1,जया जादवानी,1,जवाहरलाल कौल,1,जसबीर चावला,1,जावेद अनीस,8,जीवंत प्रसारण,141,जीवनी,1,जीशान हैदर जैदी,1,जुगलबंदी,5,जुनैद अंसारी,1,जैक लंडन,1,ज्ञान चतुर्वेदी,2,ज्योति अग्रवाल,1,टेकचंद,1,ठाकुर प्रसाद सिंह,1,तकनीक,32,तक्षक,1,तनूजा चौधरी,1,तरुण भटनागर,1,तरूण कु सोनी तन्वीर,1,ताराशंकर बंद्योपाध्याय,1,तीर्थ चांदवाणी,1,तुलसीराम,1,तेजेन्द्र शर्मा,2,तेवर,1,तेवरी,8,त्रिलोचन,8,दामोदर दत्त दीक्षित,1,दिनेश बैस,6,दिलबाग सिंह विर्क,1,दिलीप भाटिया,1,दिविक रमेश,1,दीपक आचार्य,48,दुर्गाष्टमी,1,देवी नागरानी,20,देवेन्द्र कुमार मिश्रा,2,देवेन्द्र पाठक महरूम,1,दोहे,1,धर्मेन्द्र निर्मल,2,धर्मेन्द्र राजमंगल,1,नइमत गुलची,1,नजीर नज़ीर अकबराबादी,1,नन्दलाल भारती,2,नरेंद्र शुक्ल,2,नरेन्द्र कुमार आर्य,1,नरेन्द्र कोहली,2,नरेन्‍द्रकुमार मेहता,9,नलिनी मिश्र,1,नवदुर्गा,1,नवरात्रि,1,नागार्जुन,1,नाटक,152,नामवर सिंह,1,निबंध,3,नियम,1,निर्मल गुप्ता,2,नीतू सुदीप्ति ‘नित्या’,1,नीरज खरे,1,नीलम महेंद्र,1,नीला प्रसाद,1,पंकज प्रखर,4,पंकज मित्र,2,पंकज शुक्ला,1,पंकज सुबीर,3,परसाई,1,परसाईं,1,परिहास,4,पल्लव,1,पल्लवी त्रिवेदी,2,पवन तिवारी,2,पाक कला,23,पाठकीय,62,पालगुम्मि पद्मराजू,1,पुनर्वसु जोशी,9,पूजा उपाध्याय,2,पोपटी हीरानंदाणी,1,पौराणिक,1,प्रज्ञा,1,प्रताप सहगल,1,प्रतिभा,1,प्रतिभा सक्सेना,1,प्रदीप कुमार,1,प्रदीप कुमार दाश दीपक,1,प्रदीप कुमार साह,11,प्रदोष मिश्र,1,प्रभात दुबे,1,प्रभु चौधरी,2,प्रमिला भारती,1,प्रमोद कुमार तिवारी,1,प्रमोद भार्गव,2,प्रमोद यादव,14,प्रवीण कुमार झा,1,प्रांजल धर,1,प्राची,367,प्रियंवद,2,प्रियदर्शन,1,प्रेम कहानी,1,प्रेम दिवस,2,प्रेम मंगल,1,फिक्र तौंसवी,1,फ्लेनरी ऑक्नर,1,बंग महिला,1,बंसी खूबचंदाणी,1,बकर पुराण,1,बजरंग बिहारी तिवारी,1,बरसाने लाल चतुर्वेदी,1,बलबीर दत्त,1,बलराज सिंह सिद्धू,1,बलूची,1,बसंत त्रिपाठी,2,बातचीत,2,बाल उपन्यास,6,बाल कथा,356,बाल कलम,26,बाल दिवस,4,बालकथा,80,बालकृष्ण भट्ट,1,बालगीत,20,बृज मोहन,2,बृजेन्द्र श्रीवास्तव उत्कर्ष,1,बेढब बनारसी,1,बैचलर्स किचन,1,बॉब डिलेन,1,भरत त्रिवेदी,1,भागवत रावत,1,भारत कालरा,1,भारत भूषण अग्रवाल,1,भारत यायावर,2,भावना राय,1,भावना शुक्ल,5,भीष्म साहनी,1,भूतनाथ,1,भूपेन्द्र कुमार दवे,1,मंजरी शुक्ला,2,मंजीत ठाकुर,1,मंजूर एहतेशाम,1,मंतव्य,1,मथुरा प्रसाद नवीन,1,मदन सोनी,1,मधु त्रिवेदी,2,मधु संधु,1,मधुर नज्मी,1,मधुरा प्रसाद नवीन,1,मधुरिमा प्रसाद,1,मधुरेश,1,मनीष कुमार सिंह,4,मनोज कुमार,6,मनोज कुमार झा,5,मनोज कुमार पांडेय,1,मनोज कुमार श्रीवास्तव,2,मनोज दास,1,ममता सिंह,2,मयंक चतुर्वेदी,1,महापर्व छठ,1,महाभारत,2,महावीर प्रसाद द्विवेदी,1,महाशिवरात्रि,1,महेंद्र भटनागर,3,महेन्द्र देवांगन माटी,1,महेश कटारे,1,महेश कुमार गोंड हीवेट,2,महेश सिंह,2,महेश हीवेट,1,मानसून,1,मार्कण्डेय,1,मिलन चौरसिया मिलन,1,मिलान कुन्देरा,1,मिशेल फूको,8,मिश्रीमल जैन तरंगित,1,मीनू पामर,2,मुकेश वर्मा,1,मुक्तिबोध,1,मुर्दहिया,1,मृदुला गर्ग,1,मेराज फैज़ाबादी,1,मैक्सिम गोर्की,1,मैथिली शरण गुप्त,1,मोतीलाल जोतवाणी,1,मोहन कल्पना,1,मोहन वर्मा,1,यशवंत कोठारी,8,यशोधरा विरोदय,2,यात्रा संस्मरण,31,योग,3,योग दिवस,3,योगासन,2,योगेन्द्र प्रताप मौर्य,1,योगेश अग्रवाल,2,रक्षा बंधन,1,रच,1,रचना समय,72,रजनीश कांत,2,रत्ना राय,1,रमेश उपाध्याय,1,रमेश राज,26,रमेशराज,8,रवि रतलामी,2,रवींद्र नाथ ठाकुर,1,रवीन्द्र अग्निहोत्री,4,रवीन्द्र नाथ त्यागी,1,रवीन्द्र संगीत,1,रवीन्द्र सहाय वर्मा,1,रसोई,1,रांगेय राघव,1,राकेश अचल,3,राकेश दुबे,1,राकेश बिहारी,1,राकेश भ्रमर,5,राकेश मिश्र,2,राजकुमार कुम्भज,1,राजन कुमार,2,राजशेखर चौबे,6,राजीव रंजन उपाध्याय,11,राजेन्द्र कुमार,1,राजेन्द्र विजय,1,राजेश कुमार,1,राजेश गोसाईं,2,राजेश जोशी,1,राधा कृष्ण,1,राधाकृष्ण,1,राधेश्याम द्विवेदी,5,राम कृष्ण खुराना,6,राम शिव मूर्ति यादव,1,रामचंद्र शुक्ल,1,रामचन्द्र शुक्ल,1,रामचरन गुप्त,5,रामवृक्ष सिंह,10,रावण,1,राहुल कुमार,1,राहुल सिंह,1,रिंकी मिश्रा,1,रिचर्ड फाइनमेन,1,रिलायंस इन्फोकाम,1,रीटा शहाणी,1,रेंसमवेयर,1,रेणु कुमारी,1,रेवती रमण शर्मा,1,रोहित रुसिया,1,लक्ष्मी यादव,6,लक्ष्मीकांत मुकुल,2,लक्ष्मीकांत वैष्णव,1,लखमी खिलाणी,1,लघु कथा,288,लघुकथा,1340,लघुकथा लेखन पुरस्कार आयोजन,241,लतीफ घोंघी,1,ललित ग,1,ललित गर्ग,13,ललित निबंध,20,ललित साहू जख्मी,1,ललिता भाटिया,2,लाल पुष्प,1,लावण्या दीपक शाह,1,लीलाधर मंडलोई,1,लू सुन,1,लूट,1,लोक,1,लोककथा,378,लोकतंत्र का दर्द,1,लोकमित्र,1,लोकेन्द्र सिंह,3,विकास कुमार,1,विजय केसरी,1,विजय शिंदे,1,विज्ञान कथा,79,विद्यानंद कुमार,1,विनय भारत,1,विनीत कुमार,2,विनीता शुक्ला,3,विनोद कुमार दवे,4,विनोद तिवारी,1,विनोद मल्ल,1,विभा खरे,1,विमल चन्द्राकर,1,विमल सिंह,1,विरल पटेल,1,विविध,1,विविधा,1,विवेक प्रियदर्शी,1,विवेक रंजन श्रीवास्तव,5,विवेक सक्सेना,1,विवेकानंद,1,विवेकानन्द,1,विश्वंभर नाथ शर्मा कौशिक,2,विश्वनाथ प्रसाद तिवारी,1,विष्णु नागर,1,विष्णु प्रभाकर,1,वीणा भाटिया,15,वीरेन्द्र सरल,10,वेणीशंकर पटेल ब्रज,1,वेलेंटाइन,3,वेलेंटाइन डे,2,वैभव सिंह,1,व्यंग्य,2075,व्यंग्य के बहाने,2,व्यंग्य जुगलबंदी,17,व्यथित हृदय,2,शंकर पाटील,1,शगुन अग्रवाल,1,शबनम शर्मा,7,शब्द संधान,17,शम्भूनाथ,1,शरद कोकास,2,शशांक मिश्र भारती,8,शशिकांत सिंह,12,शहीद भगतसिंह,1,शामिख़ फ़राज़,1,शारदा नरेन्द्र मेहता,1,शालिनी तिवारी,8,शालिनी मुखरैया,6,शिक्षक दिवस,6,शिवकुमार कश्यप,1,शिवप्रसाद कमल,1,शिवरात्रि,1,शिवेन्‍द्र प्रताप त्रिपाठी,1,शीला नरेन्द्र त्रिवेदी,1,शुभम श्री,1,शुभ्रता मिश्रा,1,शेखर मलिक,1,शेषनाथ प्रसाद,1,शैलेन्द्र सरस्वती,3,शैलेश त्रिपाठी,2,शौचालय,1,श्याम गुप्त,3,श्याम सखा श्याम,1,श्याम सुशील,2,श्रीनाथ सिंह,6,श्रीमती तारा सिंह,2,श्रीमद्भगवद्गीता,1,श्रृंगी,1,श्वेता अरोड़ा,1,संजय दुबे,4,संजय सक्सेना,1,संजीव,1,संजीव ठाकुर,2,संद मदर टेरेसा,1,संदीप तोमर,1,संपादकीय,3,संस्मरण,730,संस्मरण लेखन पुरस्कार 2018,128,सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन,1,सतीश कुमार त्रिपाठी,2,सपना महेश,1,सपना मांगलिक,1,समीक्षा,847,सरिता पन्थी,1,सविता मिश्रा,1,साइबर अपराध,1,साइबर क्राइम,1,साक्षात्कार,21,सागर यादव जख्मी,1,सार्थक देवांगन,2,सालिम मियाँ,1,साहित्य समाचार,98,साहित्यम्,6,साहित्यिक गतिविधियाँ,216,साहित्यिक बगिया,1,सिंहासन बत्तीसी,1,सिद्धार्थ जगन्नाथ जोशी,1,सी.बी.श्रीवास्तव विदग्ध,1,सीताराम गुप्ता,1,सीताराम साहू,1,सीमा असीम सक्सेना,1,सीमा शाहजी,1,सुगन आहूजा,1,सुचिंता कुमारी,1,सुधा गुप्ता अमृता,1,सुधा गोयल नवीन,1,सुधेंदु पटेल,1,सुनीता काम्बोज,1,सुनील जाधव,1,सुभाष चंदर,1,सुभाष चन्द्र कुशवाहा,1,सुभाष नीरव,1,सुभाष लखोटिया,1,सुमन,1,सुमन गौड़,1,सुरभि बेहेरा,1,सुरेन्द्र चौधरी,1,सुरेन्द्र वर्मा,62,सुरेश चन्द्र,1,सुरेश चन्द्र दास,1,सुविचार,1,सुशांत सुप्रिय,4,सुशील कुमार शर्मा,24,सुशील यादव,6,सुशील शर्मा,16,सुषमा गुप्ता,20,सुषमा श्रीवास्तव,2,सूरज प्रकाश,1,सूर्य बाला,1,सूर्यकांत मिश्रा,14,सूर्यकुमार पांडेय,2,सेल्फी,1,सौमित्र,1,सौरभ मालवीय,4,स्नेहमयी चौधरी,1,स्वच्छ भारत,1,स्वतंत्रता दिवस,3,स्वराज सेनानी,1,हबीब तनवीर,1,हरि भटनागर,6,हरि हिमथाणी,1,हरिकांत जेठवाणी,1,हरिवंश राय बच्चन,1,हरिशंकर गजानंद प्रसाद देवांगन,4,हरिशंकर परसाई,23,हरीश कुमार,1,हरीश गोयल,1,हरीश नवल,1,हरीश भादानी,1,हरीश सम्यक,2,हरे प्रकाश उपाध्याय,1,हाइकु,5,हाइगा,1,हास-परिहास,38,हास्य,59,हास्य-व्यंग्य,78,हिंदी दिवस विशेष,9,हुस्न तबस्सुम 'निहाँ',1,biography,1,dohe,3,hindi divas,6,hindi sahitya,1,indian art,1,kavita,3,review,1,satire,1,shatak,3,tevari,3,undefined,1,
ltr
item
रचनाकार: नजीर अकबराबादी की हास्य - व्यंग्य व सूफ़ियाना कविताएँ
नजीर अकबराबादी की हास्य - व्यंग्य व सूफ़ियाना कविताएँ
http://lh4.ggpht.com/_t-eJZb6SGWU/S_-95aOP8UI/AAAAAAAAICk/cIJVi6jeWNI/image_thumb.png?imgmax=800
http://lh4.ggpht.com/_t-eJZb6SGWU/S_-95aOP8UI/AAAAAAAAICk/cIJVi6jeWNI/s72-c/image_thumb.png?imgmax=800
रचनाकार
https://www.rachanakar.org/2018/05/blog-post_756.html
https://www.rachanakar.org/
https://www.rachanakar.org/
https://www.rachanakar.org/2018/05/blog-post_756.html
true
15182217
UTF-8
Loaded All Posts Not found any posts VIEW ALL Readmore Reply Cancel reply Delete By Home PAGES POSTS View All RECOMMENDED FOR YOU LABEL ARCHIVE SEARCH ALL POSTS Not found any post match with your request Back Home Sunday Monday Tuesday Wednesday Thursday Friday Saturday Sun Mon Tue Wed Thu Fri Sat January February March April May June July August September October November December Jan Feb Mar Apr May Jun Jul Aug Sep Oct Nov Dec just now 1 minute ago $$1$$ minutes ago 1 hour ago $$1$$ hours ago Yesterday $$1$$ days ago $$1$$ weeks ago more than 5 weeks ago Followers Follow THIS PREMIUM CONTENT IS LOCKED STEP 1: Share to a social network STEP 2: Click the link on your social network Copy All Code Select All Code All codes were copied to your clipboard Can not copy the codes / texts, please press [CTRL]+[C] (or CMD+C with Mac) to copy Table of Content