प्राची - सितम्बर 2018 - निःसंदेह हिंदी का विकास होगा // डॉ. विनय भारद्वाज से डॉ. भावना शुक्ल की बातचीत

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साक्षात्कार निःसंदेह हिंदी का विकास होगा डॉ. विनय भारद्वाज से डॉ. भावना शुक्ल की बातचीत डॉ. विनय भारद्वाज वरिष्ठ साहित्यकार ,ज्योतिष क्षेत्र...

साक्षात्कार

निःसंदेह हिंदी का विकास होगा

डॉ. विनय भारद्वाज से डॉ. भावना शुक्ल की बातचीत

डॉ. विनय भारद्वाज

वरिष्ठ साहित्यकार ,ज्योतिष क्षेत्र में सिद्धहस्त, ज्योतिष और साहित्यिक सम्मानों के साथ-साथ विदेशों में श्रीलंका, मॉरीशस, ताशकंद और रूस से सम्मानित. प्रसाद के नाटकों का रंगमंच अध्ययन, हिंदी के प्रमुख नाटककार और रंगमंच, भक्ति काल के साहित्य में लक्ष्मी का स्वरूप, मधु मुकुल (कविता संग्रह) और मगही कहावतों की सामाजिकता आदि के रचयिता तथा बोर्ड ऑफ स्टडी मणिपुर के सदस्य अखिल विश्व हिंदी अमेरिका के सदस्य, देश विदेश की संस्थाओं में अपनी छवि रोशन करने वाले मगध विश्वविद्यालय के हिंदी के विभागाध्यक्ष डॉ. विनय भारद्वाज से डॉ. भावना शुक्ल की बातचीत.

डॉ. भावना शुक्ल : भारद्वाज जी प्रारम्भ यहीं से करते हैं कि आपने अभी-अभी मगध विश्वविद्यालय में हिन्दी विभागाध्यक्ष का पद भार संभाला है. आप मगही साहित्य के विषय में कुछ दृष्टिपात कीजिये?

डॉ. विनय भारद्वाज : जी भावना जी, मगही या मागधी भाषा भारत के मध्य पूर्व में बोली जाने वाली एक प्रमुख भाषा है. इसका निकट संबंध भोजपुरी की धार्मिक भाषा के रूप में भी है. मगही का पहला महाकाव्य गौतम महाकवि योगेश द्वारा 1960-62 के बीच लिखा गया. मगही भाषा में विशेष योगदान के लिए 2002 में डॉ. रामप्रसाद सिंह को साहित्य अकादमी भाषा सम्मान से सम्मानित किया गया. अक्सर यह भाषाएं एक ही साथ बिहारी भाषा के रूप में रख दी जाती हैं.

वर्तमान में बताना चाहूंगा कि मगही भाषा क्षेत्र में अच्छे-अच्छे साहित्यकार पैदा हुए, जिनमें डॉ. राम कृपाल सिंह, भरत सिंह प्रमुख हैं. वहां के जो स्थानीय कहानीकार हैं, कवि हैं उनके द्वारा इस तरह का प्रयास किया गया कि मगही विभाग को अलग से खोलकर मगही को पुरस्कृत करने का कार्य किया जा रहा है. मगही एक ऐसी भाषा है जिसमें कोमलता है. उसके बोलने वालों के स्वर में ही मधुरता घुल जाती है. इसकी यही विशेषता है.

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डॉ.भावना शुक्ल : आप पर किसी साहित्यकार ने अपना प्रभाव छोड़ा है?

डॉ. विनय भारद्वाज : देखिए भावना जी, मैं हिंदी साहित्य का प्रोफेसर हूं. मुझे साहित्य से बहुत लगाव है. मुझे नाटक और कविता पढ़ाने में बहुत आनंद आता है. भक्तिकाल पर पुस्तक भी लिखी है. जहां तक हिंदी की बात की जाए तो तुलसी, मीरा, कबीर, सूर, बिहारी तथा प्रेमचंद, रामचंद्र शुक्ल, हजारी प्रसाद द्विवेदी, जैनेंद्र कुमार, प्रसाद, पंत, निराला, महादेवी, बच्चन का प्रभाव है मुझ पर.

एक बात मैं और स्पष्ट करना चाहता हूं कि आजकल जो पत्र-पत्रिकाएं और जिन्हें मैं पढ़ रहा हूं. उनमें जो आज की पीढ़ी के लेखक हैं, बहुत अच्छा लिख रहे हैं. कुछ दिन पहले मेरे हाथ ‘प्राची’ पत्रिका का अंक आया. मैं दो तीन अंक पढ़ चुका हूं. मैं एक अंक से अपना निर्णय नहीं दे रहा. इस पत्रिका के संपादक श्री राकेश भ्रमरजी की संपादकीय इस पत्रिका में जान डाल देती है. उनकी गजल की तो बात ही कुछ और है. इस पत्रिका के माध्यम से बहुत सारे साहित्यकारों को पढ़ा है.

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आपने बात लेखकों के प्रभाव की थी. मैंने उसी आधार पर अपना मत प्रस्तुत कर दिया.

डॉ.भावना शुक्ल : विश्व हिंदी सम्मेलन में 99% लोग अपना पैसा लगा कर जाते हैं, पर उसमें सम्मिलित लोग तो केवल सुविख्यात साहित्यकार या राजनैतिक गलियारों में ‘पहुंचवाले लोग’ ही होते हैं? क्या आप सहमत हैं?

डॉ. विनय भारद्वाज : नहीं ऐसा तो नहीं है. कुछ लोग एंबेसी द्वारा बुलाए जाते हैं जो सम्मेलन का हिस्सा होते हैं. वैसे प्रायः अपने खर्चे से जाते हैं. देखा जाए तो इस बार मैंने जो महसूस किया वह यह है कि आप केवल एक भीड़ का हिस्सा होते हैं. मंच पर तो केवल मंत्री नेताओं को ही अवसर मिलता है. मैं तो भारत सरकार के खर्चे से गया था. विश्व हिंदी सम्मेलन का आयोजन काफी वृहद स्तर पर होता है और यह जो कार्यक्रम है, काफी अच्छा प्रोग्राम हुआ है, स्तरीय प्रोग्राम हुआ है. लोगों ने इसको काफी अच्छे तरीके से व्यवस्थित किया. मैं वहां पर गया तो वहां की व्यवस्था, उनकी कार्यकुशलता देखकर काफी प्रभावित हुआ. विदेश राज्यमंत्री कर्नल विजय कुमार सिंह का बहुत अच्छा प्रभाव रहा. उन्होंने बहुत अच्छे तरीके से सब कार्य को व्यवस्थित किया. इस कार्यक्रम को आगे बढ़ाया जाना चाहिए. अगर सरकार में सुषमा जी मंत्री रहीं तो निसंदेह हिंदी का विकास होगा, इसके परिणाम अच्छे होंगे.

डॉ. भावना शुक्ल : भारत सरकार विदेशों में हिंदी को विकसित करने के लिए प्रयास कर रही है, जबकि हमारे देश में हिंदी के साथ सौतेला व्यवहार किया जा रहा है. इस संदर्भ में आपके क्या विचार हैं?

डॉ. विनय भारद्वाज : हमारे देश में कुछ लोगों की वजह से हिन्दी के साथ सौतेला व्यवहार किया जा रहा है. इसमें सरकार का दोष नहीं है. मैं यह कहना चाहूंगा कि हमारे यहां हिंदी के प्रचार-प्रसार के लिए कुशल मनोवैज्ञानिकों की जरूरत है. हिंदी के प्रचार प्रसार में लगे लोग केवल साहित्यिक भाषा का प्रयोग करते हैं. अपने को बढ़ा चढ़ाकर प्रस्तुत करने की भावना उनके भीतर होती है. वह मंचों पर भी लच्छेदार भाषा का प्रयोग करते हैं. व्यवहारिक स्तर पर उस तरह का कार्य नहीं कर पाते. इसके लिए मैं सुझाव दूंगा जो पुराने चेहरे अभी तक बाबा आदम के जमाने से लगे हुए हैं, उन्हें अब दायित्व मुक्त करें और कुशल लोगों को इसमें जोड़ना चाहिए; ताकि वह लोग जनता की मनोवृत्तियों को ध्यान में रख कर उनके अंदर जिज्ञासा पैदा करें कि वह हिंदी सीखें. यह कोई नहीं करता है. संगोष्ठियां होती है, उसमें लोग प्रपत्र पढ़ते हैं, खास करके कुछ चेहरे वह हैं जो लगातार कई वर्षों से जुड़े हुए हैं. इनके द्वारा कोई खास कार्य नहीं होता है. कागजों पर ज्यादा कार्य होता है. आम जनता को उनसे नफरत हो जाती है, क्योंकि सभी लोग समझते हैं यह किसी न किसी तरीके से आगे बढ़ेगा, अपनी उपस्थिति दर्ज कर आगे बढ़े हैं. इससे हिंदी का भला होने वाला नहीं. इसमें आमूलचूल परिवर्तन की जरूरत है.

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डॉ.भावना शुक्ल : आपने बहुत सी विदेश यात्राएं की हैं. किस देश ने आपको अधिक प्रभावित किया है?

डॉ. विनय भारद्वाज : विदेश यात्राएं तो मैंने बहुत की हैं, लेकिन मॉरिशस ने मुझे बहुत ज्यादा प्रभावित किया; क्योंकि मारीशस में अभी भी भारतीय संस्कृति जीवित है. दूसरी बात वहां के लोग अभी भी बहुत बढ़िया हिंदी बोलते हैं. भोजपुरी और हिंदी बोलते हैं और वहां के लोग प्रायः शांत स्वभाव के होते हैं और अपने काम से काम रखते हैं. कर्तव्यनिष्ठ होते हैं और सबसे बड़ी बात यह है कि हमारी सरकार से मॉरिशस की बहुत गहरी मैत्री है. इस नाते भी एक भावनात्मक लगाव हो जाता है. जाहिर है, हम भारत वासियोंके लिए भारत के जो मित्र देश होंगे उनसे हमारा संपर्क बहुत ज्यादा गहरा होगा. मॉरिशस की प्रकृति और वहां के लोगों का हमारे भारत के प्रति जो जुड़ाव है, खास करके इस बार जो सुषमाजी गईं, विजय कुमार सिंह जी गए, मॉरिशस की जनता ने उन्हें पलकों पर बिठा के रखा. यह देख कर के मुझे बहुत अच्छा लगा.

डॉ. भावना शुक्ल : कविता के विकास और सार्थक फैलाव में मीडिया और कवि सम्मेलनों की क्या भूमिका है? आपके क्या विचार हैं?

डॉ. विनय भारद्वाज : भावना जी आपने प्रश्न तो बहुत सटीक पूछा है. रेडियो तो इस विकास की दौड़ में पीछे छूटता जा रहा है. पहले कवि सम्मेलन ऐसे होते थे जिनमें बड़े-बड़े कवियों को सुनने में बड़ा आनंद आता था. कवि सम्मेलनों ने व्यावसायिकता का रूप ले लिया है. अनेक मंचों पर वही एक कविता घूम-घूम कर सुनाते हैं. हंसी-ठहाके और फूहड़ता बढ़ती जा रही है. दूरदर्शन की बात हम करें तो प्रारंभिक दौर में दूरदर्शन पर अनेक कहानी और उपन्यासों के आधार पर धारावाहिक बने, जिन्हें देखा और खूब सराहा गया. मेरे दृष्टिकोण से मैं मीडिया के योगदान को सार्थक मांगता हूं. लेकिन अब इस सदी में इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में प्रतिस्पर्धा के कारण विज्ञापन की ऊंची संस्कृति ने जन्म ले लिया है और उससे प्रस्तुतीकरण का ढंग बहुत ही विकृत हो गया है.

डॉ. भावना शुक्ल : हम यह जानना चाहते हैं कि मीडिया के चलते साहित्य हाशिये पर आ गया है क्या?

डॉ. विनय भारद्वाज : देखिये आज के इस इलेक्ट्रॉनिक युग में लोगों का रुझान मीडिया की तरफ बहुत है. मीडिया इस तरह की वस्तु परोसता है हमारे समक्ष, उसमें गंभीरता नजर नहीं आती. वह केवल व्यापारिक दृष्टिकोण होता है. हम तो केवल मनोरंजन के तौर पर देखते हैं. यथार्थ से उसका गहरा संबंध नहीं दिखाई पड़ता. कुछ पाठक ऐसे होते हैं जो साहित्य को मनोरंजन की दृष्टि से पढ़ते हैं. उनको दृश्य विधि द्वारा देखने-पढ़ने से क्या साहित्य हाशिए पर आ जाएगा, इसका मुझे विश्वास नहीं. जहां तक मैं देखता भी हूं और समझता भी हूं कि जब से मैं फेसबुक से जुड़ा हूं, मैं यह देख रहा हूं कि इसके माध्यम से लोगों में लेखन की क्षमता बहुत अधिक बढ़ गई है. इससे हिंदी साहित्य की हर विधा में लेखन को बढ़ावा मिल रहा है. हर विधा में अनेक कार्यशालाएं चलती हैं. जिससे लोग अपनी रुचि के अनुसार उसमें हिस्सा लेते हैं. और जिनका रुझान इस ओर होता है वह सीख भी जाते है. आज की पीढ़ी भी बहुत अच्छा लिख रही है. साहित्य में मुझे अपने समय की तस्वीर नजर आ रही है. इस कारण मुझे कहीं भी नजर नहीं आता कि साहित्य हाशिए पर आ गया.

डॉ. भावना शुक्ल : आजकल पुरस्कारों और सम्मानों की बाढ़ सी आ गई है. इस संदर्भ में आप क्या कहना चाहते हैं?

डॉ. विनय भारद्वाज : बात बिल्कुल सही है. ऐसा लगता है, जैसे संस्थाओं ने पुरस्कारों की दुकान लगा रखी हो. अनेक बड़े साहित्यकार के नाम पर सम्मान पत्र दिए जाते हैं जो व्यक्ति काबिल है उसका तो हक बनता है, लेकिन एक किताब आई नहीं कि सम्मान लेने की होड़ सी लग जाती है. इस तरह सम्मान का महत्व कम हो गया है. साहित्यकारों का मूल्यांकन सही ढंग से ना करके उन्हें सम्मान पत्र वितरित किए जाते हैं. हम सरकारी सम्मान की बात भी करें तो वहां भी अब वही प्रचलन हो गया है. योग्य व्यक्ति पीछे रह जाता है, अयोग्य की छवि उभर कर आ जाती है.

डॉ. भावना शुक्ल : भक्तिकाल की कविताओं और आज की कविताओं में क्या अंतर आपको लगता है?

डॉ. विनय भारद्वाज : भक्ति काल के बारे में बहुत सारी बातें पहले से ही प्रचलित हैं. भक्तिकाल हिंदी साहित्य का स्वर्णिम युग रहा है. उस युग में जो भी कवि हुए, उन्होंने समाज को सामने रखकर के लिखा, अपने लिए कुछ भी नहीं लिखा. यही भावना आज के कवियों में भी आ जाए तो हिंदी साहित्य को आगे बढ़ने से कोई नहीं रोक सकता. आजकल की कविताएं व्यक्तिनिष्ठ हो गई है. आज समष्टिगत कविताओं की जरूरत है. हर आदमी अपने को प्रस्तुत करना चाहता है. वह घूम फिर कर अपने पर ही आ जाता है. यह प्रवृत्ति उस व्यक्ति को लोकप्रियता नहीं दिला पाती है. लोग ऊब जाते हैं. समाज का भी इससे भला नहीं होता. यह कविता के लिए नुकसानदायक है.

डॉ भावना शुक्ल : हमने आपकी कवितायें तो पढ़ी हैं, पर ज्यादा प्रकाश आपका ज्योतिष पर दिखता है.

डॉ. विनय भारद्वाज : ज्योतिष विद्या का प्रचार प्रसार करना भी एक तरह की समाज सेवा है, क्योंकि आज के जमाने में जैसे जैसे हम आगे बढ़ते जा रहे हैं, वैज्ञानिक स्तर पर हम प्रगति तो करते जा रहे हैं परन्तु जीवन भी बहुत जटिल होता जा रहा है. ऐसी स्थिति में ज्योतिष के जरिए व्यक्ति अपने आप को संभाल पाने में सक्षम हो जाता है. इसके अलावा यह भी सच है कि हमारी यह पारंपरिक विद्या है और यह विद्या सत्य है. भारत ज्योतिष के नाम से भी जाना जाता था. भारत को ज्योतिषियों का देश माना जाता था. कुछ वेबसाइट ज्योतिषियों की वजह से बदनाम हुई हैं, वो अलग चीज है. लेकिन ऐसा नहीं है कि इस विद्या में सच्चाई नहीं है. मैंने अपनी सरकार के बारे में सुषमा जी की बीमारी के बारे में और विभिन्न क्षेत्रों में जो जीत हुई है उस विषय में बहुत पहले ही भविष्यवाणी कर दी थी. इसे मेरे फेसबुक में जो भी उद्धरण है, उसके द्वारा जाना जा सकता है. चुनाव कब हुए और भविष्यवाणी मैंने कब की. सुषमा जी की बीमारी के बारे में मैंने 2 वर्ष पूर्व भविष्यवाणी कर दी थी, इसका प्रमाण मेरे फेसबुक पर है. इसमें सत्यता होती है. ये ऐसी विद्या है जो व्यक्ति को दुख की घड़ी में काफी राहत देती है. इसके अलावा यह भी सच है कि मैं एक तरह से ज्योतिष का कार्य करता हूं. निशुल्क कार्य करता हूँ और समाज सेवा का कार्य करता हूँ. समाज को इसकी जरूरत है. जैसे जैसे जीवन जटिल होगा, समाज को उसकी आवश्यकता और भी अधिक होगी.

भावना जी मैं पत्रिका के संपादक जी और उनकी पूरी टीम को शुभकामनायें देता हूँ. यह पत्रिका और नया आयाम स्थापित करे .

सम्पर्कः डब्ल्यू जेड/21, हरी सिंह पार्क,

मुल्तान नगर, नई दिल्ली-110056

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रचनाकार: प्राची - सितम्बर 2018 - निःसंदेह हिंदी का विकास होगा // डॉ. विनय भारद्वाज से डॉ. भावना शुक्ल की बातचीत
प्राची - सितम्बर 2018 - निःसंदेह हिंदी का विकास होगा // डॉ. विनय भारद्वाज से डॉ. भावना शुक्ल की बातचीत
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