विज्ञान कथा - अंक 60 - गुमशुदा की तलाश // बाल विज्ञान-कथा // कल्पना कुलश्रेष्ठ

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गुमशुदा की तलाश बाल विज्ञान-कथा कल्पना कुलश्रेष्ठ अक्टूबर 2039 की यह एक सुहावनी सुबह थी। सौवीं मंजिल के अपने फ्लैट की बालकनी में बैठी नेहा अ...

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गुमशुदा की तलाश

बाल विज्ञान-कथा

कल्पना कुलश्रेष्ठ

अक्टूबर 2039 की यह एक सुहावनी सुबह थी। सौवीं मंजिल के अपने फ्लैट की बालकनी में बैठी नेहा अपने कम्प्यूटर पर सुपर गर्ल ‘‘काली’’ का स्केच बनाने में मगन थी जो उसे एक एनीमेशन फिल्म कंपनी द्वारा आयोजित प्रतियोगिता में भेजना था।

ऊपर आसमान में बहुत से ड्रोन उड़ते दिखाई दे रहे थे जो तरह-तरह के सामानों को उनके ठिकाने पर ले जा रहे थे। नेहा ने भी नाश्ते का ऑर्डर दिया था। ठग्गू की दुकान की मशहूर जलेबियाँ और समोसे। कहीं-कहीं बहुमंजिली इमारतों के बीच में होकर सुपर मेट्रो रेल की पटरियाँ जाती दिखाई दे रही थीं जो जरूरत के हिसाब से ट्रैक बदल रही थी। सड़कों के कई तल थे जिन पर हाईटेक गाड़ियाँ दौड़ रही थीं। हवा में ऑक्सीजन की मात्रा बनाए रखने के लिए इन बहुमंजिली इमारतों की बालकॉनी में ढेर सारे पेड़ लगाए जाते थे जिन्हें वर्टिकल फॉरेस्ट कहा जाता था। इन पर सैकड़ों पक्षी चहचहा रहे थे। नीले आसमान में रंगबिरंगी लेजर लाइट से बने संदेश चमक रहे थे।

‘‘आम जनता को सूचित किया जाता है कि आज दिल्ली का औसत तापमान 22 डिग्री सेल्सियस रहेगा। हवा में ऑक्सीजन की मात्रा 21 प्रतिशत रिकार्ड की गई है। आसमान साफ रहेगा और शाम को धूल भरी आँधी चलने की संभावना है।’’ मीठी आवाज शांत होते ही विज्ञापन दिखाए जाने लगे।

नेहा की मोबाइल लोकेशन सर्च करके ड्रोन उसकी बालकॉनी पर आ गया था। नेहा ने अपना पैकेट लिया और अंदर ले जाकर माँ को थमा दिया।

‘‘पापा नहाकर आ जाएँ फिर हम नाश्ता करेंगे। शुभम को भी बुला लो’’ कहते हुए माँ ने ऑटोमैटिक सफाई मशीन को कमांड दी और रसोई में चली गईं। गोलाकार डिस्क जैसी मशीन ने चुटकियों में सारे घर की सफाई कर दी और अपनी जगह पर जाकर स्थिर खड़ी हो गई।

कुछ देर बाद वे चारों हँसी मजाक करते डाइनिंग टेबल पर नाश्ता करने में व्यस्त हो गए। सब कुछ बहुत स्वादिष्ट था पर पापा कुछ अनमने हो रहे थे।

‘‘क्या बात है पापा?’’ नेहा ने पूछा। उनके पापा पुलिस अधिकारी थे।

‘‘दरअसल प्रोफेसर रामानंद को गायब हुए दो दिन बीत चुके हैं। लेकिन अभी तक उनका कोई सुराग नहीं मिला है’’ पापा ने बताया।

प्रोफेसर रामानंद भारत सरकार के विज्ञान व टेक्नोलॉजी विभाग के एक गुप्त प्रोजेक्ट पर काम कर रहे थे। दो दिन पहले वह प्रयोगशाला से निकले और फिर वापस नहीं लौटे। यों तो आजकल बेहद महत्वपूर्ण व्यक्तियों के मस्तिष्क में नैनो चिप इम्प्लान्ट कर दी जाती थी ताकि वे अपने विभाग के सीधे सम्पर्क में रहें और उनकी लोकेशन की जानकारी मिलती रहे। लेकिन किसी कारणवश प्रोफेसर रामानंद की चिप से सिगनल मिलने बंद हो गए थे इसलिए उनकी लोकेशन का पता नहीं लग पा रहा था।

नाश्ता करके पापा ऑफिस चले गए और माँ कम्प्यूटर लेकर अपने ड्रेस डिजाइनिंग के काम में लग गईं। ‘‘देखो दीदी .... मैंने क्या बनाया है?’’

ये माँ की डिजाइन की हुई जैकेट थीं जिनमें शुभम ने कुछ न कुछ उलटफेर कर दिया था। किसी में मोरपंख लगे थे तो किसी में पेड़ों की पत्तियाँ, कोई होलोग्राम से सजी थी तो कोई रंगीन बल्बों से दमक रही थी। लेकिन इससे वे और भी सुंदर व अनोखी लगने लगी थीं।

‘‘अरे वाह ! हम इनकी डिजाइन मशहूर फैशन डिजाइनिंग कंपनी ‘‘प्लैनेट फैशन’’ को भेजेंगे’’ नेहा खुश होकर बोली।

‘‘अब चलो, तैयार हो जाते हैं। याद है न हमें सिटी ट्रिप पर जाना है। स्कूल की बैलून बस आती होगी’’ शुभम ने कहा।

कुछ देर बाद अपनी बालकॉनी के टेक ऑफ पॉइंट से बैलून बस में सवार होकर वे अपने दोस्तों के साथ गप्पें मार रहे थे। सड़कों की भीड़ से बचने के लिए स्कूलों व अस्पतालों ने बैलून बस व एम्बुलेंस सर्विस शुरू की थी। ये गैस भरे, इंजन वाले बड़े बैलून थे जिनकी गति व दिशा नियंत्रित की जा सकती थी। इनसे वायु प्रदूषण भी नहीं फैलता था।

हौजखास व लोदी गार्डन देखने के बाद वे सब कुतुबमीनार घूम रहे थे।

‘‘ओह! ऐसा कैसे हो सकता है?’’ नेहा उत्तेजित स्वर में चिल्ला उठी।

दो सुंदर से लड़के उनके पास खड़े आपस में बातें कर रहे थे। उन्होंने वही जैकेट पहन रखी थीं जो आज सुबह शुभम ने नेहा को दिखाई थीं। ‘‘प्लैनेट फैशन’’ का लेबल उनके कपड़ों पर चमक रहा था।

‘‘क्या तुमने वे स्केच किसी को दिखाए थे शुभम ?’’ नेहा हैरान थी क्योंकि वे डिजाइन इतनी असाधारण थीं कि संयोगवश किसी से समानता होना मुश्किल था ।

‘‘नहीं दीदी. ..कल रात ही तो मैंने उन्हें पूरा किया है। ‘‘हैलो ! कौन हैं आप लोग? कहाँ से आए हैं? यह जैकेट कहाँ से ली है?’’ नेहा एक साँस में पूछ बैठी।

‘‘मैं इंगोर हूँ और यह ओलेक। हम यहाँ घूमने आए हैं. ... बहुत दूर से। ये जैकेट पुराने जमाने के मशहूर डिजाइनर मास्टर शुभम की हैं’’ घबराए से स्वर में कहकर वे तुरंत वहाँ से चले गए। नेहा और शुभम देखते ही रह गए।

शाम को अपने कमरे में सिर जोड़े वे माथापच्ची मे लगे थे कि माँ-पापा के कमरे से आती धीमी आवाजों ने उनका ध्यान खींच लिया।

‘‘प्रोफेसर रामानंद क्या शोध कर रहे हैं?’’ माँ पूछ रही थीं।

‘‘प्रोफेसर रामानंद थोड़े झक्की वैज्ञानिक हैं। उनका कहना है कि सैद्धांतिक रूप से टाइम मशीन बनाना संभव है पर समस्या उसकी यात्रा में लगने वाली अपार ऊर्जा को लेकर है। अभी मानव जाति पृथ्वी पर उपलब्ध ऊर्जा का लगभग 0.73 प्रतिशत ही उपयोग करना जानती है जो टाइम मशीन के लिए काफी नहीं है। प्रोफेसर रामानंद की बात पर विश्वास किया जाए तो वह कोई ऐसा तरीका खोजने के करीब थे, जिससे हम अपने ग्रह की अधिकतम ऊर्जा का उपयोग कर सकेंगे। पुलिस को लगता है कि इसके पीछे आतंकवादी संगठन ‘‘बैक टू दि पास्ट’’ का हाथ है जो सभ्यता को वापस चौदहवीं शताब्दी में ले जाना चाहते हैं’’ पापा ने बताया।

हैरत से नेहा का मुँह खुला रह गया। उसके दिमाग में बिजली सी कौंध उठी।

‘‘ओह तो वे कालयात्री थे और इसीलिए प्लैनेट फैशन की उन जैकेटों को पहने थे जो तुम आगे कंपनी को भेजोगे। वे डिजाइनें चुन ली जाएँगी।’’

‘‘यानी भविष्य में टाइम मशीन बनाई जा चुकी है। फिर तो हमें परेशान होने की जरूरत नहीं है न दीदी।’’ शुभम खुश होकर बोला।

‘‘ऐसा नहीं है शुभम। हमारा भूतकाल निश्चित होता है पर भविष्य नहीं, क्योंकि वह वर्तमान में किए गए कार्यों का परिणाम होता है। यह बदला भी जा सकता है। जैसे तुम अपनी डिजाइनें अभी नष्ट कर दो तो वे कालयात्री इन्हें कभी नहीं पहन सकेंगे।’’ नेहा सोच में पड़ गई।

‘‘यानी प्रोफेसर रामानंद को खोजा नहीं गया तो टाइम मशीन नहीं बन सकेगी। हो सकता है वे प्रोफेसर रामानंद के गायब होने के बारे में जानते हों’’ शुभम ने कहा।

‘‘यह भी तो हो सकता है कि वे तभी जान पाए होंगे जब हमने उन्हें बताया होगा। हम रिस्क नहीं ले सकते। हमें इस मामले में उन कालयात्रियों की मदद लेनी ही होगी। यह आतंकवादी संगठन बहुत खतरनाक है। कोई अनहोनी होने से पहले प्रोफेसर रामानंद को ढूँढना होगा। हमें कुछ न कुछ करना ही होगा। लेकिन क्या ...... हाँ पेजबुक शायद भविष्य में भी लोग इसका इस्तेमाल करते हों। उन्हें संकेतों में बताना होगा ताकि कोई दुश्मन कुछ समझ न पाए’’ नेहा का दिमाग तेजी से चल रहा था। कम्प्यूटर खोलकर वह लिखने लगी। ‘‘प्रिय इगोर और ओलेक। आपको याद होगा हम आज कुतुबमीनार के पास मिले थे। कृपया उस महत्वपूर्ण व्यक्ति को खोजने में हमारी मदद कीजिए जिसके कारण भूत और भविष्य का एकदूसरे मिलना संभव हुआ है। इतिहास खंगालिये और देखिए कि अपार ऊर्जा से भरा वह पहला व्यक्ति कौन था? अगर आपने सही कदम नहीं उठाया तो हम और आप कभी नहीं मिल पाएँगे।’’ पोस्ट करने के बाद अनिश्चित सी नेहा ने कम्प्यूटर बंद कर दिया।

रात को खाने की मेज पर पापा बहुत निश्चिंत दिखाई दे रहे थे।

‘‘प्रोफेसर रामानंद वापस आ गए। दरअसल वह कुछ समय अकेले रहना चाहते थे इसलिए कहीं एकांत में चले गए थे। न जाने क्यों उन्होंने अपनी ब्रेन चिप भी निकलवा दी’’ वह माँ को बता रहे थे।

चैन की लम्बी साँस लेते हुए शुभम और नेहा ने अपने कमरे में आकर कम्प्यूटर खोला। पेजबुक के उसके व्यक्तिगत इनबॉक्स में एक संदेश पड़ा था।

‘‘हम अपने एक प्रोजेक्ट के लिए पेजबुक की प्राचीन चैटिंग की स्टडी कर रहे थे कि आपकी पोस्ट देखी। आपने सही समय पर हमें सावधान करके मानवता को एक बड़े नुकसान से बचा लिया है। दरअसल 21वीं शताब्दी से ही मौजूद आतंकवादी संगठन ‘‘बैक दू दि पास्ट’’ ने यह किया था।

प्रोफेसर रामानंद की ब्रेन चिप द्वारा उनके प्रोजेक्ट की पूरी जानकारी इन आतंकवादियों के हाथ लग गई थी। ब्रेन चिप को हैक करके किसी के दिमाग की चुनिंदा यादें मिटाई जा सकती है या गलत यादें फीड की जा सकती हैं। इसलिए हमारे समय में इनका प्रयोग गैरकानूनी है। ‘‘बैक टू दि पास्ट’’ के आतंकवादी प्रोफेसर रामानंद का दिमाग हैक करने की तैयारी में थे। थोड़ी भी देर हो जाती तो सब खत्म हो जाता। अब प्रोफेसर के दिमाग को सिगनल भेजे जा रहे है कि वह ब्रेन चिप का प्रयोग बंद कर दें।

हम एक अहिंसक समाज हैं लेकिन आतंकवाद सारी मानवता के लिए एक बड़ा खतरा है इसलिए नये सख्त कानून बनाकर आतंकवादियों का ब्रेनवॉश किया जा चुका है। अब यह संगठन लगभग नष्ट हो चुका है। प्रोफेसर अब बिलकुल सुरक्षित हैं। आपकी सूझबूझ और सतर्कता के कारण मानव सभ्यता ने बड़ी छलाँग लगाई है। हमारे इतिहास में अब आपके नाम भी दर्ज हैं और हाँ.... आपकी सुपर गर्ल ‘‘काली‘‘ ने खूब धूम मचाई थी। ...आपके इगोर और ओलेक।’’

नेहा और शुभम एक दूसरे को देखकर मुस्करा दिए।

खतरा टल चुका था।

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❒ ई मेल : kalpna11566@gmail.com

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रचनाकार: विज्ञान कथा - अंक 60 - गुमशुदा की तलाश // बाल विज्ञान-कथा // कल्पना कुलश्रेष्ठ
विज्ञान कथा - अंक 60 - गुमशुदा की तलाश // बाल विज्ञान-कथा // कल्पना कुलश्रेष्ठ
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