मनोरंजक लोक कथाएँ - 11 - दो सौतेली बहिनें - नौर्स देशों की लोक कथाएँ-2// सुषमा गुप्ता

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11 दो सौतेली बहिनें [1] यह लोक कथा यूरोप के नौर्स देशों की एक बहुत ही लोकप्रिय कथा है। नौर्स देशों में यूरोप के पाँच देश [2] आते हैं। एक ब...

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11 दो सौतेली बहिनें[1]

यह लोक कथा यूरोप के नौर्स देशों की एक बहुत ही लोकप्रिय कथा है। नौर्स देशों में यूरोप के पाँच देश[2] आते हैं।

एक बार की बात है कि एक जगह एक पति पत्नी रहते थे। यह उन दोनों की दूसरी शादी थी पर उन दोनों की उस स्त्री की पहली शादी से एक एक लड़की भी थी।

स्त्री की बेटी बहुत ही सुस्त और आलसी थी और घर में कोई भी काम नहीं करती थी जबकि आदमी की बेटी बहुत चुस्त चालाक थी। पर किस्मत की बात कि उसका कोई भी काम उसकी सौतेली माँ को पसन्द नहीं आता था।

इसलिये दोनों माँ बेटी आदमी की बेटी को घर से बाहर निकालना चाहती थीं।

सो एक दिन ऐसा हुआ कि दोनों लड़कियाँ सूत कातने के लिये बाहर गयीं और एक कुँए के पास बैठ कर सूत कातने लगीं। स्त्री की बेटी के पास तो कातने के लिये रुई थी पर आदमी की बेटी के पास कोई रुई नहीं थी। उसके पास बस कुछ काँटे थे।

स्त्री की बेटी ने कहा – “पता नहीं ऐसा कैसे होता है कि तुम बहुत जल्दी ही अपना काम खत्म कर लेती हो पर मैं तुम्हारी बराबरी नहीं कर पाती। ”

उसके बाद दोनों ने यह तय किया कि जिस किसी का सूत पहले टूटेगा वह कुँए में नीचे उतरेगा। सो उन्होंने अपना अपना सूत कातना शुरू कर दिया पर जब वे सूत कात रही थीं तो आदमी की बेटी का सूत टूट गया और उसको कुँए में नीचे उतरना पड़ा।

जब वह कुँए की तली में पहुँची तो उसने अपने चारों तरफ चमकीली हरे रंग की शराब[3] देखी। पर उससे उसको कोई चोट नहीं पहुँची।

clip_image002वह उस पर थोड़ी ही दूर चली थी कि उसके सामने एक हैज[4] आयी जिसको उसे पार करना था। हैज बोली — “ओह मैं तुमसे प्रार्थना करती हूँ कि तुम मेरे ऊपर ज़ोर से मत चलना। मैं फिर कभी तुम्हारी सहायता करूँगी। ”

सो वह उससे कुछ दूर हट कर चलने लगी और इतनी दूर हट कर चली कि उसने उसकी एक डंडी भी नहीं छुई। वह थोड़ी दूर और चली कि उसको एक गाय मिली जो अपने सींगों पर दूध निकालने वाली एक बालटी लिये इधर उधर घूम रही थी।

वह एक बहुत सुन्दर और बड़ी गाय थी और उसके थन दूध से भरे हुए थे। गाय बोली — “मैं तुमसे प्रार्थना करती हूँ कि तुम मेरा दूध दुह दो। मेरे थनों में बहुत दूध भरा है। तुम जितना चाहो उतना पी लो और बाकी बचा हुआ मेरे खुरों पर डाल दो। फिर देखना कि मैं किसी दिन तुम्हारी सहायता करती हूँ या नहीं। ”

सो आदमी की बेटी ने वैसा ही किया जैसा कि गाय ने उससे करने के लिये कहा था। उसने बालटी गाय के सींगों से उतारी और उसका दूध दुहने बैठ गयी।

जैसे ही उसने गाय के थनों को हाथ लगाया गाय के थनों से दूध की धारा बह कर बालटी में गिरने लगी। पहले तो उसने खूब पेट भर कर गाय का दूध पिया फिर बाकी बचा हुआ दूध उसने उसके खुरों पर फेंक दिया और दूध दुहने वाली बालटी को उसके सींगों पर लटका दिया।

वह फिर आगे चल दी। आगे चल कर उसको एक भेड़ मिला। उसके ऊपर बहुत लम्बी लम्बी ऊन थी। वह नीचे तक लटक रही थी और उसके पीछे पीछे जमीन पर घिसट रही थी। उसके सींगों पर एक बड़ी सी कैंची रखी हुई थी।

भेड़ उस लड़की को देख कर बोला — “ओह ज़रा मेरी यह ऊन काट दो क्योंकि मैं इसको बहुत देर से घसीटते हुए ही इधर से उधर घूम रहा हूँ। यह ऊन जहाँ से भी इसको जो कुछ भी मिलता है वही पकड़ लेती है।

इसके अलावा यह इतनी गरम है कि इसकी गरमी से मेरा तो बस दम ही घुटा जा रहा है। जब तुम मेरी ऊन काट लो तो जितनी ऊन तुम्हें चाहिये तुम ले लेना और बाकी बची हुई ऊन मेरी गरदन के चारों तरफ लपेट देना। फिर देखना कि मैं तुम्हारी किसी दिन सहायता करता हूँ या नहीं। ”

आदमी की लड़की तो इसकी सहायता करने को तुरन्त ही तैयार हो गयी। भेड़ उसकी गोद में चुपचाप लेट गया और उसने उसकी सारी ऊन इतनी सफाई से काट दी कि उसकी खाल पर एक भी खरोंच नहीं आयी।

फिर उसने जितनी उससे ली जा सकी उतनी ऊन ले ली और बाकी की ऊन उस भेड़ की गरदन में लपेट दी। यह सब करके वह फिर आगे चली।

clip_image004आगे चल कर उसको एक सेब का पेड़ मिला। उस पेड़ की सारी शाखें फलों के बोझ से नीचे जमीन तक झुकी जा रही थीं और एक पतले से खम्भे से चिपकी हुई थीं।

वह चिल्लाया — “ओह मेहरबानी करके मेरे सेब तोड़ दो ताकि मेरी शाखें थोड़ी सीधी हो सकें। क्योंकि इस तरह से बहुत देर तक टेढ़े खड़े होना बहुत ही मुश्किल काम है। पर जब तुम मेरी शाखें झुकाओ तो इनको बहुत ज़ोर से मत झुका देना।

फिर उसके बाद जितने सेब तुम खाना चाहो उतने तुम खा लेना और बाकी बचे हुए सेब मेरी जड़ के पास ही डाल देना। और फिर देखना कि मैं किसी दिन तुम्हारी सहायता करता हूँ या नहीं। ”

सो इसने जितने सेब उसके हाथों से टूट सकते थे उतने सेब उसने उस पेड़ से अपने हाथों से तोड़ दिये। फिर उसने खम्भा उखाड़ लिया और उससे और सेब तोड़ लिये। उसने पेट भर कर सेब खाये और बाकी बचे हुए सेब उस पेड़ की जड़ में ही डाल दिये।

यह करके अब वह फिर आगे चली। अबकी बार वह बहुत देर तक चलती रही। आखिर वह एक खेत पर बने घर में आ पहुँची। वहाँ ट्रौल का सरदार[5] अपनी बेटी के साथ रहता था।

वह उस घर के अन्दर चली गयी और अन्दर जा कर वहाँ रहने के लिये जगह माँगी। बूढ़ी जादूगरनी बोली — “ओह यहाँ कोशिश करने से कोई फायदा नहीं है क्योंकि हमारे पास कई नौकरानियाँ आयीं पर कोई भी ठीक नहीं थी। ”

पर उस लड़की ने उनसे इतनी दया भरी प्रार्थना की कि उन्होंने उसको इस शर्त पर रख लिया कि वह पहले उसका काम देखेंगे फिर उसको पक्की नौकरी पर रखेंगे। सो आखिरकार उन्होंने उसको रख लिया।

उन्होंने उसको एक चलनी दी और उसमें पानी भर कर लाने के लिये कहा। हालाँकि उसको यह बहुत अजीब लगा कि वह चलनी में पानी भर कर लाये फिर भी वह उसको ले कर उसमें पानी लाने के लिये चल दी।

जब वह कुँए के पास आयी तो वहाँ बैठी छोटी छोटी चिड़ियाँ गाने लगीं —

इसको मिट्टी में सानो फिर इसमें भूसा मिलाओ

इसको मिट्टी में सानो फिर इसमें भूसा मिलाओ

उस लड़की ने ऐसा ही किया। उसने देखा कि अब वह उसमें पानी भर सकती थी क्योंकि अब उस चलनी के छेद बन्द हो चुके थे। वह उस पानी को ले कर घर पहुँची तो बूढ़ी जादूगरनी ने उससे कहा — “यह पानी तुमने अपनी छाती से तो नहीं निकाला है?”

फिर उसने उससे गायों के बाड़े में जाने के लिये कहा कि वह वहाँ जाये और गायों का गोबर साफ करे और उनका दूध दुह कर ले कर आये।

clip_image010पर जब वह वहाँ गयी तो उसको वहाँ एक भूसा उठाने वाला ही मिला जो इतना भारी था कि वह तो उसको हिला भी नहीं सकती थी उससे काम तो वह कैसे करती।

वह नहीं जानती थी कि वह क्या करे या उस भूसा उठाने वाले का भी वह क्या करे। पर छोटी छोटी चिड़ियों ने फिर गाया कि वह झाड़ू ले ले और उससे थोड़ा सा गोबर चारों तरफ उछाल दे तो बाकी बचा हुआ गोबर उसके पीछे पीछे अपने आप ही उछल कर बाहर चला जायेगा। सो उसने ऐसा ही किया।

जैसे ही उसने झाड़ू से ऐसा किया गायों का बाड़ा इतना साफ हो गया जैसे अभी अभी बुहारा गया हो और धोया गया हो।

अब उसको गायों का दूध निकालना था पर वे सब इतनी बेचैन थीं कि जैसे ही वह उनको छूती तो वे उसको लात मारतीं। वे तो उसको अपने पास भी नहीं आने दे रही थीं दूध दुहाना तो दूर।

चिड़ियों ने बाहर फिर गाया — “चिड़ियों के पीने के लिये एक छोटी सी बूँद दूध की एक छोटा सा खाना। ” सो उसने वही किया।

किसी तरह से उसने एक गाय का एक बूँद दूध दुहा और उसे चिड़ियों को पिला दिया। चिड़ियों के दूध पीते ही सारी गायें सीधी खड़ी हो गयीं और उन्होंने उस लड़की को अपना दूध दुहने दिया। न तो उन्होंने उसको लात मारी और न ही वे बहुत ज़्यादा हिली डुलीं। यहाँ तक कि उन्होंने तो अपनी एक टाँग भी नहीं उठायी।

इसलिये जब जादूगरनी ने उसको दूध लाते आते देखा तो वह चिल्लायी — “यह दूध तुमने अपनी छाती से तो नहीं निकाला है?”

फिर उसने उसको कुछ काले रंग की ऊन दी और कहा कि वह उसको धो कर सफेद कर लाये।

अब उस लड़की को तो पता ही नहीं था कि वह उस काली ऊन को सफेद कैसे करे। फिर भी उसने कुछ कहा नहीं और वह ऊन उससे ले कर कुँए की तरफ चल दी।

वहाँ उन छोटी छोटी चिड़ियों ने फिर गाया और उससे कहा कि वह उस ऊन को पास के गड्ढे में डुबो दे। उस लड़की ने ऐसा ही किया। जैसे ही उसने उस ऊन को उस गड्ढे में डुबोया और बाहर निकाला तो वह ऊन तो बिल्कुल बरफ की तरह सफेद थी।

वह उस ऊन को ले कर जादूगरनी के पास पहुँची। जैसे ही वह जादूगरनी के पास पहुँची तो जादूगरनी तो यह देख कर फिर चिल्ला पड़ी — “ओह तुमको तो रखना ठीक नहीं है। तुम तो सब कुछ कर सकती हो। और आखीर में तो तुम मेरी ज़िन्दगी का रोग ही बन जाओगी। अच्छा तो यही है कि तुम यहाँ से चली जाओ। लो यह अपनी मजदूरी लो और जाओ। ”

फिर बूढ़ी जादूगरनी ने तीन सन्दूकची निकालीं – एक लाल एक हरी और एक नीली और उनको उस लड़की को दिखाते हुए बोली — “तुम अपनी मजदूरी के लिये इनमें से कोई सी भी एक सन्दूकची ले लो। जो भी तुम्हें अच्छी लगे। ”

अब उस लड़की को तो पता नहीं था कि वह उनमें से कौन सी सन्दूकची चुने पर तभी छोटी छोटी चिड़ियों ने गाया —

“तुम लाल सन्दूकची मत लो और तुम हरी सन्दूकची भी मत लो। तुम नीली सन्दूकची ले लो जिसमें तुमको तीन क्रास एक लाइन में रखे दिखायी देंगे। हमने उनके निशान उसमें देखे हैं इसलिये हमको यह मालूम है। ”

सो जैसा कि चिड़ियों ने उससे अपने गाने में कहा था उसने नीले रंग की सन्दूकची जादूगरनी से ले ली। बूढ़ी जादूगरनी फिर चिल्लायी — “बुरा हो तेरा। अब देखना अगर मैं तुझको इसके लिये कोई सजा न दूँ तो। ”

जैसे ही आदमी की बेटी अपनी नीली सन्दूकची ले कर चली बूढ़ी जादूगरनी ने उसके पीछे लोहे की एक जलती हुई सलाख फेंक कर मारी पर वह दरवाजे के पीछे की तरफ कूद गयी और वहाँ जा कर छिप गयी।

इससे वह सलाख उसको छू भी न सकी। क्योंकि उसकी दोस्तों यानी छोटी छोटी चिड़ियों ने उसे पहले ही बता दिया था कि उस सलाख से उसे कैसे बचना है।

इसके बाद वह वहाँ से जितनी तेज़ चल सकती थी चल दी। पर जब वह सेब के पेड़ के पास पहुँची तो उसने अपने पीछे सड़क पर आती हुई कट कट की एक बहुत ही भयानक आवाज सुनी। यह आवाज उस जादूगरनी की और उसकी बेटी के आने की आवाज थी।

यह देख कर वह लड़की तो इतनी घबरा गयी और डर गयी कि उसकी समझ में ही नहीं आया कि वह क्या करे।

कि तभी उसने सेब के पेड़ की आवाज सुनी — “तुम यहाँ मेरे पास आओ ओ लड़की, क्या तुम सुन रही हो? मैं तुम्हारी सहायता करूँगा। तुम मेरे साये में आ कर छिप कर खड़ी हो जाओ क्योंकि अगर उन्होंने तुमको देख लिया तो वे यह सन्दूकची तुमसे ले लेंगी और तुमको फाड़ कर मार डालेंगी। ”

सो वह उस सेब के पेड़ के नीचे जा कर छिप गयी। जैसे ही वह वहाँ जा कर छिपी वैसे ही वह बूढ़ी जादूगरनी और उसकी बेटी वहाँ आ पहुँचीं।

बूढ़ी जादूगरनी ने सेब के पेड़ से पूछा — “ओ सेब के पेड़, क्या तुमने किसी लड़की को यहाँ से जाते हुए देखा है?”

सेब का पेड़ बोला — “हाँ हाँ मैंने देखा है। एक लड़की यहाँ से एक घंटा पहले भागती हुई गयी थी। पर अब तक तो वह इतनी दूर पहुँच गयी होगी कि वह तुम्हारी पहुँच से बाहर है। ”

यह सुन कर वह बूढ़ी जादूगरनी वहाँ से लौट गयी और अपने घर चली गयी। उसके बाद वह लड़की सेब के पेड़ के नीचे से निकली और आगे चल दी।

वह जब तक भेड़ के पास पहुँची तो उसने फिर से अपने पीछे सड़क पर आती हुई कट कट की एक बहुत ही भयानक आवाज सुनी। वह तुरन्त ही समझ गयी कि वह आवाज उस जादूगरनी के आने की आवाज थी।

वह फिर से बहुत डर गयी। उसकी समझ में नहीं आया कि अब वह क्या करे।

कि तभी उसने भेड़ की आवाज सुनी — “इधर आजा ओ लड़की। मैं तेरी सहायता करूँगी। यहाँ आ कर तू मेरी ऊन के नीचे छिप जा। इस तरह से वह तुझे देख नहीं पायेगी। क्योंकि अगर उसने तुझे देख लिया तो वह यह सन्दूकची तुझसे छीन लेगी और तुझे फाड़ कर मार डालेगी। ”

सो लड़की भेड़ की ऊन के नीचे जा कर छिप गयी। जैसे ही वह वहाँ जा कर छिपी वैसे ही वह बूढ़ी जादूगरनी वहाँ आ पहुँची।

बूढ़ी जादूगरनी भेड़ से बोली — “ओ भेड़ क्या तूने यहाँ से किसी लड़की को जाते देखा है?”

भेड़ बोली — “हाँ हाँ मैंने देखा है वह यहाँ से एक घंटा पहले ही गयी है। पर वह इतनी तेज़ भागी गयी है कि तुम उसे कभी नहीं पकड़ सकतीं। ”

यह सुन कर जादूगरनी वापस अपने घर लौट गयी। उसके बाद वह लड़की भेड़ की ऊन के नीचे से निकली और आगे चल दी।

पर जब तक वह गाय के पास पहुँची तो उसने फिर से अपने पीछे सड़क पर आती हुई कट कट की एक बहुत ही भयानक आवाज सुनी।

वह तुरन्त ही समझ गयी कि वह आवाज उस जादूगरनी के आने की आवाज थी। वह फिर से बहुत डर गयी। उसकी फिर समझ में नहीं आया कि वह अब क्या करे।

कि इतने में उसने गाय की आवाज सुनी — “इधर आजा ओ लड़की। मैं तेरी सहायता करूँगी। यहाँ आ कर तू मेरे थनों के नीचे छिप जा। इस तरह से वे तुझे नहीं देख पायेगी। क्योंकि अगर उसने तुझे देख लिया तो वह यह सन्दूकची तुझसे ले लेगी और तुझे फाड़ कर मार डालेगी। ”

सो लड़की गाय के थनों के नीचे जा कर छिप गयी। बूढ़ी जादूगरनी ने गाय से पूछा — “ओ गाय, क्या तूने किसी लड़की को यहाँ से जाते हुए देखा है?”

गाय बोली — “हाँ हाँ मैंने देखा है। एक लड़की यहाँ से एक घंटा पहले भागती हुई गयी थी। पर अब तक तो वह इतनी दूर पहुँच गयी होगी कि वह तुम्हारी पहुँच से बाहर है। ”

यह सुन कर वह बूढ़ी जादूगरनी वहाँ से लौट गयी और अपने घर चली गयी। उसके बाद वह लड़की गाय के थनों के नीचे से निकल आयी और आगे चल दी।

चलते चलते वह हैज के पास पहुँची तो उसने फिर से अपने पीछे सड़क पर आती हुई कट कट की एक बहुत ही भयानक आवाज सुनी।

वह समझ गयी किा यह उसी बूढ़ी जादूगरनी और उसकी बेटी के आने की आवाज है। अब वह क्या करे। अबकी बार तो बस उसकी जान ही निकलने वाली थी। पर वह करे क्या यह उसकी समझ में नहीं आया।

कि इतने में उसने हैज की आवाज सुनी — “इधर आजा ओ लड़की। मैं तेरी सहायता करूँगी। यहाँ आ कर तू मेरे पत्तों और टहनियों के नीचे छिप जा। इस तरह से वे तुझे नहीं देख पायेंगी। क्योंकि अगर उन्होंने तुझे देख लिया तो वे यह सन्दूकची तुझसे ले लेंगी और तुझे फाड़ कर मार डालेंगी। ”

सो लड़की हैज के पत्तें और टहनियों के नीचे जा कर छिप गयी। बूढ़ी जादूगरनी ने हैज से पूछा — “ओ हैज, क्या तूने किसी लड़की को यहाँ से जाते हुए देखा है?”

हैज बोली — “नहीं मैंने तो किसी लड़की को यहाँ से जाते नहीं देखा। ” और इस बीच उसने आपको इतना बड़ा और ऊँचा कर लिया कि उसको पार करने के लिये किसी को दस बार सोचना पड़ता।

यह सुन कर वह बूढ़ी जादूगरनी के पास अब कोई चारा नहीं रह गया था कि वह वहाँ से घर वापस लौट जाये सो वह वहाँ से वापस लौट गयी और अपने घर चली गयी।

उसके बाद वह लड़की हैज के पत्तों और टहनियों के नीचे से निकल आयी और अपने घर की तरफ चली गयी।

जब वह अपने घर पहुँची तो उसकी सौतेली माँ और बहिन उसको वहाँ ज़िन्दा देख कर बहुत आश्चर्य में पड़ गयीं और उससे और ज़्यादा नफरत करने लगीं। वहाँ से लौटने के बाद वह अब और ज़्यादा होशियार और चतुर हो गयी थी। वह अब देखने में भी बहुत अच्छी लगने लगी थी। उसकी तरफ देखने में अब अच्छा लगता था।

पर फिर भी वह उनके साथ नहीं रह सकी। उन्होंने उसको सूअरों के रहने की जगह रहने को भेज दिया। अब वही उसका घर था सो उसने उसको खूब रगड़ रगड़ कर साफ किया और फिर वह नीली सन्दूकची खोली जो वह उस जादूगरनी के घर से अपनी मजदूरी के रूप में लायी थी।

वह यह देखना चाहती थी कि उसको उसकी मजदूरी के रूप में क्या मिला था। पर जैसे ही उसने उसका ताला खोला तो उसको तो उसके अन्दर इतना सारा सोना चाँदी और बहुत अच्छी अच्छी चीजें दिखायी दीं कि वे उसमें से बाहर निकलनी शुरू हो गयीं और उस सूअरों के घर की दीवारों पर लटकना शुरू हो गयीं। अब वह सूअर का घर तो किसी राजा के महल से भी शानदार लगने लगा।

जब उसकी सौतेली माँ और बहिन उसे वहाँ देखने आयीं तो वे तो आश्चर्य के मारे उछल ही पड़ीं और पूछने लगीं कि यह सब उसने कैसे बनाया।

लड़की बोली — “ओह तुम देख नहीं रहीं कि यह तो मेरी अच्छी मजदूरी का फल है। ओह वह कितना अच्छा परिवार था और उस परिवार की मालकिन भी कितनी अच्छी थी जिसकी मैंने सेवा की। तुमको उनके जैसा कहीं भी कोई भी नहीं मिल सकता। ”

सो स्त्री की बेटी ने तुरन्त ही यह सोच लिया कि वह भी वहाँ जायेगी और उस मालकिन की सेवा करेगी। तो उसको भी ऐसी ही सोने की एक सन्दूकची मिल जायेगी।

वे दोनों बहिनें फिर से वहीं सूत कातने बैठीं। पर इस बार स्त्री की बेटी काँटे कातने बैठी और आदमी की बेटी रुई कातने बेठी। शर्त यह थी कि जिसका भी सूत पहले टूटा वह कुँए में जायेगा।

अब जैसा कि तुम सब समझ सकते हो कि स्त्री की बेटी का धागा पहले टूट गया। तो वह कुँए में चली गयी।

इस बार भी वैसा ही हुआ जैसे पहले हुआ था। वह कुँए की तली में गिर पड़ी पर उसको उस गिरने से कोई चोट नहीं आयी। वह तो वहाँ हरी हरी घास के मैदान में खड़ी थी।

वह कुछ दूर आगे चली तो वह एक हैज के पास आयी। हैज बोली — “ओ लड़की मेरे ऊपर बहुत जोर से मत चलना। बाद में मैं तुम्हारी सहायता करूँगी। ”

स्त्री की बेटी ने सोचा “मैं इसकी परवाह क्यों करूँ। ” सो वह उसके ऊपर से हो कर चली गयी जब तक कि वह सारी की सारी हैज कुचल नहीं गयी और कराहने नहीं लगी।

कुछ दूर और आगे जाने पर उसको एक गाय मिली। गाय उससे बोली — “मेहरबानी करके मुझे दुहती जाओ। मेरे थन दूध के बोझ से फटे जा रहे हैं। मैं बाद में तुम्हारी सहायता करूँगी। तुम जितना चाहे उसमें से उतना दूध पी लेना पर जितना बचे वह मेरे खुरों पर फेंक देना। ”

उसने उस गाय को दुहा और तब तक उसका दूध पीती रही जब तक वह और दूध नहीं पी सकी। पर जब वह वहाँ से चली तो उसके पास गाय के खुरों पर डालने के लिये दूध बिल्कुल भी नहीं बचा था और जहाँ तक उस बालटी का सवाल था जिसमें उसने उसका दूध दुहा था वह उसने पहाड़ी के नीचे लुढ़का दी थी।

वह फिर से आगे चल दी। कुछ और दूर चलने के बाद उसको एक भेड़ मिला जो उसके साथ साथ अपने पीछे पीछे अपनी ऊन लटकाये चल रहा था।

भेड़ ने लड़की से कहा — “मेहरबानी करके मेरी ऊन काट दो। बाद में मैं तुम्हारी सहायता करूँगा। ऊन काट कर तुम उसमें से जितनी चाहे उतनी ऊन ले लेना पर बाकी बची हुई ऊन मेरी गरदन में लपेट देना। ”

लड़की ने यह सब कर तो दिया पर उसने इसे इतनी लापरवाही से किया कि उसने बेचारे भेड़ के शरीर में से बड़े बड़े टुकड़े भी काट लिये और जहाँ तक ऊन का सवाल था वह तो उसकी सारी ऊन ले कर चली गयी। उसकी गरदन में बाँधने के लिये जरा सी भी ऊन नहीं छोड़ी।

आगे कुछ दूर चलने के बाद उसको एक सेब का पेड़ मिला जो फलों से भरपूर था और उसी की वजह से टेढ़ा भी खड़ा था।

सेब का पेड़ बोला — “मेहरबानी करके मेरे पेड़ के सेब तोड़ दो ताकि मेरी शाखाएँ सीधी बढ़ सकें क्योंकि इस तरह से टेढ़े खड़े रहना बहुत मुश्किल काम है।

पर ज़रा ध्यान रखना कि फल तोड़ते समय मुझे बहुर जोर से मत मारना। तुम चाहे जितने सेब खा लेना पर बाकी बचे हुए सेब मेरी जड़ के चारों तरफ डाल देना। मैं फिर तुम्हारी सहायता करूँगा। ”

लड़की ने उस पेड़ के सेब तोड़े तो पर उसने वही सेब तोड़े जो उसके सबसे पास थे। बाकी दूर लगे सेब तोड़ने के लिये उसने डंडे से पेड़ को बहुत जोर से मारा। इससे उसके फल ही नहीं बल्कि कई शाखाएँ भी टूट गयीं।

फिर उसने खूब सारे सेब खाये जब तक उससे सेब और नहीं खाये गये। बाकी बचे हुए सेब उसने पेड़ के नीचे फेंक दिये और आगे चल दी।

काफी दूर जाने के बाद वह एक खेत के पास आ पहुँची जहाँ वह बूढ़ी जादूगरनी रहती थी। वहाँ आ कर उसने उससे ठहरने के लिये जगह माँगी तो उस जादूगरनी ने कहा कि उसको अब कोई नौकरानी नहीं चाहिये क्योंकि उनमें से कोई भी नौकरानी उसके किसी काम की नहीं थीं।

या तो वे उसके लिये बहुत होशियार थीं या फिर उन्होंने उसको उसकी चीजों के साथ धोखा दिया था।

पर स्त्री की बेटी कहाँ मानने वाली थी उसको तो उस जादूगरनी के घर में काम करना ही था। सो जादूगरनी को उसे रखना ही पड़ा। उसने उसको इस शर्त पर रख लिया कि वह उसका काम देखेगी फिर उसको अगर उसका काम अच्छा लगा तो वह उसको पक्की तरह से रख लेगी।

जादूगरनी ने पहला काम उसको यह दिया कि उसको चलनी में पानी भर कर ला कर दे। सो वह कुँए के पास गयी और चलनी में पानी भरने की कोशिश करने लगी। वह जैसे ही चलनी में पानी भरती वह उसके छेदों में से बाहर निकल जाता।

तभी छोटी छोटी चिड़ियों ने गाया —

इसको मिट्टी में सानो फिर इसमें भूसा मिलाओ

इसको मिट्टी में सानो फिर इसमें भूसा मिलाओ

पर उसने चिड़ियों के गाने की तरफ कोई ध्यान ही नहीं दिया बल्कि उनकी तरफ उसने इतनी मिट्टी फेंकी कि वे वहाँ से उड़ गयीं। इस तरह से वह उस चलनी में पानी नहीं भर सकी और उसको बिना पानी के ही घर जाना पड़ा।

इस तरह से बिना पानी लिये घर आने पर जादूगरनी ने उसको बहुत डाँटा।

फिर उसको गायों का घर साफ करने के लिये और उनका दूध दुहने के लिये भेजा गया। पर उसने तो ऐसे काम कभी किये नहीं थे सो उसने सोचा कि वह तो ऐसे काम करने के लिये बहुत अच्छी थी। फिर भी वह गायों के घर तक गयी।

पर जब वह वहाँ पहुँची तो वहाँ उसको सिवाय एक भूसा उठाने वाले के और कुछ नहीं मिला जिससे वह वहाँ की सफाई कर सकती। और वह भी इतना भारी था कि वह तो उसको हिला भी नहीं सकी उससे काम तो वह कैसे करती।

चिड़ियों ने उससे भी वही कहा जो उन्होंने उसकी सौतेली बहिन से कहा था। उन्होंने उससे कहा कि वह झाड़ू ले कर केवल थोड़ा सा गोबर वहाँ से उठा दे और बाकी गोबर उसके पीछे पीछे उड़ जायेगा। पर उसने झाड़ू उठा कर चिड़ियों की तरफ फेंक दी।

फिर वह उनका दूध दुहने गयी। गायें बहुत ही बेचैन थीं कि जैसे ही वह उनको दुहने के लिये छूती तो वे उसको लात मारतीं और धक्का मारतीं। वह अपनी बालटी में उनका केवल बहुत थोड़ा सा ही दूध निकाल पाती।

कि तभी चिड़ियों ने फिर गाया – “चिड़ियों के पीने के लिये लिये एक छोटी सी बूँद दूध की एक छोटा सा खाना। ”

पर उसने गायों को बहुत डाँटा और मारा। फिर उसके हाथ में जो कुछ आया उसने वही चिड़ियों की तरफ फेंक दिया। यह सब उसने कुछ इस तरह से किया कि देखने में वह सब बहुत खराब लग रहा था। इसलिये वह इस बार भी गायों के घर को साफ करने और उनको दुहने के मामले में कुछ ज़्यादा अच्छा नहीं कर सकी। सो इस बार जब वह घर आयी तो उसको जादूगरनी की डाँट तो सहनी ही पड़ी साथ में उसको मार भी पड़ी।

बाद में उसको काले रंग की ऊन को सफेद करने के लिये भेजा गया पर उसमें भी वह कुछ ज़्यादा अच्छा नहीं कर सकी।

इसके बाद जादूगरनी अन्दर से तीन सन्दूकचियाँ निकाल कर लायी – एक लाल एक हरी और एक नीली और उससे बोली कि उसको उसकी सेवाओं की कोई जरूरत नहीं थी। पर उसने जो कुछ वहाँ काम किया था उसके बदले में वह उनमें से कोई भी सन्दूकची चुन सकती थी। जो भी उसको अच्छी लगे।

तभी छोटी चिड़ियों ने गाया – “न तो तुम लाल लो न तुम हरी लो। पर तुम नीली लो जिसमें तीन छोटे क्रास हैं। हमने क्योंकि उनके निशान देखे हैं इसलिये हमें मालूम हैं। ”

उसने चिड़ियों के गाने की तरफ कोई ध्यान नहीं दिया और उसने लाल वाली सन्दूकची चुन ली क्योंकि वह उसकी आँखों को बहुत सुन्दर लग रही थी।

लाल सन्दूकची ले कर वह अपने घर चल दी। वह बहुत शान्ति से और आराम से घर चली गयी क्योंकि उसका पीछा करने वाला कोई नहीं था।

जब वह अपने घर पहुँची तो उसकी माँ तो खुशी के मारे कूद कर उसके पास पहुँच गयी। दोनों ने मिल कर उस सन्दूकची को एक आतिशदान[6] पर रख दिया क्योंकि उन्होंने तो इसके बारे में कुछ और सोचा ही नहीं था कि उसमें सोने चाँदी के अलावा भी और कुछ हो सकता है।

वे तो बस यह सपना देख रहीं थीं कि उस सोने की सन्दूकची से अपना घर उस सूअर के घर जैसा सजा लेंगी। वहाँ जा कर उन्होंने उस सन्दूकची को खोला। लो जब उन्होंने उसको खोला तो उसमें से क्या निकला?

उसमें से तो मेंढक साँप निकल पड़े। और उससे भी बुरी बात यह कि जब भी वे मुँह खोलतीं उनके मुँह से या तो कोई मेंढक कूद कर बाहर आ जाता या फिर कोई साँप बाहर रेंग जाता। या फिर कई तरह के कीड़े बाहर निकल पड़ते। इस वजह से अब कोई उनके साथ ही नहीं रह पा रहा था।

तो यह इनाम मिला उस लड़की को उस जादूगरनी के साथ काम करने का।

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2 इथियोपिया की लोक कथाएँ–1 — 45 लोक कथाएँ — सामान्य छापा, मोटा छापा दोनों में उपलब्ध

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To obtain them write to :- E-Mail drsapnag@yahoo.com

1 रैवन की लोक कथाएँ–1 — इन्द्रा पब्लिशिंग हाउस

2 इथियोपिया की लोक कथाएँ–1 — प्रभात प्रकाशन

3 इथियोपिया की लोक कथाएँ–2 — प्रभात प्रकाशन

4 शीबा की रानी मकेडा और राजा सोलोमन — प्रभात प्रकाशन

5 राजा सोलोमन — प्रभात प्रकाशन

6 बंगाल की लोक कथाएँ — नेशनल बुक ट्रस्ट

नीचे लिखी पुस्तकें रचनाकार डाट आर्ग पर मुफ्त उपलब्ध हैं जो टैक्स्ट टू स्पीच टैकनोलोजी के द्वारा दृष्टिबाधित लोगों द्वारा भी पढ़ी जा सकती हैं।

1 इथियोपिया की लोक कथाएँ–1

http://www.rachanakar.org/2017/08/1-27.html

2 इथियोपिया की लोक कथाएँ–2

http://www.rachanakar.org/2017/08/2-1.html

3 रैवन की लोक कथाएँ–1

http://www.rachanakar.org/2017/09/1-1.html

4 रैवन की लोक कथाएँ–2

http://www.rachanakar.org/2017/09/2-1.html

5 रैवन की लोक कथाएँ–3

http://www.rachanakar.org/2017/09/3-1-1.html

6 इटली की लोक कथाएँ–1

http://www.rachanakar.org/2017/09/1-1_30.html

7 इटली की लोक कथाएँ–2

http://www.rachanakar.org/2017/10/2-1.html

8 इटली की लोक कथाएँ–3

http://www.rachanakar.org/2017/10/3-1.html

9 इटली की लोक कथाएँ–4

http://www.rachanakar.org/2017/10/4-1.html

10 इटली की लोक कथाएँ–5

http://www.rachanakar.org/2017/10/5-1-italy-lokkatha-5-seb-wali-ladki.html

11 इटली की लोक कथाएँ–6

http://www.rachanakar.org/2017/11/6-1-italy-ki-lokkatha-billiyan.html

12 इटली की लोक कथाएँ–7

http://www.rachanakar.org/2017/11/7-1-italy-ki-lokkatha-kaitherine.html

13 इटली की लोक कथाएँ–8

http://www.rachanakar.org/2017/12/8-1-italy-ki-lokkatha-patthar-se-roti.html

14 इटली की लोक कथाएँ–9

http://www.rachanakar.org/2017/12/9-1-italy-ki-lok-katha-do-bahine.html

15 इटली की लोक कथाएँ–10

http://www.rachanakar.org/2017/12/10-1-italy-ki-lok-katha-teen-santre.html

16 ज़ंज़ीबार की लोक कथाएँ

http://www.rachanakar.org/2018/05/blog-post_54.html

17 चालाक ईकटोमी

http://www.rachanakar.org/2018/05/blog-post_88.html

नीचे लिखी पुस्तकें जुगरनौट डाट इन पर उपलब्ध हैं

https://www.juggernaut.in/authors/2a174f5d78c04264af63d44ed9735596

1 सोने की लीद करने वाला घोड़ा और अन्य अफ्रीकी लोक कथाएँ

2 असन्तुष्ट लड़की और अन्य अमेरिकी लोक कथाएँ

3 रैवन आग कैसे लेकर आया और अन्य अमेरिकी लोक कथाएँ

4 रैवन ने शादी की और अन्य अमेरिकी लोक कथाएँ

5 कौआ दिन लेकर आया और अन्य अमेरिकी लोक कथाएँ

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Updated on May 27, 2018


लेखिका के बारे में

clip_image013सुषमा गुप्ता का जन्म उत्तर प्रदेश के अलीगढ़ शहर में सन् 1943 में हुआ था। इन्होंने आगरा विश्वविद्यालय से समाज शास्त्र् और अर्थ शास्त्र् में ऐम ए किया और फिर मेरठ विश्वविद्यालय से बी ऐड किया। 1976 में ये नाइजीरिया चली गयीं। वहाँ इन्होंने यूनिवर्सिटी औफ़ इबादान से लाइबे्ररी साइन्स में ऐम ऐल ऐस किया और एक थियोलोजीकल कौलिज में 10 वर्षों तक लाइब्रेरियन का कार्य किया।

वहाँ से फिर ये इथियोपिया चली गयीं और वहाँ एडिस अबाबा यूनिवर्सिटी के इन्स्टीट्यूट औफ़ इथियोपियन स्टडीज़ की लाइब्रेरी में 3 साल कार्य किया। तत्पश्चात इनको दक्षिणी अफ्रीका के एक देश, लिसोठो के विश्वविद्यालय में इन्स्टीट्यूट औफ़ सदर्न अफ्रीकन स्टडीज़ में 1 साल कार्य करने का अवसर मिला। वहाँ से 1993 में ये यू ऐस ए आ गयीं जहाँ इन्होंने फिर से मास्टर औफ़ लाइब्रेरी एँड इनफौर्मेशन साइन्स किया। फिर 4 साल ओटोमोटिव इन्डस्ट्री एक्शन ग्रुप के पुस्तकालय में कार्य किया।

1998 में इन्होंने सेवा निवृत्ति ले ली और अपनी एक वेब साइट बनायी – www.sushmajee.com। तब से ये उसी वेब साइट पर काम कर रहीं हैं। उस वेब साइट में हिन्दू धर्म के साथ साथ बच्चों के लिये भी काफी सामग्री है।

भिन्न भि्ान्न देशों में रहने से इनको अपने कार्यकाल में वहाँ की बहुत सारी लोक कथाओं को जानने का अवसर मिला – कुछ पढ़ने से, कुछ लोगों से सुनने से और कुछ ऐसे साधनों से जो केवल इन्हीं को उपलब्ध थे। उन सबको देख कर इनको ऐसा लगा कि ये लोक कथाएँ हिन्दी जानने वाले बच्चों और हिन्दी में रिसर्च करने वालों को तो कभी उपलब्ध ही नहीं हो पायेंगी – हिन्दी की तो बात ही अलग है अंग्रेजी में भी नहीं मिल पायेंगीं।

इसलिये इन्होंने न्यूनतम हिन्दी पढ़ने वालों को ध्यान में रखते हुए उन लोक कथाओं को हिन्दी में लिखना पा्ररम्भ किया। इन लोक कथाओं में अफ्रीका, एशिया और दक्षिणी अमेरिका के देशों की लोक कथाओं पर अधिक ध्यान दिया गया है पर उत्तरी अमेरिका और यूरोप के देशों की भी कुछ लोक कथाएँ सम्मिलित कर ली गयी हैं।

अभी तक 1200 से अधिक लोक कथाएँ हिन्दी में लिखी जा चुकी है। इनको “देश विदेश की लोक कथाएँ” क्रम में प्रकाशित करने का प्रयास किया जा रहा है। आशा है कि इस प्रकाशन के माध्यम से हम इन लोक कथाओं को जन जन तक पहुँचा सकेंगे।

विंडसर, कैनेडा

मई 2018


[1] The Two Stepsisters – A folktale from Norse countries, Europe. Adapted from the Web Site :

http://www.sacred-texts.com/neu/ptn/ptn27.htm

[2] Norse, Nordic or Scandinavian coutries are five. They are locted in the far North of Europe continent. These five countries are – Denmark, Finland, Iceland, Norway and Sweden.

[3] Translated for the word “Mead” – Mead is an alcoholic beverage created by fermenting honey with water, sometimes with various fruits, spices, grains, or hops etc.

[4] Hedge is normally a low wall, 3-6 feet tall, otherwise it can be high also – as high as 10-12 feet, made of very densely planted plants. It works as a boundary wall to protect the house from thieves and animals etc – see its picture above.

[5] Chief of Trolls – a troll is a supernatural being in Norse mythology and Scandinavian folklore. In origin, troll may have been a negative being in Norse mythology. Beings described as trolls dwell in isolated rocks, mountains, or caves, live together in small family units, and are rarely helpful to human beings.

[6] Translated for the word “Fireplace”. In cold places people used to light fire to keep their houses warm. This was called fireplace. There used to be a flat stone sheet over this place which could be used to keep something – see its picture above.

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सुषमा गुप्ता ने देश विदेश की 1200 से अधिक लोक-कथाओं का संकलन कर उनका हिंदी में अनुवाद प्रस्तुत किया है.  सुषमा गुप्ता की लोक कथाओं के संकलन में से सैकड़ों लोककथाओं के पठन-पाठन का आनंद आप यहाँ रचनाकार के  लोककथा खंड में जाकर उठा सकते हैं.

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नारायण,1,आरकॉम,1,आरती,1,आरिफा एविस,5,आलेख,4288,आलोक कुमार,3,आलोक कुमार सातपुते,1,आवश्यक सूचना!,1,आशीष कुमार त्रिवेदी,5,आशीष श्रीवास्तव,1,आशुतोष,1,आशुतोष शुक्ल,1,इंदु संचेतना,1,इन्दिरा वासवाणी,1,इन्द्रमणि उपाध्याय,1,इन्द्रेश कुमार,1,इलाहाबाद,2,ई-बुक,374,ईबुक,231,ईश्वरचन्द्र,1,उपन्यास,269,उपासना,1,उपासना बेहार,5,उमाशंकर सिंह परमार,1,उमेश चन्द्र सिरसवारी,2,उमेशचन्द्र सिरसवारी,1,उषा छाबड़ा,1,उषा रानी,1,ऋतुराज सिंह कौल,1,ऋषभचरण जैन,1,एम. एम. चन्द्रा,17,एस. एम. चन्द्रा,2,कथासरित्सागर,1,कर्ण,1,कला जगत,113,कलावंती सिंह,1,कल्पना कुलश्रेष्ठ,11,कवि,2,कविता,3239,कहानी,2360,कहानी संग्रह,247,काजल कुमार,7,कान्हा,1,कामिनी कामायनी,5,कार्टून,7,काशीनाथ सिंह,2,किताबी कोना,7,किरन सिंह,1,किशोरी लाल गोस्वामी,1,कुंवर प्रेमिल,1,कुबेर,7,कुमार करन मस्ताना,1,कुसुमलता सिंह,1,कृश्न चन्दर,6,कृष्ण,3,कृष्ण कुमार यादव,1,कृष्ण खटवाणी,1,कृष्ण जन्माष्टमी,5,के. पी. सक्सेना,1,केदारनाथ सिंह,1,कैलाश मंडलोई,3,कैलाश वानखेड़े,1,कैशलेस,1,कैस जौनपुरी,3,क़ैस जौनपुरी,1,कौशल किशोर श्रीवास्तव,1,खिमन मूलाणी,1,गंगा प्रसाद 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मिलन,1,मिलान कुन्देरा,1,मिशेल फूको,8,मिश्रीमल जैन तरंगित,1,मीनू पामर,2,मुकेश वर्मा,1,मुक्तिबोध,1,मुर्दहिया,1,मृदुला गर्ग,1,मेराज फैज़ाबादी,1,मैक्सिम गोर्की,1,मैथिली शरण गुप्त,1,मोतीलाल जोतवाणी,1,मोहन कल्पना,1,मोहन वर्मा,1,यशवंत कोठारी,8,यशोधरा विरोदय,2,यात्रा संस्मरण,31,योग,3,योग दिवस,3,योगासन,2,योगेन्द्र प्रताप मौर्य,1,योगेश अग्रवाल,2,रक्षा बंधन,1,रच,1,रचना समय,72,रजनीश कांत,2,रत्ना राय,1,रमेश उपाध्याय,1,रमेश राज,26,रमेशराज,8,रवि रतलामी,2,रवींद्र नाथ ठाकुर,1,रवीन्द्र अग्निहोत्री,4,रवीन्द्र नाथ त्यागी,1,रवीन्द्र संगीत,1,रवीन्द्र सहाय वर्मा,1,रसोई,1,रांगेय राघव,1,राकेश अचल,3,राकेश दुबे,1,राकेश बिहारी,1,राकेश भ्रमर,5,राकेश मिश्र,2,राजकुमार कुम्भज,1,राजन कुमार,2,राजशेखर चौबे,6,राजीव रंजन उपाध्याय,11,राजेन्द्र कुमार,1,राजेन्द्र विजय,1,राजेश कुमार,1,राजेश गोसाईं,2,राजेश जोशी,1,राधा कृष्ण,1,राधाकृष्ण,1,राधेश्याम द्विवेदी,5,राम कृष्ण खुराना,6,राम शिव मूर्ति यादव,1,रामचंद्र शुक्ल,1,रामचन्द्र शुक्ल,1,रामचरन गुप्त,5,रामवृक्ष सिंह,10,रावण,1,राहुल कुमार,1,राहुल सिंह,1,रिंकी मिश्रा,1,रिचर्ड फाइनमेन,1,रिलायंस इन्फोकाम,1,रीटा शहाणी,1,रेंसमवेयर,1,रेणु कुमारी,1,रेवती रमण शर्मा,1,रोहित रुसिया,1,लक्ष्मी यादव,6,लक्ष्मीकांत मुकुल,2,लक्ष्मीकांत वैष्णव,1,लखमी खिलाणी,1,लघु कथा,288,लघुकथा,1340,लघुकथा लेखन पुरस्कार आयोजन,241,लतीफ घोंघी,1,ललित ग,1,ललित गर्ग,13,ललित निबंध,20,ललित साहू जख्मी,1,ललिता भाटिया,2,लाल पुष्प,1,लावण्या दीपक शाह,1,लीलाधर मंडलोई,1,लू सुन,1,लूट,1,लोक,1,लोककथा,378,लोकतंत्र का दर्द,1,लोकमित्र,1,लोकेन्द्र सिंह,3,विकास कुमार,1,विजय केसरी,1,विजय शिंदे,1,विज्ञान कथा,79,विद्यानंद कुमार,1,विनय भारत,1,विनीत कुमार,2,विनीता शुक्ला,3,विनोद कुमार दवे,4,विनोद तिवारी,1,विनोद मल्ल,1,विभा खरे,1,विमल चन्द्राकर,1,विमल सिंह,1,विरल पटेल,1,विविध,1,विविधा,1,विवेक प्रियदर्शी,1,विवेक रंजन श्रीवास्तव,5,विवेक सक्सेना,1,विवेकानंद,1,विवेकानन्द,1,विश्वंभर नाथ शर्मा कौशिक,2,विश्वनाथ प्रसाद तिवारी,1,विष्णु नागर,1,विष्णु प्रभाकर,1,वीणा भाटिया,15,वीरेन्द्र सरल,10,वेणीशंकर पटेल ब्रज,1,वेलेंटाइन,3,वेलेंटाइन डे,2,वैभव सिंह,1,व्यंग्य,2075,व्यंग्य के बहाने,2,व्यंग्य जुगलबंदी,17,व्यथित हृदय,2,शंकर पाटील,1,शगुन अग्रवाल,1,शबनम शर्मा,7,शब्द संधान,17,शम्भूनाथ,1,शरद कोकास,2,शशांक मिश्र भारती,8,शशिकांत सिंह,12,शहीद भगतसिंह,1,शामिख़ फ़राज़,1,शारदा नरेन्द्र मेहता,1,शालिनी तिवारी,8,शालिनी मुखरैया,6,शिक्षक दिवस,6,शिवकुमार कश्यप,1,शिवप्रसाद कमल,1,शिवरात्रि,1,शिवेन्‍द्र प्रताप त्रिपाठी,1,शीला नरेन्द्र त्रिवेदी,1,शुभम श्री,1,शुभ्रता मिश्रा,1,शेखर मलिक,1,शेषनाथ प्रसाद,1,शैलेन्द्र सरस्वती,3,शैलेश त्रिपाठी,2,शौचालय,1,श्याम गुप्त,3,श्याम सखा श्याम,1,श्याम सुशील,2,श्रीनाथ सिंह,6,श्रीमती तारा सिंह,2,श्रीमद्भगवद्गीता,1,श्रृंगी,1,श्वेता अरोड़ा,1,संजय दुबे,4,संजय सक्सेना,1,संजीव,1,संजीव ठाकुर,2,संद मदर टेरेसा,1,संदीप तोमर,1,संपादकीय,3,संस्मरण,730,संस्मरण लेखन पुरस्कार 2018,128,सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन,1,सतीश कुमार त्रिपाठी,2,सपना महेश,1,सपना मांगलिक,1,समीक्षा,847,सरिता पन्थी,1,सविता मिश्रा,1,साइबर अपराध,1,साइबर क्राइम,1,साक्षात्कार,21,सागर यादव जख्मी,1,सार्थक देवांगन,2,सालिम मियाँ,1,साहित्य समाचार,98,साहित्यम्,6,साहित्यिक गतिविधियाँ,216,साहित्यिक बगिया,1,सिंहासन बत्तीसी,1,सिद्धार्थ जगन्नाथ जोशी,1,सी.बी.श्रीवास्तव विदग्ध,1,सीताराम गुप्ता,1,सीताराम साहू,1,सीमा असीम सक्सेना,1,सीमा शाहजी,1,सुगन आहूजा,1,सुचिंता कुमारी,1,सुधा गुप्ता अमृता,1,सुधा गोयल नवीन,1,सुधेंदु पटेल,1,सुनीता काम्बोज,1,सुनील जाधव,1,सुभाष चंदर,1,सुभाष चन्द्र कुशवाहा,1,सुभाष नीरव,1,सुभाष लखोटिया,1,सुमन,1,सुमन गौड़,1,सुरभि बेहेरा,1,सुरेन्द्र चौधरी,1,सुरेन्द्र वर्मा,62,सुरेश चन्द्र,1,सुरेश चन्द्र दास,1,सुविचार,1,सुशांत सुप्रिय,4,सुशील कुमार शर्मा,24,सुशील यादव,6,सुशील शर्मा,16,सुषमा गुप्ता,20,सुषमा श्रीवास्तव,2,सूरज प्रकाश,1,सूर्य बाला,1,सूर्यकांत मिश्रा,14,सूर्यकुमार पांडेय,2,सेल्फी,1,सौमित्र,1,सौरभ मालवीय,4,स्नेहमयी चौधरी,1,स्वच्छ भारत,1,स्वतंत्रता दिवस,3,स्वराज सेनानी,1,हबीब तनवीर,1,हरि भटनागर,6,हरि हिमथाणी,1,हरिकांत जेठवाणी,1,हरिवंश राय बच्चन,1,हरिशंकर गजानंद प्रसाद देवांगन,4,हरिशंकर परसाई,23,हरीश कुमार,1,हरीश गोयल,1,हरीश नवल,1,हरीश भादानी,1,हरीश सम्यक,2,हरे प्रकाश उपाध्याय,1,हाइकु,5,हाइगा,1,हास-परिहास,38,हास्य,59,हास्य-व्यंग्य,78,हिंदी दिवस विशेष,9,हुस्न तबस्सुम 'निहाँ',1,biography,1,dohe,3,hindi divas,6,hindi sahitya,1,indian art,1,kavita,3,review,1,satire,1,shatak,3,tevari,3,undefined,1,
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रचनाकार: मनोरंजक लोक कथाएँ - 11 - दो सौतेली बहिनें - नौर्स देशों की लोक कथाएँ-2// सुषमा गुप्ता
मनोरंजक लोक कथाएँ - 11 - दो सौतेली बहिनें - नौर्स देशों की लोक कथाएँ-2// सुषमा गुप्ता
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