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आज़ाद -निधि जैन रिया और समर्थ से मैं पहली बार कॉलेज में मिला। रिया एक बुद्धिमान, स्मार्ट, बहुत ज्यादा बातें करने वाली, चुलबुली लड़की थी। समर...

आज़ाद

-निधि जैन

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रिया और समर्थ से मैं पहली बार कॉलेज में मिला। रिया एक बुद्धिमान, स्मार्ट, बहुत ज्यादा बातें करने वाली, चुलबुली लड़की थी। समर्थ देखने में आकर्षक, तीव्र बुद्धि वाला, एक गंभीर लड़का था। जल्द ही हमारी तिकड़ी पूरे कॉलेज में प्रसिद्ध हो गयी। सभी हमारी दोस्ती से ईर्ष्या करते पर साथ ही हमारा उदाहरण भी देते थे। रिया और समर्थ के बीच हमेशा एक अच्छी प्रतिस्पर्धा चलती और मैं सदैव उनसे पीछे ही रहता। कॉलेज कब शुरू हुआ और कब खत्म भी हो गया, पता ही नहीं चला। उसके बाद सभी अपने-अपने रास्ते चल दिये। समर्थ आगे की पढ़ाई करने अमेरिका चला गया। मैं और रिया भी एम.बी.ए करने अलग-अलग कॉलेजों में चले गये। इस तरह हम तीनों ही एक दूसरे से बिछड़ गये। समय के साथ हम अपनी-अपनी दिनचर्या में इतने व्यस्त हो गये कि हमारे बीच किसी भी तरह का संपर्क नहीं रहा।

एम.बी.ए पूरा होने के बाद, मुझे जर्मनी की एक बड़ी कम्पनी में नौकरी मिल गयी। यहाँ आए हुए मुझे करीब दो साल हो गये थे। एक दिन चिठ्ठियों के ढेर में मुझे रिया और समर्थ की शादी का कार्ड मिला। देखकर आश्चर्य भी हुआ और खुशी भी। उनकी शादी दीवाली के एक हफ्ते बाद थी। माँ भी दीवाली पर घर आने के लिए जोर डाल रही थी। पापा के गुज़रने के बाद से मैं एक बार भी माँ से मिलने नहीं जा पाया था। एक साथ दोनों काम हो जायेंगे, यह सोच कर मैंने भारत जाने का मन बना लिया।

माँ के साथ दस दिन जैसे पंख लगा कर उड़ गये और मेरे जाने का समय भी आ गया। शादी उदयपुर से थी, इसलिए वापसी की टिकट मैंने वहीं से करा ली थी। चलते समय जब मैं माँ के पैर छूने के लिए झुका तो उन्होंने मुझे गले से लगा लिया। वह खामोश थीं और उनकी आँखों में आँसू थे। मैं उनकी खामोशी पढ़ सकता था, उन्हें मेरी जरूरत थी। पापा के जाने के बाद वह बिल्कुल अकेली पड़ गयीं थीं।

माँ को संजीदा छोड़ मैं उदयपुर पहुँच गया। वहाँ पुराने दोस्तों से मिल कर कॉलेज का जमाना याद आ गया। इन सालों में रिया में कोई परिवर्तन नहीं आया, पर समर्थ के व्यवहार में मैं काफी फर्क महसूस कर रहा था। वह बात-बात पर मुझे जर्मनी में नौकरी करने पर ताने दे रहा था और अपनी नौकरी की बातें काफी बड़ा-चढ़ा कर कर रहा था। दोस्तों से पता चला कि अमेरिका में पढ़ाई पूरी करने के बाद व्यापारिक मंदी की वजह से समर्थ को वहाँ नौकरी नहीं मिली। वह भारत वापस आ गया। संयोग से उसकी नौकरी बंगलोर की उसी कंपनी में लगी, जहाँ रिया काम करती थी। पुराने दोस्त फिर मिले। वक्त के साथ उनके बीच नज़दीकियाँ बढ़ी और आज दोनों की शादी थी। दोनों की जोड़ी बहुत अच्छी लग रही थी, बिल्कुल एक दूजे के लिये। सभी बहुत खुश थे, उनके माँ-पापा, रिश्तेदार, दोस्त....। मेरा मन उदास था। पता नहीं क्यों बार-बार माँ याद आ रही थी।

जर्मनी वापस आए मुझे एक हफ्ता भी नहीं हुआ था कि लखनऊ से हमारे पड़ोसी का फोन आया। माँ को दिल का दौरा पड़ा था। उन्होंने कहा “हमने तुम्हारी माँ को अस्पताल में भर्ती करा दिया है। जल्द से जल्द आ कर उनकी देखभाल करो।” मैंने बॉस से छुट्टी मांगी, पर उन्होंने यह कह कर मना कर दिया कि “अभी तो तुम १५ दिन की छुट्टी से लौटे हो। एक हफ्ते बाद ही प्रोजेक्ट की आखिरी तारीख हैं। इस समय तो किसी भी सूरत में छुट्टी नहीं मिल सकती। प्रोजेक्ट खत्म होने के बाद देखेंगे।” जब से मैं वापस आया था, हर समय माँ का उदास चेहरा मेरी आँखों के सामने रहता था। यदि इस समय भी मैं उनके पास न गया तो जिंदगी भर पछताता रहूँगा। बिना इसका परिणाम सोचे मैंने इस्तीफ़ा दे दिया और माँ के पास पहुँच गया। माँ जल्द ही ठीक हो कर घर आ गयीं। मैंने लखनऊ में ही नौकरी ढ़ूँढ़ ली। धीरे-धीरे माँ का मुरझाया चेहरा फिर से खिलने लगा।

दो साल बाद कम्पनी ने मुझे पदोन्नति पर बंगलोर आफिस भेज दिया। माँ लखनऊ नहीं छोड़ना चाहती थी। उसका कहना था कि “यहाँ मैंने तुम्हारे पापा के साथ बहुत अच्छा समय व्यतीत किया है। मैं यहीं उनकी यादों के साथ रहना चाहती हूँ। तुम कौन सा दूर जा रहे हो। हम जब चाहें एक-दूसरे के पास आ-जा सकते हैं।” मैं माँ को एक बार फिर अकेले नहीं छोड़ना चाहता था। मैंने प्यार और ज़िद से उन्हें मना लिया और हम दोनों बंगलोर आ गये। वहाँ पहुंचने के बाद, एक दिन माँ ने समर्थ और रिया को खाने पर बुलाया। इन दो सालों में तीन-चार बार उनसे मुलाकात हुई। हर बार समर्थ बस अपने पैसे और पद की बातें बढ़ा-चढ़ा कर करता और रिया ज्यादातर शांत ही रहती। मैं उनके रिश्ते में एक दरार पड़ती महसूस कर रहा था। माँ को रिया बहुत पसंद आयी। चलते समय माँ ने रिया को गले लगाते हुए कहा “तुम से मिल कर अच्छा लगा। आती रहना”

रिया अक्सर इतवार को सुबह ही हमारे यहाँ आ जाती और देर रात में वापस जाती। समर्थ नहीं आता, पूछने पर वह कहती “वह अपने दफ्तर के काम में व्यस्त है।” एक दिन मैंने रिया से कहा “अरे भाई! कभी समर्थ को भी ले कर आओ।” यह सुन कर रिया गंभीर हो कर बोली “कही भी जाने के लिए समर्थ के पास वक्त ही कहाँ हैं। छुट्टी वाले दिन भी वह दफ्तर में ही व्यस्त रहता हैं। मैं सारा दिन घर पर अकेले ऊब जाती हूँ। वक्त काटे नहीं कटता। न तो वह खुद मुझे कहीं ले जाता है और न ही कहीं अकेले जाने देता है। वह शुरू से ही बहुत पज़ेसिव् रहा है, उसको मेरा किसी से भी ज्यादा बात करना, हँसना-बोलना बिल्कुल पसंद नहीं है। कई बार तो इन बातों को ले कर वह आक्रामक भी हो जाता है। शुरू-शुरू में तो मुझे उसका पज़ेसिव् होना अच्छा लगता था। धीरे-धीरे यह एक बंधन लगने लगा। पता नहीं यहाँ के लिए क्यों मना नहीं करता, शायद तुम पर ज्यादा ही भरोसा हैं।”

इसके बाद रिया हर छुट्टी वाले दिन हमारे यहाँ आने लगी। मेरे मन में उसके लिए सहानुभूति थी और वह यह बात समझ भी गयी थी। वह कई बार फिल्म या शॉपिंग का प्रोग्राम बना लेती और मैं मना नहीं कर पाता। अक्सर माँ भी हमारे साथ जाती। मैंने अनुभव किया कि माँ की अनुपस्थिति में रिया ज्यादा खुश रहती थी। धीरे-धीरे हम करीब आने लगे।। यह बात माँ को भी समझ आ रही थी। इससे पहले कि वह कुछ कहतीं या करतीं, उन्हें मौसी के पास जाना पड़ा। मौसी की तबीयत काफी खराब थी और उन्होंने माँ को तुरंत बुलाया था। माँ ने घर से निकलते हुए कड़े शब्दों में कहा “रिया को मेरी अनुपस्थिति में मत बुलाना”।

माँ को स्टेशन छोड़ कर मैं नाश्ता कर रहा था कि तभी दरवाज़े पर घंटी बजी। दरवाज़ा खोला तो सामने रिया खड़ी थी। मैंने हिचकिचाते हुए कहा “माँ, घर पर नहीं हैं। मौसी के पास गयी है। कुछ दिनों बाद आयेगी। मैं हड़बड़ी में तुम्हें फोन करना भूल गया।” वह मुझे धक्का देती हुई अंदर आ गयी और सोफे पर बैठते हुए बोली “मुझे पता है। माँ का मैसेज आया था। ऐसा लगा, वह नहीं चाहती हैं कि मैं उनकी अनुपस्थिति में यहाँ आऊँ।” कुछ देर के लिए वह खामोश हो गयी। फिर अपनी आँखों में एक अजीब सी शरारत लिए हुए बोली “मुझे छुट्टी वाले दिन यहाँ आने की आदत हो गयी है।” उसकी आँखें देख कर मैं घबरा गया। मैंने पूछा “नाश्ता करोगी?” वह झट से उठी और मेज पर जा कर बैठ गयी। हम दोनों नाश्ता करने लगे। अचानक वह गंभीर हो कर बोली “समर्थ के पास तो मेरे लिए बिल्कुल भी वक्त नहीं है। वह तो हमेशा बस इसी चक्कर में रहता है कि कैसे ज्यादा से ज्यादा पैसा कमाया जाए और कैसे वह कम्पनी में सबसे ऊँचे पद पर पहुँचे।” मैंने उसे समझाते हुए कहा “इसमें गलत क्या है? हर आदमी ऊंचाईयाँ छूना चाहता है। जहाँ तक पैसे का सवाल है वह तो तुम्हारे लिए ही है।” यह कह कर मैं हँस दिया और वह रो पड़ी “हम दोनों ही अच्छा कमाते हैं फिर रात दिन काम में लगे रहने की क्या जरूरत है। छुट्टी के दिन भी दफ्तर में ही बैठा रहता है। मुझे नहीं चाहिए इतना पैसा।” मैंने हँस कर पूछा “तो फिर तुम्हें क्या चाहिए?” वह एकटक मुझे देखती रही फिर मेरी आँखों में आँखें डाल कर बोली “तुम” मैंने घबरा कर आँखें फेर ली। वह झिझकते हुए बोली “मेरा मतलब है बिल्कुल तुम्हारे जैसा इंसान। तुम तो इतना काम नहीं करते। आन्टी को इतना वक्त देते हो तो अपनी पत्नी को कितना दोगे।” मैंने कहा “यह भी तो हो सकता है कि वह समर्थ जैसे आदमी की अपेक्षा रखे।” वह जोर-जोर से हँसने लगी और फिर हँसते-हँसते ही रोने लगी। उसका दर्द फूट कर बाहर आ गया था।

मैंने उसे अपने सीने से लगा लिया और तब तक लगाये रखा जब तक वह पूरी तरह शांत नहीं हो गयी। वह मुझसे अलग होती हुई बोली “मुझे चलना चाहिए।” मैंने उसे अपनी बांहों में कस कर जकड़ लिया और फिर हमारे बीच वह सब हुआ जो नहीं होना चाहिए था। रिया के जाने के बाद माँ का फोन आया। उसने कहा “तुम्हारी मौसी की तबीयत बहुत ज्यादा खराब है। वह अस्पताल में भर्ती हैं। मुझे यहाँ कई दिन लग जायेंगे। मैंने रिया को बता दिया था कि मैं घर पर नहीं रहूँगी।” मैंने माँ को रिया के बारे में कुछ नहीं बताया। मैं खामोश रहा पर वह बिन कहे ही सब समझ गयीं। पता नहीं कैसे माँ लोग खामोशी भी सुन लेती हैं।

दस दिन बाद माँ लौट आयीं। इस बीच रिया रोज मेरे घर आती और हम घंटों वक्त साथ में गुज़ारते। मुझे रिया के साथ बिताया हर पल खुशी दे रहा था पर कही एक अपराध भाव भी था। रिया के बुझे चेहरे पर चमक आ गयी थी। वह बहुत खुश रहने लगी थी। मैंने महसूस किया कि उसके अंदर कोई ग्लानि या अपराध भाव नहीं था।

माँ के वापस आने से हमारी मुलाकातों में रूकावट आ गयी थी। कुछ ही दिनों में हम दोनों ही बेचैन हो उठे। मैंने रिया को आफिस के बाद एक होटल में मिलने के लिए बुलाया। हमने तय किया कि हम रोज़ यही पर मिलेंगे। छुट्टी वाले दिन वह पहले की तरह हमारे घर आयेगी ताकि माँ का शक यकीन में न बदले। कई महीने बीत गये और हम ऐसे ही मिलते रहे। न तो माँ ने कभी कुछ कहा और न ही समर्थ ने।

एक दिन समर्थ ने रिया को होटल से निकलते हुए देख लिया। जब उसने रिया से इस बारे में पूछा तो रिया बात को टाल गयी। समर्थ समझ गया कि रिया कुछ छुपाने की कोशिश कर रही है। इससे पहले भी कई बार समर्थ को लगा कि रिया उससे कुछ छुपाने की कोशिश करती है।

उसी रात समर्थ ने फोन कर के मुझे एक रेस्टोरेंट में बुलाया। वह आवाज़ से काफी गंभीर लग रहा था। मुझे लगा कि शायद वह मेरे और रिया के बारे में सब जान गया है। जब मैं उसकी बताई जगह पर पहुँचा तो वह शराब पी रहा था। उसने बताया कि “रिया आज कल मुझसे बातें छुपाने लगी है और साथ ही वह झूठ भी बोलती है। मुझे लगता है वह किसी और से प्यार करती है? क्या तुम को इस बारे में कुछ पता है?” मैंने इंकार में गर्दन हिला दी। समर्थ बहुत ज्यादा शराब पी चुका था। वह नशे की हालत में दुखी होता हुआ बोला “एक बात जो आज तक मैंने रिया को भी नहीं बताई। मैं रिया को कॉलेज के जमाने से बेहद प्यार करता हूँ। तब मैं उससे अपने मन की बात नहीं कह पाया। मुझे डर था कि कहीं उसने मना कर दिया तो हमारी दोस्ती भी खत्म हो जायेगी। अभी कम से कम वह मेरे आस-पास तो है। उसके पिता एक कामयाब बिज़नेस मैन हैं। उनके पास पैसा, दौलत, शोहरत, इज़्ज़त सब है। लोग कहते है कि हर लड़की अपने जीवन साथी में अपने पिता का प्रतिबिंब देखती है। मैं उनसे किसी भी मामले में पीछे नहीं रहना चाहता था। मैंने सोचा अमेरिका में नौकरी लगने के बाद मैं उसके सामने शादी का प्रस्ताव रखूँगा पर ऐसा नहीं हो पाया। सौभाग्य से मेरी नौकरी उसके ही दफ्तर में लग गयी। समय के साथ वह भी मुझे पसंद करने लगी। आज भी मैं उससे बहुत प्यार करता हूँ। मैं रात-दिन काम इसलिए करता हूँ, क्योंकि मैं उसकी नज़रों में उसके पापा से कही भी कम नहीं रहना चाहता। मैं तो सपने में भी नहीं सोच सकता था कि मैं रात-दिन मेहनत करूँगा और वह किसी और के साथ हो लेगी। मैं जानता हूँ वह तुम्हारे और आन्टी के बहुत करीब है। इस बारे में आन्टी जरूर जानती होंगी। तुम्हारे घर चल कर उनसे बात करते हैं।”

मैं नहीं चाहता था कि समर्थ नशे की हालत में घर चले पर वह नहीं माना। माँ से उसने वही सब कहा जो मुझसे कहा था। माँ ने नाराज़गी भरी नज़रों से मेरी ओर देखा। मैंने नज़रें नीची कर लीं। माँ बोली “समर्थ रिया को समझो, उसे पैसे की नहीं तुम्हारे प्यार और वक्त की जरूरत है।” यह कह कर वह अंदर चली गयीं। मैंने समर्थ से दरवाज़े पर कहा “समर्थ जब आपसी रिश्ते कमजोर पड़ जायें तो उन्हें आज़ाद कर देना चाहिए। तुम रिया को इस बंधन से आज़ाद कर दो। इसी में सब की भलाई है।” समर्थ उदास मन से गाड़ी में बैठा और अपने घर की ओर रवाना हो गया।

सुबह-सुबह मेरी आँख फोन की घंटी से खुल गयी। समर्थ के घर से पुलिस का फोन था। मैं तुरंत रिया के घर पहुँच गया। पुलिस वालों से पता चला कि कल रात जब समर्थ नशे की हालत में घर आया तब उसके और रिया के बीच काफी झगड़ा हुआ। रिया ने समर्थ से कहा “तुम्हारे पास मेरे लिए वक्त नहीं, इसलिए मैं अपना समय किसी और दे रही हूँ। मैं उससे प्यार करती हूँ। हमारा प्यार सारी सीमायें तोड़ चुका है। मैं उसके लिए कोई भी कीमत चुकाने को तैयार हूँ। तुम मुझे इस बंधन से आज़ाद कर दो” यह कह कर वह घर छोड़ कर जाने लगी। समर्थ ने उसे कस कर पकड़ा और अंदर की ओर धक्का देते हुए बोला “तुम कहीं नहीं जा रही हो। मैं तुम से बहुत प्यार करता हूँ। मैं कभी तुम को आज़ाद नहीं करूँगा..... ” तभी उसने देखा कि रिया फर्श पर पड़ी थी और क़ालीन खून से भरा था। दरअसल समर्थ का धक्का इतनी जोर से था कि रिया क़ालीन पर रखी कांच की मेज से टकरा गयी। मेज का कोना उसके गले में घुस गया और वह वहीं ढ़ेर हो गयी।

पुलिस वालों से बात कर के मैं घर के अंदर पहुँचा। फर्श पर रिया की लाश पड़ी थी और समर्थ बदहवास सा चिल्ला रहा था “मैंने रिया को हमेशा के लिए आज़ाद कर दिया।”

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रचनाकार: कहानी // आज़ाद // निधि जैन
कहानी // आज़ाद // निधि जैन
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