मनोरंजक लोक कथाएँ - 6 - काली कठफोड़वा - नौर्स देशों की लोक कथाएँ-2// सुषमा गुप्ता

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6 काली कठफोड़वा [1] यह लोक कथा नौर्स देशों के पाँच देशों में से नौर्वे देश की लोक कथाओं से ली गयी है। एक बार की बात है कि एक काली कठफोड़वा चिड़...

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6 काली कठफोड़वा[1]

यह लोक कथा नौर्स देशों के पाँच देशों में से नौर्वे देश की लोक कथाओं से ली गयी है।

एक बार की बात है कि एक काली कठफोड़वा चिड़िया[2] नौर्वे के एक गाँव में अकेली रहती थी। उसको अकेले रहने की जरूरत तो नहीं थी पर वह अकेली ही रहती थी और यह उसकी अपनी गलती थी।

उस छोटे से गाँव में बहुत सारे परिवार रहते थे। इसके अलावा और भी बहुत सारे लोग रोज उस गाँव से गुजरते थे पर जब भी कोई उस चिड़िया से कोई मीठी बात करने की कोशिश करता तो वह छोटी बूढ़ी चिड़िया अपना सफेद ऐप्रन हिला हिला कर उनको भगा देती।

और अगर उसकी यह तरकीब काम नहीं करती तो वह अपनी खिड़की पर चम्मच या डंडी से मार मार कर टप टप करके इतना शोर मचाती कि वे उस शोर के डर से वहाँ से अपने आप ही भाग जाते।

जब बच्चे उसके घर खेलने के लिये आते तो वह एक डंडी उठाती अपने घर के एक तरफ ज़ोर ज़ोर से मारती – टप टप टप टप, और कहती कि “जाओ भाग जाओ यहाँ से। काली कठफोड़वा कहती है कि मेरे घर से भाग जाओ। ”

और बच्चे बेचारे वहाँ से चले जाते।

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यह बहुत बुरी बात थी पर सच्ची बात तो यह थी कि वह काली कठफोड़वा केक बहुत ही अच्छे बेक[3] करती थी। वह खाने के लिये बहुत छोटे छोटे स्वादिष्ट केक बनाती थी।

उन केक को बना बना कर वह अपने घर की खिड़की पर ठंडा होने के लिये रख देती थी। जो भी उधर से गुजरता उसको उन केक की बहुत अच्छी खुशबू आती सो वह उस खिड़की के पास ही उनकी खुशबू सूँघने के लिये वहाँ रुक जाता।

पर वह चिड़िया अपनी चम्मच उस खिड़की पर मारती – टप टप टप टप और बोलती — “भाग जाओ यहाँ से। ये केक मेरे लिये हैं। ”

एक दिन उस काली कठफोड़वा ने अपनी काली पोशाक पहनी और उसके ऊपर अपना सफेद ऐप्रन[4] लगाया। फिर उसने अपनी रसोई में जा कर बहुत अच्छी केक बनाने के लिये आटा लगाया और उसको उसने केक बनाने के लिये ओवन में रखा।

जब केक बन गया तो उसने उसको निकाला और रोज की तरह उसको ठंडा करने के लिये खिड़की पर रख दिया। और रोज की तरह लोग उस केक की खुशबू सूँघने के लिये वहाँ रुक गये।

चिड़िया ने फिर अपनी खिड़की पर टप टप टप टप किया और उन लोगों से कहा — “जाओ जाओ, यहाँ से जाओ। यह केक मेरे लिये है। ” तो उनमें से जो बड़े और समझदार लोग थे वे वहाँ से पहले ही चले गये।

उसने फिर घर के बाहर टप टप टप टप की और अबकी बार बच्चों को वहाँ से भाग जाने को कहा। बच्चे भी बेचारे वहाँ से दुखी हो कर चले गये।

वह चिड़िया फिर वहाँ अकेली रह गयी सिवाय एक बूढ़े आदमी के। यह बूढ़ा आदमी कोई अजनबी था। उस बूढ़े को उसने पहले कभी नहीं देखा था।

उसने अपनी चम्मच से अपनी बेकिंग तश्तरी पर फिर से टप टप टप टप की और उस बूढे से बोली — “जाओ यहाँ से। तुमने सुना नहीं क्या? यह केक केवल मेरे लिये है। ”

वह बूढ़ा बोला — “ओ मेहरबान बूढ़ी स्त्री। ” बूढ़े ने उसको नरमी से पुकारा क्योंकि वह तो बिल्कुल भी मेहरबान नहीं थी।

वह बोला — “तुम्हारी केक की खुशबू सूँघ कर तो मैं यहाँ खड़े बिना नहीं रह सका। अगर तुम अपनी केक में से थोड़ा सा केक मेरी भूख मिटाने के लिये मुझे दे दोगी तो मैं यहाँ से चला जाऊँगा। ”

वह बूढ़ी चिड़िया बोली — “यह केक केवल मेरे लिये है ओ बूढ़े। इसको मैं किसी को नहीं दे सकती। चले जाओ यहाँ से। ”

बूढ़ा बोला — “किसी अजनबी को भूखे वापस भेज देना बहुत अपशकुन होता है। मैं जरूर चला जाऊँगा पर पहले तुम मुझे एक टुकड़ा केक का दे दो। ”

यह सुन कर बूढ़ी चिड़िया बोली — “ठीक है पर यह केक तुम्हारे लिये बहुत बड़ा है। मैं तुम्हारे लिये दूसरा छोटा केक बनाती हूँ। तब तक तुम अन्दर आ जाओ और आ कर यहाँ आग के पास बैठो। ” सो वह बूढ़ा अन्दर आ गया और अन्दर आ कर आग के पास बैठ गया।

तब तक उस चिड़िया ने एक छोटा से केक का आटा बनाया और उसको बेक होने के लिये ओवन में रख दिया। पर जब वह केक बन गया तो उसने देखा कि वह केक तो उस पहले वाले केक से भी बड़ा था जो उसने अपने लिये बनाया था।

वह बोली — “अरे यह केक तो तुम्हारे लिये बहुत ही बड़ा है सो यह केक भी मेरा ही है। मैं तुम्हारे लिये और दूसरा छोटा केक बनाती हूँ। ” यह कह कर वह उस बूढ़े के लिये एक और छोटा केक बनाने में लग गयी।

वह बूढ़ा वहीं आग के पास बैठा इन्तजार करता रहा। इस बार उसने पहले से भी बहुत थोड़ा आटा लिया और उसका केक बनाया। पर इस बार भी जब उसका यह केक बन गया तो उसने देखा कि वह केक तो उसके पहले और दूसरे केक से भी बहुत बड़ा था।

बूढ़ी चिड़िया को यह देख कर बड़ा आश्चर्य हुआ। वह उस केक को देखते हुए बोली — “यह केक तो तुम्हारे लिये बहुत ही बड़ा है। तुम अभी और इन्तजार करो, मैं तुम्हारे लिये एक छोटा केक बनाती हूँ। ”

यह कह कर उसने अपना सबसे छोटा कटोरा लिया, और उसमें सबसे कम आटा बनाया, और उसको अपने सबसे छोटे केक बनाने के बरतन में रख कर ओवन में रख दिया।

पर जब वह केक बन गया तो उस बूढ़ी चिड़िया ने देखा तो वह तो उसका सबसे बड़ा केक था।

उसने अपने केक बनाने वाले बरतन पर अपनी चम्मच मारी – टप टप टप टप, और बोली — “मैंने तुमसे कहा था न कि तुम चले जाओ यहाँ से। यह केक भी मेरा है। तुम्हारे लिये यहाँ कोइ केक वेक नहीं है। ”

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वह अजनबी उठ कर जाने लगा और बोला — “मैंने भी कहा था न कि अजनबी को भूखे जाने देना अपशकुन होता है। मैं बूढ़े के रूप में एक परी हूँ। मुझे वे दयावान लोग पसन्द हैं जो एक दूसरे के साथ अच्छा बरताव करते हैं। मुझे मतलबी लोग अच्छे नहीं लगते।

मैं इस उम्मीद में था कि एक दिन तुम अपने केक दूसरों के साथ बाँटोगी, तुम्हारे केक को इतना स्वादिष्ट बनाने के लिये मैं बहुत दिनों तक अपना जादू इस्तेमाल करता रहा पर तुमने तो किसी को एक छोटा सा केक भी नहीं दिया। अब तुम अपने केक अपने आप खाओ और आगे से अब तुम कोई केक नहीं बना पाओगी। ”

यह कह कर वह अजनबी गायब हो गया।

वह काली कठफोड़वा अपने केक खाने के लिये मेज पर बैठी तो जैसे ही उसने केक उठाने के लिये अपने हाथ बढ़ाये तो उसने देखा कि खाने के लिये तो उसके हाथ ही नहीं थे।

उसने शीशे में देखा तो उसको तो लाल सिर वाला एक कठफोड़वा[5] दिखायी दिया। उसका लाल सिर था, काला शरीर था और उसके शरीर का आगे का हिस्सा सफेद था। लगता था जैसे कि उसने ऐप्रन पहन रखा हो।

अब जब भी कभी तुम लाल सिर वाला कठफोड़वा देखो तो तुम सोच सकते हो कि वह काली कठफोड़वा सफेद ऐप्रन पहने कैसी लगती थी।

इसके अलावा तुम आज भी सब कठफोड़वाओं को टप टप टप टप की आवाज करते पाओगे। ये आवाजें उसके लकड़ी पर अपनी चोंच मारने से आती हैं जब वह खाने के लिये उनमें से कीड़े ढूँढने की कोशिश करते हैं।

क्योंकि अब उसके लिये कोई केक तो है नहीं क्योंकि अब उसके हाथ नहीं हैं और हाथ न होने की वजह से वह न तो अब केक बना सकती है और न ही खा सकती है।

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[1] The Gertrude Bird – a folktale from Norway, Europe. Adapted from the Web Site :

http://www.mikelockett.com/stories.php?action=view&id=118

Retold and written by Mike Lockett.

This story fits story where an unkind person is turned into an animal. One of its other versions is told in England as “Baker’s Daughter”.

[“Baker’s daughter” or “Baker Ki Betee” in Hindi, has been published in the book “Britain Ki Lok Kathayen-2” by Sushma Gupta in Hindi Language.

Besides “Gertrude Bird” tale has been given on the web page of the same author Mike Lockett http://www.mikelockett.com/popstory.php?id=170 too.

[2] Translated for the word “Gertrude” bird. It is like woodpecker bird – see its picture above.

[3] Baking is different from frying, roasting etc processes of cooking food. Baking is done in oven. Baking is very common and normal practice in western countries.

[4] Apron – a piece of cloth worn over the dress to save one’s dress from being spoiled while cooking.

[5] Translated for the word “Woodpecker”.

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सुषमा गुप्ता ने देश विदेश की 1200 से अधिक लोक-कथाओं का संकलन कर उनका हिंदी में अनुवाद प्रस्तुत किया है. कुछ देशों की कथाओं के संकलन का  विवरण यहाँ पर दर्ज है. सुषमा गुप्ता की लोक कथाओं के संकलन में से सैकड़ों लोककथाओं के पठन-पाठन का आनंद आप यहाँ रचनाकार के  लोककथा खंड में जाकर उठा सकते हैं.

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रचनाकार: मनोरंजक लोक कथाएँ - 6 - काली कठफोड़वा - नौर्स देशों की लोक कथाएँ-2// सुषमा गुप्ता
मनोरंजक लोक कथाएँ - 6 - काली कठफोड़वा - नौर्स देशों की लोक कथाएँ-2// सुषमा गुप्ता
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