केकड़े ने अपना खोल कैसे पाया // पश्चिमी अफ्रीका की लोककथाएँ // सुषमा गुप्ता

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देश विदेश की लोक कथाएँ — पश्चिमी अफ्रीका–1 : पश्चिमी अफ्रीका की लोक कथाएँ–1 बिनीन, बुरकीना फासो, केप वरडे, गाम्बिया, गिनी, गिनी बिसाऔ, आइवरी...

देश विदेश की लोक कथाएँ — पश्चिमी अफ्रीका–1 :

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पश्चिमी अफ्रीका की लोक कथाएँ–1

बिनीन, बुरकीना फासो, केप वरडे, गाम्बिया, गिनी, गिनी बिसाऔ, आइवरी कोस्ट, लाइबेरिया,


संकलनकर्ता

सुषमा गुप्ता


2 केकड़े ने अपना खोल कैसे पाया[1]

यह लोक कथा हमने तुम्हारे लिये पश्चिमी अफ्रीका के बुरकीना फ़ासो देश की लोक कथाओं से ली है।

बहुत दिन पहले की बात है कि केंकड़ों के पास कोई खोल नहीं हुआ करता था। उनका शरीर भी उतना ही चिकना था जितना कि नदी में रहने वाले दूसरे जानवरों का होता है।

उन्हीं दिनों एक बहुत ही बुरी बुढ़िया भी अपनी पोती के साथ रहती थी। उस बुढ़िया का बेटा और बहू मर चुके थे और वह बुढ़िया अपनी पोती के साथ अकेली रहती थी। वह उसके साथ बहुत ही बुरा बरताव करती थी।

वह अक्सर उसको ऐसे ऐसे काम करने के लिये भेजती थी जो बहुत ही नामुमकिन से होते थे और जब वह ऐसे काम नहीं कर पाती थी तो उसको उसके साथ बुरा बरताव करने का एक और मौका मिल जाता था।

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एक दिन उसने उस लड़की को एक टोकरी ले कर पानी भरने के लिये भेजा। वह छोटी लड़की गयी पर जब वह बिना पानी लिये हुए वापस आयी तो उस बुढ़िया ने उसे बहुत पीटा और गालियाँ दीं।

वह बोली — “ओ आलसी बेवकूफ, तू किसी काम की नहीं। क्या तुझको मालूम नहीं कि तू एक टोकरी में पानी नहीं भर सकती?”

लड़की बोली — “मालूम है दादी। मगर तुमने ही तो मुझे उसमें पानी भरने के लिये कहा था। ”

“अगर मैं तुझे अपने आपको मारने के लिये कहूँ तो क्या तू अपने आपको मार लेगी?” बुढ़िया गुस्से से बोली।

यह सुन कर उस लड़की को बहुत दुख हुआ और गुस्सा भी आया क्योंकि वह जानती थी कि किसी भी तरीके से वह टोकरी में पानी नहीं भर सकती थी।

पर अगर वह अपनी दादी से इस बात पर बहस करती या उससे कोई सवाल जवाब करती तभी भी उसी को डाँट पड़ती।

उसने तो उसकी बात को केवल इसलिये मान लिया था ताकि वह डाँट खाने के लिये थोड़ा सा समय टाल सके। उसकी दादी भी यह बात जानती थी।

एक दिन उस लड़की ने अपनी दादी से कहा — “दादी। ”

पर दादी तुरन्त ही उसकी बात काट कर बोली — “मैंने तुझसे कितनी बार कहा है कि तू मुझे दादी मत कहा कर। अगर तूने फिर कभी मुझे दादी कहा तो मैं तुझे पहले से भी ज़्यादा मारूँगी। ”

“पर तुमने मुझे अपना नाम भी तो कभी बताया नहीं। ” लड़की बोली।

“यह मालूम करना तेरा काम है। और अगर तूने मेरा नाम मालूम नहीं किया तो फिर तुझे कभी इस घर में खाना नहीं मिलेगा। ”

यह सुन कर लड़की बहुत दुखी हुई क्योंकि वह जानती थी कि बच्चे अपने से बड़े लोगों को नाम से नहीं पुकारते। उनको उनके किसी बच्चे के माता या पिता कह कर पुकारा जाता था। अगर उनके कोई बच्चा नहीं होता था तो जैसे “हमारे माता” और “हमारे पिता” के नाम से पुकारा जाता था।

वह छोटी लड़की अपनी दादी का नाम किसी बड़े से भी नहीं पूछना चाहती थी क्योंकि इससे उसको यह लगता था कि अगर उसने दादी का नाम किसी बड़े से पूछा तो वे लोग सोचेंगे कि वह बड़ों की कितनी बेइज़्ज़ती करने वाली लड़की है।

इससे वे लोग यह भी सोचने लगेंगे कि उसकी दादी ने उसके बारे में कुछ झूठ बोला है। और अगर उसने नाम पता नहीं किया तो वह तो भूखी ही रह जायेगी।

यह सोच सोच कर तो वह छोटी लडकी बेचारी और ज़्यादा परेशान हो गयी और वह अकेली रहने लगी। जब भी वह नदी की तरफ जाती वह वहाँ उसके किनारे बैठ जाती और नदी के पानी में पड़ी अपनी परछाईं से बात करती रहती।

फिर वह गाती और अपने माता पिता को उनका नाम ले ले कर बुलाती रहती। वह उनको बताती कि कैसे उसकी दादी उसके साथ बुरा बरताव करती थी और फिर उनसे अपनी इस मुश्किल में सहायता करने के लिये कहती।

एक दिन जब वह नदी के किनारे बैठी गा कर अपने माता पिता को बुला रही थी उसने अपनी मुठ्ठी में पानी भरा और अपने पैरों पर डाल लिया। उसने फिर गाया और हँस कर अपने आपको तसल्ली दी।

फिर उसने नदी पर झुक कर पानी लिया और वहाँ से घर चलने को हुई कि एक केंकड़ा पानी के ऊपर आ गया।

केंकड़ा उस लड़की से बोला — “मैं यहाँ तुमको रोज आते देखता हूँ। तुम हमेशा रोती रहती हो और दुख भरे गीत गाती रहती हो, क्यों?”

लड़की बोली — “क्योंकि मेरी दादी बहुत बुरी है। वह मुझे खाना भी नहीं देगी जब तक में उसका नाम न जान जाऊँ। ”

केंकड़ा बोला — “हाँ तुम्हारी दादी है तो बहुत ही बुरी बुढ़िया। पर वह वह ऐसा क्यों चाहती है कि तुम्हें उसका नाम मालूम हो?”

लड़की बोली — “क्या इससे यह साफ जाहिर नहीं है कि वह हमेशा इस बात का मौका ढूँढती रहती है कि वह मुझसे अपने बुरे बरताव के लिये कोई सफाई दे सके।

अगर मैं उसका नाम नहीं जान पाऊँगी तो वह मुझे खाना नहीं देगी और उसको मुझे खाना न देने का एक बहाना मिल जायेगा। और अगर मैं उसका नाम जान जाती हूँ तो भी वह मुझे उस नाम से बुलाने के लिये मारेगी। पर भूखी रहने और न पीटे जाने की बजाय मैं खाना खा कर पीटा जाना ज़्यादा पसन्द करूँगी। ”

केंकड़ा बोला — “ठीक है। मैं तुम्हारी इस काम में सहायता करूँगा। लेकिन तुम मुझसे वायदा करो कि तुम उससे यह नहीं बताओगी कि उसका नाम तुम्हें मैंने बताया है क्योंकि अगर उसको यह पता चल गया कि उसका नाम तुम्हें मैंने बताया है तो मैं नहीं बता सकता कि वह मेरी क्या हालत करेगी। ”

“मैं वायदा करती हूँ। मैं वायदा करती हूँ। मैं दादी को कुछ नहीं बताऊँगी। बस तुम मुझे उसका नाम बता दो। ” लड़की खुशी से चिल्लायी।

केंकड़ा बोला — “तुम्हारी दादी का नाम है “सर्जमोटा अमोआ ओपलैम डाजा”[2]। ”

“सर्जमोटा अ , , , और आगे क्या?” लड़की ने इतना लम्बा अजीब सा नाम सुन कर पूछा। उसने इस नाम को केंकड़े के सामने कई बार दोहराया “सर्जमोटा अमोआ ओपलैम डाजा”, “सर्जमोटा अमोआ ओपलैम डाजा”। ”

“वाह, क्या नाम है? क्या इसी लिये वह चाहती थी कि कोई उसका नाम न जाने? धन्यवाद मिस्टर केंकड़े, मैं तुम्हें कभी नहीं भूलूँगी। ” लड़की ने खुश हो कर जवाब दिया।

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इसके बाद उसने अपना कैलेबाश[3] पानी से भरा और घर चल दी। चलते समय वह उस नाम को बार बार दोहराती जा रही थी ताकि वह उसे भूल न सके।

पर बहुत जल्दी ही उसका दिमाग इधर उधर भटकने लगा। वह अपनी लावारिस होने की ज़िन्दगी के बारे में सोचने लगी। फिर वह अपनी ज़िन्दगी अपने माता पिता की ज़िन्दगी से मिलाने लगी।

“मैं अपने माता पिता को हमेशा अपने पास रखूँगी चाहे वे मुझे कितनी भी बुरी तरीके से क्यों न रखें। माँ ठीक कहती थी — “तुम को मेरे जितना प्यार कोई नहीं कर सकता। ”

जब वह अपने खयालों में से निकली तो उसको पता चला कि वह तो अपनी दादी का नाम ही भूल गयी थी — “सरगामौन्टा स , ,” ओह मैं तो दादी का नाम ही भूल गयी। अब मैं क्या करूँ। मुझे तो फिर भूखा रह जाना पड़ेगा। उफ यह तो बहुत गड़बड़ हो गयी। ”

वह थोड़ी देर तक वहीं खड़ी रही और सोचती रही कि वह क्या करे – क्या वह नदी पर वापस जाये और उस केंकड़े से दादी का नाम फिर से पूछे? और या फिर वह घर वापस जाये और भूखी रहे?

जल्दी ही उसकी खाना खाने की इच्छा ने ज़ोर पकड़ा और वह नदी की तरफ जाने लगी पर वह नदी की तरफ का लम्बा रास्ता ही भूल गयी। उसने तुरन्त ही अपना पानी का कैलेबाश जमीन पर रखा और उसका पानी गरम तपती जमीन पर बिखेर दिया।

वहाँ की झाड़ियों को वह पानी पी कर बड़ा आराम मिला। वे उस पानी को पी कर इतनी खुश हुईं कि जब वह पानी सूरज की गरमी से धरती में बनी दरारों में गया तो कोई भी उनका ताली बजाना और खुश होना सुन सकता था।

खाली कैलेबाश ले कर जब वह लड़की नदी पर गयी तो वह केंकड़ा पहले की तरह से उसकी दादी के नाम के साथ बाहर नहीं आया।

फिर भी वह बाहर आ कर बोला — “मुझे लगता है कि मैंने तुम्हें तुम्हारी दादी का नाम बता कर गलती की क्योंकि तुम तो उसको भूल ही गयीं। जबसे तुम यहाँ से गयी थीं मैं तभी से मैं यह सोचता रहा कि मुझे तुमको उसका नाम नहीं बताना चाहिये था।

तुम्हारी दादी सचमुच में ही बहुत बुरी है और मैं नहीं चाहता कि वह मेरे सबसे बुरे दुश्मन पर भी गुस्सा करे। मुझे लगता है कि तुम्हारा उसका नाम भूलना एक तरह का शगुन है। कम से कम मैं तो उसके गुस्से से बच गया। ”

उस छोटी लड़की ने उससे प्रार्थना की — “मेहरबानी करके मुझे उसका नाम बता दो नहीं तो मैं भूखी रह जाऊँगी। उसको इस बात का कभी पता नहीं चलेगा कि यह नाम मुझे तुमने बताया है। यह सब मेरे और तुम्हारे बीच में ही रहेगा। ”

उसने केंकड़े को यह बताते हुए कि अगर वह दादी का नाम बिना जाने घर चली जाती तो उसकी दादी उससे किस तरह का बरताव करती कई बार केंकड़े से दादी का नाम बताने की प्रार्थना की।

इसके अलावा उसने केंकड़े को यह भी बताया कि अगर दादी को यह पता चला कि नदी पर उसने कितना समय बरबाद किया तो उसकी उलझन और भी बढ़ सकती थी।

इस तरह उसने केंकड़े को अपनी दादी का नाम फिर से बताने पर मजबूर कर दिया और केंकड़े ने उसे उसकी दादी का नाम फिर से बता दिया।

केंकड़ा बोला — “ठीक है। उसका नाम है “सर्जमोटा अमोआ ओपलैम डाजा”। मैं इस नाम को फिर से कहता हूँ क्योंकि अब इसके बाद तुम मुझे दोबारा यह नाम बताने के लिये यहाँ नहीं पाओगी – “सर्जमोटा अमोआ ओपलैम डाजा”। ”

लड़की बहुत खुश हुई और खुश हो कर घर चल दी। इस बार भी वह उस नाम को बार बार दोहराती हुई चली जा रही थी कि उसका दिमाग फिर से भटकने लगा।

पर अब की बार उसने उसे भटकने से रोका — “नहीं, “सर्जमोटा अमोआ ओपलैम डाजा”, “सर्जमोटा अमोआ ओपलैम डाजा” और वह उसे दोहराते हुए घर आ गयी।

शाम को जब वह शाम का खाना बनाने बैठी तो अचानक उसके मुँह से निकल गया “सर्जमोटा अमोआ ओपलैम डाजा”, जैसा कि वह नदी से आते समय दोहराती चली आ रही थी।

बुढ़िया ने यह सुन कर उसको गाली दी — “ओ कमीनी बच्ची, मेरा नाम तुझे किसने बताया?”

लड़की झूठ बोल गयी — “किसी ने नहीं। ”

बुढ़िया बोली — “किसी ने तो बताया है, कौन है वह?”

लड़की फिर बोली — “नदी ने बताया। ”

बुढ़िया ने पूछा — “नदी में से किसने बताया?”

लड़की बोली — “पता नहीं। मुझे तो ऐसे ही पता चला। ”

बुढ़िया गुस्से से भर गयी। उसने एक कैलेबाश का बरतन उठा लिया और नदी की तरफ तेज़ तेज़ भागी। कभी वह तेज़ तेज़ चलती और कभी वह तेज़ तेज़ भागती।

सबको पता चल गया कि आज वह किसी पर अपना गुस्सा उतारने जा रही थी। रास्ते में उसे जो कोई भी मिला वह उसी से पूछती गयी कि क्या उसको मालूम था कि उसकी पोती को उसका नाम किसने बताया था।

सबने मना कर दिया कि वे इस बारे में कुछ नहीं जानते थे। वह इसी तरह नदी की तरफ भागती चली गयी जब तक वह केंकड़े के पास नहीं पहुँच गयी।

अब क्योंकि हर एक ने मना कर दिया था कि उनको यह पता नहीं था कि उसकी पोती को उसका नाम किसने बताया, तो केंकड़े को पूरा यकीन था कि बुढ़िया को यह पता चल गया था कि उसी ने उसका नाम उसकी पोती को बताया था।

बुढ़िया ने जाते ही केंकड़े से पूछा — “उस छुटकी को मेरा नाम क्या तुमने बताया था?”

केंकड़ा बोला — “हाँ। ”

हाँ करते ही केंकड़े को पता था कि अब वहाँ से भागने में ही उसकी भलाई है नहीं तो वह बुढ़िया उसको पीटते पीटते मार ही देगी। सो वह वहाँ से भाग लिया।

पर उस बुढ़िया ने उसका पीछा किया। उसने अपना कैलेबाश पकड़ा और केंकड़े के ऊपर दे मारा। इससे उसका कैलेबाश दो हिस्सों में टूट गया।

उसने उसका आधा हिस्सा उठाया और केंकड़े के पीछे फिर से भागी। जब वह उसके पास तक आ गयी तो उसने कैलेबाश के उस आधे हिस्से को उसके ऊपर उलटा दे मारा जिससे वह केंक़ड़े के शरीर पर और फिर जमीन में गड़ गया।

वह उस आधे हिस्से को निकालने गयी तो केंकड़ा उस कैलेबाश के आधे टुकड़े को लिये हुए वहाँ से जल्दी से झाड़ी में भाग गया।

इस तरह से कैलेबाश का वह आधा हिस्सा अभी भी उसके शरीर पर लगा हुआ था। इसी वजह से केंकड़े अभी भी अपने शरीर पर कैलेबाश का खोल लिये फिरते हैं।



[1] How the Crab Got Its Shell – a folktale from Burkina Faso (formerly Upper Volta), West Africa

Adapted from the Book “The Orphan Girl and the Other Stories”, by Offodile Buchi. 2011.

[2] Sarjmota Amoa Oplem Dadja

[3] Dry outer cover of a pumpkin-like fruit which can be used to keep both dry and wet things – mostly found in Africa. See its picture above.

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सुषमा गुप्ता ने देश विदेश की 1200 से अधिक लोक-कथाओं का संकलन कर उनका हिंदी में अनुवाद प्रस्तुत किया है. कुछ देशों की कथाओं के संकलन का  विवरण यहाँ पर दर्ज है. सुषमा गुप्ता की लोक कथाओं के संकलन में से सैकड़ों लोककथाओं के पठन-पाठन का आनंद आप यहाँ रचनाकार के  लोककथा खंड में जाकर उठा सकते हैं.

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रचनाकार: केकड़े ने अपना खोल कैसे पाया // पश्चिमी अफ्रीका की लोककथाएँ // सुषमा गुप्ता
केकड़े ने अपना खोल कैसे पाया // पश्चिमी अफ्रीका की लोककथाएँ // सुषमा गुप्ता
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