जनजीवन // कविता संग्रह // राजेश माहेश्वरी

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जनजीवन कविता संग्रह राजेश माहेश्वरी . --- . राजेश माहेश्वरी की सृजन सरिता . श्री राजेश माहेश्वरी की कविताएं भाव-प्रवण हैं। उनकी भावनाओं और उ...

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जनजीवन

कविता संग्रह

राजेश माहेश्वरी

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राजेश माहेश्वरी की सृजन सरिता

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श्री राजेश माहेश्वरी की कविताएं भाव-प्रवण हैं। उनकी भावनाओं और उनके चिन्तन का संसार विस्तृत है। उनकी भावनाओं मे एक आदर्श है। वे स्वयं में एक आदर्श की परिकल्पना करते हैं साथ ही वे परिवार के सदस्यों के संदर्भ में, अपने नगर के संदर्भ में अपने देश के संदर्भ में और समग्र मानव जाति के संदर्भ में एक आदर्श चरित्र एवं व्यवहार की परिकल्पना करते हैं।

वे देश, समाज, राजनीति और धर्म के भी उस स्वरूप की कल्पना करते हैं जहाँ कोई भेदभाव नहीं है और सभी को समानता के साथ जीने का अधिकार और साधन उपलब्ध हैं। यही कारण है कि जहाँ भी उन्हें अपने इन आदर्शों के दर्शन होते हैं वे उसकी सराहना करते हैं और जहाँ उन्हें कोई कमी नजर आती है वे उसको रेखांकित करते हुए उसमें संशोधन और संवर्धन की अपेक्षा रखते हैं। उनकी अभिधात्मक एवं सहृदय अभिव्यक्ति ही उनके काव्य का प्रमुख सौन्दर्य हैं और यही उन्हें सर्वग्राह्यता प्रदान करती है।

उनकी सृजन-सरिता सतत् प्रवहमान रहे, इसी शुभेक्षा के साथ-

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अभय तिवारी

गीतकार, पत्रकार एवं सेवानिवृत्त प्राचार्य

जय नगर, जबलपुर।

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हे राम!

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इतनी कृपा दिखना राघव, कभी न हो अभिमान,

मस्तक ऊँचा रहे मान से, ऐसे हों सब काम।

रहें समर्पित, करें लोक हित, देना यह आशीष,

विनत भाव से प्रभु चरणों में, झुका रहे यह शीश।

करें दुख में सुख का अहसास,

रहे तन-मन में यह आभास।

धर्म से कर्म, कर्म से सृजन, सृजन में हो समाज उत्थान,

चलूं जब दुनिया से हे राम! ध्यान में रहे तुम्हारा नाम।


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प्रभु दर्शन

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मन प्रभु दरशन को तरसे

विरह वियोग श्याम सुन्दर के, झर-झर आँसू बरसे।

इन अँसुवन से चरण तुम्हारे, धोने को मन तरसे।

काल का पहिया चलता जाए, तू कब मुझे बुलाए,

नाम तुम्हारा रटते-रटते ही यह जीवन जाए।

मीरा को नवजीवन दीन्हों, केवट को आशीष,

शबरी के बेरों को खाकर, तृप्त हुए जगदीश।

जीवन में बस यही कामना, दरस तुम्हारे पाऊँ।

गाते-गाते भजन तुम्हारे, तुम में ही खो जाऊँ।


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माँ

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अंधेरी रात थी

घनघोर बरसात थी

बिजली कड़क कर दहला रही थी

हाथ को हाथ नहीं सूझ रहा था

बिजली भी गायब हो चुकी थी

घुप अंधेरे में वह उठी

दबे पांव मेरे पास आई

कोमल हाथों से मुझे छूकर ही

सब कुछ समझ गई

दरवाजा खोलकर भीगती हुई

चली गई

कुछ देर बाद वह लौटी

मुझे दवाई खिलाई और

अपने भीगे कपड़े सुखाने चली गई।

उसे न क्षाने की सुध थी

न पीने की

पिछले तीन दिनों से वह

मेरी सेवा कर रही थी

वह मेरी माँ थी

मेरी महान माँ!

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पथिक

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वह पथिक

थका-हारा

भूखा-प्यासा

अपनी ही धुन में चलता-चलता

कच्चे रास्ते पर चलता हुआ

चौराहे पर जा पहुँचा

चारों ओर थे

भ्रष्टाचार, बेईमानी, मिलावटखोरी और रिश्वतखोरी के

चार अलग-अलग पक्के सपाट रास्ते

पर उसकी मंजिल तो सच्चाई थी

इन पर चलकर

उस तक

नहीं पहुँचा जा सकता था

वह बढ़ गया ईमानदारी की

ऊबड़-खाबड़ पगडण्डी पर

सूनी-सूनी धूल भरी

न छाया न पानी

और न ही कोई हमराही

धुंधले-धुंधले पैरों के निशान बता रहे थे

कभी कोई गया होगा इस राह से,

वह भी चलते-चलते

किसी तरह पहुँच ही गया

सच्चाई के गन्तव्य तक।

तभी सपना टूट गया,

मैं उठकर बैठ गया,

लग रहा था मैं

अभी भी खड़ा हूँ

उसी चौराहे पर।


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संस्कारधानी

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आँखों में झूमते हैं वे दिन

हमारे नगर में

गली-गली में थे

साहित्य-सृजनकर्ता

संगीत-साधक

विविध रंगों से

विविधताओं को उभारते हुए चित्रकार

राष्ट्र प्रेम से ओत-प्रोत

देश और समाज के

निर्माण और उत्थान के लिए

समर्पित पत्रकार

साहित्य, कला, संस्कृति और समाज के

सकारात्मक स्वरूप को

प्रकाशित करने वाले अखबार

और थे

इन सब को

वातावरण और संरक्षण देने वाले

जन प्रतिनिधि

जिनकी प्रेरणा और प्रोत्साहन में

होता था

नई पीढ़ी का निर्माण

पूरा नगर था एक परिवार

और पूरा देश जिसे कहता था

संस्कारधानी।

सृजन की वह परम्परा

वह आत्मीयता

और वह भाई-चारा

कहाँ खो गया?

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साहित्य, कला, संगीत और संस्कार

जन-प्रतिनिधि, पत्रकार और अखबार

सब कुछ बदल गया है।

डी.जे. और धमालों की

कान-फोड़ू आवाजों पर

भौंड़ेपन और अश्लीलता के साथ

कमर मटका रही है नई पीढ़ी

आम आदमी

रोजमर्रा की जिन्दगी

मंहगाई और परेशानियों में

खो गया है,

सुबह से शाम तक

लगा रहता है काम में

कोल्हू का बैल हो गया है।

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साहित्य-कला-संगीत की

वह सृजनात्मकता

उपेक्षित जरूर है

पर लुप्त नहीं है।

आवश्यकता है उसके

प्रोत्साहन और उत्साहवर्धन की।

काश कि यह हो पाए

तो फिर हमारा नगर

कलाधानी, साहित्यधानी और

संस्कारधानी हो जाए।


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दूध और पानी

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प्रभु ने पूछा-

नारद!

भारत की संस्कारधानी

जबलपुर की ओर

क्या देख रहे हो?

नारद बोले-

प्रभु !

देख रहा हूँ

गौ माता को नसीब नहीं है

चारा, भूसा या सानी,

बेखौफ मिलाया जा रहा है

दूध में पानी।

स्वर्ग में नहीं मिलता देखने

ऐसा बुद्धिमत्तापूर्ण हुनर,

मैं भी इसे सीखने

जा रहा हूँ धरती पर।

प्रभु बोले-

पहले अपना बीमा करवा लो

अपने हाथ और पैर

मजबूत बना लो।

ग्वाला तो गाय लेकर भाग जाएगा,

अनियंत्रित यातायात में

कोई कार या डम्पर वाला

तुम्हें टक्कर मारकर

यमलोक पहुँचाएगा।

दूध को छोड़ो

और अपनी सोचो

यहाँ रह रहे हो

यहीं सुरक्षित रहो।


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सुप्त चेतना

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धर्म, मत, जाति के

बदल जाने से

‘हम’

नहीं बदलते

जब तक

हृदय परिवर्तन न हो

नहीं हो सकती

सत्य की स्थापना।

हिरण की कुलाँच में

विलास तो है

परन्तु ... दिग्ज्ञान नहीं।


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लावा

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बहती हुई नदी की तरह

दौड़ने लगता

मन...

सतत प्रदीप्त-ग्रह की तरह

एक विचार!

अब एल्बम में कैद है

वह बचपन!

निर्विकार

निष्कलंक

उजली सुबह की तरह।

इन्द्रधनुषी सपनों की उत्कण्ठा

प्रतीक्षा

सब कुछ था,

सहेजे हूँ आज भी

उनको

किसी खजाने की तरह।


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मानव और संत

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धरती

आकाश

सूर्य के प्रकाश का ताप

चांदनी की शीतलता

और हमारा सृजन,

प्रभु के द्वारा हुआ सम्पन्न।

हमने बनाए

मंदिर, मस्जिद, गुरुद्वारा और चर्च

उसकी आराधना के लिए

दीपक जलाए

मोमबत्तियाँ जलाईं

शीश झुकाकर प्रार्थना की

लेकिन सुख-समृद्धि और वैभव की कामना

मिट न सकी

इसी चाहत में

श्रृद्धा, भक्ति और सेवा

समर्पित रही

इसी भाव से करते रहे प्रार्थना

अपने स्वार्थ में डूबे

चाहत की आशा में खोए रहे

कभी व्यक्त नहीं कर सके

मन, हृदय और आत्मा से

प्रभु के प्रति कृतज्ञता

इसीलिये मानव

संत नहीं बन पाता

संत तो

कृतज्ञता में बिताता है अपना समय

और मानव का

प्रतीक्षाओं और अपेक्षाओं में

होता है जीवन का अंत।


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मंहगाई

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सबेरे-सबेरे

कौए की कांव-कांव,

हम समझ गए

आज आ रहा है

कोई मेहमान।

तभी पत्नी ने किया टीवी ऑन।

उसे देखते ही हम सकपका गए,

बिस्तर से गिरे और

धरती पर आ गए।

पेट्रोल, डीजल, कैरोसिन और

गैस की टंकी के बढ़ गए

अनाप-शनाप दाम,

नेताजी से दूरभाष पर

पूछ बैठे

यह आपने क्या कर दिया काम?

वे बोले-

यह नहीं है हमारा काम

लोकसभा, राज्यसभा और विधानसभा में

हम जितने पहले थे

उतने ही अब भी हैं,

हमारी संख्या स्थिर है

पर तुम्हारे घर की tulaख्या

बढ़ती ही जा रही है।

हम जितना उत्पादन बढ़ाते हैं

तुम उससे चार गुना

जनसंख्या बढ़ाते हो।

ऐसे में कैसे कम होंगे दाम?

तुम कम करो जनसंख्या

तो अपने आप दाम कम हो जाएंगे,

तुमको भी मिलेगी राहत और

हम भी चैन की बंसी बजाएंगे।


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जीवन का आधार

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जीवन में

असफलताओं को करो स्वीकार

मत हो निराश

इससे होगा

वास्तविकता का अहसास

असफलता को सफलता में

बदलने का करो प्रयास

समय कितना भी विपरीत हो

मत डरना

रखना विश्वास

साहस और भाग्य पर

अपने पौरुष को जाग्रत कर

धैर्य और साहस से

करना प्रतीक्षा सफलता की

पौरुष दर्पण है

भाग्य है उसका प्रतिबिम्ब

दोनों का समन्वय बनेगा

सफलता का आधार

कठोर-श्रम, दूर-दृष्टि और पक्का इरादा

कठिनाइयों को करेगा समाप्त

होगा खुशियों के नए संसार का आगमन

विपरीत परिस्थितियों का होगा निर्गमन

पराजित होंगी कुरीतियां

होगा नए सूर्य का उदय

पूरी होंगी सभी अभिलाषाएं

यही है जीवन का आधार

कल भी था

आज भी है और

कल भी रहेगा।

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दस्तक

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मेरे स्मृति पटल पर

देंगी दस्तक

तुम्हारे साथ बीते हुए

लम्हों की मधुर यादें,

ये हैं धरोहर

मेरे अन्तरमन की

इनसे मिलेगा

कभी खुशी

कभी गम का अहसास

जो बनेगा इतिहास

यही बनेंगी सम्बल

दिखलाएंगी सही राह

मेरे मीत

मेरी प्रीत भी रहेगी

हमेशा तुम्हारे साथ

तुम्हारे हर सृजन में

बनकर मेरा अंश

यही रहेगी

मेरी और तुम्हारी

सफलता का आधार

जीवन में करेगी मार्गदर्शन

और देगी दिशा का ज्ञान।

ये न कभी खत्म हुई है

न कभी खत्म होगी।

आजीवन देती रहेंगी तुम्हारे साथ

सागर से भी गहरी है तुम्हारी गंभीरता

और

आकाश से भी ऊँची हो तुम्हारी सफलताएं

तुम वहां

मैं यहां

बस यादों का ही है सहारा

कर रहा हूँ अलविदा,

खुदा हाफिज

नमस्कार!


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शहर और सड़क

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शहर की सड़क पर

उड़ते हुए धूल के गुबार ने

अट्टहास करते हुए

मुझसे कहा-

मैं हूँ तुम्हारी भूल का परिणाम

पहले मैं दबी रहती थी

तुम्हारे पैरों के नीचे सड़कों पर

पर आज मुस्कुरा रही हूँ

तुम्हारे माथे पर बैठकर

पहले तुम चला करते थे

निश्चिंतता के भाव से

शहर की प्यारी-प्यारी

सुन्दर व स्वच्छ सड़कों पर

पर आज तुम चल रहे हो

गड्ढों में सड़कों को ढूंढ़ते हुए

कदम-दर-कदम संभलते हुए

तुमने भूतकाल में

किया है मेरा बहुत तिरस्कार

मुझ पर किये हैं

अनगिनत अत्याचार

अब मैं

उन सब का बदला लूंगी

तुम्हारी सांसो के साथ

तुम्हारे फेफड़ो में जाकर बैठूंगी

तुम्हें उपहार में दूंगी

टी. बी., दमा और श्वास रोग

तुम सारा जीवन रहोगे परेशान

और खोजते रहोगे

अपने शहर की

स्वच्छ और सुन्दर सड़कों को।


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आर्य-पथ

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हम हैं उस पथिक के समान

जिसे कर्तव्य बोध है

पर नजर नहीं आता

सही रास्ता

अनेक रास्तों के बीच

हो जाते हैं दिग्भ्रमित।

इस भ्रम को तोड़कर

रात्रि की कालिमा को देखकर

स्वर्णिम प्रभात की ओर

गमन करने वाला ही

पाता है सुखद अनुभूति

और

सफल जीवन की संज्ञा।

हमें संकल्पित होना चाहिए कि

कितनी भी बाधाएँ आएँ

कभी नहीं होंगे

विचलित और निरुत्साहित।

जब आर्यपुत्र

मेहनत, लगन और सच्चाई से

जीवन में करता है संघर्ष

तब वह कभी नहीं होता

पराजित।

ऐसी जीवन-शैली ही

कहलाती है

जीने की कला

और प्रतिकूल समय में

मार्गदर्शन कर

बन जाती है

जीवन-शिला।


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बोझा

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आज सुबह नाश्ते में

लड्डू, जलेबी और बादाम का हलुआ देखकर

मन बाग-बाग हो गया

इतना प्यारा नाश्ता देखकर

मैं पत्नी के प्यार में खो गया

मेरे स्वर में

उनके लिये बेहद प्यार आ गया

लेकिन

उनका जवाब सुनकर

मुझे चक्कर आ गया।

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पड़ोसी का लड़का

कालेज के अंतिम वर्ष में

प्रथम श्रेणी में प्रथम आया था

इसी खुशी में मैंने अपनी प्लेट में

यह लड्डू पाया था।

यह तो तय था

उसे कोई अच्छी नौकरी मिल जाएगी

और फिर

जिन्दगी भर

चापलूसी ही करवाएगी।

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दूसरे पड़ोसी की

लड़की थी अलबेली

उसके अनुत्तीर्ण होने पर

बांटी गई थी जलेबी।

उसे कर दिया गया था

महाविद्यालय से बाहर

इसीलिये खुश थे उसके

मदर और फादर।

वह रोज सिने तारिका बनकर

महाविद्यालय जाती थी

हर दिन उनके पास

नई-नई शिकायत आती थी

अब वे कर सकेंगे उसके पीले हाथ

और फिर तीर्थ यात्रा पर ?

चले जायेंगे बद्रीनाथ।

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तीसरा था एक नेता का लड़का

पढ़ने-लिखने में था एकदम कड़का

बड़ी मुश्किल से निकल पाया था,

परीक्षा में थर्ड डिवीजन लाया था।

नेता जी खुशी जता रहे थे

लोगों को बता रहे थे

गांधी-डिवीजन में आया है

बड़ा उजला भविष्य लाया है

बहुत किस्मत वाला है

बहुत ऊँचा जाएगा

मैं तो केवल नेता हूँ

यह मंत्री बन जाएगा।

सबसे कह रहे थे

मांगो दुआ

सबको खिला रहे थे

बादाम का हलुआ।

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मैं जैसे सो गया

अपने ही ख्यालों में खो गया

पहले जनता का बोझ

ढोता था गधा,

अब गधे का बोझ

ढोयेगी जनता।

लोकतंत्र का नया रूप नजर आएगा,

लोक अब इस तंत्र का बोझा उठायेगा।

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अंत से प्रारंभ।

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माँ का स्नेह

देता था स्वर्ग की अनुभूति,

उसका आशीष

भरता था जीवन में स्फूर्ति।

एक दिन

उसकी सांसों में हो रहा था सूर्यास्त

हम थे स्तब्ध और विवके शून्य

देख रहे थे जीवन का यथार्थ

हम थे बेबस और लाचार

उसे रोक सकने में असमर्थ

और वह चली गई

अनन्त की ओर।

मुझे याद है

जब मैं रोता था

वह हो जाती थी परेशान,

जब मैं हंसता था

वह खुशी से फूल जाती थी,

वह सदैव

सदाचार, सद्व्यवहार और सद्कर्म

पीड़ित मानवता की सेवा,

राष्ट्र के प्रति समर्पण और

सेवा व त्याग की

देती थी शिक्षा।

देते-देते शिक्षा

लुटाते-लुटाते आशीष

बरसाते-बरसाते ममता

हमारे देखते-देखते ही

हमारी आँखों के सामने

हो गई

पंचतत्वों में विलीन।

अभी भी जब कभी

होता हूँ परेशान

बंद करता हूँ आँखें

वह सामने आ जाती है,

जब कभी होता हूँ व्यथित

बदल रहा होता हूँ करवटें

वह आती है

लोरी सुनाती है

और

सुला जाती है।

समझ नहीं पाता हूँ

यह प्रारंभ से अंत है

या अंत से प्रारंभ।

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सच्चा लोकतंत्र

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पहले था राजतंत्र

अब है लोकतंत्र

पहले राजा शोषण करता था

अब नेता कर रहा है।

जनता पहले भी थी

और आज भी है

गरीब की गरीब।

कोई ईमान बेचकर

कोई खून बेचकर

कोई तन बेचकर

कमा रहा है धन,

तब चल पा रहा है

उसका और उसके

परिवार का तन।

नेता पूंजी का पुजारी है

उसके घर में

उजियारा ही उजियारा है।

जनता गरीब की गरीब और बेचारी है

उसके जीवन में

अंधियारा ही अधियारा है।

खोजना पड़ेगा कोई ऐसा मंत्र

जिससे आ जाए सच्चा लोकतंत्र,

मिटे गरीब और अमीर की खाई

क्या तुम्हारे पास ऐसा कोई इलाज

है मेरे भाई!

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नया नेता : नया नारा

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जब भी उदित होता है नया नेता

गूँज उठता है एक नया नारा।

आराम हराम है

जय जवान, जय किसान

गरीबी हटाओ

हम सुनहरे कल की ओर बढ़ रहे हैं

और शाइनिंग इण्डिया के

वादे और नारे

न जाने कहाँ खो गए,

मानो अतीत के गर्भ में सो गए।

मंहगाई, रिश्वतखोरी, बेईमानी और भ्रष्टाचार

बढ़ते ही जा रहे हैं

और नये नेता

अच्छे दिन आने वाले हैं का

नया नारा लगा रहे हैं।

अच्छे दिन कैसे होंगे?

कब आएंगे?

कोई नहीं समझा रहा,

नारा लगाने वाला

स्वयं नहीं समझ पा रहा।

जनता कर रही है प्रतीक्षा

हो रही है परेशान

वह नहीं समझ पा रही

परिवर्तन ऐसे नहीं होता।

हम स्वयं को बदलें

जाग्रत करें नवीन चेतना

श्रम और परिश्रम से

सकारात्मक सृजन हो

तभी होगा परिवर्तन

और होगा प्रादुर्भाव

एक नये सूर्य का।

तब नहीं होगा सूर्यास्त

उस प्रकाश से

अनीतियों और कुरीतियों का होगा मर्दन।

तभी हम

मजबूर नहीं

मजबूत होकर उभरेंगे।

भारत का नव निर्माण करके

विश्व में स्थापित कर पाएंगे

अपने देश का मान-सम्मान

और तभी होगा सचमुच

भारत देश महान।

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राष्ट्र के प्रति जवाबदारी

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शून्य भारत की देन रही

पर आज हम

विकास शून्य हो रहे हैं।

प्रजातान्त्रिक व्यवस्था में

मजबूत नहीं

मजबूर होकर रह गए हैं।

शिक्षक, कृषक, चिकित्सक

उद्योगपति और व्यापारी

इन पर है राष्ट्र के

विकास की जवाबदारी,

इनकी योग्यता

दूर दृश्टि

पक्का इरादा और समर्पण

हो राष्ट्र के लिये अर्पण

तब होगा सकारात्मक विकास के

स्वप्न का सृजन।

ऐसा न होने पर

प्रगति होगी अवरुद्ध

जनता होगी क्रुद्ध

और तब होगा गृह-युद्ध।

अभी भी समय है

जाग जाओ

अपने खोये हुए विश्वास को

वापिस लाओ,

अपनी चेतना को जागृत कर

विकास की गंगा बहाओ।


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चिन्ता, चिता और चैतन्य

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चिन्ता, चिता और चैतन्य

जीवन के तीन रंग।

चिन्ता जब होगी खत्म

तब होगा जीवन में

आनन्द का शुभारम्भ।

चिन्ता देती है विषाद, दुख और परेशानियां

और देती है

सकारात्मकता में

अवरोध का अहसास

इससे हममें जागता है चिन्तन।

चिन्ता के कारण पर

धैर्य, साहस और निडरता से करो प्रहार

जिससे होगा इसका संहार।

ऐसा न होने पर

चिन्ता तुम्हें ले जाएगी

चिता की ओर

तुम्हारे अस्तित्व को समाप्त कर देगी।

चिन्ताओं से मुक्ति देगी

कलयुग में सतयुग का आभास

सूर्योदय से सूर्यास्त तक

चैतन्य में जीवन जीने का

हो प्रयास

परम पिता परमेश्वर से

यही है मानव की आस।


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भविष्य का निर्माण

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अंधेरे को परिवर्तित करना है

प्रकाश में

कठिनाइयों का करना है

समाधान

समय और भाग्य पर है

जिनका विश्वास

निदान है उनके पास

किन रंगों और सपनों में खो गए

सपने हैं कल्पनाओं की महक

इन्हें हकीकत में बदलने के लिये

चाहिए प्रतिभा

यदि हो यह क्षमता

तो चरणों में है सफलता

अंधेरा बदलेगा उजाले में

काली रात की जगह होगा

सुनहरा दिन

जीवन गतिमान होकर

बनेगा एक इतिहास

यही देगा नई पीढ़ी को

जीवन का संदेश

यही बनेगा सफलता का उद्देश्य।

कवि की कथा

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मैं हूँ कवि

समाज में हो सकारात्मक परिवर्तन

यही है मेरा चिन्तन, मनन और मन्थन

इसीलिये करता हूँ

काव्य-सृजन

श्रोताओं की वाह-वाही

देती है तृप्ति।

वे कारों में आते

कविता सुनकर

वापिस चले जाते,

मैं भी

सम्मान में मिले

पुष्प गुच्छ छोड़कर

अपनी कविता के साथ

चुपचाप

चल पड़ता हूँ

अपने घर की ओर,

सोचता हूँ

कविता देती है प्रसिद्धि

किन्तु रोटी का

नहीं है प्रबंध,

भूखे पेट

पानी पीकर

तृप्त हो जाता हूँ

और फिर चल पड़ता हूँ

अगले सृजन और

अगली प्रस्तुति के लिये,

यही है दिनचर्या

यही है जीवन

यही है जीवन का आरम्भ

और यही है

जीवन का अन्त।


.

.

बुजुर्गां के सपने

.

वह वृद्ध

अनुभवों की जागीर समेटे

चेहरे पर झुर्रियाँ

जैसे किसी चित्रकार ने

कैनवास पर

खींच दी हैं

आड़ी-तिरछी रेखाएं

टिमटिमाते हुए दिए की लौ में

पा रहा है उष्णता का आभास,

वह दुखी और परेशान है

अपनी अवस्था से नहीं

व्यवस्था से,

यह नहीं है

उसके सपनों का देश

वह खो जाता है

मनन और चिन्तन में।

भयमुक्त ईमानदारी की राह

नैतिकता से आच्छादित

सहृदयता, समरसता एवं सद्चरित्र से परिपूर्ण

समाज के सपने देखता था वह

किन्तु विपरीत स्थितियाँ

सोचने पर कर रहीं हैं मजबूर

फिर भी

चेहरे पर है आशा का भाव

परिवर्तन की अपेक्षाएं

सूर्यास्त के साथ ही

वह चल पड़ा

अनन्त की ओर

पर उसकी आशा

आज भी

वातावरण में समाहित है

एक दिन देश में परिवर्तन आएगा

उसका सपना साकार हो जाएगा।


.

जीवन पथ

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हमारा व्यथित हृदय

है वह पथिक

जिसे कर्तव्य-बोध है

पर नजर नहीं आता

सही रास्ता।

आदमी कभी-कभी

सही मार्ग की चाहत में

कर्तव्य-बोध होते हुए भी

हो जाता है

दिग्भ्रमित।

इस भ्रम के आवरण को हटाकर

जीवन को

रात की कालिमा से निकालकर

स्वर्णिम प्रभात की दिशा में

जो व्यक्तित्व को ले जाता है

वही जीवन में

सुखद अनुभूति प्राप्त कर

सफल कहलाता है।

हमें

जीवन-पथ में

इस संकल्प के साथ

समर्पित रहना चाहिए

कि कितनी भी बाधाएं आएं

कभी भी

विचलित या निरुत्साहित न हों।

जब धरती-पुत्र-व्यक्तित्व

पूरी मेहनत

लगन

सच्चाई

और दूरदर्शिता से

संघर्ष करता है

तब वह कभी भी

पराजित नहीं होता,

ऐसी जिजीविषा

सफल जीवन जीने की

कला कहलाती है

और प्रतिकूल समय में

मार्गदर्शन कर

जीवन-दान दे जाती है।


.

आस्था और विश्वास

.

आस्था और विश्वास

हैं जीवन का आधार

दोनों का समन्वय है

सृजनशीलता व विकास।

विश्वास देता है संतुष्टि

और आस्था से मिलती है

आत्मा को तृप्ति।

इनका कोई स्वरूप नहीं

पर हर क्षण

कर सकते हैं इनका

एहसास व आभास।

विश्वास से होता है

आस्था का प्रादुर्भाव,

किसी की आस्था एवं विश्वास पर

कुठाराघात से बड़ा

नहीं है कोई पाप,

परमात्मा के प्रति हमारी आस्था और विश्वास

दिखाते हैं हमें

सही राह व सही दिशा

बहुजन हिताय व बहुजन सुखाय

हो हमारी आस्था और विश्वास

यही होगा

हमारी सफलता का प्रवेश द्वार।


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कवि की संवेदना

.

संवेदना हुई घनीभूत

होने लगी अभिव्यक्त

और वह

कवि हो गया।

धन कमाता

पर उसे

अपनी आवश्यकता से अधिक

महत्वपूर्ण लगी

औरों की आवश्यकता

इसीलिये वह अपना सब कुछ

औरों को बांटकर

हो गया फक्कड़।

जहाँ कुछ नहीं होता

वहाँ होती है कविता

वह अपने आप से कहता

अपने आप की सुनता

और अपने में ही करता रमण।

मिल जाता जब श्रोता

तो मिल जाती सार्थकता

वाह वाह सुनकर ही उसे लगता

जैसे मिल गयी हो सारी दौलत।

धन आता

चला जाता

वह फक्कड़ का फक्कड़

चलता रहता काव्य-सृजन

सृजन की संतुष्टि

वाह वाह में सार्थकता का आनन्द

यही है उसकी सुबह

यही है उसकी शाम

यही है उसके जीवन का प्रवाह।


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भूख

.

गरीबी और विपन्नता का

वीभत्स रूप

भूख!

राष्ट्र के दामन पर

काला धब्बा

भूख!

सरकार

गरीबी मिटाने का

कर रही है प्रयास,

पांच सितारा होटलों में बैठकर

नेता कर रहे हैं

बकवास।

भूख से बेहाल गरीब

कर रहा है प्रतीक्षा

मदद की,

जनता चाहती है

सब कुछ

सरकार करे

लेकिन यदि

सब मिल कर करें प्रयास

प्रतिदिन करें

एक रोटी की तलाश

तो हो सकता है

भूख का निदान,

यह एक कटु सत्य है

भूखे भजन न होय गोपाला

भूखे को रोटी खिलाइये

उसे निठल्ला मत बैठालिये

जब रोटी के बदले होगा श्रम

तभी मिटेगा भूख का अभिशाप

नई सुबह का होगा शुभारम्भ

अपराधीकरण का होगा उन्मूलन

स्वमेव आएगा अनुशासन

भूख और गरीबी का होगा क्षय

नए सूर्य का होगा उदय।


.

जय जवान जय किसान

.

देश की सुरक्षा और

हरित क्रान्ति का प्रतीक है

जय जवान जय किसान!

यह हमारी

सभ्यता, संस्कृति और संस्कारों का

प्रणेता है

जितना कल था

उतना ही आज भी है

उद्देश्यपूर्ण और सारगर्भित।

कैसा परिवर्तन है

हमारी सोच में

या परिस्थितियों में

हमारा अन्नदाता

कर्ज में डूबा

कर रहा है आत्महत्या

हरित क्रान्ति का प्रतीक

खेती के लिये

सरकारी अनुदान की ओर

निहार रहा है

सीमा पर सैनिक

हमारी रक्षा के लिये

हो रहा है शहीद,

हमें उस पर गर्व है

किन्तु कुछ हैं जो

कर रहे हैं इसकी आलोचना

ऐसे देशद्रोहियों से

देश हो रहा है शर्मिन्दा

सर्वोच्च पदों पर बैठे

नेताओं को

मजबूर नहीं

मजबूत होकर दिखाना होगा

देश-भक्ति को सुदृढ़ कर

ऐसे राष्ट्र-द्रोहियों से

देश को बचाना होगा

तभी हम बढ़ सकेंगे

आदर्श नागरिक

बन सकेंगे,

जय जवान जय किसान को

सार्थक कर सकेंगे।


.

नेता चरित्र

.

देश में

प्रगति और विकास की दर

क्यों है इतनी कम

क्या हमारे नेताओं में

कम है दम।

काम किसी का करते नहीं

uk किसी को कहते नहीं

पाँच साल में एक बार

सद्भाव, सदाचार, सहिष्णुता बताकर

हमारा मत झटका कर

पद पा जाते हैं

भ्रष्टाचार, रिश्वतखोरी और अनैतिकता से

धन कमाते हैं

ज्नता

मंहगाई, भाई-भतीजावाद

और बेरोजगारी में पिसकर

जहाँ थी

वहीं रह जाती है।

गरीबी के हटने

और अच्छे दिन आने की

प्रतीक्षा करती है।

देश की पचास प्रतिशत आबादी

चौके-चूल्हे में व्यस्त है

जीडीपी में

उनका योगदान

बहुत कम है।

बढ़ती जनसंख्या

आर्थिक प्रगति और विकास में बाधक है

नेता

प्राकृतिक आपदा में भी सुरक्षित

और जनता

अपने ही घर में असुरक्षित।

नेता

कथनी और करनी को एक करें

देश को निराशा से उबारकर

विकास की ओर

अग्रसर करें,

विचारधारा में परिवर्तन लाएं

सकारात्मक सृजन करें

भारत को उसका

मान-सम्मान दिलाएं

नाम रौशन करें।

.

भक्त और भगवान

.

उसका जीवन

प्रभु को अर्पित था

वह अपनी सम्पूर्ण

श्रृद्धा और समर्पण के साथ

तल्लीन रहता था

प्रभु की भक्ति में।

एक दिन

उसके दरवाजे पर

आयी उसकी मृत्यु

करने लगी

उसे अपने साथ

ले जाने का प्रयास,

लेकिन वह

हृदय और मस्तिष्क में

प्रभु को धारण किए

आराधना में लीन था

मृत्यु करती रही प्रतीक्षा

उसके अपने आप में आने का

वह नहीं आया

और मृत्यु का समय बीत गया

उसे जाना पड़ा खाली हाथ

कुछ समय बाद

जब उसकी आँख खुली

उसे ज्ञात हुआ सारा हाल

वह हुआ लज्जित

हाथ जोड़कर

नम आँखों से

प्रभु से बोला

क्षमा करें नाथ

मेरे कारण आपको

यम को करना पड़ा परास्त

कहते-कहते वह

प्रभु के ध्यान में खो गया

भक्ति में लीन हो गया।


.

कोरा कागज

.

कोरा कागज

साफ, सुन्दर, स्वच्छ

पर उसका मूल्य

नगण्य

किन्तु जब उस पर

अंकित होते हैं सार्थक शब्द

भाव, विचार या वर्णन

होता है लिपिबद्ध

तब वह अनमोल होकर

बन जाता है

इतिहास का अंग।

जीवन भी

कोरे कागज के समान है

जब होता है सृजनहीन

तब समय के साथ

खो देता है अपनी पहचान

वह किसी की स्मृतियों में नहीं रहता

उसका जीवन यापन होता है

मूल्यहीन,

पर जो

मेहनत, लगन और समर्पण से

सृजन करता हुआ

समाज को देता है दिशा

वह बनता है युग-पुरुष

उसका जीवन

होता है

सफलता, मान-सम्मान और वैभव से परिपूर्ण।

हमारा जीवन

uk हो कोरे कागज के समान

युग पुरुष बनकर दिखाओ।

देश को

विश्व में

गौरवपूर्ण स्थान दिलाओ।

.


.

नव-वर्षाभिनन्दन

.

आ रहा नववर्ष!

आओ मिलकर

नव-आशा और

नव-अपेक्षा से

करें इसका अभिनन्दन।

देश को दें नई दिशा

और लायें नये

सामाजिक एवं आर्थिक परिवर्तन,

किसानों, व्यापारियों, श्रमिकों और

उद्योगपतियों को

मिले उचित सम्मान।

रिश्वत, मिलावट, भाई-भतीजावाद और

मंहगाई से मुक्त राष्ट्र का

हो निर्माण,

कर्म की हो पूजा और

परिश्रम को मिले

उचित स्थान,

जब राष्ट्र प्रथम की भावना को

सभी देशवासी

वास्तव में कर लेंगे स्वीकार,

नूतन परिवर्तन

नूतन प्रकाश का सपना

तभी होगा साकार,

सूर्योदय के साथ

हम जागें लेकर मन में

विकास का संकल्प,

तभी पूरी होंगी

जनता की अभिलाषाएं

तब सब मिलकर

राष्ट्र की प्रगति के

बनेंगे भागीदार,

नूतन वर्ष का अभिनन्दन

तभी होगा साकार।


.

शुभ दीपावली

.

दीपावली शुभ हो

लक्ष्मी जी की कृपा बनी रहे

कुबेर जी का भण्डार भरा रहे

आशाओं के दीप जल रहे हैं

निराशाओं से संघर्ष कर रहे हैं

आशा का प्रकाश

निराशा के अंधकार को समाप्त कर

उत्साह व उमंग का संचार

हमारी अंतरात्मा में कर रहा है

हम अच्छे दिनों की प्रतीक्षा कर रहे हैं

भ्रष्टाचार, मंहगाई व रिश्वतखोरी के

समाप्त होने की प्रतीक्षा में

जीवन बिता रहे हैं

सरकार चल रही है

जैसे

सिर के ऊपर से

कार निकल रही है

सिर को कार का पता नहीं

कार को सिर का पता नहीं

पर सरकार चल रही है

आओ हम सब मिलकर

करें सकारात्मक सृजन

विध्वंश के एक अंश का भी

uk हो जन्म

विपरीत परिस्थितियों में भी

प्रज्ज्वलित रखो

आशाओं के दीप

कठिनाइयों में भी

बुझने मत दो

दीप से दीप प्रज्ज्वलित कर

बहने दो

प्रेम की गंगा।


.

समय और जीवन

.

कौन कहता है कि समय

निर्दय होता है,

वह तो

तरुणाई की कथा जैसा

होता है मधुर और प्रीतिमय,

वह यौवन के आभास सा

होता है कभी खट्टा और कभी मीठा।

उन मोहब्बत के मारों की सोचो

जिन्हें वक्त और जवानी ने

दगा दे दिया।

उनकी भावनायें बन जाती हैं

आंसुओं का दरिया,

उन्हें जीना पड़ता है

इसी मजबूरी में,

समय उन्हें देता है

दुखों की अनुभूति

वे जीवन भर

भरते हैं आहें

छोड़ते हैं ठण्डी सांसें।

समय उन्हीं पर मेहरबान होता है

जो समझ लेते हैं

समय को

समय पर।

ऐसे लोग

शहंशाह की तरह जीते हैं।

पर ऐसे खुशनसीब

बहुत कम होते हैं।

सुखी होते हैं वे

जो समय को

मित्र बनाकर रहते हैं

जिन्दगी के फलसफे को

समझकर जीते हैं।

वक्त को समझ सको

तो भी जीना है

न समझ सको तो भी

जीना है।

एक जीवन को जीना है

और दूसरा

जीना है

सिर्फ इसलिये जीना है।

.

.

हमारी संस्कृति

.

अनुभूति की अभिव्यक्ति

कविता बनती है।

सुरों की साधना

बन जाती है संगीत।

कविता है भक्ति

और संगीत है

उस भक्ति की अभिव्यक्ति।

एक समय

कविता और संगीत

सकारात्मक सृजन की दिशा में

शिक्षा के रूप में

मील के पत्थर थे।

आधुनिकता और आयातित संस्कृति के बाहुपाश ने

इन्हें जकड़ लिया,

इनकी भावनात्मकता और रचनात्मकता को

मिटा दिया।

इन्हें कर दिया आहत

और बना दिया

उछल-कूद का साधन,

अश्लीलता, फूहड़ता और कामुकता ने

बदल दिया है इनका रूप।

नई पीढ़ी को

समझuk होगी

संगीत और कविता की आत्मा

उसका महत्व

और उसे सार्थक करते हुए

समाज में उन्हें

करना होगा स्थापित

तभी निखरेगा इनका स्वरूप

और निखर उठेगी

हमारी संस्कृति।


.

काश ऐसा हो !

.

सृष्टि में

मानव है

सबसे महत्वपूर्ण और महान

वह है

परमपिता की सर्वात्तम कृति।

जीवन में

मनसा-वाचा-कर्मणा

सत्यमेव जयते और सत्यम शिवम सुन्दरम का

समन्वय हो,

ऐसे हों प्रयास

यही है परमपिता की

मानव से आस।

हिमाच्छादित पर्वत श्रृंखलाएं

मन को शान्ति

हृदय को संतुष्टि

आत्मा को तृप्ति देती हैं,

हमने सृजन छोड़कर

प्रारम्भ कर दिया विध्वंस।

कुछ पल पहले तक जहाँ

बिखरा हुआ था आनन्द,

अद्भुत और अलौकिक सौन्दर्य

कुछ पल बाद ही

गोलियों की बौछार कर गई

जीवन पर लगा गई

पूर्ण विराम।

हमें विनाश नहीं

सृजन चाहिए।

कोई नहीं समझ रहा

माँ का बेटा

पत्नी का पति

और अनाथ हो रहे

बच्चों का रुदन

किसी को सुनाई नहीं देता।

राजनीतिज्ञ कुर्सी पर बैठकर

चल रहे हैं

शतरंज की चालें

राष्ट्र प्रथम की भावना का

संदेश देकर

त्याग और समर्पण का पाठ पढ़ाकर

भेज रहे हैं सरहद पर

और सेंक रहे हैं

राजनैतिक रोटियाँ।

हम हो जागरूक

नये जीवन का दें संदेश

आर्थिक और सामाजिक तरक्की से

सम्पन्न हो हमारा देश।

मानवीयता हो हमारा धर्म

सदाचार और सद्कर्म

हो हमारा कर्म,

तभी जागृत होगी

एक नयी चेतना

सत्यमेव जयते

शुभम् करोति

अहिंसा परमो धर्मः की कल्पना

हकीकत में हो साकार

हमारे प्यारे देश को

भारत महान

पुकारे सारा संसार।


.

अहिन्सा परमो धर्मः

.

अहिन्सा परमो धर्मः

कभी थी हमारी पहचान

आज गरीबी और मंहगाई में

पिस रहा है इन्सान

जैसे कर्म करो

वैसा फल देता है भगवान।

कब, कहाँ, कैसे

नहीं समझ पाता इन्सान।

मंदिर, मस्जिद, गुरुद्वारा, चर्च सभी

बन रहे हैं आलीशान,

कैसे रहें यहाँ पर

परेशान हैं भगवान,

वे तो बसते हैं

दरिद्र नारायण के पास,

हम खोजते हैं उन्हें वहाँ

जहाँ है धन का निवास,

पूजा, भक्ति और श्रृद्धा तो

साधन हैं

हम इन्हीं में भटकते हैं।

परहित, जनसेवा और

स्वार्थरहित कर्म की ओर

कभी नहीं फटकते हैं।

काल का चक्र

चलता जा रहा है

समय निरन्तर गुजरता जा रहा है

दीन-दुखियों की सेवा

प्यासे को पानी

भूखे को रोटी

समर्पण की भावना

और घमण्ड से रहित जीवन से

होता है

परमात्मा से मिलन,

अपनी ही अन्तरात्मा में

होते हैं उसके दर्शन,

जीवन होगा धन्य

प्रभु की ऐसी कृपा पाएंगे

एक दिन हंसते हुए

अनन्त में विलीन हो जाएंगे।

.

.

.

हे माँ नर्मदे!

.

हे माँ नर्मदे!

हम करते हैं

आपकी स्तुति और पूजा

सुबह और शाम

आप हैं हमारी

आन बान शान

बहता हुआ निष्कपट और निश्छल

निर्मल जल

देता है माँ की अनुभूति

चट्टानों को भेदकर

प्रवाहित होता हुआ जल

बनाता है साहस की प्रतिमूर्ति

जिसमें है श्रृद्धा, भक्ति और विश्वास

पूरी होती है उसकी हर आस

माँ के आंचल में

नहीं है

धर्म, जाति या संप्रदाय का भेदभाव,

नर्मदा के अंचल में है

सम्यता, संस्कृति और संस्कारों का प्रादुर्भाव,

माँ तेरे चरणों में

अर्पित है नमन बारंबार।

अनुभव

.

अनुभव अनमोल हैं

इनमें छुपे हैं

सफलता के सूत्र

अगली पीढ़ी के लिये

नया जीवन।

बुजुर्गों के अनुभव और

नई पीढ़ी की रचनात्मकता से

रखना है देश के विकास की नींव।

इन पर बनीं इमारत

होगी इतनी मजबूत कि उसका

कुछ नहीं बिगाड़ पाएंगे

ठण्ड गर्मी बरसात आंधी या भूकम्प।

अनुभवों को अतीत समझकर

मत करो तिरस्कृत

ये अनमोल हैं

इन्हें अंगीकार करो

इनसे मिलेगी

राष्ट्र को नई दिशा

समाज को सुखमय जीवन।

.

अहा जिन्दगी

.

मानव की चाहत

जीवन

सुख-शान्ति से व्यतीत हो

इसी तमन्ना को

भौतिकता में खोजता

समय को खो रहा है।

वह प्राप्त करना चाहता है

सुख, शान्ति और आनन्द

वह अनभिज्ञ है

सुख और शान्ति से

क्षणिक सुख से वह संतुष्ट होता नहीं

वह तो चिर-आनन्द में

लीन रहना चाहता है।

मनन और चिन्तन से उत्पन्न विचारों को

अन्तर्निहित करने से प्राप्त अनुभव ही

आनन्द की अनुभूति है

वह हमें

परम शान्ति एवं संतुष्टि की

राह दिखलाता है।

हमारी मनोकामनाएं नियंत्रित होकर

असीम सुख-शान्ति और

अद्भुत आनन्द में प्रस्फुटित होकर

मोक्ष की ओर अग्रसर करती हैं।

तुम करो इसे स्वीकार

सुख-शान्ति और आनन्द से

हो तुम्हारा साक्षात्कार।

.


.

पत्नी और प्रेमिका

.

धन नहीं

प्रेमिका नहीं,

प्रेमिका नहीं

धन की उपोगिता नहीं,

पत्नी पर धन खर्च होता है

प्रेमिका पर होता है धन कुर्बान,

पत्नी घर की रानी,

प्रेमिका दिल की महारानी

पत्नी देती है सात वचन

प्रेमिका देती है बोल-वचन

पत्नी होती है जीवन-साथी

प्रेमिका केवल धन की साथी

प्रेमिका से प्यार

पत्नी का तिरस्कार

आधुनिक परिदृश्य में

सभ्यता, संस्कृति और संस्कार

हो रहा है सभी का बहिष्कार

समाज में यह नहीं हो सकता स्वीकार

पत्नी में ही देखो

प्रेमिका को यार

इसी में मिलेगा

जीवन का सार।

.


.

सच्ची प्रगति

.

एक ही राह

एक ही दिशा

और एक ही उद्देश्य

मैं और तुम

चल रहे हैं

बढ़ रहे हैं

अलग-अलग

बनकर हमसफर

चलें यदि साथ-साथ

तो हम दो नहीं

वरन हो जाएंगे

एक और एक ग्यारह

रास्ता आसान हो जाएगा

और हमें मंजिल तक

आसानी से पहुंचाएगा।

विपत्तियां होंगी परास्त

और हवाएं भी

सिर को झुकाएंगी।

हमारा दृष्टिकोण हो मानवतावादी

धर्म और कर्म का आधार हो

मानवीयता

तब समाज से समाप्त हो जाएगा

अपराध

निर्मित होगा एक ऐसा वातावरण

जहां नहीं होगी अराजकता

नहीं होगा अलगाववाद

नहीं होगी अमीरी-गरीबी

नहीं होगा धार्मिक उन्माद

और नहीं होगा जातिवाद।

लेकिन हमारे राजनीतिज्ञ

ऐसा होने नहीं देंगे

मैं और तुम को हम बनकर

चलने नहीं देंगे

हमें छोड़uk होगा

राजनीति का साया

और अपनाना होगी

वसुधैव सः कौटुम्बकम् की छाया।

तभी हमारे कदमों को

मिल पाएगी दिशा और गति

तभी होगी हमारी सच्ची प्रगति।

.

.

भ्रूण हत्या

.

उसकी सजल करुणामयी आँखों से

टपके दो आँसू

हमारी सभ्यता, संस्कृति और संस्कारों पर

लगा रहे हैं प्रश्नचिन्ह?

कन्या भ्रूण हत्या

एक जघन्य अपराध और

अमानवीयता की पराकाष्ठा है,

सभी धर्मों में यह है महापाप,

समय बदल रहा है

अपनी सोच और

रूढ़ियों में लायें परिवर्तन,

चिन्तन, मनन और मंथन द्वारा

सकारात्मक सोच के अमृत को

आत्मसात किया जाये

लक्ष्मीजी की करते हो पूजा पर

कोख में पल रही लक्ष्मी का

करते हो तिरस्कार

उसे जन्म के अधिकार से

वंचित मत करो

घर आई लक्ष्मी को

प्रसन्नता से करो स्वीकार

ऐसा जघन्य पाप किया तो

लक्ष्मी के साथ-साथ

सरस्वती को भी खो बैठोगे

अंधेरे के गर्त में गिरकर

सर्वस्व नष्ट कर बैठोगे।

.


.

प्रश्न और समाधान

.

अब प्रश्नों को विश्राम दो

एक प्रश्न का समाधान

दूसरे प्रश्न को जन्म देता है

प्रश्न से समाधान

समाधान से प्रश्न

उलझusa बढ़ाता है

समाधान से बढ़ती है

ज्ञान की पिपासा

यही पिपासा संवेदनशीलता बनकर

राह दिखाती है

प्रश्न और समाधान

करते हैं भविष्य का मार्गदर्शन

और सिखाते हैं

जीवन जीने की कला।


.

सपनों का शहर

.

हमारा भी सपना है

शहर हमारा अपना है

जब खुली आँखों से देखता हूँ

यह मात्र एक कस्बा है

बिजली सड़क और पानी

हैं विकास की प्रमुख निशानी

पर इनका है नितान्त अभाव

फिर भी इसे कहते हैं संस्कारधानी।

बिजली का कभी भी कितना भी कट,

खो गईं हमारे शहर से

स्वच्छ और सुन्दर सड़क,

विकास के नाम पर

हर नेता लड़ रहा है

गड्ढों में सड़क को

खोजना पड़ रहा है।

जनता कर रही है

पानी के लिये हाय! हाय!

नेता सपनों में खोये हैं

करके जनता को बाय-बाय!

इन्तजार है उस मसीहा का

जो करेगा

बिजली, पानी और सड़क का उद्धार

जिसे होगा विकास से सच्चा प्यार

तब हम गर्व से कहेंगे

यही है हमारे सपनों का

सुन्दर और वास्तविक शहर।

.


.

नारी व आर्थिक क्रान्ति

.

हम अपनी धुन में

वे अपनी धुन में

नजरें हुई चार

पहले मित्रता

फिर प्यार

पत्नी के रूप में

कर लिया स्वीकार।

जिन्दगी को मिल गयी

मनचाही सौगात,

दोनों के जीवन में

हो गया नया प्रभात।

वह मेरे साथ

कार्यालय आने-जाने लगी,

मेरे काम में हाथ बंटाने लगी।

उसकी होशियारी के आगे

कटने लगे मेरे कान और नाक

आमदनी बढ़ने लगी और

लगने लगे उसमें चार चाँद।

उसने नारी का सम्मान बढ़ाया

और समाज में अपना

विशिष्ट स्थान बनाया।

उसने बता दिया

नारी को अवसर मिले

तो वह कम नहीं है पुरुष से

यदि देश में ऐसा परिवर्तन आ जाये

हर परिवार में नारी होगी स्वाबलंबी

वह राष्ट्र की विकास दर में

योगदान करेगी

आर्थिक क्रान्ति में

महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगी

सृजन का नया इतिहास बनेगा

और तब

हमारे राष्ट्र में आयेगी समृद्धि

बढ़ेगा उसका मान और सम्मान

बढ़ेगा देश का गौरव।


.

अंतिम रात्रि

.

आज की रात मुझे

डूब कर विश्राम करने दो

क्या पता

कल का सूरज देख सकूं

या न देख सकूं,

चांद की दूधिया रौशनी को

आत्मा पर दस्तक देने दो

वह ले जा रही है

अंधकार से प्रकाश की ओर।

विचारों की आंधी को

भूत, भविष्य और वर्तमान का

चिन्तन और दर्शन करने दो।

हो जाने दो हिसाब

पाप और पुण्य का,

प्रतीक्षा और प्रेरणा में

जीवन रीत गया

अब अंत है

अनन्त में भी आत्मा प्रकाशित रहे

प्रभु की ऐसी कृपा होने दो

हमने किये जो धर्म से कर्म

उनका प्रतिफल मिले

परिवार और समाज को

प्रार्थना कर लेने दो

सोचते-सोचते ही सो गया

प्रारम्भ से अन्त नहीं

अन्त से प्रारम्भ हो गया।


.

जीवन का क्रम

.

मेघाच्छादित नील-गगन

गरजते मेघ और तड़कती विद्युत भी

आकाश के अस्तित्व और अस्मिता को

नष्ट नहीं कर पाते,

वायु का प्रवाह

छिन्न-भिन्न कर देता है

मेघों को,

आकाश वहीं रहता है

लुप्त हो जाते हैं मेघ।

ऐसा कोई जीवन नहीं

जिसने झेली न हों

कठिनाइयाँ और परेशानियाँ,

ऐसा कोई धर्म नहीं

जिस पर न हुआ हो प्रहार,

जीवन और धर्म

दोनों अटल हैं।

मानव रखता है

सकारात्मक और नकारात्मक दृष्टिकोण,

सकारात्मक व्यक्तित्व

कठिनाइयों से संघर्ष कर

चिन्तन और मनन करके

कठिनाइयों को पराजित कर

जीवन को सफल करता है

नकारात्मक व्यक्तित्व

पलायन करता है

समाप्त हो जाता है

जीवन संघर्ष में मानव

विजय, पराजय या मृत्यु पाता है

विजयी व्यक्तित्व

पाता है मान-सम्मान

होता है गौरवान्वित,

पराजित पाता है तिरस्कार

मृत्यु के साथ ही

समाप्त हो जाता है उसका अस्तित्व

नहीं रहता उसका कोई इतिहास।

जीवन का क्रम

चलता जाता है

आज भी चल रहा है

कल भी चलता रहेगा।

वह अटल है

नीले आकाश के समान

कल भी था

आज भी है

और कल भी रहेगा।

धन और धर्म

.

गरीबी जन्म देती है अभावों को

अभावों में पनपते हैं अपराध।

अत्यधिक अमीरी भी

दुर्गुणों को जन्म देती है

जुआ, सट्टा, व्यभिचार में

कर देती है लिप्त।

हमारे धर्मग्रन्थों में

कहा गया है

धन इतना हो

जिससे पूरी हों हमारी आवश्यकताएं

पर धन का दुरुपयोग न हो

जीवन

परोपकार और जनसेवा से

पूर्ण हो

पाप-पुण्य की तुलना में

पुण्य का पलड़ा भारी हो

तन में पवि़त्रता

और मन में मधुरता हो

हृदय में प्रभु की भक्ति

दर्शन की चाह हो

धर्म-कर्म करते हुए

लीला समाप्त हो,

निर्गमन के बाद

लोग करें हमें याद।


.

सुख की खोज

.

मानव सुख की खोज में

मन्दिर मस्जिद और गुरुद्वारे जाता है

साघु-संतों की संगति करता है

पर सुख नहीं मिल पाता है

जब दुख खत्म होगा

तभी सुख की अनुभूति होगी

सुख का कोई रूप नहीं होता

हम उसे महसूस करते हैं

सुख के लिए

सकारात्मक दृष्टिकोण चाहिए

वह होगा तो

सुख भी साथ-साथ होगा।

.


.

परिवर्तन

.

समाज में जब भी

रूढ़ियों को तोड़कर

नया परिवर्तन होता है

तब उसका विरोध भी होगा

जो विरोध को कर स्वीकार

अपनी विचारधारा को स्थापित कर

विदा हो जाता है

वह अमर हो जाता है

पथ प्रदर्शक बनता है

और वह

स्वयं हममें विराजमान है।

.


.

समय के हस्ताक्षर

.

समय अपने हस्ताक्षर

खोज रहा है

थका हुआ

बोझिल आँखों से

परिवर्तन को निहार रहा है,

ईमानदारी के दो शब्द

पाने के लिये

अपने ही ईमान को

बेच रहा है,

उसकी व्यथा पर

दुनिया में कोई

दो आंसू भी नहीं बहा रहा है,

समय की पहचान मानव

समय पर नहीं कर रहा है,

समय आगे बढ़ता जा रहा है

अपनी इसी भूल पर मानव

आज भी पछता रहा है।

.


.

भ्रष्टाचार और समाज

.

पैट्रोल के दाम

तेजी से बढ़ रहे हैं

उससे भी दुगनी गति से

भ्रष्टाचार बढ़ रहा है।

खाद्य पदार्थों के आयात-निर्यात में

करोड़ों का लेन-देन हो रहा है।

यही आहार

मानव मस्तिष्क को भ्रमित कर

भ्रष्टाचार करा रहा है।

यह ऐसा अचार हो गया है

जिसके बिना भोजन अधूरा है

जिस मानव ने

सभ्यता और संस्कृति का विकास किया

आज वही

भ्रष्टाचार में लिप्त है।

इसे समाप्त किया जा सकता है

हर आदमी सिद्धांतों पर अटल हो जाए

कभी समझौता न करे

भ्रष्टाचार स्वमेव समाप्त हो जाएगा

देश इससे मुक्त होगा

स्वर्णिम भारत का सपना

साकार हो जाएगा।

.


.

कुलदीपक

.

कुलदीपक अपना है

अपना भी सपना है

उसका जीवन

उज्ज्वल हो

प्रभु के प्रति उसमें

श्रद्धा, भक्ति और समर्पण हो

जीवन संगीतमय हो

शान्ति, प्रेम और सद्भाव हो

सेवा, सत्कर्म, सदाचार और सहृदयता से

उसके जीवन का श्रृंगार हो

मान-सम्मान पाकर भी

अभिमान से दूर

सुखमय जीवन और

सेवा में समर्पण

ऐसा कुलदीपक हो

सपना अपना पूरा हो।

.

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पाटील,1,शगुन अग्रवाल,1,शबनम शर्मा,7,शब्द संधान,17,शम्भूनाथ,1,शरद कोकास,2,शशांक मिश्र भारती,8,शशिकांत सिंह,12,शहीद भगतसिंह,1,शामिख़ फ़राज़,1,शारदा नरेन्द्र मेहता,1,शालिनी तिवारी,8,शालिनी मुखरैया,6,शिक्षक दिवस,6,शिवकुमार कश्यप,1,शिवप्रसाद कमल,1,शिवरात्रि,1,शिवेन्‍द्र प्रताप त्रिपाठी,1,शीला नरेन्द्र त्रिवेदी,1,शुभम श्री,1,शुभ्रता मिश्रा,1,शेखर मलिक,1,शेषनाथ प्रसाद,1,शैलेन्द्र सरस्वती,3,शैलेश त्रिपाठी,2,शौचालय,1,श्याम गुप्त,3,श्याम सखा श्याम,1,श्याम सुशील,2,श्रीनाथ सिंह,6,श्रीमती तारा सिंह,2,श्रीमद्भगवद्गीता,1,श्रृंगी,1,श्वेता अरोड़ा,1,संजय दुबे,4,संजय सक्सेना,1,संजीव,1,संजीव ठाकुर,2,संद मदर टेरेसा,1,संदीप तोमर,1,संपादकीय,3,संस्मरण,730,संस्मरण लेखन पुरस्कार 2018,128,सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन,1,सतीश कुमार त्रिपाठी,2,सपना महेश,1,सपना मांगलिक,1,समीक्षा,847,सरिता पन्थी,1,सविता मिश्रा,1,साइबर अपराध,1,साइबर क्राइम,1,साक्षात्कार,21,सागर यादव जख्मी,1,सार्थक देवांगन,2,सालिम मियाँ,1,साहित्य समाचार,98,साहित्यम्,6,साहित्यिक गतिविधियाँ,216,साहित्यिक बगिया,1,सिंहासन बत्तीसी,1,सिद्धार्थ जगन्नाथ जोशी,1,सी.बी.श्रीवास्तव विदग्ध,1,सीताराम गुप्ता,1,सीताराम साहू,1,सीमा असीम सक्सेना,1,सीमा शाहजी,1,सुगन आहूजा,1,सुचिंता कुमारी,1,सुधा गुप्ता अमृता,1,सुधा गोयल नवीन,1,सुधेंदु पटेल,1,सुनीता काम्बोज,1,सुनील जाधव,1,सुभाष चंदर,1,सुभाष चन्द्र कुशवाहा,1,सुभाष नीरव,1,सुभाष लखोटिया,1,सुमन,1,सुमन गौड़,1,सुरभि बेहेरा,1,सुरेन्द्र चौधरी,1,सुरेन्द्र वर्मा,62,सुरेश चन्द्र,1,सुरेश चन्द्र दास,1,सुविचार,1,सुशांत सुप्रिय,4,सुशील कुमार शर्मा,24,सुशील यादव,6,सुशील शर्मा,16,सुषमा गुप्ता,20,सुषमा श्रीवास्तव,2,सूरज प्रकाश,1,सूर्य बाला,1,सूर्यकांत मिश्रा,14,सूर्यकुमार पांडेय,2,सेल्फी,1,सौमित्र,1,सौरभ मालवीय,4,स्नेहमयी चौधरी,1,स्वच्छ भारत,1,स्वतंत्रता दिवस,3,स्वराज सेनानी,1,हबीब तनवीर,1,हरि भटनागर,6,हरि हिमथाणी,1,हरिकांत जेठवाणी,1,हरिवंश राय बच्चन,1,हरिशंकर गजानंद प्रसाद देवांगन,4,हरिशंकर परसाई,23,हरीश कुमार,1,हरीश गोयल,1,हरीश नवल,1,हरीश भादानी,1,हरीश सम्यक,2,हरे प्रकाश उपाध्याय,1,हाइकु,5,हाइगा,1,हास-परिहास,38,हास्य,59,हास्य-व्यंग्य,78,हिंदी दिवस विशेष,9,हुस्न तबस्सुम 'निहाँ',1,biography,1,dohe,3,hindi 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रचनाकार: जनजीवन // कविता संग्रह // राजेश माहेश्वरी
जनजीवन // कविता संग्रह // राजेश माहेश्वरी
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