हास्य - नाटक - "दबिस्तान-ए-सियासत" - अंक चार // दिनेश चन्द्र पुरोहित

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अंक चार मंज़र एक “ हफ्वात का मसाला , ले आयी आयशा ” राक़िम दिनेश चन्द्र पुरोहित [मंच रोशन होता है, मनु भाई की दुकान दिखाई देती है ! उसके सामने ...

अंक चार मंज़र एक

हफ्वात का मसाला, ले आयी आयशा

राक़िम दिनेश चन्द्र पुरोहित

[मंच रोशन होता है, मनु भाई की दुकान दिखाई देती है ! उसके सामने लगी पत्थर की बैंच पर, फन्ने खां साहब बैठे हैं ! उनके पहलू में स्कूल की डवलपमेंट कमेटी के दूसरे मेम्बरान बैठे हैं ! इन लोगों के आगे-पीछे मोहल्ले के ऐसे लोग खड़े हैं, जो इनके बीच चल रही गुफ़्तगू के सुनने के रागिब है ! इन सारे निकम्मे लोगों की टोह यह रहती है कि कब कोई ख़बरनवीस यहां आकर सनसनीखेज-चटपटी ख़बर सुना जाए ? तभी अल्लाह पाक इन निक्कमों की अरदास सुन लेता है, और स्कूल के में गेट के पास एक ऑटो आकर रुकता है ! ऑटो के ड्राइवर को भाड़ा चुकाकर आयशा मेडम ऑटो से निकलकर बाहर आती है ! अभी उसने कई किताबें हाथ में पकड़ रखी है ! वह सीधी ऑटो से उतरकर, फन्ने खां साहब के पास चली आती है ! फिर क्या ? वह अपने मुंह बोले चच्चा जान, यानी फन्ने खां साहेब से बातें करने लगती है !]

आयशा – चच्चा जान, देख लीजिये आप अपनी घड़ी को ! मैं बराबर एक्यूरेट वक़्त पर आयी हूँ ! अब आप निग़ाह रखना, मैं अन्दर जाती हूँ स्कूल में...और, मुझे देखते ही बड़ी बी मुझ पर स्कूल लेट आने का आरोप मंड देगी ! चाहे तो आप, घड़ी मिलान कर सकते हैं..फिर भी यह यह बीबी फातमा...

फन्ने खां – ना बेटी, ना ! तुम तो बेटी, रोज़ सही वक़्त पर स्कूल आती हो ! खूब मेहनत करती हो, जी लगाकर...मगर, इस बार...

आयशा – तकल्लुफ़ न करें, साफ़-साफ़ कह दीजिये चच्चा जान !

फन्ने खां – इस बार मसाला नहीं आया, तुम्हारी तरफ़ से ?

आयशा – हफ्वात के मसाले की कहाँ कमी, चच्चा जान ? शरे-ओ-अदब तसलीमात अर्ज़ करती हूं, आप दिल थामकर सुनिए !

[चटपटी ख़बरें सुनने का शौक, किसको नहीं ? सभी अपने कान उधर देते हैं ! हाथ में थामी किताबों को, आयशा अपने बैग में रख देती है...फिर बैग से एक पर्ची बाहर निकालकर, कहती है !]

आयशा – आप देखिये, चच्चा जान ! नए एडमिशन करने की तारीख निकल गयी है, एजुकेशन महकमें के क़ायदे के तहत तारीख निकल जाने के बाद वह बच्चियों का एडमिशन नहीं कर सकती !

फन्ने खां – आगे बोलो, बेटा !

आयशा - मगर बड़ी बी ने मनु भाई की बेटी का एडमिशन, स्कूल में करके सक़त काम किया है ! अब आप यहाँ बैठे सोचते रहना “आखिर, क्यों दिया दाख़िला ? और महकमें के क़ायदे के खिलाफ़, खिलवाड़ क्यों किया ?”

फन्ने खां – हमें, क्या मालुम ? बेटा, तुम सिलसिलेवार पूरा किस्सा बयान करोगी..तब, हमें मालूम होगा !

[अब आयशा, उनका चेहरा पढ़ती जा रही है ! अब वह अपनी पेशानी पर आये पसीने को, रुमाल से साफ़ करती है ! फिर, वह आगे कहती है !]

आयशा - चच्चा जान ! पूरे रोकड़ पांच सौ रुपये लिए हैं, बड़ी ने ! ख़ुदा की पनाह, अभी तक उन्होंने रसीद काटकर क्लास टीचर को नहीं दी है ! हुज़ूर, इससे बेहतरीन करप्शन का मामला कहां मिलेगा आपको ?

[अपने साथियों के चेहरों पर अचरज के भाव पाकर, फन्ने खां साहेब झट बैंच से उठ जाते हैं ! फिर अपने साथियों के साथ, आ जाते हैं दुकान के काउंटर के पास ! वहां खड़े रहकर, वे मनु भाई से इस वारदात की जानकारी लेने की कोशिश करते हैं ! अब फन्ने खां साहेब, मनु भाई से कहते हैं !]

फन्ने खां – वाह उस्ताद, बच्ची का स्कूल में दाख़िला चुपचाप करवा डाला ? हम दोस्तों को, इसकी हवा भी लगाने न दी ? वाह ! छुपे रुस्तम हो, यार ! चुपचाप पांच सौ रुपये थमा दिए, बड़ी बी को ? अरे यार, हमसे कह देते मेरे भाई ! हम करवा देते, दाख़िला..रुपये देने की कहां ज़रूरत ?

हिदायत तुल्ला – जनाब आप जानते नहीं, हमारे आली जनाब फन्ने खां साहेब स्कूल की कमेटी के एक ईमानदार मेंबर हैं ! और साथ में, मोहल्ला-ए-आज़म साबू भाई के मुंह बोले साले हैं !

दुकान पर खड़ा एक ग्राहक – जनाब किसी से डरते नहीं, इस लिए हम सब इनको ‘सद्दाम’ साहब कहकर इन्हें पुकारते हैं !

मनु भाई - [गुस्से में] – ग्राहक खड़े हैं, कभी तो यार कमाने दिया करो ! दिन-भर इसी बैंच पर बैठकर, मेरी ग्राहकी तोड़ते जा रहे हैं आप ? आप जैसे रिटायर्ड सरकारी कर्मचारी, वक़्त बिताया करते हैं ! और हम जैसे व्यापारी आपकी तरह वक़्त जाया नहीं करते, बल्कि इस वक़्त को दो पैसे कमाने के लिए काम में लेते हैं !

साबू भाई – [अपनी दुकान पर बैठे-बैठे, कहते हैं] - अरे यार, इनको काम करने दो ! अब सुनो, इन्होंने पैसे दिए या नहीं दिए..अगर दे दिए तो, किस लिए दिए ? उस गोरी मेम आयशा से ही पूछ लो, ना ! बेचारे मनु भाई की ग्राहकी तोड़ने, यहाँ काउंटर के पास आकर क्यों खड़े हो गए आप सभी ?

[आयशा से मालुम करने के लिए जैसे ही वे पीछे मुड़ते हैं, जनाब क्या देखते हैं ? आयशा तो न मालूम कब स्कूल में दाख़िल हो गयी ? अब, फन्ने खां बगलें झांकने लगे ! आखिर, वे अपने निकम्मे दोस्तों से कहने लगे !]

फन्ने खां – [दोस्तों से, कहते हैं] – दोस्तों ! आज स्कूल में जुहर के बारह बजे डवलपमेंट कमेटी की इजलास [बैठक] रखी गयी है ! इस इजलास में डवलपमेंट का बज़ट तैयार होगा ! मेरी इल्तज़ा है आपसे, आप सभी इस मिटिंग का कोरम पूरा होने नहीं दें ! अब तजवीज़...

हाजी मुस्तफ़ा – [फन्ने खां से] – उस्ताद ! आप कल चले गए थे, पेंशन लेने ! फिर...

फन्ने खां – नहीं जाऊं ? अरे हाजी साहेब, फिर पूरे महीने का घर-खर्च आप चलाएंगे क्या ? हम तो मियाँ रिटायर्ड सरकारी कर्मचारी ठहरे ! महीने की दस तारीख को चंद रुपये देखने को मिलते हैं, हमें ! [मनु भाई की तरफ़ देखते हुए, कहते हैं] इन धंधे वालों की तरह, रोज़ चांदी नहीं कूटते हैं !

हाजी मुस्तफ़ा – अरे जनाब, आप तो बहक रहे हैं ! हम तो यह कह रहे थे, उस वक़्त हमने इसी पत्थर की बैंच पर बैठकर पक्की हाज़री दी थी ! हुज़ूर कल भी आयशा आयी थी, और साथ में हफ्वात का मसाला भी साथ लेकर आयी थी जनाब ! कह रही थी कि...

साबू भाई – क्या कह रही थी, हिदायत साहेब ?

हिदायत तुल्ला – कह रही थी कि, स्कूल की कुछ मेडमों ने जान-बूझकर हमारे आला एहबाबों की बच्चियों को फ़ैल किया है !

साबू भाई – ख़ुदा की पनाह, बड़ी बी ने भी अपना मुंह सी लिया अपना ! आफ़रानी में तरन्नुम, मियाँ सदाकत से कहूँगा अब मआमला गंजलक का है ! मेरी बच्ची फ़ैल नहीं हो सकते थी, हुज़ूर उसने बहुत मेहनत की थी !

फन्ने खां – ऐसी क्या मेहनत की, हुज़ूर ? दिन-भर कमबख्त, मुंडेर पर खड़ी-खड़ी कनकौवा उड़ाती है !

साबू भाई – कनकौवे को छोड़िये साला साहब, वह चाहे तो आपको भी उड़ा सकती है ! अब सुनिए आप, उसने क्या मेहनत की ? एक्ज़ाम के रोज़, बेचारी ने कारचोब वाला इमामजमिन पहना...स्कूल जाते वक़्त उसने दही-मछली चखी, और मेहतरानी के शगुन लेकर गयी थी हुज़ूर !

हाजी मुस्तफ़ा – सब बेकार गया, बेचारी छ: नंबर से रह गयी इन कंजूस मोहतरमाओं की वाज़ह से ! ज़रा पूछ लीजये इन अक्लेकुल मनु भाई से ...इस बेचारी ने मेहनत में, क्या कमी रखी ?

[साबू भाई की बात सुनकर दुकान पर ग्राहकों को किराणा का सामान दे रहे मनु भाई से रहा नहीं जाता, वे बरबस हंस पड़ते हैं ! फिर किसी तरह अपनी हंसी को दबाकर, जनाब कहने लगते हैं !]

मनु भाई – साहब बहादुरों ! मुझे तो साबू भाई ने, मुफ्त में अपना पी.ए. बना रखा है ! अब और क्या कहूं, आपसे ? हमारे शरे-ओ-अदब के लिए काला हर्फ़ भैंस बराबर ! अब आ जाइए आप सभी, इधर ! पॉइंट तू पॉइंट, सारी बात आपको समझा दूंगा !

[सभी उनके नज़दीक चले आते हैं, अब उनके बीच गुफ़्तगू शुरू होती है ! अब उनके ग्राहक आँखे फाड़े सौदा पटाने के इंतज़ार में, इन निकम्मों के साथ इनकी गुफ़्तगू सुनने खड़े हो जाते हैं ! ये ठहरे हफ्वात के शौकीन, इनको क्या पता कि उनकी मग़मूम बीबियां घर पर बैठी आता, दाल, घी वगैरा के लिए आँखें पसारे इन्तिज़ार कर रही है ? मंच पर, अँधेरा छा जाता है !]

अंक चार मंज़र दो दबिस्तान--सियासत

राक़िम दिनेश चन्द्र पुरोहित

नए किरदार - ऑटो ड्राइवर, और नज़मा – सेकंड ग्रेड की टीचर ! रुकसाना – थर्ड ग्रेड की संस्कृत सब्जेक्ट की टीचर ! भंवरु खां – डवलपमेंट कमेटी के डोनर मेंबर और कोटन मिल के रिटायर्ड मुलाज़िम !

[मंच रोशन होता है, बरामदे में बैठी शमशाद बेगम पहले दौर का भोजन कर चुकी है ! अब वह टिफिन का ढकन बंद करके, उसे उसे अपनी थैली में रख दती है ! फिर, उठकर नल के पास जाती है ! और टोंटी खोलकर, अपने हाथ धो लेती हैं ! तब-तक रिसेस होने का वक़्त हो जाता है, वह जाकर घंटी लगा देती है ! क्लासों से बच्चियां बाहर निकलकर, ग्राउंड में चली आती है ! अब सभी मोहतरमाएं, लंच लेने के लिए बरामदे में चली आती है ! शमशाद बेगम इन सबको, वहां रखी कुर्सियों पर बैठाती है ! बैठने के बाद, वह इन सबको पानी पिला देती है ! इस काम से फारिग होकर, अब वह गैस के चूल्हे के पास चली आती हैं ! फिर वह, चाय बनाने में व्यस्त हो जाती है ! अब इन मोहतरमांओं की महफ़िल, ज़मने लगती है ! सट खोलकर, अब ग़ज़ल बी कहती है !]

ग़ज़ल बी – आज सभी बहाने हाज़िर हैं, मगर वह ब्यूटी पार्लर कहाँ हैं ?

[इमतियाज़ ठहरी आयशा की ख़ास सहेली, वह अपनी सहेली आयशा की खिल्ली उड़ना कैसे बर्दाश्त करती ? वह झट मुंहफट ज़वाब दे देती है, ग़ज़ल बी को !]

इमतियाज़ – [बिफ़रती हुई, कहती है] – आपका क्या गया, आपा ? पाउडर, क्रीम वगैरा खरीदकर लाती है वह अपने पैसों से, फिर मलती है अपने रुखसारों पर ! इसमें, आपका क्या चला गया ? ख़ुदा ने इनायत की है, ब्यूटी ! आप जैसी मोहतरमाओं को नहीं दी है ब्यूटी, जो क्या समझे तजईन [श्रंगार] को ?

ग़ज़ल बी – श्रंगार नहीं, तो क्या हो गया ? हम शग़ाल [सियार] को ज़रूर पहनाती हैं ! बाहर के मेम्बरान को स्कूल की हर जानकारी रहती है, इन शग़ालों के कारण ! बड़ी बी सारे दिन क्या करती है, स्कूल की मेडमें कब आती है और कब जाती है, कमरों की सफ़ाई चपरासी करते हैं या स्कूल की बच्चियां ? और..और..

इमतियाज़ – [गुस्से में] – और कह दो, आपा ! न तो फिर आपके पेट में दर्द शुरू हो जाएगा, फिर आप मुझे दोष देना मत !

ग़ज़ल बी – कह रही हूँ, मुझको किसका डर है ? अमुख-अमुख मेडमें क्लास में बैठी-बैठी स्वेटर बुनती है, अमुख-अमुख मेडमों ने जान-बूझकर बच्चियों को फ़ैल किया है, वगैरा-वगैरा स्कूल की जानकारी कौन देता है इन मेम्बरान को ?

इमतियाज़ – आपा आप कहलाओ मत इस छोटे मुंह से, एग्जामिनेशन का चार्ज लेकर नगर ढंढोरा बजाने का काम करता कौन है ? याद है, आप क्या कहती हैं ? [ग़ज़ल बी की आवाज की नक़ल करती हुई, कहती है] “हाय अल्लाह ! बहुत मेहनत करती हूं..कई घंटे बैठकर एग्जामिनेशन का काम पूरा करती हूं !”

[कहते-कहते इमतियाज़ को खांसी होने लगती है, टेबल पर रखे लोटे से पानी पीकर गले को तर करती है ! फिर, आगे कहती है !]

इमतियाज़ – [पानी पीकर, कहती है] - वर्कर होगी या नहीं ? यह ख़ुदा जाने ! कम से कम आप अपने मुंह से अपनी तारीफ़ करके मियाँ मिठू मत बनिए, आपा ! आपकी तारीफ़ कोई दूसरा करे, तो वह तारीफ़-ए-क़ाबिल है ! देख लो, बाहर के मेम्बरान कहते थकते नहीं कि “आयशा बहुत लिट्रेट है, वह खूब मेहनत करके बच्चियों को पढ़ाती है !”

[कहती-कहती इमतियाज़ थक जाई है, फिर लम्बी-लम्बी सांसें लेकर आगे कहने लगती है !]

इमतियाज़ – कहती हूँ...कहती हूं कि, वह एक पीरियड मिस नहीं करती ! और एक आप हैं, जिसे हर बच्ची का पेरेंट जनता है ! आप कितना पढ़ाती हैं क्लास में, और कितनी देर दरवाजे के पास ख़ड़ी होकर दूसरी मेडमों से हफ्वात करती हैं आप ? और...और..

ग़ज़ल बी – और, और... क्या ? आगे बोला नहीं जा रहा है ? [मुंह में रखे निवाले को चबाती हुई, उसे गिटती है]

इमतियाज़ – [लम्बी सांस लेकर, कहती है] – कहती हूं, आपा ! थोड़ा ठहरो ! [थोड़ी देर बाद] आप ख़ुद अपना वक़्त ख़राब करती हैं, और आस-पास की क्लासों में पढ़ा रही मेडमों का भी वक़्त बरबाद करती है ! उन्हें भी अपने पास, हफ्वात करने बुला लेती हैं आप !

ग़ज़ल बी – आपकी सहेली कोई दूध धूली नहीं है, अजी यह मआमला तो हमें ‘आफ़रानी में तरुन्नम’ का लगता है ! क्या समझी, आप ? असलियत को न छुपाओ...जो सभी जानते हैं कि ‘वह हेड मिस्ट्रेस बनने के लिए, कोम्पिटेटिव एग्जामिनेशन की तैयारी करती है क्लास में बैठकर ! और, क्लास में वह पढ़ाती नहीं !

इमतियाज़ – क्या कह रही हैं, आप ?

ग़ज़ल बी – कह रही हूं, कि ‘वह ख़ुद पढ़ती है कोम्पीटेटिव एग्जामिनेशन की किताबें !’

इमतियाज़ – [गुस्से में] – और कुछ कहना है, आपको ? मेरा सर दर्द बढ़ा दिया आपने, बेफिजूल की बकवास करके !

ग़ज़ल बी – कहूंगी क्यों नहीं, सुनना पडेगा आपको आख़िर सच्च क्या है ? वह काम नहीं करती, इसलिए उसके हिस्से में आयी परीक्षा की उतर-पुस्तिकाओं के बण्डल हमें जांचने पड़ते है !

[अब ग़ज़ल बी ने खाना खा लिया है, अब वह अपने टिफिन को बंद करके अपने हाथ धोती है ! फिर आकर बैठ जाती है, उधर इमतियाज़ सर पर हाथ रखे दिखाई दे रही है ! तभी, शमशाद बेगम आती है, और सभी मेडमों के हाथ में चाय से भरा प्याला थमा देती है ! अब सभी चाय की चुश्कियाँ लेते हुए चाय के घूंट पीते दिखाई दे रहे हैं ! इमतियाज़ के हलक में चाय पहुंचते ही, बोलने की ताकत उसके बदन में लौट आती है !]

इमतियाज़ – हमें क्या करना, इस दबिस्तान--सियासत से ? आपा, अब आपको ही यह सियासत मुबारक ! हमें तो पढ़ाने से ही फुर्सत नहीं मिलती ! इन निक्कमें लोगों को चाहिए, वक़्त गुज़ारने के के लिए मसाला ! ये निक्कमें मनु भाई की दुकान के पास बैठकर, करते रहते हैं चुहुलबाजी !

नज़मा बी – चुहुलबाजी करते ये निक्कमें क्या कहते हैं, इमतियाज़ ?

इमतियाज़ – वे कहते हैं कि ‘स्कूल की यह बड़ी मेडम स्कूल के डवलपमेंट फण्ड के ऊपर नागिन बनकर, बैठ गयी है !” अब मैं कहती हूं कि, “सारा फण्ड डवलपमेंट में लगा दें, तब ना तो यह फण्ड रहेगा और न ये कमबख्त मेम्बरान कौवे की तरह इस स्कूल के चारो तरफ़ मंडरा पायेंगे ! [इमतियाज़ जाती है !]

मुमताज़ – [मुमताज़ के जाने के बाद, कहती है] – वाह आपा ! आप इतना नहीं समझती कि, आयशा इसकी ख़ास सहेली है...वह कैसे इसके खिलाफ़ सुनेगी ? अब आपकी खैर नहीं, आयशा ज़रूर आपके खिलाफ़ इन मेम्बरान के कान भर देगी ! यह इमतियाज़ हर ख़बर, इस आयशा के पास पहुंचाती आयी है !

ग़ज़ल बी – देख मुमताज़, सदाकत से कहती हूं मैं....मैं हिस्ट्री ज़रूर पढ़ाती हूं, मगर हिस्ट्रीशीटर नहीं हूं इसकी तरह ! इसकी तरह दबिस्तान--सियासत के गंदे खेल नहीं खेला करती !

मुमताज़ – यह कैसे, आपा ?

ग़ज़ल बी – सुन ! तख़रीब में मीरजाफ़र ने मुल्क की लुटिया डूबा दी, और इस स्कूल की लुटिया अब डूबा देगी यह हमारी आयशा मीजाफ़र ! अब समझ गयी, तू ?

मुमताज़ – जानती हूँ, आपा ! यह आयशा टेलिफ़ोन करने के बहाने, साबू भाई की दुकान पर जाती है ! टेलिफ़ोन पर बातें तो कम करती है, मगर वहां बैठकर मेम्बरान को भड़काने का काम ज़्यादा करती है ! इस कारण ही, ये मेम्बरान पूरे दिन पत्थर की बैंच पर बैठे....

नज़मा बी – [मुमताज़ के डाइलोग को पूरा करती हुई, कहती है] – हम लोगों की मुज़हाक उड़ाते दिखाई देते हैं, ये कमजात मेम्बरान ! ये कमबख्त मुआफ़ी के क़ाबिल नहीं !

ग़ज़ल बी – [नज़मा की तरफ़, ध्यान न देती हुई] – देख मुमताज़, बड़ी बी के वालिद का इन्तिकाल हो गया ! कुछ दिन वह स्कूल नहीं आयेगी, तब-तक स्कूल संभालने का सारा बोझ मेरे सर पर आ गया है ! देखें, अब आगे इस आयशा को.....

[ग़ज़ल बी की आवाज धीमी हो जाती है, धीरे-धीरे यह आवाज सुनायी नहीं देती ! मंच पर, अँधेरा छा जाता है !]

अंक चार मंज़र तीन - बेकरार दिल तू गाये जा, खुशियों के भरे तराने..

राक़िम दिनेश चन्द्र पुरोहित  

[मंच रोशन होता है, मेन गेट के बाहर एक ऑटो रुकता है ! अब आयशा ऑटो से नीचे उतरती है ! उतरकर, हाथ में लगी घड़ी से समय देखती है ! घड़ी में दोपहर ठीक बारह बजे हैं, वह ऑटो का भाड़ा चुकाती है ! फिर पर्स से रुमाल निकालकर पेशानी पर छाये पसीने को साफ़ करके, रुमाल को वापस अपने पर्स में रख देती है ! आज़ अभी आयशा ने बोतल ग्रीन रंग की साड़ी और उससे मेच करता हुआ बोतल ग्रीन रंग का ब्लाउज पहन रखा है ! इस ड्रेस में उसकी सुन्दरता लोगों को अपनी ओर खींच रही है ! बैंच पर बैठे इन निक्कमें बूढों की आँखों में भी चमक आ गयी है इसे देखकर ! तभी वह ऑटो का ड्राइवर भाड़ा अपनी जेब में रखकर, कहता है !]

ड्राइवर - मेडम, कल कब आऊं आपको लेने ?

[बेतार के रेडिओ की तरह इमतियाज़ ने आयशा के पास ख़बर पहुंचा दी है, कि बड़ी बी छुट्टी पर है ! फिर क्या ? वह ड्राइवर से झट कहने लगी !]

आयशा – कल की बात क्यों करते हो, भाई ? आज ही रिसेस के वक़्त ठीक तीन बजे मुझे लेने आ जाना ! बड़ी बी छुट्टी पर, अब मुझे रोकने वाला है कौन ?

ड्राइवर – आदाब ! अब ररुख्सत होने की इजाज़त चाहता हूँ !

[ड्राइवर सीट पर बैठकर, ऑटो स्टार्ट करता है, थोड़ी देर में ऑटो आँखों से ओझल हो जाता है ! अब आयशा मनु भाई की दुकान के पास आती है !

इस वक़्त पत्थर की बैंचों पर फन्ने खां साहेब, साबू भाई, हिदायत तुल्ला, हाजी मुस्तफ़ा वगैरा सभी मेम्बरान बैठे हैं ! मनु भाई अपनी दुकान पर बैठे ग्राहकों को सामान तोलकर दे रहे हैं ! अब आयशा को देखते ही फन्ने खां साहेब की लबों पर मुस्कान छा जाती है, वे उससे कहते हैं !]

फन्ने खां – आज़ बेटा इतनी जल्दी तशरीफ़ कैसे लाई, स्कूल में ?

आयशा – [लबों पर मुस्कराहट लाकर, कहती है] – क्या कहूं, चच्चा जान ? आज़कल आपके दीदार होते नहीं, आप तो कभी चले जाते हैं डिस्ट्रिक्ट एजुकेशसन ऑफिस या फिर कभी चले जाते हैं पेंशन लाने बैंक में ! आज़ आयी हूं, जल्दी ! अब क्या कहूँ, आपसे ? इन बेरहम मेडमों की काली नज़रों से भी बचना भी ज़रूरी है !

फन्ने खां – वल्लाह, हमारी बहादुर बेटी होकर तुम इन मेडमों से डरती हो ?

आयशा – क्या कहूं, चच्चा जान ? ये कमज़ात मेडमें कहती है, मैं आपको स्कूल की हर ख़बर देकर मीरजाफ़र का रोल अदा करती हूँ ! ज़रा आप ही सोचिये, क्या चच्चा-भतीजी आपस में एक-दूसरे के सुख-दुःख की बातें नहीं कर सकते ?

फन्ने खां – [थोडा नज़दीक आकर, कहते हैं] – बेटा, फ़िक्र मत करो ! शुक्र्मंद रहो ख़ुदा के...अल्लाह पाक के मेहर से, हम तुम्हारा ख्याल रखने वाले यहाँ बैठे है ना ? एक बात बताओ, बेटा ! आज़ कोई चटपटी ख़बर लाई हो, नहीं ? हमारा दिल तो कब से बेताब हो रहा है, सुनने के लिए !

आयशा – उतावली मत करो, चच्चा ! अभी पहले फ़ोन कर लेती हूँ, ना तो ये शैतान की खाला अपने वाइसस्कोप से न जाने क्या-क्या देख रही होगी ? ना बाबा ना, ख़ुदा जाने क्या-क्या आरोप लगा बैठेगी हम पर ? अगर नहीं लगाया, तो हफ्वात करती हुई ज़रूर कहेगी, कि...

फन्ने खां – क्या कहेगी..? कुछ तो बयान करो !

आयशा – रहम जतलाती हुई कहेगी, हाय अल्लाह इस बेचारी का शौहर यहाँ है नहीं ! एम.एससी. की पढ़ाई करने जोधपुर गया हुआ है ! अब तो यह छोरी, पूरी आज़ाद हो गयी है !

[साबू भाई की दुकान की दलहीज़ चढ़कर, दुकान में दाख़िल होती है ! अन्दर जाकर वह चोगा क्रेडिल से उठाती है ! और, नंबर डायल करती है ! कुछ देर किसी से गुफ़्तगू करके, चोगा क्रेडिल पर रख देती है ! फिर वापस, फन्ने खां साहब के पास चली आती है ! आकर, वह उनसे कहती है !]

आयशा – चच्चा एक बात बताती हूं, मगर बार-बार अब मेरा नाम उछलना नहीं चाहिए ! समझा देना, आपके इन मेम्बरान को ! क्योंकि, इनके पेट में कोई बात पचती नहीं ! इन मेम्बरान में कोई ऐसा है, जो ग़ज़ल बी के पास जाकर मोती पिरोकर आ जाता है !

[फन्ने खां अपने दोस्त मेम्बरानों की तरफ़ देखते हुए, हिदायत देते हुए कहते हैं]

फन्ने खां - [हिदायत देते हुए, कहते हैं] -– देखा आपने ? क्या कहा, आयशा ने ? कैसे बेवफ़ा हैं, आप ? यह बेचारी कितनी तकलीफ़ें सहती हुई, तुम्हारे लिए चटपटी ख़बरें लाती है...और, आप चला देते हैं दुनाली...[फटकारने के लहजे से] सुन लिया, आपने ? आगे से ऐसा नहीं होना चाहिए, समझे आप ?

सभी मेम्बरान साथी – [एक साथ, आयशा से कहते हैं] – आगे फ़रमाइए, मोहतरमा ! आगे से, ऐसी ख़ता नहीं होगी !

फन्ने खां – बेटा, अब तुम जल्दी बयान करो ! झट मसाला रख बेटा..हम सुनने के इए बेकरार हैं !

[फिर क्या ? गुफ़्तगू होने लगती है, उधर मनु भाई से सामान लेकर उनके ग्राहक अपने घर की ओर जा चुके हैं ! अब मनु भाई हाथ ऊपर करके आराम से अंगड़ाई लेकर, चैन की सांस लेते हैं ! अब वक़्त बिताने के लिए दुकान में लगा रेडियो ओन करके, उसकी वोइस तेज़ कर देते हैं ! रेडियो पर फ़िल्मी नग़मा आता है – [नग़में के बोल हैं] – “बेकरार दिल तू गाये जा, खुशियों के भरे तराने...” अब इसकी तेज़ आवाज फन्ने खां साहब की गुफ़्तगू में बाधा आने लगी है ! गुस्से से भरे हुए वे, मनु भाई की तरफ़ खारी-खारी नज़रों से देखते हैं ! उनकी यह दशा देखकर, मनु भाई उनसे हंसते हुए कहते हैं !]

मनु भाई – [हंसते हुए, कहते हैं] – जनाब, आप भी बेकरार है और हम भी बेकरार हैं ! आप हफ्वात का मसाला लेकर, अब आपमें हफ्वात हांकने की बेकरारी है ! और इधर हम बेकरार है, “ना जाने वह वक़्त कब आयेगा, जब आप सभी रुख्सत होंगे और हमारा धंधा वापस चालू होगा ?” जनाब, कैसा लगा यह नगमा ? बेकरारी के बोल ही, इस नगमे में हैं !

फन्ने खां – देख लूंगा, मनु भाई आपको ! अभी यह छोरी खड़ी है, [मनु भाई की ओर देखते हुए, आँख मारकर इशारा करते हैं] थोड़ी इज़्ज़त रख यार..कुछ तो हमारी इज़्ज़त होगी ? [आयशा से] हां, बोलो बेटा अब क्या किया जाय ? अब आज ही बोल दें, धावा ?

आयशा – [घबराती हुई, कहती है] – ना चच्चा जान, ना ! यह क्या कर रहे हैं, आप ? मैं इसी पारी की हूं, सारा इलज़ाम आ जाएगा मेरे सर !

फन्ने खां – [तमतमाए हुए] – फिर क्या, यहाँ बैठकर मूंगफली तलूँ या भुजिया ? ऐसा मौक़ा बार-बार मिलता है, कहां ? इतना बढ़िया मसाला हाथ आया, और तू हमारे हाथ से छीन रही है..हाथ लगा मौक़ा ?

आयशा – ज़रा अक्ल होश्यारी से काम कीजिये, चच्चा जान ! सांप भी मर जाए, और लाठी भी न टूटे ! आज़ पक्की तैयारी कर लें, कल अलसुबह पहली पारी में धावा बोल देना ! उस पारी में टीचर भी कम हैं, पढ़ाई होने का कोई सवाल नहीं ! आप सरे-आम उन पर, बेइन्तज़ामी का आरोप लगा सकते हैं !

[पास बैठे मेम्बरान दोस्त खुशी से अपनी मंजूरी दे देते हैं ! फिर क्या ? उन सबकी आवाज, एक सुर में गूंज़ उठती है ! जिसे सुनकर, फन्ने खां साहेब की छाती और चौड़ी हो जाती है !]

सभी बैठे मेम्बरान - [एक साथ, जोर से आवाज लगाते हैं] – फन्ने खां आगे चलो, हम तुम्हारे साथ हैं !

फन्ने खां – [खुश होकर, मनु भाई से कहते हैं] – अजी, ओ मनु भाई ! क्या घमंड से मरे जा रहे हो, मेरे दोस्त ? आ जाओ, हमारी फौज़ में ! कल छुट्टी रख लेना, दुकान की ! कभी तो यार, दोस्तों का साथ दिया करो ! वाह मियां, तुम तो तहज़ीब-वहज़ीब तो भूल गए...दुकान पर आये दोस्तों के साथ, कैसे सलूक किया जाय ?

मनु भाई – [तमतमाए हुए] – तहज़ीब को मारो, गोली ! धंधा और हथाई, साथ-साथ नहीं चलती मियां ! धंधा-मज़दूरी करते हैं, मेरे दोस्त ! आपकी तरह घर बैठे, पेंशन नहीं उठाते हैं ! न तो हम किसी के मआमले में अपनी टांग फंसाते हैं, और न किसी को टांग फंसाने देते हैं !

सभी मेम्बरान - [एक साथ, कहते हैं] – ख़ुदा रहम, ख़ुदा रहम ! हमें सरे आम बेआबरू कर डाला ? ए अल्लाह पाक, तूने इस ख़िलक़त में कैसे-कैसे लोग पैदा कर डाले..जिनमें तहज़ीब नाम की, कोई चीज़ नहीं ?

[अब सभी मेम्बरान जाते हुए, नज़र आते हैं ! मंच पर, अँधेरा छा जाता है !]

अंक पांच, मंज़र चार

 इंस्पेक्शन किया, डवलपमेंट कमेटी ने

राक़िम दिनेश चन्द्र पुरोहित

clip_image007 [मंच रोशन होता है, सुबह के सात बजे हैं ! ग्राउंड में प्रार्थना हो चुकी है ! बच्चियां अपनी क्लास में लौट रही है ! प्रार्थना का काम निपट जाने के बाद, अब मेमूना भाई पानी का पाइप उठाकर बगीचे में आ चुके हैं ! और वहां, पोधों को पानी दे रहे हैं ! पानी देते वक़्त उनकी निग़ाह स्कूल के मेन गेट पर गिरती है, वहां गेट खोलकर पहली पारी की इंचार्ज अनारो मेडम आती हुई नज़र आती है ! उनके दीदार पाते ही मेमूना भाई वहीँ से, ज़ोर से चिल्लाते हुए उन्हें सावधान करते हुए कहते हैं !]

मेमूना - [ज़ोर से चिल्लाते हुए, कहते हैं] – ओ अनारो मेडम ! जल्द तशरीफ़ रखें, आज मेम्बरान धावा बोलने आ रहे हैं !

[अनारो मेडम अपने क़दमों की रफ़्तार बढ़ाती है, और इनके साथ देरी से आने वाली दूसरी मेडमें भी झट मेन गेट खोलकर अन्दर दाख़िल हो जाती है ! तभी फन्ने खां, हाजी मुस्तफ़ा, हिदायत तुल्ला, साबू भाई और दूसरे मेम्बरान स्कूल के में गेट के पास आकर खड़े हो जाते हैं ! तभी इनको, दूर से आ रहे मेंबर भंवरु खां नज़र आते हैं ! जनाब भंवरु खां ठहरे, कोटन मिल के रिटायर्ड मुलाज़िम ! आज़कल उन्होंने अपना वक़्त बिताने के लिए, अख़बारों की एजेंसी ले रखी है...और इस कोलोनी में वे ख़ुद साईकल पर बैठकर, घर-घर अख़बार बांटा करते हैं ! इनको इस स्कूल में भी अख़बार देना है, इसलिए वे अभी साईकल तेज़ चलाते हुए स्कूल की तरफ़ आ रहे हैं ! उनको मालुम है, आज़ ये मेम्बरान स्कूल में धावा बोलने वाले हैं ! इसलिए इन मेम्बरान को वहां खड़ा पाकर, वे ज़ोर से चिल्लाकर उन लोगों को आवाज देते हुए कहते हैं !]

भंवरु खां – [ज़ोर से आवाज देते हुए, कहते हैं] – अरे ओ साहब बहादुरों ! पहले मुझे स्कूल में अख़बार देने दो, बाद में गेट बंद कर लेना !

फन्ने खां – [ज़ोर से आवाज देते हुए, कहते हैं] – जल्दी आ जाओ, मियाँ ! और अख़बार देकर जल्दी लौट जाओ ! न तो अनारकली की तरह, इस जेल में बंद हो जाओगे !

[भंवरु खां साईकल पर बैठे स्कूल में दाख़िल होते हैं ! साबू भाई इनके साथ आ तो गए हैं, मगर अन्दर ही अन्दर घबरा रहे हैं कि, “जो काम वे करने जा रहे हैं, वह ग़लत है !” बस अब साबू भाई को, ख़ुद पर कानूनी कार्रवाही हो जाने का का डर सता रहा है ! आख़िर, वे डरकर कह बैठते हैं !]

साबू भाई – [डरते हुए, कहते हैं] – देखो मियाँ, आप हमसे जो काम करवा रहे हैं, वह ग़लत है ! भय्या हम ठहरे व्यापारी, झगड़ो में फंसते नहीं !

फन्ने खां – वाह उस्ताद, आप ठहरे इस मोहल्ले के बुजुर्ग मुसाहिब ! हम तो ख़ुद, आपके पीछे हैं ! फिर, आप काहे डरते जा रहे हैं ? [मूंछों पर ताव देते हुए] अपनी ये मूंछें ऊंची कर लो, बिरादर ! आप जानते नहीं, राजस्थान की ख़ुद वज़ीरेआला ने हुक्म जारी किया है कि “वार्ड मेंबर और मोहल्ले के मुअज्ज़म मुख्तार है, वे ख़ुद स्कूल का इंस्पेक्शन कर सकते हैं !

साबू भाई – मगर, हम तो इस वार्ड के मेंबर नहीं ! और ना आपने, वार्ड की मेंबर मुन्नी तेलन को यहाँ बुलाया नहीं ? फिर, यह काम कैसे होगा ?

फन्ने खां – डरते क्यों हो ? हम सभी उसके घर चले जायेंगे ! फिर वहां जाकर, हम इंस्पेक्शन रिपोर्ट पर दस्तख़त ले लेंगे ! उसका हाथ पकड़कर, हम उसके दस्तख़त ले सकते हैं ! उसे दस्तख़त करने ही होंगे, आखिर वह इस मोहल्ले की दुल्हन ठहरी !

[साबू भाई को, कहाँ भरोसा ? वे फन्ने खां साहब का चेहरा, आँखें फाड़े देकते जा रहे हैं !]

फन्ने खां - अजी, आँखे फाड़े क्या देख क्या रहे हैं मुझे ? अब देखते क्या हो ? आगे बढ़ो और इस गेट पर, जल्द ताला जड़ दीजिये...वक़्त हो गया है !

साबू भाई – अरे मियां, भंवरु खां साहब अन्दर ही है ! वापस लौटकर, आये नहीं ! आपको उतावली है तो..यह लीजिये ताला और चाबी, अब आप जाने और आपका काम जाने ! [ताला और उसकी चाबी, फन्ने खां साहब को थमा देते हैं !]

फन्ने खां – [ताला और उसकी चाबी लेकर, अपने साथियों से कहते हैं] – अरे हिदायत तुल्ला साहब, आप अन्दर जाते ही हाज़री रजिस्टर अपने कब्ज़े में ले लेना !

[अब सभी मेम्बरान स्कूल के अन्दर दाख़िल होते हैं, उधर बाहर फन्ने खां साहब स्कूल के मेन गेट पर ताला जड़ देते हैं ! तभी एक लेटलतीफ़ मेडम, जिसका नाम है रुकसाना ! आती है, गेट के पास ! यह मेडम लम्बे समय से इस स्कूल में, डेपुटेशन पर चल रही है ! महकमें के आला अफसरों के साथ अच्छे रसूखात होने के कारण इसकी लेट आने की आदत बन चुकी है, कारण यह है कि, “इस मेडम का ससुराल जोधपुर में होने के कारण, यह रोज़ जोधपुर से आना-जाना करती है !” अब यह फन्ने खां साहब को ताला जड़ते देखकर, झट फाटक को पकड़ लेती है ! फिर, रौब से फन्ने खां से कहती है !]

रुकसाना – [रौबीली आवाज में, कहती है] – अरे ओ साहेब, यह क्या कर रहे हैं आप ? जनाब, यह सरकारी स्कूल है, कोई नाती का बाड़ा नहीं है ! जो आपका दिल चाहा, और आकर जड़ दिया ताला ? अब, ताला खोलिए !

फन्ने खां – आपको अब अपनी नानी याद आएगी, रोज़ आती हो लेट..ख्याल नहीं है बच्चियों के भविष्य का ? किस बात की तनख्वाह, सरकार से लेती हैं आप ? क्या, कोर्स अधूरा रखने के लिए लेती हैं तनख्वाह ? कुछ तो मोहतरमा शर्म करो ! बड़ी ग़लती की है, बड़ी बी ने ! तुम जैसी लेट-लतीफ़ मेडम को, आठवी बोर्ड एग्जामिनेशन का इंचार्ज बना दिया..?

रुकसाना – आप कौन होते हैं, इस तरह हमसे सवाल करने वाले ? किसके हुक्म से, आप हमें रोक रहे हैं ?

फन्ने खां – वज़ीरेआला के हुक्म से ! समझ गयी, आप ? क्या मोहतरमा आप, अख़बार पढ़ा नहीं करती ? जानती हैं आप, परसों के अख़बार में क्या छपा है ? आप सब देर से स्कूल आने वाली मोहतरमाओं की अक्ल ठिकाने तब लगेगी, जब आएगा आपके पास एक्सप्लेनेशन लेटर...

रुकसाना - तब क्या ? बड़े मियां, लगता है आपका मिज़ाज ज़रा मुतकब्बिर इंसानों ने माफ़िक लगता है..जानते नहीं किसी के गुरुर को, अल्लाह पाक चलने नहीं देता !

फन्ने खां – अरी बेवकूफ लड़की, जानती नहीं..तू क्या कह रही है ? तूझे तब समझ में आ जाएगा, जब तूझे जिला कलेक्टर से एक्सप्लेनेशन ख़त मिलेगा ! तब तूझे मालुम पडेगा कि, “आख़िर, हम कौन हैं ?” याद रखना मेडम, कि..

रुकसाना – क्या समझ में आयेगा ? क्या बक रहे हैं, आप ?

फन्ने खां – चक्कर काटेगी, कलेक्टर साहेब के दफ़्तर के...तब आएगी तुम्हारी नानी याद..किससे पला पड़ा है ?

[तभी हिदायत तुल्ला साहेब की आवाज सुनाई देती है ! ऐसा लगता है, मानो किसी चीज़ के लिए उनके और मेडमों के बीच छीना-झपटी हो रही हो ?]

हिदायत तुल्ला – [अन्दर से, फन्ने खां साहेब को मदद की गुहार लगाते हुए] – ओ फन्ने खां साहब ! अरे हुज़ूर, जल्दी आइये ! ये मेडम साहिबा हमें, हाज़री रजिस्टर सौंप नहीं रही है !

फन्ने खां – [वहीं से, ज़ोर से बोलते हुए कहते हैं] – आया, जनाब !

[बेचारी रुकसाना को अन्दर दाख़िल होने नहीं देते, फन्ने खां साहेब...और, गेट पर ताला जड़कर ख़ुद दीवार फांदकर अन्दर चले आते हैं ! फिर अन्दर आकर अनारो मेडम से हाज़री रजिस्टर छीनकर, कहते हैं !]

फन्ने खां – [रजिस्टर छीनकर, कहते हैं] – आप जानती हैं, मेडम ? हम लोग अवाम के नुमायंदे हैं ! [हिदायत तुल्ला साहब की तरफ़ अगुली से इशारा करके, कहते हैं] इनको पहचानती हैं, आप ? ये मुअज्ज़म, आपके वार्ड की इलेक्टेड मेंबर मुन्नी तेलन के पी.ए. हैं ! अब समझ गयी, आप ?

अनारो मेडम – हम क्या करें, जनाब ? ये किसी के पी.ए. हो, हमें इनसे क्या लेना-देना ?

फन्ने खां – [रौब से, कहते हैं] - आपकी स्कूल का इंस्पेक्शन करने का हक़, इन्हें मेंबर साहिबा से मिला है ! आप यह बात भी अपने छोटे दिमाग़ में बैठा लीजियेगा कि, ‘मेंबर साहिबा को यह हक़, अपने स्टेट की वज़ीरेआला ने दिया है !

[हाज़री रजिस्टर छीनने के बाद, अब वे उस रजिस्टर का मुआइना करते हैं ! आज गैरहाज़र रहने वाली मेडमों के दस्तख़त करने के कोलम में लाल स्याही से क्रोस का निशान बनाते हैं !]

अनारो मेडम – अरे जनाब, आप यह क्या कर रहें है ? बिना पूछे इन मेडमों के कोलम में, आप लाल लाइन खींचते जा रहे हैं ? पता नहीं, आपको ? ये सारी मेडमें दूसरी परी की है ! इस तरह आप, इनके सिग्नेचर कोलम में इलीगल इंटरफ्रेंस नहीं कर सकते !

फन्ने खां – [तेज़ आवाज में, कहते हैं] – मोहतरमा, इतनी दानिश होकर आप इतना नहीं समझती...हमें पूरा-पूरा हक़ है दख़ल देने का ! समझ लेना, मेडम ! इस तरह आप, सरकारी काम में दख़ल डाल रही हैं ! जिसका नतीजा क्या होगा, आप सोच नहीं सकती ?

[अब फन्ने खां साहब पहली पारी की उन मेडमों के कोलम देखने लग गए हैं, जो अक़सर लेट आया करती है ! बदक़िस्मत से ये मेडमें आज भी अभी-तक आयी नहीं है ! फिर क्या ? फन्ने खां साहेब का लाल पेन, लाइन खींचने के लिए उठता है..और उधर, अनारो मेडम उनका हाथ रोककर कहती है ज़ोर से !]

अनारो मेडम – [ज़ोर से, कहती है] - अरे हुज़ूर, अब यह क्या ? इन सबका फ़ोन हमारे पास आया हुआ है, बस जनाब दो मिनट रुक जाइए..वे आ ही रही हैं, स्कूल में !

फन्ने खां – [उनका हाथ हटाते हुए, कहते हैं] – ये सब बातें आपको पहले कह देनी थी, मगर आप जान-बूझकर बोली नहीं..यह सरासर ग़लती आपकी है ! अवाम के नुमायंदे को तथ्यों से नावाकिफ़ रखने का चार्ज, यह इंस्पेक्शन कमेटी आप पर लगाती है !

हिदायत तुल्ला – आप पहले बोल देती तो सेकंड परी वाली मेडमों के कोलम ख़राब नहीं होते, मगर आप तो अपनी ख़ास मेडमों को बचाने में लगी रही !

[फन्ने खां साहब ने लाल लाइनें लगाने का काम पूरा कर लिया है ! वे अब रजिस्टर साबू भाई को थमा देते हैं !]

फन्ने खां – [रौब से, साबू भाई को हुक्म देते हैं] – साबू साहब, अब आप अनारो मेडम पर यह चार्ज लगाते हुए रिपोर्ट तैयार करें...कि, “इन्होने अवाम के नुमायंदों को, जानकारियों से नावाकिफ़ रखकर आर.एस.आर. रूल्स के ख़िलाफ़ जुर्म किया है ! बस, आप झट रिपोर्ट तैयार कर दें !

हिदायत तुल्ला – [साबू भाई से] – एक मिसल ज़्यादा बना देना, वज़ीराआला के हुक्म इज़रा होने के तहत डी.ई.ओ. साहेब, के दफ़्तर में भी एक मिसल भेजनी है !

साबू भाई – [झुंझलाते हुए, रजिस्टर टेबल पर रखकर कहते हैं] – लीजिये आपका रजिस्टर, अब ख़ाक रिपोर्ट बनाऊं ? मेरे लिए तो कला हर्फ़ भैंस बराबर ! पढ़ा-लिखा होता तो, मैं सरकारी ठेकों के कोटेशन आपसे क्यों तैयार करवाता ? इन बेचारी बाईयों पर रौब गांठकर, कर लिया अपना शौक पूरा ?

[फिर साबू भाई दोनों हाथ की दसों उंगलियाँ दिखलाते हुए, आगे अपनी बात रखते हैं !]

साबू भाई - [दोनों हाथ की दसों उंगलियाँ, दिखलाते हुए कहते हैं] – मेरी छोरी को ख़ाली दस नंबर से फ़ैल किया है, इन बेरहरम मोहतरमाओं ने !

फन्ने खां – साहबे आलम, ये छ: उंगलियाँ नहीं है..दस है, जनाब !

हाजी मुस्तफ़ा – खैर कुछ नहीं, हमारे साहबे आलम भी शहंशाहे ज़लालुद्दीन मोहम्मद अकबर की तरह अंगूठा छाप होते हुए मोहल्ला-ए-आज़म का ख़िताब रखते हैं ! बादशाह के नवरत्नों की तरह हम भी मोहल्ला-ए-आज़म साबू भाई के लिए नवरत्नों का काम करते है

फन्ने खां – इनके लिए काला हर्फ़ भैंस बराबर है, तब ही हम इनके क़ाबिल नवरत्न ठहरे !

साबू भाई – [मुस्कराते हुए, कहते हैं] – जनाब, क्या आप जानते हैं ? शहंशाहे अकबर के मुअज्ज़म साले साहब कौन थे ? चलिए, मैं ही बता देता हूं ! जनाब, उनके साला साहब फन्ने खां साहब थे !

फन्ने खां – अजी, हमारे शरे-ओ-अदब...साहबे आलम ! हम भी तो, आपकी बेगम साहिबा के मुंह बोले भाई हैं !

[यह सुनकर, साबू भाई उनका मुंह ताकते रह गए ! साबू भाई ने समझ लिया कि ‘कहीं उनके बोलने में, कहीं चूक हो गयी है ?’ तभी जनाब हाजी मुस्तफ़ा कह बैठे, कि..]

हाजी मुस्तफ़ा – क़ाबिले एतराफ़ बात यह है कि, सारी दुनिया एक तरफ़ और जोरू का भाई एक तरफ़ ! बस, मैं तो यहीं कहूंगा कि “यही कारण है कि, मोहल्ले में चल रही फन्ने खां साहेब की हकूमत के पीछे साबू भाई का ही हाथ है ! हम तो यही कहेंगे, हुज़ूर ! साबू भाई है, तो फन्ने खां साहेब आज इस सियासत में है !

साबू भाई – और कुछ कहना है तो झट उगल दीजिएगा, आप बाकी मत रहो कहने में ! पहले एक बात सुन लीजिये, हमसे...बिहार की जनता के दिल में लालू भाई तब-तक बसे रहेंगे, जब-तक सब्जियों में आलू रहेगा ! और जब-तक हमाम में साबू रहेगा, तब-तक हम यानी साबू भाई इस मोहल्ले की सियासत में बने रहेंगे चाहे वह सियासत मोहल्ले की हो या दबिस्तान--सियासत !

हाजी मुस्तफ़ा - सुन ली, हुज़ूर, आपकी शान में तारीफ़ के कसीदे ! अब तो आपको हुज़ूर, वार्ड मेंबर के इलेक्शन में खड़ा होने का मंसूबा ज़रूर बना लेना चाहिए ! [हिदायत तुल्ला साहेब की तरफ़, देखते हुए] क्यों जी, आप हमारे मोहल्ले के शहंशाह साबू भाई को सपोर्ट देंगे या नहीं ?

हिदायत तुल्ला – [हंसते हुए, कहते हैं] – साहब बहादुरों, जिस पार्टी की तरफ़ से इलेक्शन लड़ते हैं..उस पार्टी में हमारे महल्ले के शहंशाह साबू भाई की हैसियत, होनी चाहिए जैसे कि...

हाजी मुस्तफ़ा – बात तो जनाब अपने सौ फीसदी सही कही है, आप कई कारखानों के मालिक ठहरे ! ये सियासत वाले, आपके दिए चंदे से ही इलेक्शन लड़ते हैं ! मगर, हमारे साबू भाई की हैसियत..? हाय अल्लाह, अब हमारे शहंशाह का क्या होगा ?

साबू भाई - [चिढ़ते हुए, कहते हैं] – क्या कह रहे हो, बिरादर ? कभी आपने देखा है, इन पार्टी वालों को वर्कर्स कौन सप्लाई करता है ? अरे जनाब, ये पार्टी वाले हमसे सलाह लेते हैं कि ‘किस आदमी से, इलेक्शन लड़ाया जाय ?’ [फिर, कुछ याद आने पर] अरे....

फन्ने खां – क्या कहना बाकी रह गया, साहबे आलम ?

साबू भाई – अरे जनाब, आख़िर हम यहाँ आये क्यों ? मेरी छोरी को फ़ैल करने का मामला, बाकी कैसे रख दिया आपने ?

फन्ने खां - [हंसते हुए, कहते हैं] – भाणजी को फ़ैल करने वाली मेडमों को अल्लाह पाक दोज़ख़ नसीब करे ! आप फ़िक्र मत कीजिये, आपकी नेक दख्तर [बेटी] हमारी भाणजी है ! जनाब, कुछ करेंगे ! ईट से ईट बजा देंगे, जनाब !

साबू भाई [बिगड़ते हुए] – अरे साले साहब, ईट से ईट मत बजाओ यार...कहीं हमारी दुकान की ही ईटें तोड़कर, हमारा ही नुक़सान करने का इरादा रखते हैं, क्या ? अरे हुज़ूर आज़कल ये ग्राहक, एक-एक ईट की जांच करते हैं ! फिर, ख़रीदते हैं ईटें !

फन्ने खां – आखिर, दुल्हे मियाँ आप समझते ही क्यों नहीं कि, यह मामला दूसरी पारी का रहा, और यह ठहरी पहली पारी !

साबू भाई – [गुस्से में] – फिर काहे घसीट लाये, हमें ? हमारी दुकान का क्या होगा, किसके भरोसे पर हमारी दुकान...?

फन्ने खां – फ़िक्र न करें, जहांपनाह ! आपके शहज़ादे सलीम बैठे हैं आपकी दुकान पर ! आप तो ठहरे बादशाह, आपको मोहल्ले की इस फौज़ के साथ रहना ज़रूरी है ! इसलिए खींचकर ले आये आपको, यहाँ ! [अनारो मेडम से, कहते हैं] देख लीजिये, मोहतरमा ! आगे से स्कूल में बद-इंतज़ामी नहीं होनी चाहिए !

हाजी मुस्तफ़ा – सभी मेडमों को पाबंद करना, सही वक़्त पर स्कूल आये और बीच में स्कूल न छोड़ें ! बेवाज़ह, बच्चियों को क्लास से बाहर न आने दें ! जल्द ही टाँके की सफ़ाई करवाकर, पेय-जल व्यवस्था सुधारें ! इस पानी के टाँके को कांच की तरह चमका दीजिये, ताकि इसमें दूषित जल इकठ्ठा न हो !

हिदायत तुल्ला – और इस हिदायत पर ध्यान दिया जाय कि, कोई बच्ची हाथ में झाडू न लें ! चपरासियों से कहिये, वे ख़ुद झाडू निकाला करें ! कचरा स्कूल से बाहर, यथा-स्थान फेंका जाय !

फन्ने खां – हिदायत साहब, आपने इनको बहुत सारी हिदायतें दे दी है ! आख़िर, जनाब आपका नाम ठहरा हिदायत तुल्ला ! [अनारो मेडम से] अब आपको, कुछ कहना है ?

अनारो मेडम – हुज़ूर, अब आपका मुआइना पूरा हो गया है ना ? अब आप, मेन गेट का ताला खोल दीजिये ना !

हिदायत तुल्ला – गेट के ताले से, आपका क्या मतलब ? आपका काम है, पढ़ाना ! आप पढ़ाइये ना बच्चियों को, बेकार की बेफ़िजूल की बातें छोड़ दीजिये ना हम पर !

फन्ने खां – इससे तो अच्छा है, आप क्लास में जाकर बच्चियों को पढ़ाएं ! बच्चियां आपको दुआ देगी ! मोहतरमा, अब जाइए आप अपनी क्लास में ! वक़्त बहुत कीमती है, जाया न करें !

[तभी फन्ने खां साहब की बुलंद निग़ाहें, ग्राउंड में साईकल चला रहे भंवरु खां साहब पर गिरती है ! उनको बेफ़िजूल चक्कर काटते देखकर फन्ने खां साहब ख़िलखिलाकर हंस पड़ते हैं ! अब उनकी यह हालत देखकर, जनाब ज़ोर से उनको आवाज देते हैं !]

फन्ने खां – [किसी तरह अपनी हंसी दबाकर, उन्हें आवाज लगाते हुए कहते हैं] – अरे ओ, भंवरु खां साहब ! अरे अमां यार, ख़बरनवीस होकर साईकल रेस में भाग लेने की तैयारी क्यों कर रहे हैं जनाब ? फिर, क्या ?

भंवरु खां – [वहीँ से, साईकल दौड़ाते हुए ज़ोर से आवाज देते हुए कहते हैं] – अरे साहब बहादुर, आपकी मेहरबानी से चक्कर लगा रहे हैं, इस ग्राउंड का ! ख़ुदा जाने, आपको फाटक खोलना कब याद आयेगा ?

फन्ने खां – [तेज़ आवाज में] – सुनायी नहीं दिया, हुज़ूर ! ज़रा, इधर तशरीफ़ रखिये !

[फिर क्या ? बेचारे भंवरु खां साईकल को स्टैंड पर लागाकर, बरामदे में आते हैं जहां फन्ने खां साहेब अन्य साथियों के साथ बैठे हैं ! फन्ने खां के निकट आकर, वे मेन गेट का फाटक खोलने की गुहार लगाते हैं !]

भंवरु खां – [नज़दीक आकर, कहते हैं] – अरे जनाब, ज़रा सुनिए ! “दबिस्तान-ए-सियासत” में दख़ल देने का काम अब पूरा हो गया हो तो, चलकर मेन गेट का फाटक खोल दीजिएगा ! बेचारे ग्राहक, अख़बार का इन्तिज़ार कर रहे होंगे ? अख़बार न मिलने पर, वे न जाने कितनी गालियाँ हमें दे रहे होंगे हमें? ख़ुदा जाने, जनाब ने हमें किस जुर्म में यहाँ कैद कर रखा है ?

हाजी मुस्तफ़ा – अजी भंवरु खां साहेब, क्या आप जानते नहीं हमारे साहब बहादुर फन्ने खां साहेब की आदतें ? जनाब एक बार दरवाज़ा बंद कर देते हैं, तब ये वापस खोला नहीं करते !

साबू भाई – यही वाज़ह है, इनके भेजे के अन्दर एक बार जो बात घुस जाती है...वह कभी बाहर निकलती नहीं, जनाब ! इस तरह, जनाब कई सालों पहले की बातें याद रखते हैं !

भंवरु खां – [मायूस होकर, कहते हैं] - तब क्या, मैं यहाँ कैदी की तरह पड़ा रहूंग़ा ?

हाजी मुस्तफ़ा – अरे जनाब, आप काहे फ़िक्र कर रहे हैं ? हमारे फन्ने खां साहेब गेट पर ताला जड़ने के बाद, ख़ुद बन्दर की तरह दीवार फांदकर आये हैं यहां ! आखिर आपके ही बिरादर हैं, जनाब ! अब देरी न कीजिये, आप भी बन्दर के माफ़िक कूद जाइए बाहर !

[सामने से मेमूना भाई को आते देखकर, उनको आवाज लगाकर कहते हैं]

हाजी मुस्तफ़ा – अरे, ओ मेमूना भाई ! ज़रा इन मंकी महाशय..अरे नहीं..नहीं ! भंवरु खां साहेब की मदद करना ! अल्लाह पाक तुम्हारा भला करेगा !

मेमूना भाई – [वहीँ से, ज़ोर से भंवरु खां साहेब को आवाज देते हुए कहते हैं] – अरे ओ साहेब, ज़रा साईकल को लेकर फाटक के पास आ जाइयो ! आपको और आपकी साईकल को, गेंद के माफ़िक दीवार के दूसरी ओर उछाल दूंगा ! मैं वहीँ जा रहा हूं जनाब, आप वहां पहुंच जाइए !

फन्ने खां – [हंसते हुए, कहते हैं] - चलिए, आज हमारे क़दम क्या पड़े...? हमारे यहां आने से, एक सींकिया पहलवान भी गामा पहलवान बन गया !

[सभी ठहाके लगाकर ज़ोर से हंसते हैं ! अब मेमूना भाई आगे-आगे चल रहे है, और उनके पीछे-पीछे भंवरु खां साईकल थामे आ रहे हैं ! अब इनका काम पूरा हो गया है, इसलिए सभी मेम्बरान भी इनके पीछे-पीछे चलने लगे !]

भंवरु खां – [आगे चलते हुए, फन्ने खां साहेब से कहते हैं] – फन्ने खां साहब, कभी-कभी तो हमारे बारे में सोच लिया करो !

फन्ने खां – [पीछे चलते हुए, कहते हैं] – अजी क्या सोचना ? आपको और आपकी साईकल को, बाहर उछाल दिया जाएगा ! इसके अलावा, हम आपकी क्या ख़िदमत कर सकते हैं ?

भंवरु खां – [चमककर कहते हैं] – यह क्या ? अगर आप हमें उछालकर बाहर फेंक देंगे तो, हमारी एक-एक हड्डी तड़क जायेगी ! जनाब, फिर आपको अख़बार देने कौन आयेगा ? फिर आप क्या पढेंगे, मनु भाई की दुकान पर ?

फन्ने खां – आपका मफ़हूम, आखिर क्या है ? वह कहिये, बेफ़ालतू की बात मत कीजिएगा !

भंवरु खां - हम तो जनाब, यह कह रहे थे कि, “आप स्कूल की बड़ी मेडम से झगड़ा मोल लेकर, क्यों हमारा धंधा बिगाड़ रहे हैं ? स्कूल से चार पैसे आ रहे हैं..”

मेमूना भाई – [मेन गेट के पास पहुंचकर, कहते हैं] – हुजूरे आलिया ! आ जाइए, आ जाइए ! अभी आपकी साईकल को बाहर उछालकर, वापस आपका धंधा शुरु करते हैं ! फ़िक्र कीजिये मत, हम ओरों की तरह आपका धंधा ख़राब नहीं करते हैं ! बल्कि...

[भंवरु खां के आते ही उतावली में मेमूना भाई उनकी साईकल को दोनों हाथों से ऊपर उठाकर, बिना देखे बाहर उछाल देते हैं ! हाय अल्लाह, साईकल बाहर क्या गिरी ? उसके साथ-साथ रुकसाना मेडम की चीख अलग से सुनायी देती है !]

रुकसाना – [दर्द से चीखती हुई, कहती है] – अरे मार डाला रे, कमजात ! अल्लाह पाक तूझे दोज़ख़ नसीब करे, तेरी सात पुश्तें जहन्नुम में सड़ती रहे ! अरे ए दोज़ख़ के कीड़े, तूने साईकल गिराकर मेरी नाज़ुक कमर तोड़ डाली ! हाय अल्लाह,

[साईकल के पास बिखरे अख़बार के बण्डल देखकर, वह फिर चिल्लाती है !]

रुकसाना – [बिखरे अखबारों को देखकर, कहती है चिल्लाकर] – अरे पीर दुल्हे शाह ! ये बण्डल तो, इस बूढ़े मिराकी [सनकी] के हैं ! ए मेरे मोला, ज़रा इस हरामी बूढ़े को थोड़ी अक्ल दे दे !

[उस बेचारी मोहतरमा की चीख-पुकार, यहाँ सुनने वाला कौन ? यहां तो सारे बूढ़े उतावली करते हुए, दीवार फांदते जा रहे हैं ! बेचारी रुकसाना की हालत बुरी हो जाती है, वह जिधर बचने के लिए खिसकती उधर ही कोई बूढ़ा आकर उस पर गिरता ! कभी बेचारी के पाँव कुचले जाते, तो कभी उसके नाज़ुक कन्धों पर किसी बूढ़े का साठ किलो का वज़न आकर गिरता ! बेचारी अब पछताने लगी, क्यों वह इस धूप-छाँव के चक्कर में पड़कर इस दीवार के पास आकर नीचे बैठी ? दीवार फांदने के बाद, इन बूढों ने समझ लिया कि, आज़ किला फ़तेह हो गया ! अब साबू भाई को छोड़कर, सभी बूढ़े मनु भाई की दुकान के पास लगी पत्थर की बेंचों पर आकर डींग हांकने बैठ गए ! उधर दीवार के पास बेचारे भंवरु खां बिखरे अख़बार इकट्ठे करके, साईकल पर रखने लगे ! अखबारों का हुआ नुक्सान, बेचारे कैसे बर्दाश्त करते ? उनको अपना सारा गुस्सा, हाय तौबा मचाने वाली रुकसाना पर उतरता नज़र आ रहा है ! वे उस मोहतरमा को, गुस्से से भरी आँखों से देखते हैं ! गुस्से से भरी उनकी लाल-लाल आंखों को देखकर, वह झट खड़ी हो जाती है ! झट कुछ क़दम दूर जाकर, उन्हें गलीज़ गालियाँ सुनाती जा रही है ! उसके हाथ-पाँव में आयी चोटों को देखकर, दुकान पर बैठे साबू भाई को रहम आ जाता है ! वे उसे आवाज देकर पास बुलाते हैं ! वहां आने पर, वे चोटों पर लगाने के लिए उसे मूव टियूब थमाते हैं और दिलासा देते जाते हैं ! तभी मंच पर, अँधेरा छा जाता है !]

अंक चार मंज़र पांच

“इजलास न होगी !”

राक़िम दिनेश चन्द्र पुरोहित

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[मंच पर रोशनी फैलती है, स्कूल का बरामदा नज़र आता है ! आज दस रोज़ बाद, ये मेडमें चहक-चहककर बातें करती नज़र आ रही है ! इन सबको मालुम है कि, बड़ी बी छुट्टियां बिताकर वापस अपने घर लौट चुकी है ! इस वक़्त रिसेस चल रही है, इसलिए पहली पारी की सभी मेडमों ने बड़ी बी से मिलने के लिए उनके घर चलने का मंसूबा बना लिया है ! स्कूल से कुछ क़दम दूर ही, बड़ी का मकान है ! थोड़ी देर बाद, सभी मेडमें उनके मकान की दलहीज़ के पास पहुंच जाती है ! तभी सामने से दूसरी पारी की मेडमें आती हुई नज़र आती है ! उनको देखते ही इनके क़दम रुक जाते हैं, और पहली पारी की मोहतारमाएं उनके आने का इन्तिज़ार करती है ! उनके आते ही, सभी मेडमें एक साथ मकान में दाख़िल होती है ! बड़ी बी ने दीवान खाने में, मरहूम वालिद साहब की बैठक रखी है ! इस बैठक में पहले से आयी हुई मोहल्ले की औरतें इन मेडमों को देखते ही रुख्सत हो जाती है ! अब सभी मेडमें बड़ी बी से सलाम करके, उनके पास बैठ जाती है ! अब उनके बीच में, गुफ़्तगू शुरू होती है !]

ग़ज़ल बी – सलाम ! आपके वालिद साहब के इन्तिकाल की ख़बर सुनकर बहुत रंज हुआ ! इन्ना लिल्लाहे व इन्ना इलय ह’-राज़’ ऊन ! अल्लाह-तआला मरहूम को जन्नतुल-फिरदौस में आलामुकाम अता फरमाएं आमीन !

सभी मेडमें – [एक साथ] – आमीन ! [दोनों आँखों और छाती पर हाथ रखती है !]

रशीदा बेग़म – [निहायत रंजोगम के साथ] – तशरीफ़ रखें ! [पान की गिलोरियों से भरी हुई डिबिया, उनके आगे रखती है] लीजिये !

[सभी मेडमें डिबिया से पान की गिलोरी निकालकर, मुंह में ठूंसती है ! मुंह में पान ठूंसकर, अनारो मेडम कहती है !]

अनारो मेडम – निहायत रंजोगम के साथ कहती हूं बड़ी बी, आपके वालिद साहब की इन्तिकाल की ख़बर सुनकर बहुत दुःख हुआ ! हुज़ूर, सदाकत से कहती हूं, इन कानों से सुनकर हमें कतई वसूक नहीं हुआ ! कुछ रोज़ पहले की बात है, नूरिया बन्ना सेलेरी बिल पर आपके दस्तख़त लेकर आया था...

ग़ज़ल बी – वह बता रहा था, आपके अब्बा हुज़ूर की तबीयत बराबर सुधर रही है !

रशीदा बेग़म – अजी, इसे सुधारना मत कहो, बल्कि बहुत ठीक हो गए कहो ! अल्लाह पाक की करामत थी, वे पांच वक़्त की नमाज़ अदा करते थे ! मगर, एक रोज़ सुबह तड़के उठे...घुसल किया, फिर पाक कुरआन-शरीफ़ की आयतें पढ़ी ! फिर मुझे बुलाकर, कहने लगे...

ग़ज़ल बी – क्या कहा, हुज़ूर ?

रशीदा बेग़म – कहा, तेरी अम्मीजान का ध्यान रखना...उसका दिल बहुत कमज़ोर है ! उसे अकेले मत छोड़ना ! याद रखना, समझी ? मैं अब्बा हुज़ूर को कुछ कहती, उसके पहले अब्बा हुज़ूर ने चुप रहने का इशारा कर दिया और कहने लगे...

अनारो मेडम – क्या कहा ?

रशीदा बेग़म – यह कहते गए, “बेटा, इस ख़िलक़त से मैं रुख्सत हो रहा हूं....अल्लाह हाफ़िज़ !” मैं अवाक होकर उनका चेहरा देखने लगी, उनके चेहरे पर नूर छाया हुआ था ! उनकी आवाज मेरे कानों में गूंज़ने लगी, वे वजीफ़ा पढ़ रहे थे “वरम अल्लाह अल रहीम अल रहमान !” बस इतना..

ग़ज़ल बी – फिर क्या, बड़ी बी ?

रशीदा बेग़म – उन्होंने हमेशा के लिए आँखें मूंद ली ! अम्मीजान की दशा देखकर, मेरे आंसू थम गए !

अनारो मेडम – फिर आपने, किस तरह अम्मीजान को संभाला होगा ?

रशीदा बेग़म – अम्मीजान तो बिलकुल अनजान थी, बेचारी मुझे तसल्ली देती हुई कह रही थी कि, “तुम्हारे अब्बा पाक क़लमा पढ़ रहे हैं, तुम उनके इस पाक काम में ख़लल ना डालो !”

[ग़म के मारे, बड़ी बी की आंखों से तिफ़्लेअश्क गिर पड़ते हैं ! उनका हलक़ युसुबूत हो जाता है ! फिर, क्या ? नौकरानी प्यारो को, आवाज देकर, पानी से भरा ग्लास लाने का कहती है ! प्यारो पानी से भरा ग्लास लिए, झट हाज़िर होती है ! अपने रिदके से आंखें पोंछकर, बड़ी बी पानी पीती है ! फिर ख़ाली ग्लास वापस प्यारो को थमा देती है, ख़ाली ग्लास लेकर प्यारो चली जाती है ! अब चारों तरफ़ सन्नाटा छा जाता है ! इस सन्नाटे को तोड़ती हुई, ग़ज़ल बी अब कहती है !]

ग़ज़ल बी – ख़ुदा का शुक्र है, ऐसी मौत क़िस्मत वालों को नसीब होती है ! ख़ुदा अपने ख़ास बन्दों को, अपने पास जल्द बुला लेता है ! अल्लाह के हुक्म के आगे, किसी की नहीं चलती !

रशीदा बेगम – [सामान्य होती हुई, कहती है] – खैर छोड़िये, बीबी ! अब आप ज़रा, स्कूल के हाल बताइये ! याद है, आपको ? स्कूल आपके भरोसे छोड़कर, गयी थी ! अमन-चैन क़ायम रखा, या बदइन्तजामी का मंज़र दिखलाओगी चलकर ?

अनारो मेडम – इनको क्या तकलीफ़, बड़ी बी ? इनकी पारी में आयशा मौज़ूद ! इसलिए मोहल्ले वाले आते नहीं, इनको परेशान करने ! उनको तो हमारी पारी नज़र आती है, खेल दिखाने !

ग़ज़ल बी – वाह, क्या कहा इन्होने ? मानो पहली पारी की मोहतरमाएं मोहतरमा न होकर, नाचने वाली बंदरिया हो ? और ये मोहल्ले वाले आ जाते हैं नामाकूल, मदारी बनकर !

अनारो मेडम – [चिढ़ती हुई, कहती है] - क्यों आते हैं, हमारी ही पारी में ? क्या वे अंधे हैं, जो उनको तुम्हारी पारी नज़र आती ही नहीं ? क्या, ये सावन के अंधे हैं...?

ग़ज़ल बी – [चिढ़ाती हुई, कहती है] – आयेंगे क्यों नहीं, ज़रूर आएंगे ! [आँखें तरेरती हुई] आप तो हमको एक्टिंग हेड मिस्ट्रेस मानती नहीं, ना कभी आपने इन मदारियों की शिकायत की हमसे ! यह तो हमारे पड़ोसी भंवरु खां हैं, जिनका ख़ुदा भला करे ! उन्होंने ख़बर दे दी, हमें ! न तो हम बेख़बर रहते !

अनारो मेडम – [झुंझलाती हुई, कहती है] – और कुछ कहना है, आपको ? बड़ी बी के सामने बैठकर, हमारे खिलाफ़ कुछ और मोती पिरोने बाकी रह गए क्या ? सारे मोती पिरो दो, अभी..बाद में ऐसा मौक़ा आपको मिलेगा नहीं !

ग़ज़ल बी – क्यों नहीं, बार-बार कहूंगी इनके सामने ? [बड़ी बी के सामने मुंह करके, कहती है] बड़ी बी, इन्होने तो आपके वापस लौटने की ख़बर भी सीक्रेट रखी है ! यह तो अच्छा हुआ, मस्तान बाबा की मज़ार पर आपकी पड़ोसन रजिया बीबी ने आपके आने की ख़बर दे डाली हमें ! और अब आते वक़्त, ये सारी रास्ते में मिल गयी....

अनारो मेडम – आपके शऊर अच्छे नहीं लगते, क्या करती ख़बर देकर ? हर छोटी सी बात का, आप तिल का ताड़ बना लेती हैं !

ग़ज़ल बी – [गुस्से में] – क्या बकती हैं, आप ? शऊर आपके बिगड़े हुए हैं, आपको कहाँ फ़िक्र है स्कूल की ? आप तो अपनी सहूलियत को तवज्या देती हुई, रोज़ रेल गाड़ी से आना-जाना करती हैं !

अनारो मेडम – [चिढ़ती हुई, कहती है] – रोज़ आना-जाना करती हूं, अपने पैसों से, आपसे कभी गाड़ी का किराया माँगा नहीं है !

ग़ज़ल बी – जान-बूझकर रोज़ स्कूल देरी से आती है, आप....फिर आप ही, इन मेम्बरान को बोलने का मौक़ा देती हैं ! सोचिये, अगर इंचार्ज देरी से आयेगा, तब ये टीचर्स क्यों नहीं आयेंगे लेट ?

अनारो मेडम – और कुछ कहना है, आपको ?

ग़ज़ल बी – [गुस्से का इज़हार करती हुई, कहती है] – कहूंगी, कहूंगी ! क्या, तुम मेरा मुंह बंद कर दोगी ? यह तो अच्छा है, मेमूना भाई जल्दी आकर प्रेयर का काम संभाल लेते हैं ! आपसे तो अच्छी स्कूल की बच्चियां हैं, जो वक़्त पर स्कूल आ जाती है ! और, इधर आप...?

अनारो मेडम – [बेनियाम होती हुई, कहती है] – आप क्या समझती हैं, इस स्कूल को ? आपकी पारी की आयशा, कब स्कूल से गायब हो जाती है ? मगर आप मुकर्रम ग़ज़ल बी कुछ देखना भी नहीं चाहती हैं, चाहे मामला स्कूल का हो या आयशा बी का...? वे मोहल्ले वाले जब...

ग़ज़ल बी – [बेनियाम होकर, कहती है] – हाय अल्लाह, क्या ज़माना आ गया ? यह मोहतरमा इतना भी नहीं समझती है कि, हम इस इस मोहल्ले की बहू-बेग़म बनकर आयी हैं...इनके लिए हम कोई गैर नहीं, पर्दा करती हैं, इन बड़े-बुजुर्गों से ! हम ठहरी ख़ानदानी, अल्लाह पाक वह दिन न दिखलायें..हम इनसे जुबां..

रशीदा बेग़म – [झुंझलाती हुई, कहती है] – चुप रहिये, यह क्या तू-तू मैं-मैं लगा रखी है ? मैं इस स्कूल की हेड मिस्ट्रेस ठहरी, और मेरे सामने अपनी ज़बान लड़ा रही हो ? हाय अल्लाह, मेरे जाने के बाद तुम कमबख्तों ने स्कूल की सारी इज़्ज़त धूल में मिला दी !

अनारो मेडम – [भोलेपन से] – अरे हुज़ूर, हमने कुछ नहीं मिलाया है ! हम मिलावट करने वाले नहीं, मगर यह ग़ज़ल बी ज़रूर मिलावट करती है ! अरे हुज़ूर, कई मर्तबा इसने मिलावटी तेल-घी से बने पकवान खिलाएं हैं आपको !

[अनारो मेडम की बात सुनकर, बड़ी बी के लबों पर मुस्कान छा जाती है ! इतने में प्यारो तश्तरी में चाय से भरे प्याले लाती नज़र आती है ! सभी मोहतरमाओं को चाय के प्याले थमाकर, वह वापस लौट जाती है ! अब सभी चाय के प्याले उठाती है, और चाय की चुश्कियाँ लेती हुई चाय पीने लगती है ! बड़ी बी चाय पीती हुई, कहती है !]

रशीदा बेग़म – [उनको समझाती हुई, कहती है] – आप दोनों की बदइन्तज़ामी के कारण, अब हमें इन मेम्बरान का केस देखना होगा ! आख़िर, क्या माज़रा रहा ? अब आप जान गयी कि, यह हेड मिस्ट्रेस की कुर्सी काँटों की कुर्सी है ! जिस पर सहजता से, बैठा नहीं जा सकता !

[चाय पीने के बाद, सभी मेडमें ख़ाली चाय के प्याले नीचे रख देती है ! सभी मेडमें उठती है, और वे बड़ी बी से रुख्सत होने की इज़ाज़त लेती है !]

सभी मेडमें – हुज़ूर, अब रुख्सत होने की इज़ाज़त चाहती हैं !

[सभी मेडमें रुख्सत होती है, दूसरी पारी की मेडमें, अपने-अपने घर की तरफ़ रुख करती है ! और, पहली पारी की मेडमें स्कूल की तरफ़ अपने क़दम बढ़ा देती है ! रास्ते में इन लोगों को, रिसेस ख़त्म हो जाने की घंटी सुनायी देती है ! अब चलते-चलते अनारो मेडम, दूसरी मेडमों से कहती है !]

अनारो मेडम – [अपनी पारी की टीचर्स से, कहती है] – बड़ी आयी हेड मिस्ट्रेस बनकर, यहाँ ? कहती है, यह हेड मिस्ट्रेस की कुर्सी, काँटों की कुर्सी है !फिर आगे यह क्यों नहीं कहती है, कि “यह कुर्सी उससे संभाली नहीं जाती, अब..”

रुकसाना बी – क्या करती, बेचारी हेड मिस्ट्रेस ? अजी मेडम, इनकी कुर्सी का एक पहिया क़रीब छ: माह से गायब है ! अब तक वह पहिया चोर को ढूंढ न सकी, तब इस मोहतरमा में कहाँ है इतनी क़ाबिलियत...इस हेड मिस्ट्रेस की कुर्सी पर बैठने की ?

अनारो मेडम – अरी मेरी बहनों ! आप सबको यह समझ लेना चाहिए कि ‘यह कुर्सी डोनेशन से मिली है ! इस तरह डोनर की आबरू रेज़ी नहीं की जाती, आख़िर उसने इस स्कूल को दिया है, लिया नहीं है ! डोनेशन में दी गयी चीज़ की, ख़ामियाँ नहीं निकाली जाती !

रुकसाना बी – तौबा तौबा ! अनारो बी, मैं इस कुर्सी की ख़ामियाँ नहीं निकाल रही हूं ! हम तारीफ़ करते हैं, इस कुर्सी की ! जिसने लम्बे वक़्त से, बड़ी बी के नब्बे किलो के वज़न को संभाल रखा है !

अनारो मेडम – यह सारी ग़लती दाऊद मियाँ की है ! ज़रा उनसे कहकर देखिये, वे ही लाये हैं यह कुर्सी किसी डोनर से ! अरे हुज़ूर, वह नामाकूल तो ऐसा इन्सान है...

रुकसाना – किस तरह का इंसान है ? बताइये, बताइये !

अनारो मेडम - जिसने कबाड़ में रखे सामान से इस कुर्सी को उठायी, और दाऊद मियाँ के साथ भेज दी इस स्कूल में...पाक रमजान माह में भेजकर, जनाब ने उठा लिया मुफ़्त में सवाब ! क्या कहना, उस डोनर के बारे में ? कमबख्त ने, इस तरह...

रुकसाना बी – हाय अल्लाह, यह क्या कह रही हैं आप ? उसने तो नायब तरीक़ा ढूंढ लिया, सवाब लूटने का ! मगर अब करें, क्या ? हुज़ूर, आपने ही कहा कि, “डोनर की आबरू, रेज़ी नहीं करनी चाहिए !” अब आप ख़ुद ही किस मुंह से कह रही हैं, कि “कबाड़ में रहे सामान से......?

अनारो मेडम – ख़ुदा माफ़ करें, मैंने ऐसा कुछ नहीं कहा...कि, यह सक़त सरासर दाऊद मियां की है ! वे बेचारे ठहरे, हुक्म के गुलाम ! जैसा बड़ी बी हुक्म देगी, वैसा ही वे करेंगे !

रुकसाना - दाऊद मियाँ को गुलाम मत कहिये, मोहतरमा ! आपको उनका अहसानमंद होना चाहिए, इस रोज़ के आने-जाने के चक्कर में पड़कर आप कोपियों के बण्डल जांच नहीं सकती...आख़िर जांचने वाला है, कौन ? वे मुअज्ज़म दाऊद मियाँ ही हैं, जो इन कोपियों को जांचकर आपका काम हल्का कर दिया करते हैं !

[चलते-चलते, अब स्कूल का गेट आ जाता है ! मनु भाई की दुकान के पास लगी पत्थर की बैंच पर फन्ने खां साहब, हिदायत तुला, हाजी मुस्तफ़ा, दाऊद मियाँ और दूसरे कई मोहल्ले वाले बैठे हैं ! मगर आज़ साबू भाई बैंच पर न बैठकर, अपनी दुकान पर बैठे-बैठे अपने ग्राहकों को कमठा मेटीरियल बेच रहे हैं ! अब मेडमें दाऊद मियाँ को सलाम करके, स्कूल में चली जाती है ! उनके जाने के बाद, दाऊद मियाँ अख़बार पढ़ते हुए कहते हैं !]

दाऊद मियाँ – [अख़बार पढ़ते हुए, कहते हैं] – जनाब, बम फट रहे हैं ! बुश की फ़ौजों ने इराक को घेर लिया है ! अब तो मियाँ, एटम बम चलेगा ! अब क्या होगा, इस दुनिया का ?

फन्ने खां – रहने दीजिये, हम तो रोज़ पढ़ते है अख़बार ! पढ़ते क्या हैं, जनाब ? ख़ास-ख़ास कतरने भी काटकर अपने पास रख लेते हैं, न मालुम ये कतरने कब काम आ जाए ? देख लीजिये...!

मनु भाई – [दुकान पर बैठे-बैठे, कहते हैं] – हाय अल्लाह ! अब मालुम हुआ, अख़बार को बरबाद करने वाले आप जैसे बुजुर्ग ऐसा काम करते हैं ? फन्ने खां साहब, अख़बार की रद्दी आपके ख़बासत के कारण ही नहीं बिकती है ! अब मुझे सारा मामला समझ में आ गया है, बस जनाब...इस नुक़सान का हर्जाना, आपको देना ही होगा !

फन्ने खां – अरे छोड़िये, कहाँ का हर्जाना ? [दाऊद मियाँ की तरफ़, अपना रुख करते हुए] कहिये, दाऊद मियां जिस बिल्डिंग में प्राइमरी स्कूल चलती है...उस बिल्डिंग का मालिकाना हक़, किसका है ?

दाऊद मियां – आगे आप यही पूछेंगे, आप...कि, उस बिल्डिंग का किराया कब-तक चुकाया गया, और अब कितना बकाया है ?

फन्ने खां – जी हां, यही कहना चाहता था मैं ! मगर क्या मदद करें, आपकी स्कूल की ? आपकी बड़ी बी, ऐसे तो बड़ी-बड़ी बातें करती है ! अगर हम, इस प्राइमरी स्कूल बिल्डिंग के बारे में बात करें...तो यह मोहतरमा बिल्ली की तरह आँखें मूंदकर, चुप-चाप बैठ जाती है !

दाऊद मियां – छोड़िये, इन बातों को ! अभी-अभी आप कुछ कह रहे थे, ना..प्राइमरी स्कूल की बिल्डिंग के बारे में..? कहिये ना, क्या कह रहे थे आख़िर ?

फन्ने खां – देखिये साहब बहादुर, अभी हम रखते हैं सारी रिपोर्ट स्कूल की और स्कूल के स्टाफ की ! अब सुनिए, जनाब ! कई सालों पहले एजुकेशन महकमें ने महकमा-ए-कस्टम से यह बिल्डिंग माह वारी किराए पर ली, अब आपका यह महकमा क़रीब १५ सालों से किराया नहीं चुका रहा है !

दौद मियां – हां जी ! आपकी बात तो सही है ! आज की तारीख में, इतने कम किराए पर कहाँ मिलती है...इतनी, बड़ी बिल्डिंग ?

फन्ने खां – यही बात अब, आपकी मेडम के समझ में नहीं आ रही है !

दाऊद मियाँ – मगर, हम किराया कहाँ से जमा कराएँ ? और आप यह भी जानते हैं कि, किराया जमा कराने की जिम्मेवारी एलिमेंटरी ऑफिस की है ! अब वह जाने, और उसका काम जाने ! हमें क्या ? प्राइमरी पूल बज़ट स्टाफ़ को तनख्वाह भी, यही ऑफिस देता है !

फन्ने खां – इस बिल्डिंग को कौन काम में ले रहा है, जनाब ? ज़रा दिमाग़ पर ज़ोर दीजिएगा ! आप प्राइमरी क्लासेज इसी बिल्डिंग में चला रहे हैं, और इसके साथ इस बिल्डिंग के कमरों पर ताला जड़कर उनको रोक रखा है ?

दाऊद मियां – साफ़-साफ़ कहिये, हुज़ूर !

फन्ने खां – मुझे यह कहना है, हुजूरे आलिया ! कि, फ़ायदा आप ले रहे हैं, और किराया जमा कराने की जिम्मेवारी से आप अपना मुंह मोड़ रहे हैं..जनाब, यह बात अच्छी नहीं है ! इस तरह, आप ग़ैर जिम्मेदार कैसे बन सकते हो मियां ?

दाऊद मियां – अरे हुज़ूर, सच्च यह है कि, “हमारी सेकेंडरी स्कूल से, यह प्राइमरी हिस्सा अलग हो रहा है ! और इस बिल्डिंग में बैठती है प्राइमरी क्लासेज...फिर, काहे हम अपना बज़ट ख़राब करें ?

फन्ने खां – [तेज़ सुर में] – ठीक है, जनाब ! तब छोड़ दीजिये, इस बिल्डिंग पर अपना हक़ ! और ख़ाली कर दीजिये इन कमरों को, जिन्हें आपने रोक रखे हैं..ले जाइए अपना, कबाड़ का सामान ! हम मोहल्ले के लोग मिलकर, बकाया किराया जमा करवा देंगे !

हिदायत तुल्ला – हमारे वार्ड की मेंबर मुन्नी तेलन के शौहर भंवरु खां, एलिमेंटरी ऑफिस में जूनियर अकाउंटेंट के ओहदे पर काम करते हैं ! उनके रसूख़ात से, सारा मआमला निपट जाएगा ! हमने कोशिश नहीं की तो, हमारे मोहल्ले की ग़रीब बच्चियां अनपढ़ रह जायेगी !

फन्ने खां – हम जानते हैं, कोई धन्ना सेठ यहाँ आकर इन ग़रीब बच्चियों के लिए बिल्डिंग बनाने वाला नहीं !

[इन लोगों को गुफ़्तगू करते काफी वक़्त बीत गया, अब घड़ी के दोनों कांटें बारह के अंक पर आकर ठहर गए हैं ! दोपहर के बारह बज चुके हैं, दूसरी पारी शुरू होने का वक़्त होने जा रहा है ! तभी गेट के पास आकर, एक ऑटो रुकता है ! आयशा बी भारी-भारी किताबें लिए, ऑटो से उतरती है ! आयशा भाड़ा चुकाकर, स्कूल का गेट खोलकर अन्दर दाख़िल होती है ! किताबें भारी होने के कारण वह उन्हें संभाल नहीं पाती ! कभी वह किताबें थामती है, तो कंधे से उसका बैग खिसककर नीचे गिरने लगता है ! तो कभी, किताबें ! उसकी यह दशा देखकर, फन्ने खां साहब परेशान हो जाते हैं ! अब वे अपने मुंह बोली भतीजी को, ऐसी समस्या से जूंझते कैसे देख सकते हैं ? फिर क्या ? स्कूल में दाख़िल हो रही एक बच्ची को रोककर, उसे आयशा की किताबें थामने का हुक्म देते हैं !]

फन्ने खां – [आवाज लगते हुए, कहते हैं] – अरी ओ, हाजी साहेब की दख्तर ! ज़रा, आयशा बी की मदद करना ! जा बेटा, मेडम से किताबें लेकर इनके साथ चली जा !

[आयशा फन्ने खां साहेब की तरफ़ देखकर, मुस्कराती है ! फिर, उनको शुक्रिया अदा करती हुई वह उनसे कहती है !]

आयशा – शुक्रिया, चच्चा जान !

फन्ने खां – [नज़दीक आकर, कहते है] – इतना सारा बोझा लिए घूमती हो, बेटा ? इतनी सी ज़ान, और इतना बोझा ? ख़ुदा ना करे, कहीं तुम्हारी तबीयत इन किताबों को संभालते नासाज़ न हो जाय ? मत लाया करो बेटा, इतनी भारी-भारी किताबें ! करना क्या ? दो वक़्त की दाल-रोटी मिल जाए, बहुत है !

आयशा चच्चा ऐसी बात नहीं, इन भारी-भारी किताबों को पढ़कर आपकी दुआ से यह आपकी मेहनती भतीजी कभी इस स्कूल की हेड मिस्ट्रेस बन सकती है ! कहिये, आपकी दुआ हमारे साथ है या नहीं ?

फन्ने खां – ज़रूर, ज़रूर बेटा !

आयशा – आपकी दुआ हमारे साथ है, तब किससे डरना ? चच्चा जान, बुजुर्गों की सच्चे दिल से दी हुई दुआ कभी ख़ाली नहीं जाती !

फन्ने खां – सच्च कहा, बेटा ? एक दिन तुम इस स्कूल की हेड मिस्ट्रेस बनकर, बड़ी बी वाली तीन पहियों की कुर्सी पर बैठकर हमें दिखलाओगी !

आयशा – [रूठती हुई, कहती है] – अरे चच्चा, ऐसे क्यों बोल रहे हैं आप ? मुझे तीन पहियों वाली कुर्सी पर मुझे बैठाकर, आप मुझे नीचे गिराना चाहते हैं ? अरे शरे-ओ-अदब, आप ख़ुद नयी रिवोल्विंग चेयर ख़रीदकर लाओगे मेरे लिए !

फन्ने खां – [खिन्न होकर, कहते हैं] – ये बेकार की बातें छोड़ो, अब जाओ स्कूल में ! न तो तुम्हारी हेड मिस्ट्रेस उलाहने देगी ! हम बेचारे ठहरे रिटायर आदमी, कितनी कठिनाई से इस भारी महंगाई के ज़माने में हमारा घर-ख़र्च चलता है..वह तुम क्या जानो ? इस बची हुई ज़िंदगी का यह ख़ाली वक़्त, सभी ग़म भूलकर किसी तरह गुजारना है..इस बैंच पर बैठकर !

आयशा - जाती हूं, चच्चा ! मगर याद रखना चच्चा, यह आपकी भतीजी आपसे यह रिवोल्विंग चेयर लेकर ही रहेगी !

[आयशा उस दख्तर को लिए, चली जाती है ! अब फन्ने खां साहब वापस आकर बैंच पर बैठ जाते हैं ! फिर, आयशा की तारीफ़ करते हुए दाऊद मियाँ से कहते हैं !]

फन्ने खां – देखो दाऊद मियां, इस बेचारी आयशा को ! बेचारी इतनी सारी किताबों का बोझ लिए घूमती है, बहुत मेहनती है, मियां ! वह दिन ज़रूर आयेगा, जब वह इस स्कूल की हेड मिस्ट्रेस बनेगी !

दाऊद मियां – [धीरे-धीरे, कहते हैं] – और बन जायेगी भार, इस स्कूल पर ! फिर, आपका सर-दर्द अलग से बढ़ा देगी !

फन्ने खां – [तेज़ आवाज में] – क्या कहा, मियाँ ? ज़रा ज़ोर से कहो, मियां सुना नहीं !

दाऊद मियां – कुछ नहीं, जनाब ! बस बिस्मिल्लाहि रहमान का कलमा पढ़ रहा था...आप भी पढ़ लीजिये, हुज़ूर ! बोलिए हुज़ूर, बिस्मिल्लाहि रहमान रहीम...

फन्ने खां – [आँखें तरेरकर, कहते हैं] – मुफ़्त में कलमा क्यों पढूं, मियां ? ख़ुदा रहम, सब खैरियत है ! यहाँ आप, मिठाई-नमकीन लाकर रखते नहीं...और चले मियां, बिस्मिल्लाहि रहमान रहीम बुलवाने ?

दाऊद मियां – मगर, हो क्या गया ? बातों से ही पेट भर लीजिये, जनाब ! आप जैसे रिटायर आदमियों का पेट, अक़सर बातों से भरा जाता है ! अब बुला लीजिये, अपने यार-दोस्तों को ! चलिए मैं आवाज देकर सबको बुला लेता हूं ! [पुकारते हैं] अरे ओ मियां हिदायत तुल्ला ज़रा तशरीफ़ रखना !

हिदायत तुल्ला – अरे जनाब, इतना ज़ोर से मत चिल्लाओ ! हम-सब तो जनाब, यहीं आपके बगल में ही बैठे हैं ! साबू भाई नहीं है, चलिए उनको आवाज दे देता हूं ! [आवाज देते हैं] अरे ओ, साबू भाई ! आ जाइए, आ जाइए जनाब ! दाऊद मियाँ चटपटी ख़बरें लाये हैं, आज !

[इस वक़्त अबू भाई अपने ग्राहक के पास खड़े हैं, और ईटें गिन-गिनकर हाथ ठेले में रखवा रहे हैं ! सुनते ही, साबू भाई के दिल में उतावली का तूफ़ान उमड़ पड़ता है ! और जनाब चल देते हैं, चटपटी ख़बरें सुनने ! पीछे से उनका ग्राहक, उनको आवाज देते रह जाता है !]

ग्राहक – अरे साबू साहब, यों कैसे चल दिए यार ? पहले ईटें तो गिनवा देते, यार मज़दूर इन्तिज़ार कर रहे हैं...कब ईटें आएगी ?

[पत्थर की बैंच पर बैठते हुए ज़ोर से उस ग्राहक को आवाज देते हुए, कहते हैं !]

साबू भाई – [बैंच पर बैठते हुए, कहते हैं] – अरे यार मियां अल्लानूर, यहाँ तो अभी ख़बरों का बम फूटेगा ! अब यार सुनने दो, चटपटी ख़बरें ! तुम सलीम मियां को बुलाकर, ईटें गिनवा लीजिये ! [दाऊद मियां से] अरे मियां, काहे आवाज लगवाकर हमें बुला रहे थे ? ज़रा इशारा कर देते, हम तो बेक़रार बैठे हैं चटपटी ख़बरें सुनने के लिए ! अब जल्दी सुनाइये, ख़बर..

इस पत्थर की बैंच पर इन निक्कमों की बढ़ती भीड़ को देखकर, दुकान पर बैठे मनु भाई घबरा जाते हैं ! फिर क्या ? अपने मुंह से प्यार से भरे लबरेज़ अल्फ़ाजों की जगह अब शोले उगल देते हैं !]

मनु भाई – [गुस्से से] – आ गए, निक्कमों, इस बैंच पर पर बैठकर हफ्वात हांकने ?

[बेचारे दाऊद मियां ने जैसे ही उनके गुस्से के गुब्बार को शांत करने के लिए अपने लबों को खोलना चाहा, तभी बड़ी बी का ख़त लिए मेमूना भाई आ जाते हैं वहां ! और, कहते हैं !]

मेमूना – ओ मनु भाई ! धंधा बाद में कर लेना, अब भी आप आ जाइए यहाँ ! [सभी साथियों को, निहारते हुए] लीजिये, साहब बहादुरों ! यह ख़त क्या है ? पटाका है ! आप में से जो दानिश हो, वह मुअज्ज़म इस ख़त को हाथ में लेकर इसका मज़नून पढ़ लें ! फिर सबको सुना दें, अपने साथियों को !

फन्ने खां – [मेमूना भाई से ख़त लेकर, साबू भाई को थमा देते हैं] – आप पढ़कर सुना दें, साबू भाई ! हमें तो भाई, डर लगता है इन पटाकों से ! आप ठहरे, जंगजू मोहल्ला-ए-आज़म !

साबू भाई – [ख़त को उल्टा पकड़कर, पढ़ने की कोशिश करते हुए] – कितनी मर्तबा साले साहब आपसे कहूंगा, मेरे लिए काला हर्फ़ भैंस बराबर ! मैं तो ठहरा अंगूठा-छाप, इसलिए अब कहूंगा कि “काला हर्फ़ गधा बराबर !” अब यह मत पूछना, कि यह गधा कौन है ?

दाऊद मियां – अरे हुज़ूर, इस तुकमें को हमेशा के लिए आप अपने साले साहब को तौहफ़े में दे दें ! बड़े दिल-ए-अज़ीज़ ठहरे, आपके ! अब मैं क्या कहूं, इनको ? जनाब इतने बड़े हर्फ़ आशना होते हुए भी, ज़ाहिलों की तरह ख़त पढ़ने से घबरा रहे हैं ?

फन्ने खां – अरे ओ दुल्हे भाई ! दाऊद मियां तो ठहरे, हरार्फ़ ! मगर, आप तो हमें गधे के ओहदे से नवाज़ा न करें ! ना तो हम आपा से कहकर, आपके सामने यह सवाल खड़ा कर देंगे कि “गधी से निकाह करने वाले आप... आख़िर इंसान हैं या ग...ग.....?

साबू भाई – हट साले, काहे की बकवास करता है ? लाहौल विला कूवत..

फन्ने खां – लाहौल लाहौल न बोला करें, हम लाहौर के रहने वाले हैं ! लाहौल के नहीं ! अब आप ख़त दीजिये, पढ़ लेते हैं आख़िर ! आप भी यार, याद रखेंगे हमें !

[उनसे ख़त लेकर पढ़ने की कोशिश करते हैं, मगर ख़त का मजनून ऐसा आता है..मियां के हाथ कांप जाते हैं, और मुंह पर लग जाता है ताला ! बेचारे, हकलाते हुए इतना ही बोल पाते हैं !]

फन्ने खां – [हकलाते हुए, कहते हैं] – य..य..ह, क्या क्या लिखा है ?

साबू भाई – क्या हुआ ? आगे बोला नहीं जा रहा है ? ज़बान तालू पर कैसे चिपक गयी, मियां ?

फन्ने खां – ख़ुदा रहम, अब आगे पढ़ा नहीं जाता ! दुल्हे भाई, बीच में टोका न करो ! अब आप ख़ुद ही पढ़ लीजिएगा, बीच में टोककर हमारे शगुन गारत कर डाले आपने !

साबू भाई – [तमतमाए हुए, कहते हैं] - क्या बार-बार हमें पढ़ने का कह रहे हैं, जानते नहीं ? हमें पढ़ना आता नहीं ! अब आप आगे पढ़ रहे हैं, या आपकी शान में कुछ ग़ज़ल मुरस्सा सुनाऊं आपको ? साले साहब आपने कुछ सुना, या कानों में आपने रुई डाल रखी है ?

फन्ने खां – अब मूड नहीं है, पढ़ने का ! सारा मूड ख़राब कर डाला, इस ख़त ने ! इंस्पेक्शन करके हमने सोचा कि, अब बड़ी बी खुश होगी और हमारी तारीफ़ करेगी ! और, कहती रहेगी कि शाबास, मेरे मुअज्ज़मों ! हमारे जाने के बाद बद इन्तजामी करने वाले स्टाफ़ को अच्छा सबक दिया आपने !मगर, हाय री हमारी क़िस्मत ?

दाऊद मियां – [उठाते हुए, कहते हैं] – इज़ाज़त चाहता हूं !

[दाऊद मियां का हाथ पकड़कर वापस बैठा देते हैं, फन्ने खां ! फिर कहते हैं, उनसे !]

फन्ने खां – आप उठकर कहाँ चल दिए, साहब बहादुर ? अभी तो बम-पटाके छूटे हैं, अब आपकी दिल-ए-तमन्ना से शोले भी भड़केंगे ! फिर जनाब, आप भागते कहाँ हैं ? अब देखते जाइए, इन भड़कते शोलों का मंज़र !

दाऊद मियां – शरे-ओ-अदब ! इस वक़्त हम स्कूल में हाज़र नहीं हैं, और यहाँ बैठे हैं आपसे गुफ़्तगू करने ? हाय अल्लाह, भड़कते शोलों का मंज़र हमें यहाँ नहीं मगर वहां स्कूल में ज़रूर दिखाई दे जाएगा ! फिर क्या ? आप जैसे बुजुर्गों को भड़काने का आरोप हम पर लगा दिया जाएगा !

फन्ने खां – साफ़-साफ़ कहो, ना ! क्यों पहेलियां उलझा रहे हैं, आप ?

दाऊद मियां - अरे यार, कभी तो अक्ल से काम में लिया करो ! आप यहाँ बैठे शोले भड़काते रहना ! मगर, हमारी बेगुनाही किसी को नज़र आएगी नहीं ! वहां स्कूल में बैठे हमारे दुश्मन माचिस की तिल्ली जलाकर, सालों से कमाए हमारे वसूक को भड़कते शोलों में में झोंक देंगे ! [उठते हैं]

फन्ने खां – [दाऊद मियां का हाथ पकड़कर, उनको रोकते हुए कहते हैं] – आराम से चले जाना, मगर जाते-जाते आप यह यह बताते जाइए कि ‘इस ख़त के मज़नून के पीछे, इतनी अक्ल और होश्यारी किसकी है ? यह ऐसा अक्ले सलीम कौन है ? जिसने अपने दानिश दिमाग़ का, इस्तेमाल किया है ?

हाजी मुस्तफ़ा – अरे, दाऊद मियां ! यह भी बताते जाओ, छूटने वाले बम-पटाकों की ख़बर आपको कैसे मालुम हुई ?

दाऊद मियां – [फन्ने खां का हाथ छुड़ाते हुए, कहते हैं] – छोड़िये, हमारा हाथ ! कहीं आपने हमें छोटा शकील समझ रखा है, क्या ?

साबू भाई – [हंसते हुए, दाऊद मियाँ से कहते हैं] – जनाब, हमारे साला साहब ऐसी गुस्ताख़ी नहीं कर सकते ! आप ठहरे, दाऊद इब्राहीम ! हम जानते हैं, हम आपको छोटा शकील का ओहदा नवाज़ नहीं सकते ! क्योंकि वह ठहरा, आपका शागिर्द !

हिदायत तुल्ला – उस शकील को अंडरवर्ल्ड की ए बी सी डी सिखाने वाले आप हैं, दाऊद इब्राहीम ! अरे हुज़ूर, ऐसा तालीमयाफ़्ता शागिर्द पाकर आप कहाँ फ़िक्र करने बैठ गए ?

फन्ने खां – अरे हुज़ूर, आप तो वह हस्ती हैं, जो आये-दिन बम फोड़ते आये हैं ! कभी बम्बई में तो कभी दिल्ली में ! फिर आप इन छोटे-बड़े शोलों से क्यों डरते हैं, बिरादर ?

[दाऊद मियां हंसते हुए, वापस बैठ जाते हैं ! फिर, उनसे कहते हैं !]

दाऊद मियां – [बैंच पर बैठकर, कहते हैं] – साहब बहादुरों ! हम तो छोटे आदमी ठहरे, आप इतनी ऊंची हांककर हमें राय के पहाड़ पर मत चढ़ाइए यार ! चलिए, अब मैं आप लोगों को क्लू देकर चला जाता हूं, फिर बाद में आप सोचते रहना ! सुन लीजिये, यह ख़त मैंने नहीं लिखा..ना यह मेरी लिखावट है !

फन्ने खां – हां, हां जानते हैं आपकी लिखावट तो ऐसी है जनाब...लिखे मूसा, और पढ़े ख़ुदा ! अब आप, आगे बोलिए !

दाऊद मियां – अब आप अपने दिमाग़ पर ज़ोर लगाकर सोचिये, कि ‘इस स्कूल में तीन दफ़्तरेनिग़ार हैं, एक तो मैं बरी हो गया और दूसरे ठहरे जमाल मियां..उनके हर्फ़ ऐसे हैं, मानों हजारों चिट्टियां एक साथ रेंग रही हो !’ अब आप सोचिये, बाकी रहा कौन अक्लेकुल ? अब चलता हूं, आप सोचते रहना !

[मेमूना भाई और दाऊद मियां रुख्सत होते हैं ! उनके जाने की पदचाप सुनायी देती है !]

हिदायत तुल्ला – अब मैं आपसे, क्या कहूं ? वार्ड मेंबर साहिबा के ख़ास पी.ए. हम हैं, और हमने नगर परिषद के कई ठेके हासिल किये हैं ! चाहे वह ठेका कचरा उठाने का हो, या मरे हुए जानवर उठाने का ! अजी जनाब हमें तो अच्छा-ख़ासा तुजुर्बा रहा है, मरे हुए जानवर का पता लगाने का ! सूंघकर बता देते हैं, जी !

साबू भाई – आगे कहिये, ठेकेदार साहब ! चुप रह गए, तो हम ठेका उठाकर बाजी मार लेंगे ! फिर, सारा फ़ायदा हमको ही होगा !

हिदायत तुल्ला – अरे साहब, हम तो हैरान हैं ! रहस्य को खोल देने वाली हमारी सूंघने की पॉवर को, न मालुम क्या हो गया ? हाय अल्लाह ! इस ख़त की जानकारी, दाऊद मियां को कैसे लग गयी ? और हमें नहीं, आख़िर क्यों ?

फन्ने खां – गलियों में मरे कुत्ते ही सूंघते रहोगे, या कभी-कभी अपनी नातिका का रुख़, सरकारी तौर-तरीक़े की तरफ़ कीजिये तो...माशाअल्ला दिमाग़ की सारी खिड़कियाँ खुल जायेगी !

हिदायत तुल्ला – अब आप ही तकल्लुफ़ करके बता दीजिएगा, जनाब ! फिर, हमें काहे की तकलीफ़ करने की ज़रूरत ?

फन्ने खां – देखिये, मैं हूं रिटायर हो चुका सरकारी कर्मचारी ! मेरी नातिका सूंघकर कह रही है..जमाल मियां का डिस्पेच रजिस्टर ज़्यादातर दाऊद मियां के पास ही रहता है ! बस, फिर क्या ? ख़त डिस्पेच होते दौरान, ख़त का सारा मजनून उन्होंने भांप लिया !

साबू भाई – हिदायत तुल्ला साहेब, अब आप अपने दिमाग़ से मरे ज़ानवरों की बदबू को निकाल फेंकिये ! ना निकाल पाए तो, बोर्ड की मिटिंग में बनने वाले प्रपोज़ल से आप हाथ धो बैठेंगे ! ठेका किसी दूसरे आदमी के नाम, निकल जाएगा !

हिदायत तुल्ला – जनाब, स्कूल में हौदे और पाखाने बनाकर.. ऐसा कौनसा ताज़महल आपने खड़ा कर डाला ? जहां तक मैं जनता हूं, आज़-तक आपको नगर परिषद से भुगतान मिला नहीं है ! अब काहे के बने हैं आप, मोहल्ला-ए-आज़म ? जो जगह-जगह जाकर रोता है कि, “ऐसा कौनसा गुनाह हो गया हमसे, जो अभी-तक हमें नगर परिषद से पेमेंट नहीं मिला ?”

मनु भाई – [दुकान पर, बैठे-बैठे कहते हैं] – आला काम करने के पैसे मिलते हैं, जनाब ! प्याऊ के पास पाख़ाने बना डाले, और बदबू फैला दी पूरी स्कूल में ! इस बदबू के कारण बेचारी बच्चियां क्लासों में न बैठकर, बगीचे में बैठा करती है ! ऐसे काम करते हैं, अपने ये मोहल्ला-ए-आज़म..फिर कैसे भुगतान करेगी, यह नगर परिषद ?

हिदायत तुल्ला – छोड़िये इस बदबू को, हमें कब जाना है बदबू सूंघने ! [फन्ने खां से, कहते हैं] फन्ने खां साहेब आप बताइये, ख़त का मजनून क्या है ? जिसे पढ़कर, आपके होश क्यों उड़े ? जल्दी कीजिये, अब भड़का दीजिये शोले !

फन्ने खां – अभी भड़काता हूं, शोले ! पहले आप तसल्ली से सुन लीजिये, ख़त बड़ी बी ने भेजा भेजा है ! लिखा है, “यह सरकारी स्कूल है, यहाँ काम करने वाले हैं सरकारी मुलाज़िम ! आप लोगों ने उनके काम में दख़ल डालकर, न्यूसेंस पैदा किया है ! जो एक लीगल ओफेंस है !

साबू भाई – यह ओफेंस क्या होता है ? और जनाब, यह इलीगल क्या बला है ?

फन्ने खां - ओफेंस यानी अपराध, जुर्म..समझ में आया, दुल्हे भाई ? जिसकी सजा कम से कम छ: माह की कैद है !

[फन्ने खां साहेब की बात सुनकर, साबू भाई घबरा जाते हैं ! उनके कमजोर दिल की धड़कन बढ़ जाती है, और हाथ-पाँव ऐसे धूज़ते हैं मानों उन्हें मलेरिया बुखार आ गया हो ? अब उनका बदन काबू में नहीं रहता, जिससे सर पर रखी पगड़ी ज़मीन पर गिर जाती है !]

फन्ने खां – साहबे आलम, आपका ताज गिर पडा है ! आपका शाही तख़्त हिल रहा है !

साबू भाई – [झल्लाते हुए, कहते हैं] – छोड़ो यार, अब कौन है साहबे आलम ? हम तो ठहरे, मज़दूर आदमी ! जो मेहनत की दो रोटी, प्याज और नमक के साथ खाता है ! [दोनों हाथ सर पर रखते हुए, कहते हैं] कहाँ फंसा दिया, साले साहब आपने ? बना दिया मुझे सिराजुद्दोला, और ख़ुद बन बैठे मीरजाफ़र ! हाय अल्लाह, अब क्या होगा ?

[ज़मीन से पगड़ी उठाकर, वापस उसे अपने सर पर रखते हैं ! तभी मनु भाई मुस्कराकर, कह देते हैं !]

मनु भाई – [मुस्कराकर, कहते हैं] – अब होना क्या ? सजा होगी, और क्या ? और जायेंगे आप दोनों, सरकारी ससुराल ! वहां बैठकर, साले साहब आपके पाँव दबायेंगे, ख़िदमत करेंगे और वहां बैठकर आपके साथ खेलेंगे शतरंज ! ख़ुदा रहम, तब कहीं जाकर इस बैंच से पीछा छूटेगा...तब कहीं जाकर दो पैसे, कमा लेंगे..अल्लाह पाक के फ़ज़लो करम से !

साबू भाई – यह बात अच्छी नहीं है, मनु भाई ! मेरे किरायेदार होकर, मुझे ही महबस भेजने की बात करते हैं आप ? वाह माशाअल्ला, क्या ज़माना आया है ? मेरी बिल्ली, और मुझसे ही म्याऊं..?

मनु भाई – साहबे आलम ! किस होश में हैं, आप ? किराए देकर दुकान चला रहे हैं, मेहनत की खाते हैं ! सबसे रसूख़ात रखते है १ किसी दूसरे के पचड़े में अपनी टांग नहीं फंसाते और न किसी की दुकान पर बैठकर हथाई करके उसका धंधा बरबाद करते हैं !

साबू भाई – [सर पकड़े हुए, कहते हैं] – अरे मनु भाई, मेरे हमदर्द ! अब क्या करना होगा, मुझे ? मुझे तो पुलिस की मार से बहुत डर लगता है !

फन्ने खां – [गुस्से में] – यह क्या ? साहबे आलम होकर आपका ऐसा कहना, आपकी तहज़ीब में नहीं आता ! अब, फ़िक्र काहे की ? आख़िर, आप मोहल्ला-ए-आज़म यानी मोहल्ले के शहंशाह हैं ! इस तरह आपके द्वारा ऐसी टुच्ची बात करना, आपकी शान के खिलाफ़ है !

साबू भाई – [झुंझलाये हुए] – भाड़ में जाए, साहबे आलम और उसकी यह झूठी शान और तहज़ीब ! हम जैसे थे, वैसे ही ठीक हैं ! [मनु भाई की मनुआर करते हुए] मनु भाई मेरे दोस्त, इधर आ मेरे यार ! बड़ी बी के पास शिफ़ाअत लगा कि, ‘इस मामले में, तेरे इस मग़मूम दोस्त की कोई सक़त नहीं है !’

मनु भाई – [हंसते हुए, कहते हैं] – बिरादर, हमारी क्या औकात ? आप तो हमारे आका हैं, और हम ठहरे आपकी बिल्ली...जो म्याऊं म्याऊं करने के अलावा, बेचारी क्या कर सकती है...हुज़ूर ?

अबू भाई – [हाथ जोड़कर, कहते हैं] – मान जाओ, मनु भाई ! इस मामले एन तुम तो पूरे न्यूट्रल रहे, अब बड़ी बी से मिलकर इस मआमले को रफ़ा-दफ़ा करवा दे मेरे यार ! रिफ़्क़ [शिष्टता] रखते हुए, कुछ कर मेरे भाई ! अब यह मआमला, तुम्हारे हाथ में है !

फन्ने खां – [साबू भाई को, चढ़ाते हुए] – हुजूरे आलिया, आप हैं साहबे आलम ! अब ऐसा हो नहीं सकता, जनाब ! आप मूंछें नीची नहीं कर सकते, साहबे आलम !

साबू भाई – [मूंछें नीची करते हुए, कहते हैं] – क्यों नहीं कर सकता, जनाब ? दुकानदार ठहरा, हिरफ़ा करता हूं...धंधे वाला, ठहरा ! आख़िर, बनिए की मूंछ का क्या मोल ? दिल चाहा ऊँची कर ली, दिल न चाहा तो नीची कर ली !

[मेमूना भाई वापस आते हैं, सभी मेम्बरान को इजलास [मिटिंग] में आने की बात कहते हैं !]

मेमूना भाई – बड़ी बी ने कहलाया है, आप सभी मेम्बरान को इजलास में जल्द हाज़िर होना है ! उन्होंने अभी, इमरजेंसी इजलास [मिटिंग] रखी है !

साबू भाई – [खुश होकर, हिदायत तुल्ला से कहते हैं] – चलिए, चलिए ! अब मआमला रफ़ा-दफ़ा हो जाएगा ! सब पहले जैसा हो जाएगा ! [मनु भाई से] उठिए मनु भाई ! ज़रा इजलास में चलकर, मआमला सुलझा दीजिये !

फन्ने खां – होशियार...बाअदब ! अभी वक़्त नहीं आया है, कोई स्कूल के अन्दर जाने की जुरअत नहीं करेगा !

[स्कूल के अन्दर जहां हौदा बना हुआ है, उस ओर फन्ने खां साहेब उंगली से इशारा करते हुए कहते हैं !]

फन्ने खां – देखिये उधर, ज़रा गौर करके...हाय अल्लाह, वहां हौदे के पास वह गोलियां-बिस्कुट बेचने वाली मिरासन बुढ़िया और आक़िल मियां क्या मुआइना कर रहे हैं ?

[पानी के हौदे के पास, आक़िल मियां व मिरासी जाति की बुढ़िया वहां खड़े हैं ! और, पास खड़े तौफ़ीक़ मियां, उस ज़मीन के टुकड़े को फीते से नाप रहे हैं ! वे ख़ाली ज़मीन के टुकड़े को फीते से नाप ही रहे थे, तभी बड़ी बी वहां मुआइना करने पहुंच जाती है ! इस मंज़र को देखते ही, फन्ने खां साहब का सर घूम जाता है ! दिमाग़ में हलचल पैदा होती है ! फिर क्या ? साबू भाई की दुकान पर बैठे उनके बेटे सलीम को बुलाकर, हुक्म देते हैं !]

फन्ने खां – [सलीम से, कहते हैं] – अरे ओ, सलीम मियां ! ज़रा स्कूल के हौदे के पास जाकर तहक़ीकात करना..आख़िर, वे लोग वहां क्यों इकट्ठे हुए हैं ? माज़रा क्या है ?

[दुकान से उठकर सलीम मियां, अपने क़दम हौदे की तरफ़ बढ़ाते हैं ! उनके जाने से उनकी पदचाप सुनायी देती है ! मंच पर, अँधेरा छा जाता है !]

अंक ४ मंज़र ५इजलास न होगी !राक़िम दिनेश चन्द्र पुरोहित

[कुछ देर बाद, मंच रोशन होता है ! सलीम मियां वापस लौटकर आते हैं ! आते ही, जनाब फन्ने खां साहब से कहते हैं !]

सलीम – [फन्ने खां से] - मामूजान कोई ख़ास बात नहीं, आप फ़िक्र न करें ! वे लोग आपके बनवाये गए हौदे के पास वाली ज़मीन का मुआइना कर रहे हैं !

फन्ने खां – वाह मियां, यह ख़बर बेफिक्र बैठने की है ? वह हौदे के पास वाली जगह कोई सैर-ओ-तफ़रीह करने की ठौड़ तो नहीं है ?

सलीम – कैसी बहकी बात कर रहे हैं, मामूजान आप ? क्या यह वक़्त है, तफ़रीह करने का ?

फन्ने खां – ज़रा उम्र बढ़ गयी है, अब बर्दाश्त करने की ताकत इस बदन में रही नहीं ! बेटा बुरा न मानना, अब तसल्ली से बयान करो ! [तल्खी से ] सलीम मियां आपको तहक़ीकात करने भेजा, कोई बटेर का शिकार करने नहीं !

सलीम – यही तो बयान कर रहा हूं, मामूजान ! मगर, आप मुझे आगे बोलने ही नहीं दे रहे हैं ? आपकी ज़बान को, क्या हो गया ? अल्लाह पाक जाने, आज़कल आपकी ज़बान को क्या हो गया ? वह तो...

साबू भाई – [सलीम की बात, पूरी करते हुए] – रुकने का नाम ही नहीं लेती....यही बात है ना, बेटा ? अब तू डर मत ! तसलीमात बयान कर !

सलीम – इस बुढ़िया को आप सभी जानते ही हैं, यह इस मोहल्ले की हर गली में घूम-घूमकर गोलियां-बिस्कुट बेचा करती थी ! क्या, अब आप सबको याद आया ?

हाजी मुस्तफ़ा – अरे साहबज़ादे, यह तो वही बुढ़िया है....जो अपनी भरी जवानी में सियासती पार्टी की लीडर बनी घूमा करती थी ! क्या कहूं, इस मुल्क के मरहूम वज़ीरे आज़म से पर्सनल रिलेशन थे, इस कमबख्त मिरासन के !

साबू भाई – होते भी क्यों नहीं, जवानी की डगर पर यह बुढ़िया कमाल की खूबसूरत रही है ! दोस्तों, एमरजेंसी के वक़्त यह मिरासन नौजवानों के मोर्चे की ख़ास पसंदीदा वर्कर बन बैठी थी...अपनी खूबसूरती के बल पर !

फन्ने खां – अब यह मिरासन बुढ़िया हो गयी है, साहबे आलम ! और, जनाब आप भी बूढ़े हो गए हैं ! अब आप, काम की बात पर आ जाइए ! [सलीम से] बोल बेटा, आगे क्या हुआ ?

सलीम – आगे बोलने तो देते नहीं, बोलता हूं तो...

फन्ने खां – अब चुप बैठेंगे, बेटा ! तुम बयान करो, आगे क्या हुआ ?

सलीम – वह बुढ़िया अल्लाह पाक के घर जाने के पहले, एक प्याऊ बनवायेगी ! ख़ुद वहां बैठकर, वह अपने हाथों से स्कूल की बच्चियों को पानी पिलाना चाहती है !

हिदायत तुल्ला – वाह भाई, वाह ! एक मिरासन होकर, ऊंची जाति की छोरियों को पानी पिलाएगी..यह कैसे हो सकता है ?

सलीम – क्या बात है, चाचाजी ? आप वहां बैठकर पानी पिलाना चाहते हैं, क्या ? आपकी मंजूरी हो तो उस बुढ़िया को कहकर आ जाऊं ? वह आपको बैठाकर, बेफिक्र हो जायेगी !

हिदायत तुल्ला – मेरी बात छोड़, पहले तू अपनी बात पूरी कर मियां !

सलीम – सुनिए, हुज़ूर ! उसका कहना है कि, इस नेक काम करने पर अल्लाहताआला उसे जन्नतुल फ़िरदोस में आला मुकाम अता करेगा ! अब सुनो, पहले बड़ी बी व आक़िल मियां ने...

फन्ने खां – ऐसा-वैसा कुछ कहा, तो नहीं ? ऐसी बात है तो प्यारे, आज ही चलकर लोहा ले लेते हैं !

सलीम – मामू रहने दो, बुढ़ापे में अपने हाथ-पाँव तुड़ा बैठेगे ! सुनिए, अब ! उसे लेजाकर पहले, भंवरु खां साहब की बनाई प्याऊ और पाखानों के बीच की ज़मीन दिखलायी ! तब उस नासपीटी ने अपना नाक बंद करके कह दिया कि, “यहाँ मैं, कभी नहीं बनाऊंगी प्याऊ ! यहाँ किस कमबख्त उल्लू की औलाद ने, पाख़ाने बनाकर बदबू फैला रखी है ?”

[यह बात सुनकर, साबू भाई का क्या बुरा हाल हुआ होगा ? वह तो ख़ुदा ही जाने ! मगर अब,सलीम मियां की कही बात सुनकर साबू भाई के राक़िब मियां हिदायत तुल्ला चहकने लगे !]

हिदायत तुल्ला – [चहकते हुए, कहते हैं] वाह, सलीम मियां ! क्या बात कह दी, आपने ? अब आप अपने अब्बा हुज़ूर से कह दो, अब ठेकेदारी से मुंह मोड़ लें ! ऐसे काम करना, उल्लूओं के लिए अच्छा नहीं ! बस, यह काम हमारे लिए छोड़ दें !

साबू भाई – वज़ा फ़रमाया, हिदायत साहब आपने ! अब आप पाख़ाने बनाते रहना, और वहीं बैठकर पैख़ाना की ख़ुशबू लेते रहना !

फन्ने खां – छोड़िये साहबे आलम, यह बदबू और कहीं फैलाते रहना ! [सलीम से] सलीम मियां, बार-बार आप रुकते क्यों हो ? बयान करो, आगे क्या हुआ ?

सलीम – क्या बयान करूँ, मामू ? मुझे बोलने कोई देता नहीं, बार-बार बीच में कोई खड़ा होकर अपनी पूंगी बजा देता है ! सुनो, उस बुढ़िया ने धमकी दे डाली “अगर सही ज़मीन उसे न दिखलाई गयी तो, वह किसी दूसरी स्कूल में जाकर, अपने पैसों से वहां प्याऊ बना देगी !”

फन्ने खां – फिर, क्या हुआ बेटा ?

सलीम – आख़िर, होना क्या ? हेड पम्प और हौदे के बीच की ज़मीन उसे दिखलाकर, बड़ी बी ने उस खूसट बुढ़िया से उसकी रज़ामंदी ले ली ! अब कल से कमठा शुरू हो जाएगा ! जिसके ठेकेदार रहेंगे, पड़ोस के मोहल्ले में रहने वाले ठेकेदार नूर मियां !

हिदायत तुल्ला – [साबू भाई से] - वाह साहबे आलम, आपका तख़्त हिल चुका है ! अब दूसरे मोहल्ले के ठेकेदार यहाँ आकर, आपको मिलने वाले ठेके आपसे छीनकर ले जाते जा रहे हैं !

साबू भाई – आप भी तो इसी मोहल्ले में रहते हैं, आप से भी बड़ी बी काम करवा सकती थी ! मगर, हाय अल्लाह ! उन्होंने मरे जानवरों की लोथ उठाने वाले आप जैसे ठेकेदारों को, इस कमठे के काम के लिए वाज़िब न समझा ?

फन्ने खां – भाइयों, हमारे मोहल्ले के साथ ज़्यास्ती हुई है ! नगर परिषद से ठेका हासिल करने वाले इसी मोहल्ले के दोनों ठेकेदार यहाँ मौज़ूद है, अगर दूसरे मोहल्ले के ठेकेदार अब यहाँ आकर प्याऊ बनाकर चले गए तो हमारी आबरू रेज़ी हो जायेगी ! अब कुछ करो, भाइयों ! यह आँखों देखते, हम यह जुल्म बर्दाश्त नहीं कर सकते !

साबू भाई – आबरू रेज़ी हो जायेगी नहीं, आबरू रेज़ी हो गयी साहबज़ादों ! हम मोहल्ले के ठेकेदारों को, चुल्लू भर पानी में डूबकर मर जाना चाहिए ! [हिदायत तुल्ला का कंधा झंझोड़कर, कहते हैं] क्यों हिदायत तुल्ला साहब, सुन रहे हैं आप ? सैय्यद, पठान, क़ायमख़ानी, मेरावत वगैरा सभी ऊंचे ख़ानदानी मुअज्ज़म इस मोहल्ले में बैठे हैं, और यह मिरासी ख़ानदान की बुढ़िया...

हिसायत तुल्ला – किसी दूसरे मोहल्ले के ठेकेदार से प्याऊ बनवाकर, हमें आइना दिखलाती हुई यहाँ से चली जाय ? यह कैसे हो सकता है, भाइयों ?

साबू भाई – [फन्ने खां से] – अरे ओ, साले साहब ! जंगाह में...

[तभी फन्ने खां साहब को, सामने से आ रहे साईकल सवार भंवरु खां नज़र आते हैं ! बेचारे भंवरु खां को क्या मालुम, कि मोहल्ले के निक्क्मों की गैंग मनु भाई की दुकान के सामने लगी बैंच पर बैठी उनका इंतिज़ार कर रही है ? वे तो बेचारे निकले थे, अपने ग्राहकों से उगाही करने ! अब फन्ने खां साहब की पुकार, उनके कानों में क्या गिरी ? ग़लती से उन्होंने, उगाही के बकाया पैसे आने का मुज़्दा समझ लिया ! यह अच्छा शगुन समझकर, साईकल का रुख उन बैठे मुसाहिबों की तरफ़ कर डाला !]

फन्ने खां – [भंवरु खां साहब को पुकारते हुए, कहते हैं] – अरे ओ, भंवरु खां साहब ! जनाब, इधर तशरीफ़ रखें !

[उनको ऐसा लगा कि, जनाब फन्ने खां साहब अब अखबारों के बकाया बिल का भुगतान करना चाहते होंगे ? भंवरु खां अपनी साईकल को स्टैंड पर लगाकर, खड़ी कर देते हैं ! फिर उन निक्कमों के निकट आकर कहते हैं !]

भंवरु खां – [निकट आकर, कहते हैं] – असलाम वलेकम ! इस नाचीज़ को कैसे याद किया, जनाब ?

फन्ने खां – वालेकम सलाम ! मियां, खैरियत है ?

भंवरु खां – [बैंच पर बैठते हुए, कहते हैं] – आप जैसे मुकर्रम की दुआ से खैरियत है, हुज़ूर ? जनाब, आपसे अर्ज़ है कि ‘छ: माह से आप अख़बार के पैसे नहीं दे रहे हैं, आप ? हमने सुना है, आज आपकी पेंशन आ गयी है ! हुज़ूर की मेहरबानी से आज हमें, अख़बार के बकाया बिल का भुगतान मिल जाएगा ना ?’

भंवरु खां – पेंशन लाने कैसे जाएँ, जनाब ? यहाँ तो हम इस मोहल्ले की हर्ज़-बुर्ज़ से, निज़ात नहीं पा रहे हैं ! एक ख़त्म हुई, तो दूसरी हर्ज़-बुर्ज़ तैयार ! ख़त्म होने का नाम भी नहीं लेती, हुज़ूर ! अब और आपसे क्या कहूं, जनाब ? यहाँ तो इस मोहल्ले में ख़ानदानी लोगों को जीने का हक़ नहीं, जब-तक ख़ुद वज़ीरे आला हमारे हक़ों को मंसूख न कर दें !

भंवरु खां – [इनकी बातों में, रूचि लेते हुए] – ऐसा कौनसा वाकया हो गया, हुज़ूर ?

फन्ने खां – देखिये हुज़ूर, याद है आपको..आपने अपनी अम्मीजान के हुक्म से, इस स्कूल में एक प्याऊ बनवायी ? अब आपको मालुम होना चाहिए कि, ‘एक भी स्कूल का चपरासी इस प्याऊ की सफ़ाई नहीं करता, और ना ये लोग टंकियों को साफ़ करके उसमें आबेजुलाल [साफ़ ताज़ा पानी] भरते हैं !’

साबू भाई – और जनाब ये चपरासी, इन मासूम बच्चियों को कीड़े वाला पानी पीने को मज़बूर करते हैं ! प्याऊ के दरवाज़े के पास, काई जमी रहती है ! इस काई के पास ही आक़िल मियां ने एक पांच पत्ती वाली नीले फूलों की बेल अलग से लगा रखी है ! फिर वहां ठंडक पाकर, इन मधुमक्खियों ने...

भंवरु खां – इन मधुमक्खियों ने क्या कर डाला, जनाब ? कहीं ऐसा तो नहीं आपने उनका शहद चुराकर आप अकेले उसे चट कर गए...?

साबू भाई – मज़हाक नहीं, हुज़ूर ! इस बेल की कई डालियों पर, फानूस की तरह मधुमक्खियों के छत्ते लटक रहे हैं ! अरे हुज़ूर हमें यह डर है, कहीं किसी बच्ची को ये मधुमक्खियां काट न जाएँ ?

हाजी मुस्तफ़ा – वज़ा फरमाया, हुज़ूर ! एक बार हमारी भोली-भाली छोरी को एक मधुमक्खी ने उसके लबों पर डंक मार दिया ! उस बेचारी के लब ऐसे फूल गए, मानों वे लब नहीं बल्कि वे फूले हुए गुब्बारे हों ? अजी भला हो, हमारे किरायेदार रहीम साहब का ! उन्होंने एक डेकाड्रोन का इंजेक्शन लगाकर, उस मधुमक्खी के ज़हर को बेअसर कर डाला !

फन्ने खां – आपकी प्याऊ की कद्र करने वाला, अब इस स्कूल के स्टाफ़ में कोई नहीं ! एक शिकायत और है, इस प्याऊ को कबाड़ का सामान रखने की जगह बना डाली इन नामाकूल चपरासियों ने ! ठूंस-ठूंसकर कबाड़ का सामान रखते हैं, हुज़ूर ! इधर पास वाले पाखाने से आने वाली बदबू, नाक़ाबिले बर्दाश्त है ! जिसने बच्चियों का, क्लास में बैठना दूभर कर दिया !

हिदायत तुल्ला – अरे हुज़ूर, इस प्याऊ के पास दो मिनट खड़े हो जाय, तो उल्टियां होने लगती है ! इस पाखाने की बदबू ने, बच्चियों का सुख-चैन छीन लिया !

भंवरु खां – आप यह बताएं कि, अब मुझे क्या देखना ? प्याऊ बनवाकर बड़ी बी को, रख-रखाव के लिए दे दी इसको ! डोनेट करने के बाद, ख़ानदानी आदमी उसकी तरफ़ देखा नहीं करते...न तो उनको सवाब नहीं मिलता ! अब बड़ी जाने, इसको कैसे काम में लें ?

फन्ने खां – अरे जनाब, आप समझे नहीं ! बड़ी बी को मर्ज़ लग गया है कि, किसी तरह इस प्याऊ को कबाड़ बना दिया जावे ! फिर नया डोनर लाकर, उससे किसी दूसरी जगह उसके नाम की प्याऊ बनवा दी जाए ! इस तरह तो हुज़ूर, इस स्कूल की चारदीवारी के चारों ओर प्याऊ बनवा दी जायेगी..इस बड़ी बी के, तौर-तरीक़ों के कारण ?

हिदायत तुला – अरे हुज़ूर, उधर देखिये हौदे के पास ! [उंगली से हौदे की तरफ़, इशारा करते हैं] वह मिरासन बुढ़िया डोनर बनकर, यहाँ इस स्कूल में तशरीफ़ ला चुकी है !

फन्ने खां – अब आप यह बताएं, नयी प्याऊ बनाने के बाद आपकी प्याऊ को..पूछेगा कौन ?

[अब भंवरु खां को बात समझ में आने लगती है, जिससे उनका तनाव बढ़ जाता है ! इस तनाव को ख़त्म करने के लिए वे झट जेब से तम्बाकू [सूंघने की तम्बाकू] की डिबिया बाहर निकालते हैं, और उसे खोलते हैं ! फिर चिपटी भर तम्बाकू उठाकर, उसे अपने नाक के नथूने के पास लाकर ज़ोर से सूंघते हैं ! इस तरह तम्बाकू सूंघकर, फिर वे कहते हैं !]

भंवरु खां – [तम्बाकू सूंघकर, कहते हैं] – हूं..हूं फिर आपने क्या सोचा ?

हिदायत तुल्ला – अब सोचना-वोचना अब आपको है, हुज़ूर ! अब कल से ही यह बुढ़िया कमठा चालू करावा देगी ! और हम आपकी प्याऊ की बरबदगी का वह मंज़र, बैठे-बैठे देखते रहेंगे ! [कोहनी से फन्ने खां साहब को टिल्ला देते हुए, कहते हैं] कुछ बोलो ना, सद्दाम साहब !

[सद्दाम साहब का तुकमा पाकर, फन्ने खां साहब फूलकर कुप्पा बन गए हैं ! वे अपनी बांकड़ली मूंछों पर ताव देते हुए, मग़मूम भंवरु खां साहब के चेहरे पर आ रहे भावों को पढ़ने कोशिश करते हैं ! भंवरु खां की पेशानी पर, फ़िक्र की रेखाएं दिखाई देने लगी है ! अब वे मायूस होकर, फन्ने खां साहब की तरफ़ कातर नज़रों से देखते हैं ! उनको आशा है, शायद फन्ने खां साहब कोई उपाय बता दे....जिससे उनकी बनवायी गयी प्याऊ की कद्र, बनी रहे ? तभी फन्ने खां साहब की मुंह से, बोल फूट पड़ते हैं !]

फन्ने खां – [भंवरु खां से] – अब सोचना बेकार है, सारी प्लानिंग तैयार है ! बस, आपके हुक्म के इन्तिज़ार में हम कब से यहां बैठे हैं ! क्या आप जानते हैं, कि ‘हमारा दोस्त दिलावर खां आले दर्जे का सिविल लोयर हैं ! बस, हम उससे मिल लेते हैं ! फिर क्या ? कल ही अदालत में दावा दायर करके, कमठा रोकने का स्टे आर्डर इज़रा करवा लेते हैं !

भंवरु – क्या आप, अदालत के रूल्स और रेगुलेशन से वाकिफ़ हैं ? अब मुझे तसल्ली यह करनी है कि, ‘अगर आप, रूल्स रेगुलेशन सभी ज़रूरी बातें जानते हैं, या नहीं ? आज के ज़माने में क़ानून की जानकारी होना, कितना ज़रूरी है, बिरादर ? ना तो कहीं हमने ख़िलाफ़े शरह क़दम उठा लिया, तो अदालत-ए-जंग में नुक़सान हमें ही उठाना होगा !’

फन्ने खां – जानते हैं, हुज़ूर ! चलिए हम आपको एक क्लू देते हैं, आप सोच-समझकर हमें जवाब देना ! डवलपमेंट कमेटी के रूल्स एंड रेगुलेशन के तहत, डवलपमेंट कमेटी की रज़ाबंदी के बिना इस स्कूल में कोई कंस्ट्रक्शन वर्क नहीं करवाया जा सकता !

हिदायत तुल्ला – हमारी इज़ाज़त लेना, सख्त ज़रूरी है ! जनाब, हम सभी मेम्बरान यहाँ बैठे हैं और यह मिरासन बुढ़िया और बड़ी बी मिलकर कल से प्याऊ बनवाने का काम शुरू कर रही है...बिना, हमारी इज़ाज़त के ! हम सभी मेम्बरान की आबरू रेज़ी की जा रही है, जनाब !

तभी एक मक्खी उड़कर आती है, और आकर बैठ जाती है भंवरु खां की नाक पर ! फिर क्या ? बेचारे भंवरु खां जो अदालत-ए-जंग लड़ने चले, और उनके ही नाक पर एक मामूली सी मक्खी आकर बैठ कैसे गयी ? उसका बैठना ही क्या ? यहाँ तो मियां, उसके बैठते ही तड़ा-तड़ छींकने लगते हैं ! अब बेचारे पीछे की तरफ़ मुंह ले जा देते हैं, जहां सलीम मियां खड़े हैं ! बस, झट मियां नाक पकड़कर नाक सिनकते हैं ! यह तो अच्छा रहा, मियां सलीम को तहज़ीब वाले मुअज्ज़म भंवरु खां की इस ख़राब आदत की जानकारी थी ! बेचारे सलीम मियां उनके नाक साफ़ करने के पहले ही, वहां से दूर हट जाते हैं ! अब भंवरु खां आराम से नाक सिनककर, रुमाल से अपने हाथ साफ़ करते हैं ! फिर, वे अपने साथियों को देखते हुए कहते हैं !]

भंवरु खां – [रुमाल को अपनी जेब में, रखते हुए] – साहब बहादुरों ! कहिये, मेरे लिए क्या हुक्म है ?

फन्ने खां – [खुश होकर, कहते हैं] – फ़हवुल मुराद ! अब दावा तैयार करना है, और क्या ? दावे में ख़ास मुस्तदई आप होंगे ! बाकी हम सब आपके साथ हैं !

भंवरु खां – [होंठों में ही, कहते हैं] - प्लानिंग उम्दा है, अब इस आक़िल को नसीहत देने का मौक़ा हाथ लगा है ! क्या करूं ? यह कमबख्त आक़िल जहां कहीं मिलता है, हमसे ! बस एक ही बात कहता है, “साहब, भूलिए मत ! आपने स्कूल को एक अलमारी देने का वादा किया था, मगर अभी-तक आपने दी नहीं ! हुज़ूर, कब दे रहे हैं, अलमारी ?” [भूलकर, वे बड़बड़ा जाते हैं !]

भंवरु खां – [बड़बड़ाते हैं] – ख़ुदा रहम, यह आक़िल तो अलमारी ऐसे मांग रहा है, मानो मैं उसका बाकीदार [कर्ज़दार] हूं ?

फन्ने खां – [अचरच करते हुए, कहते हैं] – हुज़ूर, यह क्या ? आप आक़िल मियां के क़र्ज़दार कैसे बन गए, हुज़ूर ? आली जनाब, आप ठहरे, भामाशाह इस स्कूल के ..और अभी आप यह क्या रहे थे, मियां ? हाय अल्लाह, ऐसा हो नहीं सकता !

साबू भाई – [व्यंगात्मक मुस्कान के साथ] – अरे वाह भंवरू मियां, यह क्या ? आप दिखते क्या हैं, और असल में आप हैं क्या ? ऊंची दुकान, और फीके पकवान ? आज जान गए, हुज़ूर ! आप सेठ नहीं है, बल्कि एक सरकारी मुलाज़िम के कर्ज़दार हैं..लानत है, आपको !

मनु भाई – [दुकान पर, बैठे-बैठे कहते हैं] – अरे साबू भाई, अब समझ में आया, जनाब मुंह-अँधेरे घर से क्यों निकल पड़ते हैं खैराती बनकर ! अरे हुज़ूर ऐसा लगता है, भीख से लाये पैसों से इन्होने पाख़ाने के पास वाली प्याऊ बनवायी है ! काहे के सेठ, यार ?

भंवरु खां – [रोनी आवाज में, कहते हैं] – लानत है, मुझे ! पूरी ज़िंदगी पाई-पाई बचाकर, मैंने यह प्याऊ क्यों बनवाई ? डोनर बनना, मुसीबत को गले लगाना है ! एक बार न मालुम किस तरंग में आकर हमने कह दिया, कि...

फन्ने खां – हुज़ूर, यह कह डाला कि‘हम स्कूल को, एक अलमारी डोनेट करेंगे !’ तब से आक़िल मियां मुझे ऐसे याद दिलाते हैं, मानो मैं उनका कर्ज़दार बन गया ? [मुद्दे पर, आते हुए] चलिए, छोड़िये इन मोहमल बातों को ! अब आप जैसा चाहते हैं, वैसा करो ! मगर, आप हमें खैराती न कहें !

हिदायत तुल्ला – छोड़िये इन मोहमल बातों को, चलिए मान लेते हैं कि “आप खैराती नहीं है !’ आप हमारे साथी है ! आख़िर, जीत हमारी ही होगी ! आप सबको याद रहे, दावा मुस्तरद नहीं होना चाहिए !

फन्ने खां – ठीक है, अब इजलास में जाने की क्या ज़रूरत ? अब हम सभी मिलकर, अदालत-ए-जंग लड़ेंगे ! [साबू भाई से] ओ प्यारे साबू भाई ! अब आप वापस बन जाओ, साहबे आलम ! अब कर लो अपनी मूंछें ऊँची !

[फन्ने खां साहब की बात सुनकर, साबू भाई खुश होकर कहकहे गूंजा देते हैं ! अब वे मेमूना भाई की तरफ़ देखते हुए अपनी मूंछों पर ताव देते जा रहे हैं ! इधर बेचारे मेमूना, भाई कब-तक इन साहब बहादुरों के जवाब के इन्तिज़ार में खड़े रहते ? इतनी देर लगातार खड़े रहने से बेचारे मेमूना भाई की टांगों में दर्द पैदा हो जाता है, जो नाक़ाबिले बर्दाश्त ठहरा ! आख़िर, किसी तरह इस दर्द को बर्दाश्त करते हुए मेमूना भाई उन साहब बहादुरों से कहने लगे !]

मेमूना भाई – [दर्द बर्दाश्त करते हुए, कहते हैं] – साहब बहादुरों ! बड़ी बी चाहती है, आप सभी अभी इजलास में तशरीफ़ रखें ! कमठे के बारे में आप अपनी राय देते हुए, प्याऊ बनवाने के काम में अपनी मंजूरी देवें ! कहिये जनाब, कितनी देर में आप सभी मुअज्ज़म तशरीफ़ रख रहे हैं..स्कूल में ?

फन्ने खां – [हंसी के ठहाके लगाते हुए, कहते हैं] – हा..हा..हा ! अमां यार, अब क्या आना-जाना ? कह देना बड़ी बी को, इजलास न होगी !

[सभी रुख्सत होते हैं, उनके पांवों के चलने की आवाज सुनायी देती है ! और, साथ में फन्ने खां साहब के ठहाकों की गूंज ! मंच पर, अँधेरा छा जाता है !]

COMMENTS

BLOGGER: 1
  1. दिनेश चन्द्र पुरोहित5:43 pm

    पाठकों !
    आपको यह नाटक "दबिस्तान-ए-सियासत" पसंद आ रहा होगा ? कृपया, आप इसे पढ़कर, साहित्य शिल्पी में अपनी राय टिप्पणी के रूप में यहाँ प्रस्तुत करें ! शुक्रिया !
    दिनेश चन्द्र पुरोहित dineshchandrapurohit2@gmail.com

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रचनाकार: हास्य - नाटक - "दबिस्तान-ए-सियासत" - अंक चार // दिनेश चन्द्र पुरोहित
हास्य - नाटक - "दबिस्तान-ए-सियासत" - अंक चार // दिनेश चन्द्र पुरोहित
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रचनाकार
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